व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क Arguments for and against nationalisation of commercial banks

व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क Arguments for and against nationalisation of commercial banks

व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क Arguments for and against nationalisation of commercial banks

व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क

प्रश्न. व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करी

(Give arguments for and against nationalisation of commercial banks.)

"एक पूँजीवादी देश में भी बैंकिंग का राष्ट्रीयकरण आवश्यक है।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।

("Nationalisation of banking is necessary even in a capitalist country." Do you agree with this statement? Give reasons for your answer.)

उत्तर: व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए अथवा नहीं यह अब तक एक विवाद का विषय रहा है। व्यावसायिक बैंकों के बढ़ते हुए महत्व एवं देश के आर्थिक विकास में इसकी अहम् भूमिका को देखते हुए कुछ अर्थशास्त्रियों ने इसके राष्ट्रीयकरण को आवश्यक समझा है। दूसरी ओर अर्थशास्त्रियों का एक ऐसा भी वर्ग है जो व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण को उचित नहीं माना है। मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दिये जाते रहे हैं।

व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में तर्क

व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण का जोरदार वकालत Prof Sayers ने अपनी प्रसद्ध पुस्तक 'Modern Banking' में की है। उन्होंने निम्नलिखित चार दृष्टिकोण से व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की समस्या पर विचार किया है-

1. मौद्रीकरण (Monetisation)

2. एकीकरण (Integration)

3. समाजीकरण (Socialisation)

4. कार्यकुशलता (Elliciency)

1. मौद्रीकरण: साख-मुद्रा का निर्माण व्यावसायिक बैंकों के द्वारा किया जाता है। यदि साख निर्माण पर नियंत्रणा न रखा जाये तो अर्थव्यवस्था में मुद्रा-स्पति अथवा मुद्रा-संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जो अर्थव्यवस्था के लिए बहुत हो खनिकारक है। अतः साख पर नियंत्रण की दृष्टि से व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण आवश्यक है।

व्यावसायिक बैंक बैंक-जमा के आधार पर साख का निर्माण कर लाभ कमाने हैं। इस बैंक जमा पर निजी स्वामित्व न लेकर राष्ट्रीय स्वामित्व होना चाहिए तथा इसका लाभ निजी हिस्सेदारों को न मिलकर समाज को मिलना चाहिए। इस प्रकार का तर्क प्रायः दिया जाता है। यह तर्क बहुत ही तार्किक एवं सशक्त है।

इसके अतिरिक्त मौद्रिक क्षेत्र में मुद्रा-एकाधिकार की स्थापना की संभावना को दूर करने के लिए भी व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की वकालत की जाती है। वस्तुतः इंगलैण्ड में पंच महान इसके उदाहरण हैं जो आपस में मिलकर मुद्रा एकाधिकार की स्थापना करने में समर्थ हैं। अत इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण आवश्यक समझा जाता है।

2. एकीकरण : देश की मौद्रिक तथा वित्तीय नीतियों के सफल संचालन का दायित्व उस देश के केन्द्रीय बैंक पर रहता है। केन्द्रीय बैंक देश की मौद्रिक नीति का कार्यान्वयन सफलतापूर्वक तभी कर सकता है जब उनका प्रभावी नियंत्रण व्यावसायिक बैंकों पर हो। केन्द्रीय बैंक के अधिकार नियम, परिनियम के तहत वहले गये हैं ताकि उनका नियंत्रण व्यावसायिक बैंकों पर हो सके। परन्तु व्यावसायिक बैंडों की अधिक संख्या तथा उनके दूर-दूर तक फैले रहने के कारण उन पर केन्द्रीय बैंक का समुचित नियंत्रण नहीं हो पाता है। व्यावसायिक बैंकों पर प्रभावी नियंत्रण केन्द्रीय बैंक का हो सके इस बात को ध्यान में रखकर बैंकों के रराष्ट्रीयकरण की वान की जाती है। कहा जाता है कि राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की संख्या को कम की जा सकती है। असंख्य स्वतंत्र एवं बिखरे बैंकों का एकीकरण कर उस पर केन्द्रीय बैंक का अधिक प्रभावपूर्ण नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है।

3. समाजीकरण: समाजवादी अर्थव्यवस्था के निर्माण के दौरान उद्योग-धंधों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है। उद्योग-धंधों के विकास के मार्ग में व्यावसायिक बैंक बाथक न बन सके, इसलिए व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बात की जाती है। ऐसा हो सकता है कि व्यावसायिक बैंक राष्ट्रीयकृत उद्योग-धंधों को साख की सुविधा न दे वा देना कम कर दें। इसलिए यह समझा जाता है कि समाजवादी समाज की स्थापना अगर किसी देश का उद्देश्य है तो व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी आवश्यक है।

4. कार्यकुशलता : व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्षधर याह दावा करते है कि राष्ट्रीयकरण के बाद ब्यावसायिक बैंकों के बीच की अनुचित प्रतियोगिता समाप्न ये जायेगी। अतः उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होगी तथा उनका कार्य मितव्ययितापूर्वक -होंने लगेगा। जब व्यावसायिक बैंक निजी क्षेत्र में होते हैं तो वे आपसी प्रतियोगिता के कारण आधिक शाखाएँ खोलते हैं। उनकी शाखाएँ दूर-दूर तक फैली रहती है अतः उनका प्रबंधकीय व्यय बढ़ जाता है।

Prof Savers इस तर्क के प्रति उदासीन है क्योंकि उन्होंने यह भी कहा है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों की तुलना में निजी प्रवन्धवाले बैंक भी कम कार्यकुशल नहीं होते। ऐसा उन्होंने 'Bank of England' को ध्यान में रखते हुए कहा है।

व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में कुछ और तर्क भी दिये गये हैं। वे निम्नलिखित है-

5. व्यापार-चक्र पर नियंत्रण (Control of Trade Cycle) स्वतंत्र अर्थव्यवस्था में व्यापार चक्र की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण व्यावसायिक बैंकों की दोरपूर्ण साख नोति रही है। व्यावसायिक बैंक एक लाभ कमाने वाली संस्था है। वह व्यक्तिगत लाभको ध्यान में रखते हुए साख का संकुचन या साख का प्रसार करता है। प्रायः गाख मुद्रा तथा राष्ट्रीय आवश्यकता के बीच उचित समायोजन नहीं हो पाता है। अतः अर्थव्यवस्था में मंदी तथा तेजी की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। यदि व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीकरण कर लिया जाता है तो निश्चित ही व्यापार-चक्र पर नियंण हो जायेगा।

6. बैंकों के लाभों का जनहित में उपयोग (Use of Bank's Profit for Public Welfare): व्यावसायिक बैंकों के लाभ का आधार जनता से प्राप्त जमा है। इसी जमा के आधार पर साख का सृजन कर वे लाभ कमाते हैं। अतः लाभ कस उपयोग भी जनता के हित में होना चाहिए। ऐसा व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण से ही हो सकता है।

राष्ट्रीयकरण के विपक्ष में तर्क

व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं -

1. कार्यकुशलता में कमी (Decrease in Efficiency): राजकीय प्रशासन में लालफीताशाही तथा नौकरशाही के दोष पाये जाते हैं। वे सभी दोष व्यावसायिक वैच्चे में भी आ जायेंगे। अतः व्यावसायिक बैंकों की कार्यक्षमता कम हो जायेगी। राष्ट्रायकृत बैंकों के कर्मचारी अपने ग्राहकों के हिस्सों के प्रति उदासीन रहते हैं। वे निजी बैंकों के समान बैंकिंग सेवा विस्तार तथा कार्यकुशलता में वृद्धि के प्रति उदासीन हो जाते हैं।

2. गोपनीयता का अन्त (End of Secrecy): व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में एक तर्क यह है कि जब बैंकों का स्वामित्व सरकार के अधीन हो जाना है तो व्यापारियों एवं उद्योगपतियों की व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक गोपनीयता समाप्त हो जाती है।

3. ऋण देने में पक्षपात (Favouritism in Grant of Loan): यह भय प्रकट किया जाता है कि वैया के राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की कार्यविधि में राजनीति का प्रवेश हो जायेगा। बैंकिग नीति राजनीतिक दवाव में आ जायेगी ऐसे में राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कुछ व्यावसायिक बैंक कुछ विशेष वर्ग के लोगों एवं उद्योगों को प्रोत्साहित करेंगे। अतः बैंकिंग व्यवसाय में पक्षपात होने लगेगा।

4. प्रतियोगिता का अभाव (Lack of Competition) कार्यक्षमता में बढ़ोत्तरी के लिए प्रतियोगिता का होना आवश्यक है लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की आपसी प्रतियोगिता समाप्त हो जाती है।

ऊपर के विश्लेषण से अर्थात् व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष और विपक्ष में तकों के बिश्लेपण से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि राष्ट्रीयकरण के पक्ष के तर्क अधिक तार्किक तथा सशक्त हैं जबकि विपक्ष के तर्क बहुत ही कम महत्व के हैं। ऐसे में हम अपने निर्णय में प्रो. जी. डी. एच. कोल की निम्न बातों को रख सकते हैं - "यदि राष्ट्रीयकरण के बिना ही उचित नियंत्रण प्राप्त किया जा सके तो बैंकों का समाजीकरण आवश्यक नहीं है जिससे सामान्य आर्थिक नियोजन की अनिवार्यताओं के अनुरूप साख के वितरण की व्यवस्था की जा सके। लेकिन, योजना के सफल संचालन के लिए सस्ती दर पर साख की आपूर्ति हेतु यह नितान्त आवश्यक भी हो जाता है।"

इसी आधार पर एक पूँजीवाटी देश में भी बैंकिंग का राष्ट्रीयकरण आवश्यक समग्रा जाता है। लेकिन USA में एक भी बैंक राष्ट्रीकृत नहीं है फिर भी वहाँ की बैंकिग प्रणाली देश की आकांक्षाओं के अनुकूल कार्य कर रही है। England में भी निजी स्वामित्व एवं प्रबंध के अन्तर्गत व्यावसायिक बैंकों का बहुमुखी विकास हुआ है। दूसरी ओर फ्रांस तथा भारत ऐसे देश हैं जहाँ राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों ने सराहनीय प्रगति की है।

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