लंदन मुद्रा बाजार एवं न्यूयार्क बाजार से इसकी तुलना
प्रश्न 7. लंदन मुद्रा बाजार की विभिन्न विशेषताओं की
चर्चा करें तथा न्यूयार्क बाजार से इसकी तुलना करें।
(Discuss the main features of London
Money Market and compare it with New York Money Market.)
उत्तर: लंदन मुद्रा बाजार विश्व का एक प्रमुख तथा सबसे
प्राचीन मुद्रा बाजार है। इसने काफी लम्बे समय तक विश्व मुद्रा बाजार का
प्रतिनिधित्व किया है। लंदन मुद्रा बाजार में अल्पकालीन कोष के लेन-देन के लिए
विभिन्न प्रकार के उधारकर्ता तथा उधारदाता टेलिफोन पर किये गये बात के आधार पर
लेन-देन का कार्य करते है।
लंदन मुद्रा बाजार की निर्णायक संस्थाएँ (Constituents
of London Money Market):
लंदन मुद्रा बाजार की निम्नलिखित निर्णायक संस्थाएँ हैं
:-
1. बैंक ऑफ इंगलैण्ड (Bank of England)
2. व्यावसायिक बैंक (Commercial Banks)
3. स्वीकृति गृह (Acceptance Houses)
4. बट्टा गृह (Discount Houses)
5. बिल ब्रोकर (Bill Brokers)
6. प्रचलित दलाल (Running Brokers)
1. बैंक ऑफ इंगलैण्ड (Bank of England): यह 1844 ई. से केन्द्रीय बैंक के रूप में कार्य कर रहा है। यह देश के समस्त मौद्रिक
नीति तथा बैंकिंग नीति का नियंत्रक तथा संचालक है। देश के मुद्रा बाजार में इसका
महत्त्वपूर्ण स्थान है। USA Federal Reserve System केन्द्रीय बैंक है। वहाँ
Federal Reserve System, मौद्रिक तथा वित्तीय नीतियों का नियंत्रण तथा संचलान करता
है।
2. व्यावसायिक बैंक : इंगलैण्ड
के व्यावसायिक बैंकों का महत्त्व वहाँ के मुद्रा बाजार में बहुत अधिक है। वहाँ व्यावसायिक बैंकों की
संख्या बहुत अधिक है जो मुख्य रूप से जमा प्राप्त करने, ऋण देने तथा अन्य सामान्य
सुविधा सम्बन्धी कार्य करते हैं। व्यावसायिक बैंकों के स्थान पर USA में सदस्य
बैंक होते हैं। सदस्य बैंक के कार्य वही होते हैं जो दूसरे देशों में व्यावसायिक
बैंकों के होते हैं। मुद्रा बाजार व्यावसायिक बैंकों को अल्पकालीन ऋण दिया करते
हैं। इस तरह व्यावसायिक बैंकों के साधनों की तरलता को बनाये रखते हैं।
3. स्वीकृति गृह (Acceptance Houses): स्वीकृति गृह ऐसी संस्थाएँ हैं जो मुद्रा बाजार में विशेष स्थान रखती हैं। इस तरह के
स्वीकृति गृह न्यूयार्क मुद्रा बाजार में नहीं है। स्वीकृति गृह वैसी संस्थाएँ हैं
जो अपने ग्राहकों की हुण्डियों अथवा विनिमय बिलों पर अपना मुहर लगाकर उन्हें
विनिमयसाध्य बनाती है। सामान्यतः मुद्रा बाजार में हुण्डियों तथा विनिमय बिलों के
आधार पर ही लेन-देन का कार्य होता है। जिन विनिमय बिलों पर स्वीकृति गृह अपनी
स्वीकृति प्रदान कर देते हैं उनका भुगतान निश्चित हो जाता है।
4. बट्टा गृह (Discount Houses): बड़ा गृह वैसी संस्थाएँ है जो विनिमय बिलों तथा हुण्डियों को बट्टा करने का कार्य करती हैं।
England के व्यावसायिक बैंक इन्हीं बट्टा गृहों से ही प्रायः अल्पकालीन ऋण लिया
करते हैं। बड्डा गृह कुछ अन्य कार्य भी करते हैं। लंदन मुद्रा बाजार में नीन
बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ बड्डा गृहों के नाम से प्रसिद्ध है-
The Union
The National
The Alexanders
ये कम्पनियों व्यापारियों से उनकी
हुण्डियों को खरीदकर या बिलों को खरीदकर उन्हें पूँजी उपलब्ध कराती है।
5. बिलों के दलाल (Bills Brokers) मुद्रा बाजार में कुछ छोटी-छोटी
कम्पनियों है जिनका संगठन संयुक्त पूँजी कम्पनी के आधार पर होता है। इन्हें ही
बिलों का दलाल कहा जाता है। बिलों के दलाल बिल तथा हुण्डियों को स्वयं अपने खरीदने
के साथ-साथ बाहरी बैंक तथा अन्य ग्राहकों के लिए भी खरीदते तथा ऋण की व्यवस्था
करते हैं।
6. प्रचलित दलाल (Running
Brokers): लंदन मुद्रा बाजार में तीन चार छोटी-छोटी संस्थाएँ हैं जो हुण्डियाँ खरीदती
है। इन्हें ही प्रचलित दलाल कहा जाता है। ये बाहरी बैंकों तथा अन्य ग्राहकों के
एजेण्ट के रूप में कार्य करती है।
लंदन मुद्रा बाजार में लेन-देन
किये जाने वाले वाणिज्य पत्र
लंदन मुद्रा बाजार में लेन-देन का
कार्य निम्नलिखित पत्रों के आधार पर किया जाता है:
1. विनिमय बिल (Bills of
Exchange): प्रो. सेयर्स के अनुसार, विनिमय बिल वस्तुओं के ऐसे क्रय-विक्रय, जिनके पूरा
होने में समय लगता है, के लिए सुविधापूर्वक तरीके से वित्त प्राप्त करने का एक
प्रमुख साधन है। क्राउबर ने भी कहा है, विनिमय बिल एक लिखित पत्र है जिसमें एक
निश्चित रकम को एक निश्चित तिथि के बाद, जो कभी भी तीन महीने से अधिक नहीं होता,
चुकाने का वायदा अंकित है। प्रथम विश्वयुद्ध के पहले तक लेन-देन का कार्य मुद्रा
बाजार में विनिमय बिलों के द्वारा ही होता था। अतः विनिमय बिलों का विशेष महत्त्व
था, लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इसका महत्त्व कम होने लगा।
2. ट्रेजरी बिल (Treasury Bills): यह एक प्रकार का प्रतिज्ञा-पत्र
है जिसे ब्रिटिश सरकार जारी करती है। इसे एक प्रकार का हुण्डी कहा जाता है।
ब्रिटिश सरकार इन प्रकार की हुण्डियों को जारी कर मुद्रा प्राप्त करती है। चूंकि
यह सरकारी पत्र है इसलिए इसमें विनिमय माध्यता बहुत अधिक होती है। इन सरकारी
हुण्डियों की अवधि 90 दिनों की होती है। सरकारी हुण्डियों के चलाने के दो तरीके
हैं:
- Tap method
- Tender method
Tap method के अन्तर्गत हुण्डियों
की बिक्री सरकारी विभागों के हाथों की जाती है। जब Jender method में सरकारी
हुण्डियाँ खुले बाजार में चलायी जाती हैं और जो संस्थाएँ उन्हें सबसे कम दर पर
खरीदती हैं उन्हीं के हाथों इसे बेनी जाती है।
3. अल्पकालीन सरकारी प्रतिभूतियाँ
(Short dated Government Bonds or Securities): 1929 ई. तथा 1930 ई. की मंदी के
बाद मुद्रा बाजार में अल्पकालीन सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय बहुत ही बढ़
गया। प्रथम महायुद्ध के बाद से ही सरकार ने अपने बढ़ते हुए व्ययों को पूरा करने के
लिए 1, 2 अथवा 5 वर्ष के बहुत से अल्पकालीन ऋण-पत्रों का जारी करना शुरू कर दिया
था। जैसे-जैसे इन ऋण-पत्रों की अवधि समीप आती जाती है ये मुद्रा बाजार के लिए
सुयोग्य पत्र बनते जाते है। बट्टा गृह ऐसे ऋण-पत्रों को खरीदते हैं जिनकी अवधि
प्रायः समाप्त होने को रहती है। ऐसे ऋण-पत्रों पर मुद्रा बाजार का एक निश्चित
मात्रा में लाभ प्राप्त होता है।
लंदन में वैसे व्यक्ति, फर्म
अथवा बैंक अधिक संख्या में हैं जिनका डॉलर के
रुप में न्यूयार्क अथवा USA के किसी स्थान के बैंक में धन जमा होता है। डॉलर चाहने वाले लोग लंदन में विदेशों से आते हैं और डॉलर खरीदते हैं। यह कार्य यूरो डॉलर पत्र के रूप में होता है। स्थानीय सरकारों के बाजार में भी
लेन-देन का कार्य होता है। इस बाजार से कर्ज सात दिनों के लिए दिया जाता है। अन्तर
बैंक बाजार विभिन्न बैंकों के बीच लेनदेन के लिए बाजार है।
न्यूयार्क मुद्रा बाजार
न्यूयार्क मुद्रा बाजार विश्व में
एक अनोखा संगठित मुद्रा बाजार है जिसका विकास प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हुआ।
अल्पकालीन ऋण के लिए इस तरह का संगठित मुद्रा बाजार कोई दूसरा नहीं है।
न्यूयार्क मुद्रा बाजार
व्यापारियों के छोटे समूह के हाथ में है जिसमें पाँच प्रमुख बैंक तथा उसके
अतिरिक्त लगभग 12 अन्य संस्थाएँ अथवा व्यक्ति है जो न्यूयार्क के बाल स्ट्रीट में
केन्द्रित है। अमेरिका में 'स्वीकृति गृह' और 'बट्टा गृह' नहीं है। इसलिए सदस्य
बैंकों का ही महत्त्व बहुत अधिक है। सदस्य बैंकों का सीधा सम्बन्ध फेडरल रिजर्व
प्रणाली से रहता है। आवश्यकता पड़ने पर सदस्य बैंक फेडरल रिजर्व प्रणाली से ऋण
लिया करता है।
न्यूयार्क मुद्रा बाजार के कार्य :
न्यूयार्क मुद्रा बाजार में
लेन-देन का कार्य निम्नलिखित, साधनों के आधार पर होता है:一
1. व्यावसायिक प्रपत्र : यह एक प्रकार का अल्पकालीन
प्रतिज्ञा-पत्र है जिसे कुछ व्यवसायी अल्पकालीन ऋण के लिए
कुछ विशेष परिस्थितियों में जारी करते हैं। इस प्रकार के व्यावसायिक प्रपत्रों की
अवधि तीन महीने से लेकर छः महीने तक को होती है। सामान्यतः इस तरह के प्रपत्र को
जब कोई सदस्य बैंक खरीदता है तो उसकी परिपक्वता तक वह उसे अपने ही पास रखता है
यद्यपि फेडरल रिजर्व प्रणाली से इसका बट्टा कराया जा सकता है।
2. विनिमय बिल: न्यूयार्क मुद्रा वाजार में
विनिमय बिलों के आधार पर भी लेन-देन का कार्य होता है। विनिमय
बिलों को खरीदकर बैंक जिस साख की सृष्टि करना है उसे बैंक स्वीकृति (Banks
acceptances) कहा जाता है। विश्व के अन्य मुद्रा बाजारों में भी विनिमय बिलों के
आधार पर कार्य होता है, लेकिन अमेरिका की तरह नहीं। अमेरिका में चूंकि बड़ा गृह
नहीं है इसलिए विनिमय बिलों को सदस्य बैंक व्यापारियों से ही खरीदते हैं।
3. शेयर बाजार को दिया जानेवाला ऋण
: अमेरिका
में बैंक अंश बाजार को तो ऋण दिया करते हैं। अमेरिका
में बैंक भी कम्पनियों के हिस्से में अपनी पूजा लगाते हैं। वहाँ के बैंकों के
विनियोग का अधिकांश भाग शेयर बाजार को दिया जाने वाता ऋण ही है।
4. ट्रेजरी सर्टिफिकेट न्यूयार्क में बैंक तथा मुद्रा
बाजार की संस्थाएँ कोषागार प्रमाणपत्र को खरीदकर सरकार को अल्पकालीन ऋण देती है।
न्ययार्क के टेज : सर्टिफिकेट लंदने ट्रेजरी सर्टिफिकेट की तरह ही होते हैं।
5. लंदन मुद्रा बाजार में अल्पकालीन ऋण (Loans at Call and
Short Notice) की प्रधानता रहती है। अतः व्यावसायिक बैंक के साधन बहुत ही तरल बने रहते
हैं।
6. लंदन मुद्रा बाजार का विकास उस तेजी से अब नहीं हो रहा है
जिस तेजी से न्यूयार्क मुद्रा बाजार का वर्तमान समय में हो रहा है। लंदन मुद्रा बाजार
अब विश्व मुद्रा बाजार नहीं रह गया।
न्यूयार्क मुद्रा बाजार तथा लंदन
मुद्रा बाजार में अन्तर :
न्यूयार्क मुद्रा बाजार तथा लन्दन
मुद्रा बाजार में निम्नलिखित अन्तर हैं-
लंदन मुद्रा बाजार |
न्यूयार्क मुद्रा बाजार |
1. लंदन मुद्रा बाजार में स्वांकृति गृह तथा बड्डा गृह हैं।
स्वीकृति गृह विशेष प्रकार की वे संस्थाएँ हैं जो अपने ग्राहकों की हुण्डियों अथवा
विनिमय बिलों पर अपनी मुहर लगाकर उन्हें विनिमयसाध्य बनाती हैं। बट्टा गृह ऐसी संस्थाएँ
हैं जो हुण्डियों अथवा विनिमय बिलों को बट्टा करने का कार्य करती हैं। लंदन मुद्रा
बाजार में स्वीकृति गृहों एवं बड्डा गृहों की प्रधानता है। |
न्यूयार्क मुद्रा बाजार में स्वीकृति गृह और बट्टा गृह
नहीं हैं। अतः यहाँ के मुद्रां बाजार में सदस्य बैंकों की ही प्रधानता रहती है।
न्यूयार्क का मुद्रा बाजार व्यापारियों के एक छोटे समूह के हाथ में है जिनमें
पाँच प्रमुख बैंक तथा 12 अन्य संस्थाएँ या व्यक्ति है जो वाल स्ट्रीट में
केन्द्रित है। |
2. लंदन मुद्रा बाजार में भी विनिमय बिलों के आधार पर लेन-देन
का कार्य होता है विनिमय बिलों के लेन-देन का कार्य बड्डा गृह तथा स्वीकृति गृह के
माध्यम से किया जाता है। 'Banker's Acceptances' जैमी कोई बात लंदन मुद्रा बाजार
में नहीं होती है। |
चूँकि न्यूयार्क मुद्रा बाजार में न तो बट्टा गृह है और न
स्वीकृति गृह अतः सदस्य बैंक सीधे व्यापारियों से ही विनिमय बिलों को खरीदते
हैं। विनिमय बिलों को खरीद कर न्यूयार्क मुद्रा बाजार में जिस प्रकार के साख का
सृजन होता है उसे "Banker's Acceptances" कहा जाता है। |
3. लंदन मुद्रा बाजार में विनिमय बिल बहुत ही तरल होते हैं। |
न्यूयार्क मुद्रा-बाजार में विनिमय विल वास्तव में उतने
तरल नहीं होते है जितना की लंदन मुद्रा बाजार में हुआ करता है। |
4. 'वाणिज्य पत्र' लंदन मुद्रा बाजार में नहीं होता है। |
वाणिज्य पत्रों द्वारा लेन-देन का कार्य न्यूयार्क मुद्रा
बाजार का एक प्राचीन एवं अनोखा साधन है। वाणिज्य पत्र एक प्रकार का अल्पकालीन
प्रतिज्ञा-पत्र है जिसे कुछ व्यवसायी अल्पकालीन ऋण माप्त करने के लिए कुछ विशेष
स्थितियों में जारी करते हैं। |
5. लंदन मुद्रा बाजार में अल्पकालीन ऋण (Loans at Call
and Short Notice) की प्रधानता रहती है। अतः व्यावसायिक बैंक के साधन बहुत ही तरल
बने रहते हैं। |
न्यूयार्क मुद्रा बाजार में बैंक शेयर बाजार को अल्पकालीन
ऋण देते हैं। अमेरिका में बैंक भी कम्पनियों के हिस्से में अपनी पूँजी लगाते
हैं। वहाँ के बैंकों के विनियोग का अधिकांश भाग शेयर बाजार को दिया जाने वाला ऋण
ही होता है। |
6. लंदन मुद्रा बाजार का विकास उस तेजी से अब नहीं हो रहा
है जिस तेजी से न्यूयार्क मुद्रा बाजार का वर्त्तमान समय में हो रहा है। लंदन मुद्रा
बाजार अब विश्व मुद्रा बाजार नहीं रह गया। |
न्यूयार्क मुद्रा बाजार का विकास तीव्र गति से हो रहा है।
इसके लेन-देन की मात्रा भी तेजी से बढ़ रही है। यह विश्व-मुद्रा बाजार का
प्रतिनिधि बन गया है। |
अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय केन्द्र के
रूप में न्यूयार्क मुद्रा बाजार का बढ़ता हुआ महत्त्व :
न्यूयार्क मुद्रा बाजार का उदय
1914 ई. में हुआ और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लंदन मुद्रा बाजार से इसने विश्व का
नेतृत्व छीन लिया। इस तीव्र विकास के निम्नलिखित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारण हैं
:-
1. 1913 ई. में 'Federal Reserve
System' की स्थापना हुई। यह अमेरिका का केन्द्रीय बैंक है। इसकी स्थापना से देश के
मौद्रिक संस्थाओं को बहुत अधिक बल मिला।
2. प्रथम विश्वयुद्ध काल तथा 1920 ई.
के आर्थिक संकट के कारण लंदन मुद्रा बाजार के महत्त्व में कमी आयी जबकि न्यूयार्क मुद्रा
बाजार इससे अप्रभावित रहा।
3. प्रथम विश्व युद्ध काल में USA में
स्वर्ण का अन्तर्गमन हुआ।
4. डॉलर की शक्ति में वृद्धि हुई।
5. द्वितीय विश्वयुद्ध काल में ही
USA का विश्व के सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक राज्य के रूप में अभ्युदय हुआ।
6. USA में बड़ी मात्रा में पूँजीगत
साधनों का संग्रह था और USA इनका निर्यात करने लगा।
7. USA द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ही
विश्व का सबसे बड़ा ऋणदाता देश बन गया।
8. सरकारी लेन-देन में भारी वृद्धि
हुई।
9. अमेरिकी पूँजी का विदेशों में प्रवाह
बढ़ा।
10. अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं
का विकास यथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (International Monetary Fund), विश्व बैंक
(World Bank) आदि संस्थाएँ अस्तित्व में आयी।
उपर्युक्त कारणों के फलस्वरूप न्यूयार्क
मुद्रा बाजार का विकास तेजी से हुआ और वह विश्व का सबसे बड़ा मुद्रा बाजार बन गया।