कृषि विकास में रिजर्व बैंक की भूमिका (Role of Reserve Bank in Agriculture development)
प्रश्न. कृषि विकास में रिजर्व बैंक की
भूमिका का वर्णन करें? (Explain Role of Reserve Bank in Agriculture development)
प्रश्न. कृषि-वित्त प्रदान करने में रिजर्व
बैंक की भूमिका का वर्णन करें। (Explain the role of RBI in providing
agricultural credit.)
उत्तर : भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था
है। भारत के आर्थिक विकास में कृषि का महत्त्व बहुत ही अधिक है परन्तु भारतीय कृषि
विभिन्न समस्याओं से ग्रसित है। इनमें सबसे बड़ी समस्या साख के अभाव की है। इस
समस्या की ओर रिजर्व बैंक का ध्यान शुरू से ही रहा है।
भारत में केन्द्रीय बैंक की स्थापना 1935 ई. में हुई। भारत
का केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया है। भारतीय केन्द्रीय बैंक अथवा RBI में
भारतीय कृषि- साख एवं उससे सम्बन्धित समस्याओं के समाधान के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की गई
है जिसे कृषि साख विभाग (Agricultural Credit Department) का जाता है। इस विभाग का
काम रिजर्व बैंक के कृषि-साख सम्बन्धी कार्यों का का सम्पादन करना है। कृषि विभाग के
मुख्य कार्य निम्नलिखित है :-
1. कृषि ऋण से सम्बन्धित समस्याओं
के अध्ययन के लिए विशेषज्ञों की नियुक्ति करना।
2 केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार तथा
सहकारी संस्थाओं को कृषि ऋण के विषय में तकनीकी सलाह प्रदान करना।
3. कृषि कार्यों के लिए राज्य सहकारी
बैंक के माध्यम से वित्त प्रदान करना।
4. रिजर्व बैंक के कृषि ऋण कार्यों
एवं कृषि के क्षेत्र में ऋण प्रदान करने के बैंकों के कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
5. राज्य सहकारी बैंकों तथा भूमि बंधक
बैंकों को स्वीकृत प्रतिभूतियों तथा ऋण-पत्रों के आधार पर अल्पकालीन साख उपलब्ध करना।
6. राज्य सहकारी बैंकों के ऐसे कृषि
बिलों का पुनर्बट्टा करना और उनके आधार पर ऋण देना जो 15 महीने की अवधि में परिपक्व
हो जानेवाला हो।
7. कृषि बिलों के सम्बन्ध में ब्याज
सम्बन्धी विशेष रियायत देना। रिजर्व बैंक कृषि बिलों के आधार पर बैंक दर से 2 प्रतिशत
कम ब्याज पर ऋण देता है। इस प्रकार रिजर्व बैंक कृषि को देश का प्रमुख धंधा होने के
नाते विशेष रियायती दर पर ऋण देता है।
8. भूमि बंधक बैंकों द्वारा जारी किये
गये ऋण-पत्रों को खरीदकर उनकी कार्यशील पूँजी को बढ़ाने में योगदान करना।
9. राज्य सरकारों को सहकारी साख संस्थाओं
की अंश पूँजी में भाग लेने के लिए दीर्घकालीन ऋण देना।
10. लाइसेन्स प्राप्त गोदामों में
रखी गयी कृषि उपज के आधार पर ऋण देना। कृषि-वित्त को विशेष सुविधा देने के लिए
रिजर्व बैंक ने अखिल भारतीय ग्रामीण साख सर्वेक्षण समिति (All India Rural Credit
Survey Committee) को सिफारिशों के आधार पर 1955 ई. में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
अधिनियम में संशोधन कर फरवरी 1956 ई. में दो प्रकार के कोषों की स्थापना की है -
1. राष्ट्रीय कृषि-साख (दीर्घकालीन
क्रिया) कोष (National Agricultural Credit Long Term Operation Fund)
2. राष्ट्रीय कृषि-साख स्थिरीकरण
कोष (National Agricultural Credit Stabilisation Fund)
1. राष्ट्रीय कृषि-साख (दीर्घकालीन
क्रिया) कोष: इस कोष को स्थापना 10 करोड़ रुपये की राशि से की गयी थी। ऐसी व्यवस्था की गयी
थी कि अलगे पाँच वर्षों में प्रतिवर्ष लगभग पाँच करोड़ रुपये डाला जा सके। इस कोष
का राशि की उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए निश्चिय किया गया था
(i) प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से सहकारी साख-संस्थाओं की पूँजी खरीदने के लिए
राज्य सरकारों को 20 वर्ष तक की अवधि का ऋण देना।
(ii) कृषि साख की व्यवस्था करने के
लिए राज्य सहकारी बैंकों को 15 मास् से 5 वर्ष तक के लिए ब्याज तथा मूल के भुगतान
की राज्य सरकार द्वारा गारण्टी होने पर कर्ज देना।
(iii) केन्द्रीय भूमि बंधक बैंकों को 20 वर्ष तक का कर्ज देना।
(iv) केन्द्रीय भूमि बंधक बैंक के ऋण पत्र को खरीदना।
1960-61 ई. में इस कोष से सहकारी साख संस्थाओं की हिस्सा पूँजी
में भाग लेने के लिए दी गयी ऋणों की कुल रकम 3.23 करोड़ रुपये थी जो 1981-82 ई. में
बढ़कर 123.17 करोड़ रुपये हो गयी। RBI ने इस कोष से राज्य सहकारी बैंकों को रियायती
दरों पर मौसमी कृषि सम्बन्धी कार्यों एवं फसलों के विपणन को वित्त पोषण करने के लिए
अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण भी दिये।
1960-61 ई. में RBI ने राज्य सहकारी बैंकों को 110.6 करोड़ रुपये
के अल्पकालीन ऋण दिये जो रकम 1981-82 ई. में 891.53 करोड़ रुपये थी। इसी प्रकार मध्यकालीन
ऋण की राशि 1960-61 ई. में 468 करोड़ रुपये थी जो बढ़कर 1981 ई. में 26.3 करोड़ हो
गयी थी। RBI ने गत वर्षों में केन्द्रीय भूमि विकास बैंक को भी दीर्घकालीन ऋण भी दिये
हैं। (National Bank for Agriculture and Rural Development अथवा NABARD) की स्थापना
की गयी जिसमें राष्ट्रीय कृषि-साख (दीर्घकालीन क्रियाएँ) कोष को मिला दिया गया।
2. राष्ट्रीय कृषि-साख स्थिरीकरण कोष (National Agricultural Credit Stabilisation Fund): भारतीय
कृषि की अस्थिरता के कारण प्रायः सरकारी बैंकों से उधार लेनेवाले कृषक समय पर कर्ज
चुकाने में असफल होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सहकारी बैंक रिजर्व बैंक को भुगतान करने
में देर कर देते हैं। इस कठिनाई को दूर करने के लिए स्थिरीकरण कोष बनाया गया है। जिस
वर्ष फसल खराब होने अथवा अकाल के कारण राज्य सरकारी बैंक अपने अल्पकालीन कर्जा का भुगतान
नहीं कर सकते हैं, उस समय इस कोष से कर्ज देकर अल्पकालीन कर्जा को मध्यकालीन कर्जों
मे बदल दिया जाता है। इस कोष का उद्देश्य राज्य सहकारी बैंकों को निम्नलिखित उद्देश्यों
से मध्यकालीन ऋण देना है
(i) सूखा, बाढ़ आदि के समय किसानों के अल्पकालीन ऋणों को मध्यकालीन
ऋणों में बदलना।
(ii) कृषि कार्यों के वित्तपोषण करने के लिए।
इस कोष से 1981-82 ई. में 84.6 करोड़ रुपये ऋण के रूप में दिया
गया। NABARD की स्थापना के बाद राष्ट्रीय कृषि साख स्थिरीकरण कोष को समाप्त कर दिया
गया। इसे NABARD में मिला दिया गया।
कृषि पुनर्वित्त निगम (Agricultural Refinance Corporation):
July 1963 ई. में RBI के तत्त्वाधान में कृषि पुनर्वित्त निगम
की स्थापना की गयी थी बाद में इसका नाम कृषि पुनर्वित्त एवं विकास निगम
(Agricultural Refinance and Development Corporation) कर दिया गया। इसकी स्थापना मध्यकालीन
तथा दीर्घकालीन साख की आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया गया था। NABARD में इस निगम
का भी विलय हो गया।
MFAL तथा SFDA : RBI ने दो अन्य एजेन्सियों की स्थापना करने
में मदद की है:
1. सीमान्त किसान एवं कृषि श्रम एजेन्सी (The Marginal
Farmers and Agricultral Labour, अथवा MFAL)
2. लघु किसान विकास एजेन्सी (The Small Farmers Development
Agency अर्थात् SFDA)
इन दोनों एजेन्सियों का कार्य लघु किसानों, भूमिहीन श्रमिकों
एवं गाँव के अन्य कमजोर वर्ग के लोगों को ऋण की सुविधा प्रदान करना है।
नाबार्ड-राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक
(NABARD-National Bank for Agriculture and Rural Development)
NABARD की स्थापना 1982 ई. में की गयी।
पहले जो कार्य RBI का कृषि विभाग एवं कृषि पुनः वित्त एवं विकास निगम कर रहे थे उन्हें
सम्पूर्ण रूप से NABARD को दे दिया गया है। NABARD अब RBI द्वारा कृषि एवं सहकारिता
हेतु प्राविधिक दोनों कोषों- राष्ट्रीय कृषि ऋण (दीर्घकालीन) कोष तथा राष्ट्रीय कृषि
ऋण स्थिरीकरण कोष की व्यवस्था भी करता है तथा इन कोषों का परिवर्त्तित नाम क्रमशः राष्ट्रीय
ग्रामीण ऋण (दीर्घकालीन) कोष [National Rural Credit (Long term) Fund] तथा राष्ट्रीय
कृषि ग्रामीण ऋण (स्थिरीकरण) कोष [National Rural Credit (Stabilisation) Fund] कर
दिया गया है। NABARD की प्रारम्भिक पूँजी 100 करोड़ रुपये रखी गयी थी जिसका आधा भाग
RBI तथा आधा भाग भारत सरकार द्वारा दिया गया है।
उपर्युक्त विद्वण से यह स्पष्ट है कि
कृषि वित्त प्रदान करने की दिशा में RBI के कार्य सराहनीय रहे हैं।
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