सामान्य निर्देश-(General Instruction)
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दो में उतर दें।
» कुल प्रश्नो की संख्या 19 है।
» प्रश्न 1 से
प्रश्न 7 तक अतिलघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पाँच प्रश्नों के उतर अधिकतम एक
वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न 8 से
प्रश्न 14 तक लघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पॉच प्रश्नो के उतर अधिकतम 50 शब्दो
में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न 15 से
प्रश्न 19 तक दीर्घउतरीय प्रश्न है। इनमें से किन्ही तीन प्रश्ना के उतर अधिकतम
100 शब्दो में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।
खण्ड-अ अतिलघुउतरीय
प्रश्न
1. बाबर का पूरा नाम क्या था?
उत्तर: जहिरुदीन मुहम्मद बाबर
2. भारत का व्योवृद्ध नेता किन्हे कहा जाता है?
उत्तर: दादाभाई नौरोजी
3. दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। किसकी प्रसिद्ध कविता थी।
उत्तर: सुभद्रा कुमारी चौहान
4. टॉलस्टॉय आश्रम की स्थापना किसने की थी?
उत्तर: टॉलस्टॉय फार्म की स्थापना गांधी ने 1910 में की थी।
5. नौजवान भारत सभा की स्थापना किसने की थी?
उत्तर: नौजवान भारत सभा की स्थापना 1926 में भगत सिंह ने की थी।
6. संविधान सभा का प्रथम बैठक कब हुआ था?
उत्तर: संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन
हॉल, जिसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के नाम से जाना जाता है, में हुई।
7. खानवा का युद्ध कब हुआ था?
उत्तर: खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 को आगरा से 35 किमी दूर खानवा गाँव में
बाबर एवं मेवाड़ के राणा सांगा के मध्य लड़ा गया।
खण्ड–ब लघुउतरीय
प्रश्न
8. जहाँगीर कालीन चित्रकला पर प्रकाश डालें।
उत्तर: मुगल काल में हाशिये को चित्रकला की एक प्रधान शाखा की श्रेणी में रखा
गया। सत्रहवीं शताब्दी के मुगल कालीन चित्रों में हांशिया चित्रण को मुख्य चित्र के
समान ही महत्व दिया गया था। जहाँगीर के दरबार में हिन्दु, मुस्लिम व फारसी कलाकार थे।
फारसी चित्रकारों में ‘ फारूख बेग’, ‘ आकारिजा’, ‘ अबुलहसन’, मोहम्मद नादिर
‘,’ मोहम्मद मुराद ‘ आदि तथा हिन्दु चित्रकारों में मंसूर गोवर्धन, बिशनदास, दौलत,
मनोहर आदि थे। उसने अबुल हसन को’ नादिर-उल-जमा ‘ व मंसूर को’ नादिर-उल-असर ‘ की उपाधि
प्रदान की। जहाँगीर के समय को मुगल काल का स्वर्ण युग कहा जाता है। जहाँगीर की मृत्यू
कश्मीर से लौटते वक्त लाहौर में हुई। उसके साथ ही कला का स्वरूप भी मिटने लगा।
जहाँगीर कालीन चित्रों की विशेषताऐं:
1. जहाँगीर काल में चित्रकला ईरानी प्रभाव से मुक्त हो गई थी।
2. चित्रों में यर्थाथता पहले से भी अधिक दिखने लगी।
3. हाशियों की सुंदरता बहुत बढ़ गई। पशु-पक्षियों, बेल-बूटों, जन जीवन दृश्य
आदिको हाशियों में अलंकरण के रूप में बनाया जाता था।
4. मिश्रित रंगों व एक ही रंग की तानों का प्रयोग होने लगा।
5. छाया-प्रकाश व स्वर्ण रंगों का भी प्रयोग अधिक होने लगा।
6. दार्टिक परिप्रेक्ष्य व स्थितिजन्य लघुता का सुंदर प्रयोग हुआ।
7. एक चश्म चहरे बनाये गये।
9. महालवाड़ी व्यवस्था से क्या समझते हैं?
उत्तर: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रान्त के कुछ भागों में लार्ड वेलेजली द्वारा
लागू व्यवस्था को महालवाड़ी व्यवस्था कहा जाता है। महल का शाब्दिक अर्थ है गाँव के
प्रतिनिधि अर्थात् जमींदार या जिनके पास अधिक भूमि होती थी। अर्थात् जमींदारों के साथ
सामूहिक रूप से लागू की गई व्यवस्था। गाँवों को एक महल माना जाता था। इसमें राजस्व
जमा करने का काम मुकद्दम प्रधान, किसी बड़े रैयत को दिया जा सकता था। ये सरकार को राजस्व
एकत्रित कर सम्पूर्ण भूमि (गाँव) का कर देते थे।
10. दाण्डी यात्रा का क्या उद्वेश्य था?
उत्तर: नमक कानून के खिलाफ शुरू हुआ था दांडी सत्याग्रह। इसका मुख्य उद्देश्य
अंग्रेजों द्वारा लागू नमक कानून के विरुद्ध सविनय कानून को भंग करना था। दरअसल अंग्रेजी
शासन में भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था। उन्हें इंग्लैंड से आने वाला नमक
का ही इस्तेमाल करना पड़ता था। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने इस नमक पर कई गुना कर भी
लगा दिया था। लेकिन नमक जीवन के लिए आवश्यक वस्तु है इसलिए इस कर को हटाने के लिए गांधी
ने यह सत्याग्रह चलाया था।
11.मुस्लिम लीग द्वारा मुक्ति दिवस क्यों मनाया गया?
उत्तर: मुस्लिम लीग ने ‘मुक्ति दिवस’ 22 दिसंबर, 1939 ई. में मनाया था.मुस्लिम
लीग का मूल नाम ‘अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’ था। यह एक राजनीतिक समूह था, जिसने ब्रिटिश
भारत के विभाजन (1947 ई.) से निर्मित एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के लिए आन्दोलन चलाया.
मुस्लिम नेताओं, विशेषकर मुहम्मद अली जिन्ना ने इस बात का भय जताया कि स्वतंत्र होने
पर भारत में सिर्फ़ हिन्दुओं का ही वर्चस्व रहेगा. इसीलिए उन्होंने मुस्लिमों के लिए
अलग से एक राष्ट्र की मांग को बार-बार दुहराया।
12.वीर कुंवर सिंह पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर: वीर कुंवर सिंह पर संक्षिप्त टिप्पणी
1. बाबू कुंवर सिंह का जन्म 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव
में हुआ था। इनका पूरा नाम बाबू वीर कुंवर सिंह था।
2. इनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से
थे।
3. 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों
के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया था।
4. कुंवर सिंह न केवल 1857 के महासमर के सबसे महान योद्धा थे। बल्कि वह इस संग्राम
के एक वयोवृद्ध योद्धा भी थे।
5. बाबू कुंवर सिंह की बदौलत अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे
समय तक स्वतंत्र रहा था।
6. कुंवर सिंह ने अपनी 80 साल की उम्र में लडाई लड़ी थी।
7. 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर के लोगों ने उनको सिंहासन पर बैठाया और राजा
घोषित किया था।
8. ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है. ‘उस बूढ़े राजपूत ने
ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी।
9. इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में, जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी थी।
10. 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गयी।
13.मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर: पांडुलिपि तैयार करने की एक लंबी प्रक्रिया होती थी। इस प्रक्रिया में
कई लोग शामिल होते थे। जो अलग अलग कामों में दक्ष होते थे। सबसे पहले पांडुलिपि का
पन्ना तैयार किया जाता था जो कागज़ बनाने वालों का काम था। तैयार किए गए पन्ने पर अत्यंत
सुंदर अक्षर में पाठ की नकल तैयार की जाती थी। उस समय सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने
की कला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी। इसका प्रयोग भिन्न-भिन्न शैलियों में होता
था। सरकंडे के टुकड़े को स्याही में डुबोकर लिखा जाता था। इसके बाद कोफ्तगार पृष्ठों
को चमकाने का काम करते थे। चित्रकार पाठ के दृश्यों को चित्रित करते थे। अन्त में,
जिल्दसाज प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा करके उसे अलंकृत आवरण देता था। तैयार पांडुलिपि
को एक बहुमूल्य वस्तु, बौद्धिक संपदा और सौंदर्य के कार्य के रूप में देखा जाता था।
14.नेहरू रिपोर्ट पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर: नेहरू रिपोर्ट भारत के लिए प्रस्तावित नए अधिराज्य के संविधान की रूपरेखा
थी। 10 अगस्त, 1928 को प्रस्तुत (28-31 अगस्त के बीच पारित) यह रिपोर्ट ब्रितानी सरकार
के भारतीयों के एक संविधान बनाने के अयोग्य बताने की चुनौती का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
के नेतृत्व में दिया गया सशक्त प्रत्युत्तर था।
खण्ड-स दीर्घउतरीय
प्रश्न
15.1857 के क्रांति के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर: 1857 के क्रांति के कारण निम्नलिखित हैं-
1. 1757 की क्रांति के बाद अंग्रेजी हुकुमत को बंगाल में सत्ता प्राप्त हुई|1757ई०
से लेकर 1857 ई० तक लगभग 100 वर्षों के शासनकाल में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार होता
गया और साथ ही अंग्रेज भारत में अपने विभिन्न सामाजिक, आर्थिकऔर प्रशासनिक नीतियों
को भारत में लागू करते गये उदहारण के लिए- भूराजस्व के क्षेत्र में उन्होंने तीन तरह
के नियम लागू किये थे|उनका समस्त उद्देश्य औपनिवेशिक हितों से प्रेरित था।
2. 100 वर्षों के शासन काल में ब्रिटिश नीतियोंके खिलाफ भारतीय समाज में जो
असंतोष पैदा होता रहा, वह 1857 ई० की चर्बी कारतूस वाली घटना नेबारूद में चिंगारी लगाने
काकाम किया|1857 ई०के विद्रोह के कारण दीर्घकालिक थे और ब्रिटिश चरित्र में नीहित थे|पिछले
100 वर्षोंमें अंग्रेजों ने जो भी सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक और राजनीतिक नीतियाँ
अपनाई, वे सभीऔपनिवेशिक हितों से प्रेरित थीं, उन नीतियों में भारतीय हित नहीं के बराबर
थे।
3. अंग्रजों ने भारत में जो भी नीतियाँलागू की, उससे भारतीय समाज के विभिन्न
वर्गों का शोषण हुआ|भूराजस्व व्यवस्था के द्वारा किसानों का शोषण किया गया, बगान मालिकों
द्वारा जबरन मजदूरों से काम करवाया गया, किसानों से जबरन उनके खेतों में खाद्यान्नों
की जगह नगदी फसल उगाये गये, इस तरहकिसानों का उत्पीड़न हुआ।
4. सहायक संधिऔर गोद लेने की प्रथा का निषेधकरके भारतीय राजाओं से उनका राज्य
छीन लिया गया|इससे यहाँ के शासकों का उत्पीड़न हुआ|राजाओं में आस्था रखने वाली जनता
राजा को उनके धर्मं और संस्कृति का संरक्षक मानती थी,जब उसने देखा की ऐसे राजा भी अपदस्त
कर दिए गये जो अंग्रेजों के मित्र थे, ऐसी स्थिति में भारतीय जनता का अंग्रेजों के
खिलाफ एक घृणा की भावना उत्पन्न हो गई।
5. 1857 ई०के आते-आते अचानक चर्बी युक्त कारतूस की घटनाने जनता की धार्मिक भावनाओं
को आहत किया| यही कारण था कि जब 10 मई,1857 ई० कोमेरठ में सैनिकों ने विद्रोह किया
और दिल्ली की ओर मुग़ल शासक बहादुरशाह के पास नेतृत्व करने के लिए चल पड़े तो भारतीय
समाज के विभिन्न वर्गों ने इस विद्रोह का साथ दिया।
6. 1857 ई० के विद्रोह का मुख्य कारण ब्रिटिश कंपनी के शासन द्वारा भारतीय जनता
का आर्थिक शोषण करना था।
16. संविधान सभा के उद्वेश्य एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर: भारतीय संविधान द्वारा देशवाशियों को न्याय प्रदान करने का प्रयास किया
गया है। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय का मुख्य लक्ष्य व्यक्तिगत हित और सामाजिक
हित के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। हमारे संविधान निर्माताओं के समक्ष भारत एक
"कल्याणकारी राज्य" (Welfare state) की स्थापना का उद्देश्य था। वे भारत
में एक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना चाहते थे जिसका उद्देश्य है - बहुजन हिताय बहुजन
सुखाय।
भारतीय संविधान का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता को निम्नलिखित अधिकार प्रदान
कराना है:
1. न्याय: सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक।
2. स्वतंत्रता: विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की।
3. समता: प्रतिष्ठा और अवसर की।
4. बंधुत्व: व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता के लिए।
संविधान की प्रस्तावना से स्पष्ट होता है की संविधान निर्माता भारतवर्ष में
सदियों से व्याप्त जाति व्यवस्था से पूर्ण रूपेण परिचित थे। उन्हें मालूम था की भारतवर्ष
में विशेषकर हिन्दू समाज में किसी व्यक्ति का उसके जन्म से ही उसकी जाति के आधार पर
उसका समाज में क्या स्थान होगा - यह निर्धारित हो जाता है। सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टी
से पिछड़े वर्गों तथा अछूत व वनवासी समूह को पद एवं अवसर की समानता प्रदान करके उनकी
बहुमुखी उन्नति करके, सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक गैर बराबरी को समाप्त करने का उनका
पक्का संकल्प था। इसलिए उनके हितों की रक्षा हेतु संविधान में व्यवस्था की गयी है।
संविधान सभा के कार्य
1. संविधान को तैयार करना।
2. अधिनियमित कानूनों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना ।
3. 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया।
4. इसने मई 1949 में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता को स्वीकार कर
मंजूरी दे दी थी।
5. 24 जनवरी 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेन्द्र प्रसाद
को चुना गया था ।
6. 24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गान को अपनाया।
7. 24 जनवरी1950 को इसने राष्ट्रीय गीत को अपनाया।
17.भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विभिन्न चरणो का उल्लेख करें।
उत्तर: भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन 'भारतीय इतिहास' में लम्बे समय तक चलने वाला
एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था। इस आन्दोलन की औपचारिक शुरुआत 1885 ई. में कांग्रेस
की स्थापना के साथ हुई थी, जो कुछ उतार-चढ़ावों के साथ 15 अगस्त, 1947 ई. तक अनवरत
रूप से जारी रहा। वर्ष 1857 से भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का प्रारम्भ माना जाता है।
राष्ट्रीय साहित्य और देश के आर्थिक शोषण ने भी राष्ट्रवाद को जगाने में महत्त्वपूर्ण
योगदान दिया। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
प्रथम चरण (1885-1905 ई. तक)
इस काल में 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना हुई, किंतु इस समय तक इसका
लक्ष्य पूरी तरह से अस्पष्ट था। उस समय इस आन्दोलन का प्रतिनिधित्व अल्प शिक्षित, बुद्धिजीवी
मध्यम वर्गीय लोग कर रहे थे। यह वर्ग पश्चिम की उदारवादी एवं अतिवादी विचारधारा से
प्रभावित था।
द्वितीय चरण (1905 से 1919 ई. तक)
इस समय तक 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' काफ़ी परिपक्व हो गई थी तथा उसके लक्ष्य
एवं उद्देश्य स्पष्ट हो चुके थे। राष्ट्रीय कांग्रेस के इस मंच से भारतीय जनता के सामाजिक,
आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए प्रयास शुरू किये गये। इस दौरान कुछ
उग्रवादी विचारधारा वाले संगठनों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को समाप्त करने के लिए पश्चिम
के ही क्रांतिकारी ढंग का प्रयोग भी किया।
तृतीय एवं अन्तिम चरण (1919 से 1947 ई. तक)
इस काल में महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने पूर्ण स्वरज्य की प्राप्ति
के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया।
18.भारतीय ग्रामीण समाज पर उपनिवेशवाद का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: उपनिवेशवाद का अर्थ:
उपनिवेश का अर्थ है किसी समृद्धि एवं शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा अपने विभिन्न
हितों को साधने के लिए किसी निर्बल किंतु प्रकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण राष्ट्र के
विभिन्न संसाधनों का शक्ति के बल पर उपभोग करना उपनिवेशवाद कहलाता है।
प्रभाव:-
1. उपनिवेशवाद के प्रभाव के कारण भारत ने आधुनिक विचारों को जाना। उपनिवेशवाद
एक स्थिति विरोधाभास की स्थिति थी। इस दौर में भारत ने पाश्चात्य उदारवाद तथा स्वतंत्रता
को आधुनिक रूप में जाना। इन पश्चिमी विचारो के विपरित भारत में ब्रितानी उपनिवेशवादी
शासन के अन्तर्गत स्वतंत्रता तथा उदारता का अभाव था।
2. ब्रिटिश नीतियों का सबसे बड़ा प्रभाव भारत से धन की निकासी था। भारतीय अर्थव्यवस्था,
कोई संदेह नहीं है, मुख्य रूप से एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी, लेकिन भारतीय कारीगरों
ने भारतीय और यूरोपीय खरीदारों की मांगों को पूरा करने के लिए थोक में माल का उत्पादन
किया। कई शहर व्यापार के केंद्र के रूप में विकसित हुए थे।
19.भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के प्रावधानों का उल्लेख करें।
उत्तर: भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947, यूनाइटेड किंगडम (यूके) की पार्लियामेंट
(संसद) द्वारा पारित वह अधिनियम था, जिसके अनुसार ब्रिटेन शासित भारत को दो स्वतंत्र
उपनिवेशों, भारत तथा पाकिस्तान में विभाजित किया गया था। इस अधिनियम को 18 जुलाई
1947 को शाही परिवार की सहमति मिली। जिसके फलस्वरूप भारत 15 अगस्त और पाकिस्तान 14
अगस्त को अस्तित्व में आया।
इस अधिनियम के तहत किए गए महत्वपूर्ण प्रावधान
1. 15 अगस्त 1947 से प्रभावी रुप में ब्रिटिश भारत का दो नए और पूरी तरह से
प्रभुत्व सम्पन्न उपनिवेश, भारत और पाकिस्तान में विभाजन|
2. दो नवगठित देशों के बीच बंगाल और पंजाब के प्रांतों का विभाजन|
3. दोनों देशों में गवर्नर जनरल के कार्यालय स्थापित किए जाएंगे। ये गवर्नर
जनरल क्राउन का प्रतिनिधित्व करेंगे।
4. पूर्ण विधि निर्माण प्राधिकरण को दो नए देशों की संविधान सभाओं के हाथों
में सौंपा जाएगा|
5. 15 अगस्त, 1947 से रियासतों पर से ब्रिटिश अधिपत्य समाप्त कर दिया जाएगा|
6. ब्रिटिश शासक द्वारा “भारत के सम्राट” की पदवी को त्यागना|
7. इस अधिनियम के अंतर्गत दोनों देशों के बीच सशस्त्र बलों का विभाजन शामिल है|