सम्भाव्य विभ्रम (PROBABLE ERROR) और प्रमाप विभ्रम (Standard Error )

सम्भाव्य विभ्रम (PROBABLE ERROR) और प्रमाप विभ्रम (Standard Error )

आशय - सम्भाव्य विभ्रम कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक की विश्वसनीयता निर्धारण का एक पुराना माप है। सम्भाव्य विभ्रम को सह-सम्बन्ध गुणांक में से घटाने एवं जोड़ने पर वे दो सीमाएँ प्राप्त हो जाती हैं जिसके बीच उसी श्रेणी में से दैव निदर्शन विधि द्वारा चुने हुए अन्य समूहों के सह- समबन्ध गुणांक का सम्भाव्य विभ्रम वह राशि है जिसे औसत सह-सम्बन्ध गुणांक में जोड़ने एवं घटाने पर ऐसी राशियाँ प्राप्त होती हैं जिनके बीच दैव (Random) आधार पर चुनी हुई श्रेणी का सह-सम्बन्ध गुणांक के पाये जाने की समान सम्भावनाएँ होती हैं।"

सम्भाव्य विभ्रम वह माप है, जिसको यदि अधिकतम सम्भावित माप में जोड़ा जाय और उससे घटाया जाय तो वह दो सीमाएँ बताता है, उन्हीं सीमाओं के बीच उसका पद जो यथोचित दैव निदर्शन पद्धति से प्रस्तुत किया गया हो, निश्चित रूप से विद्यमान रहेगा। प्रोफेसर कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणक की विश्वसनीयता की जाँच-पड़ताल करने के लिए सम्भाव्य विभ्रम का उपयोग किया जाता है। सम्भाव्य विभ्रम का प्रयोग निदर्शन सम्बन्धी त्रुटियों को ज्ञात करने के लिए भी किया जाता है।

परिभाषा - सुप्रसिद्ध विद्वान् होरेस सेक्राइस्ट (Horace Secrist) ने सम्भाव्य विभ्रम को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-

“कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणक का सम्भावित विभ्रम वह राशि है, जिसे यदि माध्य सह सम्बन्ध गुणक में जोड़ दिया जाए एवं घटा दिया जाए तब इस प्रकार की राशियाँ प्राप्त हो जाती हैं जिनके अन्तर्गत दैव निदर्शन के द्वारा चुनी गई किसी पदमाला का सह-सम्बन्ध गुणक विद्यमान होने की समान सम्भावनाएँ होती हैं।"

यदि सह सम्बन्ध (r) का मूल्य सम्भाव्य विभ्रम (P.E) के 6 गुणे से अधिक हो अर्थात् r > 6 P.E. तो सह-सम्बन्ध सार्थक माना जायेगा। यदि r < 6 P.E.है तो यह माना जायेगा कि सह-सम्बन्ध का मूल्य सार्थक नहीं है। सम्भाव्य विभ्रम की परिगणना निम्न सूत्र द्वारा की जाती है-

P. E of r = 0.6745`(1-r^2)/(sqrtN)`

यहाँ पर (Where),

P.E. = सम्भाव्य विभ्रम (Probable Error),

r = सह-सम्बन्ध गुणक (Coefficient of Correlation),

n = पदों की संख्या (Number of Items),

0.6745 = यह एक अचल संख्या है।

परिगणन क्रिया को सरल बनाने के लिए 0.6745 के स्थान पर 2/3 का भी प्रयोग किया जा सकता है।

उदाहरण 1 : यदि सह-सम्बन्ध गुणांक 0.8 तथा पद युग्मों की संख्या 100 हो तो सम्भाव्य विभ्रम ज्ञात कीजिए।

हल : r = 0.8           N= 100

P. E of r = 0.6745`(1-r^2)/(sqrtN)`

P. E of r = 0.6745`(1-(0.8)^2)/(sqrt100)`

P. E of r = 0.6745`(0.36)/(10)`=0.024

अत: सह-सम्बन्ध गुणांक को निम्न प्रकार से प्रस्तुत करेंगे।

r = 0.80`\pm`0.024 अर्थात्

अधिकतम सीमा (L2)  0.80+0.024 =0.824

न्यूनतम सीमा (L1)  0.80 – 0.024 = 0.776

इसका अर्थ यह हुआ है कि अन्य न्यादर्श के लेने पर सह-सम्बन्ध गुणांक अधिकतम 0.824 और न्यूनतम 0.776 सीमाओं के मध्य में होने की सम्भावना होती है।

उदाहरण 2. यदि सह-सम्बन्ध गुणांक 0.7 हो तथा कुल पदों की संख्या 16 हो तो सह-सम्बन्ध गुणांक की सार्थकता की जाँच कीजिए।

हल : r = 0.7           N= 16

P. E of r = 0.6745`(1-r^2)/(sqrtN)`

P. E of r = 0.6745`(1-(0.7)^2)/(sqrt16)`

P. E of r = 0.6745`(0.51)/(4)`=0.086

चूँकि यहाँ r का मान (0.7) > 6 x 0.086 से ज्यादा है इस कारण सह सम्बन्ध सार्थक है।

सम्भाव्य विभ्रम का उपयोग

प्रोफेसर कार्ल पियर्स के सह-सम्बन्ध गुणक की विश्वसनीयता की जाँच पड़ताल करने के लिए सम्भाव्य विभ्रम का उपयोग किया जाता है। सम्भाव्य विभ्रम का प्रयोग निदर्शन सम्बन्धी त्रुटियों को ज्ञात करने के लिए भी किया जाता है। प्राय: यह देखा गया है कि निदर्शन लेते समय कुछ त्रुटियाँ हो जाती हैं। कभी-कभी अनुसंधान का क्षेत्र एवं आकार विशाल होता है, अत: निदर्शन कम मात्रा में ही लिया जाता है। इस कारण परिणाम विशुद्ध विश्वसनीय नहीं होते हैं। संख्याशास्त्रियों का विचार है कि सम्भाव्य विभ्रम के द्वारा इन त्रुटियों से निष्कर्ष पर होने वाले प्रभावों की निश्चित सीमाएँ मालूम हो जाती हैं।

सम्भाव्य विभ्रम का कार्य

सम्भाव्य विभ्रम के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्न दो प्रकार के होते हैं-

(1) सीमाओं का निर्धारण - सम्भाव्य विभ्रम सह-सम्बन्ध गुणक की उच्च सीमाओं एवं निम्न सीमाओं को निश्चित रूप से निर्धारित करता है। सह-सम्बन्ध गुणक इन उच्च सीमा एवं निम्न सीमा के अन्दर ही कहीं होता है।

(2) सह सम्बन्ध गुणक का निर्वाचन- सम्भाव्य विभ्रम के द्वारा सह-सम्बन्ध गुणक का निर्वाचन किया जाता है।

सह-सम्बन्ध गुणक का निर्वाचन निम्न प्रकार किया जाता है-

(i) यदि किसी प्रश्न में पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक (r) अपने सम्भाव्य विभ्रम (P. E.) से कम है, तब दोनों पदमालाओं में सह सम्बन्ध की उपस्थिति का कोई प्रमाण नहीं है, यह मानना चाहिए।

(ii) यदि किसी प्रश्न में पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक (r) अपने संभावित विभ्रम (P. E.) के छः गुना अधिक है तो उन दोनों पदमालाओं में सह-सम्बन्ध निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण होता है।

(iii) यदि किसी पदमाला का सम्भाव्य विभ्रम अपेक्षा से कम है या बहुत कम है और उन पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक सम्भाव्य विभ्रम से भी कम है, तब उन दोनों पदमालाओं में सह-सम्बन्ध गुणक होते हुए भी वह महत्त्वपूर्ण नहीं माना जायेगा।

(iv) यदि सम्भाव्य विभ्रम बहुत कम है एवं दोनों पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक (r) 0.511 से अधिक है, तब पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण होगा।

(v) यदि किसी पदमाला का सम्भाव्य विभ्रम बहुत कम है और उन दोनों पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक (r) 0.751 से भी अधिक है तो सह-सम्बन्ध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जायेगा।

(vi) यदि दो पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक (r) 0.411 से अधिक है और वह 0.599 तक है, तब सह-सम्बन्ध दोनों पदमालाओं का साधारण माना जायेगा।

(vii) यदि दो पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक (r) 0.249 या इससे कम है तो उन पदमालाओं का सह- सम्बन्ध अत्यन्त महत्त्वहीन माना जायेगा।

(viii) यदि किन्हीं पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक 0.3 से कम है और सम्भावित विभ्रम तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम हो तो उन दोनों पदमालाओं में सह-सम्बन्ध होते हुए भी वह महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता है।

(xi) यदि किन्हीं दो पदमालाओं का सह-सम्बन्ध गुणक (r) 0.911 या इससे अधिक है, तब उन दोनों पदमालाओं का सह-सम्बन्ध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

प्रमाप विभ्रम (Standard Error )

वर्तमान समय में सांख्यिकी में सम्भावित विभ्रम की अपेक्षा प्रमाप विभ्रम का उपयोग अधिक श्रेयस्कर समझा जाता है। दैव न्यादर्श के आधार पर प्राप्त किसी सांख्यिकी माप का प्रमाप विभ्रम उनके निदर्शन वितरण (Sampling distribution ) का प्रमाप होता है।

सूत्रानुसारः

S.E of r = `(1-r^2)/(sqrtN)`

जहाँ तक सम्भव हो प्रमाप विभ्रम छोटा होना चाहिए। प्रमाप विभ्रम जितना ही छोटा होगा, प्रतिदर्श वितरण में उतनी ही अधिक समानता होगी।

प्रतिदर्श (Sample) के आधार पर प्राप्त सह-सम्बन्ध गुणांक की सम्पूर्ण समग्र के लिए सीमाएँ निर्धारित करने के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है:

r `\pm`3 S.E of r

और ( उच्च सीमाओं का योग + निम्नसीमाओं का योग) / 2 = सह-सम्बन्ध गुणांक |

उदाहरण 3: पतियों तथा पत्नियों के समग्र में से 625 का न्यादर्श लेकर उनके बीच भार का सह- सम्बन्ध 0.4 है तो समग्र के सह-सम्बन्ध गुणांक की सम्भाव्य सीमाएँ ज्ञात कीजिए।

हल : सह-सम्बन्ध गुणांक सीमाएँ:  r `\pm`3 S.E of r

S. E of r = `(1-r^2)/(sqrtN)`= `(1-(0.4)^2)/(sqrt625)`

P. E of r = `(-0.84)/(25)` = 0.03

r + 3 S. E of r = 0.4 + (3 x 0.03) = 0.49

r - 3 S. E of r = 0.4 + (3 x 0.03) = 0.31

अतः सह-सम्बन्ध गुणांक 0.49 और 0.31 के बीच में पाया जायेगा।

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