Class XI Economics Answer Key 2010 (A)

Class XI Economics Answer Key 2010 (A)

Section - A खण्ड- अ

(सांख्यिकी का परिचय)

1. पी० सी० महलनोबिस कौन है ?

उत्तर: एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। महालनोबिस को भारत में आधुनिक सांख्यिकी का जनक माना जाता है।

2. सांख्यिकी अशुद्धियाँ क्या हैं ?

उत्तर: अशुद्धि (Error) का मतलब अनुमानित मूल्य (Approximate Value) तथा वास्तविक मूल्य (True Malue) में अन्तर है। उदाहरण के लिए, हम अनुमान लगाते हैं कि एक सभा में 1000 व्यक्ति हैं, लेकिन जब हम व्यक्तियों की गिनती करते हैं तो उनकी संख्या 1100 आती है। यहाँ अनुमानित मूल्य तथा वास्तविक मूल्य अथवा गणना मूल्य में 100 का अन्तर है। सांख्यिकी में इस अन्तर को अशुद्धि (Error) कहा जायेगा।

3. वर्ग अतंराल क्या है ?

उत्तर: एक वर्ग अंतराल को बारंबारता बंटन तालिका की ऊपरी और निचली वर्ग सीमा के बीच के अंतर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है

4. 'दण्डचित्र' क्या है ?

उत्तर: दंड चित्र से आशय उन चित्रों से होता है जिनको बनाने में केवल एक ही विस्तार अथवा ऊँचाई को महत्व दिया जाता है, चौड़ाई अथवा मोटाई को नहीं। दंड चित्र को एक विमीय चित्र की भी संज्ञा दी जाती है।

5. मानचित्र क्या है ?

उत्तर: मानचित्र किसी चौरस सतह पर निश्चित मान या पैमाने और अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के जाल के प्रक्षेप के अनुसार पृथ्वी या अन्य ग्रह, उपग्रह, अथवा उसके किसी भाग की सीमाएँ तथा तन्निहित विशिष्ट व्यावहारिक, या सांकेतिक, चिह्नों द्वारा चित्रण या परिलेखन मानचित्र कहलाता है।

6. चित्रमय प्रदर्शन की तीन उपयोगिताओं को लिखें।

उत्तर: चित्रमय प्रदर्शन की तीन उपयोगिता निम्न है-

1. चित्र समंकों को सरल व सुबोध बनाते हैं – जब समंक लम्बे-चौड़े दिये होते हैं तब उन्हें समझना कठिन होता है। बड़े-बड़े समंकों को देखकर मस्तिष्क परेशान हो जाता है तथा कोई भी निष्कर्ष नहीं निकल पाता है। सांख्यिकीय आँकड़े चित्रों, आकृतियों व आलेखों द्वारा निरूपित किये जाने से सरल तथा सुबोध हो जाते हैं।

2. अधिक समय तक स्मरणीय – समंकों को देखकर याद करना कठिन होता है, परन्तु चित्रों की स्मृति मस्तिष्क में दीर्घकाल तक बनी रहती है।

3. विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं – सांख्यिकीय चित्रों को देखकर शिक्षित तथा सामान्य शिक्षित व्यक्ति भी उनका अर्थ समझ जाते हैं। चित्रों को समझाने के लिए सांख्यिकी के सूत्रों आदि का ज्ञान होना आवश्यक नहीं है।

7. साधारण और संचयी आवृत्ति से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: साधारण श्रेणियों में प्रत्येक वर्ग के सामने उसकी आवृत्ति दी हुई होती है, जबकि संचयी श्रेणी में आवृत्तियों का योग करके लिखा जाता है।

8. अच्छी प्रश्नावली के तीन गुणों को लिखें।

उत्तर: 1. प्रश्नावली डाक द्वारा सूचनादाताओं को प्रेषित की जाती है अत: ऐसे सूचनादाताओं के एक विशाल समूह को एक साथ भेजकर उनसे सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। इस प्रकार प्रश्नावली एक बड़े निदर्श के अध्ययन में उपयोगी होती है।

2. प्रश्नावली के द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से सूचनाएँ प्राप्त करना संभव होता है।

3. प्रश्नावली का प्रयोग एक बड़े एवं विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में किया जा सकता है। अनुसूची या अन्य विधियों के प्रयोग में यह लाभ नहीं मिलता।

9. कौन-सी माप को केवल बढ़ते क्रम में ही व्यवस्थित किया जाता है ?

उत्तर: माध्यिका

10. माध्य एवं माध्यमिका से बहुलक प्राप्त करने का सूत्र लिखें।

उत्तर: बहुलक = 3 माध्यिका - 2 माध्य

11. माध्य-विचलन से आप क्या समझते हैं ? माध्य-विचलन के गुण-दोषों का वर्णन करें।

उत्तर: माध्य विचलन किसी श्रेणी के समस्त मूल्यों के विचलनों का माध्य है।

माध्य विचलन के गुण

(1) यह विचलन पदमला के सभी मूल्यों पर आधारित होता है। इससे श्रेणी की बनावट की ठीक जानकारी प्राप्त हो जाती है।

(2) इसका माप सरल है।

(3) यह केंद्रीय प्रवृत्ति के इर्द-गिर्द श्रेणी के विचलनओं को बताता है।

(4) यह अनुमान के अतिरिक्त वास्तविक माप पर आधारित है।

(5) माध्य विचलन पर चरम या अति सीमांत पदों का कम प्रभाव पड़ता है।

(6) इसकी गणना करना सरल है और यह आसानी से समझ में आ जाता है।

(7) माध्य विचलन, मध्यक या बहुलक किसी भी माध्य से निकाला जा सकता है।

माध्य विचलन के दोष

(1) माध्य विचलन में सभी पदों को धनात्मक मान लेते हैं। इसे निकालने में बीजगणित चिन्ह (+ व -) को छोड़ दिया जाता है।

(2) यह बीजगणित के दृष्टिकोण से अशुद्ध एवं अवैज्ञानिक है।

(3) यह एक अनिश्चित माप है क्योकि समांतर माध्य का और बहुलक के अनिश्चित होने के कारण बहुलक से निकाला गया माध्य निकट विचलन असंतोष जनक होता है।

(4) जब माध्य या मध्यका, दशमलव में आए तो इसका माप करना कठिन होता है।

12. निम्न आँकड़ों से प्रमाप विचलन की गणना करें :

(a)

x :

5

7

9

11

8

10

12

ƒ :

2

4

5

10

5

4

2

उत्तर-

X

ƒ

ƒx

dev=9.2(dx)

ƒdx

ƒdx2

5

2

10

-4.2

-8.4

35.28

7

4

28

-2.2

-8.8

19.36

9

5

45

-0.2

-1

0.2

11

10

110

1.8

18

32.4

8

5

40

-1.2

-6

7.2

10

4

40

0.8

3.2

2.56

12

2

24

2.8

5.6

15.68

 

Σƒ=32

Σƒx=297

 

 

Σƒdx2 =112.68


Mean (X̅ ) `\frac{\Sigma fx}{\Sigma f}` = `\frac{297}32` = 9.2

σ=`\sqrt{\frac{\Sigma fdx^2}{\Sigma f}}`=`\sqrt{\frac{112.68}{32}}=\sqrt{3.52}=1.87`

(b)

x :

3

5

7

9

11

ƒ :

2

3

6

3

2

उत्तर-

X

ƒ

ƒx

dev=7(dx)

ƒdx

ƒdx2

3

2

6

-4

-8

32

5

3

15

-2

-6

12

7

6

42

0

0

0

9

3

27

2

6

12

11

2

22

4

8

32

 

Σƒ=16

Σƒx=112

 

 

Σƒdx2 =88


Mean (X̅ ) `\frac{\Sigma fx}{\Sigma f}` = `\frac{112}16` = 7

σ=`\sqrt{\frac{\Sigma fdx^2}{\Sigma f}}`=`\sqrt{\frac{88}{16}}=\sqrt{5.5}=2.34`

(c)

x :

5

10

15

20

25

30

35

ƒ :

1

2

4

8

4

2

1

उत्तर-

X

ƒ

ƒx

dev=20(dx)

ƒdx

ƒdx2

5

1

5

-15

-15

225

10

2

20

-10

-20

200

15

4

60

-5

-20

100

20

8

160

0

0

0

25

4

100

5

20

100

30

2

60

10

20

200

35

1

35

15

15

225

 

Σƒ=22

Σƒx=440

 

 

Σƒdx2 =1050


Mean (X̅ ) `\frac{\Sigma fx}{\Sigma f}` = `\frac{440}22` = 20

σ=`\sqrt{\frac{\Sigma fdx^2}{\Sigma f}}`=`\sqrt{\frac{1050}{22}}=\sqrt{47.72}=6.90`

अथवा

सारणीयन के चार उद्देश्य बतलाते।

उत्तर: सारणीयन के उद्देश्य

1. जांच के उद्देश्य को स्पष्ट करना।

2. कॉलमों एवं पंक्तियों में प्रस्तुतीकरण द्वारा आंकड़ों की मुख्य विशेषताओं को बतलाना।

3. तुलना के लिए सुविधा प्रदान करना।

4. सांख्यिकीय आंकड़ों को व्यवस्थित करना।

5. समस्या के अध्ययन के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना।

6. समस्या का संक्षेप में तथा अधिक सरलता के साथ वर्गीकरण करना।

7. परिणाम निकालने के लिए सुविधा प्रदान करना।

8. आंकड़ों को चित्र, ग्राफ, चार्ट आदि के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सरल बनाना।

13. आवृत्ति बंटन क्या है ? इसके निर्माण के कौन-कौन से मुख्य बिंदु हैं ?

उत्तर- सांख्यिकी में, आवृत्ति वितरण या आवृत्ति बंटन एक तालिका होती हैं, जो किसी नमूने में विभिन्न परिणामों की आवृत्ति को दर्शाती हैं। तालिका की प्रत्येक प्रविष्टि में किसी विशेष समूह या अंतराल के भीतर के मूल्यों की आवृत्ति या घटनाओं की गिनती शामिल होती हैं, और इस प्रकार, यह तालिका नमूने में मूल्यों के वितरण को सारांशित करती हैं।

निर्माण के मुख्य बिंदु -

उदाहरणार्थ- 40 विद्यार्थियों के अंकगणितीय योग्यता परीक्षण में प्राप्तांक निम्नांकित हैं। इनका आवृत्ति वितरण बनाइए-

प्राप्तांक- 15, 17, 19, 14, 18, 14, 13, 12, 20, 25, 30, 34, 36, 22, 21, 23, 35, 38, 42, 27, 25, 13, 13, 17, 19, 25, 28, 31, 34, 37, 29, 34, 14, 17, 19, 23, 28, 38,42,48

(1) अंक-विस्तार ज्ञात करना- वितरण के अधिकतम निम्नतम प्राप्तांकों के अन्तर को अंक विस्तार कहते हैं। अंक विस्तार को प्रसार भी कहते हैं। अतः प्रसार की गणना निम्न सूत्र से की जाती है-

प्रसार (Range) = अधिकतम प्राप्तांक – न्यूनतम प्राप्तांक

(2) वर्गों की संख्या तथा प्रत्येक वर्ग का आकार निश्चित करना- वर्गों के आकार का तात्पर्य है कि प्रत्येक वर्ग के अन्तर्गत कितने प्राप्तांक रखे जाये। वर्गों की संख्या तथा वर्ग का आकार मुख्य क्रम से प्रसार (Range) पर निर्भर करता है। वर्गों की संख्या एवं आकार निश्चित करते समय निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है-

वर्गों की संख्या = प्रसार (Range)

वर्ग विस्तार (Size of C.I)+1

सामान्य वर्ग विस्तार (अन्तरालों की लम्बाई) को 35, या 10 इकाई में चुनते हैं। वर्ग विस्तार (Size of C.I.) को चुनने का एक अच्छा नियम यह है कि इसका मान ऐसा लिया जाये, जिससे वर्गों की संख्या 5 से कम एवं 15 से अधिक न हो। उदाहरण में प्रसार 30 है, यदि हम वर्ग-विस्तार को 5 लेते हैं तो उपर्युक्त सूत्र के अनुसार-

वर्गों की संख्या = 30/5+1=6+1=7

(3) वर्ग अन्तरालों को लिखना (Writing the C.I.) – वर्गों की संख्या तथा वर्ग विस्तार निश्चित करने के बाद वर्ग अन्तरालों को अंकित किया जाता है। वर्ग अन्तराल को लिखने के दो नियम प्रचलित हैं, जिन्हें नीचे दिया जा रहा है-

प्रथम- सबसे सरल नियम यह है कि सबसे छोटे वर्ग अन्तराल को न्यूनतम प्राप्तांक से प्रारम्भ किया जाये।

द्वितीय- वर्ग अन्तराल को आरम्भ करने का दूसरा नियम यह है कि सबसे छोटे अर्थात् प्रथम वर्ग अन्तराल को न्यूनतम प्राप्तांक से नीचे किसी ऐसी संख्या से आरम्भ किया जाये कि जो वर्ग-विस्तार (Size of C.I.) से विभाजित हो जाये।

(4) संकेत चिन्ह (Talley Mark) लगाना- वर्ग अन्तराल को लिखने के बाद प्रत्येक वर्ग अन्तराल में आने वाले प्राप्तांकों की संख्या ज्ञात की जाती हैं। जितने प्राप्तांक है। वर्गों की आवृत्ति ज्ञात करने के लिए संकेत चिन्ह (Talley Mark ) लगाते हैं। प्रत्येक प्राप्तांक के लिए एक संकेत चिन्ह (I) उसके संगत वर्ग के सामने बना देते हैं। उपर्युक्त उदाहरण का आवृत्ति विवरण निम्नांकित रूप में प्रदर्शित किया गया है-

वर्ग अन्तराल

टैली मार्क

बारम्बारता

10-15

IIII II

7

15-20

IIII III

8

20-25

IIII

5

25-30

IIII II

7

30-35

IIII

4

35-40

IIII I

6

40-50

III

3

 

इस प्रश्न में पहला प्राप्तांक 15 है जिसे संकेत चिन्ह (Talley) के द्वारा अन्तराल 15-20 के सम्मुख लिखा गया है। दूसरा प्राप्तांक 17 है जिसे अन्तराल 15-20 के सामने टैली द्वारा व्यक्त किया गया है। तीसरा प्राप्तांक 19 है जिसे टैली द्वारा दूसरे वर्ग अन्तराल 15-20 के सामने अंकित किया गया है। शेष सभी प्राप्तांक इसी रीति से क्रमशः सारणीबद्ध किए गए हैं। जब सभी प्राप्तांकों का अंकन हो गया, तब प्रत्येक वर्ग अन्तराल के संकेतों चिह्नों या टैली को गिनकर उस वर्ग अन्तराल के सामने लिख दिया जाता । इसे वर्ग अन्तराल की आवृत्ति कहते हैं। उपर्युक्त सारणी में आवृत्तियों को कालम (3) में व्यक्त किया गया है। कालम 3 में व्यक्त सभी आवृत्तियों के कुल योग को N द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस उदाहरण में N = 40 है। अव्यवस्थित आँकड़ों में कुल 40 प्राप्तांक दिए गए हैं। अत: आवृत्ति-वितरण सही है।

विद्यार्थियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि पहला वर्ग अन्तराल (C.I.) 10-15 है। जबकि निम्नवत प्राप्तांक 12 है। वास्तव में, सैद्धांतिक रूप से तथा आंकिक दृष्टि से 10-15 तथा 12-17 के अन्तराल उतने ही अच्छे हैं। ये कोई अन्तर उत्पन्न नहीं करते हैं। किन्तु 10-15 का अन्तराल गणितीय दृष्टि से अधिक सरल हैं।

अथवा

निम्नलिखित आँकड़ों से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए :

(a)

C.I

0-20

20-40

40-60

60-80

80-120

120-140

ƒ

5

7

8

10

5

5

 (b)

C.I

5-10

10-15

15-20

20-25

25-30

ƒ

5

3

10

2

10

(c)

C.I

100-200

200-300

300-400

400-500

500-600

600-700

700-800

ƒ

2

4

4

5

6

4

5

 

(a):-

C.I

ƒ

MV

X

A = 10

dx

ƒdx

0-20

5

10

0

0

20-40

7

30

20

140

40-60

8

50

40

320

60-80

10

70

60

600

80-120

5

100

90

450

120-140

5

130

120

600

 

Σƒ = 40

 

 

Σƒx = 2110


Mean `\overline X =A+\frac{\Sigma ƒdx}{\Sigma ƒ}=10+\frac{2110}{40}` =10 + 52.75 = 62.75

(b)

C.I

ƒ

MV

X

A = 7.5

dx

ƒdx

5-10

5

7.5

0

0

10-15

3

12.5

5

15

15-20

10

17.5

10

100

20-25

2

22.5

15

30

25-30

10

27.5

20

200

 

Σƒ = 30

 

 

Σƒx = 345


Mean `\overline X =A+\frac{\Sigma ƒdx}{\Sigma ƒ}=7.5+\frac{345}{30}` =7.5 + 11.5 = 19

(c)

C.I

ƒ

MV

X

A = 150

dx

ƒdx

100-200

2

150

0

0

200-300

4

250

100

400

300-400

4

350

200

800

400-500

5

450

300

1500

500-600

6

550

400

2400

600-700

4

650

500

2000

700-800

5

750

600

3000

 

Σƒ = 30

 

 

Σƒx = 10100


Mean `\overline X =A+\frac{\Sigma ƒdx}{\Sigma ƒ}=150+\frac{10100}{30}` =150 + 336.66 = 486.66

14. निम्नलिखित आंकड़ों से माध्यिका ज्ञात कीजिए :

(a)

C.I

0-10

10-20

20-30

30-40

40-50

50-60

60-70

ƒ

5

7

10

12

9

8

10

(b)

C.I

10-12

12-14

14-16

16-18

18-20

20-22

22-24

ƒ

8

5

7

10

6

2

2

(c)

C.I

5-10

10-15

15-20

20-25

25-30

30-35

ƒ

2

4

6

8

6

2

(a) Ans.

C.I

0-10

10-20

20-30

30-40

40-50

50-60

60-70

 

ƒ

5

7

10

12

9

8

10

=61

5

12

22

34

43

51

61

 


m= `\frac{\Sigma f}2=\frac{61}2`= 30.5

Median lise between ( 30 – 40 ) in class interval

⸫ l1 = 30, l2 = 40, ƒ = 12, c = 22, m = 30.5

= `30+\frac{40-30}{12}(30.5-22)`

= `30+\frac{10}{12}(8.5)=30+\frac{85}{12}`= 30 + 7.08

=37.08

(b) Ans.

C.I

10-12

12-14

14-16

16-18

18-20

20-22

22-24

 

ƒ

8

5

7

10

6

2

2

=40

8

13

20

30

36

38

40

 


m= `\frac{\Sigma f}2=\frac{40}2`= 20

Median lise between ( 14 – 16 ) in class interval

⸫ l1 = 14, l2 = 16, ƒ = 7, c = 13, m = 20

= `14+\frac{16-14}{7}(20-13)`

= `14+\frac{2}{7}(7)=14+\frac{14}{2}`= 16

(c) Ans.

C.I

5-10

10-15

15-20

20-25

25-30

30-35

 

ƒ

2

4

6

8

6

2

=28

2

6

12

20

26

28

 


m= `\frac{\Sigma f}2=\frac{28}2`= 14

Median lise between ( 20 – 25 ) in class interval

⸫ l1 = 20, l2 = 25, ƒ = 8, c = 12, m = 14

= `20+\frac{25-20}{8}(14-12)`

= `20+\frac{5}{8}(2)=20+\frac{10}{8}`= 20 + 1.25

= 21.25

15. निर्देशांक क्या है ? फिशर का निर्देशांक, आदर्श निर्देशांक क्यों कहलाता जाता है ?

उत्तर- चैण्डलर के अनुसार-“कीमत का सूचकांक आधार-वर्ष की तुलना में किसी अन्य समय में कीमतों की औसत ऊँचाई को प्रकट करने वाली संख्या है।”

निर्देशांक के सूत्र भिन्न भिन्न अर्थशास्त्रियों के अनुसार प्रतिपादित किया गया है। फिशर ने इन सूत्रों पर विस्तृत शोध के बाद यह निष्कर्ष दिया की एक आदर्श निर्देशांक के सूत्र को निम्नलिखित दो परिक्षणों पर खरा उतरना चाहिए। (1) समय उत्क्राम्यता परीक्षण (2) तत्त्व उत्क्राम्यता परीक्षण

फिशर के निर्देशांक इन दोनों परीक्षणों को संतुष्ट करता है। इसलिए इसे आदर्श निर्देशांक कहा जाता है

(1) समय उत्क्राम्यता परीक्षण (Time Reversal Test) :- निर्देशांक का यह पहला परीक्षण है। इसके अन्तर्गत निर्देशांक का सूत्र ऐसा होना चाहिए जो सापेक्षिक विचलन के दोनों समय बिन्दुओं के बीच एक नियत अनुपात व्यक्त करें अर्थात निर्देशांक के सूत्र को समय की दोनों दिशाओं में कार्यशील होना चाहिए।

P01 . P10 = 1

जहां P01 = आधार वर्ष की अपेक्षा जांच वर्ष में मूल्य अनुपात

       P10 = जांच वर्ष की अपेक्षा आधार वर्ष में मूल्य अनुपात

फिशर के सूत्र में

P01  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_0q_1}}`

P10  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_0q_0}{\SigmaP_1q_0}\times\frac{\SigmaP_0q_1}{\Sigma P_1q_1}}` 

`P_{01}.P_{10}=\sqrt{\frac{\Sigma P_1q_0}{\Sigma P_0q_0}\times\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_1}\times\frac{\Sigma P_0q_0}{\Sigma P_1q_0}\times\frac{\Sigma P_0q_1}{\Sigma P_1q_1}}`

`P_{01}.P_{10}=\sqrt1`   

P01 . P10   = 1

अतः फिशर का सूत्र समय उत्क्राम्यता परीक्षण (Time Reversal Test) को संतुष्ट करता है

(2) तत्त्व उत्क्राम्यता परीक्षण (Factor Reversal Test) :- यह दूसरा सूत्र है।इसके अनुसार आधार मूल्य निर्देशांक को परिमाण निर्देशांक से गुणा किया जाए तो सम्बंधित कुल मूल्य निर्देशांक ज्ञात होना चाहिए।

`P_{01}.Q_{01}=V_{01}=\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_0}`     

P01  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_0q_1}}` 

Q01  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_0q_1}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_1q_0}}`

`P_{01}.Q_{01}=\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_1}\times\frac{\Sigma P_0q_1}{\Sigma P_0q_0}\times\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_1q_0}}`

`P_{01}.Q_{01}=V_{01}=\sqrt{(\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_0})^2}=\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_0}`

अथवा

निम्न में से फिशर के निर्देशांक की रचना कीजिए :

आधार वर्ष

चालू वर्ष

मूल्य

मात्रा

मूल्य

मात्रा

5

10

7

20

7

8

8

16

10

6

10

12

8

8

10

10

6

12

8

16

उत्तर –

आधार वर्ष 2010

चालू वर्ष 2016

P0q0

P0q1

P1q0

P1q1

P0

q0

P1

q1

5

10

7

20

50

100

70

140

7

8

8

16

56

112

64

128

10

6

10

12

60

120

60

120

8

8

10

10

64

80

80

100

6

12

8

16

72

96

96

128

 

 

 

 

ΣP0q0=302

ΣP0q1=508

ΣP1q0=370

ΣP1q1=516


फिशर विधि - P01 =`\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_0q_1}}\times100`

`=\sqrt{\frac{370}{302}\times\frac{516}{508}}\times100``=\sqrt{1.22\times1.01}\times100=`

`=\sqrt{1.2322}\times100` = 1.11 x 100 = 111

16. निम्न समंकों से रैंक सहसंबंध ज्ञात कीजिए :

अंग्रेजी में प्राप्तांक (x)

अर्थशास्त्र में प्राप्तांक (y)

46

30

56

60

39

40

45

50

54

70

58

65

36

39

40

52

उत्तर-

X

Rx

Y

Ry

d (Rx -Ry )

d2

46

4

30

8

-4

16

56

2

60

3

-1

1

39

7

40

6

1

1

45

5

50

5

0

0

54

3

70

1

2

4

58

1

65

2

-1

1

36

8

39

7

1

1

40

6

52

4

2

4


`\rho=1-\frac{6\Sigma d^2}{N(N^2-1)}` `=1-\frac{6(28)}{8(8^2-1)}`

`=1-\frac{168}{504}=1-0.33=0.67`

अथवा

सहसंबंध का अर्थ स्पष्ट करते हुए धनात्मक तथा ऋणात्मक सहसंबंध स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लैथ्रोप के अनुसार: "सहसंबंध दो चरों के बीच एक संयुक्त संबंध है।"

धनात्मक व ऋणात्मक सह संबन्ध का वर्णन अग्रलिखित है -

1. धनात्मक सह-संबंध  - धनात्मक सहसंबंध से आशय है कि दो चर श्रेणियों में परिवर्तन की दिशा का एक समान होना। जैसे, यदि किसी श्रेणी में वृद्धि हो तो संबंधित श्रेणी में भी वृद्धि हो एवं कमी की दशा में कमी हो।

उदाहरण - पूर्ति व कीमत आदि।

2. ऋणात्मक सहसंबंध - ऋणात्मक सह संबंध से तात्पर्य होता है कि किसी चार श्रेणीयों में परिवर्तन की दिशा का विपरीत होना अर्थात यदि एक चर में वृद्धि हो तो अन्य संबंधित चर में कमी हो एवं कमी होने पर वृद्धि हो।

                          Section - B खण्ड - ब

17. अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था क्या है ?

उत्तर: एक अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति आय एवं लोगों के रहन-सहन का स्तर बहुत ही नीचा होता है।

18. 'हरित क्रांति ' की परिभाषा दें।

उत्तर: हरित क्रांति का अर्थ अधिक उपज देनेवाले बीज, रासायनिक खाद, समुचित सिचाई, आधुनिक औजार, वैज्ञानिक कृषि विधि एवं कृषि अनुसंधान पर आधारित नये प्रयोगों के फलस्वरूप लहलहाती हुई हरी फसलो एवं कृषि उत्पादन में वृद्धि से है।

19. FEMA का पूर्ण रूप बतलाइये।

उत्तर: 1999 मे FERA (Foreign Exchange Regulation Act) के स्थान पर FEMA (Foreign Exchange management Act) लाया गया।

20. ऊर्जा क्षेत्र की दो समस्याओं को बतलायें।

उत्तर: (1) बिजली का अपर्याप्त उत्पादन

         (2) तेल के आयात में वृद्धि

21. नगद फसलों से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: नगद फसले वे फसले है जिसका उत्पादन व्यवसाय के उद्देश्य से किया जाता है। जैसे- कपास, तम्बाकू, गन्ना इत्यादि

22. भारत में ग्रामीण बेरोजगारी के तीन कारणों का उल्लेख करें।

उत्तर: भारत में ग्रामीण बेरोजगारी के तीन कारण निम्न है-

1. कृषि क्षेत्र का पिछड़ापन : भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी संपूर्ण जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। वर्तमान में जनसंख्या विस्फोट के कारण कृषि क्षेत्र काफी पिछड़ गया है क्योंकि कृषि के कार्यों की प्रकृति पछड़ी हुई है। कृषि की विधियों में तकनीकों के अभाव, संस्थागत सुधार जैसे- भूमि सुधार, चकबन्दी, भूमिधारिता की सीमा आदि के कारण बेरोजगारी बढ़ी है। इसके अलावा काश्तकारी सुधार, राजनीतिक एवं प्रशासनिक अदक्षता एवं किसानों के व्यवहार में असहयोग की भावना का होना भी बेरोजगारी का प्रमुख कारण है। कृषि के अच्छे अवसर प्राप्त न होने के कारण ग्रामीण इलाकों की बहुत सारी जनसंख्या का नगरों की ओर पलायन करने से नगरों में बेरोजगारी की समस्या को देखा गया है।

2. मशीनीकरण : मशीनीकरण से आशय कार्यों को पूरा करने के लिए मशीनों के उपयोग से है। पहले रोजगार के आधे से ज्यादा कार्य लोगों द्वारा पूरे किए जाते और बेरोजगार जैसी समस्या कम ही थी परन्तु वर्तमान में लगभग सभी कार्य मशीनों द्वारा ही किए जाते है अतः मशीनीकरण से कई लोगों का रोजगार छिन जाने के कारण देश में बेरोजगारी की समस्या में वृद्धि होने लगी है।

3. भौतिक आपदाएं : भारतीय कृषक को समय-समय पर अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सूखा, अकाल, महामारी आदि जैसी विपदाओं का सामना करना पड़ता है।

सिंचाई आदि के साधन भी बहुत कम है, फलतः जितनी उपज होनी चाहिए उतनी भी नहीं हो पाती है। अधिक उपज हो तो अधिक लोगों को काम दिया जा सकता है। अतः भौतिक विपत्तियों से भी बेरोजगारी उत्पन्न होती है।

23. भारत में आर्थिक सुधारों के विरुद्ध तीन तर्क दें।

उत्तर: भारत में आर्थिक सुधारों के विरुद्ध तीन तर्क निम्न है-

1. कृषि की अवहेलना : आर्थिक सुधारों की आलोचना इस बात को लेकर की जाती है कि इसके अन्तर्गत कृषि की अवहेलना की गई है। यद्यपि आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कृषि-उत्पादन में वृद्धि हुई है लेकिन कृषि-उत्पादः के विकास दर में प्रायः कमी हुई है। आर्थिक सुधारों के पहले 1980-81 से 1990-91 के बीच कृषि-उत्पादन की विकास-दर (Gorwth Rate) 3.6 प्रतिशत थी जो सुधारों के बाद 1992-93 से 200-01 के बीच घटकर 3.3 प्रतिशत तथा नौवीं योजना (1997-2002) में 2.1 प्रतिशत हो गई। दसवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 2004-05 में तो कृषि की विकास-दर 1 प्रतिशत से भी कम (0.7 प्रतिशत) रही और 2005-06 में भी इसके 2.3 प्रतिशत होने का ही अनुमान है। कृषि की अवहेलना का मुख्य कारण यह है कि आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत मुख्यतः उद्योगों एवं सेवाओं के विकास पर जोर दिया गया है और सार्वजनिक क्षेत्र में कृषि पर किया गया निवेश संतोषजनक नहीं है।

2. उद्योगों को खतरा : ऐसा कहा जाता है कि आर्थिक सुधारों के चलते उद्योगों और विशेषकर छोटे पैमाने के उद्योगों के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है क्योंकि उन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों (Multi-National Companies अथवा MNCs) की प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है। इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामने छोटे उद्योगों का टिका रहना बहुत ही कठिन है।

3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण : आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण करना शुरू कर दिया है। वे भारतीय बाजारों का शोषण कर रही हैं और उनमें सफलतापूर्वक अपने उत्पादों की बिक्री कर रही हैं। साथ ही अधिकांश भारतीय उपभोक्ता विदेशी वस्तुओं की खरीद पर फिजूलखर्ची कर रहे हैं।

4. बेरोजगारी की दर में वृद्धि : आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत बेरोजगारी की समस्या जटिल होती चली जा रही है। 1990-91 में बेरोजगारी की दर 4 प्रतिशत थी जो 1998-99 में बढ़कर 6 प्रतिशत हो गई । यद्यपि देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ आ रही हैं लेकिन चूँकि वे पूँजी-गहन तकनीक (Capital intensive technique) का व्यवहार करती हैं अत: उनसे रोजगार के आर्थिक अवसरों की आशा नहीं की जा सकती।

24. भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन के तीन लाभदायक प्रभावों को बतलाइये।

उत्तर: यद्यपि ब्रिटिश शासन की नीति का मुख्य उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा नहीं देना था, फिर भी संयोगवश भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन के कुछ लाभकारी प्रभाव पड़े जिनमें  निम्नलिखित प्रमुख है-

(i) देश का राजनीतिक एवं आर्थिक एकीकरण

(ii) भारतीय कृषि का व्यवसायीकरण

(iii) बैंकिंग एवं मुद्रा प्रणाली का विकास

(iv) यातायात (विशेषकर रेलवे) एवं संचार के साधनों का विकास

(v) उत्पादन की नई तकनीक एवं प्रबन्धन की शुरुआत

(vi) मौद्रिक अर्थव्यवस्था एवं पूँजीपति उपक्रमों का उदय

(vii) नयी शिक्षा प्रणाली का प्रारंभ

(viii) नागरिक कानून एवं न्यायालयों की स्थापना

25. 1948 की औद्योगिक नीति की तीन विशेषताएँ बतलाइये।

उत्तर: 1948 की औद्योगिक नीति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है

(i)  उद्योगों का चार श्रेणी मे विभाजन -

(a) प्रथम श्रेणी में वे उद्योग रखे गये जिनपर केन्द्रीय सरकार का पूर्ण एकाधिकार होगा।

(b) द्वितीय श्रेणी में छः आधारभूत एवं प्रमुख उद्योग रखे गये जिनके भावी विकास का उत्तरदायित्व पूर्णतः सरकार पर होगा।

(c) तीसरी श्रेणी में 20 ऐसे उद्योग रखे गये जो निजी क्षेत्र में ही रहेंगे लेकिन उनपर सरकार का नियमन एवं नियंत्रण रहेगा।

(d) चौथी श्रेणी में शेष सभी उद्योगों को रखा गया जो निजी क्षेत्र द्वारा चलाये जायेंगे।

(ii) कुटीर एवं लघु उद्योग का महत्त्व:- सहकारिता के आधार पर कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास की घोषणा की गयी लेकिन कुटीर उद्योग का विकास बड़े उद्योगों के प्रतियोगी के रुप मे नहीं, वरन परिपूरक के रूप मे करने तथा दोनों प्रकार के उद्योगों के बीच समन्वय स्थापित करने पर जोर दिया गया।

(iii) कर प्रणाली :-इस नीति मे कर प्रणाली में आवश्यक परिवर्तन करने का आश्वासन दिया गया, ताकि उससे उत्पादन एवं विनियोग को प्रोत्साहन मिले और सम्पत्ति के केन्द्रीकरण को रोका जा सके।

26. भारत में कृषि बाजार के तीन दोष बतलाइये।

उत्तर: ''कृषि बाजार वह प्रणाली है जिसके अन्तर्गत किसान अपनी आधिक्य उपज का निपटान करते है और जिसमे कृषि उपजो की वसूली, नमूना बनाने, भंडारण, परिवहन तथा विक्रय की क्रियाएँ सम्मिलित होती है।"

कृषि बाजार के दोष

(i) परिवहन एवं संचार के साधनों का अभाव : परिवहन साधनों के अभाव में किसान को अपनी उत्पाद को बाजार तक ले जाने में अधिक राशि व्यय करनी पड़ती है ।

(ii) बिचौलियों की अधिक संख्या : बिचौलियों की संख्या अधिक होने से किसान के उत्पाद का मूल्य अधिक होता है तथा कृषक को कम लाभ मिल पाता है।

(iii) गोदाम तथा भंडारों की कमी : संचय की सुविधाओं के अभाव में किसानों को बाध्य होकर अपनी उपज बेचनी पड़ती है जिससे उन्हें उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता।

27. अवसंरचना क्या है ? इसके कौन-कौन से प्रकार हैं ?

उत्तर: अवसंरचना का मतलब वह समर्थक संरचना है जो कृषि, उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य जैसे प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की बुनियादी सेवाएं प्रदान करती हैं।

आधारभूत ढांचे के दो अंग या प्रकार है

(i) आर्थिक अवसंरचना : इसमें प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन तथा लोगो की खुशहाली में वृद्धि में सहायता प्रदान करती है। उदाहरण के लिए - ऊर्जा अथवा शक्ति, परिवहन एवं संचार, सिचाई व्यवस्था, बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थाएं इत्यादि।

(ii) सामाजिक अवसंरचना : इसमें मनुष्य की क्षमता एवं उत्पादकता मे वृद्धि कर अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में सहायता प्रदान करती है। उदाहरण के लिए-शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास इत्यादि ।

28. मानवीय साधनों का विकास आप कैसे कर सकते हैं ?

उत्तर: मनुष्य अथवा लोग स्वत: उत्पादन के साधन नहीं होते। इसके लिये मानवीय साधनों को विकसित करने अथवा मानवीय पूंजी निर्माण की आवश्यकता पड़ती है।

मानवीय साधनों को विकसित करने अथवा मानवीय पूंजी निर्माण के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाये जाते हैं -

(1) शिक्षा एवं प्रशिक्षण :- शिक्षा किसी मूर्त्त वस्तु का उत्पादन तो नहीं करती लेकिन यह लोगों को कौशल सिखलाती है जिसके द्वारा वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है। आधुनिक समाज नि: शुल्क, अनिवार्य एवं सार्वजनिक प्रारंभिक शिक्षा को उच्च प्राथमिकता प्रदान करता है।

हमारी अर्थव्यवस्था में प्रशिक्षित मानव शक्ति जैसे-अच्छे मेकेनिक अच्छे डाक्टर आदि की काफी अधिक आवश्यकता है। इसके लिए उच्च शिक्षा की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति कॉलेजो और विश्वविद्यालयो द्वारा ही संभव है क्योंकि इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, अध्यापक, प्रशासक एवं अन्य कार्यों के लिये उच्च स्तरीय कर्मचारी वही से, निकलते हैं।

(ii) स्वास्थ्य एवं पोषण :- मनुष्य की कार्यक्षमता में विकास के लिये उसके स्वास्थ्य को बनाये रखने एवं उसके लिये पोषक तत्वों की व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है। भारत जैसे अविकसित देशो मे जहाँ आय का स्तर काफी कम है, लोगों के लिये और विशेषकर माताओ एवं शिशुओं के लिये न्यूनतम पोषण की व्यवस्था करना अनिवार्य है। इसके लिए देश मे पोषाहार कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए

(iii) आवास :- भोजन एवं वस्त्र के बाद मनुष्य के जीवन में आवास का महत्वपूर्ण स्थान है। आरामदायक एवं स्वच्छ आवास के अभाव मे श्रमिकों से बेहतर कार्य की आशा नहीं की जा सकती है। अत: श्रमिको अथवा मानवीय साधन के विकास के लिये पर्याप्त एवं स्वच्छ आवास की व्यवस्था करना नितान्त आवश्यक है।

(iv) अन्य सुविधाएँ:- अन्य सुविधाओ मे जलापूर्ति एवं स्वच्छता, शहरी एवं ग्रामीण विकास प्रमुख है।

29. भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता को बतलायें।

उत्तर: आर्थिक सुधारों का मतलब उन नीतियों से है जिनका प्रारंभ 1991 से अर्थव्यवस्था में कुशलता, उत्पादकता, लाभदायकता एवं प्रतियोगिता की शक्ति के स्तरों की वृद्धि करने के दृष्टिकोण से किया गया।

आर्थिक सुधारों की आवश्यकता

निम्नलिखित कारणों से आर्थिक सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई

(i) अनावश्यक नियंत्रण : 1991 के पूर्व औद्योगिक लाइसेंस, विदेशी पूंजी एवं तकनीक के आगमन पर प्रतिबंध, उद्योगों के कार्यकलापों को सीमित करने, आयात कोटा एवं आयात शुल्क इत्यादि के रूप में जो अनावश्यक नियंत्रण लगाए गए थे उनको दूर करने के लिए आर्थिक सुधारों की आवश्यकता पड़ी।

(ii) प्रतिकूल भुगतान संतुलन : प्रतिकूल भुगतान संतुलन को कम करने के लिए आर्थिक सुधारों की आवश्यकता पड़ी

(iii) विदेशी विनिमय कोष मे कमी: 1991 के मध्य मे एक समय ऐसा आया जब हमारे पास दो सप्ताह के आयातो की अदायगी के लिये भी विदेशी विनिमय कोष नहीं था। यह संकट इतना बढ़ गया कि चन्द्रशेखर सरकार को देश में रिजर्व कोष से स्वर्ण निकालकर उसे गिरवी रखना पड़ा ताकि ऋण की अदायगी के लिये ऋण प्राप्त हो सके। इस संकट से उबरने के लिये भी सरकार को आर्थिक सुधारों की आवश्यकता पड़ी।

(iv) मूल्यों में वृद्धि : उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि नहीं होने के कारण मूल्यों में तेजी से वृद्धि हुई जिसको नियंत्रित करने के लिए भी आर्थिक सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई।

30. प्रदूषण के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या करें।

उत्तर :- प्रदूषण के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित है

(1) वायु प्रदूषण :- वायुमण्डल मे जब अवांछित गैंसे प्रवेश कर जाती है, तो उनका स्वरूप बदल जाता है, इसी को वायु प्रदूषण कहा जाता है।

(2) जल प्रदूषण:- गन्दे बहने वाले नालों चाहे वे उद्योगा के गन्दे नाले हो अथवा मल निकास की नालियां, सबका निकास इस देश की उन पवित्र नदियों की ओर किया जाता है जिनकी हम पूजा करते हैं और पानी  पीते हैं। यह मनमानी मानव जीवन की अनगिनत बलि ले चुकी है।

(3) ध्वनि प्रदूषण:- बढ़ते हुए यातायात के साधनों के अतिरिक्त ध्वनि प्रदूषण प्रसारण यन्त्रों की चीख पुकार, कान के पर्दों को फाड़ डालती है। ध्वनि प्रदूषण मानसिक व्यग्रता, तनाव, बहरापन तथा अन्य शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण बन गई है।

(4) रासायनिक प्रदूषण :- रासायनिक प्रदूषण से वातावरण मे ओजोन की कमी हो गई है। इससे व्यक्ति को पित्ताशय की बिमारी तो होती ही है साथ ही साथ श्वास तन्त्र के विकृत होने का खतरा होता है।

31. मानवीय पूंजी निर्माण के कौन-कौन से तरीके हैं ?

उत्तर: मनुष्य अथवा लोग स्वत: उत्पादन के साधन नहीं होते। इसके लिये मानवीय साधनों को विकसित करने अथवा मानवीय पूंजी निर्माण की आवश्यकता पड़ती है।

मानवीय साधनों को विकसित करने अथवा मानवीय पूंजी निर्माण के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाये जाते हैं -

(1) शिक्षा एवं प्रशिक्षण :- शिक्षा किसी मूर्त्त वस्तु का उत्पादन तो नहीं करती लेकिन यह लोगों को कौशल सिखलाती है जिसके द्वारा वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है। आधुनिक समाज नि: शुल्क, अनिवार्य एवं सार्वजनिक प्रारंभिक शिक्षा को उच्च प्राथमिकता प्रदान करता है।

हमारी अर्थव्यवस्था में प्रशिक्षित मानव शक्ति जैसे-अच्छे मेकेनिक अच्छे डाक्टर आदि की काफी अधिक आवश्यकता है। इसके लिए उच्च शिक्षा की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति कॉलेजो और विश्वविद्यालयो द्वारा ही संभव है क्योंकि इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, अध्यापक, प्रशासक एवं अन्य कार्यों के लिये उच्च स्तरीय कर्मचारी वही से, निकलते हैं।

(ii) स्वास्थ्य एवं पोषण :- मनुष्य की कार्यक्षमता में विकास के लिये उसके स्वास्थ्य को बनाये रखने एवं उसके लिये पोषक तत्वों की व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है। भारत जैसे अविकसित देशो मे जहाँ आय का स्तर काफी कम है, लोगों के लिये और विशेषकर माताओ एवं शिशुओं के लिये न्यूनतम पोषण की व्यवस्था करना अनिवार्य है। इसके लिए देश मे पोषाहार कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए

(iii) आवास :- भोजन एवं वस्त्र के बाद मनुष्य के जीवन में आवास का महत्वपूर्ण स्थान है। आरामदायक एवं स्वच्छ आवास के अभाव मे श्रमिकों से बेहतर कार्य की आशा नहीं की जा सकती है। अत: श्रमिको अथवा मानवीय साधन के विकास के लिये पर्याप्त एवं स्वच्छ आवास की व्यवस्था करना नितान्त आवश्यक है।

(iv) अन्य सुविधाएँ:- अन्य सुविधाओ मे जलापूर्ति एवं स्वच्छता, शहरी एवं ग्रामीण विकास प्रमुख है।

32. आर्थिक वृद्धि की माप कैसे की जाती है ?

उत्तर: आर्थिक वृद्धि की माप निम्नलिखित दो तरीको से की जाती है।

(1) राष्ट्रीय उत्पादन अथवा राष्ट्रीय आय में वृद्धि :- आर्थिक वृद्धि की माप प्रायः राष्ट्रीय आय अथवा वस्तुओं और सेवाओं के रूप में राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि के द्वारा की जाती है। आर्थिक वृद्धि की माप वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य में वृद्धि के रूप मे नही की जानी चाहिये। आर्थिक वृद्धि के लिए वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होनी चाहिये।

(2) प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि :- आर्थिक वृद्धि के लिए प्रति व्यक्ति आय मे वृद्धि आवश्यक है।

आर्थिक वृद्धि तभी होगी जब वास्तविक राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर जनसंख्या की वृद्धि दर से अधिक हो।

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