Class 12 History अध्याय-14 विभाजन को समझना राजनीति, स्मृति, अनुभव Question Bank-Cum-Answer Book

                   Class 12 History अध्याय-14 विभाजन को समझना राजनीति, स्मृति, अनुभव Question Bank-Cum-Answer Book

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

इतिहास (History)

अध्याय-14 विभाजन को समझना राजनीति, स्मृति, अनुभव

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)

1. 1947 के विभाजन को जिंदा बचे लोगों ने क्या कहकर व्यक्त किया ?

A. मार्शल लॉ

B. मारामारी

C. रोला या हुल्लड़

D. इनमें से सभी

2. सीमान्त गाँधी किसे कहा जाता था?

A. मोहम्मद अली जिन्ना

B. रहमत अली

C. खान अब्दुल गफ्फार खान

D. मोहम्मद इकबाल

3. बंगाल का विभाजन कब हुआ था?

A. 1905

B. 1909

C. 1919

D. 1920

4. मुस्लिम लीग की स्थापना कब एवं कहाँ किया गया था?

A 1905, लखनऊ में

B. 1,906, ढाका में

C. 1907, सूरत में

D. 1909, कलकत्ता में

5. मुसलमानों के लिए पृथक चुनाव क्षेत्र का प्रस्ताव कब लाया गया था?

A. 1907

B. 1909

C. 1916

D. 1920

6. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी एवं मुस्लिम लीग के बीच समझौता कब हुआ था?

A. 1909

B. 1907

C. 1916

D. 1919

7. हिन्दु महासभा का गठन कब किया गया था?

A. 1910

B. 1915

C. 1920

D. 1925

8. 1937 ई. के प्रान्तीय चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 11 प्रान्तों में से कितने प्रान्तों में अपनी सरकार बनाई ?

A. 8 प्रान्तों में

B. 11 प्रान्तों में

C. 7 प्रान्तों में

D. इनमें से कोई नहीं

9. सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा किसने लिखा था ?

A. चौधरी रहमत अली

B. मोहम्मद इकबाल

C. मोहम्मद अली जिन्ना

D. इनमें से कोई नहीं

10. मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव कब लाया था?

A. 23 मार्च 1940

B. 24 फरवरी 1942

C. 5 मार्च 1946

D. 16 अगस्त 1942

11. भारत छोड़ो आन्दोलन कब से प्रारंभ मानी जाती है।

A. 15 अगस्त 1942

B. 8 अगस्त 1942

C. 24 मार्च 1946

D. 16 अक्टूबर 1946

12. कैबिनेट मिशन भारत कब आया ?

A. मार्च 1946

B. अप्रैल 1945

C. जून 1942

D. मई 1945

13. मुस्लिम लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस कब मनाया?

A. 23 मार्च 1946

B. 24 मार्च 1947

C. 16 अगस्त 1946

D. 23 अगस्त 1942

14. भारत छोड़ो आन्दोलन में करो या मरो का नारा किसने दिया था ?

A. सुभाष चन्द्र बोस

B. महात्मा गांधी

C. जवाहर लाल नेहरू

D. डॉ राजेन्द्र प्रसाद

15. पाकिस्तान शब्द किसने दिया था?

A मोहम्मद जिन्ना

B. चौधरी रहमत अली

C. लियाकत अली

D. मोहम्मद इकबाल

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. भारत का विभाजन कब हुआ ?

उत्तर- भारत का विभाजन 1947 ई. को लॉर्ड माउंटबेटन योजना के तहत हुआ, जो दो संप्रभु राष्ट्र भारत एवं पाकिस्तान के रूप में सामने आया।

2. भारत को स्वतंत्रता किस अधिनियम के तहत मिली?

उत्तर- भारत को स्वतंत्रता 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत मिली। 14 अगस्त 1947 ई को पाकिस्तान, एवं 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली।

3. लखनऊ समझौता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच दिसंबर 1916 ई में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में एक समझौता के तहत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच आपसी तालमेल हुआ था। जिसे लखनऊ समझौता के नाम से जाना जाता है।

4. साम्प्रदायिकता से आप क्या समझे समझते हैं?

उत्तर- साम्प्रदायिकता से तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृति से है, जो धर्म और जाति के नाम पर पूरे समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के विरुद्ध व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत धार्मिक हितों को प्रोत्साहित एवं संरक्षण देने की भावना को महत्व देती है तथा आपस में झगड़ा पैदा करती है।

5. उन दो नेताओं के नाम बताइए जो अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे?

उत्तर- महात्मा गाँधी और अब्दुल गफ्फार खान जिसे सिमान्त गाँधी भी कहा जाता था। इन दोनों महान नेताओं ने भारत विभाज्य का अन्त तक विरोध करते रहे।

6. हिन्दु महासभा का स्थापना कब एवं क्यों किया गया था?

उत्तर - हिन्दु महासभा की स्थापना 1915 ई. में हुई थी। यह एक हिन्दु पार्टी थी, जो हिन्दुओं के बीच जाति एवं संप्रदाय के फर्को को समाप्त कर हिन्दु समाज में एकता पैदा करने की कोशिश करती थी ।

7. 1909 में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों के सांप्रदायिक राजनीति पर क्या असर पड़ा?

उत्तर- पृथक् चुनाव क्षेत्रों के कारण मुसलमान विशेष चुनाव क्षेत्रों अपने प्रतिनिधि चुन सकते थे। तथा इस व्यवस्था से मुस्लिम लीग के राजनेता सांप्रदायिक नारे लगाकर अपना पक्ष मज़बूत बनाने लगे।

8. भारत विभाजन के दौरान महात्मा गांधी नोआखली क्यों गए थे?

उत्तर- भारत- विभाजन के दौरान हिंदू एवं मुसलमानो के बीच नोआखली मे संप्रदायिक दंगा अत्यधिक बढ़ गया था। जिसे शांत करने के लिए महात्मा गांधी नआखली गए थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. 1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या मांग की?

उत्तर - 1940 में मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग की इस प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था। इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिकंदर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेंबली को संबोधित करते हुए यह कहा था कि वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा के विरुद्ध हैं जिसमें "यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जगहों पर हिंदू रोज होगा..." यदि पाकिस्तान का अर्थ यह है कि पंजाब में विशुद्ध मुस्लिम राज स्थापित होने वाला है तो मेरा उससे कोई संबंध नहीं है।” उन्होंने अपने विचारों को संघीय इकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ की स्थापना के समर्थन में फिर से दोहराया।

2. आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?

उत्तर- आम लोग विभाजन को भिन्न-भिन्न नजरों से देख रहे थे। जैसे-

1. कुछ लोगों को लगता था कि शांति के स्थापित होते ही, वे अपने-अपने घरों को लौट जाएँगे। वे इसे कोई स्थायी प्रक्रिया नहीं मान रहे थे।

2. विभाजन के दंगों से बचे कुछ लोग इसे मारा-मारी, मार्शल लॉ, रौला,हुल्लड़ आदि शब्दों से संबोधित कर रहे थे।

3. कुछ लोग इसे एक प्रकार का गृहयुद्ध मान रहे थे।

4. कुछ ऐसे भी लोग थे जो स्वयं को उजड़ा हुआ और असहाय अनुभव कर रहे थे। उनके लिए यह विभाजन उनसे बचपन की यादें छीनने वाला तथा मित्रों तथा रिश्तेदारों से तोड़ने वाला मान रहे थे।

3. कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत ही अचानक हुआ?

उत्तर- मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी। उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल प्रदेशों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग से लेकर विभाजन होने के बीच बहुत ही कम समय लगा केवल सात साल कोई नहीं जानता था कि पाकिस्तान के गठन का क्या अर्थ होगा और उससे भविष्य में लोगों का जीवन कैसा होगा। 1947 में अपने मूल प्रदेश को छोड़कर नयी जगह जाने वाले अनेक लोगों को यही लगता था कि जैसे ही शांति स्थापित होगी, वे लौट आएँगे। आरंभ में मुस्लिम नेताओं ने भी एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की माँग पर कोई विशेष बल नहीं दिया था। स्वयं जिन्ना भी पाकिस्तान की सोच को सौदेबाजी में एक पैंतरे के रूप में ही प्रयोग कर रहे थे। इसका उद्देश्य सरकार द्वारा कांग्रेस की मिलने वाली रियायतों पर रोक लगाना तथा मुसलमानों के लिए और अधिक रियायतें प्राप्त करना था। दूसरे विश्व युद्ध के कारण अंग्रेज विश्व राजनीति में कमजोर पड़ गए। इधर 1942 में आरंभ हुए विशाल भारत छोड़ो आंदोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को झुकना पड़ा और संभावित सत्ता हस्तांतरण के लिए भारतीय पक्षों के साथ बातचीत के लिए तैयार हो गए। और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया।

4. विभाजन के खिलाफ़ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी?

उत्तर- गाँधी जी प्रारंभ से ही देश के विभाजन के विरुद्ध थे। वह किसी भी कीमत पर विभाजन को रोकना चाहते थे। अतः वह अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे। विरोध स्वरूप उन्होंने कहा था कि विभाजन उनकी लाश पर होगी। उन्होंने एक प्रार्थना सभा में अपने भाषण में कहा था, कि मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूँ जब हिंदू और मुसलमान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जला जा रहा हूँ कि उस दिन को जल्दी से जल्दी साकार करने के लिए क्या करूँ। लीग से मेरी गुजारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें हिंदू एवं मुसलमान, दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं, उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं, और एक ही जबान बोलते हैं।

इसी प्रकार 26 सितम्बर 1946 ई० को महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में लिखा था, किन्तु मुझे विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो माँग उठायी है, वह पूरी तरह गैर- इस्लामिक है और मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य कहने में कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का जो तत्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बाँट देना चाहते हैं, वे भारत और इस्लाम दोनों के शत्रु हैं। भले ही वे मेरी देह के टुकड़े-टुकड़े कर दें, किन्तु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते, जिसे मैं गलत मानता हूँ।

उन्होंने प्रत्येक स्थान पर अल्पसंख्यक समुदाय को (वह हिंदू हो या मुसलमान) सांत्वना प्रदान की। उन्होंने भरसक प्रयास किया कि हिंदू-मुसलमान एक दूसरे का खून न बहाएँ बल्कि परस्पर मिल-जुलकर रहें।

5. कैबिनेट मिशन योजना भारत क्यों आया था?

उत्तर-

1. ब्रिटिश सरकार से भारतीय नेतृत्व को शक्तियों के हस्तांतरण पर चर्चा करने के उद्देश्य से कैबिनेट मिशन भारत आया था। इसका उद्देश्य भारत की एकता की रक्षा करना और उसकी स्वतंत्रता प्रदान करना था

2. भारत का राजनीतिक रुप रेखा तय करने के लिए मार्च 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय उच्च-स्तरीय शिष्टमंडल भेजा।

3. इस शिष्टमंडल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन सदस्य- लार्ड पैथिक लारेंस (अध्यक्ष), सर स्टेफर्ड क्रिप्स तथा ए.वी. अलेक्जेंडर थे। इस प्रतिनिधिमंडल को कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है।

4. कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 1946 में दोबारा प्रांतीय चुनाव हुआ। जिसमें कांग्रेस पार्टी को सामान्य सीटों पर एक तरफा सफलता मिली।

5. जबकि मुस्लिम लीग को उसके मुस्लिम आरक्षित सीटों पर ही जीत मिली वह भी पूर्ण सीटों पर नहीं।

6. अतः मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान राष्ट्र की मांग को मजबूत किया और प्रत्यक्ष कार्यवाही आंदोलन चलाया।

6. प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- कैबिनेट मिशन योजना की सिफारिशों को कुछ शर्तों के साथ कांग्रेसी एवं मुस्लिम लीग ने स्वीकार कर लिया और कैबिनेट मिशन योजना के तहत 1946 में चुनाव हुआ जिसमें मुस्लिम लीग को कांग्रेस पार्टी की तुलना में बहुत कम सीटें मिली जिससे मुस्लिम लीग बौखला गया। और अलग पाकिस्तान की मांग पर अड़ गया तथा पूरा नहीं होने पर सीधी कार्यवाही करने की धमकी दी। और 16 अगस्त 1946ई को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के रुप में मनाया।

उसी दिन कोलकाता में दंगा भड़क उठा जो कई दिनों तक चलता रहा। जिससे कई हजार लोगों की जाने चली गई, खून की होली खेली जाने लगी | मार्च 1947 ई तक उत्तर भारत के अनेक भागों को हिंसा की आग ने अपनी चपेट में ले लिया। संपूर्ण देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगी। इन सांप्रदायिक दंगों के कारण कानून व्यवस्था पूरी तरह समाप्त हो गई और शासन व्यवस्थाऐं बिखर गई। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम दंगे उत्पन्न करके यह सिद्ध करना था कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय एक साथ नहीं रह सकते। अतः देश को भयंकर विनाश से बचाने के लिए कांग्रेस ने विभाजन को स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर समझा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न:-

1. ब्रिटिश भारत का बंटवारा क्यों किया गया?

उत्तर- भारत का विभाजन अंग्रेज़ी सरकार की नीतियों की चरम सीमा तथा सांप्रदायिक दलों द्वारा उत्पन्न जटिल स्थितियों का परिणाम था। जिसे निम्नलिखित तथ्यों से बात स्पष्ट हो जाएगी।

1. फूट डालो और राज्य करो की नीति- 1857 ई० के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में फूट डालो और राज्य करो की नीति अपना ली। उन्होंने भारत के विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के प्रति खूब लड़ाया। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे एक-दूसरे से घृणा करने लगे।

2. मुस्लिम लीग के प्रयत्न - 1906 ई० में मुसलमानों ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना कर ली। फलस्वरूप हिंदू- मुस्लिम भेदभाव बढ़ने लगा।

मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समाज में सांप्रदायिकता फैलानी आरंभ कर दी। मुस्लिम लीग के संकीर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण ने हिंदू-मुसलमानों में मतभेद उत्पन्न करने और अन्ततः पाकिस्तान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। लीग ने द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत' का प्रचार किया और मुस्लिम जनसामान्य को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया कि अल्पसंख्यक मुसलमानों को बहुसंख्यक हिंदूओं से भारी खतरा है। 1937 ई० में कांग्रेस द्वारा संयुक्त प्रांत में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर मन्त्रिमंडल बनाने से इनकार कर दिए जाने पर लीग ने इस्लाम खतरे में है का नारा लगाया और कांग्रेस को हिंदुओं की संस्था बताया। 1940 ई० तक हिंदू- मुस्लिम भेदभाव इतना बढ़ गया कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की माँग की।

3. कांग्रेस की कमजोर नीति- मुस्लिम लीग की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। 1916 ई0 के लखनऊ समझौते के अनुसार कांग्रेस ने सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली को स्वीकार कर लिया। कांग्रेस की इस कमजोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की माँग करनी आरंभ कर दी।

4. सांप्रदायिक दंगे - पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही आरंभ कर दी और सारे देश में सांप्रदायिक दंगे होने लगे। इन दंगों को केवल भारत-विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।

5. अंतरिम सरकार की असफलता- 1946 ई० में बनी अंतरिम सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग को साथ-साथ कार्य करने का अवसर मिला, परंतु लीग कांग्रेस के प्रत्येक कार्य में कोई न कोई रोड़ा अटका देती थी। परिणामस्वरूप अंतरिम सरकार असफल रही। इससे यह स्पष्ट हो गया कि हिंदू और मुसलमान एक होकर शासन नहीं चला सकते।

6. इंग्लैंड द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा 20 फरवरी, 1947 को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऐटली ने जून, 1948 ई० तक भारत को छोड़ देने की घोषणा की घोषणा में यह भी कहा गया कि अंग्रेज़ केवल उसी दशा में भारत छोड़ेंगे जब मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हो जाएगा, परंतु मुस्लिम लीग पाकिस्तान प्राप्त किए बिना किसी समझौते पर तैयार न हुई । फलस्वरूप ब्रिटिश ने भारत विभाजन की योजना बनानी आरंभ कर दी।

2. भारत के बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे ?

उत्तर- विभाजन के सर्वाधिक दूषित प्रभाव संभवतः महिलाओं पर हुए। विभाजन के दौरान उन्हें दर्दनाक अनुभवों से गुज़रना पड़ा। उनके साथ बलात्कार किया गया । उन्हें अगवा किया गया, बार-बार बेचा और खरीदा गया तथा अंजान हालात में अजनबियों के साथ एक नई ज़िन्दगी बसर करने के लिए विवश किया गया। महिलाएँ मूक, निरीह प्राणियों के समान इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरती रहीं। गहरे सदमे से गुजरने के बावजूद कुछ महिलाएँ बदले हुए हालात में नए पारिवारिक बन्धनों में बँध गईं। किंतु भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने ऐसे मानवीय सम्बन्धों की जटिलता के विषय में किसी संवेदनशील दृष्टिकोण को नहीं अपनाया। यह मानते हुए कि इस प्रकार की अनेक महिलाओं को बलपूर्वक घर बैठा लिया गया था, उन्हें उनके नए परिवारों से छीनकर पुराने परिवारों के पास अथवा पुराने स्थानों पर भेज दिया गया। इस सम्बन्ध में महिलाओं की इच्छा जानने का प्रयास ही नहीं किया गया। इस प्रकार, विभाजन की मार झेलने वाली उन महिलाओं को अपनी जिन्दगी के विषय में फैसला लेने के अधिकार से एक बार फिर वंचित कर दिया गया। एक अनुमान के अनुसार महिलाओं की बरामदगी के अभियान में कुल मिलाकर लगभग 30,000 महिलाओं को बरामद किया गया। इनमें से 22000 मुस्लिम औरतों को भारत से और 8,000 हिन्दू व सिक्ख महिलाओं को पाकिस्तान से निकाला गया। बरामदगी की यह प्रक्रिया 1954 ई0 में जाकर खत्म हुई

उल्लेखनीय है कि विभाजन की प्रक्रिया के दौरान अनेक ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं, जब परिवार के पुरुषों ने इस भय से कि शत्रु द्वारा उनकी औरतों-माँ, बहन, बीवी, बेटी को नापाक किया जा सकता था, परिवार की इज़्ज़त अर्थात् मान-मर्यादा की रक्षा के लिए स्वयं ही उनको मार डाला।

उर्वशी बुटालिया ने अपनी पुस्तक दि अदर साइड ऑफ़ साइलेंस में रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा गाँव के एक ऐसे ही दर्दनाक हादसे का ज़िक्र किया है। बताते हैं कि तक्सीम के समय सिखों के इस गाँव की 90 औरतों ने "दुश्मनों" के हाथों में पड़ने की बजाय " अपनी मर्जी से" कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी। इस प्रकार विभाजन के दौरान महिलाओं को अनेक दर्दनाक अनुभव से गुजरना पड़ा।

3. भारत के बंटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?

उत्तर- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रारंभ से ही विभाजन का विरोध कर रही थी किंतु अंत में परिस्थितियों से विवश होकर उसे अपनी सोच बदलनी पड़ी और विभाजन के लिए तैयार होना पड़ा।

और मार्च, 1947 में कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब को मुस्लिम बहुल और हिंदू सिख- बहुल दो भागों में बाँटने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। कांग्रेस ने बंगाल के संबंध में भी यही सिद्धांत अपनाने का सुझाव दिया। अंकों के खेल में उलझकर पंजाब के बहुत से सिख और कांग्रेसी नेता भी यह मानने लगे कि अब विभाजन कड़वी सच्चाई बन चुका है, जिसे टाला नहीं जा सकता। उन्हें लगता था कि वे अविभाजित पंजाब में मुसलमानों से घिर जाएँगे और उन्हें मुस्लिम नेताओं की दया पर जीना पड़ेगा। इसलिए वे भी विभाजन के पक्ष में हो गए। बंगाल में भी भद्रलोक बंगाली हिंदुओं का जो वर्ग सत्ता को अपने हाथ में रखना चाहता था, वह यह सोचता था कि विभाजन न होने पर वे "मुसलमानों के स्थायी गुलाम बनकर रह जाएँगे। संख्या की दृष्टि से वे कम थे इसलिए उनको लगता था कि प्रांत के विभाजन से ही उनका राजनीतिक प्रभुत्व बना रह सकता है।

मार्च 1947 से तक़रीबन साल भर तक रक्तपात चलता रहा। इसका एक कारण यह था कि शासन की संस्थाएँ बिखर चुकी थीं। उसी समय बहावलपुर (पाकिस्तान) में तैनात पेंडेरल मून नाम के एक अफ़सर ने इस बारे में लिखा था कि जब मार्च 1947 में पूरे अमृतसर में आगजनी और मारकाट हो रही थी तो पुलिस एक भी गोली नहीं चला पाई।

साल के आखिर तक शासन तंत्र पूरी तरह नष्ट हो चुका था। पूरा अमृतसर जिला चौतरफ़ा रक्तपात में डूबा हुआ था । अंग्रेज अफ़सरों को सूझ नहीं रहा था कि हालात को कैसे सँभाला जाए। वे फ़ैसले लेना नहीं चाहते थे और हस्तक्षेप करने में हिचकिचा रहे थे। जब दहशतजदा लोगों ने मदद के लिए गुहार लगाई तो अंग्रेज़ अफ़सरों ने उनसे महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल या मोहम्मद अली जिन्ना की शरण में जाने को कहा। किसी को मालूम नहीं था कि सत्ता किसके हाथ में है। महात्मा गाँधी के अलावा भारतीय दलों के सभी वरिष्ठ नेता आज़ादी के बारे में जारी वार्ताओं में व्यस्त थे जबकि प्रभावित प्रांतों के बहुत सारे भारतीय प्रशासनिक अफ़सर अपने ही जान-माल के बारे में भयभीत थे। अंग्रेज़ भारत छोड़ने की तैयारी में लगे थे।

इन सारी समस्या के कारण कांग्रेस ने अपनी सोच बदली

4. मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?

उत्तर- मौखिक इतिहास से अभिप्राय लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से है। इन अनुभवों की जानकारी लोगों के साक्षात्कार (In- terview) द्वारा प्राप्त की जाती है। यद्यपि मौखिक इतिहास के अपने लाभ और हानियां है तथापि यह सत्य है कि उनकी इतिहास की पद्धतियां विभाजन के विषय में हमारी समझ को विस्तार प्रदान करती है।

मौखिक इतिहास के लाभ-

1. मौखिक इतिहास का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे घटनाओं को सजीव बनाया जा सकता है।

2. इससे ग़रीबों और कमज़ोरों के अनुभवों को भी जाना जा सकता है जो प्रायः उपेक्षा का शिकार रहे हैं, क्योंकि इतिहास इन लोगों के बारे में अधिकतर चुप ही रहता है।

मौखिक इतिहास के हानि-

1. मौखिक इतिहास की हानि यह है कि यह स्मृतियों पर आधारित होता है। अतः इसे पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।

2. मौखिक जानकारियों से घटनाओं का क्रमबद्ध तथा तिथि वध्द विवरण प्राप्त करना कठिन हो जाता है

मौखिक इतिहास के स्रोत विभाजन से संबंधित मौखिक इतिहास के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं।

1. विभाजन की त्रासदी झेल चुके वे लोग जो अब तक जीवित हैं या जो अपने अनुभवों का ब्यौरा आप अपनी संतानों को दे गए हैं।

2. विभाजन के समय ध्वस्त हुए अथवा जला दिए गए भवनों के अवशेष |

3. मानववादी स्वयंसेवकों के अनुभव।

4. शरणार्थी के रूप में भारत से पाकिस्तान गए तथा पाकिस्तान से भारत आए लोगो की आपबीती ।

मौखिक इतिहास और विभाजन के बारे में हमारी समझ- मौखिक इतिहास की पद्धतियां विभाजन के विषय में हमारी समाज को विस्तार प्रदान करती है।

मौखिक इतिहास से भारत-विभाजन के बारे में हमारी समझ को काफी विस्तार मिला है। सरकारी रिपोर्टों में आँकड़े तो मिल जाते हैं, परंतु लोगों के कष्टों तथा कठिनाइयों का विस्तार से पता नहीं चल पाता उदाहरण के लिए सरकारी रिपोर्टों से भारतीय और पाकिस्तानी सरकारों द्वारा बरामद की गई औरतों की अदला-बदली की संख्या का तो पता चल जाता है, परंतु उन औरतों पर क्या बीती, इसके बारे में तो वही औरतें ही बता सकती है जिन्हें विभाजन के दौरान कठिनाइयों तथा कष्टों का सामना करना पड़ा। इस प्रकार मौखिक इतिहास की पद्धतियां विभाजन के विषय में हमारी समाज को विस्तृत प्रदान करती है।

5. कैबिनेट मिशन योजना भारत क्यों आया था? और इसका क्या परिणाम निकला।

उत्तर -ब्रिटिश मन्त्रिमंडल ने लीग की माँग का अध्ययन करने तथा स्वतन्त्र भारत के लिए एक उचित राजनैतिक रूपरेखा का सुझाव देने के लिए मार्च 1946 ई० में एक तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा, जिसे कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है। इसमें ब्रिटिश मन्त्रिमंडल के तीन सदस्य- लॉर्ड पैथिक लारेन्स (भारत सचिव), स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए०वी० अलेक्जेंडर सम्मिलित थे।

कैबिनेट मिशन के सदस्यों ने भारत के विभिन्न पार्टियों से मिलकर भारत की स्थितियों के बारे में जानने का कोशिश किया एवं एक स्टेट पेपर तैयार किया, जिसे कैबिनेट मिशन योजना' के नाम से जाना जाता है। इस योजना की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित थीं;

1. सम्पूर्ण भारत का एक संघ स्थापित किया जाए, जिसमें देशी रियासतें और ब्रिटिश भारत दोनों सम्मिलित हों।

2. वैदेशिक मामले, प्रतिरक्षा और संचार साधन के विभाग संघ के पास हों; इनके अतिरिक्त अन्य सभी विभाग प्रान्तों को सौंप दिए जाएँ।

3. संघ की कार्यपालिका एवं विधानमंडल में प्रान्तों और देशी रियासतों के प्रतिनिधि सम्मिलित किए जाएँ। ब्रिटिश भारत को तीन भागों अ, ब और स में समूहबद्ध कर दिया जाए। समूह

(अ) में हिन्दू बहुसंख्यक प्रान्त मद्रास, संयुक्त प्रान्त, बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा समूह '

(ब) में मुस्लिम बहुसंख्यक प्रान्त पंजाब, सिन्ध, उत्तर- पश्चिम सीमा प्रान्त और बलूचिस्तान और समूह

(स) में हिन्दुओं तथा मुसलमानों की लगभग समान संख्यावाले बंगाल और असम के प्रान्तों को सम्मिलित किया जाए।

4. प्रत्येक प्रान्तीय समूह को अपने समूह का संविधान बनाने का अधिकार हो । तत्पश्चात् तीनों समूह मिलकर भारत के संविधान का निर्माण करें।

प्रारम्भ में कैबिनेट मिशन योजना को लगभग सभी राजनैतिक दलों ने स्वीकार कर लिया। किंतु योजना के विषय में सभी की व्याख्या भिन्न-भिन्न थी अतः यह अल्पकालीन सिद्ध हुआ। मिशन वापस इंग्लैण्ड चला गया। 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत संविधान सभा के लिए चुनाव हुआ। चुनाव में कांग्रेश के मुकाबले मुस्लिम लीग को बहुत कम सीटें मिली अतः मुस्लिम लीग इससे बौखला गई और पाकिस्तान न बनाने पर सीधी कार्रवाई करने की धमकी दी। कांग्रेसी एवं मुस्लिम लीग में ताल मेल नहीं होने से कैबिनेट मिशन योजना असफल हो गई।

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

भाग - 1

अध्याय क्रमांक

अध्याय का नाम

1.

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता

2.

राजा, किसान और नगर आरंभिक, राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ ( लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

3.

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज (लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

4.

विचारक, विश्वास और इमारतें सांस्कृतिक विकास (लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

भाग - 2

5.

यात्रियों के नजरिए समाज के बारे में उनकी समझ (लगभग दसवीं से 17वीं सदी तक )

6.

भक्ति -सूफी परंपराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ (लगभग 8वीं से 18वीं सदी तक)

7.

एक साम्राजय की राजधानी : विजयनगर (लगभग 14वीं से 16वीं सदी तक )

8.

किसान, जमींदार और राज्य कृषि समाज और मुगल साम्राज्य (लगभग 16वीं और 17वीं सदी तक)

9.

शासक और विभिन्न इतिवृत : मुगल दरबार (लगभग 16वीं और 17वीं सदी तक )

भाग - 3

10.

उपनिवेशवाद और देहात सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

11.

विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

12.

औपनिवेशिक शहर नगर-योजना, स्थापत्य

13.

महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे

14.

विभाजन को समझना राजनीति, स्मृति, अनुभव

15.

संविधान का निर्माण एक नए युग की शुरूआत

Solved Paper of JAC Annual Intermediate Examination - 2023

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare