प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
इतिहास (History)
अध्याय - 8 किसान, जमींदार और राज्य कृषि समाज और मुगल साम्राज्य
(लगभग सोलहवीं और सत्रहवीं सदी)
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)
प्रश्न 1.
अकबरनामा की रचना किसने की थी?
A. अमीर खुसरो
B. अलबरूनी
C. इब्नबतूता
D. अबुल फजल
प्रश्न 2.
आइन-ए-अकबरी कितने भागों में विभक्त है?
A. दो
B. तीन
C. चार
D. पाँच
प्रश्न 3.
सोलहवी - सत्रहवी सदी के दौरान हिंदुस्तान में कितने
प्रतिशत लोग गांव में रहते थे?
A. 75
B. 85
C. 65
D. 95
प्रश्न 4.
मुगल काल में भारतीय फारसी स्रोत किसानों के लिए आमतौर पर
किस नाम का प्रयोग करते थे?
A. रैयत
B. मुजरियान
C. किसान
D. इनमें से सभी
प्रश्न 5.
रबी फसल किस ऋतु में होती है?
A बसंत
B. ग्रीष्म
C. वर्षा
D. पतझड़
प्रश्न 6.
मुगल काल में भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसलें थी?
A. चावल,
गेहूं,ज्वार -बाजरा आदि
B. चाय, कॉफी, नील, आदि
C. तिलहन, दालें, अफीम, आदि
D. इनमें से कोई
नही
प्रश्न 7.
भारत में 17 वी सदी में जो भी फसल के रूप में अफ्रीका और
स्पेन के रास्ते आई थी उसका नाम था?
A. मक्का
B. गेहूं
C. चावल
D. कपास
प्रश्न 8.
16 वी सदी में भारतीय गांवों में जो अनेक बाहरी ताकतें दाखिल हुई वे थी?
A. मुगल राज्य
B. व्यापार
C. मुद्रा और
बाजार
D. इनमें से सभी
प्रश्न 9.
तंबाकू पर किस मुगल शासक ने प्रतिबंध लगाया?
A. अकबर
B. बाबर
C. जहांगीर
D. शाहजहां
प्रश्न 10.
पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे कहते थे?
A. मुकदम या मुखिया
B. अमिल या अमीर
C. चौधरी या सरपंच
D. पंच या पितामह
प्रश्न 11.
अकबर का वित्त मंत्री कौन था?
A. मानसिंह
B. टोडरमल
C. बीरबल
D. अबुल फजल
प्रश्न 12.
आइन ए अकबरी अकबरनामा के किस खण्ड से संबंधित है ?
A. प्रथम खंड
B. द्वितीय खंड
C. तृतीय खंड
D. चतुर्थ खंड
प्रश्न 13.
मुगलकालीन ऐतिहासिक स्रोतों में शामिल थी?
A. ऐतिहासिक ग्रंथ
B. सरकारी तथा गैर
सरकारी दस्तावेज
C. उस कालांश में
बनी इमारतें एवं स्मारक
D. इनमें से सभी
प्रश्न 14.
आइन-ए-अकबरी के अनुसार सिचाई वाले क्षेत्रों में वर्ष में
कुल फसलें होती थी-
A. 5
B. 3
C. 2
D. 6
प्रश्न 15.
तंबाकू का सेवन सर्वप्रथम किस मुगल सम्राट ने किया था ?
A. बाबर
B. जहांगीर
C. अकबर
D. शाहजहां
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पटवारी किसे कहते थे?
उत्तर-
पटवारी गांव की जमीन प्रत्येक किसान द्वारा जुते जाने वाले खेतों, फसल के प्रकार
और बंजर भूमि का हिसाब किताब रखता था।
प्रश्न 2.
खुदकाश्त और पाहिकास्त कौन थे?
उत्तर-
खुदकास्त - खुदकाश्त उसी गांव की जमीन पर खेती करते थे जहाँ वे रहते थे।
पाहिकास्त-पाहिकास्त
दूसरे गांव में जाकर भाड़े पर जमीन लेकर उस पर खेती करते थे।
प्रश्न 3.
जिन्स - ए -कामिल के अंतर्गत कौन सी फसलें आती था ?
उत्तर
- कपास और गन्ने जैसी फसलें जिन्स-ए-कामिल के अंतर्गत आती थी। ऐसी फसलों की खेती
से राज्य को ज्यादा कर मिलता था।
प्रश्न 4.
अकबरनामा की रचना किसने की थे ? यह कितने भागों में विभक्त है?
उत्तर
- अकबरनामा की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल द्वारा की गई
थी। यह 3 जिल्दों
में विभक्त है।
प्रश्न 5.
17 वी सदी में कौन-कौन सी फसलें, फल एवं सब्जियां
विदेशों से भारत आयी?
उत्तर-
मक्का, टमाटर, आलू मिर्च
अनानास और पपीता जैसी फसलें,
फल एवं सब्जियां विदेशों से भारत आयी।
प्रश्न 6.
आइन-ए-अकबरी कितने भागों में विभक्त है?
उत्तर-
आइन-ए-अकबरी 5 भागों
में विभक्त है। इसके पहले तीन भागों में प्रशासन का विस्तृत विवरण है। चौथे व
पांचवें भाग मे भारत के धार्मिक एवं साहित्यिक परंपराओं का उल्लेख है।
प्रश्न 7.
मुगल काल में किसानों के लिए किन-किन शब्दों का प्रयोग होता
था?
उत्तर-
मुगल काल में किसानों के लिए निम्न शब्दों का प्रयोग होता था-
A. रैयत
B. रियाया या मुजरियान C. खुदकास्त D.
पाहिकास्त
प्रश्न 8.
पायक कौन थे?
उत्तर-
पायक वे लोग थे जो जमीन के बदले सैन्य सेवाएं देते थे। असम के अहोम राजाओं के अपने
पायक होते थे।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण दीजिए?
उत्तर-
मध्यकालीन भारतीय कृषि समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। खेतिहर परिवारों
से संबंधित महिलाएं कृषि उत्पादन में सक्रिय सहयोग प्रदान करती थी तथा पुरुषों के
कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करती थी। पुरुष खेतों की जुताई और हल चलाने का
काम करते थे जबकि महिलाएं मुख्य रूप से बुआई,
निराई तथा कटाई का काम करती थी । पकी हुई फसल का दाना
निकालने में भी सहयोग प्रदान करती थी।
वास्तव
में मध्यकाल विशेष रुप से 16वीं और
17वीं
शताब्दी में ग्रामीण इकाइयां एवं व्यक्तिगत खेती का विकास होने के कारण घर परिवार
के संसाधन तथा श्रम उत्पादन का प्रमुख आधार बन गया। अतः महिलाएं और पुरुषों के
कार्य क्षेत्र में एक विभाजक रेखा खींचना कठिन हो गया था।
उत्पादन
के कुछ पहलू जैसे सूत कातना,
बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना और गूथना, कपड़ों पर
कढ़ाई करना आदि मुख्य रूप से महिलाओं के श्रम पर ही आधारित थी। किसान और दस्तकार
महिलाएं न केवल खेती के काम में सहयोग प्रदान करती थी अपितु आवश्यक होने पर
नियोक्ताओं के घरों में भी काम करती थी और अपने उत्पादन के बेचने के लिए बाजारों
में भी जाती थी। उल्लेखनीय है कि श्रम प्रधान समाज में महिलाओं को श्रम का एक
महत्वपूर्ण संसाधन समझा जाता था क्योंकि उनमें बच्चे उत्पन्न करने की क्षमता थी।
किंतु
हमें यह याद रखना चाहिए कि महिलाओं की जैव वैज्ञानिक क्रियाओं से संबंधित
पूर्वाग्रह अब भी विद्यमान थे। उदाहरण के लिए पश्चिमी भारत में राजस्वला महिलाएं
हल अथवा कुम्हार के चाक को नही पकड़ सकती थी। इसी प्रकार बंगाल में महिलाओं को
मासिक धर्म की अवधि में पान बागानो में जाने की मनाही थी।
प्रश्न 2.
मुगल भारत में जमीदारों की भूमिका का वर्णन कीजिए?
उत्तर-
मुगल भारत में जमीदार भूमि के मालिक होते थे। इन्हें ग्रामीण समाज में ऊंची हैसियत
की वजह से कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधा मिली हुई थी। समाज में जमीदारों की
उच्च स्थिति के दो कारण थे पहला उनकी जाति और दूसरा उनके द्वारा राज्य को दी जाने
वाली विशेष सेवाएं।
जमीदारों
की समृद्धि की वजह थी उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन। इससे मिल्कियत यानी संपत्ति
कहते थे। मिल्कियत जमीन पर जमींदार की निजी इस्तेमाल के लिए खेती होती थी।
जमीदार
अपनी इच्छा अनुसार इन जमीनों को बेच सकते थे,
किसी और के नाम कर सकते थे और उन्हें गिरवी रख सकते थे। जमीदारों को राज्य की
ओर से कर जमा करने का भी अधिकार प्राप्त था। इसके बदले उन्हे वित्तीय मुआवजा मिलता
था।
सैनिक
संसाधन जमींदारों की शक्ति का एक अन्य स्रोत था। अधिकतर जमीदारों के पास अपने किले
अपनी सैनिक टुकड़ी भी होती थी एवं उनके पास घुड़सवार तोपखाने और पैदल सिपाही भी
रहते थे।
यदि हम
मुगलकालीन गांव में सामाजिक संबंधों को एक पिरामिड के रूप में देखें तो जमीदार
इसके संकरे शीर्ष का भाग थे।
जमीदारों
में कृषि लायक जमीन को बसाने में अग्रणी भूमिका निभाई और किसानों को खेती के साजो-
समान एवं उधार देकर उन्हें वहां बसने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 3.
16-17 वी सदी में कृषि उत्पादन को किस हद तक महज
गुजारे के लिए खेती कर सकते हैं? अपने उत्तर के कारण स्पष्ट करें।
उत्तर- 16 -17 वी सदी में दैनिक आहार की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था। किसान हर साल भिन्न-भिन्न मौसम में ऐसे काम करते थे जिससे फसल की पैदावार होती थी जैसे जमीन की जुताई, बीज बोना फसल पकने पर उसकी कटाई करना। इसके अतिरिक्त किसान उन वस्तुओं के उत्पादन में विशेष ध्यान देते थे जो कृषि आधारित थी जैसे कि तेल और शक्कर आदि। कई ऐसे क्षेत्र भी थे जैसे सूखी जमीन के विशाल हिस्सों से पहाड़ियों वाले इलाके जहां उस तरह की खेती नहीं हो सकती थी जैसे कि ज्यादा उपजाऊ जमीन पर मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी- एक खरीफ फसल तथा दूसरी रबी फसल। जिन स्थानों पर बारिश या सिंचाई के अन्य साधन उपलब्ध थे वहां तो वर्ष भर में तीन फसलें भी उगाई जाती थी। इस वजह से पैदावार में अत्यधिक विविधता पाई जाती थी। आईन-ए-अकबरी के अनुसार दोनों मौसम को मिलाकर मुगल प्रांत आगरा में 39 किस्म की फसलें उगाई जाती थी जबकि दिल्ली प्रांत में 43 फसलों की पैदावार होती थी।
बंगाल
में केवल चावल की 50 किस्में
पैदा होती थी। यह बात सही है कि दैनिक आहार की खेती पर ज्यादा जोर दिया जाता था
परंतु इसका मतलब यह नहीं था कि मध्यकालीन भारत में खेती केवल गुजारा करने के लिए
की जाती थी। विभिन्न स्रोतों से हमें जिन्स ए कामिल जेसी सर्वोत्तम फसलें मिलती
हैं। कपास और गन्ना जिन्स ए कामिल फसलों का उदाहरण थी। मुगल राज्य में भी किसानों
को ऐसी फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। तिलहन दलहन तथा चीनी
नगदी फसलों के अंतर्गत आती थी। इस बात से यह अनुमान लगाया जाता है कि एक औसत किसान
की जमीन पर पेट भरने के लिए होने वाले उत्पादन और व्यापार के लिए किए जाने और
उत्पादन एक दूसरे से संबंधित थे।
प्रश्न 4.
16वीं और 17वीं सदी में जंगल वासियों की जिंदगी किस तरह
बदल गई?
उत्तर-
16वीं और
17वीं
सदी में जंगल वासियों की जिंदगी काफी हद तक बदल गई। जंगलों से प्राप्त उत्पाद जैसे
शहद लाह तथा मधुमोम की बहुत अधिक मांग थी। लाख जैसे कुछ वस्तुएं तो 17 वीं सदी में
भारत से समुद्री पार होने वाले निर्यात के मुख्य वस्तुएं थी। इस पार के तहत
वस्तुओं का आदान प्रदान भी होता था कुछ कबीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने
वाले जमीनी व्यापार में लगे हुए थे जैसे कि पंजाब का लोहनी कबीला। इस कबीले के लोग
गांव और शहर के बीच होने वाले व्यापार में लगे हुए थे। सामाजिक कारणों का असर एवं
व्यवसायिक खेती का असर जंगल वासियों के जिंदगी पर भी पड़ता था। कबीला व्यवस्था से
राज तांत्रिक प्रणाली की तरफ संक्रमण बहुत पहले ही प्रारंभ हो चुका था। परंतु ऐसा
लगता है कि 16 वीं
सदी में आकर ही यह प्रक्रिया पूरी तरह विकसित हुई । इन बातों की जानकारी हमें
उत्तर पूर्वी क्षेत्र में कबीला राज्य के बारे में आईने अकबरी की बातों से मिलती
है। जंगल में कई कबीले रहते थे। इनका एक सरदार होता था।
कुछ
राजा बन गए तथा उन्होंने सेना तैयार की। सिंध इलाके के कबीला सेना में 6000 घुड़सवार और 7000 पैदल सिपाही
होते थे। 16 वी
शताब्दी में भी राजतंत्र प्रणाली विकसित हुई। जैसे की अहोम राजा।
प्रश्न 5.
मुगल काल में मुद्रा व्यापार की महत्त्व की विवेचना कीजिए?
उत्तर-
मुगल काल में भारत के समुद्र व्यापार में अत्यधिक वृद्धि हुई और कई नए कार्यों की
शुरुआत हुई। लगातार इस बढ़ते व्यापार के कारण भारत से दिखने वाले वस्तुओं के
भुगतान के रूप में एशिया में भारी मात्रा में चांदी आई। इस चांदी का एक बड़ा
हिस्सा भारत में पहुंच गया। यह भारत के लिए एक अच्छी बात थी क्योंकि यहां चांदी के
प्राकृतिक भंडार नहीं थे 16वीं 18वीं शताब्दी के
बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चांदी के रुपयों की उपलब्धि में स्थितिरता बनी
रही। इस प्रकार उद्योग जगत में इस काल में विशेष वृद्धि हुई। इटली का एक यात्री
जोवानी कारेरि जो लगभग 1690
ईस्वी में भारत से गुजरा था ने इस बात का सजीव चित्रण किया है कि किस प्रकार
चांदी संसार से भारत में पहुंची थी। गांव में भी लेनदेन की व्यापार में वृद्धि हुई
। गांव के शहरी रोजगार से जुड़े कारोबार में वृद्धि हुई और इस प्रकार गांव मुद्रा
बाजार का अंग बन गए। लेनदेन के कारोबार के कारण उनका दैनिक भुगतान सरल हो गया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आपके मुताबिक कृषि समाज में सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों को
प्रभावित करने में जाति किस हद तक एक कारक थी?
उत्तर-
कठोर जाति व्यवस्था भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी।
समाज अनेक जातियां तथा उप जातियों में विभक्त था जिनकी संख्या 2,000 से अधिक थी।
उच्च जाति के लोग निम्न जातियों से घृणा करते थे तथा उनसे किसी प्रकार का संबंध
नहीं रखते थे निम्न जातियों के लोग मुख्य रूप से शूद्र जिनकी संख्या हिंदू
जनसंख्या का 20% थी
उच्च जातीय हिंदुओं द्वारा अछूत समझे जाते थे।
व्यवसाय
जाति के आधार पर निर्धारित किए जाते थे। स्वाभाविक रूप से कृषि समाज में सामाजिक
एवं आर्थिक संबंधों के निर्धारण में जाति की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जाति एवं
जातिगत भेदभाव ने खेतिहर किसानों को अनेक भागों में विभक्त कर दिया था। हालांकि
कृषि योग्य भूमि का अभाव नहीं था तथापि कुछ जातियों के लोगों से निम्न समझे जाने
के कारण कार्य ही करवाए जाते थे।
खेतों
की जुताई का कार्य अधिकांश ऐसे लोगों से करवाया जाता था जो उच्च जातीय हिंदुओं
द्वारा निम्न समझे जाने वाले कार्यों को करते थे। उच्च जातीय हिंदू शुद्र से घृणा
करते थे और उनके साथ किसी प्रकार का सामाजिक मेलजोल नहीं रखते थे। हिंदुओं के
घनिष्ठ संपर्क में रहते रहते मुसलमानों में भी जातीय भेदभाव का प्रसार होने लगा
था। निम्न जाति है हिंदुओं के समान निम्न जाति मुसलमानों को भी गरीबी और तंगहाली
का जीवन जीना पड़ता था ।
निम्न
जातियों से संबंधित लोगों चाहे वह हिंदू हो अथवा मुसलमान न तो समाज में सम्मानित
स्थान प्राप्त था और ना ही उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि
मध्यकालीन भारतीय समाज में जाति गरीबी सामाजिक स्तर के मध्य प्रत्यक्ष संबंध था।
उदाहरण के लिए यद्यपि ग्राम पंचायत में भिन्न-भिन्न जातियों और संप्रदायों का
प्रतिनिधित्व साथ है किंतु इसमें छोटे-मोटे एवं नीच काम करने वाले खेतिहर मजदूरों
को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता था। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि कृषि
समा में सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों का निर्धारण मुख्य रूप से जाति द्वारा ही किया
जाता था।
उल्लेखनीय
है कि मध्यमवर्ग इस प्रकार की स्थिति नहीं थी। 17 वी सदी में मारवाड़ की किताब के अनुसार राजपूत भी किसान थे
और जाट भी किंतु जाति व्यवस्था में राजपूतों का स्थान जाटों से ऊंचा था। पशुपालन
और बागवानी में बढ़ते मुनाफे के कारण अहीर,
गुज्जर और माली जैसे जातियां सामाजिक स्थिति में ऊपर उठी। पूर्वी इलाकों में
पशुपालन और मछुआरे जातियां किसानों के सामान सामाजिक स्थिति प्राप्त करने लगी थी।
इस
प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि मध्यकालीन कृषि समाज में सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों
के निर्धारण में जाति का महत्वपूर्ण भाग था। किंतु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि
मध्यम क्रम में आने वाले जातियों का सामाजिक स्तर उनकी आर्थिक स्थिति में उन्नति
होने के साथ-साथ उन्नत होने लगा था।
प्रश्न 2.
पंचायत और गांव का मुखिया किस तरह से ग्रामीण समाज का नियमन
करते थे?
विवेचना कीजिए।
उत्तर-
16 वीं और
17 वीं
शताब्दी के काल में ग्रामीण समाज में पंचायत और मुखिया का पद बहुत महत्वपूर्ण था।
ये दोनों पद ग्रामीण समाज की रीढ़ की हड्डी थी ।
पंचायतों
का गठन- मुगलकालीन गाँव की पंचायत गांव बुजुर्गों की सभा होती थी । प्रायः वे गाँव
के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे। जिनके पास अपनी संपत्ति होती थी जिन गांव में
विभिन्न जातियों के लोग रहते थे । वहां पंचायतों में विविधता पाई जाती थी । पंचायत
का निर्णय गाँव में सब को मानना पड़ता था।
पंचायत
का मुखिया पंचायत के मुखिया को मुकद्दम पा मंडल कहा जाता था। कुछ स्रोतों से
प्रतीत होता है कि मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुगों की आम सहमति से होता था। चुनाव
के बाद उन्हें उसकी मंजूरी जमींदार से लेनी पड़ती थी । मुखिया तब तक अपने पद पर
बना रहता था। जब तक गांव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था । गांव की आय-व्यय का
हिसाब किताब अपनी निगरानी में तैयार करवाना मुखिया का मुख्य काम था। इस काम में
पंचायत का पटवारी उसकी सहायता करता था।
पंचायत
का आम खजाना - पंचायत का खर्चा गांव की आम खजाने से चलता था इसमें हर व्यक्ति अपना
योगदान देता था। इस कोष का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए भी
होता था । इस कोष से ऐसे सामाजिक कार्यों के लिए भी खर्च होता था जो किसान स्वयं
नहीं कर सकते थे। जैसे कि मिट्टी के छोटे-मोटे बांध बनाना या नहर खोदना ।
ग्रामीण
समाज का नियमन पंचायत का एक बड़ा काम यह देखना था कि गांव में रहने वाले सभी
समुदाय के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अंदर रहे। पूर्वी भारत में सभी शादियां मंडल
की उपस्थिति में होती थी । जाति की अवहेलना को रोकने के लिए लोगों के आचरण पर नजर
रखना गांव के मुखिया की एक महत्वपूर्ण जिम्मेवारी थी।
पंचायतों
को जुर्माना लगाने तथा किसी दोषी को समुदाय से निष्कासित करने जैसे अधिकार प्राप्त
थे। समुदाय से बाहर निकलना एक बड़ा कदम था जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता
था । इसके अंतर्गत दंडित व्यक्ति को दिए गए समय के लिए गांव छोड़ना पड़ता था। इस
दौरान वह अपनी जाति तथा व्यवसाय से हाथ धो बैठता था । ऐसे नीतियों का उद्देश्य
जातिगत रिवाजों की अवहेलना को रोकना था।
प्रश्न 3.
कृषि इतिहास लिखने के लिए आइन एं अकबरी को स्रोत के रूप में
इस्तेमाल करने से कौन सी समस्याएं हैं? इतिहासकार इन समस्याओं से कैसे निपटते हैं?
उत्तर-
अनपढ़ किसान लेखन कार्य में असमर्थ था। ऐसे में कृषि इतिहास को जानने के लिए 16 वीं 17 वीं शताब्दी के
मुगल दरबार के लेखक और कवियों की रचनाओं का सहारा लेना पड़ता था इनमें सर्वाधिक
महत्वपूर्ण अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल का ग्रंथ आईनए अकबरी है। इसमें
राज्य के किसानो जमींदारो और नुमाइंदों के रिश्तों को स्पष्ट रूप से दिखाया गया
है।
इसका
मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य को मेलजोल रखने वाले सत्ताधारी वर्ग के रूप में
पेश करना था। अबुल
फजल के अनुसार मुगल राज के विरुद्ध कोई विद्रोह या किसी प्रकार के स्वायत
सत्ता के दावे का असफल होना निश्चित था। किसानो के बड़े वर्ग के लिए यह एक चेतावनी
थी। इस प्रकार आईन-ए-अकबरी मे किसानों के बारे में जो जानकारी मिलती है वह उच्च
सत्ता वर्ग की जानकारी है।
सामान्य
किसानों के बारे में विशेष विवरण नहीं है। इस अभाव की पूर्ति उन दस्तावेजों से
होती है, जो
मुगलों की राजधानी के बाहर की स्थानों जैसे गुजरात महाराष्ट्र और राजस्थान से मिले
हैं। इन दस्तावेजों से सरकार की आमदनी का ज्ञान होता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के
दस्तावेज भी कृषि संबंधित जानकारी के साथ दी। ये दस्तावेज किसान जमींदार और राज्य
के आपसी संबंधों की जानकारी देते हैं।