झारखण्ड अधिविद्य परिषद्
ANNUAL INTERMEDIATE EXAMINATION – 2025
SOCIOLOGY (22.02.2025)
कुल
समय: 3 घंटे 15 मिनट
पूर्णांक
: 80
सामान्य
निर्देश :
1.
इस प्रश्न-पुस्तिका में दो भाग - भाग-A तथा भाग-B हैं।
2.
भाग-A में 30 अंक के बहुविकल्पीय प्रश्न तथा भाग-B में 50 अंक के विषयनिष्ठ प्रश्न
हैं।
3.
परीक्षार्थी को अलग से उपलब्ध कराई गई उत्तर-पुस्तिका में उत्तर देना है।
4.
भाग-A इसमें 30 बहुविकल्पीय प्रश्न हैं जिनके 4 विकल्प (A, B, C तथा D) हैं। परीक्षार्थी
को उत्तर-पुस्तिका में सही विकल्प लिखना है। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। प्रत्येक प्रश्न
1 अंक का है। गलत उत्तर के लिए कोई अंक काटा नहीं जाएगा।
5.
भाग-B इस भाग में तीन खण्ड खण्ड-A, B तथा C हैं। इस भाग में अति लघु उत्तरीय, लघु उत्तरीय
तथा दीर्घ उत्तरीय प्रकार के विषयनिष्ठ प्रश्न हैं। कुल प्रश्नों की संख्या 22 है।
खण्ड-A
प्रश्न संख्या 31-38 अति लघु उत्तरीय प्रकार के हैं। किन्हीं 6 प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न 2 अंक का है।
खण्ड-B
प्रश्न संख्या 39-46 लघु उत्तरीय प्रकार के हैं। किन्हीं 6 प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दें।
खण्ड-C
- प्रश्न संख्या 47-52 दीर्घ उत्तरीय प्रकार के हैं। किन्हीं 4 प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न 5 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250 शब्दों में दें।
6.
परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।
7.
परीक्षार्थी परीक्षा भवन छोड़ने के पहले अपनी उत्तर-पुस्तिका वीक्षक को अनिवार्य रूप
से लौटा दें।
8.
परीक्षा समाप्त होने के उपरांत परीक्षार्थी प्रश्न-पुस्तिका अपने साथ लेकर जा सकते
हैं।
भाग-A (बहुविकल्पीय प्रश्न)
प्रश्न संख्या 1 से 30 तक बहुविकल्पीय प्रकार हैं। प्रत्येक
प्रश्न के चार विकल्प हैं। सही विकल्प चुनकर उत्तर पुस्तिका में लिखें। प्रत्येक प्रश्न
1 अंक का है। 1 x 30-30
1. 'आदिवासी महासभा' एक संगठन था
(A)
उराँव का
(B)
संथाल का
(C) मुण्डा का
(D)
इनमें से कोई नहीं
2. 'परीक्षा विवाह' किस जनजाति में होता है ?
(A) मुण्डा
(B)
नागा
(C) संथाल
(D) भील
3. निम्न में से कौन मौलिक अधिकार नहीं है ?
(A) समानता का अधिकार
(B) स्वतन्त्रता का अधिकार
(C) शिक्षा का अधिकार
(D) हिंसा का अधिकार
4. समाजशास्त्र की स्थापना किस वर्ष हुई ?
(A) 1820
(B) 1797
(C) 1838
(D) 1828
5. 'जनसांख्यिकी' शब्द किस भाषा से लिया गया है
?
(A) उर्दू
(B) ग्रीक
(C) संस्कृत
(D) फ्रेंच
6. मुस्लिम विवाह है एक
(A) संस्कार
(B) मित्रता
(C) समझौता
(D) इनमें से कोई नहीं
7. "राज्य एक समिति है।" किसने कहा
?
(A) गार्नर
(B) मेकाइवर
(C) ऑगबर्न
(D) विल्सन
8. जाति व्यवस्था है
(A) आर्थिक संस्था
(B) धार्मिक संस्था.
(C) सामाजिक संस्था
(D) राजनीतिक संस्था
9. वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त
किसने दिया ?
(A) कार्ल मार्क्स
(B) सोरोकिन
(C) कूले
(D) मेकाइवर
10. ताना भगत आन्दोलन संबंधित
है
(A) पिछड़ी जाति से
(B) दलित से
(C) जनजाति से
(D) इनमें से सभी
11. भारत में राष्ट्रीय वन
नीति कब घोषित की गयी ?
(A) 1948
(B) 1950
(C) 1952
(D) 1954
12. उपनिवेशवाद किस सोच का
प्रतिफल है ?
(A) मानवतावाद
(B) साम्राज्यवाद
(C) अन्तरराष्ट्रीयतावाद
(D) समाजवाद
13. पूँजीपति वर्ग को 'शोषक
वर्ग' किसने कहा है?
(A) मार्क्स
(B) कॉम्टे
(C) सोरोकिन
(D) दुर्खीम
14. भारत के संविधान कब लागू
किया गया ?
(A) 25 जनवरी, 1948
(B) 20 दिसंबर, 1949
(C) 26 जनवरी, 1950
(D) 26 जनवरी, 1949
15. ब्रह्म समाज की स्थापना
कब हुई ?
(A) 1828
(B) 1830
(C) 1829
(D) 1839
16. निम्न में से कौन वर्ग
की विशेषता नहीं है ?
(A) जन्म
(B) वर्ग चेतना
(C) गतिशीलता
(D) इनमें से सभी
17. परियोजना कार्य के जनक
कौन हैं ?
(A) डब्ल्यु०एच० किलपैट्रिक
(B) डी० मार्शल
(C) ए०ओ० ह्यूम
(D) इनमें से कोई नहीं
18. निम्न में से कौन जाति
की विशेषता नहीं है ?
(A) संस्तरण
(B) अन्तः विवाह
(C) शुद्धता एवं प्रदूषण
(D) खुलापन
19. नातेदारी की कितनी श्रेणियाँ होती हैं ?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
20. निम्न में से कौन एक
कृषक समाज है ?'
(A) गाँव
(B) शहर
(C) मोहल्ला
(D) इनमें से कोई नहीं
21. निम्न में से कौन जनजाति
नहीं है ?
(A) भील
(B) खासी
(C) संथाल
(D) चौपाल
22. बारहवीं पंचवर्षीय योजना
में विकलांग जनों से सम्बन्धित किस मुद्दे पर ध्यान दिया गया ?
(A) मान्यता
(B) सशक्तिकरण
(C) सुरक्षा
(D) इनमें से सभी
23. 'क्रियेशन ऑफ पैट्रियारकी' नामक पुस्तक किसने
लिखी है ?
(A) एम०एन० श्रीनिवास
(B) बाई० सिंह
(C) बोगार्डस
(D) जी० लर्नर
24. भारत की राष्ट्रीय भाषा
कौन सी है ?
(A) तेलुगू
(B) मराठी
(C) अंग्रेजी
(D) हिन्दी
25. झारखण्ड राज्य की स्थापना
किस वर्ष हुई ?
(A) 1996
(B) 1999
(C) 2000
(D) 2001
26. परियोजना कार्य सामाजिक
अनुसंधान की एक नवीन एवं शाखा है।
(A) प्राचीन
(B) सैद्धान्तिक
(C) व्यावहारिक
(D) अति प्राचीन
27. दिल्ली में 'सिखों के
विरुद्ध दंगा' किस वर्ष हुआ था ?
(A) 1990
(B) 1992
(C) 1994
(D) 1984
28. 'जाति' शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई
?
(A) ग्रीक
(B) स्पेनिश
(C) लैटिन
(D) संस्कृत
29. भारतीय समाज में सामाजिक
स्तरीकरण का बुनियादी आधार क्या है ?
(A) धन एवं सम्पत्ति
(B) जाति
(C) परिवार
(D) धर्म
30. संयुक्त परिवार की कौन
सी विशेषता है ?
(A) बड़ा आकार
(B) सामान्य सम्पत्ति
(C) सामान्य निवास
(D) इनमें से सभी
भाग-B (विषयनिष्ठ प्रश्न)
खण्ड - A (अति लघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं छः प्रश्नों के उत्तर दें।
2x6=12
31. दबाव समूह क्या है ?
उत्तर - जब कोई हित समूह अपने उद्देश्यों अर्थात अपने हितों की पूर्ति
के लिए सरकार पर दबाव बनाने लगता है तब उसे दबाव समूह कहते हैं। ऐसे समूह अपने सदस्यों
के हितों के अनुरूप कानून बनाने या संशोधन करने के लिए जन प्रतिनिधियों को प्रभावित
करने लगते हैं तो इन्हें दबाव समूह कहते हैं।
32. धर्मनिरपेक्ष राज्य क्या है ?
उत्तर - धर्म निरपेक्ष राज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से है जो किसी विशेष
धर्म को राजधर्म के रूप में मान्यता नहीं प्रदान करता है वरन सभी धर्मों के साथ समान
व्यवहार करता है और उन्हें समान संरक्षण प्रदान करता है।
33. जनसांख्यिकी की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर - एमिली ग्रुंडी के अनुसार "जनसांख्यिकी जनसंख्या का वैज्ञानिक
अध्ययन है। यह 'लोगों की संख्या' और जनसंख्या गतिशीलता को समझने से संबंधित है।"
34. 'जनजाति' शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर - साधारणतया
जनजाति का अर्थ एक ऐसे मानव समूह से समझ लिया जाता है जिसकी संस्कृति और
रीति-रिवाज आदिम विशेषताओं से युक्त हो।
35. पितृसत्ता पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर - लर्नर के अनुसार, पितृसत्ता पुरुषों की सत्ता का संस्थाकरण है।
यह महिलाओं पर पुरुषों के अधिकारों का ऐसा विस्तार है जिसके द्वारा पुरुष को स्त्री
से अधिक श्रेष्ठ मानकर स्त्रियों के जीवन के सभी पक्षों पर व्यावहारिक रूप से पुरुष
के अधिकारों को मान्यता दी जाने लगती है।
36. ग्राम पंचायत के दो उद्देश्य लिखिए ।
उत्तर - (1) ग्राम स्तर पर विकास सम्बन्धी कार्य सम्पन्न करना।
(2) ग्रामीणों के सामान्य विवादों का शीघ्र व कम व्यय पर निपटारा
करना।
37. जनसंचार के साधन के रूप में रेडियो की उपयोगिता बताइए ।
उत्तर-रेडियो के द्वारा हम देश-विदेश के समाचार, फिल्मी गीत,
शास्त्रीय संगीत, खेती, विज्ञान, खेल, व्यापार आदि का नवीनतम् ज्ञान प्राप्त करते हैं।
इसके द्वारा विभिन्न कुरीतियों के दुष्परिणाम से परिचित होकर उन्हें त्यागने हेतु तत्पर
होते हैं।
38. उदारीकरण का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर - उदारीकरण वह दशा है जिसमें कोई राष्ट्र या देश अपनी आर्थिक नीतियों
का निर्माण इस प्रकार करता है कि उनके द्वारा अर्थव्यवस्था को उदार और व्यापक बनाया
जा सके।
खण्ड - B (लघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं छः प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दें। 3x6=18
39. जाति एवं वर्ग में अन्तर
स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- जाति और वर्ग में अन्तर
निम्नलिखित हैं
(i) जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित है, वर्ग में नहीं जाति प्रणली एक बंद वर्ग है जहाँ
वर्ग-प्रणाली एक मुक्त वर्ग। जाति में जन्म से सामाजिक स्तर निर्धारित होता है।
परन्तु वर्ग-प्रणाली में एक व्यक्ति अपनी योग्यता, कार्यक्षमता, संपत्ति आदि के
आधार पर किसी भी समय ऊपर-नीचे हो सकता है।
(ii) जाति व्यवस्था में विवाह, खान-पान,
मेल-मिलाप पर अधिक प्रतिबंध हैं, वर्ग में नहीं जाति के सदस्यों का वैवाहिक संबंध अपनी
जाति में ही होता है। यदि कोई व्यक्ति इसका उल्लंघन करता है तो वह जाति से बहिष्कृत
समझा जाता है। इसी प्रकार खान-पान तथा मेल-मिलाप में भी कई प्रतिबंध होते हैं। परन्तु,
वर्ग में ये प्रतिबंध उतने कठोर नहीं हैं जितने जाति-प्रथा के अंतर्गत।
(iii) जाति व्यवस्था में पेशा परम्परागत
है, वर्ग में नहीं जातिप्रथा में लोगों के पेशे निर्धारित होते हैं। आज भी गाँवों
में विशेषतः नीची जाति के लोग अपने परम्परागत पेशे ही करते हैं। लेकिन, किसी वर्ग में
एक ही पेशे के लोग हों, यह आवश्यक नहीं है।
(iv) जाति बहुत स्थिर है, वर्ग नहीं जन्म पर आधारित रहने के फलस्वरूप जातिप्रथा
बहुत अंशों में अधिक स्थिर होती है। एक बार जो जिस जाति में जन्म लेता है, जीवनभर,
उसका सदस्य बना रहता है। इसके विपरीत, वर्ग व्यवस्था के सभी आधार अस्थिर होते हैं जैसे-
धन, पूँजी, धर्म, शिक्षा, पेशा आदि। (v) जाति बंद-व्यवस्था है, वर्ग नहीं- हम अपनी
इच्छानुसार जाति बदल नहीं सकते। जाति के नियमों को तोड़ने पर उसे जाति से निकाल दिया
जाता है। एक जाति से दूसरी जाति में जाना संभव नहीं होता। परन्तु, वर्ग व्यवस्था के
अंतर्गत एक व्यक्ति अपनी शिक्षा, संपत्ति, अपने पेशे आदि में परिवर्तन होने के फलस्वरूप
उच्चवर्ग से निम्नवर्ग में आ-जा सकता है। इस तरह, जाति एक बंद-व्यवस्था है और वर्ग
एक खुली व्यवस्था।
(v) जाति एक सांस्कृतिक संस्था है,
वर्ग नहीं जाति-संगठन का आधार धार्मिक तथा सांस्कृतिक विश्वास है। इसी कारण जाति के सदस्यों
पर परम्पराओं, रूड़ियों और प्रथाओं का प्रभाव अधिक होता है। परन्तु, वर्ग के सदस्यों
पर वैज्ञानिक एवं औद्योगिक आविष्कारों का प्रभाव अधिक पड़ता है। वर्ग में पूर्णतः व्यक्ति
के वर्तमान जीवन को महत्व दिया जाता है।
40. 'बाजार एक सामाजिक संस्था है।' स्पष्ट कीजिए
।
उत्तर - बाजार के विभिन्न पक्षों को इस सम्पूर्ण विवेचना से स्पष्ट होता
है कि बाजार सभी तरह के सरल, जटिल और आधुनिक समाज की विशेषता रहा है। अर्थशास्त्री
यहाँ यह मानते हैं कि बाजार और अर्थव्यवस्था से व्यक्ति का सामाजिक जीवन प्रभावित हाता
है, वहीं दुर्खीम, मैक्स वेबर और अनेक दूसरे समाजशास्त्रियों ने यह स्पष्ट किया है
कि विभिन्न सामाजिक मूल्य, धार्मिक विश्वास और पारिवारिक दशाएँ आर्थिक प्रक्रियाओं
को प्रभावित करती हैं। यह रूप समाजशास्त्री बाजार को एक सामाजिक संस्था के रूप में
स्पष्ट करते हैं। इस संबंध में निम्नांकित बिंदुओं के आधार पर एक सामाजिक संस्था के
रूप में बाजार के औचित्य को समझा जा सकता है-
(i) मनुष्य का जीवन जब बहुत सरल और
आदिम था तब भी जीवनयापन के लिए आर्थिक क्रियाएँ करते थे। उस समय भी वस्तुओं की अदला-बदली
के रूप में विनिमय का कार्य होता था। हाटों और मेलों के रूप में बाजार का समय और स्थान
सुनिश्चित थे। उस समय सभी आर्थिक क्रियाओं जनजातियों •के सामाजिक संगठन और मूल्यों
के आधार पर निर्धारित होती थी।
(ii) बाजार व्यवस्था आर्थिक लाभ और
प्रतिस्पर्द्धा के नियमों पर आधारित होती है। किसी भी समाज में आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा
और लाभ समाज के नैतिक नियमों से प्रभावित होते हैं। नैतिक नियमों को छोड़कर की जाने
वाली प्रतिस्पर्द्धा एक तरह का कानून विरोधी कार्य हैं।
(iii) आज सभी बाजार श्रम-विभाजन की
प्रक्रिया पर आधारित है। जैसे-जैसे छोटे और सरल बाजार बड़े और जटिल बाजारों में बदलते
जा रहे हैं, श्रम-विभाजन की प्रक्रिया का भी विस्तार होता जा रहा है।
(iv) वर्तमान युग में बाजार का रूप
बैंकिंग प्रणाली, शेयर बाजार तथा बड़ी-बड़ी कंपनियों की आर्थिक क्रियाओं के रूप में
देखने को मिलता है। इन सभी क्रियाओं पर आयकर, बिक्री कर, सेवा कर और बहुत से दूसरे
नियमों के द्वारा नियंत्रण रखा जाता है।
41. नातेदारी के प्रकार पर
प्रकाश डालिए ।
उत्तर - नातेदारी को मुख्यतया दो भागों में बाँटा जाता है-
(1) रक्त सम्बन्धी नातेदारी एवं
(2) विवाह सम्बन्धी नातेदारी।
इसके अतिरिक्त सम्बन्धों की निकटता
व दूरी के आधार पर नातेदारी को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभक्त किया गया है-
(1) प्राथमिक नातेदारी,
(2) द्वितीयक नातेदारी तथा
(3) तृतीयक नातेदारी।
42. राजनीतिक दल से आप क्या
समझते हैं ?
उत्तर - राजनीतिक दल एक ऐसा संगठन होता है जिसके सदस्यों में एक जैसे
विचार होते हैं, एक जैसी नीतियाँ होती है और जो देश की विभिन्न समस्याओं पर एकमत होते
हैं। एक राजनीतिक दल में निम्नांकित गुण होते हैं-
(क) एक विशेष संगठन- हर एक राजनीतिक दल का एक संगठित ढांचा
होता है। नीचे से लेकर कूपर तक के पदाधिकारियों को चुनने की विशेष व्यवस्था होती है।
हर एक सदस्य को यह पता होता है कि उसे क्या करता है। ऐसे व्यवस्थित संगठन के बिना कोई
राजनीतिक दल लम्बे समय तक टिक नहीं सकता।
(ख) विचारधारा एकता- एक सुव्यवस्थित संगठन के साथ किसी
भी राजनीतिक दले में विचारधारा की एकता का होना आवश्यक है| हर एक दल के लक्ष्य होते
है जो वे लोगो के सामने रखते है उनको विश्वास प्राप्त करते हैं और चुनाव जीतने के प्रयत्न
करते हैं। पार्टी का हर सदस्य इस उद्देश्यों और नीतियों को प्राप्त करने में प्रयलशील
रहते हैं।
(ग) संवैधानिक तरीकों में अडिग विश्वास- कोई भी राजनीतिक अपने देश के संविधान
में अडिग विश्वास होता है। वे स्वच्छ और स्वतंत्र चुनाव पद्धति में विश्वास रखते हैं
और चुनावों के परिणामों से अपनी सहमति प्रकट करते हैं। किसी भी हालत में वे गुण्डाबाजी
और चुनाव केन्द्रों पर कब्जा करने की नहीं सोचते।
(घ) पश्चात् अपनी नीतियों पर अमल करना- हर राजनीतिक दल, यदि वह अपनी सरकार
बना लेता है, उन नीतियों को पूरा करने का प्रत्यन करता है जो उसने अपने-अपने घोषणा-पत्रों
में दे रखी होती है।
43. 'परिवार' शब्द का पर्यालोचन कीजिए ।
उत्तर - परिवार एक सार्वभौमिक प्राथमिक समूह है। परिवार की समाज में
केन्द्रीय स्थिति है। परिवार के सभी सदस्य परस्पर भावनात्मक आधार पर जुड़े होते हैं।
पारिवारिक वातावरण में रहकर व्यक्ति के व्यवहार, उसकी मनोवृत्तियों व आदतों का निर्माण
होता है। परिवार के सदस्यों में उत्तरदायित्व पूर्ति की भावना होती है जो परिवार के
स्थायित्व व निरन्तरता के लिए आवश्यक है।
44. राज्य के नीति निदेशक
तत्वों का वर्णन करें ।
उत्तर - भारतीय संविधान में कुछ ऐसे तत्वों को स्पष्ट किया गया है जिनके
अनुसार कार्य करना सरकार का नैतिक कर्त्तव्य माना जाता है। इन्हें ही राज्य के नीति
निदेशक तत्व या सिद्धान्त कहा जाता है। भारतीय संविधान के चौथे भाग के अनुच्छेद 36
से 51 तक कहा गया है कि-
(1) राज्य प्रत्येक स्त्री-पुरुष को
समान रूप से जीविका के साधन प्रदान करने का प्रयास करेगा।
(2) राज्य प्रत्येक नागरिक को चाहे
वह स्त्री हो या पुरुष, समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान करेगा।
(3) राज्य सभी नागरिकों को उनकी आर्थिक
क्षमता के अनुसार कार्य करने तथा शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करेगा।
(4) राज्य प्रयास करेगा कि बेकारी,
वृद्धावस्था, बीमारी, अपंगता अथवा इसी प्रकार की किसी अन्य स्थिति में उन्हें राज्य
की ओर से आर्थिक सहायता मिल सके।
(5) राज्य श्रमिकों हेतु उचित मजदूरी,
कार्य करने की मानवोचित स्थितियों, रहन-सहन के समुचित अवसर और उद्योगों के प्रबन्धन
में श्रमिकों की भागीदारी बढ़ाने का प्रयास करेगा।
(6) राज्य आर्थिक क्षेत्र में इस प्रकार
की नीतियाँ लागू करेगा कि देश के भौतिक साधनों का न्यायोचित वितरण हो सके तथा उत्पादन
के साधन कुछ विशेष हाथों में केन्द्रित न हो सकें। इसके अलावा कुछ अन्य तत्व भी हैं।
45. बिरसा आन्दोलन से आप
क्या समझते हैं ?
उत्तर - बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 19वीं सदी के अंत में झारखंड के
आदिवासी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण आंदोलन हुआ, जिसे बिरसा आंदोलन के नाम से जाना
जाता है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें
ब्रिटिश शासन के शोषण से मुक्त कराना था।
आंदोलन के मुख्य कारण:
1. आदिवासियों की भूमि का शोषण: ब्रिटिश सरकार ने आदिवासियों की पारंपरिक
भूमि पर कब्जा कर लिया और उन्हें भूमिहीन बना दिया।
2. जमींदारी प्रथा: जमींदारों और ठेकेदारों द्वारा आदिवासियों
का शोषण किया जा रहा था।
3. मिशनरियों का प्रभाव: ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों
के धर्म और संस्कृति में हस्तक्षेप किया जा रहा था।
4. बेगारी प्रथा: आदिवासियों को बिना मजदूरी दिए काम
कराया जाता था।
आंदोलन के मुख्य उद्देश्य:
1. आदिवासियों को उनकी भूमि और पारंपरिक अधिकारों को वापस दिलाना।
2. जमींदारी प्रथा और बेगारी प्रथा का अंत करना।
3. आदिवासियों के धर्म और संस्कृति की रक्षा करना।
4. ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त करना।
46. चिपको आन्दोलन पर प्रकाश
डालिए ।
उत्तर - भारत में राजस्थान प्रान्त के जोधपुर से 25 किमी दूर खेजरली
गाँव के बिश्नोई समाज से पर्यावरण आन्दोलन की शुरुआत मानी जाती है। सन् 1730 में वनों
की सुरक्षा के लिए अमृता देवी के नेतृत्व में चले इस आन्दोलन में 363 पुरुष, महिलाओं
और बच्चों की हत्या कर दी गई। इसके काफी समय बाद ठेकेदारों द्वारा गढ़वाल हिमालय के
वन संसाधनों के विदोहन के विरोध में 1970 के दशक में एक आन्दोलन चला। इसका नाम चिपको
आन्दोलन इसलिए पड़ा कि जब स्थानीय ठेकेदार गढ़वाल हिमालय में वृक्षों को काटने आते
थे तो स्थानीय बच्चे और महिलाएँ वृक्षों से चिपककर उन्हें काटने से रोकते थे। सर्वप्रथम
इस आन्दोलन की शुरुआत ऊपरी अलकनन्दा घाटी में बसे मण्डल नामक ग्राम से अप्रैल,
1973 में हुई जहाँ से यह तेजी से गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
यह आन्दोलन सन् 1974 में तब पराकाष्ठा
पर पहुँच गया जब जोशीमठ से 65 किमी दूर स्थित रेनी ग्राम के अधिकांश पुरुष पास के जंगल
की नीलामी के विरोध में प्रदर्शन करने गए थे तथा इस अवसर का लाभ उठाने के लिए ठेकेदार
वृक्ष काटने सैकड़ों मजदूरों के साथ ग्राम में आ गया। इसके विरोध में रेनी ग्राम की
महिलाओं ने ग्राम की 55 वर्षीय गौरा देवी महिला के नेतृत्व में ठेकेदारों तथा मजदूरों
का रास्ता रोक लिया। गौरा देवी द्वारा चलाए जा रहे इस आन्दोलन को प्रसिद्ध पर्यावरणवादी
सुन्दरलाल बहुगुणा का साथ मिलने से एक दिशा प्राप्त हुई। वर्तमान में यह आन्दोलन सम्पूर्ण
पर्यावरण की सुरक्षा और परिरक्षण से सम्बन्धित हो गया है।
खण्ड - C (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250 शब्दों में दें। 5x4-20
47. वर्ग क्या है ? वर्ग
व्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन करें ।
उत्तर - सामाजिक वर्ग जन्म के अतिरिक्त किसी भी आधार पर बना हुआ व्यक्तियों
का ऐसा समूह है जो सामाजिक स्थिति में अन्य समूहों से भिन्न है, जैसे- डॉक्टर वर्ग,
धनी वर्ग, निर्धन वर्ग, शिक्षक वर्ग, श्रमिक वर्ग, आदि।
वर्ग या वर्ग व्यवस्था की विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं-
(1) अर्जित स्थिति - वर्ग व्यवस्था में व्यक्ति अपनी सामाजिक
स्थिति जन्म के आधार पर नहीं अपितु अपने गुणों से अर्जित करता है। एक निम्न वर्ग का
व्यक्ति अपनी उपलब्धियों से उच्च वर्ग का हो सकता है।
(2) खुली व्यवस्था- वर्ग की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह
भी है कि वर्ग एक खुली व्यवस्था है। कोई भी व्यक्ति अपने गुणों और प्रतिभा से धनी होकर
निम्न वर्ग से उच्च वर्ग में जा सकता है। इसके विपरीत कोई भी व्यक्ति अपने दुर्गुणों
के कारण और निर्धन होने पर उच्च वर्ग से निम्न में चला जाता है।
(3) जन्म का महत्व नहीं- वर्ग व्यवस्था जाति की तरह जन्म पर
आधारित नहीं होती। वर्ग में जन्म का महत्व नहीं होता। व्यक्ति भले ही किसी भी वर्ग
में जन्म ले, वह किस वर्ग में रहेगा- यह उसकी शिक्षा, योग्यता, कुशलता आदि पर निर्भर
करता है।
(4) समूहों का संस्तरण- प्रत्येक समाज में वर्गों की एक श्रेणी
होती है। इसमें उच्च, मध्यम एवं निम्न वर्ग होता है। उच्च वर्ग के सदस्यों की सामाजिक
प्रतिष्ठा एवं अधिकार अन्य वर्गों की तुलना में सर्वाधिक होते हैं। इससे सदस्य संख्या
कम होती है। निम्न वर्ग में लोगों की संख्या अधिक होती है और उनकी प्रतिष्ठा एवं अधिकार
भी सबसे कम होते हैं।
(5) उपवर्ग - प्रत्येक वर्ग में उपवर्ग भी पाये
जाते हैं। जैसे-उच्च-उच्चवर्ग, उच्च मध्यम वर्ग एवं निम्न मध्यम वर्ग आदि होते हैं।
(6) कम स्थिरता- चूँकि वर्ग व्यक्ति के गुणों पर निर्भर
करता है। अतः यह अपेक्षाकृत कम स्थिर है। व्यक्ति गुणों को अर्जित कर अपनी स्थिति में
समय-समय पर परिवर्तन करता रहता है।
(7) वर्ग चेतना- वर्ग व्यवस्था में सामाजिक वर्ग के सदस्यों में वर्ग चेतना
पायी जाती है। यही चेतना व्यक्ति के व्यवहार को निश्चित करती है। वे कुछ समूहों को
अपने से नीचे और कुछ को ऊँचा मानते हैं।
(8) सीमित सामाजिक सम्बन्ध- एक वर्ग के सदस्यों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध होते हैं। जबकि दूसरे
वर्ग के सदस्यों के साथ उनके सम्बन्ध उतने घनिष्ठ नहीं होते। एक वर्ग के सदस्य दूसरे
वर्ग के सदस्यों के साथ एक निश्चित सामाजिक दूरी बनाये रखते हैं।
(9) पृथक जीवन- स्तर प्रत्येक वर्ग के रीति-रिवाज, रहन-सहन और आचार-व्यवहार
आदि का एक निश्चित ढंग होता है।
(10) अन्तर्वर्गीय विवाह- यद्यपि वर्ग में जाति की तरह कठोरता नहीं पायी जाती फिर भी
इसे जाति से कुछ ही कम कह सकते हैं। अधिकतर व्यक्ति अपने वर्ग में ही विवाह करना पसन्द
करता है।
48. भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण
के प्रभावों का उल्लेख करें ।
उत्तर - पश्चिमीकरण की प्रक्रिया केवल भारतीय समाज पर पश्चिमी जीवन पद्धति
के प्रभाव को स्पष्ट करती है। यह प्रक्रिया नैतिक रूप से इसलिए तटस्थ है कि इसके अनुसार
किसी परिवर्तन को पहले की तुलना में अच्छा या बुरा नहीं कहा जा सकता।
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव - पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने भारत
की परम्परागत संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था में जो परिवर्तन उत्पन्न किये, उन्हें संक्षेप
में निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है-
(i) धार्मिक जीवन में परिवर्तन - पश्चिमी संस्कृति के मानवतावाद और
सामाजिक समानता से प्रभावित होकर यहाँ आर्य समाज, ब्रह्म समाज और रामकृष्ण मिशन जैसी
सुधार संस्थाओं की स्थापना हुई। पश्चिमी जीवन के अनुसार ही यहाँ भूत-प्रेत, शकुन-अपशकुन,
भाग्य सम्बन्धी विचारों, बेकार के कर्मकाण्डों तथा धार्मिक विश्वासों पर आधारित अस्पृश्यता,
सती प्रथा, बालविवाह और देव-दासी प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध बढ़ने लगा। अब पुरोहितों
और मठाधीशों को ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में नहीं देखा जाता तथा मानव सेवा को ईश्वर
की सच्ची सेवा के रूप में देखा जाने लगा है।
(ii) जाति-व्यवस्था में परिवर्तन - पश्चिमीकरण की प्रक्रिया सामाजिक
समानता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को अधिक महत्व देती है। इसके प्रभाव से जाति से सम्बन्धित
सामाजिक सम्पर्क, छुआछूत, खान-पान, व्यवसाय तथा विवाह से सम्बन्धित बहुत-सी कुरीतियों
का प्रभाव समाप्त होने लगा। निम्न जातियों को भी अपनी सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति को
ऊँचा उठाने का अवसर मिला। अनुसूचित जातियों को विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण मिल जाने
से भारत का परम्परागत सांस्कृतिक ढाँचा टूटने लगा।
(iii) सांस्कृतिक व्यवहारों में परिवर्तन
- पश्चिमीकरण के प्रभाव से हमारे खान-पान, वेशभूषा, व्यवहार के तरीकों तथा उत्सवों
के आयोजनों में व्यापक परिवर्तन हुआ है। परम्परागत उत्सवों की जगह अब ऐसी पार्टियों
को अधिक महत्व दिया जाने लगा है जिनमें धर्म पर आधारित किसी तरह के आडम्बर का समावेश
नहीं होता। सांस्कृतिक व्यवहारों में होने वाला परिवर्तन अब नगरों के साथ-साथ गाँवों
में भी स्पष्ट होने लगा है। जन्म विवाह और मृत्यु जैसे अवसरों पर भी परम्परागत संस्कारों
का बहुत संक्षिप्तीकरण हो गया है।
(iv) शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन- शिक्षा एक ऐसा आधार है जिसमें होने वाला कोई भी परिवर्तन सम्पूर्ण
सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति में परिवर्तन पैदा कर देता है। अंग्रेजों ने भारत में
पहली बार एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था आरम्भकी जो धर्म और जाति के भेदभाव से अलग थी। स्वतन्त्रता
के बाद परम्परागत शिक्षा व्यवस्था की जगह वैज्ञानिक और व्यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्व
दिया जाने लगा। इसके फलस्वरूप नयी पीढ़ी की मनोवृत्तियों और विचारों में परिवर्तन हो
जाने से मनुस्मृति में दिये गये धर्म और सांस्कृतिक सम्बन्धी व्यवहारों का विरोध बढ़ने
लगा।
(v) विवाह संस्था में परिवर्तन- पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से समाज में विलम्ब विवाह का प्रचलन
बढ़ा, बहुपत्नी विवाह का विरोध बढ़ने के कारण इसे कानून के द्वारा समाप्त कर दिया गया,
सम्भ्रान्त परिवारों में दहेज की प्रथा समाप्त हो गयी, अन्तर्जातीय विवाहों में वृद्धि
होने लगी, बहिर्विवाह और कुलीन विवाह के नियम कमजोर पड़ गए तथा स्त्री को किसी भी तरह
के उत्पीड़न की दशा में अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लेने का अधिकार मिल गया। इन सभी
दशाओं ने हमारी परम्परागत सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तन उत्पन्न कर दिये।
(vi) स्त्रियों की दशा में सुधार- सैद्धान्तिक रूप से भारतीय संस्कृति में स्त्रियों का स्थान
कितना ही सम्मानित क्यों न रहा हो, लेकिन व्यावहारिक रूप से पिछले 2000 वर्षों के इतिहास
में स्त्रियों का जीवन अत्यधिक अपमानित और शोषित रहा था।
49. दबाव समूह और राजनीतिक
दल में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - सामान्य अर्थ में, दल का तात्पर्य व्यक्तियों के उस समूह से
होता है जो समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करता है। और जब इस दल का उद्देश्य
राजनीतिक हो, तब उसे हम राजनीतिक दल कहते हैं। अन्य अर्थ में, राजनीतिक दल व्यक्तियों
के उस समूह को कहते हैं, जो समान राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीति में
भागीदार बनता है।
गिलक्राइस्ट के अनुसार, "राजनीतिक
दल उन व्यक्तियों का एक संगठित समूह है जो राजनीतिक रूप से समान विचार के हों तथा एक
राजनीतिक इकाई के रूप में सरकार पर नियन्त्रण स्थापित करना चाहते हों।"
राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में अन्तर
को अग्रलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-
1. राजनीतिक दल पूर्णरूप से एक राजनीतिक
संगठन होता है, जिसके कुछ सुस्पष्ट सिद्धान्त और निश्चित विचारधारा होती है। उसी विचारधारा
के अनुसार वह जनता में जाकर जनमत तैयार करने का प्रयत्न करते हैं। जबविदबाव समूह गैर-राजनीतिक
संगठन होते हैं जिनका लक्ष्य अपने व अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना होता है।
2. राजनीतिक दल सरकार के संचालन से
जुड़े विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित होते हैं। ये दल प्रत्यक्ष रूप से सत्ता पक्ष या
विपक्ष के रूप में भागीदारी करते हैं, जबकि दबाव समूह अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कार्यक्रम
से लेकर सरकार के संचालन में भागीदारी करते हैं। इनका जुड़ाव किसी विशिष्ट पक्ष से
न होकर अपने हितों की पूर्ति से होता है, यही कारण है कि जिस राजनीतिक दल की सत्ता
होती है, ये समूह उसी से अपनी नजदीकी बनाकर अपना कार्य निकालने के लिए प्रयत्नशील हो
जाते हैं।
3. प्रत्येक राजनीतिक दल का उद्देश्य
सत्ता हासिल कर अपने घोषणा-पत्र के अनुरूप नीतियों का निर्माण और उनका क्रियान्वयन
करना होता है जबकि दबाव समूहों का उद्देश्य अपने हितों की पूर्ति करना।
4. राजनीतिक दलों के विकास और संचालन
हेतु अधिक परिपक्व होने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि ये दल एक निश्चित विचारधारा
और कुछ सिद्धान्तों के आधार पर ही अपने को आगे बढ़ाते रहते हैं। जबकि दबाव समूहों के
लिए अधिक परिपक्वता की आवश्यकता होती है। ये समूह जनता और सरकार दोनों से ही तालमेल
बैठाकर अपने हितों को सिद्ध करते हैं। जनता का रुख बदलने और सत्ता परिवर्तन की स्थिति
में इन्हें उन दोनों ही प्रकार की भूमिकाओं का सम्पादन करना होता है, जिससे कि पुराने
सत्ता समूह से दूरी बनाकर नये सत्तासमूह से अपने सम्बन्धों को प्रगाढ़ बना सकें, तभी
ये समूह अपने हितों की रक्षा करने में काययाब हो पाते हैं।
5. राजनीतिक दलों में सदस्यों की संख्या
बहुत व्यापक होती है, जो राजनीतिक दल जितना अधिक प्रभावी होता है, उसकी सदस्य संख्या
उतनी ही अधिक होती है। राजनीतिक दल की एक शर्त यह भी है कि एक व्यक्ति एक समय में एक
ही राजनीतिक दल का सदस्य होता है। जबकि दबाव समूह की सदस्य संख्या काफी सीमित होती
है और एक व्यक्ति एक ही समय अनेक दबाव समूहों का सदस्य हो सकता है।
50. पंचायत के अधिकारों एवं
कर्तव्यों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर - संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 में पंचायत के तीनों स्तरों
के अधिका तथा कार्यों की एक सूची दी गई है जिसके आधार पर राज्य सरकारों द्वारा पंचायतों
के कार्य और अधिकार निर्धारित किए गए हैं। इसमें 29 कार्यों का उल्लेख है जिसमें से
महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) कृषि विकास, भूमि सुधार तथा चरागाहों के विकास से सम्बन्धित
कार्य करना।
(2) पशुपालन, मत्स्यपालन, दुग्ध उद्योग तथा कुक्कुट पालन का
विकास करना।
(3) ग्रामीण क्षेत्रों में लघु सिंचाई प्रबन्ध, पेयजल व्यवस्था
तथा तालाबों एवं पोखरों से सम्बन्धित विकास करना।
(4) ग्रामीण आवास योजना बनाने में सरकार की सहायता करना तथा
इन योजनाओं का क्रियान्वयन।
(5) सड़कों तथा सार्वजनिक भूमियों के किनारे वृक्षारोपण करना
और रेशम उत्पादन को बढ़ाना
(6) कुटीर एवं लघु उद्योगों तथा कृषि उद्योगों के विकास में
सहायता करना।
(7) निर्धनता उन्मूलन सम्बन्धी कार्यक्रमों को लागू - करना।
(8) ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों, पुलियों तथा घाटों का निर्माण
एवं रख-रखाव करना।
(9) ग्रामीण विद्युतीकरण के स्रोतों
को विकसित करना एवं ग्रामीण सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करना।
(10) क्षेत्र के आर्थिक विकास हेतु
योजनाएँ बनाना।
(11) महिला एवं बालविकास के कार्यक्रमों
को लागू करना।
(12) प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा
की व्यवस्था और इसके प्रति ग्रामीणों में रुचि उत्पन्न करना।
(13) ग्रामों में स्वास्थ्य तथा सफाई
से सम्बन्धित कार्यक्रम लागू करना और परिवार कल्याण कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना।
(14) पंचायत क्षेत्र में मेलों, हाटों,
बाजारों आदि की व्यवस्था करना।
(15) अनुसूचित जातियों/जनजातियों तथा
अन्य दुर्बल वर्गों के कल्याण हेतु कार्यक्रम बनाना और उन्हें लागू करना।
51. हरित क्रान्ति क्या है
? इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की विस्तृत व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- हरित क्रान्ति-खेती करने
में नवीन यन्त्रों का प्रयोग, उन्नत किस्म के खाद-बीज का प्रयोग, सिंचाई की
पर्याप्त व्यवस्था, ऋण सुलभता आदि के कारण कृषि के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि
होती है, इसे ही हरित क्रान्ति कहा जाता है। भारत में हरित क्रान्ति लाने का श्रेय
महान विद्वान् डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन को दिया जाता है।
हरित क्रान्ति के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
इस प्रकार हैं-
(i) खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता- हरित क्रान्ति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण
प्रभाव यह देखने को मिला कि देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया। जबकि पूर्व
में तुलनात्मक रूप कम जनसंख्या होने के बावजूद खाद्यान्न का विदेशों से आयात करना पड़ता
था। यह हरित क्रान्ति का ही परिणाम है कि आज हमारा देश कई उपजों को आयात करने की बजाय
उनका निर्यात करने लगा है।
(ii) जीवन-स्तर में सुधार- कृषि उत्पादन के क्षेत्र में अप्रत्याशित
सफलता मिलने से किसानों की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई। परिणामतः ग्रामीण क्षेत्र
में गरीबी की दशा में सुधार आया और लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ। जीवन स्तर में
सुधार होने से ग्रामीण लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास व उपभोग के क्षेत्र में काफी
बदलाव आया। इसीलिए यह कहा जाता है कि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने का
श्रेय हरित क्रान्ति को ही दिया जाता है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार
कृषि है। आज भी देश की लगभग 65% जनसंख्या कृषि या उससे जुड़े उद्योग-धन्धों के माध्यम
से अपना जीवनयापन कर रही है।
(iii) सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता- हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप व्यक्तियों
की जीवनशैली में तीव्र परिवर्तन देखने को मिले हैं। नागरिकों की आर्थिक स्थिति में
सुधार होने से न केवल उनकी जीवनशैली में परिवर्तन आया है, बल्कि जातीय बन्धनों में
भी शिथिलता आयी है परिणामतः भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जाति आधारित सामाजिक व्यवस्था
वर्ग का रूप लेती जा रही है। सामाजिक स्तरीकरण में आये इस परिवर्तन के कारण समाज में
गतिशीलता के प्रभाव में वृद्धि हुई है।
(iv) राजनीतिक चेतना का विकास- हरित क्रान्ति के प्रभावस्वरूप जहाँ
ग्रामीण भारत में किसानों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव आया है, उसका
परिणाम ग्रामीणों में राजनीतिक चेतना के विकास के रूप में सामने आया है। दीपांकर गुप्ता
ने पश्चिमी आन्ध्रप्रदेश पर किये गये अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला कि हरित क्रान्ति
के परिणाम स्वरूप किसानों में राजनीतिक चेतना का विकास हुआ।
(v) किसानों की मानसिकता में बदलाव- यह हरित क्रान्ति का ही प्रभाव है
जिसने भाग्यवादी एवं परम्परावादी भारतीय किसान को नवाचार तथा आधुनिकता को अपनाने के
लिए तैयार किया। हरित क्रान्ति से लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार होने से उनकी जीवन
शैली को एक नया आयाम मिला जिससे न केवल उनके रहन-सहन में परिवर्तन आया बल्कि उनकी मानसिकता
भी पूरी तरह से बदल चुकी है, आज किसान देश की हर अच्छी-बुरी स्थिति में अपनी भागीदारी
कर रहे हैं। वे अब स्वतन्त्र और शोषण मुक्त हो चुके हैं और अपने अधिकारों के प्रति
भी जागरूक हुए हैं।
52. भारत के संविधान के अनुसार
नागरिकों के मौलिक अधिकारों की विवेचना करें ।
उत्तर - भारत का संविधान दुनिया का
सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाये
रखने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के अधिकारों को स्पष्ट करने के साथ ही ऐसे सभी
प्रावधान किए गए हैं जिनके द्वारा नागरिकों की स्वतन्त्रता और समानता के अधिकार सुरक्षित
रहें। संविधान में समाज के दुर्बल वर्गों को समानता और न्याय का अधिकार देने पर विशेष
जोर दिया गया। इसी रूप में संवैधानिक प्रावधानों को सामाजिक परिवर्तन की एक बड़ी शक्ति
के रूप में देखा जाता है। इन संवैधानिक प्रावधानों से सम्बन्धित कुछ प्रमुख पक्ष निम्नांकित
हैं-
मौलिक अधिकार - भारत के संविधान में देश के सभी
नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकार दिए गए हैं। इन्हें मौलिक अधिकार इसलिए कहा जाता है
कि यह सभी लोगों के विकास और अस्तित्व के लिए जरूरी हैं। इनका उल्लेख संविधान के तीसरे
भाग के अनुच्छेद 12 से 35 तक में किया गया है। यदि किसी व्यक्ति को इन मौलिक अधिकारों
से वंचित किया जाता है तो वह न्यायालय की सहायता से इन्हें प्राप्त कर सकता है। इन
मौलिक अधिकारों को मुख्य रूप से छः भागों में विभाजित किया गया है जो इस प्रकार हैं-
(अ) समानता का अधिकार संविधान के द्वारा यह प्रावधान किया
गया कि कानून के सामने सभी लोग समान हैं। उनके बीच धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान
के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जायेगा। समानता का अधिकार सभी नागरिकों को
रोजगार के समान अवसर देता है।
(ब) स्वतन्त्रता का अधिकार- इसके अन्तर्गत अनेक ऐसे अधिकारों का
उल्लेख है जिनकी सहायता से लोग एक स्वतन्त्र जीवन बिता सकें। इनमें मुख्य हैं-
(i) अपने विचारों को स्वतन्त्रता के साथ व्यक्त करने का अधिकार,
(ii) अपनी कोई भी उपयोगी संस्था या
संगठन बनाने का अधिकार,
(iii) देश के किसी भी हिस्से में आने-जाने
का अधिकार,
(iv) भारत के किसी भी हिस्से में रहने
का अधिकार,
(v) किसी भी मान्यता प्राप्त व्यवसाय
के द्वारा आजीविका प्राप्त करने का अधिकार। इन सभी अधिकारों के उपयोग के लिए यह जरूरी
है कि देश की सुरक्षा, प्रशासनिक व्यवस्था, शिष्टता और नैतिकता को इन अधिकारों से किसी
तरह की ठेस न पहुँचती हो।
(स) शोषण से रक्षा का अधिकार यह व्यवस्था की गई कि किसी व्यक्ति
से बेगार नहीं ली जा सकती, बाल श्रमिकों का शोषण नहीं किया जा सकता तथा किसी भी श्रेणी
के व्यक्ति को खरीदा या बेचा नहीं जा सकता। इसी अधिकार को ध्यान में रखते हुए भारत
सरकार द्वारा अनेक कानून बनाए गए।
(द) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार- प्रत्येक व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार
है कि वह बिना दबाव के किसी भी धर्म के अनुसार व्यवहार कर सकता है और उसका प्रचार कर
सकता है। किसी भी व्यक्ति को अपने धार्मिक आयोजनों से नहीं रोका जा सकता।
(य) संस्कृति और शिक्षा का अधिकार- देश के प्रत्येक वर्ग के नागरिक का
यह अधिकार है कि वह अपनी संस्कृति, भाषा और लिपि की रक्षा कर सकता है। देश के अल्पसंख्यक
वर्गों को यह अधिकार है कि वे अपनी पसन्द की शिक्षा प्राप्त कर सकें तथा अपने लिए अलग
शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करके उनकी व्यवस्था कर सकें। राज्य द्वारा संचालित शिक्षा
संस्थाओं में किसी विशेष धर्म की शिक्षा देने पर भी रोक लगायी गई।
(र) संवैधानिक उपचार का अधिकार- यदि किसी व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों
से वंचित किया जाता है तो उसे यह भी अधिकार है कि वह इसके विरुद्ध न्यायालय की सहायता
से अपने अधिकारों को प्राप्त कर ले। इस अधिकार को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए यह प्रावधान
किया गया कि केन्द्र या राज्य सरकारें कोई ऐसा कानून नहीं बना सकतीं जो देश के किसी
भी नागरिक को अपने मौलिक अधिकार से वंचित करता हो।
मौलिक कर्तव्य- भारत के संविधान में नागरिकों को
मौलिक अधिकार देने के साथ ही उनके लिए कुछ महत्वपूर्ण कर्त्तव्य भी निर्धारित किए गए
हैं। इन कर्त्तव्यों का उल्लेख सन् 1976 में संविधान में 42वाँ संशोधन करके भाग-4 के
अनुच्छेद 51 के 'क' वर्ग में किया गया। इनके अन्तर्गत जिन महत्वपूर्ण कर्त्तव्यों को
शामिल किया गया, वे निम्नांकित हैं-
1. प्रत्येक नागरिकों का कर्तव्य है
कि वह संविधान का पालन करें।
2. भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय
राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरणा देने वाले आदर्शों का अनुसरण करें।
3. देश की रक्षा करें और उनसे जिन राष्ट्रीय
सेवाओं की अपेक्षा की जाए, उनमें हिस्सेदारी करें।
4. देश की प्रभुसत्ता और अखण्डता को
बनाए रखें तथा उसकी रक्षा करें।
5. धर्म, भाषा, क्षेत्र और वर्ग सम्बन्धी
भिन्नताओं को भूलकर सभी व्यक्ति पारस्पारिक सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा दें। साथ ही
कोई ऐसा कार्य न करें जिससे महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुँचे।
6. हिंसा से दूर रहें तथा सार्वजनिक
सम्पत्ति की रक्षा करने में योगदान दें।
7. पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के
सभी सम्भव प्रयत्न करें।
8. अपने व्यवहारों में पक्षपातरहित
और वैज्ञानिक मनोवृत्ति को विकसित करें।
9. भारत की मिश्रित सांस्कृतिक परम्परा
को सुरक्षित रखते हुए उसे आगे बढ़ाने के लिए कार्य करें।
Class XII Sociology
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Jac Board Class 12 Sociology 2023 Answer key