12th Hindi Core आरोह भाग -II 8. तुलसीदास- कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप

12th Hindi Core आरोह भाग -II 8. तुलसीदास- कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप

12th Hindi Core आरोह भाग -II 8. तुलसीदास- कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप


प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

Hindi Core

8. तुलसीदास- कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप

पाठ्य पुस्तक के प्रश्न - अभ्यास

प्रश्न 1. कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।

उत्तर- 'कवितावली' में वर्णित छंदों के आधार पर हम यह कह सकते हैं। कि तुलसीदास जी को अपने युग की आर्थिक विषमता की गहरी समझ थी, क्योंकि उन्होंने तत्कालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक विषमता से उत्पन्न गरीबी एवं बेकारी को दारिद-दसानन के समान बताया है। तुलसीदास के अनुसार उनके समय में लोग बेरोजगारी और भुखमरी की समस्या से परेशान थे। मजदूर, किसान, नौकर, भिखारी आदि सभी दुखी थे । तुलसीदास ने तो यहां तक कहा है कि पेट भरने के लिए लोग गलत सही सभी कार्य करते थे। गरीबी के कारण लोग अपनी संतान तक को बेचने के लिए तैयार थे। दरिद्रता रूपी रावण ने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था।

प्रश्न 2. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग- सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।

उत्तर- तुलसीदास ने कहा है कि पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति रूपी मेघ ही कर सकता है। मनुष्य का जन्म, कर्म, कर्म-फल सब ईश्वर के अधीन हैं। निष्ठा और पुरुषार्थ से मनुष्य के पेट की आग का शमन तभी हो सकता है जब ईश्वर की कृपा हो अर्थात् फल प्राप्ति के लिए दोनों में संतुलन का होना अति आवश्यक है। पेट की आग बुझाने के लिए की गई मेहनत के साथ - साथ ईश्वर की कृपा का होना बेहद जरूरी है।

प्रश्न 3. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहाँ कोऊ/काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आती?

उत्तर- तुलसीदास जी ने प्रस्तुत सवैयै के द्वारा तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों की ओर संकेत किया है। उस युग में जाति संबंधी नियम अत्यधिक कठोर हो गए थे। तुलसी इस सवैये में अगर अपनी बेटी की शादी की बात करते तो सामाजिक संदर्भ में बहुत अंतर आ जाता, क्योंकि पुरुष प्रधान समाज में विवाह के बाद लड़की को अपनी जाति छोड़कर अपने पति की जाति अपनानी पड़ती है। दूसरे, यदि तुलसी अपनी बेटी की शादी ना करने का निर्णय लेते तो इसे भी समाज में गलत समझा जाता। तीसरे, यदि किसी अन्य जाति में अपनी बेटी का विवाह संपन्न करवा देते तो इससे भी समाज में एक प्रकार का जातिगत या सामाजिक संघर्ष बढ़ने की संभावना बढ़ जाती ।

प्रश्न 4. धूत कहाँ ..... वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?

उत्तर - तुलसीदास का जीवन सदा अभावों में बीता, लेकिन उन्होंने अपने स्वाभिमान को जगाए रखा। इसी प्रकार के भाव उनकी भक्ति में भी आए हैं। वे राम के सामने गिड़गिड़ाते नहीं बल्कि जो कुछ उनसे प्राप्त करना चाहते हैं वह भक्त के अधिकार की दृष्टि से प्राप्त करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें संसार के लोगों की चिंता नहीं है कि वे उनके बारे में क्या सोचते हैं? तुलसीदास राम में एकनिष्ठा और समर्पण भाव रख कर समाज में व्याप्त दूषित रीति-रिवाजों का घोर विरोध करते हैं तथा अपने स्वाभिमान को महत्व देते हैं। वे एक स्वाभिमानी आदर्श श्री राम भक्त के रूप में दिखाई देते हैं।

प्रश्न 5. व्याख्या करें-

(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू ।।

उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक आरोह भाग - 2 के अंतर्गत गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप से अवतरित है। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि हे भाई! तुम मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे । तुम्हारा स्वभाव सदा से ही मेरे लिए कोमल था। मेरे हित के लिए तुमने माता-पिता को भी छोड़ दिया वन में मेरे साथ जाड़ा, गर्मी हवा सब कुछ सहन किया। किंतु वह प्रेम अब कहां है? मेरे व्याकुलतापूर्ण वचन सुनकर तुम उठते क्यों नहीं? यदि मुझे ज्ञात होता कि मैं वन में अपने भाई से बिछड़ जाऊंगा, मैं पिता के वचनों (जिसे मानना मेरा परम कर्तव्य था) को कभी न मानता और न ही तुम्हें अपने साथ लेकर वन आता।

(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही जौं जड़ दैव जिआवै मोही ।।

उत्तर- मूर्च्छित लक्ष्मण को गोद में लेकर राम विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की और सूढ़ के बिना हाथी की स्थिति दयनीय हो जाती है। ऐसी स्थिति में मैं अक्षम व असहाय हो गया हूँ। यदि भाग्य ने तुम्हारे बिना मुझे जीवित रखा तो मेरा जीवन इसी तरह शक्तिहीन रहेगा। दूसरे शब्दों में, मेरे तेज व पराक्रम के पीछे तुम्हारी ही शक्ति कार्य करती रही है।

(ग) माँग कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ ।।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति में तुलसीदास की निस्पृहता का वर्णन करते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं माँगकर ही खाता हूँ, मंदिर के अंदर ही सोता हूँ। मेरा किसी से कोई मतलब नहीं है। अर्थात मेरा जीवन बहुत ही सरल है। मैं माँग कर खाता हूँ, देवालय ही मेरा सोने का स्थान है। इसके अतिरिक्त मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है।

(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा- बेटकी ।।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में तत्कालीन समाज की दुर्दशा का पता चलता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि बेकारी के कारण लोगों की दशा बहुत बुरी है। लोग अच्छे-बुरे काम करने को विवश हैं, वे अधर्म करने से भी नहीं चूकते हैं, पेट की आग से विवश होकर वे अपनी संतानों को तक बेच देते हैं। भाव यह है कि बेकारी ने लोगों को हर प्रकार के काम करने लिए मजबूर कर दिया है। जब भूख लगती है, तो उससे परेशान होकर वे अपने बेटा तथा बेटी तक को बेच डालते हैं।

प्रश्न 6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर- जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा तो राम एकदम विह्वल हो उठे। वे ऐसे रोए जैसे कोई बालक पिता से बिछुड़कर होता है। सारी मानवीय संवेदनाएँ उन्होंने प्रकट कर दीं जिस प्रकार मानव-मानव के लिए रोता है ठीक वैसा ही राम ने किया। राम के ऐसे रूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। मानव में अपेक्षित सारी अनुभूतियाँ इस शोक सभा में दिखाई देती हैं।

प्रश्न 7. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?

उत्तर- लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर हनुमान संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय पर्वत जाते हैं। उन्हें आने में विलंब हो जाने पर सभी बहुत चिंतित व दुःखी होते हैं। उसी समय हनुमान संजीवनी बूटी के साथ पूरा पर्वत लेकर आ जाते हैं, इस कार्य को देखते ही सभी में आशा और उत्साह का संचार हो गया तब मानो करुण रस के बीच वीर रस का संचार हो जाता है अर्थात् लक्ष्मण की मूर्च्छा से दुखी निराश लोगों के मन में उत्साह का संचार हो जाता है। अतः अचानक इस प्रकार के परिवर्तन होने के कारण यहाँ करुण रस के बीच वीर-रस का आविर्भाव कहा गया है।

प्रश्न 8. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई ।।

बरु अपजस सहतेऊं जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।

भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?

उत्तर- भाई के शोक में डूबे श्रीराम के इस प्रलाप को सुनकर यद्यपि स्त्री को बुरा लगेगा। वह सोचेगी कि भाई की तुलना में पत्नी को हीन समझा जाता है परन्तु प्रलाप विलाप में व्यक्ति बहुत कुछ कह जाता है। जिसके कारण प्रलाप किया जा रहा हो, उसे अन्य की उपेक्षा अधिक प्रिय बताया जाता है। राम का यह प्रलाप तत्कालीन परिस्थितियां, पुरुष प्रधान सामाजिकता की ओर संकेत करती हैं। कवि के अनुसार राम उस समय नर-लीला कर रहे थे।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1. कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर अज तथा निराला की सरोज स्मृति में पुत्री (सरोज) के मृत्यु- शौक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।

उत्तर- सरोज स्मृति में कवि निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त किए थे। ये एक असहाय पिता के उद्गार थे जो अपनी पुत्री की आकस्मिक मृत्यु के कारण उपजे थे। भ्रातृशोक में डूबे राम का विलाप निराला की तुलना में कम है। लक्ष्मण अभी सिर्फ मूर्च्छित ही हुए थे। उनके जीवित होने की आशा बची हुई थी। दूसरे, सरोज की मृत्यु के लिए निराला की कमजोर आर्थिक दशा जिम्मेदार थी। वे उसकी देखभाल नहीं कर पाए थे, जबकि राम के साथ ऐसी समस्या नहीं थी।

प्रश्न 2. 'पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।

उत्तर- तुलसीदास के युग में धन-वैभव सम्पन्न लोग गरीबों की सन्तानों को दास रूप में खरीदते थे। उस समय आर्थिक विषमता पिछड़ेपन एवं कट्टर वर्ण व्यवस्था जातिवाद के कारण भी थी। वर्तमान में पेट की खातिर तथा बेकारी के कारण अतीव निर्धन लोग अपनी सन्तान को बेचते थे। बन्धुआ मजदूर इसी का एक रूप है। आज की परिस्थिति भले ही पहले से भिन्न है, परन्तु कर्जदारी और भुखमरी के कारण किसानों के द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएँ आज भी अति चिन्तनीय है।

प्रश्न 3. तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।

उत्तर- तुलसी युग की बेकारी का सबसे बड़ा कारण गरीबी और भुखमरी थी। लोगों के पास इतना धन नहीं था कि वे कोई रोजगार कर पाते। इसी कारण लोग बेकार होते चले गए। यही कारण आज की बेकारी का भी है। आज भी गरीबी है, भुखमरी है। लोगों को इन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती. इसी कारण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 4. राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा- “मिलइ न जगत सहोदर भ्राता"? इस पर विचार करें।

उत्तर- राम और लक्ष्मण का जन्म यद्यपि एक ही माँ के पेट से नहीं हुआ था. लेकिन इनके पिता एक ही थे महाराज दशरथा इसलिए राम ने लक्ष्मण को सहोदर भ्राता कहा। लक्ष्मण ने सदा राम की सेवा की। उनके सुख के लिए अपने सुखों का त्याग कर दिया। केवल एक ही पेट से जन्म लेने वाले संगे नहीं होते बल्कि वही भाई सहोदर होता है जो पारिवारिक संबंधों को अच्छी तरह निभाता है। लक्ष्मण ने श्रीराम के दुख दूर करने के लिए जीवनभर कष्ट उठाए। राम का छोटा-सा दुख भी उनसे देखा नहीं जाता था। इसलिए राम ने उन्हें लक्ष्य कर "मिलइ न जगत सहोदर भ्राता' कहा।

5. यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित सवैया ये पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में छंद तथा काव्य रूप आए हैं। ऐसे छंदों एवं काव्य रूपों की सूची बनाएं।

उत्तर- तुलसी साहित्य में निम्नलिखित छेदों एवं काव्य रूपों का भी प्रयोग हुआ है-

प्रबंध काव्य- रामचरितमानस, रामलला नहछू, पार्वती मंगल, जानकी मंगल ।

गीति काव्य- गीतावली, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका

मुक्तक काव्य- दोहावली, कवितावली, बरवै रामायण वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्ना

तुलसीदास जी ने अपने काव्य में दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, सोरठा के अतिरिक्त छप्पय बरवै आदि छंदों का प्रयोग किया है।

(अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर) दीर्घत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 'पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।' में भक्त कवि तुलसीदास ने किस विकट स्थिति की ओर संकेत किया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवि ने बताया है कि संसार में सभी अच्छे बरे, ऊँचे-नीचे कार्यों का आधार पेट की आग की गंभीर स्थिति ही सबसे बड़ा सत्य है। तुलसीदास के समय तत्कालीन परिस्थिति रोजगार को लेकर अत्यन्त विकट थी। पेट भरने हेतु जो व्यक्ति जैसा भी कार्य करता था, उन्हें वैसा भी कोई काम नहीं मिल रहा था। जिसके कारण भूखे मरने जैसी हालत हो गई थी। अच्छे-अच्छे घरों के लोग पेट पालने हेतु छोटा-बड़ा, उँच-नीच सभी कर्म करने लगे थे।

ऐसे में परिवार पालन के लिए या अपने पेट को भरने हेतु लोग अपनी संतानों को भी बेचने को विवश हो रहे थे। समय की दारुण स्थिति एवं मनुष्यों का कठिन जीवन-यापन देख तुलसीदास ने निम्न पंक्ति कही कि पेट की आग बुझाने हेतु अपनी जान से प्यारी संतान ( बेटा-बेटी) को भी लोग बेचने में हिचकिचा नहीं रहे थे, जो कि बहुत ही बुरी परिस्थिति पर प्रकाश डालती है।

प्रश्न 2. धूत कहाँ, अवधूत कहाँ, राजपुत कहाँ निम्न पंक्ति द्वारा कवि तुलसीदास वर्तमान की किस भर्पकर समस्या को इंगित कर रहे है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- तुलसीदास कहते हैं कि कोई चाहे उन्हें धूत (घर से निष्कासित) कहे, चाहे साधु-संन्यासी कहे, या फिर किसी भी जाति-विशेष के नाम से पुकारे। तुलसीदास की तत्कालीन स्थिति और अभी की वर्तमान परिस्थिति दोनों में ही जाति समस्या बहुत ही जटिल व बड़ी समस्या है। उस समय तुलसीदास की प्रसिदधि एवं भक्ति देख कर कुछेक जाति विशेषज्ञ विद्वान तुलसीदास को नीचा व निम्न जाति का दिखाने हेतु दुष्प्रचार करते थे। उन्हीं लोगों को सटीक जवाब देने हेतु तुलसीदास ने कहा कि मुझे न किसी से कोई लेना-देना है। न किसी की बेटी के साथ, बेटा ब्याह कर जाति बिगाड़नी है। न मैं धर्म को लेकर कट्टरपंथी हूँ। मैं माँग कर खाता हैं. मस्जिद में सोकर तथा भगवान राम की भक्ति आराधना कर अपना जीवन गुजार सकता हूँ।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) कवितावली

1.

किसबी, किसान कुल, बनिक, भिखारी, भाट,

चाकर, चपला नट, चोर, चार, चेटकी।

पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,

अटत गहन-गन अहन अखेटकी ।।

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,

पेट ही की पचित, बेचत बेटा-बेटकी ।।

'तुलसी' बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,

आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी ।।

शब्दार्थ-

किसबी-धंधा। कुल परिवार। बनिक व्यापारी भाट चारण, प्रशंसा करने वाला चाकर- घरेलू नौकर चपल- चंचल । चार- गुप्तचर, दूत। चटकी बाजीगर। गुनगढ़त विभिन्न कलाएँ व विधाएँ सीखना। अटत घूमता अखेटकी शिकार करना। गहन गन- घना जंगल। अहन दिन। करम-कार्य अधरम- पाप बुझाई- बुझाना, शांत करना। घनश्याम काला बादल। बड़वागितें- समुद्र की आग से आग पेट की भूख

प्रसंग-

प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कवितावली के उत्तरकांड से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास है। इस कवित्त में कवि नै तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।

व्याख्या-

तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में मजदूर, किसान वर्ग, व्यापारी, भिखारी, चारण, नौकर, चंचल नट, चोर, दूत, बाजीगर आदि पेट भरने के लिए अनेक काम करते हैं। कोई पढ़ता है, कोई अनेक तरह की कलाएँ सीखता है, कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई दिन भर गहन जंगल में शिकार की खोज में भटकता है। पेट भरने के लिए लोग छोटे-बड़े कार्य करते हैं तथा धर्म-अधर्म का विचार नहीं करते। पेट के लिए वे अपने बेटा-बेटी को भी बेचने को विवश हैं। तुलसीदास कहते हैं कि अब ऐसी आग भगवान राम रूपी बादल से ही बुझ सकती है, क्योंकि पेट की आग तो समुद्र की आग से भी भयंकर है।

विशेष-

(i) समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है।

(ii) कवित्त छंद है।

(iii) तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है।

(iv) ब्रजभाषा लालित्य है।

(v) राम घनस्याम में रूपक अलंकार तथा आगि बड़वागितें. पेट की में व्यतिरेक अलंकार है।

(vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-

'किसबी किसान कुल, भिखारी भाट चाकर चपल, चोर, चार, चेटकी, गुन, गढ़त, गहन-गन, 'अहन अखेटकी, बचत बेटा- बेटकी, बड़वागितें बड़ी

(vii) अभिधा शब्द-शक्ति है।

प्रश्न

(क) पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या अनैतिक कार्य करते हैं?

(ख) कवि ने समाज के किन-किन लोगों का वर्णन किया है? उनकी क्या परेशानी है?

(ग) कवि के अनुसार, पेट की आग कौन बुझा सकता है? यह आग कैसी है?

(घ) उन कर्मों का उल्लेख कीजिए, जिन्हें लोग पेट की आग बुझाने के लिए करते हैं ?

उत्तर-

(क) पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते है ? विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं?

(ख) कवि ने मज़दूर, किसान-कुल, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर, चोर, दूत, जादूगर आदि वर्गों का वर्णन किया है। वे भूख व गरीबी से परेशान है।

(ग) कवि के अनुसार, पेट की आग को रामरूपी घनश्याम ही बुझा सकते हैं। यह आग समुद्र की आग से भी भयंकर है। (घ) कुछ लोग पेट की आग बुझाने के लिए पढ़ते हैं तो कुछ अनेक तरह की कलाएँ सीखते हैं। कोई पर्वत पर चढ़ता है। तो कोई घने जंगल में शिकार के पीछे भागता है। इस तरह वे अनेक छोटे-बड़े काम करते हैं।

(ख) 'लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप

दोहा

1. तव प्रताप उर राखि प्रभु, जैहउँ नाथ तुरंग ।

अस कहि आयसु पाह पद, बदि चलेउ हनुमत ।

भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपार ।

मन महुँ जात सराहत, पुनि-पुनि पवनकुमार ।।

शब्दार्थ- तव तुम्हारा आपका। प्रताप यश उर-हृदय राखि रखकर । जैहऊँ जाऊँगा। नाथ स्वामी। अस- इस तरह आयसु- आज्ञा । पाह पाकर पद-चरण, पैर । बदि-वंदना करके। बहु-भुजा । सील सद्व्यवहार गुन-गुण प्रीति प्रेम अपार अधिक महुँ- में सराहंत बड़ाई करते हुए। पुनि-पुनि- फिर-फिर पवनकुमार- हनुमान।

प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित 'लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता कवि तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण के मूर्च्छित होने तथा हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने में भरत से मुलाकात का वर्णन किया गया है।

व्याख्या- हे नाथ! हे प्रभो!! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत यानी समय से वहाँ पहुँच जाऊँगा। ऐसा कहकर और भरत जी से आज्ञा लेकर एवं उनके चरणों की वेदना करके हनुमान जी चल दिए। भरत के बाहुबल, शील स्वभाव तथा प्रभु के चरणों में उनकी अपार भक्ति को मन में बार-बार सराहते हुए हनुमान संजीवनी बूटी लेकर लंका की तरफ चले जा रहे थे।

विशेष-

(i) हनुमान की भक्ति व भरत के गुणों का वर्णन हुआ है।

(ii) दोहा छंद है।

(iii) अवधी भाषा का प्रयोग है।

(iv) मन महुँ, पुनि-पुनि पवन कुमार, पाइ पद में अनुप्रास तथा पुनि-पुनि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

प्रश्न.

(क) कवि तथा कविता का नाम बताइए?

(ख) ने हनुमान ने भरत जी को क्या आश्वासन दिया?

(ग) हनुमान ने भरत से क्या कहा ?

(घ) हनुमान भरत की किस बात से प्रभावित हुए?

(ङ) हनुमान ने संकट में धैर्य नहीं खोया। वे वीर एवं धैर्यवान ये स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) कवि-तुलसीदास । कविता-लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप ।

(ख) हनुमान जी ने भरत जी को यह आश्वासन दिया कि "हे नाथ! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत संजीवनी बूटी लेकर लंका पहुँच जाऊँगा। आप निश्चित रहिए।"

(ग) हनुमान ने भरत से कहा कि "हे नाथ! मैं आपके प्रताप को मन में धारण करके तुरंत जाऊँगा।"

(घ) हनुमान भरत की रामभक्ति, शील स्वभाव व बाहुबल से प्रभावित हुए।

(ङ) मेघनाथ का बाण लगने से लक्ष्मण घायल व मूर्च्छित हो गए थे। इससे श्रीराम सहित पूरी वानर सेना शोकाकुल होकर विलाप कर रही थी। ऐसे में हनुमान ने विलाप करने की जगह धैर्य बनाए रखा और संजीवनी लेने गए। इससे स्पष्ट होता है कि हनुमान वीर और धैर्यवान थे।

लघुत्तरी प्रश्न

प्रश्न 1. किसबी, किसान कुल, बनिक..." इस कवित्त के प्रतिपाद्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- इस कवित्त से आशय है कि आर्थिक स्थिति खराब दशा में होने के कारण तथा अपनी भूख मिटाने के लिए लोग पाप कर्म करने लग गये थे। तब आम लोग श्रीराम की भक्ति को ही अपना अन्तिम सहारा मान रहे थे।

प्रश्न 2. "आगि बड़वागि तें बड़ी है आगि पेट की " तुलसी ने पेट की आग को बड़ी क्यों बताया है?

उत्तर- शरीर को चलाने हेतु पेट का भरा होना आवश्यक है और पेट भरने के लिए अनेक कर्म करने पड़ते हैं। भिखारी से लेकर बड़े-बड़े लोग भी पेट की आग शान्त करने में लगे रहते हैं। इसलिए पेट की आग को बड़वाग्नि से बड़ी कहा गया है क्योंकि बड़वाग्नि प्रयत्न द्वारा शान्त हो जाती है।

प्रश्न 3. खेती न किसान को हहा करी" कवित्त में किस स्थिति का चित्रण हुआ है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- इस कवित्त में तत्कालीन बेकारी बेरोजगारी की स्थिति का चित्रण हुआ है; क्योंकि उस समय किसान खेती से व्यापारी व्यवसाय से, भिखारी भीख और चाकर नौकरी न मिलने से परेशान थे। गरीबी रूपी रावण से सारा समाज व्यथित, दुःखी और पीड़ित था।

प्रश्न 4. "काहु की जाति बिगार न सोऊ" इससे कवि ने क्या व्यंजना की है?

उत्तर- तुलसी के युग में जाति प्रथा का बोलबाला था। ऊँची जातियों के लोग नीची जातियों से शादी सम्बन्ध या खान-पान का व्यवहार नहीं रखते थे। तुलसीदास को निम्न जाति का माना जाता था. इसलिए उन्होंने कहा कि मुझे किसी से कोई लेना-देना नहीं और मैं किसी की जाति नहीं बिगाड़ना चाहता हूँ जबकि लोग अपनी जाति की श्रेष्ठता का ध्यान रखते थे, अपनी जाति बिगड़ने नहीं देते थे।

प्रश्न 5. "माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो इससे तुलसी के विषय में क्या पता चलता है?

उत्तर- इससे तुलसी के विषय में यह पता चलता है कि वे धार्मिक कट्टरता से ग्रस्त नहीं थे और सर्वधर्म सद्भाव रखते थे। वे लोभ-लालच से रहित, स्वाभिमानी और सच्चे संन्त स्वभाव के थे। इसलिए उन्हें माँग के खाने और मस्जिद में सोने से कोई परहेज नहीं था।

प्रश्न 6. “लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम विलाप" काव्यांश के आधार पर भ्रातृ- शोक में विश्वल श्रीराम की दशा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लक्ष्मण को मूर्च्छित देखकर श्रीराम अत्यधिक विह्वल हो उठे। उस समय वे मीता सुमित्रा का ध्यान कर लक्ष्मण को अपने साथ लाने पर पछताने लगे। लक्ष्मण जैसे सेवा-भावी अनुज के अनिष्ट की आशंका से वे प्रलाप करने लगे तथा अविनाश प्रभु होने के पश्चात् भी मनुष्यों की भाँति द्रवित हो गये।

प्रश्न 7. “तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरन्त" यह किसने, कब और किस आशय से कहाँ? बताइये।

उत्तर- यह हनुमान ने भरत से कहा- संजीवनी बूटी ले जाते समय भरत ने अपने बाण से घायल हनुमान को जब अभिमन्त्रित बाण पर बिठाया, तब हनुमान ने कहाँ कि आप बड़े प्रतापी हैं, मैं आपके प्रताप का स्मरण कर तुरन्त ही लंका पहुँच जाऊँगा।

प्रश्न 8. “बोले वचन अनुज अनुसारी" इसका आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- श्रीराम परमब्रह्म के अवतार थे, वे अन्तर्यामी थे और भूत-भविष्य को जानते थे परन्तु लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर उसके अनिष्ट की शका से वे सामान्य मनुष्य की तरह विचलित होकर विलाप करने लगे थे।

प्रश्न 9. “बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं"- श्रीराम किस अपयश को सहना ठीक समझते थे?

उत्तर- श्रीराम पत्नी सीता के अपहरण को अपना अपयश मानते थे। पत्नी की रक्षा न कर सकना अपयश का कारण माना जाता है। स्त्री के कारण भाई को गँवाना भी अपयश माना जाता है। श्रीराम पत्नी हरण का अपयश सह सकते थे लेकिन भाई के वियोग का अपयश नहीं चाहते थे।

प्रश्न 10. “उतरु काह दैहउँ तेहि जाई” ऐसा किस आशय से कहा गया है?

उत्तर- श्रीराम ने लक्ष्मण के मूर्च्छित हो जाने पर कहा कि मैं माता सुमित्रा को क्या उत्तर दूंगा? लक्ष्मण की मृत्यु का समाचार उन्हें कैसे सुनाऊँगा और उनके हृदय पर तब क्या बीतेगी? मैं अपना अपराध कैसे व्यक्त कर सकूँगा?

प्रश्न 11. श्रीराम के विलाप और उसी क्षण हनुमान के आगमन से वानर सेना पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर- श्रीराम के विलाप को सुनकर सारी वानर सेना अत्यधिक व्याकुल हो गयी. परन्तु तभी संजीवनी बूटी सहित हनुमान के आगमन से सभी वानर अत्यधिक प्रसन्न और उत्साहित हो गये तथा उनमें उत्साह और वीर रस का संचार हो गया।

प्रश्न 12. रावण के अभिमानी वचन सुनकर कुम्भकर्ण ने क्या कहा?

उत्तर- रावण के अभिमानी वचन सुनकर कुम्भकर्ण ने कहा कि तुमने पाप कर्म किया है, तुम जगत् जननी सीता का अपहरण कर लाये हो और अब अपना भला चाहते हो अब तुम्हें अपनी इस दुष्टता का फल भोगना ही पड़ेगा।

प्रश्न 13. क्या तुलसी का साहित्य आज भी प्रासंगिक है?

उत्तर- तुलसी ने लगभग 450 वर्ष पहले जो कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समाज की सभी समस्याओं का चित्रण किया। इन्हीं समस्याओं के कारण तुलसी युग का समाज पूरी तरह से बिखर चुका था। उन्होंने इन सारी विद्रूपताओं को देखा और उसका चित्रण किया। जिस प्रकार की परिस्थितियाँ उस युग में विद्यमान थी ठीक वही परिस्थितियाँ आज भी विद्यमान हैं। इसीलिए तुलसीदास का साहित्य आज भी प्रासंगिक है।

प्रश्न 14. तुलसी की काव्य भाषा के बारे में बताइए ।

उत्तर- तुलसी ने मुख्य रूप से अवधी भाषा का प्रयोग किया है। उस युग में इसी भाषा का प्रचलन था। लोगों के बीच इसी व्यवहार की भाषा प्रचलित थी। इसीलिए तुलसी ने इस लोक व्यवहार की भाषा का प्रयोग किया है।

प्रश्न 15. तुलसीदास की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- तुलसीदास के काव्य में कई अलंकारों का प्रयोग हुआ है। उन्होंने मुख्य रूप से उपमा, अनुप्रास, रूपक, अतिश्योक्ति, वीरता आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। इन अलंकारों के प्रयोग से भाषा में चमत्कार उत्पन्न हुआ है। वह अधिक प्रभावी बन गई है।

प्रश्न 16. तुलसी की छंद योजना कैसी है?

उत्तर- तुलसी ने दोहे और चौपाई छंद का प्रयोग प्रमुखता से किया है। उन्होंने अपने सारे काव्यों में इन्हीं छंदों का प्रयोग किया। इनका प्रयोग करके तुलसी ने अपनी बात को अधिक स्पष्ट ढंग से कह दिया है। तुलसी की चौपाइयाँ इतनी सरल और प्रभावी बन पड़ी हैं कि लोग आज भी इनका काव्य पाठ करते हैं। तुलसी ने कहीं- कहीं हरिगीतिका छंद का प्रयोग भी किया है, लेकिन न्यून मात्रा में। लेकिन बहुलता दोहा और चौपाई छंदों की ही रही है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. कवितावली किसकी रचना है ?

क. वाल्मीकि

ख. तुलसीदास

ग. कबीरदास

घ. सूरदास

2. संसार के सभी लोग काम क्यों करते हैं?

क. पेट भरने के लिए

ख. आनंद के लिए घ.

ग. खेल के लिए

घ. ईश्वर को प्रसन्न करने के

3. किस बला के लिए लोग दर-दर ठोकरें खाते-फिरते हैं?

क. मुँह की

ख. हाथ की

ग. दिमाग की

घ. पेट की

4. किस की कृपा से भूख के लिए भटकते लोगों को शांति मिल सकती है ?

क. इंसान की कृपा से

ख. शैतान की कृपा से

ग. राम की कृपा से

घ. देव की कृपा से

5. समाज में चारों ओर किसका बोल-बाला है?

क. प्रेम और भाईचारे का

ख. गरीबी और बेकारी

ग. घृणा और लड़ाई का

घ. अमीरी और रोजगारी का

6. संपूर्ण समाज को गरीबी ने किस रूप में घेर रखा है?

क. रावण

ख. दानव

ग. शैतान

घ. राक्षस

7. वेदों और पुराणों के अनुसार संकट के समय कौन सहायता करता है ?

क. नेता लोग

ख. अफ़सर

ग. देवता

घ. प्रभुराम

8. लक्ष्मण के जीवित होने की खबर सुन कर रावण किस के पास गया ?

क. मेघनाथ

ख. विभीषण

ग. कुंभकरण

घ. सुषेण

9. 'अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ काव्यांश में किस पात्र के न आने का वर्णन है?

क. सुग्रीव

ख. मयंद

ग. अंगद

घ. हनुमान

10. 'कवितावली उत्तरकांड से में कौन-सा छंद है?

क. दोहा

ख. चौपाई

ग. सवैया

घ. कवित्त

11. हनुमान राम जी से क्या लाने की आज्ञा माँगते हैं?

क. सीता

ख. संजीवनी बूटी

ग. प्राणनाशक बूटी

घ. जीवनदायिनी बूटी

12. राम जी के एकनिष्ठ भक्त कौन थे?

क. सुग्रीव

ख. जामवंत

ग. नील

घ. हनुमान

13. 'लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप में किस भाषा का प्रयोग हुआ है ?

क. ब्रज

ख. हिंदी

ग. अवधी

घ. संस्कृत

14. नारि हानि विशेष छति नाहीं' यहाँ 'छति' का अर्थ है ?

क. छाता

ख. छत

ग. लाभ

घ. हानि

15. 'जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्पान यह पंक्ति किसने कही ?

क. राम

ख. लक्ष्मण

ग. कुंभकर्ण

घ. रावण

16. लक्ष्मण कहाँ मूर्च्छित हुए थे?

क. घर में

ख. बाज़ार में

ग. युद्ध में

घ. उपवन में

17. लक्ष्मण ने राम जी के लिए किस चीज़ का त्याग किया ?

क. सब दुखों का

ख. सब सुखों का

ग. सारे धन का

घ. सभी तरह के भोजन का

18. लक्ष्मण की दशा देखकर साधारण मानव की तरह कौन विलाप करने लगा ?

क. हनुमान

ख. सीता

ग. सुग्रीव

घ. राम

19. संसार में पुनः क्या नहीं मिलता?

क. वनवास

ख. घर

ग. सहोदर भाई

घ. संपदा

20. श्रीराम ने लक्ष्मण को हृदय से लगाया तो कौन हर्षित हुए ?

क. हनुमान

ख. सुषेण वैद

ग. भालू-कपि-‍-समूह

घ. लक्ष्मण

21. 'उमा एक अखंड रघुराई' पंक्ति में 'उमा' शब्द का क्या अर्थ है ?

क. शची

ख. उर्वशी

ग. शारदा

घ. पार्वती

JCERT/JAC Hindi Core प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

आरोह भाग -2

काव्य - खंड

1.

हरिवंशराय बच्चन -आत्मपरिचय ,एक गीत

2.

आलोक धन्वा-पतंग

3.

कुँवर नारायण-कविता के बहाने,बात सीधी थी पर

4.

रघुवीर सहाय-कैमरे में बंद अपाहिज

5.

गजानन माधव मुक्तिबोध-सहर्ष स्वीकारा है

6.

शमशेर बहादुर सिंह-उषा

7.

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'-बादल राग

8.

तुलसीदास-कवितावली (उत्तर कांड से),लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप

9.

फिराक गोरखपुरी-रुबाइयाँ,गज़ल

10.

उमाशंकर जोशी-छोटा मेरा खेत,बगुलों के पंख

11.

महादेवी वर्मा-भक्तिन

गद्य - खंड

12.

जैनेन्द्र कुमार-बाज़ार दर्शन

13.

धर्मवीर भारती-काले मेघा पानी दे

14.

फणीश्वरनाथ रेणु-पहलवान की ढोलक

15.

विष्णु खरे-चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

16.

रज़िया सज्जाद ज़हीर-नमक

17.

हजारी प्रसाद द्विवेदी-शिरीष के फूल

18.

बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर-श्रम विभाजन और जाति-प्रथा,मेरी कल्पना का आदर्श समाज

वितान भाग- 2

1.

मनोहर श्याम जोशी -सिल्वर वैडिंग

2.

आनंद यादव- जूझ

3.

ओम थानवी- अतीत में दबे पाँव

4.

ऐन फ्रैंक- डायरी के पन्ने

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

अनुच्छेद लेखन

2.

कार्यालयी पत्र

3.

जनसंचार माध्यम

4.

संपादकीय लेखन

5.

रिपोर्ट लेखन

6.

आलेख लेखन

7.

पुस्तक समीक्षा

8.

फीचर लेखन

Solved Paper 2023

Arts Paper,

Science/Commerce Paper

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