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इष्टतम बजट का निर्माण (Formulation of Optimal Budget)

इष्टतम बजट का निर्माण (Formulation of Optimal Budget)

इष्टतम बजट का निर्माण (Formulation of Optimal Budget)

इष्टतम बजट का निर्माण (Formulation of Optimal Budget)

सरकार के आय-व्यय का कार्यक्रम बजट कहलाता है। इष्टतम बजट कुछ आदर्श स्थापित करता है जिसके आधार पर वास्तविक बजट में संशोधन किए जा सकते हैं। बजट के तीन उद्देश्य होते हैं-

(अ) संसाधनों का आवंटन (Allocation of Resources) - संसाधनों का विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में इस प्रकार आवंटन किया जाए जिससे कि कुछ आर्थिक कल्याण अधिकतम प्राप्त हो सके।

(ब) राष्ट्रीय आय का वितरण (Distribution of National Income) - राष्ट्रीय आय का वितरण इस तरह से किया जाए कि उससे समाज को प्राप्त होने वाली कुल सन्तुष्टि अधिकतम की जा सके।

(स) स्थिरीकरण (Stabilization) - स्थिरीकरण के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था में उत्पन्न होने वाले उच्चावचनों से बचने के लिए प्रभावपूर्ण माँग एवं राष्ट्रीय आध की मात्रा के उस स्तर को निरन्तर बनाए रखा जाता है जिससे पूर्ण रोजगार की अवस्था बनी रहे।

ये तीनों उद्देश्य बजट की तीनों शाखाओं- आवंटन शाखा, वितरण शाखा एवं स्थिरीकरण शाखा के माध्यम से आधुनिक प्रजातान्त्रिक प्रणाली पर आधारित सरकारों के द्वारा एक साथ प्राप्त करना आवश्यक होता है। इन तीनों शाखाओं के कार्यों का विवेचन इस प्रकार है-

1. आवंटन शाखा में बजट (Budget in Allocation Branch) - बजट की आवंटन शाखा की मुख्य समस्या यह है कि सामाजिक सुविधाएँ, जिनका कोई बाजार नहीं होता है, के लिए कितने साधन आवंटित किए जाएँ। ये सुविधाएँ हैं- सुरक्षा, बाढ़, नियन्त्रण, राष्ट्रीय राजमार्ग आदि। करारोपण के क्या सिद्धान्त होने चाहिए, जिससे सामाजिक सुविधाओं की लागत उचित ढंग से व्यक्तियों में बँट जाए। सामाजिक सुविधाओं के लिए सर्वोत्तम ढंग से संसाधन आवंटन एवं व्यक्तियों के कर हिस्सों के वितरण के लिए सरकार को सामाजिक सुविधाओं के प्रति उपभोक्ताओं की सही रुचियाँ जाननी चाहिए। सामाजिक सुविधाओं के लिए उपभोक्ताओं की सही पसन्द जानना आसान बात नहीं है।

यदि सामाजिक सुविधाओं की सही पसन्द निर्धारित नहीं होती तब किए गए प्रयत्नों की सफलता सीमित ही रह जाती है। यह आवश्यक नहीं है कि समुदाय को प्राप्त होने वाला आर्थिक कल्याण अधिकतम हो। अधिमान का निर्धारण न होने पर सरकारी व्यय तथा करारोपण में भी लाभ के सिद्धान्त का प्रतिपालन सही ढंग से लागू नहीं हो सकेगा। करारोपण के समान त्याग सिद्धान्त की सफलता भी सीमित ही रहेगी तथा सीमान्त सामाजिक लाभ एवं सीमान्त सामाजिक लागत का सिद्धान्त सही अधिमान के निर्धारण के अभाव में पूर्णरूप में लागू नहीं हो सकेगा क्योंकि करारोपण के लाभ का सिद्धान्त समान त्याग या भुगतान की योग्यता सिद्धान्त एवं सीमान्त सामाजिक लाभ और सीमान्त सामाजिक लागत का सिद्धान्त सही पसन्द अर्थात् अधिमानों (Preferences) के अभाव में पूर्णरूप से सफल नहीं हो पाते हैं।

प्रो. मसग्रेव ने सामाजिक वस्तुओं के प्रति उपभोक्ताओं की पसन्द जानने के लिए राजनीतिक मतदान क्रिया (Political Process of Voting) को सही तरीका माना है। मतदान क्रिया के आधार पर सामाजिक वस्तुओं के प्रति उपभोक्ताओं की पसन्द को नहीं जाना जा सकता है। प्रो. ऐरो (Arrow) का मत है कि मतदान से सही पसन्द को नहीं जाना जा सकता है। यदि उपभोक्ता की पसन्द का नमूना बहु-बिन्दु (Multiple Peaked) है तो सही पसन्दों को निकलाना सम्भव है। माना कि तीन व्यक्तियों A, B, एवं C के समुदाय के तीन विकल्प हैं- (1) बड़ा बजट, (II) मध्यम बजट तथा (III) छोटा बजट और उपभोक्ताओं की पसन्द का नमूना इस प्रकार है-

A की पसन्द का नमूना I > II > III

B की पसन्द का नमूना II > III > I

C की पसन्द का नमूना III > I > II

(यहाँ पर चिह्न > अच्छी अवस्था को प्रकट करता है।)

इस प्रकार A की पसन्द के अनुसार सबसे अच्छा बजट, छोटा बजट होता है, B की पसन्द के अनुसार सबसे अच्छा बजट बड़ा होता है तथा C की पसन्द के अनुसार सबसे अच्छा बजट मध्यम बजट होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उपभोक्ताओं की पसन्द एक जैसी नहीं है अतः सरकार को यह ज्ञात नहीं हो सकता है कि समाज बड़ा बजट, मध्यम बजट अथवा छोटे बजट में से किसको पसन्द करता है, परन्तु प्रो. मसग्रेव का मत है कि मतदान के द्वारा यद्यपि सही पसन्द प्राप्त नहीं होती है, किन्तु यह अनुमान तो अवश्य ही लगाया जा सकता है कि सामान्यतः समाज की धारणा क्या है? मसग्रेव दो प्रकार के मतदान की व्याख्या करता है- (i) बहुमत आधारित मतदान (Majority based voting), (ii) लिंग आधारित मतदान (Plurality based voting)। इनमें से Plurality based voting उत्तम है क्योंकि इस प्रक्रिया में विभिन्न विकल्पों को श्रेणी (Ranking) दी जाती है।

आवंटन शाखा में बजट का निर्धारण ठीक उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार कि पूर्ण प्रतियोगिता में निजी उत्पादक अपने सर्वोत्तम उत्पादन का निर्धारण करते हैं। सरकार द्वारा सामाजिक सुविधाओं को उस मात्रा तक प्रदान करना चाहिए जहाँ पर कि व्यक्तियों की सामाजिक सुविधाओं के लिए समग्र माँग की पूर्ति बराबर हो जाए। इसी प्रकार आवंटन शाखा के बजट में व्यक्तियों की करदेयता का भी निर्धारण हो जाता है जो व्यक्ति सामाजिक सुविधाओं के लिए अधिक पसन्द देता है उसकी करदेयता भी अधिक होती है। जो कम पसन्द देता है उसकी करदेयता भी कम होती है। इस प्रकार आवंटन शाखा के बजट में समाज को अधिक से अधिक आर्थिक कल्याण पहुँचाने का प्रयत्न किया जाता है।

2. वितरण शाखा में बजट (Budget in Distribution Branch)- बजट की वितरण शाखा का मुख्य कार्य सरकारी आय-व्यय कार्यक्रम को इस प्रकार से समायोजित करना है कि आर्थिक कल्याण का आदर्श वितरण सम्भव हो सके। यहाँ पर आर्थिक कल्याण के आदर्श वितरण से तात्पर्य मनुष्यों के मध्य कल्याण के समान वितरण से है, परन्तु समानता का अर्थ यहाँ पर भी स्पष्ट नहीं किया गया है क्योंकि

समानताएँ कई प्रकार की होती हैं, जैसे-आय की समानता, कल्याण की समानता, अवसरों की समानता आदि। इन सब समानताओं के लिए एक ही प्रकार की नीति की आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरण के लिए, आय की समानता एवं कल्याण की समानता के लिए एक बजट नीति काम आ सकती है। जबकि एक दी हुई आय से सब व्यक्ति समान कल्याण प्राप्त करने की स्थिति में हों, यह कभी सम्भव नहीं हो सकता। आय के आर्थिक कल्याण प्राप्त करने की क्षमताएँ भिन्न नहीं होती, वरन् कभी-कभी आय-व्यय प्रक्रिया भी आय की असमानताएँ उत्पन्न कर देती है अतः ऐसा कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है जिसके आधार पर उपयोगिताओं की अन्तर-व्यक्तीय तुलना सम्भव हो सके। इसलिए कल्याण की समानता या अवसरों की समानता का प्रयत्न करना निरर्थक होगा अतः वितरण शाखा में बजट-नीति का उद्देश्य आय की समानता लाना होता है।

(iii) स्थिरीकरण शाखा में बजट (Budget in Stabilisation)-स्थिरीकरण शाखा में बजट का उद्देश्य बिना मुद्रा-प्रसार या मुद्रा-संकुचन के पूर्ण रोजगार की व्यवस्था को प्राप्त करना होता है। जब पूर्ण रोजगार प्राप्त करने में निजी विनियोग, उपभोग एवं विदेशी सन्तुलन अपर्याप्त रहते हैं, तब सरकार को अपना व्यय बढ़ाना चाहिए अथवा निजी विनियोगकर्ताओं को विनियोग बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। एक समय के दौरान तथा एक समय पर पूर्ण रोजगार प्राप्त करने की समस्या भिन्न-भिन्न होती है। एक समय में निजी और सार्बजनिक विनियोग बढाकर उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है जिससे पूर्ण रोजगार प्राप्त किया जा सकता है। इस अवधि में सार्वजनिक एवं निजी विनियोग केवल बढ़ना ही नहीं चाहिए वरन् पर्याप्त दर पर बढ़ी हुई क्षमता को सोखना (Absorb) भो चाहिए।

उप-बजटों का एकीकरण (Integration of Sub-bridgcts) - तीनों उप-बजटों को मिलाकर एक व्यापक बजट बनाया जाता है, जो सरकार द्वारा बढ़ाई गई आय और किए गए व्ययों की सूचना प्रदान करता है।

मसग्रेव का इष्टतम बजट मॉडल (Musgrave's Optimal Budget Model)

इष्टतम बजट बनाना अत्यन्त कठिन कार्य होता है क्योंकि व्यापक बजट बनाने से पूर्व बजट को तीन उप-बजटों में विभक्त करना होता है। इसमें आवंटन शाखा, वितरण शाखा तथा स्थिरीकरण शाखा में बजट का निर्माण करना होता है। इस बजट का निर्माण सर्वप्रथम प्रो. मसग्रेव ने किया था। इसी कारण से इष्टतम बजट को मसग्रेव का इष्टतम बजट मॉडल भी कहते हैं। प्रो. मसग्रैव ने तीनों उप-बजटों के निर्माण के लिए जो मान्यताएँ निर्धारित कीं, वे इस प्रकार हैं (1) अर्थव्यवस्था में दो ही करदाता हैं। (2) एक ही प्रकार की सामाजिक सेवा प्रदान की जा रही है।

आवंटन शाखा, वितरण शाखा एवं स्थिरीकरण शाखा के व्यवस्थापक अपनी-अपनी शाखा के बजटों का निर्माण जिन मान्यताओं को लेकर करेंगे, वे इस ऽकार हैं-

(अ) आवंटन शाखा में बजट-निर्माण- आवंटन शाखा में बजट-निर्माण करते समय इन तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) समाज का निर्माण दो व्यक्तियो X तथा Y से हुआ है। आवंटन शाखा में बजट सन्तुलित होना चाहिए। सरकारी व्यय की राशि और X व Y व्यक्तियों से प्राप्त कर-राशि की मात्रा बराबर होनी चाहिए।

(ii) आवंटन शाखा के बजट में व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला कर का भुगतान, X व्यक्ति की शुद्ध कमाई का परिणाम है। X व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले करों का मूल्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कितनी मात्रा में सामाजिक वस्तुओं का उपभोग करता है। यदि X व्यक्ति सामाजिक वस्तुओं से अधिक उपयोगिता प्राप्त करता है तो उसकी करदेयता भी अधिक होगी।

(iii) आवंटन शाखा के बजट में व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला भुगतान Y व्यक्ति की शुद्ध कमाई पर निर्भर करेगा। Y व्यक्ति द्वारा सामाजिक वस्तुओं से अधिक उपयोगिता प्राप्त की गई है तो उसकी करदेयता भी अधिक होगी।

(iv) बजट आवंटन शाखा के द्वारा X व्यक्ति को प्रदान की गई सामाजिक वस्तुओं एवं बाजार द्वारा प्रदान की गई निजी वस्तुओं की कीमतों का अनुपात, वस्तुओं की लागत एवं X एवं Y व्यक्तियों द्वारा किए गए करों के भुगतान के अनुगात पर निर्भर करता है।

(v) बजट की आवंटन शाखा के द्वारा Y व्यक्ति को प्रदान की गई सामाजिक वस्तुओं एवं बाजार द्वारा प्रदान की गई निजी वस्तुओं की कीमतों का अनुपात, उन वस्तुओं की लागत एवं Y तथा X व्यक्तियों द्वारा किए गए कर भुगतान के अनुपातों का परिणाम या फलन है।

(ब) वितरण शाखा में बजट निर्माण- वितरण शाखा में बजट का निर्माण करते हुए इन तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) X व्यक्ति की आय, सरकार एवं निजी उपभोक्ताओं को बेची जाने वाली वस्तुओं से प्राप्त आय का योग होती है।

(ii) Y व्यक्ति की आय, पूर्ण रोजगार की अवस्था में राष्ट्रीय आय में से X की आय घटाकर जो शेष बच्चता है, उसके बराबर होती है।

(iii) वितरण शाखा में भी बजट सन्तुलित होना चाहिए अतः Y व्यक्ति द्वारा प्राप्त किये गये हस्तान्तरण भुगतान और X व्यक्ति द्वारा की गई कर भुगतान की राशि बराबर होनी चाहिए।

(iv) वितरण शाखा X व्यक्ति की आय, कुल आय के उचित अनुपात में होनी बाहिए।

(स) स्थिरीकरण शाखा में बजट निर्माण- स्थिरीकरण शाखा में बजट का निर्माण करते सभय इन तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) पूर्ण रोजगार की अवस्था में, कुल राष्ट्रीय आय (Q), उपभोग (C) विनियोग (I) तथा सरकारी व्यय (G) के बराबर होती है अर्थात्- Q = C + I + G

(ii) कुल निजी उपभोग (C), X तथा Y व्यक्तियों द्वारा किए गए कुल उपभोग (Cx + Cy) की मात्रा के बराबर होता है;

(iii) X व्यक्ति का उपभोग, उसकी आथ एवं सामाजिक और निजी वस्तुओं की कीमत अनुपात का फलन है।

(iv) Y व्यक्ति का उपभोग भी उसकी आय एवं सामाजिक और निजी वस्तुओं की कीमत अनुपात पर निर्भर करता है;

(v) स्थिरीकरण शाखा में X व्यक्ति द्वारा किए गए करों का भुगतान उसकी 'उचित करदेयता' के अनुकूल होना चाहिए।

प्रो. मसग्रेव ने इन सभी मान्यताओं को निम्नांकित समीकरणों द्वारा स्पष्ट किया है-

आवंटन शाखा

G = Tax = Tay --------(1)

Tax=Tax[Ex-Tay-Txy,PaxPp] ----(2)

Tay=Tay[Ey-Tay-Try,PaxPp] ----(3)

PaxPp=PaxPp[Ua-Up,TaxYay]----(4)

PayPp=PayPp[Ua-Up,TaxYay]----(5)

वितरण शाखा

Ex = (C + I) + (m + v) – G ------(6)

Ey = Q - Ex --------(7)

Ex = Tax = -j (Ex + Ey )------(8)

Tdx = -Tdy ------(9)

स्थिरीकरण शाखा

Q = C + I + G ------- (10)

C = Cx + Cy --------(11)

Cx=Cx[Ex-Tax-Txy,PaxPp] ---(12)

Cy=Cy[Ey-Tay-Try,PaxPp] ---(13)

Trx = -j(Trx + Try )------(14)

यहां पर

Q = पूर्ण रोजगार आय

I = निजी निवेश पर व्यय

Ua = आवंटन शाखा में दी जाने वाली वस्तुओं की लागत

Up = निजी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रदत वस्तुओं की लागत

m = X द्वारा निजी खरीददारों को बिक्री से प्राप्त आय का अंश

v = X द्वारा राज्य को बिक्री से प्राप्त आय का अंश

J = आय का वह अंश जो X को उपयुक्त वितरण के अन्तर्गत मिलेगा

E = उत्पादन के करों की आय

C = कुल निजी उपभोग

G = वस्तुओं एवं सेवाओं पर आवंटन शाखा का व्यय

T = कर भुगतान (+) अथवा अन्तरण भुगतान (-)

B = बजट सन्तुलन, अधिशेष (+) व घाटा (-)

Pp = निजी रूप में क्रय की गई वस्तुओं की कीमत

Pax =X के लिए आवंटन शाखा की वस्तुओं की कीमत

Pay = Y के लिए आवंटन शाखा की वस्तुओं की कीमत

के लिए आवंटन शाखा की वस्तुओं की कीमत

a = आवंटन शाखा में

d = वितरण शाखा में

r = स्थिरीकरण शाखा में

X = X व्यक्ति

Y = Y व्यक्ति

n = निबल बजट (Net Budget)

इस प्रकार तीनों उप-बजटों के निर्धारण के बाद सभी करों एवं अन्तरणों का योग करने पर हमें निम्नांकित तीन समीकरण प्राप्त होंगे-

Tpx =Tax +Tdx +Trx -------(15)

Tny =Tay +Tdy +Try -------(16)

Tnx =Tay – G = B --------(17)

इन तीनों समीकरणों से हमें संकलित बजट प्राप्त होगा। यहाँ पर समीकरण (15) X व्यक्ति द्वारा तीनों शाखाओं में किए गए भुगतानों के योग को प्रकट करता है। समीकरण (16) Y व्यक्ति द्वारा तीनों

शाखाओं में किए गए कर भुगतानों के योग को प्रकट करता है तथा समीकरण (17) X तथा Y व्यक्तियों द्वारा किए गए कुल भुगतानों को प्रकट करता है। यहाँ पर बजट (B) आधिक्य, सन्तुलन अथवा घाटा तीनों ही प्रकार का हो सकता है। सन्तुलित बजट में कुल कर आय और सरकारी व्यय बराबर होता है, अर्थात ET = Tnx + Tny = G होता है। घाटा बजट में सरकारी व्यय से कर आय कम होती है अर्थात् G>ET होता है। आधिक्य बजट में कर आय सरकारी व्यय से अधिक होती है अर्थात् ET>G होता है। आवंटन शाखा एवं वितरण शाखा में बजट हमेशा सन्तुलित रहता है। कुल बजट यदि असन्तुलित होता है तो इसका अर्थ यह है कि स्थिरीकरण शाखा के बजट में किसी प्रकार का असन्तुलन है।

व्यावहारिक समस्याएँ- उपरोक्त विधि से यदि इष्टतम बजट का निर्माण किया जाता है तो दो व्यावहारिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं-

1. सरकार सामाजिक सुविधाएँ प्रदान करती है तो इसका अर्थ यह नहीं कि सरकार स्वयं इन सुविधाओं का उत्पादन करे। सुरक्षा के लिए साज-सज्जा के साधन राज्य भी प्रदान कर सकता है तथा निजी उत्पादकों से भी प्राप्त किये जा सकते हैं। यदि सरकार सामाजिक सुविधाओं का उत्पादन करने की सोचती है तो उसे शीघ्र अतिरिक्त आर्थिक निर्णय लने होंगे।

2. बजट की आवंटन शाखा साधनों का सामाजिक सुविधाओं (सुरक्षा, शिक्षा, राष्ट्रीय राजमार्ग आदि का निर्माण) में आवंटन करने का निर्णय ले लेती है। यहाँ पर यह भी निर्णय लेना पड़ेगा कि किस माध्यम से साधनों को व्यय कराया जाए और सामाजिक सुविधाएँ प्रदान कराई जाएँ, अतः इसके लिए कोई उचित तर्क नहीं दिया जा सकत। है क्योंकि सामाजिक सुविधाओं का उत्पादन एवं पूर्ति का कार्य राज्य एवं निजी संस्थाएँ दोनों ही कर सकती हैं।

आलोचना- मसग्रेव के इष्टतम बजट मॉडल को व्यावहारिक रूप से लागू करने में कई कठिनाइयाँ आती हैं, अतः इसकी आलोचना की गई है, जो इस प्रकार हैं-

1 . एक व्यवस्था में पूर्ण रोजगार आय की मान्यता को माना गया है, जो सही नहीं है।

2. एक संघीय वित्त-व्यवस्था में इष्टतम बजट प्रणाली का क्रियान्वयन और कठिन हो जाता है, क्योंकि यहाँ पर प्रत्येक उप-बजट को पहले राज्य के बजट से समायोजित करना होता है तत्पश्चात् राज्य के बजट को केन्द्र के अनुसार समायोजित करना होता है, अतः संघीय वित्त प्रणाली के अन्तर्गत इष्टतम बजट-व्यवस्था का क्रियान्वयन सरल नहीं है।

3. इष्टतम बजट तन्त्र अर्थव्यवस्था के कुछ समष्टि चरों के आधार पर कार्य करता है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में जहाँ पर सांडिलवीय संस्थानों का पूर्ण विकास नहीं हो पाया है। जहाँ पर आवश्यक समष्टि चरों के सही आँकड़े उपलब्ध नहीं हो पाते हैं वहाँ पर इसका क्रियान्वयन कठिन होता है।

4. विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में जहाँ पर आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है वहाँ पर स्थिरीकरण पर अधिक बल दिय जाना सम्भव नहीं होता है। वास्तव में इन देशों के लिए आर्थिक विकास के लिए स्थिरता की अवसः लागत बड़ी ऊँची होती है। ये देश यदि स्थिरता पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लेंगे तो आर्थिक विकास की दर कम होगी अतः इष्टतम नजट-व्यवस्था की तीसरी शाखा इन देशों के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है।

वैगनर का इष्टतम बजट Wagner's Optimal Budget)

इष्टतम बजट मॉडल प्रो. मसग्रेब के अतिरिक्त जर्मन अर्थशास्त्री बैगनर (Wagner) ने भी प्रस्तुत किया है। वैगनर ने यह मॉडल प्रस्तुत करने में यह मान्यता रखी कि इष्टतम बजट बनाने में आर्थिक विकास का ध्यान रखना होता है। इस आर्थिक एकास से सरकारी व्यय में वृद्धि होती है। सार्वजनिक व्यय का उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। उत्पादन बढ़ने के सकल राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। उपभोक्ता अपनी आय सीमा बढ़ने से व्यय अधिक करने में सक्षम होता है। इस प्रकार वैगनर के इष्टतम बजट मॉडल में-उत्पादन, वितरण, उपभोग तीनों आर्थिक स्थितियों का ध्यान रखते हुए बजेट का निर्माण किया जाता है।

वैगनर ने इन तीनों स्थितियों के तीन प्रभाव बताने हैं-

(1) सार्वजनिक संस्थान कार्य करने में निजी संस्थानों की तुलना में उत्तम होते हैं।

(2) इष्टतम बजट में सार्वजनिक व्यय से लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग को मिलता है। इस बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं का लाभ कमजोर दुर्ग भी उठाता है।

(3) राज्य के कार्य क्षेत्र में वृद्धि होने से सार्वजनिक व्यय में वृद्धि हो जाती है।

उनके अनुसार इसके इष्टतम बजट में आय की लोच उत्पादन की इकाई से अधिक होती है। इस प्रकार यह वैगनर का इष्टतम बजट सार्वजनिक व्यय, उत्पादन एवं वितरण के रूप में उपभोक्ता को अधिकतम लाभ पहुँचाता है। इसलिए इसे अनुकूलतम या इष्टतम बजट कहते हैं।

वैगनर का इष्टतम बजट एक प्रकार से मसग्रेब के अनुकूलतम बजट मॉडल का ही परिवर्तित रूप है। इसमें अन्तर केबल आर्थिक बिन्दुओं का है। मसग्रेव ने बजट निर्माण में आवंटन शाखा, वितरण शाखा तथा स्थिरीकरण शाखा में बजट निर्माण को मौलिक धारशा माना जबकि बैगनर ने इसे सार्वजनिक व्यय, सार्बजनिक उत्पादन-वितरण एवं सार्वजनिक उपभोग के रूप में धारणाओं पर आधारित इष्टतम बजट निर्माण के रूप में मॉडल प्रस्तुत किया। इन दोनों की मान्यताओं में भी विशेष अन्तर नहीं है।

रोजगार स्थायित्व (Employment Stability)

रोजगार स्थायित्व अर्थव्यवस्था का उत्तम लक्षण है। आर्थिक अस्थिरता (तेजी-मन्दी) स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था में सभी देशों में व्याप्त रहती है। इसका प्रभाव बेरोजगारी फैलाता है। अर्थव्यवस्था में सामाजिक कल्याण, आर्थिक उतार-चढ़ाव को समाप्त कर, किया जा सकता है। राजकोषीय व्यवस्था द्वारा रोजगार के ऊँचे स्तर बनाये रखे जाते हैं। सार्वजनिक विकास के कार्य, निर्माण कार्य आदि से राजकीय व्यय में वृद्धि कर सरकार अधिकतम रोजगार उपलब्ध कराती है। इससे मन्दी का प्रभाव कम हो जाता है। उत्तम रोजगार से माँग में वृद्धि होती है, व्यावसायिक स्थिति स्थिर बनी रहती है। इसे रोजगार स्थायित्व कहते हैं। मुद्रा स्फीति की अवस्था में, राजकीय ऋण तथा उच्च कराधान द्वारा मूल्यों पर नियन्त्रण रखा जाता है। रोजगार स्थायित्व को पूर्ण रोजगार के नाम से जाना जाता है। यद्यपि स्थिरीकरण भी आर्थिक विकास के साथ आवश्यक होता है, परन्तु प्राथमिक महत्त्व अधिक विकास को देना पड़ता है।

अतः कहा जा सकता है कि इष्टतम बजट प्रणाली का नैद्धान्तिक मॉडल के रूप में महत्त्व है, परन्तु जहाँ तक इसकी व्यावहारिकता का प्रश्न है अर्थव्यवस्थाओं की संरचना के अनुसार इस प्रणाली का महत्त्व होगा। विकसित देशों के लिए यह व्यवस्था उपयुक्त है, किन्तु विकासशील देशों के लिए यह व्यवस्था अधिक व्यावहारिक नहीं जान पड़ती है।

 Public finance (लोक वित्त)

लोक वित्त का अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र, प्रकृति एवं महत्व

सार्वजनिक व्यय (PUBLIC EXPENDITURE)

सार्वजनिक व्यय - नियम तथा वर्गीकरण (PUBLIC EXPENDITURE - CANONS AND CLASSIFICATION) 

सार्वजनिक व्यय के प्रभाव (EFFECTS OF PUBLIC EXPENDITURE)

सार्वजनिक ऋण (Public Debt)

भारतीय सार्वजनिक ऋण (Public Debt in India)

राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)

शून्य आधारित बजट (Zero Based Budget)

संतुलित बजट गुणक (Balanced Budget Multiplier)

इष्टतम बजट का निर्माण (Formulation of Optimal Budget)

मूल्यवर्धन कर (Value Added Tax-VAT)

वाईजमन - पीकॉक सिद्धांत (Wisemar-peacock Hypothesis)

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