झारखण्ड
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, राँची
वार्षिक
माध्यमिक परीक्षा
(2023-2024)
Model
Question Paper
कक्षा-12 |
विषय-
इतिहास |
समय-
3:00 घंटा |
पूर्णांक-80 |
सामान्य
निर्देश:-
•
परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें।
•
सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
•
कुल प्रश्नों की संख्या 52 है।
•
प्रश्न 1 से 30 तक बहुविकल्पिय प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प दिए गए हैं।
सही
विकल्प
का चयन कीजिये। प्रत्येक प्रश्न के लिए 01 अंक निर्धारित है।
•
प्रश्न संख्या 31 से 38 तक अति लघु उत्तरीय प्रश्न है। जिसमे से किन्ही 6 प्रश्नों
का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
•
प्रश्न संख्या 39 से 46 तक लघु उत्तरीय प्रश्न है। जिसमे
से किन्ही 6 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक
निर्धारित है।
•
प्रश्न संख्या 47 से 52 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न है।
किन्हीं 4 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक
निर्धारित है।
1. निम्न में से कौन सा स्थल रावी नदी के किनारे विकसित हुआ हैं?
a.
मोहनजोदड़ो
b.
कोटदीजी
c.
कालीबंगा
d. हड़प्पा
2. हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?
a. मोहनजोदड़ो
b.
हड़प्पा
c.
कालीबंगा
d.
लोथल
3. सिंधु घाटी सभ्यता में एकमात्र बंदरगाह कहां स्थित है?
a.
वनवाली
b. लोथल
c.
मोहनजोदड़ो
d.
कालीबंगा
4. बौद्ध साहित्य के अनुसार भारत में कितने महाजनपदों का विकास हुआ
था?
a.16
b.
22
c.12
d.
07
5. दक्षिण भारत में स्थित भारत का एकमात्र महाजनपद कौन सा था?
a.
कंबोज
b.
कौशल
c. अस्मक
d.
काशी
6. अशोक के अभिलेख को सर्वप्रथम किसने पढ़ा?
a.
जॉन मार्शल
b.
कनिंघम
c. जेम्स प्रिंसेप
d.
अर्नेस्ट मैके
7. इंडिका किसकी रचना हैं?
a. मेगास्थनीज
b.
कालीदास
c.
प्लिनी
d.
चाणक्य
8. महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में कितने दिनों तक चला?
a.
28
b.18
c.
08
d.10
9. स्तुप किस धर्म से संबंधित है?
a.
शैव धर्म
b.
वैष्णो धर्म
c.
जैन धर्म
d. बौद्ध धर्म
10. महावीर स्वामी का जन्म कहां हुआ है?
a.
लुंबिनी
b. कुंड ग्राम
c.
कौशल
d.
पावापुरी
11. मुक्ति दाता की कल्पना बौद्ध धर्म की किस शाखा में की गई?
a.
हीनयान
b.
थेरवाद
c. महायान
d.
इनमें से कोई नही
12. पुराणों की संख्या कितनी है?
a.10
b.12
c.17
d.18
13. अलबरूनी किस भाषा का जानकारी नहीं था?
a.
सीरियाई भाषा
b.
फारसी भाषा
c. यूनानी भाषा
d.
संस्कृत भाषा
14. इब्नबतूता ने किस पुस्तक की रचना की?
a.
किताब उल हिंद
b. रिहला
c.
आईने अकबरी
d.
बाबरनामा
15. पीर का अर्थ क्या है
a. गुरु
b.
उलेमा
c.
ईश्वर
d.
मौलवी
16. प्रसिद्ध सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का दरगाह कहाँ स्थित है?
a.
दिल्ली
b.
पटना
c. अजमेर
d.
अजोधन
17. अलवार संप्रदाय के लोग किस देवता की उपासना करते हैं?
a. विष्णु
b.
शिव
c.
राम
d.
कृष्ण
18. विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक कौन है?
a.
कृष्ण देवराय
b.
महमूद गवा
c. हरिहर और बुक्का
d.
इनमें से कोई नहीं
19. तेलुगु साहित्य अमुक्तमाल्यद की रचना किसने किया?
a.
वीर नरसिंह
b. कृष्ण देव राय
c.
हरिहर
d.
बुक्का
20. अकबरनामा का रचना किसने किया?
a.
अमीर खुसरो
b.
अलबरूनी
c.
इब्न बतूता
d. अबुल फजल
21. संथाल विद्रोह कब हुआ?
a. 1855
b.1630
c.
1821
d.1809
22. दामिन-ए-कोह क्या है?
a.
उपाधि
b.
जागीर
c. संथालो की भूमि
d.
इनमें से कोई नही
23. 1793 में जब स्थाई बंदोबस्त लागू हुआ था उस समय बंगाल में गवर्नर
कौन थे?
a.
सर जॉन शोर
b. कार्नवालिस
c.
क्लाइव
d.
डलहौजी
24. 1857 का विद्रोह का प्रारंभ कहां से से हुआ था?
a.
दिल्ली
b. मेरठ
c.
बंगाल
d.
अवध
25. सहायक संधि व्यवस्था को किसने प्रारंभ किया?
a. वेलेजली
b.
वारेन हेस्टिंग्स
c.
डलहौजी
d.
विलियम बैंटिक
26. चौरीचौरा कांड कब हुआ?
a.
5 जनवरी 1922
b. 4 फरवरी 1922
c.
16 मार्च 1922
d.
इनमे से कोई नही
27. महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु कौन थे?
a.
फिरोज शाह
b.
लाजपत राय
c. गोपाल कृष्ण गोखले
d.
चितरंजन दास
28. भारतीय संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष कौन नियुक्त हुए थे?
a. राजेंद्र प्रसाद
b.
अंबेदकर
c.
जवाहरलाल नेहरू
d.
सरदार पटेल
29. भारतीय संविधान कब लागू हुआ?
a.
26 जनवरी 1949
b.
26 नवंबर 1950
c.
26 जनवरी 1949
d. 26 जनवरी 1950
30. संविधान के निर्माण में कितना समय लगा?
a.
2 वर्ष 11 माह 11 दिन
b. 2 वर्ष 11 माह 18 दिन
c.
3 वर्ष 11 माह 11 दिन
d.
3 वर्ष 11 माह 18 दिन
अति लघु उत्तरीय प्रश्न 2 ×6=12
किन्ही छः प्रश्नों के उत्तर दें।
31. सिंधु घाटी की सभ्यता को हड़प्पा की सभ्यता भी क्यों कहा जाता हैं?
उत्तर
- सिन्धु घाटी सभ्यता की सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा नामक स्थल पर हुआ था, इसलिए सिन्धु
घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है।
32. भारतीय पुरातत्व का जनक किन्हें कहा गया हैं?
उत्तर
- अलेक्जेंडर कनिंघम
33. अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम किसने पढ़ा?
उत्तर
- जेम्स प्रिंसेप
34. सांची का स्तूप कहां स्थित हैं?
उत्तर
- सांची का स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है।
35. इब्नबतूता कहां से आया था?
उत्तर
- मोरक्को से आया था।
36. संथाल विद्रोह के प्रमुख नायक कौन थे?
उत्तर
- संथाल (हूल) विद्रोह के नेता सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव थे।
37. असहयोग आंदोलन का प्रारंभ किसने और कब किया?
उत्तर
- इस आंदोलन को 1 अगस्त 1920 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया
गया था।
38.. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने किया?
उत्तर
- सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 450 ई. में की थी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना।
लघु उत्तरीय प्रश्न 3×6=18
किन्ही छः प्रश्नों के उत्तर दें।
39. हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन का वर्णन करें?
उत्तर
- सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन प्रमुखतः मातृ देवी पूजन पर आधारित
था। खुदाई में काफी अधिक संख्या में नारी की मूर्तियां मिली हैं जिससे यह ज्ञात होता
है कि सैन्धव वासी मातृ देवी की पूजा किया करते थे और परिवार में भी स्त्री के आदेशों
का ही अनुसरण किया जाता था।
सिंधु
सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन
•
सैन्धव वासी मातृ देवी के साथ ही देवताओं की उपासना भी किया करते थे।
•
धार्मिक अनुष्ठानों के लिए धार्मिक इमारतें बनाई गयीं थी। लेकिन मन्दिर के प्रमाण प्राप्त
नहीं होते हैं।
•
मातृ देवी और देवताओं को बलि भी दी जाती थी।
•
मोहनजोदड़ो से एक मुहर प्राप्त हुई है जिसपर पद्मासन की मुद्रा में एक तीन मुख वाला
पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है, जिसके सिर पर तीन सींग, बाईं तरफ एक गैंडा
तथा एक भैंस एवं दाईं तरफ एक हाथी तथा एक बाघ है। आसान के नीचे दो हिरण बैठे हुए हैं।
इसे पशुपति महादेव का रूप माना गया है।
•
पशुपतिनाथ, वृक्ष, लिंग, योनि और पशु आदि की उपासना भी की जाती थी। वृक्ष पूजा काफी
प्रचलित थी।
•
इस काल के लोग जादू-टोना, भूत-प्रेत और अन्य अंधविश्वासों पर भी विश्वास किया करते
थे।
•
हड़प्पा से काफी संख्या में टेराकोटा (पक्की मिट्टी) की नारी की मूर्तियां प्राप्त
हुई हैं जिसमें से एक मूर्ति में नारी के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है
जिससे यह ज्ञात होता है कि धरती को उर्वरता की देवी माना जाता था और संभवतः पूजा भी
जाता था।
•
इस काल में पशु-पूजा का भी चलन था। मुख्य रूप से एक सींग वाले जानवर की पूजा होती थी
जो संभवतः गैंडा हो सकता है कुछ विद्वानों का मत है कि यह संभवतः यूनिकॉर्न हो सकता
है। खुदाई में मुहरों पर कुबड़वाले वृषभ (सांड) का अंकन मिला हे संभवतः कुबड़वाले वृषभ
की भी पूजा की जाती होगी। पवित्र पक्षी के रूप में फाख्ता (कबूतर की तरह का एक पक्षी
जो भूरापन लिए लाल रंग का होता है) को पूजा जाता था।
•
गुजरात के लोथल तथा राजस्थान के कालीबंगा की उत्खनन (खुदाई) में अग्निकुण्ड (हवन कुण्ड)
और अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।
•
स्वास्तिक चिन्ह संभवतः हड़प्पा सभ्यता की ही देन है।
40. अभिलेख से आप क्या समझते हैं? इनका क्या महत्व हैं?
उत्तर
- अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे
होते हैं। अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है तथा जिन पर तिथि नहीं
होती उनका काल निर्धारण लेखन शैली के आधार पर किया जाता है। भारत में प्राचीनतम अभिलेख
प्राकृत भाषा में है जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया है।
महत्व
1.
अभिलेख प्राचीन काल के अध्ययन के लिए अत्यंत प्रमाणिक और विश्वसनीय स्रोत होते हैं
क्योंकि ये समकालीन होते हैं।
2.
अभिलेख बनवाने वाले के अभिलेखों से शासक के विचार, राज्य विस्तार, उपलब्धियाँ, चरित्र,
जन भावना का पता चलता है।
3.
अभिलेखों से तत्कालिन धर्म-संस्कृति, रीति-रिवाजों की जानकारी मिल है।
4.
अभिलेखों से तात्कालिन भाषा और लिपि का ज्ञान होता है।
5.
अभिलेखों से उस काल के समय का ज्ञान होता है।
6.
अभिलेख प्राचीन इतिहास के स्थाई प्रमाण होते है।
41. त्रिपिटक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
- त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है तीन टोकरियां । बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों
ने उनकी शिक्षाओं का संकलन तीन पिटकों सुत्तपिटक,विनय पिटक एवं अभिधम्म पिटक में किया,
इन्हें ही संयुक्त रूप से त्रिपिटक कहा जाता है।
सुत्तपिटक
में बौद्ध धर्म के सिद्धांत दिए गए हैं। विनय पिटक में बौद्ध धर्म के आचार विचार एवं
नियम मिलते हैं। अभिधम्म पिटक में बुद्ध के दर्शन मिलते हैं।
42. अलबरूनी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर
-अलबरूनी का पूरा नाम अबु रेहान मुहम्मद इन्न अहमद था। उनका जन्म मध्य एशिया स्थित
उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म में 973 ई. में हुआ था। वह मूल रूप से ईरानी था और उनके
आरंभिक जीवन और कार्यकलापों के विषय में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। अल-बरुनी
के जीवन और 4/13 कार्यकलापों पर राजनीतिक परिवेश का काफी गहरा प्रभाव पड़ा। संभवतः
आरंभ में वह ख्वारिज्म के मैमुनिद वंश के शासको के संरक्षण में रहा और यहीं से उन्होंने
अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया क्योंकि ख्वारिज्म उस समयशिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र
था। वह संस्कृत, हिब्रू, सीरियाई, अरबी, फारसी भाषा का अच्छा ज्ञाता था। उनका अधिकांश
समय गजनी में ही व्यतीत हुआ। और गजनी में रहते हुए उसने भारतीय भाषा संस्कृत, ज्ञान-विज्ञान,
खगोलशास्त्र चिकित्सा, धर्म तथा दर्शन का अरबी अनुवाद पढा और यही रहते हुए अलबरूनी
की भारत के प्रति रुचि का विकास हुआ और जब महमूद गजनवी भारत पर आक्रमण करते हैं तब
वह अपने साथ अल बरुनी को भारत लाते हैं और भारत में रहते हुए उन्होंने संस्कृत भाषा
सीखी और दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। और उसी के आधार पर उसने "किताब-उल-हिंद"
या तहकीके- हिंद" नामक पुस्तक की रचना अरबी भाषा में की। भारत में कुछ सालों तक
रहने के बाद वह पुनः गजनी वापस लौट जाते हैं और अपना शेष जीवन गज०.. में व्यतीत करते
हुए 75 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो जाती है।
43. सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति परंपरा क्या है? बताएं।
उत्तर
-
सगुण
भक्ति - शिव, विष्णु तथा उनके अवतार एवं देवियों की
आराधना की जाती है एवं इनकी मूर्त रूप में पूजा की जाती है। सगुण भक्ति परंपरा कहलाता
है।
निर्गुण
भक्ति - निर्गुण भक्ति परंपरा में अमूर्त, निराकार
ईश्वर की उपासना की जाती थी।
44. गोपुरम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
- गोपुरम भारतीय मंदिर का प्रमुख प्रवेश द्वार होता है। यह ऊँचा द्वार होता है जो मंदिर
के प्रावेशिका को दिखाई देता है। इसका मुख्य उद्देश्य भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने
का मार्ग दिखाना होता है।
45. 1857 की क्रांति के तात्कालिक कारण को बताएं।
उत्तर-
बैरकपुर छावनी में 29 मार्च, 1857 को मंगल पाण्डे नामक सैनिक ने चर्बी वाले कारतूस
को भरने से इंकार कर दिया और उत्तेजित होकर अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी। फलस्वरूप
उसे बन्दी बनाकर 8 अप्रैल 1857 को फाँसी दे दी गयी। इस प्रकार चर्बी लगे कारतूस
1857 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बना।
46. बा-शरा और बे-शरा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
बा-शरा
- वे जो इस्लाम के विधान को मानकर चलते हैं।
बे-शरा
- वे जो इस्लाम के विधान से बँधे हुये नहीं थे। ये अधिकतर घुमक्कड़ सूफी सन्त होते
थे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5x4=20
किन्ही चार प्रश्नों के उत्तर दें।
47. मोहनजोदड़ो की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर
- मोहनजोदड़ो, सिंधु के लरकाना जिले में स्थापित था। सिंधी भाषा के अनुसार मोहनजोदड़ो
का अर्थ है-"मृतकों अथवा प्रेतों का टीला" । यह नाम मोहनजोदड़ो के पतन के
बाद इसे दिया गया। 5000 वर्ष पहले यह एक विकसित शहर था। यह सात बार स्थापित होकर पुनः
नष्ट हुआ। इस पुरास्थल की खोज हड़प्पा के बाद ही हुई थी। संभवतः हड़प्पा सभ्यता का
सर्वाधिक अनोखा पक्ष शहरी केंद्रों का विकास था। ऐसे ही केंद्रों में एक महत्त्वपूर्ण
केंद्र मोहनजोदड़ो था। इसकी खुदाई से निम्नलिखित विशिष्टताएँ प्रकट हुई हैं
•
सुनियोजित नगर
1.
मोहनजोदड़ो एक विशाल शहर था जो 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। यह शहर दो भागों
में विभक्त था। शहर के पश्चिम में एक दुर्ग या किला था और पूर्व में नीचे एक नगर बसा
हुआ था।
2.
दुर्ग की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई थी। इसमें बड़े-बड़े भवन
थे, जो संभवतः प्रशासनिक अथवा धार्मिक केंद्रों के रूप में कार्य करते थे।
3.
दुर्ग के चारों ओर ईंटों की दीवार थी, जो दुर्ग को निचले शहर से अलग करती थी। दुर्ग
में शासक और शासक वर्ग से संबंधित लोग रहते थे।
4.
निचले शहर का क्षेत्र दुर्ग की अपेक्षा कहीं अधिक बड़ा था। इसमें रिहायशी क्षेत्र होते
थे, जिनमें सामान्य जन अर्थात् शिल्पी आदि रहते थे। निचले शहर के चारों ओर भी दीवार
बनाई गई थी। निचले शहर में अनेक भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था।
5.
नगर में प्रवेश करने के लिए परकोटे अर्थात् बाहरी चारदीवारी में कई बड़े-बड़े प्रवेशद्वार
थे।
6.
नगर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में प्रवेश करने के लिए आंतरिक चारदीवारी में प्रवेशद्वार
थे।
7.
नगर में अलग-अलग दिशाओं में ऊँची दीवार से घिरे हुए कई सेक्टर थे।
8.
प्रायः सभी बड़े मकानों में रसोईघर, स्नानागार, शौचालय और कुएँ होते थे। सभी बड़े मकानों
का नक्शा लगभग एक जैसा था-एक चौरस आँगन और चारों तरफ कई कमरे।
9.
घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ प्रायः सड़क की ओर नहीं खुलते थे। बड़े घरों में सामने
के दरवाजे के चारों ओर एक कमरा अर्थात् पोल बना दिया जाता था ताकि सामने के मुख्यद्वार
से घर के अंदर ताक- झाँक न की जा सके।
•
सुव्यवस्थित सड़कें एवं नालियाँ
मोहनजोदड़ो
की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ इसकी सुव्यवस्थित सड़कें एवं नालियाँ थीं।
1.
सड़कें पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की तरफ बिछी होती थीं और नगर को अनेक खंडों
में विभक्त करती थीं।
2.
सड़कों का निर्माण इस प्रकार किया जाता था कि स्वयं हवा से ही उनकी सफाई होती रहती
थी।
3.
मोहनजोदड़ो की सड़कों की चौड़ाई 13.5 फुट से 33 फुट तक थी। नालियाँ प्रायः 9 फुट से
12 फुट तक चौड़ी होती थीं।
4.
नालियाँ पकी ईंटों से बनी तथा ढकी हुई होती थीं। उनमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हटाने वाले
पत्थर लगे होते थे ताकि आवश्यकतानुसार | नालियों की सफाई की जा सके।
5.
मल-जल की निकासी के लिए मुख्य कनालों पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आयताकार हौदियाँ बनी होती
थीं।
6.
एक टोडा-मेहराबदार नाला संपूर्ण नगर के गंदे पानी को बाहर ले जाता था।
•
विशाल स्नानागार, अन्नागार एवं भवन
1.
मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक भवन स्नानागार है। इसका जलाशय दुर्ग
के टीले में है। उत्तम कोटि की पकी ईंटों से बना स्नानागार स्थापत्यकला का सुंदर उदाहरण
है। इस संरचना के अनोखेपन तथा दुर्ग क्षेत्र में कई विशिष्ट संरचनाओं के साथ, इसके
मिलने से ऐसा लगता है कि इसका प्रयोग धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए किया जाता होगा,
जो आज भी भारतीय जनजीवन का आवश्यक अंग है।
2.
मोहनजोदड़ो की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता दुर्ग में मिलने वाला विएल अन्नागार है।
इसमें ईंटों से बने सत्ताईस खंड (Blocks) थे, जिनमें प्रकाश के लिए आड़े-तिरछे रोशनदान
बने हुए थे। अन्न भंडार के दक्षिण में ईंटों के चबूतरों की कई कतारें थीं। इन चबूतरों
में से एक चबूतरे के कई कतारें थीं। इन चबूतरों में से एक चबूतरे के मध्य भाग में एक
बड़ी ओखली का बना निशान मिला है।
3.
मोहनजोदड़ो के दुर्ग क्षेत्र में विशाल स्नानागार की एक तरफ एक लंबा भवन (280 x 78
फुट) मिला है। इतिहासकारों के मतानुसार यह भवन किसी बड़े उच्चाधिकारी का निवास स्थान
रहा होगा। महत्त्वपूर्ण भवनों में एक सभाकक्ष भी था, जिसमें पाँच-पाँच ईंटों की ऊँचाई
की चार चबूतरों की पंक्तियाँ थीं। ये ऊँचे चबूतरे ईंटों के बने थे और उन पर लकड़ी के
खंभे खड़े किए गए थे। इसके पश्चिम की ओर कमरों की एक कतार में एक पुरुष की प्रतिमा
बैठी हुई मुद्रा में पाई गई है।
•
कुशल एवं व्यवस्थित नागरिक प्रबंध-
मोहनजोदड़ो
का नागरिक प्रबंध अत्यधिक कुशल एवं व्यवस्थित था। यद्यपि यह कहना कठिन है कि हड़प्पा
सभ्यता के शासक कौन थे; संभव है वे राजा रहे हों या पुरोहित अथवा व्यापारी। कांस्यकालीन
सभ्यताओं में आर्थिक, धार्मिक एवं प्रशासनिक इकाइयों में कोई स्पष्ट भेद नहीं था। एक
ही व्यक्ति प्रधान पुरोहित भी हो सकता था, राजा भी हो सकता था और धनी व्यापारी भी।
किंतु इतना अवश्य कि मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध कुशल हाथों में था। प्रशासन अत्यधिक
कुशल एवं उत्तरदायी था। सुनियोजित नगर, सफाई और जल-निकास की उत्तम व्यवस्था, अच्छी
सड़कें, रात्रि के समय प्रकाश की व्यवस्था, यात्रियों की सुविधा के लिए सरायों की व्यवस्था,
उन्नत व्यापार, माप- तौल के एकरूप मानक, सांस्कृतिक विकास, विकसित उद्योग-धंधे, संपन्नता
आदि सभी इसके प्रबल प्रमाण हैं।
48. मगध साम्राज्य के शक्तिशाली होने के कारणों की चर्चा करें।
उत्तर-
छठी शताब्दी ईसा पूर्व 16 राज्यों का उदय हुआ जिन्हें महाजनपद के रूप में जाना जाता
है। इसमें से वज्जि, मगध, कौशल, कुरु, पांचाल और अवंति सबसे महत्वपूर्ण महाजनपद थे।
इन महाजनपद में से मगध धीरे-धीरे एक शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उभरता चला गया।
मगध
के उत्कर्ष के कई कारण थे-
भौगोलिक
स्थिति - मगध अपनी विशिष्ट भौगोलिक की स्थिति के कारण
यह चारों ओर से सुरक्षित थी उत्तर में गंगा नदी, पूर्व में सोन नदी, पश्चिम में चंपा
नदी तथा दक्षिण में विंध्याचल इसकी भौगोलिक सुरक्षा सीमा निर्मित करती थी।
प्राकृतिक
संसाधन - राजगीर के पास लोहे के विशाल भंडार थे जिससे
अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण सुगम हुआ। मगध में कोयले के भंडार भी मिले हैं जो की आधुनिक
झारखंड में है।
आर्थिक
कारण - मध्य गंगा के मैदान मध्य भाग में स्थित होने
के कारण मगध राज्य की भूमि उपजाऊ थी। जिससे उत्पादन बढ़ा और परिणाम स्वरुप व्यापार
में वृद्धि हुई। इस प्रकार मगध महाजनपद आर्थिक दृष्टिकोण से संपन्न हुई ।
शक्तिशाली
शासक - बिम्बिसार, अजातशत्रु एवं महापदमनंद जैसे
प्रतापी राजाओं ने मगध महाजनपद को सर्व शक्तिशाली स्वरुप प्रदान किया। मगध प्रथम राज्य
था जिसके पास शक्तिशाली हाथी सेना भी थी।
इस
प्रकार हम पाते हैं कि मगध साम्राज्य के उत्कर्ष के लिए विभिन्न परिस्थितियों में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई। ऐसी परिस्थितियों अन्य महाजनपद में नहीं थी। जिसके कारण मगध के समानांतर
विकास नहीं कर सकी ।
49. वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर अलबरूनी के विवरण का परीक्षण
कीजिए।
उत्तर-
अरबी लेखक अलबरूनी ने भारत के विषय में अपनी पुस्तक 'किताब-उल-हिन्द' या 'तहकीक-ए-हिंद'
में भारत की सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों, भारतीय खान पान, वेशभूषा उत्सव, त्योहार
आदि के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। अपनी पुस्तक किताब-उल-हिंद' के नौवे
अध्याय में अलबरूनी ने भारतीय जाति व्यवस्था पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
अलबरूनी
के अनुसार भारतीय समाज चार वर्णों में बंटा हुआ था। 1. ब्राह्मणं 2 क्षत्रिय 3. वैश्य
4. शूद्र ।
इन
चारों में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ थे। और इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के सिर से हुई थी । क्षत्रिय
की उत्पत्ति ब्रह्मा के कंधे और हाथ से जबकि वैश्यों की उत्पत्ति जांघों से हुई थी।
इसलिए समाज में ब्राह्मणों के बाद क्षत्रियों का और उसके बाद वैश्यो का स्थान था। समाज
के सबसे निचले स्थान पर शूद्र थे क्योंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैर से हुई थी।
प्रत्येकं वर्ण, जाति और उप-जाति में बटा हुआ था ।
वर्ण
और जाति-व्यवस्था के बाहर भी अनेक सामाजिक समूह थे जिन्हें अल- बरुनी 'अंत्यज' कहते
हैं और इनकी स्थिति के बारे में बताते हुए अलबरूनी कहते हैं कि इनकी स्थिति शूद्रों
से भी नीची थी। इनकी आठ जातियाँ थी धुनिये, मोची, मदारी, टोकरी और ढाल बनाने वाले,
नाविक, मछली पकड़ने वाले, आखेट करने वाले एवं जुलाहे । ये नगरों और गांव के बाहर रहते
थे। अंत्यजो से भी खराब स्थिति "गंदा काम करने वाले लोगों का था। इसके अंतर्गत
हादी, डोम, चांडाल और वधतू थे । ये चारों एक अलग सामाजिक वर्ग के थे । इनकी स्थिति
अछूतों के समान थी। इन्हें सामान्यतः शुद्र पिता और ब्राह्मण मांता की अवैध संतान माना
जाता था। और इनका अन्य वर्गों तथा जाति के लोगों से सामाजिक संपर्क नहीं होता था।
50. 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारणों की विवेचना करें।
उत्तर
- 1857 की क्रांति के निम्नलिखित कारण थे
1.
राजनीतिक कारण- साम्राज्यवादी नीति के तहत लार्ड वेलेजली
और लॉर्ड डलहौजी ने देशी राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर लिया था। पणिामस्वरूप
देशी रियासत ब्रिटिश शासन से असंतुष्ट थे।
2.
आर्थिक कारण - अंग्रेजों की व्यापारिक नीति और भू राजस्व
नीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था और किसानों की स्थिति देयनीय हो गयी थी।
3.
सामाजिक कारण- ब्रिटिशा शासन द्वारा भारतीय समाज में
कई सामाजिक सुधार किये। जैसे सती प्रथा, कन्या वध एवं बाल विवाह निरोधक कानून इत्यादि।
इन सुधारों के कारण भारतीय रूढिवादियों ने ब्रिटिश शासन का विरोध किया।
4.
धार्मिक कारण- ईसाई मिशनरियों ने भारत में ईसाई धर्म
का प्रचार प्रसार किया और भारतीय धर्म की कटु आलोचना किया। परिणामस्वरूप भारतीयों में
अंग्रेजों के प्रति असंतोष उत्पन्न हो गया।
5.
सैनिक कारण- ब्रिटिश शासन में भारतीय सैनिकों के
साथ भेदभाव और अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता था।
6.
तात्कालिक कारण- ब्रिटिश सरकार ने 1856 ई में एक नवीन
एनफील्ड रायफल को सेना में प्रयोग के लिए दिया। इस बन्दुक मे प्रयोग होने वाला कारतूस
में गाय और सूअर की चर्बी का लेप लगा था। इस अफवाह के कारण हिन्दु और मुस्लिम सैनिकों
ने विद्रोह का दिया।
51. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गांधी जी की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर
- महात्मा गांधी ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह 1920 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में
एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे और अहिंसक सविनय अवज्ञा के अपने सिद्धांतों के लिये
जाने गए।
गांधी
ने वर्ष 1930 में नमक मार्च सहित कई सफल अभियानों का नेतृत्व किया था, जिसमें उन्होंने
और उनके अनुयायियों ने नमक उत्पादन पर ब्रिटिश एकाधिकार का विरोध करने के लिये अरब
सागर तक मार्च किया था। इस अभियान के परिणामस्वरूप भारतीय नमक अधिनियम को निरस्त कर
दिया गया और ब्रिटिश सरकार ने इस संदर्भ में अधिक स्वायत्तता की भारतीय मांगों को मान
लिया।
भारत
के स्वतंत्रता संग्राम को आकार देने वाली इनकी विचारधाराएँ और रणनीतियाँ:
अहिंसाः
गांधी
का अहिंसा का दर्शन उनकी राजनीतिक और सामाजिक मान्यताओं के मूल में था। उनका मानना
था कि हिंसा केवल अधिक हिंसा को जन्म देती है और अहिंसक प्रतिरोध समाज में बदलाव लाने
का एक अधिक प्रभावी तरीका है। गांधी के अहिंसक दृष्टिकोण ने विश्व भर में कई अन्य नागरिक
अधिकारों और मुक्ति आंदोलनों को प्रभावित किया है।
सत्याग्रहः
सत्याग्रह
(जिसका अर्थ है "सत्य पर टिके रहना") अहिंसक प्रतिरोध का एक तरीका था जिसे
गांधी ने विकसित किया था जिसका भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बड़े पैमाने पर उपयोग
किया गया था।
इसमें
अन्यायपूर्ण कानूनों और दमनकारी नीतियों को चुनौती देने के लिये सविनय अवज्ञा, हड़ताल,
बहिष्कार और अन्य अहिंसक साधनों का उपयोग किया जाना शामिल था। सत्याग्रह का उद्देश्य
उत्पीड़नकर्त्ताओं के हृदय को परिवर्तित करना था और बल या जबरदस्ती के बजाय अंतरात्मा
से संघर्ष करना था।
असहयोगः
असहयोग
एक अन्य रणनीति थी जिसका उपयोग गांधी भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने के लिये
करते थे। उन्होंने भारतीयों से ब्रिटिश वस्तुओं, संस्थानों और कानूनों का बहिष्कार
करने और करों का भुगतान न करने या ब्रिटिश द्वारा संचालित चुनावों में भाग न लेने का
आह्वान किया था। असहयोग आंदोलन का उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता हेतु ब्रिटिशों पर दबाव
बनाना था।
सविनय
अवज्ञाः
सविनय
अवज्ञा अहिंसक प्रतिरोध का एक रूप था जिसमें अन्यायपूर्ण कानूनों या विनियमों को तोड़ना
और उन कार्यों के परिणामों को स्वीकार करना शामिल था। गांधी जी ने वर्ष 1930 में नमक
मार्च का नेतृत्त्व किया था, जिसमें उन्होंने और हज़ारों अनुयायियों ने ब्रिटिश नमक
कानूनों की अवहेलना के क्रम में अपना नमक बनाने के लिये अरब सागर तक मार्च किया था।
गांधी की रणनीति में सविनय अवज्ञा एक शक्तिशाली उपकरण था और इसने स्वतंत्रता आंदोलन
हेतु जन समर्थन जुटाने में सहायता की थी।
निष्कर्षः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी
का योगदान अतुलनीय था। अहिंसा और सविनय अवज्ञा के उनके दर्शन तथा असहयोग एवं सविनय
अवज्ञा की उनकी रणनीति और उनके नेतृत्व ने भारतीय जनता को एकजुट करने के साथ ब्रिटिशों
को भारतीयों की मांगों को मानने के लिये मजबूर किया था। गांधी की विरासत आज भी विश्व
भर के लोगों को न्याय और स्वतंत्रता के लिये लड़ने हेतु प्रेरित करती है।
52. कृष्ण देव राय विजयनगर के महानतम शासक थे कैसे?
उत्तर - कृष्णदेव राय तुलुव वंश के सबसे महान राजा थे। उन्होंने 1509 ई. से 1529 ई. तक शासन किया। उनके शासनकाल में विजयनगर अपनी शक्ति और वैभव के चरम पर था। इस समय राज्य की स्थिति ऐसी संतोषजनक नहीं थी हालाँकि, अपने लगातार प्रयास से दस वर्षों के भीतर कृष्णदेव राय ने सभी समस्याओं का समाधान कर दिया। वह अपने सैन्य अभियानों में प्रायः सफल रहता था। उन्होंने बीदर और बीजापुर के शासकों, सुल्तान महमूद शाह और यूसुफ आदिल शाह को हराया। उसने बहमनी शासक सुल्तान महमूद शाह को बारीद से मुक्त कर राजगद्दी पर बैठाया और 'यवन राज्य स्थापनाचार्य' की उपाधि धारण की। 1520 ई. तक कृष्णदेव राय ने अपने सभी शत्रुओं को परास्त कर दिया और अपनी वीरता का परिचय दिया।