प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
इतिहास (History)
अध्याय - 5 यात्रियों के नजरिए समाज के बारे में उनकी समझ (लगभग दसवीं से सत्रहवीं सदी तक)
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)
1. अलबरूनी का जन्म कहां हुआ था ?
(A) ख्वारिज्म
(B) मोरक्को
(C) तुर्की
(D) सीरिया
2. अलबरूनी ने अपनी पुस्तक किताब उल हिंद की रचना किस भाषा में की थी?
(A) यूनानी भाषा
में
(B) अरबी भाषा में
(C) हिंदी भाषा में
(D) फारसी भाषा में
3. अलबरूनी किस भाषा के जानकार नहीं थे?
(A) सीरियाई भाषा
(B) फारसी भाषा
(C) संस्कृत भाषा
(D) यूनानी भाषा
4. इब्नबतूता ने किस पुस्तक की रचना की थी?
(A) किताब उल हिंद
(B) रिहला
(C) आईने अकबरी
(D) अकबरनामा
5. इब्नबतूता सिंध कब पहुंचा?
(A) 1342
(B) 1333
(C) 1345
(D) 1347
6. इब्नबतूता ने भारत की यात्रा किस शताब्दी में की थी ?
(A) 11 वीं शताब्दी
(B) 12 वीं शताब्दी
(C) 13 वीं शताब्दी
(D) 14 वीं शताब्दी
7. बर्नियर ने शिविर नगर किसे कहा है?
(A) राजधानी को
(B) व्यापारिक
केंद्र को
(C) मुगलकालीन
नगरों को
(D) शिल्प केंद्र
को
8. फ्रांसिस बर्नियर कहां के निवासी थे?
(A) फ्रांस
(B) इंग्लैंड
(C) हॉलैंड
(D) इटली
9. किसने लाहौर में 12 वर्षीय बालिका को सती होते देखा था ?
(A) इब्नबतूता
(B) अलबरूनी
(C) बर्नियर
(D) टैवनियर
10. इब्नबतूता के अनुसार ताराबबाद किस प्रकार का बाजार था?
(A) जौहरियों का
(B) घोड़ा बेचने
वालों का
(C) शिल्प केंद्र
को
(D) गाने वाले व्यक्तियों का
11. किस यात्री को मध्ययुगीन यात्रियों का सरताज कहा जाता है?
(A) टैवनियर
(B) इब्नबतूता
(C) मार्को पोलो
(D) अलबरूनी
12. किस विदेशी यात्री ने भारतीय अध्ययन संबंधी बाधाओं का वर्णन किया है ?
(A) अलबरूनी
(B) इब्नबतूता
(C) बर्नियर
(D) अबुल फजल
13. किस विदेशी यात्री ने भारत के डाक प्रणाली और संचार व्यवस्था का वर्णन
किया है?
(A) अलबरूनी
(B) इब्नबतूता
(C) बर्नियर
(D) टैवनियर
14. इब्नबतूता ने राजदूत के रूप में किस देश की यात्रा की?
(A) भारत की
(B) चीन की
(C) जापान की
(D) पारस की
15. उलूक डाक व्यवस्था में किसका प्रयोग किया जाता था?
(A) हाथी का
(B) ऊंट का
(C) नाव का
(D) घोड़ा का
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अलबरूनी ने किस पुस्तक की रचना की थी?
उत्तर-
अलबरूनी ने किताब उल हिंद नामक पुस्तक की रचना की थी।
2. इब्नबतूता कहां के निवासी थे?
उत्तर-
इब्नबतूता मोरक्को के निवासी थे।
3. मोहम्मद बिन तुगलक ने इब्नबतूता को कहां का काजी नियुक्त किया था?
उत्तर-
मोहम्मद बिन तुगलक ने इब्नबतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया था।
4. इब्नबतूता किसके शासनकाल में भारत आया था?
उत्तर
- इब्नबतूता मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में भारत आया था।
5. अलबरूनी किसके साथ भारत आया था?
उत्तर-
अलबरूनी महमूद गजनवी के साथ भारत आया था।
6. जॉन बैप्टिस्ट टैवर्नियर पेशे से क्या था?
उत्तर-
जॉन बैप्टिस्ट टैवर्नियर पेशे से एक जौहरी था।
7. जॉन बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने कितनी बार भारत की यात्रा की थी?
उत्तर-
जॉन बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने 6
बार भारत की यात्रा की थी।
8. ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर पुस्तक की रचना किसने की?
उत्तर-
ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर पुस्तक की रचना फ्रांसिस बर्नियर ने की है।
9. इब्नबतूता के अनुसार भारत में कितने प्रकार की फसलों की खेती की जाती थी?
उत्तर-
इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की फसलों की खेती की जाती थी । रबी फसल और
खरीफ फसल।
10. उलूक किसे कहा जाता था?
उत्तर-
अश्व डाक व्यवस्था को उलूक कहा जाता था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. किताब उल हिंद पर एक लेख लिखे ?
उत्तर- "किताब-उल-हिन्द" पुस्तक की रचना
अलबरूनी ने सुल्तान महमूद गजनवी के शासकाल की थी। अलबरूनी ने इस पुस्तक की रचना
अरबी भाषा में की थी। यह पुस्तक 80
अध्यायो और अनेक उप अध्यायों में विभक्त है। इस पुस्तक से महमूद गजनवी के
आक्रमण के समय के भारतीय समाज एवं संस्कृति की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
अलबरूनी अपनी पुस्तक में भारतीय समाज रहन सहन, खानपान,
वेश-भूषा सामाजिक प्रथाओं,
त्योहार धर्म, दर्शन
कानून, अपराध, दंड, ज्ञान -
विज्ञान, खगोलशास्त्र, गणित, चिकित्सा, रसायन दर्शन
आदि का वर्णन करते हैं। वे भारत में प्रचलित विभिन्न संवतो, यहाँ की
भौगोलिक स्थिति, महत्वपूर्ण
नगरों और उनकी दूरी का भी उल्लेख करते है। चूँकि यह पुस्तक महमूद गजनवी के शासनकाल
में लिखी गई, परंतु
इसमें महमूद गजनवी के क्रियाकलापो का यदा-कदा ही उल्लेख मिलता है इस पुस्तक 'से तत्कालीन
राजनीतिक इतिहास के अध्ययन में बहुत अधिक सहायता नहीं मिलती है, परंतु भारतीय
समाज और संस्कृति के अध्ययन के लिए किताब - उल - हिन्द अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक
है।
2. इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यो की विवेचन कीजिए।
उत्तर-
इब्नबतूता के विवरण से पता चलता है कि चौदहवीं शताब्दी में भारत में दास प्रथा का
प्रचलन व्यापक रूप से था। दासों की खुलेआम बिक्री होती थी। जगह- जगह पर दासो की
बिक्री के लिए बाजार लगते थे। राजघराने और कुलीन परिवारों में दास बडी संख्या में
रखे जाते थे। सामान्य लोग भी अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार एक-दो दास रख लेते थे।
स्त्री दास अर्थात् दासियाँ भी रखी जाती थी। दास- दासियो को हमलों और अभियानों के
दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था। दासों को भेट के रूप में देने की प्रथा का
प्रचलन था। स्वयं इब्नबतूता ने सिंध पहुचने पर दिल्ली सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक
को भेंट करने के लिए घोड़े,
ऊँट और दास खरीदे थे। सुल्तान किसी व्यक्ति विशेष से प्रसन्न होन पर उसे इनाम
के रूप में दास प्रदान करते थे। दास-दासी सामान्यता स्वामी के नौकर के रूप में
कार्य करते थे एवं उनका मूल्य उनके काम और योग्यता के अनुसार निर्धारित किया जाता
था। दासों से आर्थिक कार्यों में भी सहायता ली जाती थी। उनसे गुप्तचरी का काम भी
लिया जाता था और विशेष अवसरो पर दास दासी मुक्त भी किए जाते थे ।
3. सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
उत्तर-
बर्नियर सहित प्रायः सभी यात्रियों ने भारत में महिलाओं की स्थिति पर विशेष ध्यान
दिया । बर्नियर भारत में प्रचलित सती प्रथा से काफी आकर्षित हुए और उसने अपने
यात्रा वृतान्त में इसका वर्णन किया। सती प्रथा भारतीय समाज की एक ऐसी बुराई थी जो
अन्य देशों में प्रचलित नहीं थी। वे बताते है कि भारत में, कुछ महिलाएँ
प्रसन्नता से सती होती थी एवं कुछ महिलाओं को सती होने के लिए बाध्य किया जाता था।
लाहौर में एक बालिका के सती होने की घटना का अत्यधिक मार्मिक विवरण देते हुए उसने
लिखा है, मैंने
लाहौर में एक बहुत सुन्दर अल्पवयस्क विधवा को देखा जिसकी आयु बारह वर्ष से अधिक
नहीं थी, को सती
होते हुए देखा। उसे भयानक नर्क की ओर जाते हुए वह छोटी सी असहाय बच्ची जीवित से
अधिक मृत प्रतीत हो रही थी,
उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता। वह काँपते हुए बुरी तरह
रो रही थी लेकिन तीन या चार ब्राह्मण,
एक बूढ़ी औरत जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था की सहायता से उसे
अनिच्छुक पीड़िता को जबरन घातक स्थल की ओर ले गये, उसे लकड़ियों पर बैठाया उसके हाथ और पैर बांध दिये ताकि वह
भाग न जाए और इस स्थिति में उस मासूम बच्ची को जिंदा जला दिया गया। मैं अपनी
भावनाओं को दबाने में असमर्थ था कि सती प्रथा के अंतर्गत अनिच्छा, व्यथा, व्यवस्था एवं
सहायता जैसे तत्व ने बर्नियर का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया था।
4. रिहला पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत आने वाले अरब यात्रियों में इब्नबतूता का स्थान प्रमुख है उसने रिहला नामक
पुस्तक की रचना की जिसमें 14वीं
शताब्दी के भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के विषय में जानकारी मिलती है।
इब्नबतूता का रिहला तुगलककालीन विशेषकर मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल उस समय के
प्रमुख नगरो, इमारतों, रीति- रिवाजों, डाक- व्यवस्था, प्रशासन
व्यवस्था, सामाजिक
स्थिति तथा संचार व्यवस्था के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराता है। अपनी
पुस्तक में इब्नबतूता ने सती प्रथा और दास प्रथा का विशेष रूप से उल्लेख किया है।
उनके विवरण से पता चलता है कि 14वीं
शताब्दी में भारत में दास प्रथा का प्रचलन व्यापक रूप से था। उसने अपने विवरणों
में भारतीय फसलों के बारे में,
फलो और अनाजो के बारे में भी जानकारी दी है। उसने अपनी भारत यात्रा के क्रम
में जो कुछ भी यहाँ देखा जैसे भारत के शहरों उनकी भव्यता तथा यहां की आर्थिक
समृद्धि एवं यहां की जीवन शैली आदि का वर्णन उसने अपने यात्रा वृतांत में किया। वह
भारतीय डाक व्यवस्था से अत्यंत प्रभावित हुआ और इसलिए उसने अपने विवरण में
तत्कालीन संचार प्रणाली,
डाक व्यवस्था का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है।
5. अलबरूनी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखे।
उत्तर-
अलबरूनी का पूरा नाम अबु रेहान मुहम्मद इब्न अहमद था। उनका जन्म मध्य एशिया स्थित उज्बेकिस्तान
के ख्वारिज्म में 1973 ई. में हुआ था।
वह मूल रूप से ईरानी था और उनके आरंभिक जीवन और कार्यकलापों के विषय में कोई
स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। अल-बरुनी के जीवन और कार्यकलापों पर राजनीतिक
परिवेश का काफी गहरा प्रभाव पड़ा। संभवतः आरंभ में वह ख्वारिज्म के मैमुनिद वंश के
शासको के संरक्षण में रहा और यहीं से उन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया
क्योंकि ख्वारिज्म उस समय शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। वह संस्कृत, हिब्रू, सीरियाई, अरबी, फारसी भाषा का
अच्छा ज्ञाता था। उनका अधिकांश समय गजनी में ही व्यतीत हुआ। और गजनी में रहते हुए
उसने भारतीय भाषा संस्कृत,
ज्ञान-विज्ञान, खगोलशास्त्र
चिकित्सा, धर्म
तथा दर्शन का अरबी अनुवाद पढा और यही रहते हुए अलबरूनी की भारत के प्रति रुचि का
विकास हुआ और जब महमूद गजनवी भारत पर आक्रमण करते हैं तब वह अपने साथ अल बरुनी को भारत
लाते हैं और भारत में रहते हुए उन्होंने संस्कृत भाषा सीखी और दर्शन का ज्ञान
प्राप्त किया। और उसी के आधार पर उसने
"किताब-उल- हिंद"
या तहकीके- हिंद"
नामक पुस्तक की रचना अरबी भाषा में की। भारत में कुछ सालों तक रहने के बाद वह
पुनः गजनी वापस लौट जाते हैं और अपना शेष जीवन गजनी में व्यतीत करते हुए 75 वर्ष की आयु
में उनकी मृत्यु हो जाती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर अलबरूनी के विवरण का परीक्षण कीजिए?
उत्तर-
अरबी लेखक अलबरूनी ने भारत के विषय में अपनी पुस्तक 'किताब-उल-हिन्द' या 'तहकीक-ए-हिंद' में भारत की
सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों, भारतीय खान पान, वेशभूषा उत्सव, त्योहार आदि के
विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। अपनी पुस्तक किताब-उल-हिंद' के नौवे अध्याय
में अलबरूनी ने भारतीय जाति व्यवस्था पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
अलबरूनी
के अनुसार भारतीय समाज चार वर्णों में बंटा हुआ था। 1. ब्राह्मणं 2 क्षत्रिय 3. वैश्य 4. शूद्र ।
इन
चारों में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ थे। और इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के सिर से हुई थी ।
क्षत्रिय की उत्पत्ति ब्रह्मा के कंधे और हाथ से जबकि वैश्यों की उत्पत्ति जांघों
से हुई थी। इसलिए समाज में ब्राह्मणों के बाद क्षत्रियों का और उसके बाद वैश्यो का
स्थान था। समाज के सबसे निचले स्थान पर शूद्र थे क्योंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के
पैर से हुई थी। प्रत्येकं वर्ण,
जाति और उप-जाति में बटा हुआ था ।
वर्ण
और जाति-व्यवस्था के बाहर भी अनेक सामाजिक समूह थे जिन्हें अल- बरुनी 'अंत्यज' कहते हैं और
इनकी स्थिति के बारे में बताते हुए अलबरूनी कहते हैं कि इनकी स्थिति शूद्रों से भी
नीची थी। इनकी आठ जातियाँ थी धुनिये,
मोची, मदारी, टोकरी और ढाल
बनाने वाले, नाविक, मछली पकड़ने
वाले, आखेट
करने वाले एवं जुलाहे । ये नगरों और गांव के बाहर रहते थे। अंत्यजो से भी खराब
स्थिति "गंदा
काम करने वाले लोगों का था। इसके अंतर्गत हादी, डोम,
चांडाल और वधतू थे । ये चारों एक अलग सामाजिक वर्ग के थे । इनकी स्थिति अछूतों
के समान थी। इन्हें सामान्यतः शुद्र पिता और ब्राह्मण मांता की अवैध संतान माना
जाता था। और इनका अन्य वर्गों तथा जाति के लोगों से सामाजिक संपर्क नहीं होता था।
2. इब्नबतूता द्वारा वर्णित डाक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
इब्नबतूता भारत की संचार व्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित था और उसने इसका उल्लेख
संचार की एक अनोखी प्रणाली के रूप में किया है उसने अपने यात्रा वृतांत में बताया
की भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थीं।
क.
अश्व डाक व्यवस्था
ख.
पैदल डाक व्यवस्था
क.
अश्व डाक व्यवस्था- अश्व डाक व्यवस्था को उलूक कहा जाता था। जो हर चार मील की
दूरी पर स्थापित राजकीय घोडो द्वारा संचालित होता था ।
ख.
पैदल डाक व्यवस्था- पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील तीन पड़ाव होते थे जिसे
दावा कहा जाता था। यह एक मील का तीन तिहाई होता था। हर तीन मील पर घनी आबादी वाला
एक गांव होता था जिनमें लोग कार्य प्रारंभ करने के लिए तैयार बैठते थे इनमें से
प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी जब संदेशवाहक शहर से यात्रा प्रारंभ
करता तो एक हाथ में पत्र और दूसरे हाथ में घंटियां वाली छड़ी लिए वह अपनी
क्षमतानुसार तेज से भागता था और मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुन कर तैयार
हो जाते थे और जैसे ही संदेश वाहक उनके पास पहुँचता उनमें से एक उससे पत्र ले लेता
और वह छड़ी हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता था जब तक कि वह अगले दावा तक पहुंच
नहीं जाता और जब तक पत्र अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच जाता तब तक यह प्रक्रिया
चलती रहती थी।
निस्संदेह
संचार की इस अनूठी प्रणाली ने व्यापार,
वाणिज्य, संबंधी
गतिविधियों को काफी प्रोत्साहित किया। इस व्यवस्था की कुशलता का अनुमान हम इससे
लगा सकते हैं इसके द्वारा गुप्तचरो की खबरें सिंध से दिल्ली तक केवल 5 दिनों में
पहुंच जाती थी। जबकि सिंध से दिल्ली की यात्रा में लगभग 50 दिनों का समय
लगता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि तत्कालीन डाक एवं संचार व्यवस्था से शासक वर्ग
से लेकर के सामान्य जनता को काफी लाभ पहुंचा।
3. अलबरूनी को भारत का वृतांत लिखने में किन किन बाधाओं का सामना करना पड़ा था?
उत्तर-
अपनी पुस्तक के प्रथम अध्याय में अलबरूनी उन बाधाओं का उल्लेख करते हैं जो उसे
भारत का यात्रा वृतांत लिखने में करना पड़ा था। जो इस प्रकार है-
(1) भाषा संबंधी
अवरोध- अलबरूनी के अनुसार संस्कृत, अरबी व फारसी इतनी अलग थी कि विचारों और सिद्धांतों का एक
भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद करना एक कठिन कार्य था।
(2) स्थानीय लोगों
में अलगाव की भावना-
दूसरा अवरोध
स्थानीय लोगों के स्वाभिमान एवं अलगाव की भावना विद्यमान थी वे अपरिचितों या
यात्रियों से बात करने या अपने विचारों को प्रकट करना नहीं चाहते थे।
(3) धार्मिक दशा-
तीसरा अवरोध धार्मिक दशा एवं प्रथाओं की भिन्नता से संबंधित थी । विदेशियों को
हिंदू "म्लेच्छ” कहते थे। उनके
साथ किसी भी प्रकार का संबंध रखने को निषेध मानते है अन्य धर्मावलंबियों के लिए
उनके द्वार सदा के लिए बंद रहते थे क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा करने पर वह धर्म
भ्रष्ट हो जाएंगे।
(4) रीति-रिवाजों
एवं मान्यताओं में भिन्नता- भारतीय अपने रीति-रिवाजों व मान्यताओं को श्रेष्ठ मानते
थे। यहां के रीति-रिवाज एवं मान्यता इतनी कठोर थी कि अलबरूनी को अपनी यात्रा
वृतांत लिखने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि भारत के लोग हमारे नाम
से हमारे वस्त्रों से और हमारी रीतियो व व्यवहार से डरते थे और हमें शैतान की औलाद
बता कर हमारे कार्य को सभी कामों के विरुद्ध बताते थे जिन्हें वे अच्छा और उचित
मानते थे।