12th 5. बाजार संतुलन Micro Economics JCERT/JAC Reference Book

12th 5. बाजार संतुलन Micro Economics JCERT/JAC Reference Book

12th 5. बाजार संतुलन Micro Economics JCERT/JAC Reference Book

1. परिचय- इस पाठ में उपभोक्ताओं और फर्मों के व्यवहार को सम्मिलित करके, बाजार मांग और बाजार पूर्ति विश्लेषण का प्रयोग कर बाजार संतुलन का विश्लेषण किया जाएगा। हम जानेंगे कि संतुलन मात्रा तथा संतुलन कीमत का निर्धारण कैसे होता है। मांग और पूर्ति में परिवर्तन का संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पर क्या प्रभाव होगा, मांग और पूर्ति विश्लेषण के अनुप्रयोग के कुछ उदाहरण को भी जानेंगे।

1.1 संतुलन - संतुलन का शाब्दिक अर्थ है स्थिरता की स्थिति अर्थात किसी प्रकार के बदलाव की प्रवृत्ति का ना होना।

1.2 संतुलन कीमत- वह कीमत जिससे ना फर्मे और ना ही उपभोक्ता विचलित होना चाहते हैं, संतुलन कीमत कहलाती है।

1.3 संतुलन मात्रा- संतुलन कीमत पर खरीदी तथा बेची गई मात्रा आपस में बराबर होती है अर्थात मांगी गई मात्रा और पूर्ति की मात्रा बराबर होती है, इसे संतुलन मात्रा कहते हैं।

1.4 बाजार संतुलन का अर्थ- बाजार संतुलन ऐसी अवस्था को व्यक्त करता है जहां बाजार में सभी उपभोक्ताओं तथा फर्मों के उद्देश्य संगत होते हैं। अर्थात संतुलन की स्थिति में फर्म जितनी मात्रा बेचने के इच्छुक है, उपभोक्ता भी उतनी ही मात्रा को खरीदने के इच्छुक है। अन्य शब्दों में बाजार पूर्ति, बाजार मांग के बराबर होती है।

अतः,

बाजार मांग = बाजार पूर्ति

D = S

D = ƒ(P)

S = ƒ(P)

जहां, D = मांग

S = पूर्ति

P = कीमत

ƒ= फलन

संतुलन से बाह्य व्यवहार- स्मिथ के समय (1723-1790) से यह मान्यता रही है कि जब भी बाजार में असंतुलन होता है, तो पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक 'अदृश्य हाथ' कीमतों में परिवर्तन कर देता है। हमारी अंतर्दृष्टि भी यह कहती है कि अदृश्य हाथ, अधिमांग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि तथा अधिपूर्ति की स्थिति में कीमतों में कमी करेगा। इस संपूर्ण अध्याय में विश्लेषण में अदृश्य हाथ की मान्यता की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

2. बाजार संतुलन की दशा-

2.1 फर्मों की स्थिर संख्या की दशा में बाजार संतुलन - एक पूर्ण प्रतियोगिता वाले बाजार में जब फर्मों की स्थिर संख्या हो तो बाजार मांग और बाजार पूर्ति के द्वारा संतुलन का निर्धारण उस कीमत पर होगा, जहां बाजार मांग और बाजार पूर्ति की मात्रा आपस में बराबर होंगे। इसे हम निम्न उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं।

तालिका

कीमत

माँग

पूर्ति

संतुलन

10

20

60

अधिपूर्ति

8

30

50

अधिपूर्ति

6

40

40

संतुलन

4

50

30

अधिमांग

2

60

20

अधिमांग

 

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रेखा चित्र में DD बाजार मांग तथा SS बाजार पूर्ति को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति उस मात्रा को बताता है जिसकी पूर्ति फर्मे विभिन्न कीमतों पर करने को तैयार है इसी प्रकार DD उपभोक्ताओं की उस मांग को दर्शाता है जो उपभोक्ता विभिन्न कीमतों पर उपभोग करने को इच्छुक है।

मांग वक्र DD तथा पूर्ति वक्र SS द्वारा संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है, जहां दोनों वक्र एक दूसरे को काटते हैं, अर्थात् बिंदु e । बिंदु e पर मांगी गई मात्रा तथा पूर्ति की मात्रा oq के बराबर है। इस संतुलन बिंदु पर संतुलन कीमत op तथा संतुलन मात्रा oq है।

यदि बाज़ार में कीमत कम होकर op1 हो जाती है तो बाजार में मांग p1b हो जाएगी जबकि पूर्ति p1a होगी। अतः बाजार में ab के बराबर मांग अधिक है।

जब किसी कीमत पर बाजार मांग बाजार पूर्ति से अधिक होती है तो उसे अधिमांग कहते हैं। इस कीमत पर कुछ उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा पाने के लिए अधिक कीमत देने को तैयार होंगे। अतः कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति पाई जाएगी। अन्य बातों के समान रहने पर जैसे-जैसे कीमत बढेगा मांग की मात्रा में कमी तथा पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होगी। बाजार एक ऐसे कीमत op की ओर अग्रसर होगा जहां मांग और पूर्ति आपस में बराबर होंगे।

इसी प्रकार यदि कीमत op2 है तो बाजार में मांग p₂c तथा पूर्ति p₂d होगी। अतः बाजार में cd के बराबर अधिक पूर्ति होगी। जब किसी कीमत पर बाजार पूर्ति बाजार मांग से अधिक हो जाती है तो इसे अधिपूर्ति कहते हैं। इस कीमत पर कुछ फर्मे अपनी क्षमता के अनुरूप बिक्री नहीं कर पाएंगे। अतः वह कीमत घटाएंगे। अन्य बातें समान रहने पर जैसे जैसे कीमत कम होगी, वस्तु की पूर्ति घटेगी तथा मांग की मात्रा बढ़ेगी। पूर्ति एक ऐसी कीमत की ओर अग्रसर होगी जहां मांग तथा पूर्ति आपस में बराबर होंगे। अतः संतुलन कीमत op होती है तथा पूर्ति की मात्रा और मांग की मात्रा दोनों oq के बराबर है।

गणितीय उदाहरण

बाजार मांग qD = 200 - P

बाजार पूर्ति qS = 120 + P

संतुलन पर

qD = qS

200 - P = 120 + P

200 - 120 = P + P

80 = 2P

P = 40

अतः संतुलन कीमत P = 40 है।

मात्रा, qD = 200 - P में P का मान रखने पर

qD = 200 - 40

qD = 160

या, qS = 120 + P

qS = 120 + 40

qS = 160

अतः संतुलन मात्रा q = 160 है

कीमत, संतुलन कीमत से कम होने पर माना कि P = 25 है

तब, मांगी गई मात्रा, qD = 200 - P में P = 25 मान रखने पर

qD = 200 - 25

qD = 175

पूर्ति की मात्रा,

qS = 120 + P

qS = 120 + 25

qS = 145

qD > qS

अतः कीमत P₁ संतुलन कीमत op से कम होने पर अधिमांग होगी।

इसी प्रकार यदि कीमत, संतुलन कीमत से अधिक हो,

माना कि P = 45 है

तब, मांगी गई मात्रा,

qD = 200 + P में P = 45 मान रखने पर

qD = 200 - 45

qD = 155

पूर्ति की मात्रा, qS = 120 + P

qS = 120 + 45

qS = 165

qD < qS

अतः कीमत p2 संतुलन कीमत op से अधिक होने पर अधिपूर्ति होगी।

अतः कीमत p1 संतुलन कीमत op से कम होने पर अधिमांग होगी तथा कीमत p2 संतुलन कीमत op से अधिक होने पर अधिपूर्ति होगी।

2.1.1 संतुलन में परिवर्तन -

A. मांग में शिफ्ट

a. मांग में वृद्धि

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रेखा चित्र में प्रारंभिक संतुलन की स्थिति e बिंदु है जहां बाजार मांग DD पूर्ति SS को काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत op तथा मात्रा oq है। मान लिया कि बाजार मांग वक्र DD, पूर्ति SS के स्थिर रहने पर दायी ओर शिफ्ट होकर D2D2 हो जाती है। दी गई कीमत पर मांगी गई मात्रा पहले से qq3 के बराबर अधिक है। इस अधिमांग के कारण कुछ व्यक्ति ऊंची कीमत पर भुगतान करने को तैयार होंगे और कीमत में बढ़ने की प्रवृत्ति होगी। नया संतुलन बिंदु e2 पर होगा जहां संतुलन मात्रा q2 पहले से अधिक है और संतुलन कीमत p2 भी पहले से अधिक है।

b. मांग में कमी

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रेखा चित्र में प्रारंभिक संतुलन की स्थिति e बिंदु है, जहां बाजार मांग DD पूर्ति SS को काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत op तथा मात्रा oq है। मान लिया कि बाजार मांग वक्र DD, पूर्ति SS के स्थिर रहने पर बायी ओर शिफ्ट होकर D1D1 हो जाती है। दी गई कीमत पर मांगी गई मात्रा पहले से q0q के बराबर कम है। इस अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्मे कीमत कम कर देगी ताकि वे वस्तु की बिक्री बढ़ा सकें। नया संतुलन बिंदु e1 पर प्राप्त होगा जहां संतुलन मात्रा q1 पहले से कम है और संतुलन कीमत p1 भी पहले से कम है।

B. पूर्ति में शिफ्ट

a. पूर्ति में वृद्धि-

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रेखा चित्र में प्रारंभिक संतुलन की स्थिति e बिंदु है जहां बाजार मांग DD पूर्ति SS को काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत op तथा मात्रा oq है। मान लेते हैं कि किसी कारण पूर्ति में वृद्धि हो जाती है और पूर्ति वक्र दायी ओर शिफ्ट हो कर S1S1 हो जाती है परंतु मांग वक्र अपरिवर्तित होगा। जहां वस्तु की अधिपूर्ति qq2 के बराबर होगी। अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्मे अपनी कीमत गिरा देंगी तथा नया संतुलन e1 बिंदु पर होगा। जहां पूर्ति S1S1 अपरिवर्तित मांग वक्र DD को काटती है। नई संतुलन बिंदु पर कीमत घटकर p₁ तथा मांग एवं पूर्ति की मात्रा q1 हो जाती है। पूर्ति में वृद्धि से कीमत एवं मात्रा में परिवर्तन की दिशाएं विपरीत होती है। अर्थात कीमत में कमी एवं मात्रा में वृद्धि होती है।

b. पूर्ति में कमी-

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रेखा चित्र में प्रारंभिक संतुलन की स्थिति e बिंदु है जहां बाजार मांग DD पूर्ति SS को काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत op तथा मात्रा oq है। मान लेते हैं कि किसी कारण पूर्ति में कमी होती है और पूर्ति वक्र बाई ओर शिफ्ट हो कर S2S2 हो जाती है परंतु मांग वक्र अपरिवर्तित होगा। जहां वस्तु की अधिमांग q0q के बराबर होगी। अधिमांग के कारण कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में असमर्थ है, अधिक कीमत भुगतान करने के इच्छुक होंगे तथा बाजार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी। नया संतुलन e1 बिंदु पर होगा, जहां पूर्ति S2S2 अपरिवर्तित मांग वक्र DD को काटती है। नई संतुलन बिंदु पर कीमत बढ़कर p2 तथा मांग एवं पूर्ति की मात्रा घटकर q2 हो जाती है। पूर्ति में कमी से कीमत में वृद्धि तथा मात्रा में कमी होती है।

C. मांग तथा पूर्ति में एक साथ शिफ्ट- मांग और पूर्ति में एक साथ शिफ्ट की कई दशाएं हो सकती हैं जिन्हें दो भागों में बांटा गया है-

1. मांग तथा पूर्ति में वृद्धि मांग तथा पूर्ति में वृद्धि की तीन अलग-अलग दशाएं हो सकती है

a. मांग में वृद्धि > पूर्ति में वृद्धि ।

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जब मांग तथा पूर्ति दोनों में वृद्धि होती है, किंतु मांग में वृद्धि पूर्ति की तुलना में अधिक हो तो नयी संतुलन में कीमत तथा मात्रा दोनों अधिक हो जाते हैं।

b. मांग में वृद्धि < पूर्ति में वृद्धि

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जब मांग तथा पूर्ति दोनों में वृद्धि होती है, किंतु मांग में वृद्धि की तुलना में पूर्ति में वृद्धि अधिक हो, तो नए संतुलन में कीमत में कमी तथा मांग एवं पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है।

c. मांग में वृद्धि = पूर्ति में वृद्धि

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जब मांग तथा पूर्ति दोनों में समान मात्रा में वृद्धि होती है, तो नए संतुलन में कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन मांग तथा पूर्ति की मात्रा अधिक हो जाती है।

II. मांग तथा पूर्ति में कमी

मांग तथा पूर्ति में कमी की तीन दशाएं हो सकती है

a. मांग में कमी पूर्ति में कमी

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जब मांग तथा पूर्ति दोनों में कमी होती है, किंतु मांग में कमी पूर्ति में कमी की तुलना में अधिक होती है, तो नई संतुलन में कीमत और मात्रा दोनों में कमी हो जाती है।

b. मांग में कमी < पूर्ति में कमी

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जब मांग तथा पूर्ति दोनों में कमी होती है, किंतु मांग में हुई कमी पूर्ति में कमी से कम होती है तो नए संतुलन में मांग एवं पूर्ति की मात्रा कम लेकिन कीमत अधिक हो जाती है।

c. मांग में कमी = पूर्ति में कमी

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जब मांग तथा पूर्ति दोनों में कमी होती है और यह आपस में बराबर होती है तो कीमतें अपरिवर्तित होती है। किंतु मांग तथा पूर्ति की मात्रा पहले की तुलना में कम हो जाती है।

मांग तथा पूर्ति में परिवर्तन की अन्य कई दशाएं हो सकती है। जैसे मांग में वृद्धि किंतु पूर्ति में कमी, पूर्ति में वृद्धि किंतु मांग में कमी। मांग और पूर्ति दोनों में परिवर्तन के फस्वरूप अंततः यदि मांग में वृद्धि या पूर्ति में कमी होगी, तो कीमत में वृद्धि होगी। और यदि मांग में कमी या पूर्ति में वृद्धि होगी तो कीमत में कमी होगी।

2.2 बाजार संतुलन निर्बाध प्रवेश तथा बाहिर्गमन की दशा में बाज़ार संतुलन -

फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बाहिर्गमन का अर्थ है बाजार में फर्मों के प्रवेश तथा बाहर जाने की स्वतंत्रता।

☞ पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता के अनुसार फर्मों को बाजार में प्रवेश और बाहिर्गमन की स्वतंत्रता होती है।

☞ इस मान्यता के अनुसार बाजार में संतुलन में बने रहकर कोई भी फर्म ना तो असामान्य लाभ अर्जित करती है और ना ही हानि की स्थिति में होती है।

☞ संतुलन पर फर्मों की कीमत न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है।

☞ ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दी गई कीमत पर यदि फर्मों को असामान्य लाभ हो रही है तो यह नई फर्मों को बाजार में आकर्षित करेगी।

☞ नए फॉर्मो के बाजार में प्रवेश से पूर्ति बढ़ेगी जबकि मांग में कोई परिवर्तन नहीं होगा। इसके फलस्वरूप कीमत गिर जाती है और असामान्य लाभ समाप्त हो जाता है।

☞ इसी प्रकार यदि किसी कीमत पर फर्मों को हानि हो रही है तो कुछ फर्मे बाजार से बाहर हो जाएंगे, जिससे पूर्ति में कमी होगी और कीमत में वृद्धि होगी और यह सामान्य लाभ की स्थिति को प्राप्त करेगी।

☞ अतः फर्मों के प्रवेश एवं बाहर जाने की स्वतंत्रता के कारण पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों को दीर्घकाल में सदैव सामान्य लाभ की प्राप्ति होगी।

☞ सामान्य लाभ की दशा में कीमत न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है।

जब कीमत न्यूनतम औसत लागत से अधिक होगी तो फर्मों को असामान्य लाभ होगा। जब कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम होगी तो फर्मों को हानि होगी। जब कीमत न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी तो फर्मों को सामान्य लाभ होगा। अतः सामान्य लाभ की दशा में न्यूनतम औसत लागत कीमत के बराबर होती है।

3. अनुप्रयोग -

अनुप्रयोग : मांग और पूर्ति के अनुप्रयोग को हम सरकार द्वारा उच्चतम निर्धारित कीमत तथा न्यूनतम निर्धारित कीमत द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

उच्चतम निर्धारित कीमत : सरकार द्वारा जब किसी वस्तु या सेवा की कीमत की ऊपरी सीमा तय की जाती है, तो इसे उच्चतम निर्धारित कीमत कहते हैं। जैसे गेहूं, चावल, मिट्टी के तेल, चीनी के लिए ऐसी कीमत तय की जाती है जो बाजार कीमत से कम होती है।

निम्नतम निर्धारित कीमत : सरकार द्वारा किसी वस्तु या सेवा के लिए निर्धारित न्यूनतम कीमत सीमा को निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं। जैसे कृषि समर्थन कीमत तथा न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण।

 

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. किसी वस्तु का मूल्य निर्धारित होता है -

a. मांग द्वारा

b. पूर्ति द्वारा

c. माग एवं पूर्ति द्वारा

d. सरकार द्वारा

2. बाजार मूल्य पाया जाता है-

a. अल्पकालीन बाजार में

b. दीर्घकालीन बाजार में

c. अति दीर्घकालीन बाजार में

d. इनमें से कोई नहीं

3. निम्नलिखित में से किसने कहा था कि किसी वस्तु की कीमत मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।

a. जेवेन्स

b. वालरस

c. मार्शल

d. इनमें से कोई नहीं

4. संतुलन कीमत के निर्धारक घटक निम्नलिखित में कौन से है?

a. वस्तु की मांग

b. वस्तु की पूर्ति

c. और इ दोनों

d. इनमें से कोई नहीं

5. कीमत उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहां

a. वस्तु की मांग अधिक हो

b. वस्तु की पूर्ति अधिक हो

c. वस्तु की मांग और पूर्ति बराबर हो

d. इनमें से कोई नहीं

6. निम्नलिखित में किसने कीमत निर्धारण प्रक्रिया में समय तत्व का विचार प्रस्तुत किया?

a. रिकार्डो

b. वालरस

c. मार्शल

d. जे. के. मेहता

7. संतुलन की स्थिति में होता है ?

a. विक्रय की कुल मात्रा खरीदी जाने वाली मात्रा के बराबर होती है।

b. बाजार पूर्ति बाजार मांग के बराबर होती है।

c. ना ही फर्म, ना ही उपभोक्ता विचलित होना चाहते हैं

d. उपरोक्त सभी

8. एक पूर्ण प्रतियोगि बाजार में यदि फर्म बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन कर सकती है तो संतुलन कीमत सदैव होती है?

a. फर्मों के सीमांत लागत के बराबर होगी

b. फर्मों के न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी

c. फर्मों के कल लागत के बराबर होगी

d. फर्मों के सीमांत और औसत लागत के बराबर होगी

9. यदि किसी कीमत पर बाजार पूर्ति बाजार मांग से अधिक है, तो उस कीमत पर बाजार में काया होगा?

a. अधिपूर्ति होगी

b. अधिमांग होगी

c. तथा इ दोनों

d. इनमें से कोई नहीं

10. पूर्ति वक्र अपरिवर्तित रहने पर जब मांग वक्र दांए और शिफ्ट होती है तो फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है तथा संतुलन कीमत में होगी?

a. गिरावट होगी

b. वृद्धि होगी

c. अपरिवर्तित होगी

d. इनमें से कोई नहीं

प्र० 1. बाजार संतुलन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : बाजार संतुलन से तात्पर्य उस स्थिति से है जब एक विशेष कीमत पर बाजार में माँगी गई मात्रा पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है। बाजार माँग वक्र माँग के नियम के अनुसार बाईं से दाईं ओर नीचे की ओर ढलान वाला होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत तथा उसकी माँगी गई मात्रा में ऋणात्मक संबंध है। बाजार पूर्ति वक्र पूर्ति के नियम के अनुसार बाई से दाईं ओर ऊपर की ढलानवाला होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत और उसकी पूर्ति की गई मात्रा में धनात्मक संबंध होता है। अधिमाँग अतः दिये गए चित्र में माँग वक्र PD एक नीचे की ढलान वाला वक्र है और पूर्ति वक्र SS एक ऊपर की ओर ढलान वाला वक्र है। जहाँ पर DD और SS एक दूसरे को काटते हैं वहाँ पर बाजार संतुलन में होता है। इस बिन्दु पर Dn Sn होता है। इस बिन्दु के अनुरूप संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा Q पर निर्धारित हो जाती है। यदि बाजार कीमत OP से कम होगी तो बाजार में अधिमाँग होगी। यदि बाजार कीमत OP से अधिक होगी तो बाजार में अधिपूर्ति होगी।

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प्र० 2. हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?

उत्तर : जब किसी वस्तु की बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इसे अधिमाँग कहा जाता है। यह संतुलन कीमत से कम कीमत पर होता है, इसे अभावी पूर्ति भी कहते हैं।

प्र० 3. हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?

उत्तर : जब किसी वस्तु की बाजार पूर्ति उसकी बाजार माँग से अधिक होती है तो इसे अधिपूर्ति कहा जाता है। यह संतुलन कीमत से अधिक कीमत पर होता है। इसे अभावी माँग भी कहते हैं।

प्र० 4. क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य है?

(a) संतुलन कीमत से अधिक।

(b) संतुलन कीमत से कम हो।

उत्तर :

(i) यदि बाजार कीमत संतुलन कीमत से अधिक है- इस स्थिति में बाजार माँग बाजार पूर्ति से कम होगी।

अतः अधिपूर्ति जन्म लेगी।

(a) यह अधिपूर्ति विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धी को बढ़ायेगी।

(b) प्रतिस्पर्धा के कारण विक्रेता कम कीमत लेने को तैयार हो जाते हैं।

(c) कीमत कम होने से माँग विस्तृत हो जाती है और पूर्ति संकुचित हो जाती है।

यह तब तक होता है जब तक कीमत पुनः संतुलन कीमत तक नहीं पहुँच जाती।

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(ii) यदि बाजार कीमत संतुलन कीमत से कम हो इस स्थिति में बाजार माँग बाजार पूर्ति से अधिक होती है और अधिक माँग जन्म लेती है।

(a) यह अधिमाँग क्रेताओं में प्रतिस्पर्धा को बढ़ा देता है।

(b) इस प्रतिस्पर्धा के कारण क्रेता अधिक कीमत देने को तैयार हो जाते हैं।

(c) इस बढ़ी कीमत के कारण माँग संकुचित हो जाती है तथा पूर्ति विस्तृत हो जाती है। यह तब तक होता है जब तक संतुलन कीमत पुनः स्थापित न हो जाये।

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प्र० 5. फर्मों की एक स्थिर संख्या होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।

उत्तर : जब फर्मों की संख्या स्थिर हो तो माँग वक्र बाँई से दाईं ओर नीचे की ओर ढलान वाला होता है, और पूर्ति वक्र दाईं से बाईं ओर नीचे की कीमत ओर ढलान वाला होता है। जहां पर ये वक्र एक दूसरे को काटते हैं। अर्थात् जिस कीमत पर बाजार माँग और बाजार पूर्ति बराबर हो जाते हैं, वहाँ पर संतुलन कीमत का निर्धारण होता है। इसे नीचे चित्र में दिखाया गया है। बिन्दु पर माँग वक्र DD और पूर्ति वक्र ऽऽ एक दूसरे को काट रहे हैं,

अतः यह संतुलन बिन्दु है। इसके अनुरूप OP संतुलन कीमत है और OQ संतुलन मात्रा है।

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प्र० 6. मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?

उत्तर :

1. यदि हम फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें तो पूर्ति में वृद्धि होगी।

2. पूर्ति में वृद्धि होने से संतुलन कीमत कम होगी तथा संतुलन मात्रा बढ़ेगी।

3. संतुलन कीमत कम होने से फर्मों के असामान्य लाभ विलुप्त हो जायेंगे।

इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है। बाजार कीमत OP थी जब माँग (DD) = पूर्ति (SS) थे। इस कीमत पर AR > AC अतः फर्मे सामान्य से अधिक लाभ कमा रही थी। हमने फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दी तो पूर्ति में वृद्धि हो गई। यह वृद्धि तब तक होगी जब तक कीमत इतनी कम न हो जाए कि AR = Min. AC हो।

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चित्र में पैनल B में फर्म बिन्दु E पर संतुलन में है जहाँ MC = MR तथा MC, MR वक्र को नीचे से काट रही है। इस बिन्दु के अनुरूप उत्पादक OQ मात्रा बेचेगा जिसकी प्रति इकाई लागत = OC तथा प्रति इकाई संप्राप्ति = OP है। अतः प्रति इकाई लाभ OP-OC = PC है। अतः कुल लाभ = PC x OQ ar PC ME

यह असामान्य लाभ है, अतः नई फर्में प्रवेश के लिए आकर्षित होंगी नई फर्मों के प्रवेश से कीमत (Panel A में) OP से OP, हो जायेगी। इस कीमत पर प्रति इकाई लागत = OC, प्रति इकाई संप्राप्ति = OC अतः प्रति इकाई लाभ = शून्य अतः अब फर्म केवल सामान्य लाभ अर्जित करेगी।

नोट- हानि की स्थिति में विपरीत होगा। कुछ फर्मे बाजार छोड़ देंगी, पूर्ति में कमी होगी, संतुलन कीमत बढ़ेगी और हानियाँ विलुप्त हो जायेंगी।

प्र० 7. जब बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाजार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?

उत्तर : निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि उत्पादन में बने रहकर संतुलन में कोई भी फर्म न असामान्य लाभ अर्जित करती है और न हानि उठाती है। ऐसी स्थिति में संतुलन कीमत सभी फर्मों की न्यूनतम लागत के बराबर होगी। कारण यदि प्रचलित बाजार कीमत पर प्रत्येक फर्म असामान्य लाभ अर्जित कर रही है, तो नई फर्मे आकर्षित होंगी। इससे पूर्ति में वृद्धि होगी, कीमत कम होगी और अधिसामान्य लाभ विलुप्त हो जायेगा। इसी प्रकार यदि प्रचलित कीमत पर फर्मे सामान्य से कम लाभ अर्जित कर रही हैं तो कुछ फर्मे बहिर्गमन कर जायेंगी, जिससे लाभ में वृद्धि होगी और प्रत्येक फर्म के लाभ बढ़कर सामान्य लाभ के स्तर पर आ जायेंगे। इस बिन्दु पर और अधिक फर्म प्रवेश या बहिर्गमन नहीं करेंगी। अतः प्रवेश तथा बर्हिगमन के द्वारा प्रत्येक फर्म प्रचलित बाजार कीमत पर सदैव सामान्य लाभ अर्जित करेगी। सूत्र के अनुरूप में जब तक AR > AC, नई फर्मे प्रवेश करेंगी। यदि AR < AC तो कुछ फर्मे बहिर्गमन करेंगी। अतः बाजार कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। (AR) P = न्यूनतम औसत लागत इस स्थिति में पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होगा क्योंकि P = न्यूनतम औसत लागत के स्तर पर फर्म कितनी भी पूर्ति कर सकती है। माँग वक्र D इसे बिन्दु E पर काटता है जब संतुलन कीमत = OP तथा संतुलन मात्रा = OQ निर्धारित हो जाती है।

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प्र० 8. एक बाजार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?

उत्तर : इसे एक संख्यात्मक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लो,

qD = 3800 -2P जब `P\leq200` 

qD = 0 जब P > 200

qS = 20 + 2P जब `P\geq30`

qS = 0 जब P < 30

हम जानते हैं कि निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन के साथ बाजार संतुलन उस कीमत पर होगा, जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो अतः PO = 30

अतः

q0 = 380 - 2 (30) = 400 - 60 = 320

P0 = 30 पर प्रत्येक फर्म पूर्ति करती है

q0 =20 + 2 (30) = 80

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अतः निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन के साथ संतुलन कीमत, संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या क्रमशः 230, 320 इकाई तथा 4 है।

प्र० 9. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में (a) वृद्धि होती है (b) कमी होती है?

उत्तर : उपभोक्ता की आय में वृद्धि या कमी से संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होगी वह इस बात पर निर्भर करता है कि वस्तु सामान्य वस्तु है या निम्नकोटि की वस्तु।

(a) उपभोक्ता की आय में वृद्धि

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(b) उपभोक्ता की आय में कमी

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प्र० 10. पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?

उत्तर : जूतों की जोड़ी तथा मोजों की जोड़ी पूरक वस्तुएँ है। पूरक वस्तु की कीमत और मात्रा में ऋणात्मक संबंध है अर्थात् की कीमत बढ़ने पर Y की माँग कम हो जाती है तथा विपरीत । इसलिए जूतों की कीमतों कीमत में वृद्धि होने पर मोजों की जोड़ी की माँग में कमी होगी। तदनुसार माँग वक्र बाईं ओर खिसक जायेगा और मोजों की कीमत तथा उसकी खरीदी व बेची जाने वाली संख्या में कमी होगी। (चित्र देखें)

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प्र० 11. कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा संतुलन मात्रा पर प्रभाव को समझाइए।

उत्तर : कॉफी की कीमत में परिवर्तन का चाय की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव-

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चाय और कॉफी प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ हैं। प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत और माँग में धनात्मक संबंध होता है अर्थात् वस्तु x की कीमत बढ़ने पर वस्तु Y की मात्रा बढ़ती है, तथा विपरीत। अतः कॉफी की कीमत बढ़ने से चाय की माँग में वृद्धि होगी, माँग में वृद्धि होने पर संतुलन कीमत भी बढ़ेगी और संतुलन मात्रा भी बढ़ेगी। कॉफी की कीमत कम होने से चाय की माँग में कमी होगी। माँग में कमी होने से संतुलन कीमत भी घटेगी तथा संतुलन मात्रा भी घटेगी।

प्र० 12. जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है?

उत्तर : आगतों की कीमतों में परिवर्तन वस्तु की उत्पादन लागत और फलस्वरूप लाभ को प्रभावित करता है। इससे उत्पादक का पूर्ति वक्र प्रभावित होता है।

आगतों की कीमतों में परिवर्तन

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प्र० 13. यदि वस्तु X की स्थानापन्न वस्तु (Y) की कीमत में वृद्धि होती है तो वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?

उत्तर : वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा दोनों बढ़ जायेंगी।

प्र० 14. बाजार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में माँग वक्र के स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।

उत्तर : यदि फर्मों की संख्या स्थिर है तो माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने (माँग में वृद्धि) से संतुलन मात्रा तथा संतुलन कीमत दोनों बढ़ेंगे और माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने (माँग में कमी) से संतुलन मात्रा और संतुलन कीमत दोनों कम होंगे।

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यदि फर्मों के लिए निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है तो P = न्यूनतम औसत लागत पर स्थिर रहेगा इस कीमत पर कोई भी फर्म कितनी भी मात्रा की पूर्ति कर सकती है, परन्तु कीमत को परिवर्तित नहीं कर सकती। अतः ऐसे में माँग बढ़ने से संतुलन मात्रा बढेगी, संतुलन कीमत समान रहेगी तथा माँग कम होने से संतुलन मात्रा कम होगी, संतुलन कीमत समान रहेगी।

प्र० 15. माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।

उत्तर : इसमें तीन स्थितियाँ संभव हैं।

(i) जब माँग वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि बराबर होते हैं। इस स्थिति में माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि का प्रभाव एक दूसरे को समाप्त कर देते हैं तथा संतुलन कीमत जितनी थी उतनी ही रहती है परंतु संतुलन मात्रा अधिक हो जाती है।

(ii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से अधिक हो- इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से अधिक होता है। इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाते हैं।

(iii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से कम हो इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से कम होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाती है।

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प्र० 16. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब।

(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं?

(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?

उत्तरः

(a) माँग और पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं।

(b) जब दोनों में वृद्धि हो तो तीन स्थितियाँ संभव हैं।

(i) जब माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि बराबर होती है, इस स्थिति में माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि का प्रभाव एक दूसरे को समाप्त कर देते हैं तथा संतुलन कीमत जितनी थी उतनी ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा अधिक हो जाती है।

(ii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से अधिक हो इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से अधिक होता है। इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाते हैं।

(iii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से कम हो- इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से कम होता है अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाती है।

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(c) जब माँग और पूर्ति दोनों में एक साथ कमी हो तो तीन स्थितियाँ संभव हैं।

(i) जब माँग में कमी पूर्ति में कमी के बराबर हो-इस स्थिति में माँग में कमी तथा पूर्ति में कमी का प्रभाव एक दूसरे को खत्म कर देता है। इस स्थिति में संतुलन कीमत जितनी थी उतनी ही रहती है परंतु संतुलन मात्रा पहले से अधिक हो जाती है।

(ii) जब माँग में कमी पूर्ति में कमी से अधिक होती है-इस स्थिति में माँग में कमी का प्रभाव पूर्ति में कमी के प्रभाव से अधिक होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा दोनों पहले से कम हो जाते हैं।

(iii) जब माँग में कमी पूर्ति में कमी से कम होती है-इस स्थिति में माँग में कमी का प्रभाव पूर्ति में कमी के प्रभाव से कम होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत पहले से बढ़ जाती है, जबकि संतुलन मात्रा पहले से कम हो जाती है।

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प्र० 17. वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?

उत्तर : वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में दोनों में ईष्टतम मात्रा का निर्धारण पूर्ति और माँग शक्तियों द्वारा ही होता है। परन्तु श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति करने वाले परिवार क्षेत्रक है और श्रम की माँग फर्मों से आती है, जबकि वस्तुओं के बाजार में वस्तुओं की माँग करने वाले परिवार क्षेत्रक है और श्रम की माँग फर्मों से आती है। मजदूरी दरें तथा ईष्टतम मात्रा का निर्धारण श्रम के लिए माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है, जहाँ श्रम की माँग और पूर्ति संतुलन में हों। इसी प्रकार वस्तुओं की कीमतों तथा ईष्टतम मात्रा का निर्धारण भी पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है, जहाँ वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर हो।

प्र० 18. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?

उत्तर : मजदूरी दर और ईष्टतम मात्रा का निर्धारण श्रम के लिए माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है।

प्र० 19. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?

उत्तर : एक अधिकतमकर्ता फर्म उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी, जिस पर श्रम की अंतिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने के अतिरिक्त लागत मजदूरी दर w है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमांत उत्पाद तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमांत संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमांत संप्राप्ति तथा सीमांत उत्पाद के गुणनफल के बराबर है। इसे सीमांत संप्राप्ति उत्पाद कहा जाता है। अतः फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है जहाँ।

w = श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद

तथा श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद = सीमांत संप्राप्ति x श्रम का सीमांत उत्पाद

जब तक श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर से अधिक है, फर्म श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग करके अधिक लाभ अर्जित कर सकती है तथा यदि श्रम उपयोग के किसी भी स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर की तुलना से कम हैं, तो फर्म श्रम की एक इकाई कम करके अपने लाभ में वृद्धि कर सकती है।

प्र० 20. क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?

उत्तर : भारत में ऐसी कई वस्तएँ हैं जहाँ सरकार कुछ वस्तुओं की अधिकतम स्वीकार्य कीमत निर्धारित करती है। जैसे-गेहूँ, चावल, मिट्टी का तेल आदि। नीचे दिया गया चित्र पेट्रोल के लिए बाजार पूर्ति वक्र SS तथा बाजार माँग वक्र DD को दर्शा रहा है। इसके अनुसार पेट्रोल की संतुलन कीमत OP तथा OQ है। परन्तु सरकार इसकी कीमत OP0 पर निर्धारित कर देती हैं। इस कीमत पर इसकी माँग (OQ1) इसकी पूर्ति (OQ1) से अधिक है। बाजार में अधिमाँग है। अतः बाजार में वस्तु की कमी हो जायेगी। ऐसी स्थिति का परिणाम निम्नलिखित हो सकते हैं

1. कालाबाजारी

2. राशन कूपनों का प्रयोग करके सामान खरीदने के लिए लम्बी कतारें।

प्र० 21. माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।

उत्तर : जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तो माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में माँग वक्र दाईं ओर नीचे की ओर ढलान वाला तथा पूर्ति वक्र दाईं ओर ऊपर की ओर ढलान वाला होता है। इसे नीचे दिए वक्र में दिखाया गया है। जब माँग वक्र DD से D1D1 की ओर खिसक गया तो नई संतुलन कीमत OP1 तथा नयी संतुलन मात्रा OQ1 पर निर्धारित हो गई।

दूसरी स्थिति जब फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा विकास की स्वतंत्रता हो तो पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार होता है। ऐसे में माँग में वृद्धि होने पर संतुलन कीमत समान रहती है, परन्तु संतुलन मात्रा बढ़ जाती हैं इसे नीचे दिए चित्र में दिखाया गया है। माँग वक्र DD में वृद्धि पर यह D1D1 पर खिसक जाता है। इसके खिसकने से संतुलन कीमत समान रहती है, परन्तु संतुलन मात्रा 0Q1 पर निर्धारित हो जाती है।

अतः यह कहना बिल्कुल उचित है कि माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है उसकी तुलना में जब निर्बाध प्रवेश तथा । बहिर्गमन की अनुमति हो।

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प्र० 22. मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैं। की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?

उत्तर :

1. 15₹ से कम किसी भी कीमत पर वस्तु X की पूर्ति के शून्य होने का कारण है कि 15₹ न्यूनतम औसत लागत है। यदि एक फर्म को अपनी न्यूनतम औसत लागत जितनी कीमत भी नहीं मिल रही तो वह उत्पादन नहीं करेगी, अतः qS = 0 होगा।

2 संतुलन कीमत वहाँ निर्धारित होगी जहाँ

qD = qS हो, 700 = P = 500 + 3P

4P = 200,  P = 50, P = 250

3. संतुलन कीमत पर संतुलन मात्रा ज्ञात करने के लिए

qD = 700 - P , q0 = 700 - 50 = 650

q5 = 500 + 3P,  qs = 500 + 3(50) = 650

650 = 650

प्र० 23. अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु X का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है -

qS = 8 + 3P क्योंकि `P\geq20` = 0 क्योंकि `0\leq P<20`

(a) P = 20 का क्या महत्त्व है?

(b) बाजार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।

(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।

उत्तर :

(a) P = 20 का अर्थ है कि इतनी फर्म की औसत लागत है। यदि यह भी एक फर्म को नहीं मिलती तो वह उत्पादन बंद कर देगी और उत्पादन शून्य के बराबर होगा।

(b) बाजार में फर्म की संतुलन कीमत P = 20 होगी क्योंकि यदि बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा अधिर्गमन की अनुमति है तो कोई भी फर्म न्यूनतम औसत लागत से अधिक कीमत नहीं ले सकती।

(c) संतुलन मात्रा qD = 700 – P,  P = 20

qD = 700 - 20 = 680 इकाइयाँ

एक फर्म द्वारा पूर्ति = 8 + 3P

= 8 + 3(20) = 8 + 60 = 68 इकाइयाँ

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प्र० 24. मान लीजिए कि नमक की माँग की पूर्ति वक्र इस प्रकार दिया गया है।

qD = 1000 - p, qs = 700 + 2p

(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।

(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र हैः

qS = 400 + 2p

संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?

उत्तर :

(a) संतुलन बिन्दु वहाँ होगा जहाँ।

qD = qS

1000 - P = 700 + 2P

3P = 300, P = 100

संतुलन मात्रा = 1000 - 100 = 900

(b) नयी संतुलन कीमत और मात्रा के लिए

qD = qS

1000 – P = 400 + 2P

3P = 600,

संतुलन मात्रा, 1000 – 200 = 800

अतः संतुलन कीमत में वृद्धि हो गई और संतुलन ममात्रा में कमी हो गई। यह हमारी अपेक्षा के अनुकूल है। पूर्ति में कमी होने पर संतुलन कीमत बढ़ती है और संतुलन मात्रा कम होती है।

प्र० 25. मान लीजिए कि अपार्टमेंट के लिए बाजार निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता। यदि सरकार किराए पर अपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका अपार्टमेंटों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर : ऐसे में बाजार में अधिमाँग उत्पन्न होगा। अपार्टमेंट लेने की माँग अधिक होगी और सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर किराये के लिए अपार्टमेंट की पूर्ति कम होगी। इस स्थिति में या तो सरकार को सरकारी अपार्टमेंट किराये पर देकर इस अधिमाँग को पूरा करना होगा या बाजार की यह अधिमॉग कालाबाजारी को जन्म देगी, जिसमें अपार्टमेंट के मालिक सरकार द्वारा निर्धारित किराये से अधिक किराया वसूल करेंगे और उस किराये पर भी उन्हें किरायेदार मिल जायेंगे।

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JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

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