परिचय -
खुली अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें अन्य
राष्ट्रों के साथ वस्तुओं और सेवाओं तथा वित्तीय परिसंपत्तियों का भी व्यापार किया
जाता है।
विश्व के दूसरे अर्थव्यवस्थाओं के संपर्क में आने से तीन
प्रकार से चयन का विस्तार हुआ है
1. उपभोक्ताओं
और फर्मों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं के बीच चयन का अवसर मिलता है ।
2. निवेशकों को भी घरेलू और विदेशी परिसंपत्तियों के बीच
चयन का अवसर प्राप्त होता है ।
3. फर्मों को उत्पादन के स्थान का चयन करने तथा श्रमिकों
को चयन करने की स्वतंत्रता होती है ।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रयोग की जाने वाली मुख्य
धारणाएं
1. भुगतान शेष अथवा संतुलन
2. व्यापार शेष अथवा संतुलन
1. भुगतान शेष अथवा संतुलन -
• भुगतान संतुलन में किसी एक देश के निवासियों और शेष विश्व
के बीच वस्तुओं, सेवाओं और परिसंपत्तियों की लेनदेन का विवरण होता है।
• यह
मौद्रिक लेन-देन वस्तुओं के आयात एवं निर्यात को जिन्हें दृश्य मदें कहते हैं ।
• सेवाओं
के आयात एवं निर्यात जिन्हें अदृश्य मदें कहते हैं
• वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे स्टॉक एंड बांड्स की अंतरराष्ट्रीय
बिक्री एवं खरीद तथा वास्तविक परिसंपत्तियों जैसे (प्लांट एवं मशीनरी) के रूप में ली
जाती है।
भुगतान शेष का महत्व -
1. भुगतान शेष के खाते किसी देश के निर्यात एवं आयात के
स्तर को दिखाते हैं अधिक निर्यात अर्थव्यवस्था की आधिक्य को बताते हैं इसे व्यापार
आधिक्य कहा जाता है, जब आयात निर्यात से अधिक होता है तो उसे व्यापार घाटा कहते
हैं ।
2. भुगतान शेष के खाते घरेलू बाजार के स्टॉक एवं बॉण्ड्स
को खरीदने में विदेशियों द्वारा किए गए निवेश को प्रकट करते हैं।
भुगतान शेष खाते के घटक चालू खाता, पूंजी खाता
1. चालू खाता (current Acount) चालू खाता वस्तुओं के निर्यात
एवं आयात सेवाओं के निर्यात एवं आयात तथा चालू हस्तांतरण का रिकॉर्ड रखता है।
वस्तुओं के निर्यात और आयात को दृश्य मद कहते हैं तथा सेवाओं
के निर्यात एवं आयात को अदृश्य मद कहते हैं सेवाओं को निम्नलिखित रुप से विभाजित किया
जा सकता है -
1. कारक सेवाओं में कारक आय (निवेश आय कर्मचारियों का पारिश्रमिक)
के रूप में शामिल होते है
2. गैर कारक सेवा में जहाजरानी, बैंकिंग, बीमा के रूप में
किये गए भुगतान ले रूप में शामिल किए जाते है।
3. चालू हस्तांतरणों में उपहार, अनुदान एवं कर्मचारियों द्वारा
भेजी गई राशि के रूप में एकपक्षीय अंतरण है।
2. पूंजी खाता (Capital Acount)
• पूंजी खाता वह खाता है जो एक देश के निवासियों एवं शेष
विश्व के निवासियों के मध्य ऋण तथा विनिवेश जिससे देश के निवासियों तथा उनकी सरकार
के संपत्ति तथा दायित्व के स्तर में परिवर्तन होता है, शामिल किए जाते हैं। इसमें निजी
पूंजी, बैंकिंग पूंजी, अधिकृत पूंजी, सोना तथा विदेशी पूंजी शामिल हैं।
• उधार तथा निवेश भुगतान शेष की पूंजी खाते के दो मुख्य घटक
हैं।
उधार को 1. बाहरी वाणिज्यिक तथा 2. बाहरी सहायता के रूप में
विभाजित किया जाता है।
दोनों में मुख्य अंतर यह है कि बाहरी वाणिज्यक उधार ब्याज
की बाजार दर पर उपलब्ध होता है जबकि बाहरी सहायता ब्याज की रियायती दरों पर उपलब्ध
होती है।
• निवेश को पोर्टफोलियो निवेश तथा FDI में बांटा जाता है।
• पोर्टफोलियो निवेश से मूल रूप से अभिप्राय विदेशी संस्थागत
निवेश FII है, जिसमें गैरनिवासियों द्वारा घरेलू कंपनियों के शेयरों तथा बांड्स में निवेश किया जाता
है।
• FDI का संबंध गैर - निवासियों द्वारा घरेलू अर्थव्यवस्था
के उद्यमों पर स्वामित्व से है। जैसे भारत में वॉलमार्ट स्टोर।
• पूंजी खाते में बैंकिंग पूंजी को भी शामिल किया जाता है
क्योंकि वहां पर विदेशी परिसंपत्तियों को रखा जाता है।
• अल्पकालीन ऋण को भी पूंजी खाते में शामिल किया जाता है।
भुगतान शेष खाते की स्वायत्त तथा समायोजक मदें
स्वायत्त मदें-
• भुगतान शेष की वे सौदें जो लाभ के विचार से किए जाते हैं
स्वायत्त मद कहलाता है ।
• इन मदों को भुगतान संतुलन में रेखा के ऊपर की मदें कहा
जाता है।
• स्वायत्त मदों में वस्तुओं का संचलन सीमाओं के आर पार हो
सकता है।
• स्वायत्त मदें भुगतान शेष के असंतुलन का कारण है।
समायोजक मदें-
• इन क्रियाओं को भुगतान संतुलन में रेखा के नीचे की मदें
कहा जाता है।
• समायोजित मदें लाभ के विचार से स्वतंत्र होती हैं।
• यह अल्पकालीन क्षतिपूर्ति पूंजीगत सौदें हैं जो भुगतान
शेष की स्वतंत्र मदों में असंतुलन को ठीक करने के लिए किए जाते हैं ।
व्यापार शेष (Balance of Trade) -
व्यापार शेष एक वर्ष के दौरान शेष विश्व से होने वाले व्यापारिक सौदों को स्पष्ट रूप से दिखाता है यह वस्तुओं के आयात एवं निर्यात में अंतर को बताता है।
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अंतर
व्यापार शेष |
भुगतान शेष |
1. व्यापार शेष से अभिप्राय वस्तुओं (दृश्य मदों) के निर्यात
तथा आयात की मात्रा के अंतर से है। |
1. यह एक लेखा विवरण है जो दिए गए समय अंतराल में एक देश
के निवासियों तथा शेष विश्व के मध्य सभी आर्थिक सौदों का विवरण है। |
2. व्यापार से इसमें केवल दृश्य मदें शामिल होती हैं। |
2. भुगतान शेष में दृश्य मदें, अदृश्य मदें, एकतरफा हस्तांतरण
तथा पूंजी हस्तांतरण शामिल होते हैं। |
3. यह संकीर्ण अवधारणा है क्योंकि यह भुगतान शेष के खाते
का एक हिस्सा है। |
3. विस्तृत अवधारणा है और इसमें व्यापार शेष शामिल हैं। |
4. भुगतान शेष अनुकूल होने पर भी व्यापार शेष प्रतिकूल
हो सकता है। |
4. अनुकूल भुगतान शेष होने पर भी प्रतिकूल व्यापार शेष
प्राप्त नहीं किया जा सकता है। |
विदेशी विनिमय बाजार-
विदेशी विनिमय बाजार में विदेशी मुद्रा को खरीदा अथवा बेचा
जाता है विदेशी विनिमय बाजार का स्थान नहीं बल्कि एक प्रणाली है, जहां विदेशी विनिमय
दलाल, बैंक, केंद्रीय बैंक आदि मुख्य प्रतिभागी होते हैं।
विदेशी
विनिमय बाजार के कार्य
1. विदेशी मुद्रा का अंतरराष्ट्रीय हस्तांतरण विदेशी विनिमय
बाजार विदेशी मुद्रा को जहां उसकी आवश्यकता होती है एक देश से दूसरे देश में हस्तांतरित
करने में सहायक होती है।
2. विदेशी व्यापार के लिए साख प्रदान करते हैं विदेशी विनिमय
बाजार विदेशी व्यापार के लिए साख प्रदान करते हैं।
3. विदेशी विनिमय के जोखिम से सुरक्षा विदेशी विनिमय जोखिमों
से सुरक्षा प्रदान करता है इस कार्य को सुरक्षा कार्य कहा जाता है जब विनिमय अनुबंध
वर्तमान में पुराना होकर भविष्य में पूरे होते हैं।
विदेशी विनिमय दर (Foreign Exchange Rate)
विदेशी विनिमय दर का तात्पर्य उस दर से है जिस पर किसी देश
की मुद्रा की एक इकाई दूसरे देश की मुद्रा की कितनी इकाइयों के बराबर होगी। अर्थात
अंतरराष्ट्रीय विनिमय बाजार में एक देश की मुद्रा की एक इकाई के बदले में विदेशी मुद्रा
की कितनी इकाइयां प्राप्त कर सकते हैं उसे ही विदेशी विनिमय दर कहते हैं । जैसे-
$1=₹50 अथवा ₹1=1/50$
विनिमय दर के प्रकार
1. स्थिर विनिमय दर प्रणाली-
स्थिर विनिमय दर का
अर्थ है कि विनिमय की दर सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। यह दो प्रकार की होती
है -
A- विनिमय दर की स्वर्ण मान प्रणाली
B- विनिमय दर की ब्रेटन वुड्स प्रणाली
A- विनिमय दर की स्वर्ण मान प्रणाली-
यह प्रणाली 1920 के
दशक से पूर्व अनेक भागों में प्रचलित थी इस प्रणाली के अनुसार विभिन्न देशों में प्रचलित
करेंसी को एक समता के रूप में स्वर्ण को माना गया था प्रत्येक देश को अपनी करेंसी का
मूल्य स्वर्ण के रूप में परिभाषित करना होता था एक करेंसी का मूल्य दूसरी करेंसी में
निर्धारित करने के लिए प्रत्येक करेंसी के स्वर्ण मूल्य की तुलना की जाती थी।
जैसे एक यूके पाउंड = 4 ग्राम सोना
एक USA डॉलर = 2 ग्राम सोना
B-
विनिमय दर के ब्रेटन वुड्स प्रणाली
• 1944 ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना हुई तथा स्थिर विनिमय दर प्रणाली
की भी स्थापना की गई।
• परिसंपत्तियों के चयन के रूप
में यह अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमान से भिन्न था जिसमें राष्ट्रीय करेंसी को परिवर्तनीय
बनाया गया।
• विभिन्न करेंसी को अमेरिकी
डॉलर के साथ संबंधित कर दिया गया।
• अमेरिकी डॉलर का एक निश्चित
कीमत पर स्वर्ण मूल्य निर्धारित कर दिया गया।
• किसी करेंसी के समता मूल्य
में समायोजन केवल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की अनुमति से ही संभव था।
लोचदार
(नम्य) विनिमय दर (Flexible Exchange Rate)- विभिन्न
राज्यों के मध्य स्वर्ण की दुर्लभता तथा उसकी मां समान उपलब्धता के कारण स्थिर विनिमय
दर प्रणाली का पतन हो गया 1977 में इसको लोचशील विनिमय दर प्रणाली से बदला गया। लोचदार
(नम्य) विनिमय दर से अभिप्राय उस दर से हैं जो विदेशी विनिमय बाजार से संबंधित मुद्रा
की मांग तथा पूर्ति शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
नम्य
(लोचदार) विनिमय दर का निर्धारण- इस सिद्धांत के अनुसार
किसी देश की करेंसी की विनिमय दर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में उसकी मांग तथा पूर्ति
द्वारा निर्धारित होती है। कीमत तथा मांग के बीच वितरित संबंध होता है मांग वक्र का
ढलान बाएं से दाएं नीचे की ओर होता है जबकि पूर्ति वक्र का ढालान बाएं से दाएं ऊपर
होता है।
विनिमय की संतुलन दर- जिस दर पर विदेशी करेंसी की मांग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है उसे विनिमय की संतुलन दर कहते है।
चित्र की व्याख्या- चित्र में विदेशी मुद्रा से संबंधित मांग तथा पूर्ति को
X-अक्ष पर तथा विनिमय दर को Y-अक्ष पर दिखाते हैं।
DD = विदेशी विनिमय के लिए मांग वक्र है। यह नीचे की ओर ढालू
है जो बताता है कि विदेशी विनिमय की कीमत में वृद्धि से विदेशी वस्तुओं खरीदने कि रुपए
के रूप में लागत में वृद्धि होगी।
SS = विदेशी विनिमय वक्र का पूर्ति वक्र है पूर्ति वक्र ऊपर
की ओर ढालू है जो बताता है कि यदि विदेशी विनिमय की दर बढ़ती है तो विदेशी विनिमय की
पूर्ति भी बढ़ जाती है क्योंकि रुपए का मूल्य घटता है विदेशियों के लिए घरेलू वस्तु
सस्ता हो जाते हैं। जिससे मेरी आंतों की मांग बढ़ती है और विदेशी विनिमय की पूर्ति
भी बढ़ती है।
बिंदु E = यह संतुलन बिंदु है जहां विदेशी विनिमय की मांग
वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों एक दूसरे को काटते हैं। अमेरिकी डॉलर के लिए विदेशी विनिमय
दर बाजार में संतुलन विनिमय दर प्रदान करता है इसे विनिमय का समता मूल्य भी कहा जाता
है।
प्रश्नोत्तरी
प्रश्न 1. संतुलित व्यापार शेष और चालू मखाता
संतुलन में अंतर स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर : संतुलित बाजार शेष का अर्थ है कि देश में वस्तुओं
का निर्यात और वस्तुओं का आयात बराबर है। सूत्र के रूप में,
संतुलित व्यापार शेष वस्तुओं का निर्यात वस्तुओं का आयात
= 0
चालू खाता संतुलन का अर्थ है कि देश में वस्तुओं का निर्यात,
सेवाओं का निर्यात तथा हस्तांतरण प्राप्तियों का योग वस्तुओं के आयात, सेवाओं के आयात
तथा हस्तांतरण भुगतान के योग के बराबर हो, सूत्र के रूप में।
चालू खाता संतुलन = वस्तुओं का निर्यात + सेवाओं का निर्यात
+ हस्तांतरण प्राप्तियाँ - वस्तुओं का आयात - सेवाओं का आयात - हस्तांतरण भुगतान =
0
प्रश्न 2. आधिकारिक आरक्षित निधि का लेन-देन
क्या है? अदायगी संतुलन में इनके महत्व का वर्णन कीजिए?
उत्तर : आधिकारिक आरक्षित लेन-देन से अभिप्राय सरकारी कोषों
में उपलब्ध सोने के कोष तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के कोष में कमी और वृद्धि से है।
इसका प्रयोग अदायगी संतुलन के आधिक्य और घाटे को ठीक करने के लिए किया जाता है। घाटे
की दशा में विदेशी विनिमय बाजार में करेंसी को बेचकर तथा अपने देश के विदेशी विनिमय
को कम करके कोई देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है। अधिकृत आरक्षित
निधि में कमी को कुल अदायगी-घाटा संतुलन कहते हैं। इसके विपरीत आधिक्य की दशा में विदेशी
विनिमय बाजार में करेंसी को खरीदकर तथा अपने देश के विदेशी विनिमय को बढ़ा करके कोई
देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है। अधिकृत आरक्षित निधि में वृद्धि
को कुल अदायगी आधिक्य संतुलन कहते हैं।
प्रश्न 3. मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय
दर में भेद कीजिए यदि आपको घरेलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने
का निर्णय करना हो तो कौन-सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?
उत्तर : मौद्रिक विनिमय दर वह विनिमय दर है, जिसमें एक करेंसी
की अन्य करेंसियों के संबंध में औसत शक्ति को मापते समय कीमत स्तर में होने वाले परिवर्तनों
पर ध्यान नहीं दिया जाता। अन्य शब्दों में, यह मुद्रास्फीति के प्रभाव से मुक्त नहीं
होती। इसके विपरीत, वास्तविक विनिमय दर वह है जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के कीमत
स्तरों में होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखा जाता है। यह वह विनिमय दर से, जो स्थिर
कीमतों पर आधारित होने के कारण मुद्रास्फीति के प्रभाव से मुक्त होती है। किसी भी एक
समय पर, घरेलू वस्तुएँ खरीदने के लिए मौद्रिक विनिमय दर अधिक उपयुक्त होती है।
प्रश्न 4. यदि 1₹ की कीमत 1.25 येन है और जापान
में कीमत स्तर 3 हो तथा भारत में 1.2 हो तो भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर
की गणना कीजिए (जापानी वस्तु की कीमत भारतीय वस्तु के संदर्भ में)। संकेत रू रुपये
में येन की कीमत के रूप में मौद्रिक विनिमय दर को पहले ज्ञात कीजिए?
उत्तर : ₹1 =
1.25 येन
∴ 1 येन = ₹ = ₹0.80
यह मौद्रिक विनियम दर है।
वास्तविवक विनियम दर
1 येन = ₹0.32
प्रश्न 5. स्वचालित युक्ति की व्याख्या कीजिए,
जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था?
उत्तर : डेविड ह्यूम (David Hume) नामक एक अर्थशास्त्री ने
1752 में इसकी व्याख्या की कि किस प्रकार स्वर्णमान के अंतर्गत स्वचालित युक्ति से
अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था। उनके अनुसार यदि सोने के भण्डार में कमी हुई,
तो सभी प्रकार की कीमतें और लागत भी अनुपातिक रूप से कम होंगी और इसके फलस्वरूप घरेलू
वस्तुएँ विदेशी वस्तुओं की तुलना में सस्ती हो जायेंगी। तदनुसार, आयात घटेगा और निर्यात
बढेगा। जिस देश से घरेलू अर्थव्यवस्था आयात कर रही थी और सोने में उसको भुगतान कर रही
थी, उसको कीमतों और लागतों में वृद्धि का सामना करना पड़ेगा। अतः उनका महँगा निर्यात
घटेगा और घरेलू अर्थव्यवस्था से आयात बढ़ेगा। इस प्रकार धातुओं के कीमत तंत्र द्वारा
सोने की क्षति उठाकर अदायगी संतुलन में सुधार लाना होता है। सापेक्षिक कीमत। पर जब
तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में साम्य की पुनर्स्थापना नहीं होती, तब तक प्रतिकूल व्यापार
संतुलन वाले देश के अदायगी संतुलन को अनुकूल व्यापार संतुलन वाले देश के अदायगी संतुलन
को समकक्ष लाता है। इस संतुलन की प्राप्ति के बाद शुद्ध सोने का प्रवाह नहीं होता और
आयात-निर्यात संतुलन बना रहता हैं इस प्रकार स्वचालित साम्यतंत्र के द्वारा स्थिर विनिमय
दर को कायम रखा जाता था।
प्रश्न 6. नम्य विनिमय दर व्यवस्था में विनिमय
दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर : नम्य विनिमय दर का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार
में पूर्ति तथा माँग की शक्तियों द्वारा होता है, जबकि विदेशी विनिमय की माँग इसकी
अपनी कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है, विदेशी विनिमय की पूर्ति इसकी अपनी कीमत
से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होती है।
प्रश्न 7. अवमूल्यन और मूल्यह्रास में अंतर
स्पष्ट कीजिए?
उत्तर : अवमूल्यन सरकार द्वारा आयोजन के अनुसार विदेशी करेंसी
के संबंध में घरेलू करेंसी के मूल्य में कमी है, यह उस स्थिति में होता है जब विनिमय
दर का निर्धारण पूर्ति और साँग की शक्तियों द्वारा नहीं होता है परंतु विभिन्न देशों
की सरकारों द्वारा निश्चित किया जाता है। मूल्यहास विदेशी करेंसी के संबंध में, घरेलू
करेंसी के मूल्य में आने वाली कमी है, यह उस स्थिति में होता है, जब अंतर्राष्ट्रीय
मुद्रा बाजार में विनिमय दर का निर्धारण पूर्ति और माँग की शक्तियों द्वारा होता है।
प्रश्न 8. क्या
केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा? व्याख्या कीजिए ?
उत्तर : हाँ केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप
करेगा यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में विदेश करेंसी के विक्रय तथा क्रय के द्वारा
होता है। जब केंद्रीय बैंक को लगता है कि घरेलू करेंसी के बाजार मूल्य का अत्याधिक
मूल्यह्रास हो रहा है, तो इसे नियंत्रित करने के लिए तथा घरेलू करेंसी के पूर्व मूल्य
को स्थापित करने के लिए यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में यू.एस. डॉलर की बिक्री
करेगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर बेचकर केंद्रीय बैंक डॉलर पूर्ति में
वृद्धि करता है। अन्य बातें समान रहने पर डॉलर की पूर्ति में वृद्धि होने से घरेलू
करेंसी के संबंध में डॉलर की कीमत में कमी की संभावना होती है। ऐसी क्रिया तब अनिवार्य
हो जाती है, जब रुपये के मूल्य में कमी के कारण सरकार का आयात बिल बढ़ जाता है। इसी
भांति जब केंद्रीय बैंक यह महसूस करता है कि घरेलू करेंसी का बाजार मूल्य अत्यधिक बढ़
रहा है तो वह विदेशी करेंसी खरीदना आरंभ कर देता है जब विदेशी करेंसी के लिए माँग में
वृद्धि होती है, तो घरेलू करेंसी के संबंध में इसकी कीमत बढ़ने लगती है अब विदेशी एक
यू.एस. डॉलर से अधिक घरेलू वस्तुएँ खरीद सकते हैं। तदनुसार, घरेलू वस्तुओं के लिए निर्यात
माँग पुनः होने लगती है।
प्रश्न 9. क्या देशी वस्तुओं की माँग और वस्तुओं
की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक समान हैं?
उत्तर : घरेलू वस्तुओं के लिए माँग तथा वस्तुओं के लिए घरेलू
माँग दोनों अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। घरेलू वस्तुओं के लिए माँग में घरेलू उपभोक्ताओं तथा विदेशियों
द्वारा वस्तुओं के लिए की गई माँग शामिल होती है। वस्तुओं के लिए घरेलू माँग देश तथा
विदेश में उत्पादित वस्तुओं के लिए की गई माँग है।
घरेलू वस्तुओं के लिए माँग = C+I+G+X-M
वस्तुओं के लिए घरेलू माँग = C+ I + G
अतः घरेलू वस्तुओं के लिए माँग वस्तुओं के लिए घरेलू माँग+
(X-M)
प्रश्न 10. जब M = 60 + 0.06Y हो, तो आयात
की सीमांत प्रवृत्ति क्या होगी? आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन में क्या
संबंध है?
उत्तर : आयात की सीमांत प्रवृत्ति = 0.06 होगी आयात की सीमांत
प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन से अप्रत्यक्ष संबंध है। अर्थात आयात की सीमांत प्रवृत्ति
बढ़ने पर समस्त माँग फलन कम हो जाता है और आयात की सीमांत प्रवृत्ति कम होने पर समस्त
माँग फलन बढ़ जाता है।
प्रश्न 11. खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्त व्यय
खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा क्यों होता है?
उत्तर : खुली अर्थव्यवस्था गुणक बंद अर्थव्यवस्था गुणक से
छोटा होता है, क्योंकि घरेलू माँग का एक हिस्सा विदेशी वस्तुओं के लिए होता है। अतः
स्वायत्त माँग में वृद्धि से बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में निर्गत में कम वृद्धि होती
है। इससे व्यापार शेष में भी गिरावट होती है।
प्रश्न 12. पाठ में एकमुश्त कर की कल्पना के
स्थान पर आनुपातिक कर T = tY के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की। गणना कीजिए?
उत्तर : यदि कर = T है तो गुणक की गणना इस प्रकार होगी-
AD = a+b(y-T+TR) + 1 + g
AD₁ = a +b(y - ΔT + TR) + I + G
आय का संतुलन y = AD
कर गुणांक =
अतः अनुपातिक करों सं आय के स्तर पर न केवल उपभोग पहले से
कम होगा, बल्कि उपभोग फलन की प्रवणता भी पहले से कम होगी।
अतः ऐसे में AD = a + b (1-b)y+ bTR + I + G होगा
संतुलन AD = AS
y = a+b(1-t)y + bTR + I + G
अतः गुणक
अतः इकमुश्त कर की स्थिति में कर गुणक
और अनुपातिक वार की स्थिति में कर गुणक
इससे सिद्ध होता है कि एकमुश्त कर की स्थिति में कर गुणक
अधिक होता है और अनुपातिक कर की स्थिति में यह कम होता है। एकमुश्त कर की स्थिति में
जब सरकारी व्यय में वृद्धि के फलस्वरूप, जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में आय
की वृद्धि की C गुणा वृद्धि होती है। अनुपातिक कर के साथ उपभोग में C- गुणा आय में
वृद्धि होती है।
प्रश्न 13. मान लीजिए C = 40 + 0.8yD, T =
50 I = 60, G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y
(a) संतुलन आय ज्ञात कीजिए,
(b) संतुलन आय पर निवल निर्यात संतुलन ज्ञात
कीजिए,
(c) संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन क्या
होता है जब सरकार के क्रय में 40 से 50 की वृद्धि होती है?
उत्तर : (a) आय संतुलन में होती है जब
AD = AS
AD=C+I+G+ (X - M), AS=y
AD = 40 + 0.8(y - 50) + 60 + 40 + 90 - 50 - 0.5y(yD
= y - T)
AS=y,
y = 180 + 0.8y - 40 - 0.5y
y - 0.3y = 140
0.3y = 140
y = ₹200 करोड़
(b) (i) निवल निर्यात = X - M = 90 - 50 - 0.5y
y = 200 डालने पर
= 40 – 0.5(200) = ₹60 करोड़
(c) यदि G = 50 तो संतुलन आय
y = 40 + 0.8(y-50) + 60 + 50 + 90 - 50 - 0.5y(yD
= y - T)
y = 190 + 0.8y - 40 – 0.5y
y = 150 + 0.3y
0.7y = 150
(ii) यदि G = 50 हो तो निवल निर्यात = X - M
90 - 50 - 0.5y
40 – 107.14 = 67.14 करोड़
प्रश्न 14. उपर्युक्त उदाहरण में यदि निर्यात
में x = 100 का परिवर्तन हो तो संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन में परिवर्तन ज्ञात
कीजिए ?
उत्तर : माना संतुलन AD = AS
AD = C+I+G+(X-M)
AS = y
C+I+G+(X-M) = y
40 +0.8(y-50)+60+40+(100-50-0.5y) = y
40+0.8y-40+60+40+50 - 0.5y = y
0.7y = 150,
y = 214.28 करोड़
निवल निर्यात = X - M
100-50-0.5(214.28)
= 50- 107.14 = -57.14 करोड़
प्रश्न 15. व्याख्या कीजिए कि G-T = (Sg-I)-
(X-M)
उत्तर : एक अर्थव्यवस्था में आय संतुलन में होता है जब
AD = AS हो।
AD = C+I+G+(X - M)
AS = C+S+T
अतः अर्थव्यवस्था संतुलन में होती है जब
C+S+T = C+I+G+(X-M)
पुनः प्रतिबंधित करने पर
(S-I)-(X-M)
अतः सिद्ध हुआ।
यह इसकी बीजगणितीय सिद्धि थी। तार्किक आधार पर अर्थव्यवस्था
संतुलन में होती है, जब क्षरण = भरण हो। S, T और M क्षरण हैं जबकि I, G और X भरण हैं।
जब इनका अंतर बराबर होगा तो आय को चक्रीय प्रवाह संतुलन होगा।
प्रश्न 16. यदि
देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो तो
दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?
उत्तर : देश B के लोग घरेलू वस्तुएँ अधिक लेंगे और आयात कम
करेंगे विदेशी भी देश की वस्तुएँ अधिक खरीदेंगे। अतः देश B में निर्यात झ आयात होगा इसीलिए देश
का व्यापार शेष धनात्मक होगा। इसके विपरीत देश A के लोग विदेशी वस्तुएँ अधिक लेंगे
और आयात अधिक करेंगे। विदेशी भी देश A से वस्तुएँ खरीदना नहीं चाहेंगे अतः देश में
आयात > निर्यात होगा इसीलिए देश A का व्यापार शेष ऋणात्मक होगा।
प्रश्न 17. क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का
संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर : चालू पूँजीगत खाता खतरे का संकेत होगा यदि इसका प्रयोग
उपभोग अथवा गैर विकासात्मक कार्यों के लिए किया जा रहा है। यदि इसका उपयोग विकासात्मक
योजनाओं के लिए किया जा रहा है, तो इससे अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार का स्तर ऊँचा
उठेगा। आय और रोजगार का स्तर ऊँचा उठने का अर्थ है कि भारतीयों की क्रय शक्ति बढ़ेगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्यात क्षमता बढ़ेगी, विदेशों में निवेश करने की क्षमता बढ़ेगी
तथा सरकारी आय (कर तथा अन्य कारकों से) बढ़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था इस घाटे की पूर्ति
करने में समर्थ हो जायेगी।
प्रश्न 18. मान लीजिए C = 100+ 0.75YD, I =
500, G = 750 कर आय का 20 प्रतिशत है, X = 150, M = 100+ 0.2Y है तो संतुलन आय, बजट
घाटा अथवा आधिक्य और व्यापार घाटा अथवा अधिक्य की गणना कीजिए ?
उत्तर : अर्थव्यवस्था में संतुलन आय स्तर वह होता है जहाँ
AD = AD,
AD = C+I+G+(X-M)
AD = 100+ 0.75(y - 0.2y) + 500 + 750+ (150-100 -0.2y)
(yd = y -0.2y क्योंकि कर आय का 20% है।)
∴
AD = 1350 + 0.75 - 0.15y + 50
- 0.2y
AD = 1400 + 0.40y,
AS =y
∴
AS = AD,
y = 1400 + 0.40y
y - 0.40y = 1400,
0.60y = 1400
करोड़
बजट घाटा = G - T
750 - 0.2 (2333.33) = 750 - 466.66 = 283.34 करोड़
व्यापार घाटा = X – M = 150 - 100 - 0.2y
50 - 0.292333.33 = 50 - 466.66 = 411.66 करोड़
प्रश्न 19. उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा
कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए किया है।
उत्तर : निम्नलिखित विनिमय दर व्यवस्थाओं का कुछ देशों ने
अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए प्रयोग किया है
1. विस्तृत सीमा पट्टी प्रणाली- इस प्रणाली के अंतर्गत अंतराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में दी
करेंसियों की समता दर के बीच 10% तक का सामंजस्य करके भुगतान शेष को ठीक करने की छूट
होती है। यह ऐसी प्रणाली को कहते हैं, जो स्थिर विनिमय दर में विस्तृत परिवर्तन समंजन
की अनुमति देती है।
2.
चलित सीमाबंध प्रणाली- यह भी स्थिर और लोचशील विनिमय
दर के बीच एक समझौता है, परंतु जैसा कि नाम है चलित यह कम विस्तृत है। इसके केवल समता
दर के बीच + 1% तक का सामंजस्य करके भुगतान शेष को ठीक करने की छूट होती है। यह लघु
सामंजस्य है जिसे समय-समय पर दोहराया जा सकता है।
3. प्रबंधित तरणशीलता प्रणाली- स्थिर और लोचशील विनिमय दरों की एक अंतिम मिश्रित प्रणाली है। यह स्थिर विनिमय दर और नम्य विनिमय दर का मिश्रण है, जो सरकार द्वारा प्रबंधित तथा नियंत्रित होता है। इसमें विनिमय दर को लगभग पूरी तरह से स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है और मौद्रिक अधिकारी कभी-कभी हस्तक्षेप करते हैं।
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