12th 4. आय और रोजगार के निर्धारण Macro Economics JCERT/JAC Reference Book

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4.1 प्रस्तावना

आय और रोजगार की उपलब्धता सभी अर्थव्यवस्था की प्राथमिकता होती है।

किसी भी अर्थव्यवस्था में आय तथा रोजगार विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है।

इन व्यापक आर्थिक कारकों के अंतर्संबंधों को परिभाषित कर सरकार नीतियां बनाती हैं।

परंपरावादी अर्थशास्त्री जे.बी. से. के बाजार के नियम पूर्ति स्वयं मांग का सृजन करती है पर दृढ़ विश्वास रखते थे।

उनकी मान्यता थी कि अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। बल्कि हमेशा पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है

परंतु 1930 के दशक की आर्थिक मंदी ने इन मिथकों को तोड़ दिया।

अर्थशास्त्री कीन्स ने 1936 में अपनी प्रकाशित पुस्तक द जनरल थ्योरी में में एक नई विचारधारा प्रस्तुत की। यह विचारधारा वर्तमान समय में सभी सरकारों के लिए महत्वपूर्ण है।

कीन्स के अनुसार किसी भी अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार का निर्धारण सामूहिक मांग (AD) तथा सामूहिक पूर्ति (AS) के संतुलन द्वारा होता है।

अर्थव्यवस्था का संतुलन बिंदु AD = AS (सामूहिक मांग सामुहिक पूर्ति)

सामूहिक मांग या समग्र मांग (AD)

एक अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों द्वारा एक दिए हुए आय स्तर पर एवं एक निश्चित समयावधि में समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित क्रय के कुल मूल्य को समग्र मांग कहते हैं।

अर्थात् समग्र मांग से अभिप्राय अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य से है जो अर्थव्यवस्था के समस्त उपभोक्ता एक लेखा वर्ष के दौरान दिए गए आय स्तर पर खरीदने को तैयार रहते हैं।

इस प्रकार अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं की कुल मांग को समग्र मांग (AD) कहते हैं।

इसे कुल व्यय के रूप में मापा जाता है।

समग्र मांग के घटक

उपभोग व्यय (c) : देश के परिवारों द्वारा एक लेखा वर्ष में सभी उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया गया वह उपभोग कहलाता है।

निवेश व्यय (1) : निवेश व्यय से अभिप्राय उस वैसे हैं जिनके द्वारा उत्पादक के पूंजी के स्टॉक में वृद्धि होती है।

सरकारी व्यय (G) : सरकारी व्यय में सरकारी उपभोग व्यय और सरकारी निवेश व्यय को शामिल किया जाता है।

सरकारी उपभोग व्यय से अभिप्राय सामूहिक उपभोग के लिए वस्तुओं की खरीद पर किया जाने वाला खर्च है।

सरकारी निवेश व्यय का अर्थ सड़कों पुल पुलिया आधारभूत संरचना पर किया जाने वाला खर्च है।

शुद्ध निर्यात (X-M): आयात तथा निर्यात का अंतर शुद्ध निर्यात कहलाता है।

इस प्रकार

खुली अर्थव्यवस्था में

AD = C + I + G + (X+M)

दो क्षेत्र वाली बंद अर्थव्यवस्था में अर्थव्यवस्था में (बंद अर्थव्यवस्था में आयात-निर्यात नहीं होता)

AD = C + I

तीन क्षेत्रों वाली वाली बंद अर्थव्यवस्था में

AD = C + I + G

4.3 समग्र पूर्ति (AS)

एक अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाईयों द्वारा एक निश्चित समयावधि में सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित उत्पादन के कुल मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं।

समग्र पूर्ति के मौद्रिक मूल्य को ही राष्ट्रीय आय कहते हैं ।

अर्थात् राष्ट्रीय आय सदैव समग्र पूर्ति के समान होती है।

AS = Y (राष्ट्रीय आय)

समग्र पूर्ति कुल उपभोग तथा कुल बचत के योगफल के बराबर होती है। AS = C + S

यहा उपभोग (C)- देश के सभी परिवारों द्वारा एक लेखा वर्ष में मांगी गई वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को शामिल किया जाता है।

बचत (S)- आय तथा उपभोग का अंतर बचत कहलाता है, या उपभोग पर आय का अधिक बचत है। आय के शून्य स्तर पर बचत हमेशा ऋणात्मक होती है।

अब हम समग्र आय तथा समग्र पूर्ति के विभिन्न घटकों के बीच अंतर्संबंध को समझेंगे।

4.4 उपभोग फलन

आय और उपभोग के बीच फलनात्मक संबंध को उपभोग प्रवृत्ति (या उपभोग फलन) कहते हैं अर्थात् आय का कितना भाग, उपभोग वस्तुओं पर खर्च किया गया है।

उपभोग फलन को हम निम्न समीकरण द्वारा प्रकट करते हैं। C = a + by

उपभोग फलन आय (Y) और उपभोग (C) के बीच फलनात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है।

C = ƒ (Y) नोट: यहाँ C = उपभोग Y = आय ƒ = फलनात्मक सम्बन्ध

आय तथा उपभोग के बीच संबंध : आय (Y) तथा उपभोग (C) के बीच संबंध को हम इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं।

आय तथा उपभोग के बीच प्रत्यक्ष संबंध है यदि आय (Y) में वृद्धि होती है तो उपभोग (C) भी बढ़ता है।

Y में हुई समस्त वृद्धि को उपभोग में परिवर्तित नहीं किया जा सकता उसका एक भाग बचत की जाती है।

जिस दर से आय (Y) में वृद्धि होती है उस दर से उपभोग (C) में वृद्धि नहीं होती।

आय के शून्य रहने पर भी उपभोग का कुछ न्यूनतम स्तर सदैव रहता है। जिसे स्वायत्त उपभोग C_ भी कहते

उपभोग फलन का समीकरण C = C_ + MPC - Y

यंहा C = उपभोग

C_= स्वायत उपभोग

MPC = सीमांत उपभोग की प्रवृति

Y = आय

तालिका

क्रम संख्या

(आय Y)

(उपभोग )

1

00

20

2

50

60

3

150

100

4

200

140


इस चित्र से तीन स्थितियां सामने आ रही हैं।

जब Y< C अर्थात् आय उपभोग से कम है। इसे स्वायत्त उपभोग की स्थिति कहते हैं।

E बिंदु पर Y = C, अर्थात् अर्थव्यवस्था संतुलन की स्थिति में है।

E बिंदु के बाद Y > C अर्थात् आय तेजी से बढ़ रही है जबकि उपयोग में वृद्धि कम गति से हो रही है।

लोग अपनी आय का एक भाग बचत करने लगते हैं

  उपभोग प्रवृति :- आय में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोग में हुए परिवर्तन अनुसूची को उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है।

उपभोग प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है।

(1) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)

(2) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)

औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)-

औसत प्रवृत्ति को कुल उपभोग तथा कुल आय के बीच अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है।

या समग्र उपभोग और समग्र आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

यह कुल आय का वह भाग है जो उपभोग पर खर्च किया जाता हैं।

APC = कुल उपभोग (C) / कुल आय (Y)

APC के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बिन्दु :-

APC इकाई से अधिक रहता है जब तक उपभोग राष्ट्रीय आय से अधिक होता है। समविच्छेद बिन्दु से पहले, APC > 1

APC = 1 समविच्छेद बिन्दु पर यह इकाई के बराबर होता है जब उपभोग और आय बराबर होता है।

C = Y

आय बढ़ने के कारण APC लगातार घटती है।

APC कभी भी शून्य नहीं हो सकती क्योंकि आय के शून्य स्तर पर भी स्वायत्त उपभोग होता है

सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) :-

उपभोग में परिवर्तन ΔC तथा आय में परिवर्तन ΔY के अनुपात को, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं ।

या

आय परिवर्तन के कारण, उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं।

चित्र तथा तालिका द्वारा स्पष्टीकरण इस आधार पर हम

आय

उपभोग

APC

MPC

0

100

100/0=00

50/100=0.5

100

150

150/100=1.5

50/100=0.5

200

200

200/200=1

50/100=0.5

300

250

250/300=0.83

50/100=0.5

400

300

400/300=0.75

50/100=0.5

500

350

350/500=0.70

50/100=0.5

MPC का मान शून्य तथा एक के बीच में रहता है।

यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय उपभोग हो जाती है तब ΔC =ΔY अतः MPC = 1,

यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत कर ली जाती है तो ΔC = 0. अत: MPC = 0

इस आधार पर हम उपभोग फलन के समीकरण को भी स्पष्ट कर सकते हैं

उपभोग फलन का समीकरण C = C_ + MPC. Y

4.5 बचत फलन (Saving Function)

आय में से उपभोग पर खर्च करने के बाद शेष भाग बचत कहलाती हैं।

सूत्र के रूप में

बचत = आय - उपभोग

आय और बचत में फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं।

सूत्र के रूप में S = ƒ (Y)

यहाँ S = बचत, Y = आय, ƒ = फलनात्मक सम्बन्ध

बचत फलन का समीकरण S = -So+ sY

जहाँ S = MPS

बचत फलन की सारणी

आय

उपभोग

बचत

0

20

-20

60

70

-10

120

120

0

180

170

10

240

220

20


चित्र और तालिका से स्पष्ट है कि

आय शून्य होने पर बचत ऋणात्मक हो सकती है। क्योंकि आय के कम होने पर भी उपभोग चलता रहता है।

बचत प्रवृत्ति :- आय में हुए परिवर्तन के फलस्वरूप बचत में भी परिवर्तन की अनुसूची को बचत प्रवृत्ति कहते हैं। सामान्यता जैसे-जैसे आय बढ़ती है बचत भी बढ़ती है।

बचत प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है:

1. औसत बचत प्रवृत्ति (Average Propensity to Save on APS)

2. सीमांत बचत प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Save on MPS)

1. औसत बचत प्रवृत्ति (Average Propensity to Save on APS)

कुल बचत और कुल आय का अनुपात, औसत बचत प्रवृत्ति (APS) कहलाती है।

कुल बचत (S) को कुल आय (Y) से भाग करने पर APS ज्ञात किया जाता है। APS = Y/S

औसत बचत प्रवृत्ति APS की विशेषताएँ

1. APS कभी भी इकाई या इकाई से अधिक नहीं हो सकती क्योंकि कभी भी बचत आय के बराबर तथा आय से अधिक नहीं हो सकती।

2. APS शून्य हो सकती है समविच्छेद बिन्दु पर जब C = Y है तब S = 0

3. APS ऋणात्मक या इकाई से कम हो सकता है। समविच्छेद बिन्दु से नीचे स्तर पर APS ऋणात्मक होती है। क्योंकि अर्थव्यवस्था में अबचत (Dissavings) होती है तथा C > Y

4. APS आय के बढ़ने के साथ बढ़ती हैं।

2. सीमांत बचत प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Save on MPS)

आय में परिवर्तन के फलस्वरूप बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति MPS कहते हैं।

MPS का मान शून्य तथा इकाई (एक) के बीच में रहता है।

यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत की ली जाती है, तब AS = AY अत: MPS = 1.

यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय, उपभोग कर ली जाती है, तब AS = 0 अतः MPS = 0.

समीकरण के रूप में- MPS= ΔS/ΔY

आय (Y)

उपभोग (C)

MPC

S=Y-C

APS= S / Y

0

40

-

-40

-

100

120

0.8

-20

-20/100=0.2

200

200

0.8

0

0/200=0

300

280

0.8

20

20/300=0.06

औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा औसत प्रवृत्ति (APS) में सम्बन्ध

1. APC APS 1, क्योंकि आय को या तो उपभोग किया जाता है या फिर आय की बचत की जाती है।

प्रमाणः Y = C + S

दोनों पक्षों का Y से भाग देने पर

1 = APC + APS

2. APC =1- APS या APS = 1 - APC

इस प्रकार APC तथा APS का योग हमेशा इकाई के बराबर होता है ।

1 = APC + APS

सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) तथा सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) में सम्बन्ध :-

1. MPC + MPS = 1;

2. MPC हमेशा सकारात्मक होती है तथा 1 से कम होती है। इसलिए MPS भी सकारात्मक तथा 1 से कम होनी चाहिए।

ΔY= ΔC + ΔS

यहां ΔY = आय में परिवर्तन

ΔC = उपभोग में परिवर्तन

ΔS = बचत में परिवर्तन

अब

ΔΥ = ΔC + ΔS. में

दोनों पक्षों को Y से भाग करने पर

ΔΥ/ΔΥ = ΔC/ΔΥ + ΔS/ΔΥ

यहाँ ΔΥ/ΔΥ=1

ΔC/ΔΥ = MPC

ΔS/ΔY = MPS

1 = MPC + MPS

अथवा MPC = 1 - MPS

अथवा MPS = 1 - MPC

कुछ परिभाषाएँ

उपभोग सीमांत प्रवृत्ति (MPC) यह आय में प्रति ईकाई परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोग में परिवर्तन है। इसे C से संकेतिक किया जाता है और `\frac{\Delta C}{\Delta Y}` के बराबर होती है।

सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) यह आय में प्रति ईकाई परिवर्तन के फलस्वरूप, बचत में परिवर्तन है। इसे S संकेतिक किया जाता है। और I-C के बराबर होता है। इसका निहितार्थ है S+C=1

औसत उपभोग प्रवृति (APC) यह प्रति आय इकाई उपभोग है अर्थात  `\frac CY`

औसत बचत प्रवृत्ति (APS) यह प्रति आय इकाई बचत है अर्थात `\frac SY`

4.6.1 निवेश तथा निवेश फलन

एक अर्थव्यवस्था में एक वित्तीय वर्ष में पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि को निवेश कहते हैं।

जैसे मशीन औजार कच्चा माल भवन आदि के भंडारों में आई वृद्धि निवेश कहलाती है।

निवेश दो प्रकार की होती है

प्रेरित निवेशः प्रेरित निवेश अर्थव्यवस्था में आय एवं लाभ की मात्रा पर निर्भर करता है।

आय बढ़ने की प्रत्याशा में प्रेरित निवेश भी बढ़ती है।

स्वायत्त या स्वतंत्र निवेशः स्वायत्त निवेश आय स्तर से प्रभावित नहीं रहता है।

अर्थात् लाभ की ऊंची प्रत्याशा भी इस निवेश को प्रभावित नहीं करती। सरकारी निवेश इसका उदाहरण है।

4.6.2 एक वक्र पर संचलन बनाम एक वक्र का शिफ्ट

अर्थव्यवस्था के मॉडल का विश्लेषण करने के लिए हम आलेखीय तकनीकों का प्रयोग करेंगे।

एक सरल रेखा का समीकरण b = ma + e के रूप में दर्शाया जिसमें a और b दो परिवर्त/चर हैं।

m > 0 को सरल रेखा की प्रवणता कहा जाता है। और e > 0 उर्धवाधर अक्ष पर अन्तः खण्ड है। जब u में 1 इकाई से वृद्धि होती तो b के मूल्य में m इकाइयों से वृद्धि हो जाती है।

इसे आलेख पर परिवर्तों का संचलन कहते हैं।

परन्तु जब m या e में परिवर्तन होता है तो इसे आलेख का पैरामिट्रिक शिफ्ट कहते हैं,

क्योंकि m और e को आलेख का पैरामीटर कहा जाता है।

अन्य शब्दों में आलेख की प्रवणता अथवा अन्तः खण्ड में परिवर्तन के कारण जो परिवर्तन होते हैं उसे आलेख का पैरामिट्रिक शिफ्ट कहते हैं।

इसे उपभोग फलन द्वारा समझा जा सकता है।

C = C0 +by

यदि y में परिवर्तन से C में परिवर्तन हों तो इसे आलेख पर परिवर्तनों का संचलन कहेंगे।

परन्तु यदि C में परिवर्तन हों तो इसे आलेख का पैरामिट्रिक शिफ्ट कहा जायेगा।

इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है

(क) प्रवणता में परिवर्तन-प्रवणता में परिवर्तन होने पर वक्र इस प्रकार खिसकता है कि प्रवणता बढ़ने पर वक्र अधिक ढाल वाला और प्रवणता के घटने पर वक्र कम ढाल वाला हो जाता है।

(ख) अन्तः खण्ड में परिवर्तन अन्तः खण्ड बढ़ने पर वक्र उतनी ही मात्रा से समान्तर रूप से (क्योंकि प्रवणता समान है) ऊपर की ओर खिसक जाता है

इसके विपरीत अन्तः खण्ड घटने पर उतनी ही मात्रा से समान्तर रूप से नीचे की ओर खिसक जाता है।

(i) जब रेखा की ढाल घटती है तो रेखा पहले से कम ढाल वाली हो जाती है। उदाहरण के लिए यदि C= C + by में C = 100 + 0.84 था b घटकर 0.6 हो गया तो नया C = 100 + 0.6 हो जायेगा।

यह वक्र पिछले C वक्र से कम ढाल वाला होगा। क्योंकि पहले आय 100 बढ़ने पर उपभोग 80 बढ़ रहा था, परन्तु अब आय 100 बढ़ने पर उपभोग 60 बढ़ेगा।

(ii) जब रेखा के अन्तः खण्ड आय में वृद्धि होती है तो रेखा समान्तर रूप से ऊपर की ओर खिसक जाती है, क्योंकि दो समान्तर रेखाओं की प्रवणता समान होती है।

आय तथा रोजगार के संतुलन स्तर का निर्धारण (Determination of Equilibrium Level of Income and Employment)

अल्पकाल में किसी अर्थव्यवस्था में संतुलन की स्थिति अर्थात आय और रोजगार निर्धारण तब होती है जब एक समय अवधि के दौरान वस्तुओं और सेवाओं के समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति बराबर हो, साथ ही बचत तथा निवेश भी बराबर हो।

अर्थात् AD = AS

I = S

समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति विधि (AD = AS)

प्रोफेसर कीन्स के अनुसार अर्थव्यवस्था में आय स्तर का निर्धारण तब होता है जब समग्र मांग समग्र पूर्ति के बराबर हो जाती है।

AD = AS

जिस बिंदु पर सामूहिक समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति आपस में बराबर होते हैं उसे प्रभावपूर्ण मांग का बिंदु कहा जाता है।

अर्थात् केवल ऐसी सामूहिक मांग जो सामूहिक पूर्ति के बराबर होती है उसे ही प्रभावपूर्ण मांग कहा जा सकता है।

यहाँ समग्र मांग = AD = C+I

C = उपभोग के लिए मांग

I = निवेश के लिए मांग

समग्र पूर्ति (AS)

AS = C+S (उपभोग + बचत)

संतुलन की स्तिथि

1. यदि अर्थव्यवस्था में AS>AD की स्तिथि हो जब अर्थव्यवस्था में समग्र पूर्ति समग्र मांग से अधिक हो जाती है।

2. तब वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह में उनकी मांग से अधिक होने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

3. जब समग्र मांग (AD), पूर्ण रोजगार स्तर पर समग्र पूर्ति (AS) से कम होती है, उसे अभावी मांग कहते हैं।

4. इस अवांछित स्टॉक को समाप्त करने के लिए उत्पादक उत्पादन में कटौती करते हैं

5. जिससे समग्र पूर्ति (AS) में गिरावट होती है। फिर समग्र पूर्ति और समग्र मांग दोनों बराबर हो जाते हैं।

यदि AS<AD अर्थात् यदि अर्थव्यवस्था में समग्र पूर्ति समग्र मांग से कम होती है

तब वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह में उनकी मांग से कम होने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

इससे उत्पादकों के वर्तमान स्टॉक की बिक्री हो जाती है उत्पादक बिना पूरी किए गए मांग की हानि उठाते।

अपेक्षित मांग को पूरा करने के लिए उत्पादक उत्पादन बढ़ाएंगे तथा फिर और अर्थव्यवस्था में समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति बराबर हो जाएगी।

02. बचत तथा निवेश (विधि) : S =I

संतुलित जीडीपी हमें तब प्राप्त होता है जब बचत तथा निवेश एक दूसरे के बराबर हो जाते हैं।

यहां बचत का अभिप्राय आय के चक्रीय प्रवाह से वापसी से है।

वही निवेश का अभिप्राय आय का चक्रीय प्रवाह में समावेश से है।

अर्थव्यवस्था में संतुलन की स्थिति वही होती है जहां आय के प्रवाह से की गई निकासी तथा आय के प्रवाह में दिया गया योगदान दोनों बराबर हो जाता है।

संतुलन बिंदु पर C = I होना चाहिए।

यदि बचत (S) > निवेश (I) तो क्या होगा?

इस स्थिति का अभिप्राय यह है कि आय के चक्रीय प्रवाह से वापसी या बचत समावेश या निवेश से अधिक होती है।

बचत अधिक होने का तात्पर्य है कि लोग खर्च कम करेंगे।

जब अर्थव्यवस्था में खर्च कम हो जाएगा तो उत्पादकों के पास अवांछित स्टॉक जमा हो जाएगा।

इससे बचने के लिए उत्पादक कम उत्पादन करना प्रारंभ करेंगे।

उत्पादन कम होने से आय कम होगी जिससे बचत भी कम हो जाएगी।

यह प्रक्रिया तब तक चलेगी जब तक S =। नहीं हो जाती है।

यदि बचत (S) से निवेश (I) अधिक हो तो क्या होगा?

यदि बचत कम तथा निवेश अधिक हो तो आय का चक्रीय प्रवाह से वापसी (क्षरण) कम होगी तथा समावेश (भरण) अधिक होगा।

इससे नियोजित उत्पादन को खरीदने के लिए अधिक राशि उपलब्ध हो जाएगी जिससे मांग बढ़ेगी।

अब उत्पादकों को बिना पूर्ति की गई मांग की हानि उठानी पड़ेगी जिससे उत्पादक उत्पादन बढ़ाएंगे

अधिक उत्पादन से आय बढ़ेगी जिससे बचत भी वृद्धि होगी।

यह प्रक्रिया तब तक चलेगी जब तक S = I स्थिति न हो जाए।

4.8 निवेश गुणक (Investment Multiplier)

कीन्स ने गुणक के सिद्धान्त को विकसित किया है किसी अर्थव्यवस्था में आय और उत्पादन वृद्धि के लिए निवेश किया जाता है।

निवेश के फलस्वरूप आय तथा उत्पादन में कितनी वृद्धि हुई या कितने गुणों की वृद्धि हुई इसकी जानकारी निवेश गुणक के माध्यम से मिलती है

`K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}`

या  

अथवा `K=\frac1{1-MPC}`

अथवा `K=\frac1{MPS}` इसका अधिकतम मान अनंत तथा न्यूनतम मान एक होता है।

गुणक की परिभाषा रूनिवेश में वृद्धि के फलस्वरूप, आय में वृद्धि के अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं।

निवेश गुणक को K से दिखाया जाता है।

यहां K= गुणक

ΔY=आय में परिवर्तन

ΔI= निवेश में परिवर्तन

निवेश गुणांक (K) का MPC और MPS से संबंध

K=1/MPS क्योंकि 1-MPC = MPS

गुणक (K) और MPC में सीधा संबंध है अर्थात् MPC बढ़ने पर गुणक बढ़ता है और MPC घटने पर गुणक भी घटता है।

गुणक (K) और MPS में विपरीत संबंध है अर्थात् MPS बढ़ने से गुणक कम हो जाता है और MPS गिरने से गुणक बढ़ जाता है।

गुणक की मात्रा उपभोग पर निर्भर होती है जितना उपभोग बढ़ेगा उतनी ही गुणक की मात्रा बढ़ेगी

गुणक वह अंक होता है जिसे विनियोग के परिवर्तन से गुणा करने पर आय का परिवर्तन निकला आता है।

विनियोग को बढ़ाया जाता है तो आय में गुणक के अनुपात में वृद्धि होती है।

यदि विनियोग घटाया जाता है तो आय में गुणक के अनुपात में कमी होती है इस तरह गुणांक दोनों तरफ अपना पूर्ण प्रभाव दिखाता है।

गुणक में वृद्धि आय में वृद्धि / निवेश में वृद्धि का अनुपात है (ΔΥ/ΔΙ)

आय का साम्य स्तर Y = C + 1 है

निवेश में परिवर्तन (गुणक में परिवर्तन) कर दिया जाए तो ΔY = ΔC + ΔI

इसमे किन्स ने निवेश परिवर्तन को स्वतंत्र माना है।

उपभोग परिवर्तन-आय में परिवर्तन का फल C = a + by

A स्थिर b सीमान्त उपभोग परवर्ती स्थिर मानने पर उपभोग में जब ही परिवर्तन जब आय में परिवर्तन हो ΔC = bΔY

तालिका से स्पष्ट है कि MPC का मूल्य शून्य रहने पर गुणक का मान 1 होता है।

जैसे जैसे MPC का मूल्य बढ़ता है वैसे गुणक के मूल्य में भी वृद्धि होती है।

MPC का मूल्य 1 होने पर गुणक का मान अनंत हो जाता है।

उदाहरण :

गुणक, MPC तथा MPS की गणना करे जब निवेश में वृद्धि होने पर आय में दुगनी वृद्धि होती है।

गुणक `K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}`

 माना कि निवेश में वृद्धि = 100₹

`\therefore` आय में वृद्धि = 100 x 2 = 200

सूत्र- `K=\frac1{1-MPC}=\frac1{MPS}`

या `MPS=\frac1K`

`MPS=\frac{1}2=0.5`

`\therefore` MPC + MPS = 1

MPC = 1 – MPS = 1 - 0.5 = 0.5

4.9 बचत का विरोधाभास :

यह अवधारणा अर्थव्यवस्था पर किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत बचत के दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी देती है।

कीन्स के अनुसार, अर्थव्यवस्था में मंदी के दौरान, लोग इसे खर्च करने के बजाय जमा के रूप में अधिक धन बचाते हैं।

इससे कुल मांग में कमी होती है और उत्पादन गिरता है, जिसके कारण उत्पादन में गिरावट के कारण वेतन कम हो जाता है।

इसलिए लोगों के हाथों में उपलब्ध धनराशि कम हो जाती है और अंततः उनकी बचत भी घट जाती है।

बदले में, ऋण के रूप में उधार देने के लिए बैंकों के पास उपलब्ध धन की मात्रा कम हो जाएगी और अर्थव्यवस्था एक गहरी मंदी में चली जाएगी।

अवधारणा एक विरोधाभास है क्योंकि इसके अनुसार लोगों की बचत में कमी होगी क्योंकि उनकी बचत में वृद्धि हुई है।

मितव्ययिता से हम आय बढ़ाना चाहते थे, परंतु यह विरोधाभास है

इस दिए चित्र में स्पष्ट है कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के कम होने पर SS से S1S1 पर खिसक गया। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय भी घटकर Oy1 से Oy2 हो जाती है। जिससे बचत फिर कम हो जाएगी। इस प्रकार बचत में वृद्धि नहीं हो सकेगी। आय बढ़ने की बजाय कम हो गई।

4.10 आय तथा रोजगार की कुछ अन्य संकल्पनाएँ

अर्थव्यवस्था में संतुलन की स्थिति आय के साथ रोजगार को भी निर्धारित करती है। जब समग्र मांग समग्र पूर्ति से अधिक हो जाती है तो इसे अधिक मांग की स्थिति कहते हैं।

ठीक इसके विपरीत जब समग्र मांग समग्र पूर्ति से कम रहती है तो इसे न्यून मांग की स्थिति कहेंगे ।

अल्पकालीन संतुलन में कई बार ऐसी स्थितियां आती है जिसमें पूर्ण रोजगार से पहले ही साम्य में की अवस्था रहती है।

अर्थात पूर्ण रोजगार से पहले ही अर्थव्यवस्था संतुलन की स्थिति में आ जाती है यदि विनियोग में वृद्धि की जाए तो पूर्ण रोजगार की स्थिति लाई जा सकती है।

समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति के क्रम में अर्थव्यवस्था को कोई घटक प्रभावित करते हैं जिन्हें संक्षेप में हम इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं।

पूर्ण रोजगार- इससे अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति जो योग्य है तथा प्रचलित मौद्रिक मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार है, को रोजगार मिल जाता है।

ऐच्छिक बेरोजगारी- ऐच्छिक बेरोजगारी से अभिप्रायः उस स्थिति से है, जिसमें बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य उपलब्ध होने के बावजूद योग्य व्यक्ति कार्य करने को तैयार नहीं है।

स्वायत्त उपभोग- आय के शून्य स्तर पर जो उपभोग होता है उसे स्वायत्त उपभोग कहते हैं। जो आय में परिवर्तन होने पर भी परिवर्तित नहीं होता है, अर्थात् यह आय बेलोचदार होता है।

प्रेरित निवेश- प्रेरित निवेश वह निवेश है जो लाभ कमाने कफी भावना से प्रेरित होकर किया जाता है। प्रेरित निवेश का आय से सीधा सम्बन्ध होता है।

स्वतंत्र (स्वायत्त) निवेश- स्वायत्त निवेश वह निवेश है जो आय के स्तर में परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता अर्थात् आय निरपेक्ष होता है।

नियोजित बचत - एक अर्थव्यवस्था के सभी गृहस्थ (बचतकर्ता) एक निश्चित समय अवधि में आय के विभिन्न स्तरों पर जितनी बचत करने की योजना बनाते हैं, नियोजित बचत कहलाती है।

नियोजित निवेश- एक अर्थव्यवस्था को सभी निवेशकर्ता आय को विभिन्न स्तरों पर जितना निवेश करने की योजना बनाते हैं, नियोजित निवेश कहलाती है।

वास्तविक बचत- अर्थव्यवस्था में दी गई अवधि के अंत में आय में से उपभोग व्यय घटाने के बाद, जो कुछ वास्तव में शेष बचता है, उसे वास्तविक बचत कहते हैं।

वास्तविक निवेश- किसी अर्थव्यवस्था में एक वित्तीय वर्ष में किए गए कुल निवेश को वास्तविक निवेश कहा जाता है। इसका आकलन अवधि के समाप्ति पर किया जाती है।

आय का संतुलन स्तर- आय का वह स्तर है जहाँ समग्र माँग, उत्पादन के स्तर (समग्र पूर्ति) क बराबर होती है अतः AD = AS या S = I.

पूर्ण रोजगार- इससे अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति जो योग्य है तथा प्रचलित मौद्रिक मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार है, को रोजगार मिल जाता है।

ऐच्छिक बेरोजगारी- ऐच्छिक बेरोजगारी से अभिप्रायः उस स्थिति से है, जिसमें बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य उपलब्ध होने के बावजूद योग्य व्यक्ति कार्य करने को तैयार नहीं है।

अनैच्छिक बेरोजगारी- अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति है जहाँ कार्य करने के इच्छुक व योग्य व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने के लिए इच्छुक है लेकिन उन्हें कार्य नहीं मिलता।

अवस्फीतिक अंतराल- किसी अर्थव्यस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए जितनी समग्र माँग की आवश्यकता होती है, यदि समग्र माँग उससे कम हो तो इन दोनों के अंतर को अवस्फीतिक अंतराल कहा जाता है।

ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी पाई जाती है।

अधिमाँग-अधिमाँग से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार स्तर के अनुरूप समग्र पूर्ति से अधिक होती है।

आय- किसी व्यक्ति या संस्था को किसी वस्तु या सेवा को प्रस्तुत करने या पूंजी निवेश करने के बदले जो धन प्राप्त होता है उसे आए कहा जाता है।

रोजगार - जीविकोपार्जन हेतु धन कमाने के लिए जो हम कार्य करते हैं उसे रोजगार कहते हैं।

4.11 सारांश :

जब किसी विशेष कीमत पर अंतिम वस्तु की समस्त मांग तथा समस्त पूर्ति बराबर होती है तो अंतिम वस्तु का उत्पाद बाजार संतुलन की स्थिति में होता है।

अंतिम वस्तु की मांग में प्रत्याशित उपभोग प्रत्याशित निवेश सरकारी व आदि सम्मिलित किए जाते हैं।

आय में हुई वृद्धि से उपभोग में वृद्धि होती है इसे सीमांत प्रवृत्ति कहते हैं।

अर्थव्यवस्था में आय का निर्धारण के लिए हम ब्याज तथा कीमत स्तर को स्थिर मान लेते हैं

साथ ही अल्पकाल में समग्र पूर्ति को भी पूर्णता लोचदार मान लिया जाता है।

इस प्रकार इन परिस्थितियों में आय स्तर का निर्धारण केवल समस्त मांग के आधार पर ही किया जाता हैद्य इसे प्रभावी मांग का सिद्धांत कहते हैं।

अर्थव्यवस्था मे स्वतंत्र निवेश में में वृद्धि के कारण गुनक प्रक्रिया अंतिम उत्पादन में वृद्धि यह कमी का कारण बनती है।

4.12 पाठ्य पुस्तक की प्रश्नोत्तरी

प्रश्न 1. सीमांत उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमांत बचत प्रवृत्ति से संबंधित है?

उत्तर : सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)- आय के परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है उपभोग में परिवर्तन (ΔC) को आय में परिवर्तन (ΔY) से भाग करके MPC को ज्ञात किया जाता है। सूत्र के रूप में

MPC = ΔC / ΔY

यहाँ ΔC = उपभोग में परिवर्तन, ΔY = आय में परिवर्तन ।

सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)- आय में परिवर्तन के कारण बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कहते हैं। यह उस बढ़ी हुई आय का वह भाग या अनुपात है जो बढ़ी हुई आय से बचाई गई है। बचत में परिवर्तन (ΔS) को आय में परिवर्तन (ΔY) से भाग करके MPS को ज्ञात किया जा सकता है।

सूत्र के रूप में-

`MPS=\frac{\Delta S}{\Delta Y}`

यहाँ, ΔS = बचत में परिवर्तन, ΔY = आय में परिवर्तन।

सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत बचत प्रवृत्ति का योग (1) इकाई के बराबर होता है। इस प्रकार, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति, सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 अर्थात

MPC + MPS = 1

प्रश्न 2. प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?

उत्तर : प्रत्याशित अथवा इच्छित निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोजगार के विभिन्न स्तरों पर करने की इच्छा रखते हैं। यथार्थ अथवा वास्तविक निवेश वह निवेश है, जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोजगार के विभिन्न स्तरों पर वास्तव में करते हैं।

उदाहरण-मान लीजिए कि एक उत्पादक वर्ष के अंत तक अपने भंडार में 200₹ के मूल्य की वस्तु जोड़ की योजना बनाता है। अतः उस वर्ष उसका प्रत्याशित निवेश 200₹ है। किंतु बाजार में उसकी वस्तुओं की माँग में अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण उसकी विक्रय में उस परिमाण से अधिक वृद्धि होती है, जितना कि उसने बेचने की योजना बनाई थी। इस अतिरिक्त माँग की पूर्ति के लिए उसे अपने भंडार से 60₹ के मूल्य की वस्तु बेचनी पड़ती है। अतः वर्ष के अंत में उसकी माल-सूची में केवल 200₹ - 60₹ = 140₹ की वृद्धि होती है।

इस प्रकार, उसको प्रत्याशित निवेश 200₹ है, जबकि उसका यथार्थ निवेश केवल 140 ₹ है।

प्रश्न 3. किसी देश में पैरामेट्रिक शिफ्ट से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है जब इसकी (i) ढाल घटती है और

(ii) इसके अन्तरूखण्ड में वृद्धि होती है?

उत्तर : एक सरल रेखा का समीकरण b = ma + e के रूप में दर्शाया जिसमें a और b दो परिवर्त/चर हैं। m > 0 को सरल रेखा की प्रवणता कहा जाता है और e > 0 उर्धवाधर अक्ष पर अन्तरूखण्ड है। जब u में 1 इकाई से वृद्धि होती तो b के मूल्य में m इकाइयों से वृद्धि हो जाती है। इसे आलेख पर परिवर्तों का संचलन कहते हैं। परन्तु जब m या e में परिवर्तन होता है तो इसे आलेख का पैरामिट्रिक शिफ्ट कहते हैं, क्योंकि m और e को आलेख का पैरामीटर कहा जाता है। अन्य शब्दों में आलेख की प्रवणता अथवा अन्तरूखण्ड में परिवर्तन के कारण जो परिवर्तन होते हैं उसे आलेख का पैरामिट्रिक शिफ्ट कहते हैं। इसे उपभोग फलन द्वारा समझा जा सकता है।

यदि y में परिवर्तन से C में परिवर्तन हों तो इसे आलेख पर परिवर्तनों का संकलन कहेंगे। परन्तु यदि C या है में परिवर्तन हों तो इसे आलेख का पेरामिट्रिक शिफ्ट कहा जायेगा। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है

(क) प्रवणता में परिवर्तन- प्रवणता में परिवर्तन होने पर वक्र इस प्रकार खिसकता है कि प्रवणता बढ़ने पर वक अधिक ढाल वाला हो जाता है और प्रवणता के घटने पर वक्र कम ढाल वाला हो जाता है।

(ख) अन्तखण्ड में परिवर्तन- अन्तखण्ड बढ़ने पर वक्र उतनी ही मात्रा से समान्तर रूप से (क्योंकि प्रवणता समान है) ऊपर की ओर खिसक जाता है और इसके विपरीत अन्तःखण्ड घटने पर उतनी ही मात्रा से समान्तर रूप से नीचे की ओर खिसक जाता है।

(i) जब रेखा की ढाल घटती है तो रेखा पहले से कम ढाल वाली हो जाती है। उदाहरण के लिए यदि C = C + by में C 100+ 0.84 था b घटकर 0.6 हो गया तो नया C = 100 + 0.6y हो जायेगा। यह वक्र पिछले C वक्र से कम ढाल वाला होगा। क्योंकि पहले आय 100 बढ़ने पर उपभोग 80 बढ़ रहा था, परन्तु अब आय 100 बढ़ने पर उपभोग 60 बढ़ेगा।

(ii) जब रेखा के अन्तः खण्ड आय में वृद्धि होती है तो रेखा समान्तर रूप से ऊपर की ओर खिसक जाती है, क्योंकि दो समान्तर रेखाओं की प्रवणता समान होती है।

प्रश्न 4. 'प्रभावी माँग' क्या है? जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?

उत्तर : प्रभावी माँग से अभिप्राय समस्त माँग के उस बिंदु से जहाँ यह सामूहिक पूर्ति के बराबर है। प्रभावी माँग अर्थव्यवस्था की माँग का यह स्तर है जो समस्त पूर्ति से पूर्णतया संतुष्ट होता है और इसलिए उत्पाद को द्वारा उत्पादन बढ़ाने या उपभोग घटाने की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। अन्य शब्दों में, समग्र माँग का वह स्तर जो पूर्ण संतुलन उपलब्ध करता है, प्रभावी हैं माँग कहलाता है। वैकल्पिक रूप में संतुलन के बिंदु पर समग्र माँग को प्रभावी माँग कहते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय आय के निर्धारण में यह प्रभावी होती है। कैसे? केन्स के अनुसार आय का साम्य स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ समग्र माँग, समग्र पूर्ति के बराबर होती है। जब अंतिम उत्पादन व आय : वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी गई हो, तो स्वायत्त व्यय गुणक की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाएगी।

प्रश्न 5. जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (क) 50 करोड़ हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय (y) का स्तर 4,00,000 करोड़ ₹ हो तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।

उत्तर : आय का स्ता y = ₹4,00,000

स्वायत निवेश और उपभोग व्यय (क) ₹50 करोड़

सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.2 (`\therefore`MPC = 1-MPS)

सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 - 0.2 = 0.8

y= A + Cy = 50 + 0.8 x 4,000 (`\therefore`C = MPC)

= 50+ 32,000 = ₹32,50 करोड़

प्रत्याशित समस्त माँग = ₹3,250 करोड़

चूँकि वर्तमान आय का स्तर ₹4,000 करोड़ है जो प्रत्याशित समस्त माँग में ₹750 करोड़ अधिक है तो वह स्थिति अधिपूर्ति की होगी। इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।

प्रश्न 6. मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : मितव्ययिता के विरोधाभास का अर्थ मितव्ययिता के विरोधाभास से अभिप्राय यह है कि यदि अर्थव्यवस्था के सभी लोग अपनी आय से बचत के अनुपात को बढ़ा दें तो अर्थव्यवस्था में बचत के कुल मूल्य में वृद्धि नहीं होगी। इसका कारण यह है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति के बढ़ने से सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है। और निवेश गुणक भी कम हो जाता है। फलस्वरूप आय में वृद्धि की दर भी कम हो जाती है। इस प्रकार बचत बढ़ाने से कुल बचत का बढ़ना आवश्यक नहीं है। नीचे दिए चित्र में स्पष्ट है कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के कम SS से S1S1 पर खिसक गया। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय भी घटकर व्ल1 से Oy2 हो जाती है। जिससे बचत फिर कम हो जाएगी। इस प्रकार बचत में वृद्धि नहीं हो सकेगी। मितव्ययिता से हम आय बढ़ाना चाहते थे, परंतु यह विरोधाभास है कि इससे आय बढ़ने की बजाय कम हो गई।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

1. सीमान्त उपभोग प्रवृति का मूल्य क्या होगा यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.2 है ?

(क) 0.8

(ख) 0.7

(ग) 0.6

(घ) 0.4

उत्तर (क)

2. The General Theory of Employment, Interest and Money नामक पुस्तक किसने लिखी है ?

(क) रिकाडों ने

(ख) जे० एम० कींस ने

(ग) जे० बी० से० ने

(घ) मार्शल ने

उत्तर (ख)

3. एक निश्चित समयावधि में अर्थ-व्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को कहते हैं

(क) समय माँग

(ख) समय पूर्ति

(ग) समय निवेश

(घ) समग्र ब्याज

उत्तर (ख)

4. अर्थ-व्यवस्था में उस समय संतुलन अवस्था होगी जब कुल माँग कुल?

(क) पूर्ति के बराबर होगी

(ख) पूर्ति से अधिक होगी

(ग) पूर्ति से कम होगी।

(घ) पूर्ति से कोई संबंध नहीं होगा।

उत्तर (क)

5. आय के संतुलन स्तर पर?

(क) बचत और निवेश बराबर होते हैं।

(ख) बचत निवेश से कम होती है।

(ग) बचत निवेश से अधिक होती है।

(घ) बचत का निवेश से कोई संबंध नहीं होता है

उत्तर (क)

6. समग्र माँग होती है?

(क) उपभोग माँग x निवेश माँग

(ख) उपभोग माँग x निवेश माँग

(ग) उपभोग माँग x निवेश माँग

(घ) उपभोग मांग / निवेश माँग

उत्तर (क)

7. समन माँग का घटक निम्न में से कौन नहीं है?

(क) निजी उपभोग माँग

(ख) निजी निवेश माँग

(ग) शुद्ध निर्यात

(घ) कुल लाभ

उत्तर (घ)

8. बाजार का नियम किसने प्रस्तुत किया ?

(क) जे० बी० क्लार्क ने

(ख) जे० बी० से० ने

(ग) जे० एम० कीन्स ने

(घ) ए० सी० पीगू ने

उत्तर (ख)

9. जे० बी०. से० का बाजार नियम लागू होता है?

(क) वस्तु विनियम पर

(ख) मुद्रा विनियम पर

(ग) उपरोक्त (क) और (ख) दोनों पर

(घ) उपरोक्त में से किसी पर नहीं

उत्तर -(ग)

10. कीस के अनुसार बेरोजगारी दूर की जा सकती है ?

(क) समग्र माँग बढ़ाकर

(ख) समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति बढाकर

(ग) समग्र पूर्ति बढ़ाकर

(ख) दोनों पर

(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर (क)

11. कीन्स का रोजगार सिद्धान्त ?

(क) अल्पकालीन

(ख) दीर्घकालीन

(ग) अति दीर्घकालीन

(घ) उपरोक्त सभी सत्य हैं

उत्तर - (क)

12. कीन्स के अनुसार अति उत्पादन और बेरोजगारी का मुख्य कारण ?

(क) बचत में कमी

(ख) विनियोग में कमी

(ग) कुल माँग में कमी

(घ) कुल माँग में वृद्धि

उत्तर (ग)

13. परम्परावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार मौद्रिक और वास्तविक मजदूरी में सम्बन्ध होता है?

(क) प्रत्यक्ष और आनुपातिक

(ख) विपरीत और आनुपातिक

(ग) कोई संबंध नहीं है

(घ) उपरोक्त सभी असत्य हैं।

उत्तर- (क)

14. कौन-सा कथन सत्य है ?

(क) MPC + MPS = 0

(ख) MPC+MPS = 1

(ग) MPC+MPS < 1

(घ) MPC+MPS > 0

उत्तर (ख)

15. प्रतिष्ठित सिद्धांत (Classical Theory) यह मानकर चलता है कि?

(क) जो कुछ बचाया जाता है वह पूर्णरूपेण विनियोग कर दिया जाता है।

(ख) जो कुछ बचाया जाता है उससे कम विनियोग किया जाता है।

(ग) जो कुछ बचाया जाता है उससे अधिक विनियोग किया जाता है।

(घ) उपर्युक्त सभी स्थितियाँ सम्भव है।

उत्तर (क)

16. कींस का रोजगार सिद्धांत लागू होता है ?

(क) विकसित देशों पर

(ख) अर्धविकसित देशों पर

(ग) उपर्युक्त दोनों पर

(घ) दोनों में से किसी पर नहीं

उत्तर (क)

17. मन्दी दूर करने के लिए किस के विचार में ?

(क) सार्वजनिक व्यय को बढ़ाना चाहिए ।

(ख) सार्वजनिक व्यय को घटाना चाहिए ।

(ग) सार्वजनिक कर को बढ़ाने चाहिए ।

(घ) आयात को बढ़ाने चाहिए ।

उत्तर (क)

18. कीन्स के अनुसार अधिक पूँजी निवेश होने पर पूँजी की सीमान्त क्षमता (MEC)-

(क) घटती हैं

(ख) बढ़ती है

(ग) स्थिर रहती है

(घ) शून्य हो जाती है

उत्तर (क)

19. प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार मुक्त बाजार अर्थ-व्यवस्था में ?

(क) ऐच्छिक बेरोजगारी नहीं पाई जाती है

(ख) अनैच्छिक बेरोजगारी नहीं पाई जाती है

(ग) ऐच्छिक व अनैच्छिक दोनों बेरोजगारी नहीं पाई जाती है

(घ) ऐच्छिक और अनैच्छिक दोनों बेरोजगारी पाई जाती है

उत्तर (ख)

20. कीस के अनुसार मुद्रा की माँग में वृद्धि होने पर ?

(क) मूल्य स्तर बढ़ जाता है

(ख) उपभोग वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है

(ग) निवेश माँग बढ़ जाती है

(घ) ब्राण्डों की माँग घट जाती है

उत्तर- (क)

21. निवेश के विधि की एक घटक कौन से हैं?

(क) पूँजी की सीमान्त क्षमता

(ख) ब्याज की दर

(ग) (क) और (ख) दोनों

(घ) इनमें कोई नहीं

उत्तर- (ग)

22. एक खुली अर्थ-व्यवस्था में सामूहिक माँग के निम्न में से कौन से घटक हैं?

(क) उपभोग

(ख) निवेश

(ग) सरकारी व्यय एवं शुद्ध निर्यात

(घ) उपरोक्त सभी

उत्तर - (घ)

23. क्लासिकल विचारधारा निम्न में से किन तथ्यों पर आधारित है ?

(क) ' से ' का बाजार नियम

(ग) सरकारी व्यय एवं शुद्ध निर्यात

(ख) ब्याज दर की पूर्ण लोचशीलता

(घ) उपरोक्त सभी

उत्तर - (ग)

24. केन्सियन विचारधारा के अन्तर्गत आय के संतुलन का निर्धारक निम्न में से कौन है ?

(क) सामूहिक माँग

(ख) सामूहिक पूर्ति

(ग) (क) और (ख) दोनों

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (ग)

25. आय एवं उत्पादन के संतुलन स्तर पर सामूहिक माँग में वृद्धि होने पर निम्न में से किसमें वृद्धि होती है ?

(क) आय

(ख) रोजगार

(ग) उत्पादन

(घ) उपरोक्त सभी

उत्तर- (घ)

26. बाजार के नियम का प्रतिपादन निम्न में किसने किया?

(क) जे० बी० से० ने.

(ख) जे० एस० मिल ने

(ग) जे० एम० कीन्स ने

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (क)

27. प्रतिष्ठित सिद्धान्त के अनुसार निम्न में से कौन-सा कथन सही है?

(क) अर्थ-व्यवस्था सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति में रहती है

(ख) अति अथवा न्यून उत्पादन असंभव है।

(ग) (क) और (ख) दोनों

(घ) इनमें कोई नहीं

उत्तर (ग)

28. रोजगार का स्तर निम्न में से किस पर निर्भर है ?

(क) पूर्ति

(ख) प्रभावपूर्ण मांग

(ग) बचत

(घ) इनमें कोई नहीं

उत्तर (ख)

1. अतिरिक्त विनियोग के प्रत्याशी लाभप्रदाता क्या कहलाती है?

उत्तर- पूंजी की सीमांत क्षमता

2. परंपरावादी सिद्धांत का जनक कौन है।

उत्तर- एडम स्मिथ

3. द जनरल थ्योरी ऑफ एंप्लॉयमेंट इंटरेस्ट एंड मनी का लेखक है ?

उत्तर- किंस

4 समग्र पूर्ति का समीकरण बताइए?

उत्तर- समग्र पूर्ति = उपभोग बचत

5. गुणांक का आकार किस पर निर्भर करता है ?

उत्तर- सीमांत उपभोग प्रवृत्ति

6. किंस के रोजगार सिद्धांत में समग्र मांग को निर्धारित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण तत्व क्या है ?

उत्तर- पूंजी की सीमांत क्षमता

7. उपभोग प्रवृत्ति का सूत्र लिखिए ।

उत्तर- MPC = ΔC/ΔΥ

8. सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मान क्या होता है?

उत्तर- 0 से अधिक तथा 1 से कम

9. विनियोग और राष्ट्रीय आय के बीच संबंध की विवेचना इस अवधारणा में की गई है।

उत्तर- गुणक

10. उपभोक्ता आय का संबंध किस प्रकार का होता है?

उत्तर- धनात्मक

11. गुणक गुणांक किसके बीच विचरण करता है?

उत्तर- 1 तथा अनंत के बीच

12. गुणक तथा सीमांत उपभोग प्रवृत्ति में कैसा संबंध पाया जाता है?

उत्तर- सीधा

13. न्यून मांग की स्थिति में कैसा बजट बनाया जाता है ?

उत्तर - घाटे का

14. किंस का सिद्धांत किस समय अवधि के लिए प्रस्तुत किया गया है?

उत्तर- अल्पकाल

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए?

1. प्रतिष्ठित दृष्टिकोण के अनुसार कटौती बेरोजगारी को समाप्त कर सकती है।

उत्तर - मजदूरी

2. अर्थव्यवस्था में ……...का बजट बनाकर न्यून मांग को अधिक किया जा सकता है ।

उत्तर - घाटे

3. स्फीति अंतराल को नियंत्रित करने के लिए बैंक दर में ………की जानी चाहिए।

उत्तर - वृद्धि

4 समग्र मांग एवं समग्र पूर्ति का अंतर कहलाता है

उत्तर- स्फितिक अंतराल

5. किंस के रोजगार सिद्धांत की आधारशिला …… है।

उत्तर - प्रभावपूर्ण मांग

6. …… अंतराल अतिरेक मांग की माप है।

उत्तर- स्फिति

7. प्रभावपूर्ण मांग बढ़ने पर रोजगार का स्तर ……...है।

उत्तर - बढ़ता

8. MPC इकाई है तब गुणांक…… होगा।

उत्तर- अनंत

9. अवस्फीति अंतराल …… मांग की माप है।

उत्तर- न्यून

10. उपभोग प्रवृत्ति पर …… निर्भर करती है।

उत्तर- आय

11. गुणक = 1/ ……

उत्तर- MPS

12. चक्रीय बेरोजगारी की स्थिति …… में पैदा होती है।

उत्तर- मंदी

13. गुणक =...…… /ΔΙ

उत्तर- ΔΥ

14. अदृश्य बेरोजगारी …… देशों में पाई जाती है।

उत्तर- विकासशील

15. स्फीति अंतराल ……की मांग को बताता है ।

उत्तर- न्यून मांग

16. उपभोग वक्र का ढाल ……होता है ।

उत्तर- धनात्मक

17. संतुलन तब होता है जब सामूहिक मांग ……हो

उत्तर- सामूहिक पूर्ति के बराबर

18. …… नीति से आशय बजटीय नीति से होता है।

उत्तर- राजकोषीय

19. प्रतिष्ठित दृष्टिकोण के अनुसार .……. कटौती बेरोजगारी को समाप्त कर सकती है।

उत्तर- मजदूरी

सत्य असत्य लिखिए ।

1. कींस का सिद्धांत दीर्घकालीन दृष्टिकोण पर आधारित है।

उत्तर- असत्य

2. रोजगार के संतुलन स्तर पर भी कुछ श्रमिक बेरोजगार रह सकते हैं।

उत्तर- सत्य

3. भविष्य में ब्याज दर में वृद्धि बचतों को कम कर देती है।

उत्तर- असत्य

4. जिस अनुपात में आय बढ़ती है उसी अनुपात में उपभोग व्यय नहीं बढ़ता।

उत्तर- सत्य

5. अपूर्ण रोजगार अभावी मांग का परिणाम है।

उत्तर- सत्य

6. रोजगार के सिद्धांत का प्रतिपादन मार्शल ने किया ।

उत्तर- असत्य

7. कींस का रोजगार सिद्धांत पूर्ण प्रतियोगिता पर आधारित है।

उत्तर - सत्य

8. समाज में रोजगार की मात्रा प्रभावपूर्ण मांग पर निर्भर करती है।

उत्तर- सत्य

9. कुल पूर्ति को शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद भी कहते हैं।

उत्तर - असत्य

10. अल्पविकसित राष्ट्रों में किन्स का सिद्धांत लागू नहीं होता ।

उत्तर - सत्य

11. स्वतंत्र विनियोग का राष्ट्रीय आय से कोई संबंध नहीं होता।

उत्तर - सत्य

12. पूर्ण रोजगार का आशय शून्य बेरोजगारी नहीं होता।

उत्तर - सत्य

13. विदेशी व्यापार गुणक जो निर्यात गुणक भी कहलाता है।

उत्तर - सत्य

14. किंस का रोजगार सिद्धांत न्यून मांग का सिद्धांत अभी कहलाता है।

उत्तर - सत्य

15. न्यून मांग में पर्याप्त क्रय शक्ति का भाव होता है।

उत्तर – सत्य

सही जोड़ियां बनाइए।

(अ)

(ब)

1. जे एम किंस

(क) द जनरल थ्योरी ऑफ एंप्लॉयमेंट इंटरेस्ट एंड मनी

2. सीमांत उपभोग प्रवृत्ति

(ख) ΔC/ΔΥ

3. एडम स्मिथ

(ग) वेल्थ ऑफ नेशंस

4. सीमांत बचत प्रवृत्ति

(घ) ΔS/ΔΥ

5. किन्स का आय गुणक का सूत्र

(ड.) ΔΥ/ΔΙ

6. औसत बचत प्रवृत्ति

(च) S/Y

7. औसत उपभोग प्रवृत्ति

(छ) C/Y

8. 1-MPC बराबर है

(ज) C =ƒ (y)

9. पूर्वी अपने लिए मांग स्वयं उत्पन्न कर लेते हैं

(झ) MPC

उत्तर- 1- (क) 2- (ख) 3 (ग) 4 (घ) 5 (ड.) 6 (च) 7 (छ) 8 (ज) 9 (झ)

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

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JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

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