12th 3. मुद्रा और बैंकिंग Macro Economics JCERT/JAC Reference Book

12th 3. मुद्रा और बैंकिंग Macro Economics JCERT/JAC Reference Book

12th 2. राष्ट्रीय आय का लेखांकन Macro Economics JCERT/JAC Reference Book

विनियम : समाज में कोई भी व्यक्ति अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन स्वयं नहीं करता इसीलिए उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज के अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है और अन्य वर्गों से लेन देन करना पड़ता है इसी लेन-देन को विनिमय कहते हैं ।

3.1.1 वस्तु विनिमय प्रणाली :- वस्तु विनिमय प्रणाली उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें वस्तु का विनिमय वस्तु से किया जाता है यानि वस्तु के बदले वस्तु का ही लेन देन होता है।

3.1.2 वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाई :-

1. आवश्यकताओं के दोहरे सहयोग का अभाव- आवश्यकताओं के दोहरे सहयोग का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें पहले व्यक्ति के पास उपलब्ध वस्तु दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता पूरी करती हो और दूसरे व्यक्ति के पास उपलब्ध वस्तु पहले व्यक्ति की आवश्यकता पूरी करें ।

उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के पास गेहूं है और उसे चावल की आवश्यकता है तो उसे किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढना होगा जिसके पास चावल हो और उसे गेहूं की आवश्यकता हो।

2. मूल्य के सामान्य मापदंड का अभाव- वस्तु विनिमय प्रणाली में किसी वस्तु का किसी अन्य वस्तु के आधार पर मूल्य निर्धारित करना मुश्किल होता था क्योंकि मूल्य की सामान्य इकाई का अभाव था । उदाहरण के लिए यदि आपको कार खरीदनी है और आपके पास गेहूं है तो इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि एक कार के बदले आपको कितने गेहूं देने चाहिए और दूसरी स्थिति में यदि किसी के पास चावल है तो वह इस कार के बदले कितने चावल देगा।

3. वस्तु के विभाजन की कठिनाई- यह कठिनाई उन वस्तुओं के सम्बन्ध में महसूस की जिनका विभाजन या तो सम्भव नहीं हो या तो विभाजन के बाद जिसकी उपयोगिता समाप्त हो जाय।

जैसे यदि राम के पास गाय हो तो उसे विभाजित करके तो बेचा नहीं जायेगा ।

4. मूल्य संचय का अभाव- वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य संचय करने के लिए व्यक्ति को वस्तुओं को इकट्ठा करके रखना पड़ता था जिससे उसे वस्तुओं के खराब होने से होने वाली हानि और उसे लंबे दौर तक रखने के लिए व्यवस्था भी करनी पड़ती थी।

5. हस्तांतरण का अभाव- वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य का हस्तांतरण करना कठिन कार्य होता था क्योंकि ऐसे में व्यक्ति को वस्तुओं को हस्तांतरित करना पड़ता था।

3.2.1 मुद्रा

वस्तु विनिमय प्रणाली में अनेकों कमियां होने के कारण मुद्रा को विनिमय के रूप में प्रयोग किया जाने लगा।

मुद्रा वह वस्तु है जिसे विनिमय के माध्यम के रूप में सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है।

3.2.2 मुद्रा के प्रकार

आदेश मुद्रा

आदेश मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसे सरकार के आदेश द्वारा जारी किया जाता है।

इसमें सभी नोट तथा सिक्के शामिल किए जाते हैं।

न्यास मुद्रा

न्यास मुद्रा वह मुद्रा होती है जो प्राप्तकर्ता और अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास पर आधारित होती है।

उदाहरण के लिए- चेक (क्योंकि इसे स्वीकार करना विश्वास पर आधारित है ना कि सरकार के आदेश पर)

पूर्ण कार्य मुद्रा

वह मुद्रा जो सिक्कों के रूप में होती है और जब इसे जारी किया जाता है तो इसका वस्तु मूल्य मौद्रिक मूल्य के बराबर होता है पूर्ण कार्य मुद्रा कहलाती है।

उदाहरण के लिए भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान चलने वाले एक रुपए के सिक्के चांदी के बने होते थे इनका मौद्रिक मूल्य ₹1 हुआ करता था और इन सिक्कों में लगी चांदी का बाजार मूल्य भी ₹1 हुआ करता था।

साख मुद्रा

वह मुद्रा जिसका मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से अधिक होता है उसे साख मुद्रा कहते हैं।

उदाहरण के लिए भारत में वर्तमान दौर में चलने वाला ₹1 का सिक्का जिसका मौद्रिक मूल्य ₹1 होता है परंतु उसको बनाने के लिए प्रयोग की गई धातु का बाजार मूल्य ₹1 से कम होता है।

3.2.3 मुद्रा के कार्य -

1 प्रारंभिक कार्य:- ऐसे कार्य जो प्रत्येक स्थान, प्रत्येक समय तथा विकास की प्रत्येक अवस्था में मुद्रा द्वारा सम्पादित किये जाते हैं उन्हें प्रारम्भिक कार्य, आधारभूत कार्य या आवश्यक कार्य कहा जाता है। मुद्रा के प्रारम्भिक कार्य प्रमुख रूप से दो हैं

2- विनिमय का माध्यम :- मुद्रा विनिमय के माध्यम का सूचक है और इसीलिए विनिमय के रूप में कार्य करना मुद्रा का सबसे प्रमुख तथा आधारभूत कार्य है। चूँकि मुद्रा में क्रयशक्ति तथा सर्वग्राह्यता का गुण विद्यमान है इसलिए स्वतः यह विनिमय का माध्यम बन जाती हैं। सभी वस्तुयें तथा सेवायें मुद्रा के रूप में परिवर्तित की जा सकती हैं और मुद्रा को भी वस्तुओं के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है, और इसी के फलस्वरूप वस्तु विनिमय प्रणाली में उत्पन्न होने वाली दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई दूर हो जाती है।

प्रो० कोलबॉर्न ने कहा भी 'विनिमय क्रिया में मुद्रा की प्राप्ति किसी जादुई वस्तु की प्राप्ति के समान है, जिसे मुद्रा द्वारा क्रय की जाने वाली अनेक वस्तुओं में से किसी में परिवर्तित किया जा सकता है।'

3- मूल्य का मापक :- विनिमय क्रिया तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक कि विनिमय की जाने वाली वस्तुओं के विनिमय दर न निर्धारित हो जायें, जब तक विनिमय क्रिया में भाग लेने वाले दोनों पक्ष इस सम्बन्ध में सहमत न हो जायें कि एक वस्तु का मूल्य दूसरी वस्तु के रूप में कितना हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि कोई एक ऐसा मूल्य का सामान्य मापक हो जिसमें सभी वस्तुओं का मूल्य व्यक्त किया जाय। मुद्रा सर्वग्राह्य है तथा लोगों द्वारा विनिमय माध्यम के रूप में स्वीकार की जाती है इसलिए वस्तुओं के मूल्य को मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

4- द्वितीयक कार्य (गौण कार्य) :- गौण कार्य या सहायक कार्य प्रारम्भिक कार्यों की अपेक्षा कम महत्वपूर्ण होते है, जैसे-जैसे आर्थिक प्रगति होती जाती है वैसे-वैसे ये कार्य भी मुद्रा द्वारा सम्पादित किये जाते हैं। इन्हें सहायक या व्युत्पादित (Derived) कार्य कहा जाता है। मुद्रा के सहायक कार्य निम्नांकित है।

5- विलंबित या भावी भुगतान का आधार :-

(1) अन्य वस्तुओं की अपेक्षा इसका मूल्य अधिक स्थिर होता है जिससे भुगतान लेने तथा देने वाले दोनों पक्षों को हानि की सम्भावना कम से कम रहती है।

(2) मुद्रा में सर्वग्राह्यता (general acceptability) का गुण होता है, किसी भी समय कोई इसे स्वीकार करने में संकोच नहीं करता है।

(3) अन्य वस्तुओं की अपेक्षा इसमें टिकाऊपन अधिक होता है।

6- मूल्य का संचय :- मुद्रा ही एक ऐसी वस्तु है जिसमें मूल्य का संचय किया जा सकता है क्योंकि-

(क) मुद्रा में क्रय-शक्ति होती है जिससे उसकी सहायता से वर्तमान तथा भविष्य में वस्तुओं तथा सेवाओं का क्रय किया जा सकता है।

(ख) वस्तु की उपयोगिता नष्ट हो सकती है, उसकी नश्वरता के कारण या फैशन से बाहर होने के कारण पर मुद्रा की उपयोगिता नष्ट नहीं होती है।

(ग) वस्तुओं की अपेक्षा मुद्रा के रूप में संचय में स्थान कम घिरता है।

(घ) वस्तु के रूप में संचय करने पर संचित वस्तु की मात्रा में वृद्धि नहीं होती, कमी ही होती है जबकि बैंक में जमा करके मुद्रा रखने पर मुद्रा की मात्रा में ब्याज के कारण वृद्धि हो सकती है। मुद्रा के इस कार्य को मुद्रा का तरलता कार्य (Liquidity function of Money) भी कहा जाता है।

7- मूल्य का हस्तांतरण :- एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को मूल्य का हस्तान्तरण मुद्रा के माध्यम से हो सकता है। चूँकि मुद्रा सर्वग्राह्य मुद्रा है, इसलिए यह सब सरलता पूर्वक सम्भव है।

8- आकस्मिक कार्य :- प्रो० किनले (Kinley) इस मत के हैं कि उन्नतिशील देशों में उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त मुद्रा तीन और कार्यों को करती है। इन कार्यों को आकस्मिक कार्य कहा जाता है।

9- सामाजिक आय का वितरण :- आजकल आर्थिक समस्याओं में एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण समस्या आय के न्यायोचित वितरण की है। राष्ट्रीय लाभांश या राष्ट्रीय उत्पादन, उत्पादन के विभिन्न साधनों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है। इसलिये समस्या इस बात की रहती है कि कुल राष्ट्रीय आय को किस प्रकार से वितरित किया जाये कि प्रत्येक साधन को उचित पारितोषिक मिल सके। प्रत्येक साधन की सेवा का मूल्य आसानी से मुद्रा में आँक लिया जाता है और उसके अनुसार उसका वितरण कर लिया जाता है।

10- सीमांत उपयोगिता का समानीकरण :- मुद्रा के प्रयोग के माध्यम से उपभोक्ता उस संस्थिति-बिन्दु को प्राप्त करने में सफल होता है जहाँ उसे विभिन्न वस्तुओं से मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता लगभग बराबर हो सीमान्त उपयोगिता को नापने का मापदण्ड मुद्रा है।

11- साख का आधार :- आधुनिक युग में साख व्यावसायिक प्रगति का आधार स्तम्भ है। साख का आधार मुद्रा है। मुद्रा के ही आधार पर साख पत्रों का सृजन किया जाता है। मुद्रा वह आधार है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति की साख का सही तथा स्पष्ट ज्ञान हो जाता है।

3.2.4 मुद्रा की माँग -

कीन्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'जेनरल थीयरि आफ इंप्लॉयमेंट, इन्टरेस्ट एण्ड मनी' (1936) (General Theory of Employement] Interest and Money) में यह प्रतिपादित किया कि आर्थिक इकाइयां जैसे व्यक्ति तथा व्यापारिक इकाइयाँ अपने व्यवहारों को पूरा करने के लिए अपनी सम्पत्ति का कुछ भाग अत्यन्त तरल सम्पत्तियों जैसे नकद मुद्रा, बॉण्ड आदि के रूप में रखना चाहती हैं, जिससे बिना किसी कठिनाई के या बेचने पर हानि उठाये हुए अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सकें। निश्चित ही मुद्रा सबसे अधिक तरल सम्पत्ति है।

कीन्स ने ऐसे तीन उद्देश्यों (Motives) की चर्चा की जिनके लिए मुद्रा रखी जाती है। इस प्रकार कीन्स के अनुसार, यदि हम, इन तीनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए रखी गयी मुद्रा की मात्रा को जोड़ लें तो हमें मुद्रा की कुल माँग प्राप्त हो जायेगी। ये तीन उद्देश्य निम्नांकित हैं-

(1) लेन-देन या व्यापारिक उद्देश्य (Transaction motive) :- लेन-देन या व्यापारिक उद्देश्य से रखी गयी मुद्रा से अभिप्राय मुद्रा की उस मात्रा से है जो व्यक्ति तथा फर्मे अपने दैनिक लेन-देनों को पूरा करने के लिए रखती हैं। इसे हम 'कार्यशील पूँजी' (Working capital) भी कहते हैं।

व्यापारिक लेन-देन को पूरा करने के लिए जो तरल सम्पत्ति या नकद शेष रखा जाता है वह आय के आकार, आय की प्राप्ति कितनी बार में होती है तथा व्यय के आकार के ऊपर निर्भर करता है। पर मुख्य रूप से यह आय के स्तर के ऊपर ही निर्भर करता है। यदि Lt व्यापारिक उद्देश्य के लिए रखी गयी तरल सम्पत्ति तथा Y आय के स्तर को प्रदर्शित करे तो यह कहा जा सकता है कि

Lt = ƒ (Y)

अर्थात Lt की मात्रा Y के स्तर पर निर्भर करेगी।

(2) पूर्वोप्पाय प्रेरक या दूरदर्शिता उद्देश्य (Precautionary Motive) :- प्रत्येक व्यक्ति तथा फर्म अपनी आय एक भाग अप्रत्याशित घटनाओं जैसे बीमारी, दुर्घटना, माँग की कमी, मशीन के कालातीत आदि का सामना करने के लिए अपने पास कुछ नकद शेष रखता है। इस प्रवृत्ति को कीन्स ने पूर्वोप्पाय प्रेरक कहा। इस प्रकार उद्देश्य के लिए भी रखी गई मुद्रा भी आय के स्तर के ऊपर निर्भर करती है। इसके ऊपर ब्याजदर का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पूर्वाप्पाय प्रेरक के लिए रखी गयी मुद्रा को फलन के रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।

Lp =ƒ( Y)

जिसमें L पूर्वोप्पाय प्रेरक का प्रतीक है।

(3) पूर्वकल्पी प्रेरक या सट्टा उद्देश्य (Speculative Motive):- जिन उद्देश्यों के लिए मुद्रा रखने की मांग' की जाती है उनमें सट्टेबाजी के उद्देश्य से मुद्रा के रखने की मांग महत्त्वपूर्ण है। इस उद्देश्य के लिए मुद्रा रखने की मांग कीन्स की अपनी मौलिक उद्भावना है। उनके अनुसार सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग (LS) ब्याजदर के ऊपर निर्भर करती है -

Ls =ƒ (r)

सट्टा उद्देश्य की मांग से आशय लोगों द्वारा रखी जाने वाली उस मुद्रा से है जिसे लोग अपने पास इसलिए रखना चाहते है जिससे वे प्रतिभूतियों के क्रय विक्रय से सट्टा लाभ (speculative gain) प्राप्त कर सकें।

कीन्स ने यह माना कि आर्थिक इकाईया अपनी सम्पत्ति के कुछ भाग को वित्तीय सम्पत्तियों में रखती हैं। उन्होंने यह भी माना कि मुद्रा तथा बॉण्ड दो ही वित्तीय सम्पत्तियाँ है जिनमें वह अपनी सम्पत्ति रखेगा या तो वह मुद्रा में रखेगा और नहीं तो बाण्ड के रूप में रखेगा क्योंकि अन्य दो उद्देश्यों रखी जाने वाली मुद्रा Lt तथा Lp, दोनों ही आय के स्तर पर निर्भर करती हैं, ब्याजदर के परिवर्तनों का कोई प्रभाव इन पर नहीं पड़ता है।

इसप्रकार मुद्रा की कुल माँग = लेन-देन या व्यापारिक उद्देश्य पूर्वोप्पाय प्रेरक या दूरदर्शिता उद्देश्य पूर्वकल्पी प्रेरक या सट्टा उद्देश्य

Dm = Lt + Lp + Ls

3.2.5 तरलता जाल (Liquidity Trap)- तरलता जाल वह दशा है जिसमें सट्टे के लिए मुद्रा की माँग पूर्णतः लोचदार हो जाती है। यह पूर्ण तरलता पसन्दगी की दशा है। इस शब्दावली का प्रयोग प्रो. जे. एम. कीन्स द्वारा किया गया। तरलता जाल न्यूनतम ब्याज दर (चित्र में ) पर प्राप्त होता है जिसे व्यक्ति बॉण्ड आदि में विनियोग करने की अपेक्षा धन को अपने पास नकदी के रूप में रखना पसन्द करते हैं। न्यूनतम ब्याज पर हानि की आशंका व्यक्तियों को आगे प्रतिभूतियाँ खरीदने से रोकती है जिसका विकल्प अतिरिक्त नकदी को निष्क्रिय परिसम्पत्ति के रूप में रखना होता है।

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3.3 मुद्रा आपूर्ति :- 

मुद्रा पूर्ति से अभिप्राय एक निश्चित समय पर देश में जनता के पास कुल मुद्रा के स्टॉक से है। मुद्रा की आपूर्ति = जनता के पास करेंसी बैंकों के पास मांग जमाएं रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं

MS= C + DD + OD

संकुचित और व्यापक मुद्रा :- भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा की पूर्ति के वैकल्पिक मापों को चार रूपों में प्रकाशित करता है, नामतः M1, M2, M3 और M4। ये सभी निम्नलिखित तरह से परिभाषित किये जाते हैं

M1 = CU + DD

M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ

M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल आवधिक जमाएँ

M4 = M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ (राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्रों को छोड़कर)

यहाँ, CU लोगों द्वारा रखी गई करेंसी (नोट और सिक्के) हैं और DD व्यावसायिक बैंकों द्वारा रखी गयी निवल माँग जमा है। निवल शब्द से बैंक के द्वारा रखी गयी लोगों की जमा का ही बोध होता है और इसलिए यह मुद्रा की पूर्ति में शामिल हैं। अंतर बैंक जमा, जो एक व्यावसायिक बैंक दूसरे व्यावसायिक बैंक में रखते हैं, को मुद्रा की पूर्ति के भाग के रूप में नहीं जाना जाता है।

M1 और M2 संकुचित मुद्रा कहलाती है।

M3 और M4 को व्यापक मुद्रा कहते हैं।

ये कोटियाँ तरलता के घटते हुए क्रम में होती है। M1 संव्यवहार के लिए सबसे तरल और आसान है, जबकि M4 इनमें सबसे कम तरल है। M3 मुद्रा पूर्ति की माप का सबसे साधारण रूप है। इसे 'समस्त मौद्रिक संसाधन' भी कहते हैं।

व्यावसायिक बैंक : 

व्यावसायिक बैंक वह वित्तीय संस्था है जो मुद्रा तथा साख में व्यापार करती है। व्यावसायिक बैंक ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से जनता से जमाएँ स्वीकार करते हैं तथा अपने लिए लाभ का सृजन करती हैं।

"बैंक एक ऐसी संस्था है जो ऋण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसे व्यक्तियों को रुपया उधार देती है जिन्हें उनकी आवश्यकता होती है और जिसके पास लोग अपना अतिरिक्त रुपया जमा करते हैं। - किनले

3.4.1 व्यावसायिक बैंक के कार्य

(1) जमा स्वीकार करना- जनता से जमा स्वीकार करना व्यापारिक बैंकों का सबसे प्रमुख कार्य है। बैंक निम्नांकित प्रकार के जमा स्वीकार करता है

(क) सावधि जमा खाता (Fixed Deposit Account)- इस खाते में जमा एक निश्चित समय के लिए ही किया जाता है। सामान्यतया 6 माह से 5 वर्ष के लिए जमा स्वीकार किये जाते हैं। इस जमा पर ब्याजदर अन्य जमाओं से अधिक होता है।

(ख) चालू खाता (Current Account)- चालू खाते वे खाते होते हैं जिनमें जमा राशि का जमाकर्ता अपनी इच्छानुसार जब चाहें तब धन निकाल सकता है। ये बैंक के 'माँग जमा' (Demand deposit) होते हैं।

(ग) बचत बैंक खाता (Saving Bank Account)- बचत बैंक खाते में स्वीकार किये गये रुपयों पर जमा की राशि निकासी की राशि तथा निकासी की संख्या पर कुछ प्रतिबन्ध होता है। इसमें ब्याज की दर कम होती है।

(घ) गृह बचत खाता (Home Saving Account)- अल्प बचत को प्राप्त करने का यह सबसे प्रभावपूर्ण तरीका है। इसके अन्तर्गत घरों में गुल्लक रख दिये जाते हैं जिसमें लोग अपनी अल्प बचतें डालते जाते हैं। निश्चित समय के बाद गुल्लक खोलकर बैंक में रुपया जमा कर दिया जाता है।

(2) ऋण देना- बैंक विभिन्न प्रकार के जमाओं के माध्यम से जनता से जमा स्वीकार करते हैं तथा ऋणों, अग्रिमों (advances), अधिविकर्षों (Overdrafts) तथा नकद साख (Cash credits) के रूप में लोगों को उधार देते हैं। बैंक ऋण देते समय, लाभदेयता, तरलता तथा सुरक्षा के सिद्धान्त का पालन करता है।

बैंक प्रायः निम्नांकित प्रकार के ऋण देता है।

(क) सामान्य ऋण या प्रत्यक्ष ऋण (Direct loans)- प्रत्यक्ष ऋण वे ऋण हैं जो बैंक उत्पादकों तथा व्यापारियों को किसी प्रतिभूति के आधार पर देता है।

(ख) माँग पर मुद्रा (Money at Call) ऐसे ऋण जो बहुत ही अल्प समय के लिए प्रतिभूतियों की आड़ में दिये जाते हैं, जिन्हें बैंक अल्प सूचना पर निकाल सकता है, माँग पर मुद्रा या (मनी ऐट काल) के नाम से जाने जाते हैं।

(ग) नकद साख (Cash Credit) देता है। नकद साख के अन्तर्गत बैंक निश्चित प्रतिभूति के बदले ऋण

(घ) बैंक अधिविकर्ष (Bank Overdraft)- यह एक विशिष्ट प्रकार का ऋण है जो बैंक अपने विश्वसनीय ग्राहकों को प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत बैंक अपने ग्राहकों को उनके द्वारा खाते में जमा राशि से अधिक निकासी का अधिकार देता है। जमा राशि से अधिक निकाली गयी राशि पर बैंक ब्याज लेता है।

(3) साख मुद्रा का सृजन (Creation of Credit money) बैंक केवल मुद्रा के जमाकर्ता ही नहीं बल्कि साख मुद्रा के सृजक भी हैं। बैंक का यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। बैंक ऋण प्रदान करने की प्रक्रिया में साख मुद्रा का सृजन करते हैं।

(4) विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय- व्यापारिक बैंक सामान्यतया विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय भी करता है। कहीं-कहीं यह कार्य विदेशी विनिमय बैंकों द्वारा या देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा सम्पादित किये जाते हैं।

(5) अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य (Agency Services) बैंक अपने ग्राहकों के लिए उनके स्थान पर कुछ सेवायें करते हैं। इस सेवाओं को अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य कहते हैं। इन कार्यों को पूरा करने के लिए बैंक अपने ग्राहकों से कुछ कमीशन प्राप्त करता है।

3.4.2 साख-सृजन

साख से तात्पर्य बैंक द्वारा उपलब्ध कराया ऋण की उस मात्रा से है जो ऋणी की ऋण वापसी की क्षमता के बराबर होती है। बैंक किसी को उस सीमा तक ही ऋण उधार देती है जिसे वह आसानी से वापस कर सके। साख का निर्माण बैंकों द्वारा किया जाता है। बैंकों द्वारा नकद जमा के आधार पर व्युत्पन्न जमा उत्पन्न करती है जिसे साख-सृजन कहा जाता है।

साख सृजन को सीमित करने वाले कारक :

वाणिज्यिक बैंकों के पास लोगों की जमा के रूप में नकदी की मात्रा जितनी अधिक होगी उतना ही अधिक साख सृजन होगा। अतः उपलब्ध जमा राशि की कम मात्रा साख सृजन को सीमित करती है।

नकद आरक्षित अनुपात साख सृजन को प्रभावित करता है। अनुपात जितना कम होता है, साख सृजन की क्षमता उतनी ही अधिक होती है।

साख सृजन की प्रक्रिया तभी आरम्भ होती है जब उधारकर्ता ऋण प्रयोजनों के लिए बैंक से मांग करते हैं। इसलिए विश्वसनीय उधारकर्ताओं की संख्या साख सृजन को प्रभावित करती है।

साख सृजन प्रक्रिया अतिरिक्त आरक्षित निधि या मुद्रा अपवाह के रूप में नकदी की निकासी से प्रभावित हो सकती है।

मुद्रास्फीति, मंदी आदि बैंकों की व्यावसायिक स्थितियां भी साख सृजन प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं।

3.5.1 भारतीय रिजर्व बैंक RBI (Reserve Bank of India)

भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल 1935 को हुई थी। 1 जनवरी 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है।

रिजर्व बैंक का केन्द्रीय कार्यालय प्रारम्भ में कलकत्ता में स्थापित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से बम्बई में स्थानान्तरित कर दिया गया। केन्द्रीय कार्यालय वह कार्यालय है जहाँ गवर्नर बैठते हैं और नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक प्रमुख बैंक के कार्य

(1) पत्र मुद्रा का निर्गमन

(2) सरकार के बैंक के रूप में कार्

(3) बैंकों के बैंक के रूप में कार्य

(4) विदेशी मुद्रा का प्रबन्धन करना।

(5) साख नियन्त्रण का कार्य

(1) पत्र मुद्रा का निर्गमन- प्रायः प्रत्येक देश में पत्र मुद्रा के निर्गमन के सम्बन्ध में केन्द्रीय बैंक को एकाधिकार की स्थिति प्राप्त रहती है। डी० कॉक तो इसे निर्गमन का बैंक (Bank of Issue) कहते है।

(2) सरकार के बैंक के रूप में- केन्द्रीय बैंक अपने देश की सरकार के लिए बैंक, एजेन्ट तथा परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।

(3) बैंकों के बैंक के रूप में- सम्पूर्ण बैंकिंग व्यवस्था में केन्द्रीय बैंक को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। अतएव अन्य सभी बैंक इससे सम्बद्ध रहते हैं। केन्द्रीय बैंक तीन रूपों में बैंकों के बैंक के रूप में कार्य करता है।

() केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों के नकद कोष के अभिरक्षक के रूप में कार्य करता है। व्यापारिक बैंक अपने नकद कोष को केन्द्रीय बैंक के पास रखते हैं।

(ख) केन्द्रीय बैंक अन्तिम ऋणदाता के रूप में कार्य करता है।

(ग) केन्द्रीय बैंक समाशोधन गृह के रूप में कार्य करता है।

(4) केन्द्रीय बैंक विदेशी विनिमय कोष अपने पास रखता है तथा विदेशी विनिमय दर में स्थिरता लाने का प्रयास करता है। वह विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय करता है।

(5) साख नियन्त्रण- आजकल साख नियन्त्रण केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य माना जाता है क्योंकि एक सुरक्षित सीमा के बाद साख सृजन अर्थव्यवस्था में आर्थिक अस्थिरता ला देती है।

1 - मात्रात्मक/परिमाणात्मक उपाय - रिजर्व बैंक द्वारा या किसी भी केन्द्रीय बैंक द्वारा सामान्यतया प्रयुक्त परिमाणात्मक साख नियंत्रण के अस्त्र वे अस्त्र हैं जो साख की मात्रा को ही प्रभावित करते हैं। इसके अन्तर्गत निम्नांकित अस्त्र आते हैं।

1- बैंक दर (Bank Rate) बैंक दर से अभिप्राय उस दर से है, जिस पर केन्द्रीय बैंक सदस्य बैंकों के प्रथम श्रेणी के बिलों की पुनर्कटौती करता है अथवा स्वीकार्य प्रतिभूतियों पर ऋण देता है. कुछ देशों में इसे अंक बैंक कटौती दर भी कहा जाता है. बैंक दर में परिवर्तन करके केन्द्रीय बैंक देश में साख की मात्रा को प्रभावित कर सकता है।

2- खुले बाजार की क्रियाएँ (Open Market Operations): देश के केंद्रीय बैंक ( रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया) द्वारा खुले बाजार में प्रतिभूतियों (Securities) के खरीदने अथवा बेचने से संबधित क्रिया को खुले बाजार की क्रिया कहते हैं। जब रिजर्व बैंक (केंद्रीय बैंक) बाजार में प्रतिभूतियों को बेचना प्रारंभ करता है तो वाणिज्य बैंकों के नकदी कोषों में कमी आ जाती है, इसके परिणामस्वरूप बैंकों की साख निर्माण क्षमता घट जाती है।

3 - नकद आरक्षित अनुपात (CRR) किसी भी वाणिज्यिक बैंक में कुल नकदी का वह (प्रतिशत) भाग जो व्यापारिक बैंकों को केन्द्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है, नकद कोषानुपात कहलाता है. नकद कोषानुपात बैंकों के साख के आकार को प्रभावित करता है. नकद कोषानुपात बैंकों की तरलता स्थिति को प्रभावित करके उनकी ऋण देय योग्यता पर प्रभाव डालता है।

4- सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) वाणिज्यिक बैंकों की कुल माँग एवं सावधि देयताओं का वह प्रतिशत (अनुपात) जो उन्हें ग्राहकों को साख मुहैया कराने से पूर्व स्वर्ण या सरकार से अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में रखना पड़ता है।

2 - चयनात्मक/गुणात्मक उपाय - चयनात्मक साख नियंत्रण के तरीके वे तरीके हैं जो साख की मात्रा या परिमाण को नहीं बल्कि उसके प्रवाह को अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से नियंत्रित करते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य व्यापारिक बैंकों द्वारा अवांछित आर्थिक क्रियाओं के लिए साख देने पर रोक लगाना या उन्हें हतोत्साहित करना है।

1- न्यूनतम सीमा / मार्जिन निर्धारण- मार्जिन का अर्थ यह है कि जिस वस्तु के स्टाक को गिरवी रखकर ऋण देना हैं, उसके मूल्य में से मार्जिन के बराबर तक ऋण नहीं दिया जायेगा। इस प्रकार निर्धारित मार्जिन तक ऋण नहीं दिया जायेगा।

2- नैतिक दबाव - रिजर्व बैंक ने नैतिक दबाव नीति का भी प्रयोग किया है जिसके अन्तर्गत बैंकों के प्रतिनिधियों की मीटिंग तथा सरकुलर्स (पत्रों) के द्वारा रिजर्व बैंक उनकी नैतिक जिम्मेदारी को जागृत करके साख नियंत्रण कर सकता है।

3- साख मापदंड का निर्धारण- कुछ विशेष उद्देश्यों के लिए दिए गये ऋणों या सुविधाओं की ऊपरी सीमा निर्धारित करना। कुछ विशेष प्रकार के ऋणों पर विभेदात्मक ब्याजदर लगाना।

4- साख स्वीकृतिकरण योजना- इस स्कीम के अन्तर्गत एक निश्चित सीमा के ऊपर किसी एक पार्टी को ऋण देने के पूर्व व्यापारिक बैंक को रिजर्व बैंक से स्वीकृत लेनी होती थी। अक्टूबर 1988 से रिजर्व बैंक ने इस योजना को समाप्त कर दिया।

केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंकों में निम्नांकित अन्तर पाये जाते हैं-

(1) व्यापारिक बैंक निजी स्वामित्व में होते हैं जबकि केन्द्रीय बैंक सामान्यतया राज्य के स्वामित्व में होते हैं।

(2) व्यापारिक बैंक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से कार्य करते हैं जबकि केन्द्रीय बैंक देश की आर्थिक नीति के क्रियान्वयन, आर्थिक कल्याण में वृद्धि तथा आर्थिक स्वास्थ्य में गिरावट को रोकने के उद्देश्य से कार्य करता है।

(3) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों की प्रतियोगिता में कार्य नहीं करता है, वह उनका नियमन करता है तथा आकस्मिक स्थितियों में उनके सहायक तथा परामर्शदाता के रूप में भी कार्य करता है।

(4) व्यापारिक बैंक जनता से प्रत्यक्ष रूप में व्यवहार करते हैं, केन्द्रीय बैंक का जनता से प्रत्यक्ष सम्बन्ध सामान्यतया नहीं होता है।

(5) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों के बैंक के रूप में कार्य करता है। व्यापारिक बैंक अपने नकद कोष का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास रखते हैं। वह व्यापारिक बैंकों के लिए अन्तिम ऋणदाता के रूप में भी कार्य करता है। ऐसा कार्य व्यापारिक बैंकों के क्षेत्र से बाहर है।

(6) केन्द्रीय बैंक देश के बैंकिंग तथा मौद्रिक ढाँचे की सर्वोच्च संस्था है। यह देश की मौद्रिक प्रणाली का नियमन करता है। वह देश में मूल्य या मौद्रिक स्थिरता बनाये रखने की कोशिश करता है। व्यापारिक बैंकों के ऊपर इस प्रकार का दायित्त्व नहीं होता।

(7) केन्द्रीय बैंक को पत्र मुद्रा के निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त रहता है।

विमुद्रीकरण (Demonetization) :- विमुद्रीकरण एक आर्थिक गतिविधि है जिसके अंतर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा को चालू करती है तो इसे विमुद्रीकरण (Demonetization) कहते हैं। जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है।

1- भारत में पहली बार जनवरी 1946 में 1000 और 10,000 रुपए के नोटों को वापस ले लिया गया था और 1000, 5000 और 10,000 रुपए के नए नोट 1954 में पुनः शुरू किए गए थे।

2- 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की गठबंधन सरकार ने फिर से 1000, 5000 और 10,000 रुपए के नोटों का विमुद्रीकरण किया था।

3- 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 1000 और 500 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा की अर्थात् विमुद्रीकरण की घोषणा की। इसके बाद सरकार 500 और 2000 रुपए के नए नोट भी बाजार में लेकर आई।


प्रश्नोत्तर-

1. मुद्रा विनिमय का माध्यम है क्योंकि

(क) यह दूसरी वस्तु के रूप में आसानी से परिवर्तनीय है

(ख) इसकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता है

(ग) मुद्रा संपत्तियों में सबसे तरल है

(घ) इनमें सभी

उत्तर : (घ)

2- मुद्रा के प्राथमिक कार्य के अंतर्गत निम्नलिखित में किसे शामिल किया जाता है?

(क) विनिमय का माध्यम

(ख) मूल्य का मापक

(ग) (क) और (ख) दोनों

(घ) मूल्य का संचय

उत्तर : (ग)

3- निम्नलिखित में किसके अनुसार, "मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर समस्त अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है।"

(क) केन्स

(ख) राबर्टसन

(ग) मार्शल

(घ) हाटे

उत्तर : (ग)

4 रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना कब हुई?

(क) 1947

(ख) 1935

(ग) 1937

(घ) 1945

उत्तर : (ख)

5- देश में कागजी नोट जारी करने का कार्य कौन करता है?

(क) व्यावसायिक बैंक

(ख) केंद्रीय बैंक

(ग) विश्व बैंक

(घ) औद्योगिक बैंक

उत्तर : (ख)

6 भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?

(क) 1 जनवरी, 1949.

(ख) 1 जनवरी, 1950

(ग) 1 मार्च, 1951

(घ) 2 फरवरी, 1949

उत्तर : (घ)

7- ATM का पूर्ण रूप क्या है?

(क) एनी टाइम मनी

(ख) ऑल टाइम मनी

(ग) ओटोमेटेड टेलरमशीन

(घ) इनमें कोई नहीं

उत्तर : (ग)

8- निम्नांकित में से कौन-सा साख नियंत्रण का परिणात्मक उपाय नहीं है?

(क) खुले बाजार की क्रियाएँ

(ख) बैंक दर

(ग) नैतिक दबाव

(घ) नकद कोष अनुपात में परिवर्तन

उत्तर : (ग)

9 अंतिम ऋणदाता किसे कहा गया है?

(क) व्यावसायिक बैंक को

(ख) ग्रामीण क्षेत्र में महाजन को

(ग) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को

(घ) भारतीय रिजर्व बैंक को

उत्तर : (घ)

10 भारत में एक रुपया का नोट कौन जारी करता है?

(क) भारतीय रिजर्व बैंक

(ख) भारत सरकार का वित्त मंत्रालय

(ग) भारतीय स्टेट बैंक

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर : (ख)

प्रश्न 1- भारत के केन्द्रीय बैंक का नाम लिखिए।

उत्तर : भारतीय रिजर्व बैंक।

प्रश्न 2 वस्तु विनिमय के कोई दो दोष बताइए।

उत्तर :

1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव

2. मूल्य के मापन में कठिनाई।

प्रश्न 3 मुद्रा के दो प्रमुख प्राथमिक कार्य कौन से है?

उत्तर :

1. विनिमय का माध्यम

2. मूल्य का मापक ।

प्रश्न 4 व्यापारिक बैंक के कोई दो कार्य बताइये?

उत्तर :

1. जमाएँ स्वीकार करना

2. ऋण देना।

प्रश्न 5 सर्वाधिक तरलतम सम्पत्ति कौनसी है?

उत्तर : मुद्रा ।

प्रश्न 6 भारतीय रिजर्व बैंक के कोई दो कार्य बताइए?

उत्तर :

1. पत्र मुद्रा का निर्गमन

2. सरकार का बैंकर।

प्रश्न 7 केन्द्रीय बैंक की साख नियंत्रण की कोई दो गुणात्मक विधियों अथवा उपकरणों के नाम बताइए।

उत्तर :

1. चयनात्मक साख नियंत्रण

2. साख की राशनिंग।

प्रश्न 8 साख सृजन का कार्य कौन करता है?

उत्तर : व्यापारिक बैंक ।

प्रश्न 9. केन्द्रीय बैंक द्वारा अपनाए जाने वाले साख नियंत्रण उपायों की सूची बनाइए।

उत्तर :

परिमाणात्मक उपाय

गुणात्मक उपाय

1. बैंक दर

1. चयनात्मक साख

2. खुले बाजार की क्रियाएँ

2. साख की राशनिंग

3. आरक्षित जमा अनुपात

3. उपभोक्ता साख का नियमन

4. सांविधिक तरलता अनुपात

4. उधार की न्यूनतम दर

प्रश्न 10 अधिविकर्ष से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर : किसी व्यापारिक बैंक द्वारा अपने कुछ ग्राहक को उसकी जमा राशि से अधिक राशि निकालने की अनुमति प्रदान करना अधिविकर्ष कहलाता है।

प्रश्न 11 व्यापारिक बैंक किसे कहते हैं ?

उत्तर : व्यापारिक बैंक वे बैंक हैं जो लोगों से जमा स्वीकार करते हैं तथा इन जमाओं से ब्याज अर्जन करने वाली निवेश परियोजनाओं को उधार देते हैं।

प्रश्न 12 केन्द्रीय बैंक किसे कहते हैं ?

उत्तर : केन्द्रीय बैंक एक ऐसी संस्था है जो देश की मौद्रिक, बैंकिंग एवं साख व्यवस्था का नियमन, संचालन एवं नियंत्रण करती है।

प्रश्न 13 मुद्रा के विकास की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : प्राचीन समय में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलन में रही। उसके पश्चात् मुद्रा के रूप में विभिन्न धातु के सिक्कों का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। विभिन्न धातुओं के अपव्यय को रोकने हेतु कागजी मुद्रा चलन में आई। बाद में चौक, हुण्डी, बिल आदि का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। वर्तमान में क्रेडिट कार्ड के रूप में प्लास्टिक मनीश का प्रचलन निरन्तर बढ़ रहा है।

प्रश्न 14 भारतीय मुद्रा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर : भारत में पत्र मुद्रा एवं सिक्के प्रचलन में तथा इसे जारी करने का अधिकार भारतीय रिजर्व बैंक का है। एक रुपये के नोट को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की पत्र मुद्रा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की जाती है।

प्रश्न 15 बचत खाते तथा चालू खाते में अन्तर बताइये?

उत्तर :

बचत खाता

चालू खाता

1. बचत खाते में जमा कराई गई राशि पर निश्चित दर से ब्याज मिलता है।

1. चालू खाते में जमा कराई गई राशि पर कोई ब्याज नहीं मिलता।

2. बचत खाते से राशि निकलवाने पर कुछ प्रतिबंध होते हैं।

2. चालू खाते से राशि निकलवाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता।

3. इस खाते में जमाराशि पर बैंक उधार नहीं देता।

3. इस खाते में जमाराशि से अधिक राशि निकलवायी जा सकती है।


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JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

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