"बजट" शब्द फ्रेंच भाषा के बूजट (BOUGETTE) से निकला
है जिसका अर्थ "चमड़े का थैला" या झोला है। आधुनिक अर्थ में इसका प्रयोग
इंग्लैंड में 1733 ईस्वी में किया गया। इससे पूर्व किसी को इस शब्द का ज्ञान नहीं था।
इस वर्ष जब वित्त मंत्री सर रॉबर्ट वालपोल ने अपनी वित्तीय योजना कॉमन सभा के सामने
रखने के लिए एक चमड़ी के थैले से कागज निकाले तो व्यंग रूप में कहा गया कि वित्त मंत्री
ने अपना बजट खोला। तभी से सरकार की आय के लिए इस शब्द का प्रयोग होने लगा।
भारतीय संविधान की धारा 112 के अंतर्गत "एक वार्षिक वित्तीय
विवरण" संसद के दोनों सदनों के सामने प्रस्तुत करना पड़ता है। यह केंद्रीय सरकार
का बजट कहलाता है। सामान्यता भारत में प्रत्येक वर्ष फरवरी माह में संसद में बजट प्रस्तुत
किया जाता है। जब वित्त मंत्री सरकार का वार्षिक बजट संसद में अनुमोदन हेतु प्रस्तुत
करता है। समान रूप से, प्रत्येक राज्य सरकार (धारा 202) को राज्य के विधानसभा के सामने
एक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करना आवश्यक है। यह राज्य सरकार का बजट कहलाता है।
सरकार का बजट सरकार का एक वित्तीय वर्ष में अनुमानित आय तथा
अनुमानित व्यय का मद वार ब्यौरा है। भारत में वित्तीय वर्ष दो कलैंडर वर्ष में 1 अप्रैल
से 31 मार्च की अवधि होती है, जिसे वित्तीय वर्ष भी कहा जाता है।
5.1.1 बजट का अर्थ :
"बजट आने वाले वित्तीय वर्ष का वित्तीय नियोजन है जिसमें
एक तरफ प्रत्येक वस्तु से होने वाली संभावित आय का अनुमान और दूसरी तरफ व्यय के सभी
अनुमान होते हैं।
बजट, वित्तीय आय-व्यय का वार्षिक लेखा-जोखा होता है।
कौटिल्य के अनुसार सारे काम वित्त पर निर्भर है। अतः सर्वाधिक
ध्यान कोषागार पर देना चाहिए।
रेन गेज के अनुसार "आधुनिक राज्य में बजट सार्वजनिक प्राप्तियों
एवं खर्चों का पूर्वानुमान है और कुछ खर्चों को करने तथा प्राप्तियां को एकत्र करने
का अधिकृतिकरण है।"
सरकार की नीतियां तथा कार्यक्रम सरकार की बजटीय नीति कहलाती
है अथवा सरकार की राजकोषीय नीति (FISCAL POLICY) कहलाती है। इसके दो पहलू हैं 1. राजस्व
पहलू तथा 2, व्यय पहलू । अतः सरकारी बजट सरकार की अनुमानित प्राप्तियों तथा अनुमानित
व्यय का विवरण है जो स्थिरता के साथ विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सरकार
के बजट में नीति को प्रकट करता है।
5.1.2 बजट के उद्देश्य :-
बजट वित्तीय प्रशासन का एक शक्तिशाली साधन होता है एक सुनियोजित
एवं सुव्यवस्थित बजट के बिना हम देश के सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति की कल्पना भी नहीं
कर सकते सामाजिक आर्थिक यंत्र के रूप में बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
1. उत्पादन में वृद्धि को सुनिश्चित करना
2. आय के वितरण की असमानता को कम करना
3. युद्ध या अन्य आपातकालीन स्थिति के कारण उत्पन्न मुद्रास्फीति
को कम करना
4. लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में पूर्ण रोजगार को सुनिश्चित
करना।
5.2 बजट की संरचना अथवा बजट के घटक
सरकारी बजट के घटक इस प्रकार है
A- बजट प्राप्तियां - इसके अंतर्गत राजस्व प्राप्तियां तथा पूंजीगत प्राप्तियां
को शामिल किया जाता है।
B- बजट व्यय इसके अंतर्गत राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय को शामिल किया जाता है।
1. बजटीय प्रप्तियाँ-
सरकार को अपनी विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। इनके
स्रोत कर, सार्वजनिक उद्यमों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य, फीस, जुर्माना,
उपहार, अनुदान, आदि हो सकते हैं। इस प्रकार बजटीय प्राप्तियां सरकार को एक वित्तीय
वर्ष के दौरान सभी स्रोतों से होने वाली अनुमानित आय या प्राप्तियां है।
(क) राजस्व प्राप्तियां (Revenue
Receipts) - सरकार की सभी मौद्रिक प्राप्तियों मे
को राजस्व प्राप्तियां कहा जाता है। राजस्व प्राप्तियां राजस्व खाते के अंतर्गत होने
वाले प्राप्तियां हैं। यह प्राप्ति ना तो दायित्व उत्पन्न करती है और ना ही संपत्ति
को कम करते हैं। जैसे "कर" एक राजस्व प्राप्ति है क्योंकि इसके फलस्वरूप
सरकार की कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होती। तथा कर प्राप्तियां सरकार की परिसंपत्तियों
में कोई कमी नहीं करती है। इसके विपरीत, यदि सरकार किसी कंपनी (जैसे एयर इंडिया) के
अपने शेयर बेचकर धन प्राप्त करती है, तो इससे उसकी परिसंपत्तियों में कमी हो जाती है।
राजस्व प्राप्तिओं को कर प्राप्ति तथा गैर कर प्राप्ति में विभाजित किया जा सकता है:
A- कर से प्राप्त आय-
कर कानूनी रूप से सरकार
को किया गया एक अनिवार्य तथा एक पक्षीय भुगतान है। सरकार आय, उत्पादन, बिक्री, यातायात,
धन-संपत्ति, उपहार, निर्यात, आयात आदि पर कर लगा सकती है।
कर दो प्रकार के होते हैं
a. प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes)-
प्रत्यक्ष कर वह कर है
जिसका अंतिम भार उसी व्यक्ति को उठाना पड़ता है जिस व्यक्ति पर कर लगाया गया है। अर्थात्
इस कर के अंतिम भार को किसी अन्य व्यक्ति पर टाला नहीं जा सकता। जैसे आयकर, उपहार कर,
धन कर, निगम कर, आदि प्रत्यक्ष कर के उदाहरण हैं।
b. अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes)-
अप्रत्यक्ष कर वह कर है
जिसका अंतिम भार किसी दूसरे व्यक्ति पर डाला जा सकता है। वर्तमान में जीएसटी इसका महत्वपूर्ण
उदाहरण है, इसके अतिरिक्त बिक्री कर, सीमा शुल्क, मनोरंजन कर, वस्तुओं एवं सेवाओं पर
लगने वाले कर, आदि अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण हैं।
B- गैर कर राजस्व से प्राप्तियाँ-
गैर कर राजस्व प्राप्तियां
वे प्राप्तियां हैं जो सरकार को करो के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से आय प्राप्त होती है।
करेतर या गैर कर राजस्व प्राप्तियां निम्नलिखित है -
a- व्यावसायिक राजस्व-
यह आय सरकारी एजेंसियों
द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के द्वारा सरकार को प्राप्त आय हैं। जैसे डाक के
लिए भुगतान, टोल टैक्स, सरकारी साख निगमों से प्राप्त फंड पर ब्याज, आदि। इसमें ब्याज
तथा सरकार द्वारा किए गए निवेश पर लाभांश भी सम्मिलित हैं।
b- फीस या शुल्क-
सरकार द्वारा प्रदान की
जाने वाली सेवाओं के उपभोग के बदले किया जाने वाला भुगतान है। जैसे कॉलेज फीस, रजिस्ट्रेशन
फीस, जन्म तथा मृत्यु पंजीकरण, पासपोर्ट फीस, कोर्ट फीस आदि।
c- जुर्माना-
यह कानून का उल्लंघन करने
पर सरकार द्वारा लगाया गया अर्थदंड है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को कानून का अनुपालन
करने के लिए प्रेरित करना है ना कि आय प्राप्त करना।
d- जब्त करना-
आज्ञा ना मानने पर न्यायालय
द्वारा लगाया गया जुर्माना है।
(ख) पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipts) -
पूंजीगत प्राप्तियां पूंजीगत
खाते के अंतर्गत प्राप्त आय हैं। पूंजीगत प्राप्तियों में बाजार से लिया गया ऋण, बाह्य
ऋण, सरकार द्वारा दिए गए ऋण तथा भविष्य निधि शामिल है। यह प्राप्तियां सरकार के दायित्व
को उत्पन्न करती है अथवा इन प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आती है।
जैसे ऋण सरकार के लिए एक दायित्व उत्पन्न करते हैं तथा सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश
से सरकार को जो मौद्रिक आय प्राप्त होती है उसके कारण सरकार की परिसंपत्तियों में कमी
आती है। प्राप्त हो के मुख्य स्रोत निम्न हैः
A- ऋणों की वसूली-
प्रायः राज्य एवं स्थानीय सरकारी केंद्रीय
सरकार से कर लेती हैं केंद्रीय सरकार द्वारा राज्य एवं स्थानीय सरकारों से ऋणों की
वसूली को बजट में पूंजीगत प्राप्तियों के अंतर्गत रखते हैं क्योंकि ऋणों की वसूली से
देनदारों या संपत्तियों में कमी आती है।
B- उधार एवं अन्य देयता-
उधार देने के फलस्वरूप
परिसंपत्तियों का निर्माण होता है, जबकि उधार लेने से दायित्व उत्पन्न होती है। इसलिए
उधार लेने के फलस्वरुप जो मुद्रा प्राप्त होती है उसे पूंजीगत प्राप्ति माना जाता है।
सरकार बाजार भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी सरकारों तथा अन्य पक्षों से ऋण लेती है।
C- अन्य प्राप्तियां-
विनिवेश से प्राप्त किए
गए आय को इस मद में शामिल किया जाता है। 'विनिवेश का अर्थ है सरकार द्वारा सार्वजनिक
क्षेत्र के उद्यमों के संपूर्ण अथवा आशिंक शेयरों को बेचना है। विनिवेश के फल स्वरुप
जो मुद्रा प्राप्त होती है उसे पूंजीगत प्राप्ति कहा जाता है क्योंकि इससे सरकार की
परिसंपत्तियों में कमी आती है।
प्रो. डाल्टन के अनुसार "प्रत्यक्ष कर वह कर है जो उसी
व्यक्ति द्वारा भुगतान किया जाता है जिस पर वह कानूनी तौर पर लगाया जाता है।"
प्रो. डाल्टन के अनुसार "अप्रत्यक्ष कर वह कर हैं जो लगाया
किसी एक व्यक्ति पर जाता हैं परंतु इसका आशिंक या सम्पूर्ण भुगतान किसी अन्य व्यक्ति
को करना पड़ता है।"
प्रगतिशील कर (Progressive Tax)- प्रगतिशील कर वह कर है जो आय बढ़ने
के साथ-साथ कर की दर भी बढ़ती जाती है।
अनुपातिक कर (Proportional Tax)- अनुपातिक कर वह कर है जिसमें आय के
सभी स्तरों पर कर है की दर एक समान होती है। चाहे आय घटे या बढ़े परंतु कर की दर के
सभी के लिए एक समान रहती है।
प्रतिगामी कर (Regressive Tax)- यह प्रगतिशील कर के विपरीत । प्रतिगामी
कर वह कर है जिसमें करदाता की आय में वृद्धि साथ-साथ कर की दर में कमी होती जाती है।
विशिष्ट कर (Specific Taxation
System) - जो कर वस्तुओं के विशिष्ट गुणों के आधार पर लगाया जाता है उसे विशिष्ट कर कहा
जाता है। यह कर वस्तु के भार, आकार और मात्रा आदि के अनुसार लगाए जाते हैं। जैसे कपड़े
पर मीटर के हिसाब से तथा चीनी पर किलो या क्विंटल के हिसाब से।
मूल्यवृद्धि कर (Value Added Tax
or VAT)- यह कर वस्तुओं के उसके विभिन्न अवस्थाओं में होने वाली मूल्य वृद्धि पर लगाया
जाता है। किसी उत्पाद के मूल्य तथा मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य के अंतर को मूल्यवृद्धि
कहते हैं। GST टैक्स मूल्य वृद्धि का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
अभ्यास प्रश्न
1. बजट को परिभाषित कीजिए।
2. राजस्व प्राप्ति तथा पूंजीगत प्राप्ति
को परिभाषित कीजिए।
3. प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में
अंतर स्पष्ट करें।
4. प्रगतिशील कर की व्याख्या कीजिए।
5. कर क्या है?
बजट व्यय-
बजट से तात्पर्य एक वित्तीय वर्ष में सरकार के अनुमानित व्यय से हैं। ये वह व्यय
होता है, जो सरकार अपने रख रखाव तथा समाज अथवा समग्र अर्थव्यवस्था के लिए करती है।
इस प्रकार के व्यय का उद्देश्य सामाजिक कल्याण बढ़ाना होता है।
घटक
1. योजना तथा गैर योजना व्यय- बजट व्यय (राजस्व व्यय पूंजीगत व्यय)
को योजना व्यय तथा गैर योजना व्यय में वर्गीकृत किया जाता है।
A- योजना व्यय- योजना व्यय से अभिप्राय उस व्यय से
है जो विकास की योजना एवं कार्यक्रम (जैसे पंचवर्षीय योजना) के अंतर्गत चल रहे कार्यों
पर होता है। इसमें राजस्व (राज्यों को दी गई सहायता) तथा पूंजीगत व्यय जैसे सड़क पूल
और अस्पताल की इमारत इत्यादि के निर्माण पर व्यय) दोनों ही शामिल होते हैं।
B- गैर योजना व्यय-
योजना व्यय के अतिरिक्त सभी व्यय गैर योजना में शामिल किए जाते हैं। इसमें विशेष
रूप से गैर योजना व्यय सरकार के नियमित कार्यों पर होने वाले को शामिल किया जाता है।
अथवा इसमें कानून एवं व्यवस्था, रक्षा तथा अनुदानों जैसी सेवाओं पर होने वाले व्यय
शामिल होते हैं।
2 राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय -
A- राजस्व व्यय- वे व्यय जिनसे ना तो दायित्व कम हो तथा ना ही संपत्तियों में
वृद्धि हो, राजस्व व्यय कहलाते हैं। जैसे वृद्धा पेंशन, वेतन, छात्रवृत्ति, ब्याज का
भुगतान, आर्थिक सहायता आदि।
भारत सरकार के राजस्व व्यय के महत्वपूर्ण मद
☞ सरकार का वेतन बिल।
☞ ब्याज का भुगतान।
☞ आर्थिक सहायता पर व्यय।
☞ सुरक्षा के लिए खरीदी गई वस्तुओं पर व्यय।
B- पूंजीगत व्यय-
यह वैसे व्यय है जिनसे
या तो संपत्तियां का निर्माण हो या फिर दायित्वों में कमी हो, पूंजीगत व्यय कहा जाता
है। भूमि, शेयर, इमारत, क्रय करने पर किया गया व्यय आदि। ऋणों की वापसी भी एक पूंजीगत
व्यय है क्योंकि इससे सरकार के दायित्व में कमी आती है।
भारत सरकार के पूंजीगत व्यय के मद
☞ भूमि और भवन पर व्यय।
☞ मशीनरी तथा उपकरणों पर व्यय।
☞ शेयरों की खरीद ।
☞ केंद्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकारों या राज्य निगम को दिए जाने
वाले ऋण।
3. विकासात्मक तथा गैर विकासात्मक व्यय -
विकासात्मक व्यय- वैसे व्यय जो प्रत्यक्ष रूप से देश के आर्थिक तथा सामाजिक विकास
से संबंधित हो विकासात्मक व्यय कहलाते हैं। जैसे- कृषि, औद्योगिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य,
सामाजिक कल्याण, वैज्ञानिक खोज आदि पर किया गया व्यय।
गैर विकासात्मक व्यय- सरकार द्वारा आवश्यक सामान्य सेवाओं पर किया जाने वाला व्यय
गैर विकासात्मक व्यय कहलाता है। जैसे रक्षा तथा प्रशासन पर किया गया व्यय।
5.3 संतुलित बजट तथा घाटे का बजट
बजट संतुलित और असंतुलित हो सकता है इसकी व्याख्या निम्न प्रकार
है -
1. संतुलित बजट
A- बचत का बजटः जब अनुमानित राजस्व या आय अनुमानित व्यय से अधिक होती है। यह
समग्र मांग को कम कर देते हैं। मुद्रास्फीति को कम करने का यह उचित यंत्र है। यह अवस्फीति
को नियंत्रित करने के लिए उचित नहीं है।
B- घाटे का बजटः जब अनुमानित आय जा राजस्व अनुमानित व्यय से कम होती है तो उसे
घाटे का बजट कहा जाता है। यह मंदी की स्थिति को नियंत्रित करने में सहायक है। मुद्रास्फीति
के स्थिति में इसे अच्छा नहीं माना जाता, जब पूर्ण रोजगार स्तर पर समग्र मांग समग्र
पूर्ति से अधिक होती हैं।
संतुलित बजट-
जब अनुमानित आय या राजस्व
अनुमानित व्यय के बराबर होता है तो उसे संतुलित बजट कहां जाता है। इस प्रकार के बजट
से समग्र मांग में थोड़ी सी वृद्धि होती है। संतुलित बजट एक ऐसी नीति है, जो अर्थव्यवस्था
में पूर्ण रोजगार ला सकती है। परंतु कम विकसित देशों, जैसे- भारत के लिए उचित नहीं
है। इन देशों में सरकार के व्यय आय की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए, जिससे समग्र मांग को
बढावा मिल सके।
संतुलित बजट = कुल बजट प्राप्तियां या आय = कुल बजट व्यय
घाटे का बजट = कुल बजट प्राप्तियां या आय < कुल बजट व्यय
बचत का बजट = कुल बजट प्राप्तियां या आय > कुल बजट व्यय
5.4 सरकारी घाटे के माप या बजट घाटे के प्रकार -
1. राजस्व घाटा (Revenue Deficit)
2. वित्तीय या राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
3. प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)
4. बजटीय घाटा (Budget Deficit)
1, राजस्व घाटा - इसका अर्थ सरकार के कुल राजस्व व्यय पर उसकी कुल राजस्व प्राप्तियों
के आधिक्य से है। अर्थात, राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियां
जहां,
राजस्व व्यय = ब्याज का भुगतान + गैर ब्याज व्यय (आर्थिक सहायता)
राजस्व प्राप्तियां = शुद्ध कर आय + गैर कर आय (ब्याज + आर्थिक
सहायता)
इसके लागू होने का अर्थ है कि सरकार अपनी उपभोग व्यय को पूरा
करने के लिए उधार ले रही है। राजस्व घाटा दर्शाता है कि एक देश की वित्तीय स्थिति अस्थिर
हो रही है।
2, राजकोषीय घाटा-
राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था
की वर्तमान आर्थिक स्थिति का समग्र दर्पण होता है। राजकोषीय घाटा एक विस्तृत धारणा
है। यह सरकार की कुल ऋण तथा अन्य देनदारियां हैं। माप के लिए सूत्र,
राजकोषीय घाटा = कुल बजटीय व्यय - ऋणों को छोड़कर कुल बजटीय
प्राप्तियां
अथवा,
राजकोषीय घाटा = (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) - (राजस्व प्राप्तियां
+ ऋणों को छोड़कर पूंजीगत प्राप्तियां)
अथवा,
राजकोषीय घाटा = राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय - कर राजस्व – गैर
कर राजस्व - ऋणों की वसूली - विनिवेश
राजकोषीय घाटा सरकार की कुल ऋण आवश्यकताओं को दर्शाता है। यह
बजट व्यय को पूरा करने के लिए सरकार के ऋणों पर निर्भरता की माप को बताता है। राजकोषीय
घाटे की सुरक्षित सीमा जीडीपी का 5% तक मानी जाती है। अधिक राजकोषीय घाटा का अर्थ है
की ऋणों की अधिक राशि तथा भविष्य में ब्याज के भुगतान का अधिक भार होना। राजकोषीय घाटे
के प्रभाव इस प्रकार
मुद्रास्फीति का कारण
☞ बढ़ती ऋणग्रस्तता
☞ विकास में कमी आना
☞ ऋण चक्र
3. प्राथमिक घाटा-
राजकोषीय घाटा ब्याज भुगतान
सहित सरकार की कुल ऋण का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन प्राथमिक घाटा चालू वित्त वर्ष
में ब्याज भुगतान को छोड़कर, उधार ली गई राशि को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में प्राथमिक
घाटा, ब्याज भुगतान को छोड़कर, चालू वित्त वर्ष के खर्च को पूरा करने के लिए सरकार
द्वारा ऋण ली गई राशि को दर्शाता है। माप के लिए सूत्र.
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान
शून्य प्राथमिक घाटे का अर्थ है कि सरकार केवल ब्याज के भुगतान
के लिए ऋण ले रही है। प्राथमिक घाटा शुद्ध ब्याज भुगतान के घाटे को पूरा करने के लिए
सरकार की आवश्यकता को दर्शाता है।
4 बजटीय घाटा-
जब कुल बजट प्राप्तियों
से कुल बजट व्यय अधिक होती है तो यह बजटीय घाटा कहलाता है।
बजटीय घाटा = कुल व्यय (राजस्व + पूंजीगत) - कुल प्राप्तियां
(राजस्व + पूंजीगत)
घाटी के वित्त पोषण की विधि अथवा विभिन्न घाटे को ठीक करने के
उपाय
1. मौद्रिक विस्तार या घाटे की वित्त व्यवस्थाः इसका अर्थ है
कि सरकार घाटे की पूर्ति के लिए करेंसी नोट छाप सकती हैं।
2. जनता एवं विदेशी सरकारों से ऋण लेना
3. विनिवेश अर्थात्, सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के
शेयरों को बेचकर भी धन प्राप्त कर सकती है। इसे विनिवेश कहा जाता है।
4. सरकारी खर्च को कम करना।
5.5.1 राजकोषीय नीति-
राजकोषीय नीति वह नीति
हैं जिसमें सरकार अपने आय, व्यय, और ऋण व्यवस्था का उपयोग आर्थिक विकास, आर्थिक समानता,
तथा पूर्ण रोजगार प्राप्त करने के लिए करती हैं।
5.5.2 राजकोषीय नीति का अर्थ-
राजकोषीय नीति सरकार की
आय, व्यय तथा ऋण से सम्बन्धित नीतियों से लगाया जाता है। अर्थव्यवस्था में सर्वोच्च
उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राजकोषीय नीति व्यय, ऋण, कर, आय, हीनार्थ प्रबन्धन आदि
की समुचित व्यवस्था बनाये रखती है, जैसे-आर्थिक विकास, कीमत में स्थिरता, रोजगार, करारोपण,
सार्वजनिक आय-व्यय, सार्वजनिक ऋण आदि। इन सबकी व्यवस्था राजकोषीय नीति में की जाती
है।
प्रो० आर्थर स्मिथीज के अनुसार "राजकोषीय नीति वह नीति
है जिसमें सरकार अपने व्यय तथा आगम के कार्यक्रम को राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार
पर वांछित प्रभाव डालने और अवांछित प्रभावों को रोकने के लिए प्रयुक्त करती है।"
कीन्स के अनुसार, "राजकोषीय नीति उन प्रमुख उपकरणों में
से एक थी जिनका उपयोग सरकारें मुद्रास्फीति से निपटने और रोजगार को बढ़ावा देने के
लिए कर सकती हैं।"
5.5.3 राजकोषीय नीति के उपकरण-
राजकोषीय नीति आय, व्यय
व ऋण के द्वारा सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करती है। स्मरण रहे, राजकोषीय नीति और
वित्तीय नीति में अन्तर होता है। राजकोषीय नीति के उपकरण
1. सरकार की करारोपण नीति (Taxation Policy),
2. सरकार की व्यय नीति (Expenditure Policy),
3. सरकार की ऋण नीति (Public Debt Policy).
4 सरकार की बजट नीति (Budgetary Policy).
1. सार्वजनिक व्यय या सरकार व्यय की नीति-
सरकार अनेक प्रकार की वस्तुओं पर व्यय
करती है। सेना और पुलिस से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा सेवा तथा हस्तांतरण भुगतान जैसी कल्याणकारी योजनाओं
पर व्यय करती है।
2. करारोपण या सरकार की करारोपण नीति-
सरकार नए कर लगाती है तथा वर्तमान करो
की दरों में परिवर्तन करती है। सरकार व्यय की पूर्ति कर के द्वारा करती है।
3. सार्वजनिक या सरकार के ऋण नीति-
सरकार बॉन्ड, राष्ट्रीय बचत पत्र, किसान
विकास पत्र आदि के माध्यम से जनता से तथा विदेशों से भी धन जुटाती है।
4. अन्य उपाय- सरकार द्वारा अपनाए गए अन्य उपाय हैंरू
☞ राशनिंग और कीमत नियंत्रण
☞ मजदूरी नियंत्रण
☞ वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ाना
5.5.4 राजकोषीय नीति के उद्देश्य-
आर्थिक विकास के लिए आवश्यक
एवं पर्याप्त मात्रा में धन की व्यवस्था करना राजकोषीय नीति का मुख्य कार्य है। राजकोषीय
नीति के उद्देश्य किसी राष्ट्र विकास के लिए उसकी परिस्थितियों, विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं
और विकास की अवस्था के आधार पर निर्धारित किये जाते है राजकोषीय नीति के प्रमुख उद्देश्य
कहे जा सकते हैं -
1. पूंजी का निर्माण करना- राजकोषीय नीति के अन्तर्गत करारोपण द्वारा चालू उपभोग को कम
करके, बचत में वृद्धि करने के प्रयत्न किए जाते हैं, ताकि पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक
धनराशि प्राप्त हो सके।
2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना -
पूंजी निर्माण के अलावा
राजकोषीय नीति का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है।
3. आय व घन वितरण की विषमताओं को कम करना- आय व धन के वितरण की समानता बनाए रखना आर्थिक विकास का केवल
लक्ष्य ही नहीं वरन् एक पूर्व आवश्यकता भी है। अतः सरकार को चाहिए कि अपनी राजकोषीय
नीति का निर्माण इस प्रकार से करे कि धन वितरण की विषमताएँ देश में कम से कम हो सकें।
4. मुद्रा स्फीतिक दशाओं पर नियंत्रण लगाना-
अल्प-विकसित देशों में
विकास की आवश्यकताओं को देखते हुए पूंजी का सर्वथा अभाव होता है। प्रायः देखने में
आता है कि धन की इस कमी को सम्बन्धित सरकारें हीनार्थ प्रबन्धन के अन्तर्गत नोट छाप
कर पूरा करती है। जिससे मुद्रा स्फीतिक दशाएँ उत्पन्न होने लगती हैं। बढ़ती हुई कीमतें,
न केवल समाज के लिए कष्टप्रद हैं बल्कि विकास की लागत में भी अनावश्यक वृद्धि कर देती
हैं। इस दृष्टि से राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण कार्य 'प्रभावपूर्ण माँग'
(Effective Demand) को कम करके मुद्रा प्रसार पर रोक लगाना है।
5. रोजगार से सुअवसरों में वृद्धि करना- राजकोषीय नीति के विभिन्न उद्देश्यों में एक उद्देश्य अर्थव्यवस्था
में पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखना है।
राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति में क्या अंतर है?
मौद्रिक नीति प्रमुख रूप से धन, मुद्रा और ब्याज दरों से संबंधित
है। दूसरी ओर, राजकोषीय नीति के तहत, सरकार केंद्र द्वारा कराधान और खर्च से संबंधित
है। भारत में, मौद्रिक नीति भारतीय रिजर्व बैंक या आरबीआई के अधीन है।
राजकोषीय नीति एवं मोद्रीक नीति में अन्तर
तुलना के लिए आधार |
राजकोषीय नीति |
मौद्रिक नीति |
अर्थ |
सरकार द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरण जिसमें वह अपनी कर
राजस्व और व्यय नीतियों का उपयोग अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिए करता है,
राजकोषीय नीति के रूप में जाना जाता है। |
केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को
विनियमित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण को मौद्रिक नीति के रूप में जाना
जाता है। |
द्वारा प्रशासित |
वित्त मत्रांलय |
केंद्रीय अधिकोष |
प्रकृति |
राजकोषीय नीति हर साल बदलती है। |
मौद्रिक नीति में बदलाव राष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर निर्भर
करता है। |
संबंधित |
सरकारी राजस्व और व्यय |
बैंकों और क्रेडिट नियंत्रण |
केंद्रित |
आर्थिक विकास |
आर्थिक स्थिरता |
नीति के साधन |
टैक्स की दरें और सरकारी खर्च |
ब्याज दर और क्रेडिट अनुपात |
राजनीतिक प्रभाव |
हाँ |
नहीं |
5.6 अभ्यास
प्रश्न 1. एक संतुलित बजट किसे कहते हैं?
(क) जब व्यय और प्राप्तियाँ बराबर हो
(ख) जब व्यय प्राप्तियों से कम हो ।
(ग) जब व्यय प्राप्तियों से अधिक हो
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (क)
प्रश्न 2. यदि वर्तमान कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद
2000 रु० है जबकि आधार वर्ष में सकल घरेल उत्पाद 1000 रु० था। इस स्थिति में अपस्फीतिक
है-
(क) 100%
(ख) 150%
(ग) 200%
(घ) 300%
उत्तर (ग)
प्रश्न 3. राजकोषीय एवं बजट घाटे को कैसे कम किया
जा सकता है?
(क) कर राजस्व में वृद्धि द्वारा
(ख) सरकारी व्यय में कटौती करके
(ग) सरकार द्वारा अपव्यय रोककर
(घ) इनमें सभी
उत्तर (घ)
प्रश्न 4. सरकार बजट के माध्यम से निम्नलिखित
में किन उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयास करती है?
(क) आर्थिक विकास को प्रोत्साहन
(ख) संतुलित क्षेत्रीय विकास
(ग) आय एवं सम्पत्ति का पुनर्वितरण
(घ) इनमें सभी
उत्तर (घ)
प्रश्न 5. बजट के संघटक निम्नलिखित में कौन है?
(A) बजट प्राप्तियाँ
(B) बजट व्यय
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 6. सरकार के कर राजस्व के अंतर्गत निम्नलिखित
में कौन शामिल है?
(A) आयकर
(B) निगम कर
(C) सीमा शुल्क
(D) इनमें सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 7. प्रत्यक्ष कर के अंतर्गत निम्नलिखित
में किसे शामिल किया जाता है?
(A) आयकर
(B) उपहारकर
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उत्पाद कर
उत्तर (C)
प्रश्न 8. अप्रत्यक्ष
कर के अंतर्गत निम्नलिखित में किसे शामिल किया जाता है?
(A) उत्पाद शुल्क
(B) बिक्री कर
(C) (A) और (B) दोनों
(D) सम्पत्ति कर
उत्तर (C)
प्रश्न 9. ऐसे व्यय,
जो सरकार के लिए किसी परिसम्पत्ति का सृजन नहीं करते, कहलाते हैं?
(A) राजस्व व्यय
(B) पूँजीगत व्यय
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 10. प्रत्यक्ष
कर है
(A) आय कर
(B) उपहार क
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 11. केन्सियन
विचारधारा के अंतर्गत आय के संतुलन का निर्धारक निम्नलिखित में कौन है?
(A) सामूहिक माँग
(B) सामूहिक पूर्ति
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 12. केन्सियन
बचत निवेश दृष्टिकोण के अनुसार आय-रोजगार संतुलन निर्धारण निम्नलिखित में किस बिंदु
पर होगा?
(A) S > I
(B) I > S
(C) I = s
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 13. आय एवं उत्पादन
के संतुलन स्तर पर सामूहिक माँग में वृद्धि होने पर निम्नलिखित में किसमें वृद्धि होती
है?
(A) रोजगार
(B) उत्पादन
(C) आय
(D) इनमें सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 14. केन्स का
रोजगार सिद्धांत निम्नलिखित में से किस पर निर्भर है?
(A) प्रभावपूर्ण माँग
(B) पूर्ति
(C) उत्पादन क्षमता
(D) इनमें से कोई नही
उत्तर (A)
प्रश्न 15. केन्स के
सिद्धान्त का संबंध
(A) प्रभावपूर्ण माँग प्रवृत्ति से
(B) उपभोग प्रवृत्ति से
(C) बचत प्रवृत्ति से
(D) इनमें से सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 16. निम्नलिखित
में से कौन अप्रत्यक्ष कर है?
(A) उत्पाद शुल्क
(B) सीमा शुल्क
(C) बिक्री कर
(D) इनमें सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 17. निम्नलिखित
में कौन-सा सरकार पूँजीगत व्यय है?
(A) ब्याज का भुगतान
(B) मकान का क्रय
(C) मशीनरी व्यय
(D) सभी
उत्तर (A)
प्रश्न 18. 'बजट' शब्द
की उत्पत्ति हुई?
(A) फ्रेंच शब्द
(B) अंग्रेजी शब्द
(C) फ्रेंच शब्द
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 19. कौन अर्थशास्त्र
में आय, रोजगार एवं उत्पादन में अंतर नहीं होता है?
(A) समष्टि अर्थशास्त्र में
(B) व्यष्टि अर्थशास्त्र में
(C) पूँजीवादी अर्थशास्त्र में
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 20. किसके अनुसार
"रोजगार सिद्धांत को समूह माँग सिद्धांत भी कहा जाता है।"
(A) पीग
(B) केन्स
(C) मार्शल
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (B)
प्रश्न 21. भारत का वित्तीय
वर्ष है
(A) 1 अप्रैल से 31 मार्च
(B) 1 जनवरी से 31 दिसम्ब
(C) 30 अक्टूबर से 1 सितंबर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 22. "एक
वित्तीय वर्ष में सरकार को सभी साधनों से प्राप्त होने वाली अनुमानित मौद्रिक नीति
कहलाती है?"
(A) बजट प्राप्तियाँ
(B) पूँजीगत प्राप्तियाँ
(C) राजस्व प्राप्तियाँ
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 23. राजस्व प्राप्तियों
के घटक है?
(A) कर प्राप्तियाँ
(B) गैर कर प्राप्तियाँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 24. फ्रेंच शब्द 'Bougatte'
का अर्थ है?
(A) एक चमड़े का थैला या बटुआ
(B) एक थैला
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें सभी
उत्तर (C)
प्रश्न 25. बजट प्राप्तियों के संघटक
निम्नलिखित में कौन हैं?
(A) राजस्व प्राप्तियाँ
(B) पूंजीगत प्राप्तियाँ '
(C) दोनों A और B
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 26. निम्न में
से कौन राजकोषीय घाटे से होने वाला खतरा है?
(A) अवस्फीतिकारी दबाव
(B) स्फीतिकारी दबाव
(C) दोनों A और B
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर (B)
प्रश्न 27. निवेश गुणक सिद्धान्त की
अवधारणा किसने दी?
(A) कीन्स
(B) काहन
(C) हेन्सन
(D) मार्शल
उत्तर (A)
प्रश्न 28. 'अतिरेक मांग' उत्पन्न होने
के कौन से कारण है?
(A) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(B) मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि
(C) करों में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 29. कीन्स ने
अर्थव्यवस्था में न्यून मांग की दशा को किस नाम से पुकारा है?
(A) पूर्ण रोजगार संतुलन
(B) अपूर्ण रोजगार संतुलन
(C) दोनों A और B
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (B)
प्रश्न 30. किस स्थिति
में सस्ती मौद्रिक नीति अपनायी?
(A) न्यून मांग की स्थिति
(B) अतिरेक मांग की स्थिति जाती है
(C) दोनों A और B
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 31. राजकोषीय
अनुशासन का सूचक कौन है?
(A) धनात्मक प्राथमिक घाटा
(B) ऋणात्मक प्राथमिक घाटा
(C) शून्य प्राथमिक घाटा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 32. राजकोषीय नीति के अंतर्गत
किसे शामिल किया जाता है?
(A) सार्वजनिक व्य
(B) कर
(C) सार्वजनिक ऋण
(D) इनमें से सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 33. निम्नलिखित
में से कौन-सी राजस्व प्राप्ति नहीं है?
(A) ऋणों की वसूली
(B) विदेशी अनुदान
(C) सार्वजनिक उपक्रमों के लाभ
(D) सम्पत्ति कर
उत्तर (B)
प्रश्न 34. सरकार के
कर राजस्व के अंतर्गत शामिल है?
(A) आयकर
(B) निगम कर
(C) सीमा शुल्क
(D) इनमें से सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 35. बजट की अवधि
क्या होती है?
(A) वार्षिक
(B) दो वर्ष
(C) पाँच वर्ष
(D) दस वर्ष
उत्तर - (A)
प्रश्न 36. निम्न में
से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) MPC + MPS = 0
(B) MPC+MPS <1
(C) MPC + MPS = 1
(D) MPC + MPS >1
उत्तर (C)
प्रश्न 37. कीन्स के अनुसार अर्थव्यवस्था में
आय एवं रोजगार का संतुलित स्तर स्थापित होता है जहाँ?
(A) AD > AS
(B) AS > AD
(C) AD = AS
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 38. निवेश के निर्धारक घटक कौन से हैं?
(A) पूँजी की सीमान्त क्षमता
(B) ब्याज की दर
(C) दोनों (A) और (B)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 39. अवस्फीतिक अंतराल माप है?
(A) न्यून मांग की
(B) आधिक्य मांग की
(C) पूर्ण रोजगार की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 40. व्यापार चक्र के उत्पन्न होने के निम्नलिखित
में कौन से कारण हैं?
(A) अवस्फीतिक दशाएँ
(B) स्फीतिक दशाएँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 41. ब्रिटिश अर्थशास्त्री जे एम कीन्स
की पुस्तक 'द जनरल थ्योरी' किस वर्ष में प्रकाशित हुई?
(A) 1926
(B) 1936
(C) 1946
(D) 1956
उत्तर (B)
प्रश्न 42. महामंदी किस वर्ष आई थी?
(A) 1949
(B) 1939
(C) 1930
(D) 1919
उत्तर (C)
प्रश्न 43. कीन्स के गुणक को कौन से तत्त्व प्रभावित
करते हैं?
(A) सीमान्त बचत प्रवृत्ति
(B) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 44. विनिमय दर के निम्नलिखित में कौन से
रूप हैं?
(A) स्थिर विनिमय दर
(B) लोचदार विनिमय दर
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 45. साख संकुचन के लिए-
(A) सांविधिक तरलता अनुपात को घटा दिया जाता है।
(B) सांविधिक तरलता अनुपात को बढ़ा दिया जाता है।
(C) सांविधिक तरलता अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता
है।
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (A)
प्रश्न 46. गुणक ज्ञात कीजिए यदि MPS का 0.75 है?
(A) 2
(B) 8
(C) 1.33
(D) 1.67
उत्तर (C)
प्रश्न 47. अस्फीतिक अन्तराल की दशाएँ?
(A) माँग में तेजी से वृद्धि
(B) पूर्ति में तेजी से वृद्धि
(C) माँग और पूर्ति दोनों बराबर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 48. व्यापार चक्र उत्पन्न होने के कारण
हैं?
(A) अपस्फीतिक दशाएँ
(B) स्फीतिक दशाएँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर (C)
प्रश्न 49. अवस्फीति अंतराल की स्थिति में
(A) कुल माँग कुल पूर्ति से अधिक होती है कम होती है
(B) कुल माँग कुल पूर्ति से
(C) अर्थव्यवस्था में मूल्य स्तर गिरता ह
(D) (B) एवं (C) दोनों
उत्तर (C)
प्रश्न 50. न्यून माँग
की स्थिति से उबरने के लिए उपाय है?
(A) साख में वृद्धि
(B) घाटे का बजट
(C) निवेश को प्रोत्साहन
(D) इनमें से सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 51. निम्नलिखित
में से कौन साख नियंत्रण का परिमाणात्मक उपाय नहीं है?
(A) बैंक दर
(B) सीमांत आवश्यकता
(C) खुले बाजार की क्रियाएँ
(D) नकद-कोष अनुपात
उत्तर (D)
प्रश्न 52. किस घाटा
को सरकारी ऋण उगाही द्वारा पूरा किया जाता है?
(A) प्राथमिक घाटा
(B) आगम घाटा
(C) वित्तीय घाटा
(D) बजट घाटा
उत्तर - (B)
प्रश्न 53. मूल्य ह्रास
की राशि को कहते हैं?
(A) प्रतिस्थापन निवेश
(B) निवल निवेश
(C) घिसावट के लिए राशि
(D) केवल (A) और (C) दोनों
उत्तर (C)
प्रश्न 54. सरकारी व्यय
जिससे परिसम्पत्ति का सृजन नहीं होता, कहलाता है
(A) राजस्व व्यय
(B) पूँजीगत व्यय
(C) नियोजित व्यय
(D) बजट व्यय
उत्तर - (A)
प्रश्न 55. केंद्र सरकार
के कर राजस्व के अंतर्गत निम्न में से कौन शामिल नहीं है?
(A) आय कर
(B) सीमा शुल्क
(C) निगम कर
(D) उत्पादन शुल्क
उत्तर (D)
प्रश्न 56. स्फीतिक अन्तराल माप है
(A) अतिरिक्त माँग की
(B) अतिरेक पूर्ति की
(C) अल्प माँग की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(A)
प्रश्न 57. कौन-सा कथन
सत्य है?
(A) सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति, सीमान्त
बचत प्रवृत्ति = 0
(B) सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति सीमान्त
बचत प्रवृत्ति <1
(C) सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति सीमान्त
बचत प्रवृत्ति >1
(D) सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति सीमान्त
बचत प्रवृत्ति = 1
उत्तर (D)
प्रश्न 58. राजकोषीय
नीति में शामिल है?
(A) सार्वजनिक व्यय
(B) कर
(C) घाटे की वित्त व्यवस्था
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (D)
प्रश्न 59. अतिरेक माँग
उत्पन्न होने के निम्न में से कौन-सा कारण है?
(A) मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि
(B) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(C) करों में कमी
(D) इनमें से सभी
उत्तर (D)
प्रश्न 60. स्फीतिक अंतराल
को ठीक करने के लिए प्रमुख मौद्रिक उपाय कौन-सा हैं?
(A) बैंक दर में वृद्धि
(B) खुले बाजार में प्रतिभूतियाँ बेचना
(C) नकद कोष अनुपात में वृद्धि
(D) इनमें से सभी
उत्तर (D)
।।- लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)
प्रश्न 1. सरकारी बजट
क्या होता है? बजटीय नीति के तीन उद्देश्य बताइए।
उत्तर : बजट सरकार की प्रत्याशित आय
तथा प्रत्याशित व्यय का ऐसा ब्यौरा है, जो एक वित्तीय वर्ष में 1 से मार्च 31 तक के
अनुमानों को प्रकट करता है। इसमें बीते वर्ष की उपलब्धियों तथा कमियों से संबंधित रिपोर्ट
भी सम्मिलित होती है। अन्य शब्दों में, 'सरकारी बजट एक वित्तिय वर्ष की अवधि के दौरान
होता है सरकार की अनुमानित आय और व्ययों का विवरण होता है। सरकारी बजट के उद्देश्य
निम्नलिखित हैं।
(i) आय तथा संपत्ति का पुनः वितरण
(ii) संसाधनों का कुशल आबंटन
(iii) आर्थिक स्थिरता बनाए रखना
(iv) सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंधन
प्रश्न 2. सरकारी बजट का 'आय का पुर्नवितरण उद्देश्य समझाइए?
अथवा
आय की असमानताएँ दूर
करने में सरकारी बजट की भूमिका समझाइए? (Foreign 2012)
अथवा
आय की असमानताओं को दूर
करने के लिए बजटीय नीति का उपयोग कैसे किया जा सकता है?
उत्तर : आय की असमानताएँ दूर करना सरकारी
बजट का एक मुख्य उद्देश्य है। बजटीय नीति का उपयोग करके आय की असमानताओं को दूर किया
जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है
(i) अमीरों की आय पर प्रगतिशील आय प्रणाली
का प्रयोग करके अधिक कर लगाकर तथा उससे प्राप्त आय को गरीबों के कल्याण पर खर्च करके
आय की असमानता कम की जा सकती है।
(ii) अमीरों के द्वारा प्रयोग की जाने
वाली वस्तुओं पर अधिक कर लगाकर अमीरों की प्रयोज्य आय कम की जा सकती है।
(iii) गरीबों को आर्थिक सहायता देकर,
शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ मुफ्त देकर और सार्वजनिक व्यय द्वारा भी आय एवं संपत्ति
की समानता लाने में सहायता मिल सकती है और इस व्यय के लिए राजस्व अमीरों पर प्रत्यक्ष
एवं अपत्यक्ष करों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 3. सरकारी बजट का संसाधनों का आबंटन उद्देश्य समझाइए?
अथवा
संसाधनों के आबंटन में
सरकार की भूमिका समझाइए?
उत्तर : देश के संसाधनों के आबंटन को पूर्ण
रूपेण बाजार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता इसीलिए देश के विभिन्न क्षेत्रों को
प्राथमिकताओं के अनुसार सामाजिक व आर्थिक संतुलित विकास करना बजट का एक महत्वपूर्ण
उद्देश्य है इसके लिए कर नीति व आर्थिक सहायता की नीति बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती
है।
(i) वांछनीय वस्तुओं पर आर्थिक सहायता
दी जा सकती है अर्थात् जिन वस्तुओं की पूर्ति में सरकार वृद्धि चाहती है जैसे शिक्षा,
स्वास्थ्य, भोजन आदि उन्हें या तो सरकारी क्षेत्र द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराया जा सकता
है। या उन पर आर्थिक सहायता दी जा सकती है।
(ii) अवांछनीय वस्तुओं पर उच्च दर पर
कर लगाए जा सकते हैं अर्थात् जिन वस्तुओं की पूर्ति में सरकार कमी करना चाहती है जैसे
सिगरेट, शराब, तम्बाकू आदि उन्हें कर लगाकर पहले से अधिक महँगा बनाया जा सकता है और
उनके उत्पादन पर देश के संसाधन प्रयोग होने से रोके जा सकते हैं।
प्रश्न 4. सरकारी बजट
का 'आर्थिक स्थिरता' उद्देश्य समझाइए?
अथवा
आर्थिक स्थिरता लाने
में सरकारी बजट की भूमिका समझाइए?
उत्तर : कर, आर्थिक सहायता, सार्वजनिक
व्यय के माध्यम से सरकार समग्र माँग को नियंत्रित करके मंदी व तेजी अथवा स्फीति व अपस्फीति
पर नियंत्रण पा सकती है, जिससे आर्थिक स्थिरता लाई जा सकती है। यह इस प्रकार किया जाता
है
(i) स्फीति के समय सरकार अपने व्यय
में कमी करती है और करों में वृद्धि करती है। इससे समग्र माँग कम हो जाती हैं समग्र
माँग कम होने से स्फीति अंतराल समाप्त हो जाता है, कीमतें नियंत्रित हो जाती हैं और
स्फीतिकारी स्थिति स्थिरता में आ जाती है।
(ii) अपस्फीति के समय सरकार अपने व्यय
में वृद्धि और करों में कमी करती है। इससे समग्र माँग बढ़ जाती है। समग्र माँग बढ़ने
से अपस्फीति अंतराल समाप्त हो जाता है, कीमतें नियंत्रित हो जाती हैं और अपस्फीतिकारी
स्थिति समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 5. सरकारी बजट
में राजस्व प्राप्तियों और पूँजीगत प्राप्तियों के बीच अंतर बताइए प्रत्येक का उदाहरण
दीजिए?
अथवा
सरकारी बजट में राजस्व
प्राप्तियों और पूँजीगत में भेद कीजिए। प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए?
उत्तर :
आधार |
पूँजीगत प्राप्तियाँ |
राजस्व प्राप्तियाँ |
1. अर्थ |
वे प्राप्तियाँ जिनसे या तो सरकार
की देयताएँ उत्पन्न होती हैं या सरकार की परिसंपतियाँ कम होती हैं, पूँजीगत प्राप्तियाँ
कहलाती हैं। |
वे प्राप्तियाँ जिनसे न तो सरकार
की देयताएँ उत्पन्न होती हैं न ही सरकार की परिसंपतियाँ बढ़ती हैं, राजस्व प्राप्तियाँ
कहलाती हैं। |
2. उदाहरण |
ऋण प्राप्त करना (देयता में वृद्धि)
विनिवेश (सरकारी परिसंपति में कमी) |
करों से प्राप्तियाँ, फीस, चलान अथवा
जुर्माने से प्राप्तियाँ |
3. पुनरावृत्ति |
इनकी प्रकृति पुनरावृत्ति की नहीं
होती वे एक बार हाने वाली प्राप्तियाँ हैं। |
इनकी पुनरावृत्ति होती हैं। ये समय
प्रति समय बार-बार हाने वाली प्राप्तियाँ हैं। |
प्रश्न 6. सरकारी बजट में पूँजीगत व्यय तथा राजस्व व्यय के बीच अंतर बताइए।
प्रत्येक का उदाहरण दीजिए।
अथवा
सरकार बजट में पूँजीगत
व्यय तथा राजस्व व्यय में भेद कीजिए ? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए?
उत्तर :
आधार |
पूँजीगत व्यय |
राजस्व व्यय |
1. अर्थ |
वे व्यय जिनसे या तो देयताएँ कम होती
हैं या सरकार की परिसंपत्तियाँ बढ़ती हैं, पूँजीगत व्यय कहलाते हैं। |
वे व्यय जिनसे न तो सरकार की देयताएँ
कम होती हैं और न ही परिसंपत्तियाँ बढ़ती हैं, राजस्व व्यय कहलाते हैं। |
2. पुनरावृत्ति |
इनकी प्रकृति पुनरावृत्ति की नहीं
होती ये एक बार होने वाले व्यय हैं। |
इनकी पुनरावृत्ति होती है। ये समय
प्रति समय बार-बार होने वाली प्राप्तियाँ हैं। |
3. उदाहरण |
ऋण का भुगतान (देयता में कमी सार्वजनिक
निवेश सरकारी परिसंपत्ति में वृद्धि) जैसे सड़कों का निर्माण, मेट्रो रेल का निर्माण
आदि। |
सरकारी कर्मचारियों के वेतन, ब्याज
का भुगतान, आर्थिक सहायता हस्तांतरण भुगतान आदि । |
प्रश्न 7. उदाहरणों सहित
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में अंतर समझाइए।
उत्तर :
आधार |
प्रत्यक्ष कर |
अप्रत्यक्ष कर |
1. अर्थ |
वे कर जो आय और संपत्ति पर लगाये
जाते हैं प्रत्यक्ष कर कहलाते हैं। |
वे कर जो वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाये
जाते हैं अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं। |
2. बोझ |
प्रत्यक्ष कर का बोझ उसी व्यक्ति
या संस्था पर पड़ता है, जिनके ऊपर ये लगाये जाते हैं। |
अप्रत्यक्ष कर का बोझ हस्तांतरित
किया जा सकता है। ये लगाए उत्पादक पर जाते हैं, परंतु वे इसका बोझ उपभोक्ता पर हस्तांतरित
कर देते हैं। |
3. पुनरावृत्ति |
इसमें कर का भार अमीरों पर अधिक गरीबों
पर कम पड़ता है, क्योंकि ये प्रगतिशील हैं। |
इसमें कर का प्रभाव और भार अमीरों
व गरीबों पर एक सा पड़ता है, क्योंकि ये अनुपातिक होते हैं। |
4. उदाहरण |
आय कर, निगम कर, संपत्ति कर उपहार
कर, मृत्यु शुल्क, व्यवसाय कर आदि। |
बिक्री कर सीमा शुल्क उत्पाद कर,
टोल कर, मनोरंजन कर सेवा कर मूल्य वृद्धि कर आदि । |
प्रश्न 8. सार्वजनिक
व्यय का एक अर्थव्यवस्था के विकास में क्या महत्व है? स्पष्ट करो।
उत्तर : सार्वजनिक व्यय का एक अर्थव्यवस्था
के विकास में बहुत अधिक महत्व है। इसे निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है।
बजट सरकार की प्रत्याशित आय तथा प्रत्याशित व्यय का ऐसा ब्यौरा है जो एक वित्तीय वर्ष
में अप्रैल 1 से मार्च 31 तक के अनुमानों को प्रकट करता है। इसमें बीते वर्ष की उपलब्धियों
तथा कीमतों से संबंधित रिपोर्ट भी सम्मिलित होती है। अन्य शब्दों में, सरकारी बजट एक
वित्तीय वर्ष की अवधि के दौरान सरकार की अनुमानित आय और व्ययों का विवरण होता है।
1. आय तथा संपत्ति को पुनः विवरण आय
की असमानताएँ दूर करने में सरकारी बजट की भूमिका है। बजटीय नीति का उपयोग करके आय की
असमानताएँ दूर की जा सकती हैं।
2. संसाधनों का कुशल आबंटन देश के संसाधनों
के आबंटन को पूर्णरूपेण बाजार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता इसलिए देश के विभिन्न
क्षेत्रों का प्राथमिकताओं के अनुसार सामाजिक व आर्थिक संतुलित विकास करना बजट का एक
महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसके लिए कर नीति व आर्थिक सहायता की नीति बहुत महत्वपूर्ण
हो सकती है।
3. आर्थिक स्थिरता-कर आर्थिक सहायता,
सार्वजनिक व्यय के माध्यम से सरकार समग्र माँग को नियंत्रित करके मंदी व तेजी अथवा
स्फीति अवस्फीति पा सकती है, जिससे आर्थिक स्थिरता लाई जा सकती है।
4. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंधन बहुत
से क्षेत्र ऐसे हैं जो निजी क्षेत्रों के द्वारा भी चुने जा सकते हैं। इन क्षेत्र कों
को सरकार को चलाना पड़ता है, क्योंकि ये उद्यम सामाजिक कल्याण की दृष्टि से तो बहुत
महत्वपूर्ण होते हैं, परंतु ये उत्तम लाभ नहीं देते हैं।
प्रश्न 9. सरकारी बजट
में राजस्व घाटा' समझाइए। इससे क्या पता चलता है? (Delhi 2012)
उत्तर : राजस्व घाटे का संबंध सरकार
के राजस्व व्यय तथा राजस्व प्राप्तियों से है। इसका घाटी राजस्व व्यय एवं राजस्व प्राप्तियों
का अंतर है। सूत्र के रूप में,
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व
प्राप्तियाँ
राजस्व व्यय से हमें यह पता लगता है
कि सरकार की चालू प्राप्तियाँ सरकार की चालू व्यय से कितनी कम हैं या अधिक। इसे एक
परिवार के उदाहरण से समझा जा सकता है। एक परिवार को प्रतिमाह आय 10000 है और व्यय₹
12,000 है तो प्रत्येक माह₹2000 की पूँजीगत प्राप्तियाँ चाहिए, चाहे ऋण के रूप में
चाहे किसी परिसंपत्ति को बेचकर। यही बात सरकार पर लागू होती हैं, परंतु यदि सरकार इसी
तरह ऋण लेकर या परिसंपत्तियाँ बेचकर राजस्व घाटे को पूरा करती रही, तो सरकार की वित्तीय
हालत कमजोर होती जायेगी। अतः राजस्व घाटा सरकार के लिए चिंताजनक विषय है।
प्रश्न 10. राजस्व घाटे
को कैसे कम किया जा सकता है?
उत्तर : राजस्व घाटे को कम करने के
दो तरीके हैं
(i) राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि- सरकार कर तथा गैर कर प्राप्तियों
द्वारा राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि करे। इसके लिए आय की दरों को बढ़ाया जा सकता
है। सरकार जुर्माने, फीस (लाइसेंस फीस, कॉपी राइट फीस) आदि भी बढ़ा सकती है।
(ii) राजस्व व्यय में कमी- इसे आर्थिक सहायता में कमी कर भी खत्म
किया जा सकता है। इसके लिए सरकार, आर्थिक सहायता में कमी कर सकती है अथवा सरकार अपने
प्रशासनिक खर्चे में कटौती करके भी इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है।
प्रश्न 11. सरकारी बजट
में राजकोषीय घाटा की अवधारणा समझाइए इससे क्या पता चलता है?
उत्तर : राजकोषीय घाटे का संबंध सरकार
के राजस्व तथा पूँजीगत दोनों प्रकार के व्ययों तथा राजस्व और उधार छोड़कर बाकी पूँजीगत
प्राप्तियों से है। अन्य शब्दों में, राजकोषीय घाटा कुल व्यय (राजस्व व्यय, पूँजीगत
व्यय) और उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियों का अंतर है।
सूत्र के रूप में,
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय (राजस्व व्यय
+ पूँजीगत व्यय) - उधार छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
अथवा
राजस्व घाटा + पूँजीगत व्यय - उधार
छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ
अथवा उधार/ऋण
राजकोषीय घाटा सरकार द्वारा आवश्यक
उधारों का अनुमान है। राजकोषीय घाटे का अधिक होना इस बात का प्रतीक है कि सरकार को
अधिक ऋण लेना पड़ेगा।
प्रश्न 12. राजकोषीय
घाटे का अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर : राजकोषीय घाटे का अर्थ है सरकार
द्वारा लिए जाने वाले उधार-ऋण में वृद्धि। इस बढ़ते हुए ऋण के निम्नलिखित प्रभाव हो
सकते हैं।
1. स्फीतिकारी जाल- सरकार द्वारा लिये जाने वाले ऋण के
कारण मुद्रा पूर्ति में वृद्धि होती है। मुद्रा पूर्ति में वृद्धि के कारण कीमत स्तर
में वृद्धि होती है। कीमत स्तर में वृद्धि उच्च लाभ की आशा में निवेश को प्रेरित करती
है, परंतु जब कीमत स्तर भयप्रद सीमाओं तक बढ़ने लगता है तो निवेश में कमी आती है, जिससे
एक स्फीतिकारी जाल बन जाता है। ऐसी स्थिति में सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत के रूप
में एक लंबी समयावधि के लिए राजकोषीय घाटा उच्च बना रहता है तथा यहाँ दीर्घावधि आर्थिक
अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।
2. भावी पीढ़ी पर बोझा- राजकोषीय घाटे के फलस्वरूप भावी पीढ़ी
को विरासत में एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था मिलती है, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि
दर कम रहती है, क्योंकि सकल घरेलू उत्पादक का एक बड़ा हिस्सा ऋणों के भुगतान में खर्च
हो जाती है।
3. सरकारी विश्वसनीयता में कमी- उच्च राजकोषीय घाटे के कारण घरेलु
तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में सरकार की विश्वसनीयता में कमी आ जाती है। इससे
अर्थव्यवस्था की क्रेडिट रेटिंग' गिरने लगती है। विदेशी निवेशक अर्थव्यवस्था में निवेश
करना बंद करते हैं और आयात महँगे हो जाते हैं। इससे भुगतान शेष का घाटा भी बढ़ता जाता
है। इसके कारण भी सरकार को और ऋण लेने पड़ सकते हैं या विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए
अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना पड़ सकता है। यह एक ऋण के दुश्चक्र को जन्म देते हैं।
4. ऋण जाल- ऋण फंदा सकल घरेलू उत्पाद के बढ़ते प्रतिशत के रूप में निरंतर उच्च राजकोषीय घाटे
के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जहाँ
(i) उच्च राजकोषीय घाटे के कारण सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि
दर कम होती है और
(ii) निम्न सकल घरेलू उत्पाद संवृद्धि के कारण राजकोषिय घाटा
उच्च होता है। ऐसी स्थितियों में सरकारी व्यय का बड़ा भाग निवेश व्यय पर नहीं, बल्कि
ऋणों के भुगतान व ब्याजों के भुगतान पर खर्च हो जाता है।
प्रश्न 13. सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा' की
अवधारणा समझाइए। इससे क्या पता चलता है?
उत्तर : प्राथमिक घाटा राजकोषीय घाटा तथा भुगतान किए जाने वाले
ब्याज का अंतर है। सूत्र के रूप में
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान
राजकोषीय घाटा केवल सरकार की उधार संबंधी आवश्यकताओं को दर्शाता
है। जिसमें संचित ऋणों पर ब्याज का भुगतान शामिल होता है, जबकि प्राथमिक घाटा सरकार
की उधार संबंधी आवश्यकताओं को दर्शाता है जिसमें ब्याज का भुगतान शामिल नहीं होता है।
इसका अर्थ यह है कि प्राथमिक घाटे के ऋण वित्तीय ऋणों के समान हैं, परंतु वे हमारी
चालू वर्ष के व्यय तथा चालू वर्ष की प्राप्तियों से जो ऋण आवश्यकताएँ उत्पन्न हुई हैं,
उन्हें बताता है।
प्रश्न 14. सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही
प्रदान की जानी चाहिए। क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर : सार्वजनिक वस्तुएँ ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनकी
कीमत का निर्धारण बाजार कीमत तंत्र द्वारा नहीं हो सकता। इनकी संतुलन कीमत व संतुलन
मात्रा वैयक्तिक उपभोक्ताओं और उत्पादकों के बीच संव्यवहार से नहीं हो सकती। उदाहरण-राष्ट्रीय
प्रतिरक्षा, सड़क, लोक प्रशासन आदि। सार्वजनिक वस्तुएँ सरकार के द्वारा ही प्रदान की
जानी चाहिए क्योंकि
(i) सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ किसी उपभोक्ता विशेष तक ही सीमित
नहीं रहता है, बल्कि इसका लाभ सबको मिलता है। उदाहरण के लिए सार्वजनिक उद्यान अथवा
वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय किये जाते हैं तो इसका लाभ सभी को मिलता है, भले ही
वे इसका भुगतान करें या न करें। ऐसी स्थिति में सार्वजनिक वस्तुओं पर शुल्क लगाना कठिन
या कहें असंभव होता है, इसे 'मुफ्तखोरी की समस्या' कहा जाता है। इससे ये वस्तुएँ अर्वज्य
हो जाती हैं अर्थात् भुगतान नहीं करने वाले उपभोक्ता को इसके उपयोग से वंचित नहीं किया
जा सकता।
(ii) ये वस्तुएँ "प्रतिस्पर्धी" नहीं होती, क्योंकि
एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के उपभोग को कम किये बिना इनका भरपूर प्रयोग कर सकता है।
प्रश्न 15.
राजस्व व्यय और
पूँजीगत व्यय में भेद कीजिए?
उत्तर :
आधार |
राजस्व व्यय |
पूँजीगत व्यय |
अर्थ |
राजस्व व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वितीय
वर्ष में किये जाने वाले उस अनुमानित व्यय से है. जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की
परिसंपतियों का निर्माण होता है और न ही देनदारियों में कमी आती है। |
पूँजीगत व्यय से सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में
किये जाने वाले उस अनुमानित व्यग से है. जिसके फलस्वरूप या तो सरकार की
परिसंपतियों का निर्माण होता है या देनदारियों में कमी आती है। |
आवृति |
ये भुगतान बार-बार करने की प्रकृति वाले होते हैं। |
ये भुगतान एक बार करने वाले प्रकृति के होते हैं। |
उदाहरण |
सरकारी कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, आर्थिक सहायता
सामाजिक और आर्थिक सहायता पर किये जाने वाले व्यय सरकारी ऋणों पर ब्याज
अदायगियां। |
सरकार द्वारा भूमि की खरीद, इमारतों सड़कों, रेल,
मेट्रो ट्रेन, पुल का निर्माण, विदेशी सरकार को दिए गए ऋण, ऋणों का भुगतान,
सार्वजनिक उद्यम शुरू करना आदि। |
प्रश्न 16. राजकोषीय घाटे से सरकार को ऋण
ग्रहण की आवश्यकता होती है। समझाइए।
उत्तर- यह कहना बिल्कुल उचित है कि राजकोषीय घाटे से सरकार को
ऋण की आवश्यकता होती है। राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और ऋण ग्रहण को छोड़कर
कुल प्राप्तियों का अंतर है।
सकल राजकोषिय घाटा = कुल व्यये -
(राजस्य प्राप्तियाँ -
गैर ऋण
से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ)
हम जानते हैं दोहरे लेखांकन प्रणाली के अनुसार सरकार का
कुल व्यय और कुल प्राप्तियों बराबर होनी ही चाहिए, क्योंकि सरकार ने जो व्यय किया
है उसका भुगतान तो इसे करना ही होगा चाहे वह ऋण लेकर करे चाहे नये नोट छापकर जिसे
घाटे की वित्त व्यवस्था कहा जाता है। अतः राजकोषीय घाटा सरकार की कुल ऋण ग्रहण की
आवश्यकता के बराबर होता है।
राजकोषीय घाटा = ऋण से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ
प्रश्न 17. राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा
में संबंध समझाइए।
उत्तर : जब राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है तो
इसे राजस्व घाटा कहा जाता है। सूत्र के रूप में
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय -
राजस्व प्राप्तियाँ
दूसरी ओर बजट के अंतर्गत जब कुल व्यय कुल प्राप्तियों से
अधिक होता है तो इस अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।
राजकोषिय घाटा = कुल व्यय -
(राजस्व प्राप्तियों + गैर-ऋण
से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ)
= (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) - (राजस्व प्राप्तियाँ + गैर-ऋण
से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ)
= (राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ) + (पूँजीगत व्यय - गैर
ऋण से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ)
= राजस्व घाटा + (पूँजीगत व्यय - गैर ऋण से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ)
प्रश्न 18. मान लीजिए एक विशेष अर्थव्यवस्था में
निवेश 200 के बराबर है। सरकार के क्रय की मात्रा 150 है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त
कर से अंतरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75Y दिया हुआ है तो
(A) संतुलन आय स्तर क्या है?
(B) सरकारी व्यय गुणांक और कर गुणांक के मानों
की गणना करो।
(C) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोतरी होती
है, तो संतुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर : (A) संतुलन आय स्तर वहाँ होती है जहाँ
AD = AS, AD = C + 1 + G
AS = y
∴ y = 100 + 0.75(y
- 100) + 200 + 150
∴ y = 100 + 0.75 -
75 + 375
y - 0.75y = 375, 0.25y = 375
,
y = रु 1500 करोड़
(b) (i) सरकारी व्यय गुणांक
(ii) कर गुणांक
(c) सरकारी व्यय गुणक
जहाँ, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔG सरकारी व्यय में परिवर्तन
अतः
ΔY = ₹ 800 करोड़
प्रश्न 19. एक ऐसी अर्थव्यवस्था
पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन हैं-
C = 20 + 0.8y , I =
30, G = 50 , TR = 100
(A) आय का संतुलन स्तर
और मॉडल में स्वायत्त व्यय ज्ञात कीजिए।
(B) यदि सरकार के व्यय
में 30 की वृद्धि होती है तो संतुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(C) यदि एकमुश्त कर
30 जोड़ दिया जाए जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोत्तरी का भुगतान जा सके, तो संतुल आय
में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
उत्तर :
(A) आय का संतुलन स्तर वहाँ होगा जहाँ
AS = AD, Y= C + I + G
Y = 20 + 0.8Y + 30 + 50
Y - 0.8Y = 100 , 0.2Y = 100
Y = ₹ 500 करोड़
स्वायत्त व्यय गुणक , जहाँ b = MPC
(B) स्वायत व्यय में वृद्धि = 30 करोड़
स्वायत्त व्यय गुणक = 5 अतः
ΔY = 150 करोड़ ,
Y = 20 + 0.8Y + 60 + 50
Y - 0.8Y = 130 , 0.2Y = 130
,
Y = रु 650 करोड़
(C) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए
तो
AD = 20 + 0.8(Y- 30) + 30 + 50
AD = 20 + 0.8Y - 24 + 30 + 50
AD = 76 + 0.8Y
∴
आय संतुलन
Y = AD, Y - 0.8Y = 76 , 0.2Y = 76
Y = 76 + 0.8Y
अतः अंतरण में वृद्धि आय के संतुलन
स्तर को बढ़ा देती है जबकि एकमुश्त कर में वृद्धि आय के संतुलन स्तर को कम कर देती
है।
प्रश्न 20. उपर्युक्त
प्रश्न में अंतरण में 10% की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10% की वृद्धि का निर्गत पर
पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
उत्तर : यदि अंतरण में 10% की वृद्धि हो तो
नया ।
AD = 20 + 0.8(Y+10) + 30 + 50
संतुलन आय Y = AD
Y = 20 + 0.8Y - 8 + 30 + 50
Y - 0.8Y = 108 , 0.2Y = 108
Y = ₹540 करोड़
यदि करों में 10% की वृद्धि हो तो नया
AD = 20 + 0.8(Y-10) + 30 + 50
AD = 20 + 0.8Y - 8 + 30 + 50
AD = 92 + 0.8Y
संतुलन आय Y = AD , Y = 92 + 0.8Y
Y – 0.8Y = 92 , 0.2Y = 92
Y = ₹460 करोड़
अतः अंतरण में वृद्धि आय के संतुलन
स्तर को बढ़ा देती है जबकि एकमुश्त कर में वृद्धि आय के संतुलन स्तर को कम कर देती
है।
प्रश्न 21. हम मान लेते
हैं कि C = 70 + 0.7YD(0.70YD), I = 90, G = 100, T = 0.10Y है तो
(A) संतुलन आय ज्ञात
करो।
(B) संतुलन आय पर करे
राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट संतुलित बजट है?
उत्तर :
(A) आय संतुलन वहाँ होगा जहाँ AS =
AD
Y = C + I + G
Y = 70 + 0.70(Y-0.10Y) + 90 + 100
Y = 70 + 0.7(0.9Y) + 90 + 100
Y = 260 + 0.63Y
0.37Y = 260
Y = ₹702.702 करोड़
(B)
संतुलन आय पर कर राजस्व = 0.19Y = 0.10(702.702)
नहीं
यह संतुलित बजट नहीं है क्योंकि G > T
यह
घाटे का बजट है और सरकारी बजट घाटा (100 - 70.27) = 29.73 करोड़
के बराबर है।
प्रश्न 22. मान लीजिए कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और
अनुपातिक आय कर 20% है। संतुलन आय में निम्नलिखित 4 परिवर्तनों को ज्ञात करो।
(A) सरकार के क्रय में 20% की वृद्धि
(B) अंतरण में 20% की कमी।
उत्तर
:
(A) सरकारी व्यय गुणांक
सरकारी
व्यय में वृद्धि = 20%
संतुलन आय में वृद्धि = ?
सरकारी व्यय गुणक =
ΔY = 80
अतः
संतुलन आय में 80% वृद्धि होगी।
(b) अंतरण गुणक अंतरण गुणक
अंतरण गुणक
, ΔY =-60%
अतः
आय में संतुलन में 60% की कमी होगी।
प्रश्न 23. निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा
क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर
: कर गुणक = - b
कर गुणक
जबकि सरकारी क्रय गुणक
b
सदैव एक से कम होता है (व्यवहारिक रूप से)
प्रश्न 24. सरकारी घाटे और सरकारी ऋण ग्रहण
में क्या संबंध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर : सरकारी घाटा एक वर्ष में व्यय के लिए सरकार द्वारा
लिए गए आवश्यक ऋणों की मात्रा को उजागर करती है। सरकार द्वारा अधिक ऋण लेने का अर्थ
है भावी पीढ़ी के उपकरण और ब्याज का पुनर्भुगतान करने का भार अधिक होता है। वर्ष प्रति
वर्ष जब ये ऋण भार अधिक होते जाते हैं तो भावी पीढियों के लिए उपलब्ध साधन कम होते
जाते हैं। यह निश्चित रूप से वृद्धि कीप्रक्रिया में एक प्रतिबंधक के रूप में काम करेगी। विशेषतः
जब सरकार गैर-उत्पादकीय उद्देश्य के लिए ऋण लेती है।
प्रश्न 25. क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर : हाँ सार्वजनिक ऋण एक बोझ बनता है। आवर्ती
उधार भावी पीढ़ी के लिए राष्ट्रीय ऋणों को संचित करता है। भावी पीढ़ी को विरासत में
एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था मिलती है, जिसमें राष्ट्रीय सकल उत्पाद की वृद्धि निरंतर
कम रहती है। इसके फलस्वरूप सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा ऋणों के पुनर्भुगतान
या ब्याज भुगतान के लिए खपत होती है और घरेलू निवेश निचले स्तर पर बनी रहती है। जब
सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा राजकोषीय घाटा होने पर ऐसी स्थिति उत्पन्न
होती है, जहाँ एक दुश्चक्र जन्म लेता है, उच्च राजकोषीय घाटे के कारण सकल घरेलू उत्पाद
की संवृद्धि दर कम होती है और निम्न सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि के कारण राजकोषीय
घाटा उच्च होता है। अतः प्राप्तियाँ संकुचित होती हैं जबकि व्यय में विस्तार होता है।
इससे राजकोषीय घाटा बढ़ता है। राजकोषीय घाटा बढ़ने से सरकारी व्यय का बड़ा हिस्सा कल्याण
संबंधी व्ययों पर खर्च किया जाता है।
प्रश्न 26. क्या राजकोषीय
घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी होता है?
उत्तर : यह हमेशा स्फीतिकारी हो यह आवश्यक नहीं।
यदि राजकोषीय घाटे का प्रयोग उत्पादक क्रियाओं के लिए किया गया हो, जिससे अर्थव्यवस्था
में वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति में वृद्धि हो तो संभव है कि राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी
सिद्ध न हो, परंतु वास्तव में सरकार द्वारा लिये जाने वाले उधार का एक महत्वपूर्ण संघटक
भारतीय रिजर्व बैंक है। इसके कारण अर्थव्यवस्था में मुद्रा पूर्ति में वृद्धि होती
है। मुद्रा पूर्ति में वृद्धि के कारण प्रायः कीमत स्तर में वृद्धि होती है। कीमत स्तर
में साधारण वृद्धि उच्च लाभों के द्वारा अधिक निवेश को प्रेरित कर सकती है। परन्तु
जब कीमत वृद्धि का स्तर भयाप्रद सीमाओं तक बढ़ जाता है, तो इसके कारण
(i) आगतों को लागतों में वृद्धि तथा
(ii) मुद्रा की गिरती क्रय क्षमता के
कारण समग्र माँग में कमी होती है। आगतों की लागतों में वृद्धि तथा समग्र माँग में कमी
एक साथ मिलकर निवेश में कमी करते हैं, जिसके कारण सकल घरेलू उत्पाद में कमी होती है।
अंततः अर्थव्यवस्था में AD कम होने से अपस्फीति भी हो सकती है और आर्थिक मंदी भी जन्म
ले सकती है।
प्रश्न 27. घाटे में
कटौती के विषय में विमर्श कीजिए।
उत्तर : घाटे में कटौती के लिए दो विधियाँ
अपनाई जा सकती हैं
(i) करों में वृद्धि- भारत में सरकार कर राजस्व में वृद्धि
करने के लिए प्रत्यक्ष करों पर ज्यादा भरोसा करती है। इसका कारण यह है कि अप्रत्यक्ष
कर अपनी प्रकृति में प्रतिगामी होता है। इसका प्रभाव सभी आय समूह के लोगों पर समान
रूप से पड़ती है।
(ii) व्यय में कमी- सरकार ने घाटे में कटौती के लिए सरकारी
व्यय को कम करने के लिए कटौती पर बल दिया है। सरकार के कार्यकलापों को सुनियोजित कार्यक्रमों
और सुशासनों के माध्यम से संचालित करने से ही सरकारी व्यय में कटौती की जा सकती है।
परंतु कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्धनता, निवारण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सरकार
के कार्यक्रमों को रोकने से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः पूर्व निर्धारित
स्तरों पर व्यय में वृद्धि नहीं करने के लिए सरकार स्वयं पर प्रतिबंधों का आरोपण करती
है। इसके अतिरिक्त सरकार व्यय में कमी करने के लिए जिन क्षेत्रों में कार्यरत है स्वयं
को उनमें से कुछ क्षेत्रों से निकाल लेती है। इस प्रकार सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों
की बिक्री के द्वारा भी प्राप्तियों में बढ़ोत्तरी करने का एक प्रयास किया जाता है।
III- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)
प्रश्न 1. सरकारी बजट
क्या है? इसके क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर : बजट सरकार की प्रत्याशित आय
तथा प्रत्याशित व्यय का ऐसा ब्यौरा है जो एक वित्तीय वर्ष में अप्रैल 1 से मार्च
31 तक के अनुमानों को प्रकट करता है। इसमें बीते वर्ष की उपलब्धियों तथा कमियों से
संबंधित रिपोर्ट भी सम्मिलित होती है। अन्य शब्दों में, सरकारी बजट एक वित्तीय वर्ष
की अवधि के दौरान सरकार की अनुमानित आय और व्ययों का विवरण होता है। सरकारी बजट का
उद्देश्य निम्नलिखित है
1- आर्य तथा संपत्ति को पुनः विवरण
आय की असमानताएँ दूर करने में सरकारी बजट की भूमिका है। बजटीय नीति का उपयोग करके आय
की असमानताएँ दूर की जा सकती हैं। इसके लिए निम्नलिखित आयों को अपनाया जा सकता है
(i) अमीरों की आय पर प्रगतिशील आय प्रणाली
का प्रयोग करके अधिक कर लगाकरे तथा उससे प्राप्त आय की गरीबों के कल्याण पर खर्च करना
आय की असमानता कम की जा सकती है।
(ii) अमीरों के द्वारा प्रयोग की जाने
वाली वस्तुओं पर अधिक कर लगाकर अमीरों की प्रयोज्य आय कम की जा सकती है।
(iii) गरीबों को आर्थिक सहायता देकर,
शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ मुफ्त देकर और सस्ती दर पर राशन उपलब्ध कराकर आय में विषमता
कम की जा सकती है।
(iv) सार्वजनिक व्यय द्वारा भी आय एवं
संपत्ति की समानता लाने में सहायता मिल सकती है और इस व्यय के लिए राजस्व अमीरों पर
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
II- संसाधनों को कुशल आबंटन देश के
संसाधनों के आबंटन को पूर्ण रूपेण बाजार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता इसीलिए
देश के विभिन्न क्षेत्रों का प्राथमिकताओं के अनुसार सामाजिक व आर्थिक संतुलित विकास
करना बजट का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसके लिए कर नीति व आर्थिक सहायता की नीति
बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।
(i) वांछनीय वस्तुओं पर आर्थिक सहायता
दी जा सकती है अर्थात् जिन वस्तुओं की पूर्ति में सरकार वृद्धि चाहती है जैसे शिक्षा,
स्वास्थ्य, भोजन आदि अनुपातों सरकारी क्षेत्र द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराया जा सकता है
या उन पर आर्थिक सहायता दी जा सकती है।
(ii) अवांछनीय वस्तुओं पर उच्च दर पर कर लगाए जा सकते हैं। अर्थात्
जिन वस्तुओं की पूर्ति में सरकार कमी करना चाहती है। जैसे-सिगरेट, शराब, तंबाकू आदि
उन्हें कर लगाकर पहले से अधि महँगा बनाया जा सकता है और उनके उत्पादन पर देश में संसाधन
बढ़ाये जा सकते हैं।
III- आर्थिक स्थिरता कर आर्थिक सहायता, सार्वजनिक व्यय के माध्यम
से सरकार समग्र माँग को नियंत्रित करके मंदी व तेजी अथवा स्फीति अपस्फीति पा सकती है,
जिससे आर्थिक स्थिरता लाई जा सकती हैं यह इस प्रकार किया जाता है
(i) स्फीति के समय सरकार अपने व्यय में कमी करती है और करों
में वृद्धि होती है इससे समग्र माँग कम हो जाती है। समग्र माँग कम होने से स्फीति अंतराल
समग्र हो जाता है। कीमतें नियंत्रित हो जाती हैं स्फीतिकारी स्थिति स्थिरता में आ जाती
है।
(ii) अपस्फीति के समय सरकार अपने व्यय में वृद्धि और करों में
कमी करती है। इससे समग्र माँग बढ़ जाती है। समग्र माँग बढ़ने से अपस्फीति अंतराल समाप्त
हो जाता है। कीमतें नियंत्रित हो जाती हैं। और अपस्फीतिकारी स्थिति समाप्त हो जाती
है।
IV- सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंधन बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जो
निजी क्षेत्रकों द्वारा ही चलाए जा सकते हैं। इन क्षेत्रकों को सरकार को चलाना पड़ता
है, क्योंकि ये उद्यम सामाजिक कल्याण की दृष्टि से तो बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, परंतु
ये लाभ नहीं देते। उदाहरण के लिए रेलवे, प्रशासनिक सेवाएँ आदि। सरकारी बजट का एक महत्वपूर्ण
उद्देश्य इन सार्वजनिक उद्यमों को ठीक ढंग से प्रबंधित करता है।
प्रश्न 2. सरकारी
बजट के विभिन्न संघटकों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर : सरकारी बजट के विभिन्न संघटकों को नीचे दिए गए चार्ट में दिया गया है।
1- बजट प्राप्तियाँ- बजट प्राप्तियों से अभिप्राय एक वित्तीय
वर्ष में सरकार को सभी स्रोतों से प्राप्त होने वाली अनुमानित मौद्रिक आय से है। बजट
प्राप्तियों का विस्तृत रूप से दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है। (A) राजस्व प्राप्तियाँ
।
(B) पूँजीगत प्राप्तियाँ।
(A) राजस्व प्राप्तियाँ- सरकार की राजस्व प्राप्तियों को उन
मौद्रिक प्राप्तियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनके फलस्वरूप न तो सरकार
की कोई देयता उत्पन्न होती है और न ही सरकार की परिसंपत्तियों में कमी होती है।
(i) कर प्राप्तियाँ- कर एक ऐसा अनिवार्य भुगतान है, जो सरकार
को परिवारों, फर्मों या संस्थागत इकाइयों द्वारा दिया जाता है। इसके बदले में सरकार
से किसी सेवा या लाभ प्राप्ति की आशा नहीं की जा सकती। यदि कोई व्यक्ति उस पर लगाए
गए कर को नहीं चुकाता तो उसे कानून के अनुसार दंड मिलता है।
(ii) करेतर राजस्व प्राप्तियाँ- करेतर राजस्व प्राप्तियाँ सरकार
की वे प्राप्तियाँ हैं जो करों को छोड़कर अन्य स्रोतों से प्राप्त होती हैं। कुछ करेतर
राजस्व प्राप्तियाँ निम्नलिखित हैं
(iii) शुल्क- सरकार द्वारा व्यक्तियों को प्रदान की जाने वाली
सेवाओं के लिए लिया जानेवाला भुगतान शुल्क कहलाता है। उदाहरण-भूमि का पंजीकरण शुल्क,
जन्म तथा मृत्यु के पंजीकरण की फीस, पासपोर्ट फीस, कोर्ट फीस आदि।
(B) जुर्माना- जुर्माने वे भुगतान हैं जो कानून तोड़ने पर आर्थिक
दंड के रूप में कानून तोड़ने वाले को सरकार को देने पड़ते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य
लोगों को कानून का अनुपालन करने के लिए प्रेरित करना है न कि आय प्राप्त करना। यह सरकार
के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत नहीं है।
(C) एस चीट- एसचीट से अभिप्राय सरकार की उस आय से है जो उन लोगों
की, संपत्ति से प्राप्त होती है जिनकी मृत्यु बिना किसी कानूनी उत्तराधिकारी को नियुक्त
किए हो जाती है। इस संपत्ति का कोई दावेदार नहीं होता।
(D) विशेष आँकन- विशेष आँकन वह भुगतान है जो सरकारी कार्यों
के फलस्वरूप किसी संपत्ति में सुधार होने या उसके मूल्य में वृद्धि होने के कारण उसके
मालिकों द्वारा सरकार को किया जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि कुछ सरकारी कार्यों
जैसे सड़क निर्माण, सीवरेज व्यवस्था, नालियों के निर्माण आदि के कारण आसपास की संपत्ति
के मूल्य यो किराये की रकम में वृद्धि हो जाती है। इन सुधारों पर किए खर्चे को कुछ
भाग सरकार विशेष आँकन के रूप में संपत्ति के मालिकों से वसूल कर लेती है।
(E) सरकारी उद्यमों से आय- सरकार कई प्रकार के उद्यमों की मालिक
होती है। उदाहरण- भारतीय रेलवे, कई प्रकार के कारखानों जैसे नांगल का खाद कारखाना,
इंडियन ऑयल, भिलाई का इस्पात कारखाना आदि। इन उद्यमों के लाभ सरकार के लिए आय का स्रोत
होते हैं।
(F) अनुदान- सरकार द्वारा प्राप्त किए गए अनुदान भी आय का एक
स्रोत हैं।
(B) पूँजीगत प्राप्तियाँः- पूँजीगत प्राप्तियाँ को सरकार की
उन मौद्रिक प्राप्तियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिनसे या तो सरकार की
देयता उत्पन्न होती है या इसकी परिसंपत्तियाँ कम होती हैं।
(i) ऋणों की वसूली- सरकार द्वारा दूसरों को दिए गए ऋण उसकी परिसंपत्तियाँ
हैं। इसके फलस्वरू ऋणों की वसूली के फलस्वरूप सरकार की पंरसंपत्तियों में कमी होती
है।
(ii) उधार तथा अन्य देयताएँ- उधार देने के फलस्वरूप परिसंपत्तियों
का निर्माण होता है। जबकि उधार लेने के फलस्वरूप देयता उत्पन्न होती है। इसलिए उधार
लेने के फलस्वरूप जो मुद्रा प्राप्त होती है। उसे पूँजीगत प्राप्ति माना जाता है।
(iii) अन्य प्राप्तियाँ- अन्य प्राप्तियों के अंतर्गत 'विनिवेश
जैसी मदों से प्राप्त होने वाली आय को शामिल किया जाता है। विनिवेश वास्तव में निवेश
की विपरीत अवधारणा है। विनिवेश से अभिप्राय सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को सार्वजनिक
क्षेत्र के उद्यमों के शेयरों की बिक्री से है।
II- बजट व्ययः- बजट व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय
वर्ष में विकास तथा विकासेतर' कार्यक्रमों से संबंधि अनुमानित व्यय से है। प्राप्तियों
की तरह सरकार के सभी व्ययों का भी निम्नलिखित दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है
(A) राजस्व व्यय
(B) पूँजीगत व्यय
(A) राजस्व व्यय- राजस्व व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय
वर्ष में किए जाने वाले उस अनुमानित व्यय से है, जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की परिसंपत्तियों
का निर्माण होता है और न ही देयता में कमी होती है। भारत सरकार के बजट में राजस्व व्यय
की महत्वपूर्ण मदें निम्नलिखित हैं
→ सरकार का वेतन बिल
→ ब्याज का भुगतान
→ आर्थिक सहायता पर व्यय
→ सुरक्षा के लिए खरीदी गई वस्तुओं पर व्यय
(B) पूँजीगत व्यय- पूँजीगत व्यय से अधिप्राय एक वित्तीय वर्ष
में सरकार के उस अनुमानित व्यय से है जो परिसंपत्तियों में वृद्धि करता है या देयता
को कम करता है। भारत सरकार के बजट में पूँजीगत व्यय की महत्वपूर्ण मदें निम्नलिखित
हैं
→ भूमि और भवन पर व्यय
→ मशीनरी तथा उपकरणों पर व्यय
→ शेयरों की खरीद
→ केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों या राज्य निगमों को दिए
जाने वाले ऋण।
प्रश्न 3. सरकारी बजट घाटे से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : बजट घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय
सरकार की बजट प्राप्तियों से अधिक होता है। दूसरे शब्दों में बजट घाटा सरकार के कुल
व्यय की कुल प्राप्तियों पर अधिकता है। भारत सरकार के बजट से संबंधित मुख्य रूप से
निम्नलिखित तीन प्रकार के बजट घाटा हैं।
1. राजस्व घाटा
2. राजकोषीय घाटा
3. प्राथमिक घाटा
(i) वित्त व्यवस्था- इससे अभिप्राय सरकार द्वारा केंद्रीय बैंक
से ट्रेजरी बिल के बदले उधार लेना है। केंद्रीय बैंक इन बिलों को नए नोट देकर सरकार
से खरीदता है। इन करेंसी नोटों द्वारा घाटे की वित्त व्यवस्था की जाती है। इससे अर्थव्यवस्था
में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है। अतः बजट के घाटे की वित्त अवस्था के रूप
में घाटे की वित्त व्यवस्था की प्रायः सिफारिश नहीं की जाती है यदि अर्थव्यवस्था में
पहले से ही मुद्रा स्फीति की दर अधिक है।
(ii) जनता से उधार लेकर- सरकार विभिन्न प्रकार के बॉण्ड जनता
को जारी करके उनसे ऋण लेती है। इससे ब्याज के भुगतान का भार सरकार पर पड़ता है। इसे
'सार्वजनिक ऋण पर ब्याज' कहा जाता है।
(iii) विनिवेश- जब सरकार सार्वजनिक क्षेत्र तथा संयुक्त क्षेत्र
के उद्यमों के अपने शेयरों को बेचने का निर्णय लेती है तो इसे विनिवेश कहते हैं।
IV- संख्यात्मक हल प्रश्न (Solved Numerical Questions)
प्रश्न 1. निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बजट
घाटा ज्ञात करें
(मदें) |
(₹करोड़) |
(i) कुल व्यय |
90,000 |
(ii) कुल प्राप्तियाँ |
82,000 |
उत्तर : बजट घाटा = कुल व्यय > कुल प्राप्तियाँ
Budget Deficit = Total Expenditure > Total Receipts
OR
Budget Deficit = TE(RE + CE) > TR (RR + CR)
बजट घाटा = 90,000 - 82,000 = 8000 करोड
प्रश्न 2. निम्नलिखित
आँकड़ों से बजट घाटा ज्ञात करें-
(मदें) |
(₹करोड़) |
(i) राजस्व व्यय |
60,000 |
(ii) पूँजीगत व्यय |
30,000 |
(iii) राजस्व प्राप्तियाँ |
50,000 |
(iv) पूँजीगत प्राप्तियाँ |
250,000 |
उत्तर : बजट घाटा = TE (RE + CE) -TR(RR +
CR)
= 69,000 + 30,000 - 50,000 +
25,000 90,000-75000
= 15,000 करोड़
प्रश्न 3. निम्नलिखित
आँकड़ों से राजकोषीय घाटा ज्ञात करें-
(मदें) |
(₹करोड़) |
(i) कुल व्यय |
75,000 |
(ii) राजस्व प्राप्तियाँ |
60,000 |
(iii) गैर ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ |
6000 |
उत्तर : राजकोषीय घाटा = बजट व्यय का
कुल व्यय (राजस्व व्यये + पूँजीगत व्यय) - ऋण छोड़कर बजट प्राप्तियाँ या कुल प्राप्तियाँ
(राजस्व प्राप्तियाँ) + ऋण छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ) जब कुल व्यय > ऋण छोड़कर
कुल प्राप्तियाँ।
= 75,000 - (60,000 + 6000)
= 75,000 - 66,000
= 9,000 करोड़
प्रश्न 4. प्राथमिक घाटा
ज्ञात करें-
(मदें) |
(₹करोड़) |
(i) राजकोषीय घाटा |
10,000 |
(ii) सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान |
800 |
उत्तर : प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा
- ब्याज भुगतान
PD = FD - IP = 10,000 - 800 =
9,200 करोड़
प्रश्न 5. निम्नलिखित
आँकड़ों से राजस्व घाटा ज्ञात करें?
(मदें) |
(₹करोड़) |
(i) राजस्व प्राप्तियाँ |
80,000 |
(ii) राजस्व व्यय |
90,000 |
उत्तर : राजस्व घाटा = राजस्व व्यय
- राजस्व प्राप्तियाँ (जब राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ)
= 90,000 - 80,000 = 10,000 करोड़
प्रश्न 6. एक सरकारी
बजट में प्राथमिक घाटा 500 करोड़ है तथा ब्याज का भुगतान में 200 करोड़ है। राजकोषीय
घाटा कितना है?
उत्तर : प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा
- ब्याज का भुगतान
500 करोड़ = राजस्व घाटा - 200 करोड़
रोजकोषीय घाटा = 500 करोड़ + 200 करोड़
= 700 करोड़
प्रश्न 7. सरकारी बजट
के बारे में निम्नलिखित आँकड़ों से
(मदें) |
(₹अरब) |
(i) कर राजस्व |
47 |
(ii) पूँजीगत प्राप्तियाँ |
34 |
(iii) गैर-की राजस्व |
10 |
(iv) उधार |
32 |
(v) राजस्व व्यय |
80 |
(vi) ब्याज भुगतान |
20 |
(A) राजस्व घाटा,
(B) राजकोषीय घाटा और
(C) प्राथमिक घाटा ज्ञात कीजिए
उत्तर :
(A) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व
प्राप्तियाँ (कर राजस्व + गैर कर राजस्व )
80 अरब - (47 अरब +10 अरब) = 80 अरब
- 57 अरब = 23 अरब
(B) राजकोषीय घाटा = उधार = 32 अरब
(C) प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा
- ब्याज भुगतान
= 32 अरब - 20 अरब = 12 अरब
(A) राजस्व घाटा = 23 अरब,
(B) राजकोषीय घाटा = 32 अरब,
(C) राजकोषीय घाटा = 32 अरब
प्रश्न 8. सरकारी बजट
के बारे में निम्नलिखित आँकड़ों से
(A) राजस्व घाटा,
(B) राजकोषीय घाटा और
(C) प्राथमिक घाटा ज्ञात कीजिए।
(मदें) |
(₹अरब) |
(i) उधार को छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ |
95 |
(ii) राजस्व व्यय |
100 |
(iii) ब्याज भुगतान |
10 |
(iv) राजस्व प्राप्तियाँ |
80 |
(v) पूँजीगत व्यय |
110 |
उत्तर :
(A) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ = 100 अरब - 80 अरब = 20 अरब
(B) राजकोषीय घाटा = राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
- पूँजीगत प्राप्तियाँ उधार के अतिरिक्त
= 100 अरब + 110 अरब - 80 अरब - 95 अरब
= 210 अरब -175 अरब = 35 अरब
(C) प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान = 35 अरब
- 10 अरब = 25 अरब
प्रश्न 9. सरकारी बजट के बारे में निम्नलिखित
आँकड़ों से
(A) राजस्व घाटा,
(B) राजकोषीय घाटा और
(C) प्राथमिक घाटा ज्ञात कीजिए
(मदें) |
(₹अरब) |
(i) योजनागत पूँजीगत व्यय |
120 |
(ii) राजस्व व्यय |
100 |
(iii) गैर योजनागत पूँजीगत व्यय |
80 |
(iv) राजस्व प्राप्तियाँ |
70 |
(v) उधार छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ |
140 |
(vi) ब्याज भुगतान |
30 |
उत्तर :
(A) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ = 100 अरब
- 70 अरब = 30 अरब
(B) राजकोषीय घाटा = राजस्व व्यय + योजनागत पूँजीगत व्यय + गैर-योजनागत
पूँजीगत व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ - उधार छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ
= 100 अरब + 120 अरब + 80 अरब - 70 अरब - 140 अरब
= 300 अरब - 210 अरब = 90 अरब
(C) प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान = 90 अरब
- 30 अरब = 60 अरब
प्रश्न 10. एक सरकारी
बजट में प्राथमिक घाटी र 500 करोड़ है तथा ब्याज का भुगतान 200 करोड़ है। राजकोषीय
घाटा कितना है।
उत्तर :
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज
का भुगतान
500 करोड़ = राजकोषीय घाटा - 200 करोड़
राजकोषीय घाटा = 500 करोड़ + 200 करोड़
= 700 करोड़
V- उच्च स्तरीय चिंतन कौशल प्रश्न (HOTS Question)
प्रश्न 1. निम्नलिखित
को कारण देते हुए पूँजीगत व्यय एवं राजस्व व्यय में वर्गीकृत करो।
(i) ऋण की वापसी
(ii) आर्थिक सहायता
(iii) ब्याज का भुगतान
(iv) सड़कों का निर्माण
उत्तर :
(i) ऋण की वापसी-यह एक पूँजीगत व्यय
है, क्योंकि इससे सरकार की देयता कम हो रही है।
(ii) आर्थिक सहायता यह एक राजस्व व्यय
है, क्योंकि इससे न तो सरकार की देयता कम हो रही है और न ही परिसंपत्ति बढ़ रही है।
(iii) ब्याज का भुगतान यह एक राजस्व
व्यय है, क्योंकि इससे न तो सरकार की देयता कम हो रही है और न ही परिसंपत्ति कम हो
रही है।
(iv) सड़कों का निर्माण यह एक पूँजीगत
व्यय है, क्योंकि इससे सरकार की परिसंपत्ति बढ़ रही है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित के दो-दो उदाहरण दीजिए
(i) प्रशासनिक राजस्व
प्राप्तियाँ
(ii) गैर-कर राजस्व प्राप्तियाँ
(iii) पूँजीगत व्यय
(iv) प्रत्यक्ष कर
(v) राजस्व व्यय
(vi) पूँजीगत प्राप्तियाँ
उत्तर :
(i) प्रशासनिक राजस्व प्राप्तियाँ -
(A) लाइसेंस फीस, (B) जुर्माना
(ii) गैर कर राजस्व प्राप्तियाँ - (A)
विदेशों से प्राप्त अनुदान, (B) राज्य सरकारों को दिए ऋण पर प्राप्त ब्याज
(iii) पूँजीगत व्यय- (A) सड़क एवं बाँधों का निर्माण, (B) ऋण का पुनर्भुगतान
(iv) प्रत्यक्ष कर - (A) आय कर,
(B) संपत्ति कर
(v) राजस्व व्यय वेतन - (A) घरेलू सरकार द्वारा विदेशों को अनुदान,
(B) सरकारी कर्मचारियों का
(vi) पूँजीगत प्राप्तियाँ - (A) सरकार द्वारा लिए गए ऋण,
(B) विनिवेश द्वारा प्राप्तियाँ
प्रश्न 3. ऋण का भुगतान एक पूँजीगत व्यय क्यों
है?
उत्तर : ऋण का भुगतान पूँजीगत व्यय है क्योंकि
(i) इससे सरकारी देयताओं में कमी होती है।।
(ii) इसकी पुनरावृत्ति की प्रकृति नहीं है। यह केवल एक बार दिया
जाता है।
प्रश्न 4. नीचे दी गई प्राप्तियों को कारण बताते
हुए राजस्व प्राप्तियों एवं पूँजीगत प्राप्तियों में वर्गीकृत करो।
(i) आय कर से प्राप्तियाँ
(ii) बंगलादेश को दिए गए ऋण पर ब्याज की प्राप्ति
(iii) एक सार्वजनिक उद्यम से लाभांश की प्राप्ति
(iv) केन्द्रीय सरकार द्वारा लिया गया सार्वजनिक
ऋण
(v) एक दवाइयों की कंपनी को लाइसेंस जारी करने
की फीस
(vi) विश्व बैंक द्वारा आधारित संरचना सुधार के
लिए लिया गया भारतीय सरकार का ऋण
(vii) मारूती उद्योग में सरकारी शेयरों को बेचकर
प्राप्त की गई राशि
(viii) इंदिरा विकास पत्र बेचकर प्राप्त राशि
(ix) सेल (SAIL) द्वारा केंद्रीय सरकार से लिए
गए ऋण का भुगतान
(x) कोर्ट द्वारा एक कंपनी पर लगाया गया जुर्माना
उत्तर :
(i) यह एक राजस्व प्राप्ति है, क्योंकि इससे न तो सरकार की देयता उत्पन्न होती है न ही परिसंपत्ति कम होती है और यह पुनरावृत्ति प्रकृति वाली प्राप्ति है।
(ii) यह एक राजस्व प्राप्ति है, क्योंकि इससे न तो सरकार की
देयता उत्पन्न होती है न ही परिसंपत्ति कम होती है और यह पुनरावृत्ति प्रकृति वाली
प्राप्ति है।
(iii) यह एक राजस्व प्राप्ति है, क्योंकि इससे न तो सरकार की
देयता उत्पन्न होती है न ही परिसंपत्ति कम होती है और यह पुनरावृत्ति प्रकृति वाली
प्राप्ति है।
(iv) यह एक पूँजीगत प्राप्ति है, क्योंकि इससे सरकार की देयता
में वृद्धि होती है।
(v) यह एक राजस्व प्राप्ति है, क्योंकि इससे न तो सरकार की देयता
उत्पन्न होती है न ही परिसंपत्ति कम होती है और यह पुनरावृत्ति प्रकृति वाली प्राप्ति
है।
(vi) यह एक पूँजीगत प्राप्ति है, क्योंकि इससे सरकार की देयता
में वृद्धि होती है।
(vii) यह एक पूँजीगत प्राप्ति है, क्योंकि इससे सरकार की परिसंपत्ति
में कमी होती है।
(viii) यह एक पूँजीगत प्राप्ति है, क्योंकि इससे सरकार की देयता
में वृद्धि होती है।
(ix) यह एक पूँजीगत प्राप्ति है, क्योंकि इससे सरकार की परिसंपत्तियों
में कमी होती है।
(x) यह एक राजस्व प्राप्ति है, क्योंकि इससे न तो सरकार की देयता
में वृद्धि होती है न ही परिसंपत्तियों में कमी होती है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित को कारण देते हुए राजस्व
व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करो।
(i) सरकारी ऋणों पर दिया गया ब्याज
(ii) ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल बनाने के
लिए खरीदी गई जमीन पर व्यय
(iii) निर्धन परिवारों को खाद्य पदार्थों पर आर्थिक
सहायता
(iv) राज्य सरकारों को अनुदान
(v) सरकार द्वारा लीज कम्पनी के शेयरों की खरीद
पर व्यय
(vi) सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की पेंशन
पर व्यय
(vii) एक हाइवे परियोजना के अन्तर्गत सड़क निर्माण
पर व्यय
(viii) विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति
(ix) सरकारी संस्था को दिया गया ऋण
(x) सुरक्षा पर व्यय
उत्तर :
(i) यह एक राजस्व व्यय है, क्योंकि इससे न तो देयता में कमी
होती है और न ही परिसंपत्तियों में वृद्धि होती है।
(ii) यह एक पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इससे सरकार की परिसंपत्ति
में वृद्धि होती है।
(iii) यह एक राजस्व व्यय है, क्योंकि इससे न तो देयता में कमी
होती है और न ही परिसंपत्ति में वृद्धि होती है।
(iv) यह एक राजस्व व्यय है, क्योंकि इससे न तो देयता में कमी
होती है और न ही परिसंपत्ति में वृद्धि होती है।
(v) यह एक पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इससे सरकार की परिसंपत्ति
में वृद्धि होती है।
(vi) यह एक राजस्व व्यय है, क्योंकि इससे न तो देयता में कमी
होती है और न ही परिसंपत्ति में वृद्धि होती है।
(vii) यह एक पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इससे सरकार की परिसंपत्ति
में वृद्धि होती है।
(viii) यह एक राजस्व व्यय है, क्योंकि इससे न तो देयता में कमी
होती है और न ही परिसंपत्ति में वृद्धि होती है।
(ix) यह एक पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इससे सरकार की परिसंपत्ति
में वृद्धि होती है।
(x) यह एक राजस्व व्यय है, क्योंकि इससे न तो देयता में कमी
होती है और न ही परिसंपत्ति में वृद्धि होती है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित को कारण देते हुए प्रत्यक्ष
एवं अप्रत्यक्ष करों में वर्गीकृत करो।
(i) आय कर
(ii) बिक्री कर
(iii) संपत्ति कर
(iv) मृत्यु शुल्क
(v) उपहार कर
(vi) मनोरंजन कर
(vii) मूल्य वृद्धि कर
(viii) सेवा कर ।
(ix) कस्टम शुल्क
(x) उत्पादन कर
उत्तर : आय कर, संपत्ति कर, मृत्यु शुल्क तथा उपहार कर प्रत्यक्ष
कर हैं, क्योंकि-
(i) ये व्यक्तियों की आय, संपत्ति पर लगाए गए हैं।
(ii) इसका कराधान तथा करापात समान व्यक्ति पर होता है अर्थात्
इसके भुगतान का बोझा हस्तांतरित नहीं किया जा सकता। बिक्री कर, मनोरंजन कर, मूल्यवृद्धि
कर, सेवा कर, कस्टम शुल्क और उत्पादन कर अप्रत्यक्ष कर हैं, क्योंकि
(i) ये वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाये गए हैं।
(ii) इसका कराधान तथा करापात भिन्न-भिन्न व्यक्ति पर होता है
अर्थात् इसके भुगतान का बोझ हस्तांतरित किया जा सकता है। ये लगाए उत्पादक पर जाते हैं,
परन्तु इसके भुगतान का बोझ उपभोक्ता पर हस्तांतरित कर दिया जाता है।
प्रश्न 7. प्रगतिशील तथा प्रतिगामी कर में अन्तर
स्पष्ट करो।
उत्तर :
आधार |
प्रगतिशील कर |
प्रतिगामी कर |
1. अर्थ |
प्रगतिशील कर ऐसी कर प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत आय बढ़ने
के साथ-साथ कर की दर भी बढ़ती है। |
प्रतिगामी कर ऐसी कर प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत आय के बढ़ने
के साथ-साथ कर की दर कम होती है। यदि हम मुद्रा के ऊपर हासमान सीमांत उपयोगिता के
नियम को कार्यरत मानें तो अनुपातिक कर भी प्रतिगामी सिद्ध हो जाते हैं। |
2. उदाहरण |
यदि व्यक्ति की आय 1,20,000 हो तो कर की दर 10% तथा आय इससे
अधिक होने पर 15% है तो यह प्रगतिशील कर प्रणाली है। |
यदि व्यक्ति की आय 12,000 हो तो कर की दर 10% तथा इससे अधिक
होने पर 8% है तो यह प्रतिगामी कर प्रणाली है। |
3. भार |
इस कर प्रणाली के अन्तर्गत धनी व्यक्तियों पर कर का भार अधिक
तथा निर्धनों पर कम पड़ता है। |
इस कर प्रणाली के अन्तर्गत करों का वास्तविक भार समाज के निर्धन
वर्ग पर अधिक पड़ता है। |
4. न्यायपूर्ण |
यह अधिक न्यायपूर्ण है, क्योंकि यह आय की असमानताओं को कम
करता है। |
यह न्यायपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह आय की असमानताओं को बढ़ाता
है। |
प्रश्न 8. कागजी कर क्या है? इसके उदाहरण दीजिए?
उत्तर : कुछ कर ऐसे हैं जिनका महत्व केवल कागजों पर ही है। यह
कर अपनी राजस्व आय के रूप में कुछ या बिल्कुल भी महत्वपूर्ण नहीं हैं। इन्हें कागजी
कर कहा जाता है। भारत में उपहार कर तथा व्यवसाय कर नाम मात्र कर है।
प्रश्न 9. योजना तथा योजनेतर व्यय में अन्तर स्पष्ट
करो?
उत्तर :
आधार |
योजना व्यय |
योजनेतर व्यय |
अर्थ |
योजना व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जो पंचवर्षीय योजनाओं
के अनतर्गत किया जाता है। |
योजनेतर व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है, जो पंचवर्षीय योजनाओं
के अन्तर्गत नहीं किया जाता। |
उदाहरण |
सरकार द्वारा स्कूल की इमारत का निर्माण कार्य योजना व्यय
के अन्तर्गत तब तक आता है जब तक इसका कार्य पूरा नहीं हो जाता। एक बार जब यह परियोजना
समाप्त हो जाती है, तो इसके बाद किए गये किसी भी प्रकार के व्यय को योजनेतर व्यय
कहा जाता है। |
व्यापक रूप से योजना व्यय के अतिरिक्त अन्य कोई भी व्यय योजनेतर
व्यय कहलाता है। सुरक्षा तथा अनुदान, वेतन तथा पेंशन पर किये गए व्यय, सरकारी उद्यमों
के प्रबंधन पर व्यय आदि । |
अन्य नाम |
इसे उत्पादकीय व्यय भी कहा जाता है। |
इसे गैर- उत्पादकीय व्यय भी कहते हैं। |
प्रश्न 10. उत्तर : क्या राजस्व घाटे के बिना राजकोषीय घाटा
हो सकता है? समझाइए।
उत्तर : हाँ, राजस्व घाटे के बिना भी राजकोषीय घाटा हो सकता है।
राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा + (पूँजीगत व्यय - पूँजीगत प्राप्तियाँ
(ऋण के अतिरिक्त)]
अतः राजकोषीय घाटे का अनुमान सरकार की दोनों राजस्व तथा पूँजी
प्राप्तियों और व्यय की गणना करके लगाया जाता है इसलिए जब राजस्व प्राप्तियाँ और राजस्व
व्यय संतुलन की अवस्था में हैं तब भी पूँजी प्राप्तियों के ऊपर पूँजी व्यय का आधिक्य
हो सकता है, जिसके कारण राजकोषीय घाटा हो सकता है।
प्रश्न 11. क्या राजकोषीय
घाटे की स्थिति प्राथमिक घाटा शून्य हो सकता है? समझाइए ।
उत्तर : हाँ, राजकोषीय घाटे की स्थिति में भी
प्राथमिक घाटा शून्य हो सकता है। इसका अर्थ यह है कि सरकार को केवल इसीलिए ऋण लेना पड़ रहा
है, ताकि वह अपने ब्याज के भुगतान के दायित्व को पूरा कर सके। इस दायित्व के अतिरिक्त
वह किसी अन्य ध्येय के लिए वर्तमान ऋणों में कोई और वृद्धि नहीं कर रही है। वास्तव
में, यह राजकोषीय अनुशासन का प्राण है अर्थात् सरकार अपने राजकोषीय उत्तरदायित्व को
पूरा कर रही है। इसके विपरीत उच्च प्राथमिक घाटा सरकार की राजकोषीय गैर जिम्मेदारी
का प्रतीक है।
प्रश्न 12. सरकार सार्वजनिक
वस्तुओं के उत्पादन पर अपना व्यय बढ़ा देती है। यह किस आर्थिक मूल्य को दर्शाता है?
समझाइए ।
उत्तर : यह संसाधनों के कुशल आवंटन
तथा समाज कल्याण के मूल्य को दर्शाती है। जब सरकार सार्वजनिक वस्तुओं के उत्पादन पर
व्यय बढ़ा देती है तो सामाजिक कल्याण के स्तर में वृद्धि होती है तथा संसाधनों का कुशल
आबंटन होता है। उदाहरण के लिए यदि सभी अपनी-अपनी कार या वाहन से कार्यालय जाएं तो ईंधन
की खपत अधिक होगी। सरकार बेहतर बस सुविध द्वारा या मेट्रो निर्माण द्वारा लोगों को
सार्वजनिक परिवहन प्रयोग करने के लिए प्रेरित कर सकती है। इससे संसाधनों के आबंटन की
कुशलता में वृद्धि होगी।
प्रश्न 13. सरकारी बजट
के संदर्भ में निम्नलिखित राजस्व प्राप्ति है या पूँजीगत प्राप्ति और क्यों?
(i) कर प्राप्तियाँ ।
(ii) विनिवेश
उत्तर :
(i) कर प्राप्तियाँ यह राजस्व प्राप्ति
है, क्योंकि (i) यह बार-बार प्राप्त होने वाली प्राप्ति है (ii) यह सरकार की प्रतिभूतियों
तथा देयताओं को प्रभावित नहीं करती।
(ii) विनिवेश यह पूँजीगत प्राप्ति है,
क्योंकि (i) यह एक बार प्राप्त होने वाली प्राप्ति है और (ii) इससे सरकार की प्रतिभूतियाँ
कम होती हैं।
प्रश्न 14. कारण देते
हुए बताइए कि सरकारी बजट में निम्नलिखित को राजस्व व्यय माना जाएगा या पूँजीगत व्यय
(i) छात्रवृत्ति पर व्यय
।
(ii) पुल निर्माण पर
व्यय
उत्तर :
(i) यह राजस्व व्यय है, क्योंकि इसकी
पुनरावृत्ति प्रकृति है तथा इससे सरकार की पूतिभूतियाँ या देयताएँ प्रभावित नहीं होती।
(ii) यह पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इससे सरकारी प्रतिभूतियों में वृद्धि होती है।
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
विषय सूची
अध्याय
व्यष्टि अर्थशास्त्र
समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय 1
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
अध्याय 5
अध्याय 6
अध्याय | व्यष्टि अर्थशास्त्र | समष्टि अर्थशास्त्र |
अध्याय 1 | ||
अध्याय 2 | ||
अध्याय 3 | ||
अध्याय 4 | ||
अध्याय 5 | ||
अध्याय 6 |
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अध्याय
व्यष्टि अर्थशास्त्र
समष्टि अर्थशास्त्र
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अध्याय 6
Solved Paper 2023
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अध्याय 3 | ||
अध्याय 4 | ||
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