2.1. प्रथम प्रथम पंचवर्षीय योजना -
भारत
में योजना का मुख्य उद्देश्य ३. विकास की एक ऐसी प्रक्रिया प्रारंभ करना है जो रहन-सहन
के स्तर को ऊंचा उठाए तथा लोगों के लिए समृद्ध एवं वैविध्यपूर्ण जीवन के नए अवसर उपलब्ध
करायेगी।
परिचय :
15
अगस्त 947 के दिन भारत में स्वतंत्रता का एक नया प्रभात उदित हुआ। अंततः 200 वर्षों
के ब्रिटिश शासन के बाद हम अपने भाग्य के विधाता बन गए। नेहरू तथा स्वतंत्र भारत के
अनेक अन्य नेताओं और चिंतकों ने मिलकर नव-स्वतंत्र भारत के लिए पूंजीवाद तथा समाजवाद
के अतिवादी व्याख्या के किसी विकल्प की खोज की। इसके अनुसार भारत एक ऐसा समाजवादी समाज
होगा, जो सार्वजनिक क्षेत्र का एक सशक्त क्षेत्रक होगा, जिसके अंतर्गत निजी संपति और लोकतंत्र का भी स्थान
होगा।
औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1948 तथा भारतीय संविधान के नीति
निदेशक सिद्धांतों का भी यही दृष्टिकोण है। वर्ष 1950 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता
में योजना आयोग की स्थापना की गई इस प्रकार पंचवर्षीय योजनाओं के युग का सूत्रपात हुआ।
आर्थिक प्रणालियों के प्रकार
1.
पूंजीवादी
2.
समाजवादी
3.
मिश्रित (पूंजीवादी तथा समाजवादी
का मिश्रण)
प्रत्येक समाज में तीन प्रश्नों के उत्तर देने
होते है:
1. देश में किन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाए?
2. वस्तु और सेवा सेवाएं किस प्रकार उत्पादित की जा उत्पादक
इस कार्य में मानव श्रम का अधिक प्रयोग करें अथवा मशीनों का?
3. उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का विभिन्न व्यक्तियों के
बीच किस प्रकार वितरण किया जाना चाहिए?।
पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्यः
किसी योजना के अस्पष्टता निर्दिष्ट लक्ष्य होने चाहिए
पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य
1.
समृद्धि
2.
आधुनिकीकरण
3.
आत्मनिर्भरता
4.
समानता
(क) समृद्धि- इसका अर्थ है कि देश में वस्तुओं और सेवाओं
की उत्पादन क्षमता में वृद्धि। इसका अभिप्राय उत्पादक पूंजी के अधिक भंडार या परिवहन,
बैंकिंग आदि सहायक सेवाओं का विस्तार या उत्पादक पूंजी तथा सेवाओं की दक्षता में वृद्धि
से है, अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद में निरंतर वृद्धि से है।
आधुनिकीकरण-वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ाने के
लिए उत्पादकों को नई प्रौद्योगिकी अपनानी पड़ती है। उदाहरण के लिए किसान पुराने बीजों
के स्थान पर नई किस्म के बीजों का प्रयोग कर खेतों की पैदावार बढ़ा सकता है। उसी प्रकार
एक फैक्ट्री नई मशीनों का प्रयोग कर उत्पादन बढ़ा सकती है नई प्रौद्योगिकी को अपनाना
ही आधुनिकीकरण है। आधुनिकीकरण केवल नवीन प्रौद्योगिकी के प्रयोग तक सीमित नहीं है,
बल्कि इसका उद्देश्य सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना भी है।
आत्मनिर्भरता- कोई राष्ट्र आधुनिकीकरण और आर्थिक समृद्धि,
अपने अथवा अन्य राष्ट्रों से आयातित संसाधनों के प्रयोग के द्वारा कर सकता है। हमारी
प्रथम 7 पंचवर्षीय योजनाओं में आत्मनिर्भरता को महत्व दिया गया, जिसका अर्थ है कि उन
चीजों के आयात से बचा जाए जिनका देश में ही उत्पादन संभव था।
(ख) समानता- केवल समृद्धि, आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता
के द्वारा ही जनसामान्य के जीवन में सुधार नहीं आ सकता। किसी देश में उच्च समृद्धि
दर और विकसित अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग होने के बाद भी अधिकांश लोग गरीब हो
सकते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आर्थिक समृद्धि के लाभ देश के निर्धन वर्ग
को भी सुलभ हो, केवल धनी लोगों तक ही सीमित न रहे। अतः समृद्धि आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता
के साथ-साथ समानता भी महत्वपूर्ण हैंः प्रत्येक भारतीय को भोजन, अच्छा आवास, शिक्षा,
स्वास्थ्य सेवाएं जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में समर्थ होना चाहिए और
धन संपत्ति के वितरण की और असमानताएं भी कम होनी चाहिए।
हम
देखते हैं 1950 से 1990 तक की अवधि में लागू की गई प्रथम साथ पंचवर्षीय योजनाओं ने
किस प्रकार इन 4 लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रयास किए तथा कृषि उद्योग और व्यापार के
संदर्भ में यह प्रयास कहां तक सफल रहे।
महालनोबिस
महालनोबिस का जन्म 1983 में कोलकाता में हुआ था।
महालनोबिस ने कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आई एस आई) की स्थापना की।
हमारी पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण में अनेक
प्रसिद्ध विचारकों का योगदान रहा। उनमें सांख्यिकीविद प्रशांत चंद्र महालनोबिस का नाम
उल्लेखनीय है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना का समान्यतः विकासात्मक योजना में एक अति महत्वपूर्ण
योगदान है। योजना का काम सही मायने में द्वितीय पंचवर्षीय योजना से प्रारंभ हुआ। इसमें
भारतीय योजना के लक्ष्यों से संबंधित आधारिक विचार दिए गए है। यह योजना महालनोबिस के
विचारों पर आधारित थी। इस अर्थ में, उन्हें भारतीय योजना का निर्माता माना जा सकता
है।
(ग) कृषि- हमने देखा कि औपनिवेशिक शासन काल में कृषि क्षेत्र
में न तो समृद्धि हुई और नहीं समता रह पइ। स्वतंत्र भारत के नीति निर्माताओं को इन
मुद्दों पर विचार करना पड़ा तथा उन्होंने भू सुधारों तथा उच्च पैदावार वाली किस्म के
बीजों के प्रयोग द्वारा भारतीय कृषि में एक क्रांति का संचार किया।
(घ) भू-सुधार स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण
पद्धति में जमीदार जागीरदार आदि का वर्चस्व था। येखेतों में कोई सुधार किए बिना मात्र
लगान की वसूली किया करते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत
को संयुक्त राज्य अमेरिका से अनाज का आयात करना पड़ा। कृषि में समानता लाने के लिए
भू- सुधारों की आवश्यकता हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन
करना था। स्वतंत्रता के 1 वर्ष बाद ही देश में बिचौलियों का उन्मूलन तथा वास्तविक कृषकों
को ही भूमि का स्वामी बनाने जैसे कदम उठाए गए। इसका उद्देश्य था कि भूमि का स्वामित्व
किसानों को निवेश करने की प्रेरणा देगा, बशर्ते उन्हें पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराई
जाए। समानता को बढ़ाने के लिए भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारण की एक दूसरी नीति थी। इसका
अर्थ है कि किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व का अधिकतम सीमा का निर्धारण करना।
इस नीति का उद्देश्य कुछ लोगों में भू- स्वामित्व के संकेद्रण को कम करना था।
बिचौलियों
के उन्मूलन का नतीजा था कि लगभग 200 लाख काश्तकारों का सरकार से सीधा संपर्क हो
गया तथा वे जमींदारों के द्वारा किए जा रहे शोषण से मुक्त हो गये बिचौलियों के
उन्मूलन कर समानता के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाई। कानून की कमियों का लाभ
उठाकर कुछ भूतपूर्व जमींदारों ने कुछ क्षेत्रों में बहुत बड़ें- बड़े भूखंडों पर
अपना स्वामित्व बनाए रखें।
अधिकतम
सीमा निर्धारण कानून में भी बाधाएँ आई। बड़े जमींदारों ने इस कानून को न्यायालय
में चुनौती दी, जिसके कारण इसे लागू करने में देर हुई। इस अवधि में वे अपनी भूमि
निकट संबंधियों के नाम कराकर कानून से बच गए। अतः आज तक जोतों में भारी असमानता
बनी हुई है।
2.2. हरित क्रांति
☞ स्वतंत्रता
के समय देश की 75% जनसंख्या कृषि पर आधारित थी।
☞ इस
क्षेत्र में उत्पादकता बहुत कम थी, क्योंकि पुरानी प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया
जाता था और अधिक संख्या में किसानों के पास आधारिक संरचना का भी नितांत अभाव था।
☞ हरित
क्रांति के पहले चरण में (लगभग 1960 के दशक के मध्य से 1970 के दशक के मध्य तक)
एवाईवी बीजों का प्रयोग पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे अधिक समृद्ध राज्यों
तक ही सीमित रहा।
☞ इसके
अतिरिक्त एचवाईवी बीजों का लाभ केवल गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्रों को ही मिल
पाया।
☞ हरित
क्रांति द्वितीय चरण (1970 के दशक के मध्य से 1980 के दशक के मध्य तक) में एचवाईवी
बीजों को
प्रौद्योगिकी का विस्तार कई राज्यों तक पहुंचा और कई फसलों को लाभ हुआ।
☞ इस
प्रकार, हरित क्रांति प्रौद्योगिकी के प्रसार से भारत को खाद्यान्न उत्पादन में
आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई।
☞ इस
हरित क्रांति के फलस्वरूप भारत में गेहूं चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुआ।
☞ भारत
में हरित क्रांति के जनक डॉक्टर एमएस स्वामीनाथन को माना जाता है।
☞ वास्तव
में भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1966 में खरीफ की फसल चावल से होती है।
☞ यदि
सरकार ने इस प्रौद्योगिकी का लाभ छोटे किसानों को उपलब्ध कराने के लिए व्यापक प्रयास
नहीं किए होते तो इस हरित क्रांति का लाभ केवल धनी किसानों को ही मिलता है।
☞ विपणित
अधिशेष किसानों द्वारा उत्पादन का बाजार में बेचा गया अंश ही विपणित अधिशेष कहलाता
है।
सब्सिडी (सहायिकी)
नई
एचवाईवी प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु सहायिकी दी जानी
आवश्यक थी। किसान प्रायः किसी भी नई प्रौद्योगिकी को जोखिम पूर्ण समझते हैं। अतः किसानों
द्वारा नई प्रौद्योगिकी की परख के लिए सहायिकी आवश्यक थी।
1960
के दशक के अंत तक देश में कृषि उत्पादकता की वृद्धि से भारत खदानों में आत्मनिर्भर
हो गया। यह निश्चित ही गौरवपूर्ण उपलब्धि रही। इसके बावजूद, नकारात्मक पहलू यह रहा
कि 1990 तक भी देश की 65% जनसंख्या कृषि में लगे थे। अर्थशास्त्री इस निष्कर्ष पर पहुंचे
हैं कि जैसे जैसे देश संपन्न होता है, सकल घरेलू उत्पाद में, कृषि के योगदान में और
उस पर निर्भर जनसंख्या में पर्याप्त कमी आती है। भारत में 1950 से 1990 की अवधि में
जीडीपी में कृषि के अंशदान में तो भारी कमी आई है, पर कृषि पर निर्भर जनसंख्या के अनुपात
में नहीं (1950 में 67.50 प्रतिशत थी और 1990 तक घटकर 64.90% ही हो पाई) इस क्षेत्र
में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लगे रहने का क्या आवश्यकता थी? इसका उत्तर यही है
कि उद्योग क्षेत्र और सेवा क्षेत्र कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को नहीं खफा
पाए। अनेक अर्थशास्त्री इसे 1950 से 1990 के दौरान अपनाई गई नीतियों की विफलता मानते
हैं।
2.3. उद्योग और व्यापार :
निर्धन
राष्ट्र तभी प्रगति कर पाते हैं जब उनमें अच्छे औद्योगिक क्षेत्र होते हैं। उद्योग
तो रोजगार उपलब्ध कराते हैं और यह कृषि में रोजगार की अपेक्षा अधिक स्थाई होते हैं।
यदि अर्थव्यवस्था का विकास करना था, तो हमें ऐसे औद्योगिक आधार का विस्तार करने की
आवश्यकता थी जिसमें विविध प्रकार के उद्योग हों।
2.3.1 भारतीय औद्योगिक विकास में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रः
भारतीय
अर्थव्यवस्था को समाज के पथ पर अग्रसर करने के लिए द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह
निर्णय लिया गया कि सरकार अर्थव्यवस्था में बड़े तथा भारी उद्योगों का नियंत्रण करेगी।
इसका अर्थ यह था कि राज्य उन उद्योगों पर पूरा नियंत्रण रखेगा, जो अर्थव्यवस्था के
लिए महत्वपूर्ण थे। निजी क्षेत्र की नीतियां सार्वजनिक क्षेत्र की नीतियों की अनुपूरक
होंगी और सार्वजनिक क्षेत्र अग्रणी भूमिका निभाएंगे।
2.3.2. औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956:
भारी
उद्योगों पर नियंत्रण रखने के राज्य के लक्ष्य के अनुसार औद्योगिक नीति प्रस्ताव
1956 को अंगीकार किया गया। इस प्रस्ताव को द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बनाया गया।
इस प्रस्ताव के अनुसार, उद्योगों को 3 वर्गों में वर्गीकृत किया गया। प्रथम वर्ग में
हुए उद्योग शामिल थे, जिन पर राज्य का स्वामित्व था। दूसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल
थे. जिनके लिए निजी क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र के साथ मिलकर प्रयास कर सकते थे, परंतु
जिनमें नई इकाइयों को शुरू करने की एकमात्र जिम्मेदारी राज्य की होती द्यतीसरे वर्ग
में हुए उद्योग शामिल थे, जो निजी क्षेत्र के अंतर्गत आते थे।
2.3.3. लघु उद्योग
1955
में ग्राम तथा लघु उद्योग समिति, जिसे कर्वे समिति भी कहा जाता था, ने इस बात की संभावना
पर विचार किया कि ग्राम विकास को प्रोत्साहित करने के लिए लघु उद्योगों का प्रयोग किया
जाए। लघु उद्योगों की परिभाषा 1950 में लघु औद्योगिक इकाई उसे कहा जाता था जो
₹500000 का अधिकतम निवेश करती थी। इस समय 10000000 रुपए का अधिकतम निवेश किया जा सकता
है।
सकल घरेलू उत्पाद में क्षेत्रवार योगदान
क्षेत्रक |
1950-51 |
1990-91 |
कृषि |
59.0 |
34.9 |
उद्योग |
13.0 |
24.6 |
सेवाएँ |
28.0 |
40.5 |
2.4. व्यापार नीतिय आयात प्रतिस्थापन
हमारे
द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीति व्यापार नीति से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध थी। प्रथम सात
पंचवर्षीय योजनाओं में व्यापार की विशेषता अंतर्मुखी व्यापार नीति थी। तकनीकी रूप से
इस नीति को आयात प्रतिस्थापन कहा जाता है। इस नीति का उद्देश्य आयात के बदले घरेलू
उत्पादन द्वारा पूर्ति करना है। आयात संरक्षण के दो प्रकार थेः प्रशुल्क और कोटा। प्रशुल्क
आयातित वस्तुओं पर लगाया गया कर है। प्रशुल्क लगाने पर आयातित वस्तुएं अधिक महंगी हो
जाती है, जो वस्तुओं के प्रयोग को हतोत्साहित करती हैं। कोटे में वस्तुओं की मात्रा
निर्दिष्ट की होती है, जिन्हें आयात किया जा सकता है। प्रशुल्क और कोटे का प्रभाव यह
होता है कि उनसे आयात प्रतिबंधित हो जाते हैं और उनसे विदेशी प्रतिस्पर्धा से देशी
फर्मों की रक्षा होती है।
1980
के दशक के मध्य तक निर्यात संवर्धन पर कोई गंभीर विचार नहीं किया गया था।
औद्योगिक विकास पर नीतियों का प्रभावः
(क)
भारत मेंऔद्योगिक क्षेत्र की उपलब्धियां वस्तुतः औद्योगिक क्षेत्र द्वारा प्रदत जीडीपी
का अनुपात 1950-51 में 11.8% से बढ़कर 1990-91 में 24.6% हो गया। GDP से उद्योगों में
हिस्सेदारी में बढ़ोतरी विकास का सूचक है।
(ख)
1990 के दशक के अंत तक भी प्रतिस्पर्धा ना होने के कारण व्यक्ति को टेलीफोन कनेक्शन
लेने में लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी।
(ग)
किसी उद्योग को शुरू करने के लिए आवश्यक लाइसेंस का कुछ औद्योगिक घरानों द्वारा दुरुपयोग
किया गया। बड़े उद्योगपति नई फर्म शुरू करने के लिए नहीं, बल्कि नए प्रतिस्पर्धीयों
को रोकने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर लेते थे। परमिट लाइसेंस राज के अत्यधिक नियमन के
कारण कुछ फर्मे कार्य कुशल नहीं बन पाई। उद्योगपति अपने उत्पादन के विषय में विचार
करने की अपेक्षा लाइसेंस प्राप्त करने की कोशिश में और संबंधित मंत्रालयों में लॉबी
बनाने में समय व्यतीत करते थे।
कुछ
अर्थशास्त्रियों का भी मत है कि सार्वजनिक क्षेत्र का प्रयोजन लाभ कमाना नहीं है, बल्कि
राष्ट्र के कल्याण को बढ़ावा देना है। इस दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों का
मूल्यांकन जनता के कल्याण के आधार पर किया जाना चाहिए। उनका मूल्यांकन उनके द्वारा
कमाए गए लाभों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। संरक्षण के संबंध में अर्थशास्त्रियों का यह मत है कि हमें विदेशी
प्रतिस्पर्धा से उत्पादों का संरक्षण तक तब तक करना चाहिए, जब तक धनी राष्ट्र ऐसा
करते रहें। इन सभी विरोधों के कारण अर्थशास्त्रियों ने हमारी नीति में परिवर्तन
करने का आग्रह किया।
अन्य समस्याओं सहित इस समस्या का कारण सरकार ने 1991 के नई
आर्थिक नीति प्रारंभ की।
2.5 निष्कर्ष :
प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था
की प्रगति उल्लेखनीय रही। हमारे उद्योग स्वतंत्रता प्राप्ति के समय की स्थिति की
तुलना में विविधतापूर्ण हो गये। हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप भारत खा। उत्पादन
में आत्मनिर्भर बन गया। भूमि सुधारों का परिणाम यह हुआ कि घृणित जमीदारी प्रथा का
उन्मूलन हो गया। आत्मनिर्भरता के नाम पर हमारे उत्पादकों का संरक्षण विदेशी
प्रतिस्पर्धा से किया गया और इससे उन्हें, उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की
गुणवत्ता में सुधार करने की प्रेरणा नहीं मिली। हमारी नीतियां अंतर्मुखी थी, अतः
हम एक सशक्त निर्यात क्षेत्र विकसित करने में विफल रहे। हमारी अर्थव्यवस्था को और
अधिक सफल बनाने के लिए 1991 में एक नई आर्थिक नीति शुरू की गई।
2.6 पुनरावर्तन :
☞ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने एक आर्थिक पद्धति की
कल्पना की, जिसमें समाजवाद और पूंजीवाद की विशेषताएं सम्मिलित थी इसकी परिणित
मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल के रूप में हुई।
☞ सभी आर्थिक योजनाएं पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से ही
निर्मित की गई है।
☞ पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य हैं- समृद्धि, आधुनिकीकरण,
आत्मनिर्भरता और समानता।
कृषि क्षेत्र में मुख्य नीतिगत पहल थे भूमि सुधार तथा हरित
क्रांति।
☞ इन पहलो से भारत को खाद्यान्नों के उत्पादन में
आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिली।
☞ कृषि पर निर्भर रहने वाले लोगों का अनुपात कम नहीं हुआ,
जैसी की आशा थी।
☞ औद्योगिक क्षेत्रों में नीतिगत पहलों ने सकल घरेलू उत्पाद
के लिए इसके योगदान में वृद्धि की।
प्रश्नोत्तर
प्र.1. योजना की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: योजना इसकी व्याख्या करती है कि देश के संसाधनों का
प्रयोग किस प्रकार किया जाना चाहिये।
प्र.2. भारत ने योजना को क्यों चुना?
उत्तर: अंग्रेजों ने भारत को विभाजन की समस्याओं के साथ एक
स्थिर और खोखली अर्थव्यवस्था के रूप में छोड़ दिया। इसने एक सर्वांगीण विकास योजना
का आह्वान किया। यदि सरकार ने अर्थव्यवस्था को निजी हाथों में छोड़ दिया होता तो
उन्होंने बड़े पैमाने पर उपस्थित गरीबी, बेरोजगारी की ओर न्यूनतम ध्यान दिया होता,
जिससे देश के एक प्रमुख खंड को कष्टों का सामना करना पड़ता। हमें एक बड़े स्तर की
योजना के साथ एक एकीकृत प्रयास की जरूरत थी जो सरकार केवल आर्थिक योजना प्रणाली
द्वारा ही कर सकती थी। इसीलिए भारत ने योजना को चुना।।
प्र.3. योजनाओं के लक्ष्य क्या होने चाहिए?
उत्तर: कोई भी योजना बिना विशिष्ट और सामान्य लक्ष्यों के
बनाना पूर्णतः अर्थहीन है। हर योजना में विशिष्टता के साथ कुछ लक्ष्य होना आवश्यक
है। एक छात्र तक जब परीक्षा की तैयारी तक की योजना बनाता है तो उसके भी कुछ
विशिष्ट लक्ष्य होते हैं। जैसे कब तक एक विशेष विषय को समाप्त करना है, तो हम बिना
विशिष्ट लक्ष्यों के राष्ट्रीय योजनाओं के बारे में कैसे सोच सकते हैं। निश्चित
रूप से योजनाओं के लक्ष्य होना जरूरी हैं जिन्हें सामान्य और विशिष्ट लक्ष्यों में
वर्गीकृत किया जा सके।
प्र.4. उच्च पैदावार वाली किस्म (HYV) बीज
क्या होते हैं?
उत्तर: वे बीज जो पानी, उर्वरक, कीटनाशकों और अन्य सीमाती
प्रदान किए जाने के आश्वासन उपरांत अधिक उत्पादन दें, उन्हें उच्च पैदावार वाली
किस्म (HYV) के बीच कहा जाता है।
प्र.5. विक्रय अधिशेष क्या है?
उत्तर: किसानों द्वारा उत्पादन का बाजार में बेचा गया अंश
विक्रय अधिशेष कहलाता है।
प्र.6. कृषि क्षेत्रक में लागू किए गए भूमि
सुधार की आवश्यकता और उनके प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : (क) भारत में बिचौलियों की एक बड़ी सेना थी जैसे
जमींदार, महालावार, रैयत आदि जो वास्तविक किसान से किराया वसूल करते थे और उसका एक
हिस्सा भू-राजस्व के रूप में सरकार के पास जमा कराते थे। वे किसानों के साथ दासों
जैसा व्यवहार करते थे।
आवश्यकता
(क) बिचौलियों के उन्मूलन का उपाय वास्तविक जोतक और किसान
के बीच सीधा संबंध स्थापित करने के लिए किया गया।
(ख) बंजर भूमि, जंगल आदि राज्य सरकार को हस्तांतरित करने के
लिए।
(ग) भूमि वितरण में समानता लाने के लिए।
(घ) किसानों को भूमि का मालिक बनाने के लिए।
प्रकार :
(क) जमींदारी प्रथा का उन्मूलन- सरकार और किसान के बीच में सीधा संपर्क स्थापित करने के
लिए जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया ताकि किसानों के शोषण को दूर किया जा
सके। इन बिचौलियों ने किसानों पर भारी शुल्क लगाए। परंतु सिंचाई सुविधाओं, भंडारण
सुविधाओं, ऋण सुविधाओं, विपणन सुविधाओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
(ख) किरायेदारी सुधार- ये निम्नलिखित से संबंधित थे
1. किराया विनियमन
2. कार्यकाल सुरक्षा
3. किरायेदारों के लिए स्वामित्व अधिकार
(ग) अधिकतम भूमि सीमा अधिनियम- इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति की कृषि भूमि की अधिकतम
सीमा निर्धारित कर दी गई।
कृषि के पुनगठन का संबंध
1. भूमि के पुनर्वितरण
2. भूमि चकबंदी
3. सहकारी खेती से है।
प्र.7. हरित क्रांति क्या है? इसे क्यों लागू
किया गया और इससे किसानों को क्या लाभ पहुँचा? संक्षिप्त में व्याख्या कीजिए।
उत्तर: यह एक रणनीति थीय जो अक्टूबर 1965 में कृषि उत्पादन बढ़ाने
के लिए शुरू की गई थी। इसे अलग-अलग नाम दिए गएय जैसे नई कृषि नीति, बीज उर्वरक पानी,
प्रौद्योगिकी।
नई कृषि निति अपनाने से पूर्व भारतीय कृषि की परिस्थितियाँ इस
प्रकार थी
(क) कृषि कम और अनियमित वृद्धि दर्शा रही थी।
(ख) कृषि में चरम क्षेत्रीय असमानता तथा बढ़ती हुई अंतर्वर्गीय
असमानता थी।
(ग) लगातार दो वर्ष गंभीर सूखे की स्थिति थी।
(घ) पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध चल रहा था।
(ङ) अमेरिका ने भारत को पी.एल. 480 आयात करने से इंकार कर दिया।
इस स्थिति को सुधारने के लिए हरित क्रांति को अपनाया गया था।
भारत ने खाद्यान्न अपूर्ति जैसी महत्त्वपूर्ण मद के लिए विदेशी मदद पर निर्भर न रहने
का निर्णय किया। यही हरित क्रांति की उत्पत्ति बना जो एक जैव रासायनिक प्रौद्योगिकी
थी, जिसके द्वारा उत्पादन की वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके प्रति एकड़ उत्पादन को
बढ़ाया जाना था। हरित क्रांति के लाभ
(क) आय में बढ़ोतरी- क्योंकि हरित क्रांति काफी वर्षों तक गेहूँ और चावल तक सीमित था इसलिए इसका लाभ
पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे गेहूँ और चावल उत्पादक
क्षेत्रों को हुआ। इन राज्यों में किसानों की आय तेजी से बढी। हरित क्रांति इन राज्यों
से गरीबी दूर करने में सफल रही।
(ख) सामाजिक क्रांति पर प्रभाव- आर्थिक क्रांति के साथ एक सामाजिक क्रांति भी थी। इसने पुराने
सामाजिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों को नष्ट कर दिया और लोग प्रौद्योगिकी, बीज और उर्वरकों
के परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए। खेती की पारंपरिक विधियाँ खेती की
आधुनिक विधियों में परिवर्तित हो गई।
(ग) रोजगार में वृद्धि- हरित क्रांति की वजह से जमीन के एक टुकड़े पर एक से अधिक फसल उगाने की संभावना
के साथ काफी हद तक मौसमी बेरोजगारी की समस्या हल हो गई क्योंकि इसमें कार्यशील हाथों
की आवश्यकता पूरे वर्ष थी। इसके अतिरिक्त पैकेज आदानों के लिए बेहतर सिंचाई सुविधाओं
की आवश्यकता थी। इससे भी रोजगार के अवसर बढ़े।
प्र.8. योजना उद्देश्य के रूप में 'समानता के
साथ संवृद्धि की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: संवृद्धि और समानता दो संघर्षशील उद्देश्य हैं, अर्थात्
एक को पाने के लिए दूसरे का त्याग करना होगा। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, 'आय की
समानता संवृद्धि में बाधक है क्योंकि इससे काम करने की प्रेरणा में कमी आती है। इसके
अतिरिक्त आय की समानता से देश का उपभोग स्तर बढ़ जाता था तथा बचत स्तर कम हो जाता है।
उपभोग अधिक होगा तो बचत कम होगी। बचत कम होने से निवेश के लिए धन की कमी होगी जिससे
अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर में कमी आयेगी।
प्र.9. "क्या रोजगार सृजन की दृष्टि से योजना
उद्देश्य के रूप में आधुनिकीकरण विरोधाभास पैदा करता है'? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: उद्देश्यों में विरोधाभास का अर्थ है कि दो उद्देश्यों
को एक साथ उपलब्ध नहीं कर सकते। एक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमें दूसरे का
बलिदान करना होगा।
आधुनिकीकरण और रोजगार- आधुनिकीकरण का अर्थ है उत्पादन की नवीनतम तकनीकों का प्रयोग करना। नई तकनीकें
अधिकतर पूँजी गहन होती है, अतः कम रोजगार उत्पन्न करती है। इसलिए यदि आधुनिकीकरण पर
एक योजना लक्ष्य के रूप में बल दिया जाता है तो रोजगार सृजन कम हो पायेगा। परंतु यह
केवल अल्पकाल में होगा। जैसे-जैसे आधुनिकीकरण होगा पूँजीगत वस्तु उद्योगों का विकास
होगा और वहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के रोजगार अवसर सृजित होंगे। परंतु जिस तरह की नौकरियों
का सृजन होगा उनके अनुसार श्रम में कौशल होना आवश्यक है।
प्र.10. भारत जैसे विकासशील देश के रूप में आत्मनिर्भरता
का पालन करना क्यों आवश्यक था?
उत्तर : स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारत गरीब, गतिहीन और
पिछड़ा हुआ था। खाद्यान्नों का भारी आयात किया जा रहा था। इसलिए आत्मनिर्भर होना अति
आवश्यक था। आत्मनिर्भरता की विशेषताएँ इस प्रकार है-
(क) खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होना।
(ख) विदेशी मदद और आयातों पर निर्भरता में कमी जो तभी संभव है
जब घरेलू उत्पादन में वृद्धि हो।
(ग) निर्यातों में वृद्धि।
(घ) सकल घरेलू उत्पाद में उद्योगों के योगदान में वृद्धि।
प्र.11. किसी अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक गठन क्या
होता है? क्या यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्रक को सबसे
अधिक योगदान करना चाहिए? टिप्पणी करें।
उत्तर : एक अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में तीनों क्षेत्रों
के योगदान को अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक गठन कहा जाता है। यदि किसी अर्थव्यवस्था के
जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्रक सबसे अधिक योगदान कर रहा है तो इसका अर्थ है कि हमारी
अर्थव्यवस्था आर्थिक रूप से विकसित है।
प्र.12. योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास
में सार्वजनिक क्षेत्र को ही अग्रणी भूमिका क्यों सौंपी गई थी?
उत्तर: सार्वजनिक क्षेत्र निम्नलिखित प्रकार से उद्योगों के
विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है
(क) एक मजबूत औद्योगिक आधार बनाने के लिए।
(ख) बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए।
(ग) पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए।
(घ) बचत जुटाने और विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए।
(ङ) आर्थिक शक्ति की एकाग्रता को रोकने के लिए।
(च) आय और धन वितरण की समानता को बढ़ावा देने के लिए।
(छ) रोजगार प्रदान करने के लिए।
(ज) आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा देने के लिए।
प्र.13. इस कथन की व्याख्या करेंः 'हरित
क्रांति ने सरकार को खाद्यान्नों के प्रापण द्वारा विशाल सुरक्षित भंडार बनाने के
योग्य बनाया, ताकि वह कमी के समय उसका उपयोग कर सके।'
उत्तर : हरित क्रांति नई कृषि तकनीक के उपयोग से कृषि
उत्पादन और उत्पादकता में होने वाली भारी वृद्धि को संदर्भित करता है। इसने एक
दुर्लभतापूर्ण अर्थव्यवस्था को बहुतायत पूर्ण अर्थव्यवस्था में बदल दिया।
हरित क्रांति से उत्पादन तथा उत्पादकता में भारी परिवर्तन
आया। हरित क्रांति ने लगातार उपस्थित खाद्यान्नों की कमी को दूर करने में मदद की।
अधिक पैदावार वाली किस्मों का कार्यक्रम (HYP) केवल पाँच फसलों अर्थात् गेहूं,
चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का तक ही प्रतिबंधित रहा। वाणिज्यिक फसलों को नई कृषि
तकनीक के दायरे से बाहर रखा गया। गेहूँ उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि देखने में आई।
गेहूं का उत्पादन जो तीसरी पंचवर्षीय योजना में 12.1 मिलियन
टन था, वह 2006 में बढ़कर 79.8 मिलियन टन हो गया। इसी तरह चावल का उत्पादन 1968-69
में 38.1 मिलियन टन से बढ़कर 2005-06 में 93.4 मिलियन टन हो गया। मोटे अनाजों का
उत्पादन में 1968-69 में 26.1 मिलियन टन से मात्र 33.9 मिलियन टन तक बढ़ा।
प्र.14. सहायिकी किसानों को नई प्रौद्योगिकी
का प्रयोग करने को प्रोत्साहित तो करती है पर उसका सरकारी वित्त पर भारी बोझ पड़ता
है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर सहायिकी की उपयोगिता की चर्चा करें।
उत्तर: अलग-अलग अर्थशास्त्रियों के सहायिकी के विषय में
अलग-अलग विचार है। कुछ सहायिकी का पक्ष लेते हैं तो कुछ इसके उन्मूलन पक्षधर हैं।
अपने पक्ष के लिए वे जो तर्क देते हैं वे नीचे दिए गए हैं
सहायिकी के पक्ष में तर्क
(क) नई तकनीक अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देने के
लिए सहायिकी आवश्यक है।
(ख) अधिकांशतः किसान गरीब हैं। अतः वे सरकारी मदद के बिना
नई तकनीक को वहन करने में सक्षम नहीं होंगे।
(ग) कृषि जोखिम भरा व्यवसाय है। अतः जो गरीब किसान इसका
जोखिम उठाने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता है।
(घ) यह सहायिकी न दी जाए तो नई तकनीक का लाभ केवल अमीर
किसानों को होगा और इससे आय की असमानताएँ बढ़ेगी।
(ङ) सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सहायिकी का लाभ
केवल गरीब किसानों को मिले।
सहायिकी के विप्क्ष तर्क
(क) सहायिकी का उद्देश्य पूरा हो चुका है, अतः इस चरणबद्ध
रीति से हटा दिया जाना चाहिए।
(ख) सहायिकी का लाभ अमीर किसानों तथा उर्वरक कंपनियों को भी
मिल रहा है जिसकी आवश्यकता नहीं है।
(ग) सहायिकी सरकारी वित्त पर भारी बोझ है जो अन्ततः आम आदमी
को ही उठाना पड़ता है।
प्र.15. हरित क्रांति के बाद भी 1990 तक
हमारी 65: जनसंख्या कृषि क्षेत्रक में ही क्यों लगी रही?
उत्तर: हरित क्रांति के बाद भी 1990 तक हमारी 65: जनसंख्या
कृषि क्षेत्रक में ही लगी रही। इसके कारण निम्नलिखित हैं
(क) हरित क्रांति पूरे देश में नहीं हुई। यह मुख्यतः पंजाब,
हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सफल रही। अन्य राज्यों में कृषि पर निर्भर
आबादी में गिरावट नहीं थी।
(ख) हरित क्रांति केवल कुछ फसलों तक ही सीमित थी। जिसमें
मुख्य गेहूँ और चावल हैं। कुछ अर्थशास्त्री इसे गेहूँ क्रांति भी कहते हैं।
(ग) अन्य क्षेत्रों में वैकल्पिक नौकरियों का सृजन नहीं
हुआ। इसने कृषि में प्रच्छन्न बेरोजगारी को जन्म दिया।
प्र.16. यद्यपि उद्योगों के लिए सार्वजनिक
क्षेत्रक बहुत आवश्यक रहा है, पर सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक उपक्रम ऐसे हैं जो
भारी हानि उठा रहे हैं और इस क्षेत्रक के अर्थव्यवस्था के संसाधनों की बर्बादी के
साधन बने हुए हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रमों
की उपयोगिता पर चर्चा करें।
उत्तर : यह भलीभाँति ज्ञात है कि सार्वजनिक क्षेत्र के
उपक्रम लाभार्जन नहीं बल्कि समाज कल्याण के उद्देश्य से संचालित किए जाते हैं। एक
संस्था जो लाभ के लिए नहीं बल्कि समाज कल्याण के लिए कार्यरत हैं, उस उपयोगिता को
लाभ के आधार पर आँकना गलत है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम लाभार्जन न कर रहे हो
परंतु ये उपयोगी हैं क्योंकि-
(क) ये एक मजबूत औद्योगिक आधार का निर्माण करते हैं।
(ख) यह सामाजिक और आर्थिक ढाँचे के विकास में मदद करता है।
(ग) यह पिछड़े क्षेत्रों के विकास पर केंद्रित है और
क्षेत्रीय समानता को बढ़ावा देता है।
(घ) यह सत्ता को कुछ हाथों में एकाग्र होने से रोकता है।
(ङ) यह आय की असमानताओं को कम करता है।
(च) यह औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन करता है।
प्र.17. आयात प्रतिस्थापन किस प्रकार घरेलू
उद्योगों को संरक्षण प्रदान करता है?
उत्तर : आयात प्रतिस्थापन घरेलू उद्योग की रक्षा कर सकता
है। ये विदेशी उत्पादकों को घरेलू बाजार में प्रवेश नहीं करने देते। इसीलिए भारतीय
उत्पादकों को इन उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती, और वे उतने कुशल
न होते हुए भी बाजार में जीवित रह सकते हैं। यह शैशव अवस्था तर्क पर आधारित थी कि
भारतीय उद्योग अभी शैशव अवस्था में हैं इसलिए इन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से
सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। इसने विदेशी मुद्रा बचाने में भी मदद की जो विकास
के लिए आवश्यक निर्यात के लिए उपयोग की जा सकती थी। इसने घेरलू स्तर पर उत्पादित
वस्तुओं की माँग में भी वृद्धि की।
प्र.18. औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 में
निजी क्षेत्रक का नियमन क्यों और कैसे किया गया था?
उत्तर: औद्योगिक नीति प्रस्ताव ने उद्योगों को तीन वर्गों
में बाँटा
(क) प्रथम श्रेणी में उन उद्योगों को शामिल किया गया जो
पूर्णतः सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे तथा जिसमें निजी क्षेत्र को प्रवेश
की अनुमति नहीं थी। इसमें 17 उद्योग शामिल थे।
(ख) दूसरी श्रेणी में वे उद्योग शामिल किए गए जिसमें निजी
क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में पूरक की भूमिका निभा सकता है।
(ग) तीसरी श्रेणी में शेष सभी उद्योग शामिल थे जिसमें निजी
क्षेत्र सहज प्रवेश कर सकता है।
प्र.19. निम्नलिखित युग्मों को सुमेलित
कीजिए।
1.
प्रधानमंत्री |
(क)
अधिक अनुपात में उत्पादन देने वाले बीज। |
2. सकल घरेलू उत्पाद |
(ख)
आयात की जा सकने हवाली मात्रा। |
3.
हकोटा |
(ग)
योजना अयोग के अध्यक्ष । |
4. भूमि-सुधर |
(घ)
किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित की गई सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का
मौद्रिक मूल्य। |
5.
उच्च उत्पादकता वाले बीज |
(ङ) कृषि क्षेत्र की उत्पादकता वृद्धि के लिए किए
गए सुधार। |
6.
सहायिकी |
(च)
उत्पादक कार्यों के लिए सरकार द्वारा दी गई मौद्रिक सहायता । |
उत्तर:
1.
प्रधानमंत्री |
(क)
योजना अयोग के अध्यक्ष । |
2.
सकल घरेलू उत्पाद |
(ख)
किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित की गई सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का
मौद्रिक मूल्य। |
3.
हकोटा |
(ग)
आयात की जा सकने हवाली मात्रा। |
4.
भूमि-सुधर |
(घ)
कृषि क्षेत्र की उत्पादकता वृद्धि के लिए किए गए सुधार। |
5. उच्च उत्पादकता वाले बीज |
(ङ)
अधिक अनुपात में उत्पादन देने वाले बीज। |
6. सहायिकी |
(च)
उत्पादक कार्यों के लिए सरकार द्वारा दी गई मौद्रिक सहायता । |