भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक एवं साख नीति
(Monetary and Credit Policy of Reserve Bank of India)
प्रश्न :- भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अब तक घोषित मौद्रिक नीति के
क्या उद्देश्य रहे है? वर्तमान मुद्रा एवं साख
नीति की विवेचना कीजिए ?
उत्तर
:- भारतीय रिजर्व बैंक अन्य केन्द्रीय बैंकों के समान देश में मौद्रिक नीति का
निर्माण एवं उसका संचालन करता है। भारत जैसी विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था के लिए ऐसी
क्रियाशील मौद्रिक नीति की आवश्यकता होती है जो आर्थिक विकास में सहायक होने के
साथ-साथ देश में स्थिरता को भी बनाए
रखें। स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त भारत में
पंचवर्षीय योजनाओं के चालू होने के साथ नियोजित विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप देश
की मौद्रिक नीति का निर्माण किया जाना आवश्यक था। 1952 के उपरान्त नियोजन काल में
देश की मौद्रिक नीति में सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति के युगल उद्देश्यों पर ही
बल दिया गया -
(a)
देश में आर्थिक विकास को त्वरित करना ताकि राष्ट्रीय आय और जीवन स्तर उन्नत हो सके
तथा
(b)
हितार्थ प्रबन्धन, आदि से उत्पन्न स्फीतिकारी दबावो को नियन्त्रित करना। इस
प्रकार योजनाकाल में रिजर्व बैंक द्वारा अपनाई गई नीति को 'नियंत्रित
विस्तार' की नीति की संज्ञा
प्रदान की जा सकती है, अर्थात् इस नीति में एक ओर तो आर्थिक विकास के लिए पर्याप्त
वित्त प्रबन्ध किया गया तथा दूसरी ओर
कीमत स्थिरता बनाए रखने का प्रयास किया गया।
देश
में आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक ने साख विस्तार
के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। कृषि और औद्योगिक क्षेत्र को वित्त सुलभ कराने
के उद्देश्य से रिजर्व बैंक ने अनेक विशिष्ट एवं विकास वित्त संस्थाओं की स्थापना
कराने में सहयोग प्रदान किया है। सहकारी संस्थाओं तथा लघु उद्योगों के विकास हेतु
विशेष रूप से साख का प्रबन्ध किया है। भारत ने निर्यात बढ़ाने तथा उसके लिए
पर्याप्त वित्त की व्यवस्था हेतु रिजर्व बैंक ने सराहनीय कार्य किया है।
प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों के लिए रिजर्व बैंक की नीति उदारतापूर्ण रही है।
सरकारी प्रतिभूतियों को विभेदात्मक आश्रय प्रदान करके सार्वजनिक क्षेत्र का
विस्तार करने में सहयोग दिया है। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति न केवल आर्थिक विकास
के लिए विनियोग प्रोत्साहित करने के लिए प्रयत्नशील रही है, बल्कि ब्याज दरो मे
आवश्यक वृद्धि करके बचतों को प्रोत्साहित करने की भी रही है। इस तरह रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया पूर्वापेक्षा और अधिक स्पष्ट एवं प्रगतिशील भूमिका निभाते हुए देश के नियोजित आर्थिक विकास हेतु प्रयासरत है।
स्थिरता के साथ आर्थिक विकास के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु
विभिन्न उपायों द्वारा बैंक साख
की मात्रा एवं दिशा को लगातार नियमन हेतु रिजर्व बैंक द्वारा प्रभावी मौद्रिक
उपायों को लागू किया गया है। देश में वाणिज्य बैंकों की साख मुद्रा की सृजन क्षमता
पर अधिक नियंत्रण रखने तथा आर्थिक नियोजन के सन्दर्भ में बैंकों की अन्य क्रियाओं का
नियमन करने के उद्देश्य से बैंकिंग नियमन अधिनियम 1949 के अन्तर्गत रिजर्व बैंक को कुछ
विशेष अधिकार प्रदान किए गए है। इस अधिनियम ने भारत में बैंक साख के नियमन एवं नियन्त्रण
हेतु रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया को एकाधिकार प्रदान किया है। बैकिंग नियमन अधिनियम
1949 के अन्तर्गत रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को ऋण नीति का निर्धारण करता है। उन
अमानती प्रतिभूतियों से सम्बन्धित कागजात का निर्धारण करता है जिनके बदले व्यापारिक
बैंकों को ऋण प्रदान किए जाते है, उन अधिकतम एवं न्यूनतम ब्याज की दरी को निर्धारित
करता है जो वाणिज्यिक बैंक ग्राहकों को दिए गए ऋणों पर प्राप्त करते है। वाणिज्यिक
बैंकों द्वारा जमाकर्त्ताओं को उनकी जमाओं पर दी जाने वाली ब्याज की अधिकतम दरो तथा उस विशुद्ध नकदी अनुपात का निर्धारण
करता है जिसे रखकर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा बैंक दर पर रिजर्व बैंक से उधार लिया जा
सकता है। इसके अतिरिक्त रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया सभी वाणिज्यिक बैंको अथवा किसी विशेष
वाणिज्यिक बैंक को विशिष्ट क्षेत्रों में निवेश करने से रोक सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था के त्वरित एवं बहुविधि
विकास की दृष्टि से साख एवं मुद्रा की आपूर्ति के विस्तार को यथार्थपरक बनाते हुए इस
तथ्य पर भी विचार करता है कि मुद्रा तथा साख के अत्यधिक विस्तार से स्फीतिकारी प्रवृत्तियां
उत्पन्न होती है जो अन्ततः अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा बनती है। भारतीय
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति कुल मिलाकर इस वास्तविकता पर आधारित है जिसके अन्तर्गत
रिजर्व बैंक सदैव सतर्क रहते हुए उस समय वाणिज्यिक बैंको को अतिरिक्त साख मुद्रा सृजन
करने को प्रेरित करता है जब देश में बैंक साख की
यथार्थ माँग की पूर्ति कम रहती है। इसके विपरीत बैंक साख की मात्रा बहुत होने पर साख
मुद्रा के नियन्त्रण हेतु उपयुक्त उपायों का प्रयोग करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक एवं साख नीति 2004-05
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 26 अक्टूबर 2004 को वर्ष
2004-05 की दूसरी छमाही के लिए घोषित ऋण एवं मौद्रिक नीति
के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित है-
(1) बैंक दर तथा नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को क्रमशः 6% तथा
5%. पर अपरिवर्तित रखा गया है। रेपो दर में 0.25% की वृद्धि कर 4.75% कर दिया गया है।
(2) वर्ष 2004-05 में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति
दर 6.5% अनुमानित है, जबकि इससे पहले 5% अनुमानित था।
(3)
वर्ष 2004-05 में आर्थिक विकास दर
6 से 6.5% रहेगी, जबकि इससे पहले 6.5 से 7% अनुमानित थी। बैंक ने इसके लिए अपर्याप्त मानसून तथा कुछ
हद तक तेल कीमतों में तेजी एवं उतार चढ़ाव को जिम्मेवार ठहराया है।
(4) औद्योगिक उत्पादन
के बेहतर परिदृश्य एवं निर्यात में उत्साहपूर्ण माहौल का विकास दर का सकरात्मक असर
पड़ने की सम्भावना है।
(5) गैर खाद्य ऋण
की विकास दर अपेक्षाकृत अधिक रहने का अनुमान लगाया है। बेहतर ऋण माँग तथा अधिक पूँजी पर्याप्तता को ध्यान में रखते हुए
रिजर्व बैंक ने मुद्रा आपूर्ति (M3) में अधिक विकास की सम्भावना को खारिज नहीं किया है।
(6) देश में मौसम के हिसाब से निर्धारित 36 सब डिवीजन में
से 13 में वर्षा की कमी के कारण खरीफ की प्रमुख फसलों का उत्पादन वर्ष 2003-04 से कम
रहेगा। हालांकि रबी की फसले अच्छी रहने की सम्भावना है पर वर्ष 2004-05 में कृषि उत्पादन
में 3% की
वृद्धि का लक्ष्य नहीं हासिल हो सकेगा।
(7) औद्योगिक उत्पादन में अप्रैल से अगस्त 2004 तक 7.9% की
वृद्धि हुई जबकि यह दर वर्ष 2003-04 की इसी अवधि में 5.9%. रही थी। अप्रैल से सितम्बर
2003 के बीच निर्यात में वृद्धि की दर 8.1% रही थी जबकि वर्ष 2004-05 की इसी अवधि में
यह दर 24.4% दर्ज की गई है। इस तरह जीडीपी में वृद्धि के अनुमान में कमी आने के बावजूद
भारत विश्व के उन देशों की पंक्ति में बना रहेगा जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही
है।
(8) रिजर्व बैंक ने एक कार्यदल के गठन की घोषणा की है।
यह कार्यदल क्रेडिट कार्ड ग्राहकों
के हितों की सुरक्षा के लिए उठाए
जाने वाले आवश्यक उपायों के बारे में देगा। यह कार्यदल मुख्य रूप से यह सुझाव देगा
कि प्लास्टिक मनी द्वारा ग्राहकों के हितों की सुरक्षा किस प्रकार से की जा सकती है।
साथ ही कार्डो के सुरक्षित उपयोग को किस तरीके से बढ़ावा दिया जा सकता है, इसका सुझाव
भी कार्यदल देगा।
(9) रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार को प्रभावी और सक्षम बनाने
के लिए कई नए उपायों की घोषणा की है। इसके अन्तर्गत गैर बैंकिंग कम्पनियों की ओर से
कॉल मनी मार्केट में ऋण देने की सीमा को घटा दिया गया है। वर्तमान समय में इन्हें वर्ष 2000-01 के दौरान
प्रतिदिन औसत उधारी का 45% काल मनी मार्केट में उधार देने की सुविधा है। इसे आगामी
8 जनवरी
2005 से घटाकर 30% करने की बात
कही गई है।
(10) अब 100% निर्यातमूलक इकाइयो हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर टेक्नॉलॉजी पार्क और जैव-तकनीकी पार्क
स्कीमो के अन्तर्गत स्थापित इकाइयों के लिए निर्यात आय को स्वदेश लाने की अवधि छह माह
के बजाय पूरे 12 माह होगी। निर्यात आय को स्वदेश लाने की यह सुविधा अभी तक सिर्फ विशेष दर्जा प्राप्त
निर्यातको को ही मिल पा रही थी।
(11) रिजर्व बैंक ने हमेशा से चिन्ता का विषय बनी कारोबारी
लागत को कम करने की दिशा में भी कदम उठाया है। इसके अन्तर्गत नीति में निर्यातको की
कारोबारी लागत को घटाने के लिए नया सर्वेक्षण
करने की घोषणा की गई है। हाल ही में दी
गई विभिन्न प्रकार की भारी रियायतो और प्रक्रियाओ के सरलीकरण को ध्यान में रखते हुए
इस बात का पता लगाया जाएगा कि इनके जरिए कारोबारी लागत को कम करने की दिशा में कोई
प्रभाव पड़ा है अथवा नहीं। एक्जिम बैंक की ओर से किए गए 10 उत्पाद क्षेत्रों के एक
सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि निर्यातको की कारोबारी लागत निर्यात आय के 10
से 15% के स्तर से घटकर एक से 10% के बीच
ही रह गई है।
(12)
रिजर्व बैंक ने लघु उद्योग इकाइयों के लिए कंपोजिट लोन अर्थात
संयुक्त ऋण
सीमा को 50 लाख रुपए से बढ़ाकर एक करोड़ रूपये कर दिया है। इसे संयुक्त ऋण इसलिए कहा जाता है, क्योंकि
इसमें स्थायी परिसम्पत्तियों के साथ ही कार्यशील पूंजी के लिए भी ऋण दिया जाता है।
(13)
मझोले उपक्रमों के लिए जल्दी ही ऋण
पुनर्गठन तन्त्र
कार्यान्वित किया जाएगा। इस सन्दर्भ में जी. श्रीनिवासन की
अध्यक्षता में गठित विशेष समूह जल्दी ही अपनी रिपोर्ट सौंपने वाला है। इस पर सार्वजनिक
राय आमन्त्रित की जाएगी।
यह समूह कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन समूह की तर्ज पर गठित किया
गया था। इसमे सिडबी
और अन्य वाणिज्यिक बैंकों के प्रतिनिधियों को शामिल किया
गया है। मझोले उपक्रमों की यह शिकायत रही है कि उन्हें न तो लघु इकाइयों को मिल रही
सुविधाएं हासिल हो पा रही है और न ही कॉरपोरेट जगत को हासिल हो रहे लाभ ही मिल पा रहे
है।
(14)
लघु उद्योगों को मिलने वाले ऋणों
के प्रतिभूतिकरण को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाया गया है। इसके अन्तर्गत लघु उद्योग
को ऋण
देने से सम्बन्धित प्रत्याभूत परिसम्पत्ति यानी सिक्यूरिटाइज्ड असेट्स में बैंको के
निवेश को लघु उद्योगो को दिया गया ऋण माना जाएगा। यही नहीं इसे प्राथमिक क्षेत्र के
ऋण आवण्टन का दर्जा भी
हासिल होगा। इससे लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण आवण्टन के लिए संचालित सरकारी
कार्यक्रमो को मजबूती मिल सकेगी।
(15)
ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में स्वरोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए स्वसहायता
समूहो (सेल्फ हेल्फ ग्रुप) को सहायता बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए जा रहे है।
(16)
रिजर्व बैंक ने सभी बैंको को निर्देश दिया है कि वे व्यास समिति की अनुशंसाओं को मार्च
2007 तक लागू करे जिसके अन्तर्गत उन्हें उनके कुल अग्रिम का 40% लघु एवं सीमान्त किसानों
को देना होगा।
मुद्रा और बैंकिंग
व्यापारिक बैंक, अर्थ एवं कार्य | Commercial Bank Meaning, Definition and Functions
व्यापारिक बैंकों की विनियोग नीति [INVESTMENT POLICY OF COMMERCIAL BANKS]
लंदन मुद्रा बाजार एवं न्यूयार्क बाजार से इसकी तुलना
भारतीय मुद्रा बाजार (Indian Money Market)
कृषि विकास में रिजर्व बैंक की भूमिका (Role of Reserve Bank in Agriculture development)