12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 गद्य खंड पाठ-8 यथास्मै रोचते विश्वम्

12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 गद्य खंड पाठ-8 यथास्मै रोचते विश्वम्

 12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 गद्य खंड पाठ-8 यथास्मै रोचते विश्वम्

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

Hindi Elective

गद्य खंड पाठ-8 यथास्मै रोचते विश्वम्

लेखक परिचय

रामविलास शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के ऊंचगांव- सानी गांव में हुआ था। रामविलास शर्मा आलोचक, भाषा शास्त्री, समाज चिंतक और इतिहासवेत्ता रहे हैं। इनकी कविताएं अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक में संकलित है। रामविलास शर्मा ने आधुनिक हिंदी साहित्य का विवेचन और मूल्यांकन करते हुए हिंदी की प्रगतिशील आलोचना का मार्गदर्शन किया। इनके अधिकांश निबंध विराम चिन्ह नाम की पुस्तक में संग्रहित है। निराला की साहित्य साधना पुस्तक पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनकी कुर्तियां है- भारतेंदु और उनका युग, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, प्रेमचंद और उनका युग, निराला की साहित्य साधना, भाषा और समाज, इतिहास दर्शन।

पाठ परिचय

यथास्मै रोचते विश्वम्' नामक निबंध उनके निबंध संग्रह विराम चिन्ह से लिया गया है। इसमें उन्होंने कवि की तुलना प्रजापति से करते हुए उसे उसके कर्म के प्रति सचेत किया है। लेखक के अनुसार साहित्य जहां एक ओर मनुष्य को मानसिक विश्रांति प्रदान करता है। वहीं उसे उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा भी देता है। सामाजिक प्रतिबद्धता साहित्य की कसौटी है। 15वीं शताब्दी से आज तक के साहित्य के अच्छे मूल्यांकन के लिए रामविलास जी ने इसी जनवादी साहित्य चेतना को मान्यता दी है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से क्यों की है ?

उत्तर- प्रजापति या ब्रह्मा सृष्टिकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। इस विश्व की रचना उनके अलौकिक प्रकाश से संभव हुई है। उसी प्रकार कवि भी रचना के माध्यम से एक नये समाज के सृष्टि करता है। प्रजापति जहां जगत का निर्माता है। वहीं कवि अपने साहित्य का निर्माता है। वह इस संसार से असंतुष्ट होकर नवीन समाज की सृष्टि की संकल्पना देता है। उसकी सृष्टि समाज को नई दिशा प्रदान करती है। भविष्य को परिवर्तित करने के लिए अपनी रचना प्रक्रिया को विविध आयामों से आवृत करता है। मानव को निर्माण का उत्साह देता है। इस रूप में वह प्रजापति की भूमिका में होता है। इसी कारण लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से की है।

प्रश्न 2. साहित्य समाज का दर्पण है। इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिए हैं?

उत्तर- साहित्य समाज का दर्पण है। इस प्रचलित धारणा का लेखक ने खंडन किया है। लेखक मानता है कि यदि साहित्य समाज का दर्पण है तो संसार में परिवर्तन की आवश्यकता कैसे महसूस कर सकता है ? दर्पण वही दिखाता है जैसा वास्तविकता में होता है। इस प्रकार साहित्य केवल समाज का प्रतिबिंब मात्र रह जाता है अथवा उसकी अनुकृति बन जाता है। जबकि रचनाकार का काम केवल समाज की व्यथा को सामने लाना नहीं है बल्कि वह असंतुष्ट होकर नवीन समाज के निर्माण की संकल्पना को सामने रखता है। और वर्तमान से आगे भविष्य के स्वरूप का परिचय देता है। साहित्य समाज का दर्पण नहीं बल्कि मार्गदर्शक है।

प्रश्न 3. दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि का क्या उद्देश्य है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- दुर्बल गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि का उद्देश्य यह है कि वह समाज में घटित हो रही घटनाओं से प्रेरित होकर तत्कालीन समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहता है। जो सभी के लिए अनुकरणीय हो। जिन रेखाओं और रंगों से कवि चित्र बनाता है। उसके चारों ओर यथार्थ जीवन में बिखरे होते हैं। उसमें चमकीले रंग और सुघर रूप ही नहीं बल्कि उस चित्र के पीछे भाग में चित्रित काली छायाएं भी वह अपने वास्तविक जीवन से लेता है। तुलसीदास जी ने एक आदर्श की स्थापना के लिए भगवान राम के चरित्र को चुना। जो गुणवान, शौर्यवान, कृतज्ञ, सत्यवाक्य, चरित्रवान, दयावान, विद्वान, सामर्थ्य और प्रियदर्शन थे। राम के साथ यदि वे रावण का चित्र न खींचते अर्थात् रावण की बुराइयों का वर्णन न करें तो गुणवान, वीर्यवान, कृतज्ञ, सत्यवाक्य आदि गुणों से युक्त राम का चरित्र फीका हो जाए एवं उनके गुणों के प्रकाशित होने का अवसर ही न आए। भगवान राम के रूप में उन्होंने तत्कालीन समाज के सामने जीवन मूल्यों की स्थापना की और जनता को उन्हीं के गुणों पर चलने के लिए प्रेरित किया है। जिससे समाज का हित हो सके। इस प्रकार सभी गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे जनकल्याण की भावना निहित होती है।

प्रश्न 4. साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं है वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर- साहित्य का उद्देश्य मनुष्य को सांत्वना या सहानुभूति देना एवं उसका मनोरंजन करना मात्र नहीं है बल्कि यह दुखी मानव को उसके दुखों से निकालकर नवनिर्माण की प्रेरणा देता है। रचना में भविष्य की संकल्पना को स्थान देता है। यहां केवल मनुष्य से सुख दुख की बात नहीं होती बल्कि आशा का एक स्वर भी है। साहित्य दुखों से हार न मानकर आगे बढ़ने की प्रेरणा तथा उत्साह प्रदान करता है। वस्तुतः साहित्य जीवन की असंगत लहरों तथा परिस्थितियों से टूटे मनुष्य को शांति ही नहीं देता बल्कि उसे मुट्ठी तान कर हवा में लहराते विरोध एवं विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए आगे चलते जाने को प्रेरित भी करता है।

प्रश्न 5. मानव संबंधों से परे साहित्य नहीं है। इस कथन की समीक्षा कीजिए ?

उत्तर- मनुष्य तथा समाज ही रचनाकार के लिए साहित्य का विषय बनते हैं। समाज का सत्य असत्य मनुष्य के जीवन से प्रभावी रूप से जुड़ा होता है। ईश्वर को आधार बनाकर लिखा गया साहित्य भी किसी ना किसी रूप में समाज से जुड़ा होता है। परी कथाएं तथा पशुओं को पात्र बनाकर रचित कथाएं भी अंततः मनुष्य की जीवन प्रवृत्तियों को ही चित्रित करती हैं। साहित्य में मानव का असंतोष है। नव निर्माण की आकांक्षा है। यदि त्रासदी है तो इससे निकलने की तड़प भी है। मानव जीवन की यह सब क्रियाएं ही साहित्य को जीवंत बनाती हैं। तभी लेखक ने कहा कि साहित्य मानव संबंधों से परे नहीं है।

प्रश्न 6. पंद्रहवीं सोलहवीं सदी में हिंदी साहित्य ने मानव जीवन के विकास में क्या भूमिका निभाई ?

उत्तर- पंद्रहवीं सोलहवीं शताब्दी में मानव जीवन को हिंदी साहित्य ने अत्यधिक प्रभावित किया। मनुष्य को परिभाषित करते हुए इस समय के रचनाकारों ने मनुष्यत्व को भी परिभाषित किया। सामंती पिंजरे में बंधे मानव जीवन की मुक्ति के लिए उसने वर्ण और धर्म के शिकंजे पर प्रहार किया। उनका ईश्वर मानवीय चेतना में निबद्ध था। मानव जीवन की शोषण और पीड़ा से मुक्ति की कामना करते हुए तत्कालीन रचनाकारों ने वर्णं तथा धर्म की परिधि को नकारा। नानक, मीरा, कबीर, सूर, तुलसी, चंडीदास, तिरुवल्लुवर इत्यादि कवियों ने मानव संबंधों में ऊंच-नीच के भाव को धिक्कार कर नए जीवन की आशा का संचार किया। इन कवियों की वाणी ने पीड़ित जनता के मर्म को स्पर्श कर उसे नए जीवन के लिए बटोरा, आशा दी, संगठित किया और जीवन को बदलने के लिए संघर्ष को आमंत्रित भी किया। जनता के संघर्ष को उत्प्रेरित करने में पंद्रहवीं सोलहवीं सदी के हिंदी साहित्य का योगदान महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 7. साहित्य के पांचजन्य' से लेखक का क्या तात्पर्य है ? साहित्य का पांचजन्य मनुष्य को क्या प्रेरणा देता है?

उत्तर- पांचजन्य कृष्ण के शंख को कहा जाता है। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन मोह माया से ग्रस्त होकर अपने संबंधियों के साथ युद्ध करना नहीं चाहते थे लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी शंख ध्वनि से उनकी उदासीनता को समाप्त किया। साहित्य ऐसा ही पांचजन्य है जो मनुष्य की उदासीनता को समाप्त कर उसे जीवन के प्रति संवेदनशील बनाता है। यह मनुष्य को भाग्य के सहारे बैठने के बदले कर्म करने के लिए प्रेरित करता है वह कायरों और पराभव प्रेमियों को ललकारता है और जीवन संघर्ष के लिए तत्पर होने का संदेश देता है।

प्रश्न 8. साहित्यकार के लिए सुष्टा तथा दृष्टा होना अत्यंत अनिवार्य है क्यों और कैसे?

उत्तर- साहित्य का अर्थ है सबके हित के लिए या सब के साथ - चलने वाला साहित्यकार प्रजापति के समान सृष्टि की रचना करता है। यह वर्तमान से असंतुष्ट होकर वांछित विश्व के निर्माण की प्रक्रिया को संचालित करता है। इस प्रकार सृष्टा की भूमिका में होता है। साहित्यकार के पांव वर्तमान की धरती पर टिके होते हैं। यथार्थ को वह जीता है यानी अपने परिवेश का अनुभव करता है किंतु उसकी दृष्टि भविष्य पर लगी रहती है। वह आने वाले युर्गों की रूपरेखा भी प्रस्तुत करता है। इस प्रकार साहित्यकार दृष्टा होता है। इस कारण साहित्यकार के लिए सृष्टा तथा दृष्टा होना अनिवार्य है।

प्रश्न 9. कवि पुरोहित के रूप में साहित्यकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर- कवि पुरोहित के रूप में साहित्यकार की भूमिका अत्यंत विशिष्ट होती है। वह कवि पुरोहित के रूप में समाज कल्याण और लोकमंगल के लिए प्रयत्नशील होता है। वह स्वांत सुखाय के लिए सृजन नहीं करता। बल्कि लोक कल्याण के लिए करता है। जो साहित्यकार इन गुणों को अपना लेता है। वही साहित्य को उन्नत और समृद्ध बना कर हमारे जातीय सम्मान की रक्षा कर सकते हैं। ऐसे साहित्यकार समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं। देशभक्ति की भावना प्रबल करते हैं। जनता को निरंतर संघर्ष करते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

प्रश्न 10. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ?

(क) कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती हम उनमें अपनी ज्यों की त्यों आकृति भले ही ना देखें पर ऐसी आकृति जरूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है जैसी आकृति हम बनना चाहते हैं।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां डॉ रामविलास शर्मा द्वारा रचित 'विराम चिन्ह निबंध संग्रह में संकलित यथास्मै रोचते विश्वम् शीर्षक निबंध से ली गई हैं। लेखक कवि की दृष्टि को निराधार न मानकर उसे सृष्टि के आदर्श रूप में देखता है। जिसका यहां वर्णन किया गया है।

व्याख्या- लेखक कहता है कि कवि अपनी रचना सोद्देश्य करता है। वह अपनी रचना के माध्यम से जो कुछ कहना चाहता है। वह हमारी अंतरात्मा की ध्वनि प्रतीत होती है। लेखक कहता है कवि द्वारा सृष्टि के संबंध में की गई संकल्पना पाठक को या समाज को पूर्णता वैसी ना दिखे जिसकी वे कल्पना करते हैं किंतु समाज की ऐसी संकल्पना या कृति अवश्य दिखेगी जो उन्हें भी प्रिय होगी और जैसा वे समाज को बनाना चाहते भी हैं।

(ख) प्रजापति कभी गंभीर यथार्थवादी होता है ऐसा यथार्थवादी जिसके पांव वर्तमान की धरती पर है और आंखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई है।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां निबंध यथास्मै रोचते विश्वम' का अंश है। इस निबंध के रचनाकार डॉ रामविलास शर्मा है। लेखक का ऐसा मानना है कि कवि वर्तमान व भविष्य में सामंजस्य स्थापित करने के लिए तत्पर रहता है।

व्याख्या- लेखक कहता है कि कवि अपने अतीत में घटी घटनाओं पर नजर रखता है। वह उनसे सबक लेकर उसके प्रति सचेत होकर ही वह गंभीर यथार्थवादी होता है। ऐसा यथार्थवादी जो वास्तविकता में तो वर्तमान के धरातल पर खड़ा होता है लेकिन साथ ही उसकी आंखें अर्थात् उसका लक्ष्य भविष्य को सुख व समृद्धि से परिपूर्ण बनाने के लिए कल्पनाशील होकर भविष्य के क्षितिज पर टिकी होती है।

(ग) इसके सामने निरुदेश्य कला, विकृत कामवासनाएं, अहंकार और व्यक्तिवाद, निराशा और पराजय के सिद्धांत वैसे नहीं ठहरते जैसे सूर्य के सामने अंधकार।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां निबंध यथास्मै रोचते विश्वम का अंश है। इस निबंध के रचनाकार डॉ रामविलास शर्मा हैं। यहां पर लेखक ने पांचजन्य साहित्य का महत्व प्रतिपादित किया है।

व्याख्या- लेखक कहता है कि साहित्य की परंपरा अत्यधिक प्राचीन है। उसमें जीवन की वास्तविकता समाई हुई है। साहित्य के उद्धत गुणों से महत्वहीन कलाएं, मनुष्य की विकृत इच्छाएं, उसका दंभ, अहम् का भाव, निराशा, पराजय के डर की मानसिकता सभी उसी प्रकार समाप्त या नष्ट हो जाती है जैसे सूर्य के प्रकाश के समक्ष अंधकार।

परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवि को विश्व से असंतोष क्यों है ? वह अपनी संतुष्टि के लिए क्या करता है?

उत्तर- कवि को विश्व से असंतोष इसलिए है क्योंकि समाज और मानव संबंध अब वैसे नहीं रह गए हैं जैसे सृष्टिकर्ता ने बनाए थे वह अपनी संतुष्टि के लिए नए समाज की रचना अपने साहित्य और इच्छा के माध्यम से करता है। समाज में फैली विसंगतियों, अवगुणों और दुष्टचरित्रों का भी चित्रण करता है। वह अपनी कल्पना और इच्छा के अनुसार यथार्थ जीवन में से ऐसे पात्र चुनता है जो उसके आदर्शों को साकार रूप दे सके।

प्रश्न 2. यथास्मै रोचते विश्वम निबंध में लेखक ने किस तरह के लोगों को धिक्कारा है ?

उत्तर- यथास्मै रोचते विश्वम निबंध में लेखक ने उन लोगों को धिक्कारा है जो भारत भूमि में जन्म लेकर साहित्यकार होने का झूठा अभिमान करते हैं। वैसे तो ये लोग साहित्य में मानव की मुक्ति के गीत गाते हैं। परंतु व्यवहार में राज भक्ति दिखाकर भारतीय जनता को गुलामी और पतन का पाठ पढ़ाते हैं। उनका साहित्य केवल दर्पण है जिसमें वे समाज की नहीं बल्कि अपने मन की अहंकार पूर्ण विकृतियों को वाणी देते हैं।

प्रश्न 3. 'यथास्मै रोचते विश्वम' निबंध के आधार पर डॉ रामविलास शर्मा की भाषा शैली की विशेषताएं बताएं?

उत्तर- रामविलास शर्मा जी की भाषा स्पष्ट, विचार में गंभीरता तथा भाषा में सहजता है। संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ है। भाषा में प्रतीकात्मकता दिखाई देती है। कहीं-कहीं व्यंग्यात्मक तथा विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। मुहावरे के प्रयोग द्वारा अर्थ गांभीर्य में वृद्धि हुई है।

अति लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. रामविलास शर्मा जी ने अपने निबंध में कवि की तुलना प्रजापति से करते हुए क्या लिखा है?

उत्तर- रामविलास शर्मा जी ने अपने निबंध में कवि की तुलना प्रजापति से करते हुए लिखा है- यथास्मै रोचते विश्वम्।

प्रश्न 2. निराला की साहित्य साधना' पुस्तक के लिए रामविलास शर्मा को कौन सा पुरस्कार प्राप्त हुआ ?

उत्तर- निराला की साहित्य साधना पुस्तक के लिए रामविलास शर्मा को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।

प्रश्न 3. 'भाषा और समाज किसकी रचना है?

उत्तर- भाषा और समाज रामविलास शर्मा की रचना है।

प्रश्न 4. यूनानी विद्वान कला को जीवन की क्या मानते थे ?

उत्तर- यूनानी विद्वान कला को जीवन की नकल मानते थे।

प्रश्न 5. कौन थके हुए व्यक्ति के लिए विश्रांति ही नहीं है उसे आगे बढ़ने के लिए जागृत भी करता है ?

उत्तर- साहित्य थके हुए व्यक्ति के लिए विश्रांति ही नहीं है उसे आगे बढ़ने के लिए जागृत भी करता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. 'यथास्मै रोचते विश्वम्' के लेखक कौन है ?

1. रामविलास शर्मा

2. निर्मल वर्मा

3. भीष्म साहनी

4. रामचंद्र शुक्ल

2. 'यथास्मै रोचते विश्वम्' का अर्थ है ?

1. विश्व सुंदर है।

2. जैसा संसार है।

3. उपर्युक्त दोनों।

4. कवि को जैसे रुचता है वैसे ही संसार बदल देता है।

3. रामविलास शर्मा की प्रयोगवादी कविताओं को उनके द्वारा संपादित किस सप्तक में स्थान मिला ?

1. दूसरा सप्तक

2. तीसरा सप्तक

3. चार सप्तक

4. इनमें से कोई नहीं

4. 'यथास्मै रोचते विश्वम्' कहां से संकलित है ?

1. विराम चिन्ह

2. भाषा और समाज

3 इतिहास दर्शन

4. भारतीय संस्कृति

5. 'यथास्मै रोचते विश्वम्' कौन सी विधा है ?

1. कहानी

2. निबंध

3. कविता

4. नाटक

6. 'निराला की साहित्य साधना' कितने खंडों में है ?

1. 1

2. 2

3. 3

4. 4

7. किनके बारे में कहा जाता है कि वे कला को जीवन की नकल समझते थे ?

1. यूनानी विद्वान

2. चीनी विद्वान

3. राजस्थानी विद्वान

4. कोई नहीं

8. अपने चरित्र नायक के गुण गिना कर किसने नारद से पूछा ऐसा मनुष्य कौन है?

1. श्रीकृष्ण

2. राम

3. विश्वामित्र

4. वाल्मीकि

9. श्रीकृष्ण के शंख का क्या नाम है ?

1. पांचजन्य

2. दोजन्य

3. तीनजन्य

4. इनमें कोई नहीं

10. हैमलेट किसकी रचना है ?

1. विलियम सैम

2. जेम्स

3. शेक्सपियर

4. इनमें से कोई नहीं

11. कवि की तुलना किससे की गई है ?

1. राजा

2. प्रजापति

3. रंक

4. कोई नहीं

12. समाज के दृष्टा और नियामक के मानव विहग क्षुब्ध और रूद्ध स्वर को वाणी कौन देता है ?

1. समाज

2. विदुषी

3. कवि

4. ऋषि

13. 'यदि साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न होती। ये पंक्तियां किस पाठ की है ?

1 'यथास्मै रोचते विश्वम्

2. कुटज

3. जहां कोई वापसी नहीं

4. इनमें कोई नहीं

14. किसका पांचजन्य समर भूमि में उदासीनता का राग नहीं सुनाता ?

1. कवि

2. साहित्य

3. राजा

4. इनमें कोई नहीं

15. 'मानव संबंधों की दीवाल से ही हेलमेट की कवि सुलभ सहानुभूति टकराती है और शेक्सपियर एक महान ट्रेजडी की सृष्टि करता है। ये पंक्तियां किस पाठ की है ?

1. कुटज

2. भाषा और समाज

3. 'यथास्मै रोचते विश्वम्

4. इनमें कोई नहीं

JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

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