प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
Hindi Elective
गद्य खंड पाठ - 10 कुटज
लेखक परिचय
आधुनिक
हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट आलोचक तथा निबंधकार डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गांव आरत दुबे का छपरा में हुआ था। उनकी प्रारंभिक
शिक्षा गांव में हुई तथा उन्होंने उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से
प्राप्त की।
शांतिनिकेतन
में अध्यापन कार्य के दौरान द्विवेदी जी ने साहित्य का गहन अध्ययन किया, साथ ही
अनेक रचनाएं भी कीं। वे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत तथा बांग्ला भाषाओं के विद्वान
थे। सन् 1950 में वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने।
1952-53 में वे काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष थे। 1955 में वे प्रथम
राजभाषा आयोग के सदस्य राष्ट्रपति के नामिनी नियुक्त किए गए। 1967 में काशी हिंदू
विश्वविद्यालय में रेक्टर नियुक्त हुए। यहां से अवकाश ग्रहण करने पर वे भारत सरकार
की हिंदी विषयक अनेक योजनाओं से संबद्ध रहे।
आलोक
पर्व पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। भारत सरकार ने उन्हें
पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया।
द्विवेदी
जी का अध्ययन क्षेत्र बहुत व्यापक था। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, बांग्ला आदि
भाषाओं एवं इतिहास, दर्शन, संस्कृति, धर्म आदि विषयों में उनकी विशेष गति थी। इसी
कारण उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति की गहरी पैठ और विषय वैविध्य के दर्शन होते
हैं। वे परंपरा के साथ आधुनिक प्रगतिशील मूल्यों के समन्वय में विश्वास करते थे।
द्विवेदी जी की भाषा सरल और प्रांजल है। भाषा शैली की दृष्टि से उन्होंने हिंदी की
गद्य शैली को एक नया रूप दिया।
उनकी
महत्वपूर्ण रचनाएं हैं- अशोक के फूल, विचार और वितर्क, कल्पलता, कुटज, आलोक पर्व
(निबंध संकलना, चारुचंद्रलेख, बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, 'अनामदास का पोथा
(उपन्यास) सूर- साहित्य, कबीर, हिंदी साहित्य की भूमिका', 'कालिदास की लालित्य-
योजना (आलोचनात्मक ग्रंथ) उनकी सभी रचनाएं हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली के
ग्यारह खंडों में संकलित है।
पाठ परिचय
कुटज
हिमालय पर्वत की ऊंचाई पर सूखी शिलाओं के बीच उगने वाला एक जंगली पौधा है, जिसमें
फूल लगते हैं। इसी फूल की प्रकृति पर निबंध 'कुटज' लिखा गया है। कुटज में न विशेष
सौंदर्य है, न सुगंध, फिर भी लेखक ने उसमें मानव के लिए एक संदेश पाया है। कुटज
में अपराजेय जीवनशक्ति है, स्वावलंबन है, आत्मविश्वास है और विषम परिस्थितियों में
भी शान के साथ जीने की क्षमता है। वह समान भाव से सभी परिस्थितियों को
स्वीकारता है। सामान्य से सामान्य वस्तु में भी विशेष गुण हो सकते हैं यह जताना इस
निबंध का अभीष्ट है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कुटज को गाढ़े के साथी' क्यों कहा गया है?
उत्तर-
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने लेख कुटज में कुटज को 'गाढ़े के साथ' कहा है। इसका
कारण यह है कि हिमालय पर जहां कुटज वृक्ष पैदा होता है, वहां अन्य कोई वृक्ष पैदा नहीं
होता है। जब कभी इस क्षेत्र में पूजा अर्चना की आवश्यकता पड़ती है, तो भक्त मात्र कुटज
के फूल पर ही आश्रित होते हैं। लेखक ने अनेक रचनाओं के पात्रों को अपने-अपने ईष्ट के
प्रति कुटज के फूलों को अर्घ्य स्वरूप चढ़ाने की बात कही है। यदि उस क्षेत्र में कुटज
का फूल सुलभता से ना मिलता तो भक्तों को अपने प्रिय के प्रति अर्घ्य देने से वंचित
होना पड़ता। इसलिए लेखक ने कुटज को गाढ़े का साथी कहकर उसे सम्मान दिया है।
प्रश्न 2. 'नाम' क्यों बड़ा है? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखक ने नाम' को बड़ा माना है। उसके अनुसार नाम से ही किसी व्यक्ति, वस्तु, पदार्थ
आदि का ज्ञान होता है। जब तक नाम पता न हो तो रूप की पहचान करना असंभव है। कहने को
तो किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पदार्थ को सौ नाम दिए जा सकते हैं। परंतु, नाम इसलिए बड़ा
है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली हुई होती है। रूप तो व्यक्ति सत्य है, जबकि नाम समाज
सत्य है। लेखक के अनुसार नाम वह पद है, जिस पर समाज की मुहर लगी होती है इसीलिए लेखक
नाम को बड़ा मानता है।
प्रश्न 3. कुट, कुटज़ और कुटनी शब्दों का विश्लेषण कर उसमें आपसी संबंध
स्थापित कीजिए।
उत्तर-
लेखक ने कुटज के विषय में बताते हुए कुट, कुटज और कुटनी शब्दों का प्रयोग करते हुए
उनका अर्थ भी प्रस्तुत किया है। 'कुट' का अर्थ है- घड़ा और जो कुट अर्थात घड़ा से पैदा
हुआ हो उसे कुटज कहते हैं। मुनि अगस्त्य को कुटज कहते थे। कुटनी शब्द का अर्थ दासी
होता है। लेखक ने इन शब्दों के बीच संबंध दर्शाते हुए कहा है कि कुटीर का अर्थ घर होता
है और कुटीर में रहने के कारण दासी को कुटनी कहा गया है। अतः कुट, कुटनी और कुटज एक
ही मूल शब्द से उत्पन्न हुए हैं।
प्रश्न 4. कुटज किस प्रकार अपनी अपराजेय जीवन शक्ति की घोषणा करता है?
उत्तरः
कुटज अपने रूप और नाम दोनों के कारण अपराजेय जीवन-शक्ति की घोषणा करता है। वह आकर्षक
है। हिमालय पर यमराज के दारुण निश्वास के समान धधकते पहाड़ों में हरा-भरा तथा पुष्पित
कुटज अपनी मस्ती तथा मादक शोभा में जीता है। भाग्य से भी अधिक कठोर चट्टानों पर अज्ञात
जल स्रोत से जीवन ग्रहण कर कुटज अपनी जीवनी-शक्ति को दिशा देता है। उसकी अपराजेय जीवन-शक्ति
ही वातावरण को अपूर्व उल्लास से भर देती है। कुटज' जीवन को कठिन परिस्थितियों में भी
जीने की प्रेरणा से संचालित करने का उपदेश देता है। विरोधी और विपरीत परिस्थितियों
का डटकर सामना करना सिखाता है। इस प्रकार कुटज अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता
है।
प्रश्न 5. 'कुटज' हम सभी को क्या उपदेश देता है? टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः
कुटज हम सभी को उपदेश देते हुए कहता है कि यदि जीना चाहते हो, तो कठोर पाषाण को भेदकर,
पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य संग्रह करो, वायुमंडल को चूसकर झंझा-तूफान को रगड़कर
अपना प्राप्त वसूल लो, आकाश चुमकर अवकाश की लहरी में झूम कर उल्लास खींच लो। अर्थात
हम सभी को कुटज संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने
के लिए. अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार परिणाम प्राप्त करने के लिए हमें स्वयं
ही संघर्ष करना पड़ेगा, तभी हम सफल हो सकते हैं और दुनिया ऐसे ही कर्मठ लोगों को पूजती
है।
प्रश्न 6. कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तरः
कठोर जीवन पद्धति के बीच फूलों से लदा कुटज हमें विषम परिस्थितियों में जीना सिखाता
है। कुटज के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करते
हुए सदा मस्त रहना चाहिए। दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाना चाहिए। किसी से भयभीत नहीं
होना चाहिए, न किसी की झूठी प्रशंसा करनी चाहिए। अंधविश्वासी नहीं बनना चाहिए अपने
मन को अपने वश में करके जीना चाहिए तथा सदैव सफलता पाने का प्रयास करना चाहिए। अतः
कुटज मनुष्य को स्वाभिमान के साथ जीवन जीने व आत्मविश्वास से पूर्ण तथा निस्वार्थ होने
की शिक्षा देता है।
प्रश्न 7. कुटज क्या केवल जी रहा है- लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय
कमजोरियों पर टिप्पणी की है?
उत्तर-
लेखक प्रश्न करता है- कुटज क्या केवल जी रहा है? इस पंक्ति से यह प्रतिध्वनित होता
है कि कुटज केवल जी नहीं रहा। वह अपनी अपराजेय जीवन-शक्ति के बल पर आत्मविश्वास के
साथ आनंदित होकर जी रहा है। कुटज के माध्यम से लेखक मानवीय कमजोरियों पर टिप्पणी करता
हैं। स्वार्थ के बस में वह अपनी उन्नति के लिए अधिकारियों की खुशामद करता है, उनकी
चाटुकारिता में संलग्न रहता है। दूसरों के दुख में सुख पाता है। आत्मोन्नति के लिए
रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों जैसे उन्नति के लिए नीलम इत्यादि का सहारा लेता है। 'कुटज'
मनुष्य को स्वार्थ की सीमा से बाहर आने का मार्ग दिखलाता है। सूखी चट्टानों के बीच
पुष्पित कुटज निस्वार्थ नीरस वातावरण को आनंदित करता है। मनुष्यों की भांति दुर्बलताओं
की जकड़ में नहीं रहता।
प्रश्न 8. लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से
भी प्रचंड कोई न कोई शक्ति अवश्य है? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तरः
संसार में स्वार्थ एवं जिजीविषा से भी बढ़कर एक प्रचंड शक्ति है। लेखक मानता है कि
वह 'आत्मा' है। 'आत्मा' ईश्वर का एक अंश है। आत्मा शरीर तक ही सीमित नहीं होती। आत्मा
का स्वरूप सबके लिए न्यौछावर करने में पहचाना जाता है।
स्वयं
में सब और सब में स्वयं के समाहित करने से जहां समष्टि- बुद्धि को स्वरूप मिलता है,
वही पूर्ण सुख के आनंद का अनुभव होता है। मनुष्य को मनुष्य बनाने वाली शक्ति परमार्थ
है। वह हमें स्वार्थ से दूर करती है।
प्रश्न 9. कुटज पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'दुख और सुख तो मन के
विकल्प हैं।'
उत्तरः
कुटज वृक्ष के माध्यम से लेखक यह सिद्ध करता है कि दुख और सुख मानव मन के विकल्प है।
मनुष्य का मन जब उसके वश में होता है तो वह सुखी होता है। मन की परवशता उसके दुख का
कारण है। 'कुटज' विषम परिस्थितियों में भी पुष्पित है अर्थात उसका मन उसके वश में है।
वह अपने शर्तों पर जीवित है उसका मन दूसरे के बस में नहीं है।
उसके
पास आत्मविश्वास और अपराजेय जीवन शक्ति है, जिसके कारण वह सुखी है। मनुष्य भी इन्हीं
गुणों को आत्मसात कर सुखी हो सकता है। यह विकल्प मनुष्य को चुनना है कि वह सुख देने
वाले गुणों का आत्मसात करता है। या फिर उन दुर्बलताओं के साथ जीता है, जो दुख के कारण
हैं।
प्रश्न 10. निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
(क) कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं उनकी जड़ें काफी गहरी पैठी रहती
हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अलग गहवर से अपना भोग्य खींच लाते हैं।
(ख) रूप व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज
की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे सोशल सेक्शन कहा करते है। मेरा मन नाम
के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि- मानव की
चित्त गंगा में स्नात
(ग) रूप की तो बात ही क्या है! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित
यमराज के दारुण निःश्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के
चित्त से भी अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस
बना हुआ है।"
(घ) हृदयेनापराजितः कितना विशाल वह हृदय होगा जो सुख से दुख से प्रिय से,
अप्रिय से विचलित न होता होगा! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहां से मिली है यह
अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि।'
उत्तर-
(क) प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियां कुटज शीर्षक निबंध से अवतरित हैं। इसके लेखक
हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ऐसे व्यक्तियों पर टिप्पणी
करता है जो ऊपरी तौर पर बेशर्म दिखाई देते हैं, किंतु उनकी जिजीविषा अत्यंत गहरी होती
हैं।
व्याख्याः लेखक
के अनुसार कभी-कभी ऐसे लोग दिखाई देते हैं जो ऊपर से बेशर्म अर्थात् किसी भी परिस्थिति
से अप्रभावित दिखाई देते हैं। मान-अपमान, बेइज्जती होने पर भी उन्हें शर्म नहीं आती
परंतु उनमें जीवन जीने की बहुत बड़ी शक्ति निहित होती है, वे आंतरिक रूप से दृढ़ होते
हैं। वे लोग भी कुटज की तरह पत्थरों की छाती को चीरकर न जाने किस असीम गड्ढे से अपने
भोगने योग्य आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कर लेते हैं अर्थात् वे विषम परिस्थितियों से संघर्ष
करते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं और अपनी आंतरिक शक्ति के बल पर असंभव को
भी संभव कर दिखाते हैं। इस प्रकार उनमें उत्कृष्ट जीजिविषा होती है तथा वे मस्ती से
जीवन जीते हैं।
विशेष:
1.
लेखक ने मानव को कुटज के माध्यम से समभाव स्थिति में जीने का संदेश दिया है।
2.
कुटज अपराजेय जीवन-शक्ति स्वावलंबन, आत्मविश्वास और विषम परिस्थितियों में भी शान से
जीने का प्रतीक है।
3.
भाषा तत्सम शब्दावली युक्त है।
(ख)
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियां 'कुटज' शीर्षक निबंध से अवतरित हैं। यहां लेखक हजारी
प्रसाद द्विवेदी ने नाम और रूप की महत्व पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या: प्रस्तुत
पंक्तियों से लेखक का आशय है कि मनुष्य का रूप सौंदर्य उसकी आकृति और आकार-प्रकार उसके
अस्तित्व की पुष्टि करते हैं और व्यक्ति का नाम उसकी सामाजिक पहचान का प्रतीक होता
है। इसके साथ ही, नाम उस पद की भी अभिव्यक्ति कराता है जिसकी प्रतिष्ठा को समाज स्वीकार
करता है, जिसे समाज सत्यापित करता है। आधुनिक युग में शिक्षित लोग इसे सोशल सेक्शन
कहते हैं। लेखक भी उस वृक्ष के नाम को याद करने के लिए व्याकुल है, जिसका नाम उसे विस्मृत
हो गया है। लेखक उस नाम को याद रखना चाहता है, जो समाज की स्वीकृति, इतिहास का प्रभाव
तथा समष्टि की मानसिकता का हिस्सा है।
विशेष:
1.
रूप तथा नाम की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है।
(ग)
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियां 'कुटज' निबंध से अवतरित हैं। लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी
ने इसमें कुटज की अपराजेय जीवन शक्ति पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या: लेखक
के अनुसार, कुटज के सुंदर रूप का ही वर्णन क्यों किया जाए। उसका स्वरूप ही आकर्षक है।
ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी में जहां यमराज की सांस के समान तप्त हवाएं चल रही हैं।
यह वृक्ष अप्रभावित रूप में से स्थिर खड़ा है और हरा-भरा दिखाई दे रहा है। ऐसा प्रतीत
होता है। कि शिवालिक की इन सूखी चोटियों पर स्थित यह कुटज वातावरण की गर्मी से तनिक
भी प्रभावित नहीं होता। किसी दुष्ट व्यक्ति के हृदय से भी ज्यादा कठोर चट्टानों के
गर्भ रूपी पत्थरों के बंधन से रुके हुए अज्ञात जल स्रोतों से रस प्राप्त कर यह रस और
आनंद से परिपूर्ण है।
विशेष:
1.
लेखक ने कुटज वृक्ष की जिजीविषा की सराहना की है।
2.
कुटज समभाव में स्थित रहने का संदेश देता है।
3.
कुटज से हमें सीख मिलती है कि हम बाधाओं को हंसते हुए स्वीकारें और उनको पद-दलित करें।
4.
शैली वर्णनात्मक है।
(घ)
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां 'कुटज' शीर्षक निबंध से अवतरित हैं। लेखक हजारी
प्रसाद द्विवेदी ने इन पंक्तियों में कुटज की दृढ़ता और अपराजेय वृत्ति का चित्रण किया
है।
व्याख्या-
कुटज वृक्ष कभी दैन्यता को प्राप्त नहीं होता है। उसे देखकर सदैव यही लगता है कि उसने
अपने हृदय मन पर विजय पा ली है। कुटज सुख-दुख प्रिय-अप्रिय सभी को समान भाव से स्वीकारता
है। इतना ही नहीं वह विषम परिस्थितियों में भी सदा हरा भरा रहता है। वह कभी पराजित
सा दिखाई नहीं देता है। उसका हृदय सदा जीने के लिए उल्लास से भरा दिखाई देता है। लेखक
आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहता है कि न जाने कहां से कुटज को इतनी निडरता, किसी भी परिस्थिति
में हार न मानने वाला स्वभाव और अविचल जीवन दृष्टि प्राप्त हुई है अर्थात कुटज में
निडरता, अपराजित स्वभाव और अविचल जीवन दृष्टि विद्यमान है।
विशेष:
1.
लेखक ने कुटज की विशेषताओं के माध्यम से आम आदमी को संदेश दिया है।
2.
भाषा में काव्यात्मकता है।
3.
तत्सम शब्दावली का प्रयोग प्रभावी ढंग से किया गया है।
परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'आत्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियंभवति' का भावार्थ बताइए।
उत्तर-
ऋषि याज्ञवल्क्य अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश करते हैं कि सब कुछ इस दुनिया में स्वार्थ
के लिए है। पुत्र के लिए पुत्र प्रिय नहीं होता, पत्नी के लिए पत्नी प्रिया नहीं होती।
सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते हैं। भाव यह है कि यहां सब निजी स्वार्थ के लिए एक
दूसरे से जुड़े होते हैं।
प्रश्न 2. 'संस्कृत सर्वग्रासी भाषा है- लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर-
लेखक संस्कृत को सर्वव्यापी भाषा मानते हैं क्योंकि इस भाषा ने शब्दों के संग्रह में
कोई निषेध नहीं माना। इस भाषा में बहुत सारी नस्लों के शब्द आकर इसी के होकर रह गए
हैं।
प्रश्न 3. कुटज को उसकी विशेषताओं के आधार पर कौन-कौन से नाम दिए जा
सकते हैं?
उत्तर-
लेखक के अनुसार कुटज को उसकी विशेषताओं के आधार पर निम्नलिखित नाम दिए जा सकते हैं-
वनप्रभा, गिरिकांता, गिरिगौरव, धरती धकेल. अकुतोभय इत्यादि ।
प्रश्न 4. लेखक के अनुसार कब तक मनुष्य को पूर्ण सुख का आनंद नहीं प्राप्त
होता?
उत्तर-
लेखक के अनुसार अपने में सब तथा सब में आप इस तरह की एक समष्टि बुद्धि जब तक नहीं आती
उस समय तक पूर्ण सुख का आनंद नहीं प्राप्त होता ।
प्रश्न 5. कुटज हमें क्या सिखाता है?
उत्तर-
अपराजेय जीवनी-शक्ति का स्वामी कुटज नाम और रूप दोनों में अद्वितीय है। सूखी, नीरस
और कठोर चट्टानों के मध्य प्रतिकूल परिस्थितियों में जीते हुए भी वह पुष्पों से लदा
रहता है तथा अपने मूल नाम की हजारों वर्षों से रक्षा करता हुआ हमें भी जीवन का उद्देश्य
सिखाता रहता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. कुटज पाठ के लेखक कौन है ?
1. हजारी प्रसाद द्विवेदी
2.
प्रेमचंद
3.
रामविलास शर्मा
4.
विश्वनाथ त्रिपाठी
2. कुटज किस कोटि का निबंध है ?
1.
वैचारिक
2.
विवरणात्मक
3.
सांस्कृतिक
4. ललित
3. पृथ्वी का मानदंड किसे कहा गया है ?
1.
सतपुड़ा
2.
विंध्याचल
3. हिमालय
4.
अरावली
4. मेघदूत के रचनाकार कौन है?
1.
सूरदास
2. कालिदास
3.
तुलसीदास
4.
प्रेमचंद
5. यक्ष को किसने श्राप दिया था ?
1. कुबेर
2.
नारद
3.
इंद्र
4.
विश्वमित्र
6. यक्ष निर्वासित जीवन कहां व्यतीत करता था ?
1.
नीलगिरी
2. रामगिरी
3.
हिमालय
4.
धौलागिरी
7. कालिदास किस भाषा के कवि हैं ?
1. संस्कृत
2.
अरबी
3.
हिंदी
4.
उर्दू
8. यक्ष ने किसके माध्यम से अपने प्रिय को संदेश भेजा था ?
1.
नारद
2.
आकाशवाणी
3.
कालिदास
4. मेघों द्वारा
9. किस मुनि को कुटज भी कहा जाता है ?
1. अगस्त्य
2.
वशिष्ठ
3.
नारद
4.
पुलस्त
10. कुटज किस भाषा का शब्द है ?
1.
फारसी
2. संस्कृत
3.
असमिया
4. हिंदी
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||