परिचय
• ग्रामीण
क्षेत्रकों में कृषि आजीविका का मुख्य साधन है।
• ग्रामीण
विकास ही राष्ट्रीय विकास का केंद्र है क्योंकि भारत की दो तिहाई जनसंख्या कृषि पर
आश्रित है और उसकी उत्पादकता अभी भी उतनी ही है कि सब का निर्वाह नहीं हो सकता है।
• देश
की एक तिहाई जनता अभी भी घोर निर्धनता में रहती है।
ग्रामीण विकास क्या है ?
ग्रामीण विकास एक व्यापक शब्द है यह मुख्यता ग्रामीण
अर्थव्यवस्था के उन घटकों के विकास पर बल देता है जो अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण
विकास में पिछड़ गए हैं।
मानव संसाधनों का विकास जिसमें निम्नलिखित सम्मिलित है -
1. साक्षरता, विशेष कर नारी साक्षरता, शिक्षा और कौशल का
विकास।
2. स्वास्थ्य, जिसमें स्वच्छता और जन स्वास्थ्य दोनों शामिल
हैं।
3. भूमि-सुधार
4. प्रत्येक क्षेत्र के उत्पादक संसाधनों का विकास
5. आधारिक संरचना का विकास जैसे परिवहन सुविधाएं, बिजली,
सिंचाई कृषि अनुसंधान विस्तार और सूचना प्रसार
6.
निर्धनता निवारण और समाज के कमजोर वर्गों की जीवन दशाओं में महत्वपूर्ण सुधार के विशेष
उपाय ग्रामीण विकास का अर्थ होगा कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग जो कृषि एवं गैर कृषि गतिविधियों
में संलग्न हैं उन्हें उत्पादकता बढ़ाने में विशेष सहायता देनी होगी।
गैर
- कृषि उत्पाद क्रियाकलापों में जैसे खा। प्रसंस्करण स्वास्थ्य सुविधाओं के अधिक उपलब्धता,
घर और कार्यस्थल पर स्वच्छता संबंधी सुविधाएं तथा सभी के लिए शिक्षा को सर्वोच्च वरीयता
ताकि ग्रामीण विकास हो सके।
ग्रामीण क्षेत्रकों में साख और विपणन
साख- कृषि
अर्थव्यवस्था में कृषि कार्यों को करने के लिए पूंजी की आवश्यकता पड़ती है किसानों
की आय बहुत कम होती है वे कृषि कार्य में होने वाले खर्च को पूरा नहीं कर पाते हैं
इस कारण उन्हें साख (ऋण) की आवश्यकता पड़ती है।
किसानों
को साख या ऋण की आवश्यकता कृषि कार्यों के अतिरिक्त गैर कृषि कार्यों के लिए भी पड़ती
है।
कृषि
कार्य - बीज, उर्वरक, उपकरण, कीटनाशक दवाइयां, कुआं खोदने आदि के
लिए साख की आवश्यकता
गैर
कृषि कार्य- विवाह, धार्मिक, सामाजिक अनुष्ठान, मृत्युभोज
आदि।
भारतीय
कृषि के लिए साख (ऋण) का महत्व भारतीय किसान बहुत ही गरीब है उनके पास पूंजी की कमी
है तथा उन्हें कृषि से इतनी आय नहीं होती कि वह कृषि तथा अन्य आवश्यक खर्चों को पूरा
कर सकें इसलिए उन्हें (साख) ऋण की आवश्यकता पड़ती है।
महाजन,
व्यापारी, छोटे / सीमांत किसानों और भूमिहीन मजदूरों से बहुत ऊंची दर से ब्याज वसूलने
का काम करते थे जिससे कभी भी वे उनकी जाल से मुक्त नहीं हो पाते थे।
• भारत ने 1969 में सामाजिक बैंक का प्रारंभ
किया।
• भारत ने 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण
विकास बैंक नाबार्ड की स्थापना की। यह बैंक संपूर्ण ग्रामीण वित्त व्यवस्था के समन्वय
के लिए एक शीर्ष संस्थान है।
• केरल प्रांत में 1995 से महिलाओं की ओर
उन्मुख एक निर्धनता निवारण सामुदायिक कार्यक्रम 'कुटुंब श्री' चलाया जा रहा है, इसे
अब सदस्य संख्या और संगठित बचत के आधार पर एशिया का विशालतम अनौपचारिक बैंक माना जाता
है।
किसानों के साख संबंधी आवश्यकता
किसानों
को तीन प्रकार की साख की आवश्यकता पड़ती है।
1.
अल्पकालीन साख- किसानों को खाद, बीज, सिंचाई, मजदूरी, भोजन
आदि के लिए अल्पकालीन साख की आवश्यकता पड़ती है यह साख 6 महीने से लेकर 15 महीने तक
की अवधि के लिए होती है।
2.
मध्यकालीन साख- किसानों को महंगे औजार, पशु आदि खरीदने के लिए
मध्यकालीन साख की आवश्यकता पड़ती है, इस प्रकार की साख की अवधि 15 महीने से लेकर 5
वर्षों तक की होती हैं।
3.
दीर्घकालीन साख- किसानों को कुँआ, तालाब, बांध, मकान बनवाने
तथा भूमि की जल निकासी अधिक स्थाई सुधार करने कराने के लिए दीर्घकालीन साख की आवश्यकता
पड़ती है इस प्रकार के साथ 5 वर्षों से अधिक की होती है।
भारत
में ग्रामीण साख के स्रोत
1.
गैर संस्थागत साख
2.
महाजन
3.
रिश्तेदार, व्यापारी, तथा जमींदार
4.
संस्थागत साख
5.
सरकार
6.
सहकारी साख समितियां
7.
व्यवसायिक बैंक
8.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
9.
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक
10.
भूमि विकास बैंक
11.
अन्य वित्तीय संस्थाएं
गैर संस्थागत साख (Non Institutional credit)
1.
महाजन - पेशेवर महाजन किसानों को उधार देने का पेशा करते हैं और
साथ ही कृषि पदार्थों का व्यापार भी करते हैं। ये किसानों से अधिक ब्याज वसूलते हैं
और साथ ही उनसे कृषि उपजें बहुत कम दाम में खरीदते हैं।
2.
रिश्तेदार व्यापारी तथा जमींदार- किसान गांव के महाजनों के अतिरिक्त
रिश्तेदार व्यापारी तथा जमींदार से भी ऋण लेते हैं। यह लोग किसानों को बहुत
ऊंची ब्याज की दरों पर कर्ज देते हैं।
संस्थागत
साख-
जब विभिन्न संस्थाओं द्वारा किसानों को ऋण दि, जाते हैं तो उन्हें संस्थागत साख कहते
हैं। संस्थागत साख के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं -
1.
किसानों को गांव के महाजनों के चंगुल से बचाते हैं।
2.
किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त होती है।
संस्थागत साख के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं -
1.
सरकार - सरकार किसानों को कृषक ऋण कानून के अनुसार सामाजिक आवश्यकताओं
की पूर्ति के लिए ऋण देती है, जिसे फसल काटने पर चुकाना पड़ता है। इस कानून के अंतर्गत
केवल हल, बैल, बीज, खाद आदि खरीदने जैसे उत्पादक कार्यों के लिए ऋण दिया जाता है। कुछ
कारणों से देश की सरकारी ऋण लोकप्रिय नहीं हो पा, हैं-
1.
सरकारी सरकारी ऋण की मात्रा कम होती है जिससे किसानों की आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं।
2.
सरकारी विशेष उत्पादक कार्यों के लिए ही दि, जाते हैं जबकि महाजन सभी कार्यों के लिए
देते हैं।
2.
सहकारी साख समितियां- सहकारी साख समितियां किसानों को अल्पकालीन तथा
मध्यकालीन ऋण देती है इन समितियों द्वारा दि. गए ऋण उत्पादक कार्यों के लिए होते हैं
जैसे औजार, बीज, खाद खरीदने के लिए।
कृषि साख समितियां तीन स्तरों पर कार्य करते
हैं
सहकारी साख समितियां
(क) राज्य सहकारी बैंक- यह केंद्रीय सहकारी बैंकों अथवा प्राथमिक सहकारी साख समितियों
को ऋण
देते हैं
(ख) केंद्रीय सहकारी बैंक- ऋण देते हैं। यह प्राथमिक सहकारी साख समितियों को अल्पकालीन
एवं मध्यकालीन
(ग) प्राथमिक सहकारी साख समितियां - यह किसानों को ऋण देती हैं जो उनके प्रत्यक्ष संपर्क में
होती हैं।
3. व्यवसायिक बैंक (COMMERCIAL BANK)
व्यवसायिक बैंक से भी किसानों को ऋण मिलती है व्यवसायिक बैंकों
द्वारा किसानों को ऋण लेने में मुश्किल होती है जिसके कारण हैं -
A. व्यवसायिक बैंक अधिकतर गांव में ना होकर शहरों में स्थित
है।
B. व्यावसायिक बैंक जमानत (security) पर ही उधार देते हैं
और किसानों के पास पर्याप्त जमानत (security) नहीं होती है।
C. किसानों के पास उनकी फसल ही उनकी जमानत (security) होती
हैं लेकिन फसल की अनिश्चितता के कारण व्यवसायिक बैंकों उसे जमानत (security) के रूप
में स्वीकार नहीं करती है।
4. क्षेत्रीय
ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks)
इसकी स्थापना 2 अक्टूबर 1975 को व्यवसायिक बैंकों के पूरक
के रूप की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के ऋण संबंधी आवश्यकताओं पूरा करने
के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक प्रारंभ की गई। इसके कार्य-
• गांव के कमजोर वर्ग के किसानों मजदूरों कारीगरों व्यापारियों
आदि को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।
• ये किसी राज्य के एक या अधिक जिलों तक सीमित रहते हैं।
5. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक
(नाबार्ड) National Bank for Agriculture and Rural
Development (NABARD)
कृषि तथा इसके संबंध कार्यों एवं ऋण की समुचित व्यवस्था करने
के लिए छठी योजना में नाबार्ड की स्थापना 12 जुलाई 1982 में की गयी। इसके कार्य निम्नलिखित
हैं-
1. यह राज्य सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, भूमि
विकास बैंकों तथा रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदित अन्य वित्तीय संस्थाओं को अल्पकालीन,
मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण देती है।
2. यह क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों के निरीक्षण
का भी कार्य करता है।
3. यह केंद्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित किसी भी संस्था को
दीर्घकालीन ऋण दे सकता है।
6. भूमि विकास बैंक
किसानों की भूमि को बंधक रखकर उनके कार्यों के लिए दीर्घकालीन
ऋण देते हैं जैसे पुराने के भुगतान के लिए जमीन खरीदने के लिए मकान बनाने के लिए मकान
और जमीन को छुड़ाने के लिए भूमि विकास बैंक बहुत कम ब्याज की दरों पर ऋण देते हैं।
7. अन्य वितीय संस्थाएं
A.
कृषि वित्त निगम इसकी स्थापना 1968 में सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी के रूप में की गई।
B.
लीड बैंक योजना रिजर्व बैंक ने 1969 में समुचित विकास के लिए एक लीड बैंक योजना तैयार
की।
C.
लघु कृषि विकास एजेंसी छोटे-छोटे किसानों को साख की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए
देश के 46 चुने हुए जिलों में लघु कृषक विकास एजेंसी की स्थापना की है।
Note-
औपचारिक साख व्यवस्था में रह गई कमियों को दूर करते हुए स्वयं सहायता समूह
(S.H.G.) का भी ग्रामीण साख व्यवस्था में जन्म हुआ। मार्च 2003 के अंत तक लगभग 7 (सात)
लाख साख प्रदान करने वाले स्वयं सहायता समूह देश के नेतृत्व में कार्य कर रहे थे इस
प्रकार के साथ उपलब्धता को अति लघु साख कार्यक्रम कहा जाता है।
ग्रामीण बैंकिंग एक आलोचनात्मक मूल्यांकन :
ग्रामीण साख की मात्रा
एवं महत्व में वृद्धि हो रही हैं फिर भी इसमें कुछ कमियां हैं जो इस प्रकार से हैं-
1. संस्थागत साख से गांव के लोगों को कम लाभ हुआ क्योंकि
संस्थागत साख अधिकतर धनी एवं मध्यम वर्ग में किसानों के द्वारा ही प्रयोग में लाया
जाता है।
2. जो साख सुविधाएं केवल सीमांत एवं छोटे किसानों के लिए
हैं वह भी उन तक नहीं पहुंच पाते क्योंकि संपन्न एवं बड़े किसान द्वारा वे हड़प ली
जाती है।
3.
किसानों को पर्याप्त एवं सस्ते परिवहन
की सुविधाएं मिलनी चाहिए ताकि वे अपनी उपज को गांव में ना बेचकर बाजारों एवं मंडी उनकी
सके।
कृषि विपणन वह प्रक्रिया है जिससे देशभर में उत्पादित कृषि
पदार्थों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन पैकिंग वर्गीकरण और वितरण आदि किया
जाता है।
कृषि विपणन के विभिन्न पहलुओं को सुधारने के लिए चार प्रमुख
उपाय-
1. किसानों तथा अंतिम उपभोक्ताओं के बीच मध्यस्थों की संख्या
कम से कम होनी चाहिए।
2. किसानों को अपने वजन के भंडारण की सुविधा प्राप्त होनी
चाहिए ताकि भंडारण की क्षमता बढ़े और उचित समय पर अपनी उपज उनकी बिक्री कर वे लाभ प्राप्त
कर सकें।
3. किसानों को कृषि उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य
कीमत सुनिश्चित करना चाहिए।
वैकल्पिक क्रय विक्रय माध्यमों का प्रादुर्भाव
1. यदि किसान स्वयं ही उपभोक्ता को अपना उत्पादन बेच सके
तो उसे अधिक आय प्राप्त होगी। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अपनी मंडी, पुणे की हारपसर
मंडी, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की नामक फल सब्जी मंडी या तथा तमिलनाडु की उझावरमंडी
के कृषक बाजार इस प्रकार से विकसित हो रहे हैं।
2. अनेक राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय त्वरित खाद पदार्थ बनाने
वाली कंपनियां भी अब किसानों के साथ कृषि उत्पाद की खेती के लिए उत्पादकों से अनुबंध
कर रहे हैं यह किसानों को उचित बीज तथा अन्य आगत उपलब्ध कराती हैं।
उत्पादक गतिविधियों का विविधीकरण
उत्पादक गतिविधियों के विविधीकरण का अर्थ है कृषि में लगे
श्रम को वैकल्पिक खेती, कृषि से संबंधित कार्यों, तथा गैर कृषि कार्यों में रोजगार
के अवसर बढ़ाने की आवश्यकता से है।
ग्रामीण विकास के क्षेत्र में विविधीकरण के दो पहलू हैं
फसल उत्पादन का विविधीकरण-
इसका अर्थ विविध प्रकार की फसलों
के उत्पादन से है ना की एकमात्र विशिष्ट फसल के उत्पादन से।
उत्पादक क्रियाओं का विविधीकरण-
श्रम शक्ति को खेती से हटाकर अन्य
संबंधित कार्यों- जैसे पशुपालन, मुर्गी और मत्स्य पालन आदि तथा गैर कृषि क्षेत्र में
लगाना है।
तनवा (TANWA) परियोजना
• तमिलनाडु में महिलाओं को नवीनतम कृषि तकनीकों का प्रशिक्षण
देने के लिए तनवा परियोजता प्रारंभ की गई है।
• यह महिलाओं को कृषि उत्पादकता और परिवारिक आय की वृद्धि
के लिए सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।
• तिचिरापल्ली में एंथोलीअम्मल द्वारा संचालित प्रशिक्षित
महिला समूह कृमि खाद बनाकर बेच रहा है और कमा रहा है।
• कृषक महिला समूह अति लघु साख व्यवस्था का सहारा लेकर अपने
सदस्यों की बचतों को बढ़ावा देने में सक्रिय हैं।
• कृषक महिला समूह बचतों का प्रयोग कर पारिवारिक कुटीर उद्योग
गतिविधियां जैसे मशरूम की खेती, साबुन तथा गुड़िया बनाने आदि अनेक प्रकार के आय बढ़ाने
वाले कार्यों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
उत्पादन प्रक्रिया के गैर कृषि क्षेत्र
• पशुपालन (Animal Husbandry)
• मत्स्य पालन (Fisheries)
बागवानी (Horticulture)
• 1951-2014 की अवधि में देश में दुग्ध उत्पादन
आठ गुना से अधिक बढ़ गया है इसका मुख्य श्रेय 'ऑपरेशन फ्लड (दूध की बाढ़) को दिया जाता
है।
• पशुपालन में सबसे बड़ा अंश 58% मुर्गी पालन
का है अन्य पशुओं में ऊँट, गधे, घोड़े आते हैं।
• इस व्यवस्था से परिवार की आय में अधिक स्थिरता
साख सुरक्षा, परिवहन, ईंधन, पोषण और खाद मिलती हैं
• 2012 में भारत में 300 मिलियन मवेशी थे,
उनमें से 108 मिलियन मैसें थीं।
• आज पशुपालन क्षेत्र देश के 7 करोड़ छोटे
व सीमांत किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने के वैकल्पिक साधन सुलभ करा
रहे हैं।
• भारत के अधिक किसान अधिकतर मिश्रित कृषि
पशुधन व्यवस्था का अनुसरण करते हैं इसमें गाय भैंस बकरी या मुर्गी और बत्तख आदि पाई
जाने वाली प्रजातियाँ है।
ऑपरेशन फ्लड -
1. इसकी शुरुआत 1970 को हुई।
2. ऑपरेशन फ्लड को "श्वेत क्रांति" के नाम से जाना
जाता है।
3. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा देश में दूध के उत्पादन
बढ़ाने के लिए चलाया गया था।
4. वर्गीज कुरियन श्वेत क्रांति के जनक थे।
5. ऑपरेशन फ्लड एक ऐसी प्रणाली है जिसके अंतर्गत सभी किसान
अपना विक्रय योग्य दूध एकत्रित कर उसकी गुणवत्ता के अनुसार प्रसंस्करण करते हैं और
फिर उसे शहरी केंद्रों में सहकारिताओं के माध्यम से बेचा जाता है।
6. भारत विश्व में भैंस के दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है।
मत्स्य पालन (Fisheries)
1. मछुआरों के समुदाय तो प्रत्येक जलागार को मां या दाता
मानते हैं। सागर महासागर सरिता ने झीलें प्राकृतिक तालाब प्रवाह आदि सभी जलागार मछुआरों
के समाज के लिए निश्चित जीवन दायक स्रोत हैं।
2. भारत का मछली पालन में दूसरा स्थान है
3. देश की मत्स्य उत्पादन का 64% अंतर्वर्ती क्षेत्र से तथा
36% महासागरीय क्षेत्रों से प्राप्त हो रहा है।
4. मत्स्य उत्पादन सकल घरेलू उत्पाद का 0.8% है।
5. मछली उत्पादकों में प्रमुख राज्य पश्चिम बंगाल केरल गुजरात
महाराष्ट्र और तमिलनाडु है।
6. मछुआरों के परिवारों का एक बड़ा हिस्सा निर्धन है उसका
कारण है निम्न रोजगार, निम्न प्रति व्यक्ति आय, अन्य कार्यों की ओर श्रम के प्रवाह
का अभाव, उच्च निरक्षरता दर है।
7.
महिलाएं मछलियां पकड़ने के काम में नहीं लगे हैं पर 60% निर्यात और 40% आंतरिक मत्स्य
व्यापार का संचालन उन्हीं के हाथों में है।
8.
मछुआरा समुदाय की महिलाओं की सहायता के लिए सहकारिताओं और स्वयं सहायता समूह के माध्यम
से साख सुविधाओं का विस्तार किए जाने की आवश्यकता अब अनुभव हो रही है।
बागवानी (Horticulture)
1.
प्रकृति ने भारत को ऋतु और मृदा की विविधता से संपन्न किया है उसी के आधार पर भारत
ने अनेक प्रकार के बागान उत्पादों को अपना लिया है। इनमें प्रमुख हैं- फल, सब्जियां,
रेशेदार फसलें, औषधीय तथा सुगंधित पौधे, मसाले चाय, कॉफी आदि ।
2.
ये सभी फसलें रोजगार के साथ-साथ भोजन और पोषण उपलब्ध कराने में भी बड़ा योगदान दे रही
हैं।
3.
स्वर्णिम क्रांति की शुरुआत 1991-2003 से हुई।
4.
स्वर्णिम क्रांति के जनक निर्पख तुतेज है।
5.
स्वर्णिम क्रांति के दौरान बागवानी में सुनियोजित निवेश बहुत ही उत्पादक सिद्ध हुआ
और इस क्षेत्र ने एक वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण किया।
6.
भारत आम, केला, नारियल काजू पपीता, और अनेक मसालों के उत्पादन में विश्व का सबसे बड़ा
उत्पादक देश माना जाता है।
7.
मसालों में भारत विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक भी है।
8.
फल- सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
9.
भारत में बागवानी क्षेत्र समस्त कृषि उत्पाद का लगभग एक तिहाई और सकल घरेलू उत्पाद
का 6% है।
कुटीर
तथा गृहस्थ उद्योग- ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि उत्पादन क्रियाओं
के परंपरागत स्रोत है इसमें काटना भूलना रंगना तथा ब्लीच करना सम्मिलित है अब ग्रामीण
क्षेत्रों में नई क्रियाएं उभरी हैं जैसे गुड़िया बनाना साबुन व मोमबत्ती बनाना मशरूम
की कृषि मधुमक्खी पालन मुर्गी पालन आदि यह अधिकांश स्त्रियां हैं महिला वर्गों द्वारा
की जाती है।
अन्य रोजगार/आजीविका विकल्प -
सूचना
प्रौद्योगिकी ने पर्याप्त विकास तथा खा। सुरक्षा को निम्नलिखित तरीकों से उपलब्ध कराने
में बहुत मुख्य भूमिका निभाई है -
1.
सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग हमारे लोगों में निहित ज्ञान तथा सृजनात्मक क्षमता के
बढ़ाने के यंत्र के रूप में किया जा सकता है।
2.
यदि किसानों को विशेषज्ञ विचार उपलब्ध कराई जाए जो इस प्रौद्योगिकी द्वारा उदयीमान
तकनीको कीमतों मौसम तथा विभिन्न फसलों के लिए विदा की दशाओं की उपयोगिता की जानकारी
का प्रसारण हो सकता है।
3.
किसानों को नए यंत्रों, तकनीकों तथा संसाधनों के लिए जागरूक किया जाए, तो फसलों की
मात्रा तथा गुणवत्ता को कई गुना बढ़ाया जा सकता है।
4.
सूचना प्रौद्योगिकी में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसरों को उत्पन्न
करने की संभावना भी है।
Note - सांसदों द्वारा गांव के दत्तक ग्रहण
1.
अक्टूबर 2014 में भारत सरकार ने सांसदों के निर्वाचन क्षेत्रों से सांसद आदर्श ग्राम
योजना नामक एक नई योजना की शुरुआत की।
2.
इस योजना के तहत भारत के सांसदों को एक गांव की पहचान करने और विकसित करने की जरूरत
है।
3.
सांसद वर्ष 2016 तक एक मॉडल गांव के रूप में एक गांव को विकसित कर सकते हैं और
2019 तक दो और गांव विकसित करने हैं भारत में 2500 से अधिक गांवों को सम्मिलित करने
की योजना है।
धारणीय विकास और जैविक कृषि
1.
जैविक कृषि खेती करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय असंतुलन को पुनः स्थापित करके
उसका संरक्षण और संवर्धन करती है।
2.
जैविक कृषि में किसान जैविक खाद उर्वरक तथा जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं।
जैविक कृषि की आवश्यकता
1.
कृषि के आधुनिक तरीकों के प्रयोग से रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का उपयोग अधिक बढ़ गया
जिसके फलस्वरूप मृदा उपजाऊ शक्ति में कमी हुई तथा अनाजों में रसायन की मात्रा बढ़ गई।
2.
पर्यावरण का संरक्षण करना अति आवश्यक हो गया है।
3.
जैविक कृषि खेती करने की सस्ती तकनीक है।
जैविक कृषि के लाभ
1.
जैविक कृषि महंगे आगतों शंकर बीजों रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों के स्थान पर स्थानीय
रूप से बने जैविक आगतों के प्रयोग पर निर्भर होती हैं यह आगत सस्ते होते हैं और इसी
के कारण इन पर निवेश से प्रतिफल अधिक मिलता है।
2.
जैविक कृषि उत्पादों की बढ़ती हुई मांग के कारण इनके निर्यात से भी अच्छी आय हो सकती
हैं।
3.
जैविक विधि से उत्पादित भोज्य पदार्थों में पोषक तत्व भी अधिक होते हैं।
4.
जैविक कृषि में श्रम आगतों का प्रयोग परंपरागत कृषि की अपेक्षा अधिक होते हैं इसलिए
यह बेरोजगारी की समस्या का समाधान करती है।
5.
जैविक कृषि के उत्पाद पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय विधियों द्वारा उत्पादित होते हैं।
6.
जैविक खाद का प्रयोग मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखता है।
जैविक कृषि की सीमाएं
1.
जैविक कृषि की अपेक्षा आधुनिक कृषि तकनीकों से अधिक उत्पादकता मिलती हैं इस प्रकार
जैविक उत्पाद अपेक्षाकृत महंगे होते हैं।
2.
जैविक उत्पाद जल्दी खराब होते हैं।
3.
मौसमी फसलों का जैविक कृषि उत्पादन बहुत सीमित होते हैं।
4.
उत्पादन के लिए अलग से कोई उचित आधारिक संरचना विपणन सुविधाओं की कमी है जैविक कृषि
के लिए एक उपयुक्त कृषि नीति अपनाई जानी चाहिए।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ग्रामीण विकास का क्या अर्थ है? ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य
प्रश्नों को स्पष्ट करें।
उत्तर
: ग्रामीण विकास एक व्यापक शब्द है जो एक ग्राम के चहुमुखी विकास में बाधा उत्पन्न
करने वाले सभी क्षेत्रों पर केंद्रित है। ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्न इस प्रकार
हैं
(क)
आधारिक संरचना का विकास यह ग्रामीण विकास में एक प्राथमिक प्रश्न है। इसमें निम्नलिखित
शामिल हैं
1.
साख सुविधाओं की व्यवस्थाय
2.
ग्रामीण बाजारों का विकास तथा इनका शहरी बाजारों के साथ एकीकरण
3.
परिवहन एवं संचार के साधनों, बैंकिंग सुविधाओं, बीमा सुविधाओं आदि का विकास
4.
उत्पादन एवं घरेलू इकाइयों के लिए बिजली की उपलब्धता
5.
सिंचाई के स्थायी साधनों का विकास
6.
कृषि अनुसंधान और विकास के लिए सुविधाएँ ।
(ख)
मानव पूँजी निर्माण भारत में ग्रामीण क्षेत्र शिशु मृत्यु दर, निरक्षरता,
निर्धनता, बेरोजगारी, जीवन प्रत्याशा में कमी, पोषक स्तर में कमी में शहरी क्षेत्रों
से आगे हैं। यह स्पष्ट करता है कि ग्रामीण क्षेत्र मानव पूँजी निर्माण में पीछे हैं।
(ग)
निर्धनता उन्मूलन- व्यक्तिगत स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक
इलाके के उत्पादक संसाधनों की पहचान की जाए तथा गैर-कृषि गतिविधि के विकास के लिए उन्हें
विकसित किया जाए। मौसमी और प्रच्छन्न बेरोजगारी का उन्मूलन करना आवश्यक है जो ग्रामीण
निर्धनता का प्रमुख कारण है।
(घ)
भू-सुधार- भू-सुधार भूमि को ज्यादा समानतापूर्वक पुनर्वितरित करने
और उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 2. ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व पर चर्चा करें।
उत्तर
: कृषि में फसल की बुआई और आय प्राप्ति के बीच एक लंबा अंतराल है, किसानों को ऋण की
बहुत जरूरत होती है। किसानों को बीज, उर्वरक, औजारों की प्रारंभिक निवेश के लिए तथा
अन्य पारिवारिक व्ययों के लिए मुख्यतः जब वे मौसमी बेरोजगार होते हैं, धन की आवश्यकता
होती है। अतः साख एक मुख्य कारक है जो ग्रामीण विकास में योगदान देता है। यदि संस्थागत
स्रोत उपलब्ध नहीं होंगे तो किसान गैर-संस्थागत स्रोतों से ऋण लेगा जिससे ऋण की तथा
इस तरह उत्पादन की लागत बढ़ेगी।
प्रश्न 3. गरीबों की ऋण आवश्यकताएँ पूरी करने
में अतिलघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर : स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी.) जिन्हें अतिलघु साख
कार्यक्रम भी कहा जाता है, ग्रामीण ऋण के संदर्भ में एक उभरती हुई घटना है।
(क) स्वयं सहायता समूह ग्रामीण परिवारों में बचत को बढ़ावा
देते हैं। एस.एच.जी. छोटी बचतों को जुटाकर अपने अलग-अलग सदस्यों को ऋण के रूप में देने
की पेशकश करते हैं।
(ख) स्वयं सहायता समूहों द्वारा ऋण औपचारिक ऋण की तुलना में
बेहतर है क्योंकि यह बिना कुछ गिरवी रखे ब्याज की एक सामान्य दर पर दिया जाता है।
(ग) मार्च 2003 तक 7 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह कार्यशील
थे।
(घ) यह लोकप्रिय हो रहे हैं क्योंकि इनसे निर्धनों को बिना
कुछ गिरवी रखे कम ब्याज दरों पर न्यूनतम कानूनी औपचारिकताओं के साथ ऋण मिल जाता है।
प्रश्न 4. सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के
विकास के लिए किए गए प्रयासों की व्याख्या करें।
उत्तर : सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए निम्नलिखित
प्रयास किए गए।
(क) बाजारों का विनियमन- पहला कदम व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन की दशाओं का निर्माण
करने के लिए बाजार का नियमन था। कुल मिलाकर इसे नीति का किसानों के साथ-साथ उपभोक्ताओं
को भी लाभ हुआ।
(ख) भौतिक आधारिक संरचना का प्रावधान- दूसरा उपाय सड़कों, रेलमार्गों, भंडारण गृहों, गोदामों,
शीत भंडारण गृहों, प्रसंस्करण इकाइयों आदि भौतिक बुनियादी सुविधाओं का प्रावधान है।
(ग) सहकारी विपणन- सरकार के तीसरे उपाय में सरकारी विपणन द्वारा किसानों को
अपने उत्पादन का उचित मूल्य सुलभ कराना है। गुजरात तथा देश के अन्य कई भागों में दुग्ध
उत्पादक सहकारी समितियों ने ग्रामीण अंचलों के सामाजिक तथा आर्थिक परिदृश्य का कायाकल्प
कर दिया।
(घ) नीतिगत साधन- चौथे उपाय के अंतर्गत नितिगत साधन हैं जैसे
1. कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन कीमत का निर्धारण
करनाय
2. भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूँ और चावल के सुरक्षित भंडार
का रख-रखाव और
3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा खाद्यान्नों और चीनी का
वितरण।
इन साधनों का ध्येय क्रमशः किसानों को उपज के उचित दाम दिलाना
तथा गरीबों को सहायिकी युक्त कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध कराना रहा है।
प्रश्न 5. आजीविका को धारणीय बनाने के लिए
कृषि का विविधीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर : आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण
आवश्यक है क्योंकि-
(क) कृषि एक मौसमी गतिविधि है, अतः इसे अन्य गतिविधियों द्वारा
पूरक बनाने की आवश्यकता है।
(ख) अजीविका के लिए पूर्णतः खेती पर निर्भर करने में बहुत
खतरा है।
(ग) यह ग्रामीण लोगों को अनुपूरक लाभकारी रोजगार उपलब्ध कराने
के लिए एवं आय के उच्च स्तर द्वारा निर्धनता उन्मूलने में सक्षम बनाता है।
प्रश्न 6. भारत के ग्रामीण विकास में ग्रामीण
बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर : बैंकिंग प्रणाली के तेजी से विस्तार का ग्रामीण कृषि
एवं गैर कृषि उत्पादन, आय और रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हरित क्रांति के
बाद, ऋण सुविधाओं ने किसानों को अपनी उत्पादन आवश्यकता को पूरा करने के लिए ऋण की विविधताओं
का लाभ उठाने में मदद की। अनाज के सुरक्षित भंडारों के चलते अकाल अतीत की घटना बन चुके
हैं।
तब भी ग्रामीण बैंकिंग द्वारा निम्नलिखित समस्याओं का सामना
किया जा रहा है
(क) अपर्याप्तता- देश में उपलब्ध ग्रामीण साख की मात्रा उसकी माँग की तुलना
में आज भी बेहद अपर्याप्त है।
(ख) संस्थागत स्रोतों की अपर्याप्त कवरेज- संस्थागत ऋण व्यवस्था असफल रही है क्योंकि यह पूरे देश के
ग्रामीण किसानों को कवर करने में विफल रहा है।
(ग) अपर्याप्त राशि की मंजूरी किसानों के लिए मंजूर ऋण की राशि भी अपर्याप्त है।
(घ) सीमांत या निर्धन किसानों की ओर कम ध्यान जरूरतमंद किसानों की ऋण आवश्यकताओं पर कम ध्यान दिया गया
है।
(ङ) बढ़ती देय राशि कृषि ऋण में अतिदेय राशि की समस्या चिंता का एक विषय बना
हुआ है। लंबे समय से कृषि ऋण का भुगतान न कर पाने वालों की दरों में वृद्धि हुई है।
50% से अधिक उधारकर्ताओं को जानबूझकर ऋण का भुगतान न करने वालों की श्रेणी में रखा
गया है। यह बैंकिंग प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए एक खतरा है और इसे नियंत्रित किया
जाना आवश्यक है।
सुधारों के बाद से कृषि बैंकिंग क्षेत्र के विस्तार एवं वृद्धि
ने एक पिछला स्थान ले लिया है। वाणिज्यिक बैंकों के अतिरिक्त अन्य औपचारिक संस्थान
जमा संग्रहण की एक संस्कृति, जरूरतमदों के लिए ऋण एवं प्रभावी ऋण वसूली करने में विफल
रहे हैं।
परिस्थिति में सुधार करने के लिए
(क) बैकों का अपना दृष्टिकोण केवल उधारदाताओं से बदलकर बैंकिंग
संबंधों के निर्माण के रूप में बनाया जाना चाहिए।
(ख) किसानों को बचत और वित्तीय संसाधनों के कुशल उपयोग की
आदत विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
प्रश्न 7. कृषि विपणन से आपका क्या अभिप्राय
है?
उत्तर : कृषि विपणन एक प्रक्रिया है जिसमें देशभर में उत्पादित
कृषि उत्पादों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, बैंकिंग, वर्गीकरण और वितरण
शामिल है। भारतीय कृषि बाजार असक्षम और कुछ हद तक पारंपरिक हैं। न्यूनतम समर्थन कीमत
गेहूँ और चावल के पक्षों में पक्षपाती है। व्यवसायीकृत भारतीय कृषि ने संसाधन पूर्ण
क्षेत्रों को अधिक लाभान्वित किया। पिछड़े क्षेत्रों में विपणन संरचनाएँ काफी हद तक
व्यावसायिक रूप से कार्य नहीं करते।
प्रश्न 8. कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ
बताइए।
उत्तर : कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ इस प्रकार हैं
(क) कृषि बाजार पर अभी भी निजी क्षेत्र का प्रभुत्व है। कुल
उत्पादन का केवल 10% सहकारी समितियों को मिलता है। शेष निजी क्षेत्र को जाता है।
(ख) उचित भंडारण सुविधाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में आज तक भी
उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण उत्पादन का 10% उत्पादन हर वर्ष भंडारण सुविधाओं के कारण बर्बाद
हो जाता है।
(ग) आज भी बारहमासी सड़कों की कमी है। ऐसी परिस्थितियों में
जब भंडारण सुविधाएँ नहीं हैं कि वे सही बाजार स्थितियों का इंतजार कर सकें, सड़कें
इतनी सही नहीं हैं कि वे अपना उत्पादन विनियमित बाजारों में जाकर बेच सकें तो वे अपनी
फसलें कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर हैं।
(घ) भारतीय किसानों में बाजार की जानकारी एवं सूचना की कमी
है। बाजार की मौजूदा कीमतों की जानकारी के अभाव में वे अपना उत्पादन कम कीमतों पर बेचने
को मजबूर हैं।
प्रश्न 9. कृषि विपणन की कुछ उपलब्ध वैकल्पिक
माध्यमों के उदाहरण सहित चर्चा करें।
उत्तर : कृषि विपणन के लिए उपलब्ध कुछ वैकल्पिक माध्यम इस
प्रकार हैं
(क) प्रत्यक्ष बाजार- कुछ ऐसे बाजार शुरू किए गए हैं जहाँ किसान स्वयं ही उपभोक्ता
को अपना उत्पादन बेच सके और मध्यस्थों का अंत हो। इसके उदाहरण हैं-पंजाब, राजस्थान,
हरियाणा में अपनी मंडी, पूणे की हाडपसार मंडी आदि ।
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़ी भारतीय कंपनियों के साथ
गठबंधन कुछ किसानों ने बहुराष्ट्रीय
कंपनियों तथा फूड चेन के साथ गठबंधन किया है और वे एक पूर्व निर्धारित कीमत पर इन कंपनियों
को सीधा अपना उत्पादन बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं। परंतु उनसे एक गुणवत्ता फसल
उत्पादन वांछनीय होता है।
1. बहुत बार ये कंपनियाँ कृषि आदान और कभी-कभी फसल बीमा भी
उपलब्ध कराते हैं।
2. वे एक पूर्व निर्धारित कीमत पर उत्पादन खरीदने का भी आश्वासन
देते हैं।
3. इससे किसानों को जोखिम कम हो जाता है और उनका उत्पादन
बढ जाता है।
प्रश्न 10. 'स्वर्णिम क्रांति' और 'हरित क्रांति'
में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर : हरित क्रांति हरित क्रांति अक्टूबर 1965 में
कृषि उत्पादन की वृद्धि के लिए शुरू की गई एक रणनीति थी जिसके अंतर्गत उच्च पैदावार
वाली किस्म (HYV) के बीज, उर्वरक, सिंचाई सुविधाएँ, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराए गए।
स्वर्णिम क्रांति 1991-2003 की अवधि को स्वर्णिम क्रांति कहा जाता है क्योंकि
इस अवधि में बागवानी में नियोजित निवेश अत्यधिक उत्पादक बन गया और यह क्षेत्र एक स्थायी
आजीविका के विकल्प के रूप में उभरा।
प्रश्न 11. क्या सरकार द्वारा कृषि विपणन सुधार
के लिए अपनाए गए विभिन्न उपाय पर्याप्त हैं? व्याख्या
कीजिए।
उत्तर: नहीं, मुझे नहीं लगता कि सरकार द्वारा कृषि विपणन
के लिए अपनाए गए विभिन्न उपाय पर्याप्त हैं।
(क) भारतीय कृषि बाजार अकुशल हैं तथा बहुत हद तक पारंपरिक
हैं।
(ख) न्यूनतम समर्थन कीमत नीति गेहूँ एवं चावल की फसलों के
पक्ष में पक्षपाती हैं।
(ग) व्यावसायिक भारतीय कृषि ने संसाधन पूर्ण क्षेत्रों को
अधिक लाभान्वित किया है।
(घ) पिछड़े क्षेत्रों में विपणन संरचनाएँ काफी हद तक व्यावसायिक
रूप से कार्य नहीं करते।
प्रश्न 12. ग्रामीण विविधीकरण में गैर-कृषि
रोजगार का महत्त्व बताइए।
उत्तर : विविधीकरण का तात्पर्य तो फसल विविधीकरण से है या
उत्पादन गतिविधियों के विविधीकरण से, जिसका अर्थ है कृषि गतिविधियों से गैर-कृषि गतिविधियों
में स्थानांतरित होना। इसमें निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल है।
(क) कृषि प्रसंस्करण गतिविधियाँ खाद प्रसंस्करण गतिविधियाँ, चमड़ा उद्योग, हस्तशिल्प, पर्यटन,
मिट्टी के बर्तन बनाना, हथकरघा आदि।
(ख) पशुपालन- पशुधन आय की स्थिरता एवं खाद एवं पोषकत्ता सुरक्षा को बढ़ा
देता है तथा 70 मिलियन सीमांत एवं छोटे किसानों को वैकल्पिक रोजगार का साधन प्रदान
करता है। आपरेशन फ्लड' के द्वारा 1960-2002 के बीच भारत का दुग्ध उत्पादन चार गुणा
बढ़ा।
(ग) मत्स्य पालन कुल मछली उत्पादन का सकल घरेलू उत्पाद में 1.4% का योगदान
हैं मत्स्य क्षेत्र निम्न आय स्तर, श्रम की गतिशीलता के निम्न स्तर एवं निरक्षरता के
उच्च स्तरों से ग्रस्त है। निर्यात बाजार का 60% तथा 40% आंतरिक मत्स्य व्यापार का
संचालन महिलाओं के हाथ में है।
(घ) उद्यान विज्ञान 1991 से 2003 की अवधि को स्वर्णिम क्रांति कहा जाता है।
इसी दौरान बागवानी में सुनियोजित निवेश बहुत ही उत्पादक सिद्ध हुआ और इस क्षेत्रक ने
एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण किया। बागवानी में लगे कितने ही कृषकों की आर्थिक
दशा में बहुत सुधार हुआ है। ये उद्योग अब अनेक वंचित वर्गों के लिए आजीविका को बेहतर
बनाने में सहायक सिद्ध हुए हैं।
प्रश्न 13. विविधीकरण के स्रोत के रूप में
पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी के महत्त्व पर टिप्पणी करें।
उत्तर : पशुपालन का महत्त्व भारत में कृषक समुदाय प्रायः
मिश्रित कृषि पशुधन व्यवस्था का अनुसरण करता है। इसमें गाय-भैंस और मुर्गी बत्तख बहुतायत
में पाई जाने वाली प्रजातियाँ हैं।
(क) मवेशियों के पालन से परिवार की आय में अधिक स्थिरता आती
है। साथ ही खा। सुरक्षा, परिवहन, ईंधन, पोषण आदि की व्यवस्था भी परिवार की अन्य खा।
उत्पादक (कृषक) गतिविधियों में अवरोध के बिना ही प्राप्त हो जाती है।
(ख) आज पशुपालन क्षेत्रक देश के 7 करोड़ छोटे एवं सीमांत
किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने के वैकल्पिक साधन सुलभ करा रहे हैं।
(ग) महिलाओं की भी एक बड़ी संख्या इस क्षेत्र से रोजगार पाती
हैं।
मत्स्य पालन का महत्त्वः आजकल देश के समस्त मत्स्य उत्पादन
का 49% अंर्तवर्ती देशों और 51% महासागरीय क्षेत्रों से प्राप्त हो रहा है।
(क) यह मत्स्य उत्पादन सकल घरेलू उत्पाद का 1.4% है।
(ख) सागरीय उत्पादकों में प्रमुख राज्य केरल, गुजरात, महाराष्ट्र
और तमिलनाडु हैं।।
(ग) यद्यपि महिलाएँ मछलियाँ पकड़ने के काम में नहीं लगी हैं
पर 60% निर्यात और 40% आंतरिक मत्स्य व्यापार को संचालन इन्हीं के हाथों में है।
उद्यान विज्ञान (बागवानी) का महत्त्वः 1991-2003 के बीच अवधि
को 'स्वर्णिम क्रांति कहा जाता है।
(क) भारत आम, केला, नारियल, काजू जैसे फलों और अनेक मसालों
के उत्पादन में आज विश्व का अग्रणी देश माना जाता है।
(ख) फल-सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा
स्थान है।
(ग) बागवानी में लगे बहुत से कृषकों की दशा में बहुत सुधार
हुआ है। पुष्पारोपण, पौधशाला की देखभाल, संकर बीजों का उत्पादन, ऊतक संवर्धन, फल-फूलों
का संवर्धन और खा। प्रसंस्करण ग्रामीण महिलाओं के लिए अब अधिक आय वाले रोजगार बन गए
हैं।
प्रश्न 14. 'सूचना प्रौद्योगिकी, धारणीय विकास
तथा खा। सुरक्षा की प्राप्ति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। टिप्पणी करें।
उत्तर : सूचना प्रौद्योगिकी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक
क्षेत्रकों में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए हैं। 21वीं शताब्दी में देश में खा। सुरक्षा
और धारणीय विकास में सूचना प्रौद्योगिकी निर्णायक योगदान दे सकती है।
(क) सूचनाओं और उपयुक्त सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार सहजे
ही खा। असुरक्षा की आशंका वाले क्षेत्रों का समय रहते अनुमान लगा सकती है।
(ख)
कृषि क्षेत्र में तो इसके विशेष योगदान हो सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी द्वारा उदीयमान
तकनीकों, कीमतों, मौसम तथा विभिन्न फसलों के लिए मृदा की दशाओं की उपयुक्त जानकारी
का प्रसारण हो सकता है।
(ग)
इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की संभावना
भी है।
(घ)
इसका उद्देश्य भारत के प्रत्येक गाँव को एक ज्ञान केंद्र बनाना है।
प्रश्न 15. जैविक कृषि क्या है? यह धारणीय विकास को किस प्रकार बढ़ावा
देती है?
उत्तर
: जैविक कृषि का अर्थः जैविक कृषि प्राकृतिक रूप से खाद्यान्न उगाने की प्रक्रिया है।
यह विधि रासायनिक उर्वरक और विषजन्य कीटनाशकों के प्रयोग की अवहेलना करती है।
धारणीय
विकास का अर्थः यह वह विकास है जो वर्तमान पीढ़ी के विकास के
लिए भावी पीढ़ी की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करता। यह संसाधनों के प्रयोग को निषेध
नहीं करता परंतु उनके उपयोग को इस तरह प्रतिबंधित करने का लक्ष्य रखता है कि वे भविष्य
पीढ़ी के लिए बचे रहें।
जैविक
कृषि तथा धारणीय विकास के अर्थ से यह स्पष्ट है कि यदि जैविक कृषि किसी प्रकार के रासायनिक
उर्वरक, विषजन्य कीटनाशक आदि का प्रयोग नहीं कर रही तो यह भूमि क्षरण में योगदान नहीं
करेगी। यह महँगे कृषि आदानों जैसे संकर बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशकों आदि को स्थानीय
स्तर पर उत्पादित जैविक आदान विकल्पों से प्रतिस्थापित करते हैं। यदि भूमि का क्षरण
नहीं हो रहा तो यह एक पर्यावण अनुकूल कृषि विधि है। अतः यह धारणीय विकास को बढ़ावा
देती है।
प्रश्न 16. जैविक कृषि के लाभ और सीमाएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
लाभ -
(क)
जैविक कृषि महँगे आगतों जैसे संकर बीजों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के स्थान
पर स्थानीय रूप से बने जैविक आगतों के प्रयोग पर निर्भर होती है।
(ख)
ये आगते सस्ती होती हैं और इसके कारण इन पर निवेश से प्रतिफल अधिक मिलता है।
(ग)
विश्व बाजारों में जैविक कृषि उत्पादों की बढ़ती हुई माँग के कारण इनके निर्यात से
भी अच्छी आय हो सकती है।
(घ)
जैविक कृषि हमें परंपरागत कृषि की तुलना में अधिक स्वास्थ्यकर भोजन उपलब्ध कराती है।
(ङ)
ये उत्पाद पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय विधियों द्वारा उत्पादित होते हैं।
(च)
यह छोटे किसानों के लिए अधिक उपयुक्त हैं जो महँगे कीटनाशक, उर्वरक तथा अन्य आगतों
का खर्च नहीं उठा सकते।
सीमाएँ
:
(क)
प्रारंभिक वर्षों में जैविक कृषि की लागत रासायनिक कृषि से उच्च रहती है।
(ख)
जैविक कृषि की लोकप्रियता के लिए नई विधियों का प्रयोग करने में किसानों की इच्छाशक्ति
और जागरूकता जगाना आवश्यक है।
(ग)
इन उत्पादों के लिए अलग से कोई उचित आधारिक संरचना एवं विपणन सुविधाओं की कमी है। जैविक
कृषि के लिए एक उपयुक्त कृषि नीति अपनाई जानी चाहिए।
(घ)
प्रारंभिक वर्षों में जैविक कृषि से उत्पादन, रासायनिक कृषि से उत्पादकता से कम होता
है। अतः बहुत बड़े स्तर पर छोटे और सीमांत किसानों के लिए इसे अपनाना कठिन होता है।
(ङ)
बेमौसमी फसलों का जैविक कृषि में उत्पादन बहुत सीमित होता है।
(च)
जैविक रूप से उत्पादित खाद पदार्थ महँगे होते हैं। अतः भारत जैसे गरीब देश इसका वहन
नहीं कर सकता।
प्रश्न 17. जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को प्रारंभिक वर्षों
में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर
: जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को प्रारंभिक वर्षों में निम्नलिखित समस्याओं
का सामना करना पड़ता है
(क)
प्रारंभिक वर्षों में जैविक कृषि का उत्पादन रासायनिक कृषि से कम होता है, अतः बहुत
बड़े स्तर पर छोटे और सीमांत किसानों के लिए इसे अपनाना कठिन होता है।
(ख)
यह प्रारंभिक वर्षों में उपभोक्ताओं में भी कम प्रचलित होता है। कोई विपणन सुविधाएँ
भी उपलब्ध नहीं होती।
(घ) जैविक उत्पादों की रासायनिक उत्पादन की तुलना में जल्दी खराब होने की संभावना रहती है। बेमौसमी फसलों का जैविक कृषि में उत्पादन बहुत सीमित होता है।