प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Core
आरोह भाग -1 गद्य-खण्ड
पाठ - 2. मियाँ नसीरुद्दीन - कृष्णा सोबती
जीवन-सह-साहित्यिक परिचय
जन्म- कृष्णा सोबती का जन्म 1925 ई. में गुजरात (पश्चिमी पंजाब वर्तमान में पाकिस्तान)
में हुआ था। इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य
अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया।
प्रमुख रचनाएँ- कृष्णा सोबती ने अनेक विधाओं में लिखा। इनकी प्रमुख रचनाएं
निम्नलिखित हैं
उपन्यास- जिंदगीनामा, दिलो दानिश, ऐ लड़की, समय सरगम
कहानी-संग्रह- डार से बिछुडी, मित्रो मरजानी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी
अंधेरे में
शब्द चित्र, संस्मरण- हम हशमत, शब्दों के आलोक में
साहित्यिक परिचय- हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है।
वे मानती हैं कि कम लिखना विशिष्ट लिखना है। यही कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ-
सुथरी रचनात्मकता ने अपना एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है। उन्होंने हिंदी साहित्य को
कई ऐसे यादगार चरित्र दिए हैं, जिन्हें अमर कहा जा सकता है; जैसे मित्रो, शाहनी, हशमत
आदि ।
भारत-पाकिस्तान विभाजन पर जिन लेखकों ने हिंदी में कालजयी
रचनाएँ लिखी, उनमें कृष्णा सोबती का नाम पहली कतार में रखा जाएगा। बल्कि यह कहना उचित
होगा कि यशपाल के झूठा सच, राही मासूम रज़ा के आधा गांव और भीष्म साहनी के तमस के साथ-साथ
कृष्णा सोबती का जिंदगीनामा इस प्रसंग में एक विशिष्ट उपलब्धि है।
संस्मरण के क्षेत्र में हम-हशमत शीर्षक से उनकी कृति का विशिष्ट
स्थान है, इसमें उन्होंने अपने ही एक-दूसरे व्यक्तित्व के रूप में हशमत नामक चरित्र
का सृजन कर एक अद्भुत प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया है। इनके आषिक प्रयोग में भी
विविधता है। उन्होंने हिंदी की कथा-भाषा को एक विलक्षण ताजगी दी है। संस्कृतनिष्ठ तत्समता,
उर्दू का बॉका, पंजाबी की जिंदादिली, ये सब एक साथ उनकी रचनाओं में मौजूद है।
पाठ-परिचय
मियाँ नसीरुद्दीन शब्दचित्र हम हशमत नामक संग्रह से लिया
गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का
शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोटी पकाने की कला
और उसमें अपने खानदानी महारत को बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं
जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न अभ्यास
पाठ के साथ
1. मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा
क्यों कहा गया है ?
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा कहा गया
है क्योंकि वे साधारण नानबाई नहीं हैं। वे खानदानी नानबाई हैं जो मसीहाई अंदाज़ से
रोटी बनाने की कला जानते हैं। अन्य नानबाई रोटी केवल पकाते हैं, पर मियाँ नसीरुद्दीन
अपने पेशे को कला मानते हैं। उनके पास छप्पन प्रकार की रोटियों बनाने का हुनर है। यह
तीन पीढ़ियों से उनका खानदानी पेशा था। उनके दादा और पिता बादशाह सलामत के यहाँ शाही
बावर्चीखाने में बादशाह की खिदमत किया करते थे। यह बात सारे इलाके में प्रसिद्ध थी।
इसलिए लोग उन्हें 'नानबाइयों का मसीहा' कहते थे। वे अपने को सर्वश्रेष्ठ नानबाई बताते
हैं।
2. लेखिका
मियाँ नसीरुद्दीन की पास क्यों गई थीं?
उत्तरः- लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास पत्रकार की हैसियत
से गई थीं। वे उनकी नालबाई कला के बारे में जानकारी प्राप्त कर उसे प्रकाशित करना चाहती
थी। लेखिका चाहती थी कि वह रोटी बनाने के कारीगरी को जाने तथा उसे लोगों को बता सके।
मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर थे। वह उनकी कारीगरी
का रहस्य भी जानना चाहती थी। उनके व्यक्तित्व, रुचियों, स्वभाव से प्रभावित होकर उनके
हुनर के बारे में कुछ सवाल पूछने गई थी। उसने एक मामूली, अँधेरी-सी दुकान पर पटापट
आटे का देर सनता देखा तो वह अपनी उत्सुकता रोक न सकी और वह दुकान खानदानी नानबाई मियाँ
नसीरुद्दीन की थी।
3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका
की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
उत्तरः- बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन
की दिलचस्पी लेखिका की बातों में खत्म होने लगी क्योंकि सच्चाई यह थी कि वह किसी बादशाह
का नाम नहीं जानते थे और न ही उनके परिवार का किसी बादशाह से संबंध था। वे जो बातें
बता रहे थे, वे बस सुनी-सुनाई थी। उस बात में तनिक भी सच्चाई नहीं थौ क्योंकि उनके
किसी बुजुर्ग ने किसी बादशाह के बावर्चीखाने में कभी काम हीं नहीं किया था। लेखिका
को डींगे मारने के बाद वह उसे सिद्ध नहीं कर सकते थे, इसलिए बादशाह का प्रसंग आते ही
वे बेरुखी दिखाने लगे।
4. मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे
हुए अंधड़ के आसार देख यह मजमून न छेड़ने का फैसला किया - इस कथन के पहले और बाद के
प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन
की दिलचस्पी लेखिका की बातों में खत्म होने लगी । उसके बाद वे अपने कारीगर बब्बन मियों
को भट्टी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका के मन में आया कि पूछ लें-'आपके बेटे-बेटियों
हैं?' मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मजमून न छेड़ने
का फैसला किया। अर्थात उनके चेहरे पर बेरुखी देखी तो उन्होंने उस विषय में कुछ न पूछना
ही ठीक समझा। इस प्रसंग के बाद लेखिका ने पूछा कि कारीगर लोग आपकी शागिर्दी करते हैं?
तो मियाँ ने खीजकर उत्तर दिया कि केवल शागिर्दी ही नहीं, दो रुपये मन आटा और चार रूपये
मन मैदा के हिसाब से इन्हें गिन-गिन कर मजूरी भी देता हैं। लेखिका द्वारा रोटियों के
नाम पूछने पर मियाँ ने पल्ला झाड़ते हुए कुछ रोटियों के नाम गिना दिए। इसके बाद लेखिका
ने उनके चेहरे पर तनाव देखा।
5. पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र
लेखिका ने कैसे खींचा है?
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन सत्तर वर्ष की आयु के हैं। मियाँ नसीरुद्दीन
का शब्दचित्र लेखिका ने कुछ इस प्रकार खींचा है लेखिका ने जब दुकान के अंदर झाँका तो
पाया कि मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी का मज़ा ले रहे हैं। मौसमों की मार से पका चेहरा,
आँखों में काइयों ओलापन और पेशानी पर मॅजे हुए कारीगर के तेवर। वे बड़े सधै अंदाज़
में बातों का जवाब देते हैं। कभी वे पंचहजारी अंदाज में सिर हिलाते हैं तो कभी अपनी
ऑर्थो के कंचे फेरते हैं तो कभी आंखें तरेरते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वे डींगे
मारने में सबसे माहिर है।
पाठ के आस-पास
1. मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको
अच्छी लगी?
उत्तर:- मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें हमें अच्छी
लगीं-
1. मियाँ नसीरुद्दीन ने अपने नानबाई पेशे को कला का दर्जा
दिया और करके सीखने को अपना असली हुनर समझा।
2. काम के प्रति रुचि एवं लगाव वे काम को अधिक महत्त्व देते
हैं। बातचीत के दौरान भी उनका ध्यान अपने काम में होता है।
3. आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व वे हर बात का उत्तर पूरे
आत्मविश्वास के साथ देते हैं।
4. वे शागिर्दों का शोषण नहीं करते। उन्हें काम भी सिखाते
हैं तथा कारीगरों को काम के बदले में उचित वेतन भी देते हैं।
5. वे छप्पन तरह की रोटियाँ बनाने में माहिर हैं। अपने पूर्वजों
से सीखे खानदानी पेशे को करने के साथ-साथ उसकी कद्र भी करते थे।
6. उनकी बातचीत की शैली आकर्षक है। उनके द्वारा निडरतापूर्वक
लेखिका के सभी सवालों का उत्तर देना।
2. तालीम की तालीम ही बड़ी चीज़ होती है-यहाँ
लेखिका ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है? क्या आप दूसरी बार आए तालीम
शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं? लिखिए
उत्तरः- यहाँ 'तालीम' शब्द का दो बार प्रयोग भाषा-सौंदर्य में वृद्धि
करने के लिए किया गया है। पहले 'तालीम' का अर्थ है-शिक्षा या प्रशिक्षण। यहाँ पर लेखिका
द्वारा प्रयुक्त दूसरी बार आए 'तालीम' शब्द का अर्थ है- पालन करना या आचरण करना या
कद्र या समझ या पकड़। इसका अर्थ यह है कि जो शिक्षा पाई जाए, उसकी पकड़ भी होनी चाहिए
उसका पालन करना भी जरूरी है। यह कथन मियाँ नसीरुद्दीन उस समय कहते हैं जब वे बता रहे
थे कि बचपन से इस नानबाई काम को देखते हुए भट्टी सुलगाना, बर्तन धोना आदि अनेक कामों
को करते-करते उन्हें तालीम की पकड़ आती गई। अतः दूसरी बार आए तालीम की जगह हम पकड़,
समझ, पालन शब्द भी लिख सकते हैं।
3. मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने
अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय
को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन के दादा साहिब थे-आला नानबाई मियाँ कल्लन,
दूसरे उनके वालिद मियों बरकत शाही नानबाई थे, इस प्रकार तीसरी पीढ़ी के मियाँ नसीरुद्दीन
ने अपना पारंपरिक व्यवसाय अपनाया ।
वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं
अपना रहे हैं क्योंकि खानदानी व्यवसाय की और लोगों की रूचि कम हो गई हैं। अब लोग पढ़-
लिखकर तकनीकी और शैक्षिक व्यवसाय की ओर जाना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें वह ज्यादा
आकर्षक और अधिक लाभप्रद लगता है। शिक्षा के प्रसार के कारण सेवा क्षेत्र में बढ़ोतरी
हुई है। अब यह क्षेत्र उद्योग और कृषि क्षेत्र से भी बड़ा हो गया है। पहले यह क्षेत्र
आज की तरह व्यापक नहीं था। नए-नए उद्योगों के विकास के कारण भी खानदानी पेशे समाप्त
होते जा रहे हैं।
4. मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफात है
अखबार की भूमिका को देखते हुए इस पर टिप्पणी करें।
उत्तरः-
अखबारनवीस 'पत्रकार' को कहते हैं। समाज को जागृत करने में अखबार की अहम भूमिका होती
हैं क्योंकि इनके लिए काम करने वाले पत्रकार नई-से- नई खबर की खोज में रहते हैं। पत्रकार
किसी भी घटना की तह तक पहुँचने के लिए प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं। लेखिका भौ मियाँ
नसीरुद्दीन के स्वभाव, व्यक्तित्व और रुचियों से परिचित होना चाहती थी। उसने पत्रकारों
की तरह ही मियाँ नसीरुद्दीन से प्रश्न पूछे। लेखिका की जिज्ञासा को देखकर मियाँ नसीरुद्दीन
को लगा कि लेखिका के प्रश्नों में अखबारनवीस की तरह ही खोजियों की खुराफात है। मियाँ
नसीरुद्दीन के अनुसार अखबार बनानेवाले व अखबार पढ़नेवाले दोनों ही निठल्ले होते हैं।
अखबार जनता को न्याय भी दिला सकते हैं परंतु आजकल की अखबारों में बातों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर
लिखा जाता है जिससे लोगों में उनका प्रभाव कम हो गया है।
पकवानों को जानें
पाठ
में आए रोटियों के अलग-अलग नामों की सूची बनाएँ और इनके बारे में जानकारी प्राप्त करें ।
पाठ में आए रोटियों के अलग-अलग नामों की सूची इस प्रकार है-
1. बाकरखानी
2. शीरमाल
3. ताफतान
4. बेसनी
5. खमीरी
6. रुमाली
7. गाव
8. गाजेबान
9. दीदा
10. तुनकी
भाषा की बात
1. तीन-चार
वाक्यों में अनुकूल प्रसंग तैयार कर नीचे दिए गए वाक्यों का इस्तेमाल करें।
क. पंचहजारी अंदाज़ से सिर हिलाया।
उत्तरः- हमारे पड़ोसी आस-पड़ोस के लोग को मुफ्त में योग सिखाते
हैं। एक दिन मैंने उनकी तारीफ़ को तो उन्होंने पंचहजारी अंदाज़ में सिर हिलाया।
ख. आँखों के कंचे हम पर फेर दिए।
उत्तरः- हमारे मित्र जब अपनी कविता की बढ़-चढ़कर प्रशंसा कर रहे थे
तो मैंने उनसे बेहतर कविताओं के उदाहरण दिए; इस पर नाराज़ होकर उन्होंने हम पर अपनी
आँखों के कंचे फेर दिए।
ग. आ बैठे उन्हीं के ठीये पर।
उत्तरः- वे सज्जन चाहे अपना फायदा देखते हों, परंतु समाज- सेवक अवश्य
हैं। वे क्षेत्र के प्रसिद्ध समाज-सेवी के चेले हैं। उनके जाने के बाद वे उन्हीं के
ठीये पर आ बैठे।
2. बिटर-बिटर देखना यहाँ देखने के एक खास तरीके
को प्रकट किया गया है? देखने संबंधी इस प्रकार के चार क्रिया-विशेषणों का प्रयोग कर
वाक्य बनाइए ।
उत्तरः- घूर घूरकर देखना- दारोगा लगातार जुम्मन को घूर- घूर कर देख रहा था।
टकटकी लगाकर देखना- चाँदनी रात में आसमान में खिले चाँद तारों को टकटकी लगाकर
देखना अच्छा लगता है।
चोरी-चोरी देखना- घर में सभी की उपस्थिति की वजह से सोहन अपनी मंगेतर को चोरी-चोरी
देख रहा था।
सहमी-सहमी नज़रों से देखना- भीड़ में खोया हुआ बच्चा जब अपने परिवार को मिलता है तब
वह सहमी सहमी नज़रों से सबको देखता है।
3. नीचे दिए वाक्यों में अर्थ पर बल देने के
लिए शब्द- क्रम परिवर्तित किया गया है। सामान्यतः इन वाक्यों को किस क्रम में लिखा
जाता है? लिखें।
क. मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ
बनाने के लिए।
ख. निकाल लेंगे वक्त थोड़ा।
ग. दिमाग में चक्कर काट गई है बात।
घ. रोटी जनाब पकती है आँच से।
उत्तरः
क. मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं।
ख. थोड़ा वक्त निकाल लेंगे।
ग. बात दिमाग में चक्कर काट गई है।
घ. जनाब! रोटी आँच से पकती है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न)
1. 'मियाँ नसीरुद्दीन' पाठ के लेखक कौन है?
क. मन्नू भंडार
ख. कृष्णा सोबती
ग. शेखर जोशी
घ. कृष्णनाथ
2. 'मियाँ
नसीरुद्दीन' किस विधा की रचना है?
क. आत्मकथा
ख. जीवनी
ग. संस्मरणात्मक रेखाचित्र
घ. रिपोर्ताज
3. 'मियाँ नसीरुद्दीन' किस संग्रह से लिया
गया है?
क. हम-हशमत
ख. शब्दों के आलोक में
ग. समय सरगम
घ. मित्रों मरजानी
4. मियाँ नसीरुद्दीन कितने किस्म की रोटियाँ
बनाने के लिए मशहूर थे?
क. चौबीस
ख. चालीस
ग. चौवालीस
घ. छप्पन
5. मियाँ नसीरुद्दीन नानबाइयों के क्या माने
जाते थे?
क. शागिर्द
ख. उस्ताद
ग. मसीहा
घ. इनमें से कोई नहीं
6. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास किस हैसियत
से गई थी?
क. पत्रकार की हैसियत से
ख. संपादक की हैसियत से
ग. कलाकार की हैसियत से
घ. निबंधकार की हैसियत से
7. मियाँ
नसीरुद्दीन ने किस्म किस्म की रोटी बनाने का इल्म
किससे सीखा?
क. खालाजान से
ख. वालिद उस्ताद से
ग. घड़ीसाज से
घ. मीनासाज से
8. मियाँ नसीरुद्दीन के वालिद किस नाम से मशहूर
थे?
क. बरकत शाही नानबाई गर्दैया वाले
ख. खालिद शाही अमरैया वाले
ग. कल्लन शाही नानबाई मिर्जा वाले
घ. इनमें से कोई नहीं
9. 'मियाँ
नसीरुद्दीन' ने भट्ठी पर पकने वाली रोटी का क्या नाम बताया ?
क. बाकरखानी
ख. शीरमाल
ग. ताफलान
घ. ये सभी
10. 'मियाँ नसीरुद्दीन' संस्मरण में लेखिका ने किस बादशाह का नाम लिया
है?
क.
शाहजहाँ
ख. बहादुर शाह जफर
ग.
शेरशाह सूरी
घ.
औरंगजेब
11. मियाँ नसीरुद्दीन ने किस रोटी को पापड़ से ज्यादा महीन बताया है?
क.
खमीरी
ख. तुनकी
ग.
गाजेबान
घ.
ताफतान
12. मियाँ नसीरुद्दीन किसे निठल्ला समझते हैं?
क.
अखबार बनाने वाले को
ख.
अखबार पढ़ने वाले को
ग. (क) और (ख) दोनों को
घ.
इनमें से कोई नहीं
13. 'जिंदगीनामा' के रचनाकार का क्या नाम है ?
क.
महादेवी वर्मा
ख. कृष्णा सोबती
ग.
सुभद्रा कुमारी चौहान
घ.
अमृता प्रीतम
14. 'मियाँ नसीरुद्दीन' नामक पाठ में किसके व्यक्तित्व का शब्द-चित्र
अंकित किया गया है?
क.
मियाँ नसीरुद्दीन के दादा का
ख.
मियाँ नसीरुद्दीन के पिता का
ग. मियाँ नसीरुद्दीन का
घ.
मियाँ नसीरुद्दीन के भाई का
15. मियाँ नसीरुद्दीन किस कला में प्रवीण थे?
क.
वस्तुकला
ख.
चित्रकला
ग.
भाषण-कला
घ. रोटी बनाने की कला
16. मियाँ नसीरुद्दीन कैसे इंसान का प्रतिनिधित्व करते थे?
क.
चालाक इंसान का
ख. त्यागशील इंसान का
ग. जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं
घ. जो अपने खानदान का नाम डुबोते हैं
17. जब लेखिका गर्दैया मुहल्ले से गुजर रही
थी तो उसे एक दुकान से कैसी आवाज़ सुनाई दी?"
क. पटापट की
ख. नृत्य करने की
ग. गीत की
घ. रोने की
18. पटापट आटे के ढेर को सानने की आवाज़ को
सुनकर लेखिका ने क्या सोचा था?
क. पराँठे बन रहे हैं
ख. सेवइयों की तैयारी हो रही है
ग. दाल को तड़का लग रहा है
घ. हलवा बनाया जा रहा है
19. 'समय सरगम' की विधा क्या है?
क. कहानी
ख. उपन्यास
ग. निबंध
घ. नाटक
20. लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से सबसे पहले कौन-सा प्रश्न किया था?
क. आप से कुछ एक सवाल पूछने थे?
ख.
आप से रोटियाँ बनवानी थीं?
ग.
आप क्या कर रहे हैं?
घ.
आपका नाम क्या है?
21. मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका को क्या समझा था?
क.
अभिनेत्री
ख.
नेत्री
ग. अखबारनवीस
घ.
कवयित्री
22. मियाँ नसीरुद्दीन ने अखबार के विषय में क्या कहा था?
क. खोजियों की खुराफात
ख.
धार्मिक लोगों का प्रयास
ग.
आय का साधन
घ.
प्रसिद्धि का आसान तरीका
23. अखबार बनानेवाले और अखबार पढ़नेवाले दोनों को मियाँ नसीरुद्दीन
ने क्या कहा था?
क.
कामकाजी
ख. निठल्ला
ग.
ईमानदार
घ.
बेईमान
24. कृष्णा सोबती का जन्म कब हुआ था?
क.
1921 ई.
ख.
1922ई.
ग.
1924ई.
घ. 1925ई.
25. मियाँ नसीरुद्दीन अपना उस्ताद किसे मानते हैं?
क. अपने वालिद को
ख.
अपने दादा को
ग.
अपने मामा को
घ.
अपने नाना को
26. कृष्णा सोबती को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस वर्ष मिला था?
क.
1960 ई.
ख.
1970ई.
ग.
1975ई.
घ. 1980ई.
27. मियाँ नसीरुद्दीन के दादा का क्या नाम था?
क. मियाँ कल्लन
ख.
मियाँ बरकत शाही
ग.
मियाँ दादूद्दीन
घ.
मियाँ सलमान अली
28. 'काम करने से आता है, नसीहतों से नहीं' ये कथन किसका है?
क.
लेखिका का
ख.
नसीरुद्दीन के दादा का
ग.
नसीरुद्दीन के पिता का
घ. नसीरुद्दीन का
29. 'तालीम की तालीम भी बड़ी चीज़ होती है' इस वाक्य में दूसरी बार
प्रयुक्त तालीम का क्या अर्थ है-
क.
शिक्षा
ख. शिक्षा का ज्ञान
ग.
उपदेश
घ.
नसीहत
30. 'कोई ऐसी चीज खिलाओ जो न आग से पके, न पानी से बने' ये शब्द किसने
कहे थे?
क. बादशाह सलामत
ख.
मियाँ नसीरुद्दीन
ग.
लेखिका
घ.
मियाँ कल्लन
31. कृष्णा सोबती को अपनी किस रचना के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार
मिला था?
क. जिंदगीनामा
ख.
हम हशमत
ग.
समय सरगम
घ.
बादलों के घेरे
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. नानबाई
किसे कहते हैं ?
उत्तरः- नानबाई उस व्यक्ति को कहते हैं जो विभिन्न प्रकार
की रोटियाँ बनाने और बेचने का काम करता है। यहाँ मियाँ नसीरुद्दीन नामक खानदानी नानबाई
का जिक्र हुआ है।
2. मियाँ
नसीरुद्दीन किसलिए प्रसिद्ध थे?
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के
लिए प्रसिद्ध थे।
3. 'पंचहज़ारी
अंदाज़' से क्या तात्पर्य है?
उत्तरः- पंचहज़ारी अंदाज़ का तात्पर्य है पाँच हज़ार सैनिकों के अधिकारी
का अंदाज़ अथवा बड़े-बड़े सेनापतियो- सा अंदाज । मुगलों के जमाने में पाँच हजार की
सेना के अधिकारी या नायक को पंचहज़ारी कहते थे । उसकी चाल-ढाल और बोल-चाल में अकड़
होती थी और आत्मविश्वास होता था। यह ऊँचा पद होता था। मियाँ नसीरुद्दीन की बातचीत में
भी वैसा ही गर्व तथा आत्मविश्वास था।
4. मियाँ नसीरुद्दीन निठल्ला (बेकार व्यक्ति)
किसे मानते थे?
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन अखबार बनानेवाले और अखबार पढ़नेवाले
दोनों को ही निठल्ला (बेकार व्यक्ति) मानते थे।
5. मियाँ नसीरुद्दीन के पिता किस नाम से प्रसिद्ध
थे?
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन के पिता बरकत शाही नानबाई गर्दैयावाले
के नाम से प्रसिद्ध थे।
6. बाप-दादा की नसीहत (शिक्षा) के बारे में
पूछे जाने पर मियाँ ने क्या उत्तर दिया?
उत्तरः- बाप-दादा की नसीहत के बारे में पूछे जाने पर मियाँ
ने उत्तर दिया कि काम करने से आता है, नसीहतों से नहीं।
7. मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार नानबाई का कार्य
सीखने से पहले क्या-क्या करना पड़ता है?
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार नानबाई का कार्य सीखने
से पहले बर्तन धोना, भट्टी जलाना आदि कार्य करने पड़ते हैं।
8. 'खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है'- कहावत का आशय स्पष्ट
कीजिए।
उत्तरः-
इस कहावत का आशय है कि कुशल नानबाई कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अच्छे से अच्छा
भोजन बना सकता है।
9. मियाँ नसीरुद्दीन अपने कारीगर को क्या मजदूरी देते थे?
उत्तरः-
मियाँ नसीरुद्दीन अपने कारीगर को दो रुपए मन आटे की और चार रुपए मन मैदे की मजदूरी
देते थे।
10. 'तुनकी' क्या है ? इसकी क्या विशेषता है ?
उत्तरः-
'तुनकी' एक विशेष प्रकार की रोटी का नाम है। यह राँटी पापड़ से भी अधिक पतली होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. 'मियाँ नसीरुद्दीन' पाठ का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तरः-
मियाँ नसीरुद्दीन कृष्णा सोबती के शब्द चित्र 'हम- हशमत' नामक संग्रह से लिया गया है।
इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र
खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज़ से रोटी पकाने की कला और उसमें
अपने खानदानी महारत को बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने
पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।
2. अखबार वालों के प्रति मियाँ नसीरुद्दीन का दृष्टिकोण कैसा है?
उत्तरः-
मियाँ नसीरुद्दीन अखबार छापने वालों को ही नहीं, अखबार पढ़ने वालों को भी निठल्ला समझते
हैं। उनकी नजरों में ये वक्त खराब करते हैं। वे खबरों को मसाला लगाकर छापते हैं। इससे
लोगों को कोई लाभ नहीं मिलता बल्कि समाज में व्यर्थ की उथल-पुथल मच जाती है। मियाँ
अखबार पढ़ने से ज्यादा महत्त्व काम को देते हैं। वे अखबारों की खोजी प्रवृत्ति से भी
चिढ़ते है।
3. मियाँ नसीरुद्दीन सच्ची तालीम किसे मानते हैं ?
उत्तरः-
मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार सच्ची तालीम व्यावहारिक प्रशिक्षण है। उनके अनुसार, जब
तक कोई आदमी पहले बर्तन मॉजना, भट्टी बनाना, भट्टी में ऑच देना नहीं सीखता, तब तक वह
अच्छा नानबाई नहीं बन सकता। केवल कागजी या जबानी बातों से काम नहीं सीखा जा सकता है।
तालीम को अपनाना बहत महत्त्वपूर्ण है। उसके बिना सच्ची शिक्षा नहीं आ सकती।
4. मियाँ नसीरुद्दीन किस कला के माहिर थे ? यह महारत उन्होंने कैसे
हासिल की?
उत्तरः-
मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी नानबाई थे। उन्हें छप्पन किस्म की रोटी पकाने की कला में
महारत हासिल थी। उन्होंने यह कला अपने पिता और दादा से सीखी थी, लेकिन महारत कठोर श्रम
और निरंतर अभ्यास से प्राप्त की थी।
5. स्वयं को खानदानी नानबाई साबित करने के
लिए मियाँ नसीरुद्दीन द्वारा क्या किस्सा सुनाया गया ?
उत्तरः- स्वयं को सभी नानबाइयों में श्रेष्ठ साबित करने के
लिए मियाँ नसीरुद्दीन ने फरमाया कि हमारे बुजुर्गों से बादशाह सलामत ने यूँ कहा- मियाँ
नानबाई, कोई नई चीज़ खिला सकते हो ? कोई चीज ऐसी जो न आग से पके, न पानी से बने। बस
हमारी बुजुर्गों ने वह खास चीज बनाई, बादशाह सलामत ने खाई और खूब सराही। लेखिका ने
जब उस चीज़ का नाम पूछा तो उन्होंने बड़ी बेरुखी से नाम बताने से इंकार कर दिया। ऐसा
लग रहा था मानों यह महज एक किस्सा ही था, पर मियाँ से जीत पाना मुश्किल काम था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. 'मियाँ नसीरुद्दीन' शब्द चित्र में निहित
संदेश स्पष्ट कीजिए ।
उत्तरः- 'मियाँ नसीरुद्दीन' शब्दचित्र में लेखिका कृष्णा
सोबती ने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का वर्णन
करते हुए यह बताया है कि मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई का काम अत्यन्त ईमानदारी और मेहनत
से करते थे। यह कला उन्होंने अपने पिता से सीखी थी। वे अपने इस कार्य को किसी भी कार्य
से कमतर नहीं मानते थे। उन्हें इस बात पर गर्व है कि वे अपने खानदानी पेशा को अच्छी
प्रकार से चला रहे हैं। वे छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाना जानते थे। वे ऐसे इंसान का
प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली
हुनर मानते हैं। इस प्रकार मियाँ नसीरुद्दीन के माध्यम से लेखिका यह संदेश देना चाहती
है कि हमें अपना काम पूरी मेहनत तथा ईमानदारीपूर्वक करना चाहिए। कोई भी व्यवसाय छोटा-बड़ा
नहीं होता है। हमें अपने व्यवसाय के प्रति समर्पण और लगन होना चाहिए तभी हमें सफलता
मिलेगी।
2. पाठ के अंत में लंबी साँस लेकर मियाँ क्या
कहते हैं ? उसमें छिपे दर्द को व्यक्त कीजिए ।
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन ने लंबी साँस खींचकर कहा-'उतर गए
वे ज़माने। और गए वे कद्रदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे। मियाँ अब क्या रखा
है... निकाली तंदूर से निगली और हज़म ।' मियाँ नसीरुद्दीन के इस कथन में गुम होती कला
की इज्जत का दर्द दृष्टिगत हो रहा है। पहले जमाने में लोग कला की कद्र करते थे। वे
पकानेवालों की मेहनत, कलाकारी और योग्यता का सम्मान करते थे। अब जमाना बहुत तेजी से
बदल रहा है। अब किसी के पास समय नहीं है। इस भाग दौड़ की जिंदगी में हर व्यक्ति केवल
पेट भरने का काम कर रहा है। खाने वाले और पकाने वाले-दोनों ही जल्दबाजी में हैं। उन्हें
स्वाद की कोई परवाह नहीं है। वर्तमान युग में कला के पारखी और सराहने वाले नहीं हैं।
यही कारण है कि हमारे देश में अनेक पारंपरिक कलाएँ दम तोड़ रही हैं।
3. पाठ
के आधार पर मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व और चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तरः- मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी नानबाई थे। उनके पिता मियाँ बरकतशाही तथा दादा मियाँ कल्लन भी मशहूर नानबाई थे। मियाँ ने भी उसी पंरपरा को आगे बढ़ाया। । वे छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। अपने पेशे के प्रति गहरी निष्ठा और गर्व का एहसास उनके व्यक्तित्व का सबसे सफल पक्ष है। अपने बुजुर्गों- वालिद और दादा साहब के लिए उनके मन में असीम श्रद्धा की भावना है। वे काम को अधिक महत्त्व देते हैं। बातचीत के दौरान भी उनका ध्यान अपने काम में होता है। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हनर मानते हैं। उनका विश्वास है कि काम करने से आँता है नसीहतों से नहीं। उन्होंने बताया कि जिस तरह बच्चा पहले अलिफ़ से शुरू होकर आगे बढ़ता है या फिर कच्ची, पक्की, दूसरी से होते हुए ऊँची जमात में पहुंच जाता है उसी प्रकार उन्होंने भी छोटे-छोटे काम जैसे बर्तन धोना, भट्टी बनाना, भट्टी को आँच देना आदि करके हुनर पाया है। तालीम की तालीम भी बड़ी चीज़ होती है। उन्होंने सभी छोटे- बड़े काम उत्साह के साथ किया और उनकी समझ हासिल की है। श्रम और अभ्यास उनके जीवन का मूल मंत्र रहा है। पुराने जमाने की यादें उन्हें व्याकुल कर देती हैं । पहले जमाने में लोग कलाकारों की कद्र करते थे। वे पकाने वालों का सम्मान करते थे। अब जमाना बहुत बदल गया है। अब हर व्यक्ति केवल पेट भरने काँ काम करता है, उसे स्वाद की कोई परवाह नहीं है। यही कारण है कि देश की पुरानी कलाएँ दम तोड़ रही हैं। नए जमाने में पकाने-खाने की कद्र नहीं है, यहीं मियाँ नसीरुद्दीन का सबसे बड़ा दर्द है।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
आरोह भाग-1 | |
पाठ सं. | अध्याय का नाम |
काव्य-खण्ड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | 1. हे भूख ! मत मचल, 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर- अक्कमहादेवी |
7. | |
8. | |
गद्य-खण्ड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
वितान | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |