Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 काव्य-खंड पाठ 8. आओ, मिलकर बचाएँ

Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 काव्य-खंड पाठ 8. आओ, मिलकर बचाएँ

Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 काव्य-खंड पाठ 8. आओ, मिलकर बचाएँ

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11 Hindi Core

आरोह भाग -1 काव्य-खंड

पाठ 8. आओ, मिलकर बचाएँ - निर्मला पुतुल

जीवन-सह-साहित्यिक परिचय

कवयित्री- निर्मला पुतुल

जन्म- 6 मार्च, 1972 दुमका (झारखण्ड),

माता- कांदिनी हांसदा

पिता- सिरील मुरम्,

शिक्षा- राजनीति शास्त्र से स्नातक और नर्सिंग में डिप्लोमा।

रचनाएं- नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में। निर्मला पुतुल बहुचर्चित संथाली लेखिका, कवयित्री के साथ-साथ सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। इनकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी, मराठी, उर्दू, उड़िया, कन्नड़, नागपुरी, पंजाबी, नेपाली आदि भाषाओं में हो चुका है।

कविता लेखन के साथ-साथ पिछले 15 वर्षों से भी अधिक समय से निर्मला शिक्षा, सामाजिक विकास, मानवाधिकार और आदिवासी महिलाओं के समग्र उत्थान के लिए व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर लगातार सक्रिय हैं। अनेक राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय सम्मान हासिल कर चुकी निर्मला फिलहाल निर्वाचित मुखिया हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ- निर्मला जी अपनी कविताओं में आदिवासी समाज की विसंगतियों को काफी तल्लीनता से दिखाया है। कठिन परिश्रम के बावजूद खराब आर्थिक स्थिति, कुरीतियों के कारण बिगड़ी पीढ़ी, थोड़े लाभ के लिए बड़े समझौते, स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण की क्षति, पुरुष वर्चस्व, शिक्षित समाज का दिक्क्ओं और व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बनना आदि वे सब परिस्थितियाँ हैं जो उनकी कविताओं के केंद्र में मौजूद हैं। वह संथाली समाज की सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को बड़ी बेबाकी से कलात्मकता के साथ हमारे सामने रखती हैं। संथाली समाज में जहां एक तरफ सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कड़ी मेहनत करने की क्षमता जैसे सकारात्मक तत्व हैं, वहीं दूसरी और उनमें अशिक्षा, कुरीतियां और शराब की ओर बढ़ता झुकाव भी है।

 पाठ-परिचय

कवयित्री निर्मला पुतुल 'आओ, मिलकर बचाएं कविता के माध्यम से अपनी अनोखी संथाली सभ्यता व संस्कृति से हमारा परिचय कराती है। वह अपने लोगों से अपने क्षेत्र के प्राकृतिक परिवेश, शुद्ध हवा, पानी, पेड़ पौधों, लोकगीतों व अपनी सभ्यता व संस्कृति को सहेजकर व बचाकर रखने का आग्रह करती हैं। उन्होंने संथाली समाज के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों का यथार्थ चित्रण किया है। वे आदिवासी जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को कलात्मकता के साथ हमसे परिचय कराती हैं। संथाली समाज में जहाँ एक ओर सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कठोर परिश्रम की क्षमता जैसे सकारात्मक तत्व है वहीं दूसरी ओर उनमें और अशिक्षा, कुरीतियां और शराब की ओर बढ़ता झुकाव, कड़ी मेहनत के बावजूद खराब दशा, थोडे लाभ के लिए बड़े समझौते, शिक्षित आदिवासियों का व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बन जाना आदि वे स्थितियां हैं जो कविता के केंद्र में हैं।

इस कविता में कवयित्री उन चीजों को बचाने की बात करती हैं, जिनका होना स्वस्थ सामाजिक परिवेश के लिए निहायत जरूरी है। प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आदिवासी समाज आज संकट में है, कविता का मूल स्वर यही है।

संथाली भाषा से इस कविता का हिंदी रूपांतरण अशोक सिंह ने किया है।

 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है ?

उत्तर- कवयित्री ने 'माटी का रंग' वाक्यांश का प्रयोग करते हुए संथाल परगना के लोकजीवन की विशेषताओं की और संकेत किया है। वह बताना चाहती है कि उनके जीवन में उल्लास होता है। मन में मधुरता होती है। वे भोले जरूर होते हैं, परन्तु आत्म-सम्मान के लिए संघर्ष की भावना भरी होती है।

प्रश्न 2. भाषा में झारखण्डीपन का क्या अभिप्राय है?

उत्तर 'भाषा में झारखण्डीपन' का अभिप्राय है-झारखण्ड की भाषा की स्वाभाविकता एवं मौलिकता। उच्चारण में उनकी भाषा पर झारखंड प्रांत विशेष में बोली जानी वाली भाषा का प्रभाव होना।

प्रश्न 3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?

उत्तर- कवयित्री का मानना है कि झारखण्डी लोग स्वभाव से ही भोले होते हैं। उनका मन बिल्कुल साफ होता है, साथ ही उनमें अक्खड़पन और जुझारूपन भी होता है। स्वभाव के भोलेपन के साथ अक्खड़पन और संघर्षशीलता का गुण विरोधी नहीं बल्कि पूरक ही होता है। प्रायः भोले लोग ही अनीति अत्याचार के विरुद्ध तनकर खड़े होते हैं तथा संघर्ष करते हुए कठोर रुख अख्तियार करते हैं। चालाक मनुष्य तो बैराई के विरोध को भी हानि-लाभ से गुणा करके देखता है। जबकि भोले लोगों को अत्याचार सहन नहीं होता और वे विरोध के लिए उत्तर पड़ते हैं। अतः कवयित्री चाहती है कि दिल के ओलेपन के साथ उनके अक्खड़पन तथा जुझारूपन की भी रक्षा हो।

प्रश्न 4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है ?

उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने आदिवासी समाज की कुछ बुराइयों की ओर भी संकेत किया है। शहर की दूषित संस्कृति के कारण संथाल समाज में नंगापन आ गया है। लौंग अमर्यादापूर्ण आचरण करने लगे हैं। थोड़े से लालच में आकर बड़े समझौते कर लेना, शिक्षित समाज का चापलूस लोगों के अधीन हो जाना, अशिक्षा और अपनी मेहनत की कमाई को शराब में डुबो देने से उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति ऊपर नहीं उठ पा रही है।

प्रश्न 5. 'इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है' से क्या आशय है ?

उत्तर- 'इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है। इस पंक्ति में कवयित्री मान रही हैं कि आज का समय शहर की अप-संस्कृति की वृद्धि का है। शहरीकरण ने संथाली जीवन की मौलिकता में भी अनेक परिवर्तन ला दिए हैं। वहाँ का पर्यावरण दूषित कर दिया है, परन्तु ऐसी स्थिति में भी उनके पास कुछ ऐसी चीजें हैं जो सामाजिक- प्राकृतिक परिवेश को स्वस्थ बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिनको बचाना आवश्यक है। वहाँ जो थोड़ा-सा विश्वास, आशा और आकांक्षा बची है, उनको बचाना जरूरी है। उन्हीं के शब्दों में-"थोड़ा-सा विश्वास / थोड़ी-सी उम्मीद / थोडे-से सपने /आओ, मिलकर बचाएँ / कि इस दौर में भी बचाने को/ बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास!"

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौन्दर्य को उ‌द्घाटित कीजिये –

(क) ठण्डी होती दिनचर्या में

जीवन की गर्माहट

(ख) थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ी-सी उम्मीद

थोडे-से सपने

आओ, मिलकर बचाएँ।

उत्तर- काव्य-सौन्दर्य -

(क) 'ठण्डी होती दिनचर्या' एक लाक्षणिक प्रयोग है। इसका आशय है वह दैनिक क्रिया-कलाप जिसमें न उत्साह हो, न उमंग। जो एक बँधी-बंधाई गति से चलता जाता हो। 'जीवन की गर्माहट' में भी सांकेतिकता है। गर्माहट जीवन की सजगता एवं उमंग-उत्साह का प्रतीक है। इन दोनों कथनों में सांकेतिक भाषा के कारण प्रतीकात्मकता है। इन पंक्तियों में अर्थ-गाम्भीर्य है। मुक्त छन्द अतुकान्त है, भाषा सरल-सहज एवं शैली में प्रवाह है।

(ख) इन पंक्तियों के द्वारा कवयित्री ने शहरीकरण (ख के दुष्प्रभाव के उपरान्त भी संथाली लोकजीवन में बचे हुए सद्‌गुणों और विशेषताओं की रक्षा का आग्रह किया है। आज के समाज में बढ़ती अनैतिकता एवं अंधानुकरण को देखकर उन्होंने संथाली समाज में शेष बचे विश्वास, आशा और सपनों को बचाने का आग्रह करती हैं। कविता में थोड़ा-सा, थोड़ी-सी, थोड़े से शब्दों का प्रयोग किया है, जो अत्यन्त प्रभावशाली है।

कविता की पंक्तियां मुक्त छन्द और अतुकांत है। भाषा सरल, सहज, शैलौ में प्रवाह एवं कथन अत्यंत प्रभावशाली है।

प्रश्न 7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है ?

उत्तर- संथाली कवयित्री झारखंड की अपनी संथाली आदिवासी संस्कृति को शहरी सभ्यता-संस्कृति के कुप्रभाव से दूर रखना चाहती हैं। क्योंकि अब आदिवासौ लोग भी अपनी संस्कृति को छोड़कर धीरे-धीरे शहरी तौर-तरीके अपनाने लगे हैं। लोगों में तन ढकने के बजाय तन दिखाने की होड़ मची है। इसके साथ ही धरती को पेड़- पौधों से विहीन किया जा रहा है। शहर की आबो-हवा में प्रकृति से दूरी, अपवित्रता, बनावटीपन, छल-कपट आदि बुराइयाँ होती हैं। ती हैं। उसमें नीरसता, उत्साहहीनता, एक ढर्रे पर चलती हुई बंधी-बंधाई जिन्दगी तथा संवेदनहीनता होती है। बस्तियों को इन बुराइयों से बचाना आवश्यक है, ताकि संथाली परम्परा अपने स्वाभाविक रूप में बची रहे।

 कविता के आस-पास

प्रश्न 1. आप अपने शहर या बस्ती की किस चीज को बचाना चाहेंगे?

उत्तर- हम अपने शहर या बस्ती की मौलिक विशेषताओं को बचाना चाहेंगे क्योंकि उसकी पहचान पूरी दुनिया में इन्हीं चीजों से होती है। इसके अलावा हम यह भी चाहेंगे कि कुछ ऐतिहासिक धरोहरों की भी रक्षा हो, जो हमारे शहर की शान हैं।

प्रश्न 2. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।

उत्तर - शहरी सभ्यता के बढ़ते प्रभाव के कारण आज आदिवासी समाज की मौलिकता नष्ट हो रही है। शिक्षा के प्रचार- प्रसार, संचार-साधनों के विस्तार तथा शहरीकरण की संस्कृति से सम्पर्क के कारण आदिवासी समाज का जीवन यानी उनका रहन-सहन, खान-पान, पहनावा सब कुछ बदल रहा है तथा पर्यावरण के विनाश के कारण प्रदूषण भी बढ़ रहा है। इन्हीं सब वजहों से आज आदिवासी समाज अपना नैसर्गिक आकर्षण खोता जा रहा है।

 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न)

1. कवयित्री ने किस समाज को बेबाकी से प्रकट किया है?

क. मुंडा

ख. भील

ग. कोंकणी

घ. संथाली

2. निर्मला पुतुल का जन्म कब हुआ है?

क. सन् 1972 हजारीबाग

ख. सन् 1970 हजारीबाग

ग. सन् 1972 दुमका

घ. सन् 1970 दुमका

3. 'नगाड़े की तरह बजाते शब्द' किसकी रचना है?

क. निर्मला पुतुल

ख. कवि पाश

ग. दुष्यंत कुमार

घ. त्रिलोचन

4. 'आओ, मिलकर बचाएँ कविता को किसने अनुवाद किया है ?

क. मोहन सिंह

ख. रघुनाथ सिंह

ग. मोहन यादव

घ. अशोक सिंह

5. 'आओ, मिलकर बचाएँ 'शीर्षक कविता मूल रूप से किस भाषा में लिखी गई है?

क. संथाली भाषा में

ख. उड़िया भाषा में

ग. नागपुरी भाषा में

घ. मुंडारी भाषा में

6. यह दौर कैसा है ?

क. विश्वास भरा

ख. अविश्वास भरा

ग. विद्रोह भरा

घ. विध्वंस भरा

7. कवयित्री ने किसके जीवन के अनछुए पहलुओं से परिचय कराया है ?

क. आदिवासी जीवन के

ख. ग्रामीण जीवन के

ग. शहरी जीवन के

घ. पहाड़ी जीवन के

8. नाचने के लिए कैसे आँगन की आवश्यकता है ?

क. सीधे

ख. छोटे

ग. टेढ़े

घ. खुले

9. रोने के लिए क्या चाहिए ?

क. कठोरता

ख. मुट्ठी भर एकांत

ग. शांत घर

घ. खुला छत

10. बूढ़ों को किस चीज़ की आवश्यकता है?

क. पैसे की

ख. शांति की

ग. वन की

घ. प्यार की

11. लेखिका के अनुसार इस कविता की भाषा में कौन-सा पन है ?

क. झारखंडी

ख. संथाली

ग. बागड़ी

घ. मारवाड़ी

12. लेखिका का जन्म कहां हुआ है?

क. दुमका

ख. हजारीबाग

ग. देवघर

घ. कोडरमा

13. प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण किसका समाज संकट में है?

क. आदिवासियों का

ख. शहरवासियों कासश

ग. गाँववासियों का

घ. कस्बेवासियों का

14. प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने किसके प्रति चिंता उजागर की है ?

क. अपने प्रति

ख. देश के प्रति

ग. शिक्षा के प्रति

घ. संथालों के प्रति

15. कवयित्री किसे अमर्यादित होने से बचाने का आह्वान करती हैं?

क. अपने परिवार को

ख. अपने समाज को

ग. अपनी संस्कृति को

घ. इनमें से कोई नहीं

16. शहरी संस्कृति के प्रभाव में आकर किन लोगों की दिनचर्या में ठहराव आ गया है?

क. गरीब लोगों की

ख. ग्रामीणों की

ग. झारखंड के लोगों की

घ. इनमें से कोई नहीं

17. कवयित्री पूरी बस्ती को किसमें डूबने से बचाना चाहती हैं?

क. बाढ़ में

ख. हड़िया में

ग. पानी में

घ. किसी में नहीं

18. धनुष की डोरी किसकी प्रतीक है?

क. साहस की

ख. शिकार की

ग. वीरता की

घ. युद्ध की

19. आदिवासी किस पर निर्भर करते हैं?

क. सरकार पर

ख. समाज पर

ग. प्रकृति पर

घ. इनमें से किसी पर भी नहीं

20. कवयित्री मानव को कैसे रहने का आग्रह करती है ?

क. सभी से दूर रहने का

ख. सभी से अलग रहने का

ग. मिल-जुल कर रहने का

घ. कोई आग्रह नहीं करती

 अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवयित्री निर्मला पुतुल की दो रचनाओं के नाम लिखें।

उत्तर-

1. नगाड़े की तरह बजते शब्द और

2. अपने घर की तलाश में।

प्रश्न 2. इस कविता में कवयित्री क्या बचाने के लिए आह्वान करती है?

उत्तर- इस कविता में कवयित्री संथाली आदिवासी बस्ती को शहरीकरण की अंधानुकरण से बचाने के लिए आह्वान करती है।

प्रश्न 3. कविता में मन का हरापन से क्या तात्पर्य है?

उत्तर- मन का हरापन से तात्पर्य है मन की सरसता, मधुरता, कोमलता और उमंग।

4. कविता में भीतर की आग से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- इसका तात्पर्य है आंतरिक जोश, उत्साह और संघर्ष करने की क्षमता।

5. आदिवासियों की दिनचर्या का अंग कौन सी चीजें हैं?

उत्तर-आदिवासियों की दिनचर्या का अंग तीर- धनुष और कुलहाड़ियों होती हैं।

प्रश्न 6. 'इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास' से क्या तात्पर्य हैं?

उत्तर- शहर की दूषित संस्कृति ने संथाली समाज को बहुत हानि पहुँचाई है, परन्तु संथाली समाज में अब भी ऐसी अनेक अच्छाइयों बची हुई हैं, जिनको नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 7. कवयित्री ने आज के युग को कैसा बताया है?

उत्तर- कवयित्री ने आज के युग को अविश्वास से भरा बताया है। आज कोई एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करता।

प्रश्न 8. कवयित्री ने आज के समय के किन दोषों की चर्चा की है?

उत्तर- आज चारों ओर अविश्वास का वातावरण है। लोग एक- दूसरे की बात का विश्वास नहीं करते हैं। स्वार्थ लोगों पर हावी है। अविश्वास और स्वार्थ का यह वातावरण वर्तमान समय का बहुत बड़ा दोष है

प्रश्न 9. अक्खड़पन का क्या तात्पर्य है?

उत्तर- अक्खड़पन का अर्थ है- किसी बात को लेकर रुखाई से तन जाने का भाव ।

प्रश्न 10. आज के अविश्वास भरे दौर में कवयित्री क्या बचाना चाहती हैं?

उत्तर- आज के अविश्वास भरे दौर में थोड़ा सा विश्वास, थोड़ी सी उम्मीद और थोड़े से सपने कवयित्री बचा लेना चाहती हैं।

 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निर्मला पुतुल की कविताओं के केंद्र में क्या है ?

उत्तर- कठिन परिस्थितियों के बावजूद खराब दशा, कुरीतियों के कारण बिगड़ती पीढ़ी, थोड़े लाभ के लिए बड़े समझौते, पुरुष वर्चस्व, स्वार्थ के लिए पर्यावरण की हानि, शिक्षित समाज का दिक्कुओं और व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बनना ऑदि वे परिस्थितियों हैं जो निर्मला पुतुल की कविताओं के केंद्र में मौजूद है।

प्रश्न 2. बस्तियों के नंगी होने का क्या आशय है ?

उत्तर- शहरी सभ्यता और संस्कृति का तेजी से फैलता हुआ प्रभाव आदिवासियों की बस्तियों पर पड़ रहा है तथा वे उससे प्रभावित होकर उसे ग्रहण कर रहे हैं। इससे आदिवासियों की संस्कृति की मौलिकता नष्ट हो रही है। आदिवासियों के जीवन में नगरों की नग्नता, अश्लीलता आदि बुराइयों प्रवेश कर रही हैं। जंगलों का विनाश हो रहा है। इससे वहाँ की प्राकृतिक सुषमा नष्ट हो रही है तथा वातावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है।

प्रश्न-3. आज आदिवासी समाज संकट में क्यों है?

उत्तर- प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज संकट में है। नगरीकरण की वजह से संथाली समाज में भी अनेकों बुराइयां प्रवेश कर गई हैं। जिसमें अशिक्षा, कुरीतियां और शराब की ओर बढ़ता झुकाव प्रमुख है। शिक्षित आदिवासियों का पूंजीपतियों और राजनीतिक लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाना, स्वार्थ के लिए पर्यावरण के साथ समझौता, क्षणिक लाभ के लिए बड़े समझौते, ईष्या, नशा, आदि ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से आदिवासी समाज आज संकट में है।

प्रश्न 4. झारखंड के प्राकृतिक वातावरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर- प्राकृतिक दृष्टि से झारखंड एक सुन्दर प्रदेश है। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण अत्यन्त मनोरम है। यहाँ निर्मल जल वाली नदियाँ बहती हैं। यहाँ के पहाड़ शांत और सुन्दर हैं। यहाँ के निवासी संगीत-नृत्य कुशल हैं। झारखण्ड ना केवल खनिज सम्पदा से लबालब भरा हुआ है, बल्कि वनों एवं जीव जन्तुओ की बहुलता के कारण पर्यटन का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र बनता जा रहा है। यहाँ हरी-भरी फसलें लहराती हैं।

प्रश्न 5. आदिवासियों के गुणों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- झारखंड का संथाल परगना आदिवासियों की पैतृक भूमि है। वहाँ रहने वाले संथाली कहलाते हैं। वे संथाली भाषा बोलते हैं। धनुष-बाण उनके प्रिय अस्त्र हैं। कुल्हाड़ी से वे जंगल से लॅकड़ियों काटकर अपना जीवनयापन करते हैं। वे अक्खड़ और जुझारु होते हैं। किन्तु मन से भोले और पवित्र चित्त वाले होते हैं। वे उत्साही तथा साहसी होते हैं और वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं।

प्रश्न 6. अविश्वास के दौर में कवयित्री क्या चाहती है ?

उत्तर- आज विश्व में चारों ओर अविश्वास का वातावरण है। कोई किसी की बात पर विश्वास नहीं करता। कवयित्री चाहती हैं कि आदिवासी लोग इस दोष से बचे रहें। आदिवासियों के जीवन में अब भी विश्वास तथा आशा के भाव और मन में कुछ सपने तैरते हैं। कवयित्री चाहती हैं कि आदिवासियों में ये सब अच्छाईयां बची रहें। कवयित्री नहीं चाहती कि समय के चक्र में पड़कर उनकी यह विशेषताएँ नष्ट हो जाएं।

 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

अपनी बस्तियों को

नंगी होने से

शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे

बचाएँ डूबने से

पूरी की पूरी बस्ती को

हड़िया में

अपने चेहरे पर

सन्थाल परगना की माटी का रंग

भाषा में झारखंडी पन

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक 'आरोह' भाग-2 कविता 'आओ, मिलकर बचाएं' से ली गई हैं। जो निर्मला पुतुल द्वारा रचित है। यह कविता मूल रूप से संथाली भाषा में है। इस कविता में कवयित्री ने अपने परिवेश की संस्कृति को बचाने का आह्वान किया है।

व्याख्या- प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने शहरी वातावरण का विरोध किया है। उन्हें लगता है कि शहरी वातावरण के कारण उनकी बस्ती का वातावरण बर्बाद हो रहा है। वह अपनी बस्ती को शहरी जीवन में परिवर्तित होने से बचाना चाहती हैं।

इसलिए वह लोगों का आह्वान करती हैं और कहती हैं कि हम सबको मिलकर हमारी बस्ती को बचाना चाहिए, क्योंकि यदि एक बार हमारी बस्ती को शहर की हवा लग गई, तो हमारी बस्ती पूरे तरीके से बर्बाद हो जाएगी। आदिवासी समाज में हड़िया पीने की बुरी आदत है. इसकी वजह से लोगों का आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा है। लोग दिन भर जितना कमाते हैं शाम होते ही हड़िया पीकर दिन भर की कमाई खत्म कर देते हैं। इसकी वजह से महिलाओं को घरेलू हिंसा सहित कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं होशियार और चालाक लोग उन्हें हड़िया पिलाकर कई बार उनकी संपत्ति को भी अपने नाम कर लेते हैं। कवयित्री इन सब वजहों से हड़िया नहीं पीने के लिए लोगों को जागरूक करना चाहती हैं।

अगली पंक्ति में कवयित्री कहती हैं हम संथाली लोग हैं और संथाल की मिट्टी, संथाल की आषा हम सबके चेहरे पर साफ-साफ झलकना चाहिए। हमें शहरों के रंग में नहीं बदलने चाहिए, वरना हमारा अस्तित्व मिट जाएगा।

विशेष-

प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने उर्दू मिश्रित खड़ी बोली का प्रयोग किया है। शहरी आबो-हवा अपसंस्कृति का प्रतीक है। कवयित्री में अपने परिवेश को बचाने की तड़प दिखाई पड़ती है।

भाषा-शैली सरल, सहज और प्रवाहमयी है। पूरी कविता छंद मुक्त और तुकांत रहित है।

प्रश्न 2. 'आओ, मिलकर बचाएँ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवयित्री निर्मला पुतुल संथाली भाषा की साहित्यकार हैं। उनकी प्रसिद्ध कविता 'आओ, मिलकर बचाएँ हर्म संथाली लोगों के जीवन-संघर्ष से परिचित कराती है तथा उनकी विशेषताओं को सुरक्षित बचाये रखने का आह्वान करती है। संथाली जीवन प्रकृति के अनुकूल चलता है। उनमें कोई बनवावटीपन नहीं है। वहाँ के लोगों का स्वभाव सरल, सहज और निष्कपट होता है। व्यवहार से मधुर तथा कार्य-शैली में जोशीले और मेहनती होते हैं।

धनुष-बाण, कुल्हाड़ी आदि रखना उनकी पहचान है। वहाँ की वायु, नदियों का जल तथा पहाड़ों का वातावरण प्रकृति के अनुकूल, स्वच्छ, पवित्र और शान्त होता है। वे सहज जीवन जीते हैं और स्वाभाविक रीति से हँसते- रोते हैं। वहाँ बच्चों के खेलने के लिए मैदान, पशुओं के लिए चारागाह तथा वृद्धों के लिए शान्त पहाड़ होते हैं। कवयित्री चाहती हैं कि संथाली जीवन की ये मूल विशेषताएँ बनी रहें। शहर की सभ्यता की घुसपैठ के कारण संथाल की इन विशेषताओं को खतरा पैदा हो रहा है। कवयित्री चाहती है कि हम उनको शहरी सभ्यता के इस खतरे से बचायें।

प्रश्न 3. 'आओ, मिलकर बचाएँ कविता का क्या संदेश है?

उत्तर- 'आओ, मिलकर बचाएँ कविता में संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल ने आदिवासी जीवन के संकट की चर्चा की है। कंवौयत्री स्वयं आदिवासी समाज की हिस्सा है। शहरीकरण के द्वारा पाश्चात्य अपसंस्कृति के फैलाव और प्रभाव के कारण आदिवासी सभ्यता-संस्कृति की मौलिकता को नष्ट होने का खतरा है। शहरी संस्कृति की बुराईयाँ आदिवासी जीवन के सौन्दर्य को नष्ट कर रही हैं। उनमें नग्नता और अश्लीलता बढ़ रही है। स्मैक आदि नशीले पदार्थों के सेवन से उनका स्वास्थ्य नष्ट हो रहा है। उ‌द्योग-धंधों की स्थापना होने से जंगल का क्षेत्र घट रहा है और प्राकृतिक सुन्दरता नष्ट हो रही है। आर्थिक विकास के नाम पर होने वाला प्राकृतिक और अनैतिक कार्य उनको स्वीकार नहीं है। विकास के नाम पर आदिवासियों के संसाधनों को उनसे छीनना कवयित्री को सही नहीं लगता। उन्होंने इस कविता के माध्यम से आदिवासियों के जीवन को बचाने का संदेश दिया है। इस दिशा में मिल जुलकर काम करने को कहा है।                                         

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विषय सूची 

आरोह भाग-1

पाठ सं.

अध्याय का नाम

काव्य-खण्ड

1.

हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना- कबीर

2.

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई- मीराबाई

3.

घर की याद भवानी- प्रसाद मिश्र

4.

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती- त्रिलोचन

5.

गज़ल- दुष्यंत कुमार

6.

1. हे भूख ! मत मचल, 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर- अक्कमहादेवी

7.

सबसे खतरनाक- अवतार सिंह पाश

8.

आओ, मिलकर बचाएँ- निर्मला पुतुल

गद्य-खण्ड

1.

नमक का दारोगा- मुंशी प्रेमचंद

2.

मियाँ नसीरुद्दीन- कृष्णा सोबती

3.

अपू के साथ ढाई साल- सत्यजित राय

4.

विदाई-संभाषण- बालमुकुंद गुप्त

5.

गलता लोहा- शेखर जोशी

6.

रजनी- मन्नू भंडारी

7.

जामुन का पेड़- कृश्नचंदर

8.

भारत माता- पंडित जवाहर लाल नेहरू

वितान

1.

भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर - कुमार गंधर्व

2.

राजस्थान की रजत बूँदें - अनुपम मिश्र

3.

आलो - आँधारी - बेबी हालदार

4.

भारतीय कलाएँ

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

जनसंचार माध्यम

2.

पत्रकारिता के विविध आयाम

3.

डायरी लिखने की कला

4.

पटकथा लेखन

5.

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

6.

स्ववृत्त (बायोडेटा) लेखन और रोजगार संबंधी आवेदन पत्र

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर(Arts)

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर(Sci/Comm) 

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