प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Core
आरोह भाग -1 काव्य-खंड
पाठ - 2. मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई - मीराबाई
जीवन-सह-साहित्यिक परिचय
नाम- मीराबाई
जन्म- सन् 1498
निधन- सन् 1546
जन्म स्थान- राजस्थान के मारवाड़ रियासत के कुड़की गाँव में
पिता का नाम- राठौर रतन सिंह
माता का नाम- वीर कुमारी
पितामह का नाम- राव दूदा
प्रपितामह- राव जोधा जी
पति का नाम- कुँवर भोजराज (राणा सांगा के पुत्र)
उपाधि- 'मरुस्थल की मंदाकिनी' (सुमित्रानंदन पंत)
मीराबाई के गुरु - रैदास
भक्ति भाव- कान्ता/माधुर्य-भाव उनकी भक्ति) ( कृष्ण को पति मानकर
रचनाएँ- मीरा पदावली, नरसीजी-रो माहेरो, गीत गोविन्द की टीका, राग सोरठा के पद, मलार
राग, राग गोविन्द, सत्यभामानुरुषणं, मीरां की गरबी, रुक्मणी मंगल, चरित।
मीरा भक्ति काल की सगुण भक्ति धारा की महत्त्वपूर्ण भक्त
कवयित्री थीं। कृष्ण की उपासिका होने के कारण उनकी कविता में सगुण भक्ति मुख्य रूप
से मौजूद है, लेकिन निर्गुण भक्ति का प्रभाव भी मिलता है। बाल्यावस्था में ही उनके
मन में कृष्ण भक्ति की भावना जन्म ले चुकी थी। इसलिए उन्होंने कृष्ण को ही अपना आराध्य
और पति माना। उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ मीराबाई का विवाह हो गया।
परन्तु मीराबाई के जीवन में खुशियाँ ज्यादा दिनों तक न रह पाई और कुछ ही वर्षों के
बाद भोजराज की मुगलों के साथ युद्ध में मृत्यु हो गई। खानवा के युद्ध में लड़ते हुए
इनके पिता रतनसिंह भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। मीरा ने देश में दूर- दूर
तक यात्राएँ की। चित्तौड़ राजघराने में अनेक कष्ट उठाने के बाद मीरा वापस मेड़ता आ
गई। यहाँ से उन्होंने कृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन की यात्रा की। जीवन के अंतिम दिनों
में वे द्वारका चली गई। माना जाता है कि वहीं रणछोड़ दास जी की मंदिर की मूर्ति में
वे समाहित हो गई।
इन्होंने लोकलाज और कुल की मर्यादा के नाम पर लगाए गए सामाजिक
और वैचारिक बंधनों का हमेशा विरोध किया। इन्होंने पर्दा प्रथा का पालन नहीं किया तथा
मंदिर में सार्वजनिक रूप से नाचने-गाने में कभी हिचक महसूस नहीं की। मीरा सत्संग को
ज्ञान प्राप्ति का माध्यम मानती थीं और ज्ञान को मुक्ति का साधन। निंदा या बंदगी उनको
अपने पथ से विचलित नहीं कर पाई। वे उस युग के रूढ़िग्रस्त समाज में स्त्री-मुक्ति की
आवाज़ बनकर उभरी। शरद पूर्णिमा के दिन मीराबाई जयंती मनाई जाती है।
साहित्यिक परिचय- मीरा के काव्य में प्रेम की गंभीर अभिव्यंजना है। उसमें
विरह की वेदना है और मिलन का उल्लास भी। इनकी कविता में सादगी और सरलता है। इन्होंने
मुक्तक गेय पदों की रचना की। इनके पद लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों क्षेत्रों
में आज भी लोकप्रिय हैं। इनकी भाषा मूलतः राजस्थानी है तथा कहीं-कहीं ब्रजभाषा का प्रभाव
है। कृष्ण के प्रेम की दीवानी मीरा पर सूफियों के प्रभाव को भी देखा जा सकता है।
पाठ-परिचय
प्रस्तुत पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्यता व्यक्त
की है तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुःख प्रकट किया है। वे कहती
हैं कि मोर मुकुटधारी गिरिधर कृष्ण ही उसके स्वामी हैं। कृष्ण-भक्ति में उसने अपने
कुल की मर्यादा भी भुला दी है। सलों के पास बैठकर उसने लॉकलाज खो दी है। आँसुओं से
सींचकर उसने कृष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी है। अब इसमें आनंद के फल लगने लगे हैं। उसने
दही से धी निकालकर छाछ छोड़ दिया। संसार की लोलुपता देखकर मीरा रो पड़ती हैं और कृष्ण
से अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पद के साथ
प्रश्न. 1. मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में
करती हैं? वह रूप कैसा है?
उत्तर- मीरा कृष्ण की उपासना पति के रूप में करती हैं। उनका
रूप मन मोहने वाला है। वे पर्वत को धारण करने वाले हैं तथा उनके सिर पर मोर का मुकुट
है। मीरा उन्हें अपना सर्वस्व मानती हैं। वे स्वयं को उनकी दासी मानती हैं।
प्रश्न 2. भाव व शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) अंसुवन जल सीचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी
(ख) दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
(क) भाव सौंदर्य- प्रस्तुत पंक्तियाँ कृष्णभक्त कवयित्री
मीराबाई दद्वारा रचित हैं। इन पंक्तियों में मीरा की भक्ति अपनी चरम सीमा पर है। मीरा
ने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर कृष्ण रूपी प्रेम की बेल बोई है। अब यह बेल बड़ी
हो गई है और अब उस प्रेमरूपी बेल में फल आने शुरू हो गए हैं अर्थात मीरा को अब आनंद
की अनुभूति होने लगी है।
शिल्प सौंदर्य- भाषा मधुर, संगीतमय और राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है। 'सीचि-सीचि' में पुनरुक्तिप्रकाश
अलंकार है प्रेमबेलि, आणंद- फल, अंसुवन जल में साँग रूपक अलंकार का बहुत ही कुशलता
से प्रयोग किया गया है। लयबद्धता का सुंदर निर्वाह हुआ है।
(ख) उत्तर- भाव-सौंदर्य- प्रस्तुत पद में मीरा ने
भक्ति की महिमा को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस पद में भक्ति को मक्खन के
समान महत्त्वपूर्ण तथा सांसारिक सुख को छाछ के समान असार माना गया है। मीरा कहती हैं
कि मैंने दूध की मथनियों को बहुत प्रेम से मथा है। इसमें दही को मथकर घी तो निकाल लिया
है और छाछ को छोड़ दिया है। मीरा ने संसार को छाछ के समान सारहीन तथा कृष्ण-प्रेम को
घी, दही के समान उपयोगी बताया हैं। इस प्रकार इन काव्य पंक्तियों में मीरा संसार के
सार तत्त्व को ग्रहण करने और व्यर्थ की बार्ता को छोड़ देने के लिए कहती हैं।
शिल्प सौंदर्य- प्रस्तुत पद भक्ति-रस से परिपूर्ण है। राजस्थानी मिश्रित
ब्रजभाषा है। दूध की मथनियों छोयी' में अन्योक्ति अलंकार है। यहाँ 'घी' भक्ति का तथा
'छाछ' सांसारिकता का प्रतीक है। संगीतत्मकता है। गेयता है। 'दधि', 'घृत' आदि तत्सम
शब्द हैं।
प्रश्न 3. मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हैं?
उत्तर- मीरा संसार में लोगों को मोह-माया में जकड़े हुए देखकर
रोती है। मीरा के अनुसार संसार के सुख- दुःख, ये सब मिथ्या हैं। मीरा देखती हैं कि
संसार के लोग मोह-माया में लिप्त हैं। उनका जीवन व्यर्थ ही जा रहा है। सांसारिक सुख-दुःख
को असार मानती हैं, जबकि संसार उन्हें ही संच मानता है। नता है। यह देखकर मीरा रोती
हैं।
पद के आस-पास
प्रश्न. 1 कल्पना करें, प्रेम प्राप्ति के
लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा।
उत्तर- प्रेम-प्राप्ति की राह आसान नहीं होती। मौरा को भी प्रेम-प्राप्ति
के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा। जैसे सबसे पहले उन्हें घर-परिवार का
विरोध का सामना करना पड़ा होगा। उन्हें रोकने के अनगिनत प्रयास किए गए होंगे। परिवारवालों
की उपेक्षा और ताने सहने पड़े होंगे। समाज में लोगों की फब्तियाँ सही होगी। यहाँ तक
कि उन्हें रोकने के लिए मारने के प्रयास भी किए गए होंगे। मंदिरों में रहना पड़ा होगा।
भूख प्यास भी झेलना पड़ा होगा। कहा जाता है कि यातनाओं से तंग आकर मीरा ने मेवाड़ छोड़
दिया और मथुरा-वृन्दावन की यात्रा करते हुए द्वारका पहुंची और श्री कृष्ण की भक्ति
में लीन हो गई।
प्रश्न. 2 लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है?
उत्तर- लोक-लाज खोने का अभिप्राय परिवार की मर्यादा खोने
से है। हर एक समाज की अपनी एक मर्यादा होती है और जब कोई व्यक्ति इसके विपरीत कार्य
करता है तो उसे मर्यादा को उल्लंघन मानकर लोक-लाज खोने की
बात की जाती है। मौरा का विवाह राजपूताना परिवार में हुआ
था। वहाँ की महिलाएँ पर्दे में रहती थीं। उन्हें मंदिरों में नाचने, संतों के साथ उठने-बैठने
का अधिकार नहीं था। ऐसे कार्य करने वाली महिलाओं को समाज से प्रताड़ना मिलती थी। मीरा
ने परिवार की झूठी मर्यादाओं की परवाह न कर कृष्ण की भक्ति, सत्संग-भजन, साधु-संतों
के साथ उठना-बैठना सभी निर्भय पूर्वक जारी रखा। मीरा ने ये सभी बंधन तोड़े और लोक-लाज
खो दी अर्थात समाज की मर्यादाओं को तोड़ डाला। इसी संदर्भ में मीरा के लोक-लाज छोड़ने
की बात कही गई है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न)
1. मीराबाई किस काल की कवयित्री थीं?
क. आदिकाल
ख. भक्तिकाल
ग. रीतिकाल
घ. आधुनिक काल
2. मीराबाई का जन्म कब हुआ था ?
क. सन् 1398 ई.
ख. सन 1498 ई.
ग. सन् 1598 ई.
घ. सन् 1698 ई.
3. मीराबाई का जन्म कहाँ हुआ था?
क. कुड़की गाँव में
ख. बनारस
ग. काशी
घ. इलाहाबाद
4. मीरा के गुरु कौन माने जाते है?
क. संत कबीर
ख. कवि तुलसीदास
ग. कवि रैदास
घ. वल्लभाचार्य
5. जीवन के अंतिम दिनों में मीरा कहां चली
गई ?
क. वृंदावन
ख. मेड़ता
ग. द्वारिका
घ. मथुरा
6. मीरा के पद-एक में 'प्रेम-बेलि' में कौन
सा अलंकार है?
क. रूपक.
ख. उपमा
ग. उत्प्रेक्षा ।
घ. अनुप्रास
7. 'तारों अब मोहि' में 'तारों' शब्द का क्या
अर्थ है-
क. तारे
ख. तैरना
ग. उद्धार करना
घ. इनमें से कोई नहीं
8. मीराबाई ने अपना पति किसे स्वीकार किया
है ?
क. राम
ख. कृष्ण
ग. विष्णु
घ. शिव
9. मीरा भक्तिकाल की किस धारा के कवयित्री
थी
क. सगुण धारा
ख. निर्गुण धारा
ग. क और ख दोनों
घ. इनमें से कोई नहीं
10. मीरा के काव्य की भाषा मुख्यतः है-
क. ब्रजभाषा
ख. राजस्थानी
ग. बुंदेलखंडी
घ. अवधी
11. मीरा
कृष्ण को क्या मानती थी?
क. अपना आराध्य
ख. अपना पति
ग. (क) और (ख) दोनों
घ. इनमें से कोई नहीं
12. 'मोर मुकुट' में कौन सा अलंकार है?
क.
उपमा
ख. रूपक
ग.
अनुप्रास
घ.
विभावना
13. मीरा की कविता में किसकी गंभीर अभिव्यंजना है ?
क.
पीड़ा की
ख. प्रेम की
ग.
करुणा की
घ.
भाव की
14. मीरा ने अपने आराध्य देव की क्या पहचान बताई है?
क.
उसके सिर पर ताज है
ख. उसके सिर पर मोर मुकुट है
ग.
उसने अपने सिर को झुकाया
घ.
उसके सिर पर पगड़ी बँधी हुई है
15. मीरा ने क्या छोड़ दिया है?
क.
परिवार
ख. परिवार की मर्यादा
ग.
समाज
घ.
संसार
16. "छाड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?" इस पंक्ति से
मीरा की कौन-सी भावना प्रकट होती है?
क. समाज के प्रति चुनौती
ख.
विनय भाव
ग.
समाज के सामने याचना भाव
घ.
समाज से डरने का भाव
17. किसके साथ बैठ-बैठ कर मीरा ने लोक-लाज को त्याग दिया था?
क.
सास-ससुर
ख.
सखियों
ग. संतों
घ.
राजा
18. मीरा ने कौन-सी बेल बोई थी?
क.
अंगूर की
ख.
पुष्पलता की
ग.
घीया की
घ. प्रेम की
19. मीरा ने अपनी प्रेम-बेलि को किससे सींचा है?
क.
पानी से
ख.
दूध से
ग.
अमृत से
घ. आँसुओं से
20. मीरा इस जगत में क्या देखकर प्रसन्न होती है?
क.
सामाजिक बंधन
ख.
समाज में मोह-माया
ग. प्रभु-भक्ति
घ.
सगे-संबंधी
21. मीरा अपने-आपको किसकी दासी स्वीकार करती है?
क. श्रीकृष्ण की
ख.
राणा साँगा की
ग.
राजा की
घ.
प्रजा की
22. क्या देखकर मीरा रोती है?
क.
भक्त
ख.
संत
ग. जगत
घ.
संन्यासी
23. सीचि-सीचि में कौन-सा अलंकार है?
क.
अनुप्रास
ख.
रूपक
ग. पुनरुक्तिप्रकाश
घ.
उपमा
24. 'नरसीजी-रो-माहेरो' किसकी रचना है?
क.
कबीरदास
ख.
सूरदास
ग. मीराबाई
घ.
तुलसीदास
25. मीरा का निधन कहां हुआ था?
क.
बनारस
ख. द्वारका
ग.
काशी
घ.
राजस्थान
26. मीरा की भक्ति-भावना है-
क. माधुर्य आव
ख.
दास्य भाव
ग.
वात्सल्य भाव
घ.
सख्य भाव
27. मीरा ने अपने प्रभु को किस नाम से पुकारा है?
क. गिरधर नागर
ख.
नागर
ग.
रसिया
घ.
नटखट
28. मीरा के प्रभु कैसे हैं?
क.
विनाशी
ख. अविनासी
ग.
निर्गुण
घ.
सगुण एवं निर्गुण
29. मीराकृत इस पद में उनकी कौन-सी भावना व्यक्त हुई है?
क.
विद्रोह की भावना
ख.
समाज के प्रति घृणा की भावना
ग. श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति-भावना
घ.
इनमें से कोई नहीं
30. पठित पद नरोत्तम दास स्वामी द्वारा संकलित- संपादित किस पुस्तक
से लिया गया है ?
क.
मीरा के प
ख. मीरों मुक्तावली
ग.
मीरा पदावली
घ.
दोहावली
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मीराबाई किस काव्यधारा की कवयित्री
थी ?
उत्तर- मीराबाई भक्तिकाल की सगुण धारा की महत्त्वपूर्ण कृष्णभक्त
कवयित्री थीं।
प्रश्न 2. मीराबाई का जन्म और मृत्यु कब और
कहाँ हुई ?
उत्तर- मीराबाई का जन्म 1498 ई. में राजस्थान के कुड़की गाँव
में तथा मृत्यु 1546 ई. के लगभग द्वारका गुजरात में मानी जाती है।
प्रश्न 3. मीराबाई का संबंध किस राजघराने से
माना जाता है ?
उत्तर- मीराबाई का संबंध जोधपुर के संस्थापक राजा जोधाजी
से माना जाता है। इनके पिता राजारत्न सिंह राजा जोधा जी के पुत्र राव दूदा जी के पुत्र
थे। इनका पालन- पोषण मेड़ता में इनके दादा राव दूँदा जी ने किया था।
प्रश्न 4. मीराबाई का विवाह किससे हुआ था
?
उत्तर- मीराबाई का विवाह चित्तौड़ के प्रसिद्ध राणा सांगा
के पुत्र कुँवर भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के कुछ वर्षों के बाद ही इनके पति की मृत्यु
हो गई थी।
प्रश्न 5. मीरा की रचनाओं का परिचय दीजिए।
उत्तर- मीरा द्वारा रचित आठ कृतियाँ गीत गोविंद की टीका,
नरसीजी-रो-माहेरो, गर्वर्गीत, फुटकर पद, राग गोविंद, राग सोरठ-संग्रह, मीरा की मल्हार
तथा मीरा की पदावली है।
प्रश्न 6. मीरा किसको अपना सर्वस्व मानती है
और क्यों?
उत्तर- मीरा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं, क्योंकि उन्होंने
कृष्ण को बड़े प्रयत्नों से पाया है। वे उन्हें अपना पति मानती है।
प्रश्न 7. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने
क्या-क्या खोया?
उत्तर- कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने अपने परिवार की मर्यादा
व समाज की लाज को खोया है।
प्रश्न 8. मीरा के रोने और खुश होने का क्या
कारण है?
उत्तर- मीरा भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हैं तथा संसार
के अज्ञान व दुर्दशा को देखकर रोती है।
प्रश्न 9. मीरा कृष्ण से क्या प्रार्थना करती
हैं?
उत्तर - मीरा कृष्ण से कहती हैं कि हे गिरधर । अब आप ही
मेरा उद्धार करो अर्थात् इस भवसागर
से पार उतार दो, यही मेरी विनम्र प्रार्थना है।
प्रश्न 10. मीरा कृष्ण-प्रेम के विषय में क्या
बताती है ?
उत्तर- कृष्ण-प्रेम के विषय में मीरा बताती है कि उसने अपनी
आँसुओं से कृष्ण प्रेम रूपी बेल को सींचा है और अब वह बेल बड़ी हो गई है और इस पर आनंद
रुपी फल लगने लगे हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'कुल की कानि' का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर- 'कुल की कानि' का अर्थ है परिवार की मर्यादा का पॉलन
न करना। मीरा राजपरिवार से संबंधित होने पर भी संतों के साथ बैठकर कृष्ण भजन करती थीं।
उसे समाज की परवाह नहीं थी। यह परिवार की मर्यादा के खिलाफ था।
प्रश्न 2. 'मेरे तो गिरधर गोपाल' पद का भाव
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्यता
व्यक्त की है तथा व्यथै के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुःख प्रकट किया है।
वह कहती है कि मोर मुकुटधारी गिरिधर कृष्ण ही उसके स्वामी हैं। कृष्ण भक्ति में उसने
अपने कुल की मर्यादा भी छोड़ दी है। संतों के पास बैठकर उसने लोक-लाज भी खो दी है।
आँसुओं से सींचकर उसने कृष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी है। अब इस पर आनंद रुपी फल लगने लगे
हैं। उसने दही से घी निकालकर छाछ छोड़ दिया। संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त
देखकर मीरा रोती है। वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना
करती है।
प्रश्न 3. आनंद-फल की प्राप्ति के लिए मीरा
ने क्या किया?
उत्तर- आनंद-फल की प्राप्ति के लिए मीरा ने कुल की मर्यादा
का त्याग किया, परिवार के ताने सहे। साथ ही संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त किया।
उन्होंने आँसुओं से प्रेम रुपी बेल को सींचा तब जाकर उन्हें आनंद-फल प्राप्त हुआ।
प्रश्न 4. मीरा ने जीवन का सार किस उदाहरण
से समझाया है?
उत्तर- मीरा भक्ति को मक्खन के समान महत्त्वपूर्ण तथा सांसारिक सुख
को छाछ के समान असार मानती हैं। वह कहती है कि मैंने दही को मथकर सारतत्त्व अर्थात
घी निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया। अर्थात उसने जीवन का मंथन करके
कृष्ण- भक्ति को सार के रूप में प्राप्त कर लिया तथा शेष संसार को छाछ की तरह छोड़
दिया।
प्रश्न 5. 'प्रेम-बेलि' के रूपक को स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर- यहाँ मीरा का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम का भाव अभिव्यक्त
हुआ है। प्रेम की बेल को विरह के आँसुओं से सींचना पड़ता है, फिर वह बड़ी होती है और
अंत में आनंद रुपी फल की प्राप्ति होती है। अर्थात सच्चे प्रेम में विरह सहना पड़ता
है तभी आनंद की प्राप्ति होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मीरा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर- कृष्ण-भक्त कवियों में मौरा का प्रमुख स्थान है। इनका जन्म
1498 ई. में मारवाड़ रियासत के कुड़की नामक गाँव में हुआ था। बारह वर्ष की आयु में
इनका विवाह चित्तौड़ के राणा सांगा के पुत्र कुँवर भोजराज के साथ हुआ। विवाह के कुछ
वर्षों के बौद ही उनके पति का दैहांत हो गया।
मीरा के मन में बचपन से ही कृष्ण-भक्ति की भावना जन्म ले
चुकी थी। इसलिए वह कृष्ण को अपना आराध्य और पति मानती रहीं। चित्तौड़ राजघराने में
अनेक कष्ट उठाने के बाद मीरा वापस मेड़ता आ गई। यहाँ से उन्होंने कृष्ण की लीला भूमि
वृंदावन की यात्रा की। जीवन के अंतिम दिनों में हुए द्वारका चली गई। ऐसा माना जाता
है कि द्वारकों में रणछोड़ दास जी की मंदिर की मूर्ति में समाहित हो गई। इनका देहावसान
1546 ई. में माना जाता है।
रचनाएँ- मीरा ने मुख्यतः स्फुटपद पर्दा की रचना की। ये पद 'मीराबाई की पदावली के नाम
से संकलित हैं। उनकी दूसरी महत्त्वपूर्ण रचना 'नरसीजी-रो-माहेरों है।
साहित्यिक विशेषताएँ- कृष्ण की उपासिका का होने के कारण मीरा की कविता में सगुण
भक्ति मुख्य रूप से मौजूद है, लेकिन निर्गुण भक्ति काव्य प्रभाव मिलता है। संत कवि
रैदास उनके गुरु माने जाते हैं। उन्होंने लोक-लाज और कूल की मर्यादा के नाम पर लगाए
गए सामाजिक और वैचारिक बंधनों का हमेशा विरोध किया। मीरा सत्संग को जान प्राप्ति का
माध्यम मानती थीं और जान को मुक्ति का साधन। निंदा से मीरा कभी विचलित नहीं हड़ें।
वे उस युग के रुढ़ियस्त समाज में स्त्री-मुक्ति की आवाज़ बनकर उभरी।
भाषा-शैली- मीरा की कविता में प्रेम की गंभीर अभिव्यंजना है। उसमें
विरह की वेदना है और मिलन का उल्लास भी। इनकी कविता में सादगी और सरलता है। इन्होंने
मुक्तक गेय पर्दो की रचना की। उनके पद लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों क्षेत्रों
में आज भी लोकप्रिय हैं। इनकी भाषा मूलतः राजस्थानी है तथा कहीं-कहीं ब्रजभाषा का भी
प्रभाव देखने को मिलता है।
प्रश्न 2. सप्रसंग व्याख्या करें।
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छांडि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन दिग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सीचि-सीचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियों बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही
शब्दार्थ- गिरधर-पर्वत को धारण करने वाला यानी कृष्ण। गोपाल-गाएँ पालने वाला, कृष्ण।
मोर मुकुट-मौर के पंखों का बना मुकुट। सोई-वही। जा के-जिसके। छॉड़ि दयी-छोड़ दी। कॅल
की कानि-परिवार की मर्यादा। करिहै-करेगा। कहाँ-क्या। ढिग-पास। लोक-लाज-समाज की मर्यादा।
अंसुवन-आँसू । सौचि-सींचकर । मथनियाँ- मथानी। विलोयी-मथी। दधि-दही। घृत-धी। कादि लियो-
निकाल लिया। डारि दयी-डाल दी। जगत-संसार। तारो-उद्धार। छोयी-छाछ, सारहीन अंश। मोहि-मुझे।
प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक आरोह भाग- 1 में संकलित मीराबाई के
पद से अवतरित है। इस पद में उन्होंने भगवान कृष्ण को पति के रूप में माना है तथा अपने
उद्धार की प्रार्थना की है।
व्याख्या- मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरे
से मेरा कोई संबंध नहीं हैं। जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरा पति है। उनके
लिए मैंने परिवार की मर्यादा भी छोड़ दी है। अब मेरा कोई क्या कर सकता है? अर्थात मुझे
किसी की परवाह नहीं है। मैं संतों के पास बैठकर जान प्राप्त करती हैं और इस प्रकार
लोक-लाज भी खो दी है। मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है।
अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं। वे कहती हैं कि मैंने कृष्ण
के प्रेम रूप दूध को भक्ति रूपी मथानी में बड़े प्रेम से विलोया है। मैंने दही से सार
तत्त्व अर्थात् घी को निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया। वे प्रभु
के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर
रोती हैं। वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती
हैं।
विशेष-
1. मीरा कृष्ण प्रेम के लिए परिवार व समाज की परवाह नहीं
करतीं।
2. मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्यता व समर्पण
भाव व्यक्त हुआ है।
3. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
4. 'बैठि-बैठि', 'सीचि-सीचि' में पुनरुक्तिप्रकाश
अलंकार है।
5. माधुर्य गुण है।
6. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है।
7. 'मोर-मुकुट', 'प्रेम-बेलि', 'आणंद-फल' में रूपक अलंकार
है।
8. संगीतात्मकता व गेयता है।
प्रश्न 3.
भाव और शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छांडि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन दिग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सीचि-सीचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियों बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही
उत्तर- भाव-सौंदर्य- प्रस्तुत पद में मीरा का कृष्ण की प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त
हुआ है। मीरा कहती है कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात कृष्ण ही सब कुछ है। उनके लिए
मीरा ने कुल की मर्यादा भी छोड़ दी है तथा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती है। उन्होंने
कृष्ण-प्रेम की बेल को आँसुओं के जल से सींच-सींचकर बड़ा किया है जिस पर आनंद रूपी
फल लगने लगे हैं। मीरा ने दूध की मथानी से भक्ति रूपी धी निकाल लिया तथा सांसारिक सुखों
को छाछ के समान छोड़ दिया। जिस प्रकार दही कौ मथने से धी ऊपर आ जाता है, अलग हो जाता
है। उसी प्रकार जीवन का मंथन करने से कृष्ण-प्रेम को ही मैंने सार-तत्त्व के रूप में
अपना लिया है। शेष संसार छाछ की भांति सारहीन है जिसे मैंने छोड़ दिया है। वह स्वयं
को गिरधर की दासी बताती है तथा प्रभु से अपने उद्धार की प्रार्थना करती है।
शिल्प-सौंदर्य -
1. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।
2. प्रस्तुत काव्यांश में भक्ति-रस है।
3. 'दूध की मथानियाँ छोयी में अन्योक्ति अलंकार है।
4. 'प्रेम-बेलि', 'आणंद-फल', अंसुवन जल में रूपक अलंकार है।
5. अनुप्रास अलंकार की छटा है- गिरधर गोपाल, मोर-मुकूट, कुल
की कानि, कहा करिहै कोई, लोक-लाज, बैली-बोयी
6. 'बैठि-बैठि', 'सीचि सीचि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
7. दधि, घृत आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
8. प्रतीकात्मकता है 'घी' भक्ति का तथा 'छाछ' सांसारिकता
का प्रतीक है।
9. संगीतात्मकता है।
10. गेयला है।
11. कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की चारुता बढ़ी हैं- जैसे गिरधर, गोपाल, लाल आदि।
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विषय सूची
आरोह भाग-1 | |
पाठ सं. | अध्याय का नाम |
काव्य-खण्ड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | 1. हे भूख ! मत मचल, 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर- अक्कमहादेवी |
7. | |
8. | |
गद्य-खण्ड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
वितान | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |