प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Core
आरोह भाग -1 गद्य-खण्ड
पाठ 1. नमक का दारोगा - मुंशी प्रेमचंद
जीवन-सह-साहित्यिक परिचय
मूल नाम-
धनपत राय
जन्म- 31
जुलाई, 1880 ग्राम लमही, जिला-वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
माता-
आनंदी देवी
पिता-
अजायब लाल
पत्नी-
शिवरानी देवी
निधन- 8
अक्टूबर, 1936 ई.
शिक्षा-
स्नातक (बी०ए०)
उर्दू में 'नवाब राय' के नाम से लेखन।
हिंदी में 'प्रेमचंद' नाम से लेखन किया।
उन्होंने अपने जीवन में 300 से अधिक कहानियों एवं डेढ़
दर्जन उपन्यास लिखें। उन्हें 'कथा सम्राट' एवं 'उपन्यास सम्राट' की पदवी से
विभूषित किया गया है।
प्रमुख रचनाएँ-
उपन्यास-
सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र
1948 (अधूरा) प्रेमचंद के बेटे अमृत राय ने इस उपन्यास को पूरा किया।
कहानियाँ-
बड़े घर की बेटी, पंच परमेश्वर, ठाकुर का कुआं, दो बैलों की कथा, पूस की रात एवं
कफन आदि उनकी प्रमुख कहानियां है।
नाटक-
कर्बला, संग्राम, प्रेम की देवी।
निबंध-संग्रह- कुछ विचार, विविध प्रसंग
संपादित पत्रिका- हंस, जागरण, माधुरी आदि।
कथा संग्रह- 'मानसरोवर (आठ भागों में) प्रकाशित
'सोजेवतन' (उर्दू में) अंग्रेजों द्वारा जब्त।
साहित्यिक विशेषताएँ- प्रेमचंद हिंदी कथा-साहित्य के शिखर पुरुष माने जाते हैं।
हिंदी साहित्य के इतिहास में कहानी और उपन्यास विधा के विकास का काल विभाजन
प्रेमचंद को ही केंद्र में रखकर किया जाता रहा है (प्रेमचंद पूर्व युग, प्रेमचंद
युग और प्रेमचंदोत्तर युग) यह प्रेमचंद के निर्विवाद महत्त्व का एक स्पष्ट प्रमाण
है। वस्तुतः प्रेमचंद ही पहले कथाकार हैं जिन्होंने कहानी और उपन्यास की विधा को
कल्पना और रोमानियत के धुंधलके से निकालकर यथार्थ की ठोस जमीन पर प्रतिष्ठित किया।
प्रेमचंद ने अपने लेखन का प्रमुख विषय राष्ट्रीय जागरण और समाज सुधार को बनाया।
उनकी रचनाओं में जीवन के आदर्श और यथार्थ दोनों रूपों को प्रस्तुत किया गया है।
उन्होंने किसानों, गरीबों और शोषितों की दयनीय अवस्था का मार्मिक चित्रण किया है,
साथ ही समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों और अंधविश्वासों पर भी लिखा है। प्रेमचंद
की आषा हिंदी उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी है।
पाठ-परिचय
'नमक का दारोगा प्रेमचंद की बह चर्चित कहानी है। इसमें
आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को दिखाया गया है। यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है। 'धन'
और 'धर्म' को क्रमशः असवृत्ति और सवृत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा
जा सकता है। कहानी में इनका प्रतिनिधित्व क्रमशः पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर
नामक पात्रों ने किया है। ईमानदार कर्मयोगी मुंशी वशीधर को खरीदने में असफल रहने
के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते
हैं, लेकिन अंततः सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी विभाग से बर्खास्त
वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर
नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध-बोध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हैं-
"परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही
नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उदंड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे।"
कहानी के अंतिम प्रसंग से पहले तक की समस्त घटनाएँ,
प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा उस भ्रष्टाचार की
व्यापक सामाजिक स्वीकार्यता को अत्यंत साहसिक तरीके से हमारे सामने उजागर करती
हैं। ईमानदार व्यक्ति के अभिमन्यु के सामान निहत्थे और अकेले पड़ते जाने की यथार्थ
तस्वीर इस कहानी की बहुत बड़ी खूबी है। किंतु प्रेमचंद इस संदेश पर कहानी को खत्म
नहीं करना चाहते क्योंकि उस दौर में वे मानते थे कि "ऐसा यथार्थवाद हमको
निराशावादी बना देता है, मानव चरित्र पर से हमारा विश्वास उठ जाता है, हमको चारों
तरफ बुराई ही बुराई नजर आने लगती है।" इसलिए कहानी का अंत सत्य की जीत के साथ
होता है।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न अभ्यास
1. कहानी
का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
उत्तरः- हमें इस कहानी का पात्र वंशीधर सबसे अधिक प्रभावित
करता है। क्योंकि वह एक ईमानदार, शिक्षित, कर्तव्यपरायण व धर्मनिष्ठ व्यक्ति है।
उसके पिता उसे बेईमानी का पाठ पढ़ाते हैं, घर की दयनीय दशा का हवाला देते हैं,
परंतु वह इन सबके विपरीत ईमानदारी का व्यवहार करता है। वह स्वाभिमानी है। अदालत
में उसके खिलाफ गलत फैसला लिया गया, परंतु उसने स्वाभिमान नहीं खोया। उसकी नौकरी
छीन ली गई। कहानी के अंत में उसे ईमानदारी का फल मिलता है। पंडित अलोपीदीन उसे
अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर बना देते हैं।
2. 'नमक का दारोगा' कहानी में पंडित अलोपीदीन
के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?
उत्तरः पं. अलोपीदीन का व्यक्तित्व एक शोषक महाजन के जैसा
जरूर था, पर उन्होंने कहानी के अंत में सत्य- निष्ठा का भी सम्मान किया। उनके
व्यक्तित्व के दो पहलू निम्नलिखित हैं-
1. लक्ष्मी उपासक- उन्हें धन पर अटूट विश्वास था। वे सही-गलत दोनों ही तरीकों
से धन कमाते थे। नमक का व्यापार इसी की मिसाल था। उन्हें विश्वास था कि इस लोक से
उस लोक तक संसार का प्रत्येक काम लक्ष्मी की दया से संभव होता है। न्याय और नीति
सब उसके खिलौने हैं। वह दरोगा को रिश्वत देने के लिए साम दाम की नीति अपनाते हैं।
2. ईमानदारी के कायल- धन के उपासक होते हुए भी उन्होंने वंशीधर की ईमानदारी का
सम्मौन किया। वे स्वयं उसके दवार पर पहुंचे और उसे अपनी सारी जायदाद सौंपकर मैनेजर
के स्थाई पद पर नियुक्त किया। जिससे यह सिद्ध होता है कि वह स्वयं भी दिल से उसकी
ईमानदारी और धर्म निष्ठा की इज्जत करते हैं।
3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की
किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से
उस अंश को उद्धत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-
(क) वृद्ध मुंशी
(ख) वकील
(ग) शहर की भीड़
उत्तरः-
(क) वृदध मुंशी- ये वंशीधर के पिता है जो तंगहाली में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जिम्मेदारियाँ
अधिक है। कर्ज के तले दबे हैं, बेटियों बड़ी हो गई हैं। इसलिए वह बेटे को समझते
हैं। "अब तुम्हीं घर के मालिक मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मतें
देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना
जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चॉद है जो एक दिन दिखाई देता है
और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती
है।"
(ख) वकील-
वकील समाज के उस पेशे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सिर्फ अपने लाभ की फिक्र करते
हैं। उन्हें न्याय-अन्याय से कोई मतलब नहीं होता उन्हें धन से मतलब होता है।
अपराधी के जीतने पर भी वे प्रसन्न होते हैं। इतना ही नहीं वकीलों ने नमक के दरोगा
को चेतावनी तक दिलवा दी- "यद्भि नमक के दरोगा मुंशी वंशीधर का अधिक दोष नहीं
है, लेकिन यह बड़े खेद की बात है कि उसकी उद्दंडता और विचारहीनता के कारण एक
भलेमानस को झेलना पड़ा। नमक के मुकदमे की बढ़ी हुई नमकहलाली ने उसके विवेक और
बुद्ध को भ्रष्ट कर दिया। भविष्य में उसे होशियार रहना चाहिए।"
(ग ) शहर की भीड़- शहर की भीड़ तमाशा देखने का काम करती है। उन्हें निंदा
करने व तमाशा देखने का मौका चाहिए। उनकी अपनी कोई विचारधारा नहीं होती। अपने भीतर
झॉक कर न देखने वाले दूसरों के विषय में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। अलोपीदिन की
गिरफ्तारी पर शहर की भीड़ की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार से थी "दुनिया सोती
थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात
सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा
था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को
दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भांति
गरदने चला रहे थे।"
4. निम्न पंक्तियों को ध्यान
से पढ़िए-नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह
चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन
तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है।
ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी
से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है,
तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।
(क) यह किसकी उक्ति है?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों
कहा गया है?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत
हैं?
उत्तर -
(क) यह उक्ति वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी जी की है।
(ख) जिस प्रकार पूरे महीने में सिर्फ एक बार पूरा चंद्रमा
दिखाई देता है, वैसे ही वेतन भी पूरा एक ही बार दिखाई देता है। उसी दिन से चंद्रमा
का पूर्ण गोलाकार घटते-घटते लुप्त हो जाता है, वैसे ही वेतन भी घटते-घटते महीने के
अंत तक समाप्त हो जाता है। इन समानताओं के कारण मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद
कहा गया है।
(ग) एक पिता के दवारा पुत्र को इस तरह का मार्गदर्शन देना
सर्वथा अनुचित है। क्योंकि माता- पिता का कर्तव्य बर्ची में अच्छे संस्कार डालना
है। लालच से दूर रहकर सत्य, कर्तव्यनिष्ठा और सादा जीवन उच्च विचार के बारे में
बताना है. ना कि भष्टाचार के रास्ते में अग्रसर करना। ऐसे में एक पिता के द्वारा
इस तरह के वक्तव्य से मैं कदापि सहमत नहीं ह। एक पिता के दद्वारा इस तरह की सीख
देना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है।
5. 'नमक का दारोगा' कहानी के कोई दो अन्य
शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः इस कहानी के अन्य शीर्षक हो सकते हैं-
(क) सत्य की जीत- इस कहानी में सत्य शुरू में भी प्रभावी रहा और अंत में भी
वंशीधर के सत्य के सामने अलोपीदीन को हार माननी पड़ी है।
(ख) ईमानदारी- वंशीधर ईमानदार था। वह भारी रिश्वत से भी नहीं प्रभावित हुआ। अदालत में उसे
हार मिली, नौकरी छूटी, परंतु उसने ईमानदारी का त्याग नहीं किया। अंत में अलोपीदील
स्वयं उसके घर पहुंचा और इस गुण के कारण उसे अपनी समस्तै जायदाद का मैनेजर बनाया।
6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को
नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सौहत उत्तर दीजिए। आप इस कहानी
का अंत किस प्रकार करते?
उत्तरः- कहानी के अंत में अलोपीदीन द्वारा वंशीधर को मैनेजर
नियुक्त करने का कारण स्पष्ट रूप से यही है कि अलोपीदीन स्वयं भ्रष्ट था, परंतु
उसे अपनी जायदाद को सँभालने के लिए ईमानदार व्यक्ति की जरूरत थी। वंशीधर उसकी
दृष्टि में योग्य व्यक्ति था। उसे अपनी जायदाद का मैनेजर बनाने के लिए एक ईमानदार
आदमी मिल गया। दूसरा, उसके मन में आत्मग्लानि का भाव भी था कि उसकी वजह से एक
ईमानदार व्यक्ति की नौकरी छिन गई है, तो मैं इसे कुछ सहायता प्रदान करूँ। जहाँ तक
कहानी के अंत की बात है तो प्रेमचंद के दवारा लिखा अंत ही सबसे ज्यादा उचित है।
हालांकि मैं इसमें थोड़ा सा बदलाव यह करती कि अलोपीदिन अगर सचमुच उसकी इमानदारी से
प्रभावित हैं और अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहते हैं तो अपना अपराध अदालत के
सामने स्वीकार करें। क्योंकि अदालत ने उन्हें बाइज्जत बरी करते समय वंशीधर के लिए
जो टिप्पणी की थी वह वंशीधर के लिए अपमानजनक और न्याय के मंदिर के लिए घोर
निराशाजनक थी।
पाठ के आस-पास
1. दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह
से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित
अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता
है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?
उत्तरः- वंशीधर ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति था, वह
कहीं भी नौकरी करे अपने काम को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करेगा यह उसका प्रण था।
अलोपीदीन या पुलिस विभाग कितना भ्रष्ट है, उससे उसे कोई मतलब नहीं था। मेरे विचार
से उसने जो किया सर्वथा उचित हीं था। हमें अपने कर्तव्य का ध्यान हो यही सबसे
ज्यादा जरूरी है। यदि हम उसकी जगह होते तो हम भी वही करते जो उसने किया।
2. नमक विभाग के दारोगा पद के लिए
बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के
लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?
उत्तरः- आज समाज में आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ. एस.,
आयकर, बिक्री कर आदि की नौकरियों के लिए लोग लालायित रहते हैं, क्योंकि इन सभी
पदों पर ऊपर की आमदनी के साथ-साथ पद का रोब भी मिलता है। ये देश के नीति निर्धारक
भी होते हैं।
3. 'पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।' वृद्ध मुंशी
जी दवारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर
बताइए-
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।
(ग) 'पढ़ना-लिखना' को किस अर्थ में प्रयुक्त
किया गया होगा साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?)
उत्तरः (क) जब किसी होनहार और विद्वान व्यक्ति को मजदूरी
करते देखा तो लगा कि उसका पढ़ना- लिखना व्यर्थ गया।
(ख) पढ़ने लिखने के बाद जब मैं शिक्षिका बन गई।
विद्यार्थियों को पढ़ाने के दौरान उनको आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ एक अच्छे इंसान
बने रहने के महत्व के बारे में जब मैं उन्हें बताती हूं, तब बच्चे बहुत ध्यान से
सुनते हैं और अपने जीवन में उतारने के लिए सँजग दिखते हैं, तब मुझे अपनी
पढ़ाई-लिखाई सार्थक लगी।
(ग) 'पढ़ना-लिखना को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया
होगा क्योंकि साक्षरता का अर्थ अक्षरजान से लिया जाता है। जबकि शिक्षा विषय के
मर्म को समझाती है। मैं इन दोनों को अलग मानती हूँ।
4. 'लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती
चली जाती हैं।' वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट
करता है?
उत्तरः- मध्यमवर्गीय परिवार में जब लड़कियों बड़ी होने लगती
हैं और पर्याप्त आय का स्रोत न हो, तो उनके प्रति अभिभावकों को योग्यवर ढूंढने तथा
विवाह करने की चिंता सताने लगती है। अतः उन्हें लड़कियों जल्दी बढ़ती नजर आती हैं
और उनकी चिंता बढ़ने लगती हैं।
5. 'इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म
किया, बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य
साधन करनेवाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक
मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।' अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को
देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए
लिखें।
उत्तरः- अपने आसपास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर मुझे
कुढन-सी महसूस होगी। क्योंकि ऐसे लोगों की वजह से ही लोगों की कर्तव्यनिष्ठा,
सत्य, ईमानदारी और कानून से भरोसा उठता जा रहा है। ऐसे व्यक्ति कानून को मखौल
बनाते हैं। इन्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए। मुझे उन लोगों पर भी गुस्सा आता है जो
उनके प्रति सहानुभूति जताते हैं।
समझाइए तो जरा
1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो
पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
उत्तरः- वंशीधर के पिता के अनुसार महत्व बड़े पद का नहीं है, ऊपर
की कमाई का है। अतः सांसारिक रूप से चालाक, स्वार्थी और समझदार व्यक्ति को ऊपरी आय
वाली नौकरी करनी चाहिए।
2. ऐसे विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य
अपना मित्र, बुद्धि अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था।
उत्तरः- भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के इस युग में वंशीधर जैसे
व्यक्ति अपने धैर्य, बुद्धि तथा स्वावलंबन के सहारे ही जी सकते हैं। हमारे चारों
ओर भ्रष्टाचार की दलदल है। केवल धैर्य और बुद्धिमत्ता से काम लेने वाले व्यक्ति ही
इस दलदल से बच सकता है।
3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
उत्तरः- जो पहले से ही सोच रहे थे, वह तर्क से स्पष्ट हो गया।
वंशीधर को रात को सोते सोते अचानक पुल पर से जाती हुई गाड़ियों की गडगडाहट सुनाई
दी। उन्हें संदेह हुआ कि जरूर इसमें कुछ गैर कानूनी काम होगा। उन्होंने तर्क लगाया
कि कोई मनुष्य रात के अंधेरे में गाड़ियों क्यों ले जाएगा। यह सोचते ही उनके मन
में उठा भ्रम और पक्का हो गया
4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने
हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।
उत्तरः- इसका अर्थ है कि धन के बल पर न्याय और नीति को खिलौने की
तरह नचाया जा सकता है। ईमानदार पुरुषों को बेईमान और बेईमान को सज्जन पुरुष सिद्ध
किया जा सकता है।
5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती
थी।
उत्तरः अभी लोग रात में सोए हुए थे कि पंडित अलोपीदीन के गिरफ्तार
होने की खबर कानों कान पूरे शहर में फैल गई। लोग इस विषय में बातें करने लगे।
6. खेद ऐसी समझ पर। पढ़ना लिखना सब अकारथ
गया।
उत्तरः- वंशीधर के बूढ़े पिता चाहते थे कि बेटा खूब रिश्वत
लै, परंतु जब उसने सत्यनिष्ठा का आचरण किया और नौकरी से निलंबित कर दिया गया तो
उन्हें लगा की बेटे की पढ़ाई-लिखाई बेकार गई। क्योंकि घर के हालात सुधारने के उनके
पास यही एक उपाय था।
7. धर्म
ने धन को पैरों तले कुचल।
उत्तरः- चालीस हजार रुपए रिश्वत मिलती देखकर भी
कर्तव्यनिष्ठ वंशीधर अपने ईमान पर टिके रहे। इससे ऐसा लगा कि वंशीधर की धर्म की
शक्ति नै अलोपीदीन की धन की शक्ति को कुचलकर नष्ट कर दिया।
8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन
गया।
उत्तरः न्याय के परिसर (अदालत) में वंशीधर की धर्म शक्ति और
अलोपीदीन की धन शक्ति में युद्ध छिड़ गया। इधर वंशीधर सत्य मार्ग पर डटा हुआ था।
उधर अलोपीदीन रिश्वत के बल पर वंशीधरै को खरीदना चाहा लेकिन वे नहीं बिके।
भाषा की बात
1. आषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और
मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के
लिहाज़ से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँट कर लिखिए और यह भी
बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है?
उत्तरः-
(क) चित्रात्मकता- वकीलों ने फैसला सुना और उछल पड़े। पंडित अलोपीदीन
मुस्कराते हुए बाहर निकले। स्वजन-बांधवों ने रुपर्यो की लूट की। उदारता का सागर
उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी। जब वंशीधर बाहर निकले तो
चारों ओर से उनके ऊपर व्यंग्य बाणों की वर्षा होने लगी।
(ख) लोकोक्तियाँ व मुहावरे- लड़कियां हैं घास फूस की तरह बढ़ती चली जाती है (लोकोक्ति)
पूर्णमासी का चाँद, प्यास बुझना, फूले नहीं समाना, पंजे में आना, सन्नाटा छाना,
सागर उमड़ना, हाथ मलना, सिर पीटना, जीभ जगना, गले लगाना, ईमान बेचना, सुअवसर ने
मोती दे दिया, घर में अंधेरा मस्जिद में उजाला, धूल में मिलना, निगाह बाँधना,
कगारे का वृक्ष, न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, प्रफुल्लित होना
आंखें दबदबाना इत्यादि मुहावरों का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से हुआ है
(ग) हिंदी-उर्दू का साझा रूप- बेगरज को दाँव पर लगाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह
में बाँध लो।
(घ) बोलचाल की भाषा- 'कौन पंडित अलोपीदीन?' 'दातागंज के!'
2. कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन
विशेषर्णा का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और बताइए।
साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः- कहानी में मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा
गया है-तर्क है उसका एक ही बार आना और घटते-घटते लुप्त हो
जाना। हम उसे खून पसीने की कमाई, कर्म फल विशेषणों से पुकार सकते हैं।
तर्क- वेतन हमारी कड़ी मेहनत का परिणाम एवं हमारे दद्वारा
किए गए कार्यों का ही परिणाम है।
3. (क) बाबूजी आशीर्वादा
(ख) सरकार हुक्मा
(ग) दातागंज के।
(घ) कानपुर।
दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ
में अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य
संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।
उत्तर:-
(क) बाबू जी। आपका आशीर्वाद चाहिए।
(ख) मोहन को सरकारी हुक्म हुआ है।
(ग) श्याम दातागंज के रहने वाले हैं।
(घ) कानपुर चर्म उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न)
1. नमक का दारोगा पाठ के लेखक हैं-
क. प्रेमचंद
ख. कृष्ण चंदर
ग. शेखर जोशी
घ. कृष्णनाथ
2. किस ईश्वर प्रदत्त वस्तु का व्यवहार करना निषेध
हो गया था-
क. जल
ख. वायु
ग. नमक
घ. धरती
3. किनके पौ बारह थे-
क. गृहणियों के
ख. अधिकारियों के
ग. पतियों के
घ. बच्चों के
4. नमक विभाग में दारोगा के पद के लिए कौन ललचाते
थे-
क. डॉक्टर
ख. प्रोफेसर
ग. इंजीनियर
घ वकील
5. नमक विभाग में किसे दारोगा की नौकरी मिली-
क. अलोपीदीन को
ख. वंशीधर को
ग. बदलू सिंह को
घ. दातादीन को
6. नमक की कालाबाजारी कौन कर रहा था?
क. अलोपीदीन
ख. रामदीन
ग. दातादीन
घ. मातादीन
7. दुनिया सोती थी पर दुनिया की ………. जागती थी
?
क. आँख
ख. कान
ग. जीभ
घ. नाक
8. प्रेमचंद का मूल नाम क्या है ?
क. गणपत राय
ख. धनपत राय
ग. संपत राय
घ. इनमें से कोई नहीं
9. अलोपीदीन को दारोगा को किसके बल पर खरीद लेने का विश्वास
था-
क. बल
ख. छल
ग. रिश्वत
घ. संबंध
10. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के खिलौने है- यह
कथन किस का है-
क. वंशीयर
ख. अलोपीदीन
ग. बदलू सिंह
घ. वंशीधर के पिता का
11. अलोपीदीन क्या देखकर मूर्छित होकर गिर पड़े-
क. हथकडियाँ
ख. पुलिस
ग. डाकू
घ. लठैत
12. 'चालीस हजार नहीं, चालीस लाख पर भी नहीं'।
कथन किसका है-
क. मैजिस्ट्रेट का
ख. वंशीधर का
ग. बदलू सिंह का
घ. अलोपीदीन का
13. बंशीधर के पिता किस की अगवानी के लिए दौड़े?
क. वंशीधर की
ख. मैजिस्ट्रेट की
ग. आलोपीदीन की
घ. मातादीन की
14. अंग्रेज अफसर अलोपीदीन के इलाके में क्यों
आते ?
क. व्यापार करने
ख. दात खाने
ग. शिकार खेलने
घ. जुआ खेलने
15. पंडित अलोपीदीन के इष्ट देवी का नाम लिखिएः
क. दुर्गा
ख. लक्ष्मी
ग. शारदा
घ. भवानी
16. नमक के दफ्तर से एक मील दूर कौन-सी नदी बहती
थी?
क. पार्वती
ख. रावी
ग. यमुना
घ. सिंधु
17. नदी के पुल पर किसकी गाड़ियाँ थी?
क. दारोगा की
ख. अलोपीदीन की
ग. नमक विभाग की
घ. वंशीधर की
18. नमक का दारोगा पाठ के अंत में किसकी विजय
किस पर बताई
गई है?
क. धन पर धर्म की विजय
ख. धर्म पर धन की विजय
ग. धन और धर्म की विजय
घ. उपर्युक्त सभी
19. वंशीधर के पिताजी ने मासिक वेतन को क्या कहा
है?
क. बहता हुआ स्रोत
ख. पीर की मज़ार
ग. पूर्णमासी का चाँद
घ. उपर्युक्त सभी
20. 'नमक का दारोगा' कौन-सा साहित्यिक विधा है?
क. कहानी
ख. उपन्यास
ग. महाकाव्य
घ. निबंध
21. प्रेमचंद का निधन कब हुआ था।
क. 1930
ख. 1932
ग. 1934
घ. 1936
22. पंडित अलोपीदीन कहाँ के सर्वाधिक प्रतिष्ठित जर्मीदार थे?
क. गोपालगंज
ख. दातागंज
ग. नरकटियागंज
घ. सुल्तानगंज
23. दरोगा का स्वभाव किस प्रकार का था ?
क. कठोर स्वाभिमानी
ख. ईमानदार
ग. लालची
घ. घमंडी
24. कहानी में पंडित अलोपीदीन किस रूप में हमारे
समक्ष आते हैं?
क. भ्रष्ट धन के पुजारी
ख. गुणग्राही व्यक्ति
ग. भ्रष्ट जमींदार
घ. इनमें से कोई नहीं
25. 'नमक का दरोगा' कहानी हमें क्या संदेश देती
है?
क. निर्भय होकर कर्तव्य पालन का
ख. समय अनुसार कार्य करने का
ग. सूझबूझ से कार्य करने का
घ. इनमें से कोई नहीं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. किसका नया विभाग बन गया ?
उत्तरः नमक का नया विभाग बन गया ।
2. कोर्ट में किस भाषा का प्राबल्य था ?
उत्तरः फ़ारसी भाषा का प्राबल्य था ।।
3. वृद्ध मुंशी ने किसकी ओर ध्यान न देने के लिए
कहा?
उत्तरः- वृद्ध मुंशी ने ओहदे की ओर ध्यान न देने के लिए
कहा।
4. प्रेमचंद ने कहानी में मासिक वेतन को कैसा
कहा है ?
उत्तरः- प्रेमचंद ने कहानी में मासिक वेतन को पूर्णमासी का
चाँद जैसा कहा है।
5. पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर को कितने
तक की बोली लगाई ?
उत्तरः- पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर को एक हजार से
चालीस हजार रुपये तक की बोली लगाई।
6. धर्म ने किसको पैरों तले कुचल डाला ?
उत्तरः- धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
7. मैनेजरी के लिए मुंशी वंशीधर का वेतन
कितना निश्चित किया था ?
उत्तरः- मैनेजरी के लिए मुंशी वंशीधर का वेतन छह हजार
वार्षिक वेतन निश्चित किया।
8. नशे में कौन मस्त थे ?
उत्तरः- नमक के सिपाही और चौकीदार नशे में मस्त थे।
9. लक्ष्मी (धन) के लिए पंडित अलोपीदीन के क्या
विचार थे?
उत्तरः- पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मी के ऊपर अत्यधिक विश्वास
था। वह कहते थे कि पृथ्वी के साथ साथ परलोक में भी लक्ष्मी का ही निवास है।
10. लोग विस्मित क्यों थे ?
उत्तरः- लोग विस्मित इसलिए नहीं थे कि अलोपीदीन ने क्यों यह
कर्म किया बल्कि इसलिए विस्मित थे कि वह कानून के पंजे में कैसे आए ।
11. प्रेमचंद की कौन सी पुस्तक अंग्रेजों
द्वारा जब्त की गई थी ?
उत्तरः- प्रेमचंद द्वारा उर्दू में लिखित उनकी पुस्तक 'सोजे
वतन' अंग्रेजों के द्वारा जब्त की गई थी।
12. प्रेमचंद की कथा रचना किस नाम से और
कितने भागों में प्रकाशित है?
उत्तरः प्रेमचंद की कथा रचना 'मानसरोवर' के नाम से आठ भागों
में प्रकाशित है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. पंडित अलोपीदीन के पक्ष में फैसला आने पर
वकीलों में खुशी का माहौल क्यों था?
उत्तरः- पंडित अलोपीदीन के पक्ष में फैसला आने पर वकीलों
में खुशी का माहौल इसलिए था, क्योंकि वकीलों को पंडित अलोपीदीन से धन प्राप्त होता
था।
2. पंडित अलोपीदीन जब वंशीधर से मिलने उसके
घर आए तो वंशीधर के पिता से क्या बोले ?
उत्तरः- पंडित अलोपीदीन जब वंशीधर से मिलने उसके घर आए तो
वंशीधर के पिता से कहा कि कुलतिलक और पुरुर्षो की कीर्ति उज्ज्वल करने वाले संसार
में ऐसे जो धर्म पर अपना सब कुछ अर्पण कर सकें कितने धर्मपरायण मनुष्य हैं?"
3. उस समय फारसी का क्या प्रभाव था?
उत्तरः- उस समय फ़ारसी का खूब प्रभाव था। फारसी की प्रेम
कहानियां पढ़कर लोगों को अच्छे ओहदे पर नौकरियां मिल जाया करती थी।
4. धन ने उछल-उछलकर किस प्रकार आक्रमण किया ?
उत्तरः- धन और धर्म की शक्तियों में संग्राम होने लगा। धन ने
उछल-उछलकर आक्रमण शुरु किया एक से पाँच, पाँच से दस, दस से पंद्रह, पंद्रह से बीस
और चालिस हजार तक नौबत पहुँची।
5. दुनिया में भ्रष्टाचार के सम्बन्ध पर
किस-किस पर व्यंग्य किया गया है ?
उत्तरः- पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे
भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफ़र करनेवाले बाबूलोग, जाली दस्तावेज
बनानेवाले सेठ और साहकार, यह सब के सब देवताओं की भांति पंडित अलोपीदीन की निंदा
कर रहे थे।
6. डिप्टी मजिस्ट्रेट ने मुंशी बंशीधर को चेतावनी
देते हुए क्या आदेश दिया ?
उत्तरः- डिप्टी मजिस्ट्रेट ने मुंशी वंशीधर को चेतावनी देते
हुए कहा, "हम प्रसन्न हैं कि वह अपने काम से सजग और सचेत रहता है, किंतु नमक से
मुकदमें की बढ़ी हुई नमक हलाली ने उसके विवेक और बुद्धि को भ्रष्ट कैर दिया। भविष्य
में उसे होशियार रहना चाहिए।"
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोतर
1. 'नमक का दरोगा' पाठ का उद्देश्य बताइए।
उत्तरः 'नमक का दरोगा प्रेमचंद की बहचर्चित कहानियों में से
एक है। इस कहानी को आदर्शान्मुख यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदाहरण माना गया है। यह कहानी
धन के ऊपर धर्म की जीत है। 'धन' और 'धर्म' को क्रमशः असवृत्ति और
सवृत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा जा सकता है। कहानी में इनका
प्रतिनिधित्व क्रमशः पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है।
ईमानदार, कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पौडत अलोपीदीन
अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, लेकिन अंत में सत्य
के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी विभाग से बर्खास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे
वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे
अपराध से भरी हई वाणी में निवेंदन करते हैं- 'परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह
आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्देड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए
रखे।' इस तरह हम पाते हैं कि तत्काली समाज का यथार्थचित्रण के साथ साथ मानवीय
मूल्यों व सद्गुणों के प्रति आस्था जगाना इस पाठ का प्रमुख उद्देश्य रहा है।
2. मुंशी वंशीधर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तरः- मुंशी वंशीधर प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी 'नमक को दारोगा
कहानी का नायक है, जो ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ है। मुंशी वंशीधर पढ़ने-लिखने के
बाद जब नौकरी की तलाश में निकलता है तब पिता वृद्ध मुंशी उसे समझाते हुए कहते हैं,
'नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देनौ, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर
पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का
चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते- घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता
हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।'
इस शीन के बाद भी मुंशी यंशीधर ईमानदारी से पंडित अलोपीदीन
की नमक की गाड़ियों को पकड़ लेता है और अलोपीदीन की रिश्वत की रकम एक हजार से
चालीस हजार रुपये की रकम को अस्वीकार कर देता है।
इस प्रकार धन पर धर्म की विजय होती है और वंशीधर ईमानदारी
का परिचय देते हैं। वंशीधर कर्तव्यनिष्ठ भी हैं। वे रात हो या दिन, हमेशा अपने
कर्तव्य के प्रति सजग और कार्यशील हैं। तभी तो रात में खटपट की आवाज सुनी तो रात
में निकलकर गाड़ियों की तलाशी ली तो नमक पकड़ा गया। इस प्रकार ये कर्तव्यनिष्ठ का
परिचय देते हैं।
वंशीधर विनम्र भी हैं। इसी विनमता के कारण अपने पिता को
जवाब नहीं देते। तथा विनम्रता के कारण ही पंडित अलोपीदीन के मैनेजर के पद को
स्वीकार कर लेते हैं। परंतु विनम्रता उसकी कमजोरी भी बन गयी है। अलोपीदीन के
प्रस्ताव को अस्वीकार करना चाहिए था। परंतु वह उसे स्वीकार कर लेता है। यह उसके
चरित्र की दुर्बलता को उजागर करता है। इस प्रकार मुंशी वंशीधर ईमानदार,
कर्तव्यनिष्ठ, अपने धर्म का पालन करनेवाला और विनम्र तथा साहसी है।
3. 'नमक का दारोगा' कहानी में समाज में फैले
भ्रष्टाचार को उजागर किया गया है।' समझाइए।
उत्तरः- प्रेमचंदजी एक सामाजिक और आदर्शोन्मुख रचनाकार है। इसलिए
उन्होंने अपनी कहानी में दिखाया है कि समाज में भष्टाचार की बुराई कहाँ तक पैठ गयी
है कि एक पिता अपनी संतान को ईमानदारी का पाठ पढ़ाने की बजाय उसे भ्रष्टाचार का
पाठ पढ़ाता है। और तरह- तरह की उपमाओं के दद्वारा ऊपरी आय (रिश्वत) को महिमा मंडित
करता है।
बाद में वृद्ध मुंशी ने सुना कि पंडित अलोपीदीन की गाड़ियों
को वंशीधर ने पकड़ लिया है और रिश्वत नहीं ली है। तब वे अपने कर्मों को कोसते हैं
और उन्हें लगता है कि बेटे का पढ़ना-लिखना व्यर्थ गया। सामाजिक कहानीकार के साथ
प्रेमचंद जी एक आदर्श कहानीकार भी हैं। इसलिए उन्होंने अंत में ईमानदारी की विजय
दिखलायी है। एक भ्रष्ट व्यापारी पंडित अलोपीदीन वंशीधर की ईमानदारी से प्रभावित
होकर अपनी निजी संपत्ति का मैनेजर बना देता है। इस प्रकार ईमानदारी को प्रेमचंद
स्थापित करते हैं।
कहानी में प्रेमचंदजी ने समाज में व्यापक फैले भ्रष्टाचार को उजागर किया है। पंडित अलोपीदीन ने अपने धनबल से सभी सरकारी अफसरों के साथ-साथ न्याय को भी खरीद लेता है और अपने काले बाजार को विकसित कर लेता है। इस प्रकार प्रेमचंदजी ने इस कहानी में समाज में फैले अष्टाचार को सूक्ष्मता के साथ दिखाया है।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
आरोह भाग-1 | |
पाठ सं. | अध्याय का नाम |
काव्य-खण्ड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | 1. हे भूख ! मत मचल, 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर- अक्कमहादेवी |
7. | |
8. | |
गद्य-खण्ड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
वितान | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |