झारखण्ड
अधिविद्य परिषद्
ANNUAL
INTERMEDIATE ΕΧΑΜΙΝΑΤΙΟΝ – 2024
HISTORY
(Optional)
09.02.2024
Total
Time: 3 Hours 15 minute
Full
Marks: 80
सामान्य निर्देश
1.
This Question Booklet has two Parts - Part-A and Part-B. इस प्रश्न-पुस्तिका में
दो भाग भाग-A तथा भाग-B हैं।
2.
Part-A is of MCQ Type having 30 marks and Part-B is of Subjective Type having
50 marks.
भाग-A
में 30 अंक के बहुविकल्पीय प्रश्न तथा भाग-B में 50 अंक के विषयनिष्ठ प्रश्न हैं।
3.
The candidate has to answer in the Answer Booklet which will be provided
separately.
परीक्षार्थी
को अलग से उपलब्ध कराई गई उत्तर-पुस्तिका में उत्तर देना है।
4.
Part-A There are 30 Multiple Choice Questions having four (4) options (A, B, C
& D). The candidate has to write the correct option in the Answer Booklet.
All questions are compulsory. Each question carries 1 mark. There is no
negative marking for wrong answer.
भाग-A
इसमें 30 बहुविकल्पीय प्रश्न हैं जिनके 4 विकल्प (A, B, C तथा D ) हैं।
परीक्षार्थी को उत्तर-पुस्तिका में सही उत्तर लिखना है। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है। गलत उत्तर के लिए कोई अंक काटा नहीं जाएगा।
5.
Part-B There are three sections: Section-A, B & C.
This
part is of Subjective Type having Very Short Answer, Short Answer & Long
Answer Type questions. Total number of questions is 22.
Section-A
Question Nos. 31-38 are Very Short Answer Type. Answer any 6 questions. Each
question carries 2 marks.
Section-B
Question Nos. 39-46 are Short Answer Type. Answer any 6 questions. Each
question carries 3 marks. Answer the questions in maximum 150 words each.
Section-C
Question Nos. 47-52 are Long Answer Type. Answer any 4 questions. Each question
carries 5 marks. Answer the questions in maximum 250 words each.
भाग-B
इस भाग में तीन खण्ड खण्ड-A, B तथा C हैं। इस भाग में अति लघु उत्तरीय, लघु
उत्तरीय तथा दीर्घ उत्तरीय प्रकार के विषयनिष्ठ प्रश्न हैं। कुल प्रश्नों की
संख्या 22 है।
खण्ड-A
प्रश्न संख्या 31-38 अति लघु उत्तरीय हैं। किन्हीं 6 प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न 2 अंक का है। ।
खण्ड-B
प्रश्न संख्या 39-46 लघु उत्तरीय हैं। किन्हीं 6 प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक
प्रश्न 3 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दें।
खण्ड-C
प्रश्न संख्या 47-52 दीर्घ उत्तरीय हैं। किन्हीं 4 प्रश्नों के उत्तर दें।
प्रत्येक प्रश्न 5 अंक का है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250 शब्दों में
दें।
6.
Candidates are required to answer in their own words as far as practicable.
परीक्षार्थी
यथासंभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।
7.
Candidate has to hand over his/her Answer Booklet to the Invigilator
compulsorily before leaving the examination hall.
परीक्षार्थी
परीक्षा भवन छोड़ने के पहले अपनी उत्तर-पुस्तिका वीक्षक को अनिवार्य रूप से लौटा
दें।
8.
Candidates can take away the Question Booklet after completion of the
Examination.
परीक्षा
समाप्त होने के उपरांत परीक्षार्थी प्रश्न-पुस्तिका अपने साथ लेकर जा सकते हैं।
Part-A
(बहुविकल्पीय प्रश्न)
Question
Nos. 1 to 30 are Multiple Choice Type. Each question has four options. Select
the correct option and write it in the Answer Sheet. Each question carries 1
mark.1x30=30
प्रश्न
संख्या 1 से 30 तक बहुविकल्पीय प्रकार हैं। प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प हैं।
सही विकल्प चुनकर उत्तर पुस्तिका में लिखें। प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है।
1. हड़प्पा सभ्यता का
प्रसिद्ध बंदरगाह "लोथल" किस राज्य में है ?
(A)
राजस्थान
(B)
महाराष्ट्र
(C) गुजरात
(D)
पंजाब
2. "पाटलिपुत्र" की स्थापना किसने की ?
(A)
चन्द्रगुप्त मौर्य
(B)
अशोक
(C) उदयिन
(D)
बिम्बिसार
3. पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?
(A)
1516 ई०
(B) 1526 ई०
(C)
1556 ई०
(D)
1571 ई०
4. "धम्म नीति" का प्रतिपादन किसने किया ?
(A)
चन्द्रगुप्त मौर्य
(B) अशोक
(C)
हर्षवर्द्धन
(D)
समुद्रगुप्त
5. भक्ति आंदोलन के निर्गुण शाखा के प्रमुख संत कौन थे ?
(A)
मीराबाई
(B)
तुलसीदास
(C) कबीरदास
(D)
रामदास
6. ह्वेनसांग किसके दरबार में भारत आया था ?
(A)
कनिष्क
(B)
समुद्रगुप्त
(C)
चन्द्रगुप्त द्वितीय
(D) हर्षवर्द्धन
7. विजयनगर के प्रसिद्ध शासक कृष्णदेवराय किस वंश से संबंधित थे ?
(A)
संगम वंश
(B)
सालुव वंश
(C) तुलुव वंश
(D)
आराबिडु वंश
8. "हुमायूँनामा" की रचना किसने की.?
(A)
हुमायूँ
(B)
हेनरी बेवरीज
(C) गुलबदन बेगम
(D)
अबुल फजल
9. बज्रयान' किस धर्म की शाखा है ?
(A) बौद्ध धर्म
(B)
जैन धर्म
(C)
सिक्ख धर्म
(D)
हिन्दू धर्म
10. भारत का नेपोलियन किसे कहा जाता है ?
(A) समुद्रगुप्त
(B)
अशोक
(C)
कनिष्क
(D)
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
11. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना कब हुई ?
(A) 1600 ई०
(B)
1605 ई०
(C)
1610 ई०
(D)
1615 ई०
12. संथाल विद्रोह के नेता कौन थे ?
(A)
बिरसा मुंडा
(B)
नीलाम्बर-पीताम्बर
(C) सिद्धू-कान्हू
(D)
तिलका माँझी
13. 1857 का सिपाही विद्रोह कहाँ से आरम्भ हुआ था ?
(A)
दिल्ली
(B) मेरठ
(C)
बैरकपुर
(D)
झाँसी
14. भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियों का प्रथम
केन्द्र कौन था ?
(A)
कलकत्ता
(B)
बम्बई
(C)
कालीकट
(D) सूरत
15. 1857 के विद्रोह के कारणों में से एक चर्बी युक्त कारतूस का प्रयोग
किस राइफल में किया जाता था ?
(A)
ब्राउन बेस
(B)
AK-47
(C) एनफील्ड
(D)
AK-56
16. रैयतबाड़ी व्यवस्था किसने लागू किया ?
(A)
लार्ड कॉर्नवालिस
(B) हेक्टर मुनरो
(C)
थॉमस मुनरो
(D)
एलफिंस्टन
17. फोर्ट विलियम की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(A) कलकत्ता
(B)
दिल्ली
(C)
बम्बई
(D)
मद्रास
18. 'मेघदूतम्' के रचनाकार कौन हैं ?
(A)
पाणिनी
(B) कालिदास
(C)
भास
(D)
चाणक्य
19. 'यूनेस्को' ने हम्पी को विश्व विरासत स्थल कब घोषित किया ?
(A)
1976 ई०
(B) 1986 ई०
(C)
2001 ई०
(D)
2006 ई०
20. हड़प्पा सभ्यता के किस स्थान से कांसे की नर्तकी का प्रमाण मिला
है ?
(A) मोहनजोदड़ो
(B)
हड़प्पा
(C)
लोथल
(D)
कालीबंगा
21. रामायण के मौलिक रचनाकार कौन हैं ?
(A)
तुलसीदास
(B)
वेदव्यास
(C) वाल्मिकी
(D)
कालिदास
22. संथाली भाषा में विद्रोह को क्या कहा जाता है ?
(A)
सेंदरा
(B)
झूम
(C) हूल
(D)
उलगुलान
23. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष कौन थे ?
(A)
दादाभाई नौरोजी
(B) बोमेश चन्द्र बनर्जी
(C)
गोपाल कृष्ण गोखले
(D)
ए०ओ० हाम
24. हड़प्पा सभ्यता से संबंधित आर-37 क्या है ?
(A)
एक औजार
(B) एक कब्रगाह
(C)
एक सड़क संरचना
(D)
एक स्थल
25. इब्न बतूता कहाँ से भारत आया था ?
(A)
पुर्तगाल
(B)
अरब
(C)
बग़दाद
(D) मोरक्को
26. 'साबरमती का संत' किसे कहा जाता है ?
(A)
दादाभाई नौरोजी
(B)
जवाहरलाल नेहरू
(C) महात्मा गाँधी
(D)
मोतीलाल नेहरू
27. स्वराज पार्टी के संस्थापक कौन थे ?
(A)
महात्मा गाँधी
(B)
मोतीलाल नेहरू
(C)
चित्तरंजन दास
(D) (B) और (C) दोनों
28. भारत में सर्वप्रथम सोने का सिक्का किसने जारी किया ?
(A)
मौर्य
(B)
शुग
(C) इन्डो-ग्रीक
(D)
गुप्त
29. गाँधीजी का राजनीतिक दर्शन/विचारधारा किस पुस्तक में वर्णित है
?
(A)
यंग इंडिया
(B) हिन्द स्वराज
(C)
इंडियन ओपिनियन
(D)
माई एक्सपेरीमेंट विथ टूथ
30. हड़प्पा सभ्यता का भारत में स्थित सबसे बड़ा स्थल कौन है ?
(A)
हड़प्पा
(B)
मोहनजोदड़ो
(C) राखीगढ़ी
(D)
धौलावीरा
Part-B
(विषयनिष्ठ प्रश्न )
Section - A
(अति लघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं छः प्रश्नों के उत्तर दें। 2x6-12
31. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के कौन-कौन से स्रोत हैं ?
उत्तर - इतिहासकार वी. डी. महाजन द्वारा, प्राचीन भारतीय
इतिहास के स्रोतों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है - साहित्यिक स्रोत,
पुरातात्विक स्रोत, विदेशी विवरण, एवं जनजातीय गाथायें।
32. भारत के कौन से दो प्रांत अगस्त, 1947 में भारत एवं पाकिस्तान के
बीच बाँटे गये ?
उत्तर - 17 अगस्त 1947 को, जब आधिकारिक तौर पर रेडक्लिफ
लाइन की घोषणा हुई जिसमें प्रमुख तौर पर पश्चिम में पंजाब राज्य और पूर्व में
बंगाल राज्य का बंटवारा हुआ और भारत पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा निर्धारित हुई।
33. अकबर का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर - अकबर का जन्म 15 अक्टूबर, 1542 को उमरकोट में हुआ
था, जो अब सिंध प्रांत, पाकिस्तान में है।
34. सगुण भक्ति क्या है ?
उत्तर - ईश्वर की 'सगुण' और 'साकार' रूप में विश्वास करने
वाले भक्त कवियों को 'सगुण' भक्ति का नाम दिया गया है।
35. पहाड़िया कौन थे ?
उत्तर - औपनिवेशिक काल में राजमहल की पहाड़ियों के आसपास
रहने वाले लोगों को पहाड़िया कहा जाता था।
36. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में त्रिमूर्ति के नाम से कौन-कौन प्रसिद्ध
थे ?
उत्तर - बंगाल विभाजन ( बंग-भंग) के पश्चात् लाल-बाल-पाल
'“भारतीय राजनीति की त्रिमूर्ति" के रूप में पहचाने जाने लगे । पंजाब के लाला
लाजपत राय, महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल
37. सिपाही विद्रोह से जुड़े
दो प्रमुख महिला नेत्रियों के नाम लिखें ।
उत्तर - 1. रानी लक्ष्मीबाई 2. बेगम हजरत महल
38. भारत में रेलवे लाइन पहली बार कब और कहाँ से कहाँ तक बिछाई गई
?
उत्तर - पहली रेलवे लाइन 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे
तक डलहौजी द्वारा शुरू की गई थी।
Section - B
(लघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं छः प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न
का उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दें। 3 x 6 = 18
39. "इंग्लिश बॉण्ड प्रणाली" क्या है ?
उत्तर - इंग्लिश बॉण्ड प्रणाली का उपयोग 17वीं शताब्दी से
लेकर 18वीं शताब्दी के अंत तक की संरचनाओं में किया जाता था। एक इंग्लिश बॉण्ड को
विशेषज्ञ श्रम की आवश्यकता नहीं होती है , जबकि अन्य बांडों को होती है। इस
कनेक्शन के लिए उन दीवारों में मजबूती अधिक होती है जो कम से कम 1.5 ईंटें मोटी
होती हैं। इस प्रकार का बंधन दीवारों को अधिक मजबूत समर्थन प्रदान करता है।
40. भारतीय संविधान के प्रमुख अवगुण क्या
हैं ?
उत्तर - भारतीय संविधान के प्रमुख अवगुण निम्नलिखित हैं
1.
अत्यधिक लंबा होना
2.
वकीलों के लिए स्वर्ग होना
3.
बहुत सा शब्दों का व्याख्या ना होना। उदाहरण के लिए संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का
वर्णन किया गया है किंतु अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है
4.
संविधान का दो तिहाई भाग 1935 के भारत शासन अधिनियम से लिया जाना और अन्य देशों के
संविधान से लिया जाना जिस कारण से इसे उधार का भी संविधान कहा जाता है ।
41. भक्ति आंदोलन के बारे में लिखें
उत्तर - मध्य काल में भक्ति आंदोलन की शुरुआत सर्वप्रथम
दक्षिण के अलवार तथा नयनार संतों द्वारा की गई। बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में
रामानंद द्वारा यह आंदोलन दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाया गया। इस आंदोलन को
चैतन्य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव ने और अधिक मुखरता प्रदान की। भक्ति
आंदोलन का उद्देश्य था- हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिन्दू
धर्म में समन्वय स्थापित करना। अपने उद्देश्यों में यह आंदोलन काफी हद तक सफल रहा।
42. काला शहर एवं गोरा शहर में अंतर स्पष्ट करें ।
उत्तर - काला शहर एवं गोरा शहर में निम्न अंतर है-
1. गोरा
शहर ब्रिटिश कॉलोनी ज़ोन को दिया गया नाम था। वे दोनों अलग-अलग स्थानों पर रहते
थे। काला शहर भारतीय व्यापारियों, कारीगरों और श्रमिकों का घर था, जिन्होंने
यूरोपीय लोगों के साथ व्यापार का लेन-देन किया था।
2. रंग
की अनुपस्थिति विकार, गंदगी, बीमारी और अराजकता का प्रतिनिधित्व करती है। स्वच्छता
की कमी के कारण, हैजा और प्लेग महामारी आम थे।
दूसरी ओर, गोरा शहर, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता के
बारे में विचार करता है। एक उपयुक्त जल निकासी प्रणाली स्थापित की गई थी।
3. जिस
क्षेत्र में कारखाने स्थित हैं, उन्हें "गोरा शहर" के रूप में संदर्भित
किया गया था और यह सत्ता के साथ -साथ उनके सांस्कृतिक आदर्शों और सामाजिक
रीति-रिवाजों के संदर्भ में अंग्रेजों के भौतिक और प्रतीकात्मक दोनों प्रभुत्व का
प्रतीक है।
उनके भारतीय सहयोगी, जो "काला शहर" के रूप में
जाना जाता था, जो कारखाने से कई किलोमीटर दूर है, इस बीच में रह रहे थे।
43. रॉलेट एक्ट को काला कानून क्यों कहा जाता है ?
उत्तर - रॉलेट एक्ट 1919 में सर सिडनी रॉलेट की सिफारिशों
द्वारा पारित किया गया था और मार्च 1919 में कानून बन गया। महात्मा गांधी ने कहा
कि बिल या एक्ट काला-बिल या काला एक्ट था। भारतीयों द्वारा संचालित की जाने वाली
उपनिवेश विरोधी कार्यवाही को दबाने के लिए तथा उनके अधिकारों को नष्ट करने के लिए
ब्रिटिश सरकार द्वारा लाए गए इस कानून को भारत के इतिहास में 'काला कानून' कहा
जाता है। रौलेट एक्ट की ऐसी शोषण मूलक प्रकृति के कारण ही इस कानून को “बिना वकील,
बिना दलील और बिना अपील का कानून” कहा जाता है।
44. हड़प नीति क्या है ?
उत्तर - इसे विलय नीति भी कहा जाता है। लार्ड डलहौजी द्वारा
कम्पनी के अधीन देशी राज्यों के सन्तानहीन शासकों को गोद लेने के अधिकार से वंचित
कर उनके राज्य को हड़प लेना ही हड़प नीति थी।
45. 1857 की क्रांति के धार्मिक कारणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर - सन् 1857 ई० की क्रांति के धार्मिक कारण निम्न थे-
• ईसाई
मिशनरियों द्वारा हिन्दू एवं इस्लाम धर्म की उग्र आलोचना करना
• अंग्रेजों
द्वारा बाल विवाह, सती प्रथा को बंद करना तथा विधवा विवाह की आज्ञा देना
• भारतीय
पारंपरिक शिक्षा पद्धति की जगह अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा पद्धति की शुरुआत
• भारतीयों
के साथ रंग के आधार पर घृणा की दृष्टि से देखना
46. चम्पारण सत्याग्रह के बारे में लिखें ।
उत्तर - चंपारण किसान आंदोलन बिहार के चंपारण जिले में एक
किसान विद्रोह था जो भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान शुरू हुआ था।
1917-18 में चंपारण किसान आंदोलन शुरू हुआ। इसका लक्ष्य यूरोपीय बागान मालिकों के
खिलाफ किसानों के बीच प्रतिरोध को जगाना था। इन बागान मालिकों ने नील की खेती के
अवैध और कठोर तरीकों का इस्तेमाल एक कीमत पर किया जिसे न्याय के सिद्धांतों के
अनुसार किसानों के श्रम के लिए पर्याप्त भुगतान के रूप में वर्णित नहीं किया जा
सकता था। चंपारण सत्याग्रह को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया भारत का पहला
सविनय अवज्ञा आंदोलन भी माना जाता है।
Section - C
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक
प्रश्न का उत्तर अधिकतम 250 शब्दों में दें। 5 x 4 = 20
47. संथाल विद्रोह के कारण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालें ।
उत्तर - ब्रिटिश शासन काल में कम्पनी सरकार की नीति एवं
उनके कार्यो के फलस्वरूप आदिवासियों का समाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन बुरी
तरह प्रभावित हुआ और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्हे घोर शोषण का सामना करना
पड़ा। परिणामस्वरूप आदिवासियों में आक्रोश उत्पन्न हो गया और मृल रूप से सरकार को
दोषी मानकर उन्होने उसके विरुद्ध विद्रोह किये जिनमें संथाल, कोल, रंपा और बिरसा
मुंडा विद्रोह प्रमख थे।
संथाल
विद्रोह के अनेक कारण थे जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
• भूमि से बेदखली– जमींदार, पुलिस,
राजस्व और अदालत ने संथालो से जबरन वसूली कर संयुक्त कार्रवाई की। संथाल सभी
प्रकार के करों और शुल्कों का भुगतान करने के लिए बाध्य थे। उन्हें उनकी संपत्ति
से बेदखल कर उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।
• हिंसा– जमींदारों के प्रतिनिधियों (यानी कारिंदो) ने
संथालों के साथ व्यक्तिगत हिंसा की। उनके साथ विभिन्न प्रकार के अत्याचार किए गए
और संथालों को झुकाया गया।
• संथाल भूमि का अतिक्रमण– धनी किसानों ने काश्तकारों की भूमि पर अतिक्रमण किया। वे
संथालो के मवेशियों को ले गए।
• अत्यधिक ब्याज दर– साहूकारों ने
संथालो को जिस दर पर ब्याज दिया वह दर बहुत ही अधिक थी। इन साहूकारों को संथालों
द्वारा दीकू, यानी शोषक कहा जाने लगा। संथाल क्षेत्रों में अपना व्यापार चलाने
वाले सभी बंगाली दीकू के नाम से जाने जाते थे।
• यूरोपीय लोगों द्वारा उत्पीड़न– यूरोपीय लोगों को
बिहार में रेल निर्माण के लिए लगाया गया था। इन यूरोपीय लोगों ने अक्सर संथाल
महिलाओं का अपहरण किया और यहाँ तक कि उनकी हत्या की और उत्पीड़न के कुछ
अन्यायपूर्ण कृत्यों को भी किया तथा इस सब के लिए रेलवे लाइन पर कार्यरत यूरोपीय
लोगों द्वारा कोई भुगतान नहीं किया गया था। जमींदारों, साहूकारों, व्यापारियों और
यूरोपीय कर्मचारियों ने इस प्रकार संथाल किसानों पर इस हद तक अत्याचार किया कि
उनके पास विद्रोह करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
• मुद्रा प्रणाली की शुरुआत– मुद्रा की शुरुआत
संथालों के लिए एक बहुत बड़ा आघात थी । संथाल वस्तु विनिमय प्रणाली का पालन करते
थे, लेकिन जमींदारों को नकद भुगतान करना पड़ता था। इसका अर्थ यह था कि उन्हें
साहूकारों से बहुत अधिक ब्याज दर पर पैसा उधार लेना पड़ता था।
विद्रोह का स्वरूप– उपर्युक्त अनेकानेक कारणों से संथालों ने विद्रोह शुरू कर
दिया, इस विद्रोह का नेतृत्व सिध्दू एवं कान्हू कर रहे थे। संथाल़ न्याय एवं धर्म
का राज्य स्थापित करना चाहते थे, चांद एवं भैरव दो भाई इस अंग्रेज विरोधी आंदोलन
के प्राण थे। 13 जून सन् 1855 ईस्वी को सिध्दू एवं कान्हू ने भगनाडीह नामक गांव
में संथालों की एक सभा का आयोजन किया जिसमें लगभग 10,000 संथालों ने भाग लिया। इस
सभा में अंग्रेज विरोधी जुलूस निकाले गए। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी इस
विद्रोह में बढ़-चढ़कर भाग लिया। कुछ ही दिनों के अंदर सिध्दू – कान्हू के नेतृत्व
में 60,000 सशस्त्र संथालो की एक बड़ी फौज खड़ी हो गई।
इसके अतिरिक्त हजारों आदिवासी अंग्रेजों का तख्ता उलटने के
लिए तैयार थे, इस विद्रोह की आग शीघ्र ही वीरभूम, बांकुरा, सिंहभूम, हजारीबाग,
भागलपुर, मुंगेर आदि कई स्थानों में फैल गई। महाजनों एवं जमीदारों पर हमले किए गए
और उनके मकान जला दिए गए, तथा उन्हें लूट लिया गया। पांच महाजनों को संथाल
विद्रोहियों ने पंचकठिया में मार डाला। सरकारी भवनों, थाना, रेलवे स्टेशन और डाक
ढोनेवाली गाड़ियों पर हमले किए गए। संथालो के आक्रमण के केंद्र वे सभी गैर आदिवासी
तत्व थे जिनसे वे क्षुब्ध थे।
इस संगठित विद्रोह एवं सरकारी भवनों, कर्मचारियों एवं
अन्यान्य सरकारी सम्पति पर संथालियों के आक्रमण ने सरकार को जवाबी कार्यवाही के
लिए उकसाया। सरकार ने अत्यन्त कटोरतापूर्वंक इस विद्रोह का दमन करने का निश्चय
किया और सेना की एक बड़ी टुकड़ी रवाना की। विद्रोह प्रभावित सारे क्षेत्र में
मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। सिध्दू-कान्हू जैसे विद्रोही नेताओं को पकड़ने के लिए
सरकार ने दस हजार रुपये इनाम की घोषणा की। सिध्दू और कान्हू पकड़े गये और विद्रोह
को अत्यन्त कठोरतापूर्वक दबा दिया गया। करीब 15 हजार संथाल मारे गये, अंग्रेजी
बन्दूकों के समक्ष संथालों का तीर- धनष बेकार सिद्ध हुआ विद्रोह समाप्त हो गया और
शान्ति स्थापित हो गयी।
48. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गाँधीजी के द्वारा प्रयोग किए गए
प्रमुख हथियार तथा अस्त-शस्त्र की चर्चा करें।
उत्तर - गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण
प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ शस्त्र के रूप में उपयोग किया। गाँधी जी ने
राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन बनाया। इसके लिए उनके द्वारा निम्नलिखित रणनीतियां
अपनाई गई जो विनाशक हथियारों से भी ज्यादा कारगर साबित हुई-
(i) अहिंसा : गाँधी जी कहते है की "अहिंसा कायर का कवच नही हैं अपितु यह बहादुरी का
उच्चतम गुण है। अहिंसा का सामान्य अर्थ हैं किसी की हिंसा न करना, किसी भी प्राणी
को मानसिक या शारीरिक चोट न पहुंचाना आदि। गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में
अहिंसा का सफल प्रयोग किया।
(ii) सत्याग्रह का प्रयोग : सत्य के प्रश्न पर संघर्ष करने की रणनीति सत्याग्रह है।
सत्याग्रह के प्रारंभिक प्रयोग गाँधी जी ने चंपारण और खेड़ा में किसानों की दशा
में सुधार हेतु आंदोलन करके किया।
(iii) हड़ताल का सफल प्रयोग: गांधी जी ने अहमदाबाद मिल मजदूरों के संघर्ष में हड़ताल का
सफल प्रयोग किया। जिसके फलस्वरूप मजदूरों के वेतन में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
(iv) असहयोग इस आंदोलन की रणनीति में प्रत्येक स्तर पर सरकार का विरोध एवं बहिष्कार करना
था। गांधीजी ने 1920 ई. में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किये जिसमे जनता ने बढ़-चढ़कर
पूर्ण उत्साह से भाग लिया।
(v) सविनय अवज्ञा आंदोलन सरकार के कानून को विनम्रता पूर्वक मानने से मना करना।
1930 ई में गांधीजी ने नमक कानून को भंग करके सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत किया।
(vi) 'स्वदेशी' और 'बहिष्कार' : उन्होंने स्वदेशी को अपनाया तथा स्वयं चरखा चलाया तथा
खादी वस्त्र पहने और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया।
(vii) संघर्ष तैयारी संघर्ष की रणनीति जन आंदोलन को और अधिक व्यापक तथा नियंत्रित करने के लिए
गांधी जी ने "संघर्ष - तैयारी - संघर्ष" की रणनीति का आविष्कार किया। जब
सक्रिय संघर्ष नहीं चल रहा हो तब रचनात्मक कार्य द्वारा लोगों को आंदोलन से जोड़े
रखना जैसे-
1. हिंदू मुस्लिम एकता को बनाए रखने का प्रयास करना।
2. छुआछूत के खिलाफ लोगों को जागरूक करना ।
3. आंदोलन में स्त्रियों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
4. देशी हस्तशिल्प को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना।
इस प्रकार गाँधी जी ने सभी वर्गों के लोगों को स्वतंत्रता
आन्दोलन में शामिल कर स्वतंत्रता आंदोलन को जन आंदोलन बना दिया।
49. एक इतिहासकार के रूप में अकबरनामा के लेखक अबुल फजल की भूमिका का
विश्लेषण कीजिए ।
उत्तर - मध्यकालीन फारसी इतिहास लेखन में अबुल फजल एक
महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वह मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकारों में सबसे
विशिष्ट स्थान रखता था और इस तथ्य का सीधा प्रभाव उसके इतिहास लेखन पर भी पड़ा।
यद्यपि उसका इतिहास लेखन, अन्य समकालीन अथवा पूर्ववर्ती फारसी इतिहासकारों की
तुलना में अधिक संतुलित है तथापि अपने संरक्षणदाता शासक (अकबर) के प्रति उसका
अत्यधिक अनुराग कहीं-कहीं उसके इतिहास लेखन को दोषयुक्त भी कर देता है। मध्ययुगीन
भारतीय इतिहास से संबंधित अधिकांश मुस्लिम इतिहासकारों ने एक विशेष दृष्टि और पक्षपात
से युक्त इतिहास लेखन किया है, परंतु अबुल फजल अपने इतिहास लेखन में इन नकारात्मक
प्रवृत्तियों से बचने का प्रयास करता है और 'अतीत तथा वर्तमान' को 'तर्क' की
दृष्टि से देखने का प्रयास करता है। इस दृष्टिकोण के निर्माण में उसके स्वयं के
अतीत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
* अकबरनामा के तीन भाग हैं जिसमें से तीसरे भाग को 'आईन-ए-अकबरी'
कहते हैं।
* प्रथम भाग में अकबर के पूर्वजों तथा उसके आरंभिक जीवन का वर्णन
है।
* दूसरा भाग अकबर काल के घटनाक्रमों से संबंधित है।
* तीसरे भाग अर्थात् आईन-ए-अकबरी में अकबर के शासनकाल से संबंधित
आँकड़े तथा शासन-व्यवस्था संबंधी अन्य नियमों का वर्णन है।
अकबरनामा का अंग्रेज़ी अनुवाद 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हेनरी
बेवरिज द्वारा किया गया था।
50. मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे ?
उत्तर - चन्द्रगुप्त मौर्य ने जिस साम्राज्य की स्थापना की
उसको अशोक ने उन्नति के शिखर पर पहुँचाया परन्तु शीघ्र ही यह साम्राज्य अवनति की
ओर अग्रसर होने लगा इस मौर्य वंश के पतन के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे-
(1) अयोग्य उत्तराधिकारी- विशाल साम्राज्य को केवल योग्य उत्तराधिकारी ही संभालने की
क्षमता रखते हैं। योग्यता उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होती, यह व्यक्तिगत गुण होता
है। अशोक के पश्चात् गद्दी पर बैठने वाले निर्बल तथा अयोग्य शासक थे। इसलिए मौर्य साम्राज्य
का पतन होना स्वाभाविक था।
(2) अशोक का उत्तरदायित्व- अशोक मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए कहाँ तक उत्तरदायी है
इस सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। डॉ. हरिप्रसाद शास्त्री का कहना है कि अशोक
ने पशुबलि निषेध करके, जातीय व्यवस्था को सामान्य कर, 'दंड समता' तथा 'व्यवहार समता'
के सिद्धान्तों द्वारा ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों पर कुठाराघात करके ब्राह्मणों को
अपना विरोधी बना लिया जिसके कारण गम्भीर प्रतिक्रिया हुई। अशोक के पश्चात् उन्होंने
खुला विद्रोह किया, परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य के अन्तिम सम्राट् बृहद्रथ की ब्राह्मण
सेनापति पुष्यमित्र ने हत्या करके ब्राह्मण वंशी शुंगों का राज्य स्थापित किया।
(3) साम्राज्य का विभाजन - साम्राज्य विभाजन की सम्भावनाएँ अशोक के राज्याभिषेक के समय
ही उत्पन्न हो गई थीं परन्तु अशोक ने अपनी योग्यता से ऐसा नहीं होने दिया। अशोक की
मृत्यु के पश्चात् साम्राज्य दो भागों मैं विभाजित हो गया। पश्चिमी भाग का शासक कुणाल
और पूर्वी भाग का दशरथ शासक बना। इस प्रकार शासक की शक्ति निर्बल हो गई और इसका लाभ
उठाकर प्रान्तों ने विद्रोह करके अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। गांधार, कश्मीर
तथा सीमा प्रान्त सभी स्वतन्त्र हो गए।
(4) राष्ट्रीय भावना का अभाव- रोमिला थापर ने मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए राष्ट्रीय भावना
के अभाव को बताया है। मौर्य काल में राजनैतिक दृष्टि से एकता के विचार का अभाव था इसी
कारण यूनानियों का प्रतिरोध संगठित रूप से नहीं कर सके।
(5) अत्यधिक केन्द्रित शासन- अशोक का शासन अत्यधिक केन्द्रीकृत था। केन्द्र के द्वारा सम्पूर्ण
साम्राज्य पर शासन होता था। ऐसे केन्द्रीयकृत शासन को केवल शक्तिशाली सम्राट् ही चला
सकता था। कमजोर शासक शासन पर पूरा नियन्त्रण रखने में असमर्थ होता है। अशोक के उत्तराधिकारियों
में कोई भी शासक इतना अधिक शक्तिशाली नहीं था जो सम्पूर्ण शासन पर अपना पूर्ण नियन्त्रण
रख सके इसलिए मौर्य वंश के साथ ही मौर्य साम्राज्य का पतन होना स्वाभाविक था।
(6) प्रजा का विद्रोह- प्रान्तीय गवर्नरों के कारण जनता मौर्यों के विरुद्ध हो गई
थी। निहार रंजलन रे का विचार है कि पुष्यमित्र शुंग का विद्रोह वास्तव में प्रजा का
विद्रोह था क्योंकि पुष्यमित्र ने वृहद्रथ की हत्या सेना के सम्मुख की परन्तु वह शान्त
रही। यह इस बात का प्रमाण है कि जनता वृहद्रथ के शासन से सन्तुष्ट न थी।
(7) अत्याचारी शासक- अशोक के अनेक उत्तराधिकारी अत्याचारी शासक थे। गार्गी संहिता
से ज्ञात होता है कि वह निरंकुश तथा अत्याचारी ही नहीं वरन् व्यवहार से पूर्णतया दुराचारी
थे। अत: जनता द्वारा ऐसे शासकों का विरोध होना स्वाभाविक था।
(8) विदेशी आक्रमण- अशोक ने जिन मध्य एवं पश्चिमी के यूनानियों को अपनी शान्तिवादी
नीति से मित्र बना लिया था। उन्होंने ही भारत की राजनैतिक दुर्बलता का लाभ उठाकर भारत
पर आक्रमण किया। शालिशुक के काल में ही यवनों ने भारत पर आक्रमण की तैयारी कर ली थी।
(9) ब्राह्मण धर्म की प्रतिक्रिया- सम्राट अशोक ने हिन्दू धर्म का परित्याग करके बौद्ध धर्म को
राजकीय संरक्षण प्रदान किया था। इससे ब्राह्मण जाति अत्यधिक रुष्ट हो गई थी।
अशोक ने बलि-प्रथा का निषेध कर दिया था तथा उसने अपने उत्तराधिकारियों
को भी अहिंसा की नीति का अनुसरण करने का आदेश दिया था। उसकी इस नीति से ब्राह्मण चिढ़
गये थे। अभी तक धार्मिक क्षेत्र में ब्राह्मण सर्वेसर्वा माने जाते हैं, परन्तु अशोक
ने नये पदाधिकारी 'धर्म महामात्र' नियुक्त कर दिये थे। अतः अशोक की मृत्यु के बाद ब्राह्मणों
ने विद्रोह करके मौयों के हाथ से सत्ता छीन ली।
(10) कमजोर आर्थिक स्थिति तथा करों का भार- राज्य की आर्थिक दशा खराब होने के कारण कौशाम्बी के अनुसार
मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। दिव्यावदान की एक अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने बौद्धों
को सौ करोड़ रुपया दान में दे दिया था जिसमें से 96 करोड़ तो उसने चुका दिए थे और चार
करोड़ के बदले में अपना राज्य गिरवी रख दिया था। मंत्रियों ने इसका विरोध कर अशोक को
गद्दी से हटा कर सम्प्रति को गद्दी पर बैठा दिया और चार करोड़ देकर राज्य छुड़ा लिया।
इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है इसलिए इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लेकिन इससे
यह अवश्य ज्ञात होता है कि राज्य की आर्थिक स्थिति डावाँडोल हो गई थी और राजा ने आय
की वृद्धि के लिए नाटक खेलने वालों तथा वेश्याओं पर भी कर लगा दिया था।
51. कबीरदास की जीवनी, शिक्षाएँ एवं प्रमुख उपदेश की चर्चा करें।
उत्तर - जीवनी- संत कबीर का जन्म सन 1398 ईसवी में
एक जुलाहा परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था। कुछ
विद्वानों का यह भी मानना है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे ,जिसने लोक
लाज के डर से जन्म देते ही कबीर को त्याग दिया था। नीरू और नीमा को कबीर पड़े हुए
मिले और उन्होंने कबीर का पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु प्रसिद्ध संत स्वामी
रामानंद थे। लोक कथाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर विवाहित थे। इनकी
पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो संताने थी एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल
था और पुत्री का नाम कमाली। इनकी मृत्यु लगभग सन 1598 में उत्तर प्रदेश के मगहर
जिले में हो गई।
शिक्षाएँ-
कबीर पढ़े-लिखे न थे, उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है: मसि कागद छूयो नहीं कलम गौ
नहीं हाथ।
वे अपनी अनुभूतियों को कविता के रूप में व्यक्त करने में
कुशल थे। उनकी कविताओं का संग्रह एवं संकलन बाद में उनके भक्तों ने किया।
कबीर की रचनाओं का संकलन बौजक नाम से किया गया है, जिसके
तीन भाग है- (1) साखी (2) सबद, (3) रमैनी।
1. साखी - दोहा छन्द्र में लिखी गई है तथा कबीर की शिक्षाओं
एवं सिद्धान्तों का विवेचन इसकी विषय- वस्तु में हुआ है।
2. सबद - कबीरदास के पदो को सबद' कहा जाता है। ये पद गेय
हैं तथा इनमें संगीतात्मकता विद्यमान है। इन्हें विविध राग-रागिनियों में निबद्ध
किया जा सकता है। रहस्यवादी भावना एवं अलीकिक प्रेम की अभिव्यक्ति इन पदों में हुई
है।
3. रमैनी - रमैनी की रचना चौपाइयों में हुई है। कबीर के
रहस्यवादी एवं दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति इसमें हुई है।
कबीरदास जी के मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं-
• कबीरदास जी ने मूर्तिपूजा तथा बहुदेववाद का पूर्ण रूप से
विरोध किया।
• उन्होंने निराकार ब्रह्म की आराधना को उचित बताया।
• उन्होंने ज़िक्र तथा इश्क के सूफी सिद्धान्तों के प्रयोग
द्वारा नाम स्मरण पर बल दिया।
• उनके अनुसार भक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति सम्भव
है।
• उनके अनुसार परम सत्य अर्थात् परमात्मा एक है, भले ही
विभिन्न सम्प्रदायों के लोग उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हों।
• उन्होंने हिन्दू तथा मुसलमानों के धार्मिक आडम्बरों का
खण्डन किया।
• कबीर जातीय भेदभाव के विरुद्ध थे।
संत
कबीरदास के दोहे
गुरु
गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी
गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।
अर्थ:
इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जनमानस को कहना चाहते हैं कि अगर आपके सामने गुरु और
भगवान दोनों खड़े हैं तो सबसे पहले आप किनका चरण स्पर्श करेंगे।
गुरु
ने ही अपने ज्ञान से भगवान से मिलने का रास्ता बताया है। इसलिए भगवान से ऊपर गुरु की
महिमा होती है। इसलिए हमें गुरु के ही चरण सबसे पहले स्पर्श करने चाहिए।
निंदक
नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें।
बिन
पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।।
अर्थ:
इस दोहा के माध्यम से कबीरदास कहते हैं कि निंदक हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
निंदक लोग जो दूसरों की बुराई करते हैं, उन्हें हमेशा अपने पास रखना चाहिए।
क्योंकि
ऐसे लोग बिना साबुन पानी के ही इंसान के स्वभाव को निर्मल बना देते हैं। क्योंकि वह
आपके गलतियों को बताते हैं, जिससे आपको अपनी गलतियों को सुधारने का मौका मिलता है।
ऐसी
वाणी बोलिए मन का आप खोये।
औरन
को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
अर्थ:
इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जनमानस को अपनी वाणी शीतल रखने की सलाह देते हैं। वे
कहते हैं कि ऐसी वाणी बोलिए कि सामने वाला व्यक्ति आपके वाणी को सुनकर प्रसन्न हो,
उसके मन को अच्छा लगे और ऐसी वाणी होनी चाहिए कि दूसरे के साथ खुद को भी आनंद मिले।
बड़ा
भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी
को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।
अर्थ:
इस दोहे के माध्यम से कबीर दास खुद पर घमंड या अभिमान ना करने की सलाह देते हैं।
इसके
लिए वे खजूर के पेड़ का उदाहरण लेते हैं और कहते हैं कि जिस तरह खजूर का पेड़ होता
तो है तो बहुत बड़ा लेकिन वह ना ही किसी को छाया दे सकता है और उसका फल भी बहुत दूर
लगता है, जिसके कारण कोई उसके फल को भी नहीं खा सकता।
ठीक
इसी प्रकार व्यक्ति अगर किसी का भला नहीं कर पा रहा है तो उसका बड़ा होने का कोई फायदा
नहीं।
पानी
केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत
ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात।।
इस
दोहे के माध्यम से कबीर दास ने जनमानस को यह समझाने का प्रयत्न किया है कि इंसान की
इच्छाएं एक पानी के बुलबुले की तरह होती है, जो पल भर में बनती है और पल भर में समाप्त
हो जाती है।
लेकिन
एक सच्चे गुरु से मुलाकात हो जाने से यह सब मोह माया और सारी अंधकार हट जाती है ।
न्हाये
धोए क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन
सदा जल में रहे, धोए बास जाए।।
अर्थ:
कबीर दास इस दोहे के माध्यम से जनमानस को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि इंसान को अपने
मन के मेल धोने चाहिए।
इंसान
बाहर से साफ सुथरा हो या ना हो लेकिन अंदर से उसके मन साफ होने चाहिए तभी वह सच्चा
इंसान है।
जिस
तरह सदा जल में मछली के रहने पर भी उसके धोने से बांस नहीं जाता, ठीक उसी प्रकार शरीर
को धोने से मन के मैल साफ नहीं होते हैं।
52. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें ।
उत्तर - भारतीय संविधान 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया।
पारित होने के 2 माह बाद 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान संपूर्ण भारत में लागू
कर दिया गया। भारत का संविधान विश्व के संविधानों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता
है। भारतीय संविधान कठिन परिस्थितियों में भी निर्णायक भूमिका अदा करता है। भारतीय
संविधान में वाकई ऐसी विशेषताएं हैं जिसके कारण भारतीय संविधान को सर्वगुण संपन्न
की संज्ञा प्रदान की जाती है।
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित
है-
1. लिखित और विस्तृत संविधान- भारत का संविधान पूर्ण रूप से लिखित संविधान है। मौखिक
नियमों को प्रधानता नहीं दी गयी है। जो भी कानून बने हैं, सभी लिखित रूप में है।
मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग तथा 8 अनुसूचियां थी । वर्तमान में (2019)
इसमें 25 भाग और 12 अनुसूचियां हो गयी है। समय-समय पर भारतीय संविधान में संशोधन व
विस्तार होता रहता है। इस कारण भारतीय संविधान को एक विस्तृत दस्तावेज कहा जा सकता
है।
2. कठोरता एवं लचीलापन का सम्मिश्रण- भारतीय संविधान कठोर (अनम्य) और लचीला (नम्य) कहा जाता है।
कठोर संविधान वह होता है, जिसमें संशोधन की प्रक्रिया कठिन होती है। वहीं लचीला संविधान
वह होता है, जिसमें संशोधन की प्रक्रिया बहुत ही आसान होती है। भारतीय संविधान में
ऐसे भी प्रावधान है, जहां संशोधन की प्रक्रिया बड़ी जटिल है। बहुत प्रावधान ऐसे भी
हैं, जहां बहुत आसानी से संशोधन हो जाते हैं।
3. धर्मनिरपेक्षता- भारतीय संविधान की विशिष्ट विशेषता है, उसका धर्मनिरपेक्ष
होना । भारतीय संविधान द्वारा यहां के नागरिकों को यह स्वतंत्रता है कि वह किसी भी
धर्म को अपना सकते हैं। सभी धर्मों को समान आदर दिया जायेगा। धर्म के आधार पर किसी
के साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा ।
धर्मनिरपेक्षता को ही दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह मानवतावादी
प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का विशेष गुण है।
4. विभिन्न देशों के संविधानों से उपयोगी प्रावधान ग्रहण करना- भारतीय संविधान निर्माताओं ने विभिन्न देशों के संविधान का
अध्ययन करके उसमें से उपयोगी प्रावधानों को अपना लिया । जर्मनी के संविधान से आपातकालीन
शक्तियां, आयरलैंड के संविधान से नीति निर्देशक तत्व, ऑस्ट्रेलिया के संविधान से समवर्ती
सूची का प्रावधान, अमेरिका के संविधान से उपराष्ट्रपति का पद आदि प्रावधान भारतीय संविधान
ने ग्रहण किये । इस प्रकार अनेक देशों के संविधानों से प्रावधान लिये गये हैं ।
5. एकल नागरिकता- भारतीय संविधान द्वारा एकल नागरिकता की व्यवस्था की गयी है
। भारत का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी प्रदेश का निवासी हो, परंतु उसे भारत का
नागरिक ही माना जायेगा । एकल नागरिकता से भारत को एक सूत्र में बांधा गया है।
6. एकात्मकता एवं संघीय व्यवस्था- भारत का संविधान संघीय सरकार की व्यवस्था प्रदान करता है।
अनुच्छेद में भारत का उल्लेख 'राज्यों के संघ' के रूप में किया गया है। भारतीय संविधान
में एकल नागरिकता, एकीकृत न्यायपालिका, आपातकालीन प्रावधान आदि एकात्मकता की भावना
को प्रबल करते हैं।
7. एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका- भारतीय संविधान अपने नागरिकों को न्याय दिलाने हेतु स्वतंत्र
न्यायपालिका की स्थापना करता है। जिला न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक न्याय दिलाने
की व्यवस्था की गयी है। न्यायपालिका को कार्यपालिका एवं विधायिका से स्वतंत्र रखा गया
है। उच्च एवं उच्चतम न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की गारंटी देता है ।
8. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत- संविधान के अनुच्छेद 36 से 50 में राज्य के नीति निर्देशक
सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। नीति निर्देशक सिद्धांत का अर्थ 'एक कल्याणकारी
राज्य' की स्थापना करना है। नीति निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी रूप से लागू नहीं
किया जा सकता, परंतु कानून बनाते समय सिद्धांतों को अपनाने का अवश्य ध्यान रखना
चाहिए ।
9.
मौलिक अधिकारों एवं मौलिक कर्तव्यों का वर्णन- भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को कुछ अधिकार दिए हैं,
जिन्हें मौलिक अधिकार के नाम से जाना जाता है। मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है, जो
इस प्रकार हैं
(i) समानता का अधिकार [अनुच्छेद 14 – 18]
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार [अनुच्छेद 19-22]
(iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार [अनुच्छेद 23-24 ]
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार [अनुच्छेद 25-28]
(v) सांस्कृतिक व शिक्षा का अधिकार [अनुच्छेद 29-30]
(vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार [ अनुच्छेद 32 ]
जिस प्रकार नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों का प्रावधान है ।
उसी प्रकार भारतीय संविधान ने कर्तव्यों का भी उल्लेख किया है। मूल संविधान में कर्तव्यों
का उल्लेख नहीं है। इसे स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 1976 के 42 वें संविधान
संशोधन द्वारा शामिल किया गया। पहले मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 थी, परंतु वर्तमान
में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 है
10. वयस्क मताधिकार- भारत के सभी नागरिकों को जिसकी उम्र 18 वर्ष से ऊपर है , मतदान
करने का अधिकार प्राप्त है। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा। मताधिकार
राजनीतिक समानता को बनाए रखता है।
11. आपातकाल के प्रावधान- आपातकाल से निपटने के लिए भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को
वृहद अधिकार दिए गये हैं। आपातकाल के समय राज्य की समस्त शक्तियां केंद्रीयकृत हो जाती
हैं। भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार
हैं-
(i) राष्ट्रीय आपातकाल - युद्ध, आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह के
समय 1
(ii) राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) - राज्यों में संवैधानिक
तंत्र की असफलता होने पर ।
(iii) वित्तीय आपातकाल वित्तीय अस्थिरता के समय इस आपातकाल की
घोषणा की जाती है ।
12. शक्ति विभाजन की व्यवस्था- यह भारतीय संविधान का महत्वपूर्ण लक्षण है। भारतीय संविधान में राज्यों और केंद्र की शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है। दोनों संविधान द्वारा नियंत्रित होती है ।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग - I
1. ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता
2. राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ
3. बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज
4. विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास
भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग - II
5. यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ
6. भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ
7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
8. किसान, जमींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य
9. शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुगल दरबार