गैट तथा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) [GATT AND WORLD TRADE ORGANISATION (WTO)]

गैट तथा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) [GATT AND WORLD TRADE ORGANISATION (WTO)]

नोट - निर्गमन के सिद्धांत (Principles of Note Issue)

 गैट तथा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.)

[GATT AND WORLD TRADE ORGANISATION (WTO)]

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के उद्देश्यों एवं उसके प्रमुख कार्यों का विवेचन कीजिए।

विश्व व्यापार संगठन के संगठनात्मक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए गैट तथा WTO में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के उद्देश्य तथा उसके सम्भावित लाभों का विवेचन कीजिए।

विश्व व्यापार की स्थापना के उद्देश्य तथा उसके सम्भावित लाभों एवं खतरों का विवेचन कीजिए।

विश्व व्यापार संगठन और भारत पर एक संक्षिप्त लेख/टिप्पणी/निबन्ध लिखिये।

अथवा

विश्व व्यापार संगठन से भारत को सम्भावित लाभों एवं खतरों का विवेचन कीजिए।

विश्व व्यापार संगठन से भारत को प्राप्त होने वाले लाभों का वर्णन कीजिए और इसके पड़ने वाले दुष्प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका से जर्जरित अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण तथा तीव्र आर्थिक विकास के लिए जहाँ एक ओर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक (World Bank) तथा संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) जैसी महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की गयी वहाँ दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हेतु विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में मनमाने व्यापार प्रतिबन्धों को हटाने तथा प्रशुल्कीय प्रतिबन्धों को कम करने के लिए 1944 के ब्रेटनवुड्स सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संघ की स्थापना का भी प्रस्ताव आया किन्तु अमेरिका एवं इंग्लैण्ड जैसे विकसित राष्ट्रों के विरोध के कारण इस संगठन की स्थापना न हो सकी तो अन्ततः उसके स्थान पर 30 अक्टूबर, 1947 को गैट (GATT) की स्थापना की गयी। इस संस्था का लक्ष्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में आने वाली बाधाओं और समस्याओं को पारस्परिक समझौतों से कम करना था, किन्तु इस संस्था की ढीली-ढाली व्यवस्था और सीमित अधिकारों के कारण गैट की सफलता सीमित रही।

विश्व व्यापार की नीतियों, वैधानिक व्यवस्थाओं और उनके क्रियान्वयन को अधिक प्रभावी एवं कारगर बनाने की दृष्टि से ही गैट की स्थापना से लेकर अप्रैल 1994 तक गैट वार्ताओं के आठ चक्रों की समाप्ति पर अन्ततः 15 अप्रैल, 1994 को मोरक्को के शहर मराकेश में 117 देशों के मंत्रियों के सम्मेलन में उग्रुवे चक्र के डंकल प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया गया और गैट (General Agreement on Tariff and Trade: GATT) के स्थान पर विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation: WTO) अस्तित्व में आया जो गैट के मुकाबले कहीं अधिक अधिकारों से युक्त शक्तिशाली एवं प्रभावी संगठन है।

 विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता (MEMBERSHIP OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक वैधानिक एवं स्थायी विश्व व्यापक संस्था है। इसके कानूनी प्रावधानों को पालन करने को प्रतिबद्ध कोई भी देश इसका सदस्य बन सकता है। वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के इस दौर में विश्व व्यापार संगठन की लोकप्रियता तेजी से बढी है। भारत इसका संस्थापक सदस्य है।

1 जनवरी, 1995 को इसकी सदस्य संख्या केवल 77 थी जो अगस्त 1999 में बढ़कर 134 हो गयी। नवम्बर 2001 में चीन एवं ताइवान के शामिल होने के बाद सदस्य संख्या 144 हो गयी। सितम्बर 2003 को सदस्य संख्या 146 तक पहुँच गयी। 11 जनवरी, 2007 को वियतनाम (Vietnam) के शामिल होने के बाद सदस्य संख्या 150 पहुँच गयी है। वर्तमान में सदस्य संख्या 153 हो गयी है।

 विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य (OBJECTIVES OF WTO)

डंकल समझौते के अन्तर्गत ही गैट के स्थान पर 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया। इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

(i) जीवन-स्तर में वृद्धि करना;

(ii) पूर्ण रोजगार एवं प्रभावपूर्ण माँग में वृहत्रस्तरीय व ठोस वृद्धि करना;

(iii) वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना;

(iv) सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना;

(v) विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना;

(vi) सुस्थिर विकास (Sustainable Development) की अवधारणा को स्वीकार करना;

(vii) पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण करना तथा

(viii) विकास के वैयक्तिक स्तरों की आवश्यकता के साथ निरन्तर चलते रहने के साधनों में वृद्धि करना है।

उपर्युक्त उद्देश्यों में प्रथम तीन गैट के भी उद्देश्य थे और गैट के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के पूर्ण उपयोग की बात कही गई थी, जबकि विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग पर जोर, सुस्थिर विकास तथा पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उद्देश्यों को भी जोड़ा गया है, अतः उद्देश्य अधिक व्यापक एवं प्रभावी है। विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना में विकासशील देशों और विशेष रूप से कम विकसित देशों के लिए सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता बताई गई जो उनकी विकासात्मक आवश्यकताओं के अनुरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी हिस्सेदारी को बढ़ा सके।

 विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य 

(MAIN FUNCTIONS OF WORLD TRADE ORGANISATIONS OR WTO)

विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों को मूर्तरूप देने के लिए विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं-

1. सामूहिक संस्थागत मंच के रूप में कार्य करना- विश्व व्यापार संगठन का पहला महत्त्वपूर्ण कार्य अन्तर्राष्ट्रीय समझौते से सम्बन्धित विचार-विमर्श के लिए एक सामूहिक संस्थागत मंच के रूप में काम करना है।

2. विश्व व्यापार समझौते के कार्यान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधाएँ प्रदान करना -विश्व व्यापार संगठन का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य विश्व व्यापार समझौता, बहुपक्षीय (Multilateral) तथा बहुवचनीय (Plurilateral) समझौतों के क्रियान्वयन, प्रशासन तथा परिचालन हेतु सुविधाएँ प्रदान करना है।

3. व्यापार एवं प्रशुल्क सम्बन्धी विचार-विमर्श हेतु मंच प्रदान करना- विश्व व्यापार संगठन का तीसरा महत्त्वपूर्ण कार्य व्यापार तथा प्रशुल्क सम्बन्धी किसी भी मसले पर सदस्यों को विचार-विमर्श हेतु मंच प्रदान करना है।

4. सदस्य राष्ट्रों के विवादों के निपटारे का प्रशासन- विश्व बैंक का चौथा कार्य सदस्य राष्ट्रों के विवादों के निपटारे (Settlement of Disputes) से सम्बन्धित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना है।

5. व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया के प्रावधानों को लागू करना- विश्व व्यापार संगठन का पाँचवां प्रमुख कार्य व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया (Trade Policy Review Mechanism) से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना है।

6. विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहयोग- विश्व व्यापार संगठन वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामंजस्य भाव लाने हेतु विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पूरा-पूरा सहयोग करने को महत्त्वपूर्ण मानता है।

7. विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग को बढ़ावा देना- विश्व व्यापार संगठन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य विश्व के संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग को बढ़ावा देना है।

इस प्रकार विश्व व्यापार संगठन के कार्यों में उन सब बातों का समावेश है जिससे उसके सदस्य देशों को समझौते से सम्बन्धित मामलों पर विचार-विमर्श का एक सामूहिक संस्थागत मंच प्राप्त होने के साथ-साथ एक एकीकृत स्थायी एवं मजबूत बहुपक्षीय प्रणाली द्वारा व्यापार सम्बन्धों को बढ़ाने, वैधानिक ढंग से विवादों को निपटाने और व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया के प्रावधानों को लागू करने में सहायता मिलेगी।

 विश्व व्यापार संगठन तथा गैट में अन्तर (DIFFERENCE BETWEEN WTO AND GATT)

इन दोनों संस्थाओं की स्थापना, उद्देश्यों, वैधानिक स्थितियों, कार्यप्रणाली तथा सदस्यों की संख्या आदि कई मामलों में काफी अन्तर है। यह संक्षेप में निम्न प्रकार हैं-

1. स्थापना (Established)- गैट की स्थापना 30 अक्टूबर, 1947 को तब हुई जब 1944 के ब्रेटनवुड्स सम्मेलन के दौरान अमेरिका तथा इंग्लैण्ड जैसे विकसित देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन जैसी संस्था की स्थापना का विरोध किया।

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1 जनवरी, 1995 को तब सम्भव हुई जब 15 अप्रैल, 1994 को मोरक्को के शहर मराकेश में 117 देशों के मंत्रियों ने आठवें उरुग्वे चक्र के डंकल प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

2. उद्देश्य (Objectives)- विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य बहुत ही व्यापक और अधिक प्रभावी हैं। विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों में सेवाओं के व्यापार, विदेशी निवेश और पर्यावरण संरक्षण तथा सुरक्षा के साथ-साथ विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग की बात पर जोर है।

गैट के उद्देश्य सीमित एवं कम प्रभावी थे। गैट के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के पूर्ण उपयोग की बात थी। पर्यावरण संरक्षण सेवाओं के व्यापार का विस्तार आदि गैट के उद्देश्यों में शामिल नहीं थे।

3. कार्यक्षेत्र (Scope)- विश्व व्यापार संगठन का क्षेत्र काफी विस्तृत है। अतः विश्व व्यापार संगठन के क्षेत्र में बौद्धिक सम्पदा अधिकार, विदेशी पूँजी निवेश, पर्यावरण का संरक्षण एवं उसकी सुरक्षा तथा सेवाओं के व्यापार का विस्तार आदि का भी समावेश है।

गैट का कार्यक्षेत्र काफी कम तथा सीमित था। उसके कार्यक्षेत्र में केवल टैरिफ को कम करने, विदेशी व्यापार में आने वाले व्यवधानों को हटाने तक सीमित था। बौद्धिक सम्पदा अधिकार, सेवाओं के व्यापार, पर्यावरण का संरक्षण एवं उसकी सुरक्षा करना आदि उसके कार्यक्षेत्र से बाहर थे।

4. वैधानिक हैसियत एवं अधिकार (Legal Status and Rights)- विश्व व्यापार संगठन की वैधानिक हैसियत गैट के मुकाबले कहीं अधिक है। विश्व व्यापार संगठन को सदस्य राष्ट्रों की घरेलू आन्तरिक नीतियों एवं नियमों में परिवर्तन करने के लिए दबाव एवं बाध्यता का कानूनी अधिकार है।

गैट की वैधानिक हैसियत काफी कमजोर थी। गैट को सदस्य देशों की घरेलू नीतियों और आन्तरिक मामलों में परिवर्तन कराने का वैधानिक अधिकार नहीं था। इसकी नीतियाँ ढीली-ढाली एवं वैधानिक अधिकार सीमित थे।

5. समझौतों के उल्लंघन पर दण्डित करने का अधिकार (Right to Penalise on Violation of Agreements)- विश्व व्यापार संगठन के वैधानिक अधिकार व्यापक होने के कारण उसे किसी देश द्वारा समझौते के उल्लंघन का दोषी पाये जाने पर दण्डित करने का अधिकार है।

गैट को सदस्य राष्ट्रों द्वारा समझौते के उल्लंघन का दोषी पाये जाने पर भी दण्डित करने का अधिकार नहीं था।

6. नौकरशाही एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का वर्चस्व (Dominance of MNCS and Bureaucrates)- विश्व व्यापार संगठन के व्यापक वैधानिक अधिकारों के कारण इसकी नौकरशाही बहुत शक्तिशाली और केन्द्रीकृत रहेगी तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की लॉबी उन्हें अपने दबाव से अपने पक्ष के निर्णय कराने में हावी रहेगी।

गैट के अन्तर्गत नौकरशाही अपने सीमित अधिकारों के कारण शक्तिशाली नहीं बन पायी थी और न गैट पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का वर्चस्व ही जम पाया।

7. लाभ-हानि (Gains and Losses) विश्व व्यापार संगठन के कारण विकसित राष्ट्रों को विकासशील देशों के मुकाबले अधिक लाभ प्राप्त होंगे। विकसित राष्ट्रों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विश्व व्यापार में छाई रहेंगी तथा अपने आर्थिक लाभ के लिए विकासशील एवं निर्धन राष्ट्रों के हितों के विरुद्ध भी काम कर सकती हैं। अतः ऐसे राष्ट्रों को लाभ के मुकाबले संभावित हानि का खतरा ज्यादा है।

गैट के अन्तर्गत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का वर्चस्व नगण्य था। अतः गैट विकासशील राष्ट्रों के हितों की रक्षा करने तथा उन्हें यथासम्भव अधिकाधिक लाभ दिलाने में सहायक रहा।

8. विकसित देशों की मनमानी बढ़ेगी (Dominance of Developed Countries)- विश्व व्यापार संगठन में विकसित देशों की मनमानी बढ़ेगी, जबकि गैट के अधिकार सीमित होने से उनकी मनमानी चल नहीं सकी।

 विश्व व्यापार संगठन का संगठनात्मक ढाँचा (ORGANISATIONAL STRUCTURE OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन का संगठनात्मक ढाँचा चार-स्तरीय है जिसका विवरण संक्षेप में अग्र प्रकार है-

(A) मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन (Ministerial Conference) यह विश्व व्यापार संगठन में सर्वोच्च निर्णायक घटक है जिसमें सभी सदस्य देशों के मन्त्रियों का प्रतिनिधित्व होता है। इसकी बैठक प्रति दो वर्षों में कम-से-कम एक बार होना आवश्यक है। इस अभिसारीय सम्मेलन द्वारा अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित कई पृथक् पृथक् समितियाँ, जैसे- (i) व्यापार एवं विकास समिति, (ii) व्यापार एवं पर्यावरण समिति, (iii) भुगतान सन्तुलन प्रतिबन्ध समिति, (iv) वित्त एवं प्रशासन समिति आदि कई समितियाँ गठन करने का प्रवधान है। इन सब समितियों की सदस्यता सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए खुली रहेगी।

(B) सामान्य परिषद (General Council) संगठन के ढाँचे के दूसरे स्तर पर मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के ठीक नीचे सामान्य परिषद् है, इसमें सदस्य देशों का एक स्थायी प्रतिनिधि होता है। इस परिषद् का कार्य (i) मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन के निर्णयों को लागू करना, (ii) आवश्यकता पड़ने पर अपने स्तर पर निर्णय लेना, (iii) विवादों के निपटारे से सम्बन्धित घटक एवं व्यापार नीति पुर्नरीक्षा प्रक्रिया (Trade Policy Review Mechanism) से सम्बन्धित घटक की बैठकें आहूत करना, (iv) अन्तर सरकारी संगठन (Inter Govern-ment Organisation) तथा गैर-सरकारी संगठन जो किसी-न-किसी रूप में WTO से सम्बन्धित हों उनसे परामर्श करना एवं प्रभावपूर्ण सहयोग बनाये रखना है। इसकी बैठक सामान्यतः महीने में एक बार जेनेवा में होती है।

(C) प्रत्येक बहुपक्षीय समझौते की पृथक् पृथक् परिषदें (Various Multilateral Agree-ment Councils)- विश्व व्यापार संगठन के संगठनात्मक ढाँचे के तीसरे स्तर पर प्रत्येक बहुपक्षीय समझौतों, जैसे- (i) वस्तु, व्यापार व सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौता (GATS) परिषद् (ii) व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक अधिकार (TRIPS) परिषद् (iii) व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (TRIMS) परिषद् तथा (iv) टेक्सटाइल एवं वस्त्रों पर समझौता (ATC) आदि समझौतों के संचालन की देखभाल हेतु प्रत्येक की एक-एक परिषद् गठन का प्रावधान है।

(D) सचिवालय (Secretariate)- विश्व व्यापार संगठन का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण एवं पृथक् वैधानिक अस्तित्व होने के कारण इसके दिन-प्रतिदिन के प्रशासनिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए इसका एक सचिवालय (Secretariate) है जिसका सर्वोच्च पदाधिकारी महानिदेशक (Director General) होता है। महानिदेशक का चुनाव चार वर्ष की अवधि के लिए सामान्य परिषद् (General Council) द्वारा किया जाता है। प्रारम्भ में गैट के अन्तिम महानिदेशक पीटर सदरलैण्ड को विश्व व्यापार संगठन का कार्यकारी महानिदेशक बनाया गया था पर बाद में इटली के भूतपूर्व व्यापार मन्त्री रिनेटो रूगेरो को विश्व व्यापार संगठन (WTO) का प्रथम महानिदेशक (Director General) चुना गया।

महानिदेशक की सहायता के लिए विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से चार उप-महानिदेशक (Deputy Director General) भी चुने जाते हैं।

मुख्यालय (Head Office) गैट (GATT) की भाँति विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय भी जेनेवा में ही है।

सम्बद्ध समितियाँ (Related Committees)- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कार्य-संचालन हेतु अनेक महत्त्वपूर्ण समितियाँ भी हैं। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दो समितियाँ ये हैं

(i) विवाद निवारण समिति (Dispute Settlement Body: DSB)- इस समिति का कार्य विभिन्न राष्ट्रों के विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन के व्यापार नियमों के उल्लंघन की शिकायतों पर विचार करना है। विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य इस समिति के भी सदस्य होते हैं, किन्तु किसी शिकायत विशेष के गहन अध्ययन के लिए यह विशेषज्ञों की समिति गठित कर सकती है। इस समिति की बैठक माह में दो बार होती है।

(ii) व्यापार नीति समीक्षा समिति (Trade Policy Review Body: TPRB)- इस समिति का कार्य सदस्य राष्ट्रों की व्यापार नीति की समीक्षा करना है। विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य राष्ट्र इस समिति के सदस्य होते हैं। सभी बड़े व्यापारिक राष्ट्रों की व्यापार नीतियों की प्रायः दो वर्ष में एक बार समीक्षा की जाती है।

 विश्व व्यापार संगठन समझौता (WTO AGREEMENT)

गैट-1994 के आठवें उरुग्वे दौर (Uruguay Round) के बहुपक्षीय वार्ताओं के परिणामस्वरूप विश्व व्यापार संगठन (WTO) संधि में कई मूलभूत समझौते किये गये जिनमें प्रमुख समझौते संक्षेप में निम्न प्रकार हैं-

(1) वस्तुओं के व्यापार का बहुपक्षीय समझौता (MATG)

(2) कृषि समझौता (Agreement on Agriculture)

(3) सेवाओं के व्यापार का सामान्य समझौता-गेट्स (GATs)

(4) बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार सम्बन्धी समझौता ट्रिप्स (TRIPs)

(5) व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय-ट्रिम्स (TRIMs)

(6) कपड़ा एवं वस्त्रों का समझौता एटीसी (ATC)

(7) राशिपतन विरोधी समझौता (Anti-Dumping Agreement)

(8) झगड़ा निपटान प्रणाली (Dispute Settlement System)

(9) व्यापार नीति पुनरावलोकन तन्त्र (TPRM) (

इन प्रमुख समझौतों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-

1. वस्तुओं के व्यापार का बहुपक्षीय समझौता (Multilateral Agreement on Trade in Goods: MATG)- इस बहुपक्षीय समझौते में कई विषयों का समावेश है।

(i) गैट-1994 (GATT-1994)- इसके अन्तर्गत कस्टम संघों, मुक्त व्यापार क्षेत्रों तथा भुगतान सन्तुलन के प्रवधानों आदि की कार्यविधि एवं मापदण्डों का निर्धारण है।

(ii) कृषि समझौता (Agreement on Agriculture)- इसके अन्तर्गत कृषि उत्पादों को घरेलू समर्थन कीमत (Domestic Support Price) में कमी करने का प्रावधान है। व्यापार बाधाओं में कमी लाकर व भेदभाव समाप्त करके बाजार पहुँच में सुधार तथा निर्यात बाजार में प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहन देना शामिल है।

(iii) कपड़ा एवं वस्त्रों से सम्बन्धित समझौता (Agreement on Taxtiles and Clothing)-इसके अन्तर्गत कपड़ा एवं वस्त्रों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए 2003 तक बहु-तन्तु समझौते (Multi Fibre Agreement: MFA) की रुकावटों को दूर करने की व्यवस्था है।

(iv) व्यापार की तकनीकी बाधाओं सम्बन्धी समझौता (Agreement on Technical Barri-ers to Trade)- इस समझौते में WTO के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गयी है कि तकनीकी परामर्श, प्रमाणन प्रणाली, मानक परीक्षण आदि तकनीकी बाधाएँ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बाधाएँ उत्पन्न न करें।

(v) व्यापार सम्बन्धी विनियोग उपाय समझौता ट्रिम्स (Exchange Means of Agreement Related to Trade)- इस समझौते के अन्तर्गत सभी WTO सदस्यों को विदेशी निवेश के साथ घरेलू निवेश के समान ही बर्ताव करना और उन पर प्रतिबन्धों को समाप्त करने की व्यवस्था है।

(vi) टैरिफ बन्धनों की समाप्ति और क्षतिपूर्ण की प्रणाली की भी व्यवस्था की गयी है।

2. कृषि समझौता (Agreement on Agriculture)- यह समझौता कृषि उत्पादों के सम्बन्ध में घरेलू समर्थन मूल्य, निर्यात सब्सिडी, न्यूनतम मार्केट प्रवेश वचनबद्धता, घरेलू सहायता तथा खाद्य सुरक्षा और पशु एवं वनस्पति, स्वास्थ्य आदि उपायों का समावेश करता है। इस समझौते में कृषि उत्पादों में राष्ट्रीय बाजार को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा के लिए खोलना, सरकारी सहायता को क्रमबद्ध ढंग से कम करना तथा सब्सिडी प्राप्त निर्यातों की मात्रा को घटाने का प्रयास करना है।

(i) घरेलू सब्सिडीज (Domestic Subsidies)- इसके अन्तर्गत पहली गैर-वस्तु विशेष सब्सिडीज जो सभी फसलों पर उर्वरक, बिजली, पानी, बीज, ऋण आदि के रूप में दी जाती है तथा दूसरी विशेष उत्पाद सब्सिडीज जो केवल विशेष फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) के रूप में दी जाती है। ये कुल मिलाकर विकासशील देशों के लिए कुल कृषि उत्पादन के 10% तक सीमित करने तथा अन्य के लिए 5% तक सीमित करने की व्यवस्था करता है।

(ii) निर्यात सब्सिडीज (Export Subsidies)- इस समझौते में WTO के सदस्य देशों पर यह दायित्व डाला गया है कि विकासशील देश 10 वर्षों में तथा विकसित देश 6 वर्षों में सब्सिडी प्राप्त निर्यातों की मात्रा को आधार अवधि के 36% तक निर्यात अवधि के 21% तक नीचे ले आवें। न्यूनतम विकसित देशों के लिए कोई कमी न करने का प्रावधान किया गया है।

(iii) घरेलू सहायता (Domestic Support)- इसके अन्तर्गत वे सरकारी नीतियाँ जो व्यापार पर न्यूनतम प्रभाव डालती हैं। जैसे अनुसंधान, खाद्य सुरक्षा, बुनियादी ढाँचा निर्माण, फसल रोग नियन्त्रण, पर्यावरणीय सुरक्षा कार्यक्रमों पर घरेलू सहायता की छूट सरकारों को दी गयी है किन्तु व्यापार को प्रभावित करने वाली घरेलू सहायता को चरणबद्ध ढंग से कटौती का प्रावधान है।

(iv) न्यूनतम मार्केट प्रवेश वचनबद्धता (Minimum Market Access Commitment)- यह व्यवस्था उन सदस्य देशों पर लागू होगी जो कृषि सम्बन्धी उत्पादों के आयात में कई प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। वे इन रुकावटों को टैरिफ का रूप देने तथा इन टैरिफों का छः वर्षों में 36% कम करने को बाध्य हैं और उनके लिए विदेशी कृषि उत्पादों की खपत की न्यूनतम 3% मार्केट प्रवेश सुविधा आवश्यक होगी। 6 वर्ष के बाद इसे 5% करने का प्रावधान है।

(v) स्वास्थ्य एवं पशु-स्वास्थ्य के उपाय (Sanitary and Phytosanitary Measures)- इस समझौते के अन्तर्गत विभिन्न सदस्य देशों की सरकारों को मनुष्य, पशु एवं वनस्पति के जीवन एवं स्वास्थ्य की रक्षा की उचित व्यवस्था का पूर्ण अधिकार दिया गया है, किन्तु उन्हें इनको मनमाने ढंग से लागू करने, व्यापार में बाधा उत्पन्न करने अथवा भेदभाव करने का अधिकार नहीं होगा।

(vi) खाद्य भण्डारण एवं खाद्य सहायता (Food Stocking and Food Aid)- समझौते के अन्तर्गत विकासशील सदस्य देशों की सरकारों को अन्तरिम काल में खाद्यान्न आयात में ऋणात्मक प्रभावों की स्थिति में कृषि, विकास के लिए खाद्य सहायता, खाद्यान्नों के भण्डारण पर अनुदान एवं अल्पकालीन वित्तीय सहायता का अधिकार देता है।

3. सेवाओं के व्यापार का सामान्य समझौता - गैट्स (General Agreement on Trade in Services: GATs)- इस समझौते के अन्तर्गत सेवाओं के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबन्धों को समाप्त करने की व्यवस्था है। इस समझौते में केवल उन्हीं सेवाओं को शामिल किया गया है, जिनमें उच्च तकनीक आवश्यक है। जैसे-बीमा, बैंकिंग, दूर-संचार, परिवहन, जहाजरानी आदि-आदि। यह समझौता विकसित देशों को सर्वाधिक लाभ प्रदान करेगा क्योंकि वे सेवाओं के व्यापार में सर्वाधिक सक्षम हैं, जबकि विकासशील देशों को इन सेवाओं के व्यापार से विदेशी पूँजी, उच्च तकनीक और रोजगार के अवसर मिलेंगे।

इस समझौते के अनुसार विदेशी सेवा प्रदाता एवं विदेशी सेवाएँ घरेलू सेवाओं के समकक्ष मानी जायेंगी और कोई भेदभाव नहीं होगा। पारदर्शिता रहेगी। भुगतान शेष की कठिनाइयों के अतिरिक्त सेवाओं के अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान एवं हस्तान्तरण में कोई बाधा उत्पन्न नहीं किये जाने का प्रावधान है।

4. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार सम्बन्धी समझौता ट्रिप्स (Agreement on Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights: TRIPs) इस समझौते के अन्तर्गत निम्नलिखित सात प्रकार की बौद्धिक सम्पदा का समावेश है-

(i) कॉपीराइट तथा तत्सम्बन्धी अधिकार (Copyright and Ralated Rights) इसके अन्तर्गत WTO के सदस्य देशों पर यह दायित्व है कि वे कलात्मक एवं साहित्यिक रचनाओं के संरक्षण हेतु बने बर्न समझौते (Berne Agreement) करें। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर प्रोग्राम फोनोग्राम ध्वनि रिकॉर्डिंग और प्रसारण संस्थाओं की रचनाओं के साथ-साथ फिल्मों आदि अधिकारों का समावेश है। यह संरक्षण ध्वनि रिकॉर्डिंग निर्माताओं के लिए 50 वर्ष, प्रसारण संस्थाओं के लिए कम-से-कम 20 वर्ष रखा गया है।

(ii) ट्रेडमार्क (Trademarks)- ट्रेडमार्क के अन्तर्गत वह चिन्ह या चिन्हों का समूह आता है जो किसी संस्था के उत्पादों अथवा सेवाओं में दूसरों से भिन्नता दर्शाता है। किसी भी रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क स्वामी को अपने उत्पादों या सेवाओं के चिन्हों के दुरुपयोग रोकने का एकमात्र अधिकार होगा। ऐसे ट्रेडमार्क के रजिस्ट्रेशन एवं नवीनीकरण की अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी और इसका रजिस्ट्रेशन अनिश्चित काल के लिए बढ़ाया जा सकता है।

(iii) पेटेन्ट्स (Patents)- प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में किसी भी आविष्कार का पेटेन्ट कराया जा सकता है। पेटेन्टधारियों को उस वस्तु या प्रक्रिया को औद्योगिक क्षेत्र में लागू करने के अधिकार देने, उत्तराधिकार द्वारा हस्तान्तरण अथवा लाइसेन्सिस समझौता करने का अधिकार होगा। यह पेटेन्ट संरक्षण 20 वर्ष के लिए आवश्यक होगा।

(iv) औद्योगिक डिजाइन (Industrial Design)- इसके अन्तर्गत सुरक्षित औद्योगिक डिजाइनों के स्वामियों को 10 वर्ष की अवधि के लिए ऐसी वस्तुओं के उत्पादन, बिक्री तथा आयात को रोकने का अधिकार होगा जो ऐसी डिजाइनों पर आधारित हो अथवा संरक्षित डिजाइनों की नकल हो।

(v) भौगोलिक संकेत (Geographical Indications)- इस समझौते के अन्तर्गत WTO के सदस्य देशों का दायित्व है कि वे किसी सदस्य देश के क्षेत्र में उत्पादित वस्तु की पहचान, उस क्षेत्र, प्रदेश या स्थान जिसमें भौगोलिक क्षेत्र की ख्याति है उनके भौगोलिक संकेत में रुचि रखने वालों को ऐसी कानूनी सुरक्षा उपलब्ध करावें जिससे ग्राहकों को पदार्थों की उत्पत्ति स्थल के बारे में गलतफहमी हो अथवा अनुचित प्रतिस्पर्द्धा पनपे। शराब और स्प्रिट की भौगोलिक पहचान का विशेष संरक्षण आवश्यक माना गया है।

(vi) संघटित सर्किट (Integrated Circuits)- समझौते के अन्तर्गत संघटित सर्किटों का खाका डिजाइनों का सदस्य देशों द्वारा 10 वर्ष तक संरक्षण का प्रावधान है किन्तु खाका डिजाइन बनाने के 15 वर्ष के पश्चात् संरक्षण समाप्त माना जायेगा।

(vii) व्यापारिक रहस्य (Trade Secrets)- इसके अन्तर्गत व्यापारिक मूल्य वाले व्यापारिक रहस्यों एवं जानकारियों का विश्वासघातपूर्ण उपयोग तथा अन्य कुकार्यों से संरक्षण प्रदान करने का दायित्व WTO के सदस्यों पर डाला गया है। इसमें औषधियों एवं कृषि रसायनों को व्यापारिक स्वीकृति हेतु परीक्षण के लिए भेजे जाने तथा फलों के अनैतिक प्रयोग करने से संरक्षित रखा जाने का प्रावधान है। यह समझौता बौद्धिक सम्पदा के अधिकारों के संरक्षण हेतु WTO के संगठनात्मक ढाँचे में अलग कौन्सिल की भी व्यवस्था करता है। इस समझौते में आवश्यक कानूनी प्रावधान करने हेतु विकसित देशों को एक वर्ष तथा विकासशील देशों को 10 वर्ष तथा न्यूनतम विकसित देशों के लिए 11 वर्ष का संक्रमण काल दिया गया था। यह समझौता विकसित राष्ट्रों को सर्वाधिक लाभ पहुँचायेगा, क्योंकि वे इसमें अग्रणी एवं सक्षम हैं।

5. व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय-ट्रिम्स (Agreement on Trade Related Investment Measures: TRIMs)- इस समझौते के अन्तर्गत WTO के प्रत्येक सदस्य राष्ट्र पर यह दायित्व है कि वह अपने देश में विदेशी निवेश पर सभी प्रतिबन्धों को समाप्त करे और विदेशी निवेश को घरेलू निवेशकों के समकक्ष सुविधाएँ प्रदान करे। विदेशी निवेशक पर निर्यात सम्बर्द्धन, स्थानीय कच्चे माल के उपयोग अथवा अन्य किसी प्रकार की शर्तें न थौपने का समावेश है।

 विदेशी सहकार्यता एवं संयुक्त साहस 

(FOREIGN COLLABORATION AND JOINT VENTURES)

ट्रिम्स समझौते के कारण आज विश्व के व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य देशों के बीच विदेशी सहकार्यता तथा संयुक्त साहस उपक्रमों (Joint Venture Enterprises) को प्रोत्साहन मिला है। आज कई विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ WTO के विकासशील सदस्य देशों में तथा विकासशील देशों की प्रमुख कम्पनियाँ सदस्य देशों में अपने विदेशी सहकार्यता एवं संयुक्त साहस उपक्रमों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशी निवेशों को मूलभूत क्षेत्रों और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में भागीदारी का अवसर मिला है और बढ़ते वैश्वीकरण से आर्थिक विकास में तेजी आई है।

6. कपड़ा एवं वस्त्रों सम्बन्धी समझौता (Agreement on Textile and Clothing)- यह समझौता कपड़ा एवं वस्त्र क्षेत्र को गैट-1994 में एकीकृत करने के लिये किया गया है जिससे विकासशील देशों को बहु-तन्तु समझौते (Multi-Fibre Agreement: MFA) की रुकावटें दूर करने तथा उसे 2003 तक समाप्त करने का प्रावधान है। यह समझौता विकासशील देशों को विकसित देशों में अपने उत्पादित कपड़ा एवं वस्त्रों के निर्यात को प्रोत्साहित करने वाला है। इससे भारत, चीन, पाकिस्तान आदि देशों को अधिक लाभ रहेगा।

7. राशिपातन विरोधी समझौता (Anti-Dumping Agreement)- इस समझौते के अन्तर्गत प्रावधान किया गया है कि यदि राशिपातन आयात, आयातकर्ता देश के घरेलू उद्योगों को हानि पहुँचाते हैं तो आयातकर्ता सदस्य देश को राशिपातन विरोधी उपाय अपनाने का अधिकार है। यह समझौता राशिपातन से घरेलू उद्योगों को होने वाली क्षति का मूल्यांकन, छानबीन करने तथा राशि पातन के झगड़े को निपटाने आदि की व्यवस्था करता है।

1995 से 2006 तक डम्पिंग-विरोधी उपायों के शीर्षस्थ दस प्रयोक्ताओं के 2938 मामले दर्ज हुए है। नये नियमों में प्रावधान है कि यदि डम्पिंग की सीमा निर्यात कीमत के 2% से कम है या किसी विशेष देश में डम्प किये गये आयात की मात्रा उस उत्पाद के कुल आयात से 3% कम है तो राशिपातन विरोधी छानबीन बन्द कर दी जायेगी बशर्ते कि यह ऐसे डम्प किये गये आयात की 7% की सीमा के अन्तर्गत हो।

8. झगड़ा निपटान प्रणाली (Dispute Settlement System)- इससे सम्बन्धित समझौते में WTO के सदस्य देशों के अधिकारों एवं कर्तव्यों के निर्धारण के विचार-विमर्श एवं झगड़े के निपटान हेतु नियमों एवं प्रणालियों का प्रावधान है। इसके लिए WTO के अन्तर्गत एक झगड़ा निपटान संस्था (Dispute Settle-ment Body: DSB) स्थापित की गयी है जो आपसी विचार-विमर्श से और उसमें सफल न होने पर WTO के डाइरेक्टर जनरल की मध्यस्थता और समाधान करने को अधिकृत है। शिकायती सदस्य दिन के भीतर विशेषज्ञों की नाम सूची की प्रार्थना कर सकता है और यह भी प्रावधान है कि झगड़ा निपटान संस्था सात सदस्यों को मनोनीत अपील समिति पुनरावलोकन कर 60 से 90 दिन के भीतर अपना प्रतिवेदन DSB को देगी और DSB उसे 30 दिन के भीतर अनुमोदित करेगी जो बिना शर्त सम्बन्धित सदस्यों को मान्य होगी।

9. व्यापार नीति पुनरावलोकन तन्त्र (Trade Policy Review Mechanism: TPRM)- यह समझौता बहुपक्षीय व्यापार समझौते के अन्तर्गत व्यापार नीतियों एवं प्रक्रियाओं का पुनरावलोकन करता है। इसके लिए WTO के अन्तर्गत एक व्यापार नीति पुनरावलोकन संस्था (Trade Policy Review Body: TPRB) है। व्यापार नीतियों की पूर्ण पारदर्शिता हेतु प्रत्येक WTO सदस्य अपनी व्यापार नीतियों एवं प्रक्रियाओं की रिपोर्ट इस संस्था को भेजता है।

 विश्व व्यापार संगठन (WTO) का पहला मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 

(FIRST MINISTERAL CONFERENCE OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) की नीति निर्धारण करने वाला सर्वोच्च शक्तिशाली मंच मंत्रिस्तरीय सम्मेलन है। इसका पहला सम्मेलन सिंगापुर में 9-13 दिसम्बर, 1996 को सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में विचारणीय प्रमुख मुद्दों में श्रम मानकों, निवेश, प्रतिस्पर्द्धा टेक्सटाइल्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने का समावेश था।

विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य शीत युद्ध से ग्रसित इस सम्मेलन में जहाँ भारत सहित विकासशील राष्ट्रों ने इस श्रम मानकों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने का भारी विरोध किया और कहा कि श्रम मानक विश्व व्यापार संगठन (WTO) की विषय-वस्तु नहीं वरन् अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की विषय-वस्तु है। भारत ने निवेश सम्बन्धी मामलों को भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने का विरोध किया।

प्रथम मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की उपलब्धियाँ (Achievements) पाँच दिवसीय इस सम्मेलन में विकसित एवं विकासशील देशों ने अपने-अपने हितों की सुरक्षा के प्रयास किये जिससे दोनों ने कुछ-कुछ उपलब्धियाँ अर्जित की हैं।

1. श्रम-मानकों को अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का विषय स्वीकार किया। भारत सहित कई विकासशील राष्ट्रों द्वारा विरोध के कारण श्रम-मानकों का घोषणा-पत्र में उल्लेख होने पर भी श्रम-मानकों को अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का विषय स्वीकार किया गया और स्पष्ट कहा गया कि विकसित राष्ट्र श्रम-मानकों का प्रयोग व्यापार को प्रतिबन्धित करने में नहीं करेंगे।

2. विकसित राष्ट्र निवेश एवं प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने में सफल रहे-घोषणा-पत्र में निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सम्बन्ध में विवादों को ट्रिप्स (TRIPs) के अन्तर्गत हल करने की बात कही गयी।

3. कम्प्यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को वर्ष 2000 तक शुल्क मुक्त करने का समझौता रहा-किन्तु भारत ने समझौते को सिद्धान्त रूप में स्वीकृति देने के बावजूद इसके लागू होने की तारीख आगे बढ़ाने की अपील की और फिलहाल समझौते में शामिल होने से इन्कार कर दिया।

 विश्व व्यापार संगठन का दूसरा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 

(SECOND MINISTERIAL CONFERENCE OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन का दूसरा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन जेनेवा में 18-20 मई, 1998 को सम्पन्न हुआ। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 132 सदस्य राष्ट्रों के वाणिज्य मंत्रियों ने भाग लिया। भारत के प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व तत्कालीन वाणिज्य मंत्री श्री रामकृष्ण हेगड़े ने किया।

इस सम्मेलन में विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कामकाज की समीक्षा की गई। भारत के श्री रामकृष्ण हेगड़े ने उ‌द्घाटन सत्र में आरोप लगाया कि संरक्षणवादी उपायों के कारण विकासशील राष्ट्रों में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार तक पहुँचने में कई रुकावटें आती हैं। इसके अतिरिक्त उरुग्वे चक्र की वार्ताओं पर अमल के मामले में स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव में निर्धन राष्ट्रों को यथोचित लाभ नहीं मिल पाता तथा क्षेत्रीय व्यापारिक गुटों के फैलाव से भी तीसरी दुनिया के देशों के साथ भेदभाव हो रहा है।

इस सम्मेलन में भी कई विवादित मुद्दों पर आम सहमति के अभाव में आंशिक सफलता ही रही है।

 विश्व व्यापार संगठन का तीसरा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 

(THIRD MINISTERIAL CONFERENCE OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) का तीसरा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 30 नवम्बर से 3 दिसम्बर, 1999 को अमेरिका के सिएटल में बड़े ही विरोधी एवं हंगामा वातावरण में बिना किसी आम सहमति के और घोषणा-पत्र के स्थगित करना पड़ा। इस सम्मेलन में 135 सदस्य राष्ट्रों के व्यापार मंत्रियों ने भाग लिया जिसमें भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व भारत के तत्कालीन केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री मुरासोली मारन ने किया। वे विकासशील राष्ट्रों की ओर से विकसित राष्ट्रों की लॉबी के समक्ष अपने पक्ष को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने में सफल रहे।

यह सम्मेलन शुरू से अन्त तक विवादों के घेरे में ही नहीं रहा वरन् हजारों प्रदर्शनकारियों के व्यापक प्रदर्शनों के कारण इस सम्मेलन का उद्घाटन ही विधिवत् सम्पन्न न हो सका। प्रदर्शनकारियों ने विश्व व्यापार संगठन पर मानवाधिकारों से लेकर पर्यावरण संरक्षण तक के अनेक मुद्दों पर नागरिक संस्थाओं की अनदेखी करने का आरोप लगाया। व्यापक प्रदर्शनों के कारण उद्घाटन सत्र को रद्द कर 5 घण्टे विलम्ब से विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक माइक मूरे ने सीधे ही सम्मेलन की कार्यवाही शुरू की।

विकसित राष्ट्रों द्वारा श्रम-मानकों जैसे गैर-व्यापारिक मुद्दों को सम्मेलन की कार्यसूची में शामिल करने के प्रयासों का भारत सहित कई विकासशील राष्ट्रों ने कड़ा विरोध किया परिणामस्वरूप श्रम-मानकों, बाजार पहुँच (Market Access), कृषि सेवाओं के व्यापार सम्बन्धी समझौते आदि विवादित मुद्दों पर सदस्य राष्ट्र किसी आम सहमति पर नहीं पहुँच पाये। जहाँ एक और अमेरिका एवं विकसित राष्ट्र श्रम-मानकों के मुद्दे को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने के अतिरिक्त कृषि के मामले में विकासशील राष्ट्रों से अधिक रियायतें पाने के लिए प्रयासरत रहे वहाँ बायोटेक्नोलॉजी को वार्ता में शामिल करने के अमेरिकी प्रयास का फ्रांस ने भी विरोध किया।

इस चार दिवसीय सम्मेलन में अधिकांश मुद्दों पर कोई आम सहमति नहीं बनने के कारण सम्मेलन की समाप्ति पर कोई घोषणा-पत्र जारी नहीं किया जा सका और सम्मेलन की कार्यवाही को स्थगित करने की घोषणा कर दी गयी। सम्मेलन की अध्यक्षा चार्लिन ब्रार्रोफ्स्की द्वारा सम्मेलन के समापन सत्र में घोषणा की गयी कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) के महानिदेशक माइक मूरे सदस्य राष्ट्रों के साथ-विमर्श कर सम्मेलन के कार्य को पुनः प्रारम्भ करने के प्रयास किये गये।

स्पष्ट है कि भारी प्रदर्शनों एवं व्यापक विरोध के कारण यह तीसरा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन अनेक विवादित आम सहमति के अभाव में बिना घोषणा-पत्र के ही स्थगित कर दिया गया। मुद्दों पर

 विश्व व्यापार संगठन का चौथा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 

(FOURTH MINISTERIAL CONFERENCE OF W.T.O.)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) का चौथा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन गत 9 नवम्बर से 14 नवम्बर, 2001 को कतर की राजधानी दोहा में आयोजित किया गया जिसमें 142 सदस्य राष्ट्रों के वाणिज्य मंत्रियों ने भाग लिया जिसमें भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व भारत के तत्कालीन केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री मुरासोली मारन ने किया।

तीसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (अमेरिका के सियेटल में 1999) में बड़े ही विरोधी एवं हंगामा वातावरण में कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय न ले पाने की असफलता के परिप्रेक्ष्य में तथा विश्व व्यापार संगठन के लिए विस्तृत कार्य-सूची का पृष्ठांकन माँगने के लिए कतिपय विकसित देशों के संयुक्त प्रयासों के सन्दर्भ में इस सम्मेलन का बहुत महत्त्व माना गया और व्यापक प्रचार भी हुआ। जहाँ एक ओर विकसित राष्ट्रों की तरफ से इस सम्मेलन में वार्ताओं का एक समग्र दौर प्रारम्भ करने के कड़े दबाव थे जिनमें निवेश पर बहुपक्षीय शासन, प्रतियोगी नीति, व्यापार सुविधा और पर्यावरण के मुद्दे शामिल थे वहाँ भारत व्यापार-भिन्न मुद्दों के साथ-साथ बहुपक्षीय व्यापार-तन्त्र के किसी अतिरिक्त बोझ तथा कार्यसूची में नये मुद्दों के खिलाफ था। भारत ने महसूस किया कि विश्व व्यापार संगठन के पास पर्याप्त वृहत् कार्यसूची थी जिनमें अनिवार्य वार्ताएँ और अनिवार्य समीक्षाएँ थीं। अतः भारत ने वार्ताओं हेतु नये मुद्दों पर सम्बोधित करने से पूर्व एक समयबद्ध तरीके से मौजूदा करारों से उत्पन्न क्रियान्वयन सम्बन्धी मुद्दों के हल की आवश्यकता पर जोर दिया। यही कारण था कि विश्व व्यापार संगठन का यह चौथा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन जो मूलतः पाँच दिन (9-13 नवम्बर, 2001) के लिए प्रस्तावित था, किन्तु विभिन्न मुद्दों पर सदस्य राष्ट्रों की सहमति के लिए एक दिन आगे बढ़ाना पड़ा और यह सम्मेलन 6 दिन तक चला और 14 नवम्बर, 2001 को इसका समापन सम्भव हुआ।

142 सदस्य राष्ट्रों के वाणिज्य मंत्रियों के इस सम्मेलन में कृषि, सेवाओं, औद्योगिक उत्पादों के व्यापार के विस्तार तथा पर्यावरण सम्बन्धी नये मुद्दों पर वार्ता का दौर प्रारम्भ करने की सहमति अन्ततः छठे दिन ही बन पाई। इसमें दोहा डेवलपमेण्ट एजेण्डा (Doha Development Agenda) को स्वीकार किया जाना विकासशील राष्ट्रों के बजाय अमेरिका एवं यूरोपीय संघ जैसे विकसित राष्ट्रों के लिए ही अधिक लाभप्रद माना गया।

भारत ने दोहा के चौथे मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में विचार-विमर्शों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत की मुख्य आपत्ति चार सिंगापुर मुद्दों को लेकर थी जिसमें (i) विदेशी निवेश (Foreign Investment), (ii) प्रतिस्पर्द्धा नीति (Competition Policy) के सम्बन्ध में नये वैश्विक नियमों के निर्धारण, (iii) सरकारी परियोजनाओं के लिए सामान की खरीद में विदेशी कम्पनियों को अवसर प्रदान करने तथा (iv) व्यापारिक नियमों को सरल बनाने (Trade Faciliations) आदि मुद्दे शामिल थे। भारत विश्व व्यापार संगठन के प्रस्तावों के क्रियान्वयन से सम्बन्धित चिन्ताओं का वास्तविक समाधान, कृषि में बढ़ती बाजार पहुँच, जनस्वास्थ्य नीतियों के लिए ट्रिप्स (Trips) के अन्तर्गत पर्याप्त नम्यता तथा स्पष्टता के साथ-साथ वह कार्यसूची में गैर-व्यापारिक मुद्दों जैसे श्रम के प्रारम्भ का कड़ा विरोधी रहा। वह एक ऐसी कार्यसूची को अपनाने के सुनिश्चय का हामी रहा जो न केवल व्यापार बल्कि विकासशील देशों के विकासात्मक लक्ष्यों तथा प्राथमिकताओं पर भी जोर देता था। सम्मेलन के घोषणा-पत्र में भारत द्वारा व्यक्त की गई कई चिन्ताओं का समावेश किया गया है।

 दोहा घोषणा-पत्र (Doha-Declaration) का हिन्दी रूपान्तरण इस प्रकार है-

दोहा सम्मेलन में स्वीकार किये गये घोषणा-पत्र में नये दौर की व्यापार वार्ता का एजेण्डा पहले से तय मुद्दों के कार्यान्वयन कार्यक्रम तथा पेटेन्ट्स तथा जनस्वास्थ्य सम्बन्धी घोषणाओं के साथ-साथ पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दा नये एजेण्डे में शामिल है। विदेशी निवेश, प्रतिस्पर्द्धा नीति, सरकारी खरीद का मामला तथा व्यापार नियमों के सरलीकरण के विवादित सिंगापुर मुद्दों पर वार्ता सदस्य देशों की सहमति के बाद ही सम्भव होगी।

जनस्वास्थ्य के लिए औषधियों के उत्पादन के मामले में ट्रिप्स (Trips) व पेटेन्ट सम्बन्धी नियम बाधक नहीं हो सकेंगे।

यूरोपीय देशों द्वारा कृषि को सब्सिडी में कटौती पर सहमति व्यक्त की गयी है।

दोहा घोषणा-पत्र को भारत ने अपनी मंजूरी तभी प्रदान की जब सम्मेलन के अध्यक्ष शेख युसूफ हुसैन कमाल (कतर के वाणिज्य, वित्त एवं आर्थिक मामलों के मंत्री) ने यह स्पष्ट घोषणा की कि सिंगापुर विवादित मुद्दों पर बातचीत सदस्य राष्ट्रों की सहमति हो जाने पर ही पाँचवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के बाद शुरू होगी।

'दोहा डेवलपमेण्ट एजेण्डे' पर नये दौर की वार्ता जनवरी 2002 से प्रारम्भ होगी तथा इसे 2005 तक पूरा करने का लक्ष्य घोषणा-पत्र में निर्धारित किया गया है तथापि आम धारणा है कि यह 2007 से पहले पूरी नहीं हो सकेगी।

विकासशील देशों में हितों की सुरक्षा के लिए भारत के वाणिज्य मंत्री मुरासोली मारन द्वारा सम्मेलन में निभाई गयी भूमिका की व्यापक प्रशंसा सभी के द्वारा की गयी है। भारत के नेतृत्व में विकासशील देशों को सबसे बड़ी सफलता जनस्वास्थ्य सम्बन्धी औषधियों के उत्पादन एवं अधिग्रहण के मामले में मिली है। टी.बी., मलेरिया, एच.आई.वी./एड्स आदि रोगों से जनसामान्य की सुरक्षा के लिए औषधियों के उत्पादन के मामले में विश्व व्यापार संगठन के ट्रिप्स (Trips) एवं पेटेन्ट सम्बन्धी नियम अब आड़े नहीं आ सकेंगे। दोहा घोषणा-पत्र में जनस्वास्थ्य सम्बन्धी इस प्रावधान के शामिल हो जाने से कोई देश जनस्वास्थ्य के लिए पेटेन्टशुदा दवाओं का सस्ता उत्पादन करने के लिए किसी भी कम्पनी को लाइसेन्स दे सकेगा।

दूसरी महत्त्वपूर्ण सफलता कृषि के क्षेत्र में 'डोमेस्टिक सपोर्ट' तथा निर्यात सब्सिडी में कटौती का प्रस्ताव दोहा घोषणा-पत्र में शामिल हो जाने से विकासशील राष्ट्रों के किसान लाभान्वित हो सकेंगे जिसमें भारत को लाभमिलेगा।

सम्मेलन से वापसी पर भारत के वाणिज्य मंत्री मुरासोली मारन ने सम्मेलन के निर्णयों पर सन्तोष व्यक्त करते हुए स्वीकार किया कि कृषि क्षेत्र के लाभों और छोटे तथा सीमान्त कृषकों के हितों की रक्षा के लिए पर्यावरण के मुद्दे पर भारत को कुछ झुकना पड़ा किन्तु कुल मिलाकर घोषणा-पत्र भारत के लिए सकारात्मक रहा। पहली बार भारत ने व्यापार वार्ताओं से कुछ हासिल किया। श्रम सम्बन्धी मुद्दों पर दोहा घोषणा-पत्र में कहा गया कि "घोषणा मान्यता देती है कि महत्त्वपूर्ण श्रम मापदण्डों के मुद्दों को सम्बोधित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन एक उचित मंच है।"

भारत तथा अन्य विकासशील देशों ने विश्व व्यापार संगठन करारों में असन्तुलनों के मुद्दों के समाधान तथा विकासशील देशों के विभिन्न विशेष और विभेदी व्यवहार प्रावधानों के प्रभावी प्रचालनीकरण के लिए दबाव बनाये रखना जारी रखा है। विकासशील देशों ने अपनी प्रारम्भिक प्रक्रियाओं के दौरान तथा सम्मेलन के दौरान यह स्पष्ट धारणा व्यक्त की कि सम्मेलन की सफलता के लिए विश्व व्यापार संगठन के अधीन बहुपक्षीय व्यापार शासन की सफलता हेतु उसके कार्यान्वयन सम्बन्धी मामलों का प्रामाणिक समाधान करना जरूरी है। यही कारण है कि कार्यान्वयन सम्बन्धित 102 मामलों में से 43 मामलों में दोहा सम्मेलन में निर्णय लिया गया और शेष कार्यान्वयन हेतु आगे भेजे गये ।

निष्कर्ष- विश्व व्यापार संगठन के चौथे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में 142 सदस्य राष्ट्रों के वाणिज्य मंत्रियों का भाग लेना अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। इस सम्मेलन में विकसित राष्ट्र कृषि सेवाओं, औद्योगिक उत्पादों के व्यापार विस्तार आदि के साथ-साथ पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों को नये एजेण्डे में शामिल कराने में सफल हुए। नये दौर की वार्ता जनवरी 2002 में प्रारम्भ करने तथा इसे 2005 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। सम्मेलन में स्वीकार दोहा घोषणा-पत्र में नये दौर की व्यापार वार्ता एजेण्डा, पहले से तथा मुद्दों के लिए कार्यान्वयन कार्यक्रम तथा जन-स्वास्थ्य औषधियों के उत्पादन एवं अधिग्रहण के मामले में टी.बी., मलेरिया, एच.आई.वी./एड्स आदि रोगों से जनसामान्य की सुरक्षा के लिए औषधियों के उत्पादन में विश्व व्यापार संगठन के ट्रिप्स एवं पेटेन्ट सम्बन्धी कानून आड़े नहीं आ सकेंगे। दोहा सम्मेलन में विकासशील राष्ट्रों की यह महत्त्वपूर्ण सफलता है। इसके अतिरिक्त कृषि क्षेत्र में डोमेस्टिक सपोर्ट तथा निर्यात सब्सिडी में कटौती का प्रस्ताव दोहा सम्मेलन के घोषणा-पत्र में शामिल होने से विकासशील देशों के किसानों को लाभ मिलेगा। इस सम्मेलन में चीन को 143वां तथा ताइवान को 144वां सदस्य विश्व व्यापार संगठन में बनाया गया है।

 विश्व व्यापार संगठन का पाँचवां मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन 

FIFTH MINISTRIAL CONFERENCE ( OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) का पाँचवां मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन 10 सितम्बर से 14 सितम्बर, 2003 तक मैक्सिको के कानकुन शहर में आयोजित हुआ, जिसमें 146 देशों के वाणिज्य मंत्रियों ने इस पाँच दिवसीय सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में 70 सदस्यीय दल का नेतृत्व भारत के तत्कालीन वाणिज्य मन्त्री अरुण जेटली ने किया। सम्मेलन के उद्घाटन समारोह स्थल पर सैकड़ों भू-मण्डलीयकरण विरोधी लोगों ने प्रदर्शन किया।

सम्मेलन में विचारार्थ विषय (Agenda)- इस पाँच दिवसीय मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन में विचारार्थ विषय-

(i) खेती एवं कृषि उत्पाद व्यापार, (ii) सेवा नियम तथा (iii) असंगठित क्षेत्र एवं लघु उद्योगों की सुरक्षा आदि थे। सम्मेलन का उद्घाटन करते समय मैक्सिको के राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि सम्मेलन में भाग ले रहे देश समूची मानवता के व्यापार उदारीकरण की दिशा में आगे बढ़ने में सफल होंगे।

कानकुन सम्मेलन की अपेक्षाएँ (Expectations of Cancun Conference)

कानकुन सम्मेलन में विकसित देशों एवं विकासशील देशों की अलग-अलग अपेक्षाओं के कारण यह दो खेमों में बँट गया। जहाँ एक ओर विकसित राष्ट्रों में अमेरिका एवं यूरोपीय संघ के देशों के खेमे की अपेक्षा थी कि आयात में व्यापार बाधाओं को हटाने के सम्बन्ध में ठोस निर्णय लिया जाये तथा कामगारों के प्रवास को सीमित रखा जाये, वहाँ दूसरी ओर विकासशील देशों के अनौपचारिक संगठन जी-21 (G-21) का नेतृत्व भारत, चीन, ब्राजील, अर्जेन्टीना तथा दक्षिणी अफ्रीका आदि की अपेक्षाएँ थीं कि विकसित देश अपने द्वारा दी जाने वाली भारी कृषि सब्सिडी (Agriculture Subsidy) में समयबद्ध कटौती करें ताकि विकासशील देशों की कृषि को सुरक्षा मिले, कामगारों की स्वतन्त्र आवाजाही सुनिश्चित हो तथा असंगठित क्षेत्र तथा लघु उद्योगों को विकसित देशों की प्रतिस्पर्द्धा से सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हो।

इन अलग-अलग अपेक्षाओं के चलते विकसित देशों और विकासशील देशों के सख्त रवैये से सम्मेलन की शुरुआत ही भारी विरोध के बीच हुई। विकासशील देशों ने एकजुटता दिखाते हुए कृषि अनुदान मुद्दे पर आस्ट्रेलिया के वाणिज्य मन्त्री मार्क वैले ने विकसित देश के खेमे को चेतावनी दी कि "यदि सम्मेलन में विकासशील देशों के सरोकारों को नजरन्दाज किया गया तो निवेश एवं प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दा पर चर्चा नहीं होने दी जायेगी, क्योंकि विकासशील देशों की प्रमुख चिन्ता कृषि उत्पादों के निर्यात व घरेलू अनुदान तथा बाजार की पहुँच को लेकर है।"

कानकुन सम्मेलन की विफलता (Failure of Cancun Conference)

सम्मेलन में विकसित देशों तथा विकासशील देशों में भारी मतभेदों के चलते हुए जब विकसित देश कृषि सब्सिडी का समयबद्ध कम करने पर सहमत नहीं हुए तो सम्मेलन विफल रहा। यद्यपि इस सम्मेलन में कुछ ऐसे प्रस्ताव भी पेश किये गये ताकि विकासशील देशों की एकजुटता को तोड़ा जा सके, किन्तु विकासशील देश अमेरिका और यूरोपीय संघ के दबाव में नहीं आये।

 विश्व व्यापार संगठन का छठा मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन 

(SIXTH MINISTERIAL CONFERENCE OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) का छठा मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन 13 से 18 दिसम्बर, 2005 को चीन के हांगकांग में सम्पन्न हुआ जिसमें विश्व व्यापार संगठन के 149 सदस्य देशों के व्यापार प्रतिनिधि मण्डलों ने भाग लिया। भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व तत्कालीन वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने किया। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद इस सम्मेलन के स्थल पर वैश्वीकरण विरोधी संगठनों ने भारी प्रदर्शन किया।

सम्मेलन में विचारार्थ विषय (Agenda of the Conference) - कानकुन सम्मेलन की भाँति इस सम्मेलन में भी विचारार्थ विषय कृषि सब्सिडी में कटौती के साथ-साथ औद्योगिक उत्पादों पर प्रशुल्कों में कटौती व सेवा क्षेत्र के मुद्दे विकसित एवं विकासशील देशों के बीच विवाद के मुख्य मुद्दे रहे।

हांगकांग घोषणा-पत्र (Hong-Kong Declaration)- विकासशील देशों की एकजुटता के कारण इन देशों के हितों की सुरक्षा काफी सीमा तक सम्भव हो सकी और विकसित देशों में कृषि सब्सिडी को समाप्त करने के लिए सम्मेलन में राजी होना पड़ा।

हांगकांग घोषणा-पत्र

1. विकसित देशों ने कृषि निर्यात पर दी जाने वाली समस्त सब्सिडी को 2013 तक समाप्त करने की प्रतिस्पर्द्धा व्यक्त की। चरणबद्ध कटौती से भारत तथा अन्य विकासशील देशों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से राहत मिलेगी।

2. औद्योगिक उत्पादों के आयातों पर प्रशुल्क घटाने के मामले में विकासशील देशों को कुछ राहत देने के लिए विकसित देश सहमत हुए।

3. यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तुत स्विस फॉर्मूले (Swiss Formula) में ए.बी.आई. (ABI) (अर्जेन्टीना, ब्राजील और भारत) के सुझावों को स्वीकार किया गया। यह स्विस फॉमूला विकासशील देशों द्वारा औद्योगिक उत्पादों पर प्रशुल्क कटौती जिसे नोन एग्रीकल्चरल मार्केट एक्सेस (NAMA) कहा गया है, उससे सम्बन्धित है।

4. विकासशील देश एक सहमति के तहत उपयुक्त संख्या में विशेष उत्पादों (Special Products) की एक सूची बना सकेंगे जिन्हें प्रशुल्क कटौती फॉर्मूले से बाहर रखा जा सकेगा। कमलनाथ के अनुसार भारत 90 उत्पादों को ऐसी सूची में रख सकेगा।

5. विकासशील देशों में कृषिगत आयातों में भारी वृद्धि होने व ऐसे उत्पादों के मूल्यों में विशेष कमी होने की स्थिति में इन देशों को आयात शुल्क में वृद्धि करने की अनुमति एक विशेष सुरक्षात्मक तन्त्र के तहत प्राप्त होगी।

6. भारत जैसे विकासशील देशों को कृषि सब्सिडी घटाने की व्यवस्था से मुक्त रखा गया है।

7. कृषि क्षेत्र के विकास से सम्बन्धित सभी योजनाओं को विश्व व्यापार संगठन के नियमों की परिधि से बाहर रखा गया है।

8. भारत जैसे विकासशील देशों को कृषि क्षेत्र की योजनाओं पर होने वाले सरकारी व्यय में कटौती नहीं करने की व्यवस्था की गयी है।

9. अल्पविकसित देशों के लिए कोटा शुल्क मुक्त निर्यात का एक एल.डी.सी. पैकेज स्वीकार किया गया है।

 विश्व व्यापार संगठन के सम्भावित लाभ (POSSIBLE ADVANTAGES OF WTO)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कारण अच्छी बाजार पहुँच (Better Market Access) से विश्व की आय में 213 अरब डॉलर से 274 अरब डॉलर तक की वार्षिक वृद्धि होगी।

सन् 2005 तक वार्षिक व्यापार लाभ 745 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुँचने की कल्पना की गयी थी। सेवाओं के व्यापार में वृद्धि तथा विश्व व्यापार के नये प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने पर विश्व व्यापार लाभों में और अधिक वृद्धि सम्भव है। विश्व व्यापार संगठन के सम्भावित लाभ संक्षेप में निम्न प्रकार हैं-

1. विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग से विश्व के सभी विकसित एवं विकासशील देशों की समृद्धि एवं विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

2. बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था से निर्यातों में वृद्धि बहुपक्षीय व्यापार की ऐसी प्रणाली विकसित होगी जिसमें सभी देशों को निर्यात सम्बर्द्धन के समान अवसर मिलने से निर्यातों में वृद्धि होगी। 2005 तक वार्षिक व्यापार लाभ 745 अरब डॉलर तक पहुँचने की कल्पना की गयी थी।

3. बाजार पहुँच सुरक्षा में वृद्धि औद्योगिक उत्पादों पर उच्चस्तरीय तटकर बन्धनों (Tariff Bind) द्वारा विकसित देशों के लिए बाजार पहुँच सुरक्षा (Market Access Security) 78% से 99% तथा विकासशील राष्ट्रों के लिए यह सुरक्षा 22% से 72% होने की सम्भावना है।

4. कृषि उत्पादों को 100% सुरक्षा- विश्व व्यापार संगठन के लिए गैर-तटकर बाधाओं के तटकरीयकरण के कार्यक्रम के तहत कृषि उत्पादों को 10% सुरक्षा प्राप्त होने की आशा है।

5. औद्योगिक उत्पादों की तटकर दर में कमी- विश्व व्यापार संगठन के विकसित सदस्य राष्ट्र अपने औद्योगिक उत्पादों के तटकरों में लगभग 38% की कमी करेंगे जिसके फलस्वरूप औद्योगिक उत्पादों की तटकर दर 6.3% से घटकर 3.9% रह जायेगी।

6. विकसित देशों के आयातित औद्योगिक उत्पादों में 20% से 43% तक का उछाल विकसित देशों में सीमा शुल्कों में कटौती के फलस्वरूप उनके आयातित औद्योगिक उत्पादों की राशि में 20% से 43% तक वृद्धि की सम्भावना है। इसी प्रकार शीर्ष तटकरों (Peak Tariffs) के कारण आयात अनुपात 7% से घटकर 5% रह जायेगा।

7. विकासशील देशों से आयात में प्रशुल्क दरों में कटौती से विकासशील देशों का लाभ-विकासशील देशों से विकसित राष्ट्रों द्वारा आयात किये जाने वाले बहुत-से पदार्थों पर प्रशुल्क दरों में कटौती से विकासशील राष्ट्रों के निर्यातों में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा।

8. विकासशील देशों को अपने प्राथमिक उत्पादों को विकसित देशों में बाजार उपलब्ध होने से उन्हें अपने निर्यातों में सकारात्मक वृद्धि का अवसर मिलेगा।

9. व्यापार एवं वित्तीय सेवाओं, पर्यटन एवं यात्रा व्यवसाय क्षेत्रों में व्यापार वृद्धि से सभी राष्ट्रों को लाभ होगा।

10. उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्द्धात्मक नीची कीमतों पर उपभोग का अवसर प्राप्त होगा और उन्हें उन वस्तुओं के उपभोग का भी अवसर मिलेगा जो अन्यथा सम्भव नहीं थीं।

11. उत्पादन लागतों में कमी बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और कुशलतम उत्पादन व्यवस्थाओं के कारण सभी देशों में उत्पादन लागतों में कमी के प्रयास के लिए सभी के लिए लाभ का सौदा रहेगा।

12. विश्व आय में वृद्धि विश्व व्यापार संगठन के कारण अच्छी बाजार पहुँच (Better Market Access) से विश्व की आय में प्रति वर्ष 213 अरब डॉलर से 274 अरब डॉलर तक की वृद्धि होने का अनुमान है।

13. प्रौद्योगिक उन्नयन- विश्व व्यापार संगठन के समझौतों से विश्व के सभी विकासशील देशों को न केवल प्रौद्योगिक उन्नयन का मौका मिलेगा वरन् निरन्तर शोध एवं विकास कार्यक्रमों (R & D) का लाभ भी मिलेगा।

 विश्व व्यापार संगठन से तृतीय विश्व के देशों को सम्भावित खतरे 

(EXPECTED DANGERS TO THIRD WORLD COUNTRIES FROM WTO)

यद्यपि विश्व व्यापार संगठन की स्थापना में उसके समर्थकों ने तृतीय विश्व के लिए उनकी आय और रोजगार में वृद्धि संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग, तीव्र आर्थिक विकास और निर्यात वृद्धि के सुनहले सपने दिखाने का प्रयास किया है, किन्तु मुक्त व्यापार और विकसित देशों और विकासशील राष्ट्रों के अधिकारों पर अतिक्रमण के सम्भावित खतरे भी कम नहीं हैं। यही कारण है कि विश्व व्यापार संगठन के लाभों की अपेक्षा उसके सम्भावित खतरे अधिक नजर आ रहे हैं। ये संक्षेप में निम्न प्रकार हैं-

1. बहुपक्षीय समझौते के मनमाने उल्लंघन पर दण्डात्मक कार्यवाही का भय (Fear of Penal Action)- विश्व व्यापार संगठन को बहुपक्षीय समझौते को मनमाने ढंग से उल्लंघन करने वाले सदस्य देशों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने का जो अधिकार प्राप्त है उससे विकासशील देशों को अपने राष्ट्रहित के अनुरूप अपनाई जाने वाली नीतियों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही का भय निरन्तर बना रहेगा।

2. तीसरी दुनिया के देशों की सरकारों के राष्ट्र‌हित में नीति निर्धारण का अधिकार प्रतिबन्धित हो जायेगा (Restrictions on Policies on National Interest) उसके कारण उन्हें लाभ के स्थान पर हानि का भय अधिक रहेगा।

3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा विकासशील राष्ट्रों के आर्थिक शोषण में वृद्धि का भय (Fear of Exploitation by Multinational Companies)- विश्व व्यापार संगठन के नौकरशाही पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की लॉबी हावी रहेगी और अपने हितों के पक्ष में निर्णयों से उसके कार्यक्षेत्र और अधिकारों में असीमित वृद्धि से प्रतिबन्धों में कमी और उनके 'विश्व विजय' अभियान के अन्तर्गत विकासशील एवं निर्धन राष्ट्रों के बाजार उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं और सेवाओं के लिए खोल दिये जायेंगे। उन्हें पूँजी निवेश से अधिक लाभ अर्जित करने तथा विकासशील देशों के प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों एवं सस्ते श्रम के शोषण का अक्षुण्ण लाभ मिलेगा।

4. विकसित देशों की दोगली नीति (Dual Policy of Developed Countries) विश्व व्यापार संगठन की आड़ में जहाँ एक ओर विकसित राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों के बाजारों पर तो सभी प्रकार का कब्जा करना चाहते हैं किन्तु कुछ मुद्दों की आड़ लेकर अपने बाजार को इसी प्रकार की सेवाओं के लिए विकासशील देशों के लिए नहीं खोलना चाहते। उदाहरण के तौर पर विकसित राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों के कुशल श्रमिकों को रोजगार पाने के लिए प्रतिबन्धों को समाप्त करने की भारत की माँग को मानने को तैयार नहीं। अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस आदि विकसित देश अपनी वित्तीय कम्पनियों और बीमा कम्पनियों के लिए विकासशील देशों से बाजार खोलने की माँग कर रहे हैं पर जब उनके सामने विकासशील देशों के कुशल श्रमिकों के लिए बाजार खोलने की बात आयी तो वे अपने देश में बेरोजगारी बढ़ने के बहाने का सहारा लेने लगते हैं। उनके श्रमिकों के आगमन पर तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगाते हैं।

5. विकासशील राष्ट्र एवं पर्यावरण का नया मुद्दा (New Issues of Environment)- विश्व व्यापार संगठन के सामने विकसित राष्ट्रों द्वारा पर्यावरण के मुद्दे पर विकासशील देशों के उन वस्तुओं के आयात की मनाही है। जिनके विनिर्माण से पर्यावरण प्रदूषित होता है और इसी के तहत विकासशील देशों पर प्रदूषण नियन्त्रण की नवीनतम विधियाँ अपनाने का दबाव डाला जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण का नया हव्वा खड़ा कर उससे भी लाभ अर्जन करना चाहते हैं क्योंकि प्रदूषण नियन्त्रण की ये नई विधियाँ विकसित राष्ट्रों से ही ऊँचे मूल्यों पर आयात की बाध्यता रहेगी।

अभी हाल ही में अमेरिका ने भारत से आयात किये जाने वाले स्कर्ट्स पर यह कहकर प्रतिबन्ध लगाया कि इनमें प्रज्वलनशीलता का तत्त्व अधिक है। इससे मानव जीवन को खतरा है। इसी प्रकार जर्मनी में भारतीय वस्त्रों पर एजो रंगों के प्रयोग का आरोप लगाकर उनके आयात पर प्रतिबन्ध लगाया।

6. विश्व व्यापार संगठन और गैर-व्यापार सम्बन्धी सामाजिक मुद्दे (Non-Trade Related Social Issues)- विश्व व्यापार संगठन के सामने गैर-व्यापार सम्बन्धी सामाजिक मुद्दों, जैसे- मानवाधिकार, श्रम मानक, बाल श्रम, श्रमिक संघ तथा मजदूरी भुगतान आदि का सहारा लेकर विकसित राष्ट्र विकासशील देशों को उसके लाभों से वंचित करने का षड्यन्त्र रच रहे हैं, क्योंकि विकसित राष्ट्रों को विकासशील देशों की नीची मजदूरी दरों के कारण विश्व बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है। विकासशील देशों की वस्तुएँ सस्ती पड़ती हैं। प्रशुल्क दरों में कमी से विकसित देशों को प्रतिस्पर्द्धा और बढ़ गयी है, अतः वे चाहते हैं कि विकासशील देशों की मजदूरी दरें बढ़ें और उन्हें अपना उल्लू सीधा करने का मौका मिले।

7. विकासशील देशों के संवैधानिक प्रावधानों में परिवर्तन की बाध्यता (Pressure of Changes in Constitutional Provisions) उन्हें अपने राष्ट्र हितों की रक्षा करने में बाधा डाल रही है। विकासशील देशों में सब्सिडी को कम करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। स्वदेशी की भावना पर अंकुश लगाया जा रहा है। यही कारण है कि सीमा शुल्कों, पेटेन्ट कानूनों में परिवर्तन की बाध्यता है।

8. सार्वभौमिकता पर कुठाराघात (Setback to Sovereignty) नागरिकों के विशेष समूहों को आर्थिक रियायतें, अर्थव्यवस्था के किन-किन क्षेत्रों को कितनी-कितनी सब्सिडी एवं आर्थिक सहायता का निर्धारण अब सदस्य देशों की स्वेच्छा से नहीं हो सकता वरन् उन्हें WTO के अनुसार चलने की बाध्यता उनकी सार्वभौमिकता पर कुठाराघात है।

9. पक्षपातपूर्ण रवैया (Biased Attitude) अगर विश्व व्यापार संगठन विकसित राष्ट्रों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव में विकासशील देशों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार करता है तो विकासशील राष्ट्रों को लाभके स्थान पर हानि उठानी पड़ेगी।

 विश्व व्यापार संगठन और भारत को लाभ 

(WORLD TRADE ORGANISATION AND ADVANTAGES TO INDIA)

विश्व व्यापार संगठन के कारण विश्व के सभी देशों के व्यापार में वृद्धि से उत्पादन, आय और रोजगार में वृद्धि, आर्थिक समृद्धि एवं उच्च जीवन स्तर का मार्ग प्रशस्त होगा। व्यापारिक प्रतिबन्धों की कमी और मुक्त व्यापार के कारण आर्थिक संसाधनों का बेहतर उपयोग सम्भव होगा। भारत के विश्व व्यापार संगठन के सम्भावित लाभ संक्षेप में इस प्रकार हैं-

1. निर्यातों में वृद्धि (Increasing in Export)- निर्यातों के प्रतिवर्ष 150 से 200 करोड़ डॉलर तुल्य वृद्धि की सम्भावना है।

2. भारत के उत्पादों को बड़ा बाजार (Better Market Access)- विदेशी बाजारों में विश्व व्यापार संगठन के कारण तटकरों एवं प्रशुल्क दरों में कमी, कृषिजन्य पदार्थों की सब्सिडी में कमी से भारत की विदेशी बाजार में पहुँच सुविधाजनक बनेगी।

3. विदेशी निवेशों में वृद्धि (Increase in Foreign Investment)- भारत में विदेशी पूँजी निवेशों की वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा जिससे न केवल तीव्र आर्थिक विकास का रास्ता खुलेगा वरन् विदेशी टेक्नोलॉजी की आधुनिकतम विधियों से भारत के उत्पादों की लागत में कमी और प्रतिस्पर्द्धात्मक शक्ति में वृद्धि होगी। पिछले तीन वर्षों में भारत में विदेशी पूँजी निवेश काफी तेजी से बढ़े हैं।

4. उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग (Use of Better Technology)- विदेशी पूँजी निवेश के साथ उन्नत प्रौद्योगिकी का आयात बढ़ेगा जो अन्ततः लाभप्रद रहेगा।

5. प्राकृतिक उत्पादों के पेटेन्ट की जरूरत नहीं किन्तु अगले 8 वर्षों में पेटेन्ट कानून में छूट मिलेगी, किन्तु उसके बाद नहीं।

6. वस्त्रों एवं पोशाकों के निर्यातों में वृद्धि (Increase in Textiles and Garments)-अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के बाजारों में भारत के वस्त्रों एवं पोशाकों का निर्यात बढ़ने का लाभ मिलेगा।

7. विदेशी मुद्रा भण्डारों में वृद्धि (Increase in Foreign Exchange Reserves) भारत के निर्यातों में वृद्धि तथा भारतीय डॉक्टरों, इन्जीनियरों एवं अन्य विशेषज्ञों आदि कुशल श्रम की सेवाओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जन का लाभ मिलेगा।

8. विदेशी वस्तुओं के उपभोग का अवसर (Opportunity to Consume Foreign Goods)-भारत के उपभोक्ताओं का विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत विश्व की लगभग सभी वस्तुओं के स्वतन्त्र व्यापार के कारण विदेशी वस्तुओं के उपभोग का लाभ मिलेगा। वस्तुएँ सस्ती, उत्तम किस्म की और आसानी से मिल सकेंगी।

9. अन्तर्राष्ट्रीय मंच की सुविधा (Facility of International Platform)- विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता के परिणामस्वरूप भारत को अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं के व्यापार से सम्बन्धित मुद्दों पर विचार-विमर्श और उनके उचित समाधान हेतु यह अन्तर्राष्ट्रीय साझा मंच मिल गया है जहाँ वह अपना पक्ष प्रभावी ढंग से रखने का अधिकारी है।

10. विवादों का निपटारा करने की सुविधा (Facility for Settlement of Disputes)- भारत को विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता के कारण अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं के व्यापार सम्बन्धी मुद्दों पर उत्पन्न विवाद को निपटाने के लिए विश्व व्यापार संगठन की सुविधा प्राप्त हो गयी है जहाँ विवाद के निपटारे के लिए शिकायत दर्ज कराने और अपना पक्ष प्रस्तुत करने की सुविधा मिल गयी है।

 भारत को विश्व व्यापार संगठन की सम्भावित हानियाँ 

(DISADVANTAGES OF WTO TO INDIA)

जहाँ एक ओर विश्व व्यापार संगठन के कारण काफी लाभ सम्भावित हैं पर कई खतरे भी जुड़े हुए हैं जिनको नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। मुख्य सम्भावित हानियाँ संक्षेप में निम्न प्रकार हैं-

1. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का दुष्प्रभाव (Disadvantages to TRIPS)- यह होगा कि भारत को कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेन्ट राइट आदि के उपयोग के लिए भारी रॉयल्टी भुगतान का भार उठाना पड़ेगा। अभी हाल ही में अमेरिका द्वारा बासमती चावल, नीम तथा कई कृषि उत्पादों व औषध जड़ी बूटियों का पेटेन्ट कराकर लाभ उठाने का प्रयास जारी है।

2. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कट्टर प्रतिस्पर्द्धा (Stiff Competition with MNCS) का भय भारतीय कम्पनियों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।

3. सेवा क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों के आधिपत्य का भय (Fear of Foreign Companies in Services Sector)- विश्व व्यापार संगठन के कारण विदेशी बैंकिंग, बीमा, पर्यटन, संचार, विज्ञापन, परमार्थ सेवा आदि सेवा क्षेत्रों में स्वतन्त्र आगमन भारत की कमजोर कम्पनियों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल सकती है। वे समूचे बाजार पर कब्जा कर भारतीय संस्कृति को दुष्प्रभावित कर सकती हैं।

4. आयातों में वृद्धि का खतरा (Fear of Increase in Imports) भी कम नहीं हैं, क्योंकि जब भारतीय बाजारों को विदेशी उत्पादों के लिए खोलने की बाध्यता रहेगी और अधिक आयात हमारे भुगतान सन्तुलन की समस्या को बढ़ायेगा। पिछले दो वर्षों में आयातों में भारी वृद्धि बढ़ते भुगतान असन्तुलन का कारण बनी है।

5. खाद्यान्नों के अनिवार्य आयात (Compulsory Import of Food Grains) की शर्त विकासशील कृषि प्रधान देशों में खाद्यान मूल्यों में गिरावट का कारण बनकर उनकी खाद्यात्रों में आत्मनिर्भरता का स्वप्न चकनाचूर कर देगी।

6. कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में सरकारी अनुदान में कमी (Reduction in Grants and Subsi-dies) करने की शर्त उत्पादन लागतों में वृद्धि कर भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक शक्ति में कमी कर सकती है।

भारतीय सन्दर्भ में विश्व व्यापार संगठन से सम्भावित लाभों एवं हानियों का विश्लेषण अभी करना युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि भारत विश्व व्यापार संगठन के संस्थापक सदस्य देशों में से एक है और यही कारण है कि भारत विश्व व्यापार संगठन के अभी तक के निर्णयों में समर्थक रहा है।

भारत ने आर्थिक सुधारों एवं उदारीकरण के अन्तर्गत भारतीय बाजारों को विदेशी वस्तुओं एवं सेवाओं के खोलने का क्रम जारी रखा है। 31 दिसम्बर, 1994 को पेटेन्ट (संशोधन) अध्यादेश तथा सीमा शुल्क (संशोधन) अध्यादेश जारी किये गये। सीमा शुल्कों में कटौती का क्रम जारी है। 1998-99 के बजट में ही 340 वस्तुओं को खुलेआम लाइसेन्स के अन्तर्गत आयात को छूट दी गयी एवं प्रशुल्क दरों में कटौती की गयी। 1999-2000 के निर्यात-आयात नीति संशोधन में आयात मुक्त सूची में 894 वस्तुएँ जोड़ी गयी हैं।

7. गैर-व्यापारिक सामाजिक मुद्दों पर शोषण (Exploitation on Non-Trade Social Issues)- भारत सामाजिक मुद्दों को व्यापार से जोड़े जाने का विरोध कर रहा है। गुट निरपेक्ष देशों के श्रम-मन्त्रियों के सम्मेलन में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि श्रम-मानकों से जुड़े मसले अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा ही तय किये जाने चाहिए और विश्व व्यापार संगठन का कार्य व्यापारिक मुद्दे तक ही सीमित रहना चाहिए।

8. पर्यावरण के मुद्दे पर शोषण (Exploitation on Issues of Evironment) इसी प्रकार विकसित देशों द्वारा पर्यावरण के मुद्दे के आधार पर विकासशील राष्ट्रों में उद्योगों की स्थापना में प्रदूषण नियन्त्रण के लिए आधुनिकतम महँगी प्रविधियों को अपनाने की बाध्यता उत्पन्न की जा रही है। यही नहीं, अभी कुछ दिनों पूर्व अमेरिका में भारतीय नाइलोन स्कर्ट्स के आयात पर उनके अधिक प्रज्वलनशीलता के कारण प्रतिबन्ध लगाया है, क्योंकि उसमें मानव जीवन को खतरा बताया गया है। ठीक इसी प्रकार जर्मनी में भारतीय वस्त्रों के आयातों पर यह कहकर प्रतिबन्ध लगाया है कि उनमें ऐसे रंगों का प्रयोग किया जाता है जो मानव जीवन के लिए घातक हैं।

9. भारत में स्वदेशी की भावना पर अंकुश (Setback to Swadesi) हेतु विदेशी कम्पनियाँ कई प्रकार के आरोप लगा रही हैं। भारत द्वारा 1998-99 के बजट में 40% स्वदेशी ड्यूटी लगाने की यूरोपीय संघ, जापान, स्विट्जरलैण्ड, कनाडा और अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन को शिकायत की है, जबकि भारत इसे वैधानिक रूप से सही ठहरा रहा है।

10. आन्तरिक आर्थिक नीतियों के निर्धारण में स्वतन्त्रता का अभाव (Lack of Freedom in Determination of Internal Economic Policies) विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत समझौतों के परिणामस्वरूप भारत को अपनी आर्थिक नीतियों को वैश्विक आर्थिक नीति के अनुरूप एकीकृत करना होगा। अतः आन्तरिक नीतियों के निर्धारण में भारत की स्वतन्त्रता का हनन होगा।

 विश्व व्यापार संगठन और भारत से सम्बन्धित विवाद / शिकायतें 

(WORLD TRADE ORGANISATION AND DISPUTES RELATED TO INDIA)

जहाँ भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के समक्ष अब तक कम शिकायतें दर्ज की वहाँ संगठन के अन्य सदस्यों ने भारत के विरुद्ध अनेक शिकायतें दर्ज कराई हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-1. भारत V/s पोलैण्ड स्वचालित वाहनों के आयातों से सम्बन्धित इस विवाद का निपटारा जुलाई 1996 में द्वि-पक्षीय समझौते से समाप्त हुआ।

2. भारत V/s अमेरिका-जब अमेरिका ने भारत से भेजे जाने वाले कृत्रिम धागे के बने महिलाओं और लड़कियों के कोटों पर प्रतिबन्ध लगा दिया तो भारत ने मामला विश्व व्यापार संगठन में उठाया जिससे अमेरिका ने 1 अप्रैल, 1996 को प्रतिबन्ध उठा लिया और मामला समाप्त हो गया, किन्तु फिर अमेरिका ने कृत्रिम धागे की कमीजों और ब्लाउजों के भारत से आयात पर प्रतिबन्ध लगाया तो विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटारा बोर्ड (DSB) ने अमेरिका के सुरक्षात्मक उपायों को संगठन के प्रावधानों का उल्लंघन माना।

3. भारत V/s तुर्की-तुर्की द्वारा भारत से भेजे जाने वाले वस्त्रों एवं कपड़ा उत्पादों (Textiles and Clothing Products) पर प्रतिबन्ध लगाने पर तुर्की के विरुद्ध भारत ने WTO में 13 मार्च, 1998 को वाद दायर किया। विश्व व्यापार संगठन के अपीली निकाय ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया।

4. भारत, मलेशिया, थाइलैण्ड, पाकिस्तान V/s अमेरिका अमेरिका ने शरीम्प (Shrimp) तथा अन्य उत्पादों के आयात पर जो प्रतिबन्ध लगाये उसके विरुद्ध वादी देशों ने शिकायत की, जिसका विवाद पैनल ने अमेरिका के खिलाफ निर्णय दिया और भारत तथा अन्य वादी राष्ट्र विवाद में जीते।

5. अमेरिका तथा यूरोपीय समुदाय V/s भारत-अमेरिका तथा यूरोपीय समुदाय ने अलग-अलग शिकायतों के द्वारा भारत पर औषध तथा कृषिजन्य रसायनों, उत्पादों पर उसके पेटेन्ट प्रतिबन्धों को विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के विरुद्ध बताया और अमेरिका के विवाद में फैसला भारत के विरुद्ध गया जिसकी उसने अपील की और वह भी खारिज हो गयी। यूरोपीय समुदाय का मामला अभी भी पैनल प्रक्रिया में विचाराधीन है।

6. भारत के विरुद्ध 6 अलग-अलग मामले मात्रात्मक प्रतिबन्धों को लेकर अमेरिका, यूरोपीय समुदाय, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा स्विट्जरलैण्ड ने विश्व व्यापार संगठन के सामने उठाये हैं जिसमें अमेरिका को छोडकर सभी अन्य देशों के साथ मामले नवम्बर 1997 में पारस्परिक सहमति से निपट गये हैं, जबकि अमेरिका की शिकायत विचाराधीन है।

7. यूरोपीय समुदाय ने भारत की नवीन आयात-निर्यात नीति (1997-2002) में अनेक वस्तुओं को निर्यात की नकारात्मक सूची में रखे जाने के कारण विवाद विश्व व्यापार संगठन में उठाया है।

8. राशिपातक विरोधी ड्यूटिज विभिन्न WTO सदस्य देशों ने 1995 से जून 2006 तक डम्पिंग विरोधी उपायों के अन्तर्गत 2938 प्रयास किये हैं जिनमें भारत ने 448, अमेरिका ने 368, यूरोपीय समुदाय ने 345, चीन ने 125 मामलों में उपाय अपनाये हैं।

9. पर्यावरण, सुरक्षा एवं श्रम-मानकों के आधार पर अमेरिका ने 2006-07 में भारत से भेजे गये 1763, मैक्सिको के 1480 तथा चीन के 1368 खाद्य सामग्री से भरे जहाज वापस लौटाये हैं।

 प्रशुल्क (TARIFFS)

तटकर अथवा प्रशुल्क (सीमा शुल्क) TARIFES

रिकार्डो का तुलनात्मक लागत सिद्धांत (Ricardo's Comparative Cost Theory)

हेक्सचर-ओहलिन का सिद्धांत (Heckscher-Ohlin Theory)

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ (Benefits of International Trade)

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund)

विश्व बैंक International Bank for Reconstruction and Development (World Bank)

एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank)

विदेशी व्यापार गुणक (Foreign Trade Multiplier)

भुगतान सन्तुलन (Balance of Payments)

आयात कोटा(Import Quotas)

व्यापार की शर्ते (TERMS OF TRADE)

व्यापारिक नीति : स्वतंत्र व्यापार एवं संरक्षण (Trade Policy)

इष्टतम प्रशुल्क तथा कल्याण (OPTIMUM TARIFF AND WELFARE)

आय वितरण पर प्रशुल्क के प्रभाव : स्टोप्लर-सैम्युअल्सन सिद्धांत (EFFECTS OF A TARIFF ON INCOME DISTRIBUTION:THE STOPLER SAMUELSON THEOREM)

अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली का विकास (Evolution of the International Monetary System)

Trade Reforms व्यापार सुधार (1991)

गैट (GATT) सामान्य प्रशुल्क एवं व्यापार समझौता 

गैट तथा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) [GATT AND WORLD TRADE ORGANISATION (WTO)]

व्यापार संबंधी समस्याएं (Business related issues)

स्थिर एवं परिवर्तनशील विनिमय दरे (Fixed and FlexibleExchange Rates)

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