प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
Hindi Elective
पाठ- 8 बारहमासा
कवि परिचय
हिन्दी
सूफी प्रेमाख्यानक काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म
रायबरेली जिले के जायस नामक स्थान में हुआ, इसलिए वे जायसी कहलाए। इनके पिता का
नाम शेख ममरेज था। इनके माता-पिता का निधन इनके बचपन में ही हो गया इसलिए वे
फकीरों और साधुओं के साथ रहने लगे। इनके बाएं कान एवं बाई आँख चेचक से जाती रही
थी। जिसका उल्लेख उन्होंने स्वयं पद्मावत में किया है। मुहम्मद बाई दिसी तजा, एक
सरवन एक आंखी' अर्थात् ईश्वर के द्वारा इनकी बाई आँख तथा बाँया कान को त्याग दिया
गया। वे यद्यपि चेहरे से कुरूप थे, तथापि मन से अत्यंत सुन्दर, हृदय से कोमल और
भावुक थे। उन्होंने अपने समय के प्रसिद्ध सूफी सत सैयद अशरफ और शेख बुरहान से
दीक्षा ली थी। उनकी प्रमुख कृतियाँ 'पद्मावत'अखरावट' तथा 'आखिरी कलाम है।
पाठ परिचय
मलिक
मुहम्मद जायसी भक्तिकाल के निर्गुण प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि सूफी कवि हैं।
पद्मावत की रचना अवधी भाषा में हुई है। इस महाकाव्य में प्रेम के त्रिकोण-राजा
रत्नसेन उनकी स्वकीया प्रिया नागमती और परकीया पद्मावती (ब्रह्मरूप) का चित्रण है।
यह प्रेमाख्यान कथा है। राजा रत्नसेन नागमती को रोते बिलखते छोड़कर एक शुक से
पद्मावती के रूप का वर्णन सुनकर उसे प्राप्त करने के लिए योगी वेश में अपने
संगियों को लेकर निकल पड़ता है। राजा रत्नसेन के वियोग में नागमती अत्यन्त विकल हो
जाती है। ऋतुचक्रों की दुसह मार भी उस पर पड़ती है। अगहन, पूस, माघ, फागुन के जाड़े
का मौसम उसे अकेले में बहुत डराता और सताता है। उसकी इसी व्यथा कथा का जायसी ने
पदमावत के नागमती वियोग खंड में बारहमासा के रूप में चित्रित किया है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर
प्रश्न 1. अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की
व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
अगहन महीने में दिन छोटा और रातें बड़ी होने लगती है। सूर्य के दक्षिणायन हो जाने
के कारण दिन में भी ठंडक बढ़ जीती है। रात्रि तो बर्फ के समान हो ही जाती है। इस
मास में प्रेमिकाओं को अपने प्रिय के स्पर्श से ही उष्मा प्राप्त होती है। लेकिन
विरहणियों की दशा अत्यन्त कातर हो जाती है। उन्हें अपने प्रिय के वियोग में ये
लंबी और सर्द रातें काटने को दौड़ती है। नागमती की विरह वेदना इस महीने में काफी
बढ़ जाती है। पति के वियोग में उसे सुंदर वस्त्र, साज श्रृंगार सभी व्यर्थ प्रतीत
होते हैं। वह वियोग की शीतल अग्नि में जल रही है। उसका सारा शरीर जलकर राख हो रहा
है परंतु उसका पति उसकी सुध नहीं ले रहा है। वह उसके वियोग की पीड़ा से अनभिज्ञ
है। उसके दुख दर्द को समझ ही नहीं पा रहा है।
प्रश्न 2 जीयत खाइ मुएँ नहि छाँड़ा पंक्ति के संदर्भ में नायिका की
विरह दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर-
यह नागमती का भावोदगार है। वह अपने विरह को बाज पक्षी के समान कह रही है। यह विरह
रूपी बाज पक्षी उसके शरीर पर नजर गड़ाए हुए है तथा उसे नोच-नोच कर
खा रहा है। ऐसा लगता है कि वह उसे मरने के बाद भी नहीं छोड़ेगा। अकेलेपन में वह अपने
पति को याद कर कर के सूखती जा रही है, गलती जा रही है और अब उसे अपनी मृत्यु स्पष्ट
दिखाई दे रही है। प्रिय के वियोग में उसकी दशा अत्यन्त दयनीय हो गई है।
प्रश्न 3. माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है ?
उत्तर-
माघ महीने में सर्दी और बढ़ जाती है। इस महीने में पाला पड़ने और वर्षा होने के कारण
सर्दी अपने चरम पर पहुँच जाती है। गर्म कपड़े भी सर्दी को कम करने में अक्षम हो जाते
हैं। ऐसे समय में विरहिणी स्त्री का दुख दर्द और बढ़ जाता है। नागमती की दशा अत्यन्त
दयनीय हो गई है। वर्षा के छींटे और पाले तो उसके शरीर को ठिठुराते ही है। आँखों से
बहने वाले आंसू भी उसे कम पीड़ित नहीं करते। विरह दुख की अधिकर्ता से उसका शरीर दुर्बल
हो जाता है तथा वह तिनके के सदृश हिलने लगता है। नागमती की विरहाग्रि एवं विरहानुभूति
का वर्णन कवि ने इन पंक्तियों में किया है। साथ ही अन्य विरहिणियों का भी चित्र उकेरा
गया है।
प्रश्न 4. वृक्षों से पत्तियों तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते
हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है ?
उत्तर-
वृक्षों से पत्तियों तथा वनों से ढाँखे वसंत ऋतु में गिरने लगते हैं। इस ऋतु के आते
ही पतझड़ शुरू हो जाता है। वृक्षों की शाखाएँ पत्तों- पुष्पों से रहित हो जाती है।
यहाँ पतझड़ निराशा और विरह का प्रतीक है। इस ऋतु में होली का त्योहार आता है। यह फागुन
का महीना होता है। जिसमें रंगों का त्योहार मनाया जाता है। लेकिन प्रियतम के बिना विरहिणी
का जीवन रंगहीन, उल्लासहीन एवं निराश हो गया है। वह हताशा से सोचती है कि उसका पति
राजा रत्नसेन अब वापस नहीं आएगा। एक ओर सब लोग होली और वसन्तपर्व के उल्लास में डूबे
हुए हैं, वही नागमती विरह की अग्नि में जल रही है तथा वह पवन से प्रार्थना करती है
कि मेरा शरीर जब इस विरहाग्नि से जलकर राख हो जायेगा तो इस राख को उड़ाकर मेरे प्रियतम
के चरणों पर रख देना ताकि मैं मरने के बाद भी उनके दर्शन और स्पर्श का सुख प्राप्त
कर सकूँ। इन पंक्तियों में नागमती के प्रिय-मिलन की उत्कट अभिलाषा व्यक्त हुई हैं।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) पिय सों कहेंहु संदेसड़ा ऐ भँवरा ऐ काग ।
सो धनि बिरहें जरि मुई तेहिक
धुआँ हम लाग ।।
उत्तर-
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यावतरण जायसी रचित महाकाव्य 'पद्मावत के नागमती वियोग
खण्ड से संकलित बारहमासा से अवतरित है। इस काव्यांश में नागमती ने भौरे और कौए के माध्यम
से, विरह संदेश अपने प्रियतम राजा रतनसेन के पास भेजा है।
व्याख्या-
पद्मावती का रूपवर्णन सुनकर राजा रतनसेन अपनी पटरानी नागमती को रोता-बिलखता छोड़कर
योगी वेश में घर-बार त्याग कर पद्मावती को प्राप्त करने हेतु निकल पड़ता है।
इधर
पति के वियोग में नागमती की दशा अत्यन्त कारुणिक हो गई है। वह विरहाग्नि में जल रही
है। शीत ऋतु की ठंडी एवं लम्बी रातें उसके लिए अत्यन्त कष्टकर साबित हो रही है। वह
अपनी इस व्यथा कथा को राजा रनसेन के पास कौए और भौरों के माध्यम से भेजना चाहती है।
वह उनसे कहती है- "है भ्रम! हे काग! तुम मेरा संदेश मेरे प्रियतम से जाकर कह दो।
उन्हें कह दो कि तुम्हारी प्रियतमा तुम्हारे विरह की अग्नि मे जल कर राख हो गई है और
उसके धुएँ से हम काले हो गए हैं।"
विशेष-
ऋतु के प्रभाव से विरहोद्वीप्त अवस्था का वर्णन हुआ है। विरहाग्नि में जलकर खाक हो
जाना, और धुएँ से भौरों और कौओं का काला पड़ जाना अतिशयोक्ति अलंकार है एवं इस पर फारसी,
काव्य की मसनवी शैली का प्रभाव है जिसमें मृत्यु के बाद भी विरहिनी की तड़प और उसके
प्रभाव का वर्णन है।
नायिका
प्रोषितपतिका है। रस. विप्रलम्भ शृंगार है। आलंबन रत्नसेन. आश्रय नागमती है। छंद दोहा
है। भाषा अवधी है। अलंकार अतिशयोक्ति है। विरह की पराकाष्ठा है।
(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाइ भए सब संख।
धनि सारस होइ ररि मुई, आइ समेटहु पंख ।।
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश जायसी की महाकाव्यात्मक कृति 'पद्मावत' नागमती वियोग
खंड से संकलित अंश बारहमासा से अवतरित है। इस काव्यांश में विरह का अतिशयोक्तिपूर्ण
वर्णन हुआ है।
व्याख्या-
रतनसेन के वियोग में नागमती मरणदशा को पहुँच चुकी है। वह अपने प्रियतम को सम्बोधित
करते हुए कहती हैं है प्रिय तुम्हारे विरह में मेरी आँखों के आँसू नही बल्कि हृदय और
शरीर का रक्त बह गया है। शरीर का रक्त ही आँसू बनकर आँखों से अनवरत बह रहे हैं तथा
रक्त के बह जाने से शरीर का माँस भी गल गया है। अब केवल हड्डी ही बच गई है जो उजले
शंख की भाँति दिखाई पड़ रही है। मैरी दशा मृत सारस की जोड़ी के समान हो गई है। अतः
मुझ मृत सारंस रूपी वियोगिनी के पंख अब तो आकर समेट लो।"
विशेष-
वियोग का यह वर्णन अत्यन्त कारुणिक तथा अतिशयोक्तिपूर्ण है। विरह की मरण दशा का चित्रण,
भारतीय वियोग वर्णन में मिलता है, परन्तु रक्त के आँसू बनकर बह जाने मांस के गल जाने
पक्षी समान मृत देह के पंख समेट लेने के लिए प्रिय से निवेदन करना फारसी काव्य की मसनवी
बोली का प्रमाण है। भाषा अवधी अतिशयोक्ति अलंकार, छंद दोहा, रस विप्रलंभ श्रृंगार,
आलम्बन रत्नसेन, आश्रय नागमती, नायिका प्रोषितपतिका।
(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भाडोल !
तेहि पर विरह जराई कै चहै उड़ावा झोल ॥
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत काव्यावतरण जायसी के महाकाव्य 'पद्मावत' के वियोग खण्ड के बारहमासा
से अवतरित है। इस अंश में नागमती की विरह कातर क्षीणकाय दशा का वर्णन हुआ है।
व्याख्या-
नागमती राजा रत्नसेन से अपनी विरहव्यथा के प्रभाव के विषय में कहती है। वह कहती है
कि तुम्हारे वियोग मैं मैं प्रतिदिन दुर्बल होती जा रही हूँ और अब मेरी देह तिनके की
भाँति कृशकाय हो गई है। जैसे तिनका हवा के हल्के झोंके से हिलने लगता है, वैसे ही मैं
तुम्हारे वियोग के प्रभाव से काँपती रहती हूँ। मैं तुम्हारी विरहाग्नि में जलकर खाक
हो रही हैं। अब यह खाक भी हवा के माध्यम से उड़ जायेगी अर्थात् इस धरती से मेरा नाम
हमेशा के लिए मिट जायगा। मेरा जीवन समाप्त हो जायगा।
विशेष-
विरह की अधिकता के कारण नागमती अत्यन्त दुर्बल हो गई है। इस दुर्बलता के कारण वह हवा
के झोंके से भी काँप उठती है। उसका शरीर सूखकर तिनके के समान हो गया है। विराहाग्नि
में जलकर राख हो जाने की कल्पना फारसी काव्य की मसनवी शैली की देन है। नायिका प्रोषितपतिका
है। रस विप्रलंभ श्रृंगार, आलम्बन रतनसेन, आश्रय नागमती, उद्दीपन विभाव- शीत ऋतु, छंद
दोहा, अलंकार अतिशयोक्ति और भाषा अवधी है।
(घ) यह तन जारौं छार के कहाँ कि पवन उड़ाउ ।
मकु तेहि मारग होइ परौं, कंत धरैं जहँ पाऊ ।।
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत काव्यावतरण जायसी के महाकाव्य 'पद्मावत' के वियोग खण्ड के बारहमासा
से अवतरित है जिसमें नागमती की विराहानि के चरमोत्कर्ष का वर्णन हुआ है।
व्याख्या नागमती
अपने प्रिय पति राजा रतनसेन को संबोधित करते हुए कहती है कि यदि तुम्हारी इच्छा है
कि मैं तुम्हारे विरह में तड़प तड़प कर मर जाऊँ, तो मैं इसके लिए प्रस्तुत हूँ। अब
मैं इस शरीर को जलाकर राख बना देना चाहती हूँ लेकिन मेरी एक अंतिम कामना है कि मेरी
इस राख को पवन उड़ाकर ले जाय और उस पथ पर बिखेर दें, जिस पथ से मेरा कंत जानेवाला हो।
इस प्रकार मैं न सही, मेरी राख तो मेरे प्रियतम का चरणस्पर्श कर सकेगी अर्थात् उनका
दर्शन और स्पर्श पा सकेगी।
विशेष-
विरह में मरणदशा तक पहुँच जाना भारतीय परम्परा के मेल में है, परन्तु मृत्यु को प्राप्त
होकर भस्म चिता का प्रिय के स्पर्श की आकांक्षा का वर्णन फारसी काव्य की मसनवी शैली
के प्रभाव को दर्शाता है। शृंगार रस में वीभत्स रस का समावेश है जो कि उचित नहीं प्रतीत
होता है। छंद दोहा, अलंकार अतिशयोक्ति, भाषा अवधी, विप्रलम्भ श्रृंगार, नायिका प्रोषितपतिका,
आलंबन रतनसेन, आश्रय नागमती है। इस छंद में एक ओर विरह की चरम दशा का वर्णन हुआ है,
दूसरी ओर पति के लिए एक भारतीय नारी का सर्वस्व त्याग न्योछावर कर देने की कामना विरह
में भी त्याग भावना का सम्पुट लिये हुए है।
प्रश्न 6. प्रथम छंदों में से अलंकार छाँटकर लिखिए और उनसे उत्पन्न
काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
कवि ने अनुप्रास, उपमा, विरोधाभास, उत्प्रेक्षा और स्वर मैत्री अलंकारों का प्रयोग
किया है। इस काव्य अलंकरण से कविता सुंदर बन गई है। दीपक और बाती के दृष्टांत के माध्यम
से कवि ने नायिका को वियोग की ज्वाला में उसी प्रकार जलता हुआ दिखाया है, जिस प्रकार
दीपक की बत्ती निरंतर जलती रहती है। फिर-फिर में यमक अलंकार है। पहले फिरे में राजा
रत्नसेन के वापस आने का तथा दूसरे 'फिरै में 'शारीरिक सौंदर्य के पुनः लौटने की ओर
संकेत है। सिपरी अग्नि में विरोधाभास है। प्रेम की अग्नि वह अग्नि है, जो बाहरी लोगों
को दिखाई नहीं देती पर प्रेमी जन विरह की अग्नि में निरंतर जलते रहते हैं।
दूसरे
छंद में उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश आदि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग
किया गया है। अनुप्रास अलंकारों के प्रयोग से काव्य में निरंतरता व प्रवाहमयता का गुण
विद्यमान है। घर-घर और कँपि-कँपि में पुनरुक्तिप्रकाश के प्रयोग से शब्दों पर बल पड़ा
है। इससे सर्दी की अधिकता का बोध होता है। सौर सुपेती आवै जुड़ी में विरोधाभास है।
रजाई में गर्मी प्रदान करने का गुण विद्यमान है, परंतु विरहिणी को रजाई सर्दी ही देती
है। पंखी में श्लेष अलंकार है, जो प्रिय प्रवास का बोध कराता है। विरह संचान में रूपक
अलंकार है। वियोग बाज पक्षी के समान है।
परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. विरहिणी नागमती अपनी व्यथा का संदेश परदेशी पति के पास कैसे
पहुँचाना चाहती है? अपने शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर-
मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत की नायिका नागमती का पति राजा रत्नसेन परदेश चला गया।
उसके वियोग में नायिका जल रही है। इस रचना में बारह महीनों में से चार महीनों अगहन,
पूस, माघ, फागुन का विरहोद्दीपक रूप का वर्णन हुआ है। इन चार महीनों में अगहन की शीत
ऋतु उसके लिए अत्यन्त दाहक प्रतीत होती है। अगहन का शीत विरहाग्नि में जलती नागमती
भरें और काम के माध्यम से अपने प्रिय के पास अपनी करुण दशा का संदेश भेजती है। वे उनसे
अनुरोधपूर्वक कहती है कि वे उनके प्रियतम के प्रवास में जाकर कह दें कि उनकी प्रिया
विरहाग्नि में जल मरी है। उसी की चिता के धुआँ लगने से हम काले हो गये हैं। नागमती
के विरह का चरमोत्कर्ष यहाँ दिखलाई पड़ता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बारहमासा कविता कहाँ से ली गयी है?
उत्तर-
बारहमासा कविता मलिक मोहम्मद जायसी के प्रसिद्ध प्रबंध काव्य पद्मावत के नागमती वियोग
खंड से लिया गया है।
प्रश्न 2. प्रस्तुत कविता का वर्ण्यविषय क्या है?
उत्तर-
इस कविता में सिंहल देश की राजकुमारी पदमावती और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के प्रेम
की कथा है तथा राजा रनसेन और पद्मावती के विरह की भी कथा है।
प्रश्न 3. "ज्यों दीपक बाती से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
कवि नागमती के वियोग को बताते हुए कहते हैं कि नागमती वियोग में जल रही है, जिस प्रकार
दीपक की बाती जलती है।
प्रश्न 4. बारहमासा कविता में विशेष क्या है?
उत्तर-
कविता में नागमती के वियोग का वर्णन किया गया है। वियोग रस का प्रयोग किया गया है।
कविता में लयात्मकता है भावों के अनुकूल भाषा का प्रयोग उचित रूप से किया गया है।
प्रश्न 5. बारहमासा कविता की नायिका के दुख का कारण क्या है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में नायिका प्रोषितपतिका है, अर्थात् उसका पति उसे छोड़कर अन्य देश
चला गया है। वह दुखी होकर बारह महीनों की चर्चा करती है और कहती है कि पति के बिना
हर मौसम व्यर्थ है। इस गीत में वह अपनी दशा को हर महीने की विशेषता के साथ पिरोकर रखती
हैं।
प्रश्न 6. 'अब धनि देवस विरह भा राती का क्या तात्पर्य है।
उत्तर-
शीत ऋतु में दिन छोटे हो जाते हैं और रातें लम्बी हो जाती हैं। अगहन का महीना आ जाने
से शीतऋतु का प्रारम्भ हो गया है और रातें लम्बी एवं दिन छोटे होने लगे हैं। विरहिणी
नागमती का विरह बढ़ता जा रहा है और वह इसके कारण दुर्बल हो रही है। इसलिए वह कहती है
कि मैं दिन की तरह छोटी अर्थात् दुर्बल होती जा रही हूँ एवं विरह की रातें लंबी होती
जा रही है।
प्रश्न 7. अबहूँ फिरै-फिरै रंग सोई का कथ्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
विरहिणी नागमती कहती है कि उसका रूप-रंग उसके प्रियतम राजा रत्नसेन के साथ ही चला गया
है किन्तु उसे पूरा विश्वास हैं कि उनके लौट आने से उसका रंग-रूप पुनः खिल उठेगा। पत्नी
अपने पति को आकर्षित करने के लिए श्रृंगार करती है, अतः उसके साथ रहने पर हर नारी का
सौंदर्य बना रहता है।
प्रश्न 8. यह तन जारौं छार कै जहँ पाउ के भाव पक्ष एवं कला पक्ष के
काव्य सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भावपक्ष जायसी द्वारा रचित बारहमासा से लिए गए इस दोहे में विरहिणी नागमती की आकांक्षा
की अभिव्यक्ति है। वह चाहती है कि विरह के कारण उसका शरीर जल कर राख हो जाए और पवन
उसकी राख उड़ाकर उस पथ पर डाल दें जिसपर उसके प्रियतम के चरण पड़े। पति के प्रति उत्कट
प्रेम की अभिव्यक्ति इस दोहे में हुई है।
कला-पक्ष
प्रस्तुत पंक्तियों की रचना दोहा-छंद्र में हुई है। इनमें अवधी भाषा का प्रयोग है।
वियोग श्रृंगार रस की मार्मिक विवेचना है। नागमती की प्रिय-मिलन की उत्कट आकांक्षा
है। अनुप्रास अलंकार है।
अति लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रानी नागमती किसके वियोग में व्याकुल थी?
उत्तर-
रानी नागमती राजा रत्नसेन के वियोग में व्याकुल थी।
प्रश्न 2. “बारहमासा' में नागमती का वियोग वर्णन किस माह से प्रारम्भ
हुआ?
उत्तर-
बारहमासा में नागमती का वियोग वर्णन अगहन माह से प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 3. नागमती अपने प्रिय को किसके माध्यम से संदेश भिजवाती है।
उत्तर-
नागमती अपने प्रिय को संदेश भौरे और कौए के माध्यम से भिजवाती है।
प्रश्न 4. "ज्यों दीपक बाती' से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कवि नागमती के वियोग को बताते हुए कहता है कि नागमती विरह की अग्नि में दीपक की भाँति
जल रही है, अर्थात् उसका वियोग उसे पल पल जला रहा है।
प्रश्न 5. नागमती किसे जलाकर राख कर देना चाहती है?
उत्तर-
नागमती अपने शरीर को जलाकर राख कर देना चाहती है।
प्रश्न 6. माघ के महीने में लोग कैसे वस्त्र पहनते हैं?
उत्तर-
माघ के महीने मे लोग गर्म वस्त्र पहनते हैं।
प्रश्न 7. नायिका को कौन-सी अग्नि जला रही है ?
उत्तर-
नायिका को विरह की अग्नि जला रही है।
प्रश्न 8. फागुन के महीने में लोग किस त्योहार का आनन्द लेते हैं?
उत्तर-
फागुन के महीने में लोग होली का आनन्द लेते हैं। सभी मिलजुलकर एक-दूसरे पर रंग डालते
हैं।
प्रश्न 9. नागमती किस लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर है?
उत्तर-
नागमती प्रिय मिलन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. 'बारहमासा' जायसी के किस महाकाव्य से लिया गया है?
(1)
अखरावट
(2) पद्मावत
(3)
रामचरित मानस
(4)
नागमती
प्रश्न 2. 'बारहमासा' में किसके वियोग का वर्णन किया गया है?
(1)
जायसी का
(2)
राजा रत्नसेन का
(3) नागमती का
(4)
पद्मावती का
प्रश्न 3. अगहन मास में दिन और रात की स्थिति कैसी होती है।
(1) दिन छोटे रातें बड़ी होती हैं।
(2)
दिन बड़े रातें छोटी होती है।
(3)
दिन बड़े रातें भी बड़ी होती है।
(4)
दिन छोटे तथा रातें भी छोटी होती है।
प्रश्न 4. अगहन मास में सभी अपने घरों में क्या-क्या तैयारियाँ करने
लगे?
(1)
सभी अपने घरों में पकवान बनाने लगे।
(2) सभी अपने घरों में गरम कपड़े निकालने लगे।
(3)
सभी अपने घरों में रहने लगे
(4)
इनमें से कोई नहीं ।
प्रश्न 5. नागमती का खोया हुआ रूप-रंग कैसे वापिस आ सकता है?
(1)
अपना ध्यान रख कर
(2)
गाँव वालों से बात चीत कर
(3) रत्नसेन के वापस आने पर
(4)
उपर्युक्त सभी
प्रश्न 6. नागमती को कौन-सी आग जला रही थी?
(1) विरह की
(2)
सर्दी की
(3)
गरमी की
(4)
मिलन की
प्रश्न 7. अगहन के बाद कौन-सा महीना आता है ?
(1)
भादो
(2)
आश्विन
(3) पूस
(4)
कार्तिक
प्रश्न 8. चकवा और चकवी का मिलन कब होता है ?
(1)
रात में
(2)
शाम में
(3) दिन में
(4)
कभी-नहीं
प्रश्न 9. नागमती ने विरह को किसकी संज्ञा दी है ?
(1)
साँप की
(2)
कौए की
(3)
चिड़िया की
(4) बाज की
प्रश्न 10. नागमती की हड्डियाँ विरह में कैसी हो गई है ?
(1) शंख की तरह खोखली
(2)
बाज की तरह
(3)
बाँस की तरह खोखली
(4)
उपर्युक्त सभी
प्रश्न 11. माघ महीने में नागमती की क्या स्थिति होती है ?
(1)
आग के समान जलने लगती हैं।
(2) रुई के समान जलने लगती है।
(3)
विरह से जलने लगती है।
(4)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 12. राजा रत्नसेन से बिछड़ने के बाद नागमती कैसे रहती है?
(1)
वह न तो शृंगार करती थी न आभूषण पहनती थी
(2)
वह न रंगीन वस्त्र पहनती थी
(3)
वह वियोग में रहती थी
(4) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 13. नागमती विरह की अग्नि में जलकर क्या बन गयी है?
(1)
अंगारा
(2)
कोयला
(3) राख
(4)
मिट्टी
प्रश्न 14. बारहमासा पाठ के पदों की भाषा कौन-सी है ?
(1)
ब्रज
(2) अवधी
(3)
हरियाणावी
(4)
राजस्थानी हिंदी
प्रश्न 15 'सैचान' शब्द का क्या अर्थ है ?
(1)
कोयल
(2) बाज
(3)
शैतान
(4) सच्चाई
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||