प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
Political Science
अध्याय- 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)
प्रश्न 1. भारत का संविधान कब स्वीकृत किया गया?
A.
1947
B. 1949
C.
1955
D.
1956
प्रश्न 2. किस भाषा के आधार पर 1953 ईस्वी में आंध्र प्रदेश राज्य का
गठन किया गया था?
A. तेलुगू
B.
मलयालम
C.
कन्नड़
D.
तमिल
प्रश्न 3. भारतीय संघ में शामिल होने वाले अंतिम देशी रियासत कौन थी?
A.
जम्मू कश्मीर
B. हैदराबाद
C.
जूनागढ़
D.
बीकानेर
प्रश्न 4. संविधान के किस भाग में भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किया
गया है?
A.
पांचवी अनुसूची
B.
छठी अनुसूची
C.
सातवीं अनुसूची
D. आठवीं अनुसूची
प्रश्न 5. लौह पुरुष के रूप में किसे जाना जाता है?
A.
सुभाष चंद्र बोस
B.
भगत सिंह
C. सरदार वल्लभभाई पटेल
D.
लाला लाजपत राय
प्रश्न 6. देश के विभाजन के समय नोआखाली नामक स्थान चर्चा में क्यों
थी?
A.
भारत पर पाकिस्तानी आक्रमण के कारण
B. सांप्रदायिक दंगों के कारण
C.
महामारी के कारण
D.
भारत एवं पाकिस्तान के बीच जल विवाद के कारण
प्रश्न 7. किस ब्रिटिश योजना के द्वारा भारत के विभाजन का प्रस्ताव
पारित किया गया?
A. माउंटबेटन योजना
B.
कैबिनेट मिशन योजना
C.
क्रिप्स मिशन योजना
D.
शिमला प्रस्ताव
प्रश्न 8. भारत का पहला उप प्रधानमंत्री कौन था?
A. सरदार वल्लभभाई पटेल
B.
चंद्रशेखर
C.
चौधरी चरण सिंह
D.
लालकृष्ण आडवाणी
प्रश्न 9. आंध्र प्रदेश अलग राज्य की मांग को लेकर पोट्टी श्रीरामुलू
की मृत्यु कितने दिनों के भूख हड़ताल के बाद हो गई?
A. 56 दिन
B.
54 दिन
C.
57 दिन
D.
50 दिन
प्रश्न 10. सीमांत गांधी किसे कहा जाता है?
A.
सरदार बल्लभ भाई पटेल
B.
चंद्रशेखर
C. खान अब्दुल गफ्फार खान
D.
जवाहरलाल नेहरू
प्रश्न 11. भारत कब आजाद हुआ?
A.
15 अगस्त 1946
B. 15 अगस्त 1947
C.
26 जनवरी 1950
D.
26 जनवरी 1947
प्रश्न 12. महात्मा गांधी की हत्या कब हुई?
A. 30 जनवरी 1948
B.
30 जनवरी 1947
C.
30 जनवरी 1949
D.
30 जनवरी 1950
प्रश्न 13. हैदराबाद के शासक को किस नाम से जाना जाता था?
A.
राजा
B.
सुल्तान
C.
बादशाह
D. निजाम
प्रश्न 14. मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही
नामक आंदोलन कब चलाया?
A.
1942
B.
1945
C. 1946
D.
1943
प्रश्न 15. आजादी के समय जम्मू कश्मीर का शासक कौन थे?
A. हरि सिंह
B.
शेख अब्दुल्ला
C.
रंजीत सिंह
D.
मुफ्ती महबूबा
प्रश्न 16. संविधान के किस संशोधन के द्वारा 4 भाषाओं- बोडो, डोंगरी,
मैथिली, तथा संथाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया?
A.
42वां संशोधन 1976
B.
44 वां संशोधन 1978
C.
91 वां संशोधन 2002
D. 92 वा संशोधन 2003
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सीमांत गांधी किसे कहा जाता है?
उत्तर-
खान अब्दुल गफ्फार खान
प्रश्न 2. राज्य पुनर्गठन आयोग के प्रथम अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर-
न्यायधीश फजल अली
प्रश्न 3. भारत में किसे लौह पुरुष की संज्ञा दी गई है और क्यों?
उत्तर-
भारत में सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष की संज्ञा दी गई है क्योंकि सरदार पटेल
ने देशी रियासतों के भारत में विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा अद्भुत सूझबूझ
का परिचय दिया।
प्रश्न 4. बल्लभ भाई पटेल को सरदार क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि 1928 के बारदोली सत्याग्रह के समय ग्रामीण महिलाओं
के द्वारा दी गई क्योंकि सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी
भूमिका निभाई थी।
प्रश्न 5. मुस्लिम लीग द्वारा दिया गया द्वि-राष्ट्र सिद्धांत क्या
है?
उत्तर-
मुस्लिम लीग द्वारा दिया गया द्वि-राष्ट्र सिद्धांत एक विभाजनकारी नौति है। इस सिद्धांत
का आशय यह है कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग समुदाय हैं उन दोनों के हित अलग-अलग हैं
अतः वे एक साथ नहीं रह सकते अतः उनके लिए दो अलग-अलग राष्ट्र की जरूरत है।
प्रश्न
6. विलय से पहले जम्मू कश्मीर रियासत के शासक कौन थे?
उत्तर-
हरि सिंह
प्रश्न 7. धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत क्या है?
उत्तर-
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है किसी भी धर्म के लोगों के साथ भेदभाव ना करना। सभी धर्म
के लोगों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी एवं सरकारी नीतियों में धर्म के आधार
पर भेदभाव ना करना, धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत है।
प्रश्न 8. भारत की आजादी से पहले किन्ही तीन देशी रियासतों के नाम लिखें?
उत्तर-
जूनागढ़, हैदराबाद, जम्मू कश्मीर
प्रश्न 9. राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कब हुआ?
उत्तर-
1953 ईस्वी
प्रश्न 10. राज्य पुनर्गठन आयोग के अनुसार 1956 में भारतीय संघ में
कितने राज्य तथा कितने केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया?
उत्तर-
14 राज्य तथा 6 केंद्र शासित प्रदेश
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. द्वि-राष्ट्र सिद्धांत क्या था?
उत्तर-
द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का अर्थ है कि हिंदू और मुसलमान दो अलग- अलग समुदाय हैं, उन
दोनों के हित अलग-अलग हैं, अतः वे एक साथ नहीं रह सकते। उनके लिए दो अलग- अलग राष्ट्र
की जरूरत है। मुस्लिम लीग ने 1946 में अपने लाहौर अधिवेशन में इसी सिद्धांत के आधार
पर मुस्लिम राज्य की मांग कर दी। यह एक विभाजनकारी नीति है।
इसी
के तहत आगे चलकर 1940 ईस्वी में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए प्रत्यक्ष
कार्यवाही के नाम पर व्यापक आंदोलन चलाया। इसकी परिणति हिंदू-मुस्लिम दंगों के रूप
में सामने आई। अंततः इसी का परिणाम था 14 और 15 अगस्त 1947 को विभाजन पाकिस्तान और
भारत के रूप में इसके बाद देश में जगह-जगह दंगे फैल गया और हिंदू और मुसलमान एक दूसरे
के दुश्मन बन गया।
प्रश्न 2. जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय की परिस्थितियों पर प्रकाश
डालिए!
उत्तर-
आजादी के समय जम्मू कश्मीर की जनसंख्या 42 लाख थी जिसमें करीब 76% मुसलमान तथा शेष
हिंदू, सिख, व बौद्ध थे । स्पष्ट तौर पर जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम समुदाय का बहुमत
था तथा पाकिस्तान की सीमा से लगे हुए देशी रियासत भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग रहकर
स्वतंत्र देश बने रहने की नीति अपनाई लेकिन पाकिस्तान किसी भी कीमत पर जम्मू व कश्मीर
को अपने अधीन करना चाहता था। अतः पाकिस्तान के कबाइलों ने पाकिस्तान की फौजियों की
सहायता से 24 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया। जब कश्मीर के महाराजा
ने भारत के सैनिक मदद की गुहार की तो भारत ने यह तर्क देकर सेना भेजने से मना कर दिया
कि महाराजा हरि सिंह पहले विलय पत्र पर हस्ताक्षर करें। अतः 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा
ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए तथा जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन
गया।
प्रश्न 3. हैदराबाद विलय के लिए भारत सरकार को पुलिस कार्यवाही क्यों
करनी पड़ी?
उत्तर-
जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ उस समय हैदराबाद में एक मुस्लिम शासक था, जिसे निजाम
कहा जाता था परंतु वहां की बहुसंख्यक जनता हिंदू थी। वहां के जनता के द्वारा निजाम
के अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया गया। इस आंदोलन में साम्यवादी पार्टी तथा
कांग्रेस पार्टी द्वारा नेतृत्व किया गया। आंदोलन को दबाने के लिए निजाम ने अद्धसैनिक
बलों का प्रयोग किया। अर्धसैनिक बलों ने जनता पर हिंसा एवं अत्याचार का प्रयोग किया
जिससे वहां शांति व्यवस्था बिगड़ गई। भारत सरकार की चेतावनी के बाद जब निजाम ने सरकार
की शर्तें नहीं मानी तो 13 सितंबर 1948 को भारत सरकार द्वारा निजाम के विरुद्ध पुलिस
कार्रवाई की गई। 18 सितंबर 1948 को निजाम की सेनाओं ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण
कर दिया तथा इसी के साथ हैदराबाद भारतीय संघ का अंग बन गया।
प्रश्न 4. राज्य पुनर्गठन आयोग से क्या तात्पर्य है? राज्य पुनर्गठन
अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर-
राज्य पुनर्गठन आयोग से तात्पर्य है कि जब भाषाई आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य के गठन
के बाद अन्य राज्यों में भी भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग जोर पकड़ी। अत:
केंद्र सरकार ने इस समस्या के स्थाई और तर्कसंगत समाधान के लिए 1953 ईस्वी में न्यायाधीश
फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की। इस आयोग में दो अन्य
सदस्य के. एम. पाणिक्कर तथा हृदयनाथ कुंजरू थे।
आयोग
ने विस्तृत अध्ययन के उपरांत 30 सितंबर 1955 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। आयोग ने
सैद्धांतिक तौर पर भाषा को राज्य गठन का आधार मानते हुए निम्न कसौटियों के आधार पर
नए राज्यों के गठन की संस्तुति की-
1.
उस क्षेत्र में भाषाई और सांस्कृतिक एकता की स्थिति क्या है?
2.
प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से नए राज्य का गठन उचित है अथवा नहीं?
3.
नए राज्य का गठन आर्थिक और वित्तीय स्थिति की दृष्टि से उचित है अथवा नहीं?
राज्य
पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया तथा उन्हें लागू करने
के लिए संसद द्वारा 1956 में राज्य में पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया।
प्रश्न 5. लोकतांत्रिक गणराज्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
लोकतांत्रिक गणराज्य का तात्पर्य है कि ऐसा देश जहां देश को सार्वजनिक मामला माना जाता
है। वहां के अध्यक्ष वंशानुगत ना होकर जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं
जो एक निश्चित समय सीमा के लिए चुने जाते हैं और जनता के अनुरूप अगर काम ना करें तो
उन्हें चुनाव के माध्यम से हटा दिया जाता है।
लोकतांत्रिक
राज्य में सत्ता किसी एक व्यक्ति या वंशानुगत तरीके से सत्ता पर काबिज नहीं रहता बल्कि
जनता के द्वारा चुने जाते हैं। अर्थात लोकतांत्रिक राज्य में कोई भी व्यक्ति सत्ता
के शीर्ष पर पहुंच सकता है या देश का अध्यक्ष बन सकता है।
यह
एक सरकार का रूप है जिसके अंतर्गत देश का प्रमुख राजा नहीं बल्कि जनता के द्वारा चुने
और जनता के लिए चुनी गई बहुमत की सरकार है।
प्रश्न 6. कांग्रेस ने भारत के विभाजन के प्रस्ताव को क्यों स्वीकार
किया?
उत्तर-
विभाजन की पृष्ठभूमि की शुरुआत अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति से होती
है। इस नीति का उद्देश्य था कि ब्रिटिश शासन तभी स्थाई हो सकती है जब हिंदू और मुस्लिम
आपस में विभाजित रहे तथा राष्ट्रीय आंदोलन कमजोर बना रहे। 1905 में बंगाल का विभाजन,
1906 में ढाका में ब्रिटिश सहयोग से मुस्लिम लीग की स्थापना, 1909 में मुसलमानों के
लिए केंद्रीय विधानमंडल में सांप्रदायिक आधार पर अलग सीटों का आरक्षण आदि, ब्रिटिश
नीति के प्रमुख अंग थे। ब्रिटिश सरकार ने इस तथ्य को बार-बार रेखांकित किया कि कांग्रेसी
हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करती है तथा मुस्लिम लीग मुसलमानों के हितों का प्रतिनिधित्व
करती है यद्यपि कांग्रेस ने तथा विशेषकर महात्मा गांधी ने हिंदू और मुसलमानों के बीच
एकता स्थापित करने का प्रयास किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
ब्रिटिश
शासन के उक्त विभाजनकारी नीति का तार्किक परिणाम अंत में जिन्ना के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत
के रूप में देखने में आया। इस सिद्धांत का आशय यह है कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग
समुदाय हैं, उन दोनों के हित अलग-अलग हैं, अतः वे एक साथ नहीं रह सकते। उनके लिए दो
अलग अलग राष्ट्र की जरूरत है। मुस्लिम लीग ने 1940 में अपने लाहौर अधिवेशन में इसी
सिद्धांत के आधार पर मुस्लिम राज्य की मांग कर दी। इस मांग को समय-समय पर दोहराया गया
तथा इसे ब्रिटिश सरकार का भी समर्थन प्राप्त था। 1946 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान
की स्थापना के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही के नाम पर व्यापक आंदोलन चलाया। इसकी परिणति
हिंदू-मुस्लिम दंगों के रूप में सामने आई। इसे देखते हुए कांग्रेस ने भारत के विभाजन
के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
प्रश्न 7. विलय पत्र किसे कहते हैं?
उत्तर-
भारत के आजादी के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत सारे देशी रियासतें थी। जिसे भारत
के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों
तथा वार्ता कूटनीति के द्वारा भारतीय क्षेत्र में स्थित अधिकांश रियासतों को भारतीय
संघ में मिलाने में सफलता प्राप्त हुई। इनके लिए एक तरीका अपनाया गया था कि बातचीत
के द्वारा देशी रियासत के शासकों को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए राजी किया जाए।
भारत में शामिल होने के लिए उन्हें एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने होते थे। इस दस्तावेज
को ही विलय पत्र के नाम से जाना जाता था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आज़ादी के बाद भारत में राष्ट्र निर्माण की क्या चुनौतियां
थी? उनके समाधान के लिए क्या उपाय अपनाए गए?
उत्तर-
राष्ट्र निर्माण किसी नए राष्ट्र में एकीकरण, राजनीतिक स्थिरता तथा विकास की सुनियोजित
प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया राष्ट्रीय जीवन के लिए सार्थक कतिपय मूल्यों, विश्वासों
तथा आदर्शों पर आधारित होती है। राष्ट्र निर्माण वैसे भी एक जटिल प्रक्रिया है लेकिन
1947 में आजादी के समय सांप्रदायिक आधार पर देश के विभाजन के कारण इसकी जटिलताएं अधिक
बढ़ गई थी। आजादी के समय भारत में राष्ट्र निर्माण की तीन प्रमुख चुनौतियां उपस्थित
थी:-
1.
राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौती- इसके अंतर्गत विभाजन के बाद देश के विभिन्न
क्षेत्रों विशेषकर विभिन्न देशी रियासतों को भारतीय राष्ट्र के अंतर्गत एकीकृत करना
था। ऐसा करना भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए अत्यंत आवश्यक था। मुख्य चुनौतियां थी
कि भारत की सांस्कृतिक, भाषायी तथा धार्मिक विविधताओं के बावजूद राष्ट्रीय अखंडता को
कैसे संरक्षित किया जाए।
इस
संबंध में नेहरू का दृष्टिकोण उदारवादी था। यह नीति विभिन्नताओं को समाप्त कर एकता
को थोपने की नीति ना होकर विभिन्नताओं का सम्मान करते हुए समायोजन के द्वारा राष्ट्रीय
एकीकरण की नीति थी।
2.
लोकतंत्र को मजबूत बनाने की चुनौती- भारत में ब्रिटेन की तर्ज
पर संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था की गई थी। नए संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों
व स्वतंत्रताओं के साथ-साथ प्रत्येक वयस्क नागरिकों के लिए सार्वभौमिक मताधिकार की
व्यवस्था पहली बार की गई थी। बहुदलीय प्रणाली को अपनाया गया तथा नियमित अंतराल पर स्वतंत्र
व निष्पक्ष चुनाव के संपादन के लिए एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया।
जाति, धर्म तथा अन्य परंपरागत विशेषताओं से युक्त भारतीय सामाजिक परिवेश में नए लोकतंत्र
की सफलता व मजबूती एक गंभीर चिंता का विषय थी।
नेहरू
उदारवादी लोकतंत्र के समर्थक थे उनका विश्वास था कि जैसे-जैसे समानता व न्याय पर आधारित
विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी भारत में लोकतंत्र की जड़ें भी मजबूत होते जाएंगे।
3.
समता व न्याय पर आधारित तीव्र विकास की चुनौती- भारत में राष्ट्र
निर्माण की तीसरी चुनौती विकास की ऐसी प्रक्रिया को सुनिश्चित करना था कि उसका लाभ
केवल कुछ उच्च वर्गों तक सीमित ना होकर समाज के सभी वर्गों को प्राप्त हो सके। संविधान
में कमजोर वर्गों तथा अल्पसंख्यकों के विशिष्ट हितों की रक्षा के साथ-साथ नीति निर्देशक
सिद्धांतों के अंतर्गत एक कल्याणकारी राज्य की व्यवस्था की गई थी।
इस
संबंध में नेहरू लोकतांत्रिक समाजवाद की धारणा से प्रभावित थे। इसके तहत जमींदारी उन्मूलन,
मिश्रित अर्थव्यवस्था तथा उसमें सरकारी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका, योजनागत विकास
प्रक्रिया, कमजोर वर्गों के हितों का संरक्षण आदि उपायों द्वारा समता व न्याय पर आधारित
विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया।
प्रश्न 2. आजादी के समय देशी रियासतों की क्या स्थिति थी? देशी रियासतों
के भारत के विलय में सरदार वल्लभभाई पटेल की योगदान का मूल्यांकन कीजिए!
उत्तर-
सरदार बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों के कारण 15 अगस्त 1947 तक 4 देशी रियासतों मणिपुर,
हैदराबाद, जूनागढ़ तथा जम्मू- कश्मीर को छोड़कर सभी देशी रियासतों ने भारतीय संघ में
शामिल होने की घोषणा कर दी थी। पटेल की सूझ-बूझ तथा प्रयासों से बाद में इन चारों देशी
रियासतों को भी भारतीय संघ में शामिल किया गया। इसका विवरण निम्नलिखित है-
1.
जूनागढ़- जूनागढ़ में बहुसंख्यक जनता हिंदू थी, लेकिन वहां के शासक
मुस्लिम थे। जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराया गया। जिसमें वहां के लोगों ने भारत में
रहने की इच्छा व्यक्त की तथा इस प्रकार जूनागढ़ को 31 दिसंबर 1948 को भारत में शामिल
कर लिया गया।
2.
मणिपुर- मणिपुर के देशी राजा बोधचंद्र सिंह ने 1947 में ही भारतीय
संघ में शामिल होने के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे। लेकिन जनता के दबाव में
आकर उन्होंने जून 1948 में वहां की विधानसभा के चुनाव करा दिए तथा संवैधानिक राजतंत्र
की स्थापना की। वास्तव में आजादी के बाद मणिपुर पहला राज्य था जहां पर सार्वभौमिक मताधिकार
पर चुनाव कराए गए थे। नवनिर्वाचित विधानसभा में भारत के साथ विलय को लेकर विभिन्न समूहों
में तीव्र मतभेद थे। लेकिन भारत सरकार ने मणिपुर के महाराजा को विलय के लिए सहमत कर
लिया तथा विलय संधि पर सितंबर 1949 में हस्ताक्षर किए गए। तब से मणिपुर भारतीय संघ
का अभिन्न अंग बन गया ।
3.
हैदराबाद- यहां भी हिंदू जनसंख्या बहुमत में था लेकिन हैदराबाद का
शासक एक मुस्लिम था जिसे निजाम कहा जाता था। हैदराबाद के निजाम ने 29 नवंबर 1947 को
भारत सरकार के साथ यथास्थिति समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसका तात्पर्य था कि हैदराबाद
की कानूनी स्थिति वही रहेगी जो 15 अगस्त 1947 को थी। इसी बीच हैदराबाद की जनता ने निजाम
के अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया। इस आंदोलन में साम्यवादी पार्टी और कांग्रेस
पार्टी द्वारा नेतृत्व प्रदान किया गया। आंदोलन को दबाने के लिए निजाम ने अर्दधसैनिक
बलों का प्रयोग किया। जनता पर हिंसा व अत्याचार किया गया जिससे वहां की शांति व्यवस्था
बिगड़ गई। भारत सरकार की चेतावनी के बाद जब निजाम ने सरकार की शर्तें नहीं मानी तो
13 सितंबर 1948 को भारत सरकार द्वारा निजाम के विरुद्ध पुलिस कार्यवाही की गई। 18 सितंबर
1948 को निजाम की सेनाओं ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया तथा इसी के साथ
हैदराबाद भारतीय संघ का अंग बन गया।
4.
जम्मू व कश्मीर- यहां मुस्लिम आबादी बहुमत में थी लेकिन यहां
के शासक महाराजा हरि सिंह हिंदू थे तथा यह पाकिस्तान की सीमा से लगी हुई देशी रियासत
थी। राजा हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग रहकर स्वतंत्र देश बने रहने की
नीति अपनाई लेकिन पाकिस्तान किसी भी कीमत पर जम्मू और कश्मीर को अपने अधीन करना चाहता
था। अतः पाकिस्तान के कबाइलों ने पाकिस्तान की फौजियों की सहायता से 24 अक्टूबर
1947 को जम्मू और कश्मीर पर सैनिक हमला कर दिया। जब कश्मीर के महाराजा ने भारत से सैनिक
मदद की गुहार की तो भारत ने यह तर्क देकर सेना भेजने से मना कर दिया कि महाराजा हरि
सिंह पहले विलय पत्र पर हस्ताक्षर करें। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा ने भारत के साथ
विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया तथा जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया।
प्रश्न 3. 1947 में ब्रिटिश इंडिया के विभाजन के किन्ही तीन परिणामों
की व्याख्या कीजिए!
उत्तर-
1947 में ब्रिटिश इंडिया के विभाजन का आधार संप्रदायिक था। मानव इतिहास में इस तरह
के अचानक, अनियोजित तथा व्यापक स्तर पर जनसंख्या के विभाजन का कोई दूसरा उदाहरण उपलब्ध
नहीं है। विभाजन के निम्न परिणाम सामने आए:-
1.
सांप्रदायिक दंगे- जब विभाजन की प्रक्रिया लागू की गई तो कई स्थानों पर सांप्रदायिक
दंगे अधिक तीव्र हो गए। पाकिस्तान में बड़ी संख्या में हिंदू और सिखों की हत्या की
गई । इसी तरह भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की हत्या हुआ। उनके विरुद्ध अत्याचार किए
गए, उनकी संपत्ति लूट ली गई तथा कई अमानवीय अत्याचार भी किए गए जिनमें महिलाओं का अपहरण
तथा उनका धर्म परिवर्तन भी शामिल था।
2.
जनसंख्या का विस्थापन तथा शरणार्थियों की समस्या-
विभाजन के परिणाम स्वरूप करीब 80 लाख जनता का दोनों देशों में विस्थापन हुआ। कई सिख
और हिंदू सदियों से पाकिस्तानी क्षेत्रों में निवास कर रहे थे लेकिन विभाजन के परिणाम
स्वरुप अपनी संपत्ति व जायदाद छोड़कर के भारत चले आए तथा अपने ही देश में शरणार्थी
की स्थिति में आ गए।
इसी
तरह लाखों की तादाद में भारत के मुसलमान अपनी संपत्ति छोड़कर पाकिस्तान को पलायन कर
गए, वहां उन्हें भी विभिन्न शरणार्थी कैंपों में रखा गया था।
वे
रेलगाड़ी, बसों तथा अधिकांशतः पैदल ही पाकिस्तान अथवा भारत की सीमा में गए। उनके साथ
इस दर्द भरी यात्रा में हत्या, लूटपाट व बलात्कार जैसी घटनाएं भी हुई।
3.
भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्ति का विभाजन- इस विभाजन में भारत
और पाकिस्तान के बीच जमीन और जनता का विभाजन ही नहीं हुआ बल्कि दोनों देशों के मध्य
प्रशासनिक उपकरणों, वित्तीय दायित्वों, परिसंपदाओं तथा रक्षा उपकरणों का भी बंटवारा
किया गया। यह कार्य बहुत जटिल था।
4.
अल्पसंख्यकों की समस्या- देश के विभाजन के उपरांत भी दोनों देशों
में अल्पसंख्यकों की समस्या बनी रही। पाकिस्तान में हिंदू और सिख विभाजन के बाद भी
वहां के नागरिक बने रहें । पाकिस्तान को एक मुस्लिम राज्य घोषित करने के बाद उनकी स्थिति
द्वितीय स्तर के नागरिक की हो गई। आज भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को तमाम भेदभाव
और यातनाओं का सामना करना पड़ता है।
दूसरी तरफ भारत में भी विभाजन के बाद बड़ी संख्या में मुसलमान बच गए थे जिन्होंने भारत को ही अपना देश माना। उनकी जनसंख्या विभाजन के बाद देश की कुल जनसंख्या की 12% थी। भारत के संविधान में भारत को पंथनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया तथा अन्य अल्पसंख्यकों की भांति मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भी संविधान में शैक्षणिक व सांस्कृतिक अधिकार प्रदान किए गए। भारत में मुसलमानों के साथ बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार प्रदान किए गए हैं।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
भाग 1 ( समकालीन विश्व राजनीति) | |
भाग 2 (स्वतंत्र भारत में राजनीति ) | |