Class 12 Political Science अध्याय - 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएं Question Bank-Cum-Answer Book

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प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

Political Science

अध्याय - 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएं

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)

1. सन् 1986 में नेशनल फ्रंट ने किस पार्टी को गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतारा ?

a. जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट

b. अकाली दल

c. कांग्रेस

d. कम्युनिस्ट पार्टी

2. शेख अब्दुल्ला की मृत्यु कब हुई ?

a. सन् 1981 में

b. सन् 1982 में

c. सन् 1984 में

d. सन् 1980 में

3. भारत का 29 वां राज्य कौन है ?

a. झारखंड

b.. छत्तीसगढ़

c. उत्तरांचल

d. तेलंगाना

4. जम्मू कश्मीर किस वर्ष तक उग्रवादी आंदोलन की गिरफ्त में आ चुका था ?

a. सन् 1989 तक

b. सन् 1980 तक

c. सन् 1985 तक

d. सन् 1995 तक

5. धारा 370 का संबंध किस प्रदेश से हैं?

a. उत्तर प्रदेश

b. जम्मू और कश्मीर

c. उत्तराखंड

d. बिहार

6. भारतीय आंदोलन में क्षेत्रीयतावादी भावनाओं की सर्वप्रथम और प्रबल आंदोलन किसे माना जाता है?

a. आर्य आंदोलन

b. खालिस्तान आंदोलन

c. द्रविड़ आंदोलन

d. असम आंदोलन

7. सर्वप्रथम किस राज्य ने महिलाओं को पंचायतों में 50% आरक्षण दिया?

a. बिहार

b. पश्चिम बंगाल

c. महाराष्ट्र

d. तमिलनाडु

8. संविधान की किस धारा के तहत कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है?

a. धारा 370

b. धारा 372

c. धारा 374

d. धारा 380

9. डी० एम० के० का संस्थापक कौन था ?

a. सी० अत्रादुर

b. ई० वी० रामास्वामी

c. सर सी० वी० रमन

d. इनमें से कोई नहीं

10. सन् 1920 के दशक में अकाली दल का गठन हुआ जिसके द्वारा कौन सा आंदोलन आरंभ हुआ ?

a. केंद्र में किसानों की मांग का

b. अलग पंजाबी सुबे की गठन का

c. खालिस्तान की मांग का

d. उपरोक्त में कोई नहीं

11. "कश्मीर मुद्दा" भारत और किस देश के बीच एक विवाद है?

a. बांग्लादेश

b. श्रीलंका

c. पाकिस्तान

d. चीन

12. मास्टर तारा सिंह किसके नेता थे?

a. एसजीपीसी

b. एआईएडीएमके

c. एमडीएमके

d. पीडीपी

13. पूर्वोत्तर भारत के सात बहनों में कौन सा राज्य शामिल नहीं है?

a. मणिपुर

b. मिजोरम

c. नागालैंड

d. पंजाब

14. किस भाषा के आधार पर 1953 में आंध्र प्रदेश का गठन हुआ ?

a. तमिल

b. मलयालम

c. कन्नड़

d. तेलुगू

15. नागा राष्ट्रीय परिषद के नेता कौन थे?

a. वी.पी. सिंह

b. लाई डेंगा

c. करुणानिधि

d. अंगमे जापू फ़िज़ो

16. देश में भाषा के आधार पर निम्न में से किस राज्य के गठन की माँग की गई थी ?

a. आंध्र प्रदेश

b. कर्नाटक

c. महाराष्ट्र

d. उपरोक्त सभी

17. हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ निम्न में से किस राज्य में विरोध आंदोलन चला?

a. तमिलनाडु

b. पंजाब

c. हरियाणा

d. गुजरात

18. पंजाबी भाषी लोगों ने अपने लिए अलग राज्य बनाने की माँग कब प्रारंभ की?

a. 1960 के दशक में

b. 1950 के दशक में

c. 1970 के दशक में

d. 1980 के दशक में

19. पंजाब और हरियाणा राज्यों का गठन कब हुआ?

a. 1950 मे

b. 1947 में

c. 1966 में

d. 1977 में

20. जम्मू एवं कश्मीर में निम्न में से कौन-सा क्षेत्र शामिल है?

a. जम्मू

b. कश्मीर

c. लद्दाख

d. उपरोक्त सभी

21. कश्मीर में अधिकतर किस धर्म के लोग रहते हैं?

a. मुस्लिम

b. हिन्दू

c. सिख

d. बौद्ध

22. शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर राज्य का प्रधानमंत्री कब बनाया गया?

a. मार्च 1948

b. अक्टूबर 1947

c. मार्च 1947

d. मार्च 1974

23. पूर्वोत्तर क्षेत्र में कितने राज्य हैं?

a. पांच

b. दो

c. सात

d. ग्यारह

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

1. आजाद कश्मीर क्या है?

उत्तर- 31 दिसम्बर 1948 के भारत-पाक युद्ध विराम के पश्चात् विराम के परिणामस्वरूप जो सेनाएँ जिस क्षेत्र में थीं वही क्षेत्र उनके अधिकार में रह गया। पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला क्षेत्र आजाद कश्मीर कहलाता है।

2. रोजा फिल्म किस पृष्ठभूमि पर बनी थी?

उत्तर- भारत पाकिस्तान विवाद पर ।

3. आपरेशन ब्लू स्टार क्या था?

उत्तर- आपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 1 से 8 जून 1984 को अमृतसर (पंजाब, भारत) स्थित हरमंदिर साहिब परिसर को खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया अभियान था।

4. क्षेत्रवाद और पृथकतावाद में क्या अंतर है?

उत्तर- क्षेत्रवाद क्षेत्रीय आधार पर राजनीतिक, आर्थिक एवं विकास सम्बन्धी मांग उठाना।

पृथकतावाद किसी क्षेत्र का देश से अलग होने की भावना होना य मांग उठाना।

5. स्वायत्तता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- किसी दूसरे के हस्तक्षेप के बगैर व्यक्ति विशेष, संस्था, राज्य का देश के अधिकार क्षेत्र में विषयों और मामलों में स्वतंत्र निर्णय लेना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. क्षेत्रीय असुंतलन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- क्षेत्रीय असंतुलन का आशय है भारत के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों का विकास का एक जैसा नहीं होना है। कुछ राज्यों का आर्थिक विकास दुसरे राज्यों की अपेक्षा बहुत तेजी से हुआ है। परिणामस्वरूप वहाँ के लोगों का जीवन स्तर भी ऊंचा है जबकि कुछ राज्यों का जिनका विकास बहुत कम हुआ है। वहाँ के लोगों का जीवन स्तर भी बहुत निम्न स्तर का है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विकास स्तर और लोगों के जीवन स्तर में पाए जाने वाले अंतर को क्षेत्रीय असंतुलन का नाम दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्य अत्यधिक विकसित हैं जबकि बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश आदि अति पिछड़े हुए क्षेत्र हैं। भारत की भौगोलिक विषमताओं ने क्षेत्रीय असंतुलन पैदा किया है। भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भी क्षेत्रीय अंसतुलन हुई है भारत में एक ओर राजस्थान जैसा मरुस्थल है जो कम उपजाऊ है तो दूसरी ओर पंजाब जैसे उपजाऊ क्षेत्र हैं।

2. मिजोरम के नेता लालडेंगा का परिचय दीजिए।

उत्तर- लालडेंगा का जन्म 1937 में हुआ। वह मिजो नेशनल फ्रंट के संस्थापक और एक ख्याति प्राप्त नेता थे। 1959 में मिजोरम में पड़े भयंकर अकाल और उस समय की असम सरकार द्वारा उस समय के अकाल की समस्या के समाधान में विफल होने के कारण वे देश-विद्रोही बन गए। वे अनेक वर्षों तक भारत के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करते रहे। यह संघर्ष लगभग बीस वर्षों तक चला। वे पाकिस्तान में एक राज्य शरणार्थी के रूप में रहते हुए भी भारत विरोधी गतिविधियाँ चलाते रहे। अंत में वे प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के बुलाने पर स्वदेश लौटे और 1986 में राजीव गाँधी के साथ उन्होंने सुलह की और दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और मिजोरम को नया राज्य बनाया गया। लालडेंगा नवनिर्मित मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री बने ।1990 में उनका निधन हो गया।

3. ई.वी. रामास्वामी नायकर का परिचय संक्षेप में दें।

उत्तर- ई. वी. रामास्वामी नायकर एक तमिल समाज सुधारक थे। इन्हें पेरियार के नाम से भी जाना जाता है। द्रविड़ आंदोलन के प्रणेता के रूप में भी जाने जाते हैं। राजनीतिक जीवन की शुरुवात इन्होंने कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में किए पे "आत्मसम्मान आंदोलन (1925) के जनक थे। उत्तर भारतीय लोग एवम ब्राह्मण द्रविड़ से अलग आर्य है इस मत का भी प्रतिपादन इन्होंने किया।

4. क्षेत्रीयता अथवा क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- क्षेत्रीयता का आशय उस प्रवृति से है जिसके अंतर्गत एक क्षेत्र में रहने वाले लोगों के समान उद्देश्य व आकांक्षाएँ होती हैं। इस प्रकार जब किसी भौगोलिक दृष्टि से पृथक भूखंड में रहने वाले मानव समूह में धार्मिक, सांस्कृतिक भाषायी, आर्थिक-सामाजिक, राजनीतिक तथा ऐतिहासिक आदि दृष्टि से उसी प्रकार के अन्य भूखंड से पृथकता उत्पन्न हो जाती है तथा स्वयं की एकरूपता व समानता का विकास हो जाता है तब उस मानव समूह में अपने क्षेत्रों के हितों के प्रति पैदा हुई जागरूकता को क्षेत्रीयता या क्षेत्रवाद कहा जाता है।

5. "ऑपरेशन विजय का संक्षिप्त विवरण दें।

उत्तर- भारत ने गोवा की आजादी के लिए एक सैनिक कार्यवाही चलाई ताकि गोवा के साथ-साथ दमन दीव को पुर्तगालियों के अत्याचारी शासन से छुड़ाया जा सके। इसे ऑपरेशन विजय कहा गया।

ऑपरेशन विजय नामक कार्यवाही 17-18 दिसंबर, 1961 को शुरु की गई। इस कार्यवाही के कमांडर जनरल जे. एन. चौधरी थे। 19 दिसंबर, 1961 को 'ऑपरेशन विजय नामक कार्यवाही समाप्त हो गई।

यह कार्यवाही भारतीय स्वतंत्रता को पूर्ण करने वाली कार्यवाही थी। गोवा, दमन, दीव हवेली आदि में भारत का तिरंगा फहराया गया निःसंदेह गोवा की स्वतंत्रता ने भारतीयों का स्वाभिमान बढ़ाया और उन्हें सुशोभित किया। वे भारत के अंग बन गए। भारत की भूमि से विदेशियों की अनाधिकृत उपस्थिति और वर्चस्व पूर्णतया समाप्त हो गया

6. अंगमी जापू फिजो कौन थे? संक्षेप में परिचय दीजिए।

उत्तर- अंगमी जापू फिजो का जन्म 1904 ई. में हुआ। वे पूर्वोत्तर भारत में नागालैंड की आज़ादी के आंदोलन के नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे नागा नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष बने उन्होंने नागालैंड को भारत से अलग देश बनाने के लिए भारत सरकार के विरुद्ध अनेक वर्षों तक सशस्त्र संघर्ष चलाया। उन्होंने पाकिस्तान में शरण ली और अपने जीवन के अंतिम तीन वर्ष ब्रिटेन में गुजारे। 1990 ई. में उनका निधन हो गया। आज भी नागा समस्या देश के समक्ष है।

7. काजी लैंप दोरजी खांगसरपा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर- काजी लैंप दोरजी खांगसरपा का जन्म 1904 ई. में हुआ। वे सिक्किम के इतिहास में लोकतंत्र की स्थापना के आंदोलन के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे सिक्किम प्रजामंडल एवं सिक्किम राज्य कांग्रेस के संस्थापक थे। 1962 ई में उन्होंने सिक्किम नेशनल कांग्रेस की स्थापना की। सिक्किम में हुए आम चुनाव में काजी तेंदुप को विजय मिली। इस विजय के उपरांत उन्होंने सिक्किम के भारत में विलय का पुरजोर समर्थन किया। कालांतर में सिक्किम की विधान सभा ने जनमत कराया। जनमत में भी भारत-सिक्किम का समर्थन किया। सिक्किम के विलय के बाद काजी लैंप दोरजी खांगसरपा ने अपनी सिक्किम कांग्रेस पार्टी का विलय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में किया.

8. आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे?

उत्तर- 1970 के दशक में अकालियों को कांग्रेस पार्टी से पंजाब में चिढ़ हो गई क्योंकि वह सिख और हिन्दू दोनों धर्मों के दलितों के बीच अधिक समर्थन प्राप्त करने में सफल हो गई थी। इसी दशक में अकालियों के एक समूह ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठाई। 1973 में, आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित हुआ। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में क्षेत्रीय स्वायत्तता की बात उठायी गई थी। प्रस्ताव की माँगों में केन्द्र-राज्य संबंधों को पुनर्परिभाषित करने की बात भी शामिल थी। इस प्रस्ताव में सिख कौम (नेशन या समुदाय की आकांक्षाओं पर जोर देते हुए सिखों के बोलबाला (प्रभुत्व या वर्चस्व) का ऐलान किया गया। यह प्रस्ताव संघवाद को मजबूत करने की अपील करता है लेकिन इसे एक अलग सिख राष्ट्र की माँग के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।

9. द्रविड़ आंदोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर- द्रविड आन्दोलन :-

दक्षिण भारत के इस आन्दोलन का नेतृत्व तमिल समाज सुधारक ई.वी. रामास्वामी नायकर पेरियार ने किया ।

इस आन्दोलन ने उत्तर भारत के राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभुत्व, ब्राहमणवाद व हिन्दी भाषा का विरोध तथा क्षेत्रीय गौरव बढ़ाने पर जोर दिया। इसे दूसरे दक्षिणी राज्यों में समर्थन न मिलने पर यह तमिलनाडु तक सिमट कर रह गया।

इस आन्दोलन के कारण एक नये राजनीतिक दल द्रविड कड़गम" का उदय हुआ। यह दल कुछ वर्षों के बाद दो भागो (D. M.K. एवं A. I.D. M. K.) में बंट गया। ये दोनों दल अब तमिलनाडु की राजनीति में प्रभावी है।

10. पंजाब समझौता कब और किसके बीच हुआ?इसके मुख्य प्रावधानों को लिखें।

उत्तर- पंजाब समझौता जुलाई 1985 में अकाली दल के अध्यक्ष हर चन्द सिंह लोगोवाल तथा राजीव गांधी के बीच हुई। इस समझौते ने पंजाब में शान्ति स्थापना के प्रयास किये।

पंजाब समझौते के प्रमुख प्रावधान:-

* चण्डीगढ पंजाब को दिया जायेगा ।

* पंजाब हरियाणा सीमा विवाद सुलझाने के लिए आयोग की नियुक्ति होगी।

* पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के बीच रावी व्यास के पानी बंटवारे हेतु न्यायाधिकरण गठित किया जायेगा।

* पंजाब में उग्रवाद प्रभावित लोगों को मुआवजा दिया जायेगा।

* पंजाब से विशेष सुरक्षा बल अधिनियम ।

11. आजादी के बाद से अब तक उभरी क्षेत्रीय आकांक्षाओं से हमें क्या सबक मिलती है?

उत्तर- आजादी के बाद से अब तक उभरी क्षेत्रीय आकांक्षाओं से हमें निम्नलिखित सबक मिलती है।

a. क्षेत्रीय आकांक्षाये लोकतान्त्रिक राजनीति की अभिन्न अंग है।

b. क्षेत्रीय आकाक्षाओं को दबाने की बजाय लोकतान्त्रिक बातचीत को अपनाना अच्छा होता है।

c. सत्ता की साझेदारी के महत्व को समझना ।

d. क्षेत्रीय असन्तुलन पर नियन्त्रण रखना ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. जम्मू-कश्मीर की अंदरुनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए और बताइए कि इन विभिन्नताओं के कारण इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सर उठाया है?

उत्तर-

(i) जम्मू-कश्मीर की अंदरुनी विभिन्नताएँ: जम्मू एवं कश्मीर में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र शामिल हैं- जम्मू कश्मीर और लद्दाखा कश्मीर घाटी को कश्मीर के दिल के रूप में देखा जाता है। कश्मीरी बोली बोलने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं। बहरहाल, कश्मीरी भाषी लोगों में अल्पसंख्यक हिन्दू भी शामिल है। जम्मू क्षेत्र पहाड़ी तलहटी एवं मैदानी इलाके का मिश्रण है। जहाँ हिन्दू मुस्लिम और सिख यानी कई धर्म और भाषाओं के लोग रहते हैं। लद्दाख पर्वतीय इलाका है, जहाँ बौद्ध एवं मुस्लिमों की आबादी है, लेकिन यह आबादी बहुत कम है।

(ii) मुद्दे का स्वरूपः कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच सिर्फ विवाद भर नहीं है। इस मुद्दे के कुछ बाहरी तो कुछ भीतरी पहलू हैं। इसमें कश्मीरी पहचान का सवाल जिसे कश्मीरियत के रूप में जाना जाता है, शामिल है। इसके साथ ही साथ जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्वायत्तता का मसला भी इसी से जुड़ा हुआ है।

(iii) अनेक आकांक्षाओं का सिर उठानाः

(क) धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने की शेख अब्दुल्ला की आकांक्षाः 1947 से पहले जम्मू एवं कश्मीर में राजशाही थी। इसके हिन्दू शासक हरि सिंह भारत में शामिल होना नहीं चाहते थे और उन्होंने अपने स्वतंत्र राज्य के लिए भारत और पाकिस्तान के साथ समझौता करने की कोशिश की। पाकिस्तानी नेता सोचते थे कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है, क्योंकि राज्य की ज्यादातर आबादी मुस्लिम है। बहरहाल यहाँ के लोग स्थिति को अलग नजरिए से देखते थे। वे अपने को कश्मीरी सबसे पहले कुछ और बाद में मानते थे। राज्य में नेशनल कांफ्रेंस के शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में जन- आंदोलन चला। शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि महाराजा पद छोड़ें, लेकिन वे पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे। नेशनल कांफ्रेंस एक धर्मनिरपेक्ष संगठन था और इसका कांग्रेस के साथ काफी समय तक गठबंधन रहा।

(ख) जम्मू-कश्मीर के आक्रमणकारियों से प्रतिरक्षा कराने की आकांक्षा, चुनाव और लोकतंत्र स्थापना की आकांक्षाः अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठियों को अपनी तरफ से कश्मीर पर कब्जा करने भेजा। ऐसे में महाराजा भारतीय सेना से मदद माँगने को मजबूर हुए। भारत ने सैन्य मदद उपलब्ध कराई और कश्मीर घाटी से घुसपैठियों को खदेड़ा। इससे पहले भारत सरकार ने महाराजा से भारत संघ में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए। इस पर सहमति जताई गई कि स्थिति सामान्य होने पर जम्मू-कश्मीर की नियति का फैसला जनमत सर्वेक्षण के द्वारा होगा। मार्च 1948 में शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रधानमंत्री बने (राज्य में सरकार के मुखिया को तब प्रधानमंत्री कहा जाता था) भारत, जम्मू एवं कश्मीर की स्वायत्तता को बनाए रखने पर सहमत हो गया। इसे संविधान में धारा 370 का प्रावधान करके संवैधानिक दर्जा दिया गया।

2. कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं? इनमें कौन-सा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर- कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्षः जम्मू- कश्मीर राज्य की अधिक स्वायत्तता की माँग के भी दो पहलू है। पहला यह कि समस्त राज्य को केन्द्र के अत्यधिक नियंत्रण से मुक्ति मिले और उसे अपने आंतरिक मामलों में अधिक से अधिक आजादी मिले और वह अपने निर्णय बिना केंद्रीय हस्तक्षेप के कर सके तथा उन्हें लागू कर सके। धारा 370 को पूरी तरह लागू किया जाए।

स्वायत्तता के संबंध में एक दृष्टिकोण और भी है और वह जम्मू- कश्मीर की आंतरिक स्वायत्तता से संबंधित है। जम्मू-कश्मीर के अंदर भी विभिन्न आधारों पर क्षेत्रीय विभिन्नताएँ हैं और इसके तीन क्षेत्र अपनी अलग- अलग पहचान रखते हैं। कश्मीर घाटी, जम्मू तथा लद्दाख के क्षेत्र। जम्मू तथा लद्दाख के लोगों का आरोप है कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने सदा ही उनके हितों की अनदेखी की है और ध्यान कश्मीर घाटी के विकास की ओर लगाया है तथा इन दोनों क्षेत्रों का कुछ भी विकास नहीं हुआ है। अतः इन क्षेत्रों को भी जम्मू-कश्मीर की सरकार के नियंत्रण से मुक्ति मिलनी चाहिए और इन्हें आंतरिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए। इसी माँग के संदर्भ में लद्दाख स्वायत परिषद की स्थापना की गई थी। आजादी के बाद से ही जम्मू एवं कश्मीर की राजनीति हमेशा विवादग्रस्त एवं संघर्षयुक्त रही। इसके बाहरी एवं आंतरिक दोनों कारण हैं। कश्मीर समस्या का एक कारण पाकिस्तान का रवैया है। उसने हमेशा यह दावा किया है कि कश्मीर घाटी पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। 1947 में इस राज्य में पाकिस्तान ने कबायली हमला करवाया। इसके परिणामस्वरूप राज्य का एक हिस्सा पाकिस्तानी नियंत्रण में आ गया। भारत ने दावा किया कि यह क्षेत्र का अवैध अधिग्रहण है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को 'आजाद कश्मीर कहा। 1947 के बाद कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष एक बड़ा मुद्दा रहा है। आंतरिक रूप से देखें तो भारतीय संघ में कश्मीर की हैसियत को लेकर विवाद रहा है। कश्मीर को संविधान में धारा 370 के तहत विशेष दर्जा दिया गया है। धारा 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा स्वायत्तता दी गई है। राज्य का अपना संविधान है। भारतीय संविधान की सारी व्यवस्थाएँ इस राज्य में लागू नहीं होतीं। संसद द्वारा पारित कानून राज्य में उसकी सहमति के बाद ही लागू हो सकते हैं।

इस विशेष स्थिति से दो विरोधी प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। लोगों का एक समूह मानता है कि इस राज्य को धारा 370 के तहत प्राप्त विशेष दर्जा देने से यह भारत के साथ पूरी तरह नहीं जुड़ पाया है। यह समूह मानता है कि धारा 370 को समाप्त कर देना चाहिए और जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की तरह ही होना चाहिए। दूसरा वर्ग (इसमें ज्यादातर कश्मीरी हैं) विश्वास करता है कि इतनी भर स्वायत्तता पर्याप्त नहीं है। कश्मीरियों के एक वर्ग ने तीन प्रमुख शिकायतें उठायी हैं। पहला यह कि भारत सरकार ने वायदा किया था कि कबायली घुसपैठियों से निपटने के बाद जब स्थिति सामान्य हो जाएगी तो भारत संघ में विलय के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया जाएगा। इसे पूरा नहीं किया गया। दूसरा, धारा 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा पूरी तरह से अमल में नहीं लाया गया।

3. पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के कारण बन सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर- पंजाब समझौता: राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अकाली दल के नरमपंथी नेताओं से बातचीत शुरू की और सिक्ख समुदाय को शांत करने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल और राजीव गांधी के बीच समझौता हुआ। इसे पंजाब समझौता भी कहा जाता है। इसके आधार पर अकाली दल 1985 में होने वाले चुनावों में भाग लेने को तैयार हुआ।

पंजाब में स्थिति को सामान्य बनाने की और यह एक महत्त्वपूर्ण कदम था। इसकी प्रमुख बातें निम्नलिखित थीं-

(i) चंडीगढ़ पर पंजाब का हक माना गया और यह आश्वासन दिया गया कि यह शीघ्र ही पंजाब को दे दिया जाएगा।

(ii) पंजाब और हरियाणा के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग आयोग स्थापित किया जाएगा।

(iii) रावी और व्यास के पानी को पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच बँटवारा करने के लिए एक न्यायाधिकरण (Tribu nal) बैठाया जाएगा।

(iv) सरकार ने वचन दिया कि वह भविष्य में सिक्खों के साथ बेहतर व्यवहार करेगी और उन्हें राष्ट्रीय धारा में किए गए उनके योगदान के आधार पर सम्मानजनक स्थिति में रखा जाएगा।

(v) सरकार दंगा पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा भी देगी और दोषियों को दंड दिलवाए जाने का पूरा प्रयास करेगी।

1985 के चुनावों में अकाली दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और इसकी सरकार बनी। परन्तु कुछ समय बाद अकाली दल में दरार पैदा हुई और प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में एक गुट इससे अलग हो गया तथा वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। राजीव गाँधी और लोगोवाल के समझौते के बाद भी पंजाब की स्थिति सामान्य नहीं हुई और वहाँ उग्रवादी तथा हिंसात्मक गतिविधियाँ चलती रहीं। 1991 के लोकसभा चुनावों के समय स्थिति सामान्य बनाने के लिए सरकार ने फरवरी 1992 में विधानसभा के चुनाव भी करवाए परन्तु अकाली दल समेत अन्य दलों ने इन चुनावों का बहिष्कार किया। आतंकवादियों ने भी लोगों को मतदान न करने की धमकी दी। 1992 के चुनावों में पंजाब में कुल 24 प्रतिशत मतदान हुआ था। पंजाब में 1990 के शतक के मध्य के बाद ही स्थिति सामान्य होने लगी। सुरक्षा बलों ने उग्रवाद को दबाया और इसके कारण 1997 के चुनाव कुछ सामान्य स्थिति में हुए माहौल कांग्रेस के विरुद्ध था और अकाली दल ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन किया था। अतः अकाली दल के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनी। परन्तु 2002 के विधान सभा चुनाव में अकाली दल सत्ताहीन हुआ और 2007 के चुनाव में फिर से सत्ता में आया। इस प्रकार पंजाब में हिंसा का चक्र लगभग एक दशक तक चलता रहा। पंजाब की जनता को उग्रवादी गुटों के कारण हिंसा का शिकार होना पड़ा। नवंबर 1984 में सिख समुदाय को सिक्ख विरोधी दंगों का शिकार होना पड़ा। मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन हुआ। डर और अनिश्चय की स्थिति ने वहाँ की व्यापारिक गतिविधियों पर बुरा प्रभाव डाला। 1980 के बाद एक समय ऐसा आया था जबकि पंजाब के बड़े-बड़े उद्योगपति वहाँ से पलायन करके हरियाणा आदि राज्यों में आने लगे थे। उप्रवाद ने पंजाब की आर्थिक दशा पर विकास गतिविधियों पर, वहाँ की खुशहाली पर बुरा प्रभाव डाला था। लोंगोवाल का भी वध हुआ था। पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री वे अंतसिंह की भी सचिवालय में हत्या की गई। आजकल पंजाब में स्थित सामान्य कही जा सकती है।

4. भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता में एकता' के सिद्धांत की अभिव्यक्ति होती हैं। क्या आप इस कथन सहमत हैं? तर्क दीजिए।

उत्तर- क्षेत्रीय माँगों से विविधता में एकता की अभिव्यक्ति भारत एक बहुलवादी समाज है और कई प्रकार की विविधताओं वाला राष्ट्र है। ये विविधताएँ भाषा, धर्म क्षेत्र आदि के आधार पर बनी हुई हैं। इनके कारण क्षेत्रीय आकांक्षाएँ उभरती रहती हैं, बढ़ती रहती हैं। सभी क्षेत्रों की माँगें एक समान नहीं होतीं, कई बार वे एक-दूसरे की विरोधी भी होती है जैसे कि किसी नदी के जल के बँटवारे से संबंधित विवाद, किसी बड़े उद्योग, को किस राज्य या क्षेत्र में लगाया जाए इस के संबंध में विवाद आदि। कभी अलगाववादी क्षेत्रीय माँग भी उभर आती है। परंतु इन विविधताओं के होते हुए भी राष्ट्रीय एकता बनी हुई है।

अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की अलग पहचान है। भारत की एक अलग संस्कृति है जिसमें अहिंसा, विश्वशांति, विश्वबंधुत्व आदि प्रमुख विशेषताएँ हैं। भारत के अंदर बेशक कोई कहे कि वह पंजाबी है या बंगाली है, मराठी है या गुजराती है, भाषा के आधार पर राज्यों के निर्माण के लिए आंदोलन किए हैं, नदी जल बँटवारे को लेकर दो या तीन राज्यों के बीच संघर्ष हुए हैं, परंतु अब जब दो भारतीय अमेरिका या कनाडा, इंग्लैंड या पेरिस में एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं तो उनमें यह भावना सबसे पहले प्रकट होती है कि हम भारतीय है। विदेशों में सभी भारतीय एकजुट होकर भारतीय राष्ट्र का अंग होने और राष्ट्रीय सम्मान तथा हितों की रक्षा के लिए एकता का उदाहरण रखते हैं। भारत-पाक युद्धों के दौरान भारत के सभी दलों, सभी वर्गों, सभी क्षेत्रों के लोगों के लोगों ने राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया और उसकी रक्षा के लिए सरकार को पूरा समर्थन दिया । जव 1962 में चीन ने नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) पर आक्रमण किया था तो गुजराती भी यह समझता था कि यह आक्रमण उस पर हुआ है, मद्रासी भी यही समझता था, उत्तर प्रदेश में रहने वाला नागरिक भी यही समझता था। अतः क्षेत्रीय माँगों से भारतीय राष्ट्र के विभाजन का अनुमान नहीं होता बल्कि विविधता में एकता का ज्ञान होता है।

5. भारतीय लोकतंत्र पर पृथकतावाद के कुप्रभावों को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर- भारतीय लोकतंत्र पर पृथकतावादी प्रवृत्तियों के काफी बुरे प्रभाव पड़े हैं-

(i) राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खतराः पृथकतावाद देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है। क्षेत्रीय भावना आने पर क्षेत्र के लोग हिंसात्मक तथा विध्वसात्मक गतिविधियों में लग जाते हैं। ऐसे समय लोग अपने को अलग करने के लिए विदेशी शक्तियों से सहायता लेने से भी नहीं हिचकिचाते।

(ii) समाज-विरोधी तत्वों को बढ़ावा: पृथकतावाद से समाज विरोधी गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलता है। हिंसात्मक आंदोलनों और राजनीतिक अनिश्चितता के वातावरण में स्वार्थी तथा समाज-विरोधी तत्व अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते हैं। सांप्रदायिक दंगे भी भड़का दिए जाते हैं और हर ओर अराजकता का माहौल दिखाई देने लगता है और कानून व्यवस्था और अधिक बिगड़ जाती है।

(iii) जीवन और संपत्ति की हानिः पृथकतावादी गतिविधियों से लोगों का जीवन और संपत्ति सुरक्षित नहीं रहते। कितने ही बेगुनाह व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और आंदोलनों में संपत्ति स्वाहा हो जाती है। आंदोलनकारी केवल सरकारी संपत्ति, सरकारी बसों और कारखानों को ही हानि नहीं पहुँचाते बल्कि आम लोगों की संपत्ति, कारें, स्कूटर, बिल्डिंग आदि को भी हानि पहुँचाते हैं। इन सबसे राष्ट्र को बहुत भारी आर्थिक हानि सहन करनी पड़ती है।

(iv) आर्थिक प्रगति को धक्काः पृथकतावादी प्रवृत्ति के वातावरण में राष्ट्र की आर्थिक प्रगति का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जितने दिन कश्मीर और पंजाब में आतंकवादी वातावरण रहा, वहाँ लोगों का काम धंधा व्यापार और उद्योग सब ठप्प हो गए। उद्योपतियों ने दूसरे राज्यों में काम- धंधे शुरू कर दिए। व्यापार के लिए शांति और व्यवस्था का वातावरण चाहिए।

6. भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों अथवा क्षेत्रों में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की उत्पत्ति और विकास के कारणों की चर्चा कीजिए।

उत्तर- भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों अथवा क्षेत्रों में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की उत्पत्ति और विकास के कई कारण उत्तरदायी रहे हैं जैसे-

(i) उत्तर-पूर्व के ये राज्य मुख्य राष्ट्र से कुछ अलग से रहे हैं। 22 मील लंबी एक पतली सी राहदारी इस क्षेत्र को शेष भारत से जोड़ती है। इस कारण ये क्षेत्र आरंभ से अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं। विभाजन के कारण भारत और इन क्षेत्रों के बीच पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्ला देश) आ टपका जिससे ये भारत से अलग-थलग से पड़ गए।

(ii) इस क्षेत्र में अलग-अलग इलाकों में बहुत-सी आदिम जातियाँ या कबीले स्थित हैं और वे सभी अलग-अलग पहचान रखते रहे हैं। उनकी अलग पहचान उनकी भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाजों आदि के आधार पर रही है और आज भी है।

(iii) इन क्षेत्रों में आवागमन के साधनों तथा संचार के साधनों का पूरी तरह विकास नहीं हुआ और शेष भारत के लोग इन इलाकों में बहुत कम आते-जाते रहे हैं। इसका कारण यह भी रहा है कि यहाँ आवागमन के साधन सुविधाजनक नहीं हैं और लोग इन इलाकों में आना-जाना सुरक्षित भी महसूस नहीं करते।

(iv) उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों का विकास भी वैसा नहीं हुआ है जैसा कि देश के शेष भागों में हुआ है। वहाँ के लोगों का आरोप है कि केन्द्रीय सरकार ने इन क्षेत्रों के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया है और वे सरकार की भेदभावपूर्ण नीति के शिकार रहे हैं, वे अपने को क्षेत्रीय असंतुलन से प्रभावित मानते हैं।

(v) इन क्षेत्रों में जब बाहरी लोगों अथवा दूसरे राज्यों से आकर उद्योगपतियों ने उद्योग लगाए और उनमें उच्च पदों पर दूसरे राज्य के लोगों की नियुक्ति हुई और इस क्षेत्र के लोगों को केवल छोटे कार्यों और छोटे पदों पर रखा गया तो इनमें यह भावना पैदा हुई कि बाहरी लोग इस क्षेत्र के संसाधनों का प्रयोग करके मालामाल हो रहे हैं और यहाँ के लोगों की दशा में विशेष सुधार नहीं होता तो इन्होंने बाहरी लोगों के आगमन का विरोध किया और उन्हें अपने क्षेत्रों से निकाले जाने के आंदोलन किए।

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

भाग 1 ( समकालीन विश्व राजनीति)

अध्याय - 01

शीत युद्ध का दौर

अध्याय - 02

दो ध्रुवीयता का अंत

अध्याय - 03

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

अध्याय - 04

सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र

अध्याय - 05

समकालीन दक्षिण एशिया

अध्याय - 06

अंतर्राष्ट्रीय संगठन

अध्याय - 07

समकालीन विश्व में सुरक्षा

अध्याय - 08

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

अध्याय - 09

वैश्वीकरण

भाग 2 (स्वतंत्र भारत में राजनीति )

अध्याय - 01

राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

अध्याय 02

एक दल के प्रभुत्व का दौर

अध्याय - 03

नियोजित विकास की राजनीति

अध्याय - 04

भारत के विदेश संबंध

अध्याय - 05

कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

अध्याय - 06

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

अध्याय - 07

जन आंदोलनों का उदय

अध्याय - 08

क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

अध्याय - 09

भारतीय राजनीति नए बदलाव

Solved Paper of JAC Annual Intermediate Examination - 2023

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