Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 काव्य-खंड पाठ 11. हँसी की चोट, सपना, दरबार

Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 काव्य-खंड पाठ 11. हँसी की चोट, सपना, दरबार

 Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 काव्य-खंड पाठ 11. हँसी की चोट, सपना, दरबार

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Class - 11 Hindi Elective

अंतरा भाग -1 काव्य-खंड

पाठ 11. हँसी की चोट, सपना, दरबार

कवि-परिचय [देव (सन् 1673-1767)]

महाकवि देव का जन्म इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका 1. पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। औरंगजेब के पुत्र आलमशाह के संपर्क में आने के बाद देव ने अनेक आश्रयदाता बदले, किंतु उन्हें सबसे अधिक संतुष्टि भोगीलाल नाम के सहृदय आश्रयदाता के यहाँ प्राप्त हुई, जिसने उनके काव्य से प्रसन्न होकर उन्हें लाखों की संपत्ति दान की। अनेक आश्रयदाता राजाओं, नवाबों, धनिकों से संबद्ध रहने के कारण राजदरबारों का आडंबरपूर्ण और चाटुकारिता भरा जीवन देव ने बहुत निकट से देखा था। इसीलिए उन्हें ऐसे जीवन से वितृष्णा हो गई थी।

रीतिकालीन कवियों में देव बड़े प्रतिभाशाली कवि थे। दरबारी अभिरुचि से बंधे होने के कारण उनकी कविता में जीवन के विविध दृश्य नहीं मिलते, किंतु उन्होंने प्रेम और सौंदर्य के मार्मिक चित्र प्रस्तुत किए हैं। अनुप्रास और यमक के प्रति देव में प्रबल आकर्षण है। अनुप्रास द्वारा उन्होंने सुंदर ध्वनिचित्र खींचे हैं। ध्वनि-योजना उनके छंदों में पग-पग पर प्राप्त होती है। श्रृंगार के उदात रूप का चित्रण देव ने किया है।

देव कृत कुल ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है। उनमें 'रसविलास', 'भावविलास', 'भवानीविलास', 'कुशलविलास', 'अष्टयाम', 'सुमिलविनोद', 'सुजानविनोद', 'काव्यरसायन', 'प्रेमदीपिका' आदि प्रमुख है।

देव के कवित्त-सवैों में प्रेम और सौंदर्य के इंद्रधनुषी चित्र मिलते हैं। उनके सवैयों और कवियों में एक ओर जहाँ रूप- सौंदर्य का आलंकारिक चित्रण हुआ है, वहीं रागात्मक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी संवेदनशीलता के साथ हुई है।

पाठ परिचय

हँसी की चोट विप्रलंभ श्रृंगार का अच्छा उदाहरण है। कृष्ण के मुँह फेर लेने से गोपियों हँसना ही भूल गई हैं। वे कृष्ण को खोज-खोज कर हार गई है। अब तो वे कृष्ण के मिलने की आशा पर ही जीवित हैं। उनके शरीर के पंचतत्त्वों में से अब केवल आकाश तत्त्व ही शेष रह गया है।

सपना में कृष्ण स्वप्न में गोपी को अपने साथ झूला झूलने को कहते हैं तभी गोपी की नींद टूट जाती है और उसका स्वप्न खंडित हो जाता है। इसमें संयोग-वियोग का मार्मिक चित्रण हुआ है।

दरबार में पलनशील और निष्क्रिय सामंती व्यवस्था पर देव ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोतर

1. हँसी की चोट' सवैये में कवि ने किन पंच तत्त्वों का वर्णन किया है तथा वियोग में वे किस प्रकार विदा होते हैं?

उत्तरः 'हँसी की चोट' सवैये में कवि ने वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी एवं आकाश इन पाँच तत्त्वों का वर्णन किया है। प्रस्तुत सवैया गोपी के विरह भाव पर आधारित है जहाँ कृष्ण के मुख फेर लेने पर गोपी के शरीर से एक-एक करके सभी तत्त्व विदा लेते हैं, केवल प्रिय मिलन की आस में आकाश तत्त्व ही शेष रह जाता है। गोपी कहती है कि जिस दिन से कृष्ण ने मुख फेर लिया है उस दिन से मेरी साँसों से वायु चली गई है। उनके वियोग में मेरी आँखों से निरंतर अश्रु प्रवाह होने के कारण शरीर का सारा जल निकल गया है। प्रिय वियोग में शारीरिक कांति अर्थात तेज़ के जाने से अग्नि तत्त्व भी चला गया है। कृष्ण के वियोग में शरीर इतना क्षीण हो गया है मानों इसकी स्थूलता अर्थात भूमि तत्त्व ही समाप्त हो गया हो। केवल कृष्ण से मिलने की आशा में आकाश तत्त्व ही शरीर में शेष रह गया है।

2. नायिका सपने में क्यों प्रसन्न थी और वह सपना कैसे टूट गया?

उत्तरः- 'सपना कवित्त' में नायिका के स्वप्न का वर्णन करते हुए कवि देव लिखते हैं कि गोपी यह सपना देखती है कि मनभावन मौसम में आकाश में घने काले बादल छाए हुए हैं और झर-झर की ध्वनि के साथ बूँदे बरस रही हैं। ऐसे में कृष्ण आकर गोपी से झूला झूलने के लिए कहते हैं। सपनें में उसे कृष्ण मिलन की प्रसन्नता थी। गोपी जैसे ही झूला झूलने के लिए उठना चाहती है उसकी नींद टूट जाती है। उसका मिलन अधूरा रह जाता है। इस प्रकार गोपी के जागते ही उसके भाग्य सो जाते हैं। जो बूँदै स्वप्न में बादलों से वर्षा के रूप में गिर रही थीं, वे अब गोपी की आँखों में आँसू बनकर छा जाते हैं।

3. 'सपना' कवित्त का भाव सौंदर्य लिखिए।

उत्तरः 'सपना' कवित्त में गोपी के सपने के प्रसंग का वर्णन हुआ है। काव्यनायिका गोपी स्वप्न देख रही थी कि बाँदल छाए हुए हैं और हल्की हल्की बूँदें बरस रही हैं। तभी कृष्ण आकर उससे झूला झूलने का आग्रह करने लगे। कृष्ण से मिलन का अवसर पाकर नायिका खुशी से फूली नहीं समा रही थी। परंतु झूला झूलने के लिए उठने का प्रयास करते ही उसकी आँख खुल गई। उसने देखा कि वहाँ न तो बादल थे और न ही उसके प्रियतम श्रीकृष्ण। वह अत्यंत दुखी हो उठी और विरह वेदना के कारण उसकी आँखों में आँसू भर आए।

4. 'दरबार' सवैये में किस प्रकार के वातावरण का वर्णन किया गया है?

उत्तर:- 'दरबार' सवैये में तत्कालीन समाज और दरबारी वातावरण में भोग-विलास की प्रबल प्रवृत्ति का वर्णन हुआ है। इस कविता में कवि देव ने लिखा है कि राजा, दरबारी, सभासद सभी लोग भोग विलास में डूबे हुए हैं। सारे ही अकर्मण्य हो चुके हैं। कोई किसी की बात सुनना- समझना नहीं चाहता। उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है। वे स्वच्छंद नट की तरह रात-दिन नाचते फिरते हैं अर्थात् भोग-विलास के पीछे पागल बने हुए हैं।

5. दरबार में गुणग्राहकता और कला की परखता को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है?

उत्तरः- कवि देव कला और सौंदर्यविहीन तत्कालीन समाज और दरबारी वातावरण के भोग विलास पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि राजा अंधे हो चुके हैं, उत्तरः उनके दरबारी भी मूक बने हुए हैं तथा राज्यसभा बहरी हो चुकी है। राजा अपने राज्य की समस्याओं को नहीं देख रहे हैं। दरबारी भी उनके लिए आवाज नहीं उठा रहे हैं। सभासद गण लोगों की बातें नहीं सुनते। वे लोग अपने कर्तव्य को भूलकर सुंदरता के आसपास स्वच्छंद बने हुए भटकते फिर रहे हैं।

6. भाव स्पष्ट कीजिए-

क. हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि।

उत्तरः- प्रस्तुत काव्यांश में उस प्रसंग का वर्णन है जब कृष्ण गोपी से मुँह फेर लेते हैं। गोपी कहती है कि जिस दिन से मेरे प्रिय श्रीकृष्ण ने मुझसे मुँह फेर लिया है उस दिन 8. से मेरी हँसी का भी हरण हो गया है अर्थात् मैं हँसना भूल गई हैं। मैं तो उसे खोजती फिर रही हैं जिसने मेरे हृदय का हरण कर लिया है। यहाँ कवि देव ने कृष्ण के वियोग में व्याकुल गोपी की व्यथा का अत्यंत हृदयग्राही चित्रण किया है।

ख. सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।

उत्तरः- इस काव्यांश में गोपी के स्वप्न का वर्णन है। काव्यनायिका गोपी स्वप्न देखती है कि मनभावन मौसम में कृष्ण उसे झूला झूलने को कह रहे हैं। वह अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करती हुई उठना चाहती है कि उसकी नींद टूट जाती है और वह पुनः वियोग की स्थिति में पहुँच जाती है। नायिका कहती है कि जब मैं सो रही थी तो मेरे भाग्य जगे हुए थे अर्थात् कृष्ण का साथ मिला हुआ था, परंतु मेरे जागते ही मेरे भाग्य सो गए अर्थात् मेरे प्रिय से मेरा वियोग हो गया।

ग. वेई छाई बूँदें मेरे आँसु हवै दृगन में।

उत्तर:- नायिका के स्वप्न का वर्णन करते हुए कवि देव कहते हैं कि नायिका अपने स्वप्न में कृष्ण के साथ झूला झूलने का आग्रह पाकर उठने की कोशिश करती है, परंतु उसकी नींद टूट जाती है और कृष्ण आँखों के सामने से ओझल हो जाते हैं। कृष्ण के सहचार्य का आनंद न उठा पाने के कारण उसका हृदय व्यथित होता है। स्वप्न में जो बादल आकाश में छाए हुए थे, नींद खुलने पर वही बादल आँसू बनके उसकी आँखों में आ जाते हैं।

घ. साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी।

उत्तरः- प्रस्तुत पंक्ति में कवि देव ने कला और सौंदर्य विहीन तत्कालीन समाज और दरबारी वातावरण के भोग-विलास के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की है। देव कहते हैं कि राजा अंधे के समान हो गया है, दरबारी गूंगे और सभासद बहरे की तरह हो गए हैं। तात्पर्य यह है कि राजा यथार्थ परिस्थितियों को न देखते हुए अविवेकपूर्ण निर्णय ले लेता है और दरबारीगण उसके गलत कार्यों का विरोध न कर उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं। इस प्रकार कवि देव ने सामंती व्यवस्था के दुराचार, चाटुकारिता और दंभ से भरे वातावरण का व्यंग्यात्मक चित्रण किया है।

7. देव ने दरबारी चाटुकारिता दंभपूर्ण वातावरण पर किस प्रकार व्यंग्य किया है?

उत्तरः- देव दरबारी संस्कृति के महाकवि थे। उन्होंने पतनशील सामंती व्यवस्था का वर्णन किया है। उनके समय में देश में मुगलों का शासन था। समस्त देश में सामंत विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहे थे। कवि देव ने भोग विलासपूर्ण दरबारी मानसिकता पर व्यंग्य किया है। सभी दरबारी तथा राजा चाटुकारितापूर्ण एवं दंभपूर्ण जीवन यापन कर रहे हैं, 'यथा राजा तथा प्रजा' वाली युक्ति चरितार्थ है। राजा स्वयं विलासी है इसलिए उसके चाटुकार दरबारी भी उसी का अनुकरण कर रहे हैं। कला के बारे में कोई सुझाव देने पर कोई भी बात को नहीं सुनता। सभी अज्ञानी और अभिमानी होने के कारण अकर्मण्य बने हुए हैं।

8. निम्नलिखित पद्मांर्शों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

क. सांसनि ही सौं समीर गयो अरु,

आंसुन ही सब नीर गयो ढरि।

तेज गयो गुन लै अपनो,

अरु भूमि गई तन की तनुता करि।।

उत्तरः- प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'हँसी की चोट' शीर्षक सवैया से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि देव हैं। यहाँ उस प्रसंग का वर्णन है जब कृष्ण गोपी से मुँह फेर लेते हैं। कृष्ण द्वारा मुँह फेर लेने के कारण गोपी हँसना ही भूल गई है। उसकी प्राण शक्ति, शारीरिक, तेज, आदि सब कुछ समाप्त हो रहा है। बस मिलने की आशा ही शेष बची है जिसके सहारे वह जीवित है।

व्याख्या- कृष्ण के विमुख हो जाने पर गोपी कहती है कि जिस दिन से कृष्ण ने मुझसे मुँह फेर लिया है, उसी दिन से मेरी साँसों से वायु चली गई है अर्थात सॉस तो चल रही है परंतु उसमें प्राण वायु नहीं है। उनके वियोग में मेरी आँखों से निरंतर अश्रु प्रवाह होता रहा है, जिस कारण शरीर का सारा जल निकल गया है। अपने सारे गुण अर्थात् शक्ति को साथ लिए शरीर का तेज़ भी चला गया अर्थात् प्रिय वियोग में तन निस्तेज हो गया है। वियोग में शरीर की दुर्बलता के कारण भूमि तत्त्व भी जाता रहा है। भूमि तत्त्व के चले जाने के कारण इस शरीर की तनुता भी चली गई है। कहने का तात्पर्य यह है की पाँच तत्त्वों से निर्मित उनके शरीर से चार तत्त्व निकल गए किंतु कृष्ण से मिलने की आशा में प्राण अर्थात् आकाश तत्त्व अभी नहीं निकला है।

विशेष

1. यहाँ कवि ने कृष्ण के वियोग में व्याकुल गोपी की शारीरिक दशा और मानसिक व्यथा का अत्यंत हृदयग्राही चित्रण किया है।

2. 'साँसनि ही सौं समीर', 'अरु आँसुन', 'तन की तनुता' में अनुप्रास अलंकार की छटा है।

3. प्रेम और शृंगार के वियोग पक्ष का चित्रण हुआ है।

4. सवैया छंद, माधुर्य गुण, ब्रजभाषा के प्रयोग से काव्य सुंदर बन पड़ा है।

ख. झहरि- झहरि झीनी बूँद हैं परति मानो, घहरि-घहरि घटा घेरी है गगन में।

प्रसंग- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ 'सपना' शीर्षक कवित्त से उधृत है। इसके रचयिता रीतिकालीन ब्रजभाषा के कवि देव हैं। प्रस्तुत कविता में काव्यनायिका गोपी के स्वप्न का वर्णन है।

व्याख्या- कवि देव कहते हैं कि गोपी ने सपने में देखा कि झर झर की आवाज़ के साथ हल्की-हल्की बारिश की बूँदें धरती पर पड़ रही हैं। आकाश में गहरे बादल छाए हुए हैं। ऐसे मनभावन मौसम में श्रीकृष्ण आकर गोपी से कहते हैं कि चलो आज झूला झूलते हैं। गोपी आनंद में मग्न होकर फूली नहीं समा रही थी। वह झूला झूलने के लिए उठना ही चाहती है कि अभागी नींद खुल गई और उसके जागते ही श्रीकृष्ण उसकी आँखों से ओझल हो गए। वह श्रीकृष्ण के साहचर्य का आनंद न उठा सकी। आँखें खोलकर उसने देखा न तो आकाश में बादल थे और न ही पास में कृष्ण। सपने में आए वही बादल अब उसकी आँखों में आँसू बनकर छाए हुए हैं अर्थात् कृष्ण से मिलन का वह आनंद विरह की वैदना के रूप मैं परिणत हो चुका था।

विशेष-

1. प्रस्तुत कवित्त में देव ने पहले संयोग और फिर वियोग दोनों ही स्थितियों का एक साथ अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।

2. 'झहरि झहरि घहरि-धहरि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। झहरि-झहरि झीनी, 'घहरि-घहरि घटा घेरी हैं' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

3. श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण है।

4. काव्यांश में ध्वन्यात्मकता एवं संगीतात्मकता के गुण दर्शनीय हैं।

5. दृश्य बिंब से कविता आकर्षक बन पड़ी है।

6. ब्रजभाषा में कवित छंद सुंदर बन पड़ा है।

9. देव के अलंकार प्रयोग और भाषा प्रयोग के कुछ उदाहरण पठित पदों से लिखिए।

उत्तरः- प्रस्तुत पाठ में देव के तीन पद हैं। इनमें इन्होंने सामान्य अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, उत्प्रेक्षा, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। पदों में अलंकार की स्थिति इस प्रकार है-

अनुप्रास अलंकार- 'सांसनि ही साँ समीर', 'झहरि- झहरि झीनी', 'घहरि-धहरि घटा घेरी', 'मुसाहिब मूक', 'निबरे नट'।

यमक अलंकार- 'हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि'।

☞ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार- 'झहरि-झहरि' व 'घहरि- घहरि में।

☞ उत्प्रेक्षा अलंकार- 'झहरि-झहरि झीनी बूँद हैं परति मानो'।

☞ विरोधाभास अलंकार- सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।

भाषा का चमत्कारिक प्रयोग

☞ जा दिन तै मुख फेरि हरै हॅसि, हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि झहरि-झहरि झीनी बूंद हैं परति मानो, घहरि-धहरि घटा घेरी है गगन में।

☞ भेष न सूझयो कह्यो समझाया न, बतायो सुन्यो न, चाहत उठ्योई उठि गई से। निगोड़ी नींद, सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।

☞ साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी, निबरे नट की बिगरी मति ।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. महाकवि देव किस काल के कवि थे?

क. आदिकाल

ख. भक्तिकाल

ग. रीतिकालीन

घ. आधुनिक काल

2. कवि देव के आश्रयदाता कौन थे?

क. शाहजहाँ

ख. जहाँगीर

ग. आलम शाह

घ. इनमें से कोई वहीं

3. कवि देव का वास्तविक नाम क्या था?

क. देवदत्त द्विवेदी

ख. भागीरथ

ग. दत्तादत ‌द्विवेदी

घ. इनमें से कोई नहीं

4. निम्नलिखित में से कौन सी रचना कवि देव की है ?

क. सुजान विलास

ख. विनोद दीपिका

ग. रामविलास

घ. इनमें से कोई नही

5. 'हँसी की चोट' कविता किस छंद मे रचित है?

क. दोहा

ख. चौपाई

ग. सवैया

घ. क और ख दोनों

6. 'हँसी की चोट' कविता में किस रस का वर्णन है?

क. करुण रस

ख. वीर रस

ग. श्रृंगार रस

घ. क और ख दोनों

7. 'हँसी की चोट' के अनुसार गोपियों के शरीर में पंच तत्त्वों में से कौन सा तत्त्व शेष रह गया है?

क. जल तत्त्व

ख. वायु तत्त्व

ग. अग्नि तत्त्व

घ. आकाश तत्त्व

8. 'झहरी-झहरी झीनी बूँद हैं परति मानो' में झहरी-झहरी में कौन सा अलंकार है ?

क. पुनरुक्ति प्रकाश

ख. मानवीकरण

ग. यमक

घ. रूपक

9. कवि देव ने दरबारी कवि में किसे गूँगा, बहरा और अंधा कहा है ?

क. समाज

ख. सामंती व्यवस्था

ग. प्रेमिका

घ. इनमें से कोई नहीं

10. 'सपना' शीर्षक कविता किस छंद में रचित है।

क. सवैया छंद

ख. कवित छंद

ग. चौपाई छंद

घ. इनमें से कोई नहीं

11. 'दरबार' कविता किस छंद में रचित है ?

क. कवित

ख. सवैया

ग. दोहा

घ. हरि गीतिका

12. 'हँसी की चोट' कविता में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?

क. अवधी

ख. अपभ्रंश

ग. ब्रजभाषा

घ. खड़ी बोली हिंदी

13. सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में कौन-सा अलंकार है?

क. श्लेष अलंकार

ख. विरोधाभास अलंकार

ग. अन्योक्ति अलंकार

घ. इनमें से कोई नहीं

14. हर हियो जु लियो हरि जु हरि में 'हरि' शब्द की आवृत्ति भिन्न अर्थ में होने के कारण कौन सा अलंकार हुआ है?

क. अनुप्रास

ख. यमक

ग. क और ख दोनों

घ. इनमें से कोई नहीं

अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. दरबार सवैये में किस प्रकार के दरबारी वातावरण की ओर संकेत है?

उत्तरः- दरबार सवैये में कवि के युग के दरबारी वातावरण का सजीव चित्रण हुआ है। उस समय की कला तथा भोग विलास युक्त दरबारी प्रवृति का चित्रण किया गया है।

2. कवि देव द्वारा रचित ग्रंथ के नाम बताइए।

उत्तरः- रस विलास, भाव विलास, भवानी विलास, कुशल विलास, अष्टयाम, प्रेमदीपिका इत्यादि।

3. 'सपना' कवित्त में किस प्रसंग का वर्णन हुआ है?

उत्तरः- सपना कवित्त में कवि ने निद्रा अवस्था में गोपी के सपने में ही कृष्ण के संयोग एवं वियोग का अद्भुत वर्णन किया गया है।

4. अनुप्रास अलंकार के लक्षण उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तरः- स्वरों की विषमता होने पर भी व्यंजन की पूर्वक्रमानुसार आवृत्ति को अनुप्रास अलंकार कहते हैं, उदाहरण- -तरिनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।

5. कवित छंद का लक्षण बताइए।

उत्तरः- कवित्त वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं प्रत्येक चरण में 16-15 पर यति होती है।

6. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तरः- जब समानार्थक शब्दों की आवृत्ति बार-बार हो, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे 'झहरि-झहरि', 'घहरि-घहरि'।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. कवि देव की कविताओं में वर्ण्य विषय क्या है?

उत्तरः- कवि देव रीतिकाल के श्रेष्ठ दरबारी कवि थे। इन्होंने अपना अधिकतर साहित्य राजाओं और आश्रयदाताओं को समर्पित किया। एक ओर ये लौकिक शृंगार में डूबे थे, तो दूसरी ओर जीवन के कटु अनुभवों ने इन्हें भक्ति विषयक रचनाएँ लिखने के लिए प्रेरित किया। आश्रयदाताओं की खोज में ये एक स्थान से दूसरे स्थान तक वर्षों भटकते रहे। परिणामतः प्राकृतिक दृश्यों ने भी इनके मन पर प्रभाव डाला। इस प्रकार कवि देव की रचना में शृंगार, भक्ति एवं प्रकृति संबंधी कविताएँ मिलती हैं।

2. सोए गए भाग मेरे जानी वह जगन में पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।

उत्तरः- गोपी स्वप्न में कृष्ण को देख रही है परंतु नींद से जागते ही उसका भाग्य सो गया। जब मैं सो रही थी तो मेरे भाग्य जगे हुए थे अर्थात् कृष्ण से मिलन हुआ था। परंतु मेरे जागते ही मेरे भाग्य सो गए अर्थात् प्रिय कृष्ण ष्ण से मेरा वियोग हो गया।

3. अलंकार से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:- 'अलंकार' शब्द का वाच्यार्थ है- 'आभूषण' और 'आभूषण' का अर्थ है- भूषित करने वाले या शोभा बढ़ाने वाले। सामान्य बोलचाल की भाषा में आभूषण को गहना भी कहा जाता है। आभूषण या गहना पहनने से तन (शरीर) की शोभा में वृ‌द्धि होती है, अतः 'अलंकार' या 'आभूषण' शोभाकारक उपादान ही कहलायेंगे। कह सकते हैं. जिस प्रकार आभूषण धारण करने से तन की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार काव्य में अलंकारों के प्रयोग से उसमें शोभा की वृद्धि होती है। अतः कहा जा सकता है कि काव्य को शोभा प्रदान करने वाले धर्म (तत्त्व) ही अलंकार हैं।

4. अलंकार के कितने भेद हैं ?

उत्तरः- काव्य के पठन-पाठन या श्रवण से जो आनंद प्राप्त होता है, उसमें भाषा का बड़ा महत्व होता है। भाषा शब्दमय स्वरूप का ही दूसरा नाम है। शब्द के दो रूप होते हैं- एक, उसका अक्षरात्मक रूपः और दूसरा उसका अर्थमय रूप।

अक्षरात्मक शब्द के रूप के आधार पर अलंकार का पहला भेद है- शब्दालंकार और शब्द में निहित अर्थ को आधार बनाकर उसका दूसरा भेद है- अर्थालंकार।

5. यमक अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तरः- यमक अलंकार में एक ही शब्द का एक से अधिक बार प्रयोग होता है किंतु प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न होता है।

जैसे-कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।

वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय।।

यहाँ प्रथम 'कनक' का अर्थ है धतूरा, जबकि दूसरे 'कनक' का अर्थ 'सोना' है।

6. बिंब किसे कहते हैं?

उत्तरः- स्मृतियों के आधार पर बनाए जाने वाले शब्द-चित्र बिंब कहलाते हैं, जैसे-घुटुरुन चलत रेनु तनु मंडित मुख दधि लेप किए। इन शब्दों को पढ़कर मुख पर दही लपेटे, धूल-धूसरित घुटनों के बल चलते बालक का चित्र सामने आ जाता है, इसे बिंब कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 'सपना' कवित्त का आव-सौंदर्य और शिल्प-सौंदर्य लिखिए।

उत्तरः- भाव-सौंदर्य- इस कवित में श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का एक साथ चित्रण कर कवि ने अद्भुत भाव-सौंदर्य की रचना की है। नायिका कृष्ण मिलन का स्वप्न देख रही है। कृष्ण उससे अपने साथ झूला झूलने के लिए कह रहे हैं। वह अति प्रसन्न है, और सपना टूट जाता है तभी उसकी नींद खुल जाती है। इस प्रकार संयोग के स्थान पर वियोग की भी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

इस कविता में कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का भी सुंदर वर्णन किया है। वर्षा ऋतु के आकर्षक दृश्य को उद्दीपक के रूप में चित्रित कर देंव ने प्रिय-मिलन के आनंद में अभिवृ‌द्धि कर दी है।

नायिका को कृष्ण का साथ मिलते-मिलते रह गया, जब उनकी 'निगोड़ी' नींद उठ गई। कवि ने यहाँ अद्भुत उक्ति- वैचित्र्य का सृजन किया है। उठना तो चाहिएँ था पैरों वाली नायिका को, परंतु बिना पैर वाली नींद उठ गई। आगे भी कवि ने इसी तरह के भाव सौंदर्य की रचना की है। जब नायिका सो रही थी तब उसका भाग्य जगा हआ था और जब नायिका जागी तब उसके भाग्य सो गए।

कवि ने यह भी दर्शाया है कि जब स्वप्न में नायिका कृष्ण के साथ थी, तब वर्षा की बूँदें आनंदित कर रही थीं। परंतु नींद खुलते ही वही बूँदै आँसू बनकर आँखों से बरसने लग गई। यहाँ कवि ने यह भाव प्रकट किया है कि जो उपादान संयोग के समय आनंद-प्रदान करते हैं. वियोग के समय वहीं वेदना को और भी बढ़ा देते हैं।

शिल्प-सौंदर्य- इस कवित में कवि देव ने रसराज श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। कवि ने भावानुसार कोमल-कांत पदावली का प्रयोग किया है। ब्रजभाषा का कोमल एवं मधुर रूप दर्शनीय है। कवि ने कविता में वर्णित वर्षा की झंड़ी की तरह अलंकारों की भी झड़ी लगा दी है।

'झहरि-झहरि झीनी', 'घहरि-धहरि घटा घेरी', 'उठ्योई उठि', 'निगोडी नींद', 'जानि वा जगन', में अनुप्रास अलंकार की छटा है।

'झहरि झहरि' और 'घहरि घहरि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। 'झहरि-झहरि हार .... गगन में'- ध्वन्यार्थ व्यंजना है । संपूर्ण कविता मे दृश्य बिंब का आकर्षक सृजन हुआ है। संगीतात्मकता और ध्वन्यात्मकता के गुण दर्शनीय हैं।

'फूला न समाना' मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है। कोव्य की रचना 'कवित्त' छंद में हुई है।

मुक्तक शैली का प्रयोग किया गया है।

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विषय सूची

पाठ सं.

पाठ का नाम

अंतरा भाग -1

गद्य-खंड

1.

ईदगाह

2.

दोपहर का भोजन

3.

टार्च बेचने वाले

4.

गूँगे

5.

ज्योतिबा फुले

6.

खानाबदोश

7.

उसकी माँ

8.

भारतवर्ष की उन्नत कैसे हो सकती है

काव्य-खंड

9.

अरे इन दोहुन राह न पाई, बालम, आवो हमारे गेह रे

10.

खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

11.

हँसी की चोट, सपना, दरबार

12.

संध्या के बाद

13.

जाग तुझको दूर जाना

14.

बादल को घिरते देखा है

15.

हस्तक्षेप

16.

घर में वापसी

अंतराल भाग 1

1.

हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

2.

आवारा मसीहा

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

जनसंचार माध्यम

2.

पत्रकारिता के विविध आयाम

3.

डायरी लिखने की कला

4.

पटकथा लेखन

5.

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

6.

स्ववृत्त (बायोडेटा) लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन पत्र

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 - प्रश्नोत्तर

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