प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Elective
अंतरा भाग -1 काव्य-खंड
पाठ 14. बादल को घिरते देखा है
कवि-परिचय [नागार्जुन (सन् 1911-1998)]
नागार्जुन का जन्म उनके ननिहाल सतलखा, जिला दरभंगा, बिहार
में हुआ था लेकिन उनका पैतृक गाँव तरौनी, जिला मधुबनी है। घरेलू नाम 'ठक्कन' एवं
विद्यालय का नाम 'वैदयनाथ मिश्र' था लेकिन मैथिली में वे 'यात्री' नाम से एवं
हिंदी में 'नागार्जुन' नाम से विख्यात हुए। कबीर की तरह फक्कड़ एवं राहुल जी की
तरह घुमक्कड़ नागार्जुन बौध धर्म में दीक्षित हुए एवं देश-विदेश की यात्राएँ की।
तेरह भाषाओं के जानकार नागार्जुन चार भाषाओं में साहित्य
सृजन करते रहे। आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रगतिशील धारा के प्रतिबद्ध जनकवि के रूप
में उनका नाम अग्रणी पंक्ति में लिया जाता है जबकि मैथिली में 'पत्रहीन नग्न गाए'
(1967 ई.) काव्य संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है।
संस्कृत और बांग्ला भाषा में भी उन्होंने साहित्य सृजन किया है।
नागार्जुन का रचना संसार बहुआयामी है; उसमें एक ओर प्रकृति
की बहार है तो दूसरी ओर लोकजीवन का बहुरंगी सौंदर्य। ग्रामीण समाज, राजनैतिक
व्यंग्य, वंचित दलित वर्ग, शोषित स्त्री समुदाय एवं उपेक्षित जीव-जंतु पर
नागार्जुन ने विविध शैली में इतना कलात्मक लिखा है कि पढ़कर आश्चर्य होता है। उनकी
छंदोबद्ध कविताएँ तो बेजोड हैं ही मुक्त छंद में भी लिखी उनकी कई कविताएँ लाजवाब
हैं। बिंब, प्रतीक एवं मिथकों का इस्तेमाल वे इतनी कलात्मकता से करते हैं कि कविता
का विराट रूप पूरे अर्थ के साथ प्रकट हो जाता है। उनकी काव्य भाषा में लय, ताल,
तुक एवं नाटकीयता का कौशल देखते बनता है। भाव, भाषा, शैली, व्यंग्य एवं शब्दों के
विलक्षण प्रयोग के कारण वे अत्यंत लोकप्रिय कवि के रूप में हिंदी एवं मैथिली
साहित्य में जाने जाते हैं। उनकी काव्य-भाषा संस्कृत से भी संस्कारित होती है और
आम बोलचाल की भाषा से भी ऊर्जा ग्रहण करती है। कालिदास एवं निराला की भाषिक परंपरा
से नागार्जुन खुद को जोड़ते हैं।
साहित्य अकादमी के अतिरिक्त उन्हें उत्तर प्रदेश का 'भारत-
भारती पुरस्कार, मध्य प्रदेश का 'मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, बिहार सरकार का
'राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार' एवं हिंदी अकादमी (दिल्ली) का 'शिखर सम्मान प्राप्त
हुआ है।
उनके कुल 14 काव्य-संकलनों एवं दो खंड-काव्यों का प्रकाशन
हो चुका है जिनमें प्रमुख हैं- युगधारा, सतरंगे पंखोंवाली, प्यासी पथराई आँखें,
तालाब की मछलियों, तुमने कहा था, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, हजार हजार बाहों वाली,
पुरानी जूतियों का कोरस, रत्नगर्भ, ऐसे भी हम क्या। ऐसे भी तुम क्या, आखिर ऐसा
क्या कह दिया मैंने, इस गुब्बारे की छाया में, भूल जाओ पुराने सपने, अपने खेत में।
अस्मांकुर एवं भूमिजा उनके खंड काव्य हैं।
नागार्जुन ने 12 उपन्यास भी लिखे जिसमें अपने समय का समाज
पूरे यथार्थ के साथ मौजूद है। उपन्यासों के नाम हैं- रतिनाथ की चाची, बलचनमा, नई
पौध, बाबा बटेसरनाथ, वरुण के बेटे, पारो, दुखमोचन, कुंभीपाक, हीरक जयंती,
उग्रतारा, जमनिया का बाबा एवं गरीबदास। उनकी संपूर्ण रचनाएँ 'नागार्जुन रचनावली'
नाम से सात खंडों में प्रकाशित हुई हैं।
पाठ परिचय
'बादल को घिरते देखा है कविता उनकी महतवपूर्ण एवं लोकप्रिय
कविताओं में से एक है। सन् 1953 ई. में प्रकाशित उनके प्रथम काव्य संकलन 'युगधारा'
से इसे लिया गया है जिसका रचनाकाल 1940 के आस-पास का है। विविध मौसम में हिमालय की
प्राकृतिक सुंदरता का स्वप्निल एवं यथार्थ चित्रण कवि ने इस जादुई भाषा में किया
है कि हिमालय का विराट सौंदर्य पाठकों के सामने पूरे वैभव के साथ प्रकट हो गया है।
सुमधुर कर्णप्रिय शब्दों की लयात्मक लड़ी अपने नाद-सौंदर्य से पाठकों को एक नई
दुनिया में ले जाती है- स्वप्न और सौंदर्य की दुनिया में, जहाँ मानसरोवर के कमल भी
हैं, बिस-तंत् खोजते हंस भी हैं, शैवालों की हरी दरी भी है, कस्तूरी मृग की खीज भी
है. कुबेर की अलकापुरी भी है, महामेघों का झंझानिल से संघर्ष भी है और है
किन्नर-किन्नरियों की वंशी की मधुर ध्वनि। और यह सब सुना हुआ या पढ़ा हुआ नहीं है
स्वयं अनुभव किया हुआ, भोगा हुआ और देखा हुआ है- मैंने तो भीषण जार्डो में re
नभ-चुम्बी कैलाश शीर्ष पर
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
छंद में बंधी हुई इस कविता में संस्कृत भाषा के संगीत के
साथ-साथ बोलचाल की शब्दावली का प्रवाह भी इसे मार्मिक और अद्वितीय (अनूठी) बनाता
है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर
1. इस कविता में बादलों के सौन्दर्य चित्रण
के अतिरिक्त और किन दृश्यों का चित्रण किया गया है ?
उत्तरः- इस कविता में बादलों के सौन्दर्य चित्रण के
अतिरिक्त निम्नलिखित दृश्यों का भी सुंदर चित्रण किया गया है- मोती जैसे शीतल
तुहिन-कणों (ओस की बूँदों को मानसरोवर के स्वर्णिम कमलों पर गिरने का दृश्य-चित्र।
वर्षा की ऊमस में तिक्त मधुर बिसतंतु खोजते हंसों के तैरने का दृश्य-चित्र ।
मानसरोवर के किनारे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय- कलह करते
चकवा-चकई का दृश्य-चित्र ।
तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ने का दृश्य-चित्र ।
सजे-धजे, द्राक्षासव पिए उन्मद किन्नर-किन्नरियों के वंशी बजाने का दृश्य-चित्र ।
2. प्रणय कलह से क्या तात्पर्य है?
उत्तरः- चकवा चकई के संदर्भ में कवि ने प्रणय कलह की चर्चा
की है। वे कहना चाहते हैं चकवा चकई जब दिन में मिलते हैं तो शैवालों की हरी-दरी पर
प्रेम भरी छेड़-छाड करते हैं।
3. कस्तूरी मृग के अपने पर चिढ़ने का क्या
कारण है?
उत्तरः- कस्तूरी मृग की नाभि में ही 'कस्तूरी की सुगंध'
मौजूद होती है किन्तु उसे जान नहीं होता कि उसकी नाभि से ही यह मादक सुगंध निकल
रही है। वह उस सुगंध को इधर-उधर ढूँढती रहती है और खीजती रहती है।
4. बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास
की याद क्यों आती है ?
उत्तरः- कवि नागार्जुन संस्कृत साहित्य के अध्येता रहे हैं।
कालिदास उनके प्रिय कवि हैं और 'मेघदूत' प्रिय रचना। बादल पर कविता लिखते वक्त
उन्हें मैघदूत की याद आ जाती है। धनपति कुबेर ने यक्ष को उसकी पत्नी से एक वर्ष तक
दूर रहने का शाप दिया था। आषाढ महीने की शुरुआत में जब मेघ उमड़ने-घुमड़ने लगे तब
यक्ष व्याकुल हो गया और मेघों को दूत बना कर अलकापुरी भेजा ताकि प्रेम- संदेश
यक्षिणी को प्राप्त हो जाए।
कवि नागार्जुन ने उन स्थानों को खोजने का प्रयास किया जिनका
उल्लेख 'मेघदूत' में है किन्तु वे कहीं नहीं मिले। न व्योम प्रवाही गंगा मिली और
ने वह मेघ मिला। इसलिए उन्होंने कालिदास के मेों को कवि की कल्पना बताया जबकि उनके
मेघ तो यथार्थ में गरज- गरज कर भिड़ रहे थे।
5. कवि ने 'महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज
मिड़ते देखा है क्यों कहा है ?
उत्तरः- कवि नागार्जुन ने हिमालय में अनेक बार मेघों का
विकराल और भीषण रूप देखा है। उन्होंने देखा है कि ये अयंकर बादल घनघोर गर्जना करके
एक-दूसरे से भिड रहे हैं। जैसे दो मतवाले हाथी बार-बार गरजते हुए युद्धरत रहते हैं
वैसे ये बादल टकराते हैं। बादलों के टैकराने से भयंकर बिजली गिरती है और ऐसी ध्वनि
उत्पन्न होती है कि व्यक्ति डर जाए। पर्वतों पर बादल फटते भी हैं और महाप्रलय लाते
हैं। कवि ने भयंकर तूफानों के बीच मेघों के भिड़ने का भयानक एवं सुंदर चित्र खाँचा है।
6. बादल को घिरते देखा है' पंक्ति को बार-बार
दोहराए जाने से कविता में क्या सौंदर्य आया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः- कवि नागार्जुन ने कविता में हर छंद के बाद छह बार
"बादल को घिरते देखा है पंक्ति को लिखा है। यह कविता की टेक है। इसी पंक्ति
पर कविता टिकी हुई है। जैसे गीतों में एक पंक्ति बार बार आती है तो उसमें एक विशेष
सौन्दर्य उत्पन्न हो जाता है वैसा ही सौदर्य यहाँ उत्पन्न हो गया है। कवि ने हर
मौसम में, हर तरह के बादलों को हर रूप में देखा है और वे इसका वर्णन बहुत सुंदर
ढंग से करते हैं। कवि बार-बार ज़ोर देकर कहते हैं कि मैं औरों की बात नहीं कहता
लेकिन मैंने स्वयं अपनी आँखों से हिमालय पर बादलों के इन खूबसूरत रूपों को देखा
है, महसूस किया है।
7. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) निशा काल से चिर-अभिशापित / बेबस उस
चकवा-चकई का / बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें उस महान सरवर के तीरे / शैवालों की हरी
दरी पर प्रणय कलह छिड़ते देखा है।
उत्तरः प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक अंतरा-भाग-1
की कविता 'बादल को घिरते देखा हैं से उद्धत है। इसमें कवि नागार्जुन ने अभिशापित
चकवा चकड़े के प्रणय-कलह का मार्मिक चित्रण किया है।
कवि कहते हैं कि चकवा-चकई का जोड़ा रात्रि में विरह में है
क्योंकि उनको निशा काल में दूर रहने का शाप मिला हुआ है। रात्रि बीतने पर जब उनका मिलन शैवालों की हेरी दरी
पर होता है तो वह दृश्य अद्भुत होता है। उस महान मानसरोवर के किनारे दोनों की
प्रेम भरी छेड़-छाड़ बड़ी प्यारी लगती है। प्रकृति के बीच प्रेम का इतना सुंदर
नज़ारा कवि ने अपनी आँखों से देखा है।
विरह के बाद मिलन का सुख कितना भाव विभोर करने वाला है यह
इस प्रसंग को पढ़कर ही पता चलता है। भाषा प्रवाहपूर्ण एवं सम्प्रेषणीय है।
संस्कृतनिष्ठता के बावजूद भाषा सहज एवं सुन्दर है।
(ख) अलख नाभि से उठने वाले। निज के ही
उन्मादक परिमल / के पीछे धावित हो-होकर । तरल तरुण कस्तूरी मृग को । अपने पर
चिढ़ते देखा है।
उत्तरः- उद्धृत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक अंतरा-भाग-1
की कविता 'बादल को घिरते देखा है से ली गई हैं। कवि नागार्जुन ने पर्वतीय प्रदेश
हिमालय में कस्तूरी मृग को सुगंध खोजते और चिढ़ते देखा है।
दरअसल कस्तूरी मृग की नाभि में ही कस्तूरी रहती है जो सुगंध
बिखेरती रहती है। कस्तूरी मृग को इसका जान नहीं होता और वे यहाँ-वहाँ उस सुगंध की
तलाश में भटकते रहते हैं। कवि ने लिखा है कि ये मृग अपने ही 'उन्मादक सुगंध' की
तलाश में इधर-उधर विचरण करते रहते हैं और नहीं मिल पाने की स्थिति में चिढ़ते रहते
हैं। भाषा सरल-सहज, संस्कृतनिष्ठ एवं लययुक्त है। 'तरल-तरुण' में अनुप्रास से
सुंदरता आ गई है।
8. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :-
(क) छोटे छोटे मोती जैसे...... कमलों पर
गिरते देखा है।
उत्तरः- व्याख्येय काव्यांश 'बादल को गिरते देखा है' कविता
से उद्धृत है जिसके कवि नागार्जुन हैं। हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा-भाग-1 में यह
कविता संकलित है। इन पंक्तियों में कवि ने बादलों के अनूठे सौंदर्य को प्रस्तुत
किया है। कवि लिखते हैं कि उन्होंने मानसरोवर झील के अनुपम सुंदर कमलों पर
छोटे-छोटे मोती जैसे ओस की बूँदों को गिरते देखा है। हिमालय पर्वत स्वच्छ एवं
श्वेत बर्फ से बँका हुआ बहुत सुंदर नज़र आता है। इसकी गोद में विशाल मानसरोवर का
दृश्य इतना अनुपम है कि क्या कहा जाए। उस सरोवर में सोने जैसे कमल खिले हुए हैं और
उसपर मोती जैसे शीतल तुहिन कण जब फुहियों की तरह बरसते हैं तो हृदय आह्लादित हो
जाता है और उस दृश्य को कवि ने अपनी आँखों से देखा है।
इन पंक्तियों में प्रकृति अपने अनूठे सौंदर्य के साथ
उपस्थित है। 'छोटे-छोटे मोती जैसे में उपमा अलंकार है। 'छोटे-छोटे' में पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार मौजूद है। पंक्तियों में नाद- सौदर्य हर जगह परिलक्षित होता है।
कोमल कांत पदावली के साथ भाषा में सरलता एवं सरसता मौजूद है। संस्कृतनिष्ठ होते
हुए भी भाषा में अद्भुत प्रवाह है।
(ख) समतल देशों से आ आकर ....... हंसों को
तिरते देखा है।
उत्तरः- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक अंतरा-भाग-1
की कविता 'बादल को घिरते देखा है' से ली गई हैं जिसमें कवि नागार्जुन प्रवासी
हंसों के विभिन्न झीलों में कल्लोल करने का जिक्र करते हैं।
वे लिखते हैं कि ऊँचे हिमालय के इलाके में कई छोटी- बड़ी
झीलें मौजूद हैं, उनके श्यामल नील जल में वर्षा काल की ऊमस से व्याकुल हंसों को
मैंने बिसतंतु खोजते और विहार करते देखा है। ये हंस बाहर से आकर यहाँ के प्राकृतिक
परिवेश में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। नीचे मैदानी इलाके की गर्मी और ऊमस से
परेशान ये हंस हिमालय के ठंडे परिवेश में क्रीड़ा करते हैं, आनंद उठाते हैं और
जीवन का भरपूर मज़ा लेते हैं।
कवि ने भावविभोर होकर उन हंसों के क्रिया-कलाप का बड़ी
सुंदर भाषा में चित्रण किया है। अनुप्रास (श्यामल नील सैलिल), पुनरुक्ति प्रकाश
(आ-आकार), मानवीकरण (हिमालय के कंधों पर) जैसे अलंकारों के सुंदर प्रयोग से कविता
बेजोड़ बन पड़ी है। स्वर-मैत्री, संगीतात्मक लय, संस्कृतनिष्ठ भाषा की रवानी से
काव्यांश मनमोहक बन पड़ा है।
(ग) ऋतु वसंत का सुप्रभात था.........
अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे ।
उत्तरः- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग-1 की
'बादल को घिरते देखा है कौवता से उद्धृत है जिसमें कवि नागार्जुन जी ने वसंत ऋतु
की सुबह का सुंदर चित्र खींचा है।
हिमालय की सुंदरता ऐसे ही अनुपम है। वसंत ऋतु में जब सुबह
सुबह ठंडी हवा बहती है और सूर्योदय होता है तब हिमाच्छादित शिखर स्वर्णमय हो जाते
हैं। हिमालय की चोटियों पर जब सूर्य की किरणें पहुँचती हैं तब सौन्दर्य का विस्फोट
दिखाई पड़ता है। आँखें चौधिया जाती हैं। सूरज के सात रंग में रंग कर हिम शिखर
विविध रंगों में नहा जाते हैं और कवि ने उस दृश्य को अपनी आँखों से देखा है। उस
अद्भुत, अनुपम दृश्य को कवि ने यहाँ कलमबंद किया है।
अनुप्रास (अगल-बगल, स्वर्णिम शिखर), पुनरुक्तिप्रकाश
(मंद-मंद) जैसे प्रयोग से काव्यांश की सुंदरता बढ़ गई है। नाद सौन्दर्य, तरल भाषा,
तत्सम शब्दावली का प्रवाह कविता को विशेष बनाता है।
(घ) दूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या ...... जाने
दो, वह कवि कल्पितं था।
उत्तरः- व्याख्येय पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक अंतरा
भाग-1 से उद्धत हैं। कवि हैं नागार्जुन, कविता है- बादल को घिरते देखा है।"
इन पंक्तियों में कवि ने कालिदास के मेघदूत के मेघों के बारे में टिप्पणी की है।
कवि कहना चाहते हैं कि मैंने कालिदास दद्वारा वर्णन किए गए
मेघदूत को ढूँढ़ा किंतु उसका कहीं पता नहीं चला। हो सकता है छाया से युक्त वे मेघ
रूपी दूत यहीं- कहीं बरस पड़े हों। मेघदूतों का अता-पता नहीं चलने पर कवि ने कहा
कि छोड़ो उनको, वे तो कवि कालिदास की कल्पना से उपजे थे मैंने तो यथार्थ में मेघों
को गरज- गरज कर भिड़ते हुए देखा है।
वास्तव में यह एक रचनाकार का दूसरे को सम्मान देते हुए मज़ा
लेने की कोशिश है। नागार्जुन कालिदास की इज्ज़त करते हुए उनको अपनी रचना में शामिल
करते हैं और रचनात्मक रूप से छेड़ते हुए आगे बढ़ जाते हैं। दरअसल यह 'रचना' का
रचनात्मक उपयोग नागार्जुन की विशेषता है। परंपरा को प्रणाम करने का अद्भुत प्रमाण
है यह कविता |
'कवि कल्पित' में अनुप्रास भी है और प्रश्न करके प्रश्नालंकार
का भी सृजन किया गया है। ढूँढा जैसा व्यवहारिक, बोलचाल में प्रयुक्त शब्द बहुत ही
सार्थक एवं सटीक रूप से कवि दद्वारा व्यवहत हैआ है। सहज भाषा का सौंदर्य पूरे
प्रवाह के साथ चरमै पर दिखाई पड़ता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. नागार्जुन का जन्म स्थान कहाँ है ?
(क) पटना (राजेंद्र नगर)
(ख) समस्तीपुर (दूबेपुर)
(ग) दरभंगा (सतलखा)
(घ) बेगूसराय (सिमरिया)
2. कवि नागार्जुन का मूल नाम (विद्यालय में)
क्या था ?
(क) जगन्नाथ मिश्र
(ख) वैद्यनाथ मिश्र
(ग) मृत्युंजय नाथ मिश्र
(घ) श्रीनिवास मिश्र
3. नागार्जुन कितनी भाषाओं में साहित्य
सृजन करते थे ?
(क) पाँच भाषाएँ
(ख) तीन भाषाएँ
(ग) छह भाषाएँ
(घ) चार भाषाएँ
4. 'पत्रहीन नग्न गाछ' पर कवि नागार्जुन को
कौन सा पुरस्कार प्राप्त हुआ था?
(क) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(ख) शिखर सम्मान
(ग) साहित्य अकादमी
(घ) मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
5. 'युगधारा'
किसकी रचना है ?
(क) हरिवंश राय बच्चन
(ख) नागार्जुन
(ग) मैथिलीशरण गुप्त
(घ) आलोक धन्वा
6. इनमें
से नागार्जुन की रचना कौन सी है?
(क) सतरंगे पंखोंवाली
(ख) रश्मिरथी
(ग) यामा
(घ) पल्लव
7. 'हज़ार-हज़ार
बाहों वाली' कविता संग्रह के कवि का नाम बताएँ ।
(क) नागार्जुन
(ख) धूमिल
(ग) श्रीकांत वर्मा
(घ) महादेवी वर्मा
8. 'रतिनाथ की चाची' के उपन्यासकार कौन हैं?
(क) प्रेमचंद
(ख) अमरकांत
(ग) रांगेय राघव
(घ) नागार्जुन
9. 'भस्मांकुर' किस तरह की रचना है ?
(क) महाकाव्य
(ख) लंबी कविता
(ग) खंडकाव्य
(घ) प्रबंध काव्य
10. कवि नागार्जुन के जन्म और मृत्यु का वर्ष
है-
(क) सन् 1908 199
(ख) सन् 1909-1999
(ग) सन् 1910 1996
(घ) सन् 1911 1998
11. 'बादल को घिरते देखा है'; किस पर्वत के सानिध्य
में लिखा गया है-
(क) विंध्याचल पर्वत
(ख) हिमालय पर्वत
(ग) अरावली पर्वत
(घ) नीलगिरि पर्वत
12. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में किस
चिड़ियों के बारे में कहा गया है कि वे सारी रात अलग रहते हैं ?
(क) कौआ
(ख) चकवा-चकई
(ग) कोयल
(घ) गौरैया
13. किस जानवर को खुद की सुगंध का पता नहीं
होता ?
(क) हाथी
(ख) कस्तूरी मृग
(ग) अश्व
(घ) बाघ
14. धनपति कुबेर की नगरी का क्या नाम था ?
(क) पंचवटी पुर
(ख) अलकापुरी
(ग) द्वारिका पुरी
(घ) शिवपुरी
15. किस ऋतु के सुप्रभात का ज़िक्र कविता में
किया गया है
(क) ग्रीष्म
(ख) वसंत
(ग) शरद
(घ) हेमंत
16. 'मेघदूत' की रचना किसने की ?
(क) वाल्मीकि
(ख) वेदव्यास
(ग) नागार्जुन
(घ) कालिदास
17. 'इंद्रनील' शब्द का क्या अर्थ होगा ?
(क) मोती
(ख) मूँगा
(ग) पुखराज
(घ) नीलम, नीले रंग का कीमती पत्थर कीमती
पत्थर
18. 'कुवलय' शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
(क) श्वेत कमल
(ख) रक्त कमल
(ग) नील कमल
(घ) गुलाब
19. 'द्राक्षासव' का क्या अर्थ है
(क) अंगूरों की बनी सुरा
(ख) शीतल पेय
(ग) चाय
(घ) शरबत
20. 'वेणी' शब्द का पर्यायवाची शब्द होगा ?
(क) वीणा
(ख) नयन
(ग) चोटी
(घ) पवन
21. 'लोहित' किस रंग को कहते हैं ?
(क) लाल
(ख) पीला
(ग) नीला
(घ) सफेद
22. यह कविता नागार्जुन के किस काव्य-संकलन
से ली गई है?
(क) युगधारा
(ख) प्यासी पथराई आँखें
(ग) सतरंगे पंखोंवाली
(घ) तालाब की मछलियों
23. 'मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा' किसकी
रचना है ?
(क) रघुवीर सहाय
(ख) त्रिलोचन
(ग) नागार्जुन
(घ) केदारनाथ अग्रवाल
24. 'भाव और भाषा' की दृष्टि से नागार्जुन
किन कवियों की परंपरा से जुड़ते हैं ?
(क) कालिदास और निराल
(ख) प्रसाद और पंत
(ग) महादेवी और सुभद्रा
(घ) दिनकर और बच्चन
25. नागार्जुन ने किस पत्रिका का संपादन किया
?
(क) हंस एवं मर्यादा
(ख) दीपक एवं विश्वबंधु
(ग) रूपाभ एवं प्रतीक
(घ) तद्भव एवं धर्मयुग
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. नागार्जुन
का जन्म एवं पैतृक स्थान कहाँ है ?
उत्तरः- नागार्जुन का जन्म स्थान सतलखा गाँव है जो दरभंगा
जिले में है। यह उनका ननिहाल है। उनका पैतृक गाँव तरौनी है जो मधुबनी जिले में है।
दोनों स्थानें बिहार राज्य में हैं।
2. नागार्जुन नागार्जुन ने किन-किन पत्रिकाओं
का संपादन किया ?
उत्तरः-नागार्जुन ने 1935 ई. में 'दीपक' मासिक पत्रिका का
संपादन किया। 1942-1943 में उन्होंने एक साप्ताहिक पत्रिका का भी संपादन किया
जिसका नाम 'विश्वबंधु' था।
3. नागार्जुन की रचनाओं के मुख्य विषय क्या
रहे हैं ?
उत्तरः- लोक जीवन, प्रकृति और समकालीन राजनीति उनकी रचनाओं
के मुख्य विषय रहे हैं। विविध विषय पर उन्होंने इतना कुछ लिखा है कि आश्चर्य होता
है।
4. नागार्जुन
जी ने मैथिली साहित्य में भी बहुत कुछ लिखा है. इस संदर्भ में संक्षेप में लिखें।
उत्तरः- नागार्जुन अपनी मातृभाषा मैथिली में 'यात्री' नाम
से लिखते थे। मैथिली में नवीन भावबोध की रचनाओं का प्रारंभ उनके महत्त्वपूर्ण
कविता संग्रह 'चित्रा' से माना जाता है। मैथिली कविता संग्रह 'पत्रहीन नग्न गाछ'
पर ही उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।
5. नागार्जुन को कौन-कौन से पुरस्कार प्राप्त
हुए हैं ?
उत्तरः- नागार्जुन को कई पुरस्कार मिले
हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। उत्तर प्रदेश का भारत- भारती पुरस्कार,
मध्य प्रदेश का मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार एवं बिहार सरकार का राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार
भी प्राप्त हुआ है।
6. नागार्जुन के किन्ही
चार काव्य संग्रहों के नाम लिखें ।
उत्तरः- नागार्जुन के काव्य संग्रह
के नाम हैं-
क. युगधारा
ख. प्यासी पथराई आँखें
ग. सतरंगे पंखोंवाली
घ. तालाब की मछलियों
7. नागार्जुन के किन्हीं
पाँच उपन्यासों के नाम लिखें ।
उत्तर:- नागार्जुन के पाँच उपन्यास
इस प्रकार हैं-
क. बलचनमा
ख. रतिनाथ की चाची
ग. कुंभीपाक
घ. उग्रतारा
ड. जमनिया का बाबा
8. कवि ने बादल को किस
तरह के पर्वत शिखर पर घिरते देखा है ?
उत्तरः- कवि नागार्जुन ने लिखा है-
"अमल धवल गिरि के शिखरों पर बादल को घिरते देखा है।" अर्थ हुआ हिम के स्वच्छ
सफेद चादरों से ढँके हिमालय पर्वत के शिखरों पर कवि ने बादलों को गरजते-बरसते देखा
है।
9. कविता में 'चकवा-चकई'
के किस अभिशाप की चर्चा की गई है?
उत्तर:- 'चकवा-चकई' के बारे में कहा
जाता है कि उन्हें अभिशाप मिला है कि वे रात में अलग रहेंगे, सिर्फ दिन में ही मिल
पाएँगे।
10. उनके काव्य में छंद और भाषा की क्या स्थिति है ?
उत्तरः- नागार्जुन ने छंदबद्ध एवं उंदमुक्त
दोनों तरह की कविताओं की रचना की है। उनकी भाषा में संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि
विद्यमान है। लोकभाषा एवं ग्रामीण परिवेश की भाषा का बड़ा सुंदर इस्तेमाल नागार्जुन
ने अपने साहित्य में किया है इसलिए उन्हें जनकवि कहा जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. कविता में पावस ऋतु के बारे में क्या बात कही गई है?
उत्तरः- पावस ऋत् का ज़िक्र करते हुए
कवि ने लिखा है कि ऊँचे हिमालय की गोद में कई झीलें हैं। बरसात के मौसम में जब ऊमस बहुत बढ़ जाती है तो मैदानी
इलाके के हंस उन झीलों के श्यामल नीले जल में तिक्त मधुर बिसतंतु (कमलनाल के भीतर स्थित
रेशे या तंतु) खोजते हुए यहाँ जल विहार करते हैं। मैंने उनको जल-क्रीड़ा करते
हुए देखा है।
2. कवि ने किस मौसम में
चकवा-चकई को किस रूप में देखा है ?
उत्तरः- कवि नागार्जुन ने वसंत ऋतु
की मनमोहक सुबह में शैवालों की हरी दरी पर चकवा चकई को प्रणय-कलह (छेड़-छाड़) करते
स्वयं देखा है। ये वही चकवा-चकई हैं जिन्हें रात में अलग रहने का अभिशाप प्राप्त
है। हिमालय के शिखर सूर्योदय के समय बहुत खूबसूरत दिखने लगते हैं। ऐसे में उस समय
हल्की-हल्की हवा में चकवा-चकई का मिलन देखना आनंददायक दृश्य है।
3. कविता में वर्णित
बादल एवं कालिदास के 'मेघदूत' में क्या अंतर दिखाई देता है?
उत्तरः- कवि नागार्जुन ने हिमालय
के शिखरों पर बादलों को कई-कई रूपों में देखा है। उन्होंने देखा कि हिमालय के ऊपरी
भाग में कहीं भी कभी भी बादल घिर आते हैं। कभी वे हल्की फुहार बनकर मोतियों की तरह
मानसरोवर के कमलों पर झरते हैं तो कभी गगनचुम्बी कैलाश पर्वत पर आपस में ही गरज
गरज कर भयंकर रूप से भिड़ते नज़र आते हैं। जहाँ नागार्जुन के बादल प्रत्यक्ष रूप
से प्रकट होते हैं और अपनी सजीव उपस्थिति दर्ज कराते हैं वहीं कालिदास के बादल दूत
के रूप में कार्यरत हैं और कवि की कल्पना मात्र हैं यथार्थ नहीं।
4. 'बादल' नागार्जुन का भी प्रिय विषय है और निराला जी का भी
लेकिन दोनों में क्या फर्क है?
उत्तरः- नागार्जुन ने बादल का
वर्णन 'बादल' के रूप में ही किया है उसे 'प्रतीक' नहीं बनाया लेकिन निराला जी की
'बादल राग' कविता में 'बादल' परिवर्तनकामी शक्तियों का प्रतीक है। निराला कहते
हैं- हे बादल, झूम-झूम कर बरसो और शोषित व्यवस्था को बदल दो। तुम्हें अधीर कृषक
बुला रहे हैं। वहाँ बादल 'विप्लव के वीर' बनकर आते हैं लेकिन नागार्जुन के बादल
अपने प्राकृत रूप में आते हैं और बरसकर चले जाते हैं। इसका कोई व्यंग्यार्थ नहीं
होता।
5. कविता में कालिदास के 'मेघदूत' का उल्लेख मिलता है; संक्षेप
में इसकी चर्चा करें।
उत्तरः- मेघ को दूत बनाते हुए
संस्कृत के महाकवि कालिदास ने एक खंड काव्य (मेर्घदूत) की रचना की है। कुबेर के
यहाँ एक यक्ष फूल लाने के कार्य में लगा हुआ था। उसकी नई- नई शादी हुई थी। यक्षिणी
के प्रेम में वह इतना आसक्त हो गया कि अपने कार्य को ठीक तरह से नहीं कर पा रहा
था। एक दिन कुबेर नाराज़ हो गए और उन्होंने यक्ष को एक वर्ष तक यक्षिणी से दूर
रहने का शाप दे दिया। रामगिरि पर्वत पर अकेले समय बिताते हुए यक्ष बहुत दुखी हो
रहा था लेकिन आषाढ़ में जब आसमान में मैघ उमड़ने-घुमड़ने लगे तो वह अपनी प्रिया से
मिलने के लिए व्याकुल हो गया। शापवश वह अपनी पत्नी के पास तो नहीं जा सकता था
इसलिए अपना प्रेम संदेश उसने मेघों के माध्यम से भेजने का प्रयास किया। इस
प्रक्रिया में एक महान ग्रंथ की रचना हो गई। 'मेघदूत' विश्व साहित्य में अपनी तरह
का अनूठा काव्य है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. कवि नागार्जुन का
साहित्यिक परिचय संक्षेप में प्रस्तुत करें।
उत्तरः- 1911 ई. में सतलखा में कवि
नागार्जुन का जन्म हुआ। अभार्वा में पले-बढ़े वैद्यनाथ मिश्र की पढ़ाई संस्कृत में
हुई। घुमक्कड़ प्रकृति के कारण नागार्जुन 1936 ई. में श्रीलंका गए और बौद्ध धर्म
में दीक्षित हुए। लगातार घूमते रहने के कारण अपने देश के विभिन्नै समाजों को
उन्होंने नज़दीक से देखा। देश की गरीब जनता हमेशा उनके चिंतन के केंद्र में रही
इसलिए उनका सम्पूर्ण लेखन निम्न वर्ग की जनता के लिए है।
बाबा नागार्जुन हिंदी, मैथिली,
संस्कृत एवं बांग्ला में साहित्य सृजन करते रहे। मैथिली में 'यात्री' नाम से
विख्यात हुए और हिंदी में 'नागार्जुन' नाम से जाने गए। कविता, उपन्यास एवं निबंध
के अतिरिक्त अन्य विधाओं में भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। सात खंडों में उनकी
रचनावली प्रकाशित हुई है। आप किसान, मजदूर, रिक्शावाला, शिक्षक, कवि, बस ड्राइवर,
वंचित- दलित समाज, शोषित स्त्री वर्ग, परेशान मध्य-वर्ग, नेवला, मादा सूअर, तोता,
नेता आदि को नागार्जुन की कविताओं में सहज देख सकते हैं। कहीं जनता के लिए शासन से
भिड़ने की चुनौती हो, कहीं दलितों के अत्याचार का प्रतिकार, कहीं प्रकृति की
सुन्दर झाँकी हो, सब कुछ नागार्जुन की कविता में समाहित है। जनता के पक्ष में
नेताओं पर व्यंग्य बाण चलाते हुए उन्होंने आंदोलनों का भी समर्थन किया और चार बार
जेल गए।
14 कविता संकलन, 2 खण्डकाव्य, 12
उपन्यास तो उन्होंने हिंदी में लिखे ही कई पुस्तक मैथिली में लिखकर भी अपनी
प्रतिभा का लोहा मनवाया। 'पत्रहीन नग्न गाछ' (मैथिली कविता संग्रह) पर उन्हें
साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
युगधारा, प्यासी पथराई आँखें,
सतरंगे पंखोंवाली, हज़ार- हज़ार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस जैसे काव्य
संग्रह तथा रतिनाय की चाची, बलचनमा, कुंभीपाक, उग्रतारा, जमनिया का बाबा एवं वरुण
के बेटे जैसे उपन्यास उनकी कीर्ति के आधार स्तंभ हैं। प्रतिबद्ध जनकवि एवं आधुनिक
चेतना के प्रगतिशील महान व्यंग्यकार कवि के रूप में उनका नाम सबसे आगे है।
2. कविता में किन्नर
किन्नरियों के जीवन के किन पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, संक्षेप में लिखें।
उत्तरः- कवि नागार्जुन ने इस कविता
में पर्वतीय प्रदेश में रहने वाले किन्नर एवं किन्नरियों के उन्मुक्त एवं मधुर
जीवन का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है। कवि लिखते हैं कि किन्नर-किन्नैरियों की
कुटिया देवदार-वन में लाल एवं श्वेत भोजपत्रों से बनी हुई है। उस कुटी में शंख के
समान सुडौल, सुंदर गले वॉली किन्नरियों रह रही हैं। उनके केश रंग-बिरंगे एवं
सुगंधित फूलों से सुशोभित हैं। उनके गले में नीलम की माला है और वे अपने कानों में
नीलकमल लटकाए हुए हैं। उनकी चोटी लाल कमल से गूँथी गई है।
उनके सामने लाल चंदन की त्रिपदी
(तिपाई) रखी हुई है जिसपर चाँदी से बने सुंदर मदिरा पात्रों में द्राक्षासव (अंगूर
की शराब) मौजूद है। वे कोमल एवं गर्म शिशु कस्तूरी मृगछालों पर पलथी मारे बैठे हुए
हैं। उन्होंने थोड़ी शराब पी रखी है और उनकी आँखों से मादकता छलक रही है। उन
किन्नर-किन्नरियों की मुलायम मनोहारी अँगुलियों में वंशी है और वे उसे बजाकर सबको
मोहित कर रहे हैं। वास्तव में पर्वतीय प्रदेश के वासी प्रकृति से ही अपना श्रृंगार
करते हैं और प्राकृतिक परिवेश में रहते हुए उन्मुक्त, संगीतमय जीवन जीते हैं।
3. इस कविता के आधार पर नागार्जुन के भाषिक
सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः- 13 भाषाओं के ज्ञाता नागार्जुन चार भाषाओं में
साहित्य सृजन करते रहे हैं इसलिए उनकी भाषिक कलाकारी के बारे में जितना लिखा जाए कम ही
है। भाषा के जितने रूप हो सकते हैं सभी नागार्जुन ने इस्तेमाल किए हैं। चाहे
संस्कृतनिष्ठ पदावली हो, बोलचाल की शब्दावली हो या तरह-तरह के शब्दों को मिलाकर
कविता में नाटकीयता लाना हो; सभी में वे माहिर हैं। अंग्रेज़ी शब्द हों,
उर्दू-फारसी-अरबी के पद हों या गाँव की बोली की छौंक - नागार्जुन सब में लाजवाब
हैं। लय, तुक, ताल, बिंब, प्रतीक, मिथक सबकुछ उनकी भाषिक क्षमता को अद्वितीय बनाता
है। इस कविता के संस्कृतनिष्ठ शब्दों की मधुर पदावली के द्वारा कवि ने कविता को
विशेष बना दिया है। यह भी भाषा का एक तेवर है। लेकिन यह जयशंकर प्रसाद और
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की संस्कृतनिष्ठ कविता से अलग है। शब्दावली संस्कृत की
है पर प्रवाह बोलचाल वाला है। कर्णप्रिय शब्दों को इतने लय में पिरोया गया है कि
भाषा कानों से घुलती हुई हृदय तक पहुँचती है। कहीं अनुप्रास (अमल-धवल, अगल-बगल,
तरलै-तरुण, स्वर्णाभ-शिखर, श्यामल नील- सलिल आदि) की छटा है तो कहीं पुनरावृत्ति
से पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार (छोटे-छोटे, मंद-मंद, गरज-गरज आदि) की घटा। कविता में
मानवीकरण अलंकार (तुंग हिमालय के कंधों पर) एवं रूपक अलंकार (शैवालों की हरी दरी
पर) को सहज ही देखा जा सकता है। 'धनपति कुबेर' जैसे मिथकीय पात्र का नाम डालकर कवि
ने कविता को कई स्तर पर विशेष बना दिया है।
तत्सम प्रधान होते हुए भी कविता नाद सौंदर्य से युक्त है।
मधुरता, सरसता, कोमलता एवं भावानुरूप प्रवाह के कारण कविता अद्वितीय बन पड़ी है।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
पाठ सं. | पाठ का नाम |
अंतरा भाग -1 | |
गद्य-खंड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
काव्य-खंड | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
अंतराल भाग 1 | |
1. | |
2. | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |