प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Elective
अंतरा भाग -1 गद्य-खंड
पाठ 3. टॉर्च बेचनेवाले
लेखक परिचय [हरिशंकर परसाई (सन् 1924 -1995)]
हरिशंकर परसाई का जन्म जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद, मध्य
प्रदेश में हुआ था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया। कुछ
वर्षों तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात् सन् 1947 से वे स्वतंत्र लेखन में जुट
गए। उन्होंने जबलपुर से 'वसुधा' नामक साहित्यिक पत्रिका निकाली।
परसाई ने व्यंग्य विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान
की। उनके व्यंग्य-लेखों की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे समाज में आई विसंगतियों,
विडंबनाओं पर करारी चोट करते हए चिंतन और कर्म की प्रेरणा देते हैं। उनके व्यंग्य
गुदगुदाते हुए पाठक को झकझोर देने में सक्षम हैं।
भाषा-प्रयोग में परसाई को असाधारण कुशलता प्राप्त है। वे
प्रायः बोलचाल के शब्दों का प्रयोग सतर्कता से करते हैं। कौन सा शब्द कब और कैसा
प्रभाव पैदा करेगा, इसे वे बखूबी जानते थे।
परसाई ने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है,
जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं 'हँसते हैं रोते हैं', 'जैसे उनके दिन फिरे'
(कहानी-संग्रह); 'रानी नागफनी की कहानी', 'तट की खोज' (उपन्यास); 'तब की बात और
थी', 'भूत के पाँव पीछे', 'बेईमानी की परत', 'पगडंडियों का जमाना', 'सदाचार की
तावीज़', 'शिकायत मुझे भी है', 'और अंत में' (निबंध-संग्रह); 'वैष्णव की फिसलन',
'तिरछी रेखाएँ', 'ठिठुरता हुआ गणतंत्र', 'विकलांग श्रद्धा का दौर' (व्यंग्य-लेख
संग्रह)। उनका समग्र साहित्य परसाई रचनावली के रूप में छह भागों में प्रकाशित है।
पाठ परिचय
'टॉर्च बेचनेवाले' व्यंग्य रचना में हरिशंकर परसाई ने टॉर्च
के प्रतीक के माध्यम से आस्थाओं के बाज़ारीकरण और धार्मिक पाखंड पर प्रहार किया है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर
1. लेखक ने टॉर्च बेचनेवाली कंपनी का नाम
'सूरज छाप' ही क्यों रखा?
उत्तरः- पूरे ब्रह्माण्ड में रोशनी फैलाने वाला सूरज ही
है। प्रकाश की तीव्रता और शक्ति का मापदण्ड सूरज के अलावे कोई अन्य हो ही नहीं
सकता। इस नाम पर बने टॉर्च का लोगों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है और लोग उसे
खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं। इसीलिए लेखक ने टॉर्च बेचनेवाली कम्पनी का नाम
'सूरज छाप' रखा।
2. पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात
किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है ?
उत्तरः- पाँच साल पूर्व दो दोस्त नौकरी की तलाश में दो
विपरीत दिशाओं में इस वादे के साथ निकले कि पाँच साल बाद दोनों इसी जगह पर
मिलेंगे। समय बीतने पर नियत समय में एक मित्र पहुँचकर दूसरे मित्र की राह तकने लगा। काफी
प्रतीक्षा के बाद जब उसका मित्र नहीं पहुँचा तो वह उसे ढूँढने निकल पड़ा। अचानक वह
एक मैदान में पहुँचा, जहाँ एक सुंदर विशाल और रौशनी से जगमगाता मैच था। सामने श्रद्धा
से सर झुकाए जनसमुदाय बैठा था। मंच पर रेशमी वस्त्रों से सुसज्जित, एक हृष्ट-पुष्ट
व्यक्ति बैठा था। उसके लम्बे केश सुंदर तरीके से संवारे हुए थे। लंबी दाढ़ी थी तथा
बहुत ही गंभीर वाणी में वह उपदेश दे रहा था। नजदीक जाने पर उसने उसे पहचान लिया, वह
उसका मित्र था। वह जैसे ही कुछ बोलने को बढ़ा, साधु के वेश वाला मित्र उसका हाथ पकड़कर
अपने साथ कार में बैठा लिया और उसे चुप रहने का संकेत करते हुए कहा कि बँगले पर चलो
वहीं ज्ञानचर्चा होगी। उसने ड्राईवर की उपस्थिति में कुछ कहना-सुनना उचित नहीं समझा
क्योंकि इससे भव्यपुरुष के वेश वाले मित्र की पोल खुलने का डर था। इस प्रकार पाँच वर्ष
बाद दो मित्रों की मुलाकात इन विचित्र परिस्थितियों में हुई।
3. पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और वह
किस अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था?
उत्तरः- पहला दोस्त मंच पर भव्य पुरुष के रूप में था। वह
खूब हृष्ट-पुष्ट था, उसकी लंबी सँवारी हुई दाढ़ी थी। पीठ पर लहराते केश, रेशमी वस्त्रों
में सुसज्जित उसका मुखमंडल चमक रहा था। मंच पर जगमगाती रोशनी में वह बिल्कुल फिल्मों
के संत जैसा दिखाई पड़ रहा था। वह बड़ी गुरु गंभीर वाणी में लोगों में व्याप्त भय,
अँधेरे की बात कर रहा था। एक प्रकार से वह लोगों को डरा रहा था। उसके बाद उस डर को
दूर करने के लिए वह उपाय बता रहा था कि हमारे साधना मंदिर में आओ। तुम्हारे भीतर जो
अंधेरा है, तुम्हारी आत्मा भय, त्रास, पौड़ा से ग्रस्त है, मेरे पास उससे उबरने का
उपाय है। मैं तुम्हारे भीतर शाश्वत ज्योति जगाने आया हूँ। तुम्हारी आत्मा' का उद्धार
करने आया हूँ। इस प्रकार वह भीतर के अँधेरे को दूर करने का टार्च बेच रहा था तथा लोगों
को गुमराह कर रहा था।
4. भव्य
पुरुष ने कहा- 'जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है'। इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तरः- भव्य पुरुष ने कहा- 'जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश
है' अर्थात् ज्ञान-अज्ञान, अंधकार प्रकाश सर्वत्र विद्यमान है। दोनों एक दूसरे के पूरक
हैं। अंधकार में ही प्रकाश का उजाला भी है, साथ ही यहाँ साधू-संतों दद्वारा लोगों को
भटकाए जाने पर भी व्यंग्य किया गया है। जो लोग अज्ञानी होते हैं, हैं, वही इन तथाकथित
साधुओं के चंगुल में फँसते हैं और परेशान रहते हैं। जिन जिन्हें थोड़ा भी ज्ञान है,
वे इनकी ओर ध्यान भी नहीं देते हैं, जिससे इनका धंधा मंदा चलता है।
5. भीतर
के अँधेरे की टार्च बेचने और 'सूरज छाप' टॉर्च बेचने के धंधे में क्या फ़र्क है? पाठ
के आधार पर बताइए।
उत्तरः- भीतर के अँधेरे की टॉर्च बेचने वाला लोगों को गुमराह
करता है। वह उन्हें उनकी आत्मा में
व्याप्त भय पीड़ा दुख का डर दिखाता है और उसे अपनी ओर आकर्षित करता है। वह कहता है
कि जब तक तुम मंदिर नहीं जाओगे, साधना नहीं करोगे। तुम इस अंधेरे को दूर नहीं कर सकते।
इस तरह वह बिना अधिक मेहनत किए लोगों को डरा कर उनके द्वारा चढ़ाए गए दान-दक्षिणा से
ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीता है। उसका धंधा खूब चलता है, दूसरी ओर सूरज छाप टॉर्च बेचने
वाला व्यक्ति लोगों को बाहर के अँधेरे, साँप बिच्छू का, कील-कॉटे का डर दिखाता है और
अपनी टॉर्च बेचता है। हालाँकि बहुत मेहनत करने के बाद भी वह एक सामान्य जीवन ही जी
पाता है क्योंकि उसे ज्यादा कमाई नहीं होती है।
6. 'सवाल के पाँव जमीन में गहरे गड़े हैं।
यह उखड़ेगा नहीं।' इस कथन में मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत है और क्यों ?
उत्तर:- एक दिन दोनों मित्र रोजगार प्राप्त करने के विषय
में बैठ कर बातें करने लगे। रुपये कमाने की तरकीब पर बहुत दिमाग खपाया, परंतु कोई समाधान
नहीं मिला। थाँड़ी देर तक बहुत सोच-विचार करने पर उन्होंने निर्णय लिया कि यह बहुत
कठिन समस्या है, जिसे हल करना आसान प्रतीत नहीं हो रहा है। क्यों न इसे समय के ऊपर
छोड़ दिया जाय। कभी-कभी व्यक्ति निराशा के क्षणों में समस्याओं को बीच में छोड़ देना
ही उचित समझता है। अत्यधिक माथा-पच्ची से अगर समय और ऊर्जा बर्बाद होने लगे तो उस समस्या
को वहीं छोड़कर हमें दूसरे कार्य में अपनी शक्ति, समय और ऊर्जा लगाना चाहिए। कालक्रम
में वह समस्या भी समाप्त हो जाती है। यह मनुष्य की निराशाजनक प्रवृत्ति और बुद्धिमानी
एवं रचनात्मकता दोनों को दर्शाती है।
7. 'व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है।'
परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः- 'टार्च बेचनेवाले' हरिशंकर परसाई जी की एक व्यंग्यपरक
रचना है, जिसमें उन्होंने तथाकथित साधु महात्माओं की पोल खोलकर लोगों को उनसे बचने
की सलाह दी है। ये साधु बने ठग लोगों को भीतर के अँधेरे, भय, निराशा, चिंता, परेशानी
का डर दिखाकर उससे बचने के उपाय बताने के बहाने उनसे मोटी रकम वसूलते हैं। खुद तो ऐशो
आराम का जीवन जीते हैं, भ्रष्ट होते हैं तथा दूसरे को माया-मोह में नहीं फँसने का उपदेश
देते हैं। इस विषय पर उनकी भाषा हमें चमत्कृत करती है। व्यंग्य का पैनापन सीधे हृदय
को छू लेता है। कुछ उदाहरण से उनके व्यंग्य के रहस्य को समझा जा सकता है-
(i) मैं देख रहा हूँ मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त
है।
(ii) साथ जाने में किस्मतों के टकराकर टूटने का डर बना रहता
है।
(iii) हम दोनों ने उस सवाल की एक एक टाँग पकड़ी और उसे हटाने
की कोशिश करने लगे।
(iv) आखिर बाहर का टार्च भीतर आत्मा में कैसे घुस गया?
(v)
उस टॉर्च की कोई दुकान बाजार में नहीं है। वह बहुत सूक्ष्म है। मगर कीमत उसकी बहुत
मिल जाती है।
इस
प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि परसाई जी ने व्यंग्यात्मक भाषा का सहजतापूर्वक प्रयोग
किया है।
8. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है?
उत्तरः-
हरिशंकर परसाई द्वारा रचित 'टॉर्च बेचनेवाले' शीर्षक पाठ को पढ़कर यह प्रश्न मन को
उद्वेलित करता है कि क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है। उत्तर है नहीं,
पैसा इंसान के लिए ज़रूरी है, परन्तु बेईमानी, धोखाधड़ी, अपराध से कमाया हुआ धन व्यक्ति,
समाज और देश के लिए हानिप्रद है। जिन लोगों का नैतिक रूप से पतन हो गया है, वही इस
प्रकार की चालबाजियाँ करते हैं तथा अपना लोक-परलोक दोनों बिगाड़ते हैं। गलत नीतियों
से कमाया हुआ धन हमें कभी स्वीकार नहीं करना चाहिए।
(ख) प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति
को जगाओ।
उत्तरः-
साधु बना व्यक्ति लोगों को अँधेरे का डर दिखाकर उसे दूर करने के उपायों को बताने के
बहाने पैसे ऐंठता है, हालाँकि इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने पाठक वर्ग को संबोधित
किया है कि हम अपनी समस्याओं, चिंता, दुख से घबराकर साधु संतों के वेश धारण किए हुए
भ्रष्ट बाबाओं के पास पहुँचते हैं और अपना सबक्छ लुटा बैठते हैं। ये तथाकथितं साधु
महात्मा स्वयं भ्रष्ट, बेईमान और अंधकार से भरे हैं। ये दूसरों के मार्ग को कैसे बता
सकते हैं? इसलिए व्यक्ति को तार्किक रूप से विवेक सम्मत उपाय और समाधान ढूँढने चाहिए
और स्वयं पर ही विश्वास करना चाहिए।
(ग) धंधा वही करूँगा, यानी टॉर्च बेचूँगा। बस कंपनी बदल रहा हूँ।
उत्तरः-
लेखक ने साधु महात्माओं की काली करतूतों का पर्दाफाश किया, इन पक्तियों के माध्यम से
लेखक ने बताना चाहा है कि भारतवर्ष में धर्म का काला धंधा तेजी से फलता-फूलता है क्योंकि
हम भारतीय अंधविश्वासी और अर्कमण्य होते हैं। हमें अपनी मेहनत से ज्यादा भरोसा तथाकथित
बाबाओं पर होता है, जो हमारी कमजोरी का फायदा उठाकर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं। भौतिक
टॉर्च बेचने वाला बाहर के अँधेरे का चित्र शब्दों के जाल से इस प्रकार बनाता है कि
भरी दोपहरी में हम डर से कॉप जाते हैं और तत्क्षण अँधेरे का डर दूर भगाने के लिए टॉर्च
खरीद लेते हैं। इस कार्य में टॉर्च वाला मेहनत की कमाई खाता है इसके विपरीत भीतर के
अँधेरे का डर दिखाकर बाबा लोग हमारी कमाई लूट लेते हैं और स्वयं ऐशमौज की ज़िंदगी जीते
हैं। वे सूक्ष्म टॉर्च बेचने का धंधा करते हैं, जो चालाकियों और धूर्तता भरी होती है।
अर्थात् दोनों का धंधा एक ही है, हाँ नाम और कम्पनी अलग अलग है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. हरिशंकर परसाई की रचनाओं में किस भाव की
प्रधानता है?
क) हास्य
ख) करुणा
ग) व्यंग्य
घ) प्रेम
2. हरिशंकर परसाई का जन्म कहाँ हुआ?
क) होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
ख) अल्मोड़ा, उत्तराखंड
ग) बनारस, उत्तर प्रदेश
घ) दरभंगा, बिहार
3. 'जैसे
उनके दिन फिरे' की रचना-विधा क्या है ?
क) उपन्यास
ख) कहानी
ग) निबंध
घ) कविता
4. हरिशंकर
परसाई का चर्चित उपन्यास है-
क) रानी नागफनी की कहानी
ख) वैष्णव की फिसलन
ग) तिरछी रेखाएँ
घ) ठिठुरता हुआ गणतंत्र
5. हरिशंकर
परसाई दवारा लिखित व्यंग्य है-
क) वैष्णव की फिसलन
ख) तिरछी रेखाएँ
ग) ठिठुरता हुआ गणतंत्र
घ) उपर्युक्त सभी
6. प्रसिद्ध
व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई द्वारा संपादित पत्रिका 'वसुधा' का प्रकाशन कहाँ से होता
था?
क) भोपाल, मध्य प्रदेश
ख) उज्जैन, मध्य प्रदेश
ग) जबलपुर, मध्य प्रदेश
घ) इंदौर, मध्य प्रदेश
7. परसाई जी ने स्नातकोत्तर की उपाधि किस विश्वविद्यालय
से हासिल की थी ?
क) भोपाल विश्वविद्यालय
ख) नागपुर विश्वविद्याल
ग) उज्जैन विश्वविद्यालय
घ) इनमें से कोई नहीं
8. टार्च बेचने वाले के माध्यम से परसाई जी
ने किस पर व्यंग्य किया है?
क) सामाजिक कुरीति
ख) आस्थाओं के बाजारीकरण
ग) आर्थिक विपन्नता
घ) उपर्युक्त सभी
9. 'भव्य पुरुष' कैसे दिख रहे थे?
क) मंदिर की मूर्ति
ख) फिल्मों के संत
ग) सर्कस के जोकर
घ) इनमें से कोई नहीं
10. भव्य पुरुष अपने प्रवचन में क्या जानने
का आह्वन करते हैं?
क) शाश्वत तरंग
ख) शाश्वत उमंग
ग) शाश्वत ज्योति
घ) इनमें से कोई नहीं
11. 'बंगले पर पहुँचकर मैंने उसका ठाट देखा' यहाँ ठाट का क्या अर्थ
है?
क)
खाट
ख) वैभव
ग)
तेवर
घ)
इनमें से कोई नहीं
12. किस कंपनी की टॉर्च की पेटी को नदी में फेंककर नया काम शुरू किया
गया ?
क)
दिनकर छाप
ख)
भास्कर छाप
ग) सूरज छाप
घ)
प्रभाकर छाप
13. वाक्य को पूरा कीजिए सूरज छाप टॉर्च खरीदो और----------।
क.
अंधेरे से बचो
ख. अंधेरे को दूर करो
ग.
प्रकाश फैलाव
घ.
उपर्युक्त सभी
14. भव्य पुरुष ने कैसे वस्त्र पहन रखे थे ?
क.
सूती वस्त्र
ख.
गेरुआ वस्त्र
ग. रेशमी वस्त्र
घ.
क और ख दोनों
15. दोनों दोस्त कितने वर्ष बाद दोबारा मिलते हैं?
क.
3 वर्ष
ख.
4 वर्ष
ग. 5 वर्ष
घ.
6 वर्ष
16. 'अंधकार में प्रकाश की किरण है जैसे प्रकाश में अंधकार की किंचित
कालिमा है' यहाँ 'किंचित' का क्या अर्थ है?
क.
काला
ख.
बहुत
ग. थोड़ा
घ.
इनमें से कोई नहीं
17. "उसने कहा धंधा वही करूँगा बस कंपनी बदल रहा हूँ।" -यहाँ
किस धंधे की बात कही गई है?
क.
प्रवचन देना
ख. टॉर्च बेचना
ग.
धोखा देना
घ.
उपर्युक्त सभी
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं?
उत्तरः-
व्यंग्य को साधारण बोलचाल की भाषा में ताना, चुटकी, कटाक्ष, ठिठोली या छींटाकशी कहते
हैं। अंग्रेजी में यह सटायर कहलाता है। व्यंग्य के माध्यम से व्यंग्यकार प्रत्यक्ष
रूप से आक्रमण नहीं करता अपितु अप्रत्यक्ष रूप से विसंगतियों और विद्रूपताओं के विरुद्ध
एक तेज़ हथियार के रूप में व्यंग्य का प्रयोग करता है।
2. 'सूरज छाप' टॉर्च कहने में क्या व्यंग्य है?
उत्तर:-
'सूरज छाप' टॉर्च को कहने में यह व्यंग्य निहित है कि लोगों को अंधेरे से डराकर टॉर्च
बेचनेवाला लोगों के सम्मुख अपनी टॉर्च को प्रकाश के सर्वोत्तम साधन के रूप में प्रचारित
करता है। यहाँ लेखक यह कटाक्ष करता है कि वैसे ही चतुर व पाखंडी लोग भी अपने मत एवं
ज्ञान परम सत्य के रूप में प्रचारित कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. 'टॉर्च बेचनेवाले' रचना के प्रयोजन और व्यंग्य
को अपने शब्दों मे लिखिए।
उत्तर:- 'टॉर्च बेचनेवाले हरिशंकर परसाई दवारा लिखित एक प्रभावपूर्ण
व्यंग्य-रचना है। इस रचना का प्रयोजन है समाज में लोगों को भ्रमित कर ठगने वाले साधु
वेशधारी लोगों के पाखंड का पर्दाफाश करना।
लेखक ने टॉर्च बेचनेवाले दो मित्रों की कहानी के माध्यम से
यह बताया है कि दोनों में एक मित्र अपनी चत्राई से प्रवचनकर्ता बन जाता है। वह संतों
की वेशभूषा धारण कर ऊँचे आसन पर विराजमान हो जाता है। वह लोगों को जीवन और संसार का
घना अंधकार दिखाते हए भयभीत कर देता है। फिर आत्मा का उजाला प्रदान कैरने के लिए उन्हें
अपने पास बुलाता है। इस प्रकार आत्मा का प्रकाश बेचने का धंधा कर वह भव्य बँगले का
और असीम धन-सम्पत्ति का मालिक बन जाता है।
दूसरा दोस्त उसके लाभप्रद धंधे को देखकर आश्चर्यचकित रह जाता
है और वह भी अपने 'सूरज छाप' टॉर्च बेचने का धंधा छोड़कर भीतर के अँधेरे की टॉर्च बेचने
का धंधा अपना लेता है।
लेखक ने इस व्यंग्य-रचना में अत्यंत कुशलतापूर्वक यह दिखाया
है कि किस प्रकार समाज में ठंगने भरमाने का गरिमामय धंधा फल फूल रहा है। इसमें ऐसे
पाखंड पर कड़ा प्रहार किया गया है।
2. 'टॉर्च बेचनेवाले' पाठ के आधार पर धार्मिक
कथावाचकों के विषय में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः- कहने को हम इक्कीसवीं शताब्दी के तृतीय दशक में जी
रहे हैं। किंतु धार्मिक संगठनों को देखकर हमें लगता है कि अभी हम बहत पीछे हैं। धर्म
व्यक्तिगत आस्था पर निर्भर करता है किंतु फिर भी धर्म के कुछ मानदंड हैं। संसार के
सभी धमों में सत्य, अहिंसा, परोपकार, क्षमा, सहनशीलता, इंद्रिय संयम, पवित्रता आदि
गुणों की महत्ता वर्णित की गई है। भोली-भाली जनता इन भावों की तलाश में भटक रही है।
ये तथाकथित धर्मगुरु जनता की इस भावना का शोषण करते हैं।
आज देश में लाखों की संख्या में धार्मिक कथावाचक हैं जिनका अपना जनाधार है। कुछ ने पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी अपना संगठन खड़ा कर लिया है। ये मानव कल्याण की बात करते हैं, किंतु वास्तव में धार्मिक व्यापारी हैं। इन धार्मिक कथावाचकों की वाणी सुनकर लगता है, देश में सतयुग आ गया है किन्तु इनकी करतूत जब खुलती है, तब मालूम होता है कि इनमें वे सभी अवगुण हैं जो तस्कर, माफिया, चोर, लुटेरे, बलात्कारी, हत्यारे आदि में होते हैं। इनकी करनी और कथनी में बहुत अंतर है अतः ऐसे कथावाचकों पर विश्वास करना आँम जनता के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
पाठ सं. | पाठ का नाम |
अंतरा भाग -1 | |
गद्य-खंड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
काव्य-खंड | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
अंतराल भाग 1 | |
1. | |
2. | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |