Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 काव्य-खंड पाठ 10. खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहि भावति

Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 काव्य-खंड पाठ 10. खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहि भावति

 Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 काव्य-खंड पाठ 10. खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहि भावति

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Class - 11 Hindi Elective

अंतरा भाग -1 काव्य-खंड

पाठ 10. खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहि भावति

कवि परिचय [सूरदास (सन् 1478-1583)]

सूरदास का जन्म-स्थान रुनकता या रेणुका क्षेत्र, जिला आगरा, उत्तर प्रदेश माना जाता है। कुछ वि‌द्वानों ने दिल्ली के निकट सीही ग्राम को उनका जन्म स्थान माना है। सूरदास मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे। वे महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे तथा पुष्टिमार्गी संप्रदाय के 'अष्टछाप कवियों में उनकी सर्वाधिक प्रसिद्धि थी। वे जन्मांध थे। सूरदास सगुणोपासक कृष्णभक्त कवि हैं। उन्होंने कृष्ण के जन्म से लेकर मथुरा जाने तक की कथा और कृष्ण की विभिन्न लीलाओं से संबंधित अत्यंत मनोहर पदों की रचना की है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन अपनी सहजता, मनोवैज्ञानिकता और स्वाभाविकता के कारण अ‌द्वितीय है। वे मुख्यतः वात्सल्य और श्रृंगार के कवि हैं। सूर की भाषा ब्रजभाषा है। सूरदास की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं सूरसागर, सूरसारावली और साहित्यलहरी।

पाठ परिचय

पहले पद में कृष्ण की बाल लीला का वर्णन है। खेल में हार जाने पर कृष्ण अपनी हार को स्वीकार नहीं करना चाहते। यहाँ बाल मनोविज्ञान का सूक्ष्म चित्रण देखा जा सकता है। दूसरे पद में गोपियाँ आपस में अपनी सखियों से कृष्ण की मुरली के प्रति जो रोष प्रकट करती हैं, उससे कृष्ण के प्रति उनका प्रेम ही प्रकट होता है। मुरली कृष्ण के नजदीक ही नहीं है, वह जैसा चाहती है. कृष्ण से वैसा ही करवाती है। इस तरह एक तो वह उनकी आत्मीय बन बैठी है और दूसरे वह गोपियों को कृष्ण का कोपभाजन भी बनवाती है। इस पद में गोपियों का मुरली के प्रति ईर्ष्या-भाव प्रकट हुआ है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

1. 'खेलन में को काको गुसैयों पद में श्रीकृष्ण और सुदामा के बीच किस बात पर तकरार हुई ?

उत्तरः- 'खेलन में को काको गुसैयाँ पद में कृष्ण और सुदामा के बीच तकरार इस बात पर हई कि दोनों खेल रहे थे तथा खेल में श्रीकृष्ण पराजित हो गए और सुदामा विजयी किंतु कृष्ण अपनी पराजय को स्वीकार नहीं कर रहे थे। सुदामा अपनी बारी माँग रहे थे और श्रीकृष्ण सुदामा को उनकी बारी के खेल का दाँव देने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे।

2. खेल में रूठने वाले साथी के साथ सब क्यों नहीं खेलना चाहते?

उत्तरः खेल में हार जीत संभव है। खेल में रूठने वाले के लिए कोई स्थान नहीं होता। खेल सदैव समानता की भावना से खेला जाता है। खेल को हार और जीत की चिंता किए बिना खेल भावना से खेलना चाहिए। यदि खेल में कोई हारकर रूठता या क्रोध करता है और दूसरों को दाँव नहीं देता तो वह खेल के नियमों को तोड़ रहा होता है। यही कारण है कि खेल में रूठने वाले (श्रीकृष्ण) साथी के साथ सब खेलना नहीं चाहते।

3. खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डॉटते हुए क्या-क्या तर्क दिए?

उत्तर:- खेल में श्रीकृष्ण के रूठने पर श्रीकृष्ण के साथियों ने उन्हें डॉटते हुए निम्न तर्क दिए-

क. जाति मैं तुम हमसे बड़े नहीं हो।

ख. हम तुम्हारे आश्रय में नहीं रहते है।

ग. तुम्हारे पास अधिक गायें है, इसलिए तुम ज्यादा अधिकार जताते हो।

घ. रूठने वाले के साथ कोई भी खेलना पसंद नहीं करता।

ड. खेल में सभी बराबर होते हैं।

4. कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाँव क्यों दिया?

उत्तरः- कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाँव इसलिए दिया, क्योंकि पहले तो वे अपनी हार स्वीकार नहीं कर रहे थे, किल् जब ग्वाल-बाल क्रोधित होकर इधर-उधर बैठ गए, तो वे उनके साथ खेलना चाहते थे, किंतु अपनी बात को ऊपर रखना चाहते थे। तब वे पुनः खेलने के उद्देश्य से दाँव देने को तैयार हो गए, किंतु ग्वाल-बाल उनकी बात पर इतनी आसानी से विश्वास कैसे कर लेते? अतः उन्हें (ग्वाल-बालों) विश्वास दिलाने तथा अपनी बात को विश्वसनीय बनाने के लिए उनको (ग्वाल-बालों) नंद बाबा की दुहाई देकर अपने साथियों को दाँव देना स्वीकार किया।

5. इस पद से बाल मनोविज्ञान पर क्या प्रकाश पड़ता है?

उत्तरः- इस पद में बाल मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण किया गया है। बालपन में बड़े-छोटे का भाव मन में विद्यमान नहीं होता। वे कृष्ण को इसलिए बड़ा मानने को तैयार नहीं है, क्योंकि उनके पास गायें अधिक हैं। साथ ही जाति के आधार पर भी वे किसी को बड़ा नहीं मानते। बालपन में हारने वाला अपनी पराजय पर झुंझलाने लगता है और अपनी हार को स्वीकार न करके बेसिर-पैर के बहाने बनाता है, बेईमानी करता है या क्रोधित होता है, किंतु बच्चे इन सबको महत्त्व नहीं देते। वे खेल को अधूरा छोडने का प्रयास भी करते हैं। बालपन में बालक अपनी गलती स्वीकार भी करना जानते हैं तथा खेल को अपने जीवन में विशेष महत्त्व देते हैं। माता-पिता की दुहाई देने अर्थात् सौगंध भी बालपन में ही दिखाई देती हैं।

6. 'गिरिधर नार नवावति' से सखी का क्या आशय है?

उत्तरः 'गिरिधर नार नवावति' से सखी का आशय यह है कि मुरली बड़ी ही सहजता से श्रीकृष्ण से सभी काम संपन्न करा लेती है, क्योंकि श्रीकृष्ण पूर्ण रूप से मुरली के अधीन हो चुके हैं। जब श्रीकृष्ण मुरली बजाते हैं तो मुरली उनके होठों के बहुत पास रहती है। मुरली को बजाते समय उनकी गर्दन एक ओर को झुक जाती है। सखी को लगता है कि मुरली रूपी नारी ने श्रीकृष्ण की उस गर्दन को झुका दिया है जिसने कभी गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 'गर्दन नीची होना' मुहावरा है जिसका अर्थ है अपमान का अनुभव करना, लज्जित होना आदि।

7. कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है?

उत्तरः- श्रीकृष्ण के अधरों की तुलना सेज से इसलिए की गई है, क्योंकि जब श्रीकृष्ण मुरली बजाते हैं तो मुरली उनके अधरों पर लेटी हुई दिखाई देती है। सेज कोमल होती है। उसका उपयोग लेटने के लिए होता है। जब वह अपनी उँगलियों से मुरली के छिद्रों को खोलते-बंद करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो वह मुरली के पैर दबा रहे हों।

8. पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विशेषताएँ बताइए।

उत्तरः- सूरदास कृष्णभक्त कवियों में मूर्धन्य स्थान रखते हैं। इन्होंने बॉलक कृष्ण की सूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त किया है। सूरदास के काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -

क. सूरदास के काव्य में बाल-सौंदर्य का सुंदर चित्रण है। सूर के समान वर्णन अन्यत्र मिलना कठिन है।

ख. सूर के काव्य में भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है। बच्चे स्वभावतः खेल-खेल में लड़ लेते हैं, किंतु कुछ समय पश्चात् पुनः मिलकर खेलने लगते हैं।

ग. गोपियों के मन में बाँसुरी के प्रति सोतिया डाह का वर्णन अत्यंत मार्मिक है।

घ. सूरदास की रचनाओं में ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है। साधारण बोलचाल की भाषा को परिष्कृत करके उन्होंने उसे साहित्यिक रूप प्रदान किया है। उनके काव्य में ब्रज भाषा का स्वाभाविक, सजीव और भावानुकूल प्रयोग मिलता है। अपनी रचनाओं में उन्होंने स्थानीय शब्दों का भी प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए ठाढ़ो, कनौड़े आदि।

इ. प्रस्तुत पदों में वात्सल्य रस के साथ-साथ श्रृंगार रस की भी प्रधानता है।

च. सूरदास की आषा मुहावरेदार है। उनकी शब्द-चित्र उपस्थित करने की कला अत्यंत उत्तम है। प्रस्तुत रचनाओं में उन्होंने श्लेष, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग किया है।

छ. सूरदास के पर्दा में स्पष्टता एवं गेयता का गुण भी विद्यमान है। उनके अधिकांश पद किसी-न-किसी राग के अंतर्गत रचे गए हैं। उनमें काव्य और संगीत का अद्भुत संगम है।

9. निम्नलिखित काव्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।

(क) जाति-पाँति ……… तुम्हारै गैयाँ।

(ख) सुनि री ……….. नवावति।

उत्तरः- (क) जाति-पोति........ तुम्हारै गैयाँ ।

संदर्भ- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' (भाग- 1) में संकलित है। इसके रचयिता सगुणोपासक कृष्णभक्त कवि सूरदास जी हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में सूरदास जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का सजीव एवं मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है।

व्याख्या- श्रीकृष्ण और उनके मित्र सुदामा खेल रहे हैं। सूरदास जी कहते हैं कि ग्वाल-बॉलों द्वारा खेल में पराजित होने पर श्रीकृष्ण अपनी हार स्वीकार नहीं करते इस पर ग्वाल-बाल क्रोधित हो हो जाते हैं और कहते हैं कि किसलिए बड़े बन रहे हो? जाति में तो तुम हमसे बड़े नहीं हो। क्या हम तुम्हारे आश्रय में रहते हैं ? जो तुम इतनी ऐंठ दिखा रहे हो या तुम अपना अधिकार इसलिए दिखा रहे हो क्योंकि तुम्हारे पास अधिक गायें हैं।

विशेष

क. बाल-मनोविज्ञान का सूक्ष्म एवं स्वाभाविक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

ख. ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है।

ग. पंक्तियों के अंत में 'याँ' की आवृत्ति हो रही है. जिससे भाषा में प्रभाव उत्पन्न होता है।

घ. वात्सल्य रस विद्यमान है।

ड. 'अति अधिकार' में अनुप्रास अलंकार है।

च. माधुर्य गुण है।

उत्तरः- (ख) सुनि री... नवावति ।

संदर्भ- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' (भाग- 1) में संकलित है। इसके रचयिता सगुणोपासक कृष्णभक्त कवि सूरदास जी हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में गोपियाँ मुरली को अपनी सौत समझती हैं। तथा उससे ईर्ष्या करती हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण मुरली बजाते समय उसी के अधीन रहते हैं।

व्याख्या- एक सखी दूसरी सखी से कह रही है कि है सखी! श्रीकृष्ण की मुरली, उन्हें अनेक प्रकार से नचाती है, फिर भी वह श्रीकृष्ण के मन को बहुत अच्छी लगती है। मुरली उन्हें एक पैर पर खड़े रहने को बाध्य कर देती है तथा उन पर अपना ही अधिकार समझती है। मुरली श्रीकृष्ण के कोमल शरीर से मनमानी गतिविधियों करवाती है। जब श्रीकृष्ण मुरली बजाते हैं तो उनकी कमर टेढ़ी हो जाती है। यह मुरली रूपी नारी श्रीकृष्ण की गर्दन को झुका देती हैं, जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था।

विशेष

क. गोपियों का मुरली के माध्यम से कृष्ण के प्रति प्रेम प्रकट हुआ है।

ख. ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है।

ग. स्थानीय शब्दों; जैसे प्रयोग किया गया है। ठाढ़ौ, कनौड़े आदि का

घ. 'गिरिधर' में श्लेष अलंकार है।

ड. 'सुनि री सखी', 'नंदलालहिं, नाना', 'नार नवावति' मैं अनुप्रास अलंकार है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोतर

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. सूरदास किस काल के कवि है?

क भक्तिकाल

ख रीतिकाल

ग आधुनिक काल

घ आदिकाल

2. सूरदास के गुरु का क्या नाम था?

क विठ्ठलनाथ

ख वल्लभाचार्य

ग गोविंद स्वामी

घ रामानंद

3. सूरदास मुख्यतः किस रस के कवि है?

क करुण रस

ख श्रृंगार और वात्सल्य

ग हास्य रस

घ शांत रस

4. गोवर्धन पर्वत को किसने उठाया था?

क सुदामा

खराम

ग श्रीकृष्ण

घ हनुमान

5. 'खेलन में काकू गुसैयाँ पद में किसकी बाल लीला का वर्णन है?

क श्रीकृष्ण

ख श्रीराम

ग हनुमान

घ विष्णु

6. बाँसुरी बजाते समय कृष्ण की छवि किस प्रकार हो जाती है?

क ‌द्विभंगी

ख त्रिभंगी

ग खराब

घ इनमें से कोई नहीं

7. 'पुष्टिमार्ग का जहाज' किसे कहा जाता है?

क वल्लभाचार्य

ख विठ्ठलनाथ

ग कृष्ण दास

घ गोविंद स्वामी

8. मुरली के कारण कृष्ण की क्या दशा हो गई थी?

क आज्ञाकारी

ख कमर टेढी

ग मुरली के वश में हो गए

घ उपर्युक्त सभी

9. सूरदास किस शाखा के कवि है?

क राम भक्ति शाखा

ख कृष्ण भक्ति शाखा

ग सूफी

घ इनमें से कोई नहीं

10. अष्टछाप के कवियों में प्रमुख थे?

क रामानंद

ख सूरदास

ग कबीरदास

घ संत दास

11. सबसे अधिक गायें किसके पास है?

क श्रीकृष्ण

ख ग्वाल बाल

ग सुदामा

घ इनमें से कोई नहीं

12. 'गिरिधर नार नवावति' में नार शब्द का अर्थ है-

क नारी

ख गर्दन

ग कान

घ क व ख दोनों

13. सूरदास के दूसरे पद में गोपियों किसके प्रति अपना रोष व्यक्त करती हैं ?

क कृष्ण के प्रति

ख कृष्ण की बाँसुरी के प्रति

ग राधा के प्रति

घ ऊधव के प्रति

14. सूरदास के दूसरे पद में अधर सज्जा और कर पल्लव में कौन-सा अलंकार है ?

क आन्तिमान

ख यमक

ग रूपक

घ श्लेष

15. सूरदास के पहले पद में कृष्ण की किस लीला का वर्णन है?

क मान मर्दन लीला

ख पूतना वध

ग बाल लीला

घ रास लीला

16. 'नंदलालहिं, नाना भाँति नचावती' में कौन-सा अलंकार है?

क रूपक

ख उपमा

ग अनुप्रास

घ यमक

17. सूरदास का जन्म कब हुआ था ?

क 1887 ई.

ख 1478 ई.

ग 1587ई.

घ 1428 ई.

18. गोपियों के अनुसार कृष्ण को कौन प्रिय है ?

क गोकुल

ख गोपी

ग मुरली

घ यमुना

19. निम्न में कौन-सी सूरदास की रचना है ?

क सूरसागर

ख सूरसारावली

ग साहित्यलहरी

घ उपर्युक्त सभी

20. खेल में कौन जीत जाते हैं?

क सुदामा

ख बलराम

ग कृष्ण

घ नंद

21. खेल में हारने पर कौन गुस्सा करने लगते हैं?

क सुदामा

ख बलराम

ग नंद

घ श्रीकृष्ण

22. कृष्ण खेलना चाहते हैं, तो किसकी दुहाई देते हैं ?

क नंद बाबा की

ख यशोदा की

ग जानकी की

घ राधा की

23. सूरदास की भाषा है?

क खड़ी बोली

ख अवधी

ग ब्रज भाषा

घ राजस्थानी

24. कृष्ण प्रसन्न होने पर क्या करते हैं ?

क हँसते हैं

ख रोते हैं

ग शीश हिलाते हैं

घ इनमें से कोई नहीं

25. गोपियों ने 'चतुर' की संज्ञा किसे दी है ?

क कृष्ण को

ख मुरली को

ग सुदामा को

घ बलराम को

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. ग्वाले रूठकर जहाँ-तहाँ क्यों बैठ गए?

उत्तरः- ग्वाले श्रीकृष्ण के अनुचित व्यवहार को देखकर जहाँ-तहाँ बैठ गए, क्योंकि श्रीकृष्ण हारने के बाद भी अपनी हार स्वीकार नहीं कर रहे थे और वे दाँव भी नहीं देना चाहते थे।

2. 'अति अधिकार जनावत यातै जातै अधिक तुम्हारे गैयाँ पंक्ति से क्या स्पष्ट होता है?

उत्तरः- इस पंक्ति से यह स्पष्ट होता है कि सुदामा, श्रीकृष्ण को यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि तुम इस बात पर अधिकार दिखा रहे हो, क्योंकि तुम्हारे पास गायें अधिक हैं, परंतु खेल में कोई भी धनी-निर्धन, ऊँच-नीच, स्वामी- सेवक नहीं होता।

3. हार जाने पर कृष्ण के क्रोध करने का क्या कारण था?

उत्तरः- श्रीकृष्ण स्वयं को बड़ा मानते थे। वे चाहते थे कि उन्हें बड़ा मानकर उनकी हार को जीत में परिवर्तित कर दिया जाएँ किंतु सुदामा और ग्वाल-बाल ऐसा करने को तैयार न थे। इसी कारण वश उन्हें क्रोध आ गया।

4. खेल में किस चीज का स्थान नहीं है?

उत्तर:- खेल में जात-पात, छोटा-बड़ा का कोई स्थान नहीं होता है। खेलने वाला व्यक्ति अपनी कुशलता से स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करता है।

5. मुरली के प्रति गोपियों का क्या भाव है?

उत्तरः- मुरली के प्रति गोपियों का बैरन का भाव है क्योंकि जिस स्थान पर गोपियों का होना चाहिए वहाँ मुरली ने अपनी साख जमा ली है।

6. खेल में जातिवाद की भावना आना सूरदास के समय के सामाजिक व्यवस्था की कैसी स्थिति के बारे में संकेत करता है?

उत्तरः- सूरदास जी के अनुसार उस समय समाज गौधन पर आधारित था। जिसके पास गायें जितनी बड़ी मात्रा में हुआ करती, वह उतना ऊँचा और श्रेष्ठ समझा जाता था।

7. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सूरदास के विषय में क्या कहा है?

उत्तरः- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सूरदास के विषय में कहा है - "श्रृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक सूर की दृष्टि पहुँची, वहाँ तक किसी कवि की नहीं।"

8. सूरदास के बारे में क्यों कहा जाता है कि वे जन्मांध नहीं थे ?

उत्तरः- सूरदास के काव्य में प्रकृति और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं आदि का वर्णन अपनी सहजता, मनोवैज्ञानिकता और स्वाभाविकता के कारण अ‌द्वितीय है। देखकर ऐसा नहीं प्रतीत होता कि वे जन्मांध थे।

9. वल्लभाचार्य की मृत्यु के समय श्री विठ्ठलनाथ ने क्या कहा?

उत्तरः- वल्लभाचार्य की मृत्यु के समय श्री विठ्ठलनाथ ने कहा- "पुष्टिमार्ग का जहाज जात है, सो जाको कछु लेना हो सौ लेऊ"।

10. सूरसागर को राग-सागर क्यों कहा जाता है?

उत्तरः- सूरदास के सभी पद गेय हैं और वे किसी न किसी राग से संबंधित हैं। उनके पदों में काव्य और संगीत का अपूर्व संगम है, इसीलिए सूरसागर को राग-सागर कहा जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 'मुरली तक गुपालहिं भावति' पद में एक सखी दूसरी सखी से क्या कहती है?

उत्तरः- एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि है सखी! श्रीकृष्ण की यह मुरली उन्हें अनेक प्रकार से नचाती है अर्थात् परेशान करती है, किंतु फिर भी यह श्रीकृष्ण को प्रिय है। यह मुरली उन पर अपना अधिकार जमाते हुए उनसे सब कुछ करवा लेती है। यदि हम कुछ कहें तौ यह मुरली हौ हम गोपियों पर क्रोध करवाती है। मुरली श्रीकृष्ण को पलभर में प्रसन्न कर देती है। मुरली प्रसन्न होती है तो कृष्ण भी आनंद से झूमने लगते हैं अर्थात् श्रीकृष्ण पूरी तरह से मुरली के वश में हो गए हैं।

2. बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि किस प्रकार हो जाती है?

उत्तरः- बाँसुरी बजाते समय कृष्ण की छवि अत्यंत ही मनमोहक सी प्रतीत होती है। कृष्ण की मुद्रा त्रिभंगी हो जाती है, उनकी भौहे टेढ़ी हो जाती हैं, आँखें लाल हो जाती है, नथुने फूल जाते हैं, कमर थोड़ी टेढ़ी हो जाती है तथा बाँसुरी बजाते समय श्रीकृष्ण इतने मग्न हो जाते हैं कि उन्हें किसी प्रकार की सुध-बुध नहीं रहती। बाँसुरी से जितनी मधुर तान फूट पड़ती है, उतने ही कृष्ण आनंद- विभोर होकर अपना सिर हिलाते हैं अर्थात् आनंद से झूमने लगते हैं।

3. कृष्ण को 'सुजान कनौड़े' क्यों कहा गया है?

उत्तरः- कृष्ण को 'सुजान कनौड़े' उनकी विशेषता बताने के लिए कहा गया है, क्योंकि कृष्ण गोपियों के प्रिय हैं और वे कृष्ण को अत्यधिक चतुर समझती हैं, किंतु उन्हें आश्चर्य इसलिए हो रहा है कि इतने चत्र होने के बावजूद भी मुरली ने उन्हें अपने अधीन कर लिया है। वे मुरली के सम्मुख अपनी गर्दन तक झुका देते हैं। उन्हें मुरली वादन से इतना आनंद मिलता है कि मुरली की सब बातों को सहते हुए भी वे मुरली के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हैं।

4. 'खेलन में को काको गुसैयाँ पद में श्रीकृष्ण और सुदामा के किस प्रसंग का वर्णन है?

उत्तरः- इस पद में सूरदास जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण और सुदामा खेल रहे हैं। खेल में सुदामा जीत जाते हैं और कृष्ण हार जाते हैं, किंतु वे अपनी हार को स्वीकार नहीं करते और ग्वाल-बालों पर क्रोधित होते हैं। वे स्वयं को बड़ा मानते हुए अपनी हार को जीत में बदलने का प्रयास करते हैं, किंतु उनके इस प्रयास को ग्वाल-बाल यह कहकर कि खेल में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता नकार देते हैं।

5. 'अष्टछाप' से क्या समझते हैं?

उत्तरः- 'अष्टछाप' महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी के पुत्र श्री विठ्ठलनाथ जी द्वारा स्थापित 8 भक्तिकालीन कवियों का एक समूह था, जिन्होंने अपने विभिन्न पद एवं कीर्तनों के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का गुणगान किया। अष्टछाप की स्थापना 1565 ई० में हई। इन आठ भक्त कवियों में चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे सूरदास, कुम्भनदास, परमानंद दास, कृष्णदास वहीं, अन्य चार गोस्वामी विठ्ठलनाथ के शिष्य थे गोविंदस्वामी, नंददास, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. सूरदास का साहित्यिक परिचय दें।

उत्तरः- सूरदास जी महान् काव्यात्मक प्रतिभा से संपन्न कवि थे। कृष्ण भक्ति को ही इन्होंने काव्य का मुख्य विषय बनाया। इन्होंने श्रीकृष्ण के सगुण रूप के प्रति सखा भाव की भक्ति का निरूपण किया है। इन्होंने भक्ति को अत्यंत सरसता और मधुरता से प्रस्तुत किया। वात्सल्य एवं शृंगार के वर्णन में इनका कोई सानी नहीं। उनके द्वारा 'भ्रमरगीत' विरह-भावना का श्रेष्ठ उदाहरण है। इन्होंने अपनी रचनाओं में मानव हृदय की कोमल भावनाओं का प्रभावपूर्ण चित्रण किया है। अपने काव्य में भावात्मक पक्ष और कलात्मक पक्ष दोनों पर इन्होंने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनके विषय में कहा है "श्रृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक सूर की दृष्टि पहुंची, वहाँ तक किसी कवि की नहीं।"

कृतियाँ

भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी, जिनमें से केवल आठ से दस हजार पद ही प्राप्त हो पाए है। नागरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में रचनाएँ सुरक्षित है। पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी के ग्रंथों की संख्या 25 मानी जाती है, किंतु इनके तीन ग्रंथ ही उपलब्ध हुए है, जो निम्न है-

1. सूरसागर- यह सूरदास जी की एकमात्र प्रामाणिक कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो श्रीमद्भागवत ग्रंथ से प्रभावित है। इनमें बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव-गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है। यह गीतिकाव्य उनकी कृति का मुख्य आधार है।

2. सूरसारावली- यह ग्रंथ 'सूरसागर' का सारभाग है, जो अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किंतु यह भी सूरदास जी की एक प्रामाणिक कृति है। है। इसमें इ 1107 पद है।

3. साहित्य लहरी- साहित्य लहरी में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहीं-कहीं श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर 'महाभारत' की कथा के अंशों की झलक भी है।

भाषा-शैली

सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है तथा इनके सभी पद गीतात्मक है, जिस कारण इसमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। इन्होंने सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। उनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है। व्यंग्य वक्रता और वाग्विदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। कथा-वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। सूरदास ने अपने काव्य में अलंकारों का प्रयोग अत्यंत कुशलता पूर्वक किया है। उनकी रचनाओं के हर पंक्ति में अनुप्रास बिखरा पड़ा है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीक अलंकारों का बाहुल्य उनकी रचनाओं में दर्शनीय है।

साहित्य में स्थान

सूरदास जी हिंदी साहित्य के महान काव्यात्मक प्रतिभा संपन्न कवि थे। इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और प्रेम-लीलाओं का जो मनोरम चित्रण किया है, यह साहित्य में अ‌द्वितीय है। हिंदी साहित्य में वात्सल्य वर्णन का एकमात्र कवि सूरदास जी को ही माना जाता है साथ ही इन्होंने अपनी रचनाओं में विरह-वर्णन का भी बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है।

2. सूरदास का वात्सल्य वर्णन प्रस्तुत करें।

उत्तरः- सूरदास का वात्सल्य वर्णन हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि है। रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है "बाल सौन्दर्य एवं स्वभाव के चित्रण में जितनी सफलता सूर को मिली है, उतनी अन्य किसी को नहीं। वे अपनी बन्द आँखों से वात्सल्य का कोना-कोना झॉक आए हैं।" सूर के वात्सल्य वर्णन में स्वाभाविकता, विविधता, रमणीयता एवं मार्मिकता है। जिसके कारण ये वर्णन अत्यन्त हृदयग्राही एवं मर्मस्पर्शी बन पड़े हैं। यशोदा के बहाने सूरदास ने मातृ हृदय का ऐसा स्वाभाविक, सरल और हृदयग्राही चित्र खींचा है कि आश्चर्य होता है। वात्सल्य के दोनों पक्षों- संयोग एवं वियोग का चित्रण सूरकाव्य में उपलब्ध होता है। वात्सल्य के संयोग पक्ष में उन्होंने एक ओर तो बालक कृष्ण की रूप माधुरी का चित्रण किया है तो दूसरी ओर बालोचित चेष्टाओं का मनोहारी वर्णन किया है। बालकों की खीझ, पारस्परिक प्रतिस्पर्द्धा, बुद्धि चातुर्य, अपराध को छिपाने की प्रवृत्ति, भोले-भले तर्क, आदि का विशद चित्रण सूर काव्य में मिलता है। माता यशोदा उन्हें दूध पीने के लिए मनाती हुई यह लालच देती है कि दूध पीने पर तुम्हारी चोटी बढ़ जाएगी। कृष्ण उनकी बात मानकर एक हाथ से चोटी पकड़कर और दूसरे हाथ से दूध का गिलास पकड़कर माता यशोदा से पूछने लगते हैं-

"मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी ?

किती बार मोहि दूध पिबत भई यह अजहूं है छोटी"

वे माखन चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़े गए हैं, मुख पर माखन लगा हुआ है फिर भी तर्क देकर माता के सामने अपनी निर्दोषता प्रमाणित करते हुए कहते हैं –

"मैया मैं नहिं माखन खायो।

ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो"

सूरदास ने बाल आक्रोश का भी चित्रण सुंदर ढंग से किया है। बलदाऊ कृष्ण को चिढ़ाते हैं, कि तू यशोदा का पुत्र नहीं है, तुझे तो मोल लिया गया है।

'मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ।

मोसी कहत मोल कौ लीन्हाँ तू जसुमति कब जायाँ।'

वह जैसे-तैसे उन्हें बहलाती है पर बात नहीं बन पाती।

अब वे चंद्र खिलौना के लिए मचल उठते हैं ।

'मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहौं। जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं तेरी गोद न ऐहौं।'

कृष्ण के मथुरा चले जाने पर माता का वात्सल्यपूर्ण हृदय विकल होने लगता है। उन्हें लगता है कि पुत्र कृष्ण की आदतों से वे जितनी परिचित थीं उतना और कोई उसे नहीं जानता अतः देवकी को सन्देश भेजती हुई कहती हैं-

'संदेसो देवकी सों कहियो।

हौं तो धाय तिहारे सुत की कृपा करति ही रहियौ।

जदपि टेव तुम जानति ह्वै हौ तऊ मोहि कहि आवै।

प्रात होत मेरे लाल लड़ैते माखन रोटी भावै।'

यह कहना तर्कसंगत होगा कि सूर के वात्सल्य वर्णन में मनोवैज्ञानिकता का पुट है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने सूरदास के वात्सल्य वर्णन की प्रशंसा करते हुए लिखा है - "आगे होने वाले कवियों की श्रृंगार और वात्सल्य की उक्तियाँ सूर की जूठी, सी जान पड़ती हैं।" निश्चय ही सूरदास वात्सल्य के सम्राट हैं और उनका वात्सल्य वर्णन हिन्दी साहित्य की ऐसी अपूर्व निधि है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं।

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

पाठ सं.

पाठ का नाम

अंतरा भाग -1

गद्य-खंड

1.

ईदगाह

2.

दोपहर का भोजन

3.

टार्च बेचने वाले

4.

गूँगे

5.

ज्योतिबा फुले

6.

खानाबदोश

7.

उसकी माँ

8.

भारतवर्ष की उन्नत कैसे हो सकती है

काव्य-खंड

9.

अरे इन दोहुन राह न पाई, बालम, आवो हमारे गेह रे

10.

खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

11.

हँसी की चोट, सपना, दरबार

12.

संध्या के बाद

13.

जाग तुझको दूर जाना

14.

बादल को घिरते देखा है

15.

हस्तक्षेप

16.

घर में वापसी

अंतराल भाग 1

1.

हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

2.

आवारा मसीहा

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

जनसंचार माध्यम

2.

पत्रकारिता के विविध आयाम

3.

डायरी लिखने की कला

4.

पटकथा लेखन

5.

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

6.

स्ववृत्त (बायोडेटा) लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन पत्र

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 - प्रश्नोत्तर

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