Class 11 Hindi Elective अंतराल भाग 1 पाठ 2. आवारा मसीहा

Class 11 Hindi Elective अंतराल भाग 1 पाठ 2. आवारा मसीहा

 Class 11 Hindi Elective अंतराल भाग 1 पाठ 2. आवारा मसीहा

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11 Hindi Elective

अंतराल भाग 1

पाठ 2. आवारा मसीहा

लेखक परिचय [विष्णु प्रभाकर (सन् 1912-2009)]

विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गाँव में हुआ। इनकी शिक्षा हरियाणा में हुई। मैट्रिक मैट्रिक पास होने के बाद इन्होंने नौकरी करते हुए पंजाब विश्ववि‌द्यालय से हिंदी में भूषण, प्रभाकर और बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने प्रेमबंधु और विष्णु नाम से लेखन कार्य शुरू किया बाद में प्रभाकर भी जुड़ गया।

इनके जीवन पर महात्मा गाँधी तथा आर्य समाज के आदर्शों का बहुत प्रभाव पड़ा। इन्होंने समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, नाटक कंपनी का निर्देशक, अभिनेता, स्वतंत्र लेखक, हिंदी के साहित्यिक प्रचारक इत्यादि विभिन्न भूमिकाओं में कार्य किया।

1993 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं सन् 2004 ई० में पद्मभूषण पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया उनकी रचनाएँ आवारा मसौहा शरद चंद्र की जीवनी, 12 एकांकी, प्रकाश और परछाइयाँ, स्वप्नमयी, जाने अनजाने, अशोक इत्यादि हैं। उनकी रचनाओं में समाज सुधार, स्वदेश प्रेम, राष्ट्रवाद की झलक मिलती है। इन्होंने सामाजिक विसंगतियों और बुराइयों पर जमकर प्रहार किया। इनकी भाषा सहज, सरल, आम बोलचाल की है। उनकी रचनाएँ जीवन के वास्तविक रंगों से सराबोर हैं।

पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ विधा की दृष्टि से एक जीवनी है, जिसमें महान कथा शिल्पी शरतचंद्र के जीवन की विविधताओं को सूक्ष्मता से उकेरा गया है। इसके रचयिता विष्णु प्रभाकर हैं। 'आवारा मसीहा' के प्रथम पर्व 'दिशाहारा' का एक अंश है। इस पाठ में शरद चंद्र के बचपन एवं किशोरावस्था की यात्रा को चित्रित किया गया है। उनके व्यक्तित्व निर्माण के विविध पहलुओं को दर्शाया गया है। उनके जीवन के समस्त अच्छे-बुरे अनुभव, विशिष्टताओं, संवेदनशीलता, परिपक्वता का सजीव अंकन किया गया है। उनके रचना संसार के पात्रों के जीवंतता और वास्तविकता उनके निजी जीवन के परिवेश के कारण ही संभव हो पाया है। देवदास की पारो, बड़ी दीदी की माधवी, काशीनाथ का काशीनाथ, श्रीकांत की राजलक्ष्मी, चरित्रहीन आदि के सभी पात्र काल्पनिक होते हुए भी यथार्थ हैं। इस पाठ में उन सभी परिस्थितियों की चर्चा की गई है जिसने इतने महान लेखक को जन्म दिया। संघर्ष और अभाव की चोट सहकर बालक शरद टूटा नहीं बल्कि और मजबूती से निखर गया।

शरद का जन्म बंगाल के एक साधारण गाँव देवानंदपुर में 15 सितंबर 1876 ई. को हुआ था। उनके पिता मोतीलाल यायावर प्रकृति के स्वप्नदर्शी व्यक्ति थे। स्वतंत्र विचारधारा के कारण वह कभी भी नौकरी की दासता में नहीं बंध पाए फलतः पत्नी भुवनमोहिनी अपने पिता केदारनाथ के पास भागलपुर चली गई। मोतीलाल वहाँ घर जमाई बनकर रहने लगे। बालॅक शरद कुशाग्र बुद्धि का था। वह नान-नानी के संयुक्त परिवार में रहने लगा। वह प्रकृति, साहित्य, सौंदर्य का उपासक था। नानी कामिनी के द्वारा पढ़ी जाने वाली पुस्तकों ने उसके साहित्यिक व्यक्तित्व का सृजन किया। उन्होंने कभी अन्याय सहन नहीं किया तथा ईमानदारी एवं नैतिकता को सर्वोपरि समझा। नाना के संयुक्त परिवार में रहते हुए अपने नेतृत्व क्षमता के कारण वह सभी बच्चों का नेता बन गया। पारिवारिक अनुशासन की कठोरता उसे सहन नहीं थी। इसलिए वह चोरी छुपे इन्हें तोड़ता रहता था। तितलियाँ पकड़ना, उपवन बनाना बाग से फूलों को तोड़ना, बाल सुलभ शरारतें करना, दया व परोपकार के कार्य करते रहना, मन लगाकर पढ़ाई करना, नदी में स्नान करना, प्रकृति में घूमते हुए उन रहस्यमय लीलाओं का चिंतन मनन करना, जोखिम भरे कार्यों में जुट जाना, यात्रा करना, मछली पकड़ना इत्यादि उसके प्रिय खेल थे।

कहानी लिखने की प्रेरणा शरद को अपने पिता की अलमारी से प्राप्त अधूरी किताबों को देखकर हुई। उनका जिज्ञासु और कल्पनाशील मन उन कहानियों के अंत पर खूब चिंतन-मनन करता। यहीं से वह लेखक बनने की ओर उन्मुख हुए तथा अपनी रचनाओं में अपने जीवन अनुभवों को जगह देकरे बांग्ला साहित्य को समृद्ध किया।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

1. उस समय वह सोच भी नहीं सकता था कि मनुष्य को दुख पहुंचाने के अलावा भी साहित्य का कोई उद्देश्य हो सकता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा? आपके विचार से साहित्य के कौन-कौन से उद्देश्य हो सकते हैं?

उत्तर- लेखक का यह कथन शरदचंद्र चट्टोपाध्याय के बचपन का है। भागलपुर आने पर उसने दुर्गा चरण एमपी स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में दाखिला लिया। अब तक उसने केवल आसान-सा पाठ 'बोधोदय' ही पढ़ा था, परंतु यहाँ उसका परिचय सीता वनवास, चारुपाठ, सद्भाव सदगुरु, और प्रकांड व्याकरण आदि से हुआ जिसे याद करना और प्रतिदिन परीक्षा देना शरद के लिए अत्यंत दुख पूर्ण एवं कष्ट साध्य प्रमाणित हुआ। बालक शरद कहते हैं कि इसके कारण इनकी रोजें पिटाई होती थी। उस समय उनको लगता था कि साहित्य तो लोगों का हित करती है. इसके भीतर सबके सुख कल्याण, जान संवेदना, उन्नति एवं उच्च आदर्शों की परिकल्पना का भाव समाया रहता है तब यह मेरे लिए दुखकर क्यों है? मेरे विचार से साहित्य का उद्देश्य तो मानव मात्र को उन्नति के पथ पर अग्रसर करना है। लोगों में सामंजस्य बिठाना है। ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराना है। मनोरंजन करना है।

2. पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय के और वर्तमान समय के पढ़ने-पढ़ाने के तौर तरीकों में क्या अंतर और समानताएँ हैं? आप पढ़ने-पढ़ाने के कौन से तौर तरीकों के पक्ष में हैं और क्यों?

उत्तर- जिस समय बालक शरद शिक्षा ग्रहण कर रहा था। उस समय शिक्षा का मूल उद्देश्य पाठों को रटना था। गुरु छात्र को गलती करने पर दंड दे सकता था जिसकी सहमति अभिभावक से पूर्ण रूपेण गुरु को मिली हुई थी। बच्चों को केवल पाठ्य पुस्तकों के अध्ययन के लिए ही दबाव दिया जाता था। पढ़ने के अलावा खेलकूद, बागवानी तथा अन्य कार्य वर्जित थे। पुरानी कहावत भी है

पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब

खेलोगे कूदोगे होगे खराब।

यह मान्यता सबके मनो मस्तिष्क में थी और आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को रहूमल तोता नहीं बनाना है बल्कि उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। वर्तमान में बच्चों की योग्यता, उम्र और रुचि को देखते हुए शिक्षा दी जाती है। उनके साथ अभिभावक अथवा शिक्षक सभी मित्रवत व्यवहार करते हैं। उन्हें शारीरिक और मानसिक दंड नहीं दिया जाता बल्कि उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुए प्यार से समझाया जाता है।

आधुनिक शिक्षा पहले के समय में दी जाने वाली शिक्षा से अधिक उपयोगी और उपर्युक्त है इससे बालकों के स्वस्थ, सुंदर, शारीरिक और मानसिक विकास में सहायता मिलती है। बच्चे जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति पथ पर अग्रसर होते हैं। उनका चहुँमुखी विकास होता है। वर्तमान शिक्षा से हमारे देश के बच्चे निरंतर नई परिभाषाएँ गढ़ रहे हैं जो विश्व पटल पर दिखाई पड़ रहा है।

3. पाठ में अनेक अंश बाल सुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर करते हैं। आपको कौन-सा अंश अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर- प्रस्तुत रचना में शरद के तथा उसके मित्रों के बाल सुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक ढंग से वौर्णत किया गया है। शरद का पेड़ों पर चढ़ना, घर और विद्यालय में शरारतें करना, अपनी तीव्र और कुशल बुद्धिमत्ता के कारण दलपति बनना, पशु-पक्षी पालना, असहायों की सेवा सुश्रूषा करना, सौंदर्य बोध के भाव से भरे होना, छोटी उम्र से ही संवेदना से वह ओतप्रोत होना, प्रकृति के साथ एकाकार होकर उसके मूक भावों को समझना, अनेक पुस्तकों को पढ़ना, निर्भीक और साहसी होना, गल्प गढ़कर कथा सुनना इत्यादि उनके बहमुखी व्यक्तित्व की ओर संकेत करते हैं। सबसे अधिक रोचक कहानी विद्यालय की घड़ी को उनके सुझाव पर आगे बढ़ाया जाना है। अक्सर विद्यालय की घड़ी आगे चलने लगती, जिसकी देखरेख का जिम्मा अक्षय पंडित पर था। दो घंटे जमकर काम करने के बाद वह जगुआ के पानशाला में तंबाकू खाने चले जाते। इसी बीच शरद की प्रेरणा से दूसरे छात्र घड़ी को 10 मिनट आगे कर देता। धीरे-धीरे यह समय बढ़कर 1 घंटे कर दिया गया। एक दिन वे जान बुझकर समय से पहले आ गए और उनकी चोरी पकड़ ली गई। सभी बच्चे पलभर में भाग खड़े हुए, परंतु शरद ने उपस्थित होकर इतना अच्छा अभिनय किया कि वह बिल्कुल दंड से बच गया और उसकी मुखभंगिमा ऐसी थी कि शिक्षक ने सहज ही विश्वास कर लिया।

आज यह सारी शरारतें समाप्त हो गई हैं। आज बच्चों पर पढ़ाई का बहुत अधिक दबाव है। प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में बचपन समाप्त हो गया है। उनकी संवेदनाएँ शून्य हो गई हैं जिसका खामियाजा व्यक्ति जीवन में भुगत रहा है।

4. नाना के घर किन-किन बातों का निषेध था? शरद को उन निषिद्ध कार्यों को करना क्यों प्रिय था?

उत्तर- नाना के घर में सख्त नियम थे। वहाँ कठोर अनुशासन का पालन अनिवार्य था। अन्यथा सजा मिलनी थी। शरद कल्पना प्रिय था। उसे पतंग उड़ाना, पशु-पक्षी, तितलियाँ पालना, उपवन लगाना, गिल्ली-डंडा खेलना, बाग से फल चुराना, नदी में स्नान करना, लड्डू घुमाना, एकांत में किताबें पढ़ना अत्यंत प्रिय था, परंतु नाना का मानना था कि बालकों को केवल पढ़ाई करना चाहिए। शरद चोरी छिपे इन कार्यों को करता था तथा कभी-कभी पकड़े जाने पर पिटाई भी खाता था। उसे इन खेलों में बहुत आनंद आता था। वह खेलने के बाद लड्डू तथा गोलियों को बच्चों में बाँटकर बहुत खुश होता था।

5. आपको शरद और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में क्या समानताएँ नजर आती हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- शरद और उसके पिता दोनों ही यायावर प्रकृति के थे। दोनों ही स्वप्नदर्शी थे। जीविका का कोई धंधा इन्हें बा ध नहीं सका। दोनों के ही जीवन में स्थायित्व तो नहीं था। दोनों ने धन को अधिक महत्त्व नहीं दिया इसलिए निर्धनता में ही उनके जीवन व्यतीत हुए। दोनों ही सौंदर्य बोध से भरे थे। मोतीलाल अपनी कैलम में जब नया निब बदल कर लिखते थे तो उनके अक्षर मोती की तरह चमकते थे। शरद भी अपने कमरे को साफ सुथरा रखते थे। किताबें झक-झक करती थीं। दोनों ही कला प्रेमी थे। दोनों को ही साहित्य पढ़ने-लिखने का शौक था। शरद ने अपने पिता की अधूरी कहानियों से ही कहानी लिखने की प्रेरणा ली थी। शरद के पिता किसी कार्य को आरंभ करके पसंद न आने पर अधूरा ही छोड़ देते थे। शरद भी अपने पसंदीदा काम को सफलतापूर्वक संपन्न करते थे। यही कारण है कि उन्हें आवारा मसीहा कहा गया।

6. क्या अभाव, अधूरापन मनुष्य के लिए प्रेरणादाई हो सकता है?

उत्तर- अभाव और अधूरापन मनुष्य में जिज्ञासा पैदा करता है। हमारे सामने आज ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जिसमें महान लोगों ने बहुत कठिनाइयों और अधूरेपन में एक नई और प्रेरक दिशा की तलाश की। मनुष्य की प्रकृति है उसी चीज की खोज करना जो उसके पास नहीं है। बालक शरद अपने पिता की अधूरी पुस्तकों को पढ़कर उसे पूरा करने के लिए व्यय हो जाता है। कल्पना शक्ति एवं संवेदना के द्वारा उन कहानियों का अंत जानने के लिए अत्यंत उत्सुक हो जाता था। पिता की कहानिर्या का अधूरापन ही उसकी प्रेरक शक्ति बनकर उभरी और साहित्य देवी का उस बालक ने बड़े होकर अनुपम श्रृंगार किया।

7. जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है, बड़ा होकर वह निश्चय ही मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध होगा। अघोर बाबू के मित्र की टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- शरद अपने अवकाश प्राप्त अध्यापक अघोरनाथ के साथ गंगा घाट की ओर स्नान के लिए जा रहे थे, तभी एक स्त्री का करुण रुदन सुनाई पड़ा। शरद की इस रुदन पर जो टिप्पणी थी, उसे सुनकर अघोरनाथ के मित्र ने जो भविष्यवाणी की वह अक्षर-अक्षर सत्य हो गई। उन्होंने कहा कि जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मनस्तत्व के व्यापार में विख्यात होगा।

शरद ने अपने बाल्य जीवन में जो कुछ महसूस किया उसे ही साहित्यिक रचनाओं में जगह दी। उसने अपने पिता को घर जमाई के रूप में देखा तथा इस पीड़ा को 'काशीनाथ' में व्यक्त किया। 'देवदास' और 'बड़ी दीदी' में अपनी बाल सखा धीरु तथा नारियों की दशा 'गृहदाह' में डेहरी प्रवास, 'श्रीकांत' और 'विलासी' में सॉप पकड़ने की विद्या का वर्णन कर स्वयं को सिद्ध कर दिखाया।

8. शरदचंद्र के जीवन की घटनाओं से आपके जीवन की जो भी घटना मेल खाती है उसके बारे में लिखिए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें।

9. क्या आप अपने गाँव और परिवेश से कभी मुक्त हो सकते हैं?

उत्तर- छात्र स्वयं करें।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. 'आवारा मसीहा' के लेखक कौन हैं?

(क) विष्णु प्रभाकर

(ख) मकबूल हुसैन

(ग) मोहन राकेश

(घ) रामकुमार वर्मा

2. शरद के पिता का क्या नाम था?

(क) दुर्गा चरण

(ख) सुरेंद्

(ग) केदारनाथ

(घ) मोतीलाल

3. शरद स्कूल में क्या शैतानी करते थे?

(क) शरद स्कूल में ब्लैक बोर्ड पर अध्यापक का कार्टून बना देते थे।

(ख) शरद स्कूल के लड़कों के साथ झगड़ा किया करते थे।

(ग) शरद दोस्तों की किताबें छीन लेते थे।

(घ) शरद के कहने पर बच्चे घड़ी की सूई आगे बढ़ा देते थे।

4. शरद ने कुश्ती का अखाड़ा कहाँ तैयार किया था?

(क) गंगा के किनारे

(ख) शरद के नाना के घर उत्तर में एक वीरान से महल में

(ग) अपने नाना के घर में

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

5. शरद के तपोवन का पता पहले किसे लगा था?

(क) शरद के पिता को

(ख) शरद के मामा सुरेंद्र को

(ग) शरद के नाना अघोर नाथ को

(घ) शरद के मामा मणि को

6. पेड़ पर चढ़ना बड़ा ज़रूरी है इसके पीछे शरद का तर्क था-

(क) फल खाने के लिए

(ख) हिंसक पशुओं से बचने के लिए

(ग) गुरु जी को चकमा देने के लिए

(घ) इनमें से कोई नहीं

7. शरद को सर्वप्रथम नानी के घर आने पर नाना केदारनाथ ने उन्हें भेंट स्वरूप प्रदान किया-

(क) चाँदी का चम्मच

(ख) चाँदी का कड़ा

(ग) सोने की तगड़ी

(घ) सोने की अँगूठी

8. शरद का ननिहाल था-

(क) भागलपुर

(ख) मुज़फ़्फ़रपुर

(ग) गोरखपुर

(घ) होशियारपुर

9. मोतीलाल के घर जमाई बने रहने का कारण था-

(क) लोकप्रिय व्यक्ति थे

(ख) जीवकोपार्जन की समस्या थी

(ग) आवास की समस्या थी

(घ) उपर्युक्त में से कुछ भी नहीं

10. शरद ने किसे यमराज का सहोदर कहा है?

(क) मणिंद्र को

(ख) सुरेंद्र को

(ग) अक्षय पंडित को

(घ) मोतीलाल को

11. भागलपुर आने के बाद शरद को कौन-सी किताब कठिनाई पूर्वक पढ़नी पड़ी और प्रतिदिन परीक्षा देनी पड़ी?

(क) बोधोदय

(ख) प्रकांड व्याकरण

(ग) श्रीकांत

(घ) चरित्रहीन

12. शरद ने अपने तपोवन को सबसे पहले किसे दिखाया?

(क) मामा सुरेंद्र को

(ख) साथी विनय को

(ग) मास्टर साहब को

(घ) नानी को

13. 'आँख की किरकिरी' रचना पठने पर शरद को गहरे आनंद की अनुभूति हुई। 'आँख की किरकिरी' के रचनाकार हैं-

(क) विष्णु प्रभाकर

(ख) प्रभाकर माचवे

(ग) रवींद्रनाथ टैगोर

(घ) सुमित्रानंदन पंत

14. पतंग बाजी में शरद का मित्र था-

(क) भोला

(ख) राजू

(ग) श्याम

(घ) सुदीप

15. शरद के दादाजी ने झूठी गवाही न देकर बदले में प्राणों को उत्सर्ग कर दिया जिससे प्रमाणित होता है-

(क) वे निर्भीक और स्वाधीनचेत्ता थे

(ख) वे डर गए थे

(ग) वे भाग न सके

(घ) इनमें से कोई नहीं

16. 'देवदास' की पारो, 'बड़ी दीदी' की माधवी, 'श्रीकांत' की राजलक्ष्मी, शरद के बचपन के मित्र का ही विराट और विकसित रूप है वह मित्र है

(क) पारो

(ख) धीरू

(ग) मीरा

(घ) सुनैना

17. अपने अल्पकालिक डेहरी प्रवास को उसने किस रचना में अमर कर दिया?

(क) मंझली दीदी

(ख) शुभदा

(ग) गृहदाह

(घ) विलासी

18. लेखक के अनुसार शरद किसके समान दुस्साहसी और परोपकारी था?

(क) रॉबिन हुड

(ख) जुलियस सीजर

(ग) तेनजिंग नोर्गे

(घ) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

19. शरद की जन्मजात प्रतिभा थी-

(क) नाचना

(ख) गाना

(ग) गल्प गढ़ कर सुनाना

(घ) निंदा करना

20. शरद को लिखने की प्रेरणा कैसे मिली?

(क) उसकी पर्यवेक्षण शक्ति की तीव्रता व संवेदन से

(ख) डेहरी ऑन सोन के प्रवास से

(ग) मामा केदारनाथ गंगोपाध्याय से

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

21. शरद ने चरित्रहीन जैसी कालजयी रचना किस घटना के कारण लिखी?

(क) अपनी दादी के निधन के बाद

(ख) गणितज्ञ पी बसु से प्रेरित होकर

(ग) एक विधवा व उसके दो दावेदार प्रेमी के साथ घटित घटना के कारण د

(घ) देवानंदपुर ग्राम के कारण

22. भागलपुर में शरद की घनिष्ठता किससे हुई?

(क) पड़ोस में रहने वाले राजेंद्र नाथ राजू से

(ख) राम रतन मजूमदार से

(ग) भागलपुर के ज़मींदार से

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

23. शरद ने साहित्य का पहला पाठ कब पढ़ा था?

(क) अपने स्कूल में

(ख) अपने घर में

(ग) अघोर नाथ की पत्नी कुसुमकामिनी की गोष्ठी में

(घ) (क) और (ख) दोनों सही

24. शरद और उसके पिता मोतीलाल में समानताएँ थी-

(क) दोनों घूमने के शौकीन थे

(ख) दोनों में सौंदर्य बोध था

(ग) दोनों को पढ़ने का शौक था

(घ) उपर्युक्त तीनों सही

25. नाना के घर में किन बातों का निषेध था

(क) लड्डू घूमाना

(ख) पतंग उड़ाना

(ग) गुल्ली डंडा खेलना

(घ) उपर्युक्त तीनों

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. बालक शरद का बचपन कैसा था?

उत्तर- बालक शरद का बचपन खेलकूद, मस्ती, शरारत, पढ़ाई, पर्यटन, नाटक आदि से भरा पूरा था।

2. शरत को प्रारंभ में साहित्य दुखदाई क्यों लगा?

उत्तर- प्रतिदिन पंडित जी के सामने खड़े होकर 'सीता-वनवास', 'चारु पाठ', 'सद्भाव सद्गुरु' और 'प्रकांड व्याकरण' के सबक सुनाने पड़ते थे और कभी-कभी याद न रहने के कारण पिटाई की सज़ा भी मिलती थी इसलिए प्रारंभ में शरत को साहित्य दुखदाई लगा।

3. आवारा मसीहा के लेखक कौन हैं?

उत्तर- आवारा मसीहा के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं।

4. शरत और मणि लाठी लेकर किसे पकड़ना चाहते थे?

उत्तर- शरत और मणि लाठी लेकर चमगादड़ पकड़ना चाहते थे।

5. स्कूल की घड़ी की देखरेख का जिम्मा किस पर था

उत्तर- स्कूल की घड़ी की देखरेख का जिम्मा अक्षय पंडित पर था।

6. शरद के उ‌द्यान में कौन-कौन से फूल खिले थे ?

उत्तर- शरद के उ‌द्यान में जूही, बेला, चंद्रमल्लिका, गेंदा आदि के फूल खिले थे।

7. बालक शरत अपरिग्रही था कैसे?

उत्तर- बालक शरत इकट्ठे किए गए लड्डू और गोलियाँ शाम को अन्य बच्चों में बाँट देता था, इसीलिए अपरिग्रही था।

8. किस पुस्तक में साँपों को वश में करने का मंत्र शरत को मिला था?

उत्तर- पिताजी के संग्रहालय की पुस्तक संसार कोष में साँपों को वश में करने का मंत्र लिखा था, जो शरत को मिला।

9. शरद ने साहित्य का पहला पाठ किनसे सीखा?

उत्तर- शरद ने साहित्य का पहला पाठ नाना अघोरनाथ की पत्नी कुसुमकामिनी से सीखा जो अपने मधुर कंठ से बंगदर्शन सहित मृणालिनी, मेघनादवध, नीले दर्पण इत्यादि रचनाएँ पढ़कर सुनाती थीं।

10. गांगुली परिवार में मोतीलाल की स्थिति कैसी थी?

उत्तर- घर जमाई बनने के कारण गांगुली परिवार में मोतीलाल की स्थिति अच्छी नहीं थी।

11. शरद की बालसखा का चित्रण उनके किस उपन्यास में हुआ है?

उत्तर- शरद की बालसखा धीरु थी और उसका चित्रण उन्होंने अपने उपन्यास देवदास की पारो के रूप में किया है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. बालक शरदचंद्र को घर पर पढ़ने के लिए नियुक्त किए गए अक्षय पंडित की क्या विशेषता थी?

उत्तर- बालक शरदचंद्र को घर पर पढ़ने के लिए नियुक्त किए गए अक्षय पंडित मानो यमराज के सहोदर अर्थात सगे भाई थे। उनका मानना था कि विद्या का निवास गुरु के डंडे में होता है। जब तक गुरु इसका प्रयोग नहीं करेंगे तब तक शिष्य को वि‌द्याप्राप्ति संभव नहीं है।

2. शरद स्वभाव से अपरिग्रही था, कैसे?

उत्तर- अपरिग्रही का अर्थ आवश्यकता से अधिक ग्रहण न करने वाला होता है। शरद दिन भर में जितनी गोलियाँ और लहू इकट्ठे करता, संध्या को वह उन्हें छोटे बच्चों में बॉटकर आनंदित होता था। वह देने में खुश होता था। इस प्रकार उसका स्वभाव अपरिग्रही व्यक्ति का था।

3. आप कैसे कह सकते हैं कि बालक शरद अपने स्कूल में प्रतिभाशाली वि‌द्यार्थी था?

उत्तर- बालक शरद अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का था। उसने अंकगणित में 100% अंक प्राप्त किए। उसने अंग्रेज़ी स्कूल के प्रथम वर्ष में परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। अन्य बच्चों को पीछे छोड़कर एक वर्ष लाँधकर ऊपर की कक्षा में पहुँच गया था।

4. शारीरिक सौष्ठव और स्वास्थ्य के लिए शरत क्या करता था?

उत्तर- पढ़ाई एवं खेलकूद के साथ-साथ शरद अपने स्वास्थ्य के लिए भी उपक्रम करता था। नाना के घर के पास एक सुनसान मकान जिसे लोग भूतों का घर कहते थे, उसमे कुश्ती लड़ने का अखाड़ा उसने तैयार किया। गोला फेंकने के लिए गंगा में से गोल बड़े पत्थर लाए गए थे। वहाँ संध्या के झुट-पुट में चार-पाँच लड़कों ने बाँस काटकर रात में पैरेलल बार तैयार की। वे नदी में तैरने भी चले जाते थे क्योंकि तैराकी एक अच्छा व्यायाम माना जाता है। हालाँकि यह सारे कार्य उन्हें छुपा कर करने पड़ते थे, इसकी सज़ा भी मिलती थी परंतु शरद अपने नाना शिक्षक और गुरुजनों की आँखों में धूल झोंकने में भी निपुण थे।

5. शरद द्वारा अपने परिवार के साथ नाना के घर आकर रहने का क्या कारण था?

उत्तर- शरद के पिता घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। साहित्यिक प्रवृत्ति के होने के कारण वह कभी भी किसी नौकरी के बंधन में बंध नहीं सके, परिणाम स्वरुप जगह-जगह लांछित होना पड़ा। फिर बेकारी और परिवार के पालन की समस्या भी सामने आती रही। शरद की माँ भुवनमोहिनी पति से खीज जाती थी, अंत में केदारनाथ से याचना करके मोतीलाल के साथ अपने पिता के घर में वह रहने आ गई। इस प्रकार शरद अपने नाना के घर आकर रहने लगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. शरद के दादा बैकुंठ नाथ चट्टोपाध्याय जमींदार के कहने पर भी गवाही नहीं देते हैं जिस कारण उनकी हत्या कर दी जाती है। ऐसा करके उन्होंने किस जीवन मूल्य को संजोने की कोशिश की?

उत्तर- शरद के दादा बैकुंठ नाथ चट्टोपाध्याय ने जींदार के आतंक से भली-भाँति परिचित होते हुए भी जिस साहस और निर्भीकता का परिचय दिया वह समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। जमींदार ने उन्हें झूठी गवाही देने को कहा परंतु उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि मैं बिना कुछ जाने गवाही कैसे दे सकता हैं? इस पर जमींदार ने क्रोधित होकर उनकी निर्मम हत्या करवा दी। बैकुंठ नाथ ने अपनी जान की परवाह नहीं की। उनका पंच परमेश्वर पर अखंड विश्वास था। अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध उन्होंने खड़े होकर समाज को एक नई दिशा प्रदान की। न्याय और सत्य के लिए मर जाना अन्याय का साथ देकर जीने से श्रेयस्कर है। हालाँकि उनके इस कदम से उनके पीछे उनके परिवार को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनकी पत्नी को अपने एकमात्र पुत्र मोतीलाल को लेकर रातों-रात वहाँ से भाग जाना पड़ा। मोतीलाल के पिता ने अपनी आत्मा की आवाज़ सुनी और उन्होंने दुनिया के समक्ष सच बोलने, न्याय का साथ देने तथा स्वार्थ से ऊपर उठकर जनहित की बातें सोचने और मानवीय आदर्शों की स्थापना की सफल कोशिश की।

2. आवारा मसीहा के शीर्षक के औचित्य पर विचार कीजिए।

उत्तर- विष्णु प्रभाकर की 'आवारा मसीहा' का हिंदी के जीवनी साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें लेखक ने महान उपन्यासकार शरते चंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन निर्माण का संपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया है। शरद का जन्म एक अभावग्रस्त परिवार में हुआ था। पिता यायावर प्रकृति के कल्पनाशील एवं स्वप्नदर्शी व्यक्ति थे जिस कारण उनकी पढ़ाई-लिखाई की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई। शरद को बचपन में ठीक-ठाक मार्गदर्शन एवं बड़ों का दुलार प्यार भी नहीं मिल पाया। शरद अत्यंत निर्भीक, साहसी, प्रकृति प्रेमी, संवेदनशील तथा कुशाग्र बुद्धि का बालक था। वह अपना पथ प्रदर्शक स्वयं था। उसकी बुद्धि उसे जिस ओर प्रेरित करती वह उस और चल पड़ता। वह बिल्कुल दिशाहीन था उसके साथ कोई सहानुभूति पूर्वक बात करने वाला भी नहीं था। नाना के घर का कठोर अनुशासन उसके व्यक्तित्व को कंठित कर रहा था। जीवन की सच्ची पगडंडियों से उसे दूर ले जा रहा था। वह सचमुच आवारा था। सही मार्गदर्शन के अभाव में उसने एक समय नशा करना भी शुरू कर दिया था। उचित मार्गदर्शन एवं पूर्व निश्चित लक्ष्य के अभाव में व्यक्ति दिशाहारा ही तो होगा, परंतु उसके भीतर संवेदनाओं एवं दयालुता के ऐसे भाव भी भरे थे जिसके कारण यह मसीहा भी कहलाया। उसके स्नेही, उदार एवं परदुखकातर व्यक्तित्व ने उसके भीतर मसीहा के बीज अंकरित किए। वह लोगों की सेवा और सहायता के लिए सदा तत्पर रहता था। वह सामाजिक नियमों को भी सेवा और सहायता के लिए तोड़ देता था। निर्भीकता और दयालुता का परिचय देते हुए वह हर एक की सहायता करता था। इसीलिए मसीहाँ कहा गया। यह शरदचंद्र की ही जीवनी है, इसीलिए इसका शीर्षक आवारा मसीहा सर्वथा उपर्युक्त एवं समीचीन है।

3. आवारा मसीहा में लेखक ने क्या संदेश दिया है?

उत्तर- आवारा मसीहा महान कथा शिल्पी एवं प्रसिद्ध उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी है। जीवनी साहित्य में यह एक महत्त्वपूर्ण एवं कालजयी रचना है। लेखक ने इसमें कथा शिल्पी के बचपन से लेकर किशोरावस्था तक की जीवन यात्रा के विभिन्न पहलुओं को दिखाया है। कोई भी अच्छी रचना उद्देश्यहीन नहीं होती है। शरद अभाव और कठिनाइयों के मध्य भी खड़े होकर अपने साहित्यिक जीवन के निर्माण में सफल रहे। उन्हें कोई सही मार्गदर्शन नहीं मिला। फिर भी उन्होंने समाज के सामने एक आदर्श उपस्थित किया। उनके नाना के संयुक्त परिवार में कठोर अनुशासन एवं दमनकारी व्यक्तित्व का वातावरण था। ऐसौ कठोर एवं विपरीत परिस्थितियों में वे निखर कर एक महामानव बने तथा हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं के माध्यम से समृद्ध किया। इसके पीछे उनका अपूर्व साहस, लगन एवं अवसर को पकड़ लेने का सद्‌गुण है। अवसर का उपयोग कर लेने वाला ही अपनी छाप छोड़ता है। परिणाम उन्होंने बचपन से ही अनीति और अनुचित प्रतिबंधों का विरोध किया। उसने मन ही मन प्रतिज्ञा की थी- "मैं सूर्य, गंगा, हिमालय को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि जीवन भर सौंदर्य की उपासना करूँगा, मैं जीवन भर अन्याय के विरुद्ध लडूंगा, मैं कभी भी छोटा काम नहीं करूँगा।" दृढ़ संकल्प से मानव महामानव बनने की ओर अग्रसर होता है-

मानव जब जोर लगाता है,

पत्थर पानी बन जाता है।- दिनकर

प्रत्येक मनुष्य में कोई न कोई विशिष्ट गुण होता है जो अपने गुण को पहचान कर बिना समय व्यर्थ किए उसके विकास में दृढ़ संकल्प होकर जुट जाता है। वह स्वयं को संसार के सामने सर उठाकर चलने के योग्य बनाता है और समस्त जनता उसे सिरआँखों पर बिठाकर उसका अनुसरण करती है। लेखक ने इस रचना के माध्यम से समाज के लोगों को व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण संदेश दिया है।

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

पाठ सं.

पाठ का नाम

अंतरा भाग -1

गद्य-खंड

1.

ईदगाह

2.

दोपहर का भोजन

3.

टार्च बेचने वाले

4.

गूँगे

5.

ज्योतिबा फुले

6.

खानाबदोश

7.

उसकी माँ

8.

भारतवर्ष की उन्नत कैसे हो सकती है

काव्य-खंड

9.

अरे इन दोहुन राह न पाई, बालम, आवो हमारे गेह रे

10.

खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

11.

हँसी की चोट, सपना, दरबार

12.

संध्या के बाद

13.

जाग तुझको दूर जाना

14.

बादल को घिरते देखा है

15.

हस्तक्षेप

16.

घर में वापसी

अंतराल भाग 1

1.

हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

2.

आवारा मसीहा

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

जनसंचार माध्यम

2.

पत्रकारिता के विविध आयाम

3.

डायरी लिखने की कला

4.

पटकथा लेखन

5.

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

6.

स्ववृत्त (बायोडेटा) लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन पत्र

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 - प्रश्नोत्तर

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare