प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Elective
अंतरा भाग -1 काव्य-खंड
पाठ 9. अरे इन दोहून राह न पाई बालम, आवो हमारे गेह रे
कवि परिचय [कबीर (सन् 1398-1518)]
कबीर का जन्म काशी में हुआ था। उनके गुरु स्वामी रामानंद
थे। जीवन के अंतिम समय में वे मगहर चले गए और वहीं अपना शरीर त्यागा। कबीर ने
विधिवत् शिक्षा नहीं पाई थी। उन्होंने कहा भी है कि 'मसि कागद ख्यो नहीं, कलम गही
नहिं हाथ', किंतु वे प्रारंभ से ही संतों और फकीरों की संगति में रहे थे। निर्गुण
भक्त कवियों की ज्ञानमार्गी शाखा में कबीर का सर्वोच्च स्थान है। उनके काव्य में
धर्म के बाह्याडंबरों का विरोध है और राम-रहीम की एकता की स्थापना का प्रयत्न भी।
उन्होंने जातिगत और धार्मिक पक्षपात का बार-बार खंडन किया है। कबीर के काव्य में
गुरु-भक्ति, ईश्वर-प्रेम, जान तथा वैराग्य, सत्संग और साधु-महिमा, आत्म-बोध और
जगत-बोध की अभिव्यक्ति है। कबीर ने मूलतः साखी, सबद, और रमैनी रचे। उनकी रचनाएँ
मुख्यतः 'कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं. किंतु कबीर पंथ में 'बीजक' का विशेष
महत्त्व है।
पाठ परिचय
पहले पद में हिंदू और मुसलमान दोनों के धर्माचरण पर
प्रहार करते हुए बाह्यार्डबरों और कुरीतियों की आलोचना की गई है। दूसरे पद में
कबीर ने खुद को विरहिणी स्त्री के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रियतम से घर लौटने
की आकांक्षा व्यक्त की है। दाम्पत्य प्रेम और घर की महत्ता, इस पद के केंद्र में
है। कबीर के ये दोनों पद पारसनाथ तिवारी द्वारा संपादित 'कबीर वाणी से लिए गए हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. 'अरे इन दोहन राह न पाई' से कबीर का क्या
आशय है और वे किस राह की बात कर रहे हैं?
उत्तर:- 'अरे इन दोहन राह न पाई' से कबीर का आशय है कि
हिंदू और मुसलमान दोनों को
परमात्मा तक पहुँचने के लिए सही मार्ग नहीं मिला है। दोर्नो धर्म आडंबरे में उलझे
हुए हैं तथा अपने उचित मार्ग से भटक गए हैं। ये जिस मौर्ग का अनुसरण कर रहे हैं,
वह मार्ग उन्हें मुक्ति की ओर नहीं ले जाएगा, किंतु फिर भी हिंदुओं और मुसलमानों
को अब तक बुद्धि नहीं आई है। यहाँ कबीर नै धर्म और अध्यात्म की उस राह की ओर संकेत
किया है. जिससे विमुख होकर हिंदू और मुसलमान दोनों ही गलत आचरण में लगे हुए है।
दोनों ही धर्म के नाम पर अधर्म फैला रहे हैं, क्योंकि कोई भी धर्म जीव हत्या और
छुआछूत की अनुमति नहीं देता। कबीर का कहना है कि हिंदुओं को अपनी पवित्रता पर गर्व
है, किंतु चारित्रिक हीनता के कारण वे वेश्यागमन करते हैं। मुसलमानों के
आध्यात्मिक गुरु माँसाहारी हैं। वे भी चारित्रिक रूप से कमज़ोर है, क्योंकि वे मौसी की बेटी से ही विवाह रचा
लेते हैं। कवि आध्यात्मिकता के आधार पर परमात्मा को पाने के लिए भक्ति मार्ग
अपनाने की बात कर रहे हैं।
2. इस देश में अनेक धर्म, जाति, मज़हब और संप्रदाय
के लोग रहते थे, किंतु कबीर हिंदू और मुसलमान की ही बात क्यों करते हैं?
उत्तरः कबीर का काल खंड सन् 1398-1518 ई. है। भारत में
उस समय मुख्यतः हिंदू एवं मुसलमान दो धर्मों के लोग रहते थे। दोनों में आपस में
निरंतर खींचतान होती रहती थी। इन दोनों प्रमुख धर्मों के पाखंड एवं बाह्याडंबर से
मानवता की रक्षा एवं उसकी उन्नति के लिए उन्होंने हिंदू एवं मुसलमान की ही बात की
क्योंकि उन्होंने इन दोनों धर्मी के अनुयायियों को बहुत करीब से देखा था। वे इन
धर्मों की बुराइयों के दुष्परिणामों को भी जानते थे। उन्हें यह भी पता था कि हिंदू
और मुसलमान दोनों धर्मी में व्याप्त बुराइयों को यदि समय रहते दूर कर लिया गया, तो
भारतीय समाज की अधिकांश बुराइयों दूर हो जाएँगी।
3. 'हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तरकाई'
के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं? वे उनकी किन विशेषताओं की बात करते हैं?
उत्तरः- 'हिंदून की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई' के
माध्यम से कबीर यह कहना चाहते हैं कि उन्होंने हिंदू को अपने धर्म की बड़ाई करने
तथा अपने धर्म को पवित्रतम बताने के बाद भी वेश्याओं के पैरों के पास सोते हुए
देखा है। इसी प्रकार मुस्लिमों को मुर्गी-मुर्गे का माँसें खाते तथा दूसरे जीवों
की हत्या करते हुए देखा है। कबीर हिंदुओं की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि वे
अपने जल पात्र को किसी को छूने भी नहीं देते, क्योंकि छूने से जल पात्र अपवित्र हो
जाता है। वहीं हिंदू जब वेश्या के पैरों में सोते हैं, तो उनकी पवित्रता नष्ट नहीं
होती। इसी प्रकार मुस्लिम जीव हत्या करते हैं। अपनी बेटियों का विवाह मौसेरे भाई
के साथ करते हैं। सगाई-विवाह आदि घर में ही कर देते हैं। मरा हुआ जीव धोकर पकाते
और खाते हैं। स्पष्टवादी एवं निर्भीक कवि खरी बात कहने का साहस रखते थे। उन्होंने
हिंदू एवं मुसलमानों के धार्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक बाह्याडबरों को एवं
बुराइयों को दूर करने के लिए, लोगों को उपदेश देने के लिए, उनकी उन्नति के मार्ग
में बाधक उनके धर्म एवं सामाजिक रीति-रिवाजों की प्रमुख विशेषताओं की बात की है।
वस्तुतः वे इन लोगों की विशेषताओं की नहीं, वरन् उनकी बुराइयों की ओर उनका ध्यान
आकृष्ट कर रहे हैं।
4. 'कौन
राह हवै जाई' का प्रश्न कबीर के सामने भी था। क्या इस तरह का प्रश्न आज समाज में मौजूद
है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः धर्म का पालन करना मनुष्य के आध्यात्मिक, मानसिक
एवं सामाजिक उन्नति के लिए आवश्यक है। धर्म यदि पाखंड, बाह्याडंबर, कुरीतियों,
अंधविश्वासों एवं रुढ़ियों 8. से भरा हुआ हो तो लोगों की उन्नति के बदले अवनति
होगी इसलिए कबीर के सामने यह प्रश्न था कि 'कौन राह हवै जाई' अर्थात् किस राह पर
चला जाय या किस धर्म का पालन किया जाए? हिंदू और मुस्लिम समाज में व्याप्त
ब्राइयों ने कबीरदास जी को चितित किया था क्योंकि वे जानते थे कि दोनों ही धर्म के
अनुयायी सही राह पर नहीं चल रहे हैं, उन्हें दोनों धर्मो की कमियों के विषय में
अच्छा जान था। कबीर के समय का प्रश्न अभी भी समाज में मौजूद है। अनेक
धर्म-संप्रदाय अपने- अपने राग अलापते हैं तथा आडंबरपूर्ण प्रदर्शन प्रवृत्ति
दद्वारा अपने पथ को अन्य से श्रेष्ठ बताकर एक से दूसरे धर्मावलंबियों को आपस में
लड़ाते हैं। डेरो, अखाड़ों, मठों, मज़ारों आदि के नाम पर लोगों को लूटने और
पथभ्रष्ट करने की अनेक घटनाएँ प्रतिदिन समाचार-पत्रों में देखी-पढ़ी जा सकती है।
आज भी हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों में अंधविश्वास और कट्टरता, पाखंड एवं
बाह्याडंबर के चलते एवं दोनों के अपने धर्म को श्रेष्ठ समझने से समाज की प्रगति
में बाधा उत्पन्न होती है। हिंदू धर्म में छुआछूत की भावना, वेश्यागमन आदि एवं
मुसलमानों मैं मंसिरी बहन से विवाह एवं माँसाहार आदि आज भी प्रचलित हैं।
5. 'बालम आवो हमारे गेह रे' में कवि किसका
आहवान कर रहा है और क्यों?
उत्तर:-
'बालम आवो हमारे गेह रे' में कवि स्वयं आत्मा के रूप में ईश्वर की प्रेमिका बनकर अपने
प्रियतम (परमात्मा) का आह्वान कर रहे हैं क्योंकि उनके बिना वे विरह वेदना से तड़प
रहे हैं। उनकी यह विरह वेदना तभी शांत हो सकती है, जब उन्हें उनके प्रेमी अर्थात् ईश्वर
के दर्शन हो जाएँ। आध्यात्मिक जगत में आत्मा पत्नी है और परमात्मा पति। आत्मारूपी पत्नी
परमात्मारुपी पति से मिलने के लिए लालायित रहती है। 'बालम आवो हमारे गेह रे' में कवि
परमात्मा का आह्वान कर रहे है।
6. 'अन्न न आवै नींद न आवै' का क्या कारण है?
ऐसी स्थिति क्यों हो गई है?
उत्तरः- कबीरदास स्वयं को प्रियतमा और ईश्वर को अपना
प्रियतम मानते हैं। अपने प्रियतम से मिले बिना उन्हें कष्ट का अनुभव हो रहा है।
ईश्वर के बिना उन्हें न तो भोजन अच्छा लग रहा है और न ही नोंद आ रही है। क्योंकि
प्रियतम के बिना उनकी आत्मा बेहाल हो चुकी है और वह उससे मिलने को तड़प रही है।
ऐसी स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई है, क्योंकि आत्मा का परमात्मा से अलग होने के बाद
मिलन की घड़ी नहीं आई है।
7. 'कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे
को नीर रे' से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- 'कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर
रे से कवि का आशय है कि जिस प्रकार एक कामिनी स्त्री को अपना पति अत्यधिक प्यारा
लगता है। वह अपने पति के सामीप्य के लिए वैसे ही बेचैन रहती है जैसे कोई प्यासा
पानी के लिए तडपता है। उसी प्रकार कबीर ईश्वर के बिना तड़प रहे हैं। उन्हें
परमात्मा से उतना ही प्यार है जितना काम भाव से पीड़ित स्त्री को पति एवं प्यासे
को पानी प्यारा होता है।
8. कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और
यह पद (बालम आवो हमारे गेह रे) साकार प्रेम की ओर संकेत करता है। इस संबंध में आप
अपने विचार लिखिए।
उत्तर:- कबीर को निर्गुण संत परंपरा का कवि माना जाता
है, किंतु
यह पद बालम आवो हमारे गेह रे' साकार प्रेम की ओर संकेत करता है। इसका कारण यह है
कि कबीर रहस्यवादी कवि थे। उन्होंने प्रेम को सर्वोच्च स्थान दिया है। उनका यह
प्रेम भक्त और ईश्वर के रूप में हो सकता है तथा प्रियतम व प्रियतमा के रूप में भी।
उनके अनुसार प्रेम से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है और अहंकार को नष्ट किया
जा सकता है। कबीर के लिए प्रेम महत्त्वपूर्ण है उसका स्वरूप नहीं। निर्गुण उपासक
भी परमात्मा से अपना प्रेम साकार रूप में प्रकेंट करते हैं। कवि ने अपने निराकार
आराध्य से प्रेम अनेक अन्य रूपों में भी जोड़ा है-
क. हरि मेरा पीउ, मैं राम की बहुरिया।'
ख .हरि जननी में बालक तोरा।"
ग. 'कबीर कुत्ता राम का' आदि।
9. उदाहरण देते हुए दोनों पदों का
भाव-सौंदर्य और शिल्प- सौंदर्य लिखिए।
अरे इन दोहुन राह न पाई।
हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुवन न देई ।
बेस्या के पायन-तर सोवै यह देखो हिंदुआई ।
मुसलमान के पीर-औलिया मुर्गी मुर्गा खाई।
खाला केरी बेटी ब्याहै घरहिं में करै सगाई ।
बाहर से इक मुर्दा लाए धोय-धाय चढ़वाई।
सब सखियाँ मिलि जैवन बैठीं घर-भर करै बड़ाई।
हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई ।
कहैं कबीर सुनों भाई साधो कौन राह हवै जाई।।
भाव-सौंदर्य
क. प्रस्तुत पद में इस बात पर बल दिया गया है कि दोनों
(हिंदू और मुसलमान) लोग बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं. किंतु इन बातों को अपने
व्यवहार में नहीं लाते।
ख इनका आचरण धर्म के विरुद्ध है, क्योंकि कोई भी धर्म
जीव-हत्या की बात को सही नहीं मानता।
शिल्प-सौंदर्य
क. उदबोधन शैली के प्रयोग से आषा प्रभावशाली बन गई है।
ख. पंचमेल खिचड़ी एवं सधुक्कड़ी भाषा का सुंदर प्रयोग,
भाषा भावानुकूलता, सरलता एवं सरसता लिए हुए है।
ग. 'मुर्गी मुर्गा', 'धोय-धाय', 'सब सखियों में अनुप्रास
अलंकार है।
घ. इसमें व्यंग्यात्मकता है।
इ.
'घर-घर' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
च. गेयता का गुण विद्यमान है।
2. बालम, आवो हमारे गेह रे।
तुम बिन दुखिया देह रे।
सब कोई कहै तुम्हारी नारी, मोकों लगल लाज रे।
दिल से नहीं लगाया, तब लग कैसा सनेह रे।
अन्न न भावै नींद न आवै, गृह-बन धरै न धीर रे।
कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे।
है कोई ऐसा पर-उपकारी, पिवसों कहै सुनाय रे।
अब तो बेहाल कबीर भयो है, बिन देखे जिव जाय रे।।
भाव-सौंदर्य
क. कबीरदास जी ने रहस्यमयी भावना को प्रकट किया है।
ख. कवि ने स्वयं को विरहिणी स्त्री/प्रियतमा के रूप में
तथा ईश्वर को प्रियतम के रूप में चित्रित किया है।
ग. प्रेम की उत्कट भावना को प्रकट किया गया है अर्थात्
आत्मा को परमात्मा से मिलने की जो तड़प है, उसे दिखाया गया है।
शिल्प-सौंदर्य
क. पंचमेल खिचड़ी एवं सधुक्कड़ी भाषा का सुंदर प्रयोग,
भावानुकूलता, सरलता एवं सरसता लिए हुए हैं।
ख. वियोग श्रृंगार रस है।
ग. लाक्षणिकता का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
घ. प्रत्येक पंक्ति में 'रे' की पुनरावृत्ति से भाषा
अत्यंत प्रभावशाली बन गई है।
इ. 'कोई कहै', 'लगत लाज' में अनुप्रास अलंकार है।
च. 'कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर
रे' पंक्ति में उत्प्रेक्षा
अलंकार है।
छ. गेयता का गुण विद्यमान है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. कबीर का जन्म कहाँ हुआ था ?
क काशी (वाराणसी)
ख गुजरात
ग प्रयागराज
घ लखनऊ
2. कबीर किस काल के कवि हैं?
क रीतिकाल
ख आदिकाल
ग भक्तिकाल
घ आधुनिक काल
3. कबीर की अधिकांश कविता हैं?
क निर्गुण भक्ति
ख कृष्ण भक्ति
ग सगुण भक्ति
घ राम भक्ति
4. कबीर की भाषा कैसी है?
क ब्रजभाषा
ख अवधी भाषा
ग हिन्दी
घ सधुक्कड़ी
5. मुसलमान
किसके साथ ब्याह करते हैं?
क खाला की बेटी
ख पराये लोग से
ग दोनों
घ इनमें से कोई नहीं
6. 'अरे इन दोहन राह न पाई।' में किन दो धर्मों के लोगों का वर्णन किया
गया है।
क हिन्दू-मुस्लमान
ख
हिन्दू-ईसाई
ग
हिन्दू-सिक्ख
घ
सिक्ख-मुस्लमान
7. वे छुआछूत की भावना से ग्रसित है। किसके लिए कहा गया है-
क
मुसलमान
ख
पारसी
ग हिन्दू
घ
ईसाई
8. कबीरदास की मृत्यु कहाँ हुई?
क मगहर
ख
दिल्ली
ग
गुजरात
घ
जयपुर
9. 'बाहर से एक मुर्दा लाए धोय धाय चढ़ाई।' किसके लिए कहा गया है ?
क
हिन्दुओं
ख
पारसियों
ग मुसलमानों
घ
सिक्ख
10. हिन्दू अपनी बड़ाई करते हैं, परन्तु किसके पैरों तले सोते हैं?
क
पत्नी
ख
मौसी की बेटी
ग
खाला
घ वेश्या
11. 'धोय धाय' सब सखियों में कौन सा अलंकार है?
क
पुनरुक्ती
ख
यमक
ग अनुप्रास
घ
रूपक
12. 'कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे' कवि कामिनी
शब्द का प्रयोग किसके लिए करते हैं?
क स्त्री
ख
आत्मा
ग
माया
घ
पुरुष
13. 'अन्न न आवै नींद न आवै' यह किसकी विरह पीड़ा को दर्शाता है ?
क
आत्मा
ख
पत्नी
ग प्रेयसी
घ
बहन
14. कबीर के पदों का संग्रह किस पुस्तक में मिलता है?
क
साखी
ख
सबद
ग
रमैनी
घ बीजक
15. कबीर के गुरु का क्या नाम था ?
क
संत प्रेमानन्द
ख रामानन्द
ग
रामानुजाचार्य
घ
रैदास
16. कबीर के पहले पद में किसके धर्माचरण पर प्रहार किया गया ?
क हिन्दू और मुसलमान
ख
ईसाई
ग
मुसलमान
घ
हिन्दू
17. 'बालम, आवो हमारे गेह रे' में कबीर के अनुसार बालम का क्या तात्पर्य है?
क
साजन
ख ईश्वर
ग
आत्मा
घ
पत्नी
18. कबीर को 'वाणी का डिक्टेटर' किसने कहा है ?
क डॉ. नगेन्द्र
ख हजारीप्रसाद द्विवेदी
ग महावीर प्रसाद द्विवेदी
घ रामचन्द्र शुक्ल
19. पाठ्य-पुस्तक में संकलित कबीर के पद पारसनाथ तिवारी द्वारा सम्पादित
किससे लिए गए हैं ?
क
कबीर माला
ख कबीर वाणी
ग
कबीर ग्रन्थावली
घ
कबीर ज्ञानावली
20. 'रमैनी' किसकी रचना है ?
क
बिहारी
ख
सूरदास
ग कबीर
घ
तुलसी
21. 'कबीर ग्रन्थावली' पुस्तक की रचना किसने की ?
क
महावीर प्रसाद द्विवेदी
ख
रामचन्द्र शुक्ल
ग
हजारी प्रसाद द्विवेदी
घ श्यामसुन्दर दास
22. कबीरदास की रचना 'बीजक' का संकलन किसने किया?
क धर्मदास
ख
करण दास
ग
रामदास
घ
सूरदास
23. कबीरदास की भाषा का प्रहार किस रूप में अधिक तेज है?
क
धार्मिक गुरु
ख समाज सुधारक
ग
उपदेशक
घ
इनमें से कोई नहीं
24. "कामीन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे" पंक्ति
में कौन सा अलंकार है?
क
रुपक
ख
उपमा
ग
विभावना
घ उत्प्रेक्षा
25. पहले पद में कबीरदास की शैली कौन सी है?
क
विवेचनात्मक
ख
व्यंग्यात्मक
ग
वर्णनात्मक
घ उपदेशात्मक
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. 'बालम' किसे कहा गया है?
उत्तरः- कवि ने स्वयं को आत्मा तथा ईश्वर को परमात्मा के
रूप में चित्रित किया है। 'बालम' परमात्मा अर्थात् ईश्वर (ब्रह्म) को कहा गया है।
2. 'साधों' शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तरः- 'साधो' शब्द सज्जन/संतों के लिए प्रयुक्त हुआ है।
वे एक ऐसे मार्ग की तलाश में प्रयत्नशील रहते हैं, जिसका अनुसरण कर निश्चय ही
मुक्ति की ओर जाया जा सके।
3. कबीरदास जी ने ईश्वर से अपना संबंध किस प्रकार
जोड़ा है?
उत्तरः- कबीरदास जी ने स्वयं को विरहिणी नारी के रूप में
प्रस्तुत कर स्वयं को प्रियतमा तथा ईश्वर को प्रियतम (पति) मानते हुए ईश्वर से अपना संबंध जोड़ा है।
4. आचार्य शुक्ल ने भक्तिकाल का वर्गीकरण किस प्रकार किया?
उत्तरः-
आचार्य शुक्ल ने भक्तिकाल को दो धाराओं में बाँटा है निर्गुण धारा और सगुण धारा।
निर्गुण धारा को पुनः संत काव्य धारा एवं सूफी काव्य धारा में विभक्त किया है जबकि
सगुण धारा को राम काव्य धारा और कृष्ण काव्य धारा में बाँटा है।
5. भक्तिकाल के चारों काव्य धाराओं के प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख
कवि कौन-कौन है?
उत्तर:-
1.
कबीर संत काव्य धारा या जानाश्रयी शाखा
2.
जायसी सूफी काव्य धारा या प्रेमाश्रयी शाखा
3.
तुलसी रामकाव्य धारा
4.
सूरदास कृष्णकाव्य धारा
6. 'साखी' से क्या समझते हैं?
उत्तरः-
'साखी' शब्द वस्तुतः संस्कृत के साक्षी का अपभ्रंश या तद्भव रूप है। कबीर के दोहे
इसलिए साखी कहलाते हैं, क्योंकि ये दोहे या साखियाँ कबीर की आध्यात्मिक अनुभूतियों
की गवाह या साक्षी हैं।
7. रामानंद के शिष्य कौन-कौन थे?
उत्तरः-
रामानन्द के बारह शिष्य थे। जिनके नाम हैं- अनन्तानन्द, सुखानन्द, सुरसुरानन्द,
नरहर्यानन्द, भावानन्द, पीपा, कबीर, सेन, धना, रैदास, सुरसुरी और पद्मावती ।
8. कबीर की ऐसी पंक्ति बताएँ जिससे पता चलता है कि निर्गुण काव्य में
गुरु का महत्त्व अधिक है।
उत्तरः-
'गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।'
9. रहस्यवाद से क्या समझते हैं?
उत्तरः-
जीवात्मा उस निर्गुण और निराकार परमात्मा से जब अपना भावात्मक संबंध जोड लेता है
तो इस प्रवृत्ति को रहस्यवाद कहा जाता है।
10. पाठ में 'तुरकन' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तरः-
कबीर के समय में जो लोग बाहर से हिंदुस्तान में आए खास तौर से मुसलमान शासक उनके
लिए कबीर ने 'तुरकन' शब्द का प्रयोग किया है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. कबीर ने किस 'राह' की ओर संकेत किया है? वे इस राह पर गमन क्यों
नहीं कर पाते हैं?
उत्तरः-
कबीरदास जी ने मुक्ति की 'राह' की ओर संकेत किया है। वे कहते हैं कि हिंदू और
मुसलमान दोनों ही जिस मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं, निश्चय ही वह मार्ग उनको मुक्ति
की ओर नहीं ले जाएगा। वे इस राह पर गमन इसलिए नहीं कर पाते, क्योंकि दोनों ही
मार्ग दोषपूर्ण हैं एवं बाह्याडंबरों व कुरीतियों से ग्रसित हैं।
2. प्यासे की तुलना किससे की गई है? कबीर के दुःख कैसे दूर होंगे?
उत्तर:-
'प्यासे' की तुलना विरहिणी नारी अर्थात् प्रियतमा (आत्मा) से की गई हैं। कबीर के
दुःखों का निवारण करने के लिए उसके प्रियतम को उसके पास आकर उसकी व्यथा/दुःख को
दूर करना होगा। प्रियतम को उसके प्रति अपना स्नेह व्यक्त करना होगा तभी उसके
विरहजन्य दुःखों को दूर किया जा सकेगा अर्थात् विरहिणी स्त्री के रूप में कबीर
प्रियतम (परमात्मा) के वियोग में व्याकुल हैं। अतः प्रियतम स्वयं आकर उसके हृदय की
व्याकुलता को शांत करें। तभी उनके (कबीर) दुःख दूर होंगे।
3. कबीर के दो अन्य पर्दा का संकलन कीजिए जिसमें ईश्वर के प्रति समर्पण
दिखाया गया हो।
उत्तरः-
कबीर स्वयं को पत्नी व परमात्मा को पति मानते हैं. ऐसे दो पद निम्नलिखित हैं-
क.
हरि मेरा पीव हरि मेरा पीव। हरि बिन रहि न सकै मेरा जीव।
ख.
दुलहिनि गावहु मंगलाचार।
हम
घरि आये हो राजा राम भरतार।
तन
रत करि मैं मन रत करि हूँ पंचतत्त्व बाराती।
रामदेव
मोरे पाहुने आये, मैं जबिन में माती।
4. कबीर की आषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः-
कबीर की भाषा को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'सधुक्कड़ी' अथवा 'पंचमेल खिचडी' कहा
है। उनकी भाषा कई भाषाओं के मिश्रण से बनी है। उनकी भाषा में खड़ी बोली, ब्रज,
बुंदेलखंडी, पंजाबी, राजस्थानी, अपभ्रंश तथा अरबी-फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग हुआ
है। भाषा सदैव उनकी अनुगामिनी रही है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इसीलिए
उन्हें 'वाणी का डिक्टेटर' कहा है।
5. कबीर की कृतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तरः-
कबीर की रचनाएँ 'बीजक' नामक ग्रंथ में संकलित है, जिसके तीन भाग निम्न हैं-
1.
साखी-
इनमें कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों को दोहे नामक छंद के माध्यम से प्रस्तुत किया
गया 12
2.
सबद-
इसमें कबीर के गेय पद संग्रहीत हैं। गेय होने के कारण इनमें संगीतात्मकता है। इन पदों
में कबीर की प्रेम-साधना व्यक्त हुई है।
3.
रमैनी- चौपाई छंद में रचित इन पदों में कबीर के रहस्यवादी, दार्शनिक
विचार प्रकट हुए हैं। कबीर की संपूर्ण रचनाओं को बाबू श्यामसुंदरैदास ने 'कबीर ग्रंथावली'
नामक ग्रंथ में संकलित कर नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित कराया है।
6. सगुण और निर्गुण भक्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तरः-
जब परमात्मा को निराकार, अज, अनादि, सर्वव्यापी, गुणातीत, अगोचर, सूक्ष्म मानकर
उसकी विवेचना की जाती है तब उसे निर्गुण ब्रह्म कहा जाता है और जब वही ब्रह्म सगुण
साकार रूप धारण कर नर शरीर ग्रहण कर नाना प्रकार के कृत्य करता है तब उसे सगुण
परमात्मा के रूप में जाना जाता है। राम, कृष्ण आदि शरीरधारी परमात्मा के सगुण,
साकार रूप है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. दूसरे पद को पढ़कर कबीर की प्रेम भावना पर
टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः- इस पद में कवि का रहस्यवाद दिखाई देता है। कवियों ने अपने
आराध्य से विभिन्न प्रकार के संबंध जोड़े हैं। सेव्य-सेवक भाव है तो कहीं सखा भाव
है। कबीर भारतीय परंपरा के कवि हैं। प्रस्तुत पद में जीवात्मा की परमात्मा से मिलन
की उत्कट इच्छा व्यक्त हुई है। अतः वे परमात्मा की पत्नी बने हैं एवं उन्हें अपनों
पति माना है। इस पद में परमात्मा 'बालम' है और कवि उसकी नारी है। एक अन्य पद में
कबीर कहते हैं- 'हरि मेरा पीउ, मैं राम की बहरिया।' कबीर अपने को बालक और परमात्मा
को अपनी 'जननी' कहते हैं। 'हरि जननी मैं बालक तोरा।' कबीर परमात्मा से सेव्य-सेवक
भाव भी रखते हैं। अतः वे कहते हैं- 'कबीर कुत्ता राम का मुतिया मेरा नाम। गले राम
की जेवरी जित खींचे तित जाऊं।' परमात्मा से किसी भी प्रकार का संबंध हो, उसमें
अहंकार का अभाव है। भगवान से संबंध जोड़ने पर ही अहंकार नष्ट होता है।
2. कबीर तथा अन्य निर्गुण संतों के बारे में
संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः- कबीर ज्ञानाश्रयी शाखा/संत काव्यधारा के प्रतिनिधि
कवि कहलाए। हिंदी साहित्य में निर्गुणोपासक जानाश्रयी शाखा के कवियों को संत कहा
जाता है। संत काव्यधारा के अन्य कवियों में कबीर, रैदास, धर्मदास, नानक, दादूदयाल,
सुंदरदास, मलूकदास आदि हैं। संत कवियों ने जिस निराकार, निरंजन, अव्यक्त, अगोचर
ईश्वर की आराधना, उपासना या भक्ति का उपदेश दिया, वह शुद्ध या सर्वथा दार्शनिक
मतवादों से प्रभावित थी। कबीर अपने युग के ही नहीं, युग-युग के महापुरुष थे। भटकते
हुए समाज को नई राह दिखाने वाले कबीर की प्रासंगिकता आज भी है। कबीर भक्त और कवि
बाद में थे, समाज सुधारक पहले थे। उनकी कविता में अनुभूति की सच्चाई एवं
अभिव्यक्ति का खरापन है। समाज में व्याप्त, रुढ़ियों, अंधविश्वासों, पाखंड का
उन्होंने खंडन किया। उन्होंने मूर्तिपूजा, माला, तिलक, छापा, तीर्थाटन, गंगास्नान,
रोज़ा, हिंसा, जाति प्रथा, ऊँच-नीच की भावना, आदि का खंडन किया।
अन्य निर्गुण संतों का वर्णन इस प्रकार है-
रामानंद (1368-1468 ई.)- रामानंद कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे, शिक्षा काशी में हुई।
भक्तमाल के अनुसार रामानंद के बारह शिष्य थे। तीर्थ यात्रा, मूर्तिपूजा, वेदादि का
विरोध करते हुए उन्होंने अंतः साधना पर बल दिया। रामानंद के गुरु राघवानंद जी ने
'सिद्धांत पंच मात्रा' नामक ग्रंथ की रचना की थी।
रैदास (1398-1448 ई.)- जाति के चमार थे, काशी के निवासी थे। जन्मकाल के संबंध में
निश्चयपूर्वक कहना संभव नहीं है। कुछ विद्वान इन्हें प्रसिद्ध कवयित्री मीरा का
गुरु भी बताते हैं। रैदास का एक अन्य नाम रविदास भी है। संतवानी सीरीज के अंतर्गत
इनकी रचनाओं का संकलन 'रविदास की बानी' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है, इनके लिखे हुए
40 पद 'गुरु ग्रंथ साहब' मैं भी संकलित हैं।
गुरु नानक (1469-1538 ई.)- सिख संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु नानक इतिहास प्रसिद्ध
व्यक्ति हैं। उनका जन्म 1469 ई. में तलवंडी में हुआ था जो अब नानकाना साहब के नाम
से जाना जाता है। नानक के पद गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं।
हरिदास निरंजनी (1455-1543)- ये निरंजनी संप्रदाय के कवि थे। इस संप्रदाय को नाथ पंथ
एवं संल काव्य के बीच की कड़ी माना जा सकता है।
दादूदयाल (1544-1603 ई.)- इन्होंने दादू पंथ का प्रवर्तन किया। वे एक धर्म सुधारक
एवं समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि थे। इनके पंथ को 'परमब्रहम
संप्रदाय' भी कहा जाता है।
मलूकदास (1574-1682 ई.) इनके लिखे ग्रंथों के नाम हैं ज्ञानबोध, रतनखान,
भक्तिविवेक, सुखसागर, भक्तवच्छावली, बारहखड़ी स्फुटपद, राम अवतार लीला, ब्रजलीला
तथा ध्रुवचरित ।
सुंदरदास (1596-1689 ई.) ये दादूदयाल के शिष्य थे और प्रतिभाशाली कवि थे। इनके लिखे
ग्रंथों में 'ज्ञानसमुद्र' और 'सुंदरविलास' प्रसिद्ध हैं। इनकी रचनाओं का संकलन
सुंदर ग्रंथावली (दो भाग) में पुरोहित हरिनारायण शर्मा ने किया है।
3. संत काव्य की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ?
उत्तरः- संत काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. संत काव्य भाव प्रधान है, कला प्रधान नहीं।
2. कविता करना इनका लक्ष्य न था। कविता तो
इनके उपदेशों का साधन मात्र थी।
3. संत कवियों में प्रमुख कबीर भक्त और कवि बाद में हैं,
समाज सुधारक पहले हैं।
4. संत कवि निर्गुणोपासक थे। वे ईश्वर को निर्गुण, निराकार,
अजन्मा, अविनाशी एवं सर्वव्यापी मानते हैं। कभी कभी वे इस निर्गुण को राम,
गोविन्द, हरि आदि नामों से भी पुकारते हैं।
5. संत काव्य में ज्ञान की महत्ता को प्रतिपादित किया गया
है। यह ज्ञान वेद प्राणों या कुरान से नहीं, अपितु चित्त की निर्मलता एवं हृदय की
पावनता से प्राप्त किया जाता है।
6. संत काव्य में गुरु की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए उसे
ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया गया है।
7. संत काव्य में अद्वैतवादी दर्शन को स्थान मिला है। इनकी
दार्शनिक मान्यताएँ शंकर के अद्वैत दर्शन से प्रभावित हैं।
8. संत काव्य में रहस्यवाद की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है।
दाम्पत्य प्रतीकों के माध्यम से इन्होंने निर्गुण ब्रह्म के साथ माधुर्य भाव की
भक्ति का समावेश करते हुए भावात्मकै रहस्यवाद का विधान किया।
9. संत कवियों ने बाह्याडम्बर का खण्डन किया। मूर्ति पूजा,
तीर्थाटन, व्रत, रोज़ा, नमाज़ में इन्हें कोई विश्वास न था।
10. संत कवि जाति प्रथा के विरोधी थे। ऊँच-नीच, छुआछूत एवं
वर्णाश्रम व्यवस्था को अभिशाप मानकर इन्होंने निर्भीकता से इनका खण्डन किया।
11. संत काव्य में शास्त्र का विरोध करते हुए स्वानुभूति पर
बल दिया गया है। उनकी उक्ति मैं खरापन एवं निर्भीकता है।
12.
संत कवियों का नारी विषयक दृष्टिकोण असन्तुलित एवं अतिवादी है। वे नारी को नरक का द्वार
एवं माया का प्रतिरूप बताते हैं।
13.
संत काव्य की आषा अपरिष्कृत है। साहित्यिक भाषा के स्थान पर बोलचाल की भाषा का प्रयोग
वे अपने वाक्य में करते थे।
14.
संत काव्य में अलंकारों का प्रयोग चमत्कार प्रदर्शन लिए न होकर भार्यों के उत्कर्ष
के लिए हुआ है।
15.
संत काव्य में शान्त रस की प्रधानता है। श्रृंगार रस का पूर्ण परिपाक भी उसमें हुआ
है। कबीर की उलटबांसियों में अद्भुत रस भी हैं।
4. कबीर के 'समाज दर्शन' पर लेख लिखें।
उत्तरः-
कबीरदास का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब समाज अनेक बुराइयों से ग्रस्त था। छुआछूत,
अंधविश्वास, रुढ़िवादिता का बोलबाला था और हिन्दू-मुसलमान आपस में दंगा-फसाद करते
रहते थे। धार्मिक पाखण्ड अपनी चरम सीमा पर था और धर्म के ठेकेदार अपने स्वार्थ की
रोटियाँ धार्मिक कट्टरता एवं उन्माद के चूल्हे पर सेंक रहे थे। कबीर ने इसका डटकर
विरोध किया और सभी क्षेत्रों में फैली हुई सामाजिक बुराइयों को दूर करने का भरपूर
प्रयास किया। उन्होंने अपनी बात निर्भीकता से कहीं तथा हिन्दुओं और मुसलमानों को
डटकर फटकारा। कबीर के समाज दर्शन को निम्न शीर्षकों में व्यक्त कर सकते हैं-
1.
धार्मिक पाखण्ड का खण्डन - कबीर
ने हिन्दू-मुसलमानों दोनों के पाखण्डों का खण्डन किया तथा के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने दोनों को कसकर फटकारा। कबीर bellable te keh-Ebelle past four re ने
मुसलमानों के पाखण्ड का खण्डन जोरदार शब्दों में करते हुए कहा -
'कांकर-पाथर
जोरि कै मस्जिद लई बनाय।
ता
चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।'
लोग
मस्जिद पर चढ़कर जोर-जोर से अज़ान देकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं? ईश्वर बहरा नहीं
हैं. उसे आडम्बर प्रिय नहीं है।
2.
मूर्ति-पूजा का विरोध- कबीर ने मूर्ति-पूजा का खण्डन किया और मन मन्दिर
में ही ईश्वर का निवास बताया। उन्होंने मूर्ति-पूजा तथा उसके आडम्बरों को स्पष्ट रूप
से नकारा तथा कहा-
'पाहन
पूजें हरि मिले तो मैं पूजें पहार।
तासे
यह चाकी भली पीस खाय संसार।'
यदि
पत्थर पूजने से भगवान मिल जाए तो मैं पहाड़ की पूजा करने लगें। यह सब ढोंग है।
इससे अच्छा तो यह है कि हम घर की उस चक्की को पूजें जिसका पीसा हुआ हम खाते हैं।
3.
बाह्याडम्बरों का खण्डन- कबीर रुढ़ियों एवं आडम्बरों के सतत विरोधी
रहे। उन्होंने रोज़ा, नमाज, छापा, तिलक, माला, गंगास्नान, तीर्थाटन आदि का मुख्य विरोध
किया। वे कहते हैं
'माला
फेरत जुग गया, गया न मन का फेर
करका मनका डारि दे, मन का मनका फेर।'
कबीर कहते हैं कि इस बाह्याचार में क्या रखा है? हिन्दू
अपने देवताओं को पूज-पूज कर मर गए, मुसलमान हज यात्रा कर-करके मर गए, योगी जटाएँ
बाँधकर मर गए, परन्तु इनमें राम किसी को नहीं मिला।
4. छुआछूत का विरोध- कबीर ने अपने समय में फैली हुआछूत की भावना का तीखा विरोध
किया है। जाति-प्रथा के वे कट्टर निन्दक थे। वे कहते हैं 'जो तू बॉभन बांभनी जाया,
आन बाट ह्वै क्यों नहिं आया?' इसी प्रकार उन्होंने मुसलमानों से भी प्रश्न किया है
'जो तू तुरक तुरोकनी जाया, भीतर खतना क्यों न कराया?' कबीर प्रश्न करते हैं कि जब
हमारे शरीर की नसों में एक जैसा रक्त प्रवाहित हो रहा है तो आप ब्राह्मण और हम
शूद्र कैसे हो गए ?
5. अवतारवाद का खण्डन- कबीर ने अवतारवाद का खण्डन किया। वे जानते थे कि अवतारवाद
के नाम पर पण्डे पुरोहित जनता को ठग रहे हैं। वे 'राम' को दशरथ पुत्र न मानकर
निर्गुण ब्रह्म मानते हैं। 'दसरथ सुत तिहूं लोक बखाना। राम नाम का मरम है आना।
6. हिंसा का विरोध- कबीर ने हिंसा का विरोध हर स्तर पर किया चाहे वह जीभ के
स्वाद के लिए की गई हो, या धर्म के नाम पर की जा रही हो। मुसलमान दिन में रोज़ा
रखते हैं और रात को गाय की कुर्बानी देते हैं। ये दोनों विरोधी कार्य हैं, इससे
भला खुदा प्रसन्न कैसे हो सकता है? 'दिन में रोज़ा रहत हैं राति हनत है गाय यह तौ
खून वह बंदगी कैसे खुसी खुदाय'।
7. पुस्तकीय ज्ञान का खण्डन - कबीर शास्त्र जान पर नहीं आचरण की शुद्धता पर बल देते हैं। 'शास्त्र' के पण्डित
को चुनौती देते हुए वे कहते हैं- 'तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखन की देखी।
मैं कहता सुरझावन हारी तू राख्यों उरझाई
8. कंचन और कामिनी का विरोध- कबीर ने कंचन और कामिनी को साधना के मार्ग में बाधक बताया
है। उनका विश्वास रहा है कि नारी मनुष्य को अध्यात्म या सुधार के मार्ग पर चलने से
रोकती है।
9. कुसंगति, कपट और द्वेष की निंदा- समाज-सुधार की दृष्टि से कबीर ने कुसंगति, कपट और द्वेष
की निन्दा की है।
10. सदाचरण पर बल- कबीर ने सदाचरण पर बल दिया है। उनका मत है कि अच्छी बातों
को ग्रहण करना चाहिए तथा बुरी बातों का त्याग करना चाहिए।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
पाठ सं. | पाठ का नाम |
अंतरा भाग -1 | |
गद्य-खंड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
काव्य-खंड | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
अंतराल भाग 1 | |
1. | |
2. | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |