प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Elective
अंतराल भाग 1
पाठ 1. हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी
लेखक परिचय [मकबूल फ़िदा हुसैन (सन् 1915-2011)]
आधुनिक भारतीय चित्रकला के प्रमुख स्तंभ मकबूल फ़िदा हसैन
का जन्म शोलापुर (महाराष्ट्र) में हुआ। इन्होंने सिनेमा होर्डिंग के पेंटर के रूप में
काम शुरू किया और खुद कई फ़िल्मों के निर्माण से जुड़े रहे। हमेशा चर्चा और विवादों
में बने रहने वाले हसैन ने लौलत कला अकादमी की प्रथम राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रथम
पुरस्कार पाया। उन्हें सन् 1966 में पद्मश्री से और सन् 1973 में पद्मभूषण से अलंकृत
किया गया। उन्होंने सन् 1967 में 'थू द आइज़ ऑफ़ ए पेंटर' नामक वृत्तचित्र बनाया जो
कि बर्लिन में पुरस्कृत हुआ। चर्चित चित्रकार हुसैन ने कई श्रृंखलाओं में चित्र बनाएँ।
हसैन ने युवा कलाकारों के लिए कला का एक नया और विशाल बाज़ार खड़ा किया।
पाठ परिचय
मकबूल फिदा हुसैन की आत्मकथा 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी'
का एक अंश 'बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल' उनके विद्यालय जीवन से जुड़ा हुआ है। बड़ौदा
का वह स्कूल जहाँ हसैन की चित्रकारी का अंकुर फूटा, आज पूरी दुनिया का गर्व बना हुआ
है। दूसरा अंश है, 'रानीपुर बाज़ार जहाँ हुसैन को व्यापार की ओर मोड़ा जा रहा था, किंतु
उनकी चित्रकारी का जादू अपनी ही राह तलाशता रहा और अंततः पिताजी की रोशनखयाली ने उन्हें
एक महान चित्रकार बना दिया। इस आत्मकथा के माध्यम से लेखक का उद्देश्य यह बताना है
कि यदि प्रतिभावान बच्चों को विकास का सही अवसर और सही दिशा मिल जाए तो जीवन सार्थक
हो सकता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द-चित्र
प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। फिर भी वे घनिष्ठ
मित्र है, कैसे?
उत्तरः- लेखक को जिस बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया वहीं उसकी
दोस्ती कुछ लड़कों से होती है। उन दोस्तों में छोटे कद वाला, गुर्णो का भंडार व सुगंधी
का शौकीन मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली, डभोई का अत्तर व्यापारी बना। संगीत व खाने का
शौकीन हँसमुख चेहरे वाला अरशद सियाजी रेडियों की आवाज बना तो कुश्ती व दंड- बैठक करने
वाला खुश मिजाज, गप्पी दोस्त हामिद कंबर हुसैन कराची जा बसा। जापानी खिंची आँखें, गठा
जिस्म, अनोखे ढंग से हँसने वाला, स्वभाव से बिजनेसमैन अब्बासजी अहमद मोती की तलाश में
कुवैत जा पहुँचा। मृदुभाषी, ऊँचे माथा वाला, समय का पाबंद, शांत तबियत वाला पुस्तक
प्रेमी अब्बास अली फ़िदा बंबई पहुँच, मस्जिद का मेंबर बन गया। अपने- अपने कार्य-क्षेत्र
में अलग होते हुए भी लेखक से इनकी मित्रता में कोई प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि उनमें
वैचारिक समानता थी। पाँचों ने एक-दूसरे के गुणों को देखा और पसंद किया। उनकी मित्रता
स्वार्थहीन थी इसलिए लेखक की स्मृतियों में सभी दोस्त बसे हुए हैं। मात्र दो वर्ष की
मित्रता जीवनभर दिल की निकटता बनी रही अर्थात् कभी दिल की दूरी में बदल नहीं पाई।
2. 'प्रतिभा छुपाये नहीं छुपती' कथन के आधार
पर मकबूल फ़िदा हुसैन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः- हसैन ने अपने कलाकार जीवन का आरंभ सिनेमा होर्डिंग
के पेंटर के रूप में किया और बाद में वे स्वयं कई फिल्मों के निर्माण से जुड़े। हमेशा
चर्चा और विवादों में बने रहने वाले हसैन ने ललित कला अकादमी की प्रथम राष्ट्रीय प्रदर्शनी
में प्रथम पुरस्कार पाया। उन्हें वर्ष 1966 में पद्मश्री, वर्ष 1973 में पद्मभूषण और
वर्ष 1991 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया। हसैन ने वर्ष 1967 में 'यू द आइज़ ऑफ
ए पेंटर' नौमक वृत्तचित्र बनाया जो बर्लिन में पुरस्कृत हुआ। उन्होंने कई श्रृंखलाओं
में चित्र बनाए। हुसैन ने युवा कलाकारों के लिए कला का एक नया और विशाल बाजार खड़ा
किया। यही नहीं, उन्होंने दो हिंदी फिल्मों (गजगामिनी एवं मीनाक्षी ए टेल ऑफ थ्री सिटीज)
का निर्माण भी किया। अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका 'फोर्स' ने उन्हें 'द पिकासो ऑफ इंडिया'
की उपाधि दी जो पेंटिंग में उनके महत्त्व को दर्शाती है। अतः कहा जा सकता है कि प्रतिभा
छुपाये नहीं छुपती ।
3. 'लेखक जन्मजात कलाकार है।' इस आत्मकथा में
सबसे पहले यह कहाँ उद्घाटित होता है?
उत्तरः - मकबूल अपने विद्यालय में की जानेवाली गतिविधियों
का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मैंने हाई जंप में प्रथम स्थान पाया, लेकिन दौड़ में
फिसड्डी साबित हुआ। एक दिन मोहम्मद अतहर (ड्रॉइंग मास्टर) ने ब्लैक बोर्ड पर बहुत
बड़ी चिड़ियों का चित्र बनाया और सभी लड़कों से कहा- 'अपनी-अपनी स्लेट पर इसकी नकल
करो। मकबूल ने वैसी ही चिड़ियाँ अपनी स्लेट पर बनाई। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ब्लैक
बोर्ड से चिड़ियों उड़कर स्लेट पर आ बैठी हो। प्रतिभा के मूल्यांकन में लेखक (मकबूल)
को दस में से दस अंक मिले। ड्राइंग मास्टर से प्रोत्साहन पाकर मकबूल ने अपना कठिन अभ्यास
और अधिक बढ़ा दिया। इसी के फलस्वरूप उसने एक बार गाँधी जी के जन्मदिन पर स्कूल मे में
ब्लैक-बोर्ड पर गाँधीजी का एक पोर्ट्रेट बनाया था, जिसे सभी ने खूब सराहा। इस प्रकार,
'लेखक जन्मजात कलाकार हैं।' इस आत्मकथा में सबसे पहले यह उनके विद्यालयी जीवन में चिड़ियों
का चित्र बनाते समय उद्घाटित होता है।
4. दुकान
पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?
उत्तरः- मकबूल के पिता उसे बिजनेस मैन बनना चाहते थे। इसलिए
उसे हर रोज उसके चाचा की दुकान पर बैठाया जाने लगा। मकबूल फिदा हुसैन का ड्रॉइंग और
पेटिंग से बहुत लगाव था। जब कभी वे दुकान पर बैठते तो वहाँ भी कुछ-न-कुछ ड्राइंग बनाते
रहते थे। पेंटिंग से उनका प्यार इतना अधिक था कि शाम को हिसाब में दस रुपये लिखते तो
किताब में बीस चित्र बना देते थे। वे दुकान के सामने से अकसर घूँघट ताने गुजरने वाली
एक मेहतरानी का स्केच, गेहूँ की बोरी उठाए मजदूर की पॅचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की
दाढ़ी और माथे पर सिजदे के निशान, बुरका पहने औरत और बकरी के बच्चे का स्केच बनाया
करते थे। यही नहीं, एक बार जब उनकी दुकान के सामने से फिल्मी इश्तिहार का तांगा गुजरा
तो उन्होंने उस इश्तिहार की ऑयल पेंटिंग बनाने का निश्चय किया और अपनी दो किताबें बेचकर
ऑयल कलर खरीदे। फिर पेंटिंग पूर्ण की। इन सब बातों से मकबूल के भीतर का कलाकार अभिव्यक्त
होता है।
5. प्रचार-प्रसार
के प्राने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या फ़र्क आया है? पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तरः- यह सत्य है कि समय व आवश्यकता के अनुसार सभी वस्तुएँ
बदलती हैं। प्रचार-प्रसार के प्राने तरीकों का वर्णन पाठ में किया गया है। कोल्हापुर
के शांताराम की फिल्म 'सिंहगढ़' का विज्ञापन किया जा रहा था। इसमें फ़िल्मी इश्तिहार
का एक ताँगा है, जो ब्रास बैंड के साथ शहर के गली-कूचों से गुज़रता है। फिल्मी इश्तिहार
रंगीन पतंग के कागज़ पर हीरो-हीरोइन की तस्वीरों के साथ छपे हैं, जो बॉटे जाते हैं।
वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार का तरीका पूरी तरह से परिवर्तित हो गया है। रेडियो,
टी. वी., सिनेमा, इंटरनेट, मोबाइल फोन तथा प्रिंट मीडिया ने विज्ञापन को कई गुना तीव्र
एवं प्रभावशाली बना दिया है। लगभग सभी बड़ी कंपनियाँ हीरो-हीरोइनों, खिलाड़ियों आदि
को अपना ब्रांड एंबेसडर नियुक्त करती हैं। आज तो इंटरनेट के माध्यम से अपनी वस्तुओं,
सेवाओं का विज्ञापन किया जाता है।
6. कला
के प्रति लोगों का नज़रिया पहले कैसा था? उसमें अब क्या बदलाव आया है?
उत्तरः- जिस समय लेखक बच्चा था, उस समय कला को अमीरों, राजे-महाराजों
का शौक समझा जाता था। गरीब व्यक्ति तो इस विषय में सोच भी नहीं सकता था। उस समय कला
आम आदमी का पेट नहीं भर सकती थी। यह केवल समय काटने का साधन थी। आज समय पूरी तरह बदल
चुका है। आज किसी भी वर्ग का व्यक्ति प्रतिभा के आधार पर कला के क्षेत्र में आगे बढ़
सकता है। कला के माध्यम से वह पैसा और सम्मान दोनों कमा सकता है। आज बहुत से ऐसे कलाकार
कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुके है, जो मध्यम वर्ग से आते हैं। आज कला क्षेत्र
व्यावसायिक रूप ले चुका है। इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसर दिनों-दिन बढ़ते जा रहे
है।
7. मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की तुलना अपने
पिता के व्यक्तित्व से कीजिए?
उत्तरः छात्र स्वयं करें।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' पाठ के लेखक कौन है?
क मकबूल फ़िदा हुसैन
ख हरिशंकर परसाई
ग ज्योतिबा फुले
घ ओमप्रकाश वाल्मीकि
2. 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' किस विधा की
रचना है?
क नाटक
ख कहानी का
ग आत्मकथा
घ उपन्यास
3. मकबूल फ़िदा हुसैन को किस वर्ष पद्मभूषण
से नवाजा गया?
क 1973
ख 1975
ग 1976
घ 1972
4. हसैन की कहानी अपनी जबानी पाठ में लेखक
ने अपने कितने मित्रों के शब्द चित्र प्रस्तुत किए हैं?
क दो
ख तीन
ग चार
घ पाँच
5. बड़ौदा शहर के महाराज का क्या नाम था?
क राजा रतन सेन
ख राजा रणजीत
ग सियाजी राव गायकवाड़
घ कुंवर नारायण
6. मौलवी
अकबर किस चीज में उस्ताद थे?
क इतिहास
ख कुरान और उर्दू साहित्य
ग भूगोल
घ कुश्ती
7. मकबूल
को किससे अधिक लगाव था ?
क अपने माता-पिता से
ख अपने दादा से
ग अपनी दादी
घ अपने मामा से
8. दादा
के देहांत के बाद लेखक (मकबूल) का व्यवहार कैसा हो गया?
क वह दादा की याद में डूबा रहता था।
ख वह दादा के कमरे में दिन भर बंद रहता
ग वह किसी से बातचीत भी नहीं करता
घ उपर्युक्त सभी
9. मकबूल
के पिता ने उसे कहाँ भेजने का निर्णय किया?
क बोर्डिंग स्कूल में
ख उसकी बड़ी बहन के यहाँ
ग उसके मामा के यहाँ
घ इनमें से कोई नहीं
10. मकबूल को किस बोर्डिंग स्कूल में दाखिल
कराया गया?
क गाँधी बोर्डिंग स्कूल
ख महाराजा सियाजीराव
ग सुलेमानी जमात
घ इनमें से कोई नहीं
11. स्कूल
में मेजर अब्दुल्ला पठान कौन थे?
क उर्दू के शिक्षक
ख स्काउट
मास्टर
ग भाषा शिक्षक
घ बैंड मास्टर
12. मदरसे में ड्राइंग मास्टर का नाम क्या था?
क मोहम्मद अतहर
ख
इब्राहिम गोहर अली
ग
हामिद कंबर हुसैन
घ
अब्बासजी अहमद
13. मकबूल को किस चीज का शौक था ?
क फोटो खिंचवाने का
ख
क्रिकेट खेलने का
ग
बैंड बजाने का
घ
हाई जंप का
14. मकबूल किस खेल में अव्वल थे?
क
ड्राइंग में
ख
दौड़ में
ग हाई जंप में
घ
क्रिकेट में
15. गाँधी जयंती के अवसर पर मकबूल ने क्या किया?
क गाँधी जी का पोर्ट्रेट बनाया।
ख
एक चिड़ियों का चित्र बनाया।
ग
एक ओजस्वी भाषण दिया।
घ
एक गीत गाया।
16. मकबूल ने किसकी ऑयल पेंटिंग बनाई?
क एक फिल्मी विज्ञापन की
ख
बुरका पहने औरत की
ग
एक उड़ती चिड़ियाँ
घ
बकरी के बच्चे की
17. 'फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट' के डीन कौन बने थे?
क
मकबूल हुसैन
ख
मोहम्मद अतहर
ग बेंद्रे साहब
घ
मकबूल के पिता
18. मकबूल ने ऑयल कलर की ट्यूब खरीदने के लिए अपनी कौन सी किताबें बेच
दी?
क
संस्कृत
ख इतिहास और भूगोल
ग
गणित
घ
अंग्रेजी
19. मदरसे के जलसे पर किसने मकबूल को इल्म (ज्ञान) पर 10 मिनट का भाषण
अभिनय के साथ याद कराया?
क
अब्बास तैयबजी
ख
मोहम्मद अतहर
ग
कंबर हुसैन
घ मौलवी अकबर
20. मकबूल का पूरा नाम था?
क
मकबूल सद्दाम हुसैन
ख
मकबूल जफर हुसैन
ग मकबूल फ़िदा हुसैन
घ
मकबूल जाकिर हुसैन
21. कोल्हापुर के शांताराम की किस फिल्म का पोस्टर देखकर मकबूल के मन
में ऑयल पेंटिंग बनाने का ख्याल आया ?
क
रामगढ़
ख
दो आँखें बारह हाथ
ग सिहगढ़
घ
इनमें से कोई नहीं
22. 'बेटे जाओ और जिंदगी को रंगों से भर दो।' यह शब्द किसने किससे कहे
?
क अब्बा ने बेटे मकबूल से
ख
महाराज ने प्रजा से
ग
माँ ने पुत्री से
घ
शिक्षक ने मकबूल से
23. मकबूल फ़िदा हुसैन को किस वर्ष पद्मश्री से नवाजा गया?
क 1966
ख
1965
ग
1962
घ
1967
24. बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में लड़कों की वेशभूषा क्या थी?
क
मुंडे सिरों पर गाँधी टोपी
ख
खादी का कुर्ता पजामा
ग उपर्युक्त दोनों
घ
विलायती परिधान (पैंट शर्ट)
25. मकबूल फ़िदा हुसैन एक प्रसिद्ध थे।
क
पत्रकार
ख
कहानीकार
ग चित्रकार
घ
नाटककार
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. हुसैन का पूरा नाम बताते हुए उनके जन्म एवं मृत्यु के बारे में संक्षेप
में लिखिए।
उत्तरः-
हुसैन का पूरा नाम था 'मकबूल फ़िदा हुसैन। उनका जन्म 17 सितंबर 1915 ई. में शोलापुर
महाराष्ट्र में हुआ। 09 जून 2011 ई. को लंदन (इंग्लैंड) में उनकी मृत्यु हो गई।
2. हुसैन ने जीवन में क्या-क्या काम किए ?
उत्तरः-
मकबूल फ़िदा हुसैन ने जीवन के प्रारंभ में सिनेमा के पोस्टर पेंटर के रूप में अपना
काम शुरू किया। आधुनिक युग के महान चित्रकार के रूप में उन्होंने अपना नाम कमाया। फ़िल्म
निर्माण में भी उनकी जबरदस्त रुचि थी इसलिए उन्होंने कुछ फ़िल्में भी बनाई थू आइज आफ
ए पेंटर, मीनाक्षी एवं गजगामिनी।
3. हुसैन को किस-किस पुरस्कार एवं अलंकरण से अलंकृत किया गया ?
उत्तरः-
हसैन को जीवन में बहुत से पुरस्कार एवं अलंकरण से अलंकृत किया गया जिनमें प्रमुख हैं
पद्मश्री (1966), गोल्डन बेयर शॉर्ट फिल्म पुरस्कार (1968), पद्म भूषण (1973), पद्म
विभूषण (1991) एवं राजा रविवर्मा पुरस्कार (2008)।
4. मकबूल के पिता ने क्यों सोचा कि मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल
में दाखिला कराया जाए ?
उत्तरः-
मकबूल के दादा जी जब चल बसे तो मकबूल उदास होकर दादा जी के कमरे में बंद रहने लगा।
वह दादा जी के बिस्तर पर सिमट कर सोया रहता, न किसी से बातचीत न खेलना- कूदना। उनके
पिता ने इस उदासी और अकेलेपन से
निकालने के लिए सोचा और बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में भेजने का मन बनाया।
5. बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में दाखिला कराने
के लिए मकबूल के पिताजी ने मकबूल के चाचा जी को क्या आदेश दिया ?
उत्तरः- उन्होंने बड़ौदा ले जाने के पूर्व उनके चाचा जी से
कहा- "इसे बड़ौदा छोड़ आओ वहाँ लड़कों के साथ इसका दिल लग जाएगा। पढ़ाई के साथ
मज़हबी तालीम, रोज़ा, नमाज, अच्छे आचरण के चालीस सबक, पाकीज़गी के बारह तरीके सीख जाएगा।"
6. हुसैन ने बड़ौदा शहर का ज़िक्र किन शब्दों
में किया है?
उत्तरः- बड़ौदा के बारे में हुसैन ने लिखा है- "महाराजा
सियाजी राव गायकवाड़ का साफ़ सुथरा शहर बडौदा। राजा मराठा प्रजा गुजराती। शहर में दाखिल
होने पर 'हिज हाइनेस' की पाँच धातुओं से बनी मूर्ति, शानदार घोड़े पर
सवार 'दौलते बरतानिया' के मेडेल
लटकाए, सीना ताने दूर से ही दिखाई देती है।"
7. अपने
बोर्डिंग स्कूल के शिक्षकों और बावर्ची का उल्लेख किन शब्दों में हुसैन ने किया है
?
उत्तरः- हसैन ने अपने शिक्षकों एवं बावर्ची के बारे में लिखा
है- "मौलवी अकबर धार्मिक विद्वान, कुरान और उर्दू साहित्य के उस्ताद। केशवलाल
गुजराती जबान के क्लास टीचर। स्काउट मास्टर, मेज़र अब्दुल्ला पठान। गुलज़मा खान बैंड
मास्टर। बावर्ची गुलाम की रोटियों और बीवी नरगिस का सालन गोश्त।""
8. मकबूल ने मदरसे में किन-किन क्रिया कलापों
में हिस्सा लिया ?
उत्तरः- मकबूल ने मदरसे के खेल-कूद में हिस्सा लिया और हाई
जंप (ऊँची कूद) में प्रथम स्थान प्राप्त किया। दौड़ में पीछे रह गए लेकिन ब्लैक बोर्ड
पर मास्टर अतहर दद्वारा बनाई चिड़ियों की नकल हू-ब-ह अपने स्लेट पर कर दी और दस में
से दस अंक प्राप्त किए।
9. पेंटर बनने से पूर्व हुसैन से परिवार वालों
ने क्या-क्या काम करवाए ?
उत्तरः- हुसैन बिज़नेस के गुण सीखें इसलिए उन्हें उनके चाचा
की दुकान (जनरल स्टोर) पर बैठाया गया। उसके बाद कपड़े की दुकान पर बैठे फिर रेस्टोरेंट
में भी गल्ले का हिसाब-किताब रखा।
10. अपनी पहली ऑयल पेंटिंग के बारे में हुसैन
ने किस बात की चर्चा की है?
उत्तरः- हसैन ने अपनी पहली ऑयल पेंटिंग की कहानी बताते हैए
लिखा है कि उन्होंने अपनी दो पुस्तकों (शायद भूगोल और इतिहास) को बेचकर ऑयल कॅलर की
ट्यूबै खरीदी और चाचा की दुकान पर बैठ कर ऑयल पेंटिंग बनाई ।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. बड़ौदा शहर तथा वहाँ के मदरसे के विषय में
लेखक ने क्या बताया है?
उत्तरः- बड़ौदा साफ सुथरा शहर है। यहाँ 'हिज हाइनेस' की पाँच
धातुओं से बनौ घोड़े पर सवार मूर्ति भी है। मकबूल को महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ के
इसी शहर के बोर्डिंग स्कूल में दाखिल कराया गया। इस स्कूल का संचालन व कार्यभार सँभालने
का कार्य नेशनल कांग्रेस और गाँधीजी के अनुयायी (गुजरात की मशहूर 'अरके तिहाल' की ख्याति
वाले) जी.एम. हकीम अब्बास तैयबजी करते थे। उन पर गाँधीजी का प्रभाव होने के कारण स्कूल
के छात्रों का मुंडे सिरों पर गाँधी टोपी और बदन (शरीर) पर खादी का कुर्ता-पायजामा
पहनना अनिवार्य था।
2. लेखक
ने किस प्रकार अपने बचपन की शरारती प्रवृत्ति का वर्णन किया है?
उत्तरः- लेखक मदरसे के सालाना जलसे का वर्णन करते हुए कहता
है कि यहाँ सिर्फ खास मेहमानों और उस्तादों का 'ग्रुप फोटोग्राफ़' खींचा जा रहा था।
मैं लड़कों की भीड़ मैं खड़ा मौके की तलाश में था। जैसे ही लुकमानी ने फोकस जमाया और
'रेडी' कहा। वे दौड़कर ग्रुप के कोने में खड़ा हो गए। इस तरह उस्तादों की बिना इजाजत
उन्होंने अपनी बहुत-सी तस्वीरें खिंचवाई थीं। इन सभी क्रियाओं के आधार पर लेखक ने अपने
बचपन की शरारती प्रवृत्ति का वर्णन किया है।
3. मकबूल द्वारा पहली ऑयल पेंटिंग के संदर्भ
में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए उसके चाचा व पिताजी की प्रतिक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तरः- एक दिन मकबूल के चाचा की दुकान के सामने से फ़िल्मी
विज्ञापन का ताँगा गुजरा। मकबूल ने सोचा कि उस विज्ञापन की ऑयल पौटंग बनानी चाहिए।
उसने स्कूल की अपनी दो किताबें बेचकर ऑयल कलर की दो ट्यूर्वे खरीद ली और पहली ऑयल पेंटिंग
चाचा की दुकान पर बैठ कर बनाई। जब चाचा ने उस पेंटिंग को देखा तो वे बहुत क्रोधित हुए,
लेकिन मकबूल के पिताजी उस पेंटिंग की देखकर इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने मकबूल को
गले से लगा लिया। इस प्रकौर, मकबूल के चित्र का उनके चाचा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा
जबकि उनके पिताजी पर सकारात्मक ।
4. बेंद्रे साहब कौन थे? उन्होंने पेंटिंग
के क्षेत्र में क्या किया?
उत्तरः- बेंद्रे साहब इंदौर सर्राफा बाजार में ऑनस्पॉट पेंटिंग
करते थे। उनकी प्रभावशाली पेंटिंग के कारण ही उन्हें 'फैकल्टी ऑफ़ फ़ाइन आर्ट' का डीन
बनाया गया। वर्ष 1933 में बेंद्रे ने कैनवास पर एक बड़ी-सी पेंटिंग घर में पेंट करनी
आरंभ की। इस पेंटिंग का नाम 'वैगबांड था। इस पेंटिंग पर बेंद्रे को 'बंबई आर्ट सोसाइटी'
ने चाँदी का मेडेल दिया। हिंदुस्तानी मॉडर्न आर्ट का यह पहला क्रांतिकारी कदम था। बेंद्रे
साहब अच्छे पेंटर होने के साथ-साथ कला के सच्चे पारखी भी थे। उन्होंने बालक मकबूल में
छिपी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव कोशिश भी की।
5. मकबूल को उनकी मंज़िल तक पहुँचाने में आप
उनके पिताजी का कितना योगदान मानतें हैं?
उत्तरः- मकबूल ने परिश्रम और लगनशीलता के कारण सफलता की बुलंदियों
को छुआ परंतु इसमें उनके पिताजी के योगदान को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने
मकबूल को आरंभिक जीवन में ही समस्याओं का सामना करना सिखा दिया था। उन्होंने प्रत्येक
कदम पर मकबूल का साथ दिया। उन्होंने मकबूल की अभिरुचि को समझते हुए उसकी कद्र की तथा
उसे अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए प्रोत्साहित भी किया। बेंद्रे साहब के कहने पर
मकबूल के लिए बंबई से पेंट और कागज़ मंगवाया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. मकबूल फ़िदा हुसैन के जीवन संघर्ष पर
300 शब्दों में प्रकाश डालें।
उत्तरः- किसी भी महान कलाकार का जीवन विविध संघर्षों से जूझकर निर्मित
होता है ऐसे ही मकबूल फ़िदा हुसैन के विख्यात चित्रकार बनने की कहानी है। उनका जन्म
सन् 1915 में पंढरपुर, शोलापुर महाराष्ट्र में एक रुढ़िवादी मुस्लिम परिवार में हुआ
था। उनके पिता उन्हें मदरसे में पढ़ाकर धार्मिक मुसलमान बनाना चाहते थे लेकिन यह जानने
पर कि मॅकबूल की रुचि पेंटिंग में है उन्होंने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उनके
घर वाले चाहते थे कि वे 'बिजनेस के गुण' सीख लें ताकि चार पैसे कमा कर अपनी आजीविका
चला सकें लेकिन उनकी रुचि तो स्केच बनाने में थी। उन्हें कभी जनरल स्टोर में बिठाया
गया तो कभी कपड़े की दुकान में। यहाँ तक कि वे रेस्टोरेंट में भी हिसाब-किताब करते
रहे लेकिन उनकी चित्रकला की प्रतिभा छूप न सकी। मदरसे में चिड़ियाँ और गाँधी जी का
स्कैंच बनाया। चाचा की दुकान पर बैठकर ऑयल कलर वाली पेंटिंग बनाई। बेंद्रे से भेंट
होने पर 'लैंडस्केप' पेंटिंग करने लगे। फिर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्टस मुंबई से शिक्षा
पूरी की। रोजी रोटी के लिए कभी सिनेमा के पोस्टर बनाए, कभी खिलौने की फैक्ट्री में
काम किया। प्रतिभाशाली मकबूल कठोर परिश्रम से धीरे-धीरे बड़े चित्रकार के रूप में विख्यात
हो गए। वे काफी चर्चित भी रहे और बहुत विवादास्पद भी लेकिन कला के प्रति उनकी निष्ठा
में कोई कमी नहीं आई। कई फिल्में बनाकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पद्म
विभूषण जैसे प्रस्कार प्राप्त कर उन्होंने चित्रकला को एक नई ऊँचाई तक पहुँचाया।
2. समाज में आज भी साहित्य, संगीत एवं कला
के क्षेत्र में कैरियर बनाने के प्रति कोई उत्साह नहीं दिखाई देता। तर्क सहित उत्तर
दीजिए।
उत्तरः- हमारा भारतीय समाज बहुत यथार्थवादी समाज है। जल्दी
पैसे कमाने और समाज में प्रतिष्ठा पाने वाले धंधे को वह स्वीकार करता है लेकिन ऐसे
कार्य जिसमें नाम एवं पैसा कमाने में जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा गुजर जाए उसे पसंद नहीं।
ज्यादातर लोग अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं। कुछ आई. ए. एस., आई.
पी.एस., सी. ए., सी.एस. जैसे पद पर प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। जो इनसे बच गए वे शिक्षक,
क्लर्क (किरानी) एवं नर्स तक काम चलाना चाहते हैं लेकिन दिल से कोई अपने बच्चे को कवि,
चित्रकार या गायक गायिका बनाना नहीं चाहता। इन कार्यों में सरकारी नौकरी नहीं है, निश्चित
आमदनी नहीं है और पहचान बनाने, नाम कमाने एवं पैसा कमाने में जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा
चला जाता है। यही कारण है कि अमीर, खानदानी या कुलीन लोगों के लिए तो यह सब काम ठीक
है सामान्य आदमी के लिए गुजारा करना मुश्किल। इन कामों में आंतरिक प्रतिभा की भी आवश्यकता
होती है। गहरी रुचि होनी चाहिए, कठिन परिश्रम करके ही इन क्षेत्रों में सफलता हासिल
की जा सकती है। सामान्य आदमी यदि कलाकार बनना चाहे तो उसकी सफलता पर संदेह बना रहता
है इसलिए लोग कला को करियर बनाने के प्रति आश्वस्त नज़र नहीं आते।
3. कलाकार के विकास के लिए प्रतिभा के साथ
परिश्रम, माहौल के साथ सहयोग, प्रोत्साहन के साथ संरक्षण की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तरः- कलाकार के लिए दो चीजें परम आवश्यक हैं प्रतिभा और परिश्रम। प्रकृति प्रदत्त प्रतिभा के बिना बड़ा कलाकार बनना मुश्किल है और कठोर परिश्रम के बिना प्रतिभा को निखारा नहीं जा सकता। जिसमें दोनों गुण होते हैं वही लता मंगेशकर या मकबूल फ़िदा हुसैन बनता है। जिस बच्चे में बचपन से किसी विशेष प्रतिभा के दर्शन हो जाएँ उन्हें विशेष विदयालय में विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ताकि उसे वह माहौल मिल सके। प्रतिभा के विकास के लिए सही वातावरण अत्यंत आवश्यक है। माहौल के साथ-साथ घर-परिवार, समाज सरकार का हर तरह का सहयोग बहुत जरूरी है जिससे धनाभाव में वह मुर्झाये नहीं। ऐसे बच्चों को सामाजिक या सरकारी पुरस्कार एवं छात्रवृत्ति देकर प्रोत्साहित करते रहना चाहिए जिससे उनका हौसला बुलंद रहे। तरह-तरह के विशेष संस्थान में उनकी प्रतिभा को विकसित करने के लिए सरकारी संस्थान की जरूरत है ताकि उनकी देखभाल हो सके। जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स, एन.एस.डी. (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) एवं पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट जैसे संस्थान में पढ़कर एवं प्रशिक्षण प्राप्त कर कितने कलाकार अपने क्षेत्र में देश की सेवा कर रहे हैं। इसलिए ऊपर दिए गए सभी बिंदुओं के सहयोग से ही महान कलाकार अपनी कला का जादू बिखेर पाएँगे।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
पाठ सं. | पाठ का नाम |
अंतरा भाग -1 | |
गद्य-खंड | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
काव्य-खंड | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
15. | |
16. | |
अंतराल भाग 1 | |
1. | |
2. | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |