Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 गद्य-खंड पाठ 8. भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 गद्य-खंड पाठ 8. भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

 Class 11 Hindi Elective अंतरा भाग -1 गद्य-खंड पाठ 8. भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

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Class - 11 Hindi Elective

अंतरा भाग -1 गद्य-खंड

पाठ 8. भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

लेखक-परिचय [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (सन् 1850-1885)]

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी में हुआ था। भारतेन्दु के पिता श्री गोपाल चंद्र वैष्णव थे और ब्रजभाषा में कविता किया करते थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। वे हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मराठी, बंगला, पंजाबी, मारवाड़ी और संस्कृत के अच्छे जाता थे। ये आजीवन सरस्वती की आराधना में लगे रहे। अत्यन्त अल्प आयु में ही इनका देहावसान हो गया। भारतेन्दु आधुनिक साहित्यिक हिंदी भाषा के निर्माता माने जाते हैं। इनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अनमोल निधि हैं। वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, प्रेम जोगिनी, भारत दुर्दशा, नील देवी, अंधेर नगरी, सती प्रलाप, विद्यासुंदर, भारत जननी, सत्य हरिश्चंद्र, मुद्राराक्षस, दुर्लभ बंधु इनके प्रसिद्ध नाटक है। प्रेम-माधुरी, प्रेम-फुलवारी, प्रेम मालिका, प्रेम प्रलाप, फूलों का गुच्छा काव्यसंग्रह है। इन्होंने निम्नलिखित पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगजीन, बाला बोधिनी, हरिश्चन्द्र चंद्रिका इत्यादि। इन्होंने बहुत कम समय में ही हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने का गुरुत्तर त्तर कार्य किया।

पाठ-परिचय

'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?' भारतेन्दु हरिश्चंद्र के द्वारा बलिया में दिया गया प्रसिद्ध भाषण है। इसमें एक ओर ब्रिटिश शासन की मनमानी पर व्यंग्य है तो दूसरी ओर अंग्रेज़ों के परिश्रमी स्वभाव और कर्तव्यनिष्ठा के प्रति सम्मानभाव भी है। भारतेन्दु ने इस भाषण के माध्यम से भारतवर्ष की जनता हिन्दू-मुस्लिम दोनों को ललकारा है और उनकी कमियों को उजागर किया है। उन्होंने भारतीयों को आलस्य छोड़ने, जनसंख्या नियंत्रण करने, गलत रुढ़ियों को छोड़ने तथा आत्मचिंतन करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने भारत वासियों को जगाने का कार्य किया तथा अपने देश के विकास में सबको भागीदार होने का आवाहन किया है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

1. पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि 'इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए, वही बहुत कुछ है।' क्यों कहा गया है?

उत्तरः- लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि भारतीय बहुत आलसी हैं। अंग्रेजों के राज में हमें अपनी उन्नति के बहुत सुनहरे अवसर मिले थे। परंतु हम अर्कमण्यता के कारण उसका लाभ नहीं उठा पायें। कुछ थोड़े बहत भारतीय जो अपनी उन्नति कर पाये उसी को लेखक बहुत कुछ समझ रहे हैं। हम भारतीय भाग्यवादी होकर कर्म करने से कतराते हैं और केवल फल की कामना करते हैं। इसी बात से लेखक ने रंज होकर ऐसा कहा है।

2. 'जहाँ रॉबर्ट साहब बहादुर जैसे कलक्टर हों, वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो' वाक्य में लेखक ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है?

उत्तरः- बलिया जैसी छोटी जगह में इतने सारे लोगों का उत्साह देखकर लेखक को आश्चर्य के साथ खुशी हुई क्योंकि यह समारोह रॉबर्ट साहब की प्रेरणा का सुखदै परिणाम था। लेखक भारतीयों के आलस्य और अर्कमण्यता से परिचित थे, साथ ही उन्हें यह भी जात था कि भारतीयों के अंदर हनुमान की-सी शक्ति और साहस है, परंतु उन्हें कोई कुशल नेता या मार्गदर्शक चाहिए, जो उन्हें उनकी शक्ति से परिचित करा सके। राबर्ट साहब ने उन भारतीयों के उत्साह और साहस को जगाने का नेक कार्य किया था, जिससे वहाँ जनसमुदाय उमड़ पड़ा। इसलिए लेखक ने सारा श्रेय उन्हें दिया तथा उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। लेखक एक ऐसे समाज की कल्पना करता है, जिसमें भाईचारा, प्रेम, सहयोग और अपनेपन की भावना का विकास हो, तभी देश में एकता स्थापित हो सकेगी और देश समृद्धि के शिखर को छूता हुआ सदैव आगे बढ़ता रहेगा।

3. 'जिस प्रकार ट्रेन बिना इंजिन के नहीं चल सकती उसी प्रकार हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो' से लेखक ने अपने देश की खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है?

उत्तरः- लेखक ने भारतीयों की तुलना रेल के डिब्बे से करते हुए कहा कि जिस प्रकार रैल को चलाने के लिए इंजन आवश्यक है, उसी प्रकार भारतीयों की क्षमता और शक्ति की पहचान कराने वाला एक मार्गदर्शक आवश्यक हैं। भारतीयों में हनुमान सा साहस, शक्ति और शौर्य भरा पड़ा है, परंतु उन्हें कोई जगाने वाला चाहिए। साथ ही लेखक ने देश की उन्नति में बाधक तत्त्वों की जड़ को खोज निकालने और उन्हें नष्ट करने का आवाहन किया है। अपना स्वार्थ, क्षुद्र सुख की लालसा, सामाजिक, धार्मिक अंधविश्वास, पुरानी सड़ी-गली परम्पराएँ, क्रीतियाँ, गंदी राजनीति, आलस्य, अ अर्कमण्यता आदि उन्नति में बाधक हैं। इनके समूल नाश के उपरांत ही राष्ट्र उन्नति के सोपान पर आरुढ़ हो सकेगा।

4. देश की सब प्रकार से उन्नत्ति हो, इसके लिए लेखक ने जो उपाय बताए उनमें से किन्हीं चार का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।

उत्तरः- लेखक देश की उन्नति के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाने पर बल देते हैं-

(i) विदेशी भाषा का मोह त्यागना-

निजभाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल ॥

लेखक ने बताया है कि हमें दूसरी भाषाओं का मोह त्याग कर अपनी भाषा और बोली को अपनाना चाहिए। बिना अपनी भाषा के ज्ञान के हृदय का कष्ट दूर नहीं होगा। अपनी भाषा की उन्नति ही सर्वोपरि है। हमारी सच्ची प्रगति अपनी भाषा और बोली को अपनाकर ही हो सकती है, अन्यभाषा से नहीं।

(ii) शिक्षा पर विशेष बल- शिक्षा ही मनुष्यों में जान का अलख जगाती है, अच्छे-बुरे की पहचान कराती है। हमारे भीतर विकट और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीने का साहस पैदा करती है। एक शिक्षित व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को प्रगति करने से कोई भी नहीं रोक सकता।

(iii) समय का सदुपयोग, आलस्य का त्याग- लेखक ने भारतीयों को विदेश के लोगों का उदाहरण देते हुए समझाया कि समय के मूल्य को पहचानो। आलस्य का त्याग करो क्योंकि यह हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। हमने अगर समय का सदुपयोग कर लिया तो हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। जिसने भी परिश्रम किया, इतिहास गवाह है कि उसका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया। अतः हमें समय के मूल्य को पहचान कर निरंतर आगे बढ़ना चाहिए।

(vi) स्वार्थकेन्द्रित वृत्ति का त्याग और वास्तविक धर्म का पालन- लेखक ने अपनी स्वार्थ प्रवृत्ति से ऊपर उठकर देश और समाजहित के विषय में सोचने की सलाह दी है। व्यक्ति से बड़ा देश है। इसलिए देश के लिए व्यक्ति का मिट जाना ही श्रेयस्कर है। हमारे पर्व-त्योहार हमारे आपसी संबंधों को मजबूत करते हैं।

इनका उद्देश्य आपसी प्रेम, भाईचारे और, स‌द्भावना को बढ़ाना है। कुछ धार्मिक बातें जो समाज विरुद्ध बताई गई हैं। उन्हें अपने विवेक के तराजू पर तौलकर अपनाना चाहिए। जैसे जहाज की यात्रा, बह-विवाह और बाल-विवाह का विरोध, विधवा विवाह, स्त्रीशिक्षा का समर्थन आदि। इन्हें अवश्य अपनाना चाहिए, इससे हमारे समाज और देश का विकास होगा।

5. लेखक जनता से मत-मतांतर छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह क्यों करता है?

उत्तरः- एकता में बहुत शक्ति है, इसे हम सब जानते हैं परंतु इसे आत्मसात या पालन नहीं करने के कारण ही हम दुर्गति को प्राप्त होते हैं। लेखक जनता से मत-मतांतर को छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह इसलिए करते हैं कि उन्होंने प्रगति का मूल मंत्र जान लिया है। सभी धर्म के अनुयायी एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक दूसरे के सहायक बने, जिससे पूरा देश अखण्ड हो, देश की गरिमा अक्षुण्ण रहे, तभी देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया जा सकेगा। आपसी प्रेम और भाईचारा हमसबके जीवन में सहजतापूर्वक संचरित हो, इसलिए लेखक देशवासियों से आग्रह करता है।

6. आज देश की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में नीचे दिए गए वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए "जैसे हजार धारा होकर गंगा समुद्र में मिली है, वैसे ही तुम्हारी लक्ष्मी हज़ार तरह से इंग्लैण्ड, फ्रांसीस, जर्मनी, अमेरिका को जाती है।"

उत्तरः- जैसे गंगा नदी हजार धारा होकर समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार हमारे देश का धन हजार तरीकों से विदेशों में जा रहा है। इसके दो कारण हैं- एक तो विदेशी वस्तुओं का मोह, दूसरा स्वदेशी वस्तुओं का अभाव। हमारे यहाँ प्राकृतिक संसाधन और संपदा प्रचुर मात्रा में है लेकिन हम कुशलता और प्रशिक्षण के अभाव, आलस्य के कारण दूसरे देशों पर निर्भर हैं। ये देश हमारे देश से कच्चा माल ले जाकर वस्तुएँ बनाते हैं और हम उन्हें महँगे दामों में खरीद कर अपनी अर्थव्यवस्था को चौपट कर डालते हैं। दैनिक उपयोगी वस्तुओं से लेकर, इलेक्ट्रॉनिकल वस्तुओं तक, खादय पदार्थ, कपड़े इत्यादि का हम आयात करते हैं, जिससे हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा उठती है जबकि अन्य देश हमारे रुपयों के बल पर धनवान और मजबूत बनते जा रहे हैं।

7. आपके विचार से देश की उन्नति किस प्रकार संभव है? कोई चार उदाहरण तर्क सहित दीजिए

उत्तरः- हमारे विचार से देश की उन्नति के लिए ये चार तत्त्व आवश्यक हैं-

(i) शिक्षा- शिक्षा हमारे लिए आईना है, जो हमें हमारे सही-गलत स्वरूप को दिखाती है। शिक्षा व्यक्ति में ज्ञान का अलख जगाती है। एक शिक्षित व्यक्ति ही स्वस्थ, सुंदर और स्वच्छ परिवार का निर्माण कर सकता है। परिवार की बड़ी ईकाई राष्ट्र है। शिक्षित समाज हमेशा अपने राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए प्रयत्नशील रहता है। साथ ही शिक्षा रोजगारोन्मुखी भी हो, जिससे व्यक्ति रोज़ी- रोटी की चिंता से मुक्त हो सके और राष्ट्र के नव-निर्माण में अपना योगदान दे सके।

(ii) मातृभाषा का प्रयोग- अपनी भाषा में कोई भी व्यक्ति सहज होता है, वह अपनी अनुभूतियों को सरल और व्यवहारिक तरीके से अभिव्यक्त कर पाता है। जो समय एवं ऊर्जा हम दूसरी भाषाओं को सीखने में लगाएँगे, उसकी अपेक्षा अपनी भाषा को अपनाकर हम ज्यादा प्रगतिशील होंगे। अन्य भाषाओं को सीखना बुरा नहीं है अपनी से अधिक महत्त्व दैना अच्छा नहीं है। स्वदेशा ren भाषा, बोली तकनीक को अपनाना ही बुद्धिमानी है। चीन, जापान, फ्रांस आदि ज्वलंत उदाहरण हैं हमारे सामने। हमें इनसे सीख लेकर, आगे बढ़ना चाहिए।

(iii) सभी धर्मों का समान आदर भाव- भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। यहाँ विविध मत और धर्म के लोग एक साथ परस्पर मिलजुल कर रहते हैं। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए हम देश को प्रगति की राह पर ले जा सकते हैं। मजहब और धर्म के झगड़े में पड़कर हम पहले ही बहुत हानि उठा चुके हैं। अब हमें आपसी प्रेम, सहयोग, सद्भावना से मिलजुलकर रहना चाहिए और देश की प्रगति के विषय में सोचना चाहिए।

(iv) अंधविश्वास और रुढ़ियों का त्याग- अंधविश्वास और रुढ़ियों हमारे पैरों की बेड़ियों हैं। इनको त्यागे बिना हमारी प्रगति कदापि नहीं हो सकती। समय के साथ स्वयं को बदलने वाला ही जीवनसमर को जीतकर विजयी हो सकता है। हमें स्वस्थ और वैज्ञानिक तर्क सम्मत मान्यताओं को अपनाकर देश को आगे बढ़ाने में सहायक होना चाहिए।

8. भाषण की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि पाठ "भारत वर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?" एक भाषण है।

उत्तरः- भाषण देना एक महत्त्वपूर्ण कला है। अच्छा वक्ता वही हो सकता है, जो अच्छा श्रोता होता है तथा अच्छा अध्यापक वही हो सकता है, जो अच्छा विद्यार्थी हो। भाषण देने के लिए प्रतिभा के साथ प्रशिक्षण भी महत्त्वपूर्ण है, आषण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(i) भाषण का स्पष्ट विषय और उचित संबोधन- वक्ता को विषय की जानकारी होना तथा उचित ढंग से समुदाय को संबोधित करना अवश्य आना चाहिए। विषय के प्रति स्पष्ट जानकारी, उचित तरीके से निर्भीकतापूर्वक प्रस्तुत करने की कला रखने वाला वक्ता श्रऔताओं का निश्चय ही हृदय जीत लेता है। लेखक अपने भाषण में बिना तनिक भी भटके हुए अंततः भारतवर्ष की उन्नति की ही बात करते हैं, जिससे विषय की रोचकता और गंभीरता अंत तक जनसमुदाय को बाँधे रखती है। वे भारतीयों के गुण, अवगुण को उजागर करने, दूसरे देशों के लाँगों की खूबियों बताने, उन्नति के उपाय, सामाजिक, धार्मिक कुरीतियों को खत्म करने एवं देश की उन्नति के साधन अपनाने के उपायों पर शुरु से अंत तक बातें करते हैं।

(ii) भाषा का ध्यान- भाषण देते समय विषय के साथ- साथ भाषा का ध्यान रखना भी एक वक्ता को लोकप्रिय बनाता है। भारतेंदु जी की भाषा अत्यन्त सरल, सहज, हृदय को को छू लेने वाली, आमजन की भाषा है। इससे लोगों को महसूस होता है कि उनके ही कोई स्वजन या मित्र उनसे आत्मीयतापूर्वक, बातें कर रहे हैं। उनकी बातें आज भी रोचकता पूर्वक पढ़ी जा रही हैं इससे पता चलता है कि वे देश, काल की समय-सीमा से परे हैं।

(iii) श्रोता वर्ग की आयु, योग्यता और रुचि- आषण देते समय श्रोता की आयु, योग्यता और रुचि का अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रस्तुत पाठ का विषय हरवर्ग आयु, योग्यता, जाति, धर्म के अनुकूल है क्योंकि देश की उन्नति में सबकी उन्नति है। अपना भला कौन नहीं चाहता और प्रस्तुत भाषण का वर्ण्यविषय ही अपनी भलाई से देश की भलाई है।

(iv) मनोरंजन और हास्य का पुट- गंभीर से गंभीर विषय को हल्का-फुल्का बनाकर प्रस्तुत करना भाषण कला का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। लेखक ने इतने महत्त्वपूर्ण विषय को अपनी समझदारी, हास्य व्यंग्य, विनोदपूर्ण स्वभाव, शेरो-शायरी, चुटकुले-मुहावरे से प्रभावी और प्रेरक बना दिया है। वें गंभीर बातों को भी बड़ी रोचक अंदाज में कहते हैं- जैसे- 'घर की तो मूर्दै ही मूछें हैं।' 'फिर कब राम जनकपुर ऐहैं।" कए के मेंढक, काठ के उल्लू, पिंजड़े के गंगाराम, का चुप साधि रहा बलवाना' इत्यादि इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत पाठ एक सुंदर, रोचक, उपयोगी, महत्त्वपूर्ण और जीवंत भाषण है।

9. 'अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो' से लेखक का क्या तात्पर्य है? वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः- अपनी भाषा के प्रयोग से हम पूरे देश को भावनात्मक रूप से एकता के सूत्र में बाँधे रख सकते हैं इससे हमारे अंदर आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का भाव जगेगा। आज भी हम अंग्रेजी बोलने वाले को हैरानी से देखते हैं, जबकि टूटी-फूटी हिंदी आने पर हमें आत्मग्लानि नहीं होती। यह हमारी बीमार मानसिकता को दर्शाती है। जब तक हम दूसरी भाषा, दूसरे देश, दूसरी वस्तुओं पर आश्रित रहेंगे हम आगे नहीं बढ़ पाएँगे। हमेशा हमें अपने प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का उत्पादन करना होगा। अपनी भाषा को देश के जन-जन तक पहुँचाना होगा, तभी हम पूर्णता आत्मनिर्भर हो सकेंगे। एक आत्मनिर्भर राष्ट्र ही विकास के नए आयाम गढ़ सकता है। हम चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी से सीख सकते हैं। स्वदेशी वस्तुओं और भाषा को अपनाना ही सच्चा राष्ट्र धर्म है।

10. निम्नलिखित ग‌द्यांश की व्याख्या कीजिए?

(क) सास के अनुमोदन ------ से फिर परदेस चला जाएगा।

उत्तरः- संदर्भ प्रस्तुत ग‌द्यांश हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार व नया युग प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित लेख 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है' से अवतरित है। प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने भारतीयों की सबसे बड़ी कमजोरी आलस्य, अकर्मण्यता का वर्णन किया है जिससे देश पिछड़ेपन का शिकार हो रहा है।

व्याख्याः लेखक के अनुसार अंग्रेज़ी राज्य में सब प्रकार की वस्तुएँ और साधन पाकर भारतीय लाभ नहीं ले पायें तो यह उनका दुर्भाग्य और ईश्वर का कोप ही कहा जाएगा। लेखक भारतीयों की तुलना उस वधू से करते हैं, जिसका परदेशी पति एक रात के लिए ही उसके पास आया है। उस वधू को पति के पास जाने की अनुमति भी सास से मिल गई है. परंतु वह अगर लज्जा के मारे पति का मुँह भी न देखे, उससे दो मीठे बोल ही न बोले तो यह उसका दुर्भाग्य ही तो है क्योंकि उसे केवल एक रात का ही अवसर मिला है, और अगर उसने इसे गंवा दिया तो उससे बड़ी मूर्खा कौन होगी? अर्थात् लेखक कहना चाहता है कि अन्य लोग तो केवल प्रेरणा व सलाह ही दे सकते हैं, आचरण में लाना और उस पथ पर बढ़ना तो स्वयं ही होगा। इसी प्रकार हम यदि अंग्रेज़ी राज में सभी संसाधनों को पाकर उन्नति नहीं करेंगे तो इसके उत्तरदायी हम स्वयं होंगे।

विशेष-

(i) लेखक ने भारतीयों की तुलना वधू से की है।

(ii) लेखक ने अंग्रेज़ी शासन व्यवस्था के प्रति सामंजस्य और उसकी अच्छाई को भी उभारा है।

(iii) तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।

(iv) भाषा सरल व सहज है। शैली व्यंग्यात्मक है।

(ख) दरिद्र कुटुंबी इस तरह ----- वही दशा हिन्दुस्तान की है।

उत्तरः- संदर्भ- पूर्ववत्

प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने भारतीयों के आलस्य को चित्रित करने का प्रयास किया है। आलस्य ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है।

व्याख्या लेखक एक लोकोक्ति के माध्यम से यह बताने का प्रयत्न करता है कि जिस प्रकार एक निर्धन परिवार की कुलवधू अपने फटे-पुराने वस्त्रों से अपनी लज्जा को बचाए फिरती है, उसी प्रकार भारत देश भी अपनी असमर्थता को छिपाए फिरता है कि कहीं अन्य देश उसकी कमजोरी को ऑप न ले। अपनी अर्कमण्यता और आलस्य के कारण ही वह प्रगति नहीं कर पाता जिसके चलते, चहुँ ओर बेरोजगारी, चोरी-चकारी, गरीबी फैली है, परंतु वह अपनी कमजोरी को दूर नहीं कर पाता।

विशेष

(i) लेखक ने भारत की निर्धनता का वर्णन किया है।

(ii) उन्होंने दरिद्र भारत की तुलना लाजवंती कुलवधू से की है।

(iii) भाषा सहज व सरल है। तत्सम व हिंदीत्तर शब्दा वली का प्रयोग है।

(iv) बिंब विधान व दृष्टांत शैली है।

(ग) वास्तविक धर्म तो ----- शोधे और बदले जा सकते हैं।

उत्तरः- संदर्भ पूर्ववत

प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों पर कड़ी चोट करते हुए सच्चे धर्म के बारे में बताया है।

व्याख्या लेखक धर्म के वास्तविक स्वरूप की चर्चा करते हुए कहता है कि धर्म ईश्वर भक्ति है। ईश्वर के चरणों की भक्ति, उनका गुणगान, वंदन ही असली धर्म है। पूजा-पाठ, व्रत, उपवास, तीर्थ- त्योहार तो बाहरी कर्मकाण्ड है। इससे धर्म का असली स्वरूप ही नष्ट होता प्रतीत हो रहा है। सभी मनुष्य धर्म की व्याख्या अलग-अलग ढंग से करते हैं। समाज द्वारा बनाए गए नियमों में समय- समय पर आवश्यक सुधार, संशोधन एवं परिवर्तन ही धर्म के वास्तविक स्वरूप को बचा सकता है। लेखक आज के धार्मिक कर्मकांड और बाह्याडंबर का विरोध करते हैं।

विशेष

(i) लेखक ने धर्म के वास्तविक रूप को बलला कर बाहरी दिखावे, कर्मकाण्ड पर कटाक्ष किया है।

(ii) धर्म के संबंध में तार्किक एवं महत्त्व की बातें' बताई हैं।

(iii) तत्सम शब्दावली तथा व्यंग्यात्मक शैली है।

(iv) भाषा सरल सहज व सुबोध है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. 'अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम' किसकी कविता है?

(क) भारतेन्दु हरिश्चंद

(ख) कबीर

(ग) तुलसीदास

(घ) मलूकदास

2. भारतेन्दु किसके पक्ष में थे?

(क) बालविवाह के पक्ष में

(ख) बहुविवाह के पक्ष में

(ग) हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थन में

(घ) ये सभी

3. कौन शब्दभेदी बाण चलाता था ?

(क) लेखक

(ख) अकबर

(ग) पृथ्वीराज

(घ) ग्यासुद्दीन

4. भारतेन्दु सभी उत्पत्तियों का मूल किसे मानते है?

(क) पैसा को

(ख) धर्म को

(ग) व्यक्ति को

(घ) अंग्रेज़ों को

5. मनुष्य दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं तथा रुपया दिन- प्रतिदिन होते जा रहे हैं-

(क) अधिक

(ख) कम

(ग) समाप्त

(घ) अनंत

6. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण किस लिए जरूरी है?

(क) लड़ाई-झगड़े कम होंगे,

(ख) जमीन का बंटवारा नहीं होगा

(ग) भारतवर्ष की उन्नति होगी

(घ) ये सभी

7. भारतेन्दु ने भारत की उन्नति के लिए क्या आवश्यक बताया है?

(क) श्रम की महत्ता

(ख) त्याग की भावना

(ग) जनसंख्या नियंत्रण

(घ) उपर्युक्त सभी

8. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपने भाषण में हिन्दुस्तानियों को किस पर भरोसा न करने का सन्देश दिया ?

(क) विदेशी वस्तु

(ख) विदेशी भाषा

(ग) देशी भाषा

(घ) (क) व (ख) दोनों

9. 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' नाटक के रचयिता कौन हैं?

(क) मोहन राकेश

(ख) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

(ग) हरिशंकर परसाई

(घ) प्रेमचन्द

10. 'का चुप साधि रहा बलवाना' में किसके चुप रहने का उल्लेख है ?

(क) हनुमान

(ख) लक्ष्म

(ग) रावण

(घ) भरत

11. मर्दुमशुमारी का अर्थ है

(क) पशुपालन

(ख) जनगणना

(ग) पशुगणना

(घ) खेती

12. गियासुद्दीन पर बाण किसने चलाया ?

(क) लेखक ने

(ख) अंग्रेज़ों ने

(ग) पृथ्वीराज चौहान ने

(घ) शहाबुद्दीन ने

13. भारतेन्दु के अनुसार 'जितनी देर हमारे देश का कोचवान हक्का पियेगा या गप्प करेगा, उतनी देर में विलायती कोचवान क्या करेगा ?'

(क) अखबार पढ़ेगा

(ख) घूमने जायेगा

(ग) खाना खाएगा

(घ) गाड़ी की सफाई करेगा

14. भारतेंदु के अनुसार भारतीय राजा थे-

(क) विलासिता से परिपूर्ण

(ख) निरंकुश

(ग) (क) और (ख) दोनों

(घ) इनमें से कोई नहीं

15. "भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है" पाठ लेखक द्वारा रचित क्या है?

(क) भाषण

(ख) यात्रावृतांत

(ग) कहानी

(घ) उपन्यास

16. आधुनिक हिन्दी साहित्य का निर्माता किसे माना जाता है?

(क) भारतेन्दु हरिश्चंद्

(ख) प्रेमचंद

(ग) जयशंकर प्रसाद

(घ) महादेवी वर्मा

17. भारतेन्दु ने भारतीयों की तुलना की है-

(क) हवाई जहाज से

(ख) रेलगाड़ी से

(ग) मोटर से

(घ) बैलगाड़ी से

18. लेखक ने अपना ओजपूर्ण भाषण कहाँ दिया ?

(क) बलिया के ददरी मेले में

(ख) गंगा के तट पर

(ग) प्रयाग के कुंभ में

(घ) सोनपुर के मेले में

19. लेखक के अनुसार किसका पेट भी कभी खाली था ?

(क) भारत

(ख) इंग्लैण्ड

(ग) फ्रांस

(घ) जापान

20. बलिया के मेले में जुटी भीड़ का श्रेय लेखक किसे देता है?

(क) टोडरमल को

(ख) मुंशी बिहारीलाल को

(ग) बीरबल को

(घ) रॉबर्ट साहब बहादुर को

21. भारतीयों की उन्नति के बाधक तत्त्व हैं-

(क) हँसी दिल्लगी

(ख) पूजा-पाठ

(ग) आलस्य

(घ) इनमें से सभी

22. जंगल में बैठकर बॉस की नलियों से उन्नत दूरबीन बनाने का श्रेय किसे है

(क) जापानियों को

(ख) अमेरिकन को

(ग) चीनी वैज्ञानिकों को

(घ) भारतीयों को

23. लेखक ने म्युनिसिपालिटी कहा है -

(क) समाज सेवा को

(ख) पर्व-त्योहारों को

(ग) चिकित्सकों को

(घ) इनमें से सभी

24. बाल-विवाह का समर्थन करने वाले अपने बच्चों के लिए हैं-

(क) शुभचिंतक

(ख) मित्र

(ग) शत्रु

(घ) गुरु

25. लेखक के अनुसार भारतीय राजा-महाराजों को किससे फुर्सत नहीं है ?

(क) विलासिता

(ख) झूठी शानो शौकत

(ग) शराब

(घ) उपर्युक्त सभी

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का व्यक्तित्व कैसा था ?

उत्तरः- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का व्यक्तित्व ओजस्वी, तेजस्वी, प्रतापी और महान था। वे देशप्रेम, राष्ट्रभाषा प्रेम तथा क्रांति चेतना से समृद्ध थे।

2. भारतेन्दु जी ने स्त्रीशिक्षा के लिए क्या किया ?

उत्तरः- भारतेन्दु जी ने स्त्रीशिक्षा के लिए 'बालाबोधिनी' नामक पत्रिका का प्रकाशन किया।

3. भारतेन्दू जी ने उन्नति के लिए भारतीयों को क्या क्या करने की सलाह दी?

उत्तरः- भारतेन्दु जी भारतीयों को उन्नति के लिए आलस्य त्यागने, जनसंख्या नियंत्रण करने, श्रम, आत्मबल और त्याग भावना को अपनाने की सलाह दी।

4. भारतेन्दु जी का प्रस्तुत भाषण कहाँ दिया गया था

उत्तरः- बलिया जिले के ददरी मेले में यह भाषण दिया गया था।

5. अपने भाषण में लेखक ने हनुमान का नाम किस संदर्भ में लिया?

उत्तरः- लेखक ने भारतीयों की अपनी क्षमता और शक्ति के प्रति अनभिज्ञता की चर्चा की है। भारतीयों को अपनी शक्ति एवं आत्मबल की जानकारी नहीं है। जिस प्रकार हनुमान जी को उनके सामर्थ्य की याद दिलाने पर उन्होंनें बड़े बड़े कार्य संपन्न कर डाले, उसी प्रकार हिन्दुस्तानी भी ललकार सुनकर कुछ भी कर सकने में समर्थ हैं।

6. साहित्य की किस विधा की शुरुआत भारतेन्दु जी से मानी जाती है ?

उत्तरः- हिन्दी नाटक और निबंध की परम्परा की शुरुआत भारतेन्दु जी से मानी जाती है।

7. हनुमान जी को उनका बल किसने याद दिलवाया था?

उत्तरः- हनुमान जी को उनका बल 'का चुप साधे रहे बलवाना' कहकर जामवंत जी ने याद दिलाया था।

8. लेखक के अनुसार, हमारे देश से प्रगति की दौड़ में आगे देश कौन कौन से हैं?

उत्तरः- चीन, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका ये सभी देश हमारे देश से प्रगति की दौड़ में आगे हैं।

9. प्रस्तुत गद्यांश की शैली कौन-सी है ?

उत्तरः- प्रस्तुत गद्यांश की शैली व्यंग्यात्मक है।

10. हिन्दुस्तान में लोग कट्टरवादी क्यों हो गए हैं?

उत्तरः- धर्म की आड़ में विभिन्न रीति-रिवाजों के व वाह्याडंबरों के कारण लोग कट्टरवादी हो गए हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोतर

1. 'विलायत में गाड़ी के कोचवान भी अखबार पढ़ते हैं।" इस कथन के द्वारा लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तरः- अन्य देश के लोग अपने समय का पूरा सदुपयोग करते हैं। वे बहानेबाजी, गप्पबाजी, भाग्यवाद, ईश्वरवाद आदि पर समय बर्बाद नहीं करते, अपितु कर्म करते हैं। विलायत में यदि यात्री गाड़ी से उतरकर अपने किसी मित्र से मिलने जाता है तो तबतक गाड़ीवान अखबार निकालकर पढ़ने लगता है जबकि भारतीय कोचवान बीड़ी, हक्का पीएगा या गप्प मारेगा तथा देश दुनिया की बड़ी-बड़ी बातें करेगा।

2. भाषण के अंत में लेखक ने मुसलमानों को क्या राय दी?

उत्तरः- भाषण के क्रम में लेखक ने मुसलमानों को समझाने की कोशिश की हिन्दुस्तान में बसकर लोग हिन्दुओं को नीचा समझना छोड़ दें। किसी के घर में आग लग जाए तो आपसी दुश्मनी भूलकर एक साथ होकर आग बुझावें। आलस का त्याग करें। पुरानी बातें भूले। मीर हसन की 'मसनवी' और 'इंदरसभा पढ़कर छोटेपन से ही लड़कों का सत्यानाश मत करो। बच्चों को अच्छी शिक्षा दो। विलायत भेजो। बचपन से ही मेहनत की आदत डालो।

3. लेखक ने हिन्दुओं को क्या समझाया ?

उत्तरः- लेखक ने देश के कल्याणार्थ हिन्दुओं को भी संदेश दिया मत मतांतर का आग्रह छोड़ो। आपस में प्रेम बढ़ाओ और सभी जाति, धर्म वालों की खूब सहायता करो। स्वदेशी वस्तुओं पर भरोसा करो और उनका उपयोग करो। प्रेरक पुस्तकें पढ़ो और सीख लो। परदेशी वस्तु और भाषा पर भरोसा मत करो। अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो।

4. हिन्दुस्तानी लोगों की तुलना रेलगाड़ी से क्यों की गई है?

उत्तरः- रेलगाड़ी कितनी भी सुन्दर, स्वच्छ, सुविधा सम्पन्न क्यों न हो, वह तबतक अनुपयोगी है, जबतक उसमें इंजन न हो, ठीक उसी प्रकार भारतीय अत्यन्त शक्ति, सामर्थ्य, क्षमता एवं कुशलता रखते हैं परंतु मार्गदर्शक या निदेशक के अभाव में वे बिना इंजन के रेलगाड़ी की तरह ही हैं। लेखक का मानना है कि कोई इन्हें प्रोत्साहित करे तो ये बजरंगबली के समान बड़े-बड़े कार्य अत्यन्त आसानी से कर दें।

5. भारत में चारों ओर दरिद्रता की आग लगी हुई है, क्यों?

उत्तरः- भारत में निर्धनता के कारण लोगों का आलस्य और निकम्मापन है। लोग मेहनत से जी चुराते हैं, अंधविश्वास में फंसे हैं, इन्हें लगता है कि कोई जादू-टोना के बल पर ये मालामाल हो जाएँगे। इधर-उधर की गप्पवाजी, झूठ-मूठ की पाँगा पंथी, गंदी राजनीति में पड़कर अपना अमूल्य समय ही नहीं, जीवन भी चौपट करने पर तुले हैं। बेईमानी, घूसखोरी, मार-पीट, चोरी इत्यादि करने वाले स्वयं को बड़ा मान बैठे हैं। इन सब कारणों से घोर दरिद्रता भारतवर्ष में फैल गई है।

6. अपनी खराबियों के मूल कारणों के प्रति कैसा व्यवहार करने की राय लेखक ने लोगों को बताया ?

उत्तरः- लेखक ने जोर देकर भारतवासियों का आवाहन किया- "जो जो बातें तुम्हारे उन्नतिपथ में काँटा हो, उनकी जड़ खोदकर फेंक दो। कुछ मत करो। जबतक सौ दो सौ मनुष्य बदनाम न होंगे, जात से बाहर न निकाले जाएँगे, दरिद्र न हो जाएँगे, कैद न होंगे, वरंच जान से न मारे जाएँगे, तब तक कोई देश भी न सुधरेग सुधरेगा।" किसी भी क्षेत्र में सुधार या बदलाव के लिए बड़ी क्रांति की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए दृढसंकल्प होकर हमें उसमें जुट जाना चाहिए।

7. लेखक के अनुसार भारतवर्ष की उन्नति के क्या उपाय है?

उत्तरः- देश की सब प्रकार से उन्नति हो, इसके लिए लेखक ने निम्नलिखित उपाय बताए हैं:-

(i) हमें विदेशी भाषा का मोह छोड़ देना चाहिए।

(ii) समय का सदुपयोग करना चाहिए।

(iii) धार्मिक, सामाजिक कुरीतियों का त्याग करना चाहिए।

(iv) जनसंख्या नियंत्रित करना चाहिए।

(v) आपसी भाईचारे के साथ धार्मिक एकता निभाना चाहिए।

(vi) परिश्रम और ईमानदारी से देश का विकास करना चाहिए।

(vii) सबों के साथ समानता एवं आत्मीयता का भाव रखना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 'पेट के धंधे के मारे छुट्टी ही नहीं रहती।' जैसे बहाने सुनकर लेखक ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की थी?

उत्तरः- बहानेबाज भारतीयों की ऐसी बातें सुनकर लेखक कहते हैं-

इंग्लैण्ड का पेट भी कभी यों ही खाली था। उसने एक हाथ से अपना पेट भरा, दूसरे हाथ से उन्नति की राह के कॉटों को साफ किया। क्या इंग्लैंड में किसान, खेतवाले, गाड़ीवाले, मजदूर, कोचवान नहीं है। किसी देश में भी सबके पेट भरे नहीं होते हैं। किंतु वे लोग अपने-अपने कार्य पूरी ईमानदारी से करते हुए देश की तरक्की के विषय में भी सोचते हैं। वे अपना समय व्यर्थ नहीं गँवाते। वे सदा नई तकनीक, नई पुर्जे, नए मसाले बनाने का यत्न करते हैं। विलायत में गाँड़ी के कोचवान को तनिक भी समय मिलता है तो वे अखबार पढ़ते हैं। हमारे यहाँ का कोचवान खाली समय में हक्का पीने, बीड़ी पीने तथा व्यर्थ की गप्पबाजी में बिता देता है। वहाँ के लोगों का मानना है कि एक क्षण भी व्यर्थ न जाय। हमारे यहाँ जो जितना बड़ा निकम्मा है, वह उतना बड़ा अमीर समझा जाता है। आलसी लोगों को दासमलूका की यह पंक्ति बहुत सहारा देती है-

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम ।

दास मलूका कह गए, सबके दाता राम ॥

फलतः हमारे देश में निकम्मों की भीड़ बढ़ती जा रही है। चोरी, घुसखोरी, बेईमानी का चहुँ ओर बोलवाला है। बड़ी दयनीय दशा हिन्दुस्तान की है।

2. किसी देश की उन्नति में अवसर का क्या महत्त्व है?

उत्तरः- अवसर को पहचान कर पकड़ लेना और उससे लाभ उठा लेना ही सफल लोगों का कार्य है। जीवन में वे ही लोग सफलता के सोपान पर चढ़ते हैं, जिन्होंने अवसर को पहचान लिया तथा प्राण पण से अपने ध्येय को पाने के लिए जुट गये। किसी के भरोसे बैठे रहने से हमें निराशा ही हाथ लगती है। कहते हैं जब दाँत है तो, चना नहीं और चना है तो दाँत नहीं। अर्थात् युवावस्था में चने खाने योग्य दाँत तो थे परन्तु निर्धनता के कारण चने नहीं थे, बाद में चने खरीदने का सामर्थ्य आ गया तो दाँत कमजोर होकर गिर गये। अवसर वह है जो हमें एक साथ दोनों चीजें उपलब्ध करा दे। साधन और ज्ञान का एक साथ मिलना संयोग माना जा सकता है। खेती के लिए जमीन भी हो, बीज भी हो, सिंचाई के साधन भी हो, और किसान भी हो, लेकिन किसान आलस्य के कारण खेती न करे तो यह उसका दुर्भाग्य ही समझा जायगा। इसी आधार पर लेखक ने समझाया है। राजा- महाराजाओं का मुँह नहीं देखो। मत यह आशा रखो कि पंडितजी कथा में ऐसा कोई उपाय भी बता देंगे कि देश का रुपया और बुद्धि बढ़े। तुम आज ही कमर कसो, आलस्य छोड़ो, दौड़ो, इस दौड़ में जो पीछे पड़े तो फिर कहीं ठिकाना नहीं है। अवसर पाकर उससे लाभ उठाओ। अभी देश की उन्नति के लिए सरकार, साधन, ज्ञान सब उपलब्ध है। प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की हवा बहा दो। सुअवसर का लाभ उठाने में आने वाले संकट को बेरहमी से कुचल डालो। इस प्रकार लेखक ने भारतवासियों एवं देश की उन्नति के लिए अवसर की महत्ता प्रतिपादित की है।

3. लेखक ने अपनी कमियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है?

उत्तरः- हमारी कमियों का मूल कारण भाग्यवाद, आलस्य एवं थोथी विचार धारा है। समाज के लोगों की स्वस्थ मानसिकता एवं स्वच्छ दृष्टिकोण किसी भी देश की प्रगति के लिए अत्यन्त आवश्यक है। हमें स्वयं के भीतर झाँकना होगा और अपनी कमियों को निकाल बाहर करना होगा। आखिर क्यों भारतवासी दुनिया के शेष देशों से कमतर हैं? हम धार्मिक बाह्याडंबर, रूढ़ियों, पुरानी मान्यताओं, सुरक्षा का भय इत्यादि से घिरे हुए हैं। इनमें बदलाव लाकर अपनी कमियों से ऊपर उठना होगा। राष्ट्रहित की व्यापक सोच को अपनाकर क्षणिक सुख-भोग की लालसा का त्याग करें। समय के एक-एक क्षण का स‌पयोग करें तो अवश्य ही प्रगति के पथ पर अग्रसर होंगे। लेखक ने भारतीयों को कँए के मेंढक, काठ के उल्लू, पिंजड़े के गंगाराम कहकर उनके भीतर छुपी हुई शक्ति को जगाने का नेक कार्य किया और अवसर का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया है।

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

पाठ सं.

पाठ का नाम

अंतरा भाग -1

गद्य-खंड

1.

ईदगाह

2.

दोपहर का भोजन

3.

टार्च बेचने वाले

4.

गूँगे

5.

ज्योतिबा फुले

6.

खानाबदोश

7.

उसकी माँ

8.

भारतवर्ष की उन्नत कैसे हो सकती है

काव्य-खंड

9.

अरे इन दोहुन राह न पाई, बालम, आवो हमारे गेह रे

10.

खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

11.

हँसी की चोट, सपना, दरबार

12.

संध्या के बाद

13.

जाग तुझको दूर जाना

14.

बादल को घिरते देखा है

15.

हस्तक्षेप

16.

घर में वापसी

अंतराल भाग 1

1.

हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

2.

आवारा मसीहा

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

जनसंचार माध्यम

2.

पत्रकारिता के विविध आयाम

3.

डायरी लिखने की कला

4.

पटकथा लेखन

5.

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

6.

स्ववृत्त (बायोडेटा) लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन पत्र

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 - प्रश्नोत्तर

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