Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 गद्य-खण्ड पाठ - 5. गलता लोहा

Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 गद्य-खण्ड पाठ - 5. गलता लोहा

Class 11 Hindi Core आरोह भाग-1 गद्य-खण्ड पाठ - 5. गलता लोहा

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11 Hindi Core

आरोह भाग -1 गद्य-खण्ड 

पाठ - 5. गलता लोहा - शेखर जोशी

जीवन-सह-साहित्यिक परिचय

लेखक- शेखर जोशी

जन्म- 10 सितम्बर, 1932 अल्मोड़ा (उत्तरांचल)

निधन- 4 अक्टूबर, 2022

रचनाएँ-कहानी-संग्रह- कोसी का घटवार, साथ के लोग, दाज्यू, हलवाहा, नौरंगी बीमार है।

शब्दचित्र-संग्रह- एक पेड़ की याद।

सम्मान- महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार 1987, साहित्य भूषण- 1995, पहल सम्मान 1997

साहित्यिक विशेषताएँ- इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। बीसवीं सदी के छठे दशक में हिंदी कहानी में कई परिवर्तन हुए। इस समय एक साथ कई युवा कहानीकारों ने परंपरागत तरीके से हटकर नई तरह की कहानियाँ लिखनी शुरू की और साहित्य- जगत में कहानी की नई विधा सामने आयी। इस नए उठान को 'नई कहानी आंदोलन' नाम दिया। इस आंदोलन में शेखर जोशी का स्थान अन्यतम है। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों को देखते हुए इन्हें 'पहल सम्मान' से सम्मानित किया गया।

उनकी कहानियाँ नई कहानी आंदोलन के प्रगतिशील पक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में समाज के मेहनतकश और सुविधाहीन तबका के लोगों का जीवन- चित्रण किया है। इनकी रचना-संसार से गुजरते हुए समकालीन जनजीवन की अनेकों विडंबनाओं को महसूस किया जा सकता है। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक यथार्थ को बहुत ही सहज, सरल एवं आडंबरहीन भाषा शैली में प्रस्तुत किया है।

इनकी कहानियाँ कई भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, पोलिश और रूसी में भी अनूदित हो चुकी है। इनकी प्रसिद्ध कहानी 'दाज्यू' पर चिल्ड्रंस फिल्म सोसाइटी द्वारा फिल्म का निर्माण भी हुआ है।

पाठ-परिचय

'गलता लोहा' शेखर जोशी की कहानी-कला का एक प्रतिनिधि नमूना है। समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोर्णो से टिप्पणी करने वाली यह कहानी, इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना ही कम है; वास्तविक अर्थ-गांभीर्य उतना ही अधिक। यहां जातिगत विभाजन पर अनेक कोणों से टिप्पणी की गई है। इसमें बताया गया है कि किन परिस्थितियों में एक प्रतिभाशाली निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन अपनी जातिगत परंपरा को छोड़कर लोहार का काम करता है। वह न केवल हथौड़े की चोट मारता है, बल्कि अपनी कुशलता भी दिखाता है। यहां मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है। मानो लोहा गल कर एक नया आकार ले रहा हो।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

पाठ के साथ

1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।

उत्तरः- धनराम बार बार याद करने पर भी तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका। शायद उसकी मंदबुद्धि या मन मे मास्टर के प्रति डर था। तब मास्टर त्रिलोक सिंह ने जबान के चाबुक लगाते हुए कहा- 'तेरे 'तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?' यह सच है कि किताबों की विदया का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की नहीं थी। उन्होंने बचपन में ही अपने पुत्र को धौंकनी फूंकने और सान लगाने के कामों में लगा दिया था। वे उसे धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगे। उपर्युक्त प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।

2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंदी क्यों नहीं समझता था?

उत्तरः- मोहन पढ़ने में होशियार था। कक्षा का मॉनिटर था। प्रायः वह कक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर देकर अध्यापक को संतुष्ट कर देता था। धनराम मोहन के प्रति मन में आदर भाव रखता था। अध्यापक के कहने पर मोहन द्वारा बेंत मारे जाने को वह उसका अधिकार समझता था। बचपन से ही मन में बैठाई गई जातिगत हीनता की भावना के कारण भी धनराम मोहन को अपना (प्रतिद्वंदी) नहीं समझता था। मास्टर जी को लगता था कि एक दिन मोहन बड़ा आदमी बनकर स्कूल तथा उनका नाम रोशन करेगा।

3. धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?

उत्तरः- मोहन ब्राह्मण जाति का लड़का था और उस गाँव में ब्राह्मण शिल्पकारों के यहाँ उठते-बैठते नहीं थे। यहाँ तक कि उन्हें बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन धनराम की दुकान पर काम खत्म होने के बाद भी काफी देर तक बैठा रहा। इस बात पर धनराम को आश्चर्य होता है। उसे और अधिक आश्चर्य तब होता जब मोहन ने उसके हाथ से हथौड़ा लेकर लोहे पर नपी-तुली चोटें मारी और धौंकनी फूंकते हुए भट्ठी में लोहे को गरम किया और ठोक- पौटकर उसे गोल रूप दे दिया। मोहन पुरोहित खानदान का पुत्र होने के बाद भी निम्न जाति के काम कर रहा था। यह देखकर धनराम घोर आश्चर्य में पड़ गया था।

4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?

उत्तरः- मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय इसलिए कहा है क्योंकि मोहन अपने गाँव का एक होनहार विद्यार्थी था। पाँचवीं कक्षा तक आते-आते मास्टर जी सदा उसे यही कहते कि एक दिन वह अपने गाँव का नाम रोशन करेगा। यही मोहन जब पढ़ने के लिए अपने रिश्तेदार रमेश के साथ लखनऊ पहुँचा तो उसने इस होनहार विद्यार्थी को घर का नौकर बना दिया। बाजार का काम करना, घरेलु काम-काज में हाथ बंटाना, इस काम के बोझ ने गाँव के मेधावी छात्र को शहर के स्कूल में अपनी जगह नहीं बनाने दिया। वातावरण व काम के बोझ के कारण मेधावी छात्र की प्रतिभा कुंठित हो गई। उसके उज्ज्वल भविष्य की कल्पनाएँ नष्ट हो गई। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उसे कारखानों और फैक्ट्रियों के चक्कर लगाने पड़े। उसे कोई काम नहीं मिल सका।

5. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों ?

उत्तरः- जब धनराम पूरा दिन रटा लगाने के बाद भी तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने व्यंग्य वचन कहे- 'तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?' लेखक ने इन व्यंग्य वचनों को ज़बान के 'चाबुक' कहा है। क्योंकि चाबुक की मार शरीर पर चोट करती है, परंतु जुबान की मार मन पर चोट करती है। यह चोट चाबुक की मार से कहीं अधिक चोट पहुंचाती है। इसी चोट के कारण धनराम आगे नहीं पढ़ें पाया और वह पढ़ाई छोड़कर पुश्तैनी काम में लग गया।

6. (1) बिरादरी का यही सहारा होता है।

क. किसने किससे कहा?

ख. किस प्रसंग में कहा?

ग. किस आशय से कहा?

घ. क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?

उत्तरः- (1) क. यह कथन पंडित वंशीधर ने गाँव के युवक रमेश से कहा।

ख. जब रमेश ने वंशीधर को लखनऊ ले जाकर अच्छे विद्यालय में पढ़ाने की बात कही, तब वंशीधर ने उससे यह बात कही। उसकी बात सुनकर वे प्रसन्न हो गए। उन्हें मोहन का सुनहरा भविष्य शहर में दिखाई देने लगा।

ग. बिरादरी की आपसी सहयोग की भावना को प्रदर्शित करने के लिए तथा रमेश के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने हेतु कहा गया।

घ. कहानी में इसका आशय स्पष्ट नहीं हुआ बल्कि इसके विपरीत ही दिखाई दिया। रमेश तथा उसके परिवार ने होनहार मोहन का भविष्य नष्ट कर दिया और उन्होंने मोहन को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया।

(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी- कहानी का यह वाक्य-

क. किसके लिए कहा गया है?

ख. किस प्रसंग में कहा गया है?

ग. यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?

उत्तर:- (2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी- कहानी का यह वाक्य-

क. मोहन के लिए कहा गया है।

ख. जब मोहन ने धनराम के लोहे को अपनी चोटों से इच्छित आकार दे दिया, तब उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक दिखाई दी।

ग. यह पात्र-विशेष के उस चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है, जहाँ उसके परिश्रम का पता चलता है और जाति के स्थान पर कार्य के प्रति प्रेम को दर्शाता है।

पाठ के आसपास

1. गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है? चर्चा करें लिखें।

उत्तरः- गाँव और शहर दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में बहुत फर्क है। गाँव के खुले वातावरण में मोहन कुशाग्र बुद्धि का होनहार वि‌द्यार्थी था। वह विद्या प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा था। गाँव में उसने अपनी एक पहचान बनाई थी। मास्टर, पिताजी तथा स्वयं उसको अपने से उम्मीदें थीं। उसे बस अपने सपनों को पाने के लिए प्रयास करना था। वह प्रयास कर भी रहा था। वह गाँव के दूसरे विद्यालय में जाकर अपनी शिक्षा प्राप्त कर सकता था, मगर एक घटना ने उसके जीवन की दिशा बदलकर रख दी। रमेश उसे शहर में पढ़ाने की बात कह कर अपने साथ लखनऊ ले गया, किंतु ऐसा नहीं हुआ। उसके विद्यार्थी संघर्ष को विराम लग गया। शहर में जो संघर्ष था, वह चारों ओर से था। अपनी पढ़ाई के अलावे कई तरह के संघर्ष होनहार बालक मोहन के लिए अप्रत्याशित था जिसने उसकी प्रतिभा का अंत कर दिया। इस तरह गाँव का होनहार बालक शहर में घरेलू नौकर बनकर रह गया था।

2. एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।

उत्तरः- एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह के व्यक्तित्व में कुछ अच्छाइयों के साथ-साथ कुछ खामियां भी मौजूद थी। वे अनुशासन प्रिय थे और बच्चों को काफी लगन और दंड के डर से पढ़ाया करते थे। विद्यालय को बिना किसी के सहयोग के खुद चलाया करते थे। होशियार बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए सदैव प्रेरित करते रहते थे। किंतु इन सब विशेषताओं के बावजूद उनमें कुछ कमियां भी मौजूद थी। वे जातिगत भेदभाव को मानते थे और विद्यार्थियों को सख्त दंड देते थे। वे मोहन से भी बच्चों की पिटाई करवाते थे। वे कमजोर बच्चों को कटू बातें बोलकर उनमें हीन भावना भरते थे। छात्रों में होनभावना तथा भेदभाव करने का उनका तरीका अशोभनीय था।

3. गलता लोहा कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है? चचा करें?

उत्तरः- इस कहानी का अंत और कई तरीकों से हो सकता है। जैसे कि-

1. मोहन द्वारा गाँव लौटकर झूठे मान की रक्षा के लिए कोई काम न करना और खाली बैठे रहना।

2. मोहन के माता-पिता का विद्रोह कर उठना और रमेश से झगड़ा करना, दोषारोपण करना।

3. धनराम को देखकर मोहन का मुँह फेर लेना और बात न करना।

4. मोहन दद्वारा एक छोटा कारखाना खोलकर ग्रामीण लड़कों को हाथ का हुनर सिखाना।

इसके अतिरिक्त भी कहानी के अनेक अंत और तरीके हो सकते हैं।

भाषा की बात

1. पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से सबंधित हैं। किसका क्या प्रयोजन हैं? शब्द के सामने लिखिए

(क) धौकनी.......

(ख) दराँती......

(ग) सॅड़सी…….

(घ) आफर……

(ङ) हथौड़ा ….

उत्तर-

क. धौंकनी आग दहकाने के लिए।

ख. दराँती घास, अनाज आदि को काटने का औजार।

ग. सॅइसी गर्म लोहे को पकड़ने का औज़ार।

घ. आफर लोहे का काम करने की जगह।

ङ. हथौड़ा ठोकने-पीटने के लिए प्रयुक्त लकड़ी की मूठ वाला यंत्र।

2. पाठ में 'काट-छाँटकर' जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

उत्तरः- (क) घूम-फिरकर- हमने सुबह से शाम तक ताजमहल को घूम फिरकर अच्छी तरह से देखा।

(ख) उलट-पलट- दंगाइयों ने दुकान का सारा सामान उलट-पलट दिया।

(ग) पढ़-लिखकर- हर युवा पढ़-लिखकर अफसर और डॉक्टर इंजीनियर बनना चाहता है।

(घ) सहमते-सहमते- अच्छे नंबर नहीं आने के कारण रोहित सहमते-सहमते घर में प्रवेश किया।

(ङ) खा-पीकर- दो सप्ताह में ही वह खा-पीकर स्वस्थ हो गया।

3. 'बूते का' प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन संदर्भों में उनका प्रयोग है, उन संदर्भों में उन्हें स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः- (क) दान-दक्षिणा के बूते पर वे घर चलाते।

- यहाँ 'बूते' शब्द का अर्थ है- बल पर या भरोसे पर।

(ख) सीधी चढ़ाई अब अपने बूते की बात नहीं।

- यहाँ 'बूते' शब्द का अर्थ है- बस की नहीं है।

(ग) जिस पुरोहिताई के बूते पर घर चलाते थे वह भी अब कैसे चलती है।

- यहाँ 'बूते' शब्द का अर्थ है- के सहारे।

4. मोहन थोड़ा दही तो ला दे बाज़ार से।

मोहना ये कपड़े धोबी को दे तो आ।

मोहन एक किलो आलू तो ला दे।

ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए।

उत्तरः-

(क) आप बाज़ार से थोड़ा दही तो ला दीजिए।

(ख) आप ये कपड़े धोबी को दे तो आइए।

(ग) आप एक किलो आलू तो ला दीजिए।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोतर (बहुविकल्पीय प्रश्न)

1. गलता लोहा' शीर्षक कहानी के लेखक हैं-

क. प्रेमचंद

ख. शेखर जोशी

ग. यशपाल

घ. मन्नू भंडारी

2. शेखर जोशी का जन्म कब हुआ था ?

क. सन् 1930 भोपाल

ख. सन् 1932 अल्मोड़ा

ग. सन् 1934 भोपाल

घ. सन् 1935 मसूरी

3. शेखर जोशी को कौन सा प्रमुख सम्मान मिल चुका है?

क. पहल सम्मान

ख. ज्ञानपीठ सम्मान

ग. बुकर सम्मान

घ. साहित्य अकादमी सम्मान।

4. 'कोसी का घटवार' किसकी रचना है?

क. निर्मल वर्मा

ख. शेखर जोशी

ग. मन्नू भंडारी

घ. इनमें से कोई नहीं।

5. शेखर जोशी किस कहानी आंदोलन से जुड़े रहे?

क. प्रतिवादी कहानी आंदोलन

ख. नई कहानी आंदोलन

ग. प्रयोगवादी कहानी आंदोलन

घ . इनमें से कोई नहीं।

6. 'गलता लोहा' शीर्षक कहानी में किस प्रमुख समस्या को उजागर किया गया है?

क. शोषण की समस्या

ख. भ्रष्टाचार की समस्या

ग. जातिगत भेदभाव की समस्या

घ. महँगाई की समस्या

7. खेत में जाते समय मोहन के हाथ में क्या था?

क. तलवार

ख. हँसुवा

ग. गंडासी

घ. लाठी

8. मोहन हँसुवा लेकर किस उद्देश्य से निकला था?

क. लड़ाई करने

ख. खेत में उगी झाड़ियों काटने

ग. हँसुवे की धार लगवाने

. धनराम से मिलने

9. वंशीधर का मुख्य व्यवसाय क्या था?

क. खेतीबाड़ी

ख. अध्यापन

ग. शिल्पकारी

घ. पुरोहिताई

10. वंशीधर ने चंद्रदत्त के घर जाकर किस पाठ के करने के लिए मोहन से कहा था?

क. माँ काली का पाठ

ख. रामचरितमानस पाठ

ग. रुद्रीपा

घ. गरुढ़पुराण पाठ

11. मोहन के अध्यापक का नाम था-

क. सोहन सिंह

ख. वंशीधर

ग. गोपाल दास

घ. त्रिलोक सिंह

12. शेखर जोशी की किस रचना पर चिल्ड्रेस फिल्म सोसाइटी द्वारा फिल्म का निर्माण हुआ है?

क. दाज्यू

ख. कोसौ का घटवार

ग. साथ के लोग

घ. हलवाहा

13. 'साँप सूंघ जाना' का अर्थ है

क. साँप का काटना

ख. साँप का चाटना

ग. चुप हो जाना

घ. खो जाना

14. धनराम का संबंध किस जाति से है?

क. पुरोहित

ख. ब्राह्मण

ग. लोहार

घ. हरिजन

15. धनराम किस कक्षा तक पढ़ पाया था?

क. दूसरे दर्जे तक

ख. तीसरे दर्जे तक

ग. चौथे दर्जे तक

घ. पाँचवें दर्जे तक

16. मास्टर जी की आवाज़ कैसी थी?

क. मधुर

ख. सुरीली

ग. कड़क

घ. धीमी

17. धनराम के पिता का नाम था?

क. गोपाल सिंह

ख. वंशीधर

ग. त्रिलोक सिंह

घ. गंगाराम

18. मोहन ने मास्टर त्रिलोक सिंह की कौन-सी भविष्यवाणी को सिद्ध कर दिखाया था?

क. बड़ा आदमी बनने की

ख. बड़ा अफसर बनने की

ग. छात्रवृत्ति प्राप्त करने की

घ. उत्तीर्ण होने की

19. रमेश किस नगर में नौकरी करता था?

क. बनारस

ख. झाँसी

ग. कानपुर

घ. लखनऊ

20. ब्राह्मण टोले के लोग शिल्पकार टोले में बैठना नहीं चाहते क्योंकि?

क. वे उन्हें श्रेष्ठ समझते हैं

ख. वे शिल्पकारों को नीच समझते हैं

ग. वे उन्हें गरीब समझते हैं

घ. वे उन्हें मूर्ख समझते हैं

21. शेखर जोशी की किस कहानी पर फिल्म का निर्माण हो चुका है?

क. साथ के लोग

ख. कोसी का घटवार

ग. नौरंगी बीमार

घ. दाज्यू

22. गणनाथ की कितने मील की सीधी चढ़ाई अब बंशीधर के बूते की बात नहीं थी-

(क) तीन मील

(ख) दो मील

(ग) एक मील

(घ) पाँच मील

23. शेखर जोशी का निधन कब हुआ?

क. सन् 2020

ख. सन् 2018

ग. सन् 2022

घ. सन् 2021

24. 'नौरंगी बीमार है' किसकी रचना है?

क. निर्मल वर्मा

ख. शेखर जोशी

ग. मन्नू भंडारी

घ. इनमें से कोई नहीं

25. शहर जाकर घरेलू नौकर कौन बन गया था ?

क. रमेश

ख. मोहन

ग. धनराम

घ. इनमें से कोई नहीं

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 'गलता लोहा' किसके नष्ट होने का प्रतीक है?

उत्तरः 'गलता लोहा' कहानी में समाज के जातिगत विभाजन के नष्ट होने का प्रतीक है।

2. मोहन शहर के स्कूल में अपनी पहचान क्यों नहीं बना पाया?

उत्तरः- मोहन मेधावी था, परंतु घर के अत्यधिक काम और नए वातावरण के कारण वह अपनी प्रतिभा शहर के स्कूल में नहीं दिखा पाया।

3. मास्टर त्रिलोक सिंह का अपने विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार कैसा था?

उत्तरः- मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन को छोड़कर अन्य सभी के साथ बड़े कठोर थे। किसी भी गलती पर छड़ी से पीटना उनके लिए आम बात थी।

4. धनराम तेरह का पहाड़ा क्यों नहीं याद कर पाया?

उत्तरः- इसके दो कारण हो सकते हैं-पहला वह मंदबुद्धि था। दूसरा, मास्टर के पिटाई के डर से याद नहीं कर पा रहा था।

5. जुबान की चाबुक का क्या अर्थ है?

उत्तरः- हृदय को भेदने वाली कड़वे वचन बोलना।

6. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस बात से सभी बच्चे डरते थे?

उत्तरः- मास्टर त्रिलोक सिंह की छड़ी की मार से सभी बच्चे डरते थे।

7. "तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है।" यह किसने और किससे कहा था?

उत्तरः- यह कथन मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम से कहा था।

8. वंशीधर ने मोहन के विषय में धनराम को क्या बताया?

उत्तरः- वंशीधर ने अपने पुत्र मोहन के विषय में धनराम को बताया कि उसकी नियुक्ति सेक्रेटेरिएट (सचिवालय) में हो गई है और शीघ्र ही विभागीय परीक्षाएँ देकर वह बड़े पद पर पहुँच जाएगा।

9. वंशीधर ने दाँत में तिनका दबाकर धनराम को मोहन के बारे में क्यों बताया ?

उत्तरः- वंशीधर ने दाँत में तिनका दबाकर धनराम को मोहन के बारे में इसलिए बताया क्योंकि वे असत्य भाषण कर रहे थे और चाहते थे कि असत्य भाषण का दोष उन्हें न लगे।

10. मोहन और धनराम कौन थे ?

उत्तरः- मोहन और धनराम एक ही गाँव के रहने वाले तथा एक ही स्कूल में पढ़े सहपाठी थे। मोहन पुरोहित वंशीधर का बेटा था, जबकि धनराम गंगाराम लोहार का पुत्र था।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. अध्यापक और लोहार के दंड में क्या अंतर था?

उत्तरः- याद न करने पर मास्टर त्रिलोकी बच्चे को अपनी पसंद का बैत चुनने की छूट देते थे, जबकि लोहार गंगाराम सज़ा देने का हथियार स्वयं ही चुनते थे। गलती होने पर वे छड़, बेत, हत्था जो भी हाथ लगे, धुन देते थे।

2. लखनऊ में मोहन का समय कैसे बीता ?

उत्तरः- लखनऊ जाते ही मोहन के साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया गया। कहने भर को वह घर का बालक था। वह घर की महिलाओं को भाभी और चाची कहता था। परन्तु वे सब उससे अपना हर काम करवाते थे मानो उसे इसीलिए लाया गया हो। यहाँ तक कि मुहल्ले की अन्य महिलाएँ भी उससे अपना छोटा-मोटा काम करवाने लगीं। इस प्रकार वह सबका साझा नौकर बन गया।

3. मोहन ने अपनी परिस्थितियों से समझौता क्यों कर लिया था ?

उत्तरः- मोहन जानता था कि उसके पिता साधन हीन हैं। उनके पास उसे पढ़ाने का अन्य कोई उपाय नहीं है। वह यह भी जानता था कि रमेश बाबू उसके कोई सगे- सम्बन्धी नहीं हैं। वे उसे पढ़ाने के बदले पूरी सेवा लेंगे।

रमेश बाबू की भावना समझते ही स्वयं को उपायहीन पाकर उसने अपनी परिस्थितियों के साथ समझौता कर लिया।

4. 'मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धिमान थे' ये शब्द वंशीधर को बड़ी देर तक कचोटते रहे-क्यों ?

उत्तरः- मोहन के बारे में उसके पिता से यह जानकर कि वह सेक्रेटेरिएट में लग गया है, धनराम ने टिप्पणी की कि 'मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धिमान् थे' किन्तु ये शब्द वंशीधर को बड़ी देर तक कॅचोटते रहे क्योंकि उन्होंने मोहन की वास्तविकता के बारे में धनराम को नहीं बताया था। वास्तव में मोहन बेरोजगार था और वंशीधर के सारे सपने टूट चुके थे।

5. मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन की प्रशंसा और धनराम का तिरस्कार क्यों करते थे?

उत्तरः- मोहन उच्चकुलीन ब्राह्मण जाति का कुशाग्र बुद्धि बालक था, जबकि धनराम लोहार जाति का मंदबुद्धि बालक था। इसलिए मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन की प्रशंसा और धनराम का तिरस्कार करते थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 'गलता लोहा' कहानी के मुख्य पात्र मोहन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- 'मोहन' शेखर जोशी की प्रतिनिधी कहानी 'गलता लोहा' का प्रमुख पात्र है। वह गाँव का मेधावी बालक है। उसके अध्यापक त्रिलोक सिंह और उसके पिता पण्डित वंशीधर तिवारी ने उससे बड़ी आशाएँ लगा रखी थीं, पर वे सफल न हो सकी। उच्च जाति में उत्पन्न साधनहीन मोहन प्रतिभाशाली एवं प्रखर बुद्धि का छात्र है, परन्तु उसकी परिस्थितियाँ अत्यन्त कठिन हैं। नया स्कूल घर से चार मील की दूरी पर था। दो मील की सीधी चढ़ाई और एक नदी पार कर मोहन को स्कूल पहुँचना होता था। बरसात के दिनों में नदी का पानी अपने उफान पर होता था जिससे मोहन को स्कूल पहुँचने में काफी परेशानी होती थी। एक दिन मोहन बहते बहते बाल बाल बचा। इसी बीच लखनऊ से आए रमेश की सहानुभूति पूर्ण बातों में आकर उसके पिता ने पढ़ने के लिए लखनऊ भेज दिया। किंतु लखनऊ आकर मोहन घरेलू नौकर बनकर रह जाता है। चूंकि वह अपने घर की दयनीय स्थिति से परिचित है। अतः रमेश बाबू के दुर्व्यवहार के बारे में अपने पिता को नहीं बताता।

जैसे-तैसे आठवीं की पढ़ाई के बाद उसका एडमिशन एक तकनीकी स्कूल में करा दिया जाता है। वहाँ डेढ़ वर्ष की पढ़ाई के बाद फैक्ट्री और कारखाने में काम के लिए चक्कर लगाते रहा। परन्तु बेरोजगारी का दंश अन्ततः उसे लोहारगीरी करने पर विवश कर देता है। यह करते हुए उसमें जातीय अभिमान लेशमात्र भी नहीं है, जो प्रायः उसके गाँव के कुलीन लोगों में दिखाई देता है। इस तरह मोहन स्वभाव से धीर, गम्भीर, शान्त, समझदार और सहनशील है। वह परिस्थितियों से समझौता अवश्य कर लेता है. कित् समय आने पर रुढ़िवादी सोच से ऊपर उठकर लोहार के काम को अपनाना उसकी प्रगतिवादी सोच को दर्शाता है।

2. 'गलता लोहा' कहानी का उद्देश्य बताइए।

उत्तरः- गलता लोहा शेखर जोशी की कहानी-कला का एक प्रतिनिधि नमूना है। समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी करने वाली यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना ही कम है, वास्तविक अर्थ-गांभीर्य उतना ही अधिक। लेखक की किसी मुखर टिप्पणी के बगैर ही पूरे पाठ से गुजरते हुए हम यह देख पाते हैं कि एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हाँ जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है, मानो लोहा गलकर एक नया आकार ले रहा हो। अर्थात समाज में रूढ़िवादी सोच की जगह प्रगतिवादी सोच स्थान ग्रहण करने लगी है।

3. मोहन को अपनी भट्टी पर काम करता देख धनराम को आश्चर्य क्यों हुआ? इस घटना का पूर्ण वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तरः- जब मोहन धनराम के साथ बैठकर भट्टी में काम करने लगा तो यह देखकर धनराम को बहत आश्चर्य होता है। उसे यह आश्चर्य उसकी कारीगिरी देख कर नही बल्कि मोहन को यह काम करते देख कर होता है। क्योंकि मोहन उच्च जाति का है। वह जाति का ब्राह्मण है और उसकी जाति के लोग उसके यहाँ उठना-बैठना नहीं करते। खड़े-खड़े ही वे अपना काम कराकर ले जाते थे। यही नहीं उनसे बैठने के लिए कहना भी उनका अपमान समझा जाता था। बचपन से ही उसे जाति भेद के बारे में पता है। उच्च और निम्न का फर्क, जाति के आधार पर बांटे गए काम और व्यवसाय को बचपन में ही उसके पिता ने समझा दिया है। धनराम एक निम्न जाति से था किन्तु आज ब्राह्मण कुल का मोहन उसके यहाँ सिर्फ बैठा ही नहीं, बल्कि उसके काम में हाथ बँटा रहा था। यह करते हुए मोहन की आँखों में कोई स्पर्धा, कोई हार जीत और उच्च-निम्न का भाव नहीं था। यह सब देखकर धनराम को आश्चर्य हुआ।                                         

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची 

आरोह भाग-1

पाठ सं.

अध्याय का नाम

काव्य-खण्ड

1.

हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना- कबीर

2.

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई- मीराबाई

3.

घर की याद भवानी- प्रसाद मिश्र

4.

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती- त्रिलोचन

5.

गज़ल- दुष्यंत कुमार

6.

1. हे भूख ! मत मचल, 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर- अक्कमहादेवी

7.

सबसे खतरनाक- अवतार सिंह पाश

8.

आओ, मिलकर बचाएँ- निर्मला पुतुल

गद्य-खण्ड

1.

नमक का दारोगा- मुंशी प्रेमचंद

2.

मियाँ नसीरुद्दीन- कृष्णा सोबती

3.

अपू के साथ ढाई साल- सत्यजित राय

4.

विदाई-संभाषण- बालमुकुंद गुप्त

5.

गलता लोहा- शेखर जोशी

6.

रजनी- मन्नू भंडारी

7.

जामुन का पेड़- कृश्नचंदर

8.

भारत माता- पंडित जवाहर लाल नेहरू

वितान

1.

भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर - कुमार गंधर्व

2.

राजस्थान की रजत बूँदें - अनुपम मिश्र

3.

आलो - आँधारी - बेबी हालदार

4.

भारतीय कलाएँ

अभिव्यक्ति और माध्यम

1.

जनसंचार माध्यम

2.

पत्रकारिता के विविध आयाम

3.

डायरी लिखने की कला

4.

पटकथा लेखन

5.

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

6.

स्ववृत्त (बायोडेटा) लेखन और रोजगार संबंधी आवेदन पत्र

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर(Arts)

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर(Sci/Comm) 

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare