झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, राँची
वार्षिक परीक्षा (Annual Examination) सत्र (Session): 2024-2025
CM School of Excellence
Class-XI Subject- Economics (030)
Time- 3 Hour Marks - 80
सामान्य निर्देश
I. इस प्रश्न पत्र में दो खंड हैं:
खंड ए - अर्थशास्त्र के लिए सांख्यिकी
खंड बी - परिचयात्मक व्यष्टि अर्थशास्त्र
II. इस पेपर में प्रत्येक 1 अंक के 20 बहुविकल्पीय प्रकार
के प्रश्न हैं।
III. इस पेपर में 3 अंकों के 4 लघु उत्तरीय प्रश्न हैं जिनका
उत्तर 60-80 शब्दों में दिया जाना है।
IV. इस पेपर में 4 अंकों के 6 लघु उत्तरीय प्रश्न हैं जिनका
उत्तर 80-100 शब्दों में देना है।
V. इस पत्र में 6 अंकों के 4 दीर्घ उत्तरीय प्रकार के प्रश्न
हैं जिनका उत्तर 100-150 शब्दों में देना है।
SECTION A - STATISTICS FOR ECONOMICS
1. एकवचन
अर्थ में सांख्यिकी का अर्थ है
A. सांख्यिकीय डेटा
B. सांख्यिकीय तरीके
C. आगमनात्मक सांख्यिकी
D. वर्णनात्मक सांख्यिकी
2. 'An Enquiry into the Nature and causes of Wealth of Nations' नामक
पुस्तक के लेखक थेः
A. एडम स्मिथ
B.
रॉबिंस
C.
मार्शल
D.
पिगू
3. क्षितिज
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी (एमएनसी) में मार्केटिंग एक्सक्यूटिव के रूप में कार्यरत
हैं।
A. निर्माता
B. उपभोक्ता
C. सेवा प्रदाता
D. सेवा धारक
4. --------------- डेटा मूल रूप से एक अन्वेषक द्वारा एकत्र किया जाता है
A. प्राथमिक
B. द्वितीयक
C. A और B दोनों
D. इनमें से कोई नहीं
5. निम्नलिखित में से कौन सी सांख्यिकीय विधियाँ नीचे दी गई छवि में दिखाई गई हैं
(A)
जनगणना
(B) नमूनाकरण
(D)
अनुपात
(D)
इनमें से कोई नहीं
6. अभिकथन
(A): टैली चिह्नों का उपयोग आवृत्ति वितरण को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है।
कारण (R): टैली बार केवल निरंतर आवृत्ति
वितरण के मामले में ही बनाए जा सकते हैं।
सही विकल्प चुनें:
(A) A और R दोनों सत्य हैं, और R, Aका सही स्पष्टीकरण है।
(B) Aऔर R दोनों सत्य हैं, लेकिन R, Aका सही स्पष्टीकरण नहीं
है।
(C) A गलत है, लेकिन R सच है।
(D) A सच है लेकिन R. गलत है।
7. निम्नलिखित में से किसे ग्राफिक विधि द्वारा निर्धारित नहीं किया
जा सकता है:
(A) माध्य
(C)
बहुलक
(B)
माध्यिका
(D)
उपरोक्त सभी
8. 50 छात्रों को अपना पसंदीदा खेल चुनने के लिए कहा गया था और नीचे
दिए गए डेटा निम्नलिखित परिणाम दिखाते हैं
खेल |
विद्यार्थियों की संख्या |
क्रिकेट |
12 |
फुटबॉल |
10 |
हॉकी |
11 |
बास्केटबाल |
9 |
टेनिस |
8 |
यदि इस आँकड़ों को पाई आरेख में प्रस्तुत किया जाए तो किस डिग्री
की हॉकी होगी?
(A) 79.2°
(B)
84.4°
(C)
86.4°
(D)
92.8°
हल- कुल छात्र = 50
हॉकी खेलने वाले छात्र = 11
पाई चार्ट में हॉकी का कोण = (11/50) x 360° = 79.2°
9. सरल सहसंबंध में, हम अध्ययन करते
हैं।
(A) केवल 2 चर
(B)
केवल 3 चर
(C) चर की कोई भी संख्या
(D) उपरोक्त सभी
10. सूचकांक संख्या संतुष्ट करती है।
(A) टाइम रिवर्सल टेस्ट
(B) फैक्टर रिवर्सल टेस्ट
(C) A और B दोनों
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 11 से 12 प्रत्येक में 3 अंक हैं
11. एक अच्छी प्रश्नावली की आवश्यक
किसी तीन विशेषताओं के बारे में बताएं।
उत्तर - गुडे
एवं हाॅट के शब्दों मे " सामान्य रूप से प्रश्नावली से अर्थ प्रश्नों के
उत्तरों को प्राप्त करने के लिए साधन से है, जिसमें पत्रक का प्रयोग किया जाता है,
जिसे सूचनादाता स्वयं भरता है।"
प्रश्नावली की विशेषताएं निम्न प्रकार है--
1. प्रश्नवली प्रश्नों की एक सूची होती है, जिसे अनुसंधानकर्ता उत्तरदाता के
पास डाक द्वारा भेजता है।
2. प्रश्नावली मे जिन प्रश्नों को सम्मिलित करके प्रयोग किया जाता है, उन्हें
टाइप अथवा साइक्लोस्टाइल्ड या प्रकाशित कर लिया जाता है।
3. प्रश्नावली प्राथमिक सामग्री के संकलन की एक प्रविधि है जिसमे सूचनाता से
अप्रत्यक्ष सम्पर्क के आधार पर जानकारी एकत्र की जाती है।
4. इसमे सरल व स्पष्ट प्रश्न होते जिनकी संख्या सामान्यतया सीमित होती है
जिससे उनका उत्तर देने से सूचनादाता को अधिक समय न लगे।
OR
आर्थिक एवं गैर-आर्थिक
क्रियाकलापों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - आर्थिक
एवं गैर-आर्थिक क्रियाकलापों में निम्न अंतर है
आर्थिक क्रियाएँ |
अनार्थिक क्रियाएँ |
1.
आर्थिक क्रियाओं का क्षेत्र संकुचित
होता है। |
अनार्थिक क्रियाओं का क्षेत्र विस्तृत होता है। |
2.
आर्थिक क्रियाओं का वैधानिक होना
आवश्यक है। |
अनार्थिक क्रियाओं का वैधानिक होना आवश्यक नहीं है। |
3.
आर्थिक क्रियाएँ आर्थिक उद्देश्यों
की प्राप्ति के लिए की जाती है। |
अनार्थिक क्रियाएँ सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक उद्देश्यों
की पूर्ति के लिए की जाती है। |
4.
जो कार्य धन प्राप्ति के लिए किये
जाते हैं, उन्हें आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। |
जो कार्य धन प्राप्ति के लिए नहीं किये जाते हैं, उन्हें
अनार्थिक क्रियाएँ कहते हैं। |
12. निम्नलिखित को परिभाषित करें
(i) प्रगणक
(ii) अन्वेषक
(iii) गणनाकार
उत्तर -
(i) प्रगणक- प्रगणक वह व्यक्ति होता है जो किसी
जनगणना, सर्वेक्षण या अन्य डेटा संग्रह कार्य में डेटा एकत्र करने के लिए नियुक्त
किया जाता है। वे लोगों या वस्तुओं की गिनती करते हैं और जानकारी रिकॉर्ड करते
हैं।
(ii) अन्वेषक - अन्वेषक वह व्यक्ति
होता है जो किसी मामले या समस्या की गहराई से जाँच करता है। वे जानकारी इकट्ठा
करते हैं, सबूतों का विश्लेषण करते हैं और निष्कर्ष निकालते हैं।
(iii) गणनाकार - गणनाकार
वह व्यक्ति होता है जो गणितीय गणनाएँ करता है। यह शब्द पहले उन लोगों के लिए
इस्तेमाल किया जाता था जो हाथ से गणनाएँ करते थे, लेकिन अब इसका उपयोग उन लोगों के
लिए भी किया जाता है जो कंप्यूटर या कैलकुलेटर का उपयोग करते हैं।
प्रश्न 13 से प्रश्न 15 तक प्रत्येक के लिए 4 अंक हैं
13. आरेखीय कार्यक्रमों की उपयोगिता
समझाइये?
उत्तर - आरेखीय
कार्यक्रम (Graphical Programs) वे प्रोग्राम होते हैं जो ग्राफिकल इंटरफेस का
उपयोग करके उपयोगकर्ता से संवाद करते हैं। इनका उद्देश्य उपयोगकर्ता को दृश्यात्मक
रूप से प्रोग्राम के कार्य को समझने और संचालित करने में मदद करना होता है। इन
कार्यक्रमों की उपयोगिता निम्नलिखित है:
1. उपयोगकर्ता इंटरफेस की सरलता: आरेखीय कार्यक्रम उपयोगकर्ता को एक सहज और समझने में आसान
इंटरफेस प्रदान करते हैं। उपयोगकर्ता को कोड या टेक्स्ट के बजाय दृश्यात्मक तत्वों
(जैसे बटन, स्लाइडर, चित्र, आदि) के माध्यम से प्रोग्राम से संवाद करने की सुविधा
मिलती है।
2. विज़ुअल प्रेजेंटेशन: इन कार्यक्रमों में डेटा या परिणामों को ग्राफिक्स और
चार्ट्स के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, जिससे उपयोगकर्ता को समस्याओं का
समाधान समझने में आसानी होती है। उदाहरण के तौर पर, डेटा विज़ुअलाइजेशन, जैसे
ग्राफ और पाई चार्ट, को समझना और विश्लेषण करना आसान होता है।
3. प्रेरणा और आकर्षण: आरेखीय कार्यक्रम इंटरफेस को आकर्षक और इंटरैक्टिव बनाते
हैं, जिससे उपयोगकर्ता का अनुभव बेहतर होता है और प्रोग्राम को चलाने में मजा आता
है। इस प्रकार, ऐसे कार्यक्रम उपयोगकर्ताओं को अधिक समय तक प्रोग्राम में व्यस्त
रखते हैं।
4. तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं: आरेखीय कार्यक्रमों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उपयोगकर्ता
को गहरे तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। इससे उन लोगों के लिए भी
प्रोग्रामिंग से जुड़ी सेवाओं का उपयोग करना संभव हो जाता है, जिनके पास तकनीकी
पृष्ठभूमि नहीं है।
5. विविध अनुप्रयोग: आरेखीय कार्यक्रमों का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया
जाता है जैसे- ग्राफिक डिजाइन, वेब डेवलपमेंट, गेम डेवलपमेंट, शैक्षिक कार्यक्रम,
आदि। इनकी सहायता से उपयोगकर्ता विभिन्न प्रकार के कार्यों को सरल तरीके से कर
सकता है।
इन कारणों से आरेखीय कार्यक्रमों का उपयोग बढ़ रहा है और ये विभिन्न उद्योगों
में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
14. प्रति हेक्टेयर चावल की उपज नीचे
दी गई है, डेटा को आरेखीय रूप से दिखाएं |
year |
Yield per hectare(kg) |
1999-2000 |
668 |
2000-2001 |
1013 |
2001-2002 |
1123 |
2002-2003 |
1235 |
2003-2004 |
1336 |
2004-2005 |
1552 |
2005-2006 |
1482 |
उत्तर -
यह ग्राफ प्रति हेक्टेयर चावल की उपज को विभिन्न वर्षों में दर्शाता है। आप
देख सकते हैं कि 1999-2000 से 2004-2005 तक उपज में वृद्धि हुई, लेकिन 2005-2006
में थोड़ी गिरावट आई।
OR
(या)
वृत्त आरेख को परिभाषित करें। इसका
निर्माण कैसे किया जाता है?
उत्तर - वृत्त
आरेख (पाई चार्ट) एक ऐसा आरेख है जो किसी डेटा को वृत्त के विभिन्न भागों या खंडों
के रूप में दर्शाता है, जहाँ प्रत्येक खंड डेटा के एक विशिष्ट भाग का प्रतिनिधित्व
करता है।
डिग्री की संख्या = (डेटा मान / कुल डेटा मान) x 360°
वृत्त आरेख का निर्माण
1. डेटा एकत्र करें: सबसे पहले, जिस डेटा को आप दर्शाना चाहते हैं, उसे एकत्र
करें, जैसे कि विभिन्न श्रेणियों में प्रतिशत या अंश।
2. कुल मान ज्ञात करें: सभी डेटा के मानों को जोड़कर कुल मान ज्ञात करें।
3. प्रत्येक खंड के लिए अंश ज्ञात करें:
प्रत्येक श्रेणी के मान को कुल मान
से विभाजित करें, जिससे आपको प्रत्येक खंड के लिए अंश प्राप्त होगा।
4. प्रत्येक खंड के लिए कोण ज्ञात करें:
प्रत्येक खंड के अंश को 360 डिग्री
से गुणा करें, जिससे आपको वृत्त के प्रत्येक खंड के लिए कोण प्राप्त होगा।
5. वृत्त आरेख बनाएं: एक वृत्त खींचें और उसे प्रत्येक खंड के लिए निर्धारित कोण
के अनुसार विभाजित करें।
6. खंडों को लेबल करें: प्रत्येक खंड को उसकी संबंधित श्रेणी के साथ लेबल करें।
7. आवश्यकतानुसार रंग या पैटर्न का उपयोग करें:
प्रत्येक खंड को अलग-अलग रंग या
पैटर्न देकर आरेख को और स्पष्ट बनाया जा सकता है।
15. समांतर
माध्य की गणना की लघु विधि पर चर्चा करें
उत्तर - समांतर
माध्य (Arithmetic Mean) की गणना की लघु विधि, जिसे कल्पित माध्य विधि (Assumed
Mean Method) भी कहते हैं, डेटा सेट के मानों के योग को मानों की कुल संख्या से
विभाजित करने की बजाय, एक कल्पित माध्य (Assumed Mean) का उपयोग करके माध्य की
गणना करने की एक आसान और तेज़ विधि है।
कल्पित माध्य विधि (Assumed Mean Method) के चरण:
1. कल्पित माध्य (Assumed Mean) का चयन: डेटा सेट में किसी भी मान को कल्पित माध्य के रूप में
चुनें, आमतौर पर डेटा सेट के मध्य में स्थित मान।
2. विचलन (Deviation) की गणना: प्रत्येक मान से कल्पित माध्य को घटाकर विचलन ज्ञात करें।
3. बारम्बारता (Frequency) से गुणा: यदि आपके पास बारम्बारता वितरण है, तो प्रत्येक विचलन को
उसकी बारम्बारता से गुणा करें।
4. विचलन का योग: सभी विक्षणों का योग करें।
5. माध्य की गणना: कल्पित माध्य में विचलन के योग को मानों की कुल संख्या से
विभाजित करके प्राप्त परिणाम जोड़ें।
उदाहरण:
मान लीजिए आपके पास डेटा सेट है: 10, 12, 15, 18, 20
कल्पित माध्य: मान लीजिए हम 15 को कल्पित माध्य के रूप में चुनते हैं।
विचलन:
10 - 15 = -5
12 - 15 = -3
15 - 15 = 0
18 - 15 = 3
20 - 15 = 5
विचलन का योग: -5 + (-3) + 0 + 3 + 5 = 0
माध्य की गणना: 15 + (0/5) = 15
प्रश्न 16-17 प्रत्येक 6 अंक का है।
16. निम्नलिखित
डेटा से माध्यिका की गणना करें:
अंक |
विद्यार्थियों की संख्या |
0
से अधिक |
50 |
10
से अधिक |
42 |
20
से अधिक |
38 |
30
से अधिक |
28 |
40
से अधिक |
16 |
50
से अधिक |
3 |
उत्तर –
C.I |
ƒ |
Cƒ |
0-10 |
8 |
8 |
10-20 |
4 |
12 |
20-30 |
10 |
22 |
30-40 |
12 |
34 |
40-50 |
13 |
47 |
50-60 |
3 |
50 |
|
Σƒ
= 50 |
|
Median lise between ( 30 – 40 ) in class interval
⸫ l1 = 30, l2 = 40, ƒ = 12, c = 22, m = 25
= 30+40-3012(25-22)30+40−3012(25−22)
= 30+1012(3)=30+301230+1012(3)=30+3012= 30+2.5
=32.5
17. निम्नलिखित आंकड़ों की
सहायता से कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक ज्ञात करें।
X | Y |
---|---|
6 | 10 |
8 | 12 |
12 | 15 |
15 | 15 |
18 | 18 |
20 | 25 |
24 | 22 |
28 | 26 |
31 | 28 |
उत्तर :-
X |
Y |
A=6 dx |
A=15 dy |
dx2 |
dy2 |
dxdy |
6 |
10 |
0 |
-5 |
0 |
25 |
0 |
8 |
12 |
2 |
-3 |
4 |
9 |
-6 |
12 |
15 |
6 |
0 |
36 |
0 |
0 |
15 |
15 |
9 |
0 |
81 |
0 |
0 |
18 |
18 |
12 |
3 |
144 |
9 |
36 |
20 |
25 |
14 |
10 |
196 |
100 |
140 |
24 |
22 |
18 |
7 |
324 |
49 |
126 |
28 |
26 |
22 |
11 |
484 |
121 |
242 |
31 |
28 |
25 |
13 |
625 |
169 |
325 |
|
|
Σdx=108 |
Σdy=44-8=36 |
Σdx2=1894 |
Σdy2=482 |
Σdxdy=869-6=863 |
r = 863-4329√210.4-(12)2√53.5-(4)2863−4329√210.4−(12)2√53.5−(4)2
r=4319√210.4-144√53.5-16r=4319√210.4−144√53.5−16
r=4319√66.4√37.5=4319(8.14)(6.12)r=4319√66.4√37.5=4319(8.14)(6.12)
r=431448.35=0.96r=431448.35=0.96
(यह उच्च सहसंबंध है।)
OR
सूचकांक क्या है? सूचकांक की कीमतों के
निर्माण में आने वाली मुख्य समस्याओं का वर्णन करें
उत्तर - समाज
में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। वस्तुओं और
सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन होने के कारण मुद्रा का मूल्य भी परिवर्तित होता
रहता है, जिससे समाज का प्रत्येक वर्ग प्रभावित होता है, फलस्वरूप कीमत-स्तर,
उपभोग, जनसंख्या, बचत, निवेश, राष्ट्रीय आय, आयात-निर्यात, मजदूरी, ब्याज, किराया
व लगान आदि चरों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। अत: मुद्रा-मूल्य में हुए
परिवर्तनों का माप करना व्यावहारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है।
इन परिवर्तनों को निरपेक्ष रूप से मापने का कोई साधन नहीं है; अतः इनको सापेक्ष
माप लिया जाता है। सूचकांक विशिष्ट प्रकार के सापेक्ष माप होते हैं, जिनके आधार पर
समंकों की उचित एवं स्पष्ट तुलना की जा सकती है।
चैण्डलर के अनुसार-“कीमत का सूचकांक आधार-वर्ष की तुलना में किसी अन्य समय में
कीमतों की औसत ऊँचाई को प्रकट करने वाली संख्या है।”
सूचकांक का निर्माण या रचना संबंधी समस्याएँ
सूचकांक रचना संबंधी प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. सूचकांक का उद्देश्य,
2. पदों या वस्तुओं का चुनाव,
3. मूल्य उद्धरण,
4. आधार-वर्ष का चुनाव और सूचकांकों का परिगणन,
5. माध्य का चुनाव,
6. भारांकन विधि।
1. सूचकांक का उद्देश्य :- सूचकांक रचना से पूर्व उसके उद्देश्य को निश्चित कर
लेना चाहिए क्योंकि वस्तुओं के चुनाव, उनके मूल्य उद्धरण तथा भारांकन आदि का
निर्धारण सूचकांक के उद्देश्य पर ही निर्भर करता है। उदाहरण के लिए एक
सूक्ष्मग्राही मूल्य सूचकांक में केवल उन वस्तुओं का समावेश किया जाना चाहिए,
जिनके मूल्यों में तेजी से परिवर्तन होते रहते हैं। इसके विपरीत, सामान्य उद्देश्य
वाले मूल्य सूचकांक में अधिकाधिक वस्तुओं का समावेश किया जाना चाहिए ताकि वह समाज
में सभी वर्गों का सही-सही प्रतिनिधित्व कर सके।
2. पदों या वस्तुओं का चुनाव :- चूंकि किसी भी एक सूचकांक में समस्त पदों या वस्तुओं का
चुना जाना संभव नहीं है; अत: कुछ प्रतिनिधि वस्तुओं का चुनाव कर लिया जाना चाहिए।
इस संबंध में उठने वाले स्वाभाविक प्रश्न इस प्रकार हैं
(अ) कौन-सी वस्तुएँ चुनी जाएँ- चुनी जाने वाली वस्तुओं में निम्नलिखित गुण होने चाहिए|
1. वस्तुएँ ऐसी होनी चाहिए, जो अपने वर्ग का सच्चे अर्थों में प्रतिनिधित्व कर
सकें।
2. वस्तुएँ ऐसी होनी चाहिए, जो सरलता से पहचानी जा सकें तथा जिनका स्पष्ट रूप
से वर्णन किया | जा सके।
3. चुनी हुई वस्तुएँ प्रमापित व एकरूप होनी चाहिए।
4. वस्तुएँ लोकप्रिय होनी चाहिए।
(ब) वस्तुओं की संख्या कितनी हो-सामान्यत :- सूचकांक में जितनी अधिक वस्तुएँ सम्मिलित की जाएँगी, वह
उतना ही अधिक शुद्ध व विश्वसनीय माना जाएगा, परंतु बहुत अधिक वस्तुओं को सूचकांक
में सम्मिलित करना भी संभव नहीं है। वास्तव में, संख्या का निर्धारण सूचकांक के
उद्देश्य, उपलब्ध समय, धन तथा वांछित शुद्धता पर अधिक निर्भर करता है। सामान्य
परम्परा यह है कि सूचकांक में 25 से 50 वस्तुओं तक का चयन किया जाता है।
(स) वस्तुएँ किस किस्म की हों :- सूचकांकों में ऐसी किस्म की वस्तुएँ शामिल की जानी
चाहिए, जो सबसे अधिक प्रचलित हों; प्रमापित हों तथा गुणों में स्थिर हों।
(द) वस्तुओं का किस प्रकार वर्गीकरण किया जाए :- चुनी हुई वस्तुओं को सजातीयता के आधार पर कुछ निश्चित
वर्गों और उपवर्गों में विभाजित कर देना चाहिए, जिससे सम्पूर्ण मूल्य सूचकांक के
साथ-साथ वर्ग सूचकांक भी ज्ञात हो जाए।
3. मूल्य उद्धरण :- मूल्य उद्धरण लेते समय निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए
(अ) थोक या फुटकर मूल्य सामान्यत :- मूल्य सूचकांकों की रचना में वस्तुओं के थोक मूल्य ही
लिए जाते हैं क्योंकि वे फुटकर मूल्यों की अपेक्षा कम परिवर्तनशील होते हैं,
स्थान-स्थान के आधार पर उनमें कम अंतर होते हैं और उन्हें ज्ञात करना भी सरल होता
है।
(ब) द्रव्य-मूल्य अथवा वस्तु-मूल्य :- सूचकांकों के लिए मूल्य उद्धरण द्रव्य के रूप में ही
व्यक्त किए। जाने चाहिए, वस्तुओं के परिमाण के रूप में नहीं। यदि मूल्य उद्धरण
वस्तु-मूल्य के रूप में हों तो उन्हें पहले द्रव्य-मूल्यों के रूप में बदल लेना
चाहिए।
(स) मूल्य उद्धरणों की संख्या व आवृत्ति :- सूचकांक निर्माण से पूर्व यह भी तय कर लेना चाहिए,कि
मूल्य कितनी बार और किस अंतराल में लिए जाने हैं। मूल्य उद्धरणों की आवृत्ति
सूचकांक के उद्देश्य, अवधि, उपलब्ध साधन व शुद्धता के स्तर पर निर्भर होती है।
(द) मूल्य उद्धरण प्राप्ति के स्थान व साधन :- मूल्य उन मण्डियों से प्राप्त किए जाने चाहिए, जहाँ पर
वस्तुओं का बड़ी मात्रा में क्रय-विक्रय होता हो लेकिन जीवन-निर्वाह व्यय सूचकांक
बनाने के लिए उसी स्थान के मूल्यों को प्राप्त करना चाहिए। मूल्य उद्धरण के स्रोत
निष्पक्ष, विश्वसनीय तथा उपयुक्त होने चाहिए।
4. आधार-वर्ष का चुनाव और सूचकांकों का परिगणन :- आधार-वर्ष से हमारा आशय उस वर्ष विशेष से होता है,
जिसको आधार मानकर हम आर्थिक क्रियाकलापों की तुलना करते हैं। अतः आधार-वर्ष का
चुनाव अत्यंत सतर्कतापूर्वक करना चाहिए। यथासंभव आधार-वर्ष
1.सामान्य होना चाहिए,
2.वास्तविक होना चाहिए,
3.उस काल की समस्त सूचनाएँ उपलब्ध होनी चाहिए तथा
4.वह वर्ष अधिक पुराना नहीं होना चाहिए।
आधार वर्ष निश्चित करने की निम्नलिखित दो रीतियाँ हैं
(अ) स्थिर आधार रीति,. (ब) श्रृंखला
आधार रीति।
(अ) स्थिर आधार रीति :- इस रीति के अनुसार सर्वप्रथम एक सामान्य वर्ष चुन लिया
जाता है और फिर अन्य वर्षों के मूल्य-स्तर की तुलना उस स्थिर वर्ष के आधार पर की
जाती है। स्थिर आधार-वर्षे दो प्रकार का हो सकता है
1. एकवर्षीय आधार :- एकवर्षीय आधार में जो वर्ष आधार-वर्ष के रूप में चुना
जाता है, अन्ये वर्षों के मूल्यों की तुलना उस स्थिर वर्ष के आधार पर की जाती है।
2. बहुवर्षीय मध्य आधार :- कभी-कभी कोई अंक वर्ष ऐसा नहीं होता, जो सामान्य हो और
जिसे स्थिर आधार माना जा सके। ऐसी दशा में अनेक ऐसे वर्ष छाँट लिए जाते हैं,
जिनमें कम उतार-चढ़ाव हुए हों और फिर उन वर्षों के मूल्य-स्तर का समान्तर माध्य
निकालकर उन माध्य मूल्यों को आधार माना जाता है।
आधार- वर्ष को निश्चित कर लेने के उपरांत चालू वर्ष के सूचकांक तैयार करने के लिए मूल्यानुपात निकाले जाते हैं। इसके लिए आधार-वर्ष के मूल्य को 100 मानकर, चालू वर्ष के मूल्यों का निकाला गया प्रतिशत मूल्यानुपात’ कहलाता है। सूत्रानुसार,
5. माध्य का चुनाव :- सूचकांक विभिन्न वस्तुओं के मूल्यानुपातों का माध्य है।
अतः यह निर्धारित करना आवश्यक है कि सूचकांक रचना में किस माध्ये का प्रयोग किया
जाए। व्यवहार में माध्यिका समान्तर माध्य अथवा गुणोत्तर माध्य में से किसी एक का
प्रयोग करना उपयुक्त रहता है।
6. भारांकन विधि :- व्यवहार में भिन्न-भिन्न वस्तुओं का भिन्न-भिन्न सापेक्षिक महत्त्व होता
है। उदाहरण के लिए उपभोग के क्षेत्र में लोहे की तुलना में नमक का महत्त्व अधिक
है। इसी प्रकार उत्पादन के क्षेत्र में टी०वी० की तुलना में कपड़े का महत्त्व अधिक
है। अत: विभिन्न वस्तुओं अथवा पदों के तुलनात्मक महत्त्व को प्रकट करने के लिए
किसी सुनिश्चित आधार पर भारों का प्रयोग किया जाता है। ऐसे सूचकांक ‘भारित सूचकांक
कहलाते हैं।
SECTION-B (खण्ड-B)
प्रश्न 18 से 27 तक प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है
18. उत्पादन संभावना वक्र का दाहिनी ओर खिसकने के कारण
(A)
संसाधनों की वृद्धि
(B)
प्रौद्योगिकी में सुधार
(C)
ओवरटाइम काम
(D) दोनों (A) और (B) के कारण दाई ओर शिफ्ट हो जाता है
19. निम्नलिखित
में से कौन सा कथन सत्य है?
(A) जब MU नकारात्मक है तो TU बढ़ रहा होगा
(B) जब MU सकारात्मक है तो TU घट रहा होगा
(C)
MU शून्य है TU अधिकतम है
(D) इनमें से कोई नहीं
20. निम्नलिखित
में से कौन सा कथन सत्य है?
(A) सामान्य वस्तुओं में घटिया वस्तुओं की तुलना में मांग
की लोच कम होती है।
(B) सामान्य वस्तुओं की तुलना में निम्न वस्तुओं
की माँग की लोच ज्ञात होती है।
(C) आपके मित्र माल पूरी तरह से लोचदार मांग हैं क्यों घटिया
माल में कम लोच है।
(D)
माल जो घटिया के साथ-साथ गिफेन भी हैं, अत्यधिक बेलोचदार हैं।
22. नीचे दिए गए माँग वक्र का प्रेक्षण कीजिए तथा वक्र के ढाल की पहचान कीजिए।
(A)
घटते हुए ढलान के साथ रैखिक मांग वक्र
(B) घटते ढलान के साथ गैर-रैखिक मांग वक्र
(C)
स्थिर ढलान के साथ रैखिक मांग वक्र
(D)
बढ़ते ढलान के साथ गैर-रैखिक मांग वक्र
23. निम्नलिखित कॉलम 1 और 2 से वस्तुओं की सही जोड़ी की पहचान करें।
कॉलम 1 |
कॉलम 2 |
(A)
बजट लाइन |
1.
सामान्य सामान |
(B)
बाजरा |
2.
घटिया माल |
(C)
उपभोक्ता संतुलन |
3.
शानदार सामान |
(D)
लोचदार माँग |
4.
MPx.x + Py.y |
(A)
A-1
(B) B-2
(C)
C-3
(D)
D-4
24. औसत
उत्पादन हो सकता है
(A)
केवल सकारात्मक मूल्य
(B) केवल नकारात्मक मूल्य
(C) नकारात्मक और सकारात्मक दोनों मूल्य
(D) न तो सकारात्मक और न ही नकारात्मक
25. कथन
1 औसत लागत हमेशा सीमांत लागत की तुलना में
तेजी से बढ़ती है।
कथन 2 औसत निश्चित लागत आयताकार अतिपरवलय
आकार की है, जिसका अर्थ है कि उत्पादन में वृद्धि के साथ यह शून्य हो जाती है।
(A) कथन 1 सत्य है और कथन 2 गलत है।
(B) कथन 2 सत्य है और कथन 1 गलत है
(C) दोनों कथन सत्य हैं।
(D)
दोनों कथन गलत हैं।
26. निम्नलिखित
में से कौन सा व्यक्तिगत आपूर्ति का निर्धारक नहीं है।
(A) दी गई वस्तु की कीमत
(B) कराधान नीति
(C) प्रौद्योगिकी की स्थिति
(D)
फर्मों की संख्या
27. सामान्य
वस्तुओं की स्थिति में आय बढ़ने पर संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर क्या प्रभाव
पड़ेगा?
(A) संतुलन और कीमत मात्रा दोनों गिरती है।
(B)
संतुलन और कीमत मात्रा दोनों बढ़ती है।
(C) संतुलन कीमत बढ़ती है और मात्रा गिरती है।
(D) संतुलन कीमत गिरती है और मात्रा बढ़ती है
प्रश्न 28 से 29 तक प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है
28. केन्द्रीकृत
योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ समझाइए
उत्तर - केन्द्रीकृत
योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में, सरकार आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करती है, जैसे
कि उत्पादन, वितरण और मूल्य निर्धारण, और निजी स्वामित्व कम होता है.
दो मुख्य विशेषताएँ:
1. सरकारी स्वामित्व और नियंत्रण: इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में, उत्पादन के साधन (जैसे
भूमि, श्रम, पूंजी) सरकार के स्वामित्व में होते हैं और सरकार द्वारा नियंत्रित
होते हैं, न कि निजी व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा।
2. केन्द्रीय योजना: सरकार एक केंद्रीय योजना के माध्यम से अर्थव्यवस्था की
गतिविधियों को नियंत्रित करती है, जिसमें निर्धारित किया जाता है कि क्या, कैसे और
किसके लिए उत्पादन किया जाना चाहिए।
OR
क्या आपको लगता है कि यदि भारत संयुक्त
राज्य अमेरिका से नई और उन्नत तकनीक आयात करता है, तो इससे उत्पादन कैसे किया जाए
की समस्या हल हो जाएगी?
उत्तर – भारत
यदि संयुक्त राज्य अमेरिका से नई और उन्नत तकनीक आयात करता है, तो इससे उत्पादन की
प्रक्रिया में सुधार आ सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से "कैसे उत्पादन किया
जाए" की समस्या को हल नहीं करेगा। इस समस्या का समाधान कई कारकों पर निर्भर
करता है:
1. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुकूलन – सिर्फ तकनीक लाने से फायदा नहीं होगा, बल्कि उसे भारतीय
परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित करना भी जरूरी होगा।
2. मानव संसाधन और कौशल विकास – नई तकनीक के उपयोग के लिए कुशल श्रमिकों और इंजीनियरों
की आवश्यकता होगी। यदि श्रमिकों को उचित प्रशिक्षण नहीं दिया गया, तो उत्पादन
क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव सीमित रह सकता है।
3. बुनियादी ढांचा – यदि भारतीय उद्योगों में बुनियादी सुविधाएं, जैसे कि
ऊर्जा आपूर्ति, लॉजिस्टिक्स, और गुणवत्ता नियंत्रण मजबूत नहीं हैं, तो उन्नत तकनीक
का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।
4. आर्थिक और नीतिगत पहलू – उत्पादन की लागत, सरकारी नीतियां, व्यापार नियम, और
बाज़ार की मांग भी यह तय करेगी कि तकनीक कितनी प्रभावी साबित होगी।
5. स्थानीय अनुसंधान एवं विकास – यदि भारत केवल आयात पर निर्भर रहेगा और अपनी खुद की
तकनीकी नवाचार क्षमता नहीं बढ़ाएगा, तो दीर्घकालिक रूप से यह आत्मनिर्भरता के
मार्ग में बाधा बन सकता है।
29. उपभोक्ता के बजट सेट से आप क्या समझते
हैं?
उत्तर - बजट सेट दो वस्तुओं के उन सभी बंडलों का संग्रह है जिन्हें
उपभोक्ता प्रचलित बाजार कीमत पर अपनी आय से खरीद सकता है।
30. उपभोक्ता
की तर्कसंगतता निम्नलिखित में से किस कारक पर निर्भर करती है?
(A)
उपभोक्ता का स्वाद
और प्राथमिकताएँ
(B)
किसी वस्तु के
उपभोग से उपयोगिता
(C)
उपभोक्ता की आदत के
आधार पर
(D)
उपरोक्त सभी
उत्तर - उपभोक्ता
की तर्कसंगतता निम्नलिखित सभी कारकों पर निर्भर करती है:
(A) उपभोक्ता का स्वाद और प्राथमिकताएँ – उपभोक्ता अपने स्वाद और प्राथमिकताओं के आधार पर निर्णय
लेता है कि कौन-सी वस्तु खरीदी जाए और कितनी मात्रा में।
(B) किसी वस्तु के उपभोग से उपयोगिता – उपभोक्ता हमेशा अधिकतम उपयोगिता (संतुष्टि) प्राप्त करने
की कोशिश करता है, इसलिए उसकी तर्कसंगतता इस पर निर्भर करती है कि कोई वस्तु उसे
कितनी संतुष्टि दे रही है।
(C) उपभोक्ता की आदत के आधार पर – कभी-कभी उपभोक्ता की तर्कसंगतता उसकी आदतों से भी
प्रभावित होती है, क्योंकि कुछ लोग पुरानी आदतों के अनुसार ही खरीदारी करना पसंद
करते हैं, भले ही कोई और विकल्प अधिक फायदेमंद हो।
इसलिए, उपभोक्ता की तर्कसंगतता उपरोक्त सभी कारकों पर निर्भर करती है।
31. निम्नलिखित
में से कौन सा कथन उपयोगिता के लिए सत्य है/हैं
(A) उपयोगिता किसी वस्तु की आवश्यकता को संतुष्ट करने वाली
शक्ति है
(B) उपयोगिता इच्छा और पसंद पर निर्भर करती है
(C) एक ही वस्तु को अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग उपयोगिता
दी जा सकती है
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर - उपयोगिता
के संदर्भ में (D) उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं।
(A) उपयोगिता किसी वस्तु की आवश्यकता को संतुष्ट करने वाली शक्ति है – यह सही
है क्योंकि उपयोगिता से तात्पर्य किसी वस्तु की वह क्षमता है जो उपभोक्ता की
इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करती है।
(B) उपयोगिता इच्छा और पसंद पर निर्भर करती है – यह भी सही है, क्योंकि किसी
वस्तु की उपयोगिता प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकती है। उदाहरण के लिए,
किसी को कॉफी पसंद है तो उसके लिए कॉफी की उपयोगिता अधिक होगी, जबकि किसी अन्य को
चाय पसंद हो सकती है।
(C) एक ही वस्तु को अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग उपयोगिता दी जा सकती है –
यह भी सही है, क्योंकि उपयोगिता समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार बदल सकती
है। उदाहरण के लिए, ठंडे मौसम में हीटर की उपयोगिता अधिक होगी, जबकि गर्मी में एयर
कंडीशनर की।
इसलिए, सही उत्तर (D) उपरोक्त सभी है।
32. किसी
इनपुट के MP और TP के बीच संबंध स्पष्ट करें।
उत्तर -
कुल उत्पादन (TP) और सीमांत उत्पादन (MP) में सम्बंध :
1. जब MP बढ़ता है, तो TP बढ़ती दर से बढ़ता है।
2. जब MP घटता है तथा धनात्मक होता है, तो TP घटती दर से
बढ़ता है।
3. जब MP ऋणात्मक होता है, तो TP घटने लगता है।
4. जब MP शून्य होता है, तो TP अधिकतम होता है।
OR
एक फर्म की निम्नलिखित लागत अनुसूची से
कुल परिवर्तनीय लागत और सीमांत लागत की गणना करें, जिसकी कुल निश्चित लागत ₹12 है।
Output
|
1 |
2 |
3 |
4 |
Total
Cost |
20 |
26 |
31 |
38 |
उत्तर –
Output |
TC |
TFC |
TVC |
MC |
1 |
20 |
12 |
8 |
8 |
2 |
26 |
12 |
14 |
6 |
3 |
31 |
12 |
19 |
5 |
4 |
38 |
12 |
26 |
7 |
32. कीमत लेने वाली फर्म का कुल राजस्व वक्र एक ऊपर की ओर उठी हुई
सीधी रेखा क्यों है? वक्र मूल बिन्दु से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर - कुल राजस्व (Total Revenue - TR) वक्र की आकृति और उसका मूल बिंदु से
गुजरने का कारण इस बात पर निर्भर करता है कि फर्म एक कीमत लेने वाली (Price-Taker)
फर्म है। इसे समझने के लिए, हम कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक अवधारणाओं को देख सकते हैं:
1. कीमत लेने वाली फर्म क्या होती है?
कीमत लेने वाली फर्म एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा (Perfect Competition) वाले बाजार
में संचालित होती है, जहाँ
प्रत्येक फर्म को बाज़ार द्वारा निर्धारित कीमत को स्वीकार करना पड़ता है।
कोई भी फर्म स्वयं कीमत तय नहीं कर सकती।
जितना चाहे उतना उत्पादन कर सकती है, लेकिन वह बाज़ार मूल्य पर ही बेचेगी।
2. कुल राजस्व (Total Revenue - TR) का सूत्र
कुल राजस्व = कीमत (P) × बेची गई मात्रा (Q)
अर्थात,
TR = P x Q
चूँकि कीमत (P) स्थिर रहती है और मात्रा (Q) के बढ़ने से कुल राजस्व बढ़ता है,
इसलिए TR वक्र एक सीधी रेखा होती है।
3. वक्र ऊपर की ओर उठा हुआ क्यों होता है?
जब Q बढ़ता है, तो भी बढ़ता है।
चूँकि कीमत स्थिर रहती है, TR वक्र एक समान गति से बढ़ता है, जिससे यह एक ऊपर
की ओर उठी हुई (Upward Sloping) सीधी रेखा होती है।
इसका ढलान (Slope) कीमत (P) के बराबर होता है, क्योंकि प्रत्येक अतिरिक्त इकाई
बेचने पर समान अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होता है।
4. वक्र मूल बिंदु (0,0) से क्यों गुजरता है?
यदि उत्पादन (Q) शून्य है, तो कुल राजस्व (TR) भी शून्य होगा।
अर्थात, जब Q = 0, तो होगा।
इसलिए, कुल राजस्व वक्र मूल बिंदु (Origin) से होकर गुजरता है।
निष्कर्ष
कीमत लेने वाली फर्म के लिए कुल राजस्व वक्र एक ऊपर की ओर उठी हुई सीधी रेखा
होती है क्योंकि कीमत स्थिर होती है और बेची गई मात्रा बढ़ने पर कुल राजस्व समान
अनुपात में बढ़ता है। यह वक्र मूल बिंदु से इसलिए गुजरता है क्योंकि जब कोई
उत्पादन नहीं होगा, तो कोई राजस्व भी नहीं होगा।
प्रश्न 33 से 34 तक प्रत्येक प्रश्न 6 अंक का है
33. किसी वस्तु का बाजार संतुलन में है, वस्तु की मांग कम हो जाती है।
इस परिवर्तन के प्रभावों की श्रृंखला को स्पष्ट करें, जब तक कि बाजार फिर से संतुलन
में न आ जाए। आरेख का प्रयोग करें।
उत्तर - जब किसी वस्तु का
बाजार संतुलन में होता है और फिर उसकी मांग कम हो जाती है, तो यह बाजार संतुलन को
प्रभावित करता है। इस परिवर्तन के प्रभावों की श्रृंखला निम्नलिखित चरणों में देखी
जा सकती है:
1. प्रारंभिक संतुलन (Initial Equilibrium)
बाजार में मांग और आपूर्ति संतुलन में होती है।
संतुलन मूल्य (P) और संतुलन मात्रा (Q) निर्धारित होती
है।
2. मांग में कमी (Decrease in Demand)
किसी कारणवश (उदाहरण के लिए, उपभोक्ता की आय में कमी,
प्रतिस्पर्धी वस्तु की कीमत में गिरावट, उपभोक्ता की रुचि में बदलाव आदि) मांग घट
जाती है।
इससे मांग वक्र (Demand Curve - D) बाईं ओर खिसक जाता है
(D से D')।
3. अतिरिक्त आपूर्ति (Excess Supply)
नए मांग वक्र के कारण, पहले के संतुलन मूल्य पर अब
आपूर्ति अधिक और मांग कम होती है।
इससे बाजार में अतिरिक्त आपूर्ति (Surplus) उत्पन्न होती
है।
4. कीमत में गिरावट (Price Decrease)
अतिरिक्त आपूर्ति के कारण विक्रेता कीमत कम करने को
मजबूर होते हैं ताकि वे अपनी वस्तुओं को बेच सकें।
जैसे-जैसे कीमत घटती है, मांग बढ़ती है और आपूर्ति कम
होती है (क्योंकि कुछ विक्रेता उत्पादन कम कर देते हैं)।
5. नया संतुलन (New Equilibrium)
कीमत में गिरावट तब तक जारी रहती है जब तक मांग और
आपूर्ति फिर से संतुलन में नहीं आ जाते।
एक नए, निम्न मूल्य (P') और निम्न संतुलन मात्रा (Q') पर बाजार पुनः संतुलन में आ जाता है।
मांग वक्र बाईं ओर शिफ्ट होने के कारण संतुलन बिंदु नीचे
खिसकता है।
मांग में कमी से बाजार में अतिरिक्त आपूर्ति उत्पन्न
होती है, जिससे कीमत गिरती है। यह तब तक जारी रहता है जब तक नया संतुलन स्थापित
नहीं हो जाता, जहाँ नई संतुलन मात्रा पहले की तुलना में कम होती है और संतुलन
मूल्य भी घट जाता है।
OR
(या)
जब किसी वस्तु की कीमत 10 रुपये से 11 रुपये प्रति यूनिट तक बढ़ जाती
है, तो इसकी आपूर्ति की मात्रा 100 यूनिट बढ़ जाती है। इसकी आपूर्ति की कीमत लोच 2
है। बढ़ी हुई कीमत पर इसकी आपूर्ति की मात्रा की गणना करें।
उत्तर - आरंभिक कीमत
(P) = 10 रु.
;
आरंभिक
मात्रा (S) = 100
नई
कीमत (P1) = 11
नई मात्रा (S1) = ?
ES = कीमत लोच = 2
∆S
= पूर्ति में परिवर्तन
= S1 - S = S1 – 100 इकाई
∆P
= मूल्य में
परिवर्तन = P1 - P = 11 – 10 = 1 रु.
Es=ΔQΔP×PQEs=ΔQΔP×PQ
2=S1-1001×101002=S1−1001×10100
2=S1-100102=S1−10010
20
= S1 – 100
S1
= 20- 100
बढ़ी
हुई कीमत पर इसकी आपूर्ति की मात्रा (S1) = 120
34. कुल उत्पाद और सीमांत उत्पाद
वक्रों की सहायता से परिवर्तनीय अनुपात के नियम की व्याख्या करें।
उत्तर :- जब
उत्पादन का केवल एक साधन परिवर्तनशील होता है तथा अन्य साधन
स्थिर हो तो साधन को बढ़ाने से उत्पादन पहले बढ़ता है , उसके
बाद स्थिर अनुपात में बढ़ता है तथा अंत में घटने लगता है।
Y= f(V.F)
जहां Y= उत्पादन , V = परिवर्तनशील साधन , F = स्थिर साधन , f = फलन
कुल उत्पादन,औसत उत्पादन तथा सीमांत उत्पादन में संबंध
कुल उत्पादन (TP) :- उत्पत्ति के साधनो से उत्पादित की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल मात्रा की कुल उत्पादन कहा जाता है।
TP = ∑ MP
औसत उत्पादन (AP) :- परिवर्तन साधन के प्रति इकाई उत्पादन को औसत उत्पादन कहा जाता है।
AP = TPLTPL
सीमांत उत्पादन (MP) :- परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई और लगाने से कुल उत्पादन में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत उत्पादन कहते हैं।
MP = TPn – TPn-1 or , ΔTPΔLΔTPΔL
उत्पादन की अवस्था
प्रथम अवस्था में कुल उत्पादन बढ़ता
है और औसत उत्पादन भी बढ़ता है तथा सीमांत उत्पादन बढ़ता है।
इसलिए इस अवस्था को उत्पत्ति वृद्धि
नियम या लागत ह्रास नियम भी कहते हैं।
दूसरी अवस्था में कुल उत्पादन घटती हुई दर से बढ़ता है ;
औसत उत्पादन अधिकतम होकर धीमी गति
से बढ़ता है तथा सीमांत
उत्पादन तीव्र गति से घटता है और शून्य हो जाता है।
इसलिए इसे उत्पत्ति समता
नियम या लागत समता नियम कहते
हैं।
तीसरी अवस्था में कुल उत्पादन घटता है, औसत उत्पादन घटता है तथा सीमांत उत्पादन ऋणात्मक हो जाता है। इसलिए इसे उत्पत्ति ह्रास नियम या लागत वृद्धि नियम भी कहते हैं।
Class XI Economics
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Class XII ECONOMICS
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Jac Board Class 12 Economics (Science/Commerce) 2025 Answer key
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Class 12 ECONOMICS ARTS Jac Board 2024 Answer key
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Class XII Economics (Arts) Term-1 Answer Key 2022
Class XII Economics (Arts) Term-2 Answer Key 2022
Class XII Economics (Science/Commerce) Term 1 Exam.2022 Answer key
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