12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 पाठ-5 (ख) सत्य

12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 पाठ-5 (ख) सत्य

 12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 पाठ-5 (ख) सत्य

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Class - 12

Hindi Elective

पाठ-5 (ख) सत्य

पाठ परिचय

'सत्य' विष्णु खरे की एक सशक्त कविता है। कवि ने दो महत्वपूर्ण पौराणिक पात्रों युधिष्ठिर और विदुर के द्वारा सत्य की पहचान कराने की कोशिश की है। सत्य बाहर नहीं बल्कि व्यक्ति के भीतर विद्यमान होता है। हमारे दृढ़संकल्प शक्ति के द्वारा ही हम उसे प्राप्त कर सकते हैं। सत्य हमारी तरह- तरह से परीक्षा लेता है कि हम उसे पाने को कितने लालायित हैं। वह हमारे दृढ संकल्प को जानने के बाद ही हमें अपनी झलक देता है। यह हमारी आत्मा का अभिन्न अंग है। कवि का संदेश है कि हमें सत्य का दामन कभी-भी नहीं छोड़ना चाहिए। उसे पाने की ईमानदार कोशिश ही हमें उसके दर्शन करा सकती है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है? युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं - महाभारत के प्रसंग से सत्य के अर्थ खोलें।

उत्तर- विष्णु खरे जी ने अपनी कविता सत्य के माध्यम से महाभारत के पौराणिक संदर्भों और पात्रों द्वारा जीवन में सत्य के महत्व को स्पष्ट किया है। सत्य पुकारने से नहीं मिलता, उसके पीछे दूर तक जाना पड़ता है। तब हमारी अंतरात्मा में उसका प्रकाश भरता है, जो जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करता है। युधिष्ठिर विदुर को इसलिए पुकार रहे हैं, जिससे वे उनके प्रति हुए अन्याय को सुने और सत्य का पक्ष लें। धृतराष्ट्र ने पांडवों को खांडवप्रस्थ जैसे स्थान बंटवारे में दिया था। जहाँ जंगल था जो विद्रोहियों से भरा था। उसने समृद्ध और उपजाऊ देश अपने अधिकार में रखे थे। यह अन्याय ही तो था । विदुर ने इस अन्याय को चुपचाप देखा था। युधिष्ठिर विदुर को इस लिए पुकार रहे थे और जानना चाहते थे कि उन्होंने सत्य का साथ क्यों नहीं दिया। किन्तु विदुर ने कोई उत्तर नहीं दिया। सत्य पुकारने से नहीं मिलता यह हमसे दूर होता जाता है। सत्य हमारे, अन्तर्मन की शक्ति है जिसे पुकारने की जरूरत नहीं है, उसे प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं पाना होता है।

प्रश्न 2. 'सत्य का दिखना और ओझल होना' से कवि का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- कवि कहता है कि वर्तमान समय में तीव्रगति से होने वाले परिवर्तनों के कारण सत्य का कोई स्थिर स्वरूप नहीं रहा है। वह हमें कभी दिखता है तो कभी ओझल हो जाता है। इस कथन से कवि का तात्पर्य है कि आज के समाज में सत्य को पहचानना बहुत कठिन है। सत्य का कोई एक स्थिर रूप नहीं है, कोई एक पहचान नहीं है इसलिए कभी हमें सत्य प्रत्यक्ष दिखाई दे जाता है तो कभी हमें उसके प्रति संशय उत्पन्न हो जाता है। हर व्यक्ति सत्य के बारे में संशयग्रस्त है।

प्रश्न 3. सत्य और संकल्प के अंतर्संबंध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए?

उत्तर- सत्य और संकल्प के बीच पूरक संबंध है। सत्य को वही पा सकता है जो संकल्पवान एवं दृढ़ निश्चयी हो। सत्य के प्रति निष्ठा रखना और उस पर अडिग रहना अत्यंत कठिन होता है। मनुष्य का व्यक्तिगत स्वार्थ उसे सत्य के मार्ग से विचलित कर सकता है। जो व्यक्ति सत्य पर अडिग रहने का दृढ़ संकल्प करता है, वह किसी भी परिस्थिति में सत्य को नहीं छोड़ता । जिस प्रकार युधिष्ठिर ने तब तक विदुर का पीछा किया जब तक वे शमी वृक्ष के नीचे रुक न गए। जो व्यक्ति सत्य पर अडिग रहने का दृढ़ संकल्प करता है। वही सत्य का पालन कर सकता है। सत्य का स्वरूप बदलता रहता है अतः सत्य की सही पहचान संकल्प शक्ति से ही संभव हो पाती है। सत्य की प्राप्ति दृढ़ निश्चयी व्यक्ति को ही हो पाती है, कवि महाभारत के पात्रों के माध्यम से यही कहना चाहता है।

प्रश्न 4. 'युधिष्ठिर जैसा संकल्प' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- युधिष्ठिर जैसा संकल्प से तात्पर्य है सत्य के मार्ग पर अडिग होकर चलने की शक्ति । युधिष्टिर ने जय और पराजय की चिंता किए बिना अपने पूरे जीवन में सत्य का मार्ग चुना है। इसके लिए उन्होंने विदुर तक को अपने सम्मुख झुकने पर विवश कर दिया है।

अतः मनुष्य यदि युधिष्ठिर के समान दृढ़ संकल्प कर ले तो अपने सच्चे उद्देश्य को अवश्य प्राप्त कर लेगा।

प्रश्न 5. सत्य की पहचान हम कैसे करें? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- जिस समय और समाज में हम जी रहे हैं, उसमें सत्य की पहचान कठिन है। सत्य कभी दिखता है। कभी आँखों से ओझल रहता है। सत्य का कोई स्थिर रूप, आकार या पहचान नहीं है। सत्य की पहचान अस्थिर है। आवश्यक नहीं कि एक व्यक्ति का सत्य दूसरे का भी सत्य हो। बदलते परिवेश तथा मानवीय संबंधों में परिवर्तन से सत्य की पहचान परिवर्तित हो जाती है।

सत्य के प्रति संशय के विस्तार के बावजूद, यह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है। सत्य को पहचानने के लिए हमें अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनना होगा। सत्य, सूक्ष्म रूप से आत्मा में विद्यमान है। सत्य की पहचान अनुभूति से होती है। उसे आँखों से देखा नहीं जा सकता है।

प्रश्न 6. कविता में बार- बार प्रयुक्त 'हम' कौन हैं और उसकी चिन्ता क्या है?

उत्तर- कविता में बार-बार हम शब्द का प्रयोग कवि ने वर्तमान पीढ़ी के उन लोगों के लिए किया है जो इस संसार में हैं तथा जो सत्य की तलाश में है। उनकी चिंता यह है कि इस बदलते हालात में सत्य का स्वरूप स्थिर नहीं है, पल-पल परिवर्तित हो रहा है, तब सत्य की पहचान कैसे की जाए? सत्य को कैसे अपने अंतर में धारण किया जाए? आज के परिवेश में सत्य का रूप वस्तु स्थिति और घटनाओं, पात्रों के अनुसार बदलता रहता है। ऐसे में सत्य की पहचान कैसे की जाए और उसे अपनी अन्तरात्मा में कैसे धारण किया जाए, कवि यह समझ नहीं पा रहा है।

प्रश्न 7. सत्य की राह पर चल। अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़। इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए।

उत्तर- कवि ने इस कविता के माध्यम से सत्य के महत्व को प्रतिपादित किया है। सत्य कविता हमें सच्चाई की राह पर चलने की प्रेरणा देती है। सत्य पुकारने से नहीं मिलता, उसका पीछा करना पड़ता है, दृढ़ संकल्प और निश्चयात्मक बुद्धि से वह हमारी अन्तरात्मा की आवाज है। कविता मैं मिथकीय प्रतीकों के माध्यम से कवि ने बताया है कि यदि व्यक्ति अपना भला चाहता है तो उसे सत्य की राह पर निरंतर चलते रहना चाहिए। सत्य का निष्ठा से अनुगमन करते चलो, यह अवश्य प्राप्त होगा। भले ही बदलते समय में सत्य का रूप बदल रहा हो पर हमारी अन्तरात्मा के भीतर उसकी चमक जाग उठती है। सत्य एक प्रकाशपुंज है जो हमारे भीतर तब समा जाती है जब हम निरंतर सत्य की राह पर चलते है।

अतः यह कविता सत्य की राह पर चलने की उपादेयता को प्रमाणित करती है। साथ ही यह भी संदेश देती है कि यदि मनुष्य अपना भला चाहता है तो उसे सच्चाई को पकड़े रहना चाहिए।

परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'सत्य' कविता में प्रयुक्त मिथकीय पात्रों का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर- जब किन्हीं पौराणिक पात्रों को लेकर कोई युगसत्य वर्तमान सन्दर्भों में व्यक्त किया जाता है तो उसे मिथॅक काव्य कहा जाता है। इस कविता में प्रयुक्त मिथकीय पात्र महाभारत से लिए गए हैं। युधिष्ठिर आम आदमी के प्रतीक हैं और विदुर सत्य के प्रतीक है विदुर के पीछे पुकारते, भागते हुए युधिष्ठिर का तात्पर्य है कि आम आदमी सत्य को पुकारता रह जाता है। पर उसे प्राप्त नहीं कर पाता।

प्रश्न 2. निम्न पंक्तियों की व्याख्या करें-

कभी दिखता है सत्य

और कभी ओझल हो जाता है।

और हम कहते रह जाते हैं कि रुको यह हम हैं

उत्तर- प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे की कविता सत्य से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने युधिष्ठिर और विदुर के पौराणिक संदर्भ के माध्यम से यह बताया है कि आज सत्य कभी दिखाई देता है तो कभी ओझल हो जाता है और हम पुकारते रह जाते हैं।

व्याख्या- कवि कहता है कि हमें सत्य कभी दिखाई देता है। और कभी हमारी आंखों के आगे से ओझल हो जाता है। हम उससे यह कहते ही रह जाते हैं कि रुको, यह हम हैं अर्थात् सत्य का कोई एक स्थिर रूप, आकार या पहचान नहीं है। हम जब तक उसे अनुभूत कर पाते हैं, तब तक वह लुप्त हो जाता है और हम उसे रुकने के लिए पुकारते ही रह जाते हैं।

कवि ने यहाँ विदुर को सत्य रूप में प्रस्तुत किया है। धर्मराज उनसे सत्य के बारे में जिज्ञासा करतें हैं परन्तु यह समझ नहीं पाते कि विदुर स्वयं सत्य रूप हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. पुकारने पर सत्य दूर क्यों चला जाता है?

उत्तर- पुकारने पर सत्य का हमसे दूर जाने का कारण यह है कि वह यह जानना चाहता है कि हम उसके पीछे कितनी दूर तक जा सकते हैं। अर्थात् सत्य हमारे संकल्प की दृढ़ता की परीक्षा लेता है।

प्रश्न 2. वर्तमान समय में सत्य का स्वरूप कैसा है ?

उत्तर- कवि के अनुसार वर्तमान समय में सत्य का स्वरूप स्थिर नहीं है। वह अपना रूप और आकार बदलता रहता है। साथ ही सत्य पुकारने से नहीं मिलता वह हमसे दूर हटता जाता है। वह कभी दिखता है तो कभी आँखों से ओझल हो जाता है। केवल दृढ निश्चयी व्यक्ति ही सत्य को पा सकता है।

प्रश्न 3. सत्य की पहचान हम कैसे करे ? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- सत्य की पहचान करना वर्तमान समय में बहुत कठिन है। आज सत्य का स्वरूप समाज के साथ बदल रहा है सत्य को हम तभी पहचान पाते है जब हमारे मन में दृढ़ निश्चय हो । उसे अन्तरात्मा से ही पहचान पाना संभव है।

प्रश्न 4. खांडवप्रस्थ से लौटते हुए युधिष्ठिर ने क्या सोचा ?

उत्तर- खांडवप्रस्य से लौटते हुए युधिष्ठिर ने सोचा कि विदुर ने उनके प्रश्नों का उत्तर क्यों नहीं दिया? सम्भवतः वह चुप रहकर संकेत देना चाहते थे कि सत्य की समीक्षा व्यक्ति को स्वयं ही करनी होती है और स्वयं ही उसको प्राप्त करना होता है। कोई बाहरी व्यक्ति उसके सत्य के मार्ग का निर्देशन नहीं कर सकता।

प्रश्न 5. शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

यदि हम किसी तरह युधिष्ठिर जैसा संकल्प पा लेते हैं

तो एक दिन पता नहीं क्या सोच कर रुक ही जाता है सत्या।

उत्तर-

(क) भाषा सरल भावानुकूल तथा प्रवाहपूर्ण है। तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

(ख) पहली पंक्ति में उपमा अलंकार है।

(ग) मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

(घ) सत्य को मानवीय क्रियाएं करते हुए दिखाया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार है।

अति लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. युधिष्ठिर के पुकारने पर विदुर कहाँ चले गए?

उत्तर- युधिष्ठिर के पुकारने पर विदुर घने जंगल में चले गए।

प्रश्न 2. धर्म राज किसे कहा गया है?

उत्तर- युधिष्ठिर को धर्म राज कहा गया है।

प्रश्न 3. सत्य को पुकारने से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर- सत्य को पुकारने से कवि का तात्पर्य है अपने अंदर सत्य को धारण करने के लिए उसकी तलाश करना।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1 'सत्य' कविता के आधार पर बताइए कि विदुर किसका प्रतीक है?

(1) सत्य का

(2) असत्य का

(3) पाप का

(4) झूठ का

प्रश्न 2. पांडवों के माता का क्या नाम है?

(1) कोशल्या

(2) कुंती

(3) सीता

(4) द्रौपदी

प्रश्न 3. 'सत्य' कविता में किस युद्ध का वर्णन है,

(1) विश्व युद्ध

(2) महाभारत

(3) कलिंग युद्ध

(4) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 4. सत्य की प्राप्ति कैसी की जा सकती है ?

(1) दृढ़ संकल्प होकर

(2) अस्थायी रहकर

(3) (1) और (2) दोनों

(4) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 5. 'सत्य' कविता के कवि कौन है?

(1) रघुवीर सहाय

(2) तुलसी दास

(3) विष्णु खरे

(4) जयशंकर प्रसाद

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विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

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