प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11
भूगोल (Geography)
6. भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and their Evolution)
पाठ के मुख्य बिंदु
☞ प्रवाहित जल, भूमिगत जल, वायु, हिमनद तथा तरंग अपरदन के कारक माने जाते हैं।
☞ भू-आकृति का सामान्य अर्थ छोटे से मध्यम आकार के भूखंड से
होता है।
☞ भू- दृश्य भूतल के विस्तृत भाग
है, जो बहुत सी सम्बंधित भू-आकृितयों से मिलकर बनते है।
☞ कोई स्थलरुप विकास की अवस्थाओं
से गुजरता है, जिसकी तुलना जीवन की अवस्थाओं- युवावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा
वृद्धावस्था से की जा सकती हैं।
☞ भू-आकृतिक कारकों के अपरदन व
निक्षेपण के फलस्वरूप धरातल पर दो प्रकार के स्थलरुपों का निर्माण होता है।
☞ कुछ अन्य स्वतंत्र नियंत्रक
जैसे- समुद्रतल का स्थायित्व, भूतल का विवर्तनिक स्वरुप तथा जलवायु आदि स्थलरुपों
के विकास को नियंत्रित करता है।
☞ अपरदन के मुख्य कारक एवं उनसे
निर्मित कलाकृतियाँ-
A. प्रवाहित जल / नदी
नदी अपने जीवन काल प्रवाह मार्ग
में तीन अवस्थाओं से गुजरती है, जो निम्न है :-
1. युवावस्था
2. प्रौढावस्था
3. वृद्धावस्था
नदी इन तीन अवस्थाओं में अपरदन एवं
निक्षेपण का कार्य विभिन्न स्थलरुप का निर्माण करती है। करते हुए
☞ अपरदित स्थलरुप :-
i. 'v' (वी) आकार की घाटी।
ii. गॉर्ज
iii. कैनियन
iv. जल प्रवाह
v. जलगर्तिका
vi. अवनमन कुंड
vii. अधःकर्तित विसर्प
viii. नदी वेदिकाएँ
ix. समप्राय मैदान
x. मोनाड्नोक
☞ निक्षेपित स्थलरुप :-
i. जलोढ़ पंख
ii. जलोद शंक
iii. प्राकृतिक तटबंध
iv. बाढ़ का मैदान
v.
विसर्प, रोधिका या नदी वेदिका
vi. नदी विसर्प
vii. गुम्फित नदी
viii. डेल्टा
☞ गॉर्ज एक
संकरी घाटी है जिसके दोनों पार्श्व तीव्र ढाल के होते हैं।
☞ वास्तव में कैनियन, गॉर्ज का ही
एक दूसरा रूप है। चट्टानों के प्रकार और स्वरुप पर घाटी का प्रकार निर्भर करता है।
उदाहरणार्थ कैनियन का निर्माण प्रायः अवसादी चट्टानों के क्षैतिज संस्तरण में पाए
जाने से होता है तथा गॉर्ज कठोर चट्टानों में बनता है।
☞ जलगर्तिका :- पहाड़ी क्षेत्रों
में नदी तल में अपरदित छोटे चट्टानी टुकड़े छोटे गर्तों में फंसकर वृत्ताकार रूप
में घूमते हैं, जिन्हें जलगर्तिका कहते हैं।
☞ अवनमित कुंड :- जलप्रपात के तल में एक गहरे व बड़े
जलगर्तिका का निर्माण होता है, जिसे अवनमित कुंड कहते हैं।
☞ अधःकर्तित विसर्प या गभीरीभूत
विसर्प :- कठोर चट्टानों में गहरे कटे हुए विस्तृत विसर्प को अधःकर्तित विसर्प या
गभीरीभूत विसर्प कहा जाता है।
☞ बाढ़ मैदानों में नदी द्वारा
अपरदन से कई वेदिकाएँ बन जाती है जिसे नदी वेदिका कहा जाता है।
☞ नदी के दोनों ओर समान ऊँचाई वाली
वेदिका युग्म वेदिकाएँ कहलाती है।
☞ जब नदी के केवल एक तट पर
वेदिकाएँ मिलती है और दूसरे तरफ इनकी अनुपस्थिति या दूसरे पार्श्व पर इनकी ऊँचाई
पहले पार्श्व से बिल्कुल भिन्न हो तो ऐसी वेदिकाएँ को अयुग्मित वेदिकाएँ कहते हैं।
☞ नदी वेदिकाएँ निम्न कारणों से
निर्मित होती है।
i. जल प्रवाह का कम होना
ii. जलवायु परिवर्तन के कारण जलीय क्षेत्र में परिवर्तन
iii. विवर्तनिकी कारणों से
भू-उत्थान
iv. अगर नदियाँ तट के निकट होती है
तो समुद्र तल में बदलाव आदि।
☞ जलोढ़ पंख :- जब नदी उच्च स्थलों से बहती हुई गिरिपद व मंद ढाल के मैदानों में प्रवेश करती
है, तो जलोढ़ पंख का निर्माण होता है।
☞ मंद ढालों पर यह नदियाँ भार वहन करने
में असमर्थ होती है। तो यह शंकु के आकार में निक्षेपित हो जाता है, जिसे जलोढ़ पंख
कहते हैं।
☞ जो नदियाँ जलोढ़ पंखों से बहती है,
वे प्रायः अपने वास्तविक प्रवाह- मार्ग में बहत दूर तक नहीं बहती बल्कि कई शाखाओं
में बॅट जाती है, जिन्हें जल वितरिकाएँ कहते हैं।
☞ डेल्टा :- नदी अपने प्रवाह मार्ग से लाये गये सभी अवसाद भार को समुद्र के किनारे
त्रिभुजाकार निक्षेपण होता है, जिसे डेल्टा कहते हैं।
☞ डेल्टा का निक्षेप व्यवस्थित होता
है तथा इनका जलोढ़ स्तरित होता है अर्थात मोटे पदार्थ तट के निकट व बारीक कण जैसे
चीका मिटटी, गाद आदि सागर में दूर तक जमा हो जाता है। जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता
है, नदी वितरिकाओं की लम्बाई बढ़ती जाती है।
☞ बाढ़ का मैदान :- जब बाढ़ आने पर पानी तटों पर फैलता
है तो ये अपने साथ बहने वाली बारीक पदार्थ जैसे रेत, चीका मिटटी और गाद का जमाव तट
पर करती है अतः इससे ही जो मैदान बनता है, उसे बाढ़ का मैदान कहते हैं।
☞ नदियाँ मैदानी भागो में अक्सर
मार्ग बदल लेती है, जिससे नदियों के कई भाग नदी से अलग हो जाती है बाद में इस कटे
हुए या छूटे हुए भागो में स्थूल पदार्थों का जमाव होता है अतः ऐसे बौढ़ मैदान, जो
डेल्टाओं में बनते है, उन्हें डेल्टा मैदान कहते हैं।
☞ प्राकृतिक तटबंध :- बाढ़ के दौरान जब नदी का जल तटों
पर फैलता है इसके साथ मलवा का भी फैलाव होता है किन्तु जल का वेग कम होने पर बड़े
आकार का मलबा नदी के पार्श्व तटों पर लम्बे कटको के रूप में जमा हो जाती है,
जिन्हें ही प्राकृतिक तटबंध कहते है।
☞ नदी रोधिका :- नदी रोधिकाएं नदी के जल द्वारा
लाये गए तलछटो के नदी किनारों पर निक्षेपण के कारण बनी है।
☞ नदी विसर्प :- बाढ़ व डेल्टाई मैदान में नदियों
लूप या सांप के जैसा प्रारूप बनाती हुई आगे बढ़ती है, जिसे नदी विसर्प कहते हैं।
नदियों के विसर्प में उत्तल
किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते है और अवतल किनारों पर अधोमुखी कटाव हो होते हैं।
उत्तल किनारों का ढाल मंद होता है
और ये स्कंध ढाल कहलाते हैं।
☞ गोखुर झील :-
विसर्पों के गहरे छल्ले के आकार
में विकसित हो जाने पर ये अंदरूनी भागों पर अपरदन के कारण कट जाते हैं और गोखुर
झील बन जाते हैं।
गुम्फित नदी प्रारूप के लिए तटों
पर अपरदन व निक्षेपण आवश्यक है।
नदी अपरदन के द्वारा निर्मित समतल
भू-भाग मैदान समप्राय मैदान कहलाता है।
समप्राय मैदान के क्षेत्र में
यत्र-तत्र अवरोधी चट्टानों के अवशेष दिखाई देते हैं जिन्हें मोनाइनोक कहते हैं।
B. भौम-जल
☞ किसी भी चुना-पत्थर या डोलोमाईट चट्टानों के क्षेत्र में भौम
जल द्वारा घुलनक्रिया और उसके निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को कार्स्ट
स्थलाकृति का नाम दिया गया है।
☞ कार्स्ट क्षेत्रो में बनने वाली स्थलाकृतियों की दो प्रक्रियायें
घोलीकरण व अवक्षेपण है।
☞ कार्स्ट स्थलाकृतियों की विशेषताएं अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक
स्थलरुप है।
☞ अपरदित स्थलरुप :-
भौम जल के अपरदन से निर्मित स्थलरूपों में निम्न स्थलरुप सम्मिलित
है :-
i. कुंड
ii. घोल रंध्रों
iii. लैपिज
iv. चुना-पत्थर चबूतरे
☞ घोलरंध्रः- एक प्रकार के छिद्र होते हैं, जो ऊपर से वृताकार
व नीचे से कीप की आकृति के होते हैं और इनका क्षेत्रीय विस्तार कुछ वर्गमीटर से हेक्टेयर
तक तथा गहराई आधा मीटर से 30 मीटर या उससे अधिक होती है। घोलरंध्र के विलय या ध्वस्त
होने पर विलयन रंध्र बनते है।
☞ घोलरंध्रों के नीचे बनी कंदराओं की छत ध्वस्त हो जाये तो बड़े
छिद्र ध्वस्त या निपात रंध्र के नाम से जाने जाते हैं।
☞ ध्वस्त घोलरंधों को डोलाइन भी कहा जाता है। जब घोल रंध्रो व
डोलाइन इन कंदराओं के छत के गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस में मिल जाते
हैं तो लम्बी, तंग तथा विस्तृत खाइयां बनाती है। जिन्हें घाटी रंध्र या युवाला कहते
हैं। इस क्षेत्र के चुना-पत्थर चट्टानों के अधिकतर भाग इन गर्तों व खाइयों के हवाले
हो जाता है और पुरे क्षेत्र में अत्यधिक अनियमित पतले व नुकीले कटक ऑदि बच जाते है
जिन्हें लेपीज कहते हैं।
☞ इंग्लैंड में क्लिंट, फ्रांस में ग्रईक तथा बोगर, जर्मनी में
केरेन, सर्बिया में बोगाज आदि नाम से जाना जाता है।
कन्दराएँ :-
तल संस्तरण के सहारे चुना चट्टानें घुलकर लम्बे एवं तंग विस्तृत
रिक्त स्थान बनाते हैं, जिन्हें कन्दराएँ कहा जाता है। ऐसी कन्दराएँ जिनके दोनों सिरे
खुले हों, उन्हें सुरंग कहते हैं।
निक्षेपित स्थलरुप :-
भौम जल के निक्षेपित स्थलरुपों में मुख्यतः स्टैलेक्टाइट, स्टैलेग्माइट
और स्तम्भ सम्मिलित किये जाते हैं।
☞ स्टैलेक्टाइट :- विभिन्न मोटाईयों के लटकते हुए हिम स्तम्भ जैसे
होते हैं। प्रायः ये आधार पर या कन्दरा की छत के पास मोटे होते हैं और अंत के छोर पर
पतले हो जाते हैं।
☞ स्टैलेग्माइट :- ये कन्दराओं के फर्श से ऊपर की तरफ बढ़ते हैं।
वास्तव में ये कंदराओं की छत से धरातल पर टपकने वाले चुना मिश्रित जल से बने हैं।
☞ विभिन्न मोटाई के स्टैलेक्टाइट तथा स्टैलेग्माइट टूट के
मिलने से स्तम्भ और कन्दरा स्तम्भ बनते हैं।
C. हिमनद
☞ पृथ्वी पर परत के रूप में हिम प्रवाह या पर्वतीय ढालो र्स
घाटियों में रैखिक प्रवाह के रूप में बहते ही संहति को हिमनद कहते हैं।
☞ हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर
तक प्रवाहित हो सकते हैं।
☞ हिमनद मुख्यतः गुरुत्व बल के कारण गतिमान होते हैं।
☞ भागीरथी नदी का उद्गम गंगोत्री हिमनद का अग्रभाग हैं।
☞ वास्तव में अलकनंदा नदी का उद्गम अलकापुरी हिमनद से है।
देव प्रयाग के निकट अलकनंदा व भागीरथी के मिलने पर यहाँ से इसे गंगा के नाम से
जाना जाता है। हिमनद के अपरदन और निक्षेपण से निर्मित स्थलरुप निम्न है :-
☞ अपरदित स्थलरूप :-
i. सर्क या सर्क टार्न झील।
ii.
हार्न या गिरीश्रृंग
iii. अरेत (तीक्ष्ण कटक)
iv. हिमानी घाटी या गर्त
v. लटकती घाटी
vi. फियोर्ड
☞ निक्षेपित स्थलरुप :-
i. हिमोढ़
ii. एस्कर
iii. हिमानी धौत मैदान
iv. ड्रमलिन
☞ सर्क हिमनद घाटियों के शीर्ष पर पाए जाते हैं सर्क लम्बे या
चौड़े गर्त है जिनकी दीवार तीव्र ढाल वाली सीधी या अवतल होती है।
☞ हिमनद के पिघलने पर जल से भरी झील सर्क झील या टार्न झील
कहलाते हैं।
☞ सर्क के शीर्ष पर अपरदन होने से हार्न निर्मित होते हैं।
लगातार अपरदन से सर्क के दोनों तरफ की दीवारों तंग हो जाती है और इसका आकार कंघी
या आरी के समान कटको के रूप में हो जाता है जिन्हें अरेत कहते हैं।
☞ बहुत गहरी हिमनद गर्ते जिनमे समुद्री जल भर जाता है तथा जो
समुद्री तटरेखा पर होती है उन्हें फियोर्ड कहते है।
☞ बर्फ पिघलने के पश्चात् एक वक्राकार कटक को एस्कर कहते हैं।
☞ कुछ मात्रा में शैल मलबा पिघले जल से बनी सरिता में
प्रवाहित होकर निक्षेपित होता है, ऐसे हिमनदी जलोढ़ निक्षेप हिमानी धौत कहलाते
हैं।
☞ ड्रमलिन हिमनद मृतिका के अंडाकार समतल कटकनुमा स्थलरुप है
जिससे रेत व बजरी के ढेर होते हैं।
☞ ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग स्टोस कहलाता है। ड्रमलिन
हिमनद के प्रवाह दिशा को बताते हैं।
D. तरंग व धाराएँ
सागरीय या तटीय स्थलाकृति तरंगो के कार्य के अलावे कुछ अन्य
कारको पर भी निर्भर करते है :
i. स्थल व समुद्री तल की बनावट।
ii. समुर्दोन्मुख उन्मग्न तट या जलमग्न तट।
समुद्री जल स्तर को स्थायी मानते हुए तटीय स्थलरूपों के
विकास को समझने के लिए तटों को दो भागो में वर्गीकृत किया जाता है :-
i. ऊँचे, चट्टानी तट या जल मग्नतट।
ii. निम्न समतल व मंद ढाल के अवसादी तट (उन्मग्न तट)।
☞ तट रेखा का अत्यधिक अवनमन होने से किनारे के स्थलभाग जल
मग्न हो जाते हैं जहाँ फियोर्ड बनते हैं।
ऊँचे चट्टानी तट :-
ऊँचे चट्टानी तटों के सहारे तरंगें अवनमित होकर धरातल पर
अत्यधिक बल के साथ प्रहार करती है जिससे पहाड़ी पार्श्व भृगु शीघ्रता से पीछे हटते
हैं और समुद्री भृग के सम्मुख तरंग सागरीय किनारे की अनिवार्यताएं को कम का देती
है।
जैसे ही तटों के साथ अपरदन आरम्भ होता है वेलान्चली प्रवाह
व तरंगें इस अपरदित पदार्थ को सागरीय किनारों पर पुलिन और रोधिकाओं के रूप में
निक्षेपित करती है।
☞ रोधिका :- सागरीय तली पर सागरीय लहरों तथा धाराओं द्वारा
बालू और बजरी निर्मित जलमग्न आकृतियाँ है।
☞ रोध :- जब रोधिकाएं जल के ऊपर दिखाई देती है, तो इन्हें रोध
कहा जाता है।
☞ लैगुन :- जब रोधिका तथा स्पिट किसी खाड़ी के मुख पर निर्मित
होकर इसके मार्ग को अवरुद्ध कर देते हैं तब इससे लैगून निर्मित होते हैं।
☞ ऐसे तट अपरदन प्रमुख क्रिया है, प्रमुख वहाँ प्रायः दो
मुख्य आकृतियाँ - तरंग घर्षित भृगु व वेदिकाएँ पाई जाती है।
☞ सभी समुद्री भृगु के तलहट्टी जो शैल मलबे से ढँका होता है,
कि ऊँचाई औसत से अधिक जिसे ही तरंग घर्षित वेदिकाएँ कहते हैं।
☞ भृगु के निवर्तन से चट्टानों के कुछ अवशेष तटों पर अलग-अलग
छुट जाते हैं। यही अलग-अलग चट्टानें जो कभी भृगु के भाग थे, समुद्री स्टैंक कहलाते
हैं।
निक्षेपित स्थलरूप :-
☞ पुलिन :- पुलिन अस्थाई स्थलाकृतियां है, यह तटों की प्रमुख
विशेषता है।
☞ टिब्बे :- पुलिन के ठीक पीछे पुलिन ताल से उठाई गई रेत
टिब्बे के रूप में निक्षेपित होती है
☞ अपतट रोधिका: समुद्री तट पर अपतट के सामानांतर पाई जाने
वाली रेत और शिन्गिल (छोटे कंकड़-पत्थर) के कटक को अपतट रोधिका कहलाती है।
☞ रोध-रोधिका: ऐसी अपतटीय रोधिका जो रेत के अधिक निक्षेपण से
उपर दिखाई पड़ती है उसे रोध-रोधिका कहते हैं।
☞ स्पिट :- जब रोधिकाओं का एक सिरा खाड़ी से जुड़ जाता है, तो
इन्हें स्पिट कहते हैं।
☞ शीर्ष स्थल से एक सिरा जुड़ने पर भी स्पिट विकसित होती है।
E. पवन (wind)
☞ उष्ण मरुस्थलों के दो प्रभावशाली अनाच्छादनात्मक कारको में
पवन एक महत्वपूर्ण अपरदन का कारक है।
☞ पवन अपवाहन घर्षण आदि द्वारा अपरदन करती है।
☞ अपवाहन में पवन धरातल से चट्टानों के छोटे कण व धुल उठाती
है।
☞ वायु की परिवहन की प्रक्रिया में रेत व बजरी आदि औजारों की
तरह धरातलीय चट्टानों पर चोट पहुँचाकर घर्षण करती है।
अपरदनात्मक स्थलरुप
☞ पेडीमेंट: पर्वतों के पाद पर मलबे रहित अथवा मलबे सहित मंद
ढाल वाली चट्टानी तल पेडीमेंट कहलाते हैं।
☞ पेडीमेंट का निर्माण पर्वतों के अग्रभाग में मुख्यतः सरिता
के क्षैतिज अपरदन व चादर बाढ़ दोनों के संयुक्त अपरदन से होता है।
☞ पेडीप्लेन व पदस्थली- मरुस्थल प्रदेशो में एक उच्च धरातल
आकृतिविहीन मैदान में परिवर्तित हो जाता है, जिसे पेडीप्लॅन / पदस्थली कहते हैं।
☞ इन्सेलबर्ग :- सामानांतर ढाल निवर्तन द्वारा पर्वतों के
अग्रभाग को अपरदित करते हुए पेडीमेंट आगे बढ़ते हैं तथा पर्वत घिसते हुए पीछे हटते
हैं, और धीरे-धीरे पर्वतों का अपरदन हो जाता है, जिसे ही इन्सेलबर्ग बनते हैं।
☞ प्लाया:- पर्वतों व पहाडियों से घिरे बेसिनो में अपवाह
मुख्यतः बेसिन के मध्य में होता है तथा बेसिन के किनारों से लगातार लाये हुए अवसाद
जमाव के कारण बेसिन के मध्य में लगभग समतल मैदान की रचना हो जाती है पर्याप्त जल
उपलब्ध होने पर यह मैदान उथले जल क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है, इस प्रकार की
उथली जल झीलें ही प्लाया कहलाती है।
☞ ऐसे प्लाया मैदान जो लवणों से भरे हो कल्लर भूमि या क्षारीय
क्षेत्र कहलाते हैं।
☞ अपवाहन गर्त : पवनो के एक ही दिशा में स्थायी प्रवाह से
चट्टानों के अपक्षय जनित पदार्थों या उथल गर्त बनते हैं, जिन्हें अपवाहन गर्त कहते
है।
☞ वात गर्त : तीव्र वेग पवन के साथ उड़ने वाले धूलकण अपघर्षण
से चट्टानी तल पर पहले उथले गर्त जिन्हें वातगर्त कहते हैं।
☞ गुहा :- कुछ वात-गर्त गहरे और विस्तृत हो जाते है, जिन्हें
गुहा कहते हैं।
☞ छत्रक :- मरुस्थलों में अधिकतर चट्टानें पवन अपवाहन
व अपघर्षण द्वारा शीघ्रता से कट जाती है और कुछ प्रतिरोधी
चट्टानों के घिसे हुए अवशेष जिनके आधार पतले व उपरी भाग विस्तृत और गोल, टोपी के
आकार के होते हैं, छत्रक के आकार में पाए जाते हैं।
☞ कभी-कभी ये प्रतिरोधी चट्टानें मेज सामान पीठिका के भांति
होती है।
निक्षेपित स्थलरुप
☞ सल्टेशन :- पवनों के वेग के अनुरूप मोटे आकार के कण धरातल
के साथ घर्षण करते हुए चले आते है और अपने टकराने से अन्य कणों को ढौला कर देते
हैं जिसे सल्टेशन कहते हैं।
☞ बालू टिब्बों के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान उष्ण मरुस्थल
है।
☞ बरखान :- नव चंद्राकार टिब्बे जिनकी भुजाएं पवनों की दिशा
में निकली होती है, बरखान कहलाते हैं।
☞ परवलिक :- बालका टिब्बों का निर्माण वैसे रेतीले धरातल में
होते हैं जहाँ आंशिक रूप से वनस्पति भी पाई जाती है।
☞ सीफ बरखान की ही भांति होते हैं।
☞ जब रेत की आपूर्ति कम तथा पवनों की दिशा स्थायी
रहे तो अनुदैर्ध्य टिब्बे बनते हैं।
☞ अनुप्रस्थ टिब्बे प्रचलित पवनों के दिशा के समकोण पर बनते
हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. एक स्थलरूप विकास की कितनी अवस्थाओं से
गुजर सकता है?
a. एक
b. दो
c. तीन
d. चार
2. भूतल
के इतिहास का पुनः अध्ययन है, जिसमें इसके आकार, पदार्थों व प्रक्रियाओं जिनसे यह
भूतल निर्मित है, का अध्ययन किया जाता है, कहलाता है-
a. भू-आकृति विज्ञान
b. भू-आकारिकी
c. भू-विज्ञान
d. भू-तल विज्ञान
3. आर्द्र प्रदेशो में, जहाँ अत्यधिक वर्षा
होती है, निम्नीकरण के लिए उतरदायी सबसे महत्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक कौन-सी है?
a. प्रवाहित जल
b. पवन प्रवाह
c. घोलिकरण
d. विवर्तनिकी क्रिया
4. पहाड़ियाँ और घाटियाँ समतल मैदानों में
किन कारणों से परिवर्तित हो जाते हैं?
a . नदियों का अधोमुखी कटाव के कारण
b. नदियों के पार्श्व अपरदन के कारण
c. उपरोक्त में से दोनों
d. उपरोक्त में से कोई नहीं
5. मोनाड्नोक का सम्बन्ध है-
a. पेनिप्लैन से
b. पैडीप्लेन से
c. जलप्रपात से
d. क्षिप्रिकाएं से
6. इनमे से कौन-सी स्थलाकृति नदियों के निक्षेपण
कार्य से निर्मित होती है?
a. गोखुर झील
b. V- आकार की घाटी
c. जलप्रपात
d. U- आकार की घाटी
7. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
a. प्रवाहित जल के युवावस्था में नदियों की संख्या
बहुत कम होती है।
b. प्रवाहित जल के युवाअवस्था में नदियों की संख्या बहुत अधिक
होती है।
c. प्रवाहितजल के अपरदन क्रिया से नदी विसर्प का निर्माण होता
है।
d. बाढ़ के मैदानों में नदियाँ एक धारा में प्रवाहित होती है।
8. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
a. गार्ज कठोर चट्टानों में बनता है।
b. कैनियन का निर्माण कठोर आग्नेय चट्टानों वाले भागों में होता
है।
c. नदी के युवाअवस्था में गार्ज एवं कैनियन नहीं बनते हैं।
d. प्राकृतिक तटबंध एवं गोखुर झील नदी के प्रौढावस्था में बनते
हैं।
9. इनमें से कौन चुना पत्थर के अपरदन क्रिया से
निर्मित स्थलाकृति है?
a. विलयन रंध्र (swallow holes)
b. भू-स्तम्भ (pillar)
c. लैपिज (lapies)
d. a तथा c दोनों
10. डोलाइन (Doline) किस क्षेत्रों में निर्मित
स्थलाकृति है?
a. चुना पत्थर क्षेत्रों में
b. हिमनदीय क्षेत्रों में
c. शुष्क क्षेत्रों में
d. a तथा b दोनों क्षेत्रों में
11. निम्नलिखित में से कौन सही सुमेलित हैं-
a. सर्क हिमनदीय अपरदन
b. स्टैलेक्टाइट हिमनदीय निक्षेपण
c. कन्दराएँ पवन अपरदन
d. युवाला नदी अपरदन
12. इनमे से कौन सही सुमेलित नहीं है-
a. गोलाश्मी मृतिका के जमाव की लम्बी कटके हिमोढ़
b. बर्फ पिघलने के बाद एक वक्राकार कटक-एस्कर
c. समुद्री तटरेखा पर स्थित बहुत गहरी हिमनद गर्ते जिसमे समुद्री
जल भर जाता है- हिमानी धौत
d. कंघी या आरी के सामान कटक-अरेत
13. "स्टोस" किससे सम्बंधित है?
a. ड्रमलिन
b. पुलिन
c. भृगु
d. रोध
14. वेलांचली प्रवाह व तरंगे सागरीय अपरदित पदार्थ
को किस रूप में निक्षेपित करती है?
a. पुलिन और रोधिकाओं के रूप में
b. कन्दराएँ के रूप में
c. लैगून के रूप में
d. स्टैक के रूप में
15. इनमें से कौन पवन अपरदन से निर्मित स्थलाकृति
है?
a. पेडीमेंट (Pediment)
b. बरखान
c. u-आकार की घाटी
d. बालू टिब्बा
16. स्थलरुप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव
प्रमुख होता है?
a. तरुणावास्था
b. प्रथम प्रौढावस्था
c. अंतिम प्रौढ़ावस्था
d. वृद्धावस्था
17. एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े
ढाल होते हैं, किस नाम से जानी जाती है?
a. U आकार की घाटी
b. अंधी घाटी
c. गार्ज
d. कैनियन
18. निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय
प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है?
a. आर्द्र प्रदेश
b. शुष्क प्रदेश
c. चुना-पत्थर प्रदेश
d. हिमनद प्रदेश
19. निम्न में से कौन-सा वक्तव्य लैपिज शब्द को
परिभाषित करता है?
a. छोटे से माध्यम आकार के उथले गर्त
b. ऐसे स्थलरुप जिनके उपरी मुख वृताकार व नीचे से कीप के आकार
के होते हैं।
c. ऐसे स्थलरुप जो धरातल से जल के टपकने से बनते है।
d. अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खांच हो।
20. गहरे, लम्बे व विस्तृत गर्त या बेसिन शीर्ष
दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
a. सर्क
b. पाश्विक हिमोद
c. घाटी हिमनद
d. एस्कर
21. अपरदन का कौन-सा साधन यारडांग का निर्माण
करता है?
a. प्रवाहित जल
b. वायु
c. हिमनद
d. भूमिगत जल
22. चुनापत्थर का वह स्तंभ, जो गुफा की छत से
नीचे लटकता है, क्या कहलाता है?
a. पोल्जे
b. स्टेलेटाईट
c. स्टेलेग्माईट
d. उपर्युक्त में से कोई नहीं
23. एक संकरी, गहरी तथा तीव्र ढाल युक्त किनारों
वाली नदी घाटी को किस नाम से जाना जाता है?
a. ब्लफ
b. कैनियन
c. रिफ्ट घाटी
d. इनमे से सभी
24. जल के सामानांतर पर्वत श्रृंखलाओं के डूबने
से जो समुद्र तट बनता है उसे कहते हैं-
a. डालमेसियन तट
b. फियोर्ड तट
c. रिया तट
d. अधः कर्तित तट
25. इन्सेलबर्ग का निर्माण किस प्रक्रम द्वारा
किया जाता है?
a. हिमानी
b. नदी
c. पवन
d. भूमिगत जल
26. संयुक्त राज्य अमेरिका में दक्षिण कैलिफोर्निया
में स्थित 'मृत घाटी' (डेथ वैली) उदहारण है? निम्नलिखित में से किसका
a. अपनतीय घाटी का
b. अभिनतीय घाटी का
c. पूर्ववर्ती घाटी का
d. रिफ्ट घाटी का
27. प्लाया किन क्षेत्रों की प्रमुख स्थलाकृति
है?
a. मरुभूमियों की
b. हिमनदीय क्षेत्रों की
c. बाढ़ के मैदानों की
d. उपरोक्त में से किसी की नहीं
28. कल्लर भूमि या क्षारीय क्षेत्र इनमे से किससे
सम्बन्धित होते हैं?
a. प्लाया से
b. पीठिका शैल से
c. पेडीमेंट से
d. अपवाहन गर्त से
29. इनमें से कौन सही सुमेलित हैं?
a. प्लाया- मरुभूमियों में वह समतल क्षेत्र, जहाँ
पर्याप्त जल उपलब्ध हो जाते हैं, उथली जल झीलें बन जाती है
b. छत्रक-पवनों के एक ही दिशा में स्थायी प्रवाह से चट्टानों
के अपक्षय जनित पदार्थ या असंगठित मिट्टी।
c. गुहा- मरुस्थलों में अधिकांश चट्टानें पवन अपवाहन व अपघर्षण
द्वारा शीघ्रता से कट जाती है और कुछ प्रतिरोधी चट्टानों के आधार पतले, व ऊपरी भाग
विस्तृत और गोल टोपी के आकार के होते हैं।
d. पदस्थली समुद्री अपतट पर, तट के समानांतर पाई जाने वाली रेत
और सिंगिल की कटक अपतट सामानांतर पाई जाने वाली रेत।
30. इनमे से कौन-सा कथन स्पिट के बारे में सही
है?
a. उबड़ खाबड़ तटों पर भी ये टुकड़ों में पाई जाती है।
b. ऐसी रोधिकायें जिनका एक भाग खाड़ी के शीर्षस्थल
से जुड़ा हो।
c. अलग-थलग प्रतिरोधी चट्टानें जो कभी भृगु के भाग थे।
d. इनमे से सभी।
31. निम्नलिखित में से किस आकृति का संबंध नदी
कार्य से नहीं है?
a. जलप्रपात
b. गोखुर झील
c. बरखान
d. V आकार की घाटी
32. हिमानी अपरदन से निर्मित आकृति निम्नलिखित
में से कौन है?
a. ड्रमलिन
b. नूनाटक
c. मोरेन
d. कंकतगिरी
33. बरखान का निर्माण निम्नलिखित में से किस संबंध
है?
a. नदी
b. पवन
c. भौमजल
d. हिमनद
34. गोखुर झीलों का निर्माण होता है -
a. हिमनद द्वारा पहाड़ी ढालों पर
b. नदियों द्वारा वृद्धावस्था में
c. हिमनद की समाप्ति पर
d. नदियों द्वारा युवा अवस्था में
35. गॉर्ज का निर्माण होता है -
a. अवसादी क्षैतिज चट्टानों में
b. कठोर चट्टानों में
c. छिद्र युक्त चट्टानों में
d. उपरोक्त सभी स्थितियों में
36. निम्नलिखित में से कौन-सी भू-आकृति हिमनद
के कार्य से संबंधित है?
a. जलप्रपात
b. सर्क
c. टिब्बा
d. रोधिका
37. निम्नलिखित में से कौन पवन अपरदन द्वारा नहीं
बनता?
a. गारा
b. ज्यूगेन
c. भू-स्तंभ
d. बालुका स्तूप
38. चट्टानों का टूट कर अपने स्थान पर ही पड़े
रहना क्या कहलाता है?
a. अपक्षय
b. अनाच्छादन
c. अपरदन
d. अनावृतिकरण
39. गुफाओं की रचना किस क्रिया द्वारा होती है?
a. ऑक्सीकरण
b. कार्बोनेटीकरण
c. जलयोजन
d. घोलीकरण
40. किस हिमानीकृत भू आकृति में तोड़ने की प्रक्रिया
सम्मिलित होती है?
a. भेड़ पीठ चट्टान
b. एस्कर
c. ड्रमलिन
d. श्रृंग व पूच्छ
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. भूआकृति किसे कहते है?
उत्तरः साधारण शब्दों में छोटे से मध्यम आकार वाले भूखंड को
ही भूआकृति कहते हैं।
2. भूआकृतियों के विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तरः भूआकृतियों के विकास का अर्थ भू-तल के एक भाग मैं एक
भू-आकृति का दूसरी भू-आकृति में या एक भू- रूप में परिवर्तित होने की आकृति के एक
रूप से दुसरे रूप अवस्थाओं से है।
3. मोनाड्नोक किसे कहते हैं?
उत्तरः नदी अपरदन से निर्मित समतल उच्चावच वाले क्षेत्रों
में मिलने वाले अवरोधी चट्टानों के अवशेष मोनाइनोक कहलाते हैं।
4. जलगर्तिका किसे कहते है?
उत्तरः पहाड़ी क्षेत्रों में नदी तल में अपरदित छोटे टुकड़े
छोटे गर्तों में फंसकर वृताकार रूप में घूमते हैं, जिन्हें जलगर्तिका कहते हैं।
5. अधःकर्तित विसर्प या गंभीरभूत विसर्प किसे
कहा जाता है?
उत्तरः नदियाँ अपने प्रवाह मार्ग में मंद ढाल एवं कठोर
चट्टानों वाले भाग से गुजरते समय गहरे कटे हुए और विस्तृत विसर्प का निमौष
निमर्माण करती है, इन विसर्पों को ही अधः कर्तित विसर्प या गभीरभूत कहा जाता है।
6. जलोढ़ पंख का निर्माण कब होता है?
उत्तरः जब नदी उच्च स्थलों से बहती हुई गिरिपद व मंद ढाल के
मैदानो में प्रवेश करती है, तो जलोढ़ पंख का निर्माण होता है।
7. जल वितरिकाएं किसे कहते हैं?
उत्तरः जो नदियाँ जलोढ़ पंखों से बहती है, वे प्रायः अपने
वास्तविक वाह-मार्ग को बहुत दूर तक नहीं बहती बल्कि अपना मार्ग बदल लेती है और कई
शाखाओं में बंट जाती है, जिन्हें ही जल वितरिकाएं कहते हैं।
8. डेल्टा मैदान किसे कहते हैं?
उत्तरः ऐसे मैदान, जो डेल्टाओं से बनते हैं, उन्हें डेल्टा
मैदान कहते हैं।
9. ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग क्या कहलाता
है?
उत्तरः ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग स्टोस कहलाता है।
10. पेडीमेंट या पस्थली किसे कहते हैं?
उत्तरः मरुस्थलीय प्रदेशो में एक उच्च धरातल, आकृति विहीन,
मैदान में परिवर्तित हो जाता है जिसे पेडीमेंट या पेडीप्लेन कहते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. चट्टानों में अधः कर्तित विसर्प और मैदानी
भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?
उत्तरः चट्टानों में अधः कर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़
के सामान्य विसर्प प्राचीन धरातलों के परिचायक हैं, जिन पर नदियाँ विकसित हुई है।
2. घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे
होता है?
उत्तरः घाटी रंध्र या युवाला वास्तव में एक ही होते हैं। जब
घोलरंध्र व डोलाइन इन कंदराओं की छत के गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस
में मिल जाते हैं, तो लम्बी, तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती है जिन्हें घाटीरंध्र या
युवाला कहते हैं।
3. चुनायुक्त
चट्टानी प्रदेशो में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता
है, क्यों?
उत्तरः भौम जल का कार्य सभी प्रकार की चट्टानों में नहीं देखा जा
सकता है। ऐसी चट्टानें जैसे चूना पत्थर या डोलोमाइट, जिसमें कैल्सियम कार्बोनेट की
प्रधानता होती है, वहाँ पर इसकी मात्रा अधिक देखने को मिलती है, क्योंकि रासायनिक
प्रक्रिया द्वारा चूना पत्थर घुल जाते हैं और उस स्थान पर भौम जल जमा हो जाता है।
इसलिए चूना युक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल
प्रवाह पाया जाता है।
4. हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण
स्थलरुप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बतायें।
उत्तरः हिमनदियों के जमाव व निक्षेपण से अनेक स्थलाकृतियों
का निर्माण होता है-
☞ हिमोढ़ - हिमोढ़ हिमनद टिल या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लंबी
कटकें हैं। हिमनद द्वारा कई तरह के हिमोढ़ों का निर्माण होता है, जैसे (क) अंतस्थ
हिमोढ़ (ख) पार्श्विक हिमोढ़ (ग) मध्यस्थ हिमोढ़।
☞ एस्कर- हिमनद के पिघलने से बनी नदियाँ नदी घाटी के ऊपर बर्फ के
किनारों वाले तल में प्रवाहित होती हैं। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानी
टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा बहाकर लाती हैं जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में
जमा हो जाते हैं। ये बर्फ पिघलने के बाद एक वक्राकार कटक के रूप में मिलते हैं,
जिन्हें एस्कर कहते हैं।
☞ हिमानी धौत मैदान- हिमानी जलोढ़ निक्षेपों से हिमानी धौत मैदान निर्मित होते
हैं।
☞ चूना - ड्रमलिन का
निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से
होता है।
5. मरुस्थली
क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक
अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है?
उत्तरः उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन रेत के कण को उड़ाकर अपने
आस-पास की चट्टानों का कांट छांट करते हैं, जिससे कई स्थलाकृतियों का निर्माण होता
है। मरुस्थलीय धरातल शीघ्र गर्म और ठंडे हो जाते हैं। ठंड और गर्मी से चट्टानों
में दरारें पड़ जाती हैं, जो बाद में खंडित होकर पवनों द्वारा अपरदित होती रहती
हैं। पवन अपवाहन, घर्षण आदि द्वारा अपरदन करते हैं। मरुस्थलों में अपक्षयजनित मलबा
केवल पवन द्वारा ही नहीं, बल्कि वर्षा व वृष्टि धोवन से भी प्रभावित होता है। पवन केवल
महीन मलबे का ही अपवाहन कर सकते हैं और बृहत अपरदन मुख्यतः परत बाढ़ या वृष्टि
धोवन से ही संपन्न होता है। मरुस्थलों में नदियाँ चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद
अल्प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. आर्द्र व शुष्क जलवायु प्रदेशों में
प्रवाहित जल ही सबसे महत्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।
उत्तरः आर्द्र प्रदेशों में जहाँ अत्यधिक वर्षा होती है, प्रवाहित
जल सबसे महत्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है, जो धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी
है। प्रवाहित जल के दो तत्त्व हैं। एक धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह
है; दूसरा रैखिक प्रवाह है। जो घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है।
प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित। स्थलरूप ढाल प्रवणता के अनुरूप बहती
हुई नदियों की आक्रामक युवावस्था से संबंधित हैं। कालांतरे में, तेज ढाल लगातार
अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं और परिणामस्वरूप नदियों का वेग
कम हो जाता है, जिससे निक्षेपण आरंभ होता है। तेज ढाल से बहती हुई सरिताएँ भी कुछ
निक्षेपित भू- आकृतियाँ बनाती हैं, लेकिन ये नदियों के मध्यम तथा धीर्म ढाल पर बने
आकारों की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। प्रवाहित जल की ढाल जितना मंद होगा, उतना ही
अधिक निक्षेपण होगा। जब लगातार अपरदन के कारण नदी तल समतल हो जाए, तो अधोमुखी कटाव
कम हो जाता है और तटों का पार्श्व अपरदन बढ़ जाता है और इसके फलस्वरूप पहाड़ियाँ
और घाटियाँ समतल मैदानों में परिवर्तित हो जाती हैं।
2. चूना
चट्टानें आद्र व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती है क्यों? चुना प्रदेशों में
प्रमुख भू-आकृतिक प्रक्रिया कौन-सी हैं और इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तरः चूना पत्थर एक घुलनशील पदार्थ है, इसलिए चूना पत्थर आर्द्र
जलवायु में कई स्थलाकृतियों का निर्माण करता है, जबकि शुष्क प्रदेशों में इसका
कार्य आर्द्र प्रदेशों की अपेक्षा कम होता है। चूना पत्थर एक घुलनशील पदार्थ होने
के कारण चट्टान पर इसके रासायनिक अपक्षय का प्रभाव सर्वाधिक होता है, लेकिन शुष्क
जलवायु वाले प्रदेशों में यह अपक्षय के लिए अवरोधक होता है। इसका मुख्य कारण यह
है, कि लाइमस्टोन की रचना में समानता होती है तथा परिवर्तन के कारण चट्टान में
फैलाव तथा संकुचन नहीं होता है, जिस कारण चट्टान का बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटन
अधिक मात्रा में नहीं हो पाता है। चूना-पत्थर या डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में
भौमजल द्वारा घुलन क्रिया और उसकी निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को
कर्स्ट स्थलाकृति का नाम दिया गया है। अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार
के स्थलरूप कर्स्ट स्थलाकृतियों की विशेषताएँ हैं। अपरदित स्थलरूप घोलरंध्र, कुंड,
लेपीज और चूना- पत्थर चबूतरे हैं। निक्षेपित स्थलरूप कंदराओं के भीतर ही निर्मित
होते हैं। चूनायुक्त चट्टानों के अधिकतर भाग गर्तों व खाइयों के हवाले हो जाते हैं
और पूरे क्षेत्र में अत्यधिक अनियमित, पतले व नुकीले कटक आदि रह जाते हैं, जिन्हें
लेपीज कहते हैं। इन कटकों या लेपीज का निर्माण चट्टानों की संधियों में भिन्न घुलन
क्रियाओं द्वारा होता है। कभी-कभी लेपीज के विस्तृत क्षेत्र समतल चुनायुक्त
चबूतरों में परिवर्तित हो जाते हैं।
3. हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न
पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य
संपन्न होता है, बताएँ?
उत्तरः प्रवाहित जल की अपेक्षा हिमनद प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमनद मुख्यतः गुरुत्वबल के कारण गतिमान होते हैं। हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है, जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है। हिमनद द्वारा घर्षित चट्टानी पदार्थ इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं। हिमनद, अपक्षयरहित चट्टानों का भी प्रभावशाली अपरदन करते हैं, जिससे ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं। हिमनद के लगातार संचालित होने से हिमनद का मलबा हटता रहता है, जिससे विभाजक नीचे हो जाता है और कालांतर में ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद की संचलन शक्ति समाप्त हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षेपित स्थलरूपों वाला एक हिमानी धौत रह जाता है।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय-सूची
भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत (भाग 'अ')
अध्याय सं. | अध्याय का नाम |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
9. | |
10. | |
11. | |
12. | |
13. | |
14. | |
भारत : भौतिक पर्यावरण (भाग 'ब') | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
खण्ड – क : भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
1. भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as a Discipline)
2. पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास (The Origin and Evolution of the Earth)
3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior of the Earth)
4. महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)
5. खनिज एवं शैल (Minerals and Rock)
6. भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)
7. भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and theirEvolution)
8. वायुमंडल का संघटन तथा संरचना (Composition andStructure of Atmosphere)
9. सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (SolarRadiation, Heat Balance and Temperature)
10. वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ(Atmospheric Circulation and Weather Systems)
11. वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)
12. विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climateand Climate Change)
13. महासागरीय जल {Water (Oceans)}
14. महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)
15. पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)
16. जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity andConversation)
खण्ड – ख : भारत-भौतिक पर्यावरण
1. भारत-स्थिति (India Location)
2. संरचना तथा भू-आकृतिविज्ञान (Structure and Physiography)
3. अपवाह तंत्र (Drainage System)
5. प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)
6. मृदा (Soils)
7. प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ (Natural Hazards andDisasters)
खण्ड – 3 : भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य
1. मानचित्र का परिचय (Introduction to Maps)
3. अक्षांश, देशांतर और समय (Latitude, Longitude andTime)
4. मानचित्र प्रक्षेप (Map Projections)
5. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps)
6. वायव फोटो का परिचय (Introduction to AerialPhotographs)
7. सुदूर संवेदन का परिचय (Introduction to RemoteSensing)
8. मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट (WeatherInstruments. Maps and Charts)