Class 11 Geography 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

Class 11 Geography 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

 Class 11 Geography 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11

भूगोल (Geography)

3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

पाठ के मुख्य बिंदु

पृथ्वी के आंतरिक भाग को जानने का आधार अप्रत्यक्ष प्रमाण है, क्योंकि पृथ्वी के आंतरिक भाग में ना तो कोई पहुँच सका है और ना पहुँच सकता है।

पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यतः भूगर्भ में होने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम है। बहिर्जात व अंतर्जात प्रक्रियाएँ लगातार भूदृश्य को आकार देती रहती हैं।

मानव जीवन मुख्यतः अपनी क्षेत्रीय भू-आकृति से प्रभावित होता है।

पृथ्वी की त्रिज्या 6370 किलोमीटर है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने के दो स्रोत हैं- प्रत्यक्ष स्रोत एवं अप्रत्यक्ष स्त्रोत ।

प्रत्यक्ष स्रोतों के अंतर्गत खनन, प्रवेधन तथा ज्वालामुखी उद्‌गार सम्मिलित है।

अप्रत्यक्ष स्रोतों में तापमान, दबाव, घनत्व, उल्काएं, गुरुत्वाकर्षण, चुंबकीय क्षेत्र तथा भूकंप संबंधी क्रियाएँ शामिल हैं।

दक्षिण अफ्रीका में सोने की खानों में 3-4 किलोमीटर तक खनन कार्य किया गया है तथा सबसे गहरा प्रवेधन आर्कटिक महासागर में कोला क्षेत्र में 12 किलोमीटर की गहराई तक किया गया है।

पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान एवं दबाव में वृद्धि होती है।

पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं होता है। यह ध्रुवों पर अधिक एवं भूमध्य रेखा पर कम होता है। इसका कारण पृथ्वी के केंद्र से दूरी तथा पृथ्वी के भीतर पदार्थ का असमान वितरण है।

पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न क्षेत्रों के गुरुत्वाकर्षण बल मैं भिन्नता को गुरुत्व विसंगति (Gravity anomaly) कहा जाता है।

स्थलमंडल पृथ्वी के धरातल से 200 किलोमीटर तक की गहराई वाले भाग को कहते हैं। जिसमें भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग आता है।

भूगर्भ में वह स्थान जहाँ से ऊर्जा निकलती है, भूकंप का उद्‌गम केंद्र (Focus) कहलाता है। इसे अवकेंद्र (Hypocentre) भी कहा जाता है।

भूतल पर वह बिंदु जो उद्‌गम केंद्र के समीपतम होता है तथा जहाँ सबसे पहले भूकंप अनुभव किया जाता है अधिकेंद्र (Epicentre) कहलाता है।

भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की होती है, भूगर्भिक तरंगें (P,S) एवं धरातलीय तरंगें (L)

भूगर्भिक तरंगें पृथ्वी के आंतरिक भाग में चलती हैं, जैसे P एवं S तरंगें तथा धरातलीय लहर जो धरातल के नजदीक चलती हैं, जैसे L तरंगें।

अधिक घनत्व वाले पदार्थ में तरंगों का वेग अधिक होता है।

भूकंपीय तरंगों का वेग पदार्थों के घनत्व में भिन्नता होने के कारण परावर्तित और आवर्तित होता है। जिससे पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने में मदद मिलती हैं।

भूकंपीय तरंगों का अंकन करने वाले यंत्र को सिस्मोग्राफ कहते हैं।

भूकंप की तीव्रता को मापने वाले स्केल को रिक्टर स्केल कहते हैं। इसकी तीव्रता को 0 से 10 तक में प्रदर्शित किया जाता है।

भूकंपीय छाया क्षेत्र ऐसे क्षेत्र होते हैं, जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंगें नहीं पहुँचती हैं।

P तरंगों का छाया क्षेत्र भूकंप अधिकेंद्र के 105° से 145° तक में विस्तृत होता है।

S तरंगों का छाया क्षेत्र भूकंप अधिकेंद्र से 105° के परे पूरे क्षेत्र में होता है। इस तरह S तरंगों का छाया क्षेत्र P तरंगों से अधिक विस्तृत होता है।

भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर पृथ्वी की आतरिक संरचना को तीन भागों में बाँटा गया है- भूपर्पटी, मैंटल एवं क्रोड।

भूपर्पटी पृथ्वी का सबसे बाहरी ठोस भाग है। इसकी मौटाई महाद्वीपों और महासागरों के नीचे अलग-अलग है।

महासागरों में भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है। महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 किलोमीटर है, जबकि महाद्वीपों के नीचे इसकी मोटाई 30 किलोमीटर तक है।

पर्वतीय श्रृंखलाओं के क्षेत्र में इसकी मोटाई और भी अधिक होती है। हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भूपर्पटी की मोटाई लगभग 70 किलोमीटर तक है।

भूपर्पटी के नीचे मैंटल का विस्तार 2900 किलोमीटर की गहराई तक पाया जाता है।

भूपर्पटी और मैंटल की सीमा को मोहो असांतत्य (Discontinuity) कहते हैं।

मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मंडल (Asthenosphere) कहते हैं। इसका विस्तार 400 किलोमीटर तक है। ज्वालामुखी उद्‌गार में निकलने वाला लावा यहीं से प्राप्त होता है।

स्थलमंडल (Lithosphere) के अंतर्गत भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग आता है। इसकी मोटाई 10 से 200 किलोमीटर के बीच पाई जाती है।

निचला मैंटल ठोस अवस्था में है।

क्रोड का विस्तार मैंटल की सीमा 2900 किलोमीटर से पृथ्वी के अर्धव्यास 6371 किलोमीटर की गहराई तक हैं।

मैंटल और क्रोड की सीमा को गुटेनबर्ग असांतत्य कहते हैं।

क्रोड के दो भाग हैं बाह्य क्रोड (outer core), जो तरल अवस्था में है तथा आंतरिक क्रोड (inner core), जो ठोस अवस्था में है।

क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल व लोहे से बना है। इसे नीफे के नाम से भी जाना जाता है।

ज्वालामुखी वह स्थान है जहाँ से गैसें, राख और तरल चट्टानी पदार्थ, लावा पृथ्वी के धरातल तक पहुँचते हैं।

यदि ज्वालामुखी पदार्थ कुछ समय पहले ही बाहर आया हो या अभी निकल रहा हो तो वह ज्वालामुखी सक्रिय ज्वालामुखी कहलाता है।

तरल चट्टानी पदार्थ जब भूगर्भ में होता है तो यह मैग्मा कहलाता है, लेकिन जब यह पदार्थ धरातल पर पहुँचता है, तो उसे लावा कहते हैं।

शील्ड ज्वालामुखी बेसाल्ट प्रवाह के बाद पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी ज्वालामुखियों में सबसे विशाल होते हैं। ये तरल लावा के ठंडा होने से बनते हैं। जैसे हवाई द्वीप के ज्वालामुखी।

मिश्रित ज्वालामुखी में लावा के साथ भारी मात्रा में ज्वलखंडाश्मि (Pyroclastic) पदार्थ और राख धरातल पर निकलते हैं।

ज्वालामुखी कुंड (Caldera) पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं। ये इतने विस्फोटक होते हैं कि ये स्वयं नीचे धंस जाते हैं और इनके धंसने से बड़े गड्ढे का निर्माण होता है जिसे ज्वालामुखी कुंड (Caldera) कहते हैं।

बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र (Flood basalt provinces) ज्वालामुखी में अत्यधिक तरल लावा निकलता है। जो बहुत दूर तक फैल जाते हैं। इनका विस्तार हजारों वर्ग किलोमीटर तक देखा जाता है।

इनका प्रवाह क्रमानुसार होता है, जो 50 मीटर से भी अधिक मोटा हो जाता है। भारत का दक्कन ट्रैप बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र का उदाहरण है, जो महाराष्ट्र पठार के अधिकतर भाग में पाया जाता है।

मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी महासागरों में पाए जाते हैं। ये एक श्रृंखला है जो 70,000 किलोमीटर से अधिक लंबी है और सभी महासागरीय बेसिनों में फैले हैं। इस कटक के मध्यवर्ती भाग में हमेशा ज्वालामुखी उद्‌गार होता रहता है।

ज्वालामुखी उद्‌गार से जो लावा निकलता है उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल का निर्माण होता है।

जब लावा धरातल पर पहुँचकर ठंडा होता है तो उसे ज्वालामुखी शैल कहते हैं तथा जब लावा धरातल के नीचे ठंडा होकर जम जाता है तो उसे पातालीय शैल कहते हैं।

पातालीय शैलों को अंतर्वेधी आकृतियाँ भी कहते हैं। विभिन्न आकृतियों में इनके जमाव के कारण इन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे वैथोलिथ, लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ, सिल, डाइक इत्यादि।

भूपर्पटी में अधिक गहराई पर एक गुंबद के आकार में मैग्मा का बड़ा पिंड बैथोलिथ कहलाता है। यह ग्रेनाइट के बने पिंड होते हैं, जो अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा धरातल पर दिखाई देते हैं।

लैकोलिथ गुंबदनुमा विशाल अंतर्वेधी चट्टानें होती हैं, जिनका ढाल समतल और एक पाइप रूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों की बनी ऐसी गुंबदनुमा पहाड़ियाँ देखने को मिलती हैं।

धरातल के नीचे जब मैग्मा का जमाव तश्तरी के आकार में होता है तो यह लैपोलिथ कहलाता है।

अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति के ऊपर और अभिनति के तल में लावा का जमाव फैकोलिथ कहलाता है।

अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। कम मोटाई वाले जमाव को शीट तथा घने मोटाई वाले जमाव को सिल कहते हैं।

जब लावा का जमाव धरातल के लगभग समकोण पर एक दीवार की भांति होता है, तो यह डाइक कहलाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है-

a. भूकंपीय तरंगें

b. गुरुत्वाकर्षण बल

c. ज्वालामुखी

d. पृथ्वी का चुंबकत्व

2. पृथ्वी की त्रिज्या कितनी है?

a. 6350 कि.मी.

b. 6370 कि.मी.

c. 7370 कि.मी.

d. 8370 कि.मी.

3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने का निम्नलिखित में से कौन प्रत्यक्ष स्रोत है?

a. खनन

b. ज्वालामुखी उद्‌गार

c. प्रवेधन

d. इनमें से सभी

4. सबसे गहरा प्रवेधन कितनी गहराई तक किया गया है?

a. 10 किलोमीटर

b. 11 किलोमीटर

c. 12 किलोमीटर

d. 14 किलोमीटर

5. पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने का निम्नलिखित में से कौन अप्रत्यक्ष स्रोत है?

a. खनन

b. भूकंपीय तरंगें

c. ज्वालामुखी

d. प्रवेधन

6. पृथ्वी के धरातल पर सबसे अधिक गुरुत्वाकर्षण बल कहाँ होता है?

a. भूमध्य रेखा पर

b. कर्क रेखा पर

c. धुर्वो पर

d. मकर रेखा पर

7. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्‌गार का परिणाम है?

a. शील्ड

b. मिश्र

c. प्रवाह

d. कुंड

8. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमंडल को वर्णित करता है?

a. ऊपरी व निचले मैंटल

b. भूपटल क्रोड

c. भूपटल व ऊपरी मैंटल

d. मैंटल व क्रोड

9. निम्नलिखित में कौन सी भूकंप तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?

a. P तरंगें

b. S तरंगें

c. धरातलीय तरंगें

d. उपर्युक्त में से कोई नहीं

10. भूकंपीय तरंगों का अंकन करने वाले यंत्र को क्या कहते है?

a. सीस्मोग्राफ

b. रेखा ग्राफ

c. क्लाइमोग्राफ

d. हीदरग्राफ

11. निम्न में से कौन भूगर्भिक तरंगें हैं?

a. P तरंगें

b. S तरंगें

c. उपर्युक्त दोनों

d. इनमें से कोई नहीं

12. धरातल पर वह बिंदु जहाँ सर्वप्रथम भूकंप अनुभव किया जाता है, कहलाता है-

a. उद्‌गम केंद्र

b. अधिकेंद्र

c. केंद्र

d. इनमें से कोई नहीं

13. सबसे तीव्र गति वाली भूकंपीय तरंग कौन-सी है?

a. P तरंगें

b. S तरंगें

c. L तरंगें

d. इनमें से कोई नहीं

14. इनमें से कौन-सी तरंग तरल भाग में लुप्त हो जाती है?

a. P तरंगें

b. L तरंगें

c. S तरंगें

d. इनमें से कोई नहीं

15. इनमें से कौन-सी तरंग सबसे अधिक विनाशकारी होती हैं?

a. P तरंगें

b. S तरंगें

c. L तरंगें

d. इनमें से सभी

16. ऐसे क्षेत्र जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंगें अभिलेखित नहीं होती हैं, उसे कहते हैं-

a. भूकंप क्षेत्र

b. भूकंपीय छाया क्षेत्र

c. भूकंप रहित क्षेत्र

d. इनमें से कोई नहीं

17. भूकंप से उत्पन्न हुई समुद्री लहरों को क्या कहते हैं?

a. चक्रवात

b. तूफान

c. प्रति चक्रवात

d. सुनामी

18. महासागरों के नीचे भूपर्पटी की औसत मोटाई कितनी है?

a. 3 किलोमीटर

b. 4 किलोमीटर

c. 5 किलोमीटर

d. 7 किलोमीटर

19. महाद्वीपों के नीचे भूपर्पटी की औसत मोटाई कितनी है?

a. 30 किलोमीटर

b. 50 किलोमीटर

c. 25 किलोमीटर.

d. 70 किलोमीटर

20. निम्न में से कौन-सी परत पृथ्वी के सबसे ऊपरी भाग में पाई जाती है?

a. मैटल.

b. भूपर्पटी

c. क्रोड

d. दुर्बलता मंडल

21. निम्न में से किन दो परतों से मिलकर स्थलमंडल बना है?

a. भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग

b. मैंटल का ऊपरी और निचला भाग

c. मैंटल का निचला एवं क्रोड का ऊपरी भाग

d. इनमें से कोई नहीं

22. मैंटल का विस्तार कितनी गहराई तक है?

a. 400 किलोमीटर

b. 2900 किलोमीटर

c. 5150 किलोमीटर

d. 6370 किलोमीटर

23. मोहो असांतत्य किन दो परतों की सीमा को कहते हैं?

a. भूपर्पटी और मैंटल

b. मैंटल और क्रोड

c. बाह्य क्रोड और आंतरिक क्रोड

d. इनमें से कोई नहीं

24. गुटेनबर्ग असांतत्य किन दो परतों की सीमा को कहते हैं?

a. भूपर्पटी और मैंटल

b. मैंटल और क्रोड

c. बाह्य क्रोड और आंतरिक क्रोड

d. इनमें से कोई नहीं

25. क्रोड किन दो भारी पदार्थों से मिलकर बना है?

a. सिलिका एवं अल्युमिनियम

b. सिलिका एवं मैग्नीशियम

c. निकिल एवं लोहा

d. ग्रेनाइट एवं सिलिका

26 . पृथ्वी की सबसे आंतरिक परत कौन-सी है?

a. भूपर्पटी

b. मैंटल

c. बाह्य क्रोड

d. आंतरिक क्रोड

27. बाह्य क्रोड किस अवस्था में है?

a. ठोस

b. गैसीय

c. तरल

d. इनमें से सभी

28. आंतरिक क्रोड किस अवस्था में है?

a. ठोस

b. तरल

c. गैसीय

d. इनमें से सभी

29. भूगर्भ में स्थित तरल चट्टानी पदार्थ क्या कहलाता है?

a. ज्वालामुखी बम

b. लावा

c. राख

d. मैग्मा

30. निम्न में से कौन अंतर्वेधी आकृतियां है?

a. बैथोलिथ

b. सिल

c. डाइक

d. इनमें से सभी

31. निम्न भूकंपीय तरंगों में सबसे विस्तृत छाया क्षेत्र किस तरंग का है?

a. P तरंगें

b. S तरंगें

c. L तरंगें

d. इनमें से कोई नहीं

32. निम्नलिखित में किन भूकंपीय तरंगों का छाया क्षेत्र 105° से 145° तक है?

a. P तरंगों का

b. S तरंगों का

c. Pएवं S तरंगों का

d. इनमें से कोई नहीं

33. पृथ्वी का औसत घनत्व कितना है?

a. 5.5

b. 6.5

c. 4.6

d. 7.7

34. पृथ्वी की सबसे हल्की परत कौन-सी है?

a. मैटल

b. भूपर्पटी

c. आंतरिक क्रोड

d. बाह्य क्रोड

35. दुर्बलता मंडल का विस्तार कहाँ है?

a. भूपर्पटी

b. ऊपरी मैंटल

c. निचला मैंटल

d. बाह्य क्रोड

36. ज्वालामुखी उद्‌गार के दौरान निकलने वाला लावा का स्रोत निम्न में से कौन-सा है?

a. दुर्बलता मंडल

b. भूपर्पटी

c. निचला मैंटल

d. बाह्य क्रोड

37. ज्वालामुखी विस्फोट से बने बड़े गड्‌ढे को क्या कहते हैं?

a. क्रेटर

b. कालडेरा

c. शंकु

d. इनमें से कोई नहीं

38. निम्न में से किस ज्वालामुखी प्रकार में अत्यधिक तरल लावा निकलता है?

a. ज्वालामुखी कुंड

b. मिश्रित ज्वालामुखी

c. शील्ड ज्वालामुखी

d. बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र

39. ज्वालामुखी उद्‌गार से निकले लावा के ठंडा होने से निम्न में से कौन-सी चट्टान बनती है?

a. परतदार चट्टान

b. रूपांतरित चट्टान

c. आग्नेय चट्टान

d. ज्वालामुखी चट्टान

40. भूगर्भ में मैग्मा का जमाव जब तश्तरी के आकार में होता है तो उसे क्या कहा जाता है?

a. लैकोलिथ

b. लैपोलिथ

c. फैकोलिथ

d. डाइक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

1. भूगर्भिक तरंगें क्या हैं?

उत्तरः यह तरंगें भूकंप के उद्‌गम केंद्र से पैदा होती है और पृथ्वी के आंतरिक भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है।

2. भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।

उत्तरः भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम हैं- खनन, प्रवेधन तथा ज्वालामुखी उद्‌गार।

3. मैग्मा और लावा में अंतर बताएं।

उत्तरः तरल चट्टानी पदार्थ भूगर्भ में जब मैंटल के ऊपरी भाग में होता है तो यह मैग्मा कहलाता है तथा जब यह धरातल पर पहुँचता है तो उसे लावा कहते हैं।

4. भूकंपीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी संबंधी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें।

उत्तरः भूकंपीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी के अप्रत्यक्ष साधन तापमान, दबाव, घनत्व, उल्का, गुरुत्वाकर्षण एवं चुंबकीय क्षेत्र हैं।

5. सुनामी किसे कहते हैं?

उत्तरः भूकंप से उत्पन्न हुई समुद्री लहरों को सुनामी कहते हैं। ये लहरें काफी ऊंची होती हैं नुकसान पहुँचाती हैं। और तटीय क्षेत्र को काफी

6. दुर्बलता मंडल किसे कहते हैं?

उत्तरः मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मंडल कहते हैं। इसकी गहराई 400 किलोमीटर तक आंकी गई है। यह तरल अवस्था में है। ज्वालामुखी उद्‌गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है इसका मुख्य स्रोत यही है।

7. गुरुत्व विसंगति (Gravity Anomaly) किसे कहा जाता है?

उत्तरः पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बॅल एक समान नहीं होता है गुरुत्वाकर्षण बल के इस भिन्नता को गुरुत्व विसंगति (Gravity Anomaly) कहा जाता है।

8. आज तक सबसे गहरा प्रवेधन कहाँ और कितनी गहराई तक किया गया है?

उत्तरः आज तक सबसे गहरा प्रवेधन आर्कटिक महासागर में कोला क्षेत्र में 12 किलोमीटर की गहराई तक किया गया है।

9. पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर अधिक एवं भूमध्य रेखा पर कम होता है, क्यों?

उत्तरः पृथ्वी के केंद्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर अधिक और भूमध्य रेखा पर कम होता है।

10. ज्वालामुखी द्वारा निर्मित अंतर्वेधी आकृतियां कौन-कौन- सी हैं?

उत्तरः ज्वालामुखी द्वारा निर्मित अंतर्वेधी आकृतियों में बैथोलिथ, लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ, सिल व डाइक है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. भूकंपीय तरंगें कितने प्रकार की होती हैं, इनका वर्णन करें।

उत्तरः भूकंपीय तरंगें तीन प्रकार की होती हैं- प्राथमिक, ‌द्वितीयक तथा धरातलीय तरंगें।

प्राथमिक तरंगें ('P' waves)- प्राथमिक तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिक तरंगें कहते हैं।

द्वितीयक तरंगें ('S' waves)- यह तरंगें धरातल पर P तरंगों के बाद पहुँचती हैं इसलिए इन्हें ‌द्वितीयक तरंगें कहते हैं। इनकी प्रमुख विशेषता यह है कि यह केवल ठोस पदार्थ के ही माध्यम से चलती हैं जबकि तरल पदार्थ में यह लुप्त हो जाती हैं।

धरातलीय तरंगें ('L' waves)- ये तरंगें धरातल पर सबसे अंत में पहुँचती हैं लेकिन सबसे ज्यादा विनाशकारी होती हैं। इससे चट्टानें खिसकती हैं और इमारतें गिर जाती हैं।

2. मैंटल (Mantle) का वर्णन करें।

उत्तरः भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल (Mantle) कहलाता है। इसका विस्तार मोहो असांतत्य से 2900 किलोमीटर की गहराई तक है। मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मंडल कहते हैं इसका विस्तार 400 किलोमीटर की गहराई तक है। ज्वालामुखी उद्‌गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है इसका मुख्य स्रोत यही है। भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल कहलाता है। दुर्बलता मंडल के नीचे निचला मैंटल ठोस अवस्था में है।

3. मिश्रित ज्वालामुखी से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः इस ज्वालामुखी में लावा के साथ भारी मात्रा में ज्वलखण्डाश्मि पदार्थ व राख भी धरातल पर पहुँचते हैं। यह पदार्थ निकास नाली के आसपास परतों के रूप में जमा हो जाते हैं जिनसे मिश्रित ज्वालामुखी का निर्माण होता है। प्रायः यह ज्वालामुखी भीषण विस्फोटक होते हैं।

4. बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र से अत्यधिक तरल लावा निकलता है जो बहुत दूर तक प्रवाहित होता है। इनका प्रवाह क्षेत्र हजारों वर्ग किलोमीटर तक भी होता है। इनमें लावा प्रवाह क्रमानुसार होता है और कुछ प्रवाह 50 मीटर से भी अधिक मोटे हो जाते हैं। भारत का दक्कन ट्रैप जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार का ज्यादातर भाग पाया जाता है इसका एक उदाहरण है।

5. भूकंपीय तरंगे छाया क्षेत्र कैसे बनातीं हैं?

उत्तरः वैसे क्षेत्र जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंगें अभिलेखित नहीं होती हैं उसे छाया क्षेत्र कहते हैं। एक भूकम्प का छाया क्षेत्र दूसरे भूकम्प के छाया क्षेत्र से भिन्न होता है। वैज्ञानिकों के मतानुसार भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° से 145° के बीच का क्षेत्र 'P' और 'S' दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र होता है। 'S' तरंगों का छाया क्षेत्र 'P' तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत होता है क्योंकि 105° से परे पूरे क्षेत्र में 'S' तरंगें नहीं पहुँचती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. अन्तर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न समझते हैं? वि अन्तर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।

उत्तरः ज्वालामुखी उद्‌गार के समय निकलने वाला तरल व तप्त पदार्थ जब धरातल के नीचे जमा हो जाता है, तो इसे मैग्मा कहते हैं। धरातल के नीचे इससे अनेक आकृतियाँ बनती हैं। इन्हीं आकृतियों को अन्तर्वेधी आकृतियाँ कहा जाता है। इनमें से प्रमुख अन्तर्वेधी आकृतियाँ निम्न हैं -

बैथोलिथ

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लैपोलिथ (Lapolith) पृथ्वी के आन्तरिक भाग में ज्वालामुखी उद्‌गार के समय ऊपर उठता हुआ मैग्मा जब क्षैतिज दिशा में चट्टानों के मध्य तश्तरी के आकार में जमा हो जाता है तो उसे लैपोलिथ कहते हैं।

फैकोलिथ (Phacolith) धरातल के नीचे चट्टानों में अपनति तथा अभिनति में मैग्मा के जमाव को फैकोलिथ कहा जाता है। ये परतों के रूप में लहरदार आकृति में पाये जाते हैं।

सिल (Sill) अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानें जब क्षैतिज अवस्था में चादर के रूप में ठण्डी होकर जम जाती हैं तो उन्हें सिल (Sill) कहा जाता है। कम मोटाई वाले जमाव को शीट (Sheet) तथा घने मोटाई वाले जमाव को सिल कहते हैं।

डाइक (Dyke) जब मैग्मा का जमाव धरातलीय चट्टानों के समकोण पर एक दीवार की भाँति होता है तो उसे डाइक कहते हैं। पश्चिम महाराष्ट्र में यह आकृति बहुतायत में पायी जाती है।

2. भूकम्प के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए।

उत्तरः भूकंप का अर्थ है पृथ्वी का कंपन। यह कंपन विभिन्न कारणों से होता है। इन कारणों के आधार पर भूकंप के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

विवर्तनिक भूकम्प (Tectonic Earthquake) ये भूकम्प भंशतल के सहारे चट्टानों के सरकने के कारण उत्पन्न होते हैं। सामान्यतः ये भूकंप ही अधिक आते हैं।

ज्वालामुखी भूकम्प (Volcanic Earthquake) - ज्वालामुखी उद्‌गार के कारण होनेवाले भूकंप को ज्वालामुखी भूकंप कहते हैं। जो सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों में आते हैं।

नियात भूकम्प (Collapse Earthquake) खनन क्षेत्रों में भूमिगत खदानों की छतों के ढह जाने से हल्के झटके महसूस किये जाते हैं, इन्हें ही नियात (Collapse) भूकम्प कहा जाता है।

विस्फोट भूकम्प (Explosion Earthquake) कभी- कभी परमाणु एवं रासायनिक विस्फोट से भूकंप उत्पन्न होता है जिसे विस्फोट भूकम्प कहा जाता है।

बाँधजनित भूकम्प (Reservoir Earthquake)- जो भूकम्प बड़े बाँध वाले क्षेत्रों में आते हैं, उन्हें बाँधजनित भूकम्प कहते हैं। बाँध क्षेत्रों में अत्यधिक पानी एकत्रित किया जाता है जिससे नीचे की चट्टानें अव्यवस्थित हो जाती हैं, परिणाम स्वरूप भूकम्प उत्पन्न होते हैं।

3. पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का विस्तृत वर्णन कीजिए।

उत्तरः भूगोल में पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अध्ययन बहत महत्वपूर्ण है क्योंकि पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यतः भूगर्भ में होने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम है। पृथ्वी की आन्तरिक एवं बाह्य शक्तियाँ लगातार भू-दृश्य को आकार देती रहती हैं। किसी भी क्षेत्र की भू-आकृति की प्रकृति को समझने के लिए भूगर्भिक क्रियाओं के प्रभाव को जानना आवश्यक होता है। पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के सम्बन्ध में विभिन्न वि‌द्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं। इनमें स्वेस, जॉली, रॉस आदि के विचार महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान समय में आन्तरिक संरचना के बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी भूकम्पीय तरंगों के अध्ययन व विश्लेषण से प्राप्त होती है। भूकम्प की तरंगें आन्तरिक भाग में समान गति से संचरित नहीं होती हैं। जैसे-जैसे ये तरंगें भूगर्भ में गहराई में जाती हैं, इनकी गति बढ़ती जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की आन्तरिक संरचना एक जैसी नहीं है बल्कि गहराई के साथ चट्टानों का घनत्व बढ़ता जाता है। भूकम्पीय तरंगों की गति के अध्ययन के आधार पर पृथ्वी के आन्तरिक भाग को निम्न परतों में विभाजित किया गया है

a. भूपर्पटी (The Crust)

b. प्रावार (The Mantle)

c. क्रोड या अन्तरतम (The Core)

a. भूपर्पटी (The Crust)- पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत भूपर्पटी या क्रस्ट कहलाती है। भूपर्पटी की मोटाई महासागरों व महाद्वीपों के नीचे अलग-अलग मिलती है। महासागरों के नीचे इसकी मोटाई 5 कि.मी. तथा महाद्वीपों के नीचे 30 कि.मी. तक है। भूपर्पटी की चट्टानों का घनत्व 3 ग्राम प्रतिघन सेमी. के लगभग है। महासागरों के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट द्वारा निर्मित हैं। जहाँ इसका घनत्व 2.7 ग्राम प्रति घन सेमी. है।

b. मैंटल (The Mantle) भूपर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है। इसकी गहराई मोहो असांतत्य क्षेत्र से प्रारम्भ होकर 2900 कि.मी. तक है। मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलता मण्डल कहलाता है जहाँ भूकम्पीय तरंगों की गति अत्यन्त मन्द हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार दुर्बलता मण्डल का विस्तार 400 कि.मी. तक है। ज्वालामुखी उद्‌गार के दौरान निकलने वाला लावा यहीं से प्राप्त होता है। इसका घनत्व 3.4 ग्राम प्रति घन सेमी. है। निचली मैंटल का विस्तार दुर्बलता मण्डल के समाप्त होने के बाद तक विस्तृत है। यह ठोस अवस्था में है।

c. क्रोड या अन्तरतम (The Core)- मैंटल के बाद पृथ्वी के केन्द्र तक क्रोड का विस्तार मिलता है। क्रोड और मैंटल की सीमा को गुटेनबर्ग असम्बद्धता कहते हैं। क्रोड को दो भागों में विभाजित किया गया है- बाह्य क्रोड एवं आन्तरिक क्रोड। बाह्य क्रोड को तरल अवस्था में माना गया है क्योंकि इस भाग में भूकम्प की 'S तरंगें प्रवेश नहीं करती हैं। यह 2900 कि.मी. से 5150 कि.मी. तक विस्तृत है। आन्तरिक क्रोड ठोस अवस्था में है। जिसका विस्तार पृथ्वी के केंद्र 6370 किलोमीटर की गहराई तक है। यहाँ घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी प्राप्त होता है। आन्तरिक केन्द्रीय भाग की संरचना भारी पदार्थों निकिल एवं फेरियम से हुई मानी गयी है अतः इसे 'निफे' कहते हैं। केन्द्रीय भाग में लोहे की उपस्थिति पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को भी प्रमाणित करती है।

Class 11 Geography 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

4. ज्वालामुखी के प्रकारों को विस्तार से बताइए।

उत्तरः ज्वालामुखी वह छिद्र है जिससे होकर गैसें, राख, तरल चट्टानी पदार्थ पृथ्वी के धरातल तक पहुँचता है।

ज्वालामुखी उद्‌गार की प्रवृत्ति और धरातल पर विकसित आकृतियों के आधार पर ज्वालामुखियों को निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है-

Class 11 Geography 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

शील्ड ज्वालामुखी- बेसाल्ट प्रवाह को छोड़कर पृथ्वी पर शील्ड ज्वालामुखी सबसे विशाल होते हैं। जैसे- हवाई द्वीप के ज्वालामुखी। ये ज्वालामुखी मुख्यतः बेसाल्ट से निर्मित होते हैं। इन ज्वालामुखियों का ढाल तीव्र नहीं होता क्योंकि लावा उद्‌गार के समय यह बहुत तरल होता है। यदि निकास नलिका में पानी चल जाएँ तो यह ज्वालामुखी विस्फोटक भी हो जाते हैं जबकि यह कम विस्फोटक वाले ज्वालामुखी है। इनमें लावा फव्वारों के रूप में बाहर निकलता है। निकास पर बनने वाला शंकु सिण्डर शंकु के रूप में होता है।

Class 11 Geography 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

मिश्रित ज्वालामुखी- इस ज्वालामुखी में लावा के साथ भारी मात्रा में ज्वलखण्डाश्मि पदाथै व राख भी धरातल पर पहुँचते हैं जो आसपास परतों के रूप में जमा हो जाते हैं, जिसे मिश्रित ज्वालामुखी कहते हैं। प्रायः ये भीषण विस्फोटक होते हैं।

Class 11 Geography 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior Of The Earth)

ज्वालामुखी कुण्ड - ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं। यह इतने अधिक विस्फोटक होते हैं कि यह ऊँचा ढांचा बनाने के बजाय स्वयं नीचे धंस जाते हैं।

बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र- यह ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा उगलते हैं जिससे इनका प्रवाह हजारों वर्ग कि.मी. क्षेत्र तक हो जाता है। इनमें लावा प्रवाह क्रमानुसार होता है और कुछ प्रवाह 50 मीटर से भी अधिक मोटे हो जाते हैं। कई बार अकेला प्रवाह सैकड़ों किलोमीटर दूर तक फैल जाता है। जैसे -भारत का दक्कन ट्रैप, जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार का ज्यादातर भाग पाया जाता है।

मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी- इन ज्वालामुखियों का उद्‌गार महासागरों में होता है। मध्य महासागरीय कटक एक विस्तृत श्रृंखला है जो लगभग 70,000 कि.मी. से अधिक लंबी है और सभी महासागरीय बेसिनों में फैली है। इस कटक के मध्यवर्ती भाग में लगातार उद्‌गार होता रहता है।

                                                  

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय-सूची

भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत (भाग 'अ')

अध्याय सं.

अध्याय का नाम

1.

भूगोल एक विषय के रूप में

2.

पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

3.

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

4.

महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

5.

भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

6.

भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

7.

वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

8.

सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

9.

वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

10.

वायुमंडल में जल

11.

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

12.

महासागरीय जल

13.

महासागरीय जल संचलन

14.

जैव विविधता एवं संरक्षण

भारत : भौतिक पर्यावरण (भाग 'ब')

1.

भारत : स्थिति

2.

संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

3.

अपवाह तंत्र

4.

जलवायु

5.

प्राकृतिक वनस्पति

6.

प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 - प्रश्नोत्तर


खण्ड – क : भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

1. भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as a Discipline)

2. पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior of the Earth)

4. महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

5. खनिज एवं शैल (Minerals and Rock)

6. भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

7. भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and theirEvolution)

8. वायुमंडल का संघटन तथा संरचना (Composition andStructure of Atmosphere)

9. सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (SolarRadiation, Heat Balance and Temperature)

10. वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ(Atmospheric Circulation and Weather Systems)

11. वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

12. विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climateand Climate Change)

13. महासागरीय जल {Water (Oceans)}

14.  महासागरीय जल संचलन  (Movements of Ocean Water)

15. पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

16. जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity andConversation)

खण्ड – ख : भारत-भौतिक पर्यावरण

1. भारत-स्थिति (India Location)

2.  संरचना तथा भू-आकृतिविज्ञान (Structure and Physiography)

3. अपवाह तंत्र (Drainage System)

4. जलवायु (Climate)

5. प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

6. मृदा (Soils)

7. प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ (Natural Hazards andDisasters)

 

खण्ड – 3 : भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य

1. मानचित्र का परिचय (Introduction to Maps)

2. मानचित्र मापनी (Map Scale)

3. अक्षांश, देशांतर और समय (Latitude, Longitude andTime)

4. मानचित्र प्रक्षेप (Map Projections)

5. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps)

6. वायव फोटो का परिचय (Introduction to AerialPhotographs)

7. सुदूर संवेदन का परिचय (Introduction to RemoteSensing)

8. मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट (WeatherInstruments. Maps and Charts)

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