Class 11 Geography 14. जैव-विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

Class 11 Geography 14. जैव-विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

 Class 11 Geography 14. जैव-विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11

भूगोल (Geography)

14. जैव-विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation)

पाठ के मुख्य बिंदु 

किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहते हैं।

पृथ्वी पर जैव-विविधता एक जैसी नहीं है। सबसे अधिक जैव-विविधता उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में है।

जैव-विविधता को आनुवंशिक, प्रजातीय एवं पारितंत्रीय जैव-विविधता ये तीन स्तरों पर समझा जाता है।

जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।

जनसंख्या वृद्धि के कारण वनों के अत्यधिक कटाव से अनेक जैव प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों का विनाश हुआ है, जिससे अनेक प्रजातियों की संख्या में तेजी से कमी आई है।

प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण की अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने संकटापन्न पौधों व जीवन की प्रजातियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है-संकटापन्न प्रजातियाँ, सुभेद्य प्रजातियाँ और दुर्लभ प्रजातियों।

भारत सरकार ने विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने और विस्तार करने के लिए वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 पारित किया है। जिसके अंतर्गत नेशनल पार्क, पशु विहार स्थापित किए गए तथा जीव मंडल आरक्षित क्षेत्र घोषित किए गए।

जैव-विविधता का संरक्षण तभी संभव और दीर्घकालिक होगा जब स्थानीय समुदायों व प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होगी।

पृथ्वी पर जैव-विविधता मानव जीवन के प्रारंभ होने से पहले किसी भी अन्य काल से अधिक थी।

मानव के आने से जैव-विविधता में तेजी से कमी आने लगी क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति का आवश्यकता से अधिक उपभोग होने के कारण वह लुप्त होने लगी।

पृथ्वी पर जैव-विविधता एक जैसी नहीं है। उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में जैव-विविधता अधिक होती है और जैसे-जैसे ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ बढ़ते हैं प्रजातियों की विविधता कम होती जाती है, लेकिन जीवधारी की संख्या बढ़ती जाती है।

जैव-विविधता दो शब्दों के मेल से बना है, बायो (Bio) का अर्थ है -जीव तथा डाइवर्सिटी (Diversity) का अर्थ है - विविधता।

जैव-विविधता (Bio Diversity) किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को कहते हैं।

जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है- आनुवंशिक जैव-विविधता (Genetic diversity), प्रजातीय जैव-विविधता (Species diversity) और पारितंत्रीय जैव-विविधता (Ecosystem diversity)|

आनुवंशिक जैव-विविधता, किसी प्रजाति में जीन की विविधता को कहते हैं। समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं।

मानव आनुवंशिक रूप से 'होमोसेपियन्स' (Homosapiens) प्रजाति से संबंधित है, जिसमें कद, रंग और अलग दिखावट जैसे शारीरिक लक्षणों में काफी भिन्नता है।

प्रजातीय विविधता, किसी निश्चित क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या से संबंधित होती है। कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की संख्या अधिक होती है और कुछ में कम।

जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के 'हॉटस्पॉट' (Hot spots) कहते हैं।

पारितंत्रीय प्रक्रियाओं तथा आवास स्थान की भिन्नता पारितंत्रीय विविधता को बनाते हैं।

जैव-विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहत योगदान दिया है और मानव समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय और पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखा है।

जैव-विविधता की पारिस्थितिक, आर्थिक और वैज्ञानिक भूमिकाएं प्रमुख हैं।

पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। यहाँ कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित होती है और न ही बनी रह सकती है। अर्थात, प्रत्येक जीव अपनी जरूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होते हैं।

जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण और उसका संग्रहण करती हैं, कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं और पारितंत्र में जल व पोषक तत्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं।

जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होती हैं वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होता है। सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव-विविधता एक महत्वपूर्ण संसाधन है। इसका एक महत्वपूर्ण भाग फसलों की विविधता है, जिसे कृषि जैव-विविधता भी कहते हैं।

जैव-विविधता के द्वारा भोज्य पदार्थ, औषधीय और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में संसाधन प्राप्त होते हैं। लेकिन यह जैव-विविधता के विनाश के लिए भी उत्तरदायी है, क्योंकि मनुष्य इन संसाधनों के उपयोग के लिए जैव- विविधता को नष्ट करता है।

जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका के अंतर्गत जैव- विविधता इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत दे सकती है कि जीवन का आरंभ कैसे हुआ और यह भविष्य में कैसे विकसित होगा।

मनुष्य के साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार है तथा कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है। जैव-विविधता का स्तर अन्य जीवित प्रजातियों के साथ हमारे संबंध का एक अच्छा पैमाना है।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, जो विश्व के कुल क्षेत्र का मात्र एक चौथाई भाग है। यहाँ संसार की तौन-चौथाई जनसंख्या रहती है।

इस विशाल जनसंख्या की जरूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50% प्रजाति पाई जाती है और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमंडल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।

प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे-भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी उद्‌गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणीजात और वनस्पतिजात को क्षति पहुँचाते हैं परिणामस्वरुप संबंधित प्रभावित प्रदेशों की जैव-विविधता में बदलाव आता है।

कीटनाशक और अन्य प्रदूषक, जैसे हाइड्रोकार्बन और विषैली भारी धातु संवेदनशील और कमजोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।

वे प्रजातियाँ, जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं है, बल्कि उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें विदेशज प्रजातियाँ (Exotic species) कहा जाता है।

प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण की अंतरराष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संकटापन्न पौधों व जीवन की प्रजातियाँ को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है- संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered species), सुभेद्य प्रजातियों (Vulnerable species), और दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare species)I

संकटापन्न प्रजातियाँ, जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियों के बारे में आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस) रेड लिस्ट के नाम से सूचना प्रकाशित करता है।

सुभेद्य प्रजातियाँ, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक यदि जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्यधिक कम होने के कारण इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है।

दुर्लभ प्रजातियों की संख्या संसार में बहुत कम है। ये प्रजातियाँ कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं या बड़े क्षेत्र में विरल रूप में बिखरी हुई हैं।

मानव के अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है। जीवन का हर रूप एक दूसरे पर इतना निर्भर है कि किसी एक प्रजाति पर संकट आने से दूसरों में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। यदि पौधों और प्राणियों की प्रजातियाँ संकटापन्न होती हैं, तो इससे पर्यावरण में गिरावट उत्पन्न होती है और अंततोगत्वा मनुष्य का अपना अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।

जैव-विविधता का संरक्षण तभी संभव और दीर्घकालिक होगा जब स्थानीय समुदायों व प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होगी।

जैव-विविधता के संरक्षण के लिए 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरो में सम्मेलन हुआ, जिसमें भारत एवं अन्य 155 देशों के हस्ताक्षर हैं।

भारत सरकार ने वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972, में पारित किया है, जिसके अंतर्गत नेशनल पार्क (National parks), पशु विहार (Sanctuaries) स्थापित किए गए तथा जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) घोषित किए गए।

विश्व की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है जिन्हें 'महा विविधता केंद्र' (Mega diversity) कहते हैं। इन देशों की संख्या 12 है जिनके नाम हैं मैक्सिको, कोलंबिया, इक्वेडोर, पेरु, ब्राज़ील, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, और ऑस्ट्रेलिया।

ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव-विविधता हॉट स्पॉट (Hot spots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. जैव विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्वपूर्ण है?

a. जंतु

b. पौधे

c. पौधे और प्राणी

d. सभी जीवधारी

2. निम्नलिखित में से असुरक्षित प्रजातियाँ कौन-सी हैं?

a. जो दूसरों को असुरक्षा दें

b. बाघ व शेर

c. जिनकी संख्या अत्यधिक हो

d. जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है

3. नेशनल पार्क और पशु विहार निम्न में से किस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं?

a. मनोरंजन

b. पालतू जीवन के लिए

c. शिकार के लिए

d. संरक्षण के लिए

4. जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं-

a. उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र

b. शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र

c. ध्रुवीय क्षेत्र

d. महासागरीय क्षेत्र

5. निम्न में से किस देश में पृथ्वी सम्मेलन हुआ था?

a. यू.के.

b. ब्राजील

c. मेक्सिको

d चीन

6. भारत में वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम किस वर्ष पारित किया गया?

a. 1970

b. 1975

c. 1972

d. 1978

7. निम्नलिखित में से जैव-विविधता के ह्रास का मुख्य कारण क्या है?

a. जलवायु परिवर्तन

b. आवास क्षेत्र का विनाश

c. शिकार

d. प्रदूषित जल

8. निम्नलिखित में से महा विविधता केंद्र के देशों की संख्या कितनी है?

a. 10

b. 12

c. 11

d. 14

9. जैव-विविधता शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किन्होंने किया?

a. अर्नेस्ट हैकल

b. टान्सले

c. वॉल्टर जी. रोजेन

d. रिटर

10. जैव मंडल विविधता का संबंध है-

a. वनों में पाए जाने वाले पेड़ पौधों के विविध रूपों से

b. वन्य जीवों के विविध रूपों से

c. प्रकृति में मिलने वाले सभी प्रकार के प्राणियों तथा पेड़-पौधों की प्रजातियों से

d. पृथ्वी पर मिलने वाले सभी प्रकार के पेड़ पौधों से

11. विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियों के बारे में रेड लिस्ट की सूचना कौन प्रकाशित करता है?

a. IUCN

b. UNICEF

c. NATO

d. UNESCO

12. निम्न में से कौन मानव का अनुवांशिक प्रजाति है?

a. होमोसेपियनस

b. निएंडरथल

c. कपि मानव

d. बन्दर

13. अधिक प्रजातीय विविधता वाले क्षेत्रों को निम्न में से क्या कहते हैं?

a. हॉटस्पॉट

b. कोल्ड स्पॉट

c. पशु विहार

d. नेशनल पार्क

14. प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता अधिक होती है-

a. पारितंत्र में अधिक विविधता होने पर

b. पारितंत्र में कम विविधता होने पर

c. उपर्युक्त दोनों

d. इनमें से कोई नहीं

15. जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी वह पारितंत्र उतना ही अधिक-

a. अस्थायी होगा

b. स्थायी होगा

c. अस्थिर होगा

d. इनमें से कोई नहीं

16. जीवित प्रजातियों के साथ हमारे संबंध का एक अच्छा पैमाना क्या है?

a. जैव-विविधता का स्तर

b. औ‌द्योगिक विकास का स्तर

c. परिवहन का विकास

d. कृषि का स्तर

17. निम्न में से कहाँ पृथ्वी की लगभग 50% प्रजातियाँ पाई जाती हैं?

a. घास के मैदान

b. पतझड़ वन

c. उष्णकटिबंधीय वर्षा वन

d. कँटीले वन

18. वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं है बल्कि बाहर से लाकर वहाँ स्थापित की गई हैं, उन्हें कहते हैं?

a. दुर्लभ प्रजातियाँ

b. विदेशज प्रजातियाँ

c. संकटापन्न प्रजातियाँ

d. इनमें से सभी

19. निम्नलिखित में से रेड लिस्ट क्या है?

a. संकटापन्न प्रजातियों की सूचना

b. पादप जगत की सूचना

c. जंतु जगत की सूचना

d. इनमें से कोई नहीं

20. निम्नलिखित में से आईयूसीएन ने संकटापन्न पौधों और जीवों की प्रजातियाँ को उनके संरक्षण के लिए किन भागों में बाँटा है?

a. दुर्लभ प्रजातियाँ

b. सुभेद्य प्रजातियाँ

c. संकटापन्न प्रजातियों

d. इनमें से सभी

21. आईयूसीएन का अर्थ क्या है?

a. इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज

b. इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर

C. इंडियन यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर

d. इनमें से कोई नहीं

22. ब्राजील के रियो डी जेनेरो में जैव-विविधता का सम्मेलन कब हुआ?

a. 1990

b. 1991

c. 1992

d. 1993

23. भारत सरकार ने वन्य जीव संरक्षण के लिए कौन-सा अधिनियम पारित किया?

a. वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972

b. वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1976

c. वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 2002

d. वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 2006

24. निम्नलिखित में से महा विविधता केंद्र के देश किस क्षेत्र में स्थित हैं?

a. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

b. ध्रुवीय क्षेत्र

c. शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र

d. इनमें से सभी

25. किसी पारितंत्र की प्राथमिक उत्पादकता को कौन निर्धारित करते हैं?

a. मानव

b. जीव-जंतु

c. पेड-पौधे

d. इनमें से कोई नहीं

26. जैव-विविधता का संरक्षण लोगों की भागीदारी हो - तभी संभव है, जब इसमें

a. केंद्र स्तर पर

b. राज्य स्तर पर

c. जिला स्तर पर

d. स्थानीय स्तर पर

27. निम्नलिखित में से कौन महा विविधता केंद्र का देश नहीं है?

a. मेक्सिको

b. चीन

c. भारत

d. कनाडा

28. निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र विदेशज प्रजातियों के आगमन और भूमि विकास के कारण असुरक्षित है?

a. इंडोनेशिया

b. ऑस्ट्रेलिया

c. मेडागास्कर

d. हवाई द्वीप

29. निम्नलिखित में से कहाँ जैव-विविधता संसार में सबसे अधिक पाई जाती है?

a. मलेशिया

b. मेडागास्कर

c. इंडोनेशिया

d. ऑस्ट्रेलिया

30. इंदिरा गाँधी नेशनल पार्क कहाँ स्थित है?

a. पूर्वी घाट

b. पश्चिमी घाट

c. अरावली श्रेणी

d. विंध्याचल श्रेणी

31. उष्णकटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की कितनी प्रतिशत प्रजातियाँ पाई जाती हैं?

a. 60%

b. 50%

c. 40%

d. 70%

32. विश्व की तीन-चौथाई जनसंख्या निम्न में से किस क्षेत्र में निवास करती है?

a. पर्वतीय क्षेत्रों

b. शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र

c. शीत कटिबंधीय क्षेत्र

d. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

33. जैव-विविधता को कितने स्तरों में समझा जा सकता है?

a. तीन

b. चार

c. दो

d. पाँच

34. जीवन निर्माण के लिए एक मूलभूत इकाई निम्न में से क्या है?

a. जीन

b. पारितंत्र

c. प्रजाति

d. पर्यावरण

35. निम्नलिखित में से जैव-विविधता की कौन-सी भूमिका है?

a. पारिस्थितिक

b. आर्थिक

c. वैज्ञानिक

d. इनमें से सभी

36. किस अधिनियम के तहत भारत में नेशनल पार्क और पशु विहार स्थापित किए गए?

a. वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972

b. वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 2006

c. वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 2002

d. जैव-विविधता संरक्षण अधिनियम 1972

37. किसी पारितंत्र में पेड़ पौधे निम्न में से किस वर्ग में आते हैं?

a. उत्पादक

b. प्राथमिक उपभोक्ता

c. ‌द्वितीयक उपभोक्ता

d. इनमें से कोई नहीं

38. हवाई द्वीप में जैव-विविधता क्यों असुरक्षित है?

a. विदेशज प्रजातियों के आगमन

b. भूमि विकास

c. उपर्युक्त दोनों

d. इनमें से कोई नही

39. विदेशज प्रजातियों के आगमन से निम्नलिखित में से किन्हें नुकसान पहुँचा है?

a. प्राकृतिक जैव समुदाय

b. विदेशज प्रजातियाँ

c. उपर्युक्त दोनों

d. इनमें से कोई नही

40. जैव-विविधता के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी से संरक्षण किस तरह का होगा?

a. अल्पकालिक

b. दीर्घकालिक

c. उपर्युक्त दोनों

d. इनमें से कोई नहीं

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

1. पृथ्वी पर जैव-विविधता सबसे अधिक कब थी?

उत्तरः पृथ्वी पर जैव-विविधता सबसे अधिक मानव जीवन के प्रारंभ होने से पहले थी।

2. आनुवंशिक जैव-विविधता से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः जीवन निर्माण के लिए जीन एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवंशिक जैव- विविधता कहलाती है।

3. हॉटस्पॉट किसे कहते हैं?

उत्तरः जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के हॉटस्पॉट कहते हैं।

4. विदेशज प्रजातियों से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें विदेशज प्रजातियाँ कहते हैं।

5. सुभेद्य प्रजातियाँ किसे कहते हैं?

उत्तरः वे प्रजातियाँ, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया तो निकट भविष्य में इनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्यधिक कम होने के कारण इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है।

6. रेड लिस्ट क्या है?

उत्तरः आईयूसीएन द्वारा विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियों के बारे में जो सूचना प्रकाशित की जाती है, उसे रेड लिस्ट कहते हैं।

7. मानव आनुवंशिक रूप से किस प्रजाति से संबंधित है?

उत्तरः मानव आनुवंशिक रूप से होमोसेपियंस प्रजाति से संबंधित है।

8. महा विविधता केंद्र किसे कहा जाता है?

उत्तरः वे देश जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित हैं, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है, उन्हें महा विविधता केंद्र कहते हैं।

9. महा विविधता केंद्र के किन्ही पाँच देशों के नाम लिखें।

उत्तरः महा विविधता केंद्र के पाँच देशों के नाम हैं- मेक्सिको, ब्राज़ील, मेडागास्कर, चीन, और भारत ।

10. प्रजाति किसे कहते हैं?

उत्तरः समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. जैव-विविधता से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः जैव-विविधता दो शब्दों के मेल से बना है, बायो का अर्थ है- जीव तथा डाइवर्सिटी का अर्थ है- विविधता। इस तरह जैव-विविधता से तात्पर्य किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता से है।

2. जैव-विविधता के विभिन्न स्तरों को बताएँ।

उत्तरः जैव-विविधता को तीन स्तरों में विभक्त कर समझा जा सकता है-

आनुवंशिक जैव-विविधता- किसी प्रजाति में जीन की विविधता को आनुवंशिक जैव-विविधता कहते हैं।

प्रजातीय विविधता- समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं। किसी निश्चित क्षेत्र में मिलने वाली प्रजातियों की विविधता को प्रजातीय विविधता कहते हैं।

पारितंत्रीय विविधता- किसी प्रदेश में अनेक पारितंत्र मिलते हैं। तथा प्रत्येक पारितंत्र में निश्चित संख्या में पौधों तथा जंतुओं की प्रजातियाँ रहती हैं। किसी पारितंत्र में जैव-विविधता जितनी अधिक होती है, पारितंत्र का स्थायित्व उतना ही अधिक होता है।

3. मानव जाति के लिए जंतुओं के महत्त्व का वर्णन संक्षेप में करें।

उत्तरः जैव-विविधता ने मानव जाति के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है। जंतुओं के द्वारा ही पर्यावरण संतुलित रहता है। जंतु मानव जाति के लिए काफी उपयोगी हैं। यह पारितंत्र में जल व पोषक तत्वों के चक्र को बनाए रखने में, वायुमंडलीय गैस को स्थिर करने में और जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

मनुष्यों के दैनिक जीवन में जंतु एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधीय और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में होती है। साथ ही खादय फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और दवा संसाधन आदि उत्पाद जैव-विविधता के फल स्वरुप उपलब्ध होते हैं।

जैव-विविधता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक प्रजाति यह संकेत दे सकती है कि जीवन का आरंभ कैसे हआ और यह भविष्य में कैसे विकसित होगा। जिससे मनुष्य एक बेहतर पारितंत्र बना पाने में सक्षम हो पाएगा।

4. इन-सीटू और एक्स-सीटू संरक्षण से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः इन-सीटू संरक्षण- प्रकृति में पाई जाने वाली जातियों को उनके यथा स्थान पर संरक्षण प्रदान करने की पद्धति को इन सीटू संरक्षण के नाम से जाना जाता है। जैसे- राष्ट्रीय उ‌द्यान, वन्य जीव अभयारण्य इत्यादि।

एक्स-सीटू संरक्षण- इसके अंतर्गत पेड़ पौधों एवं जीवों को उनके मूल आवास से दूर ले जाकर संरक्षण किया जाता है। जैसे बीज बैंक, जीन बैंक इत्यादि ।

5. जैव-विविधता के हास के क्या कारण हैं?

उत्तरः जैव-विविधता के ह्रास के निम्नलिखित कारण हैं-

जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपभोग।

प्राकृतिक आपदाएँ।

विदेशी प्रजातियों का प्रवेश।

कीटनाशक तथा अन्य प्रदूषक पदार्थों का उपयोग। अवैध शिकार।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. जैव विविधता क्या है? प्रकृति की गुणवत्ता को बनाए रखने में जैव विविधता की भूमिका या महत्व का वर्णन करें।

उत्तरः किसी निश्चित क्षेत्र में निवास करने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को ही जैव-विविधता कहते हैं। इसका वास्तविक सम्बन्ध पौधों के प्रकार, प्राणियों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं, उनकी आनुवंशिकी और उनके द्वारा निर्मित पारितन्त्र से है। जैव-विविधता सजीव सम्पदा होती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार "जैव जंतुओं में मिलने वाली भिन्नता विषमता तथा स्थिति की जटिलता को जैव विविधता कहा जाता है।"

प्रकृति की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जैव विविधता का पारिस्थितिक, आर्थिक, और वैज्ञानिक महत्व निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट हो सकता है:-

पारिस्थितिकीय भूमिका-

पारिस्थितिकी तंत्र में अनेक प्रजातियाँ निवास करती हैं। पारितन्त्र में निवास करने वाली विभिन्न प्रजातियाँ कोई-न-कोई क्रिया करती हैं। पारितन्त्र में निवास करने वाली कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती है और न ही उसमें जीवित रह सकती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि प्रत्येक जीव प्रकृति से अपनी आवश्यकताएँ पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पोषण तथा उनके पनपने में भी सहायक होता है।

जैव प्रजातियाँ दूसरे जीवों का भक्षण कर उनसे ऊर्जा ही ग्रहण नहीं करती बल्कि ऊर्जा का संग्रहण करती हैं, कार्बनिक पदार्थों को उत्पन्न व विघटित करती हैं तथा पारिस्थितिकी तन्त्र में जल व विभिन्न पोषक तत्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं। जैव प्रजातियाँ वायुमण्डलीय गैसों को स्थिर करती हैं तथा जलवायु को नियन्त्रित करने में सहयोग प्रदान करती हैं।

पारिस्थितिकी तन्त्र की जैव-विविधता जितनी अधिक होगी, प्रजातियों की प्रतिकूल परिस्थितियों में रहने की सम्भावना भी उतनी ही अधिक होगी और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी।

इसका प्रमुख कारण यह है कि ऐसे पारिस्थितिकी तन्त्र में एक या दो जीवों के किसी प्रकार विलुप्त होने पर उनके स्थान पर आपूर्ति या प्रतिस्थापन के लिए अन्य जीव भी पारिस्थितिकी तन्त्र में उपलब्ध हो जाते हैं। पारितंत्र की विविधता से प्रजातियों सही स्थिति में रहतीं हैं और इससे उनकी उत्पादकता बढ़ती है। विविधता से भरपूर पारितंत्र स्थाई पारितंत्र कहलाता है।

आर्थिक भूमिका-

जैव विविधता का महत्व किसी राष्ट्र के अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है।

जैव-विविधता का एक महत्वपूर्ण भाग फसलों की विविधता में है जिसे 'कृषि जैव विविधता' भी कहा जाता है। जैव-विविधता ऐसे संसाधन होते हैं, जिनसे मानव को भोज्य पदार्थ, औषधियों तथा सौन्दर्य प्रसाधन प्राप्त होते हैं। खाद्य फसलें, पशु, वन, मत्स्य और दवा संसाधन आदि कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्व के उत्पाद हैं जो जैव विविधता के कारण ही हमें प्राप्त होते हैं।

वैज्ञानिक भूमिका -

वैज्ञानिक अध्ययनों में जैव-विविधता का बहत महत्व होता है। वर्तमान में मिलने वाली जैव प्रजाति से हम यह जान सकते हैं कि जीवन का आरम्भ कैसे हआ तथा भविष्य में यह कैसे विकसित होगा? पारितैन्त्र को कायम रखने में प्रत्येक प्रजाति की भूमिका का मूल्यांकन भी जैव-विविधता के अध्ययन से किया जा सकता है। इससे हम यह भी जान सकते हैं कि पारितन्त्र में मानव के साथ निवास करने वाली अन्य प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार है। इन प्रजातियों को विलुप्त करना नैतिक रूप से एक गलत कार्य है।

2. जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।

उत्तरः आरंभ में जैव-विविधता बड़ी समृद्ध थी, परन्तु मानव की बढ़ती आवश्यकताओं तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति ने जैव-विविधता का ह्रास किया। औ‌द्योगीकरण, नगरीकरण तथा उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण हमने अपने जैव-संसाधनों का अत्यधिक शोषण किया है जिससे हमारी जैव-विविधता खतरे में पड़ गयी है। विश्व में जैव-विविधता के ह्रास के कारक निम्नांकित हैं-

प्राकृतिक आवासों का विनाश- जैव विविधता को सबसे अधिक नुकसान विभिन्न प्रकार के जन्तुओं की प्राकृतिक आवासों की समाप्ति से हुआ है। जनसंख्या की वृद्धि के कारण मानवीय बैस्तियाँ, कृषि, उदयोग एवं अन्य कार्यों के लिए अत्यधिक तीव्रता से वनों की कटाई की गई है, जबकि वन जैव-विविधता के सबसे बड़े संरक्षक और पोषक रहे हैं। उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों में विश्व की कुल जैव प्रजातियों का लगभग 50 प्रतिशत भाग निवासित है। इन वनों का तीव्र दर से होने वाला वनोन्मूलन विश्व का अनेक जैव प्रजातियों के अस्तित्व के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।

प्राकृतिक आपदाएँ- क्षेत्र विशेष में भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी उदगार, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप से भी जैव-विविधता का हास होता है। आपदाओं से वहाँ के वनस्पतियों और जीवों को क्षति होती है। इसके कारण प्रदेश की जैव विविधता में परिवर्तन आ जाता है।

विदेशज प्रजातियों का प्रवेश- जब किसी निवास क्षेत्र में जान-बूझकर या अनायास विदेशज प्रजातियों का प्रवेश हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में उस निवास क्षेत्र में निवास कर रही मौलिक प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और उसे क्षेत्र विशेष की जैव विविधता का ह्रास प्रारंभ हो जाता है। उदाहरणस्वरूप हवाई द्वीप जहाँ विशेष प्रकार की पादप व जंतु प्रजातियाँ मिलती हैं, वहाँ विदेशज प्रजातियों के आगमन के कारण वर्तमान समय में असुरक्षित है।

प्रदूषण : जैव विविधता के ह्रास में प्राकृतिक एवं मानव निर्मित दोनों प्रकार के प्रदूषण का महत्वपूर्ण हाथ होता है जिससे जल, वायु, भूमि प्रदूषण होते हैं, जो जो उ जैव विविधता के ह्रास को बढ़ावा देते हैं। पारिस्थितिकी तन्त्रों में कीटनाशक तथा अन्य प्रदूषक पदार्थों का उपयोग उस तन्त्र की कमजोर प्रजातियों को नष्ट कर देता है।

अवैध शिकार- जैव विविधता के ह्रास का एक मुख्य कारण जंगली जीवों का अवैध शिकार करना भौ है। ज्यादातर अवैध शिकार जंगली जानवरों के माँस, खालों, दाँतों तथा सींगों के लिए किया जाता है।

3. जैव विविधता का संरक्षण क्यों आवश्यक है?

उत्तरः जैव विविधता का संरक्षण अति आवश्यक है, जो निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट होता है-

जैव-विविधता मानवीय जाति के अस्तित्व के लिए अति आवश्यक है। जैव-विविधता के ह्रास से मानव जाति के समक्ष खाद्य आपूर्ति का संकट उत्पन्न हो जाता है। मानव अनेक जंगली पादप प्रजातियों तथा जैव प्रजातियों से मूल्यवान पोषक तत्वों की प्राप्ति करता है। दुर्भाग्यवश मानव ने बीसवीं शताब्दी में अपनी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिस गति से वनों को नष्ट किया है, अति पशु चारणता का कार्य किया है, प्राकृतिक भूमि को कृषि भूमि में बदला है तथा मानवीय अधिवासों को वन, घास व कृषि क्षेत्रों में स्थापित किया है, उससे मानव ने अपने भविष्य के खादय संसाधनों को ही धीरे-धीरे नष्ट किया है। जैव-विविधता के ह्रास का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव जनजातीय वर्ग के लोगों पर पड़ता है, क्योंकि उनकी आजीविका के स्रोत तथा धार्मिक आस्थाएँ जैव-विविधता से घनिष्ठ रूप से जुड़ी होती हैं।

जैव-विविधता किसी भी पारिस्थितिकी तन्त्र की स्थिरता को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पारिस्थितिकी तन्त्र की स्थिरता पर मानव का आर्थिक एवं जैविक जीवन निर्भर करता है। जैव-विविधता का सीधा सम्बन्ध धरातलीय जल प्रवाह के संचालन, मृदा अपरदन के नियन्त्रण, व्यर्थ पदार्थों के अवशोषण, जल के शुद्धिकरण तथा कार्बन व पोषक तत्वों के चक्रण से होता है। अतः जैव-विविधता को होने वाली कोई भी हानि उक्त प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

जैव-विविधता से मानव को आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण संसाधन जैसे लकड़ी, वनौषधियाँ व खाद्य पदार्थ प्राप्त होते हैं साथ ही जैव विविधता से जुड़े व्यवसायों जैसे पर्यटन, जैव उत्पादन व वैज्ञानिक शोध सम्बन्धी कार्यों से विश्व के लाखों व्यक्तियों को रोजगार मिल रहा है।

इसके अतिरिक्त किसी भी पारितन्त्र में एक जैव प्रजाति पर संकट आने पर दूसरी अन्य जैव प्रजातियों का जीवन भी संकट में पड़ जाता है। इस प्रकार जैव प्रजातियों से संकटापन्न होने पर पर्यावरण अवनयन (गिरावट) की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिससे मानवीय अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।

उक्त सभी कारणों से वर्तमान में जैव-विविधता का संरक्षण अति आवश्यक है।

                                                  

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय-सूची

भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत (भाग 'अ')

अध्याय सं.

अध्याय का नाम

1.

भूगोल एक विषय के रूप में

2.

पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

3.

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

4.

महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

5.

भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

6.

भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

7.

वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

8.

सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

9.

वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

10.

वायुमंडल में जल

11.

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

12.

महासागरीय जल

13.

महासागरीय जल संचलन

14.

जैव विविधता एवं संरक्षण

भारत : भौतिक पर्यावरण (भाग 'ब')

1.

भारत : स्थिति

2.

संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

3.

अपवाह तंत्र

4.

जलवायु

5.

प्राकृतिक वनस्पति

6.

प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 - प्रश्नोत्तर


खण्ड – क : भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

1. भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as a Discipline)

2. पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior of the Earth)

4. महासागरों और महाद्वीपों का वितरण (Distribution of Oceans and Continents)

5. खनिज एवं शैल (Minerals and Rock)

6. भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)

7. भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास (Landforms and theirEvolution)

8. वायुमंडल का संघटन तथा संरचना (Composition andStructure of Atmosphere)

9. सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (SolarRadiation, Heat Balance and Temperature)

10. वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ(Atmospheric Circulation and Weather Systems)

11. वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere)

12. विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन (World Climateand Climate Change)

13. महासागरीय जल {Water (Oceans)}

14.  महासागरीय जल संचलन  (Movements of Ocean Water)

15. पृथ्वी पर जीवन (Life on the Earth)

16. जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity andConversation)

खण्ड – ख : भारत-भौतिक पर्यावरण

1. भारत-स्थिति (India Location)

2.  संरचना तथा भू-आकृतिविज्ञान (Structure and Physiography)

3. अपवाह तंत्र (Drainage System)

4. जलवायु (Climate)

5. प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

6. मृदा (Soils)

7. प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ (Natural Hazards andDisasters)

 

खण्ड – 3 : भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य

1. मानचित्र का परिचय (Introduction to Maps)

2. मानचित्र मापनी (Map Scale)

3. अक्षांश, देशांतर और समय (Latitude, Longitude andTime)

4. मानचित्र प्रक्षेप (Map Projections)

5. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps)

6. वायव फोटो का परिचय (Introduction to AerialPhotographs)

7. सुदूर संवेदन का परिचय (Introduction to RemoteSensing)

8. मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट (WeatherInstruments. Maps and Charts)

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