प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
Hindi Elective
पाठ- 11 कवित/सवैया
कवि परिचय
रीतिकाल
के रीतिमुक्त काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि घनानंद हैं। वे दिल्ली के तत्कालीन बादशाह
मुहमदशाह रँगीले के दरबार में मीरमुंशी थे तथा सुजान नामक नर्तकी पर आसक्त थे। एक दिन
दरबारियों ने बादशाह से कहा कि घनानंद बहुत अच्छा गाते हैं। बादशाह ने उन्हें गाना
सुनाने को कहा परंतु घनानंद ने असमर्थता व्यक्त की। इसपर दरबारियों ने कहा कि अगर सुजान
को बुलाया जाय तो वे अवश्य गाना सुनाएँगे। उसे बुलाया गया और घनानंद ने उसकी ओर मुख
और बादशाह की ओर पीठ करके ऐसा गाना सुनाया कि सारा दरबार मंत्रमुग्ध हो गया। बादशाह
ने इसे अपनी अवमानना समझा तथा उन्हें दिल्ली से निष्कासित कर दिया परन्तु सुजान इनके
साथ नहीं गई। सुजान के इस व्यवहार से उन्हें आघात लगा और वे वृंदावन जा कर निंबार्क
सम्प्रदाय में दीक्षित हो गए। वे कृष्ण भक्ति में निमग्न होकर काव्यरचना करते रहे परंतु
वे अपनी प्रेयसी को आजीवन भूल नहीं पाए। वियोग-वर्णन में उनका कोई सानी नहीं है। इसलिए
उन्हें प्रेम की पीड़ा का कवि कहा जाता है। इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना सुजानहित है।
सुजान- सागर, विरह- लीला, रसकेलि वल्ली इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। वे प्रेमसंवेदना एवं
भक्ति संवेदना के कवि हैं। इनकी भाषा परिष्कृत और साहित्यिक ब्रजभाषा है। कोमलता और
मधुरता से ओत-प्रोत है। इन्होंने लोकोक्तियों, मुहावरों के प्रयोग से भाषा के सौन्दर्य
में चार चाँद लगा दिए हैं।
पाठ परिचय
कवित्त
प्रथम
कवित्त में कवि ने अपनी प्रेमिका सुजान से मिलन की उत्कट अभिलाषा प्रकट की है। अपनी
प्रेमिका को देखे हुए बहुत दिन बीत गए हैं। उसने वादा किया परंतु आई नहीं। कवि गहरी
उदासी में डूबा है। मिलन की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गई है। उसके प्राण केवल उसके
आने की आहट को सुनने के लिए बचे हुए हैं। दूसरे कवित्त में कवि को अपने प्रेम पर पूरा
विश्वास है, वह कहता है कि आखिर तुम कब तक मेरे प्रेम को इस तरह ठुकराती रहोगी। एक-
न एक दिन तुम्हें मेरी पुकार सुननी ही पड़ेगी।
सवैया
इस
सवैये में कवि घनानंद की प्रेम की आकुलता और पीड़ा का वर्णन है। कवि अपनी प्रिया के
सौन्दर्य-सुधा का पान करके जीवित था, जब उसकी सुजान उसके साथ थी। संयोग-सुख में उसके
प्राण पलते थे परंतु वियोग की कातर दशा में, वह व्याकुल बना फिरता है। कवि कहते हैं
कि एक समय था, जब दोनों के मध्य प्रेयसी के गले का हार भी उन्हें व्यवधान लगता था,
परंतु आज तो विरह रूपी पहाड़ उसके सामने आकर खड़ा हो गया है। इसमें कवि ने मिलन और
विरह की अवस्थाओं की तुलना की है।
दूसरे
सवैये में कवि अपनी प्रेमिका को एक प्रेमपत्र लिखते हैं, जिसमें उसके सुंदर चरित्र
का वर्णन करते हैं, लेकिन निष्ठुर सुजान उस पत्र को पढ़े बिना ही फाड़कर फेंक देती
है। यह कवि पर बड़ा आघात है और वे इस वेदना से अत्यन्त व्याकुल हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर
प्रश्न 1. 'कवि ने चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को क्यों कहा है?
उत्तर-
इस पंक्ति में कवि को अपनी प्रेयसी सुजान से मिलने की व्यग्रता दिखाई देती है। वह रह
रह कर अपनी प्रेमिका से मिलन की प्रार्थना कर रहा है परन्तु उनकी प्रार्थना का सुजान
(प्रेमिका) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। वे इस कारण दुखी है। कवि आश्वासनों पर विश्वास
करते-करते, उसके आने की प्रतीक्षा करते-करते बुरी तरह थक गया है। उन्हें प्रतीत हो
रहा है कि उनका अंतिम समय आ गया है। अतः वे कह उठते हैं कि बहुत लम्बे समय से मैं तुम्हारे
आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। परंतु तुम्हारा कुछ पता नहीं। तुमसे मिलने की आस में
मेरे प्राण अटक गये हैं। यदि एक बार तुम्हारा संदेश आ जाए तो मैं उन्हें लेकर ही मृत्यु
को प्राप्त कर लूंगा। कवि इन पंक्तियों में अपने जीवन का आधार प्रेमिका के संदेश को
बताते हैं जिसे पाने के लिए उनका मन व्याकुल हो गया है। यदि एक बार उसे संदेश मिल जाए,
तो वह आराम से अपने प्राण त्याग दें।
प्रश्न 2. कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता
है?
उत्तर-
कवि के अनुसार उनकी प्रेमिका कठोर बनी हुई है। वह न उसे मिलने आती है और न ही कोई संदेश
भेजती है। कवि को लगता है कि सुजान ने चुप्पी साध लेने का प्रण किया हुआ है। कवि मौन
रहकर अपनी प्रेमिका सुजान के इस प्रण-पालन को देखना चाहता है कि उसकी प्रेमिका कब तक
कठोर बनी रहती है। वह बार-बार अपनी प्रेमिका को पुकार रहे हैं, उसकी पुकार को कब तक
सुजान अनसुना करती है। कवि यही देखना चाहता है।
प्रश्न 3. कवि ने किस प्रकार की पुकार से 'कान खोलि है' की बात कही
है?
उत्तर-
कवि ने अपनी करुण भरी पुकार से नायिका (सुजान) के कान खोलने की बात कही है। कवि कहता
है कि सुजान कब तक मेरी बातों को अनसुना करेगी। कब तक वह अपने कानों में रुई डालकर
बहरी बनी बैठी रहेगी। एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि मेरे हृदय की पुकार उसके कानो तक अवश्य
पहुॅचेगी। भाव यह है कि कवि को विश्वास है कि एक दिन उसकी प्रेमिका अवश्य उनको प्रेम
भाव से अपना लेगी।
प्रश्न 4. प्रथम सवैये के आधार पर बताइए कि प्राण पहले कैसे पल रहे
थे और अब क्यों दुखी हैं?
उत्तर-
प्रथम सवैये के आधार पर संयोगावस्था होने के कारण प्रेयसी (सुजान) कवि के पास ही थी।
अतः कवि उसे देखकर ही सुख पाता और जीवित था। तब उसके प्राण संतुष्ट होकर पल रहे थे।
उनकी प्रेमिका उनके साथ थी परन्तु अब स्थिति उसके विपरीत है। प्रेमिका के बिछुड़ने
पर उसके प्राण व्याकुल हो उठे हैं। यह वियोगावस्था है। प्रेमिका (सुजान) की अनुपस्थिति
उसे व्याकुल बना रही है। कवि के प्राण अपने प्रेमिका से मिलने के लिए व्याकुल हैं।
इस कारण वह दुखी है । कवि की प्रेमिका सुजान अब कवि के निकट नहीं हैं।
प्रश्न 5. घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में
लिखिए।
उत्तर-
घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताएँ-
(क)
घनानंद की रचनाओं में अलंकारों का सुन्दर वर्णन मिलता है। उसमें मधुरता और कोमलता का
समावेश है। वे अलंकारों का प्रयोग बड़ी प्रवीणता से करते हैं। उनकी दक्षता का परिचय
उनकी रचनाओं का पठन करतें ही मिल जाता है। इनकी भाषा में लाक्षणिकता भी मिलती है। इन्हें
अलंकार प्रयोग में महारथ हासिल है।
(ख)
घनानंद ब्रज भाषा के प्रवीण कवि थे।
(ग)
काव्य भाषा में सर्जनात्मकता के जनक भी थे।
प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।
(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को गहि गहि राखति ही दें हैं सनमान को
।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति में 'कहि कहि, गहि गहि, तथा दै दै की आवृति में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
है।
(ख) कूक भरी मूकता बुलाय आप बोलि हैं।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने अपनी चुप्पी को कोयल की कूक के समान बताया है। इसके माध्यम
से कवि अपनी प्रेमिका (सुजान) पर व्यंग्य करता है। इस पंक्ति में विरोधाभास अलंकार
है।
(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति में घन आनंद शब्द के दो अर्थ हैं। इसमें एक अर्थ आनंद है तो दूसरा
अर्थ स्वयं कवि घनानंद से है। इसमें श्लेष अलंकार है। घ वर्ण की आवृत्ति के कारण इसमें
अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
(क)
बहुत दिनान की अवधि आसपास परे
खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को
उत्तर
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि तुम्हारे ( सुजान) इंतजार में बहुत दिन बीत गए।
इस आस में कि तुम आओगी। अब मेरे प्राण निकलने वाले है। भाव यह है कि कवि इस आस में
थे कि उनकी प्रेमिका अवश्य आएगी परंतु वह नही आयी। अब उनके कुछ ही दिन शेष रह गए हैं
और वह अपने अंतिम दिनों में अपनी प्रेमिका के दर्शन चाहता है।
(ख)
मौन हू सौं देखिहाँ कितेक पन पालिहाँ जू
कूकभरी
मूकता बुलाय आप बोलिहै ।
उत्तर-
कवि मौन रहकर अपनी निष्ठुर सुजान को प्रण का निर्वाह करते हुए देखना चाहता है। कवि
कहते हैं कि मेरी कूकभरी (पुकार भरी) चुप्पी सुजान को बोलने पर विवश कर देगी। भाव यह
है कि कवि की प्रेमिका उससे नही बोल रही है और कवि उसे चुप रहकर बोलने के लिए विवश
कर देंगे।
(ग)
तब तौ छबि पीवत जीवत है, अब सोचन लोचन जात जरे।
उत्तर-
कवि घनानंद सुजान मे मिलकर जीवित रहता था। उसके रूप सौंदर्य का रसपान कर सुख पाता था
और उसको देखकर आनंद से भर उठता था। परंतु अब वियोग की अवस्था है। अब उससे बिछड़ कर
मिलन के क्षणों को याद कर-करके उसके नेत्र जल जाते हैं। अर्थात कवि दुखी है। उसे अब
भी सुजान से मिलने की चाह व आशा है।
(घ)
सो घनानंद जान अजान लौं टूक कियाँ पर बाँचि न देख्यौ ।
उत्तर-
कवि घनानंद ने अपने हृदय का दुख एक प्रेम पत्र में लिखा और सुजान को भेजा था। परंतु
निष्ठुर सुजान ने बिना पढ़े ही उस प्रेम पत्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। अर्थात् यह
कि सुजान ने कवि की भावनाओं को समझे बिना ही उसके हृदय को तोड़ दिया। उसके इस व्यवहार
से कवि का हृदय आहत होता है। उसने एक बार भी पत्र को खोलकर नहीं देखा और पत्र को फाड़
दिया।
(ड.)
तब हार पहार से लागत है, अब बीच में आन पहार परे।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि जब कवि प्रेपसी के साथ रहता था अर्थात् मिलन के क्षणों
में उसके गले का हार पहाड़ के समान प्रतीत होते थे। परन्तु आज हम दोनों के मध्य विरह
रूपी पहाड़ विद्यमान है। भाव यह है कि वियोग के कारण दोनों एक दूसरे से बहुत दूर हो
गए हैं।
प्रश्न 8. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क)
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास स्वै कै,
अब
ना घिरत घन आनंद निदान को।
अधर
लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत
चलन ये सँदेसों लै सुजान को।।
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ घनानंद द्वारा रचित हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में
कवि प्रेमिका के वियोग के कारण अपनी स्थिति का वर्णन करते हैं। कवि मिलन की आस लगाए
बैठे है, परंतु सुजान उनकी ओर से विमुख बनी बैठी है।
व्याख्या मैंने
तुम्हारी झूठी बातों पर विश्वास किया. किन्तु उस पर विश्वास करके आज मैं उदास हूँ।
अब तो उदासी इतनी बढ़ गई है कि अब मेरे हृदय को आनंद देने वाले बादल भी घिरते दिखाई
नहीं दे रहे हैं जो मेरे हृदय को सुख दे पाते। मेरे प्राण अब कंठ तक पहुँच गए हैं अर्थात्
मेरे प्राण निकलने वाले हैं। मेरे प्राण इस लिए अटके हुए हैं कि तुम्हारा कोई संदेश
आए और मैं उसे लेकर ही मरूं। भाव यह है कि कवि अपनी प्रेमिका (सुजान) के संदेश की राह
देख रहा है। उसके प्राण अब संदेश के लिए अटके हुए हैं।
(ख)
जान घनानंद यों मोहि तुम्हें पैज परी,
जानियेगो
टेक टरें कौन धौ मलोलिहै ।।
रुई
दिए रहोगे कहाँ लौ बहरायबे की?
कबहूँ
तो मेरियै पुकार कान खोलि है।
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियों में कवि घनानंद अपनी वियोग की अवस्था का वर्णन करते
हैं। कवि कहते हैं कि उसकी प्रेमिका निष्ठुर हो गई है।
व्याख्या घनानंद
कहते हैं कि हे सुजान तुम्हें अपनी जिद्द छोड़कर मुझसे बोलना ही पड़ेगा। लगता है तुमने
अपने कानों में रुई डाल ली है। इस तरह तुम कब तक मेरी बात नहीं सुनने का बहाना करोगी।
कभी तो ऐसा दिन आएगा, जब तुम्हारे कानों तक मेरी करुण पुकार पहुंचेंगी। भाव यह है कि
सुजान की अनदेखी पर कवि चीत्कार उठते हैं और उसके सम्मुख यह कहने पर विवश हो जाते हैं
कि एक दिन सुजान कवि के प्रेम निवेदन को स्वीकार करेगी।
(ग)
तब तो छबि पीवत जीवत है,
अब
सोचत लोचन जात जरे।
हित-तोष
के तोष सु प्रान पले,
बिललात
महा दुख दोष भरे ।
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि घनानंद रचित सवैया से उद्धत है। इसमें कवि संयोग
और वियोग की स्थिति का वर्णन करते हैं।
व्याख्या- कवि
घनानंद अपनी प्रेयसी सुजान से कह रहे हैं कि जब कवि उसके निकट था तो उसे देखकर जीवित
था अब उसे बिछड़ कर उसे याद करके उसकी आँखे जली जाती हैं। अर्थात् अब वह बहुत व्याकुल
रहता है। प्रेमिका के निकट रहकर उनके प्राण को संतोष मिलता था परंतु अब उनसे दूर रहकर
कवि को महादुख झेलना पड़ रहा है। अब उनका हृदय दुखों से भरा पड़ा है।
(घ)
ऐसो हियो हितपत्र पवित्र जु,
आन-कथा
न कहूँ अवरेख्यौ ।
सो
घनआनंद जान अजान लौं,
टूक
कियौ पर बाँचि न देख्यौ ।
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ रीतिकालीन कवि घनानंद द्वारा रचित सवैया से लिया गया
है। कवि ने अपनी प्रेमिका को जो प्रेम पत्र लिखा है उस पत्र को उसने बिना पढ़े ही फाइ
कर फेंक दिया है। कवि ने प्रेमिका की निष्ठुरता को व्यक्त किया है।
व्याख्या कवि
घनानंद ने थक हार कर प्रेम के सुन्दर चरित्र को पत्र में व्यक्त किया था। उसने विशेष
ध्यान रखा था कि पत्र में कोई अन्य बाते न आएँ। कवि ने ऐसा प्रेम पत्र लिखा था जो अन्यत्र
कहीं भी न मिल सके। यह प्रेम पत्र एक पवित्र कथा के समान था। लेकिन निष्ठुर सुजान
(प्रेमिका) ने बिना पढ़े फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर दिए।
परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. घनानंद वियोग के कवि हैं प्रकाश डालिए।
उत्तर-
घनानंद रीतिकाल के रीति मुक्त काव्य धारा के कवि है जिन्हें वियोग के कवि के रूप में
जाना जाता है। घनानंद सुजान से प्रेम करते थे, किन्तु सुजान ने उनसे बेबफाई की, परिणामस्वरूप
उनका हृदय वियोग वेदना से ओत-प्रोत हो गया। घनानंद ने अपनी वेदना का चित्रण अपनी रचनाओं
में किया है इसलिए उन्हें वियोग वेदना का कवि कहा जाता है। घनानंद की कविताओं में प्रिय
की निष्ठुरता का अपनी विकलता का दर्शन की लालसा का प्रिय के सौन्दर्य आदि का मार्मिक
चित्रण किया गया है।
प्रश्न 2. सो घनानंद जान अजान लौं ट्रक कियो पर बाँचि न देख्यौ के काव्य-सौन्दर्य
पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
भाव पक्ष घनानंद कवि सुजान को उपालम्भ देते हुए कहते हैं कि मैंने हृदयरूपी
प्रेम पत्र आपको पढ़ने हेतु दिया था। आपने अनजान की भांति उसे बिना पढ़े ही टुकड़े-टुकड़े
करके फेंक दिया। यह अच्छा नहीं किया। इस हृदयरूपी प्रेम पत्र पर यह केवल आपके ही सुन्दर
चरित्र अंकित थे अर्थात् मैं तो केवल आपसे ही प्रेम करता था। पर आपने मेरे इस प्रेम
की कदर नहीं की और मेरे हृदय को तोड़कर अच्छा नहीं किया। यही शिकायत आपसे हैं।
कला-पक्ष जान
अजान लौ में विरोधाभास अलंकार है। जान शब्द सुजान और जानकार का बोधक होने से इसमें
श्लेष अलंकार है। सरस साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा लाक्षणिकता से युक्त
है। वियोग रस का प्रभावशाली एवं सफल वर्णन हुआ है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि क्यों दुःखी है?
उत्तर-
कवि घनानंद प्रेमिका (सुजान) के वियोग में दुखी हैं। उनकी प्रेमिका ने कहा था वह उनसे
मिलने आयेगी लेकिन वह कोई जवाब नहीं देती और न ही अपने आने का कोई संदेश भेजती है।
इसलिए कवि दुखी है।
प्रश्न 2. कवि मौन होकर क्या देखना चाहता है?
उत्तर-
कवि मौन होकर यह देखना चाहते हैं कि उनकी प्रेमिका (सुजान) कब तक उसके संदेश का जवाब
नहीं देती। कवि को विश्वास है कि उनका मौन ही उनके प्रेमिका की चुप्पी का जवाब है।
प्रश्न 3. दूसरे सवैये में कवि ने किसका वर्णन किया है?
उत्तर-
दूसरे सवैये में कवि को यह दुःख है कि उसने अपने हृदय के सभी प्रेमभाव से लिखे पत्र,
जो प्रेमिका को भेजे थे वह उसने पढ़े नहीं और टुकड़े टुकड़े करके फेंक दिए।
प्रश्न 4. दोनों कवित्त में क्या विशेष है?
उत्तर-
प्रथम कवित्त में करुण रस है और दूसरे कवित्त में श्रृंगार रस है। दोनों में ही ब्रजभाषा
का प्रयोग किया गया है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
(1) घनानंद किस काल के कवि है?
(1)
भक्तिकाल
(2)
आधुनिकाल
(3) रीतिकाल
(4)
आदिकाल
(2) घनानंद के प्रेमिका का नाम बताएँ ।
(1) सुजान
(2)
मेनका
(3)
(1) एवं (2) दोनों
(4)
इनमें से कोई नहीं
(3) घनानंद की काव्य भाषा क्या है?
(1).
खड़ी बोली
(2)
अवधी
(3) ब्रजभाषा
(4)
बघेली
(4) कवि प्रथम 'कवित्त' किसको संबोधित करता है?
(1) प्रेमिका (सुजान) को
(2)
सखा को
(3)
पिता को
(4)
माता को
(5) 'सुजान सागर' किसकी रचना है?
(1) घनानंद
(2)
केशवदास
(3)
विद्यापति
(4)
तुलसीदास
(6) घनानंद किसे प्रेम पत्र लिखते हैं?
(1)
अप्सरा को
(2)
देवी को
(3)
दोस्त को
(4) सुजान को
(7) संकलित कविता में कवि घनानंद के कितने कवित्त और सवैये दिए हैं?
(1) दो कवित्त दो सवैया
(2)
चार कवित्त तीन सवैया
(3)
तीन कवित्त तीन सवैया
(4)
इनमें से कोई नहीं
(8) घनानंद के प्राण किसमें अटके हुए हैं?
(1) सुजान के दर्शन में
(2)
घर जाने के लिए
(3)
पत्र लिखने के लिए
(4)
इनमें से सभी
(9) निम्न में से कौन सी रचना घनानंद की नहीं है?
(1)
सुजान सागर
(2)
रस केलि वल्ली
(3)
विरह लीला
(4) रसिक प्रिया
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||