12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 गद्य खंड पाठ-1 प्रेमघन की छाया-स्मृति

12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 गद्य खंड पाठ-1 प्रेमघन की छाया-स्मृति

 12th Hindi Elective अंतरा भाग 2 गद्य खंड पाठ-1 प्रेमघन की छाया-स्मृति

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

Hindi Elective

गद्य खंड पाठ-1 प्रेमघन की छाया-स्मृति

लेखक परिचय

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गौना गाँव में हुआ था। उनके पिता कानूनगो ( राजस्व निरीक्षक) थे। शुक्ल जी की औपचारिक शिक्षा इण्टरमीडिएट तक ही हुई थी। पिता उन्हें उर्दू, अंग्रेजी एवं फारसी की शिक्षा दिलाना चाहते थे, परंतु उन्हें हिन्दी से विशेष लगाव था। उन्होंने स्वाध्याय के द्वारा संस्कृत, अंग्रेजी, बाँग्ला और हिन्दी के प्राचीन एवं नवीन साहित्य का अध्ययन किया। वे एक मिशन स्कूल में ड्राइंग शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए। वे नागरी प्रचारिणी सभा में सहायक संपादक भी रहे। तदुपरान्त वे नागरी प्रचारिणी पत्रिका के संपादक भी रहे। वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक रहे तथा वहीं हिन्दी के विभागाध्यक्ष बना दिये गये।

उनकी प्रथम सुविख्यात रचना 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' है। 'रस मीमांसा' 'चिन्तामणि' उनकी महत्वपूर्ण कृति है। उन्होंने 'जायसी ग्रंथावली' तथा 'भ्रमरगीत सार का संपादन भी किया। शुक्ल जी हिन्दी के उच्च कोटि के आलोचक, इतिहासकार और साहित्य चिंतक हैं। उनकी गद्य शैली अत्यन्त जीवंत और प्रभावशाली है। उनके गद्य में व्यंग्य और विनोद का गहरा पुट भी मिलता है। आचार्य शुक्ल बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे।

पाठ परिचय

प्रेमघन की छाया - स्मृति एक संस्मरणात्मक निबंध है। इसमें शुक्लजी ने आत्मकथात्मक शैली में हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति अपने प्रारंभिक रुझानों का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है। लेखक का बचपन साहित्यिक परिवेश से भरा-पूरा था। इस निबंध में यह बताया गया है. कि. शुक्ल जी बाल्यावस्था से ही भारतेन्दु मंडल के साहित्यकारों के सम्पर्क में आ गए थे। विशेषकर बदरी नारायण चौधरी प्रेमघन ने उन्हें तथा उनकी समवयस्क मंडली को प्रभावित किया तथा उनके मार्गदर्शन में उनके व्यक्तित्व का परिमार्जन हुआ। शुक्लजी के पिताजी फारसी के अच्छे ज्ञाता थे। वे पुरानी हिंदी कविता के प्रेमी थे। वे रात में अपने घर के सभी सदस्यों को रामचरित मानस तथा रामचन्द्रिका को पढ़कर सुनाया करते थे। शुक्लजी को भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक प्रिय लगते थे। जब शुक्लजी की उम्र आठ वर्ष की थी तब उनकी बाल बुद्धि राजा हरिश्चंद्र तथा कवि हरिश्चंद्र में कोई अंतर नहीं समझ पाती थी। मिर्जापुर आने पर पता चला कि हिंदी के प्रसिद्ध कवि बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन यहाँ रहते हैं, जो भारतेन्दु हरिश्चंद्र के मित्र थे। बहुत प्रयत्न करके वे अपने मित्रों के साथ उनके मकान के नीचे उनकी एक झलक पाने को प्रतीक्षा करते रहे और उन्हें प्रेमघन के दर्शन हुए। लेखक ज्यों-ज्यों सयाने होते गए, त्यों-त्यो उनका झुकाव हिंदी साहित्य की ओर बढ़ता गया। वे केदारनाथ पाठक की पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर पढ़ा करते थे। उनकी मित्र मंडली में काशी प्रसाद जायसवाल भगवानदास हालना, पं० बदरीनाथ गौड़, पं० उमाशंकर द्विवेदी आदि थे। चौधरी साहब से लेखक का अच्छा परिचय हो गया था। लेखक सदा शुद्ध हिंदी बोलते थे जिससे अन्य लोगों को विचित्र लगता था। प्रेमघन रईस व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व में बड़प्पन झलकता था तथा प्रायः उनके कथन वक्र होते थे अर्थात् वे बातों को घुमा-फिरा कर बोलते थे। जिसका अच्छा चित्रण लेखक ने किया है। इस संस्मरण में लेखक ने अपने पिता, बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बदरीनारायण चौधरी, पं० केदारनाथ पाठक के व्यक्तित्व और कृतित्व की विशेषताओं के साथ-साथ उनके भीतर के लेखक के आकार लेते स्वरूप से एक साथ परिचय कराया है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक ने अपने पिताजी के किन किन विशेषताओं का उल्लेख किया ?

उत्तर- लेखक ने अपने पिताजी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है। लेखक के पिताजी फारसी के अच्छे ज्ञाता थे। उन्हें हिंदी की पुरानी कविता से प्रेम था तथा हिंदी में लिखे वाक्यों को फारसी में अनुवाद करने का शौक था। लेखक के पिता हर रात अपने परिवार को रामचरितमानस को चित्रात्मक ढंग से सुनाने का शौक रखते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटकों के प्रशंसक भी थे।

प्रश्न 2. बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी ?

उत्तर- बचपन में लेखक के पिता उन्हें भारतेंदु जी के नाटक पढ़कर सुनाया करते थे। इस कारण लेखक के बाल मन में मधुर भावना भारतेंदु के प्रति जगी रहती थी। वे राजा हरिश्चंद्र तथा कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र में अंतर नहीं कर पाते थे। इसलिए लेखक के मन में बचपन से ही भारतेंदु जी के संबंध में एक अपूर्व मधुर भावना जगी रहती थी।

प्रश्न 3. उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी है ?

उतर- लेखक के पिता का मिर्जापुर में बदली होने के बाद जब लेखक मिर्जापुर आए, तो पता चला कि भारतेंदु के एक मित्र उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन यहाँ रहते हैं। लेखक ने बालकों की मंडली बनाकर जो उनके घर से परिचित थे उन्हें लेकर डेढ़ मील का सफर तय करने के बाद पत्थर के एक बड़े मकान के पास पहुंचे। वहां से खाली बरामदा दिखाई देता था, घनी लताओं के कारण बीच-बीच खंभे तथा खुली जगह दिखाई पड़ती थी, सड़क के चक्कर लगाने के बाद लताओं के समूह में एक मूर्ति खड़ी दिखाई पड़ी | दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे, देखते ही देखते वह एकदम से ओझल हो गई इस प्रकार लेखक ने पहली झलक देखी थी।

प्रश्न 4 लेखक का हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया ?

उत्तर- लेखक के पिता हिंदी प्रेमी थे। इस कारण बचपन से ही हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव रहा। जैसे -जैसे लेखक बड़ा हुआ, उसका झुकाव हिंदी साहित्य की तरफ बढ़ता गया। उसके पिता के पास भारत जीवन प्रेस की पुस्तकें आती थीं। वह केदारनाथ जी पाठक के हिंदी पुस्तकालय से पुस्तक लाकर पढ़ने लगा इस प्रकार वे हिंदी साहित्य के रस में दिनों दिन डूबता चला गया।

प्रश्न 5. 'निस्संदेह' शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का जिक्र किया है?

उत्तर- मिर्जापुर में लेखक के साथ हिंदी प्रेमियों की मंडली थी। वे हिंदी के नए पुराने लेखकों की चर्चा करते रहते थे। वे प्रायः बातचीत में शुद्ध हिंदी का प्रयोग करते थे, इसमें निस्संदेह इत्यादि शब्द का प्रयोग अधिक होता था। लेखक के आसपास में उर्दू भाषा का अधिक प्रभाव था उनके लिए शुद्ध हिंदी अनोखी भाषा भी थी। अतः उन्होंने लेखक मंडली का नाम निस्संदेह रखा हुआ था।

प्रश्न 6. पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है ऐसे तीन घटनाएं चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए ?

उत्तर- ये रोचक घटनाएं निम्नलिखित है-

बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन' की बातचीत का ढंग उनके लेखों के ढंग से एकदम निराला होता था। नौकरों तक के साथ उनका संवाद सुनने लायक होता था, अगर किसी नौकर के हाथ से कभी कोई गिलास वगैरह गिरा तो उनके मुंह से यही निकला कि 'कारे बचा त नाहीं । उनके प्रश्नों के पहले क्यों साहब अक्सर लगा रहता था।

मिर्जापुर में पुरानी परिपाटी के एक बहुत ही प्रतिभाशाली कवि रहते थे। जिनका नाम था वामन आचार्य गिरि एक दिन वे सड़क पर चौधरी साहब के ऊपर एक कविता जोड़ते चले जा रहे थे। अंतिम चरण रह गया था कि चौधरी साहब अपने बरामदे में कंधों पर बाल छिटकाए खंभे के सहारे खड़े थे । उनको खंभे के साथ खड़े देखकर वह भी पूरा हो गया। उसका अंतिम पद था खंभा टेकी खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।

एक दिन चौधरी साहब के एक पड़ोसी उनके यहां पहुंचे | देखते ही सवाल हुआ क्यों साहब एक बात मैं अक्सर सुना करता हूं, पर उसका ठीक अर्थ समझ में आया नहीं। आखिर घनचक्कर के क्या मायने हैं। पड़ोसी ने कहा वाह! यह क्या मुश्किल बात है, एक दिन रात को सोने के पहले कागज कलम लेकर सवेरे से रात तक का जो-जो काम किए हो सब लिख जाइए और पढ़ जाइए।

एक दिन लोग बैठे बातचीत कर रहे थे कि इतने में एक पंडित जी आ गए। चौधरी साहब ने पूछा "कहिए क्या हाल है ? पंडित जी बोले " कुछ नहीं आज एकादशी थी कुछ जल खाया है और चले आ रहे हैं।" प्रश्न हुआ- जल ही खाया है कि कुछ फलाहार भी पिया है।

प्रश्न 7. "इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।" यह कथन किस के संदर्भ में कहा गया है और क्यों? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- "इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अदभुत मिश्रण रहता था " यह कथन उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन के बारे में कहा गया है। इसका कारण यह है कि उनकी आयु लेखक मंडली से बहुत अधिक थी। वे उन्हें पुरानी चीज समझते थे, इस कारण वे उन्हें समझने की कोशिश करते थे। उनके मन में एक कुतूहल रहता था।

प्रश्न 8. प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन किन पहलुओं को उजागर किया ?

उत्तर- लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है-

उनके बात करने का ढंग निराला था, उसमें विलक्षण वक्रता रहती थी। वे लोगों को बनाया करते थे, वे विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी थे। चौधरी साहब खासे हिंदुस्तानी रईस थे. उनके घर पर त्यौहार पर उत्सव मनाया जाता था. तथा उनकी हर अदा से रियासत तथा तबीयतदारी टपकती थी ।

प्रश्न 9. समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में कौन कौन से लेखक मुख्य थे?

उत्तर- लेखक की समवयस्क हिंदी प्रेमियों के मंडली में प्रमुख लेखक थे पंडित बद्रीनाथ गौड़ पंडित उमाशंकर द्विवेदी, पंडित लक्ष्मी नारायण चौबे, बा. भगवानदास हालना, श्री काशी प्रसाद जी जयसवाल आदि लेखक थे।

प्रश्न 10. 'भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय-परिचय बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया' कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर- लेखक की भेंट पंडित केदारनाथ जी पाठक से भारतेंदु जी के घर के नीचे हुई। जब लेखक को पता चला कि यह मकान भारतेंदु जी का है तो भावनाओं में खो गए। उनकी यह भावुकता देखकर केदारनाथ जी प्रभावित हुए। वे दोनों मित्र बन गए। यहीं से लेखक की हिंदी प्रेमियों की एक मंडली बननी शुरू हो गई। यह लेखक के जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव था।

परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. लेखक के पिता भारत जीवन प्रेस की पुस्तकें छिपाकर क्यों रखते थे तथा लेखक ने पुस्तकें पढ़ने के लिए कौन- सा मार्ग अपनाया?

उत्तर- लेखक के पिता साहित्य प्रेमी थे। उन्हें भारतेंदु हरिश्चंद्र बहुत प्रिय थे। उनके संस्कारों का प्रभाव लेखक पर भी पड़ा. जिस कारण उनका हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव बढ़ता गया। लेखक के घर भारत जीवन प्रेस से पुस्तकें आती थीं, लेकिन लेखक के पिता उन पुस्तकों को छिपाकर रखने लगे, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं लेखक का ध्यान स्कूल की पढ़ाई से हट न जाए तथा वह बिगड़ न जाए। लेखक ने पुस्तकें पढ़ने के लिए पंडित केदारनाथ जी पाठक द्वारा खोले गए पुस्तकालय में जाकर वहां से पुस्तकें लाकर पढने का मार्ग अपनाया ।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक के पिताजी भारत जीवन प्रेस की किताबें देते थे क्यों? छुपा

उत्तर- लेखक के पिताजी को यह डर था, कहीं उनके बेटे रामचंद्र शुक्ल जी का मन स्कूल की पढ़ाई से हट न जाए इसलिए वह प्रेस की किताबें छुपा देते थे।

प्रश्न 2. उपाध्याय जी कौन सी भाषा के समर्थक पे?

उत्तर- उपाध्याय जी नागरी भाषा के समर्थक थे और हमेशा से ही नागरी भाषा में लिखते थे। उनका कहना है कि नागर अपभ्रंश से जो लोगों की भाषा विकसित हुई है वही नागरी कहलाई ।

प्रश्न 3. चौधरी साहब किस स्वभाव के व्यक्ति थे ?

उत्तर- चौधरी साहब खानदानी रईस थे। उनके बात करने का तरीका उनके लेखों से बिल्कुल अलग था। वे एक खुशमिजाज और हर बात पर व्यंग्य देने वाले स्वभाव के व्यक्ति थे।

प्रश्न 4. इस पाठ के आधार पर लेखक की शैली का वर्णन कीजिए ?

उत्तर- लेखक ने इस पाठ में बहुत ही खूबसूरत और आकर्षक शैली का प्रयोग किया है। लेखक ने प्राचीन समय की बातों को ठीक-ठीक रूप में सामने लाने की कोशिश की है। तब के समय में बोली जाने वाली स्थानीय भाषा या जन भाषा हिंदी तथा उर्दू के सुंदर मिश्रित रूप का प्रयोग किया है। यह रचना तत्कालीन समय के सामाजिक परिवर्तन, वातावरण तथा सामाजिक स्थिति का सटीक वर्णन करती है। यह पाठ प्राचीन भारत के दर्शन को रोचक शैली में आधुनिकता के साथ प्रस्तुत करता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. प्रेमघन की छाया स्मृति निबंध किस शैली में लिखा गया है ?

(1) विचारात्मक का

(2) आलोचनात्मक

(3) संस्मरणात्मक

(4) विवरणात्मक

प्रश्न 2. लेखक के पिताजी का तबादला कहां हो गया था ?

(1) जयपुर में

(2) मिर्जापुर में

(3) गोरखपुर में

(4) कोलकाता में

प्रश्न 3. मिर्जापुर आने से पहले ही लेखक के मन में किसके प्रति विशेष स्नेह की भावना थी ?

(1) भारतेंदु हरिश्चंद्

(2) राजा हरिश्चंद्र

(3) बाल मंडली हिंदी

(4) साहित्य प्रेमियों के प्रति

प्रश्न 4. लेखक के पिता रात को कौन सी किताब पढ़ा करते थे ?

(1) रामायण

(2) महाभारत

(3) रामचरितमानस

(4) श्रीमद्भगवद्गीता

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किस प्रेस की पुस्तकें लेखक के घर आतीं थी?

(1) हिंदुस्तान

(2) भारत जीवन

(3) सरस्वती

(4) हंस

प्रश्न 6. लेखक के पिताजी को किस भाषा का अच्छा ज्ञान था ?

(1) अरबी

(2) बंगला

(3) उर्दू

(4) फारसी

प्रश्न 7. उपाध्याय जी मिर्जापुर का क्या अर्थ बताते थे?

(1) लक्ष्मीपुर

(2) दुर्गापुर

(3) विष्णुपुर

(4) मानपुर

प्रश्न 8. लेखक के आयु बढ़ने के साथ-साथ उनकी रूचि किसके प्रति बढ़ने लगी ?

(1) सिनेमा के प्रति

(2) हिंदी साहित्य के प्रति

(3) लेखन के प्रति

(4) नाटक के पर

प्रश्न 9. लेखक को कितने साल की उम्र से ही हिंदी की मित्र मंडली मिलने लगी थी ?

(1) 10 वर्ष

(2) 14 वर्ष

(3) 12 वर्ष

(4) 16 वर्ष

प्रश्न 10. लेखक के पिता का तबादला जब हमीरपुर से मिर्जापुर हुआ तब लेखक की उम्र कितनी थी ?

(1) 18 वर्ष

(2) 12 वर्ष

(3) 8 वर्ष

(4) 10 वर्ष

JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अंतरा भाग 2

पाठ

नाम

खंड

कविता खंड

पाठ-1

जयशंकर प्रसाद

(क) देवसेना का गीत

(ख) कार्नेलिया का गीत

पाठ-2

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(क) गीत गाने दो मुझे

(ख) सरोज - स्मृति

पाठ-3

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

(क) यह दीप अकेला

(ख) मैंने देखा एक बूँद

पाठ-4

केदारनाथ सिंह

(क) बनारस

(ख) दिशा

पाठ-5

विष्णु खरे

(क) एक कम

(ख) सत्य

पाठ-6

रघुबीर सहाय

(क) बसंत आया

(ख) तोड़ो

पाठ-7

तुलसीदास

(क) भरत - राम का प्रेम

(ख) पद

पाठ-8

मलिक मुहम्मद जायसी

बारहमासा

पाठ-9

विद्यापति

पद

पाठ-10

केशवदास

कवित्त / सवैया

पाठ-11

घनानंद

कवित्त / सवैया

गद्य खंड

पाठ-1

रामचन्द्र शुक्ल

प्रेमधन की छायास्मृति

पाठ-2

पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

सुमिरनी के मनके

पाठ-3

ब्रजमोहन व्यास

कच्चा चिट्ठा

पाठ-4

फणीश्वरनाथ 'रेणु'

संवदिया

पाठ-5

भीष्म साहनी

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफत

पाठ-6

असगर वजाहत

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

पाठ-7

निर्मल वर्मा

जहाँ कोई वापसी नहीं

पाठ-8

रामविलास शर्मा

यथास्मै रोचते विश्वम्

पाठ-9

ममता कालिया

दूसरा देवदास

पाठ-10

हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज

अंतराल भाग - 2

पाठ-1

प्रेमचंद

सूरदास की झोपडी

पाठ-2

संजीव

आरोहण

पाठ-3

विश्वनाथ तिरपाठी

बिस्कोहर की माटी

पाठ-

प्रभाष जोशी

अपना मालवा - खाऊ- उजाडू सभ्यता में

अभिव्यक्ति और माध्यम

1

अनुच्छेद लेखन

2

कार्यालयी पत्र

3

जनसंचार माध्यम

4

संपादकीय लेखन

5

रिपोर्ट (प्रतिवेदन) लेखन

6

आलेख लेखन

7

पुस्तक समीक्षा

8

फीचर लेखन

JAC वार्षिक इंटरमीडिएट परीक्षा, 2023 प्रश्न-सह-उत्तर

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