प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
Hindi Elective
पाठ - 4 (क) बनारस
कवि परिचय
केदारनाथ
सिंह का जन्म स्थान बलिया जिला के चकिया नामक ग्राम है। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
से हिन्दी में एम. ए. किया। उसके बाद 'आधुनिक हिन्दी कविता में 'बिम्ब- विधान विषय
पर पीएच० डी० की। ये कुछ वर्ष तक गोरखपुर में प्राध्यापक के पद पर रहे। उसके बाद उन्होंने
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय भारतीय भाषा केंद्र में हिन्दी के प्रोफेसर पद से अवकाश
ग्रहण किया। केदारनाथ सिंह 1950 ई0 से लिखने लगे थे। उनकी काव्यकृतियाँ निम्नलिखित
हैं- 'अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो' 'अकाल में सारस' उत्तर कबीर'
इत्यादि । कवि मानवीय संवेदना और प्रकृति के कवि हैं। अपनी कविताओं में वे बिंब-विधान
को अधिक महत्व देते हैं। संवेदना और विचार बोध उनकी कविता में साथ-साथ चलते हैं। उनके
अनुसार जीवन के बिना प्रकृति और वस्तुएँ कुछ भी नहीं हैं। यह अनुभूति उन्हें आदमी के
और निकट ले आती है। फलस्वरूप उनकी भाषा अधिक लचीली और पारदर्शी बन गयी है। उनके शिल्प
में बातचीत की सहजता और अपनत्व सहज ही नजर आता है।
पाठ परिचय
बनारस
कविता में वसंत के बहाने प्राचीनतम नगर बनारस की महान सांस्कृतिक परंपराओं, वहाँ के
लोक-जीवन की विशिष्टताओं, प्राचीनकाल के गौरव और धरोहरों पर प्रकाश डालते हुए, वर्तमान
की विडंबनाओं पर भी प्रकाश डाला गया है।
बनारस
को शिव की नगरी एवं तीनों लोकों से न्यारा कहा जाता है। यहाँ से प्रवाहित होने वाली
गंगा का विशेष महात्म्य है। यहाँ की गंगा से लोगों की विशिष्ट आस्था भी जुड़ी है। बनारस
में गंगा, गंगा के घाट, मंदिर तथा घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरों में अचानक
उतरते बनारस के अक्स को कवि देखता है। कहा जाता है कि काशी और गंगा का सान्निध्य पाकर
मनुष्य सीधे मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यही कारण है कि जो जीवन काल में बनारस नहीं
जा पाते, उनके परिजन मृत्यु पश्चात उनका दाह संस्कार वहीं करते हैं। इस तरह बनारस में
अहर्निश चिता भी जलती रहती है। गंगा में बँधी नाव, मंदिरों घाटों पर प्रज्ज्वलित दीप
एवं हवन आदि से उठते धुएँ, यही तो बनारस की पहचान है। बनारस में हर काम अपनी रौ-एक
विशिष्ट तरंग या गति में होता है। फिर भी बनारस स्वयं इन सबसे निर्लिप्त भी रहता है।
बनारस का यही चरित्र है। कवि कहता है कि बनारस आस्था, भक्ति, श्रद्धा, वैराग्य, विरक्ति
और विश्वास का अद्भुत संगम है। बनारस रहस्यपूर्ण शहर है और कवि इस कविता में उन रहस्यों
को खोलते हैं। कविता की भाषा अत्यन्त सरल और सुबोध है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है? और उसका क्या प्रभाव
इस शहर पर पड़ता है?
उत्तर-
बनारस में वसंत का आगमन बिना शोर शराबे का, अन्य जगहों से भिन्न रूप में होता है। वसंत
के आगमन के साथ धूल का बवंडर उठने लगता है, जो लोगों के मुँह में पड़कर उनकी जीभों
में किरकिराहट उत्पन्न करता है। वसंत के आने पर भी बनारस के मूलभूत स्वरूप, स्वभाव
एवं संस्कार में कोई परिवर्तन नहीं आता।
प्रश्न 2. 'खाली कटोरों में वसंत का उतरना' से क्या आशय है?
उत्तर-
वसंत के समय श्रद्धालुओं की भीड़ अधिक हो जाने के कारण भिखारियों के खाली कटोरे सिक्कों
से भर जाते हैं। भिखारियों की इस खुशी की वसंत से तुलना की गई है। उनके लिए वसंत का
यही एहसास है। खाली कटोरों में वसंत के उतरने की यही अर्थ व्यंजना है।
प्रश्न 3. बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया
है?
उत्तर-
बनारस मोक्ष की नगरी मानी जाती हैं। यहाँ मंदिरों और घाटों पर जलने वाले दीये उसकी
पूर्णता के प्रतीक हैं तो दूसरी ओर अहर्निश के शवदाह और हवन के धुएँ-मृत्यु के द्वारा
पैदा की गयी रिक्तता को दर्शाते हैं।
प्रश्न 4. बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है? धीरे-धीरे से कवि क्या
कहना चाहता है ?
उत्तर-
कवि के अनुसार बनारस में कोई आपा-धापी भाग-दौड़ नहीं है। यहाँ मनुष्य और प्रकृति के
सारे क्रिया-कलाप धीरे-धीरे सम्पन्न होते हैं। यहाँ धूल धीरे-धीरे उतरती है। इस 'धीरे-धीरे
का मतलब इस शहर की आपाधापी से मुक्त जीवन की शांत और सुस्त चाल से है।
प्रश्न 5. धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या क्या बँधा है ?
उत्तर-
बनारस शहर में धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में यहाँ की पुरानी परम्पराएँ, धार्मिक,
आध्यात्मिक आस्थाएँ, गंगा और उसके घाटों एवं मंदिरों की अवस्थिति नावों के बाँधने आदि
की जगहें बँधी हुई हैं, अर्थात् उनके स्वरूप और स्वभाव में सहस्त्राब्दियों के बाद
भी कोई परिवर्तन नहीं आया है।
प्रश्न 6. सई साँझ घुसने पर बनारस की किन विशेषताओं का पता चलता है?
उत्तर-
सई साँझ बनारस में प्रवेश करने पर इसकी अद्भुत बनावट पर ध्यान जाता है। यह शहर आधा
जल में डूबा हुआ और आधा बाहर निकला हुआ प्रतीत होता है। शहर की आधी आबादी मंत्र जपती
हुई आधी पुष्पांजलि देती हुई आधी आबादी चिताग्नि में जलती हुई, आधी आबादी शंख बजाती
हुई, पूजा- पाठ करती हुई, पुष्प अर्पण करती हुई आधी आबादी नींद में पड़ी हुई दिखाई
पड़ती है। ध्यानपूर्वक देखने से यह शहर आधा ही नजर आता है और आधा छुपा ही रहता है।
प्रश्न 7. बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं,
उनके व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि ने 'बनारस' कविता में बनारस शहर की प्रवृत्तियों का मानवीकरण किया है। वसंत के
आगमन के साथ शहर की सुगबुगाहट मनुष्य के जगने की प्रवृत्ति को दर्शाती है। पुराने शहर
की जीभ का किरकिराना तथा दशाश्वमेध घाट के आखिरी पत्थर का कुछ और मुलायम हो जाना, शहर
की प्रवृत्तियों को मानवीय क्रियाओं में स्पष्ट करने का प्रयास है। कवि ने एक टाँग
पर खड़े होकर अर्घ्य देते व्यक्ति की तरह शहर की प्रवृत्तियों को सामने लाकर बनारस
की जीवन शैली को स्पष्ट करने का सुंदर प्रयोग किया है।
प्रश्न 8. शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क)
यह धीरे-धीरे होना------समूचे शहर को '
(ख)
'अगर ध्यान से देखो------और आधा नहीं है'
(ग)
अपनी एक टॉग पर-------बेखबर
उत्तर-
(क)
*
सहज तथा सामान्य बोलचाल की भाषा में बनारस के जीवन को दार्शनिकता के साथ अभिव्यक्त
किया गया है।
*
तत्सम तथा देशज शब्दों से युक्त सरल, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयता का गुण भाषा में सर्वत्र
दिख जाता है। 'धीरे-धीरे में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
*
प्रसाद गुण है।
(ख)
*
सहज, सरल तथा आम बोल-चाल की व्यावहारिक शब्दावली।
*
मुक्त छंद की कविता ।
*
प्रसाद गुण ।
*
बनारस की आध्यात्मिकता की ओर संकेत किया गया है।
(ग)
*
बनारस श्रद्धा और भौतिकता, प्राचीनता और नवीनता का सुंदर समन्वय है।
*
भाषा वैविध्यपूर्ण, बेखबर उर्दू शब्द, सहज, सरल आम बोल-चाल की भाषा।
*
'बिल्कुल बेखबर' में अनुप्रास अलंकार तथा एक टाँग पर खड़ा है यह शहर में मानवीकरण अलंकार
है।
*
कवि ने सूक्ष्म तथा गंभीर अर्थ प्रकट करने वाली चेतना को दिशा दी है।
*
प्रसाद गुण ।
*
मुक्त छंद ।
परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क)
इस शहर में वसंत अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है।
उत्तर-
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यावतरण कविवर केदारनाथ सिंह की कविता बनारस से उद्धृत
है। इस अवतरण में बनारस में वसंत किस तरह आता है, उसी का वर्णन हुआ है।
व्याख्या-
कवि कहता है कि बनारस में वसंत अचानक आता है, और जब भी आता है, तब उसके किसी महल्ले
चाहे वह लहरतारा हो या मडुआडीह उसकी तरफ से एक तेज धुल का बवंडर उठता है और सारे शहर
में फैल जाता है। धूल के बवंडर के कारण इस पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है अर्थात
लोगों के मुँह में धूल भर जाती है।
विशेष:
'शहर की जीभ का किरकिराना' एक नवीनतम अर्थ- व्यंजक प्रयोग है। शहर के पुरानेपन के साथ
धुल का बवंडर वसंत के आगमन के आनंद को थोड़ा बदमजा कर देता है ठीक उसी तरह जिस तरह
स्वादिष्ट पकवान में धुल या कंकड़ का कण पड़ जाने से मन खीझ उठता है। कुछ वैसा ही हाल
बनारस का हो जाता है। शहर की जीभ की किरकिराहट में मानवीकरण अलंकार का सौंदर्य है।
कवि ने भावपूर्ण एवं सटीक शब्दों का चयन किया है।
(ख)
जो है वह सुगबुगाता है
जो
नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी
दशाश्वमेघ पर जाता है
और
पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ
और मुलायम हो गया है
सीढ़ियों
पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक
अजीब सी नमी है
और
एक अजीब सी चमक से भर उठा है
भिखारियों
के कटोरे का निचाट खालीपन
उत्तर-
(i)
प्रसंग प्रस्तुत काव्यावतरण कवि केदारनाथ सिंह की कविता बनारस से
उद्धृत है। इन काव्य पंक्तियों में कवि ने बनारस में वसंत के आगमन के प्रभाव को दर्शाया
है।
(ii)
व्याख्या - वसंत के आगमन के साथ बनारस शहर सुगबुगाने लगता है अर्थात्
उगी हुई वनस्पतियों में हरियाली झलकने लगती हैं और बीज धरती के भीतर पड़े होते हैं।
उनके अंकुर फूट निकलते हैं। लोग दशाश्वमेघ घाट जाते हैं और पाँव रखते ही घाट के आखिर
पत्थर के स्पर्श में एक नई कोमलता का अहसास होता है। घाट की सीढ़ियों पर बैठे बंदरों
की आँखों में बिल्कुल नयी किस्म की चमक और नमी दिखाई पड़ने लगती है। यहाँ तक कि भिखारियों
का बिल्कुल खाली कटोरा भी एक अजीब चमक से भर उठता है अर्थात घाटों पर आवाजाही बढ़ने
से भिखारियों के खाली कटोरों में कुछ सिक्के ज्यादा गिरने लगते हैं।
(iii)
विशेष- इन वर्णनों के माध्यम से कवि ने बनारस की पोर- पोर में
छा जाने वाली उमंग, मस्ती और एक नयी उम्मीद की ओर संकेत किया है। अभिधात्मक और विवरणात्मक
वर्णन में देशज शब्दों का प्रयोग कवि ने किया है।
(ग)
तुमने कभी देखा है
खाली
कटोरों में वसंत का उतरना !
यह
शहर इसी तरह खुलता है
इसी
तरह भरता है
और
खाली होता है यह शहर
इसी
तरह रोज-रोज एक अनंत शव
ले
जाते हैं कंधे
अँधेरी
गली से
चमकती
हुई गंगा की तरफ ।
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत काव्यावतरण केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस' से अवतरित है। इन
काव्य पंक्तियों में कवि ने वसंतकालीन बनारस के परिवेश से परिचित कराया है।
व्याख्या-
कवि पाठकों से ही प्रश्न पूछते हैं कि क्या तुमने कभी बनारस में वसंत को आते देखा है।
जब बनारस में वसंत आता है, अर्थात् श्रद्धालु जब यहाँ आते हैं तो भिखारियों के कटोरों
में सिक्के बढ़ जाने से उनकी आँखों में खुशी के मारे चमक आ जाती है। मान्यता है कि इस
पवित्र नगरी में अंतिम संस्कार होने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए
लोग दूर दराज से भी अपने परिजनों के शव यहाँ लेकर आते हैं और अंतिम संस्कार करते हैं।
कवि कहते हैं कि श्रद्धालुओं के आने से एक ओर तो यह शहर भरता जाता है, वहीं दूसरी ओर
शवों के दाह संस्कार से खाली होता जाता है।
विशेष-
इस कविता में कवि ने नये प्रयोग किए हैं। शहर के खुलने से कवि का अभिप्राय है कि बनारस
शहर धीरे-धीरे खुलता है। यहाँ कुछ भी अचानक नहीं होता। यहाँ जितना नया जीवन रूपाकार
ग्रहण करता है, मृत्यु उसी अनुपात में उसे खाली भी करती रहती है। कंधों पर अनंत शव
के ढोए जाने से कवि का तात्पर्य है कि यहाँ शवदाह का अनवरत सिलसिला चलता रहता है। वसंत
के आगमन पर भी बनारस शहर अपना रूप एवं रंग-ढंग नहीं बदलता। वह अपनी चाल में चलता रहता
है। ऐसा अनोखा शहर है। बनारस ।
(घ)
यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे
होने की सामूहिक लय
दृढ़ता
से बांधे है समूचे शहर को
इस
तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि
हिलता नहीं कुछ भी
कि
जो चीज जहाँ थी
वहीं
पर रखी है।
कि
वहीं पर बंधी है नाव
कि
गंगा वहीं है कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों
बरस से
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश केदारनाथ सिंह की कविता बनारस' से अवतरित है। इस काव्यांश
में कवि ने बनारस के जीवन, प्रकृति और चीजों की अपरिवर्तनशीलता एवं लयबद्धता की ओर
संकेत किया है।
व्याख्या-
बनारस में सबकुछ धीरे-धीरे होता है। धूल धीरे धीरे उड़ती है। घंटे धीरे धीरे बजते हैं
और लोग भी धीरे-धीरे चलते है। धीरे-धीरे होना इस शहर की एक विशिष्ट पहचान है। सबकुछ
धीरे-धीरे एक ही लय में बंधकर घटित होता जाता है। फलस्वरूप यहाँ हर चीज यथावत बनी रहती
है। कोई चीज गिरती नहीं, स्खलित नहीं होती। एक लयबद्धता पूरे शहर को बाँधे रखती है।
जो चीज जहाँ रखी गयी थी. वह आज भी वहीं रखी हुई है। कोई भाग दौड़, आपाधापी नहीं। सबकुछ
शांति और लयबद्ध गति से हो रहा है। गंगा जहाँ थी. आज भी वहीं है। माँ गंगा के घाटों
पर जहाँ नांवे बांधी जाती थी, आज भी वहीं बँधी है। संत कवि तुलसीदास की खड़ाऊ सैकड़ों
वर्ष पूर्व जहाँ रखी गयी थी. वहीं पर वह आज भी रखी हुई है।
विशेष-
इस अवतरण में बनारस की यथास्थिति को उसके स्वभाव और लय में दिखाया गया है। यह शहर स्थितप्रज्ञ
अवस्था में रहता है। अत्यधिक उल्लास और अत्यधिक अवसाद दोनों ही स्थितियों में यह तटस्थ
बना रहता है। यह शहर किसी सन्यासी की तरह समाधिस्थ अवस्था में रहता है। यह अपरिवर्तनशीलता
उसकी परम्पराप्रियता की भी परिचायक है। यह धीमापन ही शहर का प्राण है। धीरे-धीरे में
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
(ड)
कभी सई साँझ
बिना
किसी सूचना के
घुस
जाओ इस शहर में
कभी
आरती के आलोक में
इसे
अचानक देखो
अद्भुत
है इसकी बनावट
यह
आधा जल में है आधा मंत्र में
आधा
फूल में है
आधा
शव में आधा नींद में है
आधा
शंख में
अगर
ध्यान से देखो
तो
यह आधा है
और
आधा नहीं है।
उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत काव्यावतरण केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस में संकलित है। इस अवतरण में कवि ने बनारस शहर की वास्तविकता को उजागर करने की कोशिश की है।
व्याख्या-
कवि कहता है कि किसी शाम को तुम अचानक इस शहर में आओ तो तुम्हें यह शहर अद्भुत दिखाई
देगा। कभी यह नगर आधा जल में निमग्न लगेगा और कभी आधा शहर मंत्र जपता नजर आयेगा। कभी
चारों तरफ इतने फूल दिखायी पड़ेंगे कि आधा शहर फूलों से भर जाएगा। यहाँ गंगा किनारे
घाटों में अनवरत जलते हुए शवों को देखकर लगता है कि आधा शहर शव ही शव है और इनके जल
जाने से आधा शहर ही खाली हो गया। यहाँ आधा शहर नींद में सोता दिखाई देगा तो मंत्र जपते
लोगों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आधा शहर ही मंत्रजप कर रहा है। आधा शहर शंख बजाता
हुआ दिखाई पड़ेगा। यदि ध्यान से देखो तो यह शहर आधा ही दिखाई पड़ता है। इस शहर का रहस्य
पूर्णतः कभी नहीं खुलता। जो भी दिखाई पड़ता है, वह अर्धसत्य ही होता है। यह आधा सत्य
शहर के एक पहलू को ही दिखाता है, दूसरा ढँका ही रहता है। इस तरह यह शहर अद्भुत है।
विशेष-
कवि ने बनारस शहर के स्वभाव, चरित्र और स्वरूप का वर्णन करने का सुंदर प्रयास किया
है, परन्तु वह स्वयं स्वीकारते हैं कि इसे शब्दों के द्वारा पूरी तरह चित्रित नहीं
किया जा सकता है। इसकी संपूर्णता के दर्शन शब्दों के द्वारा कतई संभव नहीं है।
इसका स्वभाव विचित्र है।
'आधा'
शब्द में चमत्कार है। कवि ने इसका प्रयोग प्रतीकात्मक रूप में किया है।
(घ)
जो है वह खड़ा है
बिना
किसी स्तंभ के
जो
नहीं है उसे थामे है
राख
और रोशनी के ऊंचे-ऊंचे स्तंभ
आग
के स्तंभ
और
पानी के स्तंभ,
धुएँ
के
खुशबू
के
आदमी
के उठे हुए हाथों के स्तम्भ,
किसी
अलक्षित सूर्य को
देता
हुआ अर्घ्य
शताब्दियों
से इसी तरह
गंगा
के जल में
अपनी
एक टांग पर खड़ा है यह शहर
अपनी
दूसरी टाँग से
बिल्कुल
बेखबर !
उत्तर-
प्रसंग प्रस्तुत काव्यावतरण केदारनाथ सिंह की कविता' बनारस की अंतिम
पंक्तियाँ है। कवि ने इस अवतरण में बनारस की विचित्र विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या-
इस अवतरण के पूर्व के अवतरण में कवि ने बनारस के चेहरे की पूर्णता उजागर करने की
कोशिश की है, किन्तु उसके चेहरे के पहलू को कुछ अंश में ही देख और दिखाँ सका है।
कवि कहता है कि यह शहर बिना किसी अवलम्ब के खड़ा है। चिताओं से उठती ऊँची-ऊँची
लपटें और गंगा- जल के ऊपर उठती हुई ऊँची-ऊँची तरंगें, चिताओं और हवन के धुएँ, राख
और रोशनी के स्तंभ इस शहर को थामे हुए हैं। गंगा तट पर हाथ उठाये लोग किसी अलक्षित
सूर्य को अर्घ्य देते रहते हैं। अर्घ्यदाताओं के ऊपर उठे हुए हाथ भी इस नगर को
थामने वाले स्तंभ हैं। यह शहर शताब्दियों से अपने इसी रूप में यथावत कायम है। गंगा
के जल में यह शहर एक टाँग पर खड़ा नजर आता है। यहाँ लोग आस्था और भक्ति में इस तरह
मग्न रहते हैं कि उन्हें बाहरी दुनिया- दारी की तनिक भी फिक्र नहीं होती। ये भक्त
लोग अपनी सारी गतिविधियाँ, समस्याएँ, चिंताएं छोड़कर आस्था और भक्ति में खो जाते
हैं। यह शहर बाहरी परिवर्तनों, छल छद्म से पूर्णत: अप्रभावित है तथा यहाँ आस्था,
विश्वास, विरक्ति, वैराग्य और श्रद्धा का अद्भुत समन्वित रूप दिखाई पड़ता है।
इस
अवतरण में बनारस शहर की विशेषताओं और विचित्रताओं का उल्लेख है। यहाँ के लोग
संस्कृति एवं धर्म को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। लक्षणा शब्द-शक्ति है। माधुर्य
गुण है। भाषा सहज व मुहावरेदार खड़ी बोली है।
प्रश्न 2. बनारस कविता में प्राचीनतम शहर बनारस का चित्रण किस प्रकार
का है ?
उत्तर-
'बनारस' कविता में कवि ने यहाँ के सांस्कृतिक वैभव का चित्रण किया है। यह प्राचीन शहर
महानं सांस्कृतिक परम्परा एवं लोक-जीवन की विशिष्टताओं को सर्मेटे हुए है। यह शहर आस्था
और विश्वास, भक्ति और पौराणिकता का केन्द्र है। बनारस और गंगा का सामिप्य मनुष्य को
बैकुंठधाम का दर्शन करा देता है। यह अवधारणा है कि बनारस शहर में जाकर दर्शन करने से
जीते जी मुक्ति होती है। यहाँ से प्रवाहित होने वाली गंगा का विशेष महात्म्य है। यहाँ
की गंगा से लोगों की विशिष्ट आस्था भी जुड़ी हुई है। बनारस में गंगा, गंगा के घाट,
मंदिर तथा मंदिर घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरे में अचानक उतरते बनारस के
अक्स को कवि देखता है। कवि ने इस कविता में बनारस के इसी रूप का चित्रण किया है। गंगा
में बंधी नाव, मंदिरों-घाटों पर प्रज्ज्वलित दीप एवं हवन आदि से उठते हुए धुएँ, मोक्ष
की कामना हेतु अहर्निश जलती चिता इत्यादि, यही तो बनारस की पहचान है। यहाँ हर काम एक
विशिष्ट लय, गति तथा तरंग में होता है। यह अद्भुत जगह है। कवि ने इस अद्भुत शहर के
रहस्यों को खोलने का सुंदर प्रयत्न किया है। कविता की भाषा अत्यंत सरल एवं सुबोध है,
परन्तु अर्थ में विलक्षण गहराई है। कवि की सूक्ष्म दृष्टि दिखाई पड़ती है।
लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. बनारस कविता में शहर का जीवन कैसे चलता है?
उत्तर-
कवि के अनुसार बनारस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है यहाँ लोग धीरे-धीरे चलते हैं धीरे-धीरे
ही यहाँ मंदिरों में घंटे बजते हैं, तथा शाम भी यहाँ धीरे-धीरे होती है। कवि के अनुसार
यहाँ सभी कार्य धीरे-धीरे होना इस शहर की विशेषता हैं। यह शहर को सामूहिक लय प्रदान
करता है।
प्रश्न 2. बनारस कविता का विषय क्या है?
उत्तर-
'बनारस कविता में प्राचीनतम शहर बनारस के सांस्कृतिक वैभव के साथ ठेठ बनारसीपन पर भी
प्रकाश डाला गया है। बनारस शिव की नगरी और गंगा के साथ विशिष्ट आस्था का केन्द्र है।
बनारस में गंगा, गंगा के घाट, मंदिर तथा मंदिरों और घाटों के किनारे बैठे भिखारियों
के कटोरे जिसमें श्रद्धालुओं के आने से सिक्के की खनक, वसंत के आने की सूचना देते हैं।
प्रश्न 3. बनारस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
बनारस भारत के प्राचीन क्षेत्रों में से एक है। यह तीन हजार वर्ष पुराना शहर माना जाता
है। इसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। यह हिन्दुओं के पवित्र तीर्थस्थलों में
एक है, इसलिए भी यह आध्यात्मिक महत्व रखता है।
अति लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. खाली कटोरे में बसंत के उतरने का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
इसका अर्थ यह है कि भिखारियों को भीख मिलने लगी।
प्रश्न 2. रोज रोज में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर-
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
प्रश्न 3. बनारस' कविता में शहर का जीवन कैसा रहता है ?
उत्तर-
बनारस कविता में शहर का जीवन धीमी गति से चलता है।
प्रश्न 4. 'बनारस' किस नदी के तट पर बसा है ?
उत्तर-
'बनारस' गंगा नदी के तट पर बसा है!
प्रश्न 5. 'बनारस' की संस्कृति कैसी है?
उत्तर-
'बनारस' की संस्कृति अत्यन्त प्राचीन और महान है।
प्रश्न 6. 'बनारस' में क्या-क्या यथास्थिति रखी हुई है।
उत्तर-
बनारस में गंगा घाटों से बँधी नाव, तुलसीदास की खड़ाऊँ आज भी यथास्थिति रखी हुई है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. किस शहर में वसंत अचानक आता है ?
(1)
पटना
(2)
गुजरात
(3)
हैदराबाद
(4) बनारस
प्रश्न 2. किस महत्ले से धूल का बवंडर आता है?
(1) लहरतारा
(2)
सोनतारा
(3)
रामनगर
(4)
गोदोलिया
प्रश्न 3. किसकी आँखों में अजीब सी नमी है?
(1)
मुर्गे
(2) बंदर
(3)
हाथी
(4)
भक्त
प्रश्न 4. बनारस में किसकी खड़ाऊं आज भी ज्यों की त्यों यथास्थान रखी
हुई है!
(1)
कालीदास
(2)
कबीरदास
(3) तुलसीदास
(4)
संत रैदास
प्रश्न 5. 'बनारस' कविता के कवि का नाम क्या है ?
(1)
जयशंकर प्रसाद
(2) केदारनाथ सिंह
(3)
महादेवी वर्मा
(4)
सुमित्रानंदन पंत
JCERT/JAC Hindi Elective प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अंतरा भाग 2 | ||
पाठ | नाम | खंड |
कविता खंड | ||
पाठ-1 | जयशंकर प्रसाद | |
पाठ-2 | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |
पाठ-3 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
पाठ-4 | केदारनाथ सिंह | |
पाठ-5 | विष्णु खरे | |
पाठ-6 | रघुबीर सहाय | |
पाठ-7 | तुलसीदास | |
पाठ-8 | मलिक मुहम्मद जायसी | |
पाठ-9 | विद्यापति | |
पाठ-10 | केशवदास | |
पाठ-11 | घनानंद | |
गद्य खंड | ||
पाठ-1 | रामचन्द्र शुक्ल | |
पाठ-2 | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी | |
पाठ-3 | ब्रजमोहन व्यास | |
पाठ-4 | फणीश्वरनाथ 'रेणु' | |
पाठ-5 | भीष्म साहनी | |
पाठ-6 | असगर वजाहत | |
पाठ-7 | निर्मल वर्मा | |
पाठ-8 | रामविलास शर्मा | |
पाठ-9 | ममता कालिया | |
पाठ-10 | हजारी प्रसाद द्विवेदी | |
अंतराल भाग - 2 | ||
पाठ-1 | प्रेमचंद | |
पाठ-2 | संजीव | |
पाठ-3 | विश्वनाथ तिरपाठी | |
पाठ- | प्रभाष जोशी | |
अभिव्यक्ति और माध्यम | ||
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