Class 12 Political Science अध्याय- 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Question Bank-Cum-Answer Book

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 Class 12 Political Science अध्याय- 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Question Bank-Cum-Answer Book


प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

Political Science

अध्याय- 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)

1. पर्यावरण सुरक्षा संबंधी पृथ्वी सम्मेलन कब हुआ?

(A) 1990 में

(B) 1991 में

(C) 1992 में

(D) 1995 में

2. क्योटो प्रोटोकॉल 1997 का सम्बन्ध निम्न- लिखित में से किससे है?

(A) जलवायु संरक्षण से

(B) वायुमण्डल संरक्षण से

(C) पर्यावरण संरक्षण से

(D) वन संरक्षण से

3. ओजोन परत का नुकसान निम्नलिखित में से किस गैस के ज्यादा उत्सर्जन से हो रहा है?

(A) ऑक्सीजन गैस

(B) क्लोरिन गैस

(C) हाइड्रोजन गैस

(D) नाइट्रोजन गैस

4. ओजोन परत के नुकसान से मानव में निम्नलिखित में किस प्रकार के रोग हो सकते हैं?

(A) मस्तिष्क रोग

(B) एड्स रोग

(C) त्वचा कैंसर रोग

(D) किड्नी संबंधी रोग

5. क्योटो प्रोटोकॉल पर भारत कब हस्ताक्षर किया?

(A) 1997 में

(B) 1998 में

(C) 2002 में

(D) 2005 में

6. किस दशक में पर्यावरण से संबंधित मामले राजनीति के मामले बने?

(A) 1960 के दशक

(B) 1980 के दशक

(C) 1990 के दशक

(D) 1950 के दशक

7. पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन कहां हुआ था?

(A) रियो डी जेनेरो

(B) क्योटो

(C) स्टॉकहोम

(D) बाली

8. क्योटो प्रोटोकॉल पर कब हस्ताक्षर हुआ था?

(A) 1997

(B) 1992

(C) 1998

(D) 2000

9. 1992 में पृथ्वी सम्मेलन कहां हुआ था?

(A) रियो डी जेनेरो

(B) क्योटो

(C) जिनेवा

(D) न्यूयॉर्क

10. विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है?

(A) 10 मई

(B) 5 जनवरी

(C) 5 जून

(D) 5 अगस्त

11. विश्व की साझी समस्या कौन है?

(A) वायुमंडल

(B) समुद्री सत्तह

(C) बाह्य अंतरिक्ष

(D) उपर्युक्त सभी।

12. ग्रीन हाउस गैस संबंधित है-

(A) वैश्विक ताप वृद्धि से

(B) विश्व बाजार से

(C) वैश्विक व्यापार से

(D) उपर्युक्त सभी से

13. वैश्विक मामलों से सरोकार रखने वाले एक विद्वत समूह "क्लब ऑव रोम ने कब' लिमिट्स टू ग्रोथ' शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की?

(A) 1962

(B) 1972

(C) 1982

(D) 1992

14. किस दशक के मध्य में अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद की खोज, एक आँख खोल देने वाली घटना है?

(A) 1960 के दशक

(B) 1970 के दशक

(C) 1980 के दशक

(D) 1990 के दशक

15. झारखंड में पावन वन प्रांतर" को किस नाम से जाना जाता है?

(A) केकड़ी और ओरान

(B) लिंगदोह

(C) काव

(D) जाहेरा थान और सारना

16. पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का क्या कारण है? निम्नलिखित में सबसे बेहतर विकल्प चुने।

(A) विकसित देश प्रकृति की रक्षा को लेकर चिंतित है।

(B) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासोंके लिए जरूरी है।

(C) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुंच गया है।

(D) इनमें से कोई नहीं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 एजेंडा - 21 क्या है?

उत्तर:- एजेंडा 21 टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए विकसित प्रथाओं की परिस्थितिक जिम्मेदारी की एक सूची है।

प्रश्न 2 ग्लोबल कॉमन्स से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः - ग्लोबल कॉमन्स उन क्षेत्रों या क्षेत्रों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा सामान्य शासन है, जो किसी एक राज्य या प्राधिकरण के संप्रभु अधिकार क्षेत्र के बाहर स्थित है।

प्रश्न 3 साझी संपदा का क्या अर्थ है?

उत्तर- साझी संपदा ऐसी संपदा को कहते हैं जिस पर किसी समूह के प्रत्येक सदस्य का स्वामित्व हो। इसके पीछे मूल तर्क यह है कि ऐसे संसाधन की प्रकृति, उपयोग और रखरखाव के संदर्भ में समूह के प्रत्येक सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होंगे और समान उत्तरदायित्व निभाने होंगे।

प्रश्न 4 ग्लोबल वार्मिंग से आप क्या समझते है?

उत्तरः- ग्लोबल वार्मिंग अथवा वैश्विक ताप वृद्धि का अर्थ विश्व में तापमान में वृद्धि से है। यह कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन और हाइड्रोफ्लोरो कार्बन आदि जैसे इसके उदाहरण है। विश्व का तापमान बढ़ने से धरती के जीवन के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। विभिन्न देश इस संबंध में वार्तालाप कर रहे हैं। क्योटो प्रोटोकॉल नामक समझौते में विभिन्न देशों की सहमति बन गई है।

प्रश्न 5 मूलवासी कौन लोग हैं?

उत्तर: किसी देश के मूलवासी वह लोग हैं जो उस देश में एक लंबे समय से निवास कर रहे हैं। मूलवासी आज भी उस देश के संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से ज्यादा अपनी परंपरा, सांस्कृतिक रिवाज तथा अपने खास सामाजिक, आर्थिक ढर्रे पर जीवन यापन करना पसंद करते हैं।

प्रश्न 6 वैश्विक सुरक्षा के लिए कौन-कौन से समझौते हुए हैं?

उत्तर:-

1 अंटार्कटिक संधि -1959

2 मोंट्रियल प्रोटोकोल -1987

3 अंटार्कटिक पर्यावरणीय प्रोटोकॉल-1991,

प्रश्न 7 विश्व में खाद्य उत्पादन की कमी के क्या कारण है?

उत्तर:- विश्व में खाद्य उत्पादन की कमी के कारण-

1. विश्व के कृषि योग्य भूमि में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है, जबकि मौजूदा उपजाऊ भूमि के एक बड़े हिस्से की उर्वरा शक्ति कम हो रही है।

2. चरागाह समाप्त होने को हैं, मत्स्य भंडार घट रहा है और जलाशयों में प्रदूषण बढ़ रहा है।

प्रश्न 8 'ओजोन परत में छेद' से आप क्या समझते हैं?

उत्तरः- पृथ्वी की ऊपरी वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है इसे ओजोन परत में छेद होना भी कहते हैं। इससे परिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक वास्तविक खतरा मंडरा रहा है।

प्रश्न 9 पृथ्वी सम्मेलन या रियो सम्मेलन क्या है?

उत्तर:- 1992 ईस्वी में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केंद्रिक एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुआ। इसे ही पृथ्वी सम्मेलन या रियो सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ' विश्व की साझी विरासत' का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?

उत्तर- साझी संपदा, उन संसाधनों को कहते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। इसी प्रकार विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें वैश्विक संपदा या मानवता की साझी विरासत कहा जाता है।

विश्व की साझी विरासत के दोहन और प्रदूषण के तरीके- पृथ्वी की ऊपरी वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है। ऐसा औद्योगिकरण के कारण हो रहा है। पश्चिमी देशों का इस कार्य में अधिक हाथ रहा है।

अंटार्कटिका क्षेत्र के कुछ हिस्से अवशिष्ट पदार्थों जैसे तेल के रिसाव के दबाव में अपने गुणवत्ता खो रहे हैं। संपूर्ण विश्व में समुद्र तटों का प्रदूषण बढ़ रहा है। इसका तटवर्ती जल ग्रीन हाउस क्रियाकलाप से प्रदूषित हो रहा है तथा अंतरिक्ष में विभिन्न देश तेजी से प्रयोग कर रहे हैं और उसे प्रदूषित कर रहे हैं।

प्रश्न 2. "साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेवारियां से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं।

उत्तर- पर्यावरण संरक्षण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के देशों के विचारधारा अलग-अलग हैं। उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में पर्यावरण आज मौजूद है। यह देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की भागीदारी बराबर हो। दक्षिण के विकासशील देशों का तर्क है, कि इस समय परिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुंचा है। यदि विकसित देशों में पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है तो उन्हें उस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए। विकासशील देश अभी औद्योगिकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और जरूरी है कि उन पर वे प्रतिबंध ना लगे जो विकसित देशों पर लगाए जाने हैं। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग और व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट जरूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए। 1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को मान लिया गया और इसे साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियां" का सिद्धांत कहा गया।।

पर्यावरण संरक्षण से जुड़े निर्णय या सुझाव-

जलवायु परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार के अनुसार सभी देश अपनी क्षमता के अनुरूप पर्यावरण के अपक्षय में अपनी-अपनी भूमिका निभाते हुए पर्यावरण सुरक्षा में योगदान दें। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा हिस्सा विकसित देशों का है। इसी कारण भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से अलग रखा गया है। विकसित देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव ज्यादा है और इन देशों के पास पर्याप्त प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय संसाधन है। ऐसे में टिकाऊ विकास के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास में विकसित देश अपने विशेष जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे।

प्रश्न 3. वैश्विक तापवृद्धि क्या है?

उत्तर: - वैश्विक तापवृद्धि का मतलब है हमारी धरती के औसत तापमान में बढ़ौतरी। सामान्यतया प्राकृतिक कारणों से और मानवीय गतिविधियों से भी तापमान में बढ़ोतरी होती है। ये बढोतरी असल में वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की बढोतरी के कारण होती है। ग्रीन हाउस गैसें बहुत सारी होती है। उदाहरण के लिए कार्बनडाइऑक्साइड (CO2), CFC आदि।

प्रश्न4. एजेंडा -21 के मुख्य बिन्दु क्या-क्या है?

उत्तरः- एजेंडा- 21 के मुख्य विन्दु निम्नलिखित हैं

(1) पर्यावरण और विकास के बीच सम्बंध के मुददों को समझा जाय।

(2) ऊर्जा का अधिक कुशल तरीके से इस्तेमाल किया जाए।

(3) किसानों को पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी दी जाए।

(4) प्रदूषण फैलाने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया जाए।

(5) कूड़े कचरे के प्रबन्ध के लिए राष्ट्रीय योजनाएँ तैयार की जाए।

प्रश्न 5. ओजोन परत में छिद्र का वर्णन करें।

उत्तर- वायुमंडल के समताप मंडल में ओजोन परत पाई जाती है, जिसे ओजोन मंडल के नाम से भी जानते हैं। ओजोन परत सूर्य से आने वाली अल्ट्रा वायलेट किरणों को सोख लेती है। यदि अल्ट्रावायलेट किरणें सीधे धरती पर पहुंचने लगे तो त्वचा संबंधी अनेक बीमारियों का खतरा हो सकता है। यह पृथ्वी की सुरक्षा कवच है। परंतु उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के ऊपर एक बड़ा छिद्र पाया गया है, इसे ओजन परत में छेद होना भी कहते हैं। इससे परिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि रेफ्रिजरेटरों और अन्य कूलिंग उपकरणों में  प्रयोग होने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) गैसों में शामिल क्लोराइड गैस ओजोन परत के लिए काफी खतरनाक है।

प्रश्न 6- क्योटो प्रोटोकॉल का वर्णन करें।

उत्तर- क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। जो जलवायु परिवर्तन के संबंध में जापान के क्योटो शहर में 1997 को एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। परंतु इसमें विकसित और विकासशील देशों के बीच भारी मतभेद उत्पन्न हो गए। विकसित देश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में पर्यावरण आज मौजूद है। यह देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की भागीदारी बराबर हो। विकासशील देशों का तर्क है कि परिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के विकास से पहुंचा है। यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए। विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और जरूरी है कि उन पर वह प्रतिबंध ना लगे, जो विकसित देशों पर लगाए जाने हैं। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग और व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट जरूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए। जापान के क्योटो में 1997 में इस प्रोटोकॉल में सहमति बनी।

प्रश्न 7. वैश्विक संपदा का अर्थ स्पष्ट करें।

उत्तर- वैश्विक संपदा अथवा साझी संपदा ऐसी संपदा को कहते हैं जिस पर समूह के प्रत्येक सदस्य का अधिकार हो । इसके पीछे मूल तर्क है कि ऐसे संसाधन की प्रकृति, उपयोग के स्तर और रख-रखाव के संदर्भ में समूह के हर सदस्य को अधिकार प्राप्त होंगे और समान जिम्मेदारी निभाने होंगे। संयुक्त परिवार का चूल्हा, चरागाह, मैदान, कुंआ, या नदी साझी संपदा का उदाहरण है। इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश की संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीयसमुदाय द्वारा किया जाता है। उन्हें वैश्विक संपदा या मानवता की साझी विरासत कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल है।

प्रश्न 8. वैश्विक पर्यावरण पर किन्हीं चार खतरों को बताइए ।

उत्तर- वैश्विक पर्यावरण के चार खतरे-

(क) तापमान वृद्धि से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सुखा और लू के खतरे की आशंका बढ़ जाती है।

(ख) ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता के कारण ओजोन परत में छिद्र हो गया है, जिससे मानवीय जीवन में खतरा मंडरा रही है।

(ग) वैश्विक ताप वृद्धि के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप समुद्री जल की स्तर बढ़ रही है।

(घ) वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रो-फ्लोरो कॉर्बन, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन जैसी गैसों की अधिकता के कारण अम्लीय वर्षा हो सकती है जो कृषि के लिए हानिकारक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संसाधनों की भू राजनीति की व्याख्या करें।

उत्तर- संसाधनों की भू- राजनीति, किसे, क्या, कब और कैसे सवालों से जुझती है। यूरोपीय ताकतों के विश्व व्यापी प्रसार का एक मुख्य साधन और मकसद संसाधन रहे हैं। संसाधनों से जुड़ी भू-राजनीति को पश्चिमी दुनिया ने ज्यादातर व्यापारिक संबंध, युद्ध तथा ताकत के संदर्भ में सोचा। पूरे शीत युद्ध के दौरान उत्तरी गोलार्ध के विकसित देशों ने इन संसाधनों की सतत आपूर्ति के लिए कई तरह के कदम उठाए। किसके अंतर्गत संसाधन दहन के इलाकों तथा समुद्री परिवहन मार्गों के इर्द-गिर्द सेना की तैनाती, महत्वपूर्ण संसाधनों का भंडारण, तथा बहुराष्ट्रीय निगम और अपने हित साधक, अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को समर्थन देना शामिल है। पश्चिमी देशों के राजनीतिक चिंतन का केंद्रीय सरोकार यह था कि संसाधनों तक पहुंच अवाध रूप से बनी रहे। क्योंकि सोवियत संघ इस खतरे में डाल सकता था।

बीसवीं सदी के अधिकांश समय में विश्व की अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर रही। तेल के साथ विपुल संपदा जुड़ी है और इसी कारण इस पर कब्जा जमाने के लिए राजनीतिक संघर्ष छिड़ता है। पेट्रोलियम का इतिहास युद्ध और संघर्षों का भी इतिहास है। यह बात पश्चिम एशिया और मध्य एशिया में सबसे स्पष्ट रूप से नजर आती है। पश्चिम एशिया खासकर खड़ी क्षेत्र विश्व के कुल तेल उत्पादन का 20% मुहैया कराता है। इस क्षेत्र में विश्व के ज्ञात तेल भंडार का 64 प्रतिशत हिस्सा मौजूद है और इस कारण यही इकलौता क्षेत्र है जो तेल की मांग में खास बढ़ोतरी होने पर उसकी पूर्ति कर सकता है। सऊदी अरब के पास विश्व के कुल तेल भंडार का एक चौथाई हिस्सा मौजूद है। सऊदी अरब विश्व में सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है इसके बाद इराक दूसरे नंबर पर हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन और भारत में इस तेल की खपत होती हैं। परंतु ये देश इस इलाके से बहुत दूरी पर है।

विश्व राजनीति के लिए पानी एक और महत्वपूर्ण संसाधन है। विश्व की कुछ भागों में साफ पानी की कमी हो रही है। साथ ही विश्व के हर हिस्सों में स्वच्छ जल समान मात्रा में मौजूद नहीं है। संभव है कि साझे जल संसाधन 21वीं सदी में युद्ध के कारण बने। जलधारा के उद्गम से दूर बसा देश उद्गम के नजदीक बसे हुए देश द्वारा इस पर बांध बनाने, इससे अधिक सिंचाई करने या प्रदूषित करने पर आपत्ति जताता है। देशों के बीच स्वच्छ जल संसाधनों को हथियाने या उनकी सुरक्षा करने के लिए हिंसक झड़पें हुई हैं। 1950- 60 के दशक में इजराइल, सीरिया और जॉर्डन के बीच नदी जल को लेकर विवाद रहा। भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जल बंटवारा, गंगा नदी जल बंटवारा का विवाद रहा। भारत-बांग्लादेश के बीच गंगा नदी, मुहरी नदी, तीस्ता नदी आदि का जल विवाद रहा। फिलहाल चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी की धारा मोड़ने और बांध बनाने की बात का भारत ने विरोध प्रकट किया है।

इस प्रकार बहुत से देशों के बीच नदियों के जल को लेकर विवाद है और उनके बीच सैन्य संघर्ष होते रहते हैं।

प्रश्न 2. मूलवासी लोगों और उनके अधिकारों के बारे में लिखें।

उत्तर- मूलवासी हम किसको कहेंगे, यह सवाल पर्यावरण, संसाधन और राजनीति को एक साथ जोड़ देती हैं। 1982 मे संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मूलवासियों को ऐसे वंशज बताया गया जो किसी मौजूद देश में बहुत दिनों से रहते आ रहे थे, फिर किसी दूसरे संस्कृति या जातीय मूल के लोग विश्व के दूसरे हिस्से से उस देश में आये और उन लोगों को अधीन बना लिया। किसी देश के मूलवासी आज भी उस देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से ज्यादा अपनी परंपरा, संस्कृति, रिवाज तथा अपने खास सामाजिक, आर्थिक ढर्रे पर जीवन- यापन करना पसंद करते हैं।

भारत सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में लगभग 30 करोड़ मूलवासी निवास करते हैं। फिलीपिन्स के कोरडिलेरा क्षेत्र मैं 20 लाख मूलवासी लोग रहते है। चिली में मापुशे नामक मूलवासियों की संख्या 10 लाख है। बांग्लादेश के चटगांव पर्वतीय क्षेत्र में 6 लाख आदिवासी रहते हैं। उत्तर अमेरिका में मूलवासियों की संख्या 3 लाख 50 हजार है। पनामा नहर के पूरब में कुना नामक मूलवासी 50 हजार की तादाद में हैं और उत्तरी सोवियत में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 40 लाख है। दूसरे सामाजिक आन्दोलनों की तरह मूलवासी भी अपने संघर्ष, एजेंडा और अधिकारों की आवाज उठाते हैं।

मूलवासियों के अधिकार एवं मांगे निम्नलिखित है:-

(1) विश्व राजनीति में मूलवासियों की मांग है, कि उन्हें विश्व बिरादरी में बराबर का दर्जा मिले।

(2) सरकारों से इनकी मांग है कि उन्हें मूलवासी कौम के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान रखने वाला समुदाय माना जाय ।

(3) अपने मूल वास स्थान पर हक की दावेदारी में विश्वभर के मूलवासी यह जुमला इस्तेमाल करते हैं कि हम यहाँ अनंत काल से रहते चले आ रहे हैं। अतः हमें अपने मूल स्थान से नहीं हटाया जाय।

(4) मूलवासियों के आर्थिक संसाधन का अधिक दोहन न किया जाय।

(5) राजनीति में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए। इसी संदर्भ में संविधान के द्वारा मूल वासियों (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति) को राज्य विधानसभा एवं लोकसभा में आरक्षित स्थान आवंटित किया गया है तथा साथ ही उनकी कला, संस्कृति और भाषा को सरकार के द्वारा संरक्षण किया जाता रहा है।

1970 के दशक में विश्व के विभिन्न भागों के निवासियों के नेताओं के बीच संपर्क बढ़ा है तथा इससे इनके साझे अनुभवों और सरोकारों को एक शक्ल मिली है। 1975 में "वर्ल्ड काउंसलिंग आफ इंडिजिनस पीपल्" का गठन हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ में सबसे पहले इस परिषद को परामर्शदायी परिषद का दर्जा दिया गया। इसके अतिरिक्त आदिवासियों के सरोकारों से संबद्ध 10 अन्य स्वयंसेवी संगठनों को भी यह दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 3. भारत के पावन वन प्रान्तर के बारेमें विवेचना करें।

उत्तर: - भारत में बहुत से पुराने समाजों में धार्मिक कारणों से प्रकृति की रक्षा करने का प्रचलन है। इस प्रथा में वनों के कुछ हिस्सों को काटा नहीं जाता है। ऐसा माना जाता है, कि इन स्थानों पर देवता अथवा पुण्यात्मा का वास होता है। इन्हें ही "पावन वन प्रान्तर या देवस्थान कहा जाता है। इन पावन वन प्रान्तरों के देशव्यापी फैलाव का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है, कि देशभर की भाषाओं में इनके लिए अलग-अलग शब्द हैं। इन देव स्थानों को राजस्थान में वानी, केकड़ी और ओरान झारखण्ड में जाहेरा थान और सारना; मेघालय में लिंगदोह; ' केरल में कावः उतराखण्ड में थान या देव भूमि और महाराष्ट्र में देव रहतिस आदि सैकड़ों नामों से जाना जाता है। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े साहित्य में देवस्थान के महत्व को अब स्वीकार किया जा रहा है। और इसे समुदाय आधारित संसाधन प्रबन्धन के रूप में देखा जा रहा है। देवस्थान को हम ऐसी व्यवस्था के रूप में देख सकते हैं। जिसके अंतर्गत पुराने समाज प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल इस तरह करते हैं, कि पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बना रहे। कुछ अनुसंधानकर्ताओं का विश्वास है कि देवस्थान की मान्यता से जैव-विविधता और पारिस्थितिकी- संरक्षण में ही नहीं सांस्कृतिक वैविध्य को भी कायम रखने में मदद मिल सकती है। देव स्थान की व्यवस्था वन संरक्षण के विभिन्न तौर-तरीकों से सम्पन्न है और इस व्यवस्था की विशेषताएं साझी संपदा के संरक्षण की व्यवस्था से मिली- जुलती है। देवस्थान के महत्व का परंपरागत आधार ऐसे क्षेत्र की आध्यात्मिक अथवा सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं।

हिन्दु समवेत् रूप से प्राकृतिक वस्तुओं की पूजा करते हैं। जिसमें पेड़ और वन प्रान्तर भी शामिल हैं। बहुत से मंदिरों में का निर्माण देवस्थान में हुआ है। संसाधनों की विरलता नहीं प्रकृति के प्रति गहरी श्रद्धा ही वह आधार थी, जिसने इतने युगों से वनों को बचाए रखने की प्रतिबद्धता कायम रखी। बहरहाल हाल के सालों में मनुष्यों की बसावट के विस्तार ने धीरे-धीरे ऐसे देवस्थानों पर कब्जा कर लिया है।

नई राष्ट्रीय वन नीतियों के आने के साथ कई जगहों पर इन परंपरागत वनों की पहचान मंद पड़ने लगी है। देवस्थान के प्रबन्धन में एक कठिन समस्या तब आती है जब ऐसे स्थान का कानूनी स्वामित्व एक के पास हो और व्यावहारिक नियंत्रण किसी दूसरे के हाथ में हो; यानी कानूनी स्वामित्व राज्य का हो, और व्यावहारिक नियंत्रण समुदाय के हाथ में। इन दोनों के नीतिगत मानक अलग-अलग हैं और देवस्थान के उपयोग के उददेश्य में भी इनके बीच कोई मेल नहीं।

प्रश्न4: पर्यावरण के सम्बन्ध में भारत के पक्ष का वर्णन करें।

उत्तर- भारत प्रारंभ से ही संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य है तथा उसका समर्थक है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेता आया है और उसके कानूनों, नियमों तथा प्रस्तावों का पालन करता है। लेकिन वह सभी मुद्दों पर खुले मन से तथा पक्ष पात रहित दृष्टिकोण अपनाकर किसी भी घटना का विरोध या समर्थन करता है। उदाहरण के लिए ने भारत ने परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि को स्वीकार नहीं किया है। यही दृष्टिकोण भारत ने पर्यावरण संबन्धी मुद्दों पर अपनाया है। पर्यावरण की रक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पास किए गए प्रस्तावों तथा सुझावों को भारत ने स्वीकारा है, परंतु कुछ प्रस्तावों का आंशिक रूप से विरोध भी किया है, जो उसके अनुसार विकासशील देशों के हित में नहीं समझे जाते तथा पश्चिमी विकसीत देशों द्वारा विकासशील देशों पर थोपे जाने के रूप में देखे जाते हैं।

भारत ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में निम्नलिखितपक्ष रखा

(क) भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल (1997) पर हस्ताक्षर किए और उसका अनुमोदन किया।

(ख) 2005 के जून में G-8 देशों की बैठक हुई। इसमें भारत ने ध्यान दिलाया कि विकासशील देशों में ग्रीन हाऊस गैसों की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर विकसीत देशों की तुलना में नाममात्र है। साझी परंतु अलग- अलग जिम्मेदारियों के सिद्धांत के अनुरूप भारत का विचार है कि उत्सर्जन दर में कमी करने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी विकसीत देशों की है; क्योंकि इन देशों ने एक लम्बी अवधि तक बहुत ज्यादा उत्सर्जन किया है।

(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ के यूएनएफसीसीसी के अंतर्गत चर्चा चली कि तेजी से औद्योगिक होते देश जैसे ब्राजील, चीन और भारत नियमाचार (प्रोटोकॉल) की बाध्यताओं का पालन करते हुए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करें। परंतु भारत इस बात के खिलाफ है। उनका मानना है कि यह बात इस नियमाचार की मूल भावना के विरुद्ध है।

(घ) भारत सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए पर्यावरण से संबंधित वैश्विक प्रयासों में शिरकत कर रही है। उदाहरण के लिए भारत ने अपने "नेशनल ऑटो फ्यूल पॉलिसी" के अंतर्गत वाहनों के लिए स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया है।

(ड) 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। इसमें ऊर्जा के ज्यादा कारगर इस्तेमाल की पहल की गई है।

(च) 2003 के बिजली अधिनियम में पुनर्नवा (renewable) ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है।

(छ) भारत ने 2 अक्टूबर 2016 को पेरिस जलवायु समझौते को अनुमोदन किया।

(ज) भारत का यह भी मानना है कि दक्षेस (SAARC) में शामिल देश पर्यावरण के प्रमुख वैश्विक मसलों पर एक समान राय बनावें ताकि उस क्षेत्र की आवाज को जोरदार ढंग से उठाया जाए।



JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

भाग 1 ( समकालीन विश्व राजनीति)

अध्याय - 01

शीत युद्ध का दौर

अध्याय - 02

दो ध्रुवीयता का अंत

अध्याय - 03

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

अध्याय - 04

सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र

अध्याय - 05

समकालीन दक्षिण एशिया

अध्याय - 06

अंतर्राष्ट्रीय संगठन

अध्याय - 07

समकालीन विश्व में सुरक्षा

अध्याय - 08

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

अध्याय - 09

वैश्वीकरण

भाग 2 (स्वतंत्र भारत में राजनीति )

अध्याय - 01

राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

अध्याय 02

एक दल के प्रभुत्व का दौर

अध्याय - 03

नियोजित विकास की राजनीति

अध्याय - 04

भारत के विदेश संबंध

अध्याय - 05

कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

अध्याय - 06

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

अध्याय - 07

जन आंदोलनों का उदय

अध्याय - 08

क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

अध्याय - 09

भारतीय राजनीति नए बदलाव

Solved Paper of JAC Annual Intermediate Examination - 2023

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